शनिवार, 11 मई 2019

12 मई को इन मामा-फूफा वालों का एक बटन से बांध देना इलाज : दुष्यंत

कहा, भाजपा ने जात-पात व धर्म के नाम पर देश को बांटने का काम किया
जजपा की सरकार बनने पर जींद को बनाएंगे राजधानी, गोहाना को बनाएंगे जिला

जींद, 10 मई (नरेंद्र कुंडू):- हिसार के सांसद दुष्यंत चौटाला ने कहा कि हरियाणा में कांग्रेस का आधार जिस तरह से गिरा है और भाजपा को जिस तरह से विरोध का सामना करना पड़ रहा है उससे यह साफ हो गया है कि इस लोकसभा चुनाव में हरियाणा में सबसे ज्यादा सीटें जजपा-आप गठबंधन जीतेगा। मोदी केवल अखबारों व टीवी तक सिमट कर रह गया है। जनता में मोदी का कोई प्रभाव नहीं है। भाजपा ने देश को जात-पात व धर्म के नाम पर बांटने का काम किया है। गुजरात में हिंदू को मुस्लमान से, उत्तरप्रदेश में यादव को दूसरी जात के लोगों व हरियाणा में जाट को नॉन जाट से लड़ाने का काम किया है। वहीं कांग्रेस ने अपने शासनकाल में देश में भ्रष्टाचार फैलाने का काम किया था। इसलिए इस चुनाव में जनता इन दोनों पार्टियों को सबक सिखाने का काम करेगी। दुष्यंत चौटाला शुक्रवार को जींद के हुडा ग्राउंड में जजपा व आप गठबंधन के सोनीपत के प्रत्याशी दिग्विजय चौटाला के पक्ष में प्रचार अभियान के दौरान जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे।  
दुष्यंत चौटाला ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा हिसार में अंदर खाते चुनाव जीताने के लिए बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह की मदद कर रहे हैं और बीरेंद्र सिंह रोहतक में दीपेंद्र की मदद कर रहे हैं। इस प्रकार यह दोनों पर्दे के पीछे से अपनी रिश्तेदारी निभा रहे हैं। दुष्यंत ने कहा कि ये दोनों मामा-फूफा वाले म्हारे पाछै पड़ गए हैं। अबकी बार 12 मई को एक बटन से इन मामा-फूफा वालों का इलाज कर देना है। दुष्यंत ने कहा कि आज कुछ लोग उन पर आरोप लगा रहे हैं कि वह भाजपा की बी टीम हैं लेकिन सही मायने में देखा जाए तो भूपेंद्र हुड्डा भाजपा की बी टीम के तौर पर काम कर रहे हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने राज्य सभा चुनाव में स्याही बदल कर भाजपा की मदद की थी। पिछले पांच साल में भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीबीआई के डर से एक बार भी प्रधानमंत्री के खिलाफ नहीं बोला। जींद उपचुनाव में भी हुड्डा ने भाजपा नेताओं के साथ मिलकर अपनी ही पार्टी के नेता सुरजेवाला के खिलाफ षडयंत्र रचकर भाजपा की मदद की थी। दुष्यंत ने कहा कि भाजपा के साढ़े चार साल के शासन काल में हरियाणा में चार बार मिल्ट्री बुलानी पड़ी थी। भाजपा ने अपने शासन काल में प्रदेश में जात-पात का जहर फैलाने का काम किया। लोगों को गुमराह करने के लिए मुरथल को बदनाम करने का काम किया। अगर भाजपा के शासन काल की बात की जाए तो सबसे ज्यादा शहीद तो भाजपा के शासन काल में हुए हैं। भाजपा ने दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का काम किया था लेकिन भाजपा के शासन काल में 50 लाख युवा बेरोजगार हो गए। भाजपा ने किसानों की आय दोगुणा करने का वायदा किया था लेकिन भाजपा के शासन काल में किसानों का कर्ज दोगुणा हो गया। दुष्यंत ने कहा कि बीरेंद्र सिंह ने 47 साल जींद के नाम पर राजनीति की और लोगों से बार-बार उसे सीएम बनाने का राग अलापते रहे लेकिन वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और अब तो वह राजनीति से सन्यास ले चुके हैं। इसलिए अबकी बार लोगों के पास मौका है कि जजपा की सरकार चुनने का काम करें। जजपा की सरकार आने के बाद जींद को राजधानी व गोहाना को जिला बनाने का काम किया जाएगा। डबवाली की विधायक नैना चौटाला ने महिलाओं से आह्वान करते हुए कहा कि 12 मई को चप्पल पहन कर झाडू से सभी विरोधियों का सफाया कर चप्पल के निशान का बटन दबाना है। राज्य सभा सांसद सुशील गुप्ता ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की तर्ज पर हरियाणा में बदलाव लाने के लिए जजपा के साथ गठबंधन किया है। भाजपा ने व्यापारियों के व्यापार को खत्म किया तो कांग्रेस ने देश में भ्रष्टाचार फैलाने का काम किया। अब जजपा व आप मिलकर हरियाणा में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर भ्रष्टाचार को खत्म करने का काम करेंगे। 

हुड्डा कहवै है दिग्विजय तो म्हारी कढ़ी बिगाडऩ आया है।

दुष्यंत चौटाला ने सोनीपत से कांग्रेस प्रत्याशी भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा पर तंज कसते हुए कहा कि दिग्विजय के चुनाव मैदान में आने के बाद हुड्डा की नींद उड़ गई है। हुड्डा कहवै है के दिग्विजय तो म्हारी कढ़ी बिगाडऩ आया है। मैं कहूं हूं के कढ़ी तो म्हारे बागडिय़ां में बन्या करै, देशवालिया में कढ़ी कद तै बनन लाग गई। जै हुड्डा ने कढ़ी खानी थी तो कढ़ी तो रोहतक वाले भी खिला देते याड़े ससुराल में कढ़ी खान क्यों आया। 

6 माह पहले बनी पार्टी ने पीएम के छुड़ाए पसीने

दुष्यंत चौटाला ने कहा कि 6 माह पहले जींद के इसी मैदान में जन्मी पार्टी ने सभी विरोधी दलों की नींद हराम कर दी है। आज हर विपक्षी दल की नजरें जजपा पर है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोहतक की रैली में जजपा पार्टी पर अपनी टिप्पणी की। प्रधानमंत्री की जजपा पर टिप्पणी यह दर्शाती है कि जजपा दिन-प्रतिदिन मजबूत हो रही है। जजपा ने प्रधानमंत्री तक के पसीने छुड़ा दिए हैं। 

हुड्डा ऐसा बादल जो पानी जींद-सोनीपत से लेता है लेकिन बरसता किलोई में जाकर है। 

दिग्विजय चौटाला ने कहा कि उनके परदादा चौधरी देवीलाल ने जींद के इस ग्राउंड से न्याय युद्ध की शुरूआत की थी और उन्हें सोनीपत से ही पहला चुनाव लड़ा था। यह उनका सौभग्य है कि उन्हें भी सोनीपत से चुनाव लडऩे का मौका मिला है। हुड्डा उन पर आरोप लगा रहा है कि उन्होंने भाजपा से करोड़ों रुपए लेकर सोनीपत से चुनाव लड़ा है जबकि सच्चाई यह है कि हुड्डा भाजपा के साथ सांठगांठ किए हुए है। जींद उपचुनाव में हुड्डा ने सुरजेवाला को नहीं बल्कि भाजपा को वोट डलवाए थे। हुड्डा बदला लेने की बात करता है जबकि हम बदलाव की बात करते हैं। दिग्विजय ने कहा कि हुड्डा तो ऐसा बादल है जब पानी लेने की बात आती है तो पानी जींद व सोनीपत से लेता है और जब बरसने की बात आती है तो किलोई में जाकर बरसता है। दिग्विजय ने कहा कि जजपा के सत्ता में आने के बाद हैबतपुर के पास विधानसभा होगी, पिंडारा के पास सचिवालय होगा और जींद रोड पर मुख्यमंत्री की कोठी बनेगी। दिग्विजय ने कहा कि एमपी दो तरह के होते हैं एक तालियां पीटने वाले और एक काम करने वाले। जब मैं एमपी बनुंगा तो तालियां नहीं पिटूंगा बल्कि संसद में जींद-जींद चिलाउंगा। 
जनसभा को सम्बोधित करते दिग्विजय चौटाला। 

जब जाटों को हुड्डा की जरूरत थी तो हुड्डा ने जाटों को दिखाई पीठ

दिग्विजय चौटाला ने कहा कि आज चुनाव में हुड्डा को जाटों की याद आई है जब जाटों को हुड्डा की जरूरत थी तो हुड्डा ने जाटों की मदद करने की बजाए जाटों को हमेशा पीठ दिखाने का काम किया। रोहतक में जब चौधरी छोटू राम के नाम से शिक्षण संस्थान बन रहा था तो हुड्डा ने उस शिक्षण संस्थान में भी कोई मदद नहीं की। 
फोटो कैप्शन





गुरुवार, 9 मई 2019

मोदी ने अपने शासनकाल में ऐसा काम किया देश खुश और विरोधी परेशान : हेमा मालिनी

--कांग्रेस के शासनकाल में देश के हालात हो गए थे खराब, मोदी ने देश को दी नई दिशा
--कांग्रेस ने आतंकवाद के खिलाफ नहीं की कार्रवाई, मोदी ने 13 दिन में लिया पुलवामा का बदला

