रविवार, 2 सितंबर 2012

‘गांव’ की धरती से ‘जहान’ में उठेगी एक नई क्रांति की लहर

कीटनाशकों की दलदल में धंसता जा रहा किसान

उग्र हो रही है किसान-कीट की जंग

नरेंद्र कुंडू

जींद। आज फसलों में अंधाधूंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण मानव व पशु जगत पर जो खतरा मंडरा रहा है, वह किसी से छुपा नहीं है। अगर पिछले 40 सालों के इतिहास पर नजर डाली जाए तो इन 40 वर्षों में हर वर्ष कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ लगातार ऊपर की तरफ बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के मृत्युदर के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो उसमें 13 प्रतिशत लोग अकेले कैंसर के कारण मौत के मुहं में समा रहे हैं। इसी संगठन की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार फसल की सुरक्षा के लिए कीटनाशक का छिड़काव करते हुए हर वर्ष 20 हजार किसान काल का ग्रास बन रहे हैं। इस प्रकार पिछले 40 वर्षों में किसानों व कीटों की इस जंग में आठ लाख किसान अनामी शहीद हो चुके हैं। इसके अलावा विषायुक्त भेजन खाने के कारण कैंसर, शुगर, हार्ट फेल व सैक्स संबंधि बीमारियों के मरीजों की तादात भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। काटन व काजू बैलट में कीटनाशकों के अधिकतम इस्तेमाल के कारण इस बैलट में कैंसर के मरीजों की तादात में बढ़ोतरी हो रही है। इसलिए तो भठिंडा से बीकानेर जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन को कैंसर ट्रेन के नाम से पहचाना जाता है। क्योंकि इस ट्रेन में कैंसर के मरीजों व उनके सहयोगियों के अलावा सिर्फ कुछेक ही सवारियां होती हैं। अब तो पंजाब के फरीदकोट, फिरोजपुर, भठिंडा व मानसा जिले से हर रोज कैंसर का उपचार करवाने जाने वालों
 कपास की फसल में मौजूद नई किस्म की लोपा मक्खी।
की सालम सवारियों के रूप में गाड़ियां भी बुक होती हैं। क्योंकि इन क्षेत्रों में किसान अधिक उत्पादन के लालच में फसलों में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग में बढ़ोतरी होने का प्रमुख कारण किसानों में भय व भ्रम की स्थिति होना। किसान आज भी लदी-लदाई सोच का शिकार हैं और बुजुर्गों से विरासत में मिले ज्ञान के आधार पर ही खेती करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी खेती करने के बाद भी किसान खुद का ज्ञान पैदा नहीं कर पाए हैं। कुछ मुनाफाखोर लोगों ने इसका भरपूर फायदा उठाते हुए किसानों में भय व भ्रम की स्थिति पैदा कर इन्हे गुमराह कर दिया। इन मुनाफाखोरों ने किसानों को पैदावार बढ़ाने का लालच देकर इन्हें कीटनाशकों के दलदल में धकेल दिया और ऐसा धकेल दिया कि अब इस दलदल से निकल पाना इनके बस की बात नहीं। ज्ञान के अभाव के कारण किसान आज कीटनाशकों के इस दलदल में धंसता ही जा रहा है। कोई भी किसान आज इस बात को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं कि बिना कीटनाशक के भी खेती हो सकती। लेकिन हरियाणा प्रदेश के जींद जिले के गांव निडाना के