मंगलवार, 23 सितंबर 2014

कीटों पर शोध करेगी यूनिवर्सिटी : वीसी

शाकाहारी कीटों के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं मांसाहारी कीट

नरेंद्र कुंडू 
जींद। निडाना गांव में शनिवार को  महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। इस पाठशाला में चौ. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय के उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। इस अवसर पर पाठशाला में राममेहर नंबरदार भी विशेष रूप से मौजूद रहे। राममेहर नंबरदार ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया। पाठशाला के आरंभ में महिलाओं ने कीटों का अवलोकन किया और फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के आंकड़े एकत्रित किए।
उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह ने महिला किसानों के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां की महिलाओं ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए एक अनोखी मुहिम की शुरूआत की है। उनकी इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए वह विश्वविद्यालय की तरफ से भी इस पर शोध करवाएंगे। इसके साथ-साथ मुख्यातिथि ने महिलाओं से बच्चों में नैतिक मूल्यों का बीजारोपण कर बच्चों को संस्कारवान बनाने का आह्वान किया। क्राइसोपा ग्रुप की मास्टर ट्रेनर मनीषा ललितखेड़ा, केला निडाना, सुमित्रा ललितखेड़ा, रामरती रधाना तथा प्रमिला रधाना ने मुख्यातिथि को कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कीट दो प्रकार के होते हैं
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान। 
मांसाहारी तथा शाकाहारी। इसलिए कीटों को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं है। इन्हें नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं। पौधे जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को आकर्षित करते हैं लेकिन जब किसान फसल में कीटनाशक का प्रयोग कर देता है तो इससे उनकी सुगंध छोडऩे की क्षमता गड़बड़ा जाती है और इससे पौधों और कीटों का आपसी तालमेल बिगड़ जाता है।

मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के लिए करेंगे कुदरती कीटनाशी का काम

कीटाचार्य महिला किसानों ने बताया कि इस बार कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ज्यादा है। जहां-जहां सफेद मक्खी को काबू करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां-वहां इसके भयंकर परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बार उनकी फसल में सफेद मक्खी की संख्या ईटीएल लेवल के पार पहुंच गई है लेकिन अभी तक उनकी फसल सफेद मक्खी से पूरी तरह से सुरक्षित है। क्योंकि इस समय उनकी फसल में सफेद मक्खी के बच्चे न के बराबर हैं और प्रौढ़ों की संख्या काफी ज्यादा है। फसल को प्रौढ़ की बजाय बच्चों से ज्यादा नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इस समय उनकी फसल में दीदड़ बुगड़े, बिंदुआ बुगड़ा,
माइक्रोसोप पर कीटों की पहचान करती महिला किसान। 
कातिल बुगड़ा, मटकू बुगड़ा, भिन्न-भिन्न किस्म की बीटल, सिरफड़ मक्खी, लोपा मक्खी, डायन मक्खी, लंबड़ो मक्खी, टिकड़ो मक्खी, श्यामो मक्खी तथा परपेटिये अंगीरा व इनो मौजूद हैं। यह मांसाहारी कीट खुद ही सफेद मक्खी को नियंत्रित कर लेते हैं। इसके अलावा उन्होंने सींगू बुगड़े के अंडे से बच्चे निकलते, हथजोड़े द्वारा लाल बानिये का शिकार करते हुए तथा मकड़ी द्वारा टिड्डे व मक्खी का शिकार करते हुए भी दिखे।



मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करते राममेहर नंबरदार। 




जींद जिले की राह पर बरवाला के किसान

कीटनाशकों से निजात पाने के लिए अपनाई कीट ज्ञान की पद्धति
हर बृहस्पतिवार को किया जाता है किसान खेत पाठशाला का आयोजन
बरवाला के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ा रहे हैं जींद के किसान 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। बरवाला के किसान भी अब जींद जिले के किसानों की राह पर चल पड़े हैं। जींद जिले से लगभग 6 वर्ष पहले शुरू हुई कीट ज्ञान की पद्धति को बरवाला के किसानों ने अपना लिया है। कीट ज्ञान हासिल करने के लिए बरवाला के किसानों द्वारा जींद के किसानों की तर्ज पर किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की गई है। हर बृहस्पतिवार को बरवाला के जेवरा गांव के खेतों में यहां के किसानों द्वारा किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया जाता है। इस पाठशाला में बरवाला के किसानों को कीट ज्ञान देने के लिए जींद से कुछ मास्टर ट्रेनर किसान जाते हैं। जेवरा में लगने वाली इस पाठशाला में बरवाला के कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ उद्यान विभाग के अधिकारी भी भाग लेंगे।
फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को देखते हुए वर्ष 2008 में जींद जिले के किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला की शुरूआत कर कीटों पर शोध का काम शुरू किया था। इस पाठशाला में कीटों पर चले शोध में यह बात निकलकर सामने आई थी कि कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं है। कीटों को नियंत्रित करने के लिए तो फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं, जो शाकाहारी कीटों को खाकर उन्हें नियंत्रित कर फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। इस शोध के दौरान डॉ. दलाल ने इस बात को साबित कर दिया था कि कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों की संख्या कम नहीं होती बल्कि बढ़ती है। इसके बाद से ही यहां के किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया था।