जींद, 9 मई (नरेंद्र कुंडू):- मथुरा की सांसद एवं मशहूर वालीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पांच साल के कार्यकाल में देश हित में ऐसे काम किए हैं जिनसे देश की जनता खुश है और विरोधी परेशान। आज कोई भी विरोधी देश भारत की तरफ आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। देश में विकास का रथ चल रहा है। आज देश में मोदी लहर चल रही है। नरेंद्र मोदी के कार्यों को देखते हुए एक बार फिर से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाना जरूरी है। हेमा मालिनी वीरवार को शहर के टाउन हाल पर सोनीपत लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी रमेश कौशिक के पक्ष में प्रचार अभियान के दौरान जनसभा को सम्बोधित कर रही थी। हेमा मालिनी ने बृजवासी अंदाज में राधे-राधे बोलकर अपने भाषण की शुरूआत की। 
हेमा मालिनी ने कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में देश के हालात बिल्कुल खराब हो गए थे। देश में आतंकवाद, भ्रष्टाचार चर्म पर था। देश की आर्थिक व्यवस्था बुरी तरह से खराब हो चुकी थी लेकिन 2014 में देश में आई मोदी लहर ने देश को कांग्रेस के कुशासन से मुक्ति दिलाकर देश को नई दिशा देने का काम किया। कांग्रेस के शासनकाल में आतंकवाद ने देश में अपनी जड़े जमा ली थी। कांग्रेस के शासनकाल में मुंबई में इतना बड़ा हमला हुआ लेकिन कांग्रेस ने आतंकवाद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 दिन में ही सर्जिकल स्ट्राइक कर पुलवामा हमले का बदला ले लिया। हम भाजपा के साथ जुड़कर गर्व महसूस करते हैं। यह हमारा सौभग्य है कि हमें दिन-रात काम करने वाला प्रधानमंत्री मिला है। आज देश से आतंकवाद खत्म हो चुका है और देश विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। इसलिए हमारा फर्ज बनता है कि हम सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से सांसद रमेश कौशिक को भारी मतों से विजयी बनाकर नरेंंद्र मोदी के हाथ मजबूत करें। उन्होंने जनता से अपील करते हुए कहा कि विरोधी दलों के लोग उनके पास आएंगे और उन्हें बहलाने का प्रयास करें लेकिन वह उनकी बातों में नहीं आएं। तिरंगे के मान के लिए कमल के फूल के सामने का बटन दबाकर देश में फिर से भाजपा की सरकार लाएं। 

चल धन्नो आज तेरी बसंती की इज्जत का सवाल है। 

हेमा मालिनी ने अपने भाषण के अंत में शोले फिल्म का डॉयलॉग बोलते हुए कहा 'चल धन्नो आज तेरी बसंती की इज्जत का सवाल है और सोनीपत से रमेश कौशिक को जीता देना नहीं तो बसंती नाराज हो जाएगी।Ó हेमा ने मथुरा में अपनी जनसभा का जिक्र करते हुए कहा कि जब धर्मेंद्र मथुरा में उनके पक्ष में जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे तो उन्होंने वहां के लोगों से फिल्मी अंदाज में यही कहा था कि मथुरा से बसंती को जीता देना नहीं तो वीरु नाराज होकर टंकी पर चढ़ जाएगा। 

मोदी बन गया है ट्रेड मार्क

सांसद हेमा मालिनी ने कहा कि आज जब भी वह किसी भी जनसभा को सम्बोधित करने के लिए जाती हैं तो उन्हें भाषण देने की जरूरत नहीं पड़ती। वह माइक से बस मोदी-मोदी बोल देती हैं तो चारों तरफ मोदी-मोदी के नारे गुंजने लगते हैं। आज मोदी एक ट्रेड मार्क बन गया है। मोदी के नारे लगाने वाले लोगों के चेहरे पर एक अलग खुशी नजर आती है। 

हेमा के सभा स्थल पर पहुंचते ही फैली अव्यवस्था, 10 मिनट में निपटाया भाषण

सांसद हेमा मालिनी दोपहर 1:20 मिनट पर हेलीपैड से गाड़ी में सवार होकर सभा स्थल पर पहुंची। हेमा के यहां पहुंचते ही उनकी झलक पाने के लिए लोग मंच की तरफ उमड़ पड़े। इससे सभा स्थल पर काफी अव्यवस्था हो गई। पुलिस प्रशासन को व सुरक्षा व्यवस्था में लगे लेगों को व्यवस्था बनाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। सभा स्थल पर पहुंचने के बाद हेमा मालिनी महज 15 मिनट ही सभा स्थल पर रुकी। हेमा 10 मिनट में अपना भाषण निपटाकर वहां से वापिस रवाना हो गई। 

आज मेरी पहचान फिल्म अभिनेत्री नहीं भाजपा नेत्री के तौर पर है। 

सांसद हेमा मालिनी ने कहा कि उन्हें भाजपा के साथ अपने आप पर गर्व हो रहा है। उन्होंने काफी लंबे समय तक फिल्मों में काम किया इसलिए लोग उन्हें फिल्म अभिनेत्री के तौर पर जानते थे लेकिन अब उनकी पहचान फिल्म अभिनेत्री नहीं भाजपा नेत्री के तौर पर है। 

सेल्फी लेने वाले युवकों को हड़काया

भाजपा प्रत्याशी रमेश कौशिक के पक्ष में प्रचार के लिए आई वालीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी की नाक पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था। हेमा मालिनी जैसे ही हैलीकॉप्टर से नीचे उतरकर सभा स्थल की तरफ रवाना होने के लिए आई तो रास्ते में कुछ युवक उनके साथ सेल्फी लेने पहुंच गए। सेल्फी लेने वाले युवकों को हेमा मालिनी ने बुरी तरह से डांटा। इसके बाद जब हेमा मालिनी टाउन हाल पर जनसभा को सम्बोधित करने के लिए मंच पर पहुंची तो एक युवक यहां भी उनके साथ सेल्फी लेने लगा। हेमा ने यहां भी उस युवक को बुरी तरह से फटकार लगाई। इतना ही नहीं जब हेमा भाषण देने के लिए उठी तो हेमा ने माइक के पास खड़े सभी लोगों को वहां से हटने का इशारा किया।  





मंच से लोगों का अभिवादन स्वीकार करती सांसद हेमा मालिनी।

जनसभा को सम्बोधित करती हेमा मालिनी। 

बांगर व खादर के राजनीतिक समीकरणों की मझधार में फंसी उम्मीदवारों की नैया

सोनीपत लोकसभा हॉट सीट : 
--सोनीपत लोस सीट पर हर उम्मीदवार की अपनी चुनौती
--कांग्रेस व भाजपा में बना मुकाबला, अन्य उम्मीदवार जमानत बचाने के लिए कर रहे संघर्ष
--रमेश कौशिक मोदी के नाम पर, हुड्डा क्षेत्र की चौधर के नाम तो दिग्विजय जींद को राजधानी बनाने के नाम पर मांग रहे वोट 

जींद, 8 मई (नरेंद्र कुंडू):- पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के चुनावी रणक्षेत्र में आने के बाद सोनीपत लोकसभा सीट हॉट सीट बन गई है और पूरे हरियाणा की नजर सोनीपत लोस सीट पर टिकी हुई है। लेकिन सोनीपत लोकसभा क्षेत्र बांगर व खादर दो क्षेत्रों में बंटा हुआ है। इसमें 6 विधानसभा क्षेत्र खादर (सोनीपत) व 3 विधानसभा क्षेत्र बांगर (जींद) के शामिल हैं। इसके चलते यहां बांगर व खादर क्षेत्र में बन रहे राजनीतिक समीकरणों की मझधार में उम्मीदवारों की नैया फंसी हुई है। यदि पिछले लोकसभा चुनाव परिणाम पर नजर डाली जाए तो मोदी लहर में सांसद रमेश कौशिक को जीत हासिल करवाने में सोनीपत लोकसभा क्षेत्र के 9 विधानसभा क्षेत्रों में से खादर के तीन व बांगर के दो विधानसभा क्षेत्रों का अहम योगदान था लेकिन इस बार बांगर की धरती पर हो रहे सांसद रमेश कौशिक के विरोध ने सांसद की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। वहीं जजपा व आप गठबंधन से दिग्विजय चौटाला के चुनाव मैदान में आने के कारण पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। इस समय यदि चुनावी समीकरणों पर नजर डाली जाए तो मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच नजर आ रहा है। अन्य उम्मीदवारों इस समय केवल अपनी जमानत बचाने के लिए जद्दोजहद करते नजर आ रहे हैं। जींद जिले में हो रहे भारी विरोध के बावजूद सांसद रमेश कौशिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा क्षेत्र की चौधर के नाम पर वोट मांगते नजर आ रहे हैं। वहीं जजपा प्रत्याशी दिग्विजय चौटाला जींद को राजधानी बनाने के मुद्दे को भुनाने के प्रयास में हैं। सोनीपत लोकसभा के बांगर व खादर दो अलग-अलग क्षेत्रों में बंटा होने के कारण यहां हर उम्मीदवार के लिए अपनी-अपनी चुनौतियां हैं। 

कांग्रेस के लिए अपना वोट बैंक बचाना भी एक चुनौती

कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग रहा है लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद भाजपा कांग्रेस के इस वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रही है। जींद उपचुनाव में इसका परिणाम देखने को मिला है। शहरी पार्टी माने जाने वाली भाजपा ने जींद उपचुनाव में ग्रामीण क्षेत्र से भी अच्छी वोट हासिल की थी। इस प्रकार यदि देखा जाए तो भाजपा कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी करने में सफल रही है। इससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ी हैं। 

कांग्रेस की गुटबाजी हुड्डा के लिए खड़ी कर सकती है परेशानी

कांग्रेस की अंदरुनी कलह ही कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल है। हाल ही में हुए जींद उपचुनाव में कांग्रेस की गुटबाजी के परिणाम सामने आए थे, जिसके चलते कांग्रेस के दिग्गिज नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला बड़ी मुश्किल से अपनी जमानत बचा पाए थे। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की आपसी गुटबाजी किसी से छुपी नहीं है। कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है।

हुड्डा ने देवीलाल को तीन बार किया पराजित, अब चौथी पीढ़ी हुड्डा को दे रही चुनौती  

हरियाणा ही नहीं देश की राजनीति में चौधरी देवीलाल का बड़ा कद रहा है। लेकिन यदि लोकसभा चुनाव के भूतकाल में देखा जाए तो चुनाव मैदान में चौधरी देवीलाल को तीन बार भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा के सामने हार का मुंह देखना पड़ा था। रोहतक लोकसभा सीट पर 1991, 1996 व 1998 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तीन बार चौधरी देवीलाल को पराजित किया था। अब सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से चौधरी देवीलाल की चौथी पीढ़ी दिग्विजय चौटाला का भूपेंद्र सिंह हुड्डा से आमना-सामना है। दिग्विजय चौटाला के चुनाव मैदान में आने से हुड्डा को नुकसान हो सकता है।



