बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

खेल-खेल में बन गया कीटों का मास्टर

6 वर्षीय निखिल को 100 से भी ज्यादा कीटों के नाम कंठस्थ

कीट को देखते ही उसके जीवनचक्र को पकड़ लेती हैं निखिल की पारखी नजरें

नरेंद्र कुंडू
जींद। कहते हैं कि प्रतिभा किसी परिचय की मोहताज नहीं होती है, लेकिन निडानी के मिनी साइंटिस्ट 6 वर्षीय निखिल ने अपनी प्रतिभा व विलक्षण बुद्धि से इस कहावत को उलट दिया है। 6 वर्षीय निखिल ने छोटी सी उम्र में जो उपलब्धि हासिल की है, उससे साबित हो गया है कि प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती है। जिले के निडाना गांव निवासी रणबीर मलिक का पुत्र निखिल छोटी सी उम्र में बड़े-बड़े कृषि वैज्ञानिकों की समझ व ज्ञान पर भारी पड़ता है। जिस उम्र में बच्चे ठीक से अपने परिवार के सदस्यों के नाम भी याद नहीं रख पाते, उस उम्र में निखिल मलिक को 100 से भी ज्यादा कीटों के नाम जुबानी याद हैं।

कक्षा प्रथम तो नॉलेज पी.एच.डी. के स्तर की

रणबीर मलिक का 6 वर्षीय पुत्र निखिल मलिक फिलहाल गांव के ही स्कूल में प्रथम कक्षा की पढ़ाई कर रहा है। निखिल ए, बी, सी, डी के साथ खेती-किसानी के गुर भी सीख रहा है। निखिल को कपास की फसल में आने वाले सभी मांसाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान है तथा उसे यहां तक भी मालूम है कि अब फसल पर ये कीट क्या प्रभाव छोडे़गे? ताज्जुब की बात तो यह है कि खेती के इस कारोबार में जहां बड़े-बड़े किसान व कृषि विशेषज्ञ तक कीटों की पहचान में धोखा खा जाते हैं, उन कीटों को निखिल की पारखी नजरें पलक झपकते ही पहचान लेती हैं। निखिल कीट को देखते ही उसके पैदा होने से लेकर उसकी सातों पीढिय़ों तक की पौथियां किसानों के सामने खोल कर रख देता। निखिल अपने पिता रणबीर मलिक की तरह ही किसानों को कीटों की पढ़ाई करवाने के साथ-साथ कीटनाशक रहित खेती के लिए भी प्रेरित कर रहा है। इस प्रकार रणबीर मलिक का पुत्र निखिल मलिक छोटी सी उम्र में ही नन्हा धरतीपुत्र बनने जा रहा है।

यूं शुरू हुई निखिल की कीटों की पढ़ाई

2010 में कृषि विभाग की तरफ से उनके खेत में महिला किसान पाठशाला की शुरूआत की गई थी। यह पाठशाला 18 सप्ताह तक चली थी। उस समय निखिल की उम्र सिर्फ चार वर्ष की थी। निखिल अपनी मां अनीता मलिक के साथ इस महिला किसान पाठशाला में जाता था। इस पाठशाला में महिलाओं के बीच बैठकर इनकी बातें सुनने और पाठशाला में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले प्रयोगों को देखकर निखिल के दिमाक में भी कीटों  ने घर कर लिया। बस फिर क्या था यहीं से हो गया निखिल की कीटों की पढ़ाई का सिलसिला शुरू। इस पाठशाला में कीटों के प्रति उसका रुझान इतना बढ़ गया कि वह कीटों की पहचान करने के साथ उन सभी के नाम व काम भी कंठस्थ कर गया। इस प्रकार मात्र 18 सप्ताह में पांच वर्षीय निखिल ने कीट मास्टर की डिग्री हासिल कर ली।

कीटों का ज्ञान इतना की साइंटिस्ट भी शर्मा जाएं

निखिल मलिक को वैसे तो कपास की फसल में आने वाले 100 से भी ज्यादा कीटों के नाम व उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हैं। लेकिन इनमें से 60 से भी ज्यादा ऐसे मासाहारी व शाकाहारी कीट हैं, जिनके पूरे जीवनचक्र के बारे में निखिल को जानकारी है कि किस कीट के अंडों में से कितने दिन में बच्चे निकलते हैं, कितने दिन में बच्चे प्रौढ़ होते हैं, कितने दिनों में प्रौढ़ से पतंगा बनता है और ये क्या-क्या खाते हैं। निखिल के दिमाग में इन कीटों के पूरे जीवनकाल की तस्वीर बिल्कुल सही ढंग से छप चुकी है। निखिल कपास की फसल को देखकर यह भी बता देता है कि अब कपास में कौन सा कीड़ा आया हुआ है और अब आगे यह क्या करेगा? कौन सा कीट किस किस कीट को खाएगा? या कौन सा कीड़ा दूसरे कीडे़ के पेट के अंदर अपने बच्चे पलवाएगा? और इन सबका कपास की फसल पर क्या प्रभाव पड़ेगा। निखिल को इस समय लगभग 100 मांसाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान है, जिनमें मुख्य रूप से हरा तेला, सफेद मक्खी, मिलीबग, चूरड़ा, हथजोड़ा, मकड़ी, ड्रेगल फ्लाई हैलीकाप्टर, फेल मक्खी, अंगीरा, फंगीरा, जंगीरा, ततैया, अंजनहारी, भंभीरी, खातन, कुम्हारन, तेलन, लेडी बिटल, क्राइसोपा आदि शामिल हैं।

पिता भी लगे हैं कीटों के शिक्षण में 

निडाना गांव निवासी निखिल मलिक के पिता रणबीर मलिक एक साधारण किसान हैं और वह खेतीबाड़ी के सहारे ही अपने परिवार का गुजर-बसर करता है। रणबीर कीट मित्र किसान है और यह पिछले चार सालों से निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला से जुड़ा हुआ है। इस पाठशाला में किसानों को खेत में बैठाकर कीटों की पहचान करवाने के साथ-साथ कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित किया जाता हैं। फिलहाल रणबीर मलिक इस पाठशाला में मास्टर ट्रेनर के रूप में कार्य कर रहा है और अपने खर्च पर ही आस-पास के किसानों को कीटनाशक रहित खेती के गुर सीखाकर उनकी थाली को जहरमुक्त करने के प्रयास में जुटे हुए हैं। इसके अलावा रणबीर मलिक कृषि पर ब्लॉग भी लिखते हैं और उनके ब्लॉग इंटरनेट पर देश ही नहीं विदेश में भी लोग देखते हैं। निखिल की मम्मी अनीता भी महिला खेत पाठशाला की सक्रिय सदस्य हैं और महिला खेत पाठशाला में महिलाओं को जोडऩे में अहम योगदान कर रही हैं।

दादी को प्रतिदिन दिखाता है कीटों की गतिविधियां

निखिल ने 2010 में महिला किसान पाठशाला में कीटों की पढ़ाई पूरी करने के बाद 2011 में गांव में खाली पड़े अपने प्लाट में कपास की फसल की बिजाई करवाई थी। इस फसल की देखरेख निखिल प्रतिदिन स्वयं करता था और अपनी दादी चंद्रपति को भी कपास की फसल पर होने वाली गतिविधि के बारे में बताता है। निखिल की इन गतिविधियों को देखकर उसकी दादी चंद्रपति को भी कुछ कीटों की पहचान हो गई है। निखिल की इस छोटी उम्र में बड़ी जानकारी से उसकी दादी भी काफी खुश हैं।
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करता निखिल।

लैपटॉप पर अपनी दादी को कीटों की जानकारी देता निखिल।

लैपटॉप पर भी करवाता है कीटों की पहचान

रणबीर मलिक ने बताया कि उनके घर पर एक लैपटॉप है। शुरू-शुरू में तो वह निखिल को लैपटॉप नहीं चलाने देता था, क्योंकि उसे डर रहता था कि कहीं निखिल इसे खराब न कर दे। लेकिन निखिल चोरी-छिपे लैपटॉप को चला लेता था और इस प्रकार धीरे-धीरे निखिल को लैपटॉप की जानकारी भी हो गई। मलिक ने बताया कि अब निखिल घर में आने वाले मेहमानों, आस-पास की महिलाओं व किसानों को लैपटॉप में डाली गई कीटों की फोटो दिखाकर उनकी पहचान करवाता है।


शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

बिना कीटनाशकों के भी अच्छी पैदावार ले रही हैं महिलाएं


नरेंद्र कुंडू 
जींद। ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को पूनम मलिक के खेत पर महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। महिलाओं ने पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के बाद कीट बही खाता तैयार किया। पाठशाला के आरंभ में महिलाओं ने 6 ग्रुप बनाकर 10-0 पौधों पर कीटों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने जामुन के पेड़ के नीचे बैठकर चार्ट पर कीटों के आंकड़े तैयार किए। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने सर्वेक्षण के बाद तैयार किए गए आंकड़ों की तरफ  इशारा करते हुए बताया कि कपास के इस खेत में इस सप्ताह शाकाहारी कीटों की संख्या नामात्र है। इस सप्ताह फसल में लाल व काला बाणिया ही नजर आए हैं। ये कीट कपास के अंदर से बीज का रस चूसते हैं। सविता ने महिलाओं को बताया कि अब तक पाठशाला में आने वाली किसी भी महिला ने अपने खेत में एक बूंद भी जहर का छिड़काव नहीं किया है। उन्होंने बताया कि महिलाओं ने बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए कपास की अच्छी पैदावार ली है। इन महिलाओं की पैदावार कीटनाशकों का प्रयोग करने वाले अन्य किसानों के बराबर ही खड़ी है। पूनम मलिक ने बताया कि जब बिना कीटनाशक के हमें अच्छी पैदावार मिल सकती है तो फिर हमें अपनी फसल में जहर के प्रयोग की जरूरत क्यों पड़ती है। सविता ने बताया कि अधिक कीटनाशकों के प्रयोग से पर्यावरण, जमीन व पानी दूषित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर फसलों में इसी तरह कीटनाशकों का प्रयोग होता रहा तो हमारी आने वाली पीढिय़ों के लिए बहुुत बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। सविता ने बताया कि हमें कीटनाशकों की तरफ ध्यान न देकर पौधों की पर्याप्त खुराक की तरफ ध्यान देना चाहिए। पौधों को अच्छी खुराक देकर ही अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। महिलाओं ने बताया कि उनके लिए बड़ी खुशी की बात है कि उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते खुद का ज्ञान पैदा कर कीटनाशकों को धूल चटा दी है।
 खेत में कीट निरीक्षण के बाद बही खाता तैयार करती महिलाएं। 


