सोमवार, 31 अगस्त 2015

राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के साथ जोड़ेंगे कीट ज्ञान की मुहिम : डॉ. बराड़

 कहा, कीटों पर हुए शोध पर बनाई जाए डाक्यूमेंटरी 
कपास की फसलों के नुकसान का अवलोकन करने के लिए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक ने किया जींद का दौरा 
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले में सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण खराब हो रही किसानों की कपास की फसलों का अवलोकन करने के लिए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ. जगदीप बराड़ मंगलवार को जींद पहुंचे। इस दौरान डॉ. बराड़ ने कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ जिले के रधाना, शादीपुर, किनाना, ईंटल कलां, ईंटल खुर्द, राजपुरा सहित दर्जनभर गांवों का दौरा कर किसानों की फसलों का अवलोकन किया। रधाना गांव में किसानों की फसलों का अवलोकन करने के साथ ही डॉ. बराड़ कीटाचार्य किसानों से भी रूबरू हुए। इस दौरान कीटाचार्य किसानों ने अतिरिक्त निदेशक के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि किस तरह वह पिछले सात-आठ वर्षों से बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। किसानों द्वारा कीटों पर किए गए शोध की बारिकी से जानकारी लेने के बाद अतिरिक्त निदेशक ने कीटाचार्य किसानों को राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के तहत जोड़कर कीट ज्ञान की मुहिम को प्रदेश में फैलाने का आश्वासन दिया। इस मौके पर उनके साथ जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग, पौध संरक्षण अधिकारी डॉ. अनिल नरवाल, एडीओ डॉ. सुनील, डॉ. महेंद्र, मैडम कुसुम दलाल भी मौजूद थी।
डॉ. बराड़ ने कहा कि पूरे प्रदेश में कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी बढ़ रहा है। इसके चलते किसानों की कपास की फसल खराब हो रही है। डॉ. बराड़ ने कहा कि कपास की फसम में सफेद मक्खी के प्रकोप के बढऩे का मुख्य कारण किसानों में जागरूकता की कमी है। जागरूकता के अभाव में किसान बिना कृषि अधिकारियों की सलाह के फसल में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि
अतिरिक्त निदेशक को कीटों की जानकारी देती कीटाचार्या महिला किसान
जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग ना के बराबर हुआ है, वहां-वहां सफेद मक्खी का प्रकोप नहीं है। जींद जिले में डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम की प्रशांसा करते हुए उन्होंने कहा कि जींद के कीटाचार्य किसानों द्वारा कीटों पर किए गए इस अनोखे शोध के अब कृषि विभाग के अधिकारी भी मुरीद हो गए हैं लेकिन यह कृषि विभाग का दुर्भाग्य रहा है कि विभाग इन किसानों का सार्थक रूप से प्रयोग नहीं कर पाया। इसलिए कीट ज्ञान की मुहिम को प्रदेश के प्रत्येक किसान तक पहुंचाने के लिए कीटाचार्य किसानों को राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के तहत जोड़कर इनकी सहायता से दूसरे जिले के किसानों को भी कीटनाशक रहित खेती के प्रति जागरूक किया जाएगा। इस दौरान डॉ. बराड़ ने किसानों की कीटनाशक रहित फसलों का अवलोकन भी किया और बताया कि कीटनाशक के प्रयोग वाली फसलों उनकी फसल काफी बेहतर है। इस अवसर पर डॉ. बराड़ ने कृषि विभाग के अधिकारियों को अगले रबी के सीजन से कीटाचार्य किसानों के शोध पर एक डाक्यूमेंटरी बनाने के निर्देश दिए। कीटाचार्य किसानों ने भी अतिरिक्त निदेशक को इस मुहिम को आगे बढ़ाने के सुझाव रखे।

सोमवार, 24 अगस्त 2015

'व्हाइट फ्लाई के प्रकोप से काला पडऩे लगा किसानों का सफेद सोना'

पिछले वर्ष हुई प्राकृतिक आपदा के बाद अब सफेद मक्खी ने मचाई तबाही
खराब हो रही कपास की फसलों पर किसान चला रहे ट्रेक्टर 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिछले वर्ष प्राकृतिक आपदा के कारण खराब हुई खरीफ व रबी की फसलों से हुए आर्थिक नुकसान से किसान अभी तक ठीक से उभर भी नहीं पाए थे कि इस बार फिर से किसानों की कपास की फसल सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई) की भेंट चढ़ गई है। महज तीन मिलीमीटर का यह कीट किसानों के सफेद सोने का भस्मासुर साबित हो रहा है। दिन-प्रतिदिन कपास की फसल पर सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। सफेद मक्खी ने किसानों के साथ-साथ कृषि विभाग के अधिकारियों की भी नींद उड़ा रखी है। कृषि विभाग के अधिकारी भी इस कीट का तोड़ नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं। जिले में लगभग 15 हजार हैक्टेयर कपास की फसल सफेद मक्खी की भेंट चढ़कर खराब हो चुकी है। सफेद मक्खी के प्रकोप से अपनी कपास की फसल को बचाने के लिए किसान महंगे से महंगे कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन महंगे-महंगे कीटनाशक भी इस पर बेअसर साबित हो रहे हैं। सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप के कारण किसान अपनी खड़ी कपास की फसल को ट्रैक्टर से नष्ट करने पर मजबूर हैं लेकिन जिन किसानों द्वारा फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया है, वहां पर कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत कम है।   
 कपास की फसल को ट्रेक्टर से जोतते किसान।

15 हजार हैक्टेयर चढ़ चुका है सफेद मक्खी की भेंट  

जिले में लगभग ६३ हजार हैक्टेयर में कपास की खेती होती है। उचाना, नरवाना, जुलाना क्षेत्र में कपास की खेती पर किसानों का ज्यादा जोर है लेकिन कपास की फसल में आई सफेद मक्खी ने किसानों की फसलों को बुरी तरह से तबाह कर दिया है। सफेद मक्ख के प्रकोप के कारण 15 हजार हैक्टेयर में खड़ी कपास की फसल बुरी तरह से नष्ट हो गई है।  

2001 में अमेरिकन सूंडी और 2005 में मिलीबग ने मचाई थी तबाही

जब-जब भी कीटनाशकों की सहायता से कीटों को नियंत्रित करने के प्रयास किये गए हैं, तब-तब यह कीट बेकाबू हुए हैं। वर्ष 2001 में अमेरिकन सूंडी तथा 2005 में मिलीबग द्वारा मचाई गई तबाही इसका प्रमाण हैं। 2001 में अमेरिकन सूंडी को काबू करने के लिए किसानों ने कपास की फसलों में 30 से 40 स्प्रे किए थे लेकिन उसके बाद भी यह कीट काबू नहीं हुआ और परिणाम शून्य रहे। इस तीन सेंटीमीटर के कीट ने पूरी की पूरी फसलों को तबाह कर दिया था। यही हालात 2005 में किसानों के सामने पैदा हुए थे। 2005 में मिलीबग को नियंत्रित करने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया गया था लेकिन महज चार सेंटीमीटर के इस कीट ने उस दौरान कीट वैज्ञानिकों की खूब फजिहत करवाई थी। मिलीबग से प्रकोपित फसलों को किसानों ने टे्रक्टर की सहायता से खेत जोत दिए थे। इसी प्रकार अब पिछले दो-तीन वर्षों से कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ रहा है। 

सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में कूदरती कीटनाशी हैं कारगर 

सफेद मक्खी के प्रौढ़ का जीवन काल 20 से 25 दिन का होता है और यह अपने जीवनकाल में 100 से 125 अंडे देती है। यह पौधे से रस चूसती है। सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर होता है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है उस पत्ते पर फफूंद लग जाती है और वह पत्ता काला हो जाता है और भोजन बनाना बंद कर देता है। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक की जरूरत नहीं है। इनो, इरो, बीटल नामक मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के सबसे बड़े दुश्मन हैं। यह मांसाहारी कीट खुद ही इसे नियंत्रित कर लेते हैं। जिस-जिस खेत में कीटनाशक का प्रयोग नहीं हुआ है, उन खेतों में सफेद मक्खी का प्रकोप नहीं है लेकिन जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां-वहां इसका प्रकोप ज्यादा बढ़ रहा है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट इसे खुद ही नियंत्रित कर लेते हैं। किसानों को कीटों को मारने की नहीं, कीटों की पहचान करने की जरूरत है। 
रणबीर मलिक, कीटाचार्य किसान
जींद।  

पछेती बिजाई वाली फसलों में ज्यादा नुकसान है। 

पछेती बिजाई वाली फसलों में ज्यादा नुकसान है। जिन किसानों ने समय पर कपास की बिजाई की है, वहां पर कम नुकसान है। कुछ किसानों का फसल की बिजाई व रख-रखाव की मैनेजमेंट सही नहीं है। मैनेजमेंट सिस्टम गड़बड़ाने के कारण फसल में नुकसान होता है। जहां-जहां नुकसान हुआ है, वहां-वहां सर्वे करवाया जा रहा है। सर्वे रिपोर्ट के बाद हकीकत सामने आ पाएगी। किसानों को जागरूक करने के लिए कैंपों का आयोजन किया जा रहा है। किसानों को चाहिए कि फसल में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग नहीं करें। कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग के कारण भी सफेद मक्खी को पनपे का अवसर मिल जाता है। 
डॉ. आरपी सिहाग, जिला कृषि उपनिदेशक
कृषि विभाग जींद