किसानों ने इन मुनाफाखोरों को चुनौति देते हुए कीट प्रबंधन के माध्यम से कीटनाशकों का तोड़ ढूंढ़ निकाला है। इसलिए निडाना के किसानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि किसान-कीट की इस जंग में दुश्मन की पहचान सबसे जरुरी है। जब तक हमें दुश्मन की पहचान ही नहीं होगी, तब तक जंग में जीत निश्चित नहीं हो सकती। इस लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए निडाना के किसानों ने ‘कीट नियंत्रणाय कीटा: हि:अस्त्रामोघा’ के स्लोगन को अपनाते हुए कीटों को अपना अचूक अस्त्र बना लिया है।  इस निष्कर्ष के बाद ही निडाना के इतिहास में वर्ष 2009 में एक नया अध्याय जुड़ गया। 2009 में यहां के 30 किसानों ने 500-500 रुपए अपनी जेब से खर्च कर एक कीट साक्षरता केंद्र के नाम से एक पाठशाला की शुरूआत
किसानों को जानकारी देते कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल।
की और इसके लिए इनका मार्गदर्शन किया कृषि विभाग के कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने। निडाना के खेतों में सप्ताह के हर मंगलवार को चलने वाली यह एक अनोखी पाठशाला है। इस पाठशाला में कीटों की तालीम देकर देश की आर्थिक रीड (यानि किसानों) को सुदृढ़ करने के सपने बुने जा रहे हैं। यहां पर किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाए जाते हैं और किसान यहां खेत की मेड पर ही बैठकर अपने अनुभव सांझा करते हैं। इस पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि यहां न ही तो कोई अध्यापक है और न ही कोई स्टूडेंट है। यहां तो किसान खुद ही अध्यापक हैं और खुद ही स्टूडेंट। इस पाठशाला में किसान स्वयं मेहनत करते हैं और कागजी ज्ञान की बजाए व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते हैं।
कपास के पौधे पर मचान लगाकर बैठी मासाहारी डायन मक्खी।
कीटों की पहचान करने, परखने व इनके क्रियाकलापों को समझने के लिए किसान पूरी सिद्दत के साथ इस पाठशाला में भाग लेते हैं। अपनी कठोर मेहनत के बलबूत ही इन किसानों ने कपास की फसल में आए भस्मासुर (मिलबग) का तोड़ भी निकाल लिया। क्योंकि किसानों को सबसे ज्यादा खतरा मिलीबग से ही था और मिलीबग का नाम सुनकर बड़े-बड़े किसानों की भी पेंट गिली हो जाती थी। पाठशाला के दौरान निडाना के किसानों ने कीट नियंत्रण पर नजर दौड़ाई तो पाया कि 20वीं सदी के अंतिम व 21वीं सदी के प्रथम वर्ष में जितना कीटनाशकों का प्रयोग कपास की फसलों पर हुआ, इतना कभी भी किसी फसल पर नहीं हुआ। कई जगह तो किसानों ने कीटों का नियंत्रित कर अधिक उत्पादन लेने के चक्कर में कपास की फसल पर 40-40 स्प्रे प्रयोग किए। बाद में जो परिणाम किसानों के सामने आए उसने सबको चौंका दिया। क्योंकि इस दौरान उत्पादन बढ़ने की बजाये मुहं के बल गिरा है। फिलहाल ये किसान 152 किस्म के मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर चुके हैं। जिसमें 43 किस्म के शाकाहारी व 109 किस्म के मासाहारी कीट हैं। शाकाहारी कीटों में कपास की फसल में 20 किस्म के रस चूसक, 13 किस्म के पर्णभक्षी, 3 किस्म के पुष्पाहारी, 3 किस्म के फलाहारी व 4 अन्य किस्म के कीट हैं। इन किसानों ने मासाहारी कीटों को भी अलग-अलग कैटेगरी में बांटा हुआ है। जिसमें 12 किस्म के परपेटिये कीट हैं। ये ऐसे कीट हैं जो दूसरों के पेट में अपने अंडे देते हैं। 