लाल नहीं हो रहे भ्रष्टाचारियों के हाथ


विजीलैंस के पास हर वर्ष कम आ रही हैं भ्रष्टाचार की शिकायतें

नरेंद्र कुंडू 
जींद। एक तरफ तो देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है लेकिन दूसरी तरफ भ्रष्टाचार की शिकायतों में लगातार कमी आ रही है। यह बात सुनने में थोड़ी अटपटी जरूर लगती है लेकिन जिला विजीलैंस कार्यालय से मिले आंकड़े इसी बात की तरफ इशारा कर रहे हैं। जिला विजीलैंस की टीम के पास हर वर्ष भ्रष्टाचार के मामलों की शिकायतें कम होती जा रही हैं। राज्य चौकसी ब्यूरो के जिला कार्यालय में 2010 में रिश्वतखोरी के 6 मामले आए थे। वर्ष 2011 में ये मामले कम हो कर 4 हो गए और जनरवरी 2012 से अक्तूबर तक सिर्फ 2 ही मामले विजीलैंस कार्यालय के पास पहुंचे हैं।
इसे आम आदमी में जागरूकता का अभाव कहें या भ्रष्टाचारियों की सतर्कता जिस कारण राज्य चौकसी ब्यूरो की टीम भ्रष्टाचारियों पर नकेल डालने में नाकाम हो रही है। देश में भ्रष्टाचार भले ही गहराई में अपनी जड़ें जमा चुका हो लेकिन भ्रष्टाचारियों के हाथ लाल होने के मामले घटते ही जा रहे हैं। विजीलैंस की टीम भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए रिश्वत न देने व रिश्वतखोरों की शिकायत के लिए सरकारी कार्यालयों के बाहर सूचना बोर्ड लगवाकर मुहिम चला रही है, लेकिन इसके बावजूद भी विजीलैंस टीम के पास रिश्वतखोरी की शिकायत के मामले बढऩे की बजाए हर वर्ष कम होते जा रहे हैं। रिश्वतखोरी की शिकायत पर विजीलैंस की टीम द्वारा 2010 में 6 रैड डाली गई थी लेकिन 2011 में यह आंकड़ा कम होकर 4 पर और जनवरी 2012 से अक्तूबर तक सिर्फ 2 ही मामले विजीलैंस कार्यालय पहुंचे हैं। विजीलैंस के पास रिश्वतखोरी की कम हो रही शिकायतों से दो बातें साफ हो रही हैं। पहला यह कि लोग किसी पचड़े में पडऩे की बजाए चुपचाप रिश्वत देकर अपना काम निकलवाने में विश्वास रखते हैं और दूसरा यह कि रिश्वतखोरों ने विजीलैंस की टीम की आंखों में धूल झोंकने के लिए कोई नया रास्ता इख्तयार लिया है।

गवाह भी दे जाता ऐन वक्त पर धोखा

गवाह द्वारा कोर्ट में गवाही से मुकर जाने के कारण भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे अधिकतर सरकारी कर्मचारी व अधिकारी बिना किसी परेशानी के भ्रष्टाचार के आरोप से मुक्त हो जाते हैं। क्योंकि कोर्ट की लंबी प्रक्रिया के दौरान आरोपी गवाह पर या तो सामाजिक दबाव बनवाकर गवाह को झुकने के लिए मजबूर कर देता या फिर पैसे का लालच देकर उसे तोड़ देता है। गवाह द्वारा ऐन वक्त पर गवाही से मुकरने के कारण कोर्ट में विजीलैंस की टीम की फजिहत होती है।

गवाही से मुकरने वालों के खिलाफ भी हो कार्रवाई

लोग भ्रष्टाचार के मामलों को सीरियस नहीं लेते हैं। विभाग द्वारा लोगों को जागरूक करने के लिए सभी सरकारी कार्यालयों के बाहर रिश्वत ने देने व रिश्वत मांगने वालों की शिकायत के लिए सूचना बोर्ड भी लगवाए गए  हैं। लेकिन इसके बाद भी लोगों में कोई जागरूकता नहीं आ रही है। अधिकतर मामलों में गवाह कोर्ट में मुकर जाते हैं और आरोपी आराम से कोर्ट से बरी हो जाता है। कोर्ट में गवाही से मुकरने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई करने का प्रावधान होना चाहिए।
देवीलाल, इंस्पैक्टर 
राज्य चौकसी ब्यूरो, जींद

किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की कवायद

किसानों को 50 प्रतिशत सबसिडी पर दिया जाएगा लहसुन का बीज

नरेंद्र कुंडू
जींद। बागवानी विभाग द्वारा किसानों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए एक खास योजना तैयार की गई है। इस योजना के तहत विभाग किसानों को परम्परागत खेती से हटकर मसालेदार फसलों की खेती के लिए प्रेरित करेगा। विभाग द्वारा किसानों को मसालेदार फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत किसानों को सबसिडी पर बीज मुहैया करवाया जाएगा। योजना को अमल में लाने के लिए विभाग द्वारा जिले में 40 हैक्टेयर में उन्नत किस्म की लहसुन की फसल की बिजाई का टारगेट रखा गया है। इसके लिए विभाग द्वारा जिले के किसानों को 50 प्रतिशत सबसिडी पर लहसुन का बीज उपलब्ध करवाया जाएगा।
कम हो रही कृषि जोत व महंगाई के कारण खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है। इसके चलते किसान लगातार कर्ज के दलदल में धंसता जा रहा है। अब किसानों को इस दलदल से बाहर निकालने का बीड़ा बागवानी विभाग ने उठाया है। बागवानी विभाग ने किसानों को परम्परागत खेती से हटकर मसालेदार फसलों की खेती के लिए प्रेरित करने की योजना बनाई है। ताकि किसान परम्परागत खेती से आगे बढ़कर खेती को व्यवसाय के तौर पर अपनाकर आर्थिक रूप से मजबूत बन सकें। बागवानी विभाग द्वारा किसानों का रूझान मसालेदार फसलों की खेती की तरफ बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत किसानों को 50 प्रतिशत सबसिडी पर उन्नत किस्म का बीज मुहैया करवाया जाएगा। योजना को धरातल पर उतारने के लिए विभाग ने इस बार जिले में 40 हैक्टेयर में लहसून की फसल की बिजाई का टारगेट निर्धारित किया है। इसके लिए विभाग किसानों को 50 प्रतिशत सबसिडी पर लहसून का बीज उपलब्ध करवा रहा है। बीज पर सबसिडी देने के अलावा विभाग किसानों को फसल की बिजाई का खर्च भी वहन करेगा। विभाग द्वारा किसान को फसल की बिजाई का खर्च प्रति हैक्टेयर के अनुसार दिया जाएगा। इसमें विभाग द्वारा प्रति हैक्टेयर पर किसान को 5312 रुपए की राशि मुहैया करवाई जाएगी।

लहसुन के भावों में हो सकती है बढ़ोतरी

बागवानी विभाग के कार्यालय में बीज प्राप्त करते किसान। 
मंडी के जानकारों का मानना है कि इस बार लहसुन के भाव में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। पिछले 2 वर्षों से लहसून के भाव में गिरावट बनी हुई है और गिरावट के बाद फसल के भावों में उछाल आने के ज्यादा आसार रहते हैं।

इनपुट के लिए दी जाएगी आर्थिक सहायता 

विभाग ने किसानों को मसालेदार फसलों की खेती के लिए प्रेरित करने के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत 50 प्रतिशत सबसिडी पर लहसून का उन्नत बीज मुहैया करवाया जा रहा है। बीज के अलावा विभाग द्वारा लहसून की बिजाई के लिए किसान को आर्थिक सहायता भी दी जाएगी। ताकि किसान पर फसल की बिजाई के दौरान किसी प्रकार का आर्थिक बोझ न पड़े।
डा. बलजीत भ्यान
जिला बागवानी अधिकारी, जींद



बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

पौधों के पास सुरक्षा के लिए होते हैं सुगंध रूपी अस्त्र व शस्त्र


कीटों से ज्यादा ताकतवार होते हैं पौधे

खाप प्रतिनिधियों ने किसान-कीट विवाद पर किया गहन मंथन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। किसानों से ज्यादा ताकतवर कीट हैं और कीटों से ज्यादा ताकतवर पौधे हैं। किसानों के लिए कीटों को नियंत्रित करना मुश्किल है लेकिन पौधे कीटों को आसानी से काबू कर लेते हैं। पौधे सुगंध छोड़कर अपनी आवश्यकता के मुताबिक ही कीटों को बुलाते हैं और आवश्यकता पूरी होने पर अलग प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को आसानी से भगता देते हैं। यह बात कृषि विभाग के अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने मंगलवार को निडाना गांव में किसान-कीट विवाद की सुनवाई के लिए आए विभिन्न खाप प्रतिनिधियों के समक्ष रखी। इस अवसर पर विवाद की सुनवाई के लिए किसान खेत पाठशाला में दलाल खाप के प्रधान एवं कृषि विभाग से सेवानिवृत्त एस.डी.ओ. भूप सिंह दलाल, तोमर खाप के प्रतिनिधि सुरेश कुमार तोमर, गांव मांडोठी (सोनीपत) के सरपंच रामचंद्र तथा एक मासिक पत्रिका के संपादक जसबीर मलिक भी मौजूद थे। बैठक में खाप प्रतिनिधियों ने किसान-कीट विवाद पर गहन मंथन किया।
डा. दलाल ने कहा कि पौधों के पास अपनी सुरक्षा के लिए न हाथ-पैर होते हैं और न देखने के लिए आंखें। पौधों के पास तो केवल उनके द्वारा छोड़ी जाने वाली सुगंध व गंध ही उनके लिए अस्त्र व शस्त्र का काम करती है। जब पौधे बढ़े हो जाते हैं और उनके निचले पत्तों को भोजन बनाने के लिए पर्याप्त धूप नहीं मिल पाती तो पौधे एक विशेष किस्म की सुंगध छोड़कर शाकाहारी कीटों को निमंत्रण देते हैं। इसके बाद शाकाहारी कीट पौधे के ऊपरी भाग के पत्तों को खाकर बीच से छेद देते हैं। इस प्रकार कीटों द्वारा पत्तों के बीच में किए गए छेद से नीचे के पत्तों पर धूप पहुंच जाती है और वे भी पौधे के लिए भोजन बनाने का काम करते हैं। मास्टर ट्रेनर मनबीर रेढ़ू ने बताया कि वैज्ञानिकों के तर्क के अनुसार कपास की फसल में अगर सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 6, हरा तेले की प्रति पत्ता 2 व चूरड़े की प्रति पत्ता 10 औसत आने लगे तो समझना चाहिए कि ये कीट फसल में नुक्सान पहुंचाने के स्तर पर पहुंच चुके हैं। लेकिन यहां के किसानों ने 31 जुलाई से लेकर 15 अगस्त तक के बीच के जो आंकड़े जुटाएं हैं उनमें कहीं भी ये कीट वैज्ञानिकों की इस लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघ पाए हैं। रेढ़ू ने प्रयोगरत खेत के किसान का उदहारण खाप प्रतिनिधियों के समक्ष रखते हुए बताया कि इस 5 कनाल जमीन में अभी तक किसान ने बिना किसी कीटनाशक के प्रयोग से दो चुगवाई में 9 मण कपास प्राप्त कर ली है और जिसकी अभी ओर भी चुगवाई बाकी है। 

कीटनाशकों के प्रयोग से क्यों बढ़ती है कीटों की संख्या

निडाना में किसान खेत पाठशाला में भाग लेते किसान। 
भैण से आए एक किसान बलवान ने बताया कि जब किसान फसल में कीटनाशक का छिड़काव करता है तो कीट अपने वंश को बचाने के चक्कर में अपना जीवनकाल छोटा कर अपनी प्रजनन क्रियाएं तेज कर देते हैं। इसके अलावा कीटनाशक के प्रयोग के बाद पौधों की सुगंध छोडऩे की प्रक्रिया भी गड़बड़ा जाती है। इससे भ्रमित होकर एक साथ विभिन्न प्रकार के कीट फसल में आ जाता हैं। 