कई प्रत्याशी जमानत बचाने के लिए कर रहे जद्दोजहद

सोनीपत लोकसभा सीट पर इस समय मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच नजर आ रहा है। जींद उपचुनाव में 37 हजार वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रहने वाले जजपा प्रत्याशी दिग्विजय चौटाला के लिए इस बार राह आसान नहीं है। दिग्विजय चौटाला जींद को राजधानी बनाने के नाम पर वोट मांग रहे हैं लेकिन सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में जींद जिले के केवल तीन व सोनीपत जिले के 6 विधानसभा क्षेत्र हैं। सोनीपत जिले पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा का प्रभाव ज्यादा है। इसके चलते जजपा प्रत्याशी दिग्विजय चौटाला की राह आसान नहीं है। इनैलो, लोसपा सहित अन्य उम्मीदवार इस समय जीत के लिए नहीं बल्कि जमानत बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।  

शहीद की मां ने सांसद रमेश कौशिक से सवाल पूछे तो चढ़ा सांसद का पारा

लोकसभा सोनीपत से बीजेपी प्रत्याशी रमेश कोशिश सोमवार देर सायं गांव मुआना में प्रचार अभियान के लिए पहुंचे तो इस दौरान शहीद राजेंद्र राणा की मां ने चौपाल में ही सांसद रमेश कौशिक से सवाल पूछने शुरू कर दिए। शहीद राजेंद्र राणा की मां ने सांसद रमेश कौशिक से कहा कि जब मेरा लड़का शहीद हुआ तो आप पांच लाख रुपए देने की घोषणा करके गए थे लेकिन आज तक वह राशि हमारे परिवार को नहीं मिली है। शहीद की मां के सवाल पूछे जाने के बाद सांसद रमेश कौशिक शहीद की मां पर भड़क गए। इससे नाराज होकर ग्रामीणों ने सांसद रमेश कौशिक के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए सांसद रमेश कौशिक बीच में ही कार्यक्रम छोड़कर चले गए। इसके अलावा भी कई गांवों में सांसद रमेश कौशिक का विरोध हो चुका है।  

सोनीपत सीट पर 11 चुनावों में से तीन बार कांग्रेस व तीन बार भाजपा का रहा है कब्जा 

हरियाणा गठन के बाद 1977 में सोनीपत लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया था। सोनीपत लोकसभा सीट पर अब तक 11 बार चुनाव हो चुके हैं। इन 11 चुनाव में से सोनीपत सीट पर तीन बार कांग्रेस तो तीन बार भाजपा पार्टी का कब्जा रहा है। जबकि एक-एक बार जनता पार्टी व जनता पार्टी (एस), जनता दल, हरियाणा लोकदल व आजाद उम्मीदवार विजयी होकर लोकसभा पहुंचे हैं। 1984 में कांग्रेस उम्मीदवार धर्मपाल मलिक के सबसे कम 2941 वोटों के अंतराल से जीत हासिल करने तथा 1977 के चुनावों में जनता पार्टी उम्मीदवार मुखत्यार सिंह 280223 वोटों के अंतराल से जीत हासिल करने का रिकार्ड दर्ज है। 
 

मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

डेरा व रामपाल अनुयायियों की नाराजगी भाजपा पर पड़ सकती है भारी

सोनीपत में इस बार मुकाबला होगा कड़ा

बीजेपी ने रमेश कौशिक को मैदान में दोबारा उतारायहां हुए 12 चुनावों में से 10 बार जाट ही सांसद बने 

जींद, 19 अप्रेल (नरेंद्र कुंडू) : हरियाणा में इस बार लोकसभा चुनाव में सोनीपत लोकसभा की सीट कुछ खास रहने वाली है। इस सीट पर बीजेपी ने अपना प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है वहीं अन्य पार्टियां अभी इंतजार में हैं। बीजेपी ने आज ही मौजूदा सांसद रमेश कौशिक पर दोबारा विश्वास जताया है वहीं कांग्रेस की तरफ से पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनावी मैदान में उतारने की चर्चाएं जोरों-शोरों से चल रही है। सोनीपत लोकसभा सीट पर बीजेपी ने पिछली लोकसभा चुनाव में बाजी मार ली थी। जाटलैंड की इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में कौशिक यानी ब्राह्मण नेता ने बाजी मार ली थी। इस बार मुकाबला इस सीट पर कड़ा होने की संभावना है। इधर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के सुप्रीमो राजकुमार सैनी ने भी सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे के संकेत दिये हैं। हरियाणा का वह लोकसभा क्षेत्र है जो भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा से ही कुछ हद तक मजबूत रहा है। वरिष्ठ नेता स्वर्गीय किशन सिंह सांगवान यहां से लगातार तीन बार चुनाव जीते जिनमें से दो बार वे भाजपा की टिकट पर लड़े थे। फरीदाबाद के अलावा यह इकलौती लोकसभा सीट है जहां भाजपा ने लगातार दो चुनाव जीते। दरअसल किशन सिंह सांगवान लोकदल के नेता थे और 1998 में यहां से हरियाणा लोकदल की टिकट पर सांसद बने थे लेकिन 1999 में भाजपा से गठबंधन के तहत यह सीट भाजपा को दे दी गई। चुनाव लडऩे के लिए किशन सिंह सांगवान भाजपा में चले गए और अगले दोनों चुनाव उन्होंने भाजपा की टिकट पर जीते। 2004 में चुनी गई लोकसभा में तो वे हरियाणा से भाजपा के अकेले सांसद थे। सोनीपत सीट जाट नेताओं के दबदबे वाली सीट रही है और सिर्फ 1996 में अरविंद शर्मा ही अन्य जाति से सांसद बने थे। 2014 में रमेश कौशिक ने एक बार फिर जाटलैंड की इस सीट में ब्राह्मण नेतृत्व की वापसी करवाई। इनके अलावा यहां हुए 12 चुनावों में से 10 बार जाट ही सांसद बने हैं। सोनीपत लोकसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। इससे पहले इस क्षेत्र का कुछ हिस्सा झज्जर लोकसभा सीट में था जो 1951 से 1971 तक रही। झज्जर सीट से वरिष्ठ नेता और चै देवीलाल के साथी रहे प्रो शेर सिंह दो बार सांसद बने थे। बाद में चै देवीलाल भी 1980 में सोनीपत सीट से सांसद बने। देवीलाल को 1983 उपचुनाव और 1984 लोकसभा आम चुनाव में सोनीपत से हार का सामना भी करना पड़ा। चै भजनलाल के करीबी रहे धर्मपाल मलिक भी यहां से दो बार (1984, 1991) सांसद बने। मौजूदा समय में सोनीपत लोकसभा में पूरा सोनीपत जिला और जींद जिले के सफीदों, जींद और जुलाना विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2014 चुनाव के लिए भाजपा ने यहां से पूर्व विधायक रमेश कौशिक को टिकट दी जो कुछ महीने पहले ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। रमेश कौशिक 1996 में सोनीपत जिले की कैलाना सीट से हविपा के और 2005 में सोनीपत जिले की ही राई सीट से कांग्रेस के विधायक बने थे। रमेश कौशिक को लोकसभा की टिकट मिलना यहां के पुराने भाजपाईयों को लिए हैरानी का विषय था लेकिन कौशिक ने जल्द ही ज्यादातर को राजी कर लिया। मोदी लहर के सहारे कौशिक ने यहां के गन्नौर, राई, सोनीपत, सफीदों और जींद विधानसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वोट लिए जबकि खरखौदा और बरोदा में उन्हें कांग्रेस और इनेलो के मुकाबले कम वोट मिले। सोनीपत विधानसभा क्षेत्र ने तो उन्हें लगभग 30 हजार वोटों की बढ़त दी। विशेष बात यह रही कि चुनाव के वक्त भी इस क्षेत्र में सिर्फ सोनीपत सीट से ही भाजपा का विधायक था और 5 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी सिर्फ सोनीपत से ही भाजपा जीती। इस लिहाज से देखें तो विधानसभा के स्तर पर यह भाजपा के लिए न्यूनतम सुधार वाला क्षेत्र रहा। रमेश कौशिक को कुल 35.23 प्रतिशत वोट मिले जबकि 2009 में भाजपा की टिकट पर लड़े किशन सिंह सांगवान को करीब 25: वोट ही मिले थे। उनकी जीत करीब 77 हजार वोटों यानी लगभग 8: की रही जो हरियाणा में जीते भाजपा उम्मीदवारों में सबसे कम थी। कांग्रेस के गढ़ और इनेलो के मजबूत कार्यकर्ताओं वाले इस क्षेत्र में रमेश कौशिक की जीत एक महत्वपूर्ण घटना रही।कांग्रेस पार्टी ने गोहाना से विधायक जगबीर मलिक को लोकसभा की टिकट दी थी। जगबीर मलिक पहली बार 1996 में गोहाना से ही विधायक बने थे और उन्होंने समता पार्टी के किशन सिंह सांगवान को हराया था। साल 2000 के विधानसभा चुनाव में मलिक को गोहाना में इनेलो के राजकुमार सैणी से हार देखनी पड़ी थी। जगबीर मलिक दोबारा 2008 में उस वक्त विधायक बने जब धर्मपाल मलिक कांग्रेस छोड़ हजका में चले गए थे और गोहाना में उपचुनाव हुआ था। इसके बाद 2009 में वे फिर से गोहाना से ही विधायक बने।2009 में सोनीपत से सांसद बने जितेंद्र मलिक के इस बार चुनाव लडऩे से मना कर देने और गन्नौर से विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए पार्टी ही छोड़ देने के बाद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी जगबीर मलिक को टिकट थमा दी। चुनाव के समय सोनीपत शहर को छोड़कर जिले की पांच सीटों पर कांग्रेस के विधायक थे और यही स्थिति 5 माह बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी बनी रही। इन्हीं 5 सीटों पर कांग्रेस दोबारा जीती। इस पैमाने पर यह लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस पार्टी के लिए विधानसभा स्तर पर सबसे ज्यादा संतोषजनक रहा।रोहतक क्षेत्र में भी कांग्रेस अपनी सभी सीटें नहीं बचा सकी थी। जगबीर मलिक को खरखौदा, गोहाना और बरोदा विधानसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वोट मिले जबकि गन्नौर, राई और सोनीपत में वे दूसरे स्थान पर रहे। उन्हें जींद, जुलाना और सफीदों में काफी कम वोट मिले। चुनाव में जगबीर मलिक ने 27.37: वोट लिए जबकि 2009 में पार्टी उम्मीदवार जितेंद्र मलिक को 47.57: वोट मिले थे। वोटों की संख्या में लगभग 40 फीसदी की यह कमी कांग्रेस के लिए चुनौती वाला पहलू थी। इनेलो की तरफ से सोनीपत सीट पर लोकसभा उम्मीदवार थे पदम सिंह दहिया जो काफी समय से सोनीपत जिले के पार्टी प्रधान थे। पदम दहिया 2000 में रोहट सीट से विधायक बने थे जिसे बाद में खत्म कर खरखौदा आरक्षित सीट बना दी गई। पदम सिंह ने रोहट से 1996 और 2005 के चुनाव भी लड़े थे और हार गए थे। लोकसभा चुनाव के समय इस क्षेत्र में जींद जिले की तीनों सीटों सफीदों, जींद और जुलाना में इनेलो के विधायक थे जिनमें से जींद और जुलाना सीटें पार्टी ने अक्तूबर 2014 के चुनाव में फिर से जीती। पदम दहिया को जुलाना सीट पर सबसे ज्यादा वोट मिले जबकि सफीदों, बरोदा, खरखौदा सीटों पर वे दूसरे नंबर पर रहे। दहिया को सोनीपत और गोहाना सीटों पर काफी कम वोट मिले। उन्हें मिले वोट कुल मतदान का 26.83: था और वे जगबीर मलिक से कुछ वोट कम मिलने की वजह से तीसरे स्थान पर खिसक गए थे। इस चुनाव में इनेलो के लिए संतोष की बात यह रही कि उनका उम्मीदवार कहीं भी तीसरे स्थान पर नहीं खिसका। पदम दहिया को सभी 9 विधानसभा क्षेत्रों में पहले या दूसरे नंबर के वोट मिले। 2009 में इनेलो ने इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था और इनेलो-भाजपा गठबंधन के यहां उम्मीदवार किशन सिंह सांगवान थे। अब 2014 में इनेलो के लोकसभा उम्मीदवार रहे पदम सिंह दहिया ने अपना पाला बदलकर जेजेपी का दामन थाम लिया है।सोनीपत सीट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार जय सिंह ठेकेदार थे जिन्होंने करीब 50 हजार वोट लिए और वे चौथे स्थान पर रहे। जय सिंह को सर्वाधिक 8666 वोट सोनीपत विधानसभा क्षेत्र से मिले। सोनीपत लोकसभा सीट पर 2014 में विशेष बात यह रही कि सभी प्रमुख दलों के उम्मीदवार पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। भाजपा के रमेश कौशिक, कांग्रेस के जगबीर मलिक और इनेलो के पदम सिंह दहिया का यह पहला लोकसभा चुनाव था। खास बात यह भी है कि तीनों ही हरियाणा विधानसभा के सदस्य रह चुके थे। यह बात भी दिलचस्प रही कि सोनीपत जिले में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के वोट काफी घटे जबकि विधानसभा चुनाव आते ही यहां के लोगों ने कांग्रेस को फिर से 5 सीटें दी। इस बार के लोकसभा चुनाव में यहां पर मुकाबला इसलिए भी रोचक होने की संभावना है क्योंकि इस सीट पर हरियाणा के दिग्गज नेताओं के चुनावी दंगल में उतरने की संभावना है। ऐसे में इस सीट पर चुनावी मुकाबले के बीच हरियाणा में नई पार्टी आई जेजेपी भी जोर-शोर से तैयारी कर रही है। यहां पर जेजेपी के दिग्गज नेता इस जाटलैंड में अपनी छाप छोडऩे के लिए मेहनत कर रहे हैं।