इस बार से बंद कर दिया कीटनाशकों का प्रयोग

फसलों को कीटों से बचाने के लिए हर वर्ष कीटनाशकों पर काफी रुपये खर्च होते हैं लेकिन उसके बाद भी कीट नियंत्रित होने की बजाए उनकी संख्या ओर बढ़ जाती है। इस बार उसके खेत में किसान खेत पाठशाला की शुरूआत हुई है, जिस खेत में पाठशाला चल रही है उस खेत में अभी तक एक भी छंटाक कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। अभी तक उसकी फसल कीटों और बीमारी दोनों से सुरक्षित है लेकिन आस-पास के क्षेत्र में जिन-जिन फसलों में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग हुआ है, उन-उन खेतों में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी बढ़ा है और हालात ऐसे हो गए हैं कि फसल नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। जींद से आने वाले मास्टर ट्रेनर किसान खेत पाठशाला में मौजूद अन्य किसानों को कीटों की पहचान करना तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं। इसके चलते अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष कीटनाशकों के प्रति किसानों की सोच भी बदल रही है।
दलजीत, किसान
गांव जेबरा, बरवाला

जींद के मास्टर ट्रेनर किसान देतें हैं प्रशिक्षण 

जींद जिले में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम को दूसरे जिलों में फैलाने के लिए बरवाला में भी इस बार किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की है। यहां के किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए हर सप्ताह जींद के मास्टर ट्रेनर किसान यहां आते हैं। कीट ज्ञान की पद्धति के बारे में जानकारी लेने के लिए यहां के किसान काफी उत्सुक हैं। इससे किसानों को काफी फायदा पहुंच रहा है।
डॉ. बलजीत भ्याण
जिला उद्यान अधिकारी, हिसार
 बरवाला के जेवरा गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में कीटों के बारे में जानकारी लेते किसान। 



तीन एमएम के कीट ने निकाला कीट वैज्ञानिकों व किसानों का पसीना

सफेद मक्खी के प्रकोप से हिसार, भिवानी व जींद में हजारों एकड़ फसल तबाह
चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिक भी नहीं ढूंढ़ पा रहे सफेद मक्खी का तोड़

नरेंद्र कुंडू 
जींद। महज तीन मिलीमीटर के कीट सफेद मक्खी ने बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों व किसानों के पसीने निकाल कर रख दिये हैं। चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कीट वैज्ञानिक भी इस कीट का तोड़ नहीं ढूंढ़ पाए हैं। हिसार कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिकों के लिए सफेद मक्खी नामक यह कीट चुनौती बनी हुई है। क्योंकि किसान इस कीट को नियंत्रित करने के लिए जितना भी कीटनाशकों का प्रयोग फसल में कर रहे हैं, सफेद मक्खी का प्रकोप उतना ही ज्यादा बढ़ रहा है। हिसार कृषि विश्वविद्यालय की ठीक नाक के नीचे हिसार, भिवानी व जींद में हजारों एकड़ कपास की फसल सफेद मक्खी के प्रकोप से तबाह हो चुकी हैं। जहां-जहां इस कीट को नियंत्रित करने के लिए किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग किया है, वहां-वहां पर इसके उल्टे परिणाम सामने आ रहे हैं। हिसार, भिवानी व जींद के किसानों के सामने ऐसे हालात पैदा हो चुके हैं कि किसान फसलों की हालत को देखकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं लेकिन हिसार कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिकों को शायद तीन मिलीमीटर के इस सफेद कीट के काले कारनामे नजर नहीं आ रहे हैं।
सफेद मक्खी के प्रकोप के बाद खराब हो चुकी कपास की फसल।

