कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की कटाई की तरफ बढ़ा जिले के किसानों का रुझान
पशुओं के लिए चारे की कमी के कारण कम्बाइन से गेहूं की कटाई से हुआ किसानों का मोह भंग
नरेंद्र कुंडू
जींद।जिले में पिछले कुछ वर्षों से भले ही कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई का रकबा बढ़ा हो लेकिन इस वर्ष जिले में कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की फसल की कटाई के रकबे में बढ़ौतरी हुई है। इसे किसानों की मजबूरी कहें या पशुओं के लिए चारे की जरुरत जिस कारण जिले के किसानों को कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की कटाई करवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अगर कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो किसानों का कम्बाइन से गेहूं की कटाई से मोह भंग होने का मुख्य कारण पशुओं के लिए चारे की जरुरत के साथ-साथ गेहूं के बीज की किस्म में हुआ बदलाव रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से जिले के किसान का रुझान हाथ से गेहूं की फसल की कटाई की बजाए कम्बाइन से गेहूं की कटाई करवाने की तरफ बढ़ रहा था। जिस समय किसानों का रुझान कम्बाइन से गेहूं की कटवाई की तरफ बढ़ा था उस वक्त जिले में गेहूं के बिजाई के कुल क्षेत्र में से 70 प्रतिशत क्षेत्र में गेहूं की 343 किस्म की बिजाई होती थी। 343 किस्म की गेहूं की फसल की बढ़ौतरी काफी अच्छी होती थी। इस कारण कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई के बाद पशुओं के लिए चारे के लिए भी व्यवस्था ठीक-ठाक हो जाती थी लेकिन पिछले एक-दो वर्ष से गेहूं के बीज की किस्म में बड़ा बदलाव हुआ है। जिले में 343 की बजाए एच.डी. 2851 किस्म की बिजाई में वृद्धि हुई है। इस वर्ष जिले में गेहूं की फसल का कुल रकबा 2 लाख 17 हजार हैक्टेयर है। इस कुल रकबे में से 80 हजार हैक्टेयर में 343 किस्म तथा 80 हजार हैक्टेयर में एच.डी.2851 की बिजाई की गई है। यानि गेहूं के कुल क्षेत्र में से 40 प्रतिशत में 343 किस्म, 40 प्रतिशत में एच.डी. 2851 और बाकी 20 प्रतिशत में गेहूं की अन्य किस्मों की बिजाई की गई है। गेहूं की 343 किस्म की बजाए एच.डी. 2851 किस्म की फसल की बढ़ौतरी कम होती है। कृषि विभाग के अधिकारियों का मानना है कि गेहूं की एच.डी. 2851 किस्म की फसल की बढ़ौतरी कम होने के कारण कम्बाइन से कटाई करवाने के बाद इसका भूसा कम होता है। इससे पशुओं के लिए चारे की पूरी व्यवस्था नहीं हो पाती। एच.डी. 2851 का रकबा बढऩे तथा 343 किस्म का रकबा कम होने के कारण किसानों का रुझान मजबूरन हाथ की कटाई की तरफ बढ़ रहा है।
क्यों बढ़ा एच.डी. 2851 का रकबा
जिले में पिछले कुछ वर्षों से गेहूं की एच.डी. 2851 किस्म का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि 343 किस्म का रकबा कम हुआ है। एच.डी. 2851 के रकबे में बढ़ौतरी का मुख्य कारण यह है कि इस किस्म की बिजाई पछेती होती है। पछेती बिजाई के बावजूद भी इस किस्म से 343 किस्म के बराबर का उत्पादन होता है। जिले में गेहूं की पछेती बिजाई का कारण कपास की फसल का सीजन लम्बा चलना रहा है। कपास की फसल का सीजन लम्बा चलने के कारण गेहूं की बिजाई भी लेट हो पाती है। इसलिए किसान 343 की बजाए एच.डी. 2851 को प्राथमिकता दे रहे हैं।
गेहूं खरीद को लेकर खरीद एजैंसियों ने सख्त किए नियम
गेहूं की खरीद को लेकर खरीद एजैंसियों द्वारा नियम भी सख्त तय किए गए हैं। खरीद एजैंसियों द्वारा गेहूं की फसल में ज्यादा नमी होने पर गेहूं की खरीद में देरी की जाती है। कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई होने पर गेहूं की फसल में नमी रह जाती है। इससे खरीद एजैंसियां गेहूं खरीद में देरी करती हैं। यह भी एक कारण है कि किसान कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की कटाई को प्राथमिकता दे रहे हैं।
पशुओं के लिए चारे की कमी सबसे मुख्य कारण
जिले में हर वर्ष कम्बाइन से गेहूं की कटाई के रकबे में बढ़ौतरी होने के चलते किसानों के समक्ष पशुओं के चारे की किल्लत भी आड़े आने लगी थी। गेहूं की 343 किस्म की बजाए एच.डी. 2851 की ग्रोथ कम होने के कारण इस किस्म की फसल से भूसा कम निकलता है। कम्बाइन से गेहूं की फसल कटाई के बाद भूसा कम निकलने के कारण पशुओं के लिए पर्याप्त मात्रा में चारे की व्यवस्था नहीं हो पाती है। चारे की कमी के कारण भी किसान हाथ से कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं।
हाथ से गेहूं की फसल की कटाई करते किसान। |
कम्बाइन की बजाए हाथ से कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं किसान ।
जिले में कुछ वर्षों से किसान हाथ की कटाई की बजाए कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई को प्राथमिकता देने लगे थे। अब एक-दो वर्षों से जिले में गेहूं की 343 किस्म की बजाए एच.डी. 2851 किस्म की बिजाई का क्षेत्र बढ़ा है। एच.डी. 2851 की पैदावार तो 343 के बराबर ही होती है लेकिन इसकी ग्रोथ कम होती है। कम ग्रोथ होने के कारण भूसा कम होता है। इस कारण पशुओं के लिए चारे की पूरी व्यवस्था नहीं हो पाती। पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था के लिए ही किसान कम्बाइन की बजाए हाथ से कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं।
रामप्रताप सिहाग, उपनिदेशक
कृषि विभाग, जींद
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