रविवार, 26 जुलाई 2015

कीटनाशकों के प्रयोग से कुदती कीटनाशियों का हो जाता है खातमा

नरेंद्र कुंडू 
बरवाला। जेवरा गांव में महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में जींद जिले की मास्टर ट्रेनर महिला किसान सविता, सुषमा, यशवंती, सीता विशेष रूप से मौजूद रही। पाठशाला में पंजाब से प्रगतिशील किसान अशोक, विनोद ज्याणी सहित फतेहाबाद के किसान भी जानकारी हासिल करने के लिए पहुंचे। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने ग्रुप बनाकर पौधों पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की गिणती की। बाद में कीटों के आंकलन को चार्ट पर उतारा गया। 
पाठशाला में लैंस से कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आज कपास उत्पादित क्षेत्र में शाकाहारी कीट सफेद मक्खी का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है और यह स्थिति उन-उन खेतों में ज्यादा सामने आ रही है, जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग ज्यादा हो रहा है। क्योंकि कीटनाशकों के प्रयोग से फसल में मौजूद कुदरती कीटनाशी खत्म हो जाते हैं। इसके बाद शाकाहारी कीटों को बढऩे के लिए अवसर मिल जाता है। जिन-जिन खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया है वहां पर सफेद मक्खी नियंत्रण में है।
चार्ट पर कीटों का बही खाता तैयार करती मास्टर ट्रेनर महिला किसान सविता। 
 महिला किसानों ने बताया कि कपास की फसल के मेजर रस चूसक कीट सफेद मक्खी, हरा तेले व चूरड़े को नियंत्रित करने के लिए इस समय फसल में क्राइसोपा, दीदड़ बुगड़ा, डाकू बुगड़ा, बीटल, हथजोड़ा, इनो-इनो काफी संख्या में मौजूद हैं। इनो-इरो परपेटिया कीट हैं और यह सफेद मक्खी के पेट में अपने बच्चे देकर सफेद मक्ख्ी को नियंत्रित करने का काम करती हैं। वहीं डाकू बुगड़ा, क्राइसोपा, बीटल इसके बच्चों को खाकर नियंत्रित करने का काम करती हैं। इस प्रकार यह मांसाहारी कीट इन शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने में एक तरह से कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। पंजाब से आए प्रगतिशील किसान अशोक कुमार ने किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि उन्होंने भी जींद जिले की तर्ज पर पंजाब में थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए मुहिम चलाई हुई है। वहां के काफी किसानों ने कीट ज्ञान हासिल करने के बाद कपास, सब्जियों व अन्य फसलों में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दिया है। वहां के किसान बिना रासायनिक व कीटनाशकों के प्रयोग के अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। 


मांसाहारी कीट क्राइसोपा के बच्चे का फोटो।

मांसाहारी कीट दीदड़ बुगड़े का फोटो। 






रविवार, 19 जुलाई 2015

सफेद मक्खी से भयभीत नहीं हों किसान

अच्छे उत्पादन के लिए पौधों को दें पर्याप्त खुराक 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। शनिवार को जेवरा गांव में महिला पाठशाला के तीसरे सत्र का आयोजन किया गया। पाठशाला में जेवरा गांव सहित लगभग दर्जनभर गांवों के महिला व पुरुष किसानों ने भाग लिया। हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण पाठशाला में विशेष रूप से मौजूद रहे। जींद जिले से पाठशाला में पहुंची मास्टर ट्रेनर प्रमीला, मुकेश, असीम, शकुंतला व नवीन ने पाठशाला में मौजूद महिला व पुरुष किसानों को कीटों की पहचान करवाने के साथ-साथ उनके क्रियाकलापों से फसलों पर पडऩे वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी। पाठशाला के आरंभ में सभी किसानों ने पौधों पर मौजूद मांसाहारी व शाकाहारी कीटों की गिणती कर कीटों का आंकड़ा तैयार किया।
पाठशाला में आए किसानों ने मास्टर ट्रेनर महिला किसानों के समक्ष अपनी समस्या रखते हुए बताया कि कपास के मेजर कीटों में शुमार सफेद मक्खी का उनकी फसलों में प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। फसलों में सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप से किसान बुरी तरह भयभीत हैं। सफेद मक्खी ईटीएल लेवल पार कर चुकी है। मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने किसानों की शंका का समाधान करते हुए बताया कि इस बार फसलों में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ज्यादा है लेकिन किसानों को इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। फसल को सफेद मक्खी के प्रकोप से बचाने के लिए पौधों को पर्याप्त खुराक देने की जरूरत है। इसके लिए किसान डॉ. दलाल घोल का प्रयोग कर सकते हैं। पाठशाला में मौजूद सभी किसानों से सर्वसम्मति से फैसला लिया कि फसल में पेस्टीसाइड का प्रयोग करने की बजाए वह पौधों को पर्याप्त खुराक देंगे। किसानों द्वारा तैयार किए गए आंकड़े में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 14.2, हरे तेले की 0.8 व चूरड़े की 5.7 थी। जबकि इटीएल लेवल के अनुसार सफेद मक्खी की संख्या छह, हरे तेले की दो व चूरड़े की 10 होनी चाहिए।
कपास की फसल में कीटों की गिनती करती महिला किसान।