रविवार, 23 अगस्त 2015

कीटनाशकों के प्रयोग से ही फसल में बढ़ती है कीटों की संख्या

नरेंद्र कुंडू
बरवाला/जींद।
कीटों की मास्टरनी सीता देवी, शांति, धनवंति व नारों ने बताया कि जहां-जहां कपास की फसल में कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग कर छेडख़ानी की गई है, उन-उन खेतों में कीटों की संख्या निरंतर बढ़ रही है लेकिन जहां पर कीटों के साथ कोई छेडख़ानी नहीं की गई है, वहां कीटों की संख्या नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर (ईटीएल लेवल) से काफी नीचे है। कीटों की मास्टरनियां शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा जेवरा गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में मौजूद महिला तथा पुरुष किसानों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में अवगत करवा रही थी। इस अवसर पर पाठशाला में आकाशवाणी केंद्र रोहतक से कार्यक्रम अधिकारी नरेश गोगिया, वरिष्ठ उद्घोषक संपूर्ण सिंह, हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, डॉ. महाबीर शर्मा भी विशेष रूप से मौजूद रहे। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने कपास तथा सब्जियों की फसल में कीटों का निरक्षण किया और उसके बाद फसल में मौजूद कीटों के आंकड़े को चार्ट पर उतारा।
 फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन करती महिलाएं।
उन्होंने बताया कि कीटों की सबसे खास बात यह होती है कि उन्हें आने वाले खतरे का पहले ही अहसास हो जाता है और वह खतरे को देखते हुए अपने जीवन काल को छोटा करके अपने बच्चे पैदा करने कर क्षमता को बढ़ा लेता है। इसलिए कीटनाशकों के माध्यम से कीटों पर नियंत्रित पाना संभव नहीं है। यदि हमें अपनी फसलों को कीटों से बचाना है तो हमें कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए कीटों की पहचान करनी चाहिए। क्योंकि कीट की कीटों को नियंत्रित करने का एक अचूक अस्त्र हैं।

मरोडिये से प्रकोपित पौधे को दें पर्याप्त खुराक

मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि मरोडिय़ा (लीपकरल) विषाणु से फैलता है और विषाणु न तो जीवित होता है और न ही कभी मरता है। इस विषाणु को अनुकूल मौसम मिलने पर यह जीवित हो जाता है। इस विषाणु के प्रभाव को रोकने के लिए आज तक कोई दवाई नहीं बनी है। यदि हम मरोडिय़े से प्रकोपित पौधे को काट कर जला भी देते हैं तो भी उसकी जड़ों में यह वायरस बच जाता है। इससे पार पाने का केवल एक ही उपाय है कि हम मरोडिय़े से प्रकोपित फसल में जिंक, यूरिया व डीएपी के घाल का फोलियर स्प्रे करते रहें। इससे पौधे को पर्याप्त खुराक मिलती रहेगी और इससे उत्पादन में भी कोई कमी नहीं आएगी।

फसल में मौजूद प्रति पत्ता कीटों की संख्या

फसल का नाम        सफेद मक्खी    हरा तेला    चूरड़ा       माइट
बीटी कॉटन                     5.4                  0.9            0            2.4
नॉन बीटी कॉटन              4.3                   0.4          0            1.2
भिंडी                               2.4                   3.1          0              6
करेला                                 0                     0          0               2
 

आकाशवाणी केंद्र रोहतक के वरिष्ठ उद्घोषक संपूर्ण सिंह डॉ बलजीत भ्यान से बातचीत करते हुए





रविवार, 9 अगस्त 2015

शाकाहारी कीटों के साथ भी होता है पौधे का गहरा रिश्ता

कीटों को मारने की नहीं उनको पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों को समझने की जरूरत 

नरेंद्र कुंडू 
बरवाला/जींद। शाकाहारी कीटों के साथ भी पौधों का गहरा रिश्ता है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार समय-समय पर भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को अपनी सुरक्षा के लिए बुलाते हैं। इसलिए हमें कीटों को मारने की नहीं बल्कि कीटों को पहचानने की जरूरत है। यह बात कीटाचार्या किसान विजय, प्रमिला, कमल, आशीम, शकुंतला ने शनिवार को बरवाला के जेवरा गांव में अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा सब्जियों की फसल पर आयोजित की जा रही महिला किसान खेत पाठशाला को संबोधित करते हुए कही। पाठशाला में हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्यान भी मौजूद रहे। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों द्वारा ग्रुप बनाकर करेला, मिर्च, बैंगन, भिंडी, घीया की बेल पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों के बारे में किसानों को बारिकी से जानकारी दी गई। 
मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने बताया कि किसानों को भय व भ्रम के जाल में फंसाया जा रहा है। इसी के चलते शाकाहारी कीटों के डर से किसान फसलों पर अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं। जबकि हकीकत यह है कि कीटों को मारने की नहीं उनको पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पौधा एक दिन में साढ़े चार ग्राम भोजन बनाता है। डेढ़ ग्राम भोजन ऊपर के हिस्से, डेढ़ ग्राम भोजन जड़ व तने को देता है जबकि डेढ़ ग्राम भोजन को रिजर्व के तौर पर रखता है। ताकि मुसिबत के समय में 
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिलाएं। 
रिजर्व भोजन का प्रयोग कर पौधा अपना जीवन बचा सके लेकिन अगर पौधे पर किसी तरह की मुसिबत नहीं आती है तो उसके पास वह भोजन जमा हो जाता है। एकत्रित किए गए इस भोजन को निकालने के लिए ही पौधा भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाता है और शाकाहारी कीट इस अतिरिक्त भोजन को खाकर अपना गुजारा करते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपने जीवन में रक्तदान करता है। उसी प्रकार पौधे भी अपने इस अतिरिक्त भोजन को शाकाहारी कीटों को दान करते हैं। जब शाकाहारी कीटों की संख्या बढऩे लग जाती है तो इन्हें नियंत्रित करने के लिए पौधे मांसाहारी कीटों को बुलाते हैं। मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर पौधे के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। पौधे व कीटों की इस प्रक्रिया में किसान का काम चल जाता है। उन्होंने बताया कि सब्जियों में इस समय सफेद मक्खी, तेला व माइट देखने को मिल रहे हैं। जबकि इन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट बीटल, बीटल के बच्चे, क्राइसोपा, ड्रेगन फ्लाई, हथजोड़ा, कातिल बुगड़ा भी काफी संख्या में मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि भिंडी में तेला ईटीएल लेवल से पार पहुंच चुका है और इसके चलते भिंडी में महज पांच प्रतिशत का नुकसान ही देखने को मिल रहा है। इसके अलावा दूसरी सब्जियों में कीटों की संख्या ईटीएल लेवल से कम ही दर्ज की गई है। किसी भी फसल में शाकाहारी कीट नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने बताया कि बैंगन की सब्जी में गोभ वाली सूंडी आई हुई है लेकिन इससे फसल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ रहा है। गोभवाली सूंडी के आने के बाद पौधा दूसरी फूट निकाल लेता है। इसलिए किसानों को इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। 

चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार करती मास्टर ट्रेनर किसान। 




रविवार, 2 अगस्त 2015

कीटनाशकों से शाकाहारी कीटों के साथ मर जाते हैं कुदरती कीटनाशी

कपास के साथ-साथ सब्जियों पर भी शुरू हुआ प्रयोग 
कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पंजाब से भी पहुंचे किसान 

नरेंद्र कुंडू 
बरवाला/जींद। आज कपास की फसल में रस चूसक कीट सफेद मक्खी का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप से किसान बुरी तरह से भयभीत हैं। क्योंकि सफेद मक्खी को काबू करने में कीटनाशक भी बेअसर साबित हो रहे हैं। यह बात कीटों की मास्टरनी राजवंती, कमलेश, बिमला, रोशनी व सुमन ने शनिवार को जेवरा गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में किसानों को संबोधित करते हुए कही। पाठशाला में कीटों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए बरवाला व आस-पास के सैंकडों किसानों के अलावा नूरमहल जालंधर से गुरप्रीत, चैनलाल, सरपंच लखविंद्र ने भी शिरकत की। पाठशाला में मौजूद किसानों ने सब्जियों व कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन किया। किसानों को कीटों के जीवन चक्र व क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। 
मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने बताया कि फसल में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण शाकाहारी कीट सफेद का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि किसानों द्वारा सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए जिस कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है, उस कीटनाशक से सफेद मक्खी के साथ-साथ उसे नियंत्रित करने के लिए उसके पेट में पल रहे दूसरे मांसाहारी कीट भी मर जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्राकृति ने एक चैन सिस्टम बनाया हुआ है लेकिन मनुष्य ने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर इस चैन सिस्टम को तोड़ दिया है और इसी के कारण यह परेशानी आज किसानों के सामने आ रही है। पौधा अपनी जरूरत के अनुसार ही शाकाहारी कीटों को बुलाता है लेकिन उसके साथ ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीटों को भी बुला लेता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इनो व इरो नामक परपेटिया मांसाहारी कीट फसल में मौजूद होते हैं। इनो व इरो सफेद मक्खी के पेट में अपने अंडे देते हैं। इनो व इरो का अंडा, बच्चा व प्यूपा तीन ही प्रक्रिया सफेद मक्खी के पेट में होती हैं। प्रौढ़ बनने के बाद यह सफेद मक्खी के पेट से बाहर आती है लेकिन जब किसान सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का प्रयोग करता है तो सफेद मक्खी के साथ-साथ उसके पेट में पल रहे इन मांसाहारी कीटों की तीनों स्टेज खत्म हो जाती है। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किए गए कीटना
 पाठशाला में मौजूद महिलाएं। 
शक से सफेद मक्खी तो मुश्किल से 50 प्रतिशत ही खत्म होती है लेकिन उसके पेट में पल रहे मांसाहारी कीट इनो-इरो की तो तीनों स्टेज खत्म हो जाती हैं। इसलिए किसान सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए जहर डालने की बजाए पौधों को खुराक देने का काम करना चाहिए। ताकि सफेद मक्खी द्वारा पौधे का जो रस चूसा गया है उस खुराक से पौधा उसकी रिकवरी कर सके। महिला किसानों ने बताया कि इस बार यह देखने में आया है कि सफेद मक्खी का प्रकोप नॉन बीटी हाईब्रिड व देशी कपास की बजाए बीटी कपास में ज्यादा है। उन्होंने बताया कि  भिंडी, घीया, मिर्च व बैंगन की सब्जियों पर भी उनका प्रयोग चल रहा है। इनमें भिंडी की फसल में हरेतेले की संख्या ज्यादा है लेकिन इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि इन्हें नियंत्रित करने के लिए मकड़ी, क्राइसोपा, इनो-इरो, अंगीरा हथजोड़ा, दैत्यामक्खी, डाकू बुगड़ा पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं। पंजाब से आए किसानों ने बताया कि दिव्य ज्योतिग्राम के नाम से उनकी संस्था है और यह संस्था लगभग 200 एकड़ में बिना पेस्टीसाइड की खेती कर रही है। यहां पर उनका आने का उद्देश्य कीटों के बारे में प्रशिक्षण हासिल करना था ताकि वह वहां के दूसरे किसानों को भी इसके बारे में प्रशिक्षित कर सकें। 


