संदेश

इंग्लैंड व अमेरिका के लोगों की पसंद बनी अटेरना की बेबी कॉर्न

चित्र
खेती में अटेरना के कंवल सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान नरेंद्र कुंडू  सोनीपत।  हरियाणा के प्रतिष्ठित किसानाें की सूची में शामिल 55 वर्षीय अटेरना निवासी कंवल सिंह चौहान ने खेती के बूते अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। अपनी मेहनत के बल पर कंवल सिंह दर्जनभर से भी ज्यादा पुरस्कार हासिल कर चुका है। इतना ही नहीं गांव में ही स्थित कंवल सिंह की फूड प्रोसेसिंग कंपनी से हर रोज लगभग डेढ़ टन बेबी कॉर्न व अन्य उत्पाद इंग्लैंड व अमेरिका में सप्लाई हो रहे हैं। पर्यावरण नियंत्रण की राष्ट्रीय समिति के सदस्य कंवल सिंह चौहान ने बताया कि 1978 में पिता के देहांत के बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी। उस समय उनकी उम्र महज 15 वर्ष थी और वह दसवीं कक्षा में पढ़ते थे।  इसके बाद उन्होंने खेती के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। 1996 में उन्होंने राइस मिल लगाया लेकिन वहां सफलता नहीं मिली। वह पूरी तरह से कर्ज में डूब चुके थे। इसके बाद उन्हाेंने अपनी परंपरागत खेती छोड़ कर 1998 में मशरूम व बेबी कॉर्न की खेती शुरू की। मशरूम व बेबी कॉर्न से अच्छी आमदनी हुई। इसके बाद उन्होंने  

व्यवसायिक खेती ने बदली किसानों की तकदीर

चित्र
बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न की खेती से अटेरना और मनोली के किसानों से विदेशों में भी बनाई पहचान  नरेंद्र कुंडू  सोनीपत। आज खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है। खेती में लागत अधिक होने तथा पैदावार कम होने के कारण किसान खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं। लेकिन हरियाणा प्रदेश के सोनीपत जिले के दो गांव ऐसे हैं, जहां के किसानाें ने हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के नक्शे पर अपनी सफलता की छाप छोड़ी है। दिल्ली-चंडीगढ़ नेशनल हाईवे-1 पर स्थित बहालगढ़ से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित अटेरना तथा पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित मनोली के किसानाें ने खेती को व्यवसाय के तौर पर अपना लिया है। इन गांवाें के किसानों ने अपनी परंपरागत खेती को छोड़कर बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न की खेती को अपनी आमदनी का जरिया बनाया है। इतना ही नहीं बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न के उत्पादन में इन दोनों गांवों के किसानों ने इतनी प्रसिद्धी हासिल की है कि विदेशों से भी किसान यहां खेती का प्रशिक्षण लेने के लिए आते हैं। मनोली गांव निवासी दिनेश ने बताया कि बीएससी की  पढ़ाई के बाद से उसने नौकरी की बजाए खेती को व्यवसाय के तौर

किसानों द्वारा 10 वर्षों से हो रहा कीटों पर शोध

चित्र
फसल में कीट ज्ञान पद्धति अपना कर किसान चार गुना तक कम कर सकते हैं लागत  थाली को जहरमुक्त बनाने की जींद के किसानाें की अनूठी मुहिम नरेंद्र कुंडू  जींद। किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलाें में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकाें व कीटनाशकाें का प्रयोग किया जाता है। इससे फसल में लागत अधिक बढ़ती जा रही है और उत्पादन कम होता जा रहा है। इससे किसान कर्ज के दलदल में फंसकर आर्थिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं। लेकिन जींद जिले के किसानों द्वारा फसल में लागत को कम कर उत्पादन बढ़ाने के लिए कीट ज्ञान की अनोखी पद्धति इजाद की गई है। यहां के किसान पिछले दस वर्षों से फसलों में मौजूद कीटों पर शोध कर रहे हैं। वर्ष 2008 में कृषि विकास अधिकारी डॉ- सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में निडाना गांव में कीटों पर शोध का कार्य शुरू किया गया था। इस मुहिम के साथ आस-पास के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के पुरुष व महिला किसान जुड़े हुए हैं। कीटाचार्य रणबीर मलिक, सुरेश,  रामदेवा, जगमेंद्र, सविता, अंग्रेजो, मनीषा इत्यादि का कहना है कि फसल के लिए भी कीट जरूरी हैं क्योंकि कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। पौधे अपनी जरूरत के अ

ऐसे कैसे होगा गांवों का विकास

चित्र
--अभी तक 301 में से महज 15 पंचायतों की जीपीडीपी हुई तैयार --बिना जीपीडीपी के पंचायतों को नहीं मिल पाएगी विकास के लिए ग्रांट --छह माह पहले दिए थे जीपीडीपी बनाने के आदेश नरेंद्र कुंडू जींद। गांवों के विकास का खाका तैयार करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) में पंचायत अधिकारी व ग्राम सचिव रूची नहीं दिखा रहे हैं। जीपीडीपी योजना के शुरू होने के छह माह बाद भी अभी तक जिले के 301 ग्राम पंचायतों में से महज 15 ग्राम पंचायतों की ही जीपीडीपी तैयार हो पाई है। ग्राम पंचायजों की जीपीडीपी तैयार नहीं होने के कारण गांव के विकास कार्यों पर ब्रेक लग गए हैं।   यह है जीपीडीपी योजना  ग्राम पंचायतों द्वारा पहले बिना प्लानिंग के ही विकास कार्य करवाए जाते थे। गांव के विकास के लिए किसी तरह की कोई प्लानिंग नहीं होती थी। केवल ग्राम सभा में ही गांव के विकास कार्यों पर चर्चा की जाती थी। पंचायत के पास विकास कार्यों की प्लानिंग नहीं होने के कारण कई बार सबसे जरूरी कार्य नहीं हो पाते थे। इस समस्या को दूर करने तथा गांवों का विकास करवाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा ग