सावधान! कहीं आस्था पर भारी ना पड़ जाए लालच की मार


छले वर्ष कुट्टू के आटे से हुई घटनाओं के बाद भी नींद से नहीं जागा प्रशासन

नरेंद्र कुंडू
जींद।पिछले वर्ष नवरात्रों में कुट्टू के आटे ने जमकर तांडव मचाया था। स्वास्थ्य विभाग विभाग की सुस्ती का खामियाजा हजारों श्रद्धालुओं को भुगतना पड़ा था। पिछले वर्ष कुट्टू का आटा खाने से हुई घटनाओं से इस बार भी जिला प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया है। माता के नवरात्रे शुरू हो चुके हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग गहरी नींद में है। गत वर्ष हजारों को दर्द देने वाला यह आटा इस वर्ष भी बाजार में बिकने के लिए बेताब है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग लकीर का फकीर बना हुआ है। अभी तक प्रशासन ने आटे के सैंपल लेने तक की जहमत नहीं उठाई है। जिला प्रशासन की इस लापरवाही के कारण इस वर्ष भी व्यापारी करोड़ों की चांदी कूटकर हजारों श्रद्धालुओं को जख्म देकर साफ निकल जाएंगे और बाद में विभाग के पास सिर्फ लकीर पिटने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। 
माता के नवरात्रे शुरू हो चुके हैं और जिले में नवरात्रों की तैयारियां जोरों पर हैं। कुट्ट के आटे का बाजार सज चुका है और श्रद्धालुओं ने नवरात्रों के लिए कुट्ट के आटे की खरीदारी भी शुरू कर दी है। प्रदेश में पिछले वर्ष कुट्टू के आटे ने जमकर अपना असर दिखया था। पिछले वर्ष प्रदेशभर में कुट्टू का आटा खाने से सैंकड़ों श्रद्धालुओं के बीमार होने के मामले प्रकाश में आए थे। बाद में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही जनता के सामने उजागर होने के बाद विभाग ने आनन-फानन में कई जगह छापेमारी भी की थी, लेकिन तब तक जहर रुपी आटा अपना असर दिखा चुका था। व्यापारियों ने अपने मुनाफे के लालच में पुराना आटा बेचा था। पिछले वर्ष हुए घटनाक्रम के बाद भी अभी तक स्वास्थ्य विभाग की नींद नहीं टूटी है। नवरात्रे शुरू हो चुके हैं और स्वास्थ्य विभाग ने आटे की जांच के लिए सैंपल लेने तक का कष्ट नहीं उठाया है। शायद इस बार भी प्रशासन को माता के भक्तों का अस्पताल पहुंचने का इंतजार है। 

क्यों बदनाम है कुट्टू

दवाओं में इस्तेमाल होने वाला कुट्टू अपने रासायनिक व्यवहार के कारण बदनाम है। चिकित्सकों के अनुसार कुट्ट का आटा गर्म होता है। इससे शरीर में कार्बोहाइड्रेट और ग्लूकोज का स्तर बढ़ता है। कुट्टू में वसा अधिक होती है। इस आटे को अधिकतम एक माह तक उपयोग में लाया जा सकता है। ज्यादा दिन रखने से आटे में बैक्टीरिया और फंगस लग जाते हैं। कुट्टू का आटा ज्यादा दिनों तक रखे होने की स्थिति में माइक्रोटाक्सिन का निर्माण हो जाता है, जोकि शरीर के लिए हानिकारक है। खराब कुट्टू के आटे को खाने से उल्टी के साथ चक्कर आने लगते हैं। बेहोशी भी आ सकती है। शरीर ढीला पडऩे लगता है। ज्यादा दिनों तक रखे कुट्टू के आटे से बने पकवान खाने से लोग फूड प्वाइजनिंग के शिकार होते हैं। सही मायने में कुट्टू का आटा खाने से लोगों के अस्पताल तक पहुंचने के जिम्मेदार वो फैक्ट्री वाले हैं, जो खराब कुट्टू को पीसकर आटा बाजार में बेचते हैं। वे लोग जिम्मेदार हैं, जो ठीक से इस आटे की पैकिंग नहीं करते। नमीं के संपर्क में आने पर इस आटा में रासायनिक क्रियाएं होती हैं और यह जहर बन जाता है। 

आस्था से खिलवाड़

व्यापारी चंद पैसे के लालच में कुट्ट के आटे में व्रत के वर्जित आटा मिलाते हैं। कुट्ट का ब्रांडेड आटा बाजार में 70 से 80 रुपए किलो तक आता है। आम आटा 20 से 30 रुपए किलो में उपलब्ध है। ऐसे में व्यापारी चांदी कुटने के चक्कर में महंगे आटे में सस्ता आटा मिलाकर कमाई करते हैं। इस प्रकार व्यापारी अपने स्वार्थ की पूॢत के लिए श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ करते हैं। 

मैं अभी मीटिंग में हूं

अभी तक बाजार में कुट्टू का आटा नहीं आया था। इसलिए इसके सैंपल नहीं लिए गए हैं। मैं अभी चंडीगढ़ मीङ्क्षटग में हूं। मीङ्क्षटग से आने के बाद टीम का गठन कर सैंपलिंग का काम किया जाएगा। 
एन.डी. शर्मा
फूड सैफ्टी इंस्पैक्टर, जींद

स्टेज तक खींच लाया शौक और जनसमर्थन ने दिया हौंसला


दर्शकों की कमी के कारण स्टेज से मुहं मोडऩे लगे हैं रामलीला के कलाकार
नरेंद्र कुंडू
जींद। शौक उन्हें स्टेज तक खींच लाया और जनसमर्थन ने दिया हौंसला लेकिन अब दर्शकों की कमी के कारण रामलीला के कलाकार रामलीला से मुहं मोडऩे लगे हैं। रामलीला के मंच पर खड़े कलाकारों के लिए मैदान में मौजूद दर्शकों की भीड़ ही एनर्जी का काम करती थी। मैदान में दर्शकों की संख्या जितनी ज्यादा होती थी कलाकार उतने ही अधिक हौंसले के साथ अपने किरदार का मंचन करते थे। मंचन के दौरान दर्शकों की तालियां व किलकारियां कलाकारों के लिए फास्ट रिलिफ का काम करती और कलाकार अपनी सारी थकान को भूलकर पूरी तरह से अपने अभिनय में खो जाते थे। दर्शकों की संख्या जितनी ज्यादा होती थी कार्यक्रम भी उतना ही ज्यादा लंबा होता चला जाता था और कलाकारों को पता ही नहीं चलता था कि कब रात बीती व कब सुबह हुई। लेकिन आधुनिकता के दौर में बढ़ते मनोरंजन के साधनों ने कलाकारों से उनकी यह संजीवनी छीन ली। बदलती मानसिकता व बढ़ते मनोरंजन के साधनों के कारण रामलीला से लोगों का मन हटने लगा। दर्शकों ने रामलीला से ऐसा मन मोड़ा कि कलाकारों के हौंसले जवाब दे गए और उनका शौक खत्म होता चला गया। बदलती मानसिका के कारण कलाकारों के हुनर का जादू भी दर्शकों को अपनी तरफ नहीं खींच पाया। इस प्रकार दर्शकों की बेरूखी के कारण कई-कई वर्षों से रामलीला के मंचन में लगे कलाकार भी थक हार कर स्टेज छोड़ने पर मजबूर हो गए।
श्री सनातन धर्म आदर्श रामलीला (किला) में फिलहाल रावण का किरदार निभाने वाले विक्की परूथी का कहना है कि वे पिछले 12 वर्षों से रामलीला में कलाकार की भूमिका निभा रहे हैं। इस दौरान वे मेघनाथ, परशुराम का किरदार निभा चुके हैं। उनके पिता जी रामलीला में सेवा करते थे और उन्ही से प्रेरित होकर वे भी रामलीला में आए। जिस समय उन्होंने रामलीला के मंच से पर कदम रखा उस वक्त दर्शकों की संख्या काफी ज्यादा होती थी। दर्शकों की संख्या के कारण ही उनका उत्साह बढ़ता था लेकिन बदलते परिवेश के कारण दर्शकों ने भी रामलीला से मुहं मोडऩा शुरू कर दिया। 

 राम की वेशभूषा में सजा विनय अरोड़ा का फाइल फोटो। 



विनय अरोड़ा ने बताया कि उसे 1985 में पहली बार रामलीला के मंच पर आने का अवसर मिला था। इस दौरान उसे रामलीला में सीता का किरदार निभाया था। विनय ने बताया कि उनके पिता जी अमृतलाल अरोड़ा रामलीला में राम का किरदार निभाते थे। अपने पिता जी के किरदार के कारण ही उनके अंदर भी रामलीला में मंचन का शोक पैदा हुआ। जिसके बाद उन्होंने लगातार 10-12 वर्षों तक रामलीला में राम, लक्ष्मण, सीता व अन्य कई प्रकार के किरदार किए। इसके अलावा उनकी फिल्मों में जाने की भी तीव्र इच्छा थी और जींद में रामलीला के अलावा दूसरा कोई प्लेटफार्म नहीं था। इसलिए भी उसने अपने हुनर को तरासने के लिए रामलीला को चूना था। लेकिन बाद में दर्शकों की विमुखता के कारण उनका मन भी इससे हटने लगा और उन्होंने 1998 के बाद से रामलीला के किरदार छोड़ कर स्टेज का कामकाज संभाल लिया। 
नीरज शर्मा ने बताया कि वह शहर के कठियाना मौहल्ले में रामलीला के आयोजन में अहम भूमिका निभाता था। रामलीला के डायरेक्टर की जिम्मेदारी संभालने के साथ-साथ रामलीला में राम, शत्रुघन, शंकर व अन्य छोटे किरदार निभाता था। जिस समय उन्होंने रामलीला के मंच पर पैर रखा था उस समय रामलीला देखने के लिए दर्शकों में काफी उत्साह होता था। दर्शकों के उत्साह के कारण ही उनका हौंसला बढ़ता था लेकिन बाद में रामलीला से दर्शकों का मन भरने के कारण उनका हौंसला भी जवाब दे गया। 
राम की वेशभूषा में सजे कलाकार नीरज शर्मा का फाइल फोटो। 
कपिल मिनोचा ने बताया कि उसने रामलीला के मंच पर जौकर के किरदार से शुरूआत की। जब उन्होंने पहली बार स्टेज पर कदम रखा तो दर्शकों की संख्या को देखकर उनके पैर कांपने लगे और वे बीच में ही मंच छोड़कर भाग गए। बाद में मुकेश उर्फ मुकरी ने उनका हौंसला बढ़ा कर उसके अंदर बैठे डर को बाहर निकाला। इसके बाद तो उन्होंने लगभग 13 वर्षों तक रामलीला में राम, खेवट, भरत सहित कई किरदार निभाए तथा दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। लेकिन दर्शकों की कमी के कारण ही उन्होंने रामलीला में किरदार छोड़कर स्टेज को संभालने में लग गए। 

सबसे मुश्किल होता है कॉमेडियन का किरदार

मंच पर हास्य कलाकार की भूमिका में मुकेश उर्फ मुकरी का फाइल फोटो। 


रामलीला के मंच पर लगभग चार दशकों तक दर्शकों का मनोरंजन कर दर्शकों के दिलों पर अपने हुनर की छाप छोडऩे वाले मुकेश उर्फ मुकरी का कहना है कि किसी भी कार्यक्रम में सबसे मुश्किल काम हास्य कलाकार का होता है। क्योंकि हास्य कलाकार के अलावा और जो भी किरदार होते हैं उन सभी के डायलॉग या संवाद पहले से ही लिखे होते हैं। लेकिन हास्य कलाकार को अपने डायलॉग स्वयं स्टेज पर खड़े होकर दर्शकों के चेहर को देखकर तैयार करने होते हैं। एक हाजिर जवाब कलाकार ही हास्य कलाकार की भूमिका निभा सकता है। मुकेश ने बताया कि जिस दिन रामलीला मैदान में दर्शकों की ज्यादा भीड़ होती उस दिन उतनी ही अच्छी कॉमेडी होती थी। दर्शकों के चेहर को देखकर उनके अंदर जोश भर जाता था लेकिन दर्शकों की बेरूखी ने ही उनसे उनका यह हुनर उनसे छीन लिया। 





ग्रामीण क्षेत्र में खेल प्रतिभाओं को निखारने की कवायद


पायका योजना के तहत जिले के 49 गांवों में दिए जाएंगे वालीबाल, बास्केटबाल, कुश्तीमैट व वैट ट्रेनिंनग सैट