 सब्जी के पौधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं। 







रविवार, 26 जुलाई 2015

कीटनाशकों के प्रयोग से कुदती कीटनाशियों का हो जाता है खातमा

नरेंद्र कुंडू 
बरवाला। जेवरा गांव में महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में जींद जिले की मास्टर ट्रेनर महिला किसान सविता, सुषमा, यशवंती, सीता विशेष रूप से मौजूद रही। पाठशाला में पंजाब से प्रगतिशील किसान अशोक, विनोद ज्याणी सहित फतेहाबाद के किसान भी जानकारी हासिल करने के लिए पहुंचे। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने ग्रुप बनाकर पौधों पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की गिणती की। बाद में कीटों के आंकलन को चार्ट पर उतारा गया। 
पाठशाला में लैंस से कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आज कपास उत्पादित क्षेत्र में शाकाहारी कीट सफेद मक्खी का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है और यह स्थिति उन-उन खेतों में ज्यादा सामने आ रही है, जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग ज्यादा हो रहा है। क्योंकि कीटनाशकों के प्रयोग से फसल में मौजूद कुदरती कीटनाशी खत्म हो जाते हैं। इसके बाद शाकाहारी कीटों को बढऩे के लिए अवसर मिल जाता है। जिन-जिन खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया है वहां पर सफेद मक्खी नियंत्रण में है।
चार्ट पर कीटों का बही खाता तैयार करती मास्टर ट्रेनर महिला किसान सविता। 
 महिला किसानों ने बताया कि कपास की फसल के मेजर रस चूसक कीट सफेद मक्खी, हरा तेले व चूरड़े को नियंत्रित करने के लिए इस समय फसल में क्राइसोपा, दीदड़ बुगड़ा, डाकू बुगड़ा, बीटल, हथजोड़ा, इनो-इनो काफी संख्या में मौजूद हैं। इनो-इरो परपेटिया कीट हैं और यह सफेद मक्खी के पेट में अपने बच्चे देकर सफेद मक्ख्ी को नियंत्रित करने का काम करती हैं। वहीं डाकू बुगड़ा, क्राइसोपा, बीटल इसके बच्चों को खाकर नियंत्रित करने का काम करती हैं। इस प्रकार यह मांसाहारी कीट इन शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने में एक तरह से कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। पंजाब से आए प्रगतिशील किसान अशोक कुमार ने किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि उन्होंने भी जींद जिले की तर्ज पर पंजाब में थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए मुहिम चलाई हुई है। वहां के काफी किसानों ने कीट ज्ञान हासिल करने के बाद कपास, सब्जियों व अन्य फसलों में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दिया है। वहां के किसान बिना रासायनिक व कीटनाशकों के प्रयोग के अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। 


मांसाहारी कीट क्राइसोपा के बच्चे का फोटो।

मांसाहारी कीट दीदड़ बुगड़े का फोटो। 






रविवार, 19 जुलाई 2015

सफेद मक्खी से भयभीत नहीं हों किसान

अच्छे उत्पादन के लिए पौधों को दें पर्याप्त खुराक 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। शनिवार को जेवरा गांव में महिला पाठशाला के तीसरे सत्र का आयोजन किया गया। पाठशाला में जेवरा गांव सहित लगभग दर्जनभर गांवों के महिला व पुरुष किसानों ने भाग लिया। हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण पाठशाला में विशेष रूप से मौजूद रहे। जींद जिले से पाठशाला में पहुंची मास्टर ट्रेनर प्रमीला, मुकेश, असीम, शकुंतला व नवीन ने पाठशाला में मौजूद महिला व पुरुष किसानों को कीटों की पहचान करवाने के साथ-साथ उनके क्रियाकलापों से फसलों पर पडऩे वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी। पाठशाला के आरंभ में सभी किसानों ने पौधों पर मौजूद मांसाहारी व शाकाहारी कीटों की गिणती कर कीटों का आंकड़ा तैयार किया।
पाठशाला में आए किसानों ने मास्टर ट्रेनर महिला किसानों के समक्ष अपनी समस्या रखते हुए बताया कि कपास के मेजर कीटों में शुमार सफेद मक्खी का उनकी फसलों में प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। फसलों में सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप से किसान बुरी तरह भयभीत हैं। सफेद मक्खी ईटीएल लेवल पार कर चुकी है। मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने किसानों की शंका का समाधान करते हुए बताया कि इस बार फसलों में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ज्यादा है लेकिन किसानों को इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। फसल को सफेद मक्खी के प्रकोप से बचाने के लिए पौधों को पर्याप्त खुराक देने की जरूरत है। इसके लिए किसान डॉ. दलाल घोल का प्रयोग कर सकते हैं। पाठशाला में मौजूद सभी किसानों से सर्वसम्मति से फैसला लिया कि फसल में पेस्टीसाइड का प्रयोग करने की बजाए वह पौधों को पर्याप्त खुराक देंगे। किसानों द्वारा तैयार किए गए आंकड़े में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 14.2, हरे तेले की 0.8 व चूरड़े की 5.7 थी। जबकि इटीएल लेवल के अनुसार सफेद मक्खी की संख्या छह, हरे तेले की दो व चूरड़े की 10 होनी चाहिए।
कपास की फसल में कीटों की गिनती करती महिला किसान।

इस तरह तैयार करें घोल 

ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक को अलग-अलग बर्तनों में पानी में घोलें। डीएपी को छिड़काव करने से एक दिन पहले पानी में भीगो दें। खाद को घोलने के लिए किसी धातू के बर्तन की बजाए मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन का प्रयोग करें। ढाई किलो यूरिया व ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक के घोल को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में इसका छिड़काव फसल पर करें। इससे पौधों को पर्याप्त खुराक मिलेगी और सफेद मक्खी का प्रकोप पौधों पर कम पड़ेगा।

छह हजार खर्च के बाद भी नहीं हुआ समाधान 

पाठशाला में पहुंची जेवरा की महिला किसान रामरती ने अपना अनुभव सांझा करते हुए बताया कि पिछले वर्ष उसने चार एकड़ में कपास की बिजाई की थी। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए उसने प्रति एकड़ में लगभग छह हजार रुपये के पेस्टीसाइड के स्प्रे का प्रयोग किया था लेकिन इसके बावजूद भी सफेद मक्खी का कोई समाधान नहीं हुआ। पिछले वर्ष चार एकड़ में उसे महज 17 मण कपास का ही उत्पादन हुआ था। इसलिए पेस्टीसाइड से सफेद मक्खी को नियंत्रित करना संभव नहीं है। कुदरती कीटनाशी ही सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में किसानों की मदद कर सकते हैं।
किसान रामरती का फोटो।












रविवार, 12 जुलाई 2015

एकत्रित किए गए अतरिक्त भोजन को बाहर निकालने के लिए शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं पौधे