ओलंपिक में गोल्ड लाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो खोल दिया अखाड़ा

चित्र
रेलवे की नौकरी के साथ अपने खर्च पर पहलवान तराश रहा नरेंद्र --देश को मैडल दिलवाने के लिए अखाड़े में बहा रहे हैं पसीना --कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल जीत चुका है नरेंद्र --नरेंद्र की उपलब्धियों को देखते हुए सरकार ने 2000 में भीम अवार्ड से किया सम्मानित नरेंद्र कुंडू जींद। ओलंपिक गेम में गोल्ड लाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो पहलवान नरेंद्र ने खुद का अखाड़ा शुरू कर दिया। अब देश को ओलंपिक में गोल्ड दिलवाने के लिए अपने खर्च पर पहलवानों को तरास रहा है। हालांकि दो दशक पहले कॉमनवेल्थ गेम में नरेंद्र ने देश की झोली में गोल्ड मैडल डालने का काम किया था। कुश्ती में देश को अधिक से अधिक मैडल दिलवाने के लिए नरेंद्र खिलाडिय़ों के साथ अखाड़े में दिन-रात पसीना बहा रहा है। नरेंद्र का सपना कुश्ती में देश को ओलंपिक में गोल्ड दिलवाने का है। इसलिए पहलवान नरेंद्र बिना किसी प्रकार की सरकारी सहायता के अपने खर्च पर यह अखाड़ा चला रहा है। इस समय नरेंद्र के अखाड़े में दो दर्जन से भी अधिक खिलाड़ी कुश्ती का प्रशिक्षण ले रहे हैं। हाल ही में दिल्ली में आयोजित ग्रेपलिंग चैंपियनशिप में भी नरेंद्र के तीन पहलवानों ने गोल

गांव की पहली एमबीबीएस डॉक्टर बन सपना ने पेश की महिला सशक्तिकरण की मिशाल

चित्र
गांव का गौरव --बीडीएस में दाखिला होने के बाद भी कम नहीं हुई एमबीबीएस बनने की चाह, दोबारा से दी परीक्षा और एमबीबीएस के लिए हो गया चयन  --ग्रामीण परिवेश में रहकर परिस्थितियों का डटकर किया मुकाबला --सुविधाओं के अभाव को भी नहीं बनने दिया रास्ते का रोड़ा  नरेंद्र कुंडू जींद। जिले के पिल्लूखेड़ा खंड के छोटे से गांव भूराण निवासी सपना ने एमबीबीएस के लिए अपना चयन करवाकर समाज के सामने यह साबित कर दिखाया है कि आज लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं। लगभग तीन हजार की आबादी वाले इस गांव से एमबीबीएस डॉक्टर बनने वाली सपना गांव की पहली लड़की है। सपना का सपना था एमबीबीएस डॉक्टर बनने का लेकिन जब एमबीबीएस के लिए उसका चयन नहीं हुआ तो उसने बीडीएस में दाखिला ले लिया। बीडीएस में दाखिला लेने के बाद भी सपना की एमबीबीएस बनने की चाह कम नहीं हुई। सपना ने दोबारा मेहनत की और एमबीबीएस में दाखिला लेकर यह साबित कर दिया कि यदि इंसान कुछ हासिल करने की ठान ले और सच्ची लग्न से मेहनत करे तो दुनिया की कोई भी ताकत उसको उसकी मंजिल प्राप्त करने से नहीं रोक सकती। एमबीबीएस डॉक्टर बनकर धन कमाना सपना का

मजदूरी कर बेटे को करवाई मुम्बई आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई

चित्र
तीन हजार की आबादी वाले भूराण गांव से आईआईटी से इंजीनियरिंग करने वाला गांव का पहला छात्र बनेगा रामफल का लड़का नवीन परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी रामफल अपने बेटे को आईआईटी मुंबई से करवा रहा है कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी दिलवा रहा है उच्च शिक्षा  रामफल अपनी पत्नी सुनीता के साथ। नरेंद्र कुंडू जींद। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर जींद-पानीपत मार्ग पर स्थित भूराण गांव वैसे तो अपनी एक अलग पहचान रखता है लेकिन गांव का ही एक 49 वर्षीय रामफल नामक व्यक्ति इस गांव का गौरव है। रामफल समाज के सामने एक अच्छे पिता की मिशाल पेश कर रहा है। रामफल अपनी आर्थिक परिस्थितियों की परवाह किए बिना अपने चारों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाकर समाज को एक सुशिक्षित नागरिक देने का काम किया है। इतना ही नहीं रामफल ने अपने बेटे व बेटियों में भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया। वह अपनी बेटियों को भी बेटों की तरह अच्छी शिक्षा दिलवा रहा है। आज जहां रामफल की दोनों बेटियां जीएनएम व बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही हैं, तो वहीं रामफल का एक लड़का मुंबई आईआईटी से कैमिकल