शनिवार, 28 अप्रैल 2018

दोहरी नीति का शिकार हो रही हिन्दी

नरेन्द्र कुंडू 
जब से मानव अस्तित्व में आया तब से ही भाषा का उपयोग कर रहा है चाहे वह ध्वनि के रूप में हो या सांकेतिक रूप में। भाषा हमारे लिए बोलचाल व संप्रेषण का माध्यम होती है। भाषा राष्ट्र की एकता, अखंडता तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश में प्रचलित विविध भाषाएं व बोलियां हमारी संस्कृति, उदात्त परंपराओं, उत्कृष्ट ज्ञान एवं विपुल साहित्य को अक्षुष्ण बनाये रखने के साथ ही वैचारिक नवसृजन हेतु भी परम आवश्यक है। विविध भाषाओं में उपलब्ध साहित्य की अपेक्षा कई गुना अधिक ज्ञान गीतों, लोकोत्तिफ़यों तथा लोक कथाओं की मौखिक परंपरा के रूप में होता है। यदि राष्ट्र को सशक्त बनाना है तो एक भाषा होनी चाहिए। प्रत्येक विकसित तथा स्वाभिमानी देश की अपनी एक भाषा अवश्य होती है। किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उसे ही बनाया जाता है जो उस देश में व्यापक रूप में फैली होती है। हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी भारत के ज्यादातर राज्यों में प्रमुख रूप से बोली जाती है। हिन्दी भाषा के विकास में संतों, महात्माओं तथा उपदेशकों का योगदान भी कम नहीं आंका जा सकता। क्योंकि वह आम जनता के अत्यंत निकट होते हैं। इनका जनता पर बहुत बड़ा प्रभाव होता है। हमारा फिल्म उद्योग तथा संगीत हिन्दी भाषा के आधार पर ही टिका हुआ है। 4 सितम्बर 1949 को संविधान की भाषा समिति ने हिंदी को राजभाषा के पद पर आसीन किया क्योंकि भारत की बहुसंख्यक जनता द्वारा हिन्दी भाषा का प्रयोग किया जा रहा था। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हिन्दी भाषा में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं ने देश को आजाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई तथा भारतीयों को एक सूत्र में बांधे रखा। स्वतंत्रता के पश्चात् भले ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा व राजभाषा का दर्जा दिया गया लेकिन भाषा के प्रचार व प्रसार के लिए सरकार द्वारा सराहनीय कदम नहीं उठाए गए। अंग्रेजी भाषा का प्रयोग अनवरत चलता रहा। भले ही आज विश्व के सभी महत्वपूर्ण देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। परन्तु विडंबना यह है कि विश्व में अपनी अच्छी स्थिति के बावजूद हिन्दी भाषा अपने ही घर में उपेक्षित जिंदगी जी रही है। आज विविध भारतीय भाषाओं व बोलियों के चलन तथा उपयोग में आ रही कमी, उनके शब्दों का विलोपन व विदेशी भाषाओं के शब्दों से प्रतिस्थापन एक गम्भीर चुनौती बन कर उभर रहा है। अपने देश में अंग्रेजी बोलने वालों को तेज-तर्रा, बुद्धिमान व हिन्दी बोलने वालों को अनपढ़, गवार जताने की परम्परा रही है। राजनेताओं द्वारा हिन्दी को लेकर राजनीति की जा रही है। जब भी हिन्दी दिवस आता है, हिन्दी को लेकर लम्बे-लम्बे वक्तव्य देकर हिन्दी पखवाड़े का आयोजन कर इतिश्री कर ली जाती है। हिन्दी हमारी दोहरी नीति का शिकार हो चुकी है। यही कारण है कि हिन्दी आज तक व्यावहारिक दृष्टि से राष्ट्र भाषा नहीं बन पाई है। देश की विविध भाषाओं तथा बोलियों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिये सरकारों, नीति निर्धारकों, स्वैच्छिक संगठनों व समस्त समाज को सभी संभव प्रयास करने चाहियें।

रविवार, 4 मार्च 2018

‘विद्यार्थियों में बढ़ता तनाव’

नरेंद्र कुंडू 
प्रसिद्ध चिंतक अरस्तू ने कहा था कि आप मुझे 100 अच्छी माताएं दें तो मैं तुम्हें अच्छा राष्ट्र दूंगा। मां के हाथों में राष्ट्र निर्माण की कुंजी होती है किंतु आज ऐसी माताओं व सोच की कमी महसूस हो रही है। जीवन स्तर बढ़ने के साथ-साथ भौतिक प्रतिस्पर्धा भी अपने चरम पर है, जिसका दुष्प्रभाव तनाव युत्तफ़ जीवनशैली से आत्महत्या का बढ़ता चलन देखने में आ रहा है। बड़े दुःख  विषय है आज विद्यार्थियों में लगन व मेहनत से विद्या ग्रहण करने की प्रवृत्ति लुप्त होती जा रही है। वे जीवन के हर क्षेत्र में शॉर्टकट मार्ग अपनाना चाहते हैं और असफल रहने पर गलत कदम उठा लेते हैं। आजकल अभिभावक भी बच्चों पर पढ़ाई और करियर का अनावश्यक दबाव बनाते हैं। वे ये समझना ही नहीं चाहते की प्रत्येक बच्चे की बौद्धिक क्षमता भिन्न होती है जिसके चलते हर विद्यार्थी कक्षा में प्रथम नहीं आ सकता। बाल्यकाल से ही बच्चों को यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि असफलता ही सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। बच्चों में आत्मविश्वास की कमी भी एक बहुत बड़ा कारक है। आज खुशहाली के मायने बदल रहे हैं अभिभावक अपने बच्चाें को हर क्षेत्र में अव्वल देऽने व सामाजिक दिखवे के चलते उन्हें मार्ग से भटका रहे हैं। वास्तविकता यह है कि गरीब बच्चे फिर भी संघर्षपूर्ण जीवन में मेहनत व हौंसले के बलबूते अपनी मंजिल पा ही लेते हैं। किन्तु अक्सर धन-वैभव से भरे घरों में अधिक तनाव का माहौल होता है और एक-दूसरे से अधिक अपेक्षाएं रखी जाती हैं। शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चे वक्त से पहले परिपक्व हो रहे हैं। इसके फलस्वरूप वे अपने निर्णय स्वयं लेना चाहते हैं और अपने द्वारा लिए गए निर्णयों के अनुसार अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होने पर आत्महत्या का निर्णय ले लेते हैं। आज परिवार अपने मौलिक स्वरूप से भटक कर आधुनिकतावाद की बलिवेदी पर होम हो रहे हैं। अभिभावकों को समझना होगा कि बच्चे मशीन या रोबोट नहीं है। बच्चाें को बचपन से अच्छे संस्कार दिये जाने चाहिएं ताकि वे अपनी मंजिल खुद चुनें किन्तु आत्मविश्वास न खोएं। आज की शिक्षा बच्चो को डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर तो बना देती है परंतु वह चरित्रवान इंसान बने, इसकी उपेक्षा करती है। एक पक्षी को ऊंची उड़ान भरने के लिए दो सशक्त पंखों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दोनों प्रकार की शिक्षा अपने बच्चों को देनी होगी। सांसारिक शिक्षा उसे जीविका योग्य और आध्यात्मिक शिक्षा उसके जीवन को मूल्यवान बनाएगी। 

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

कलेंडर बदलिए अपनी संस्कृति नहीं

नरेंद्र कुंडू 
जनवरी आने से पहले ही सब नववर्ष की बधाई देने लगते हैं। मानो कितना बड़ा पर्व हो। नया केवल एक दिन ही नहीं कुछ दिन तो नई अनुभूति होनी ही चाहिए। आखिर हमारा देश त्यौहारों का देश है। ईस्वी-संवत् का नया साल एक जनवरी को और भारतीय नववर्ष (विक्रमी संवत्) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। आइये देखते हैं दोनों का तुलनात्मक अंतर।
1- प्रकृति: एक जनवरी को कोई अंतर नहीं जैसा दिसंबर वैसी जनवरी। वहीं चैत्र मास में चारों तरफ फूल खिल  जाते हैं, पेड़ाें पर नए पत्ते आ जाते हैं। चारों तरफ हरियाली मानो प्रकृति नया साल मना रही हो।
2- मौसम, वस्त्र: दिसंबर व जनवरी में वही वस्त्र, कंबल, रजाई, ठिठुरते हाथ पैर लेकिन चैत्र मास में सर्दी जा रही होती है, गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है।
3- विद्यालयों का नया सत्र: दिसंबर-जनवरी में वही कक्षा, कुछ नया नहीं। जबकि मार्च-अप्रैल में स्कूलाें का परिणाम आता है। नई कक्षा, नया सत्र यानि विद्यालयों में नया साल।
4- नया वित्तीय वर्ष: दिसंबर- जनवरी में कोई खातों की क्लोजिंग नहीं होती। जबकि 31 मार्च को बैंकों की क्लोजिंग होती है। नए बही खाते खोले जाते हैं। सरकार का भी नया सत्र शुरू होता है।
5- कलैंडर: जनवरी में नया कलैंडर आता है। चैत्र में नया पंचांग आता है। उसी से सभी भारतीय पर्व, विवाह और अन्य महूर्त देखे जाते हैं। इसके बिना हिंदू समाज जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता।
6- किसानों का नया साल: दिसंबर-जनवरी में खेतों में वही फसल होती है। जबकि मार्च-अप्रैल में फसल कटती है। नया अनाज घर में आता है तो किसानों का नया वर्ष और उत्साह होता है।
7- पर्व मनाने की विधि: 31 दिसंबर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर शराब पीते हैं, हंगामा करते हैं, रात को पी कर गाड़ी चलने से दुर्घटना की सम्भावना, रेप जैसी वारदात, पुलिस प्रशासन बेहाल और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश। जबकि भारतीय नववर्ष व्रत से शुरू होता है। पहला नवरात्र होता है घर-घर में माता रानी की पूजा होती है। शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है।
8- ऐतिहासिक महत्व: एक जनवरी का कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं है। जबकि चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत, भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्रे प्रारम्भ, ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का सम्बंध इस दिन से है। एक जनवरी को अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख और अंग्रेज मानसिकता के लोगों के अलावा कुछ नहीं बदला। अपना नव संवत् ही नया साल है। जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य-चांद की दिशा, मौसम, फसल, कक्षा, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तियां, किसान की नई फसल, विद्यार्थियों की नई कक्षा, मनुष्य में नया रत्तफ़ संचरण आदि परिवर्तन होते हैं। जो विज्ञान आधारित हैं। इसलिए अपनी मानसिकता को बदलें। विज्ञान   आधारित भारतीय काल गणना को पहचानें। स्वयं सोचें की क्यों मनाये हम एक जनवरी को नया वर्ष?