3 किस्म के ऐसे कीट हैं जो दूसरे कीटों के अंडों में अपने अंड़े देते हैं। एक किस्म के परजीवी, 5 किस्म के कीटाणु व विषाणु तथा 88 किस्म के परभक्षी कीट हैं। परभक्षी में दूसरे कीटों का खून पीने वाले 9 किस्म के बुगड़े, 12 किस्म की लेडीबिटल, 19 किस्म की मक्खियां, 10 किस्म की भिरड़, ततैये, 7 किस्म की भू बिटल, 8 किस्म के हथजोड़े, 2 किस्म के क्राइसोपा, 2 किस्म के जारजटिया, 4 किस्म के अन्य तथा 16 किस्म की मक्ड़ियां शामिल हैं। जींद जिले के अलावा रोहतक जिले के भी कुछ
 बारिश में भी छाता लेकर कीट अवलोकन करती महिलाएं।
किसान इस मुहिम से जुड़ चुके हैं। निडाना में तो कई ऐसे परिवार हैं, जिनकी तीन-तीन पीढ़ियां इसी काम में लगी हुई हैं और उनको इसके सुखद परिणाम मिल रहे हैं। निडाना गांव में रणबीर मलिक, जोगेंद्र, महाबीर, ललीतखेड़ा में रामदेवा, रमेश, कृष्ण, निडानी में जयभगवान, महाबीर, ईगराह में मनबीर रेढू का पूरा परिवार इसी काम में जुटा हुआ है। इन किसानों की मेहनत भी अब रंग लाने लगी है। धीरे-धीरे यह मुहिम अन्य गांवों में भी अपनी जड़ें जमाने लगी है। निडाना के साथ-साथ अब निडानी, चाबरी, ललीतखेड़ा, ईगराह, राजपुरा-भैण, सिवाहा, शामलोखुर्द, अलेवा, खरकरामजी आदि गांवों से हजारों किसान अब कीटनाशक मुक्त खेती करते हैं और भरपूर उत्पादन ले रहे हैं। निडाना गांव के खेतों से कीटनाशकों के विरोध में उठी क्रांति की एक छोटी सी चिंगारी अब जल्द ही ज्वालामुखी का रूप धारण करने जा रही है। क्योंकि पिछले चार दशकों से किसानों व कीटों के बीच चले आ रहे इस झगड़े को निपटाने का जिम्मा अब चुटकियों में बड़े-बड़े विवादों को निपटाने के लिए मशहूर उत्तर भारत की खाप पंचायतों ने अपने हाथों में ले लिया है। इस झगड़े में निष्पक्ष फैसला सुनाया जा सके इसके लिए खाप पंचायतों ने इस विवाद की गहराई में जाने के लिए पहले खेत में कीटों व पौधों के बीच बैठकर इस मुकद्दमे पर गहन मंथन करने का निर्णय लिया। जिसके तहत सप्ताह के हर मंगलवार को खाप पंचायतों के कुछ प्रतिनिधि निडाना के खेतों में चल रही किसान खेत पाठशाला में
महिला किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधि के साथ बातचीत करती महिलाएं।
पहुंचकर इस मुकद्दमे की सुनवाई करते हैं। खाप पंचायत के प्रतिनिधि जमीनी हकीकत को जानने के लिए कीटों व पौधों की भाषा सीख रहे हैं और कीट मित्र किसान पंचायत के सामने बेजुबान कीटों का पक्ष रखते हैं। ताकि पंचायत से फैसला सुनाते वक्त कीटों के साथ किसी प्रकार का अन्याय न हो सके। 18 पंचायतों के बाद अक्टूबर माह में 19वीं सर्व खाप पंचायत निडाना गांव में आयोजित होगी और यहां पर इस झगड़े का निपटारा कर एक ओर इतिहास लिखा जाएगा।