नरेंद्र कुंडू
बरवाला।
क्षेत्र के जेवरा गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की धर्मपत्नी कुसुम दलाल ने बतौर मुख्यातिथि के तौर पर शिरकत की। पाठशाला में पंजाब के कुछ प्रगतिशील किसान भी शामिल हुए। पाठशाला के आरंभ में पौधों पर मौजूद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की गिनती कर बोर्ड पर कीटों का आंकड़ा दर्ज किया।
मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो, राजवंती, बीरमती, बिमला व कमलेश ने बताया कि पाठशाला में मौजूद महिला व पुरुष किसानों को संबोधित करते हुए बताया कि कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि पौधे 24 घंटे में लगभग साढ़े चार ग्राम भोजन तैयार करते हैं और इस भोजन को तीन भागों में बांटते हैं।
पाठशाला में बोर्ड पर आंकड़ा तैयार करती महिला किसान।
भोजन का एक तिहाई हिस्सा जड़ों को, एक तिहाई ऊपरी भाग को देते हैं तथा एक तिहाई अपने पास रिजर्व के रूप में रखते हैं। ताकि मुसिबत के समय उस भोजन से अपना काम चला सकें। यदि पौधे पर किसी तरह की मुसिबत नहीं आती है तो पौधो उस जमा किए गए अतिरिक्त भोजन को निकालने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं और यह शाकाहारी कीट रस आदि चूसकर पौधे द्वारा एकत्रित किए गए भोजन को बाहर निकालकर एक तरह से पौधों की मदद करते हैं। जब तक यह शाकाहारी कीट ईटीएल लेवल तक रहते हैं तो पौधे को किसी तरह का नुकसान नहीं होता। यदि यह ईटीएल लेवल से ऊपर निकलते हैं तो पौधे पर इसका नुकसान आता है लेकिन शाकाहारी कीटों को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर तक पहुंचने से रोकने के लिए पौधे मांसाहारी कीटों को बुलाते हैं। मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर पौधों की सुरक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने जो भी कीट बनाया है प्रकृति के लिए उसका अपना महत्व है। किसानों द्वारा तैयार किए गए कीटों के आंकड़े में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 11, हरे तेले की 1.2 तथा चूरड़े की संख्या 4.7 दर्ज की गई। सफेद मक्खी की बढ़ी हुई संख्या पर किसानों ने बारिकी से मंथन किया। किसानों ने सामूहिक फैसला लिया कि ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक का घोल तैयार कर पौधों को ताकत प्रदान करने के लिए पर्याप्त मात्रा में खुराक दी जाए। पंजाब से आए प्रगतिशील किसान अशोक ने बताया कि वह भी जींद जिले के किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर पिछले कई वर्षों से जहरमुक्त खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। जींद जिले के किसानों की तर्ज पर पंजाब में भी उनके द्वारा किसान खेत पाठशालाओं का आयोजन किया जा रहा है।


 


मंगलवार, 7 जुलाई 2015

भ्रम के जाल में फंसकर कीटों को मार रहे किसान

जींद के बाद अब बरवाला में जलाई कीट ज्ञान की अलख

नरेंद्र कुंडू 
बरवाला। क्षेत्र के जेवरा गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। पाठशाला का आयोजन जेवरा गांव के किसान दलजीत के खेत में किया गया। जींद जिले की मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने जेवरा गांव की महिलाओं को कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान करवाने के साथ-साथ उनके क्रियाकलापों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। पाठशाला में महिलाओं के साथ-साथ वहां के पुरुष किसानों की भी भागीदारी रही।
मास्टर ट्रेनर सविता, सुषमा, शीला, नारो तथा जसबीर कौर ने महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कीट न तो हमारे मित्र हैं और न ही हमारे दुश्मन हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर अपनी रक्षा के लिए कीटों को बुलाते हैं लेकिन किसानों को कीटों की पहचान नहीं होने के कारण किसान भय व भ्रम के जाल में फंसकर कीटों को मार रहे हैं। उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों को पौधों पर मौजूद कीटों की पहचान करवाकर कीटों की गिनती कर आंकड़ा तैयार किया। एक पौधे पर मिलीबग के बच्चे भी देखे गए। महिला किसानों ने क्राइसोपे के बच्चे को कीड़े का कत्ल कर उसकी लाश को पीठ पर उठाकर घूते हुए तथा इनजनहारी द्वारा अपने बच्चे के पालन-पोषण के लिए मिट्टी के तोंदे में सूंडियों को रोके हुए देखा।
 इनजनहारी द्वारा मिट्टी के तोंदे में रोकी गई सूंडियां।

ईटीएल लेवल से पार पहुंची सफेद मक्खी की संख्या

पाठशाला में मेजर कीट सफेद मक्खी, हरे तेले व चूरड़े की गिनती की गई जिसमें सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 7.9, हरे तेले की संख्या 0.35, चूरड़े की संख्या 1.7 रही। किसानों ने बताया कि पिछले सप्ताह फसल में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 2.1, हरे तेले की 0.25 तथा चूरड़े की संख्या 0.03 थी। जबकि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सफेद मक्खी का ईटीएल लेवल प्रति पत्ता छह, हरे तेले का दो और चूरड़े का 10 से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन इस बार यह संख्या ईटीएल लेवल को पार कर चुकी है। मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मेजर कीट सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़े को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद हैं। इसके बाद सभी किसानों से सर्वसम्मति से फैसला किया कि इस मामले में किसी भी प्रकार का फैसला अगले सप्ताह लिया जाएगा। क्योंकि इस बार फसल में सफेद मक्खी की संख्या बच्चों की बजाए प्रौढ़ की ज्यादा है। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट इनो है। इनो एक बार में 100 से 150 अंडे देती है और एक सफेद मक्खी के पेट में एक ही अंड़ा देती है। इस अंडे से निकलने वाले इनो के बच्चे सफेद मक्खी को खाकर नियंत्रित कर लेते हैं।
 : पौधों पर कीटों की पहचान करती महिला किसान।

यह-यह मांसाहारी कीट भी मिले

फसल में शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट क्राइसोपा के अंडे, बच्चे, बीटल, डाकू बुगड़ा, मकड़ी, इनो, दीदड़ बुगड़ा, इनजनहारी, बिंदुआ चूरड़ा, अंगीरा, ब्रहमनो बीटल काफी संख्या में मौजूद रहे।

दो प्रकार के होते हैं कीट

मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि कीट दो प्रकार के होते हैं। एक मांसाहारी तथा दूसरे शाकाहारी। शाकाहारी कीट पौधे से रस चूसकर, पत्ते व फूलों को खाकर अपना गुजारा करते हैं और मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर किसान के लिए फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। शाकाहारी कीट भी दो किस्म के होते हैं। एक रस चूसकर गुजारा करने वाले तथा दूसरे चबाकर खाने वाले कीट।
महिला किसान शकुंतला 

महिलाओं के  लिए काफी ज्ञानवर्धक सिद्ध होगी पाठशाला

मैं अपने परिवार के साथ खेतीबाड़ी का कार्य करती हूं लेकिन आज तक मुझे फसल में मौजूद कीटों के बारे में जानकारी नहीं थी। आज पाठशाला में मास्टर ट्रेनर किसानो द्वारा दी गई जानकारी से फसल में मौजूद कीटों के महत्व के बारे में जानकारी हासिल हुई है। इससे पहले मुझे कीटों के बारे में इतनी ज्यादा जानकारी नहीं थी। यहां लगाई गई यह पाठशाला किसानों के लिए काफी ज्ञनवर्धक साबित होगी।
शकुंतला, महिला किसान
जेवरा

पति से ही मुझे थोड़ी बहुत कीटों के बारे में हुई जानकारी 

महिला किसान रानी  
मेरा पति पिछले वर्ष से कीटाचार्य किसानों के साथ जुड़ा हुआ है। हम भी पिछले वर्ष से बिना जहर की खेती कर रहे हैं। पति से ही मुझे थोड़ी बहुत कीटों के बारे में जानकारी हुई थी लेकिन इस बार हमारे यहां पाठशाला शुरू होने से कीटों के बारे में हमें काफी ज्ञान मिलेगा। मास्टर ट्रेनर महिला किसानों द्वारा काफी बारिकी से जानकारी दी गई है।
रानी, महिला किसान
जेवरा











बुधवार, 20 मई 2015

बेजुबान चित्रों में रंगों से जान फूंक रहे कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक

राष्ट्रपति भवन तथा कई म्यूजिमों में शोभा बढ़ा रही दीपक की पेंटिंगें
पेंटिंग प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं दीपक कौशिक 

नरेंद्र कुंडू
जींद। भले ही रंग बेजुबान होते हैं लेकिन रंगों की भाषा के भाव पढऩे वाले या यूं कहे कि रंगों को समझने वाले कद्रदान इस भाषा को पढ़ते भी हैं और सुनते भी। शहर के रामराये गेट निवासी चित्रकार दीपक कौशिक भी कुछ इसी तरह से इन रंगों का दीवाना है। चित्रकार दीपक कौशिक चित्रकला में इतना निपूर्ण है कि वह रंगों से बेजुबान चित्रों व मूर्तियों में जान डाल देता है। दीपक कौशिक की उंगलियों में ऐसा जादू है कि उसकी उंगलियां जिस भी चित्र को छू लेती हैं वह एकदम से संजीव हो जाती है या यूं कहे की वह एक तरह से बोलने लगती है। दीपक कौशिक मास्टर ऑफ फाइन आर्ट (एमएफए) की डिग्री हासिल करने के बाद से गोपाल स्कूल में कला अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहा है और यहां बच्चों को कला के गुर सिखा रहा है। दीपक कौशिक की कला का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके द्वारा तराशे गए आठ बच्चे भी स्टेट गर्वनर अवार्ड हासिल कर चुके हैं। आर्टिस्ट दीपक द्वारा तैयार की गई कई पेंटिंगें आज भी कई म्यूजियमों से लेकर राष्ट्रपति भवन तक की शोभा बढ़ा रही हैं। दीपक द्वारा बनाई गई कलाकृतियों में ऐसा जादू है कि कोई भी व्यक्ति न चाहते हुए भी अपने आप कलाकृति की तरफ आकर्षित हो जाता है। आर्टिस्ट दीपक वॉटर कलर पेंटिंग, ऑयल पेंटिंग, मिक्स मीडिया, कोलाज मूर्तिकला, पैंसील, चॉरकोल, पेस्टल, ड्राय पेस्टल सभी कलाओं में पारंगत है। इतना ही नहीं दीपक समय-समय पर अपनी पेंटिंगों के माध्यम से लोगों को सामाजिक कुरीतियों के बारे में भी जागृत करने का काम करता रहता है। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल द्वारा शराबबंदी के दौरान लोगों को नशे के प्रति जागरूक करने के लिए भी दीपक ने काफी काम किया है। नशाखोरी पर पेंटिंगें बनाकर दीपक ने लोगों को जागरूक करने का काम किया है। इसी के चलते दीपक को सामाजिक चेतना के लिए रैड एंड व्हाइट बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं दीपक एक अच्छा कार्टुनिस्ट भी है। दीपक पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल, ओमप्रकाश चौटाला, सांसद रमेश कौशिक सहित कई राजनेताओं व अन्य हस्तियों के अच्छे-अच्छे कार्टून तैयार कर उन्हें भेंट कर चुका है।