‘प्राचीन भारत का विज्ञान’

नरेंद्र कुंडू 
आज पश्चिम जगत तरह-तरह से दंभ भरता है और नए-नए आविष्कारों को लेकर हर समय अपनी पीठ थपथपाता रहता है। आज पश्चिम को यह गर्व है कि लगभग सभी बड़े आविष्कार उन्हीं ने किये और कहीं ना कहीं बाकी दुनिया को वह हेय दृष्टि से देखते हैं। लेकिन क्या जिन आविष्कारों पर पश्चिमी देश और वैज्ञानिक अपना दावा ठोकते हैं, क्या उन पर वाकई उनका आधिपत्य माना जाना चाहिए? अगर हमारे देश का इतिहास और पौराणिक कथाएं देखें तो उनमें ऐसे बहुत से आविष्कार, यान, सूत्र, सारणी आदि का प्रयोग और उनका ज्ञान दिया गया है, जिसे सुन और पढ़कर आधुनिक विज्ञान भी दांतों तले उंगलियां दबा लेता है। पौराणिक कथाओं में वर्णित ऋषि-मुनि विज्ञान की खोज  पहले उन चमत्कारों को दर्शा चुके थे, जिन्हें विज्ञान अपना आविष्कार मानता है। फर्क बस इतना है कि पहले इन्हें चमत्कारों की श्रेणी में रखा जाता था और अब यह वैज्ञानिक करामात बन गए हैं। वैदिक काल के लोग खगोल विज्ञान का अच्छा ज्ञान रखते थे। वैदिक भारतीयों को 27 नक्षत्रें का ज्ञान था। वे वर्ष, महीनों और दिनों के रूप में समय के विभाजन से परिचित थे। वे अपने यज्ञ तथा अन्य धर्मिक अनुष्ठान ग्रहों की स्थिति के अनुसार शुभ लग्न देखकर किया करते थे। शुभ लग्न जानने के लिए उन्होंने खगोल विज्ञान का विकास किया था। वे सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणायन गति से परिचित थे। महाभारत में भी खगोल विज्ञान से सम्बंधित जानकारी मिलती है। महाभारत में चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की चर्चा है। इस काल के लोगों का ग्रहों के विषय में भी अच्छा ज्ञान था। परन्तु आज भारत की सबसे बड़ी बिड़म्बना यह है कि कुछ कुंठित बुद्धिजीवी इन्हें मात्र कहानी मानते हैं। यह बुद्धिजीवी तो इतने मानसिक रूप से गुलाम बन चुके हैं कि बिना कुछ सोचे-समझे और अध्ययन किये ही इन सबको काल्पनिक करार दे देते हैं। जबकि खुद अब्दुल कलाम ने कई बार कहा है कि उन्हें प्राचीन भारतीय ग्रंथों से मिसाइल बनाने की प्रेरणा मिली थी। अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी कई बार प्राचीन भारतीय ग्रंथो की भूरी-भूरी प्रशंसा की है। कुछ समय पूर्व हिस्टरी चैनल ने यह रहस्योघाटन किया था कि हिटलर प्राचीन भारतीय ग्रंथो पर अध्ययन कर ‘‘टाइम मशीन’’ बनाना चाहता था। यह एक अलग बात है कि किन्हीं कारणों से इनका श्रेय पाश्चात्य वैज्ञानिकों को मिला है। जबकि वास्तविकता यह है कि दुनिया को ज्ञान-विज्ञान भारत की ही देन है।  लेकिन चिंता इस बात की है आज हम अपनी विज्ञान आधारित संस्कृति को भूल कर पश्चिमी संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। पश्चिमी नव वर्ष पर तो हम एक माह पहले बधाइयों के संदेश भेजने शुरू कर देते हैं लेकिन अपने भारतीय नव वर्ष को भूल बैठे हैं। आज हमें अपना कैलेंडर बदलने की जरूरत है, संस्कृति बदलने की नहीं।

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

भारत की महान संस्कृति

नरेंद्र कुंडू 
                  किसी भी देश के विकास में उसकी संस्कृति का बहुत योगदान होता है। देश की संस्कृति, उसके मूल्य, लक्ष्य, प्रथाएं उसका प्रतिनिधित्व करते हैं। भारतीय संस्कृति कभी कठोर नहीं रही। इसलिए यह आधुनिक काल में भी गर्व के साथ जिंदा है। ‘अनेकता में एकता’ कोई शब्द नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी चीज है जो भारत जैसे सांस्कृतिक और विरासत में समृद्ध देश पर पूरी तरह लागू होती है। कुछ आदर्श वाक्य या बयान, भारत के उस दर्जे को बयां नहीं कर सकते जो उसने विश्व के नक्शे पर अपनी रंगारंग और अनूठी संस्कृति से पाया है। मौर्य, चोल और मुगल काल और ब्रिटिश साम्राज्य के समय तक भारत हमेशा से अपनी परंपरा और आतिथ्य के लिए मशहूर रहा। रिश्तों में गर्माहट और उत्सवों में जोश के कारण यह देश विश्व में हमेशा अलग ही नजर आया। इस देश की उदारता और जिंदादिली ने बड़ी संख्या में सैलानियों को इस जीवंत संस्कृति की ओर आकर्षित किया, जिसमें धर्मों, त्योहारों, खान-पान, कला, शिल्प, नृत्य, संगीत और कई चीजों का मेल है। ‘देवताओं की इस धरती’ में संस्कृति, रिवाज और परंपरा से लेकर बहुत कुछ खास रहा है। ‘भारतीय जीवनशैली प्राकृतिक और असली जीवनशैली की दृष्टि देती है। भारतीय संस्कृति विशाल है व इसमें हर प्रकार के रंग और जीवंतता है। यह देश कई सदियों से सहिष्णुता, सहयोग व अहिंसा का जीवंत उदाहरण रहा है और आज भी है। इसके विभिन्न रंग इसकी विभिन्न विचारधाराओं में मिलते हैं। भारत का इतिहास भाईचारे व सहयोग के उदाहरणों से भरा पड़ा है। इतिहास में अलग-अलग समय में विदेशी हमलावरों के कई वार झेलने के बाद भी इसकी संस्कृति व एकता कभी नहीं हारी और हमेशा कायम रही। समय के साथ चलते रहना भारतीय संस्कृति की सबसे अनूठी बात है। यहां सड़क किनारे शो से लेकर थियेटर में एक अत्यंत प्रबुद्ध नाटक तक सबकुछ कलात्मक है। भारतीय संस्कृति सम्पूर्ण मानव समुदाय के विकास क्रम की सम्यक चेष्टाओं का भंडार है और इसीलिए इसे किसी सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। भारतीय संस्कृति की अपनी विशेषताएं हैं, अपना इतिहास है और अपनी गाथा है। साहित्यकार, कलाकार व कलमकार (पत्रकार) अपनी कला के माधयम से युवा पीढ़ी को भारत की महान संस्कृति के दर्शन करवा कर राष्ट्रहित में अपना योगदान दे सकते हैं।   



मंगलवार, 22 अगस्त 2017

'कीट ज्ञान की पाठशाला में एक दिन के विद्यार्थी बनेंगे भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी'

जहरमुक्त खेती के मॉडल को देखने के लिए सितंबर में निडाना आएंगे वरिष्ठ नेता जोशीकार्यक्रम में हरियाणा के अलावा पंजाब के किसान भी होंगे शामिल
कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर बनाई रणनीति

नरेंद्र कुंडू 
जींद। थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जींद जिले से शुरू हुई कीट ज्ञान की मुहिम को बारिकी से समझने के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी किसान खेत पाठशाला में एक दिन के विद्यार्थी बनेंगे। मुरली मनोहर जोशी सितंबर माह में जींद जिले के निडाना गांव का दौरा करेंगे। इसको लेकर कीटाचार्य किसानों ने कार्यक्रम की रणनीति पर अमल शुरू कर दिया है। कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर सोमवार को शहर की अर्बन एस्टेट कॉलोनी स्थित जाट धर्मशाला में कीटाचार्य किसानों की एक बैठक हुई। इस बैठक में हरियाणा के अलावा पंजाब के किसानों ने भी भाग लिया। बैठक के दौरान रणनीति तैयार की गई कि भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी को बंद कमरे में मुहिम की जानकारी देने की बजाए खेतों में चल रही पाठशाला में ही मांसाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान करवाएंगे। इसके अलावा कीट ज्ञान की मुहिम को दूसरे प्रदेशों के किसानों तक पहुंचाने के लिए भी कीटाचार्य किसानों ने विचार-विमर्श किया।
गौरतलब है कि फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग को कम कर खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जींद जिले के निडाना गांव में वर्ष २००८ में डॉ. सुरेंद्र दलाल ने किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की थी। इस पाठशाला में किसानों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथाा शाकाहारी कीटों की पहचान करव कर तथा उनके क्रियाकलापों की जानकारी देकर जागरूक किया जा रहा है। ताकि किसान फसल में मौजूद कीटों से भयभीत होकर फसल में किसी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करंे। निडाना गांव से शुरू हुई कीट ज्ञान की इस मुहिम से किसानों को काफी सकारात्मक परिणाम मिले हैं। इससे किसानों का कीटनाशकों पर खर्च तो कम हुआ ही है साथ में पैदावार में भी बढ़ौतरी हुई। फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से किसानों को जहर से भी मुक्ति मिली। पिछले 9 वर्षों से चल रही यह मुहिम अब हरियाणा के साथ-साथ पंजाब में भी फैल चुकी है। कीट ज्ञान की इस मुहिम को सरकार तक पहुंचाने के लिए गत माह जींद जिले के कीटाचार्य किसान भाजपा किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष नरेश सिरोह के नेतृत्व में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी से उनके आवास पर मिले थे। मुरली मनोहर जोशी ने कीटाचार्य किसानों से सितंबर माह में निडाना में आकर किसान खेत पाठशाला का दौरा करने का आश्वासन दिया था। कीटाचार्य किसानों ने सोमवार को जाट धर्मशाला में बैठकर कर भाजपा नेता के दौरे की तैयारियों को लेकर रणनीति बनाई है। बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा तथा कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक ने बताया कि मुरली मनोहर जोशी के साथ वह निरंतर संपर्क में हैं और जल्द ही निडाना के उनके दौरे का दिन व समय भी निश्चित हो जाएगा। उन्होंने बताया कि सितंबर में होने वाले इस कार्यक्रम में हरियाणा के साथ-साथ पंजाब के किसान भी इसमें शामिल होंगे। बैठक में सर्वसम्मति से यह फैसला भी किया गया है कि यह कार्यक्रम किसी बंद कमरे में करने की बजाए खेत में चल रही किसान पाठशाला में किया जाएगा। पाठशाला में मुरली मनोहर जोशी को किसानों की कार्य पद्धति से रूबरू करवाया जाएगा। ताकि उनकी मार्फत जल्द से जल्द उनकी मांग सरकार तक पहुंच सके। 