2001 में अमेरिकन सूंडी और 2005 में मिलीबग ने मचाई थी तबाही

जब-जब भी कीटनाशकों की सहायता से कीटों को नियंत्रित करने के प्रयास किये गए हैं, तब-तब यह कीट बेकाबू हुए हैं। वर्ष 2001 में अमेरिकन सूंडी तथा 2005 में मिलीबग द्वारा मचाई गई तबाही इसका प्रमाण हैं। 2001 में अमेरिकन सूंडी को काबू करने के लिए किसानों ने कपास की फसलों में 30 से 40 स्प्रे किए थे लेकिन उसके बाद भी यह कीट काबू नहीं हुआ और परिणाम शून्य रहे। इस तीन सेंटीमीटर के कीट ने पूरी की पूरी फसलों को तबाह कर दिया था। यही हालात 2005 में किसानों के सामने पैदा हुए थे। 2005 में मिलीबग को नियंत्रित करने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया गया था लेकिन महज चार सेंटीमीटर के इस कीट ने उस दौरान कीट वैज्ञानिकों की खूब फजिहत करवाई थी। मिलीबग से प्रकोपित फसलों को किसानों ट्रैक्टर की सहायता से खेत में जोत दिए थे।

नहीं नियंत्रित हो रही सफेद मक्खी

कपास को सफेद मक्खी से बचाने के लिए चार बार कीटनाशक का प्रयोग कर चुका हूं लेकिन सफेद मक्खी का प्रकोप कम होने की बजाये लगातार बढ़ रहा है। पूरी फसल सूख कर काली हो चुकी है। कपास की फसल में बिजाई से लेकर अभी तक खाद तथा पेस्टीसाइड पर लगभग 19000 रुपये खर्च कर हो चुके हैं। अगर फसल की हालात को देखा जाए तो कपास की फसल से महज ८ हजार रुपये की आमदनी की उम्मीद है। यही हालात पिछले वर्ष भी हुए थे। इस प्रकार खेती किसान के लिए लगातार घाटे का सौदा बन रही है। क्योकि खर्च लगातार बढ़ रहा है और उत्पादन कम हो रहा है। कृषि वैज्ञानिकों पूछने पर भी कोई संतुष्ट जवाब नहीं मिल रहा है।
जगविंद्र सिंह, किसान
बरवाला, हिसार 

सफेद मक्खी से परेशान हैं पूरे क्षेत्र के किसान

पिछले वर्ष की तरह इस बार भी कपास में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी ज्यादा है। पूरे क्षेत्र में सफेद मक्खी का प्रकोप है। मेरे पास ६ एकड़ में कपास की फसल है लेकिन 6 की 6 एकड़ की फसल खत्म होने की कगार पर है। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए चार बार हिसार की मान्यता प्राप्त दुकान से कीटनाशक खरीदकर स्प्रे कर चुका हूं लेकिन सभी स्प्रे बेअसर साबित हो रहे हैं। अगर फसल के हालात को देखा जाए तो इस समय चार क्विंटल कपास भी मुश्किल से मिल पाएगी।  
विवेकानंद, किसान 
बरवाला, हिसार 

सूख रही हैं फसलें

सफेद मक्खी के कारण कपास की फसलें तबाह हो रही हैं। फसलों को तबाह होते देख किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो चुका है। कृषि अधिकारी भी इसका समाधान नहीं बता पा रहे हैं। सफेद मक्खी के प्रकोप से कपास के पत्ते काले पडऩे लगते हैं और उसके बाद फसल सूखने लगती है।
जोरा सिंह, किसान
जींद

कीटनाशकों के प्रयोग से बढ़ रहा है सफ़ेद मक्खी का प्रकोप 

सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए हर वर्ष कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ रहा है लेकिन इसके साथ जितनी छेडख़ानी की जाती है यह उतनी ही तेजी से बढ़ रही है। इससे पहले 2001 में अमेरिकन सूंडी तथा 2005 में मिलीबग ने भी इसी तरह तबाही मचाई थी। अब उनका स्थान सफेद मक्खी ने ले लिया है। पिछले तीन वर्षों से लगातार यही परिणाम सामने आ रहे हैं लेकिन जहां-जहां सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया, वहां इसका कोई दुष्प्रभाव नजर नहीं आया है। इसलिए किसानों को चाहिये कि वह सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए पौधों पर जिंक, डीएपी व यूरिया के घोल का छिड़काव कर पौधों को ताकत देने का काम करें।
डॉ. महावीर शर्मा
कृषि सलाहकार 