पिता से मिली पेंटिंग करने की प्रेरणा  

आर्टिस्ट दीपक कौशिक ने बताया कि उसे पेटिंग करने की प्रेरणा अपने पिता से मिली है। दीपक के पिता ज्योतिषी हैं और उस समय में हाथ से जन्मपत्री तैयार की जाती थी। दीपक अपने पिता की बची हुई पेंसिलों से पेंटिंग करने लगा तो पिता ने अपने बेटे की कला को परखते हुए उसे पेंटिंग करने के लिए सामान उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया है। इस तरह धीरे-धीरे पेंटिंग के प्रति दीपक का रूझान बढऩे लगा। १२वीं की परीक्षा पास करने के बाद दीपक ने पढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन उसके मन में कुछ सीखने की इच्छा थी। इसके बाद दीपक ने 2005 में चंडीगढ़ के राजकीय कला महाविद्यालय में मूर्ति कला में दाखिला लिया और आगे की पढ़ाई जारी की। इसके बाद यहीं से दीपक ने अपनी एमएफए की पढ़ाई पूरी की।
वित सचिव को पेंटिंग भेंट करते आर्टिस्ट दीपक कौशिक।

तीसरी कक्षा में लड़ा था पहला कम्पीटिशन

दीपक कौशिक बताते हैं कि उन्होंने तीसरी कक्षा में अपने जीवन का पहला कम्पीटिशन लड़ा था। दीपक ने बताया कि जब वह तीसरी कक्षा में था तो इसी दौरान रैडक्रॉस सोसायटी द्वारा जींद के अर्जुन स्टेडियम में चित्रकला कम्पीटिशन का आयोजन किया गया था। जिस दिन कम्पीटिशन था उस दिन दीपक को बुखार हो गया लेकिन दीपक के अध्यापकों ने दीपक को कम्पीटिशन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया तो दीपक ने कम्पीटिशन में भाग लिया और इस कम्पीटिशन में दीपक को पुरस्कार भी मिला। दीपक ने बताया कि आज तक उसने जितने भी कम्पीटिशनों में भाग लिया उन सभी कम्पीटिशनों में उन्होंने अहम स्थान प्राप्त किया है।
पेंटिंग में रंग भरते आर्टिस्ट दीपक कौशिक।

जींद में नहीं किसी भी तरह की कला को आगे बढ़ाने का वातावरण 

कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक का कहना है कि जींद जिला आज भी काफी पिछड़ा हुआ है। यहां किसी भी कला को आगे बढ़ाने के लिए वातावरण सही नहीं है। यहां अच्छी सुविधाएं नहीं होने के कारण कलाकार आगे नहीं बढ़ पाते। इसके लिए कलाकारों को जींद को छोड़कर बाहर का रुख करना पड़ता है।

5500 फुट लंबी कलाकृति है सबसे यादगार 

कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक ने बताया कि वैसे तो एक चित्रकार के लिए हर कलाकृति बेहतर व यादगार होती है। पर यूटी चंडीगढ़ द्वारा आयोजित फुड फेस्टीवल में बनाई गई 5500 फुट लंबी पेंटिंग व अन्ना हजारे के आंदोलन में बनाई गई 750 फुट लंबी पेंटिंग सबसे यादगार कलाकृतियां हैं। इन कलाकृतियों से जो अनुभव मिला वह हमेशा याद रहेगा।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को पेंटिंग भेंट करते दीपक कौशिक।

यह-यह प्रमुख पुरस्कार प्राप्त किए

1. स्कूल शिक्षा के दौरान 100 से अधिक पुरस्कार प्राप्त किए।
2. सामाजिक चेतना के लिए रैड एंड व्हाइट बहादुरी पुरस्कार
3. ललित कला अकादमी अवार्ड (चंडीगढ़)
4. सुजान सिंह मैमोरियल अवार्ड
5. भारत विकास परिषद द्वारा सम्मान
6. संस्कार भारती पूणे द्वारा कला सम्मान
7. पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला द्वारा सम्मान
8. पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद द्वारा सम्मान
9. पूर्व मानव संस्थान मंत्री मुरली मनोहर जोशी द्वारा सम्मान
10. हरियाणा शिक्षा मंत्री वित्त मंत्री द्वारा सम्मान
11. कला महाविद्यालय की वार्षिक कला प्रदर्शनियों में 2005, 2006, 2007, 2008  व 2011 में पुरस्कार प्राप्त किया।
12. राष्ट्रपति भवन में नवंबर 2014 को महामहिम राष्ट्रपति की अपनी कलाकृति भेंट की।

यहां-यहां शोभा बढ़ा रही हैं दीपक की कलाकृतियां 

1. राष्ट्रपति भवन दिल्ली
 दीपक कौशिक द्वारा तैयार की गई पेंटिंग।
2. चंडीगढ़ म्यूजियम
3. शिमला म्यूजियम
4. कला समीक्षक वीएस गोस्वामी
5. होम सैक्टरी यूटी चंडीगढ़
6. फाइनेंस सैक्रेटरी चंडीगढ़
7. पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति कार्यालय
8. यूटी गेस्ट हाउस
9. यूटी टूरिजम
10. यूटी एजुकेशन
11. माऊट व्यू होटल


 पेंटिंग प्रतियोगिता में पेंटिंग करते दीपक कौशिक। 







बीज-खाद के लिए हाथ नहीं फैलाएं अन्नदाता

किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना झांझ कलां का सुरेश
अपनी सुझबुझ से सुरेश ने तैयार की गेहूं की अनोखी किस्म
किसान सुरेश रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए देशी पद्धति से करता है खेती

नरेंद्र कुंडू 
जींद। वैसे तो किसान को अन्नदाता का दर्जा दिया गया है लेकिन आज हालात इसके बिल्कुल विपरित हो चले हैं। सब्सिडी पर बीज, खाद इत्यादि खरीदने के लिए देश का यह अन्नदाता बाजार में हाथ फैलाए खड़ा रहता है। यदि किसान स्वयं अपने खेत में ही बीज, खाद तैयार करने लगे तो उसे छोटी-छोटी सब्सिडी के लिए बाजार में हाथ फैलाने की जरूरत नहीं होगी। यह मानना है झांझ कलां गांव निवासी किसान सुरेश ङ्क्षसहमार का। महज दसवीं पास सुरेश ङ्क्षसहमार पांच एकड़ में खेतीबाड़ी का कामकाज कर अपने परिवार का गुजर-बसर करता है। सुरेश की एक खूबी है जो उसे अन्य किसानों से अलग करती है। सुरेश समय-समय पर अपने खेत में तैयार हो रही फसलों पर अकसर नए-नए प्रयोग करता रहता है और अपनी इसी आदत के कारण सुरेश ने गेहूं की एक अनोखी किस्म तैयार कर दी है। सुरेश द्वारा अपने खेत में तैयार किए गए गेहूं के इस बीज की किस्म सामान्य गेहूं से अलग है। सामान्य गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की लंबाई लगभग दो गुणा तक ज्यादा है और इस गेहूं की बालियां भी सामान्य गेहूं की बालियों से लगभग डेढ़ गुणा ज्यादा लंबी है। सामान्य गेहूं के पौधों की बजाय इस गेहूं के पौधो भी काफी मजबूत हैं। अपनी इसी खूबी के कारण यह गेहूं दूर से अलग ही दिखाई देता है। दूसरे गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की बालियां लंबी तथा मोटी होने के कारण इसका उत्पादन भी दूसरे गेहूं की किस्मों से लगभग दो गुणा ज्यादा होता है। सुरेश को यह बीज तैयार करने में लगभग तीन वर्ष का समय लगा है। अब सुरेश के पास दस एकड़ का गेहूं का बीज तैयार है, जिसे सुरेश मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने दूसरे किसान साथियों को बिजाई के लिए देगा। ताकि अधिक से अधिक किसान इस बीज की बिजाई कर कम खर्च में अच्छा उत्पादन ले सकें। सुरेश की एक खास बात यह भी है कि वह दूसरे किसानों की तरह अपने खेत में अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करता है। सुरेश पूरी तरह से कूदरती तरीके से खेती करता है और अपने खेत में रासायनिक उर्वरकों की बजाए देशी खाद का प्रयोग करता है। कम खर्च से अधिक पैदावर लेने के कारण खेती सुरेश के लिए घाटे का सौदा नहीं बल्कि आमदनी का मुख्य साधन बनी हुई है।