रोचक होगा सोनीपत लोकसभा का मुकाबला


कांग्रेस व जजपा प्रत्याशियों की घोषणा से बढ़ी भाजपा की मुश्किलें
मोदी लहर में भी रमेश कौशिक 9 विधानसभा में से महज पांच विधानसभा क्षेत्रों में ही बना पाए थे बढ़त  


जींद, 22 अप्रैल (नरेंद्र कुंडू):- सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में इस बार मुकाबला काफी रौचक होगा। कांग्रेस व जजपा द्वारा अपने प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद भाजपा की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व जजपा से दिग्विजय चौटाला को टिकट दिए जाने के बाद सोनीपत लोकसभा क्षेत्र हॉट सीट बन गई है। क्योंकि सोनीपत जिले में कांग्रेस तथा जींद जिले में जजपा काफी मजबूत स्थित में है। वहीं जींद जिले के कई गांवों में ग्रामीणों द्वारा सांसद रमेश कौशिक का विरोध होने तथा कांग्रेस की टिकट से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के चुनाव मैदान में आने से भाजपा की मुश्किलें ओर बढ़ गई हैं। इसका दूसरा मुख्य कारण यह भी है कि 2014 के चुनाव में मोदी लहर में भी रमेश कौशिक 9 विधानसभा क्षेत्रों में से सिर्फ सोनीपत, गन्नोर, राई, सफीदों व जींद पांच विधानसभा क्षेत्रों में ही बढ़त बना पाए थे। इसके अलावा अगर देखा जाए तो 2014 के लोकसभा चुनाव के पांच माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में सोनीपत शहर को छोड़कर सोनीपत जिले की पांच सीटों पर कांग्रेस ने दोबारा जीती हासिल की। जींद जिले के गांवों में सांसद का विरोध होने तथा सोनीपत क्षेत्र में कांग्रेस का प्रभाव होने के कारण भी इस बार सोनीपत लोकसभा क्षेत्र का रण भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। उधर से जजपा ने भी युवा चेहरे पर दांव खेला है। सोनीपत लोकसभा से जजपा प्रत्याशी दिग्विजय चौटाला जींद उपचुनाव में 37 हजार वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। 

मोदी लहर में भाजपा को पांच विधानसभा सीटों पर ही मिल पाई थी बढ़त 

मोदी लहर के सहारे रमेश कौशिक ने सोनीपत लोकसभा के गन्नौर, राई, सोनीपत, सफीदों और जींद विधानसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वोट लिए जबकि खरखौदा और बरोदा में उन्हें कांग्रेस और इनेलो के मुकाबले कम वोट मिले। सोनीपत विधानसभा क्षेत्र ने तो उन्हें लगभग 30 हजार वोटों की बढ़त दी। विशेष बात यह रही कि चुनाव के वक्त भी इस क्षेत्र में सिर्फ सोनीपत सीट से ही भाजपा का विधायक था और 5 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी सिर्फ सोनीपत से ही भाजपा जीती। सोनीपत के बाकि पांच विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने दोबारा से जीत हासिल की थी। इस लिहाज से देखें तो विधानसभा के स्तर पर यह भाजपा के लिए न्यूनतम सुधार वाला क्षेत्र रहा। रमेश कौशिक की जीत करीब 77 हजार वोटों यानी लगभग 8 प्रतिशत की रही जो हरियाणा में जीते भाजपा उम्मीदवारों में सबसे कम थी। वहीं लोकसभा चुनाव के समय इस क्षेत्र में जींद जिले की तीनों सीटों सफीदों, जींद और जुलाना में इनेलो के विधायक थे जिनमें से जींद और जुलाना सीटें पर इनैलो पार्टी ने अक्तूबर 2014 के चुनाव में फिर से जीती। 

सोनीपत लोकसभा में 11 चुनाव में तीन बार कांग्रेस व तीन बार भाजपा का रहा है कब्जा

सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में अब तक हुए 11 चुनावों में तीन बार कांग्रेस व तीन बार भाजपा का कब्जा रहा है। जबकि एक-एक बार जनता पार्टी, जनता पार्टी (एस), जनता दल, हरियाणा लोकदल व आजाद उम्मीदवार विजयी होकर लोकसभा पहुंचे हैं। 1984 में कांग्रेस उम्मीदवार धर्मपाल मलिक 2941 सबसे कम वोटों से व 1977 के चुनाव में जनता पार्टी उम्मीदवार मुख्यत्यार सिंह 280223 सबसे ज्यादा वोटों के अंतराल से विजयी घोषित हुए हैं। इस लोकसभा क्षेत्र से किशन सिंह सांगवान लगातार तीन बार व धर्मपाल मलिक दो बार जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। मुख्यत्यार सिंह, देवीलाल, कपिल देव शास्त्री, अरविंद कुमार, जितेंद्र मलिक व रमेश कौशिक ने एक-एक बार प्रतिनिधित्व किया है। 
बॉक्स
विधानसभा क्षेत्र भाजपा कांग्रेस इनैलो बसापा  आप  नोटा
गनौर 37218   33180 29077  1883  3777  180
राई 34932   29978 29610  2344  5740  238
खरखौदा 24426   32912 28081  1770  3651  182
सोनीपत 57832   28559 15480  2449  8666  769
गोहाना 33726   35466 28395       2183  5300  224
बरोदा 26110   43439 29817  2811  4269  171
जुलाना 33960   23632 41895  3172  6093 156
सफीदों 47986   25770 32067  4277  4011  183
जींद 50789   16791 29862  3213  7058  298
पोस्टल मत   224      62     120      1              32           2
कुल 347203       269789        264404     24103      58597     2403


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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

सोनीपत में इस बार मुकाबला होगा कड़ा

बीजेपी ने रमेश कौशिक को मैदान में दोबारा उतारा
यहां हुए 12 चुनावों में से 10 बार जाट ही सांसद बने 