नरेंद्र कुंडू 
जींद। केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र से अधिक से अधिक युवाओं को खेल के क्षेत्र में आगे लाने के लिए सरकार द्वारा पंचायत युवा क्रिया (पायका) योजना को धरातल पर उतारा गया है। पायका योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र के खिलाडिय़ों के लिए सरकार द्वारा हर वर्ष करोड़ों रुपए की खेल कीट मुहैया करवाई जा रही हैं। इस योजना के तहत सरकार द्वारा इस वर्ष जींद जिले के 49 गांवों के लिए खेल कीट मुहैया करवाई गई हैं। जबकि पिछले वर्ष इस योजना के तहत 51 गांवों को खेल कीट मुहैया करवाई गई थी। इन खेल कीटों में वॉलीबाल, बास्केटबाल के पोल सैट, कुश्ती मैट व वैट ट्रेनिंग सैट शामिल हैं।
भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी खेल प्रतिभाओं को निखार कर ग्रामीण आंचल से अच्छे खिलाड़ी तैयार करने के उद्देश्य से पंचायत युवा क्रीड़ा (पायका) योजना शुरू की गई है। सरकार द्वारा इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए गांवों में खेल कीटें उपलब्ध करवाई जा रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र से कोच की देखरेख में अच्छे खिलाडिय़ों की पहचान कर उन्हें आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित करना है। देश में खेल प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के लिए पायका योजना के माध्यम से हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इस बार पायका योजना के तहत जींद जिले से 49 गांवों का चयन कर इनके लिए खेलों का सामान उपलब्ध करवाया गया है। इसमें 34 गांवों को वालीबाल व बास्केटबाल के पोल सैट तथा 15 गांवों को कुश्ती के मैट दिए जाने हैं। इसके अलावा सभी 49 गांवों में वालीबाल, बास्केटबाल व कुश्ती मैट के अलावा वैट ट्रेनिंग सैट भी दिए जाएंगे। सभी गांवों में सामान मुहैया करवाने के लिए विभाग द्वारा जिला खेल कार्यालय में सामान भिजवाया जा चुका है।

इन गांवों को दिए जाएंगे वालीबाल व बास्केटबाल के पोल सैट 

अलेवा ब्लॉक से शामदो, जींद ब्लॉक से पिंडारा, रामगढ़, जलालपुर कलां, आसन, नरवाना ब्लॉक से कलोदा कलां, हथो, सिसर, सैंथली, ढाबी टैकसिंह, कोयल, सच्चाखेड़ा, रसीदां, जाजनवाला, हमीरगढ़, फुलनकलां, सुलेहड़ा, भिखेवाला, कर्मगढ़, पिल्लूखेड़ा ब्लॉक से पिल्लूखेड़ा, सफीदों ब्लॉक से पाजू कलां, रोड, बहादुरगढ़, ऐंचरा खुर्द, रामनगर, मिल्कपुर, निमनाबाद, सिंगपुरा, मलार, उचाना ब्लॉक में घसो कलां, टोहाना खेड़ा, खापरा, कसहुन, खेड़ी मसानिया शामिल हैं।

इन गांवों में दिए जाएंगे कुश्ती मैट 

अलेवा ब्लॉक से खांडा, डुराना, जींद ब्लॉक से पौंकरीखेड़ी, जुलानी, मनोहरपुर, लोहचब, जुलाना ब्लॉक से लजवाना खुर्द, शादीपुर, नरवाना ब्लॉक से खररवाल, पिल्लूखेड़ा ब्लॉक से रिटोली, रजाना, भड़ताना, धड़ोली, सफीदों ब्लॉक से रायताखेड़ा, बिटानी शामिल हैं।
इसके अलावा इन सभी 49 गांवों में वैट ट्रैङ्क्षनग सैट भी दिए जाएंगे।
 जिला खेल कार्यालय में रखे वालीबाल व बास्केटबाल मे पोल। 

अगले सप्ताह से शुरू किया जाएगा सामान का वितरण

विभाग द्वारा पायका योजना के तहत जिले के 49 गांवों के लिए खेलों का सामाना मुहैया करवाया गया है। इसमें 34 गांवों को बास्केटबाल, वालीबाल व 15 गांवों के कुश्ती ट्रेनिंग सैट दिए जाने हैं। इसके अलावा सभी 49 गांवों को वैट ट्रेनिंग सैट भी दिए जाएंगे। खेल के सामान का निरीक्षण करने के बाद सामान का वितरण किया जाएगा। अगले सप्ताह तक सामान का वितरण शुरू कर दिया जाएगा।
जुगमिंद्र श्योकंद
जिला खेल अधिकारी, जींद

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

कृषि के क्षेत्र में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें महिलाएं


नरेंद्र कुंडू 
जींद। ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में ललीतखेड़ा, निडाना व निडानी की महिलाओं ने भाग लिया। महिलाओं ने कीट निरीक्षण, अवलोकन के बाद कीट बही खाता तैयार किया। इस बार कीट अवलोकन के दौरान महिलाओं ने कपास की फसल में मौजूद लाल बाणिये का भक्षण करते हुए एक नए मासाहारी कीट को पकड़ा।
 फसल में कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं। 

महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देते पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल। 
पाठशाला की मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने महिलाओं को बताया कि अब तक उन्होंने कपास की फसल में सिर्फ लाल बाणिये का खून पीते हुए मटकू बुगड़े को ही देखा था। मटकू बुगड़ा अपने डंके की सहायता से लाल बाणिये का खून पीकर इसके कंट्रोल करता था लेकिन इस बार महिलाओं ने लाल बाणिये का खात्मा करने वाले एक नए मासाहारी कीट की खोज की है। यह कीट इसका खून पीने की बजाए इसको खा कर कंट्रोल कर अपनी वंशवृद्धि करता है। अंग्रेजो ने कहा कि इससे यह बात आइने की तरह साफ है कि कीटों को कंट्रोल करने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो सिर्फ कीटों की पहचान व इनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाने की। अगर किसानों को अपनी फसल में समय-समय पर आने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों का ज्ञान हो जाए तो किसानों का जहर से पीछा छूट जाएगा। बिना ज्ञान के कीटनाशक से छुटकारा संभव नहीं है। मास्टर ट्रेनर मीना मलिक ने बताया कि जिस तरह अन्य क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, वैसे ही कृषि के क्षेत्र में भी महिलाओं को पुरुषों के साथ आगे आना होगा। मलिक ने कहा कि विवाह, शादी जैसे खुशी के मौकों पर महिलाओं को अन्य गीतों की बजाए कीटों के  गीत गाने चाहिएं, ताकि अधिक से अधिक लोगों तक यह मुहिम फैल सके। उन्होंने कहा कि जहर से मुक्ति मिलने में केवल किसानों की ही जीत नहीं है, बल्कि इससे हर वर्ग के लोगों को लाभ होगा। क्योंकि हमारे शास्त्रों में भी पहला सुख निरोगी काया का बताया गया है। जब तक इंसान स्वास्थ नहीं होगा तब तक वह किसी भी कार्य को अच्छे ढंग से नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों में जो भय व भ्रम की स्थित पैदा हो चुकी है हमें उस स्थिति को स्पष्ट करना होगा। किसानों को फसल में आने वाली बीमारी व कीटों के बीच के अंतर के बारे में जानकारी होनी जरुरी है। जब तक यह स्थित स्पष्ट नहीं होगी तब तक किसानों के अंदर से भ्रम को बाहर नहीं निकाला जा सकता है। सविता ने बताया कि इस समय उनकी फसल की दूसरी चुगवाई चल रही है लेकिन पाठशाला में आने वाली एक भी महिला को अब तक फसल में एक बूंद कीटनाशक की जरुरत नहीं पड़ी है। इस अवसर पर उनके साथ पाठशाला के संचालक सुरेंद्र दलाल, मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक व मनबीर रेढ़ू भी मौजूद थे। बराह कलां बारहा खाप के प्रधान भी मौजूद थे। 



बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

निडाना में हो रही है एक नई क्रांति की शुरूआत : दलाल


कीट ज्ञान हासिल करने किसान आयोग के सचिव व जबलपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइसचांसलर भी पहुंचे निडाना

नरेंद्र कुंडू
जींद। चौ. चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के भूतपूर्व रजिस्ट्रार एवं हरियाणा किसान आयोग के सचिव डा. आर.एस. दलाल ने कहा कि निडाना के किसानों ने कीट ज्ञान की जो मशाल जलाई है यह देश, कृषि क्षेत्र, विज्ञान, शिक्षा क्षेत्र व मानव के लिए एक नई क्रांति है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ मानव हित में नहीं है, क्योंकि प्रकृति अपना हिसाब-किताब रखती है। डा. दलाल मंगलवार को किसान-कीट विवाद की सुनवाई के लिए निडाना किसान पाठशाला में सर्व खाप पंचायत की बैठक में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। बैठक की अध्यक्षता सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर बैठक में सर्व जातीय सर्व खाप पंचायत के प्रधान नफे सिंह नैन, सर्व खाप के प्रैस प्रवक्ता सूबे सिंह समैन, बूरा खाप के प्रधान हरिनारायण बूरा व जबलपुर यूनिवर्सिटी के भूतपूर्व वाइसचांसलर डा. डी.पी. सिंह भी मौजूद थे। 
पाठशाल की शुरूआत कीट अवलोकन, निरीक्षण के साथ की गई। कीट निरीक्षण के बाद किसानों ने कीट बही 
 कीट बही खाता तैयार करते किसान। 
खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक ने कहा कि कपास की फसल में मौजूद काला बाणिया व लाल बाणिया कपास के अंदर मौजूद बीज का रस चूसते हैं लेकिन किसानों को फसल में इसका नुक्सान नजर नहीं आता। किसानों को इसके नुक्सान का पता उस वक्त लगता है जब किसान अपनी फसल को बेचने के लिए मंडी में पहुंच कर उसका वजन करवाता है। काले व लाल बाणिये द्वारा बीज का रस चूसने के कारण कपास का वजन कम हो जाता है। कीटनाशक के प्रयोग से मिलीबग नामात्र ही कंट्रोल होता है। जबकि इसके बच्चों पर कीटनाशक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। क्योंकि मिलीबग अपने अंड़े एक थैली में देता है और थैली के अंदर तक कीटनाशक पहुंच नहीं पाता। मलिक ने बताया कि कीटनाशकों के प्रयोग से फसल में कीटों की संख्या कम होने की बजाय ज्यादा बढ़ती है। क्योंकि इससे पौधों की सुगंध छोडऩे की शक्ति गड़बड़ा जाती है और विभिन्न किस्म के कीट भ्रमित होकर एक साथ फसल में दस्तक दे देते हैं। मनबीर रेढ़ू ने बताया कि कपास के जीवनचक्र के दौरान 13 किस्म के पर्णभक्षी कीट फसल में आते हैं। फसल की शुरूआत में सलेटी भूंड, टिड्डे आते हैं। इनके बाद पत्ता लपेट, सुरंगी कीड़ा, कुबड़ा व अर्धकुबड़ा कीड़ा, तम्बाकू वाली सूंडी, लाल बालों वाली बिहारण सूंड़ी आती हैं। इनके अलावा फसल में आने वाले फलहारी कीट अमरिकन व चितकबरी सूंडी, चैपर बिटल तो कभी-कभार ही नजर आते हैं। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि किसानों को खेत के ईद-गिर्द खड़ी खरपतवार को नष्ट नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस खरपतवार पर ही सबसे ज्यादा मासाहारी कीट मौजूद रहते हैं। डा. दलाल ने कहा कि अकेले कांग्रेस घास पर ही मिलीबग को खाने वाले 36 किस्म के मासाहारी कीट मिल जाते हैं। 

खुद का ज्ञान पैदा करो सफलता तो झक मारती पीछे चली आएगी।

कीटनाशक रहित फसल का अवलोकन करते प्रतिनिधि।
किसान आयोग के सचिव डा. आर. एस. दलाल ने कहा कि आज स्कूलों, कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में केवल किताबी पढ़ाई रह गई है। यहां ज्ञान के नाम पर कुछ भी नया नहीं सीखने को नहीं मिलता है। उन्होंने अमीर खान की थ्री इडियट्स फिल्म के डायलाग को दोहराते हुए कहा कि कामयाबी के पीछे मत दौड़ो काबिल बनो कामयाबी तो झक मारती पीछे चली आएगी। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे खुद का ज्ञान पैदाकर काबिल बनें सफलता तो उनके पीछे-पीछे झक मारती चली आएगी। डा. दलाल ने कहा कि वे कीट ज्ञान को बढ़ाने व लोगों को कीटों की पहचान के लिए रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड व चोराहों पर कीटों के होर्डिंग लगवाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों से सिफारिश करेंगे।