मांसाहारी कीट खुद ही कर लेते हैं नियंत्रित 

सफेद मक्खी के प्रौढ़ का जीवन काल 20 से 25 दिन का होता है और यह अपने जीवनकाल में 100 से 125 अंडे देती है। यह पौधे से रस चूसती है। सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर होता है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है उस पत्ते पर फफूंद लग जाती है और वह पत्ता काला हो जाता है और भोजन बनाना बंद कर देता है। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक की जरूरत नहीं है। इनो, इरो, बीटल नामक मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के सबसे बड़े दुश्मन हैं। यह खुद ही इसे नियंत्रित कर लेते हैं। जिस-जिस खेत में कीटनाशक का प्रयोग नहीं हुआ है, वह खेत में सफेद मक्खी का प्रकोप नहीं है लेकिन जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां-वहां इसका प्रकोप ज्यादा बढ़ रहा है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट इसे खुद ही नियंत्रित कर लेते हैं। किसानों को कीटों को मारने की नहीं, कीटों की पहचान करने की जरूरत है।

रणबीर मलिक, कीटाचार्य किसान
जींद।  

सफेद मक्खी के कारण खराब हो रही फसल को दिखाता बरवाला का एक किसान।



रविवार, 14 सितंबर 2014

अपने अनुभव से अन्य किसानों को भी जागरूक करें महिला किसान

कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी फसल में बढ़ रही है सफेद मक्खी की संख्या

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिला बाल कल्याण अधिकारी अनिल मलिक ने कहा कि महिला किसानों ने थाली को जहरमुक्त बनाने का जो बीड़ा उठाया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। कीट ज्ञान की इस मुहिम में यहां के पुरुष किसानों द्वारा महिलाओं को साथ जोडऩा एक सकारात्मक पहल है। क्योंकि पुरुष के शिक्षित होने से एक परिवार को फायदा होता है और महिला के शिक्षित होने से दो परिवारों को फायदा होता है। मलिक ने कहा कि मनुष्य की जिंदगी में अनुभव सबसे ज्यादा काम आता है और कीट ज्ञान में कीटाचार्या महिलाओं का अनुभव बहुत ज्यादा है। 
चार्ट पर महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देती महिला किसान। 
इसलिए वह अपने इस अनुभव से अन्य किसानों को भी जागरूक करें और अपने इस ज्ञान को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फैलाएं। मलिक शनिवार को निडाना गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न देकर मुख्यातिथि का स्वागत किया। इस अवसर पर सिरसा जिले से भी कुछ किसान कीट ज्ञान लेने के लिए किसान खेत पाठशाला पहुंचे। 
कीटाचार्या नवीन रधाना, प्रमीला रधाना, सीता व शीला ललितखेड़ा ने कहा कि जिन-जिन फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, उन-उन फसलों में कीट की संख्या ईटीएल लेवल का आंकड़ा पार कर चुकी है। सबसे ज्यादा प्रकोप सफेद मक्खी का देखने को मिल रहा है। आज जींद जिला ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में यह स्थिति हो चुकी है कि सफेद मक्खी के प्रकोप से कपास की फसलें पूरी तरह से तबाह हो चुकी हैं। अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के बाद भी सफेद मक्खी पर काबू नहीं पाया जा सका है। अंग्रेजो व राजवंती निडाना ने कहा कि जिन किसानों ने फसल में कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है वहां सफेद मक्खी अभी तक नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर है। अंग्रेजो व राजवंती ने कहा कि उन्होंने फसल में कीटनाशक का प्रयोग करने की बजाय खाद के घोल का छिड़काव कर पौधों को ताकत देने का काम किया है। इसलिए उनकी फसल कीड़ों और बीमारियों से पूरी तरह से सुरक्षित है। 
मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।

खत्म होने के कागार पर है फसल

किसान भानीराम
मैं पिछले 20 वर्षों से खेती कर रहा हूं और हर वर्ष मेरा कीटनाशकों का खर्च लगातार बढ़ रहा है। कीटनाशकों पर खर्च बढऩे तथा उत्पादन कम होने के कारण खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। इस बार भी कीटों को नियंत्रित करने के लिए कपास की फसल में कीटनाशकों के 10-12 स्प्रे कर चुका हूं लेकिन कीटों की संख्या नियंत्रित होने की बजाय बढ़ रही है। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण फसल बिल्कुल खत्म होने के कागार पर पहुंच चुकी है।
भानीराम, किसान
ऐलनाबाद (सिरसा)

