अज्ञानता के कारण कृषि से भंग हो रहा है किसानों का मोह
कहा, कृषि पर आधारित है देश की जी.डी.पी. और रोजगार
कपास को कहते हैं कीड़ों का स्वर्ग
नरेंद्र कुंडू
जींद। सफीदों के लैंडमोरगेज बैंक के चेयरमैन एवं नव वैदिक कन्या विद्यापीठ के संस्थापक बलबीर आर्य ने कहा कि देश को 20 प्रतिशत जी.डी.पी. तथा 65 प्रतिशत रोजगार कृषि देती है लेकिन इसके बावजूद भी कृषि बुरे दौर से गुजर रही है और किसानों का कृषि से मोह भंग हो रहा है। कोई भी किसान अपनी फसल की पैदावार से संतुष्ट नहीं है, क्योंकि पैदावार बढ़ाने के लिए उसने खेती पर होने वाले खर्च को भी बढ़ाया है। बलबीर आर्य शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, चहल खाप के प्रतिनिधि दलीप सिँह चहल, भनवाला खाप के प्रधान महा सिँह भनवाला, जोगेंद्र कुंडू तथा कैथल जिले के कुछ किसान भाग लेने पहुंचे थे।
बलबीर आर्य ने कहा कि खेती पर खर्च बढऩे का प्रमुख कारण किसान का भयभीत तथा भ्रमित होना है। पहले तो किसान को कीटों का भय दिखाकर उसे भयभीत किया जाता है और फिर उसे भिन्न-भिन्न किस्म के कीटनाशकों से उसकी समस्या के समाधान का सपना दिखाकर उसे भ्रमित किया जाता है। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि कपास की फसल को कीड़ों का स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि कपास की फसल में कीड़ों के लिए हर किस्म का भोजन उपलब्ध होता है। डा. सैनी ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि बिना कीटनाशक के कपास की फसल हो सकती है। जब कपास की फसल
कृषि अधिकारी के साथ सवाल-जवाब करते लैंड मोरगेज बैंक के चेयरमैन व किसान। |
बिना कीटनाशक के हो सकती हैं तो फिर दूसरी फसलें भी बिना कीटनाशकों के पैदा हो सकती हैं। डा. सैनी ने कहा कि इसी समय धान की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशक प्रयोग करने की बजाए किसान खेत में नमी की मात्रा बरकरार रखें। इससे बीमारियों को आगे बढऩे का मौका नहीं मिल पाएगा। क्योंकि बीमारियों को फैलाने में कीड़े नहीं जीवानु, विषाणु और फफुंद तथा तापमान सहायक हैं। पाठशाला के अंत में सभी खाप प्रतिनिधियों व अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।
राख से हुई थी कीटनाशकों की खोज
पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित करते किसान |
डा. सैनी ने कहा कि 1934 में भारत में पेस्टीसाइड का पहला कारखाना स्थापित हुआ था। इससे पहले पेस्टीसाइड दूसरे देशों से मंगवाया जाता था। डा. सैनी ने कहा कि पहले किसान फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए फसल में राख का प्रयोग करते थे। पौधों पर राख डालने से पत्तों का टेस्ट चेंज हो जाता था, जिस कारण कीट पत्तों को नहीं खाते थे। इसके अलावा राख से पौधे को काफी मात्रा में पोषक तत्व भी मिलते थे। यहीं से कीटनाशक की खोज हुई और कृषि वैज्ञानिकों ने राख में मिलाकर फसल में डालने वाली बी.एच.सी. की खोज की थी। यह एक जहरीला कीटनाशक था, जो पौधे में कड़वास पैदा कर देता था। बाद में स्प्रे के माध्यम से कीटनाशकों का छिड़काव फसलों में किया जाने लगा। 1965 के बाद खेती में बाजार का हस्तक्षेप बढ़ता चला गया।
पंजाब बना कैंसर की राजधानी
किसान चतर ङ्क्षसह, बलवान, महाबीर, कृष्ण ने कहा कि खेती की क्षेत्र में दूसरे प्रदेशों की बजाए पंजाब प्रदेश एडवांस है। खेती में जो भी नई तकनीक आई, पंजाब ने सबसे पहले उस तकनीक को अपनाया। चाहे वह कीटनाशकों का प्रयोग हो या नई-नई मशीनरी का प्रयोग। इसके चलते ही पंजाब में फसलों में कीटनाशकों का खूब प्रयोग हुआ और आज परिणाम हमारे सामने हैं। कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण ही आज पंजाब में कैंसर के मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज देश में पंजाब को कैंसर की राजधानी के नाम से जाना जाता है। अगर कीटनाशकों के प्रयोग का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो बहुत जल्द यही हालात हरियाणा में भी होने वाले हैं।
कपास में यह-यह कीट थे मौजूद
पाठशाला के आरांभ में कीटाचार्य किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन किया और फसल में मौजूद कीटों का आकलन कर उनकी संख्या को अपनी बही में दर्ज किया। कीटों के आकलन के दौरान कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या 0.9, हरा तेला 0.6 तथा चूरड़ा शून्य था, जो कि नुक्सान पहुंचाने के आॢथक कागार से काफी नीचे है। इसके अलावा शाकाहारी कीटों को खाने वाले मांसाहारी कीटों में हथजोड़ा, लेडी बर्ड बीटल, मकड़ी, क्राइसोपा, अंगीरा, इरो, इनो भी काफी संख्या में फसल में मौजूद थी।
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