कीट ज्ञान में पी.एच.डी. वाले अधिकारियों को भी पछाड़ा

निडाना के किसानों ने जो मुहिम चलाई है वह काबिले तारीफ है। निडाना के किसानों ने देश के अन्य किसानों को रास्ता दिखाने का काम किया है। यहां के किसानों ने कीट ज्ञान में पी.एच.डी. करने वाले अधिकारियों को भी पीछे छोड़ दिया है। कीटों के बारे में जिनती जानकारी यहां के किसानों को है उतने कीटों की जानकारी तो उन्हें स्वयं भी नहीं है। यहां के किसान कीटों का बही खाता तैयार कर कीटों के पूरे आंकड़े तैयार कर कीटों पर एक प्रकार की पी.एच.डी. ही कर रहे हैं। 
डा. डी.पी. ङ्क्षसह, भूतपूर्व वाइसचांसलर 
जबलपुर यूनिवर्सिटी 
अतिथियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान। 







रविवार, 7 अक्तूबर 2012

देश को जहर से मुक्ति दिलवाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं महिलाएं

कीट ज्ञान पैदाकर किसानों को दिखाया है एक नया रास्ता 

पांच माह की फसल में एक छटाक भी नहीं किया कीटनाशक का प्रयोग

नरेंद्र कुंडू
जींद। महात्मा गांधी ने सत्य,अंहिसा व चरखे को अपना हथियार बनाकर देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। उसी प्रकार ललीतखेड़ा व निडाना की महिलाएं भी बापू के रास्ते पर चलकर देश को जहर से मुक्ति दिलवाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। इस लड़ाई में विजयश्री के लिए इन महिलाओं ने कीट ज्ञान को अपना हथियार बनाया है। महिलाओं ने कीट विज्ञान के सहारे अपना स्थानीय कीट ज्ञान पैदाकर किसानों को एक नया रास्ता दिखाकर बापू के विचारों और औजारों की सार्थकता को सिद्ध किया है। यह बात बराह कलां बारहा खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कीट कमांडो महिलाओं के कीट ज्ञान की प्रशांसा करते हुए कही। ढांडा बुधवार को ललीतखेड़ा गांव में आयोजित महिला किसान पाठशाला में बोल रहे थे। 
ढांडा ने महिलाओं की कीट ढुंढऩे की दक्षता व कौशल की महता को स्वीकार करते हुए कहा कि कीटों से महिलाओं का पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा वास्ता रहा है। इसके अलावा महिलाएं बारीक काम भी करती रहती हैं। इसलिए भी छोटे-छोटे कीट इनकी पकड़ में जल्दी ही आ जाते हैं। पाठशाला में महिला किसानों ने कीटों की गिनती, अवलोकन, सर्वेक्षण व निरीक्षण के बाद कीट बही खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने बताया कि कीट अवलोकन के दौरान उन्होंने कपास की फसल में काला बाणिया नजर आया है, जो कपास के फावे के बीच कच्चे बीज के पास अपने अंड़े देता है। इसके निम्प व प्रौढ़ कच्चे बीज का रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। वैसे तो दुनिया में इन कीटों को खाने वाले कम ही कीट देखे गए हैं, लेकिन यहां की महिलाओं ने काले बाणिये के बच्चे व अंड़ों का भक्षण करते हुए लेड़ी बिटल का गर्भ ढूंढ़ लिया है। इसके अलावा महिलाओं ने सुंदरो, मुंदरो नामक जारजटिया समूह के मासाहारी कीटों को भी ढूंढ़ा है। महिलाओं ने कपास की फसल में चेपे के आक्रमण की शुरूआत के साथ ही चेपे का भक्षण करने वाले ङ्क्षसगड़ू नामक लेड़ी बिटल के बच्चे भी देखे। 
कीट ज्ञान में हासिल की माहरत
ललीतखेड़ा व निडाना गांव की महिलाओं ने अपने कीट ज्ञान में वृद्धि करने के लिए लैंस, कापी व पैन को अपना औजार बनाया है। फसल में कीट सर्वेक्षण के दौरान महिलाएं लैंस की मार्फत फसल में मौजूद छोटे-छोटे कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों को अपनी नोट बुक में दर्ज कर अपने कीट ज्ञान में वृद्धि करती हैं। अपनी सुझबुझ व पैनी नजर से इन महिलाओं ने कीट ज्ञान में माहरत हासिल की है। 
उर्वकों का कम प्रयोग कर लेती हैं अच्छा उत्पादन
 फसल में कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं।

 लाल बाणिये का शिकार करते हुए मटकू बुगड़ा। 
इन मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने कीट ज्ञान ही नहीं बल्कि कम उर्वरकों का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लेने के गुर भी सीखे हैं। महिला किसानों द्वारा फसल में उर्वक सीधे जमीन में डालने की बजाये उर्वरकों का घोल तैयार कर पत्तों पर उनका छिड़काव किया जाता है। इससे उर्वरकों की बचत भी होती है और उत्पादन में भी वृद्धि होती है। इसमें सबसे खास बात यह है कि इन महिलाओं ने पांच माह की फसल में अभी तक एक छटाक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। 




आबकारी विभाग ने शराब ठेकेदारों को दी लूट की खुली छूट

रात्रि को समय पर नहीं बंद होते शराब के ठेके

विभाग के अधिकारियों को नहीं नियमों की जानकारी

नरेंद्र कुंडू
जींद। आबकारी विभाग ने शराब ठेकेदारों को लूट की खुली छूट दे रखी है। विभाग द्वारा आबकारी नीति के तहत शराब के न्यूनतम रेट तो तय किए जाते हैं, लेकिन अधिकतम रेट तय करने के लिए कोई प्रावधान नहीं बनाया गया है। अब शराब के न्यूनतम रेट क्या हैं? इसके बारे में भी ग्राहकों को कुछ पता नहीं है। क्योंकि शराब ठेकेदारों द्वारा ठेके के बाहर शराब की बोतल के न्यूनतम रेट की लिस्ट भी नहीं लगाई जाती है। इस प्रकार शराब ठेकेदार आबकारी विभाग की नीति की इस खामी को अपनी ढाल बनाकर खूब चांदी कूटते हैं और शराब की बोतल को कई-कई गुणा रेटों पर बेचा जाता है। इसके अलावा शराब ठेकेदारों द्वारा ठेका खोलने व बंद करने के लिए बनाए गए नियमों की भी खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं। जबकि आबकारी विभाग ने ठेका खोलने व बंद करने के लिए समय सारिणी बनाई हुई है। 
प्रदेश सरकार के राजकोष में हर वर्ष अरबों रुपए का राजस्व जमा करवाने वाले आबकारी विभाग द्वारा शराब ठेकेदारों को शराब के ठेके अलाट कर खुलेआम ग्रहाकों की जेबें तरासने का लाइसैंस दे दिया जाता है। जिसके बाद शराब ठेकेदार अपना पैसा वसूल करने के लिए बिक्री के लिए शराब के रेट अपनी मनमर्जी के अनुसार तय करते हैं और शराब की एक-एक बोतल को न्यूनतम रेट से कई-कई गुणा रेटों पर बेचा जाता है। क्योंकि शराब ठेकेदारों को इस तरह ग्राहकों से पैसे ऐंठने की इजाजत देने के पीछे भी खुद आबकारी विभाग की कमजोर नीति है। आबकारी विभाग द्वारा ठेकेदार को ठेका अलाट करने के बाद शराब की बोतल के न्यूनतम रेट तो तय किए जाते हैं, लेकिन बोतल के अधिकतम रेट तय नहीं किए जाते हैं। शराब की बोतल के न्यूनतम रेटों के बारे में भी ग्राहक को पता नहीं होता, क्योंकि किसी भी शराब के ठेके के बाहर बोतल के न्यूनतम रेट की लिस्ट नहीं लगाई जाती है। बोतल के न्यूनतम रेट की लिस्ट ठेके के बाहर न लगी होने के कारण ठेके पर मौजूद कारिंदे अपने मनमुताबिक रेटों पर शराब बेचते हैं और ग्राहक जानकारी के अभाव में चुपचाप लुटते रहते हैं। 

क्या है ठेके खुले व बंद होने का समय

आबकारी विभाग ने शराब के ठेके खोलने व बंद करने के लिए ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग समय सारिणी बनाई हुई है। लेकिन अधिकतर शराब ठेकेदार विभाग की इस समय सारिणी की पालना नहीं करते हैं। जिस कारण देर रात तक पीने-पिलाने का क्रम जारी रहता है। विभाग ने ग्रामीण क्षेत्र के लिए ठेका खुलने का समय अप्रैल से अक्तूबर माह में सुबह 9 बजे से रात 11 बजे और नवंबर से मार्च माह में सुबह 9 बजे से रात 10 बजे तक का समय तय किए गया है। शहरी क्षेत्र के लिए ठेका खुलने का समय सुबह 9 बजे से रात 12 बजे तक तय किया गया है। 

अपराध को मिलता है बढ़ावा।  

आबकारी विभाग द्वारा ठेके खुलने व बंद करने के लिए तय किए गए समय के अनुसार ठेकेदारों द्वारा ठेके बंद न करने के कारण देर रात्रि तक शराब की बिक्री का क्रम जारी रहता है। जिस कारण मयखानों व सार्वजनिक स्थानों पर भी देर रात तक जाम छलकते रहते हैं। जिसके बाद नशेड़ी प्रवृति के लोग लालपरी के नशे में चूर होकर चोरी, डैकेती, लूटपाट व अन्य आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने से भी नहीं हिचकते हैं। इस प्रकार ठेकेदारों व आबकारी विभाग की लापरवाही के कारण अपराध को भी बढ़ावा मिलता है। 
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ईयर एंड पर लगाए जाते हैं सस्ती शराब के बैनर

साल के अंत में जब आबकारी विभाग द्वारा शराब के नए ठेके अलाट करने के लिए ठेकेदारों से आवेदन मांगे जाते हैं तो पुराने ठेकेदारों द्वारा ग्राहकों को प्रलोभन में फांसने के लिए ठेकों के बाहर सस्ती शराब के बड़े-बड़े बैनर लगाए जाते हैं। लेकिन इससे पहले कभी भी ठेकों पर इस तरह के बैनर या रेट लिस्ट नहीं लगाई जाती। 
बॉक्स 
इस बारे में जब ठेकेदार संदीप रेढ़ू से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि आबकारी विभाग द्वारा शराब के न्यूनतम रेट तय किए जाते हैं। अधिकतम रेट के लिए विभाग की पॉलिसी में कोई प्रावधान नहीं है। साल के अंत में ठेकों के बाहर सस्ती शराब के जो बैनर लगाए जाते हैं, वह नियमों के विरुद्ध है। आबकारी विभाग ऐसे ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई कर ठेके को सील कर सकते हैं। 

बाबू को ही नहीं पता विभाग के नियम

 शराब के ठेके जिनके बाहर न्यूनतम रेट लिस्ट नहीं लगाई गई। 

ठेकों के बाहर रेट लिस्ट लगाने के बारे में पूछताछ के लिए जब यहां के आबकारी विभाग के कार्यालय के अधिकारियों से संपर्क किया गया तो उन्होंने विभाग की नीति का हवाला देते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया। अधिकारियों ने बताया कि आबकारी विभाग की नीति में ठेके के बाहर बोतल के न्यूनतम रेट की लिस्ट लगाने का कोई नियम नहीं है। लेकिन खुद विभाग के आला अधिकारी शराब के ठेके के बाहर रेट लिस्ट लगाने के नियम को अनिवार्य बता रहे हैं। इस प्रकार यहां के आबकारी विभाग के अधिकारी भी ठेकेदारों की इस लूट में बराबर के जिम्मेदार हैं। 