ऐसे तैयार हुआ बीज

झांझ कलां निवासी सुरेश कुमार ने अपने खेतों में ही घर बनाया हुआ है। लगभग तीन वर्ष पहले सुरेश अपने खेत में गेहूं की कटाई कर रहा था। इसी दौरान सुरेश की नजर खेत में खड़े गेहूं के एक पौधे पर गई, जो उस गेहूं से पूरी तरह से अलग दिखाई दे रहा था। सुरेश ने उस गेहूं की बाली को तोड़कर घर पर सुरक्षित रख लिया। अगले वर्ष गेहूं की बिजाई के दौरान उस गेहूं की बाली से गेहूं निकालकर उसकी अलग से बिजाई कर दी। उस एक बाली से 100 के करीब दाने निकले। अच्छे तरीके से बिजाई किए जाने के कारण उस गेहूं का फुटाव भी अच्छा हुआ। सुरेश हर वर्ष इस गेहूं को सुरक्षित रखकर अगले वर्ष इसी तरीके से इसकी बिजाई कर देता। इस तरह सुरेश की तीन वर्ष की मेहनत के बाद आज सुरेश के पास लगभग दस एकड़ का बीज तैयार हो चुका है। सुरेश का कहना है कि वह दस एकड़ के इस बीज को अनाज मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने साथी किसानों को बीज के तौर पर देगा, ताकि इस किस्म की अधिक से अधिक बिजाई कर अधिक से अधिक यह बीज तैयार किया जा सके। यह गेहूं की किस्म कौनसी है इसके बारे में जानकारी लेने के लिए सुरेश कृषि वैज्ञानिकों का सहयोग भी लेगा।

क्या है इस गेहूं की किस्म की खूबी

तैयार की गई नई किस्म के गेहूं की बालियों को दिखाता किसान।
सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं के पौधे की लंबाई साढ़े चार फीट है, जबकि सामान्य किस्म के पौधों की लंबाई अढ़ाई से तीन फीट होती है। इस गेहूं की बालियों की लंबाई नौ इंच है, जबकि सामान्य किस्म के गेहूं की बालियों की लंबाई महज साढ़े पांच इंच की होती है। इस गेहूं की बालियों में सामान्य गेहूं की बालियों से गेहूं के दानों की संख्या भी काफी ज्यादा होती है। इस किस्म के पौधे का तना सामान्य किस्म के पौधे के तने से काफी मोटा होता है। सुरेश के अनुसार सामान्य किस्म से उसके खेत में हर वर्ष प्रति एकड़ 40 से 45 मण कि औसत निकलती है जबकि इस गेहूं की औसत 75 से 80 मण प्रति एकड़ निकल रही है। इस किस्म के पौधे सामान्य किस्म से मोटे होने के कारण इससे पशुओं का चारा भी अधिक मिलता है।

अखिल भारतीय किसान मोर्चा करेगा सुरेश को प्रोत्साहित 

इस तरह के प्रगतिशील किसानों को प्रेरित करने के लिए अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चा विशेष अभियान चलाए हुए है। अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चे का मुख्य उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बंद कर ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना है। उन्हें जब इस किसान के बारे में पता चला तो उन्होंने इस किसान को आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। मोर्चा इस किसान को साथ लेकर अन्य किसानों को भी जागरूक करेगा तथा इस किसान को सरकार से प्रोत्साहन दिलवाने के लिए प्रयास करेगा। ताकि इस तरह के किसानों को रोल मॉडल बनाकर दूसरे किसानों को प्रेरित किया जा सके।
सुनील कंडेला, प्रदेशाध्यक्ष
अखिल भारतीय किसान जागरूक मोर्चा

खेत में खड़ी नई किस्म की गेहूं को दिखाता किसान सुरेश। 




मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

किसान-कीट विवाद को सुलझाने का प्रयास

न्यायिक कमेटी के सदस्यों ने खाप चौधरियों को भेजी रिपोर्ट

रिपोर्ट में कीट ज्ञान की मुहिम को देश में लागू करने का किया समर्थन

न्यायिक कमेटी के निर्णय से खाप पंचायत के फैसले को मिली मजबूती

किसान-कीट विवाद सुलझाने के लिए फरवरी माह में निडाना में हुई थी खाप पंचायत

नरेंद्र कुंडू
जींद।
किसानों और कीटों के बीच दशकों से चली आ रही अंतहीन जंग में दोनों पक्षों के बीच समझौता करवाने के लिए गत 20 फरवरी को निडाना में आयोजित हुई सर्व खाप महापंचायत की न्यायिक कमेटी ने खाप प्रतिनिधियों को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। न्यायिक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जींद जिले के किसानों द्वारा चलाई जा रही कीट ज्ञान की मुहिम को देश में लागू करवाने तथा पेस्टीसाइड कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। न्यायिक कमेटी द्वारा खाप प्रतिनिधियों के पक्ष में दी गई इस रिपोर्ट से खाप पंचायत के फैसले को भी मजबूती मिली है। न्यायिक कमेटी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर अब खाप प्रतिनिधि केंद्रीय तथा प्रदेश के मंत्रियों को ज्ञापन भेजकर इस मुहिम को कृषि नीति में शामिल करने की मांग करेंगे। ताकि दूषित हो रहे खान-पान को बचाकर थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके।
निडाना गांव में आयोजित खाप पंचायत के दौरान सेवानिवृत न्यायधीश को कीटों की जानकारी देती महिला किसान।

यह है पूरा मामला

फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे पेस्टीसाइड के कारण दूषित हो रहे खान-पान को बचाने के लिए कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान की मुहिम शुरू की थी। इस मुहिम के तहत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने किसानों के साथ मिलकर फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों पर बारिकी से शोध किया था। शोध के दौरान यह सामने आया कि कीट मांसाहारी और शाकाहारी दो प्रकार के होते हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। उत्पादन बढ़ाने में कीटों का अहम योगदान है लेकिन किसान अज्ञानतावश अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग कर कीटों को मार रहे हैं। जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग हुआ है, वहां-वहां कीटों ने ईटीएल लेवल पार किया है। जागरूकता के अभाव में किसानों व कीटों के बीच यह जंग छिड़ी हुई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए 26 जून 2012 को कीटाचार्य किसानों ने खाप प्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपकर यह विवाद सुलझाने की गुहार लगाई थी। ज्ञापन के बाद खाप प्रतिनिधियों ने तीन वर्षों तक किसानों के साथ मिलकर कीटों पर शोध किया था। इसके बाद इस विवाद को सुलझाने के लिए 20 फरवरी 2015 को निडाना गांव में सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया था। विवाद को सुलझाने में खाप प्रतिनिधियों से कोई चूक नहीं हो इसके लिए अलग से एक न्यायिक कमेटी गठित की गई थी। महापंचायत में कीटाचार्य किसानों ने कीटों का पक्ष रखा था। खाप प्रतिनिधियों तथा ज्यूरी ने दोनों पक्षों को ध्यान से सुना था। इसके बाद ज्यूरी इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए खाप प्रतिनिधियों से समय मांगा था। अब ज्यूरी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर खाप प्रतिनिधियों को सौंप दी है। 

यह-यह लोग थे न्यायिक कमेटी में शामिल

महापंचायत में गठित की गई न्यायिक कमेटी में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय चंडीगढ़ के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन अग्रवाल, खाद्य एवं व्यापार नीति विश्लेषक देेवेंद्र शर्मा, हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल को शामिल किया गया था।  बॉक्स

यह है ज्यूरी की सिफारिश 

1. किसानों को कीटनाशियों के छिड़काव के कीटों पर पडऩे वाले बुरे प्रभाव के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। इसलिए डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा जिन 183 व्यक्तियों को यह ज्ञान दिया गया है उन्हें जागरूकता फैलाने के लिए परिवर्तन एजेंट बनाया जा सकता है।
2. कीटनाशी निर्माता कंपनियां किसानों को गुमराह करती हैं। इसलिए इन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया जाए।
3. कृषि विश्वविद्यालयों में अनुसंधान अनुशंसित किया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी प्रयोगशाला में अनुसंधान कर सकें और इस विचार को ओर बल मिल सके।

ज्यूरी का निष्कर्ष

ज्यूरी ने यह अनुभव किया कि 20 फरवरी 2015 को जींद जिले के निडाना गांव में विभिन्न समूहों द्वारा उनके समक्ष किए गए प्रस्तुतीकरण इस मामले में अनूठे थे कि उनसे कीटों के बारे में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। ज्यूरी यह सिफारिश करता है कि डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को बिना किसी देरी के किसानों के बीच पहुंचाया जाना चाहिए, ताकि राज्य में जल्दी से जल्दी किसानों के हित में कीटनाशियों के उपयोग को रोका जा सके। ऐसा करके बहुत थोड़े से खर्च से राज्य एक ऐसा क्रांतिकारी कदम उठाने में समर्थ होगा,  जिससे राज्य को पूरे देश में विशेष सम्मान प्राप्त होगा।

खाप प्रतिनिधि चलाएंगे अभियान

खाप पंचायत में दोनों पक्षों को सुनने के बाद खाप पंचायत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि कीट बेजूबान हैं और किसान भोला है। इसलिए किसी तीसरे पक्ष ने किसानों को गुमराह कर इस अंतहिन लड़ाई की शुरूआत की है। महापंचायत के इस फैसले को वैज्ञानिक तौर पर मान्यता दिलवाने के लिए पंचायत में ज्यूरी का गठन किया गया था। ज्यूरी द्वारा पंचायत के पक्ष में रिपोर्ट देने से पंचायत के फैसले को बल मिला है। अब खाप प्रतिनिधि इस लड़ाई को खत्म करवाने के लिए गांव स्तर पर कमेटियों का गठन कर कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटाचार्य किसानों की मदद से अभियान चलाएंगे। इसके अलावा सरकार से भी इस महिम को पूरे प्रदेश में लागू कर प्रदेश को रसायनमुक्त घोषित करने की मांग की जाएगी।
कुलदीप ढांडा, संयोजक सर्व खाप महापंचायत



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रविवार, 19 अप्रैल 2015

जिला कारागार में मिल्ट्री की तर्ज पर बनेगी कैंटीन

अब जेल में बंद कैदियों व बंदियों के लिए परिजन बाहर से नहीं पहुंचा सकेंगे सामान
पूरी तरह से कैशलैस होगी कैंटीन, प्रत्येक कैदीं व बंदीं का कैंटीन में खुलेगा खाता
बॉयोमैट्रीक सिस्टम से कैदियों को मिलेगा कैंटीन से सामान 