दूसरे प्रदेशों में भी चलेंगी पाठशालाएं

कीटाचार्य रणबीर मलिक तथा सेवानिवृत्त जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से जींद के अलावा हिसार, फतेहाबाद, बरवाला तथा पंजाब के लगभग 10 जिलों में उनकी किसान खेत पाठशालाएं चल रही हैं। उनकी पाठशालाओं से हजारों किसान प्रशिक्षण प्राप्त कर कीटनाशकों का प्रयोग छोड़ चुके हैं। किसान खेत पाठशालाओं की बढ़ती मांग को देखते हुए अलग वर्ष हरियाणा व पंजाब के अलावा आस-पास के दूसरे प्रदेशों में भी किसान खेत पाठशालाएं चलाने की योजना तैयार की गई है। 
 

शनिवार, 5 अगस्त 2017

शीतकालीन सत्र में संसद में छाएगा निडाना का कीट ज्ञान का मॉडल

भाजपा के वरिष्ठ नेता जोशी हरियाणा के राज्यपाल व सीएम को चिट्टी लिखकर कीट मॉडल को प्रोत्साहित करने की करेंगे सिफारिस
--सितम्बर में कीट ज्ञान के मॉडल को देखने के लिए जींद आएंगे मुरली मनोहर जोशी

नरेंद्र कुंडू 

जींदजिले के निडाना गांव से शुरू हुई कीट ज्ञान की मुहिम आगामी शीतकालीन सत्र में संसद में चर्चा का विषय बनेगी। संसद में निडाना के कीट ज्ञान के मॉडल पर प्रदर्शनी लगाई जाएगी तथा इस दौरान सांसदों को भी कीटों का पाठ पढ़ाया जाएगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने इस मामले को सिरे चढ़ाने के लिए भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोह को जिम्मेदारी सौंपी है। संसद शीतकालीन सत्र से पूर्व मुरली मनोहर जोशी स्वयं निडाना आकर कीट ज्ञान मॉडल को देखेंगे। इस दौरान वह यहां के किसानों के साथ बैठक कर उनके अनुभव भी जानेंगे। वहीं कीट ज्ञान के इस मॉडल को प्रोत्साहित करने के लिए भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी हरियाणा के राज्यपाल प्रो. कप्तान ङ्क्षसह सोलंकी तथा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को चिट्टी भी लिखेंगे ताकि फसलों में अंधाधुंध प्रयोग होने वाले कीटनाशकों को रोककर खाने की थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके। 


गौरतलब है कि गत दिवस डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन का एक प्रतिनिधि मंडल भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही के नेतृत्व में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी से दिल्ली स्थित उनके आवास पर मिला था। इस दौरान बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा तथा समूह के प्रधान रणबीर मलिक ने भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए वर्ष 2008 में जींद जिले के निडाना गांव में कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने यहां के किसानों के साथ मिलकर कीटों पर शोध शुरू किया था। इस दौरान उन्होंने किसानों के साथ मिलकर 206 किस्म के कीटों की पहचान की। इनमें 163 किस्म के मांसाहारी तथा 43 किस्म के शाकाहारी कीट शामिल हैं। उन्होंने बताया कि न तो कीट हमारे मित्र होते हैं और न ही शत्रु। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को आकर्षित करते हैं। जब उनकी जरूरत पूरी हो जाती है तो वह शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीटों को आकर्षित कर लेते हैं। मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर उन्हें स्वयं ही नियंत्रित कर लेते हैं। शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने बताया कि फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करने से कीटों की संख्या कम होने की बजाए बढ़ती है। क्योंकि कीटनाशकों के छिड़काव से पौधे की गंध छोडऩे की क्षमता प्रभावित होती है। उन्होंने यह भी बताया कि फसलों में अत्याधिक कीटनाशकों का प्रयोग होने के कारण फसलों में जहर का स्तर लगातार बढ़ रहा है। हमारा खान-पान दूषित होने के कारण दिन-प्रतिदिन मनुष्य भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ रहा है तथा कई प्रकार की लाइलाज बीमारियां अपने पैर पसार रही हैं। रणबीर मलिक ने बताया कि वर्ष 2008 में निडाना से शुरू हुई यह मुहिम अब हरियाणा के साथ-साथ पंजाब में भी फैल चुकी है। यदि सरकार इस मुहिम को देशभर में लागू कर दे तो सरकार के हर वर्ष कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों की सब्सिडी पर खर्च होने वाले करोड़ों रुपए बच जाएंगे। वहीं हमारा खान-पान भी दूषित नहीं होगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने किसानों के साथ लगभग डेढ़ घंटे तक बातचीत कर व बारिकी से उनके अनुभव समझने के बाद संसद के शीतकालीन सत्र में कीटों की प्रदर्शनी लगाने तथा सांसदों को भी इस मुहिम से रूबरू करवाने का आश्वासन दिया। इसके लिए भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही को जिम्मेदारी भी सौंपी। वहीं उन्होंने हरियाणा प्रदेश के राज्यपाल कप्तान ङ्क्षसह सोलंकी तथा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को चिट्टी लिखकर इस मुहिम को प्रोत्साहित करने का आश्वासन भी दिया। कीट ज्ञान के इस मॉडल को समझने के लिए भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने किसानों का जींद आने का निमंत्रण भी स्वीकार किया। भाजपा नेता सितंबर माह में स्वयं जींद आएंगे और किसानों के अनुभव सुनेंगे। 





शनिवार, 24 जून 2017

इंग्लैंड व अमेरिका के लोगों की पसंद बनी अटेरना की बेबी कॉर्न

खेती में अटेरना के कंवल सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान
नरेंद्र कुंडू 
सोनीपत। हरियाणा के प्रतिष्ठित किसानाें की सूची में शामिल 55 वर्षीय अटेरना निवासी कंवल सिंह चौहान ने खेती के बूते अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। अपनी मेहनत के बल पर कंवल सिंह दर्जनभर से भी ज्यादा पुरस्कार हासिल कर चुका है। इतना ही नहीं गांव में ही स्थित कंवल सिंह की फूड प्रोसेसिंग कंपनी से हर रोज लगभग डेढ़ टन बेबी कॉर्न व अन्य उत्पाद इंग्लैंड व अमेरिका में सप्लाई हो रहे हैं। पर्यावरण नियंत्रण की राष्ट्रीय समिति के सदस्य कंवल सिंह चौहान ने बताया कि 1978 में पिता के देहांत के बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी। उस समय उनकी उम्र महज 15 वर्ष थी और वह दसवीं कक्षा में पढ़ते थे। 
इसके बाद उन्होंने खेती के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। 1996 में उन्होंने राइस मिल लगाया लेकिन वहां सफलता नहीं मिली। वह पूरी तरह से कर्ज में डूब चुके थे। इसके बाद उन्हाेंने अपनी परंपरागत खेती छोड़ कर 1998 में मशरूम व बेबी कॉर्न की खेती शुरू की। मशरूम व बेबी कॉर्न से अच्छी आमदनी हुई। इसके बाद उन्होंने  कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। खेती के साथ-साथ मधु मक्खी पालन भी शुरू कर दिया। कंवल सिंह ने स्वयं के साथ-साथ दूसरे किसानाें को भी बेबी कॉर्न की खेती के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते गांव के दूसरे किसानों ने भी बेबी कॉर्न की खेती शुरू कर दी। किसानाें को बेबी कॉर्न को बेचने के लिए किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हो इसके लिए कंवल सिंह ने गांव में ही फूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू कर दी। जिसका उद्घाटन नार्वे के कृषि एवं खाद्य मंत्री लार्स पेडर ब्रेक ने वर्ष 2009 में किया। लगभग दो एकड़ में स्थित इस यूनिट में बेबी कॉर्न, स्वीट कॉर्न, पाइनएपल, फ्रूट कॉकटेल, मशरूम बटन, मशरूम स्लाइस सहित लगभग आठ प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाते हैं।  इस यूनिट से प्रति दिन लगभग डेढ़ टन बेबी कॉर्न व अन्य उत्पाद इंग्लैंड व अमेरिका में निर्यात होता है। इस कार्य में उनके बड़े बेटे जैनेन्द्र जो कि फूड प्रोसेसिंग मे बीटेक हैं उनका पूरा साथ दे रहे हैं। इस समय इनके साथ 10 गांव के 136 किसान सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं जिनको यह न्यूनतम समर्थन मूल्य देकर उपज खरीदने का वादा करते हैं। कंवल सिंह का कहना है कि रासायन ऽाद आधारित खेती व कीटनाशकों की अधिकता खेती की लागत बढ़ा रही है। इसकी जगह यदि हम पशु आधारित तथा स्वयं द्वारा तैयार खाद का प्रयोग करें तो खेती किसानाें के लिए घाटे का सौदा नहीं रहेगी। 

व्यवसायिक खेती ने बदली किसानों की तकदीर

बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न की खेती से अटेरना और मनोली के किसानों से विदेशों में भी बनाई पहचान 
नरेंद्र कुंडू 
सोनीपत।

आज खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है। खेती में लागत अधिक होने तथा पैदावार कम होने के कारण किसान खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं। लेकिन हरियाणा प्रदेश के सोनीपत जिले के दो गांव ऐसे हैं, जहां के किसानाें ने हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के नक्शे पर अपनी सफलता की छाप छोड़ी है। दिल्ली-चंडीगढ़ नेशनल हाईवे-1 पर स्थित बहालगढ़ से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित अटेरना तथा पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित मनोली के किसानाें ने खेती को व्यवसाय के तौर पर अपना लिया है। इन गांवाें के किसानों ने अपनी परंपरागत खेती को छोड़कर बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न की खेती को अपनी आमदनी का जरिया बनाया है। इतना ही नहीं बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न के उत्पादन में इन दोनों गांवों के किसानों ने इतनी प्रसिद्धी हासिल की है कि विदेशों से भी किसान यहां खेती का प्रशिक्षण लेने के लिए आते हैं। मनोली गांव निवासी दिनेश ने बताया कि बीएससी की  पढ़ाई के बाद से उसने नौकरी की बजाए खेती को व्यवसाय के तौर पर अपनाया। दिनेश ने बताया कि पहले उनके गांव मनोली में ज्यादातर क्षेत्र में धान की खेती होती थी। भारी मात्र में भूजल का दोहन होता था। इससे गांव का भूजल स्तर काफी नीचे चला गया था। इसको देखते हुए उसने खेती में कुछ अलग करने की ठानी। 1998 में स्ट्राबेरी की खेती शुरू की। इसके बाद उसने अपने दोस्त अरूण के साथ मिलकर स्वीट कॉर्न की खेती शुरू की। शुरूआत में मार्केटिंग को लेकर थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन बाद में फूड प्रोसेसिंग कंपनियों के साथ सीधे सम्पर्क होने से उनकी मार्केट की समस्या भी खत्म हो गई। देखते ही देखते स्वीट कॉर्न की खेती उनके लिए फायदे का सौदा साबित होने लगी। इसके बाद उन्होंने दूसरे किसानाें को भी इसके लिए प्रेरित किया। उन्हाेंने बताया कि 4500 की आबादी वाले इस गांव के अधिकतर किसान स्वीट कॉर्न की खेती कर रहे हैं। इससे फसलाें में कीटनाशकाें का प्रयोग बिल्कुल बंद हो गया। पानी की लागत कम होने से भूजल का दोहन बंद हो गया। जमीन का स्वास्थ्य स्तर सुधरने लगा। वातावरण स्वच्छ होने लगा। गांव में ही लोगाें को रोजगार मिलने से गांव से लोगाें का पलायन बंद हो गया। पशुआें को पूरे साल हरा चारा मिलता है, इससे पशुओं के दूध उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोतरी हुई है।