न्यूनतम रेट लिस्ट लगाना अनिवार्य

हरियाणा के आबकारी विभाग की पॉलिसी में शराब के न्यूनतम रेट तय किए जाते हैं, लेकिन अधिकतम रेट तय करने का नियम नहीं है। ठेके के बाहर शराब की बोतल के न्यूनतम रेट की लिस्ट लगाने का नियम विभाग की पॉलिसी में है। अगर किसी ठेके के बाहर न्यूनतम रेट की लिस्ट न लगी हो तो विभाग के अधिकारी उस ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।
अरूण रस्तोगी
आबकारी एवं कराधान आयुक्त


बिना कीट ज्ञान के कीटनाशकों से छुटकारा संभव नहीं : डा. दलाल

खाप पंचायत की 15वीं बैठक में हुई किसान-कीट विवाद की सुनवाई के लिए

नरेंद्र कुंडू
जींद। गीता के चौधे अध्याय में श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा है कि हे पार्थ ज्ञान रूपी हवन सामग्री रूप यज्ञ से बेहतर होता है। इस ज्ञान रूपी गंगा में गोता मारने से सारे पाप कट जाते हैं। इसलिए कहीं भी तत्ववेता मिल जाए तो उसके पैरों में पड़कर भी हमें ज्ञान लेना चाहिए। यह बात किसान खेत पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने निडाना गांव में किसान-कीट विवाद की सुनवाई के लिए आयोजित 15वीं खाप पंचायत की बैठक में आए किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। डा. दलाल ने कहा कि  इसी प्रकार किसानों को भी अपना खुद का ज्ञान पैदा करने के लिए कीट ज्ञान का सहारा लेना चाहिए। बिना कीट ज्ञान के कीटनाशकों से छुटकारा पाना संभव नहीं है। बैठक की अध्यक्षता सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर बैठक में पाबड़ा (हिसार) से कुंडू खाप के प्रधान मुंशीराम कुंडू भी विशेष रूप से मौजूद थे। 
बैठक की शुरूआत के साथ ही किसानों ने फसल में कीट सर्वेक्षण कर कीट बही खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक ने कहा कि यहां के किसानों ने अभी तक कपास की फसल में 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों के आधार पर रसचूसक, पुष्पाहारी, पर्णभक्षी व फलाहारी चार किस्मों में बांटा है। कपास की फसल में 20 किस्म के रस चूसक कीट होते हैं, जिसमें तीन किस्म के कीटों को मेजर, पांच प्रकार के कीटों को सूबेदार मेजर व बाकि के कीटों को आलगोल की कटैगरी में रखा है। मलिक ने बताया कि पंजाब में मिलीबग को मेजर, हरियाणा में सूबेदार मेजर व निडाना के किसान आलगोल मानते हैं। क्योंकि पंजाब के लोग कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग करते हैं। मलिक ने बताया कि जब कीटों पर कीटनाशक का हमला होता है तो कीट अपना जीवनचक्र कम कर अपनी बच्चे पैदा करने की ताकत बढ़ा लेते हैं। जिससे वह कम जीवनकाल में ही अधिक बच्चे पैदाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। करसोला से आए किसान सुरेंद्र ने बताया कि जब से उसने हौंस संभाला है तभी से खेतीबाड़ी से जुड़ा हुआ है। लेकिन फसल में आने वाले कीटों की पहचान न होने के कारण वह सलेटी भूंड को सफेद मक्खी समझकर फसल पर अंधाधूंध कीटनाशकों का छिड़काव करता था, लेकिन पाठशाला में आने के बाद उसने कीटों की पहचान शुरू कर दी है। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि शाकाहारी कीट फसल में जितना नुकसान करते हैं उससे ज्यादा नुकसान तो किसानों के साथ मंडी में घटतोली में हो जाता है। डा. दलाल ने बताया कि प्रयोगरत खेत में प्रत्येक फौवे का वजन 6 ग्राम तक आ रहा है, जिससे फसल की बंपर पैदावार होने का अनुमान बना हुआ है। उन्होंने कहा कि कीटनाशक के प्रयोग से नुकसान की केवल सात प्रतिशत ही भरपाई की जा सकती है। राजपुरा गांव के किसान बलवान ङ्क्षसह ने बताया कि फसल में कीटनाशक के प्रयोग से पौधे की सुगंध छोडऩे की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे भ्रमित होकर एक साथ कई किस्म के कीट फसल में आ जाते हैं। पाठशाला के समापन पर खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। 

बिना कीट खेती संभव नहीं 

 कीटों का बही खाता तैयार करते किसान।

कुंडू खाप के प्रधान को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।

 किसानों को कीटों की पहचान करवाते पाठशाला के मास्टर ट्रेनर। 
खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि दुनिया में एक सीजन में 25 लाख टन कीटनाशकों का प्रयोग होता है। कीटनाशकों के अंधाधूंध प्रयोग से आज कैंसर जैसी लाईंलाज बीमारियां पनप रही हैं। ढांडा ने कहा कि अमेरिका के एक वैज्ञानिक के अनुसार कीटनाशक का केवल एक प्रतिशत भाग ही कीटों पर प्रयोग में आता है, बाकि 99 प्रतिशत बेकार जाता है। ढांडा ने कहा कि बिना कीटनाशक के खेती संभव है, लेकिन बिना कीटों के खेती संभव नहीं है। 




शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

‘लाडो’ के जीवनदान के लिए उठे कदमों में अधिकारियों ने डाली लापरवाही की बेड़ियां

पंचायती राज विभाग के अधिकारियों ने तैयार नहीं किए बीबीपुर गाँव के विकास कार्यों के एस्टीमेट

नरेंद्र कुंडू
जींद।
उत्तर भारत की खाप पंचायतों को एक मंच पर लाकर ‘लाडो’ को जीवनदान दिलवाने की अलख जागाने वाले आईटी विलेज बीबीपुर के विकास कार्यों पर प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही का ग्रहण लग गया है। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मोर्चा खोल कर इस सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने का आह्वान करने पर जहां मुख्यमंत्री ने बीबीपुर पंचायत को एक करोड़ की राशि देकर सम्मानित किया था, वहीं अब जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने बीबीपुर गांव के विकास के लिए एस्टीमेट तैयार न कर एक करोड़ रुपए की राशि पर कुंडली मारी ली है। पंचायत विभाग के तकनीकि विंग ने दो माह बीत जाने के बाद भी विकास कार्यों के एस्टीमेट प्रदेश सरकार को नहीं भेजे हैं। जिस कारण गांव के सभी विकास कार्यों पर ब्रेक लग गए हैं। विभाग के अधिकारी एस्टीमेट भेजने का कार्य कार्यालय का बताकर अपने हाथ खड़े कर रहे हैं।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रदेश की अन्य पंचायतों को राह दिखाने वाली आईटी विलेज बीबीपुर के विकास पर जिला प्रशासनिक अधिकारियों की काली छाया पड़ चुकी है। जिला प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही से पर्दा उस समय उठा जब बीबीपुर गांव के सरपंच सुनील जागलान ने गत बुधवार को चंडीगढ़ जाकर गांव के विकास कार्यों के एस्टीमेटों के बारे में जानकारी जुटाई। अधिकारियों ने सरपंच को बताया कि उनके गांव के विकास कार्यों से संबंधित कोई भी एस्टीमेट अभी तक चंडीगढ़ नहीं पहुंचा है। हालांकि मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मोर्चा खोलने पर बीबीपुर की पंचायत को गत् 15 जुलाई को एक करोड़ रुपए देने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री की घोषणा को धरातल पर उतारने के लिए एचआरडीएफ बोर्ड ने जींद प्रशासन के पंचायत विभाग को गांव की जरूरतों के अनुसार एक करोड़ के विकास कार्यों के एस्टीमेट जल्द से जल्द तैयार करके बोर्ड को भेजने के आदेश जारी किए थे। लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा हुए दो माह से ज्यादा का समय बीत चुका है और जींद प्रशासन के पंचायती राज विभाग के तकनीकि विंग ने अभी तक बोर्ड को एक करोड़ रुपए के एस्टीमेट नहीं भेजे हैं। सरपंच सुनील जागलान ने बताया कि इस प्रकार पंचायती राज विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण गांव के विकास कार्यों की रफ्तार पर अधिकारियों की लापरवाही के ब्रेक लग गए हैं। गांव के विकास कार्यों के लिए राशि जारी न होने से विकास कार्य पूरी तरह से पटरी से उतर गए हैं।
बीबीपुर पंचायत का कहना है कि पंचायत ने संबंधित एसडीओ व जेई को गांव की जरुरत के अनुसार करवाए जाने वाले विकास कार्यों के प्रस्ताव भेज दिए थे। लेकिन इसके बावजूद भी तकनीकि विंग ने एस्टीमेट तैयार करके उच्चाधिकारियों के पास नहीं भेजे हैं। सरपंच का कहना है कि पंचायत द्वारा भेजे गए प्रस्ताव में एक करोड़ रुपए की राशि से गांव की गलियों व फिरनियों को सीमेंट के ब्लॉकों से पक्का करवाने का जिक्र किया गया है। प्रस्ताव तैयार करने के बाद खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी कार्यालय जींद को यह प्रस्ताव भेजा चुका है।

चंडीगढ़ जाकर की थी जांच पड़ताल

बीबीपुर गांव के सरपंच सुनील कुमार जागलान ने बताया कि गत् 26 सितंबर को उन्होंने चंडीगढ़ जाकर पंचायती राज विभाग के अधिकारियों से गांव के एस्टीमेटों के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि एस्टीमेट चंडीगढ़ पहुंचे ही नहीं हैं। जागलान ने बताया कि पंचायत विभाग के तकनीकि विंग को गांव की गलियां व फिरनियों को पक्का करने के एस्टीमेट बनाने के लिए प्रस्ताव एक माह पहले  ही भेज दिया गया था।

क्या कहते हैं अधिकारी

एस्टीमेट तैयार करने का मैटर कार्यालय का है। किसी कारणवश एस्टीमेट बनाने में देरी हो सकती है। एस्टीमेट तैयार होने के तुरंत बाद सरकार को भेज दिए जाएंगे।
नरेंद्र दलाल, कार्यकारी अभियंता
पंचायती राज विभाग, जींद

 तैयार किया जा रहा है  एस्टीमेट

बीबीपुर ग्राम पंचायत के विकास के लिए एक करोड़ के एस्टीमेट तैयार करने का कार्य किया जा रहा है। जैसे ही एस्टीमेट तैयार होंगे उन्हें पंचायत विभाग के मुख्यालय भेज दिए जाएगें। विभाग द्वारा एस्टीमेट बनाने में किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं की जा रही है।
अरविंद बैनिवाल, एसडीओ
पंचायती राज विभाग, जींद


गुरुवार, 27 सितंबर 2012

खाप चौधरियों ने की किसान-कीट मुकद्दमें की सुनवाई


जींद। कीटों व किसान के मुकद्दमे की सुनवाई के लिए मंगलवार को गांव निडाना में चौहदवीं खाप पंचायत का आयोजन किया गया। जिसमें 72 खाप जींद के प्रधान केके मिश्रा, जेवड़ा बरवाला खाप  सूबेसिंह भ्याणा, कृषि विशेषज्ञ डा. करतार सिंह, पशु चिकित्सक डा. राजबीर सिंह ने कीटों की पहचान की। खेत पाठशाला में किसानों ने कीट सर्वेक्षण के बाद कपास की फसल में मौजूद पर्णभक्षी कीटों पर चर्चा की। कीट सर्वेक्षण के बाद किसानों ने कीट बही-खाता भी तैयार किया। कीट-बही खाते में निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा सहित अन्य गांवों के किसानों ने भाग लिया। गांवों से आए किसानों ने अपने-अपने खेत से तैयार किए गए कीटों के आंकड़े भी दर्ज करवाए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बाहरा बारह खाप के अध्यक्ष कुलदीप सिंह ढांडा ने कहा कि किसान बेवजह कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। जिसका फसलों को तनिक भी लाभ नहीं हो रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले एक दशक में कीटनाशकों का प्रयोग अत्याधिक बढ़ा है। जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। खाप चौधरियों ने कॉटन फसल में उन कीटों की पहचान की। जो फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। फसल में चुरड़ा कीट नहीं पाया गया। सफेद मक्खी की संख्या प्रति पौधा काफी कम मिली। तेले की संख्या भी फसल में इतनी नहीं है कि वह फसल को नुकसान पहुंचा सके।खाप चौधरियों ने पाया कि एक पौधे पर टिंडे की संख्या इस समय 76 है। जो पिछली पंचायत में गिने गए टिंडों से चार कम पायी गई है। इसके बावजूद चौधरियों का मानना है कि कॉटन की पैदावार पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा।