किसानों की मुहिम से मिली प्रेरणा

किसान पवन
हमारे क्षेत्र के किसानों द्वारा हर वर्ष कीटों से फसल को बचाने के लिए अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। इससे खेती पर उनका खर्च तो लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन उत्पादन कम हो रहा है। कपास की फसल में अकेले कीटनाशकों पर किसान का 10 हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च होता है। इसके अलावा अन्य खर्च अलग से रह जाते हैं लेकिन 10-10 हजार रुपये के कीटनाशकों का प्रयोग करने के बाद भी कीट नियंत्रित नहीं होते हैं। किसानों की मुहिम से प्रेरित होकर वह निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला में कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पहुंचे हैं। ताकि हम भी कीटनाशकों पर बढ़ते अपने खर्च को कम कर सकें। 
पवन, किसान 
ऐलनाबाद (सिरसा)








रविवार, 7 सितंबर 2014

बारिश के बाद फसल में कम हुई कीटों की संख्या

फसल में नुकसान पहुंचाने के आर्थिक कगार से काफी दूर हैं शाकाहारी कीट 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिछले कई दिनों से हो रही भारी बारिश भी कीटाचार्या महिला किसानों के हौंसले को नहीं तोड़ पाई। गत रात्रि तेज बारिश के कारण खेतों में पानी भरा होने के बावजूद भी निडाना, ललितखेड़ा और रधाना गांव की कीटाचार्या महिला किसान सामान्य दिनों की भांति निडाना गांव में चल रही महिला किसान खेत पाठशाला में शामिल होने के लिए पहुंची। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने फसल में कीटों का आंकलन कर कीटों का रिकार्ड तैयार किया। इस अवसर पर निडाना गांव के पूर्व सरपंच रामभगत ने पाठशाला में बतौर मुख्यातिथि तथा अनिल नंबरदार ने विशिष्ठ अतिथि के तौर पर शिरकत की। पूर्व सरपंच रामभगत ने इस मुहिम की तारिफ करते हुए कहा कि महिला किसानों ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए चलाई गई इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए एक अच्छी पहल की है। कीटाचार्या महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया। 
 फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
कीटाचार्या सुषमा, सुमन, ब्रह्मी व कमला ने बताया कि बरसात के बाद फसल में कीटों की संख्या में काफी कमी आई है। उन्होंने बताया कि इस सप्ताह प्रति पत्ता सफेद मक्खी की औसत 1.4, हरे तेले की औसत 0.5 तथा चूरड़े की 0.2 है। इसलिए यह अब नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से काफी दूर हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा फसल में सूबेदार मेजर लाल बानिया, काला बानिया, चेपा, लाल माइट तथा मिलीबग भी फसल में मौजूद हैं। कीटाचार्या कमल, जसबीर कौर व संतोष ने बताया कि इन कीटों के अलावा फसल में तितली, सलेटी भूंड, टिड्डे, हरा गुबरेला, मधू मक्खी, पुष्पा बीटल, तेलन, होपर, फूदका, नगीना बग, मस्करा बग तथा सड़ांधला बग भी मौजूद हैं लेकिन यहां के किसान इन कीटों की गिनती आल-गोल में करते हैं। क्योंकि यह कीट फसल में नुकसान पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाते हैं। 

यह-यह मांसाहारी कीट भी देखे गए  

 मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती कीटाचार्या महिला किसान ईश्वंती।
फसल में कुदरती कीटनाशी के तौर पर भांत-भांत की मकडिय़ां, रतना मक्खी, लोपा मक्खी, इनो, लाल माइट, दखोड़ी, आफियाना बीटल, क्राइसोपे का बच्चा, लम्बड़ो, टिकड़ो, हथजोड़ा, दिदड़ बुगड़ा, डाकू बुगड़ा, भिरड़, इंजनहारी, हथजोड़ा भी मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि फसल में मांसाहारी कीट मौजूद होने के कारण फसल में किसी प्रकार के कीटनाशी के प्रयोग की जरूरत नहीं है। पाठशाला के समापन पर महिला किसानों ने 'बिना बाप कै बेटा दुखिया, बिन माता कै बेटी, सबतै बढिय़ा हो सै पिया बिना जहर की खेती' गीत से पाठशाला का समापन किया। 