अब बागवानी के लिए भी करेंगे किसानों को प्रेरित 
किसान अरुण, दिनेश, जयद्रथ, प्रवीण व पवन ने बताया कि उन्होंने किसानों का एक ग्रुप बनाया हुआ है। इस ग्रुप में शामिल सभी किसानों द्वारा अपने खेतों में पॉली हाऊस भी लगाए हुए हैं। पॉली हाऊस में उगने वाली सब्जियों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए बॉयोगैस से निर्मित देशी खाद का प्रयोग करते हैं। इस खाद को घोल कर ड्रिप के जरिये पानी के साथ सब्जियों पर इसका छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा कुछ किसानों द्वारा बाग भी लगाए हुए हैं। सब्जियों व स्वीट कॉर्न की खेती के साथ-साथ अब वह किसानाें को बागवानी के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं।
फसल चक्र बदलने से इन गांवों को यह हुआ फायदा
 फसल चक्र में बदलाव से जमीन का स्वास्थ्य स्तर सुधरा है। धान की रोपाई बंद होने से पानी की बचत हुई है। पशुओं के लिए हर माह हरा चारा प्रचुर मात्र में उपलब्ध रहता है। कीटनाशकों का प्रयोग बंद हो गया है। वातावरण में सुधार हुआ है। गांव में ही लोगों को रोजगार मिलने से गांव के लोगों का पलायन रूका है। कैश की फसल का चलन बढ़ने से गांव का आर्थिक स्तर सुधरा है। फूड प्रोसेसिंग कंपनियाें द्वारा सब्जियों के उत्पादन के लिए सीधे किसानों से संपर्क किए जाने से किसानाें को उत्पाद बेचने के लिए एक नई मार्केट उपलब्ध हो गई। बाजार भाव कम रहने के दिनों में प्रोसेसिंग प्लांट में फसल बेचने से आर्थिक नुक्सान नहीं होता।
किसान की फूड, फीड, फोडर, फ्रयूल, फाइनेंस की चिंता खत्म
सेवानिवृत्त कृषि वैज्ञानिक डॉ- साईं दास ने कहा कि अटेरना व मनोली के किसानों ने आस-पास के क्षेत्रें में भी रोजगार की असीमित संभावनाएं पैदा कर यह दिखा दिया है कि स्वप्न केवल देखने के लिए ही नहीं होते किंतु उन्हें धरातल पर भी उतारा जा सकता है। आने वाला समय मक्का खेती का है।। क्योंकि इसमें पानी की लागत तथा रसायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग नामात्र है और आर्थिक लाभ अधिकतम है। किसान को फूड, फीड, फोडर, फ्रयूल, फाइनेंस की चिंता करने की भी आवश्यकता नहीं है। यदि हम खेती में संतुलित पोषक तत्व डालते रहें तो हमें अनावश्यक खर्चों से निजात मिल जाएगी।


किसानों द्वारा 10 वर्षों से हो रहा कीटों पर शोध

फसल में कीट ज्ञान पद्धति अपना कर किसान चार गुना तक कम कर सकते हैं लागत 
थाली को जहरमुक्त बनाने की जींद के किसानाें की अनूठी मुहिम

नरेंद्र कुंडू 
जींद।
किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलाें में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकाें व कीटनाशकाें का प्रयोग किया जाता है। इससे फसल में लागत अधिक बढ़ती जा रही है और उत्पादन कम होता जा रहा है। इससे किसान कर्ज के दलदल में फंसकर आर्थिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं। लेकिन जींद जिले के किसानों द्वारा फसल में लागत को कम कर उत्पादन बढ़ाने के लिए कीट ज्ञान की अनोखी पद्धति इजाद की गई है। यहां के किसान पिछले दस वर्षों से फसलों में मौजूद कीटों पर शोध कर रहे हैं। वर्ष 2008 में कृषि विकास अधिकारी डॉ- सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में निडाना गांव में कीटों पर शोध का कार्य शुरू किया गया था। इस मुहिम के साथ आस-पास के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के पुरुष व महिला किसान जुड़े हुए हैं। कीटाचार्य रणबीर मलिक, सुरेश,  रामदेवा, जगमेंद्र, सविता, अंग्रेजो, मनीषा इत्यादि का कहना है कि फसल के लिए भी कीट जरूरी हैं क्योंकि कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को आकृषित करते हैं। कीट दो प्रकार के होते हैं। एक शाकाहारी तथा दूसरे मांसाहारी। शाकाहारी पौधों, फल, फूलों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं तो मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। यदि किसान शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए किसी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करे तो मांसाहारी कीट उन्हें स्वयं ही नियंत्रित कर लेते हैं। कीटनाशकाें के प्रयोग से कीटों की संख्या कम होने की बजाए उल्टी बढ़ती है। मांसाहारी कीट फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। उन्होंने अभी तक 43 किस्म के शाकाहारी तथा 163 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों से फसल पर पड़ने वाले प्रभाव पर काफी गहराई से शोध किया है। उत्पादन बढ़ाने में कीटनाशकों का कोई योगदान नहीं है। उत्पादन बढ़ाने के लिए पौधों को पोषक तत्व की जरूरत पड़ती है। इनकी इस पद्धति पर मोहर लगाने वालीो राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि इन किसानों द्वारा चलाई जा रही कीट ज्ञान की पद्धति को अपनाकर किसान फसल मे रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों पर होने वाले खर्च को चार गुणा तक कम कर डेढ़ गुणा तक उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। वहीं   रासायनिक उर्वरकों से दूषित होने वाले खान-पान व वातावरण को भी बचाया जा सकता है।


पंजाब में भी दे रहे कीट ज्ञान का प्रशिक्षण
पिछले दो वर्षों से जींद जिले के कीटाचार्य किसान अपने खर्च पर पंजाब के भठिंडा, मानसा व बरनाला जिलों में किसान खेत पाठशालाएं चलाकर किसानों को कीट ज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं। कीट ज्ञान के सहारे किसानों द्वारा कपास, धान, गेहूं, गन्ना तथा सब्जियों की फसलों में बिना कीटनाशकाें का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लिया जा रहा है।  





सोमवार, 16 जनवरी 2017

ऐसे कैसे होगा गांवों का विकास

--अभी तक 301 में से महज 15 पंचायतों की जीपीडीपी हुई तैयार

--बिना जीपीडीपी के पंचायतों को नहीं मिल पाएगी विकास के लिए ग्रांट

--छह माह पहले दिए थे जीपीडीपी बनाने के आदेश

नरेंद्र कुंडू
जींद।
गांवों के विकास का खाका तैयार करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) में पंचायत अधिकारी व ग्राम सचिव रूची नहीं दिखा रहे हैं। जीपीडीपी योजना के शुरू होने के छह माह बाद भी अभी तक जिले के 301 ग्राम पंचायतों में से महज 15 ग्राम पंचायतों की ही जीपीडीपी तैयार हो पाई है। ग्राम पंचायजों की जीपीडीपी तैयार नहीं होने के कारण गांव के विकास कार्यों पर ब्रेक लग गए हैं।  

यह है जीपीडीपी योजना 

ग्राम पंचायतों द्वारा पहले बिना प्लानिंग के ही विकास कार्य करवाए जाते थे। गांव के विकास के लिए किसी तरह की कोई प्लानिंग नहीं होती थी। केवल ग्राम सभा में ही गांव के विकास कार्यों पर चर्चा की जाती थी। पंचायत के पास विकास कार्यों की प्लानिंग नहीं होने के कारण कई बार सबसे जरूरी कार्य नहीं हो पाते थे। इस समस्या को दूर करने तथा गांवों का विकास करवाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गत वर्ष मई माह में ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) शुरू की गई थी। इस योजना के तहत ग्राम पंचायत द्वारा गांव में एक वर्ष में होने वाले विकास कार्यों की रूपरेखा तैयार की जानी थी। ताकि सबसे ज्यादा जरूरी कार्यों को प्राथमिकता के आधारा पर पूरा करवाया जा सके। ग्राम पंचायत द्वारा तैयार की गई विकास कार्यों की लिस्ट के आधार पर ही सरकार द्वारा गांव के विकास के लिए ग्रांट जारी की जानी है। ग्राम पंचायत द्वारा तैयार की गई विकास कार्यों की लिस्ट के आधार पर ग्राम सचिव द्वारा गांव के विकास की जीपीडीपी तैयार कर विभाग की वेबसाइट पर अपलोड की जानी है। इसी जीपीडीपी के आधार पर गांव के विकास के लिए ग्रांट जारी होगी और यह ग्रांट केवल इसी कार्य पर खर्च हो सकेगी। 

 विकास कार्यों की रूपरेखा तैयार की जानी है।

ग्राम पंचायत तथा ग्राम सचिव द्वारा जीपीडीपी के तहत गांव में एक वर्ष में होने वाले विकास कार्यों की रूपरेखा तैयार की जानी है। जीपीडीपी में तैयार की गई प्लानिंग के आधार पर गांव में जो सबसे जरूरी कार्य होते हैं पहले उन विकास कार्यों के लिए सरकार द्वारा ग्रांट जारी की जानी है। ताकि गांव के जरूरी कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करवाया जा सके। अभी तक जिले की 15 पंचायतों की जीपीडीपी तैयार हुई है। सभी पंचायत अधिकारियों व ग्राम सचिवों को जल्द से जल्द जीपीडीपी तैयार करने के आदेश दिए गए हैं। जल्द ही सभी की जीपीडीपी तैयार करवाकर वेबसाइट पर डलवा दी जाएगी।

वेबसाइड पर डाली गई गांव के विकास के लिए तैयार की गई जीपीडीपी।
शंकर गोयल, जिला पंचायत एवं विकास अधिकारी
जींद

पीने के पानी की समस्या के समाधान के तैयार किया था प्रस्ताव

गांव में पीने के पानी की गंभीर समस्या है। पीने के पानी की समस्या के समाधान के लिए पंचायत ने गांव में पेयजल सप्लाई शुरू करवाने के लिए पाइप लाइन दबवाने के लिए प्रस्ताव तैयार कर बीडीपीओ के पास भेजा था लेकिन अभी तक उनके प्रस्ताव पर कोई अमल नहीं हुआ है। 
शीशपाल सरपंच,
ग्राम पंचायत कुचराना कलां