किसान-कीट जंग में क्यों कमजोर पड़ रहे हैं किसान

कपास के फूल को खाती तेलन कीट।
कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से यह बात तो साफ हो चुकी है कि पिछले चार दशकों में किसानों व कीटों के बीच जो जंग चली आ रही है, वह खत्म होने की बाजये उग्र रूप धारण करती जा रहा है। कीट मित्र किसानों का मानना है कि किसान व कीटों की इस जंग में कीट सेना को कोई क्षति हुई है या नहीं, लेकिन मानव जाति इस जंग में जरुर कमजोर पड़ती जा रही है। क्योंकि किसानों के पास तो केवल अस्त्र ही हैं और कीटों के पास तो अस्त्र व शस्त्र दोनों प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं, जो जंग जीतने के लिए अनिवार्य हैं। इंसान के पास तो केवल एक जोड़ी पैर व एक जोड़ी
 तेलन कीट द्वारा कपास के फूल के नर पुंकेशर खाने के बाद सुरक्षित बचा मादा पुंकेशर।
हाथ हैं। लेकिन कीटों के पास तो तीन-तीन जोड़ी पैरों के अलावा उड़ने के लिए पंख भी हैं। जब किसान कीटनाशक की सहायता से इन पर काबू पाने का प्रयत्न करता है तो, ये खतरा महशूस होने पर उड कर आसानी से दूर भाग सकते हैं। इसके अलावा कीटों के पास एक ऐसी ताकत है, जिसका किसान के पास कोई तोड़ नहीं है और वह है इनकी प्रजजन क्षमता अर्थात बच्चे पैदा करने की शक्ति। कीट अपने छोटे से जीवनकाल में एक साथ हजारों बच्चे पैदा कर सकते हैं। जिससे इनकी बीजमारी संभव नहीं है। कीटों के पास लड़ाई के लिए हवाई सेना
के रूप में टिड्डी व थल सेना के रूप में दीमक की फौज भी है, जो पलभर में ही सबकुछ तबाह कर सकती है।

कीट बही-खाता किया जा रहा है तैयार

महिला किसान पाठशाला में कीटों का आंकड़ा तैयार करती महिलाएं।
कीटों व किसानों के इस झगड़े में पंचायत सही न्याय कर सके इसके लिए कीट साक्षारता केंद्र के किसानों द्वारा पूरी योजना तैयार की गई है। पंचायत के समक्ष कीटों के पक्ष में सभी साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए किसानों के 5 ग्रुप बनाए गए हैं। कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनर को प्रत्येक ग्रुप का लीडर बनाया गया है। प्रत्येक ग्रुप 10-10 पौधों की गिनती करता है और एक पौधे पर मौजूद सभी पत्तों व उन पर मौजूद कीटों की पहचान कर उनका आंकड़ा तैयार करता है। सभी ग्रुपों द्वारा गिनती की जाने के बाद उनका अनुपात निकाला कर कीट बही-खाते में दर्ज किया जाता है। ये किसान हवा में बाते करने की बजाये जमीनी हकीकत पर आजमाई गई विधियों को  प्रयोग के साथ दूसरे किसानों के समक्ष रखते हैं।

पाठशाला बनी प्रयोगशाला

दशकों से चली आ रही इस लड़ाई में खाप पंचायत से फैसले में किसी प्रकार की चूक न हो इसके लिए कीट कमांडो किसानों ने किसान खेत पाठशाला को प्रयोगशाला बना दिया। शाकाहारी कीटों के पत्तों को खाने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क पड़ता है या नहीं इसको आजमाने के लिए किसानों ने एक फार्मुला अपनाया है। इसके लिए किसानों द्वारा खेत में खड़े कपास के पांच पौधों के प्रत्येक पत्ते का तीसरा हिस्सा कैंची से कटा जाता है। किसानों का मानना है कि उन द्वारा जितना पत्ता काटा जा रहा है, उतना पत्ता कोई भी कीट नहीं खा सकता। पाठशाला के संचालक डा. दलाल का कहना है कि फसल तैयार होने के बाद कटे हुए पत्तों वाले पौधों व दूसरे पौधों के उत्पादन की तुलान की जाएगी। अगर दोनों पौधों से बराबर का उत्पादन मिलता है तो इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि कीटों द्वारा अगर फसल के पत्तों को खा लिया जाए तो उससे उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वहीं दूसरी तरफ किसानों ने कपास के पांच पौधों से पौधे की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ने का प्रयोग भी शुरू कर दिया है। इस प्रयोग से किसान यह देखाना चाहते हैं कि कपास की फसल में बोकी खाने वाले कीटों से उत्पादन पर कोई प्रभाव होता है या नहीं। इस पाठशाला में 28 दिन बाद पांच पौधों की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ी जाती हैं। वही बोकी बार-बार न टूटें इसलिए 28 दिन बाद पौधे की बोकी तोड़ी जाती हैं, क्योकि बोकी से फूल बनने में 28 दिन का समय लगता है।