 कीटों का सर्वेक्षण करते किसान।

समय पर पौधों को पर्याप्त खुराक देकर पैदावार में की जा सकती है बढ़ोतरी


नरेंद्र कुंडू 
जींद। ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को पूनम मलिक के खेत में महिला किसान पाठशाला का आयोजन किया गया। महिलाओं ने पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के बाद कीट बही खाता तैयार किया। कीट सर्वेक्षण के साथ-साथ महिलाओं ने कपास के पौधों, फूलों, टिंडों व बोकियों की गिनती कर पौधों का भी बही खाता तैयार किया। महिलाओं ने 6 ग्रुप बनाकर 10-10 पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने जामुन के पेड़ के नीचे बैठकर चार्ट पर अपना बही खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने सर्वेक्षण के बाद तैयार किए गए आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए बताया कि कपास के इस खेत में इस सप्ताह शाकाहारी कीटों की संख्या नामात्र है। इस सप्ताह फसल में लाल व काला बानिया ही नजर आए हैं। पूनम मलिक ने महिलाओं को बताया कि उन्होंने कीट सर्वेक्षण के दौरान खेत में लाल व काला बानिए के अंडे भी देखे हैं। पूनम ने बताया कि लाल बानिया अपने अंड़े कपास के पौधे के पास गले-सड़े पत्तों के नीचे व जमीन के ऊपर देता है तथा काला बानिया कपास के खिले हुए टिंडों के अंदर देता है। सविता ने महिलाओं द्वारा किए गए कपास के पौधों के सर्वेक्षण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस प्रयोगधीन खेत में एक पौधे पर औसतन 80 टिंडे, 2 फूल व 22 बोकियां मिली हैं। सविता ने बताया कि अगर इस समय पौधों को पर्याप्त खुराक मिल जाए तो बोकियों, फूलों व टिंडों को अच्छी तरह विकसित कर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। मीना मलिक ने बताया कि पाठशाला में आने वाली महिलाओं को अभी तक अपने खेत में एक बूंद भी कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत नहीं पड़ी है। महिलाओं ने बताया कि उनके लिए बड़ी खुशी की बात है कि उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते खुद का ज्ञान पैदा कर कीटनाशकों को धूल चटा दी है। 

टीवी के माध्यम से सिखाएंगी जहर से मुक्ति के गुर

 पाठशाला में मास्टर ट्रेनर के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं।

: कपास की फसल में कीट सर्वेक्षण करती महिलाएं। 
महिला किसान पाठशाला के अलावा महिलाएं टीवी के माध्यम से भी किसानों के साथ अपने अनुभव बांटेंगी। वीरवार को लोकसभा चैनल पर सायं 5.30 बजे ‘ज्ञान दर्पण’ कार्यक्रम में, शुक्रवार को सायं 5.30 बजे ‘सार्इंस दिस वीक’ कार्यक्रम में तथा सोमवार को डीडी नैशनल चैनल पर सायं 6.30 बजे ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम में किसानों को कीट नियंत्रण के माध्यम से जहर से छुटकारा पाने के गुर सिखाएंगी। 


बुधवार, 19 सितंबर 2012

कीट विज्ञान से ही किसानों ने पैदा किया है कीट ज्ञान


  किसान पाठशाला में खाप चौधरियों ने की किसान-कीट विवाद की सुनवाई

नरेंद्र कुंडू 
जींद। ज्ञान, विज्ञान और तकनीक देश के विकास की धूरी होती हैं। ज्ञान व विज्ञान को जनता पैदा करती और यह जनता के ही काम आता है। लेकिन तकनीक व्यापार को ध्यान में रखकर पैदा की जाती है और तकनीक जनता की बजाए पैदा करने वाले के ही काम आती है। यह बात कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की 13वीं बैठक में कही। बैठक की अध्यक्षता सर्वखाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर बैठक में कुंडू खाप कालवा के प्रधान सुभाष कुंडू, प्रसिद्ध समाजसेवी देवव्रत ढांडा, बागवानी विभाग से डीएचओ डा. बलजीत भ्याणा व पेहवा से आए प्रगतिशील किसान शीतल राम भी मौजूद थे।
डा. दलाल ने कहा कि देश में 26 से भी ज्यादा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटियां हैं और इन यूनिवर्सिटियों की स्थापना देश में तकनीक को बढ़ावा देने के लिए ही की गई थी। डा. दलाल ने कहा कि आज कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों का जो प्रयोग बढ़ रहा है वह भी तकनीक का ही एक हिस्सा है। लेकिन निडाना के किसानों ने कोई नई तकनीक अपनाने की बजाए कीट विज्ञान को अपना कर अपना खुद का कीट ज्ञान पैदा किया है। उन्होंने कहा कि कीट ज्ञान का मतलब फसल में कीटों के क्रियाकलापों को समझना व कीटों का परखना है। पाठशाला की शुरूआत फसल में कीट सर्वेक्षण से की गई। कीट कमांडो किसानों ने कीटों का सर्वेक्षण कर खाप प्रतिनिधियों के सामने फसल में मौजूद कीटों का आंकड़ा रखा। इस दौरान आस-पास के गांवों से आए किसानों ने कीट बही खाते में अपने-अपने कपास के खेत से तैयार किए गए फल, फूल व बोकी का आंकड़ा भी दर्ज करवाया। किसानों द्वारा दर्ज करवाए गए आंकड़े में फल की प्रति पौधा औसत 60 से 80, फूल की 1 से 3 तथा बोकी की 7 से 12 की औसत आई। र्इंटल कलां से आए किसान चतर सिंह ने बताया कि इस समय पौधे को फूल व बोकी की बजाए फल की ज्यादा चिंता रहती है। ताकि भविष्य में भी उसकी वंशवृद्धि हो सके। इसलिए पौधा बोकी व फूल की बजाए फल की तरफ ज्यादा ध्यान देता है। इस समय पौधे को ज्यादा खुराक की जरुरत होती है। इसलिए किसानों को इस समय पौधे को पर्याप्त मात्रा में खुराक देने के लिए जिंक, यूरिया व डीएपी का छिड़काव करना चाहिए। किसान अजीत ने बताया कि जिंक, यूरिया व डीएपी के छिड़काव का प्रभाव चार घंटे में ही नजर आने लगता है, जबकि जमीन में डाले गए खाद का प्रभाव तीन से चार दिन बाद नजर आता है। अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने बताया कि उसकी पोली हाऊस में लगी शिमला मिर्च की फसल में ग्रास होपर का प्रकोप काफी बढ़ गया था। जिससे भयभीत होकर उसने फसल में कीटनाशक का स्प्रे किया, लेकिन कीटनाशक से भी अच्छा परिणाम नहीं मिला। इसके बाद उसने पोली हाऊस में मकड़ियां छोड़ दी और मकड़ियों ने बड़ी आसानी से ग्रास होपर को कंट्रोल कर लिया। किसान सुरेश ने बताया कि उन्होंने रामकली व चाबरी गांव में कीटनाशक रहित 57 एकड़ धान की फसल में 307 पौधों का निरीक्षण किया था। जिसमें से मात्र सात पौधों पर ही गोभ वाली सुडियां थी। जबकि जिन किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग किया है उनकी फसल में इन सुडियों की तादात ज्यादा है। किसानों ने बैठक में आए खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर उनका स्वागत किया गया।

चैनल की टीम ने भी किसानों के अनुभव को किया कैमरे में कैद

लोकसभा चैनल दिल्ली की टीम ने मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर किसानों के अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। चैनल की असिस्टैंट डायरेक्टर प्रिंयका ने एडिटर अमल, प्रोडेक्शन एसिस्टेंट शनि व कैमरामैन मुन्ना के साथ गुरुवार को प्रसारित होने वाले विज्ञान दर्पण तथा शुक्रवार को प्रसारित होने वाले साइंस दिस विक कार्यक्रम की शूटिंग के लिए यहां पहुंची थी। चैनल की टीम ने सुबह आठ से 12 बजे तक निडाना में किसान खेत पाठशाला के किसानों तथा 12 बजे से दोपहर दो बजे तक ललीतखेड़ा में महिला किसानों के क्रियाकलापों व उनके अनुभव की रिकार्डिंग की।



 कीट सर्वेक्षण के बाद बही खाते में कीटों के आंकड़े दर्ज करवाते किसान।  

 खाप प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।

 महिला किसान खेत पाठशाला में कार्यक्रम के लिए शूटिंग करती चैनल की टीम।

 चैनल की टीम को स्मृति चिह्न भेंट करती महिलाएं।


धान की फसल पर पाइरिला के डंक का कहर


 कृषि विभाग के अधिकारी कीटनाशकों की बजाए खाद के स्प्रे के प्रयोग की दे रहे हैं सलाह 

नरेंद्र कुंडू
जींद। धान की फसल में पाइरिला के निम्प (अल्ल) की दस्तक के कारण धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ने लगी हैं। पाइरिला के डंक ने किसानों के सपनों में सेंध लगा दी है। फिलहाल पाइरिला ने ज्वार व गन्ने की फसलों के आस-पास की धान की फसलों में दस्तक दी है। फसल में पाइरिला के प्रकोप के कारण किसानों को फसल की सुरक्षा की चिंता सताने लगी है। किसान अचानक धान की फसल में हुए पाइरिला के निम्प के प्रकोप से इजाद पाने की तरकीब ढुंढ़ रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को धान की फसल को पाइरिला के निम्प के प्रकोप से बचाने के लिए किसी प्रकार के कीटनाशक की बजाए पोटास, यूरिया व जिंक के मिश्रण के स्प्रे का प्रयोग करने की सलाह दे रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि धान की फसल में मौजूद मासाहारी कीट ही पाइरिला के लिए कीटनाशक का काम करते हैं। 
किसान रामकुमार, दयाकिशन, रामकरण ने बताया कि पाइरिला के निम्प ने उनकी फसल में दस्तक दे दी है। पाइरिला के आक्रमण के कारण उनकी धान की फसल सुखने लगी है। किसानों का कहना है कि पाइरिला कीट को धान की फसल में वो पहली बार देख रहे हैं। इससे पहले उन्होंने इस कीट को ज्वार व गन्ने की फसल में देखा है। किसानों का कहना है कि अभी तक यह कीट केवल ज्वार व गन्ने की फसल के आस-पास वाले धान के खेतों में नजर आया है।

रस चूसक कीट है पाइरिला

कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि पाइरिला के प्रौढ़ व बच्चे दोनों ही शाकाहारी कीट हैं। इस कीट के पीछे दो पूंछ होती हैं और इसके मुहं के स्थान पर डंक होता है, जिसकी सहायता से यह पत्तों का रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाता है। इस कीट का रंग सफेद होता है और यह बिल्कुल मच्छर के आकार का होता है। पाइरिला कीट ज्वार व गन्ने की फसल में ज्यादा पाया जाता है। इस समय ज्वार की फसल के पत्ते सुख जाने के कारण उनमें रस कम रह जाता है। इसलिए यह अपनी वंशवृद्धि के लिए दूसरी फसल की तरफ अपना रूख कर लेता है। 