 गंदे नालों का नहीं हो पाया निर्माण

गांव में गंदे पानी की निकासी की समस्या गंभीर है। गलियों में गंदा पानी भरा रहने के कारण गलियों में कीचड़ पनप रहा है। गंदे पानी की निकासी के लिए गंदे नालों के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत ने प्रस्ताव तैयार कर प्रशासन को भेजा था लेकिन अभी तक उनके प्रस्ताव पर कोई अमल नहीं हुआ है और न ही प्रशासन की तरफ से नालों के निर्माण के लिए कोई ग्रांट आई है।
राजकुमार, सरपंच
ग्राम पंचायत बिघाना

अलेवा व उचाना फिसड्डी, जुलाना व पिल्लूखेड़ा से एक-एक ही पंचायत की हुई जीपीडीपी तैयार

गांवों के विकास कार्यों के लिए केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई जीपीडीपी को तैयार करने के लिए अलेवा व उचाना सबसे फिसड्डी हैं। अभी तक अलेवा व उचाना से एक भी ग्राम पंचायत की जीपीडीपी तैयार नहीं हो पाई है। पिल्लूखेड़ा तथा जुलाना से केवल एक-एक ही ग्राम पंचायत की जीपीडीपी तैयार हुई है। जीपीडीपी तैयार करने में नरवाना ब्लॉक सबसे आगे है। 15 में से अकेली 11 जीपीडीपी नरवाना ब्लॉक की तैयार हुई हैं।
बॉक्स
अभी तक इन-इन गांवों की हुई है जीपीडीपी तैयार
ब्लॉक का नाम        पंचायत का नाम
जुलाना                खरेंटी
जुलाना                रामकली
नरवाना                बरटा
नरवाना                धाबीटेक सिंह
नरवाना                धनौरी
नरवाना                डिंडोली
नरवाना                फरैन कलां
नरवाना                हमीरगढ़
नरवाना                कान्हाखेड़ा
नरवाना                कर्मगढ़
नरवाना                नारायणगढ़
नरवाना                नेहरा
नरवाना                रेवर
पिल्लूखेड़ा                आलनजोगीखेड़ा
सफीदों                खेड़ाखेमावती

ओलंपिक में गोल्ड लाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो खोल दिया अखाड़ा

रेलवे की नौकरी के साथ अपने खर्च पर पहलवान तराश रहा नरेंद्र

--देश को मैडल दिलवाने के लिए अखाड़े में बहा रहे हैं पसीना

--कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल जीत चुका है नरेंद्र

--नरेंद्र की उपलब्धियों को देखते हुए सरकार ने 2000 में भीम अवार्ड से किया सम्मानित

नरेंद्र कुंडू
जींद। ओलंपिक गेम में गोल्ड लाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो पहलवान नरेंद्र ने खुद का अखाड़ा शुरू कर दिया। अब देश को ओलंपिक में गोल्ड दिलवाने के लिए अपने खर्च पर पहलवानों को तरास रहा है। हालांकि दो दशक पहले कॉमनवेल्थ गेम में नरेंद्र ने देश की झोली में गोल्ड मैडल डालने का काम किया था। कुश्ती में देश को अधिक से अधिक मैडल दिलवाने के लिए नरेंद्र खिलाडिय़ों के साथ अखाड़े में दिन-रात पसीना बहा रहा है। नरेंद्र का सपना कुश्ती में देश को ओलंपिक में गोल्ड दिलवाने का है। इसलिए पहलवान नरेंद्र बिना किसी प्रकार की सरकारी सहायता के अपने खर्च पर यह अखाड़ा चला रहा है। इस समय नरेंद्र के अखाड़े में दो दर्जन से भी अधिक खिलाड़ी कुश्ती का प्रशिक्षण ले रहे हैं। हाल ही में दिल्ली में आयोजित ग्रेपलिंग चैंपियनशिप में भी नरेंद्र के तीन पहलवानों ने गोल्ड, सिल्वर व रजत पदक जीत कर देश में प्रदेश व जिले का नाम रोशन करने का काम किया है। कुश्ती के क्षेत्र में नरेंद्र की उपलब्धियों को देखते हुए सरकार द्वारा वर्ष 2000  में नरेंद्र को भीम अवार्ड से नवाजा जा चुका है।  
  अपने अखाड़े में खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देते पहलवान नरेंद्र।

पूर्वजों से विरासत में मिले कुश्ती के गुर

गांव पड़ाना निवासी नरेंद्र पहलवान ने बताया कि उसे कुश्ती के गुर अपने पूर्वजों से विरासत में मिले हैं। उसके पिता मीर सिंह तथा चाचा दिलबाग सिंह भी कुश्ती के अच्छे पहलवान थे। नरेंद्र ने अपने चाचा दिलबाग से कुश्ती का प्रशिक्षण प्राप्त कर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहराया। नरेंद्र ने 1984 में पहली बार जिला स्तरीय चैंपियनशिप में प्रतिभागिता की थी और इस प्रतियोगिता में नरेंद्र ने गोल्ड मैडल हासिल किया था। इसके बाद नरेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुश्ती के क्षेत्र में नरेंद्र के उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखते हुए रेलवे ने 1992  में नरेंद्र को चीफ टिकट इंस्पेक्टर (सीटीआई) के पद पर नौकरी दे दी।
अपने अखाड़े में खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देते पहलवान नरेंद्र।

खेल में राजनीति के कारण ओलंपिक में नहीं ले पाया हिस्सा

पहलवान नरेंद्र ने बताया कि खेलों में आज भी राजनीति होती है और पहले भी राजनीति होती थी। कोच अपने चहेतों को आगे बढ़ाने के लिए अच्छे खिलाडिय़ों को नजरअंदाज कर देते हैं। नरेंद्र ने बताया कि अब खेलों में वीडियोग्राफी शुरू होने से पारदर्शिता को बढ़ावा मिला है। जबकि पहले वीडियोग्राफी नहीं होती थी। इसलिए कोच पहले अपनी मनमर्जी चलाते थे। वह खुद भी कई बार कोच की मनमर्जी का शिकार हुए हैं। कोच की राजनीति के चलते ही वह ओलंपिक में भाग नहीं ले पाए। नरेंद्र ने बताया कि खेल में राजनीति के चलते ही उसे इंटरनेशनल कुश्ती में जबरदस्ती हरवा दिया गया था। नरेंद्र ने बताया कि ओलंपिक में देश को गोल्ड दिलवाने के अपने सपने को साकार करने के लिए ही उसने अपना अखाड़ा शुरू किया है। इसलिए वह अखाड़े में खिलाडिय़ों को निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं।

यह हैं पहलवन नरेंद्र की उपलब्धियां

1981  में दिल्ली में आयोजित कैडेट चैंपियनशिप में गोल्ड
1992  में कोलंबिया में आयोजित जूनियर वल्र्ड चैंपियनशिप में ब्रांज मैडल
1992  में नेशनल चैंपियनशिप में सिल्वर मैडल
1993  में नेशनल चैंपियनशिप में प्रतिभागिता की
1994  नेशनल चैंपियनशिप में ब्रांज मैडल
1994  में नेशनल गेम्ज में गोल्ड मैडल
1994  में चाइना में आयोजित एशिया चैंपियनशिप में ब्रांज
1995  में दिल्ली में आयोजित नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल
1995  में आस्ट्रेलिया में आयोजित कॉमनवेल्थ में गोल्ड
1996  में नेशनल चैंपियनशिप में गोलड मैडल
1998  में नेशनल चैंपियनशिप में ब्रांज

गांव की पहली एमबीबीएस डॉक्टर बन सपना ने पेश की महिला सशक्तिकरण की मिशाल

गांव का गौरव

--बीडीएस में दाखिला होने के बाद भी कम नहीं हुई एमबीबीएस बनने की चाह, दोबारा से दी परीक्षा और एमबीबीएस के लिए हो गया चयन 

--ग्रामीण परिवेश में रहकर परिस्थितियों का डटकर किया मुकाबला

--सुविधाओं के अभाव को भी नहीं बनने दिया रास्ते का रोड़ा 

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के पिल्लूखेड़ा खंड के छोटे से गांव भूराण निवासी सपना ने एमबीबीएस के लिए अपना चयन करवाकर समाज के सामने यह साबित कर दिखाया है कि आज लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं। लगभग तीन हजार की आबादी वाले इस गांव से एमबीबीएस डॉक्टर बनने वाली सपना गांव की पहली लड़की है। सपना का सपना था एमबीबीएस डॉक्टर बनने का लेकिन जब एमबीबीएस के लिए उसका चयन नहीं हुआ तो उसने बीडीएस में दाखिला ले लिया। बीडीएस में दाखिला लेने के बाद भी सपना की एमबीबीएस बनने की चाह कम नहीं हुई। सपना ने दोबारा मेहनत की और एमबीबीएस में दाखिला लेकर यह साबित कर दिया कि यदि इंसान कुछ हासिल करने की ठान ले और सच्ची लग्न से मेहनत करे तो दुनिया की कोई भी ताकत उसको उसकी मंजिल प्राप्त करने से नहीं रोक सकती। एमबीबीएस डॉक्टर बनकर धन कमाना सपना का लक्ष्य नहीं है। बल्कि सपना डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करना चाहती है। इस समय सपना अग्रोहा के मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही और यह उसकी पढ़ाई का तीसरा वर्ष चल रहा है।
सपना ने अपनी दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव के ही एक निजी स्कूल से और मैडिकल संकाय की 12वीं कक्षा की पढ़ाई कन्या गुरुकुल सीनियर सैकेंडरी स्कूल खानपूर कलां से पास की और १२वीं के परीक्षा परिणाम में सपना ने 96.2 प्रतिशत अंक लेकर पूरे गुरूकुल में टॉप किया था। ग्रामीण परिवेश से संबंध रखने वाली सपना ने मैडिकल संकाय में पूरे गुरुकुल में टॉप कर यह साबित कर दिया है कि ग्रामीण क्षेत्र में भी प्रतिभा की कमी नहीं है। सपना ने दिन-रात कड़ी मेहनत कर यह उपलब्धि प्राप्त की है। सपना पिछली कक्षाओं में भी टॉपर रही है। सपना 12वीं कक्षा तथा 10वीं कक्षा में भी 96.2 प्रतिशत अंक हासिल कर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ चुकी है।

ताऊ से मिली प्रेरणा

साधारण परिवार व ग्रामीण परिवेश से संबंध रखने वाली सपना प्रतिभा की धनी है। सपना को डॉक्टर बनने की प्रेरणा अपने ताऊ प्रेम सिंह कुंडू से मिली। प्रेम ङ्क्षसह कुंडू स्वास्थ्य विभाग से हेल्थ निरीक्षक के पद से सेवानिवृत्ति हो चुके हैं। प्रेम सिंह ने एक अच्छे मार्गदर्शक की तरह पथ-पथ पर सपना का मार्ग दर्शन करते हुए उसे निरंतर कड़ी मेहनत करते हुए आगे बढऩे के लिए प्रेरित भी किया। अपने ताऊ से प्रेरणा लेकर सपना लगातार अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ती चली गई। एकलव्य की तरह सपना ने अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रीत कर कठोर परिश्रम किया। अपनी मेहनत के बूते ही आज सपना अपने लक्ष्य के बिल्कुल करीब पहुंच चुकी है। एमबीबीएस की पढ़ाई का उसका यह तीसरा वर्ष चल रहा है और आगामी दो वर्षों के बाद सपना के हाथ में एमबीबीएस की डिग्री होगी।