कीटों के बारे में मास्टर ट्रेनर किसानों के साथ विचार-विमर्श करती महिला किसान।

 चार्ट पर कीटों का रिकार्ड दर्ज करती महिला किसान।






पंजाब के किसानों को भा रहा म्हारे किसानों का कीट ज्ञान

कीट ज्ञान हासिल करने के लिए जींद का रूख करने लगे पंजाब के किसान
पहले भी कई बार जींद का दौरा कर चुके हैं पंजाब के कृषि विभाग के अधिकारी व किसान 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जींद से शुरू हुई कीट ज्ञान की मुहिम अब पंजाब के किसानों को भी भाने लगी है। इसी के चलते अब कीट ज्ञान अॢजत करने के लिए पंजाब के किसान भी जींद का रूख करने लगे हैं। निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में सोमवार को पंजाब के भटिंडा तथा फरीदकोट से पांच किसानों का एक दल यहां पहुंचा और उन्होंने यहां के किसानों से कीट ज्ञान की तालीम ली। इससे पहले भी पंजाब के कृषि विभाग के अधिकारी तथा किसान कई बार कीट ज्ञान हासिल करने के लिए यहां आ चुके हैं। 
कृषि में नई-नई तकनीकों के इस्तेमाल के मामले में पंजाब हरियाणा से काफी आगे है। इसी के चलते फसलों में पेस्टीसाइड के प्रयोग की शुरूआत भी पहले पंजाब से ही शुरू हुई थी। आज भी पंजाब में हरियाणा की अपेक्षा 
फसल का निरीक्षण करते पंजाब के किसान।  
फसलों में ज्यादा पेस्टीसाइड का प्रयोग किया जा रहा है। इसी के दुष्परिणाम भी आज वहां सामने आने लगे हैं। कैंसर तथा अन्य जानलेवा बीमारियां यहां तेजी से पैर पसार रही हैं। पंजाब के साथ-साथ हरियाणा में भी पेस्टीसाइड के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। इसी के चलते वर्ष 2008 में जींद में कृषि विभाग में एडीओ के पद पर कार्यरत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने निडाना गांव से कीट ज्ञान की शुरूआत की थी। डॉ. सुरेंद्र दलाल ने किसानों को फसलों में मौजूद कीटों की पहचान करवाने तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में बारीकी से जानकारी दी। आज जींद जिले में लगभग 100 महिला किसान तथा 200 से ज्यादा पुरुष किसान इस मुहिम के साथ जुड़ चुके हैं। जींद जिले के किसानों की कीट ज्ञान ही यह मुहिम अब जींद ही नहीं बल्कि प्रदेश से बाहर निकलकर दूसरे प्रदेशों में भी फैलने लगी है। पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसान भी अब कीट ज्ञान हासिल करने के लिए जींद का रूख करने लगे हैं। सोमवार को पंजाब के भटिंडा तथा फरीदकोट से पांच किसानों का दल निडाना में चल रही किसान खेत पाठशाला में प्रशिक्षण लेने के लिए पहुंचा। 
पाठशाला में पंजाब के किसानों को जानकारी देती महिला किसान।

सबसे अच्छी पद्धति है कीट ज्ञान 

पंजाब से कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पहुंचे भटिंडा तथा फरीदकोट के किसान बेअंत सिंह, जगमोहन ङ्क्षसह, हरचरण सिंह, भूपेंद्र ङ्क्षसह तथा गुरमेल ङ्क्षसह ने बताया कि वह खुद भी कुदरती खेती करते हैं तथा पंजाब के दूसरे किसानों को भी कुदरती खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पंजाब में पेस्टीसाइड का ज्यादा प्रयोग हो रहा है लेकिन पेस्टीसाइड के प्रयोग के बाद भी कीट नियंत्रित नहीं हो रहे हैं लेकिन जींद के किसानों का जो कीट ज्ञान है उसकी चर्चा सुनकर वह जींद पहुंचे हैं। उन्होंने यहां के किसानों से सीखा की कीटों को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं है, जरूरत है तो केवल कीटों की पहचान करने की। क्योंकि कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं। उन्होंने यहां भी कई प्लांटों का निरीक्षण किया और देखा कि जिस प्लांट मेंं पेस्टीसाइड का प्रयोग किया गया है उसकी बजाय बिना पेस्टीसाइड वाले प्लांट की फसल काफी अच्छी है। यहां के किसानों का कीट ज्ञान काफी अच्छा है। अब वह पंजाब के अन्य किसानों को कीट ज्ञान के प्रति जागरूक करेंगे।