नरेंद्र कुंडू 

जींद। जिला कारागार में बंद कैदी व बंदी जल्द ही कैंटीन की सुविधा ले सकेंगे। जिला कारागार में मिल्ट्री की तर्ज पर कैंटीन का निर्माण किया जा रहा है। आगामी एक मई से जिला कारागार में कैंटीन की सुविधा शुरू हो जाएगी। जेल में कैंटीन की सुविधा शुरू होने के बाद यहांं बंद कैदियों व बंदियों से मुलाकात के लिए आने वाले वाले परिजन बाहर से लाया गया सामन जेल के अंदर नहीं पहुंचा सकेंगे। जेल प्रबंधन की तरफ से कैदियों व बंदियों के लिए परिजनों द्वारा बाहर से लेकर आने वाले सामान पर पूरी तरह से रोक लगाने का निर्णय लिया है। आगामी एक मई से जिला कारागार में पूरी तरह से यह नियम लागू हो जाएगा। मिल्ट्री की कैंटिन की तर्ज पर तैयार हो रही कैंटीन से उचित रेट पर कैदी व बंदी अपनी जरूरत का सामान खरीद सकेंगे। जिला कारागार की यह कैंटीन पूरी तरह से कैशलैस होगी। प्रत्येक कैदी व बंदी के कैंटीन में अलग-अलग खाते खोले जाएंगे। बॉयोमैट्रिक सिस्टम के जरिए कैंटीन से कैदियों व बंदियों को सामान दिया जाएगा। कैंटीन में एमआरपी सहित प्रत्येक सामान की लिस्ट लगाई जाएगी। कैंटीन से सामान खरीदते समय डिस्पले बोर्ड पर बकायदा सामान की मात्रा तथा राशि दर्शाई जाएगी। ताकि कैंटीन की बिक्री प्रक्रिया में पूरी तरह से पारदर्शिता बनी रहे।

इस तरह चलेगी कैंटीन की प्रक्रिया 

जिला जेल प्रशासन द्वारा कैंटीन से सामान खरीदने के लिए जेल में बंद प्रत्येक कैदी व बंदी का अलग-अलग खाता खोला जाएगा। मुलाकात के लिए आने वाले कैदी के परिजन कैदी को बाहर की खाद्य वस्तुएं देने की बजाए रुपये दे सकेंगे। परिजनों की तरफ से कैदी व बंदी को मिलने वाले रुपये जेल प्रशासन द्वारा कंप्यूटर के माध्यम से उसके खाते में ट्रांसफर कर दिए जाएंगे। अपने खाते में जमा रुपयों से वह कैंटीन से अपनी जरूरत का सामान खरीद सकेगा। कैंटीन की पूरी प्रक्रिया कम्प्यूटरीकृत होगी। ताकि किसी कैदी व बंदी के साथ धोखाधड़ी नहीं हो। इसके साथ-साथ कैंटीन में बॉयोमैट्रिक सिस्टम लागू होगा। कैदी व बंदी द्वारा बॉयोमैट्रिक सिस्टम पर अंगूठा लगाने के बाद कैंटीन में लगे कंप्यूटर में उसकी फोटो सहित उसका खाता खुल जाएगा और इसके बाद वह अपने खाते से सामान खरीद सकेगा। इसके लिए बकायदा एक विशेष सॉफ्टवेयर तैयार करवाया गया है। कैंटीन के निर्माण पर लगभग चार लाख रुपये की राशि खर्च की गई।

जेल में बंद होगा कूपन सिस्टम 

जिला कारागार में अभी तक रुपयों के स्थान पर कूपन सिस्टम चलता था। कैदी को जेल प्रशासन की तरफ से रुपयों के बदले कूपन मुहैया करवाए जाते थे। कैदी व बंदी इन कूपनों से ही अपनी जरुरत के अनुसार सामान खरीद सकते थे लेकिन अब कैंटीन सिस्टम शुरू होने के बाद जेल में कूपन सिस्टम बंद हो जाएगा।

एक मई के बाद अंदर नहीं जा सकेगा बाहर का सामान 



कैंटीन प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा व उप अधीक्षक सेवा सिंह।


जेल विभाग के महानिदेशक के आदेशानुसार जिला कारागार में मिल्ट्री की कैंटीन की तर्ज पर कैंटीन का निर्माण किया जा रहा है। जिला कारागार में कैंटीन शुरू होने के बाद कैदियों व बंदियों से मिलने के लिए आने वाले परिजन कपड़ों व जूते इत्यादि के अलावा बाहर से कोई अन्य सामान अंदर नहीं पहुंचा सकेंगे। एक मई से जिला कारागार में यह नियम पूरी तरह से लागू हो जाएगा। पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कैंटीन को पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत किया गया है। मेरे तथा जेल उप अधीक्षक की निगरानी में कैंटीन की पूरी प्रक्रिया रहेगी। कंप्यूटर के माध्यम से हम अपने कार्यालय से ही कैंटीन की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रख सकेंगे। कंप्यूटर में मौजूद साफ्टवेयर में प्रत्येक खाते का पूरा विवरण दर्ज होगा।

डॉ. हरीश कुमार रंगा, अधीक्षक

जिला कारागार, जींद 

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

अंधेरी कोठरी में अक्षर ज्ञान का जला रहे दीप

जिला कारागार में इग्रू का सेंटर शुरू कर कैदियों व बंदियों को दिया जा रहा शिक्षा का ज्ञान
आत्म निर्भर बनने के लिए महिला कैदी भी सीख रही हाथ का हुनर 
पढ़ाई के लिए इस वर्ष 268 कैदियों ने किया आवेदन 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जेल की अंधेरी कोठरी को जेल अधीक्षक ज्ञान के दीप से उज्जवल करने में लगे हुए हैं। जिला कारागार की बैरिकों ने कक्षाओं का रूप धारण कर लिया है। जिला कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को अक्षर ज्ञान दिया जा रहा है। शिक्षा से लगाव रखने वाले कैदी व बंदी ओपन यूनिवर्सिटी के जरिए डिस्टेंस एजुकेशन से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं। इस वर्ष जिला कारागार में बंद 268 कैदी व बंदी पढ़ाई कर अपने भविष्य को उज्जवल बनाने में लगे हुए हैं। जेल अधीक्षक डॉ. हरिश कुमार रंगा स्वयं बैरिकों में कैदियों व बंदियों को पढ़ाते हैं। पुरुष कैदियों के साथ महिला कैदियों को भी आत्म निर्भर बनाने के लिए हाथ का हुनर सिखाया जा रहा है। ताकि यहां से निकलने के बाद पुरुष व महिला कैदी समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। 
जिला कारागार का फोटो।
जाने-अनजाने में अपराध की दलदल में फंसकर जिला कारागार में अपने गुनाहों की सजा भुगत रहे कैदियों को एक बार फिर से एक अच्छा नागरिक बनाकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए जेल प्रशासन द्वारा अच्छी पहल की जा रही है। जेल प्रशासन द्वारा यहां बंद कैदियों व बंदियों के लिए इग्नू, सर्व भारत शिक्षा मिशन के माध्यम से डिस्टेंश एजुकेशन की व्यवस्था की गई है। ताकि जेल से बाहर निकलने के बाद यह सिर उठाकर अपना जीवन यापन कर सकें। स्वयं जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा कैदियों व बंदियों को पढ़ाते हैं। इसके अलावा एक अन्य अध्यापक की भी यहां नियुक्ति की गई है। इस वर्ष जिला कारागार में बंद 268 कैदियों व बंदियों ने पढ़ाई के लिए आवेदन किया है। जेल पाठशाला के 200 कैदी-बंदी सर्व भारत शिक्षा मिशन के तहत प्राइमरी से पांचवीं तक की पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं दसवीं, 12वीं करने वालों की संख्या भी कम नहीं है। 33 कैदी दसवीं, 18 कैदी 12वीं, 15 कैदी बीए, दो कैदी बीपीपी की पढ़ाई कर रहे हैं। जेल में चल रही इस पाठशाला का परिणाम यह रहा कि 268 कैदी-बंदी पढ़ाई के माध्यम से अपना भविष्य संवारने में लगे हुए हैं। सामान्य स्कूल की तरह कैदियों व बंदियों को पढ़ाई के साथ-साथ नैतिकता व अनुशासन का पाठ भी सिखाया जा रहा है।

सीआरएसयू को भी भेजा गया है प्रपोजल

कैदियों व बंदियों को डिस्टेंस से शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए जींद के चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय से भी मदद मांगी गई है। जेल प्रशासन की तरफ से सीआरएसयू को इसके लिए प्रपोजल भेजा गया है। जिला कारागार अधीक्षक द्वारा स्वयं सीआरएसयू के उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह से जेल में डिस्टेंस एजुकेशन शुरू करवाने के लिए बातचीत की गई है और उन्हें विश्वविद्यालय की तरफ से इस बारे में सकारात्मक परिणाम की उम्मीद है।

महिला कैदियों को सिखाया जा रहा है ब्यूटीशन व कटींग टेलरिंग का हुनर

जिला कारागार में बंद महिला कैदियों व बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग से कोर्स शुरू करवाया गया है। जिला कारागार में महिला कैदियों के लिए ब्यूटीशियन तथा कटींग-टेलरिंग का कोर्स करवाया जा रहा है। इसके लिए रोहतक आईटीआई का एक सेंटर जिला कारागार में स्थापित किया गया है। महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए दो महिला ट्रेनरों को नियुक्त किया गया है। ब्यूटीशियन तथा कटींग टेलरिंग का प्रशिक्षण पूरा होने पर प्रशिक्षु महिला कैदियों को रोहतक आईटीआई की तरफ से डिपलोमे भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। 

