शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

'व्हाइटफ्लाई की रफ्तार पर ड्रेगनफ्लाई ने लगाये ब्रेक'

मांसाहारी कीट खुद ही कर लेते हैं शाकाहारी कीटों को नियंत्रित
जींद जिले में एक हजार एकड़ कपास की फसल में नहीं सफेद मक्खी का प्रकोप 

नरेंद्र कुंडू
जींद। इस बार हरियाणा तथा पंजाब में व्हाइट फ्लाई (सफेद मक्खी) का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिला। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण पंजाब तथा हरियाणा में लाखों हैक्टेयर कपास की फसल पूरी तरह से तबाह हो गई। महंगे से महंगे कीटनाशक भी सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में बेअसर साबित हुए। किसानों द्वारा अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करने के बावजूद भी सफेद मक्खी की संख्या कम होने की बजाए उलटा बढ़ती चली गई। कई जगह तो ऐसे हालात पैदा हो गए की किसानों को अपनी खराब हुई कपास की फसलों को मजबूरन ट्रैक्टर से जोतना पड़ा। इस वर्ष कपास की फसलों पर बड़ी तेजी के साथ सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ा लेकिन जींद जिले के कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े कीटाचार्य किसानों ने ड्रेगनफ्लाई (तुलसामक्खी) व अन्य मांसाहारी कीटों की मदद से सफेद मक्खी की इस रफ्तार पर ब्रेक लगा दिए और परिणाम यह रहे कि इन किसानों की फसलों को सफेद मक्खी से किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ। जींद जिले में लगभग एक हजार एकड़ ऐसा रकबा है जहां पर सफेद मक्खी से कपास की फसल में कोई नुकसान नहीं हुआ है। पिछले सात-आठ वर्षों से यहां के किसान बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए सभी फसलों की अच्छी पैदावार ले रहे हैं। कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने में मेजर कीट मानी जाने वाली सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इन किसानों को किसी प्रकार के कीटनाशकों के प्रयोग की भी जरूरत नहीं पड़ती है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट अपने आप ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। वर्ष 2008 में कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में यहां के किसानों ने कीटों पर शोध शुरू किया था और इसके बाद से ही यह किसान इस मुहिम से जुड़े हुए हैं।
कपास की फसल को दिखाते किसान।

इस प्रकार फसल को नुकसान पहुंचाती है सफेद मक्खी    

सफेद मक्खी एक शाकाहारी कीट है। सफेद मक्खी का आकार पेन की नौक के आकार जितना होता है।  यह पौधे के पत्तों से रस चूसकर अपना गुजारा करती है। सफेद मक्खी कपास की फसल में लीपकरल (मरोडिया) के फैलाने में सहायक का काम करती है। लीपकरल का वायरस सफेद मक्खी के थूक में मिलकर एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचता है। यदि खेत में एक भी पौधे में लीपकरल है तो 10 सफेद भी उस लीपकरल के वायरस को पूरे खेत में फैला सकती हैं। सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर होता है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है उस पत्ते पर फफूंद लग जाती है और वह पत्ता भोजन बनाना बंद कर देता है।

यह कीट हैं सफेद मक्खी के कुदरती कीटनाशी 

ड्रेगनफ्लाई (तुलसा मक्खी) तथा छैल मक्खी उड़ते हुए सफेद मक्खी के प्रौढ़ का शिकार करती हैं। इनो, इरो नामक मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के सबसे बड़े दुश्मन हैं और यह सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इनो और इरो दोनों ही परपेटिये कीट हैं और यह सफेद मक्खी के बच्चों के पेट में अपने अंडे देते हैं। इनो व इरो के बच्चे सफेद मक्खी को अंदर ही अंदर से खाकर खत्म कर देते हैं। सफेद मक्खी के बच्चे पंख विहिन होते हैं। इसलिए बीटल क्राइसोपा के बच्चे तथा मकडिय़ां इनके बच्चों का आसानी से भक्षण कर देती हैं।

पौधों को दें पर्याप्त खुराक

कीटाचार्य किसान प्रमिला रधाना
फसल में शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट पर्याप्त संख्या में मौजूद होते हैं। मांसाहारी कीट अपने आप ही फसल को नुकसान पहुंचाने वाले शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। इसलिए फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए पौधों को पर्याप्त खुराक देनी चाहिए। इसके लिए ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक का घोल तैयार कर 100 लीटर पानी में फसल पर इसका छिड़काव करें। पिछले कई वर्षों से हम इस पद्धति से खेती कर रहे हैं और हर बार अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।
प्रमिला रधाना, कीटाचार्य किसान

ऐसे बढ़ती है शाकहारी कीटों की संख्या 

कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक
कई प्रकार के मांसाहारी कीट ऐसे हैं जो शाकाहारी कीटों के पेट में अपने बच्चे या अंडे देते हैं। वहीं कई प्रकार के मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों से छोटे आकार के होते हैं। जब किसान फसल पर कीटनाशक का प्रयोग करते हैं तो शाकाहारी कीट के पेट में पनप रहे मांसाहारी कीट के बच्चे व छोटे आकार वाले मांसाहारी कीट मर जाते हैं। इस प्रकार फसल में कुदरती कीटनाशियों की संख्या कम होने के कारण शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ जाती है और इससे फसल को नुकसान पहुंचता है। पिछले सात-आठ वर्षों से जींद जिले के दर्जनभर गांव के किसान कीटों पर अपना शोध कर रहे हैं।
रणबीर मलिक, कीटाचार्य किसान





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