कभी नहीं लिया एक्सट्रा कक्षा का सहारा 

सपना की एक खास बात यह भी है कि सपना ने अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कभी किसी एक्सट्रा कक्षा या ट्यूशन का सहारा नहीं लिया। सपना ने अपनी सफलता का श्रेय अपने अध्यापकों व अपने परिवार के सदस्यों को देते हुए बतया कि उसने कभी भी अतिरिक्त कक्षाओं का सहारा नहीं लिया। सपना ने बताया कि मैडिकल संकाय में सफलता प्राप्त करने के लिए अधिकतर बच्चे ट्यूशन या एक्सट्रा कक्षाएं लगाते हैं, तब जाकर कहीं उन्हें सफलता हासिल होती है। लेकिन उसने अपनी १२वीं कक्षा तक की पढ़ाई के दौरान कभी भी ट्यूशन या एक्सट्रा कक्षा का सहारा नहीं लिया, बल्कि उसने दिन-रात कड़ी मेहनत कर यह मुकाम हासिल किया है।

डटकर किया परिस्थितियों का सामना

सपना ग्रामीण परिवेश के एक साधारण परिवार से संबंध रखती है। सपना की मां गृहणी है और पिता पानीपत में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं। ग्रामीण परिवेश में होने के कारण सपना को पढ़ाई के लिए सही माहोल व उपयुक्त सुविधाएं नहीं मिल सकी लेकिन सपना ने कभी भी न तो माहोल की परवा की और न ही सुविधाओं के अभाव को पढ़ाई पर हावी होने दिया। सपना ने परिस्थितियों का डटकर सामना किया और लगातार कठोर परिश्रम करते हुए पढ़ाई के क्षेत्र में अपना परचम लहराया। 

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

मजदूरी कर बेटे को करवाई मुम्बई आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई

तीन हजार की आबादी वाले भूराण गांव से आईआईटी से इंजीनियरिंग करने वाला गांव का पहला छात्र बनेगा रामफल का लड़का नवीन

परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी रामफल अपने बेटे को आईआईटी मुंबई से करवा रहा है कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई

बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी दिलवा रहा है उच्च शिक्षा 

रामफल अपनी पत्नी सुनीता के साथ।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर जींद-पानीपत मार्ग पर स्थित भूराण गांव वैसे तो अपनी एक अलग पहचान रखता है लेकिन गांव का ही एक 49 वर्षीय रामफल नामक व्यक्ति इस गांव का गौरव है। रामफल समाज के सामने एक अच्छे पिता की मिशाल पेश कर रहा है। रामफल अपनी आर्थिक परिस्थितियों की परवाह किए बिना अपने चारों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाकर समाज को एक सुशिक्षित नागरिक देने का काम किया है। इतना ही नहीं रामफल ने अपने बेटे व बेटियों में भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया। वह अपनी बेटियों को भी बेटों की तरह अच्छी शिक्षा दिलवा रहा है। आज जहां रामफल की दोनों बेटियां जीएनएम व बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही हैं, तो वहीं रामफल का एक लड़का मुंबई आईआईटी से कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा है और दूसरा बेटा गांव के ही एक निजी स्कूल से 12वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा है। इस प्रकार प्रतिदिन महज 250 से 300 रुपये की मजदूरी करने वाला रामफल नाम का यह सख्श हर वर्ष अपने बच्चों की पढ़ाई पर लाखों रुपये खर्च करता है। जबकि रामफल की आर्थिक परिस्थितियां इस बात की इजाजत नहीं देती कि वह अपने बच्चों के लिए इस तरह अच्छी शिक्षा की व्यवस्था कर सके। हर वर्ष ढाई से तीन लाख रुपये तो मुंबई आईआईटी से कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई करने वाले रामफल के बेटे नवीन की पढ़ाई पर खर्च हो रहे हैं। रामफल ने अपने बच्चों को एक कामयाब इंसान बनाने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत की है। जिस तरह से रामफल अपनी परिस्थितियों से जूझ कर अपने बच्चों की हर जरूरत को पूरा कर एक अच्छे पिता का अपना फर्ज अदा कर रहा है तो ठीक उसी प्रकार से पढ़ाई में अव्वल दर्जा हासिल कर उसके बच्चे भी अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं। रामफल का बड़ा बेटा नवीन दिन-रात कड़ी मेहनत कर अपने माता-पिता के सपने को साकार करने का प्रयास कर रहा है। कैमिकल इंजीनियरिंग में नवीन का यह तीसरा वर्ष चल रहा है और एक वर्ष के बाद यह अपनी इंजीनयरिंग की पढ़ाई पूरी कर तीन हजार की आबादी वाले इस गांव मेें मुंबई जैसे आईआईटी कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला गांव का पहला छात्र होगा। परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी रामफल ने अपने बेटे नवीन को दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद 12वीं की पढ़ाई के लिए राजस्थान के कोटा शहर में भेजा। नवीन ने भी बिना समय गंवाए १२वीं की पढ़ाई के साथ-साथ आईआईटी में दाखिले के लिए कोचिंग भी ली। 12वीं की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद नवीन ने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास की और परीक्षा में अच्छी रैंकिंग हासिल करने के कारण नवीन का दाखिला आईआईटी मुंबई में हुआ। अपने पिता रामफल के साथ-साथ नवीन भी अपने गांव, जिले या प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के युवाओं के लिए एक मिशाल है, जिसने परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की है। नवीन अपनी मेहनत के बूते पर अपने नाम के शब्द को बिल्कुल सार्थक सिद्ध कर रहा है। वहीं रामफल की बड़ी लड़की ममता जीएनएम का कोर्स कर रही है और पूजा बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है। रामफल का सबसे छोटा लड़का आशीष जो अभी गांव के ही एक निजी स्कूल से 12वीं की पढ़ाई कर रहा है। रामफल की पत्नी सुनीता महज पांचवीं पास है और वह भी बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाकर एक अच्छे समाज के निर्माण करने के अपने पति रामफल के प्रयास में सहयोग कर रही है। 



शनिवार, 26 नवंबर 2016

घर की चारदीवारी में भी महफूज नहीं हैं बच्चे

बच्चों के शोषण व हिंसात्मक मामलों में हो रही बढ़ौतरी
घर के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से छुटकारा पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन का सहारा ले रहे बच्चे
बाल मजदूरी के मामलों पर भी नहीं लग पा रही रोक
एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हिंसा व छेड़छाड़ के 66 मामले

नरेंद्र कुंडू
जींद। भौतिकतावादी इस युग में हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटने के साथ-साथ हमारे नैतिक मूल्यों में भी इतनी गिरावट आ चुकी है कि आज घर की चारदीवारी में भी हमारे बच्चे महफूज नहीं हैं। घर के अंदर ही परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ बच्चों को प्रताडि़त भी किया जा रहा है। घर के अंदर बच्चों पर बढ़ते शोषण व हिंसात्मक मामलों का सबूत दे रही है चाइल्ड हैल्प लाइन। घर की चारदीवारी के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से मुक्ति पाने के लिए बच्चे चाइल हैल्प लाइन का सहारा ले रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन के आंकड़ों पर यदि नजर डाल जाए तो सबसे अधिक मामले बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के सामने आ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास छेड़छाड़ व हिंसा के 66 तथा बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं बाल मजदूरी पर भी प्र्रशासन अंकुश नहीं लगा पा रहा है।  
 चाइल्ड हैल्प लाइन पर बच्चों की शिकायत दर्ज करते अधिकारी।
आज आधुनिकता की चकाचौंध व भागदौड़ भरी इस जिंदगी में अधिक रुपये की चाह में अभिभावक अपने बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। समय के अभाव होने का बहाना लेकर अभिभावक अपने बच्चों  के लिए भी वक्त नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में अभिभावक अपनी इस जिम्मेदारी से बचने के लिए अपने बच्चों की देखरेख की का जिम्मा परिवार के ही दूसरे सदस्यों या अपने सगे संबंधियों को सौंप देते हैं। बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों व सगे संबंधियों को देते समय अभिभावक इस बात की तरफ भी ध्यान नहीं देते कि जिसे वह अपने बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रहे हैं, वह किस परिवर्ती का व्यक्ति है। अभिभावकों की यही अनदेखी उनके बच्चों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है। अभिभावकों की इसी लापरवाही का फायदा उठाकर बच्चों के रक्षक ही उनके भक्षक बन रहे हैं। घर की चारदीवारी के अंदर ही बच्चों के सगे संबंधी बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ उन्हें प्रताडि़त भी कर रहे हैं लेकिन बच्चे अब इस शोषण से मुक्ति पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन 1098  का सहारा ले रहे हैं। 

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आई शिकायतों में शोषण व हिंसात्मक के मामले ज्यादा

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा मामले बच्चों पर घर के अंदर हो रही छेड़छाड़ व प्रताडऩा के हैं। अगस्त 2015  से नवंबर 2016 तक बच्चों के साथ छेड़छाड़ या प्रताडऩा के 66  मामले सामने आ चुके हैं। वहीं बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं गुमशुदगी के 83  तो बाल विवाह के अभी तक सात मामले ही चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास भिन्न-भिन्न मामलों में कुल 387 शिकायतें आ चुकी हैं। 

शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा शिकायतें घर के अंदर बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के हैं। इसके साथ ही बाल मजदूरी के मामले भी काफी सामने आ रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन द्वारा शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है। गुमशुदा, छेड़छाड़, प्रताडऩा, बाल मजदूरी, बाल विवाह, बच्चों की देखरेख, अध्यापक या रिश्तेदार द्वारा प्रताडि़त किए जाने, बच्चों के लालन-पालन, बच्चों के दाखिले से संबंधित मामलों में बच्चे चाइल्ड हैल्प लाइन की मदद ले सकते हैं। 
विनोद कुमार, सैंटर कोर्डिनेटर
चाइल्ड हैल्प लाइन, जींद

समाज में बढ़ा है अविश्वास

आज हमारे अंदर संस्कारों की काफी कमी हो गई है। मनुष्य स्वार्थी व संवेदनहीन हो गया है। आज मनुष्य अतृप्त व दुखी है। इसलिए वह अपने छोटे से स्वार्थ के लिए भी अपने नाजूक रिश्तों को दांव पर लगा देता है। इससे समाज में अविश्वास की भावना बढ़ी है और गलत बातें ज्यादा निकल कर सामने आ रही हैं। वहीं अभिभावक भी बच्चों को दिल से छूने की अपेक्षा केवल शारीरिक रूप से बच्चे पर अपना हक जताने का दिखावा करते रहते हैं। इससे अभिभावक व बच्चों के बीच प्रेभावना कम हुई है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चे के दोस्तों को भी अपने बच्चे की तरह समझें। 
नरेश जागलान, मनोवैज्ञानिक