जींद, 19 अप्रेल (नरेंद्र कुंडू) : हरियाणा में इस बार लोकसभा चुनाव में सोनीपत लोकसभा की सीट कुछ खास रहने वाली है। इस सीट पर बीजेपी ने अपना प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है वहीं अन्य पार्टियां अभी इंतजार में हैं। बीजेपी ने आज ही मौजूदा सांसद रमेश कौशिक पर दोबारा विश्वास जताया है वहीं कांग्रेस की तरफ से पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनावी मैदान में उतारने की चर्चाएं जोरों-शोरों से चल रही है। सोनीपत लोकसभा सीट पर बीजेपी ने पिछली लोकसभा चुनाव में बाजी मार ली थी। जाटलैंड की इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में कौशिक यानी ब्राह्मण नेता ने बाजी मार ली थी। इस बार मुकाबला इस सीट पर कड़ा होने की संभावना है। इधर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के सुप्रीमो राजकुमार सैनी ने भी सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे के संकेत दिये हैं। हरियाणा का वह लोकसभा क्षेत्र है जो भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा से ही कुछ हद तक मजबूत रहा है। वरिष्ठ नेता स्वर्गीय किशन सिंह सांगवान यहां से लगातार तीन बार चुनाव जीते जिनमें से दो बार वे भाजपा की टिकट पर लड़े थे। फरीदाबाद के अलावा यह इकलौती लोकसभा सीट है जहां भाजपा ने लगातार दो चुनाव जीते। दरअसल किशन सिंह सांगवान लोकदल के नेता थे और 1998 में यहां से हरियाणा लोकदल की टिकट पर सांसद बने थे लेकिन 1999 में भाजपा से गठबंधन के तहत यह सीट भाजपा को दे दी गई। चुनाव लडऩे के लिए किशन सिंह सांगवान भाजपा में चले गए और अगले दोनों चुनाव उन्होंने भाजपा की टिकट पर जीते। 2004 में चुनी गई लोकसभा में तो वे हरियाणा से भाजपा के अकेले सांसद थे। सोनीपत सीट जाट नेताओं के दबदबे वाली सीट रही है और सिर्फ 1996 में अरविंद शर्मा ही अन्य जाति से सांसद बने थे। 2014 में रमेश कौशिक ने एक बार फिर जाटलैंड की इस सीट में ब्राह्मण नेतृत्व की वापसी करवाई। इनके अलावा यहां हुए 12 चुनावों में से 10 बार जाट ही सांसद बने हैं। सोनीपत लोकसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। इससे पहले इस क्षेत्र का कुछ हिस्सा झज्जर लोकसभा सीट में था जो 1951 से 1971 तक रही। झज्जर सीट से वरिष्ठ नेता और चै देवीलाल के साथी रहे प्रो शेर सिंह दो बार सांसद बने थे। बाद में चै देवीलाल भी 1980 में सोनीपत सीट से सांसद बने। देवीलाल को 1983 उपचुनाव और 1984 लोकसभा आम चुनाव में सोनीपत से हार का सामना भी करना पड़ा। चै भजनलाल के करीबी रहे धर्मपाल मलिक भी यहां से दो बार (1984, 1991) सांसद बने। मौजूदा समय में सोनीपत लोकसभा में पूरा सोनीपत जिला और जींद जिले के सफीदों, जींद और जुलाना विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2014 चुनाव के लिए भाजपा ने यहां से पूर्व विधायक रमेश कौशिक को टिकट दी जो कुछ महीने पहले ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। रमेश कौशिक 1996 में सोनीपत जिले की कैलाना सीट से हविपा के और 2005 में सोनीपत जिले की ही राई सीट से कांग्रेस के विधायक बने थे। रमेश कौशिक को लोकसभा की टिकट मिलना यहां के पुराने भाजपाईयों को लिए हैरानी का विषय था लेकिन कौशिक ने जल्द ही ज्यादातर को राजी कर लिया। मोदी लहर के सहारे कौशिक ने यहां के गन्नौर, राई, सोनीपत, सफीदों और जींद विधानसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वोट लिए जबकि खरखौदा और बरोदा में उन्हें कांग्रेस और इनेलो के मुकाबले कम वोट मिले। सोनीपत विधानसभा क्षेत्र ने तो उन्हें लगभग 30 हजार वोटों की बढ़त दी। विशेष बात यह रही कि चुनाव के वक्त भी इस क्षेत्र में सिर्फ सोनीपत सीट से ही भाजपा का विधायक था और 5 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी सिर्फ सोनीपत से ही भाजपा जीती। इस लिहाज से देखें तो विधानसभा के स्तर पर यह भाजपा के लिए न्यूनतम सुधार वाला क्षेत्र रहा। रमेश कौशिक को कुल 35.23 प्रतिशत वोट मिले जबकि 2009 में भाजपा की टिकट पर लड़े किशन सिंह सांगवान को करीब 25: वोट ही मिले थे। उनकी जीत करीब 77 हजार वोटों यानी लगभग 8: की रही जो हरियाणा में जीते भाजपा उम्मीदवारों में सबसे कम थी। कांग्रेस के गढ़ और इनेलो के मजबूत कार्यकर्ताओं वाले इस क्षेत्र में रमेश कौशिक की जीत एक महत्वपूर्ण घटना रही।कांग्रेस पार्टी ने गोहाना से विधायक जगबीर मलिक को लोकसभा की टिकट दी थी। जगबीर मलिक पहली बार 1996 में गोहाना से ही विधायक बने थे और उन्होंने समता पार्टी के किशन सिंह सांगवान को हराया था। साल 2000 के विधानसभा चुनाव में मलिक को गोहाना में इनेलो के राजकुमार सैणी से हार देखनी पड़ी थी। जगबीर मलिक दोबारा 2008 में उस वक्त विधायक बने जब धर्मपाल मलिक कांग्रेस छोड़ हजका में चले गए थे और गोहाना में उपचुनाव हुआ था। इसके बाद 2009 में वे फिर से गोहाना से ही विधायक बने।2009 में सोनीपत से सांसद बने जितेंद्र मलिक के इस बार चुनाव लडऩे से मना कर देने और गन्नौर से विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए पार्टी ही छोड़ देने के बाद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी जगबीर मलिक को टिकट थमा दी। चुनाव के समय सोनीपत शहर को छोड़कर जिले की पांच सीटों पर कांग्रेस के विधायक थे और यही स्थिति 5 माह बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी बनी रही। इन्हीं 5 सीटों पर कांग्रेस दोबारा जीती। इस पैमाने पर यह लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस पार्टी के लिए विधानसभा स्तर पर सबसे ज्यादा संतोषजनक रहा।रोहतक क्षेत्र में भी कांग्रेस अपनी सभी सीटें नहीं बचा सकी थी। जगबीर मलिक को खरखौदा, गोहाना और बरोदा विधानसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वोट मिले जबकि गन्नौर, राई और सोनीपत में वे दूसरे स्थान पर रहे। उन्हें जींद, जुलाना और सफीदों में काफी कम वोट मिले। चुनाव में जगबीर मलिक ने 27.37: वोट लिए जबकि 2009 में पार्टी उम्मीदवार जितेंद्र मलिक को 47.57: वोट मिले थे। वोटों की संख्या में लगभग 40 फीसदी की यह कमी कांग्रेस के लिए चुनौती वाला पहलू थी। इनेलो की तरफ से सोनीपत सीट पर लोकसभा उम्मीदवार थे पदम सिंह दहिया जो काफी समय से सोनीपत जिले के पार्टी प्रधान थे। पदम दहिया 2000 में रोहट सीट से विधायक बने थे जिसे बाद में खत्म कर खरखौदा आरक्षित सीट बना दी गई। पदम सिंह ने रोहट से 1996 और 2005 के चुनाव भी लड़े थे और हार गए थे। लोकसभा चुनाव के समय इस क्षेत्र में जींद जिले की तीनों सीटों सफीदों, जींद और जुलाना में इनेलो के विधायक थे जिनमें से जींद और जुलाना सीटें पार्टी ने अक्तूबर 2014 के चुनाव में फिर से जीती। पदम दहिया को जुलाना सीट पर सबसे ज्यादा वोट मिले जबकि सफीदों, बरोदा, खरखौदा सीटों पर वे दूसरे नंबर पर रहे। दहिया को सोनीपत और गोहाना सीटों पर काफी कम वोट मिले। उन्हें मिले वोट कुल मतदान का 26.83: था और वे जगबीर मलिक से कुछ वोट कम मिलने की वजह से तीसरे स्थान पर खिसक गए थे। इस चुनाव में इनेलो के लिए संतोष की बात यह रही कि उनका उम्मीदवार कहीं भी तीसरे स्थान पर नहीं खिसका। पदम दहिया को सभी 9 विधानसभा क्षेत्रों में पहले या दूसरे नंबर के वोट मिले। 2009 में इनेलो ने इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था और इनेलो-भाजपा गठबंधन के यहां उम्मीदवार किशन सिंह सांगवान थे। अब 2014 में इनेलो के लोकसभा उम्मीदवार रहे पदम सिंह दहिया ने अपना पाला बदलकर जेजेपी का दामन थाम लिया है।सोनीपत सीट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार जय सिंह ठेकेदार थे जिन्होंने करीब 50 हजार वोट लिए और वे चौथे स्थान पर रहे। जय सिंह को सर्वाधिक 8666 वोट सोनीपत विधानसभा क्षेत्र से मिले। सोनीपत लोकसभा सीट पर 2014 में विशेष बात यह रही कि सभी प्रमुख दलों के उम्मीदवार पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। भाजपा के रमेश कौशिक, कांग्रेस के जगबीर मलिक और इनेलो के पदम सिंह दहिया का यह पहला लोकसभा चुनाव था। खास बात यह भी है कि तीनों ही हरियाणा विधानसभा के सदस्य रह चुके थे। यह बात भी दिलचस्प रही कि सोनीपत जिले में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के वोट काफी घटे जबकि विधानसभा चुनाव आते ही यहां के लोगों ने कांग्रेस को फिर से 5 सीटें दी। इस बार के लोकसभा चुनाव में यहां पर मुकाबला इसलिए भी रोचक होने की संभावना है क्योंकि इस सीट पर हरियाणा के दिग्गज नेताओं के चुनावी दंगल में उतरने की संभावना है। ऐसे में इस सीट पर चुनावी मुकाबले के बीच हरियाणा में नई पार्टी आई जेजेपी भी जोर-शोर से तैयारी कर रही है। यहां पर जेजेपी के दिग्गज नेता इस जाटलैंड में अपनी छाप छोडऩे के लिए मेहनत कर रहे हैं।