क्या करें किसान

: धान के पौधों पर मौजूद पाइरिला कीट। 
कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि किसानों को इस कीट से डरने की जरुरत नहीं है। इस कीट को कंट्रोल करने के लिए धान की फसल में काफी संख्या में मासाहारी कीट मौजूद होते हैं। धान की फसल में मौजूद परजीवी कीट इसकी पीठ पर बैठकर इसका खून पी कर इसका खात्मा कर देते हैं। इसके अलावा धान की फसल में मौजूद लोपा, तुलसा व डायन मक्खियां इसके प्रौढ़ व इसके शिशुओं का उड़ते हुए शिकार करती हैं। पाइरिला कीट पंख वहिन होता है और यह फुदक कर एक जगह से दूसरी जगह जाता है। इसलिए धान की फसल में मौजूद मासाहारी कीट पाइरिला के प्रौढ़ व शिशुओं का बड़ी आसानी से शिकार कर लेते हैं। पाइरिला के प्रकोप के कारण धान के पौधों में केवल रस की कमी हो सकती है और रस की कमी के कारण ही पौधा सुखता है। किसान पौधों में रस की कमी को पूरा करने के लिए अढ़ाई किलो पोटास, अढ़ाई किलो यूरिया व आधा किलो जिंक का 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर धान की फसल में स्प्रे करें। इससे पौधों में रस की कमी पूरी हो जाएगी और धान की फसल पर पाइरिला के अटैक का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। 


शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

जाटों ने आरक्षण की मांग को लेकर खींची एलओसी


नरेंद्र कुंडू
जींद। पिछले चार वर्षों से आरक्षण की मांग को लेकर सरकार के साथ चल रही खिंचतान के बाद आखिरकार वीरवार को जाटों ने आरक्षण के लिए 15 दिसंबर तक का अल्टीमेटम देकर सरकार के समक्ष जाटों को आरक्षण देने की एलओसी (लाइन आॅफ कंट्रोल) यानि नियंत्रण रेखा खींच दी है। सर्वखाप जाट महापंचायत के नेतृत्व में नरवाना के दनौदा गांव स्थित बिनैन खाप के ऐतिहासिक चबूतरे पर एकत्रित हुए सात प्रदेशों के जाटों ने सरकार के समक्ष यह एलओसी खींच कर सरकार को आरक्षण के लिए तीन माह का समय दिया है। यदि इन तीन माह के अंदर सरकार ने प्रदेश में जाटों को आरक्षण देकर केंद्र सरकार से भी जाटों को आरक्षण देने की सिफारिश नहीं की तो 16 दिसंबर को जाट आरक्षण के लिए जंग की रणभेरी बजाते हुए मैदान में उतर आएंगे। और जाटों की इस जंग में इनका अगला पड़ाव होगा प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गृहक्षेत्र रोहतक या सोनीपत जिला। 

आरक्षण के लिए जाटों को एक मंच पर लाने के लिए नरवाना के दनौदा गांव के ऐतिहासिक चबूतरे पर वीरवार को हुई सर्वखाप जाट महापंचायत ने आरक्षण को लेकर प्रदेश सरकार के समक्ष एलओसी खींच दी है। सर्वजातीय 
आंदोलन के दौरान शहीद हुए तीनों वीरों को पुष्पार्पित करते खाप प्रतिनिधि।

सर्वखाप पंचायत के प्रधान नफे सिंह नैन की अध्यक्षता में बिनैन खाप के ऐतिहासिक चबूतरे से आरक्षण के लिए होने वाली इस पंचायत में अकेले हरियाणा ही नहीं बल्कि सात प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। पंचायत की शुरूआत आंदोलन के दौरान शहीद हुए सुनील श्योरण, विजय कड़वासरा, संदीप कड़वासरा को श्रद्धा सुमन अर्पित कर की। इन प्रतिनिधियों ने भरी पंचायत में सर्वखाप जाट महापंचायत को अपना पूरा समर्थन देने का ऐलान किया। इतना ही नहीं खाप पंचायत ने आरक्षण के लिए सरकार के साथ पिछले चार वर्षों से जद्दोजहद करने वाले जाटों के चारों संगठनों को एक मंच प्रदान किया है। इससे चार वर्षों से रेंग रहे जाट आरक्षण के मुद्दे को खाप पंचायत ने अब पहिये लगाकर रफ्तार देने का काम भी किया है। विभीन्न खापों से आए खाप प्रधान व प्रतिनिधियों ने मंच से ऐलान करते हुए कहा कि अगर प्रदेश सरकार ने 15 दिसंबर तक प्रदेश में जाटों को आरक्षण देकर केंद्र सरकार से भी आरक्षण देने की सिफारिश नहीं की तो खाप पंचायत को मजबूरीवश 16 दिसंबर 
 मंच पर मौजूद विभिन्न खापों से आए प्रतिनिधि।

से आरक्षण की मांग को लेकर जंग का ऐलान करना पड़ेगा। आरक्षण के मुद्दे पर अगर खाप पंचायत को सरकार का रवैया नकारात्मक नजर आया तो खाप पंचायत नवंबर माह में बैठक कर अपने आंदोलन की अगली रणनीति भी  तैयार कर सकते हैं। हालांकि खाप प्रतिनिधियों साथ-साथ यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उनका यह आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक रहेगा, लेकिन इस दौरान अगर फिर भी किसी तरह की अनहोनी घटना घटी तो उसके लिए सारी जिम्मेदारी सरकार की होगी। खाप प्रधानों ने सरकार को चेताते हुए कहा कि 16 दिसंबर के बाद वह अपनी जंग की शुरूआत प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गृहक्षेत्र से करेंगे। रोहतक जिले से आए हुड्डा खाप के कार्यकारी अध्यक्ष व सोनीपत 360 के प्रधान ने  भी खाप पंचायत को उनके इस आंदोलन में पूरा सहयोग करने का आश्वासन दिया। खाप पंचायत में खाप प्रतिनिधियों ने खाप के लिए एक झंडा बनाने की मांग भी की। पंचायत में दलजीत पंघाल ने पिछले चार वर्षों के दौरान आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन में घायल हुए लोगों को 21-21 हजार रुपए देने की घोषण  भी की। 

पंचायत में ये रखे गए प्रस्ताव

महापंचायत में सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत हरियाणा के प्रवक्ता सूबे सिंह समैण ने चार प्रस्ताव रखे। पंचायत में रखे प्रस्ताव में खाप प्रतिनिधियों ने मांग की कि प्रदेश सरकार 15 दिसंबर तक जाटों को आरक्षण दे तथा इसको 
पंचायत में मौजूद पुरुष व महिलाएं।

तुरंत प्रभाव से लागू करें। इस दौरान हरियाणा सरकार केन्द्रीय सेवाओं में जाटों को आरक्षण देने के लिए केंद्र सरकार से  भी सिफारिश करे। अन्यथा 16 दिसंबर को सर्व जाट खाप पंचायत के नेतृत्व में स भी जाटों को साथ लेकर प्रदेश व केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। दूसरे प्रस्ताव में केंद्र सरकार से मांग की है कि हरियाणा तथा अन्य प्रदेशों के जाटों को शीघ्र आरक्षण देने की घोषणा करे अन्यथा सभी राज्यों के जाट संयुक्त रुप से आंदोलन करेंगे। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया कि जाट कौम शुरू से ही न्यायप्रिय रही है और न्याय के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानियां दी है। लेकिन आज तक देश के सर्वोच्च न्यायालय में कोई भी जाट कौम का न्यायाधीश नहीं बनाया गया है। इसलिए केन्द्र सरकार से मांग है कि सर्वोच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में जाट कौम के किसी सुयोग्य अधिवक्ता को न्यायाधीश बनाएं। इसके अलावा राष्ट्रीय की सुरक्षा में बलिदान देने वाले शहीदों में जाट कौम के लोगों की सबसे बड़ी संख्या रही है। लेकिन इस कौम का हमेशा ही दुर्भाग्य रहा है कि सेना की तीनों कमानों में आज तक कोई  भी जाट कौम से संबंध रखने वाला व्यक्ति सेना प्रमुख नहीं बना है। इसलिए इनकी नियुक्ति में भेदभाव को खत्म किया जाए और भविष्य में जाट कौम के व्यक्ति को भारतीय सेना के प्रमुख पद पर नियुक्त किया जाए। इसके अलावा केन्द्र सरकार में जाट कौम का कोई भी मंत्री नहीं है, इसलिए जाट कौम से संबंध रखने वाले किसी सांसद 
पंचायत में मौजूद पुरुष।

को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए। चौथे प्रस्ताव   में विधि आयोग के सदस्य अमरजीत सिंह द्वारा खापों को डैकेत कहने पर रोष जताया और कहा कि डैकेत कहना बड़ी गैर संसदीय भाषा है। जिससे उत्तर भारतीय के सभी जाति के लोगों को गहरी ठेस पहुंची है। इसलिए केन्द्र सरकार विधि आयोग के सदस्य अमरजीत सिंह को तुरंत प्रभाव से हटाए। पंचायत में मौजूद स भी खाप प्रतिनिधियों ने हाथ उठाकर इन चारों प्रस्तावों का समर्थन किया।

आंदोलनकर्त्ताओं पर दर्ज हुए मामले वापिस ले सरकार

महापंचायत में खाप प्रतिनिधियों ने पिछले चार सालों के दौरान आरक्षण की मांग को लेकर हुए आंदोलन करने वाले आंदोलनकर्त्ताआें पर दर्ज हुए मामलों को वापिस लेने की मांग की। अखिल भारतीय जाट संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष धर्मपाल छौत ने कहा कि आरक्षण उनका हक है और वे इसे लेकर रहेंगे। छौत ने कहा कि पिछले चार वर्षों के दौरान आरक्षण की मांग को लेकर उनके द्वारा किए गए स भी आंदोलन शांतिपूर्वक थे, लेकिन फिर  भी सरकार ने आंदोलनकर्त्ताओं को परेशान करने के लिए उन पर झूठे मुकद्दमे दर्ज करवा दिए हैं। जिसे तुरंत वापिस लिया जाए। 

चार वर्ष पहले जींद से ही हुआ था आंदोलन का शंखनाद

सर्व जातीय सर्व खाप पंचायत के प्रवक्ता सूबे सिंह समैन ने कहा कि 14 मार्च 2008 को जींद से ही जाट आरक्षण का शंखनाद हुआ था। जिसके बाद प्रदेश में कई बार जाटों ने आरक्षण के लिए संघर्ष किया। लेकिन उस वक्त जाट एकजूट नहीं थे, जिस कारण आंदोलन सफल नहीं हो सके। लेकिन अब जाट आरक्षण के लिए संघर्षरत चारों गुट एकजुट हो गए हैं और जिनकी बागडोर खाप पंचायत ने अपने हाथ में ले ली है। जाटों के एकजुट होने के बाद अब दोबारा फिर जींद से ही आंदोलन की शुरूआत हुई है। इसलिए अब इस आंदोलन को कोई  भी ताकत नहीं रोक सकती। 
दनौदा गांव के ऐतिहासिक चबूतरे का प्रवेश द्वार 

किसी राजनैतिक रैली से कम नहीं थी खाप पंचायत की बैठक

दनौद गांव के ऐतिहासिक चबूतरे पर हुई सर्वखाप जाट महापंचायत की बैठक किसी राजनैतिक रैली से कम नहीं थी। रैली में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी मौजूद थी। रैली में लगभग दस हजार लोगों की उपस्थिति का अनुमान लगाया जा रहा है। खाप पंचायत द्वारा लोगों की सुविधा के लिए किए गए इंतजाम काबिले तारीफ थे। पंचायत में खान-पान की स भी सुविधाएं पूरी व्यवस्थित थी। इसमें सबसे खास बात यह थी कि पंचायत में वालिइंटियर की जिम्मेदारी छोटे-छोटे बच्चों ने संभाल रखी थी।