खाद डालने की विधि सीखें किसान

 पाठशाला के दौरान पौधों का अवलोकन करते खाप प्रतिनिधि।
पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल का कहना है कि किसानों को फसल में खाद की अवश्यकता व डालने की विधि भी सीखने की जरुरत है। क्योंकि किसान फसल में जो यूरिया खाद डालता हैं, उसका 11 से 28 प्रतिशत ही पौधों को मिलता है। बाकि का खाद वेस्ट ही जाता है। इसके अलावा डीएपी खाद में से सिर्फ 5 से 20 प्रतिशत ही खाद पौधों को मिलता है। बाकि की खाद की मात्रा जमीन में चली जाती है। इस तरह बिना जानकारी के व्यर्थ होने वाले खाद को बचाने के लिए खाद जमीन में डालने की बजाए सीधा पौधों को ही दिया जाए।

महिलाएं भी निभा रही हैं पूरी भागीदारी

पौधों पर मौजूद कीटों का आंकड़ा दर्ज करती महिलाएं।
निडाना गांव के खेतों से पेस्टीसाइड के विरोध में उठी इस आंधी को रफ्तार देने में निडाना गांव की गौरियां भी पुरुषों के बाराबर अपनी भागीदारी दर्ज करवा रही हैं। निडाना गांव की महिलाएं जहर मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। कीट मित्र किसानों ने जहां इस मुहिम को सफल बनाने के लिए खाप पंचायतों का दामन थाम है, वहीं गांव की महिलाओं ने भी इस मुहिम पर रंग चढ़ाने के लिए आस-पास के गांवों की महिलाओं को जागरुक करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए निडाना की महिलाओं द्वारा पास के गांव ललीतखेड़ा में महिला किसान पूनम मलिक के खेत में हर बुधवार को महिला किसान पाठशाला शुरू की है। पाठशाला के दौरान महिलाएं घंटों कड़ी धूप के बीच खेतों में बैठकर लैंस की सहायता से कीटों की पहचान में जुटी रहती हैं। अक्षर ज्ञान के अभाव का रोड़ा भी इन महिलाओं की रफ्तार को कम नहीं कर पा रहा है। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो देवी, गीता मलिक , कमलेश, मीना मलिक, सुदेश मलिक, राजवंती को कीटों की इतनी गहरी परख है कि ये कीट को देखते ही उसके पूरे खानदान का पौथा खोलकर रख देती हैं। इसलिए तो लोग अब इन महिलाओं को कीटों की मास्टरनी व वैद्य के नाम से जानने लगे हैं।

                                                                                                                    कीटों पर तैयार किए हैं गीत

 कपास के पौधों पर कीटों की गिनती करती महिलाएं।
कीटों की ये मास्टरनी केवल अध्यापन का कार्य ही नहीं करती। अध्यापन के साथ-साथ ये महिलाएं लेखक व गीतकार की भूमिका भी निभाती हैं। अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए इन महिलाओं ने कीटों के पूर जीवन चक्र की जानकारी जुटाकर उनपर गीतों की रचना भी की हैं। जिनमें प्रमुख गीत हैं ‘किड़यां का कट रहया चालाए ऐ मैने तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं’। ‘म्हारी पाठशाला में आईए हो हो नंनदी के बीरा तैने न्यू तैने न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा’। ‘मैं बिटल हूं मैं किटल तुम समझो मेरी महता’। ‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’। ‘ऐ बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है’। ‘निडाना-खेड़ा की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है’। ‘अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है’। इन गीतों को सुनने वाला न चाहते हुए भी इस तरफ आकर्षित हुए बिना नहीं रह पाता।