सोनीपत में इस बार मुकाबला होगा कड़ा
बीजेपी ने रमेश कौशिक को मैदान में दोबारा उतारा
यहां हुए 12 चुनावों में से 10 बार जाट ही सांसद बने 
-अशोक  छाबड़ा-
जींद। हरियाणा में इस बार लोकसभा चुनाव में सोनीपत लोकसभा की सीट कुछ खास रहने वाली है। इस सीट पर बीजेपी ने अपना प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है वहीं अन्य पार्टियां अभी इंतजार में हैं। बीजेपी ने आज ही मौजूदा सांसद रमेश कौशिक पर दोबारा विश्वास जताया है वहीं कांग्रेस की तरफ से पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनावी मैदान में उतारने की चर्चाएं जोरों-शोरों से चल रही है। सोनीपत लोकसभा सीट पर बीजेपी ने पिछली लोकसभा चुनाव में बाजी मार ली थी। जाटलैंड की इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में कौशिक यानी ब्राह्मण नेता ने बाजी मार ली थी। इस बार मुकाबला इस सीट पर कड़ा होने की संभावना है। इधर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के सुप्रीमो राजकुमार सैनी ने भी सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे के संकेत दिये हैं। हरियाणा का वह लोकसभा क्षेत्र है जो भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा से ही कुछ हद तक मजबूत रहा है। वरिष्ठ नेता स्वर्गीय किशन सिंह सांगवान यहां से लगातार तीन बार चुनाव जीते जिनमें से दो बार वे भाजपा की टिकट पर लड़े थे। फरीदाबाद के अलावा यह इकलौती लोकसभा सीट है जहां भाजपा ने लगातार दो चुनाव जीते। दरअसल किशन सिंह सांगवान लोकदल के नेता थे और 1998 में यहां से हरियाणा लोकदल की टिकट पर सांसद बने थे लेकिन 1999 में भाजपा से गठबंधन के तहत यह सीट भाजपा को दे दी गई। चुनाव लडऩे के लिए किशन सिंह सांगवान भाजपा में चले गए और अगले दोनों चुनाव उन्होंने भाजपा की टिकट पर जीते। 2004 में चुनी गई लोकसभा में तो वे हरियाणा से भाजपा के अकेले सांसद थे। सोनीपत सीट जाट नेताओं के दबदबे वाली सीट रही है और सिर्फ 1996 में अरविंद शर्मा ही अन्य जाति से सांसद बने थे। 2014 में रमेश कौशिक ने एक बार फिर जाटलैंड की इस सीट में ब्राह्मण नेतृत्व की वापसी करवाई। इनके अलावा यहां हुए 12 चुनावों में से 10 बार जाट ही सांसद बने हैं। सोनीपत लोकसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। इससे पहले इस क्षेत्र का कुछ हिस्सा झज्जर लोकसभा सीट में था जो 1951 से 1971 तक रही। झज्जर सीट से वरिष्ठ नेता और चै देवीलाल के साथी रहे प्रो शेर सिंह दो बार सांसद बने थे। बाद में चै देवीलाल भी 1980 में सोनीपत सीट से सांसद बने। देवीलाल को 1983 उपचुनाव और 1984 लोकसभा आम चुनाव में सोनीपत से हार का सामना भी करना पड़ा। चै भजनलाल के करीबी रहे धर्मपाल मलिक भी यहां से दो बार (1984, 1991) सांसद बने। मौजूदा समय में सोनीपत लोकसभा में पूरा सोनीपत जिला और जींद जिले के सफीदों, जींद और जुलाना विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2014 चुनाव के लिए भाजपा ने यहां से पूर्व विधायक रमेश कौशिक को टिकट दी जो कुछ महीने पहले ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। रमेश कौशिक 1996 में सोनीपत जिले की कैलाना सीट से हविपा के और 2005 में सोनीपत जिले की ही राई सीट से कांग्रेस के विधायक बने थे। रमेश कौशिक को लोकसभा की टिकट मिलना यहां के पुराने भाजपाईयों को लिए हैरानी का विषय था लेकिन कौशिक ने जल्द ही ज्यादातर को राजी कर लिया। मोदी लहर के सहारे कौशिक ने यहां के गन्नौर, राई, सोनीपत, सफीदों और जींद विधानसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वोट लिए जबकि खरखौदा और बरोदा में उन्हें कांग्रेस और इनेलो के मुकाबले कम वोट मिले। सोनीपत विधानसभा क्षेत्र ने तो उन्हें लगभग 30 हजार वोटों की बढ़त दी। विशेष बात यह रही कि चुनाव के वक्त भी इस क्षेत्र में सिर्फ सोनीपत सीट से ही भाजपा का विधायक था और 5 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी सिर्फ सोनीपत से ही भाजपा जीती। इस लिहाज से देखें तो विधानसभा के स्तर पर यह भाजपा के लिए न्यूनतम सुधार वाला क्षेत्र रहा। रमेश कौशिक को कुल 35.23 प्रतिशत वोट मिले जबकि 2009 में भाजपा की टिकट पर लड़े किशन सिंह सांगवान को करीब 25: वोट ही मिले थे। उनकी जीत करीब 77 हजार वोटों यानी लगभग 8: की रही जो हरियाणा में जीते भाजपा उम्मीदवारों में सबसे कम थी। कांग्रेस के गढ़ और इनेलो के मजबूत कार्यकर्ताओं वाले इस क्षेत्र में रमेश कौशिक की जीत एक महत्वपूर्ण घटना रही।कांग्रेस पार्टी ने गोहाना से विधायक जगबीर मलिक को लोकसभा की टिकट दी थी। जगबीर मलिक पहली बार 1996 में गोहाना से ही विधायक बने थे और उन्होंने समता पार्टी के किशन सिंह सांगवान को हराया था। साल 2000 के विधानसभा चुनाव में मलिक को गोहाना में इनेलो के राजकुमार सैणी से हार देखनी पड़ी थी। जगबीर मलिक दोबारा 2008 में उस वक्त विधायक बने जब धर्मपाल मलिक कांग्रेस छोड़ हजका में चले गए थे और गोहाना में उपचुनाव हुआ था। इसके बाद 2009 में वे फिर से गोहाना से ही विधायक बने।2009 में सोनीपत से सांसद बने जितेंद्र मलिक के इस बार चुनाव लडऩे से मना कर देने और गन्नौर से विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए पार्टी ही छोड़ देने के बाद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी जगबीर मलिक को टिकट थमा दी। चुनाव के समय सोनीपत शहर को छोड़कर जिले की पांच सीटों पर कांग्रेस के विधायक थे और यही स्थिति 5 माह बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी बनी रही। इन्हीं 5 सीटों पर कांग्रेस दोबारा जीती। इस पैमाने पर यह लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस पार्टी के लिए विधानसभा स्तर पर सबसे ज्यादा संतोषजनक रहा।रोहतक क्षेत्र में भी कांग्रेस अपनी सभी सीटें नहीं बचा सकी थी। जगबीर मलिक को खरखौदा, गोहाना और बरोदा विधानसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वोट मिले जबकि गन्नौर, राई और सोनीपत में वे दूसरे स्थान पर रहे। उन्हें जींद, जुलाना और सफीदों में काफी कम वोट मिले। चुनाव में जगबीर मलिक ने 27.37: वोट लिए जबकि 2009 में पार्टी उम्मीदवार जितेंद्र मलिक को 47.57: वोट मिले थे। वोटों की संख्या में लगभग 40 फीसदी की यह कमी कांग्रेस के लिए चुनौती वाला पहलू थी। इनेलो की तरफ से सोनीपत सीट पर लोकसभा उम्मीदवार थे पदम सिंह दहिया जो काफी समय से सोनीपत जिले के पार्टी प्रधान थे। पदम दहिया 2000 में रोहट सीट से विधायक बने थे जिसे बाद में खत्म कर खरखौदा आरक्षित सीट बना दी गई। पदम सिंह ने रोहट से 1996 और 2005 के चुनाव भी लड़े थे और हार गए थे। लोकसभा चुनाव के समय इस क्षेत्र में जींद जिले की तीनों सीटों सफीदों, जींद और जुलाना में इनेलो के विधायक थे जिनमें से जींद और जुलाना सीटें पार्टी ने अक्तूबर 2014 के चुनाव में फिर से जीती। पदम दहिया को जुलाना सीट पर सबसे ज्यादा वोट मिले जबकि सफीदों, बरोदा, खरखौदा सीटों पर वे दूसरे नंबर पर रहे। दहिया को सोनीपत और गोहाना सीटों पर काफी कम वोट मिले। उन्हें मिले वोट कुल मतदान का 26.83: था और वे जगबीर मलिक से कुछ वोट कम मिलने की वजह से तीसरे स्थान पर खिसक गए थे। इस चुनाव में इनेलो के लिए संतोष की बात यह रही कि उनका उम्मीदवार कहीं भी तीसरे स्थान पर नहीं खिसका। पदम दहिया को सभी 9 विधानसभा क्षेत्रों में पहले या दूसरे नंबर के वोट मिले। 2009 में इनेलो ने इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था और इनेलो-भाजपा गठबंधन के यहां उम्मीदवार किशन सिंह सांगवान थे। अब 2014 में इनेलो के लोकसभा उम्मीदवार रहे पदम सिंह दहिया ने अपना पाला बदलकर जेजेपी का दामन थाम लिया है।सोनीपत सीट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार जय सिंह ठेकेदार थे जिन्होंने करीब 50 हजार वोट लिए और वे चौथे स्थान पर रहे। जय सिंह को सर्वाधिक 8666 वोट सोनीपत विधानसभा क्षेत्र से मिले। सोनीपत लोकसभा सीट पर 2014 में विशेष बात यह रही कि सभी प्रमुख दलों के उम्मीदवार पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। भाजपा के रमेश कौशिक, कांग्रेस के जगबीर मलिक और इनेलो के पदम सिंह दहिया का यह पहला लोकसभा चुनाव था। खास बात यह भी है कि तीनों ही हरियाणा विधानसभा के सदस्य रह चुके थे। यह बात भी दिलचस्प रही कि सोनीपत जिले में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के वोट काफी घटे जबकि विधानसभा चुनाव आते ही यहां के लोगों ने कांग्रेस को फिर से 5 सीटें दी। इस बार के लोकसभा चुनाव में यहां पर मुकाबला इसलिए भी रोचक होने की संभावना है क्योंकि इस सीट पर हरियाणा के दिग्गज नेताओं के चुनावी दंगल में उतरने की संभावना है। ऐसे में इस सीट पर चुनावी मुकाबले के बीच हरियाणा में नई पार्टी आई जेजेपी भी जोर-शोर से तैयारी कर रही है। यहां पर जेजेपी के दिग्गज नेता इस जाटलैंड में अपनी छाप छोडऩे के लिए मेहनत कर रहे हैं।