इस तरह तैयार करें घोल 

ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक को अलग-अलग बर्तनों में पानी में घोलें। डीएपी को छिड़काव करने से एक दिन पहले पानी में भीगो दें। खाद को घोलने के लिए किसी धातू के बर्तन की बजाए मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन का प्रयोग करें। ढाई किलो यूरिया व ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक के घोल को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में इसका छिड़काव फसल पर करें। इससे पौधों को पर्याप्त खुराक मिलेगी और सफेद मक्खी का प्रकोप पौधों पर कम पड़ेगा।

छह हजार खर्च के बाद भी नहीं हुआ समाधान 

पाठशाला में पहुंची जेवरा की महिला किसान रामरती ने अपना अनुभव सांझा करते हुए बताया कि पिछले वर्ष उसने चार एकड़ में कपास की बिजाई की थी। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए उसने प्रति एकड़ में लगभग छह हजार रुपये के पेस्टीसाइड के स्प्रे का प्रयोग किया था लेकिन इसके बावजूद भी सफेद मक्खी का कोई समाधान नहीं हुआ। पिछले वर्ष चार एकड़ में उसे महज 17 मण कपास का ही उत्पादन हुआ था। इसलिए पेस्टीसाइड से सफेद मक्खी को नियंत्रित करना संभव नहीं है। कुदरती कीटनाशी ही सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में किसानों की मदद कर सकते हैं।
किसान रामरती का फोटो।












रविवार, 12 जुलाई 2015

एकत्रित किए गए अतरिक्त भोजन को बाहर निकालने के लिए शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं पौधे

नरेंद्र कुंडू
बरवाला।
क्षेत्र के जेवरा गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की धर्मपत्नी कुसुम दलाल ने बतौर मुख्यातिथि के तौर पर शिरकत की। पाठशाला में पंजाब के कुछ प्रगतिशील किसान भी शामिल हुए। पाठशाला के आरंभ में पौधों पर मौजूद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की गिनती कर बोर्ड पर कीटों का आंकड़ा दर्ज किया।
मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो, राजवंती, बीरमती, बिमला व कमलेश ने बताया कि पाठशाला में मौजूद महिला व पुरुष किसानों को संबोधित करते हुए बताया कि कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि पौधे 24 घंटे में लगभग साढ़े चार ग्राम भोजन तैयार करते हैं और इस भोजन को तीन भागों में बांटते हैं।
पाठशाला में बोर्ड पर आंकड़ा तैयार करती महिला किसान।
भोजन का एक तिहाई हिस्सा जड़ों को, एक तिहाई ऊपरी भाग को देते हैं तथा एक तिहाई अपने पास रिजर्व के रूप में रखते हैं। ताकि मुसिबत के समय उस भोजन से अपना काम चला सकें। यदि पौधे पर किसी तरह की मुसिबत नहीं आती है तो पौधो उस जमा किए गए अतिरिक्त भोजन को निकालने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं और यह शाकाहारी कीट रस आदि चूसकर पौधे द्वारा एकत्रित किए गए भोजन को बाहर निकालकर एक तरह से पौधों की मदद करते हैं। जब तक यह शाकाहारी कीट ईटीएल लेवल तक रहते हैं तो पौधे को किसी तरह का नुकसान नहीं होता। यदि यह ईटीएल लेवल से ऊपर निकलते हैं तो पौधे पर इसका नुकसान आता है लेकिन शाकाहारी कीटों को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर तक पहुंचने से रोकने के लिए पौधे मांसाहारी कीटों को बुलाते हैं। मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर पौधों की सुरक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने जो भी कीट बनाया है प्रकृति के लिए उसका अपना महत्व है। किसानों द्वारा तैयार किए गए कीटों के आंकड़े में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 11, हरे तेले की 1.2 तथा चूरड़े की संख्या 4.7 दर्ज की गई। सफेद मक्खी की बढ़ी हुई संख्या पर किसानों ने बारिकी से मंथन किया। किसानों ने सामूहिक फैसला लिया कि ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक का घोल तैयार कर पौधों को ताकत प्रदान करने के लिए पर्याप्त मात्रा में खुराक दी जाए। पंजाब से आए प्रगतिशील किसान अशोक ने बताया कि वह भी जींद जिले के किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर पिछले कई वर्षों से जहरमुक्त खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। जींद जिले के किसानों की तर्ज पर पंजाब में भी उनके द्वारा किसान खेत पाठशालाओं का आयोजन किया जा रहा है।


 