घर की चारदीवारी में भी महफूज नहीं हैं बच्चे

बच्चों के शोषण व हिंसात्मक मामलों में हो रही बढ़ौतरी
घर के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से छुटकारा पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन का सहारा ले रहे बच्चे
बाल मजदूरी के मामलों पर भी नहीं लग पा रही रोक
एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हिंसा व छेड़छाड़ के 66 मामले

नरेंद्र कुंडू
जींद। भौतिकतावादी इस युग में हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटने के साथ-साथ हमारे नैतिक मूल्यों में भी इतनी गिरावट आ चुकी है कि आज घर की चारदीवारी में भी हमारे बच्चे महफूज नहीं हैं। घर के अंदर ही परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ बच्चों को प्रताडि़त भी किया जा रहा है। घर के अंदर बच्चों पर बढ़ते शोषण व हिंसात्मक मामलों का सबूत दे रही है चाइल्ड हैल्प लाइन। घर की चारदीवारी के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से मुक्ति पाने के लिए बच्चे चाइल हैल्प लाइन का सहारा ले रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन के आंकड़ों पर यदि नजर डाल जाए तो सबसे अधिक मामले बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के सामने आ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास छेड़छाड़ व हिंसा के 66 तथा बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं बाल मजदूरी पर भी प्र्रशासन अंकुश नहीं लगा पा रहा है।  
 चाइल्ड हैल्प लाइन पर बच्चों की शिकायत दर्ज करते अधिकारी।
आज आधुनिकता की चकाचौंध व भागदौड़ भरी इस जिंदगी में अधिक रुपये की चाह में अभिभावक अपने बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। समय के अभाव होने का बहाना लेकर अभिभावक अपने बच्चों  के लिए भी वक्त नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में अभिभावक अपनी इस जिम्मेदारी से बचने के लिए अपने बच्चों की देखरेख की का जिम्मा परिवार के ही दूसरे सदस्यों या अपने सगे संबंधियों को सौंप देते हैं। बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों व सगे संबंधियों को देते समय अभिभावक इस बात की तरफ भी ध्यान नहीं देते कि जिसे वह अपने बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रहे हैं, वह किस परिवर्ती का व्यक्ति है। अभिभावकों की यही अनदेखी उनके बच्चों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है। अभिभावकों की इसी लापरवाही का फायदा उठाकर बच्चों के रक्षक ही उनके भक्षक बन रहे हैं। घर की चारदीवारी के अंदर ही बच्चों के सगे संबंधी बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ उन्हें प्रताडि़त भी कर रहे हैं लेकिन बच्चे अब इस शोषण से मुक्ति पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन 1098  का सहारा ले रहे हैं। 

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आई शिकायतों में शोषण व हिंसात्मक के मामले ज्यादा

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा मामले बच्चों पर घर के अंदर हो रही छेड़छाड़ व प्रताडऩा के हैं। अगस्त 2015  से नवंबर 2016 तक बच्चों के साथ छेड़छाड़ या प्रताडऩा के 66  मामले सामने आ चुके हैं। वहीं बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं गुमशुदगी के 83  तो बाल विवाह के अभी तक सात मामले ही चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास भिन्न-भिन्न मामलों में कुल 387 शिकायतें आ चुकी हैं। 

शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा शिकायतें घर के अंदर बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के हैं। इसके साथ ही बाल मजदूरी के मामले भी काफी सामने आ रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन द्वारा शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है। गुमशुदा, छेड़छाड़, प्रताडऩा, बाल मजदूरी, बाल विवाह, बच्चों की देखरेख, अध्यापक या रिश्तेदार द्वारा प्रताडि़त किए जाने, बच्चों के लालन-पालन, बच्चों के दाखिले से संबंधित मामलों में बच्चे चाइल्ड हैल्प लाइन की मदद ले सकते हैं। 
विनोद कुमार, सैंटर कोर्डिनेटर
चाइल्ड हैल्प लाइन, जींद

समाज में बढ़ा है अविश्वास

आज हमारे अंदर संस्कारों की काफी कमी हो गई है। मनुष्य स्वार्थी व संवेदनहीन हो गया है। आज मनुष्य अतृप्त व दुखी है। इसलिए वह अपने छोटे से स्वार्थ के लिए भी अपने नाजूक रिश्तों को दांव पर लगा देता है। इससे समाज में अविश्वास की भावना बढ़ी है और गलत बातें ज्यादा निकल कर सामने आ रही हैं। वहीं अभिभावक भी बच्चों को दिल से छूने की अपेक्षा केवल शारीरिक रूप से बच्चे पर अपना हक जताने का दिखावा करते रहते हैं। इससे अभिभावक व बच्चों के बीच प्रेभावना कम हुई है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चे के दोस्तों को भी अपने बच्चे की तरह समझें। 
नरेश जागलान, मनोवैज्ञानिक

शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

कहाँ खो गई हमारी बेटियां

जिले के 29 गांवों में बेटियों को अब भी समझा जाता है बोझ
जिले का लिंगानुपात सुधरकर 888 पर पहुंचा
अब लिंगानुपात में पिछड़े गांवों पर फोकस करेगा स्वास्थ्य विभाग
पिछले वर्षों के मुकाबले जिले में बढ़ा है लिंगानुपात

नरेंद्र कुंडू
जींद। एक ओर जहां सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चला रही है, वहीं जिला में अब भी लोगों की सोच बेटियों के प्रति पूरी तरह नहीं बदली है। जिले में 29 गांव ऐसे हैं, जिन गांवों में बेटियों को अब भी बोझ समझा जाता है। यह इसी का परिणाम है कि इन 29 गांवों में इस समय भी लिंगानुपात 550 से नीचे है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में चलाए गए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के काफी सकारात्मक परिणा

म सामने आए हैं। इसके चलते पिछले वर्षों की तुलना में इस वर्ष जिले का लिंगानुपात में काफी सुधार हुआ है। इस वर्ष जिले का लिंगानुपात 857 से बढ़कर 888 पर पहुंच गया है। गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा सख्त रुख अपनाया गया है। इसी के चलते स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा जिले ही नहीं बल्कि जिले से बाहर भी 33 ऐसे अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की जा चुकी है, जिन अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर विभाग को लिंग जांच करने जैसी संदिग्ध गतिविधियों की भनक लगी। 

आधे से ज्यादा गांवों में ही सुधरा लिंगानुपात


जिले में गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू किए गए अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग द्वारा 39 ऐसे गांवों को चिन्हित किया गया था जिनका लिंगानुपात 555 से कम था। इनमें से 28 गांवों के लिंगानुपात में काफी सुधार है। शेष बचे 11 गांवों में मुहिम का असर खास नहीं रह पाया। इन 11 गांवों के अलावा 18 और गांव ऐसे हैं, जहां बेटियों को बोझ समझा जाता है।  इन 39 गांवों में से अब 11 गांव ही ऐसे बचे हैं जिनका लिंगानुपात 550से कम है। बाकि 28 गांवों के लिंगानुपात में सुधार हुआ है और इन गांवों का लिंगानुपात 550 से ऊपर पहुंच गया है। 

स्वास्थ्य विभाग द्वारा 33 बार की जा चुकी हैं छापेमारी

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिछले वर्ष 33 अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की गई। इनमें 18 बार छापेमारी जींद जिले में, 13 बार दूसरे जिलों में तथा तीन बार प्रदेश के साथ लगते उत्तरप्रदेश व हिमाचल में छापेमारी की गई हैं। 

इस वर्ष इन-इन गांवों का लिंगानुपात 550 से नीचे

गांव का नाम लिंगानुपात 
सेढ़ा माजर 181
रजाना खुर्द 200
खतला 285
कटवाल 285
फैरण खुर्द 333
रोजखेड़ा 333
रजाना कलां 354
जलालपुर खुर्द 363
हसनपुर 363
ऐंचरा कलां 375
श्रीरागखेड़ा 375
जीवनपुर 384
मांडोखेड़ी 428
मंगलपुर 431
डुमरखां खुर्द 433
ढाणी रामगढ़ 470
दुड़ाना 500
किलाजफरगढ़ 509
खेड़ी मसानियां 520
नगूरां         520
खोखरी 521
चंदनपुर 521
कलोदा खुर्द 533
खेड़ी जाजवान 538
जैजवंती 538
देशखेड़ा 545
वर्ष के अनुसार जिले का लिंगानुपात का आंकड़ा
वर्ष लिंगानुपात
2005 860
2006 890
2007 896
2008 894
2009 847
2010 869
2011       837
2012 833
2013 831
2014 863
2015 857
जनवरी से सितंबर 2016 तक 888

उठाए जा रहे हैं कठोर कदम

 जिले में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा कठोर कदम उठाए जा रहे हैं। प्रत्येक  गांव में गर्भवती महिलाओं का रजिस्ट्रेशन किया जाता है, ताकि विभाग इन महिलाओं पर नजर रख सके। समय-समय पर अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की जाती है। गांवों में एएनएम, आंगनवाड़ी वर्कर, आशा वर्कर, पंचों, सरपंचों व सामाजिक संगठनों के सहयोग से जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। लोगों की मानसिकता बदलने के लिए जिले की तीन नेशनल खिलाडिय़ों को रोल मॉडल बनाया गया है, वहीं जानकी फिल्म के माध्यम से भी लोगों को जागरूक किया जाता है। पिछले वर्षों की तुलना में जिले के लिंगानुपात में काफी सुधार हुआ है। जिन गांवों का लिंगानुपात कम है, उन गांवों पर विभाग का विशेष फोकस रहेगा।  
डॉ. प्रभूदयाल, डिप्टी सिविल सर्जन
नागरिक अस्पताल, जींद

आशा वर्कर रख रहीं हैं नजर 

गांव में आंगनबाड़ी वर्कर व आशा वर्कर नियमित रूप से गर्भवती महिलाओं के संपर्क में रहती हैं। गांव में भ्रूण हत्या की कोई बात नहीं है। यदि लिंगानुपात कम है तो यह कुदरत की ही देन है। गांव व पंचायत इस विषय में बहुत गंभीर है।

कृष्ण कुमार सरपंच रजाना खुर्द।






शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी ने दी फसल में दस्तक

हॉपर व तना गलन को रोकने में पेस्टीसाइड भी नहीं है कारगर
चार किस्म के हैं हॉपर नामक कीट
समझदारी की फसल के बचाव का एकमात्र तरीका  