कीटों को राखी बांध कर लिया रक्षा का संकल्प

रक्षा बंधन पर कीटों को राखी बांधती महिलाएं।
निडाना व ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं ने रक्षाबंधन के अवसर पर कीटों की कलाइयों पर बहन का प्यार सजाकर यानि राखी बांधकर ऐसी ही एक नई रीति की शुरूआत की है। महिलाओं ने कीटों के चित्रों पर प्रतिकात्मक राखी बांध कर इन्हें अपने परिवार में शामिल कर इनको बचाने का संकल्प लिया है। महिलाओं ने रक्षाबंधन की पूरी परंपरा निभाई तथा कीटों के चित्रों को राखी बांधने के बाद उनकी आरती भी उतारी। इन महिला किसानों द्वारा शुरू की गई इस नई परंपरा से जहां कीटों को तो पहचान मिलेगी ही, साथ-साथ हमारे पर्यावरण पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे।
कीटों की आरती उतारती महिलाएं।

विदेशों में भी जगा रहे हैं  कीटनाशक रहित खेती की अलख

निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसान पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं। खेत से हासिल किए गए अपने अनुभवों को ये किसान ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से अन्य लोगों के साथ सांझा करते हैं। अपना खेत अपनी पाठशाला, कीट साक्षरता केंद्र, महिला खेत पाठशाला, चौपटा चौपाल, निडाना गांव का गौरा, कृषि चौपाल, प्रभात कीट पाठशाला सहित एक दर्जन के लगभग ब्लॉग बनाए हुए हैं और इन ब्लॉगों पर ये किसान पूरी ठेठ हरियाणवी भाषा में अपने विचार प्रकट करते हैं। इन ब्लॉगों की सबसे खास बात यह है कि ये ब्लॉग हरियाणा ही नहीं अपितू दूसरे देशों में भी पढ़े जाते हैं। इस प्रकार ये किसान विदेशों में भी ब्लॉग की सहायता से कीटनाशक रहित खेती की अलख जगा रहे हैं। लाखों लोग इनके ब्लॉग को पढ़ कर कीट ज्ञान अर्जित करते हैं। दूसरे प्रदेशों के किसान ब्लॉग के माध्यम से इन किसानों से सवाल-जबाव करते हैं और अपनी समस्याएं इन किसानों के समक्ष रखकर उनका समाधान भी पूछते हैं। इसके अलावा यू ट्यूब पर भी इन्होंने कीट साक्षरता के नाम से अपना चैनल बनाया हुआ है और इस चैनल पर फसल में कीटों के क्रियाकलापों की वीडियो डाली जाती हैं।

ट्रेनिंग लेने के लिए दूसरे राज्यों से भी यहां पहुंच रहे हैं किसान

खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।
इन किसानों के चर्चे सुनकर दूसरे राज्यों के किसान भी इनसे प्रेरित हो चुके हैं। इसलिए कीटनाशक रहित खेती के लिए कीट प्रबंधन के गुर सीखने के लिए पंजाब व गुजरात के किसानों ने निडाना में दस्तक देनी शुरू कर दी है। अभी हाल ही में 14 अगस्त को पंजाब के नवां शहर जिले से 35 किसानों का एक दल दो दिवसीय अनावरण यात्रा पर निडाना में पहुंचा था। निडाना के किसानों का ज्ञान देखकर ये किसान अचंभित रह गए थे। इसलिए पंजाब के किसानों ने भी इनकी तर्ज पर अपने जिले में भी इस तरह की पाठशाला शुरू करने का संकल्प लिया था। इसके बाद अब कीटों की पढ़ाई पढ़ने के लिए गुजरात से भी किसानों का एक दल यहां आएगा।















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