मंगलवार, 7 जुलाई 2015

भ्रम के जाल में फंसकर कीटों को मार रहे किसान

जींद के बाद अब बरवाला में जलाई कीट ज्ञान की अलख

नरेंद्र कुंडू 
बरवाला। क्षेत्र के जेवरा गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। पाठशाला का आयोजन जेवरा गांव के किसान दलजीत के खेत में किया गया। जींद जिले की मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने जेवरा गांव की महिलाओं को कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान करवाने के साथ-साथ उनके क्रियाकलापों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। पाठशाला में महिलाओं के साथ-साथ वहां के पुरुष किसानों की भी भागीदारी रही।
मास्टर ट्रेनर सविता, सुषमा, शीला, नारो तथा जसबीर कौर ने महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कीट न तो हमारे मित्र हैं और न ही हमारे दुश्मन हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर अपनी रक्षा के लिए कीटों को बुलाते हैं लेकिन किसानों को कीटों की पहचान नहीं होने के कारण किसान भय व भ्रम के जाल में फंसकर कीटों को मार रहे हैं। उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों को पौधों पर मौजूद कीटों की पहचान करवाकर कीटों की गिनती कर आंकड़ा तैयार किया। एक पौधे पर मिलीबग के बच्चे भी देखे गए। महिला किसानों ने क्राइसोपे के बच्चे को कीड़े का कत्ल कर उसकी लाश को पीठ पर उठाकर घूते हुए तथा इनजनहारी द्वारा अपने बच्चे के पालन-पोषण के लिए मिट्टी के तोंदे में सूंडियों को रोके हुए देखा।
 इनजनहारी द्वारा मिट्टी के तोंदे में रोकी गई सूंडियां।

ईटीएल लेवल से पार पहुंची सफेद मक्खी की संख्या

पाठशाला में मेजर कीट सफेद मक्खी, हरे तेले व चूरड़े की गिनती की गई जिसमें सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 7.9, हरे तेले की संख्या 0.35, चूरड़े की संख्या 1.7 रही। किसानों ने बताया कि पिछले सप्ताह फसल में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 2.1, हरे तेले की 0.25 तथा चूरड़े की संख्या 0.03 थी। जबकि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सफेद मक्खी का ईटीएल लेवल प्रति पत्ता छह, हरे तेले का दो और चूरड़े का 10 से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन इस बार यह संख्या ईटीएल लेवल को पार कर चुकी है। मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मेजर कीट सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़े को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद हैं। इसके बाद सभी किसानों से सर्वसम्मति से फैसला किया कि इस मामले में किसी भी प्रकार का फैसला अगले सप्ताह लिया जाएगा। क्योंकि इस बार फसल में सफेद मक्खी की संख्या बच्चों की बजाए प्रौढ़ की ज्यादा है। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट इनो है। इनो एक बार में 100 से 150 अंडे देती है और एक सफेद मक्खी के पेट में एक ही अंड़ा देती है। इस अंडे से निकलने वाले इनो के बच्चे सफेद मक्खी को खाकर नियंत्रित कर लेते हैं।
 : पौधों पर कीटों की पहचान करती महिला किसान।

यह-यह मांसाहारी कीट भी मिले

फसल में शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट क्राइसोपा के अंडे, बच्चे, बीटल, डाकू बुगड़ा, मकड़ी, इनो, दीदड़ बुगड़ा, इनजनहारी, बिंदुआ चूरड़ा, अंगीरा, ब्रहमनो बीटल काफी संख्या में मौजूद रहे।

दो प्रकार के होते हैं कीट

मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि कीट दो प्रकार के होते हैं। एक मांसाहारी तथा दूसरे शाकाहारी। शाकाहारी कीट पौधे से रस चूसकर, पत्ते व फूलों को खाकर अपना गुजारा करते हैं और मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर किसान के लिए फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। शाकाहारी कीट भी दो किस्म के होते हैं। एक रस चूसकर गुजारा करने वाले तथा दूसरे चबाकर खाने वाले कीट।
महिला किसान शकुंतला 

महिलाओं के  लिए काफी ज्ञानवर्धक सिद्ध होगी पाठशाला

मैं अपने परिवार के साथ खेतीबाड़ी का कार्य करती हूं लेकिन आज तक मुझे फसल में मौजूद कीटों के बारे में जानकारी नहीं थी। आज पाठशाला में मास्टर ट्रेनर किसानो द्वारा दी गई जानकारी से फसल में मौजूद कीटों के महत्व के बारे में जानकारी हासिल हुई है। इससे पहले मुझे कीटों के बारे में इतनी ज्यादा जानकारी नहीं थी। यहां लगाई गई यह पाठशाला किसानों के लिए काफी ज्ञनवर्धक साबित होगी।
शकुंतला, महिला किसान
जेवरा

पति से ही मुझे थोड़ी बहुत कीटों के बारे में हुई जानकारी 

महिला किसान रानी  
मेरा पति पिछले वर्ष से कीटाचार्य किसानों के साथ जुड़ा हुआ है। हम भी पिछले वर्ष से बिना जहर की खेती कर रहे हैं। पति से ही मुझे थोड़ी बहुत कीटों के बारे में जानकारी हुई थी लेकिन इस बार हमारे यहां पाठशाला शुरू होने से कीटों के बारे में हमें काफी ज्ञान मिलेगा। मास्टर ट्रेनर महिला किसानों द्वारा काफी बारिकी से जानकारी दी गई है।
रानी, महिला किसान
जेवरा