नरेंद्र कुंडू
जींद। खेतों में किसान का पीला सोना (धान) लगभग पक्ककर तैयार है लेकिन धान की इस अंतिम चरण की प्रक्रिया में पहुंचने के साथ धान में हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी का प्रकोप बढ़ गया है। धान की फसल में हॉपर से ज्यादा नुकसान तना गलन का है। क्योंकि हॉपर कीट तो खेत में खड़ी फसल के कुछ ही को नुकसान पहुंचाता है लेकिन तना गलन नामक बीमारी के ज्यादा क्षेत्र में फैलने की संभावनाएं हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि हॉपर व तना गलन से फसल को बचाव के लिए पेस्टीसाइड भी कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। इसलिए किसानों को इस तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पेस्टीसाइड पर अपना खर्च करने की बजाए सावधानी के साथ अपनी फसल की तरफ ध्यान देने की जरूरत है।

चार किस्म का है रस चुसक हॉपर कीट 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार हॉपर एक रस चुसक कीट है और इसकी चार किस्में अभी तक देखी जा चुकी हैं। हॉपर कीट सफेद, हरा, ब्राउन व काले रंग का होता है। ब्राउन व काला हॉपर पौधे के तने का रस चूसता है, वहीं सफेद व हरा हॉपर पौधे के पत्तों का रस चूसता है। पत्ते व तने का रस चूसने के कारण यह काले पड़ जाते हैं। तने व पत्ते का रस चूस लिए जाने के कारण यह काला पडऩे के बाद सुख कर गिर जाता है।

हॉपर के प्रकोप से खेत में इस तरह के दिखाई देंगे लक्षण

जिस खेत में हॉपर का प्रकोप होगा, उस खेत में किसी-किसी स्थान पर गोलाकार, त्रिभुजाकार या अंडाकार के आकार में फसल खराब हुई दिखाई देगी। खेत में जिस क्षेत्र में छाया होगी, वहां से इसकी शुरूआत होगी।

क्या है तना गलन बीमारी

तना गलन बीमारी उन क्षेत्र में आती है, जहां पर जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होती है या पानी हल्का होता है। इसलिए पौधे को जमीन से पर्याप्त मात्रा में फासफोर्स नहीं मिल पाता। यह बीमारी फसल की रोपाई के शुरूआत में व पकाई के समय में आती है। इस बीमारी के आने पर पौधे का तना नीचे से काला पड़ जाता है। पौधे में जाइलम व फ्लोयम नाम की दो नलियां होती हैं। जाइलम नाम की नाली जमीन से पौधे के लिए पानी व खुराक पहुंचाती है। वहीं फ्लोयम नाम की नाली पौधे की पत्तियों में तैयार होने वाले भोजन को पौधे के प्रत्येक हिस्से तक पहुंचाती है लेकिन तने के गलने के कारण यह दोनों नालियां खत्म हो जाती हैं। इससे पौधे तक खुराक व भोजन नहीं पहुंचने के कारण पौधा काला होकर गिर जाता है। ऐसे में पेस्टीसाइड का प्रयोग करना फिजूलखर्ची है।

तना गलन में क्या करें किसान

तना गलन बीमारी उस समय फसल में आती है, जब फसल पकने में एक सप्ताह तक का समय बाकि रहता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि फसल का पानी सुखा दें और फसल की कटाई कर गिरी में (एक जगह) लगा दें। ऐसा करने से फसल का जो दाना कच्चा है, वह भी पक्क कर तैयार हो जाएगा। हॉपर कीट व तना गलन की बीमारी का कोई उपचार नहीं है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वह पेस्टीसाइड पर फिजुलखर्ची नहीं करें। हॉपर कीट से बचाव के लिए किसान प्रति एकड़ में 300 ग्राम डीडीवीपी को दस किलो रेत में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।  इसके अलावा कोई उपचार नहीं हैं। बाकि हॉपर से किसानों को भयभीत होने की जरूरत नहीं है। यह पूरे खेत में नुकसान की बजाए कुछ ही क्षेत्र में नुकसान करता है। वहीं तना गलन बीमारी आने पर किसान फसल को पकाई से दो-तीन पहले काटकर धान को गिरी में लगा सकते हैं।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
कृषि विभाग, जींद  

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

किसानों के लिए फायदे की खेती है सरसों

कम खर्च में किसान को मिलता है अधिक मुनाफास्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रबी की फसलों में सरसों की खेती किसानों के लिए सबसे फायदेमंद है। सरसों की खेती में किसान को कम खर्च में अधिक मुनाफा होता है। सरसों की खेती के उत्पादन के लिए किसान को शारीरिक श्रम भी काफी कम करना पड़ता है और कीड़ों व बीमारी के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। वहीं सरसों से निकलने वाला तेल भी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होता है। इसलिए किसान सरसों की खेती को अपना कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

यह है सरसों की बिजाई का उपयुक्त समय

सरसों की बिजाई का सबसे उपयुक्त समय 25 सितंबर से 15 अक्तूबर का समय सबसे उपयुक्त है। ड्रील मशीन व हाथ की छांट से भी सरसों की बिजाई की जा सकती है। बिजाई के दौरान 25 किलो यूरिया तथा 40 किलो सिंगल सुपर फासफोर्स खाद डालें। इसके बाद सरसों की फसल में पहला पानी लगाने के बाद 25 किलो यूरिया खाद डालें।

इन-इन किस्मों की कर सकते हैं बिजाई

अधिक पानी वाले क्षेत्र में किसान हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 749, लक्ष्मी व वरूण किस्म की बिजाई कर सकते हैं। कम पानी वाले क्षेत्र में हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 406 व करनाल की 30 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। जहां पर जमीनी पानी खारा है वहां पर किसान करनाल की 88 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। 88 नंबर किस्म में अन्य किस्मों की बजाए तेल की मात्रा अधिक है। वहीं प्राइवेट क्षेत्र की भी कई किस्में इस समय बाजार में हैं। इनमें बायर कंपनी की 5444 व 5450 किस्म, श्रीराम कंपनी की रानी किस्म तथा माइको कंपनी की माइको बोल्ड किस्म भी अच्छी है।

कीटों व बीमारियों के मामले में भी सुरक्षित है सरसों की फसल

रबी की दूसरी फसलों में जहां कीटों व बीमारियों के प्रकोप का ज्यादा भय किसान को रहता है, वहीं सरसों की फसल कीटों व बीमारियों के मामले में काफी सुरक्षित है। क्योंकि सरसों की फसल में कीट व बीमारियां नामात्र ही आती हैं। सरसों की बजाई के समय पेंटिड बग (धोलिया) का थोड़ा बहुत प्रभाव हो सकता है लेकिन सरसों में महज राख का छिड़काव करने से यह कीट अपने आप नियंत्रित हो जाता है।

स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

सरसों का तेल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद माना जाता है। क्योंकि इस फसल में सबसे कम कीटनाशकों का प्रयोग होता है और खाने में सरसों का तेल लेने से शरीर स्वस्थ रहता है। वहीं हार्ट के मरीजों के लिए भी सरसों का तेल काफी लाभदायक है।

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। क्योंकि इस फसल में रबी की दूसरी फसलों से नामात्र खर्च होता है और मुनाफा अधिक होता है। गेहूं की फसल में जहां एक एकड़ में आठ से नौ हजार रुपये का खर्च आता है तो सरसों की फसल में महज तीन से चार हजार रुपये का ही खर्च आता है। कीटों व बीमारियों के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। किसान को इस फसल में शारीरिक मेहनत भी काफी कम करनी पड़ती है। इसलिए किसानों को सरसों की खेती की तरफ अपना रूझान बढ़ाना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
जींद। 

रविवार, 25 सितंबर 2016

'यूपी में भाजपा के चुनावी मुद्दे को रोशन करेगा जींद का दीपक'

चित्रकार दीपक के व्यंगात्मक कार्टूनों को भाजपा ने प्रचार सामग्री में किया शामिल
चित्रकार दीपक ने यूपी बचाओ नाम से तैयार की है कार्टून पुस्तिका 
कार्टूनिस्ट दीपक प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों पर भी प्रकाशित कर चुके हैं दो पुस्तकें 

नरेंद्र कुंडू
जींद। उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में जींद के युवा चित्रकार दीपक कौशिक के कार्टून अपनी छाप छोड़ेंगे। चुनाव के इस दंगल में विरोधियों को घेरने के लिए भाजपा दीपक कौशिक द्वारा यूपी में हुए भ्रष्टाचार पर तैयार किए गए व्यंगात्मक कार्टूनों को अपनी चुनाव प्रचार सामग्री में शामिल करने जा रही है। चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा यूपी बचाओ के नाम से यह कार्टून पुस्तिका तैयार की गई है।   
भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ हुई दीपक कौशिक की मुलाकात के बाद पार्टी पदाधिकारियों ने दीपक के कार्टूनों को चुनाव सामग्री में शामिल करने का फैसला लिया है। भाजपा द्वारा इस पुस्तिका की लाखों प्रतियां तैयार करवाई जाएंगी। 
पुस्तक के लिए कार्टून तैयार करते चित्रकार दीपक
चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा कार्टून पुस्तिका में उत्तरप्रदेश की वर्तमान व पूर्वोत्तर सरकार की जन विरोधी नीतियों पर कार्टूनों के माध्यम से व्यंग किए गए हैं। इस पुस्तिका में यूपी के कैराना कांड, मथूरा कांड, रामवृक्ष कांड, यूपी की खस्ता हाल सड़कों, बिजली-पानी की समस्या पर कटाक्ष किए गए हैं। दीपक कौशिक ने बताया कि इस पुस्तिका में विरोधी दलों पर निशाना साधने के साथ-साथ मोदी सरकार की विकासकारी सोच को भी दर्शाया गया है। कौशिक ने बताया कि एक सप्ताह पूर्व दिल्ली के अशोका रोड स्थित भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय में भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ चुनाव प्रचार कैम्पेनिंग के लिए हुई बैठक में पार्टी पदाधिकारियों ने इस पुस्तिका को चुनाव सामग्री में शामिल करने का निर्णय लिया है। 
 भाजपा पदाधिकारियों को पुस्तक भेंट करते चित्रकार दीपक कौशिक।

अच्छे दिनों पर भी लिख चुके हैं पुस्तक

चित्रकार दीपक कौशिक इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन' और दो साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन-2' का प्रकाशन कर चुके हैं। अब यूपी में भी इन पुस्तकों को प्रकाशित किया जाएगा। 

हरियाणा की स्वर्ण जयंती पर निकालेंगे म्हारा हरियाणा पुस्तक

दीपक कौशिक ने बताया कि 'यूपी बचाओ' पुस्तक के प्रकाशन होने के बाद उनकी चौथी पुस्तक के प्रकाशन का काम भी अन्तिम दौर में है। 'म्हारा हरियाणा' नाम से प्रकाशित होने वाली यह पुस्तक विशेष तौर पर हरियाणा की स्वर्ण जयंती वर्षगांठ के उपलक्ष्य में तैयार की जा रही है, जिसमें प्रदेश की कला-संस्कृति, राजनीति, जन-जीवन को महत्व दिया गया है। इस पुस्तक में कार्टूनों के माध्यम से जहां इन सब विषयों को उकेरा गया है।