लालों की धरती पर सियासी घमासान

आइएएस  बेटे बृजेन्द्र सिंह को टिकट मिलने के बाद बीरेन्द्र सिंह की प्रतिष्ठा दाव पर 
जींद, 18 अप्रैल (नरेंद्र कुंडू):- 2019 में हरियाणा में माहौल कुछ अलग है। सियासी गतिविधियों के चलते हरियाणा राष्ट्रीय फलक पर सुर्खियों में है। इस सबके बीच केंद्रीय मंत्री पद से बेटे के लिए बीरेंद्र सिंह के इस्तीफे से सियासी माहौल गर्मा गया है। भाजपा को छोड़कर अभी तक किसी भी दल ने राज्य की 10 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की, बावजूद इसके यहां का सियासी पारा पूरी तरह से चढ़ा हुआ है। केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह अपने आइएएस बेटे बृजेंद्र सिंह की राजनीति में एंट्री कराने के लिए पद से इस्तीफा देकर सुर्खियों में आए तो ताऊ देवीलाल के खानदान के दो बड़े चिराग अजय सिंह चौटाला व अभय सिंह चौटाला के आमने-सामने डटने से यहां की सियासी जमीन एकाएक गरम हो गई है। हरियाणा में देवीलाल,बंसीलाल और भजनलाल के राजनीतिक वारिस एकदूसरे के खिलाफ ताल ठोंकने को तैयार हैं। राज्य की 10 लोकसभा सीटों पर 12 मई को मतदान होगा। भाजपा ने सभी और कांग्रेस ने छह लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।
राज्य में आम आदमी पार्टी और जननायक जनता पार्टी का गठजोड़ हो चुका है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप तीन तथा देवीलाल के पड़पोते सांसद दुष्यंत चौटाला की अगुवाई वाली जननायक जनता पार्टी सात लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। इस गठबंधन की कोशिश है कि किसी तरह भाजपा के विरुद्ध महागठबंधन तैयार कर कांग्रेस को भी इसमें शामिल कर लिया जाए। इस प्रयास के चलते न तो कांग्रेस अभी अपनी चार लोकसभा सीटें घोषित कर पा रही और न ही आप व जेजेपी के गठबंधन ने सीटों का बंटवारा किया है।
राज्य में बसपा और भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी के नेतृत्व वाली लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के बीच पहले ही गठजोड़ है। दलित व ओबीसी का यह गठजोड़ दूसरे दलों की चिंता बढ़ाने वाला हो सकता है,लेकिन बसपा के हाथी की चाल टेढ़ी होने से इसके जेजेपी के साथ जाने की संभावना बनी हुई है। भाजपा ने दो केंद्रीय मंत्रियों कृष्णपाल गुर्जर पर फरीदाबाद में और राव इंद्रजीत पर गुरुग्राम में फिर से दांव खेला है। कांग्रेस की पृष्ठभूमि वाले पूर्व सांसद डॉ. अरविंद शर्मा को भाजपा ने रोहतक में कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा के विरुद्ध प्रत्याशी बनाया है। बीरेंद्र सिंह के आइएएस बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार में टिकट दिया गया है। हरियाणा के रण की अभी तक खास बात यह है कि देवीलाल,भजनलाल और बंसीलाल के खानदान के राजनीतिक वारिस चुनाव लड़ रहे हैं। देवीलाल के परिवार की जंग किसी से छिपी नहीं है। देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने अपनी राजनीतिक विरासत छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला को सौंप रखी है। चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह और पोते दुष्यंत चौटाला अलग जननायक जनता पार्टी बना चुके हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पोती पूर्व सांसद श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ में कांग्रेस के टिकट पर ताल ठोंक रही हैं। उनकी मां किरण चौधरी कांग्रेस विधायक दल की नेता हैं। बंसीलाल के परिवार की राजनीतिक लड़ाई भी किसी से छिपी नहीं है, लेकिन लंबे अरसे बाद यह पहला मौका आने वाला है, जब श्रुति चौधरी को अपने ताऊ रणबीर महेंद्रा और फूफा सोमवार सिंह का साथ मिलने वाला है। इसी तरह भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई हिसार संसदीय क्षेत्र में सक्रिय हैं। गैर जाटों की राजनीति करने वाले कुलदीप बिश्नोई ने पिछले दिनों जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नेतृत्व स्वीकार करने से साफ इन्कार कर दिया था। कुलदीप अपने बेटे भव्य बिश्नोई की लांचिंग कराने की तैयारी में हैं। वह पिछले दिनों विदेश में अपना इलाज कराकर लौटे हैं। लिहाजा वह हिसार में अपने बेटे भव्य के लिए कांग्रेस की टिकट की पैरवी कर रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा अंबाला से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं, तो दूसरी ओर नवीन जिंदल किसी 'अनजाने दबाव' में कुरुक्षेत्र से चुनाव लडऩे से इन्कार कर रहे हैं। बीरेंद्र सिंह के चौंकाने वाले फैसले के साथ ही हरियाणा की सियासत में काफी कुछ चौंकाने वाला चल रहा है हरियाणा का यह चुनाव देवीलाल के पड़पोते दुष्यंत चौटाला,पोते अभय चौटाला, बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी, छोटू राम के नाती बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह और भजनलाल के पोते भव्य बिश्नोई का राजनीतिक भविष्य तय करेगा।

हिसार से ही पहला चुनाव लड़ा था पिता ने अब बेटे के राजनीतिक भविष्य का इंतजार

 केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह व उचाना से भाजपा विधायक प्रेमलता के आई.ए.एस. बेटे बृजेंद्र सिंह को भाजपा द्वारा हिसार से लोकसभा चुनावों के लिए प्रत्याशी बनाए जाने के साथ ही यह अजीब संयोग जुड़ गया है कि वह लोकसभा का पहला चुनाव उसी हिसार संसदीय क्षेत्र से लडऩे जा रहे हैं, जिससे उनके पिता बीरेंद्र सिंह ने 1984 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था तब उनका मुकाबला ओमप्रकाश चौटाला से हुआ था जिसमें बीरेंद्र सिंह विजयी हुए थे। बाद में बीरेंद्र सिंह ने 1989 में जनता दल के जयप्रकाश के हाथों हिसार से लोकसभा चुनाव हार गए थे। 1999 में भी उन्हें कांग्रेस ने हिसार से प्रत्याशी बनाया था लेकिन वह तब भी चुनाव हार गए थे। हिसार में अब बृजेंद्र सिंह से ज्यादा उनके पिता केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह एवं उनकी विधायक माता प्रेमलता की प्रतिष्ठा दाव पर रहेगी। 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद हुए परिसीमन के बाद यह पहला मौका है,जब जींद जिले के किसी नेता को किसी प्रमुख दल ने हिसार से प्रत्याशी बनाने की हिम्मत दिखाई है। बृजेंद्र सिंह की राजनीति में यह पहली पारी है व पहली पारी में ही वह लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। बृजेंद्र सिंह की जीत को बीरेंद्र सिंह की जीत माना जाएगा तो उनकी हार सीधे बीरेंद्र सिंह की हार होगी। बीरेंद्र सिंह प्रदेश की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। 42 साल उन्होंने कांग्रेस की राजनीति की। अब 2014 से वह भाजपा में हैं। 

पिता के ‘बलिदान’ से बेटे के राजनीतिक सफर की शुरूआत

दीनबंधु छोटू राम व बीरेंद्र सिंह की राजनीतिक विरासत संभालेंगे बृजेंद्र सिंह
21 साल की सेवाओं के बाद 13 साल पहले ही सरकारी सेवाओं को कहा अलविदा

जींद, 14 अप्रैल (नरेंद्र कुंडू):- हरियाणा के वरिष्ठ नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह की अगली पीढ़ी ने परिवार की राजनीतिक विरासत संभाली है। बीरेंद्र सिंह के आईएएस बेेटे बृजेंद्र सिंह हिसार सीट से लोकसभा चुनाव में उतर कर अपना राजनीतिक सफर शुरू करेंगे। उनका यह सफर पिता चौधरी बीरेंद्र सिंह के केंद्रीय मंत्री पद और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफे के ‘बलिदान’ से शुरू हुआ है। अब हिसार की जनता बृजेंद्र के राजनीतिक तकदीर का फैसला करेगी, लेकिन वह दीनबंधु सर छोटूराम की राजनीति विरासत की अगली कड़ी बन गए हैं। आईएएस अधिकारी बृजेंद्र सिंह रिटायरमेंट से करीब 13 साल पहले ही नौकरी छोडक़र सक्रिय राजनीति में आए हैं। वह चंडीगढ़, फरीदाबाद और पंचकूला में जिला उपायुक्त (डीसी) रह चुके बृजेंद्र सिंह ने 21 साल की सेवाओं के बाद वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) के लिए आवेदन कर दिया है। 73 साल के हो चुके चौधरी बीरेंद्र सिंह भाजपा में किसी पद पर नहीं रहेंगे, लेकिन सक्रिय राजनीति करते रहेंगे। वैसे उनकी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा अब भी जवान है। वह कहते हैैं कि सिर्फ विधायक या मंत्री बनकर रह जाने से काम नहीं चलता। राजनीति में इच्छाएं होना जरूरी है। राजनीति का यही पाठ वह अपने बेटे बृजेंद्र सिंह को पढ़ा रहे हैैं। बृजेंद्र सिंह ने कुछ समय पहले कहा था कि वह आईएएस की नौकरी में सिर्फ इसलिए आए थे, ताकि कोई यह न कह सके कि नेता के बेटे को कुछ नहीं आता। राजनीति उनके खून में बसी है और अब वह आईएएस की नौकरी छोडक़र सक्रिय राजनीति करेंगे। उनकी मां प्रेमलता भी उचाना से भाजपा की विधायक हैैं। चौधरी बीरेंद्र सिंह के अनुसार जिस तरह से उन्होंने अपने नाना दीनबंधू सर छोटू राम की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया है, अब बृजेंद्र सिंह मेरी
राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएगा।

विदेश टूर की राशि जमा करानी पड़ेगी

आईएएस बृजेंद्र सिंह को तमाम क्लीयरेंस के बाद ही केंद्र व राज्य सरकार से वीआरएस मिलेगी। सरकारी सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों बृजेंद्र सिंह विदेश में एक साल के एजुकेशन टूर पर गए थे। अब चूंकि बृजेंद्र सिंह वीआरएस ले रहे हैैं तो इस पूरे टूर की खर्च राशि उन्हें जमा करानी पड़ सकती है।

21 साल दी सेवाएं, 13 साल की सर्विस अभी बाकी

बृजेंद्र सिंह हरियाणा काडर के 1998 बैच के आईएएस हैं। वर्ष 1972 में जन्मे बृजेंद्र सिंह चंडीगढ़, पंचकूला और फरीदाबाद में डीसी रहे और फिलहाल हैफेड के मैनेजिंग डायरेक्टर थे। चौधरी बीरेंद्र सिंह उन्हें एक दशक से राजनीति में लाने के लिए प्रयासरत रहे थे। पिछले लोकसभा चुनावों में भी दोनों पिता-पुत्र कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिले थे, लेकिन टिकट नहीं मिला। इसके बाद चौधरी बीरेंद्र सिंह भाजपा में शामिल हो गए थे और राज्यसभा सदस्य तथा केंद्रीय मंत्री बने। दो बच्चों के पिता बृजेंद्र सिंह अब स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर भाजपा के टिकट पर राजनीतिक पारी का आगाज करेंगे। उनकी रिटायरमेंट वर्ष 2032 में होनी थी।
 

पिता के बाद अब बेटे पर हिसार जीतने की जिम्मेदारी

भाजपा ने हिसार में पहली बार कमल खिलाने के लिए बृजेंद्र सिंह को उतारा मैदान में 
केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के आइएएस बेटे बृजेंद्र सिंह हिसार से की राजनीति पारी की शुरूआत

जींद, 14 अप्रैल (नरेंद्र कुंडू):- हिसार में पहली बार कमल खिलाने के लिए भाजपा ने केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के आईएएस बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार लोकसभा से अपना उम्मीदवार घोषित किया है। उचाना हलका हिसार लोकसभा में आता है। केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह भी हिसार से सांसद रह चुके हैं। 1984 में ओमप्रकाश चौटाला को हरा कर वो कांग्रेस की टिकट पर सांसद बने थे। बृजेंद्र सिंह के राजनीति में आने के कई महीनों से कयास लगाए जा रहे थे। अब भाजपा द्वारा हिसार से उम्मीदवार बनाए जाने पर भाजपा में केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पकड़ को भी साबित करना का काम किया है।  

परीक्षा में ऑल इंडिया में पाया था 9वां स्थान

बृजेंद्र सिंह ने ऑल इंडिया में आईएएस परीक्षा में 9वां स्थान प्राप्त किया था। 26 साल की उम्र में आईएएस बनने के बाद पहली ज्वाइनिंग नारनौल एसडीएम के तौर पर हुई थी। सिरसा एडीसी पद पर रहे। पंचकूला, फरीदाबाद, चंडीगढ़ में डीसी रहे। हुडा के एडमिनिस्ट्रेटर भी रहे और अब हैफेड में एमडी है। 
भाजपा से टिकट मिलने के बाद बेटे बृजेंद्र सिंह के साथ केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह।
बृजेंद्र हरियाणा कैडर 1998 के आईएएस हैं। दिल्ली में पढ़ाई करने वाले बृजेंद्र सिंह का जन्म 13 मई 1972 को हुआ था। चार साल दादी के पास रोहतक में, छठी से आठवीं तक चंडीगढ़, नौंवी से बारहवीं तक दिल्ली के 12 खंबा रोड पर मॉर्डन स्कूल, एमए हिस्ट्री जेएनयू दिल्ली से की। बृजेंद्र सिंह ने बीए ऑनर्स (हिस्ट्री) एसटी स्टेफन कॉलेज दिल्ली से की। इस कॉलेज से सर छोटूराम एवं बृजेंद्र सिंह के दादा नेकी राम ने शिक्षा ग्रहण की थी। 

पत्नी एचडीएफसी बैंक में अधिकारी

बृजेंद्र सिंह की पत्नी जसमित सिंह एचडीएफसी बैंक चंडीगढ़ में अधिकारी के पद पर कार्यरत है। दो बच्चे हंै। समरवीर आठवीं कक्षा का छात्र है तो बेटी कुदरत सिंह 12वीं कक्षा की छात्रा है। हरियाणा 1998 आईएएस बृजेंद्र सिंह का कार्यकाल 2032 तक है। अब वो स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर अपनी राजनीति पारी की शुरूआत भाजपा से करेंगे। 

मंगलवार, 19 मार्च 2019

देश की सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओं की नहीं हो पा रही भागीदारी

50 साल में लोकसभा तक पहुंच पाई केवल पांच महिलाएं  

जींद, 18 मार्च (नरेंद्र कुंडू):- हरियाणा में नारी सशक्तीकरण के दावों के बीच लोकसभा चुनावों का इतिहास करारा झटका देने वाला है। देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में महिलाओं को भेजने के लिए न तो सियासी दलों ने कोई खास तवज्जो दी और न ही मतदाताओं ने दरियादिली दिखाई। यहां पिछले 50 वर्षों में केवल पांच महिलाएं ही लोकसभा तक पहुंच पाई हैं। वह भी पारिवारिक सियासी रसूख और राष्ट्रीय दलों के टिकट के बल पर।
निर्दलीय कोई महिला आज तक हरियाणा से संसद नहीं पहुंची है। कांग्रेस की चंद्रावती, कुमारी सैलजा और श्रुति चौधरी, भाजपा की सुधा यादव और इनेलो की कैलाशो सैनी ही हरियाणा गठन (एक नवंबर 1966) के बाद इस दौरान लोकसभा में पहुंच पाईं। प्रदेश से पहली महिला सांसद बनने का गौरव जनता पार्टी की चंद्रावती के नाम है। उन्होंने 1977 में चौधरी बंसीलाल को हराया था। इस दौरान प्रदेश से चुने गए 151 सांसदों में (जब यह पंजाब का हिस्सा था, तब से) महिलाओं को केवल आठ बार ही चुना गया। करनाल, रोहतक, हिसार, फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत ने आज तक एक बार भी किसी महिला को संसद में नहीं भेजा है। सबसे ज्यादा तीन बार कांग्रेस की कुमारी सैलजा संसद पहुंची। वह दो बार अंबाला और एक बार सिरसा आरक्षित सीट पर चुनी गईं। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के टिकट पर कैलाशो सैनी दो बार कुरुक्षेत्र से जीती तो पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पौत्री श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ और भाजपा की सुधा यादव महेंद्रगढ़ से एक-एक बार लोकसभा पहुंचने में सफल रही। कैलाशो अब कांग्रेस में हैं।
1951 में पहले आम चुनाव के दौरान भी संयुक्त पंजाब में करनाल, रोहतक और हिसार सीटें मौजूद थी। जबकि फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत की सीटें 1977 में अस्तित्व में आईं। 1999 में हरियाणा की जनता ने पहली बार दो महिलाओं महेंद्रगढ़ से भाजपा की सुधा यादव और कुरुक्षेत्र से इनेलो की कैलाशो सैनी को लोकसभा भेजा। महिलाओं के लिए 2014 सबसे निराशाजनक रहा, जब एक भी महिला प्रदेश से संसद नहीं पहुंच पाई। पिछले आम चुनाव में भाजपा ने एक भी महिला उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा।

इसलिए महिलाओं पर दांव नहीं खेलते सियासी दल

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महिलाओं की जीत की संभााना काफी कम होती है। इसीलिए दल उनसे परहेज करते हैं। यही वजह है कि सियासी गलियारों में महिला सशक्तीकरण एक दूर का सपना है। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओÓ के नारे के फलीभूत होने के बाद अब हरियाणा में जरूरत राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की है।

ग्राम पंचायतों में 42 फीसद महिलओं की ताजपोशी से बढ़ी उम्मीदें 

पहली बार ग्राम पंचायतों में महिलाओं को निर्धारित कोटे से कहीं अधिक पंच-सरपंच बना कर उन्हें पलकों पर बैठाने वाले हरियाणा में अब सभी की नजरें लोकसभा चुनावों पर हैं। प्रदेश में पहली बार लोगों ने जिस तरह पंचायतों में 33 फीसद आरक्षित सीटों के बदले 42 फीसद पर महिलाओं की ताजपोशी की, उससे देश की सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढऩे की उम्मीद जगी है। मौजूदा समय में प्रदेश की कुल मतदाताओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 46.35 फीसद तक पहुंच गई है जिसके चलते सियासी दलों के लिए उनकी अनदेखी करना मुमकिन नहीं होगा।

विधानसभा में पहली बार पहुंची रिकॉर्ड 13 महिलाएं 

2014 के लोकसभा चुनावों में भले ही प्रदेश से महिला सांसद नहीं बन पाई, लेकिन विधानसभा में पहली बार महिलाएं पहुंची। हालांकि विधानसभा की 90 सीटों के लिए मैदान में उतरी 116 महिलाओं में से 93 को हार का मुंह देखना पड़ा। विधानसभा में सत्तारूढ़ भाजपा से सर्वाधिक आठ विधायक जीती, जबकि कांग्रेस की तीन और इनेलो व हजकां की एक-एक महिलाओं को विधायक चुना गया।