इच वन टीच वन के नारे को लेकर बढ़ रहे हैं आगे

सुधार गृह में बंद कैदी व बंदियों को जेल के अंधकार में उजाला हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है। हम इच वन टीच वन के नारे के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इस प्रयास के अंतर्गत शिक्षा का सहारा लिया है। शिक्षा से लगाव रखने वाले कैदी ओपन यूनिवर्सिटी के जरिए डिस्टेंस एजुकेशन से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरा करने में लगे हैं। कैदियों को पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दिए जा रहे हैं। ताकि यहां से निकलने के बाद वह समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। किसी भी व्यक्ति को अपराध की दलदल से निकालने के लिए शिक्षा ही एकमात्र माध्यम है। क्योंकि अज्ञानतावश ही कोई भी व्यक्ति अपराध के दलदल में कदम रखता है। कैदियों व बंदियों को सुधार ग्रह में पढ़ाई का पूरा माहौल दिया जा रहा है। सभी को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाई जा रही है। 
डॉ. हरीश कुमार रंगा, अधीक्षक
जिला कारागार, जींद  
जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा का फोटो। 





बुधवार, 8 अप्रैल 2015

कैसे मिलेगा मुआवजा आधे से ज्यादा रकबे की नहीं हुई गिरदावरी

विभाग के पास पटवारियों का टोटा
स्टाफ की कमी से ज्यादातर कागजों में ही हो रही है गिरदावरी 
गेहूं की कटाई शुरू होने से असमंजस में किसान 

नरेंद्र कुंडू
जींद। बेमौसमी बरसात ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। प्रदेश सरकार किसानों के जख्मों पर मुआवजे का मरहम लगाने का प्रयास कर रही है लेकिन गिरदावरी सरकार की राह में रोड़ा बनी हुई है। सरकार बार-बार मुआवजा जारी करने की तिथि निर्धारित कर रही है लेकिन जिले में अभी तक आधे से ज्यादा रकबे की गिरदावरी ही नहीं हो पाई है। विभाग के पास पटवारियों का टोटा है। इसके चलते जिले में गिरदावरी का काम रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। इस समय राजस्व विभाग के पास पटवारियों के आधे से भी ज्यादा पद खाली पड़े हैं। वहीं कृषि विभाग के पास भी कृषि विकास अधिकारियों का भारी टोटा है। कृषि विभाग में भी कृषि विकास अधिकारियों के आधे से ज्यादा पद खाली होने के कारण विभाग भी खराब फसलों की सही तरीके से सर्वे रिपोर्ट तैयार कर सरकार के पास नहीं भेज पा रहा है। स्टाफ की कमी के चलते निर्धारित समयावधि में गिरदावरी का काम पूरा नहीं हो पा रहा है। काम के बढ़ते बोझ और स्टाफ की कमी के चलते पटवारी कागजों में ही गिरदावरी का काम पूरा करने को मजबूर हैं। वहीं सरकार द्वारा किसानों को दी जा रही मुआवजा राशि भी ऊंट के मुंह में जीरा है।
 फसल खराब होने पर खेत में बैठकर अफसोस जाहिर करता किसान।

मुआवजा ऊंट के मुहं में जीरा

बरसात ने तो पूरी तरह से बर्बाद करके रख दिया है। रही-सही कसर सरकार ने पूरी कर दी है। सरकार द्वारा जो मुआवजा दिया जा रहा है। वह ऊंट के मुहं में जीरे के समान है। गेहूं की कटाई का कार्य शुरू हो चुका है लेकिन अभी तक गिरदावरी नहीं हो पाई है। गिरदावरी नहीं होने के कारण गेहूं की कटाई का कार्य भी शुरू नहीं कर पा रहा हूं। क्योंकि यदि गिरदावरी से पहले गेेहूं की कटाई की तो फसल की गिरदावरी नहीं हो पाएगी और बिना गिरदावरी के मुआवजा नहीं मिल पाएगा। 
सुशील, किसान 

दो लाख 15 हजार हैक्टेर में है गेहूं का रकबा

जिले में लगभग दो लाख 15 हजार हैक्टेयर में गेहूं की बिजाई का रकबा है। अगर मौसम खराब नहीं होता तो इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा जिले में लगभग 9678 टन गेहूं के उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही थी लेकिन बरसात से गेहूं की फसल को हुए नुकसान को देखते हुए कृषि विभाग जिले में लगभग तीन से चार प्रतिशत पैदावार कम होने की संभावना जता रहा है। कृषि विभाग के आंकलन के अनुसार यदि चार प्रतिशत का नुकसान होता है तो जिले में लगभग 387 टन गेहूं की पैदावार कम होगी। कृषि विभाग के अनुमानित आंकलन के अनुसार बरसात से हुए नुकसान के बाद जिले में  9288 टन गेहूं की पैदावार होने की उम्मीद है। 
बॉक्स
तहसील का नाम कृषि योग्य भूमि बिना कृषि योग्य भूमि कुल रकबा
जींद                        72239                         9030                             79269
नरवाना                   103534 11457 114991
सफीदों                     47090 5888 52978
जुलाना                     24132 2654     26786
कुल रकबा             244995 29029                          274024

तसहील का नाम मौजूद पटवारियों की संख्या        स्वीकृत पद        गांव की संख्या 
जींद                                         26                                  51                     98
जुलाना                                     10                                  16                       30
सफीदों                                      19                                 34 71
नरवाना                                     26                                   71                   108
कृषि विभाग के पास भी एडीओ की भारी कमी है। इसके चलते कृषि विभाग को भी फसलों के सर्वे में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ब्लॉक का नाम एडीओ की संख्या  स्वीकृत पद
नरवाना 7 12
जुलाना                        6 7
सफीदों                        1 6
पिल्लूखेड़ा                   1 5
अलेवा                         0                                5
जींद                          6 9

किसान भी करें गिरदावरी में पटवारियों का सहयोग  

काम ज्यादा और पटवारियों की संख्या काफी कम है लेकिन इसके बावजूद भी पटवारी सभी गांवों में जाकर गिरदावरी करने का प्रयास कर रहे हैं। बार-बार बारिश के कारण गिरदावरी में परेशानी हो रही है। रूटीन की गिरदावरी का कार्य पूरा कर लिया गया है। फसल खराब होने की गिरदावरी चल रही है। अभी तक ५० प्रतिशत गिरदावरी का कार्य पूरा कर लिया गया है। जल्द ही प्रत्येक गांव में जाकर गिरदावरी का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। किसानों को भी गिरदावरी में पटवारियों का सहयोग करना चाहिए। 
जसबीर दलाल, जिला प्रधान
पटवारी एसोसिएशन, जींद 








खेत से पेट तक पहुंच रहा जहर

फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों से थाली में बढ़ रहा जहर का स्तर
कैंसर के मरीज बढ़ा रहे हैं कीटनाशक

नरेंद्र कुंडू
जींद। देश में हरित क्रांति के साथ ही कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों ने भी दस्तक दे दी थी लेकिन किसानों को इनके प्रयोग की सही मात्रा तथा इनके अधिक प्रयोग से होने वाले दूष्प्रभाव की जानकारी नहीं होने के कारण दिनों-दिन फसलों में इनका प्रयोग बढ़ता चला गया। किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में प्रयोग किए जा रहे कीटनाशक व रासायनिक उर्वरकों से थाली के जहर का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। फसलों में अत्याधिक कीटनाशकों के प्रयोग से जहर खाद्य वस्तुओं के माध्यम से खेत से हमारे पेट तक पहुंच रहा है। दूषित हो रही खान-पान, वायु व जल प्रदूषण के कारण आज भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियों ने भी मनुष्य के शरीर को अपनी चपेट में ले लिया है। इसी का कारण है कि आज स्वास्थ्य पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि खान-पान व वातावरण को दूषित होने से बचा लिया जाए तो बहुत सी बीमारियां तो स्वयं ही खत्म हो जाएंगी और यह तभी संभव है जब किसान इस बारे में जागरूक होंगे।
खेत में कीटनाशक का प्रयोग कर रहे किसान का फाइल फोटो।

76 लाख लोग कैंसर के कारण बन रहे हैं काल का ग्रास

आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियां जन्म ले रही हैं। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो हर वर्ष लगभग छह करोड़ लोगों की मौत होती है और इनमें से अकेले 76 लाख लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बनते हैं। इसके अलावा दो लाख 20 हजार लोग प्रति वर्ष पेस्टीसाइड प्वाइजङ्क्षनग के कारण यानि जहर के सेवन से मरते हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार कैंसर जैसी बीमारी के फैलने का मुख्य कारण भी फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशक हैं। देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपए खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं।

जहरीला हो रहा खान-पान, जल व वातावरण

कीटनाशियोंं के फसलों पर अधिक प्रयोग से न केवल फसलें प्रभावित होती हैं बल्कि वह जमीन भी कीटनाशियों के जहरीले प्रभाव से प्रभावित होती है जहां इनका छिड़काव किया जाता है। धीरे-धीरे यह प्रभाव जमीन में गहरा होता चला जाता है और अंतत: यह उस जमीनी जल तक पहुंच जाता है। कीटनाशियों के अधिक प्रयोग से वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है।

पशुओं पर भी पड़ रहा दूष्प्रभाव

पशु चिकित्सक डॉ. राजेंद्र चहल के अनुसार कीटनाशी हरे चारे/घास को भी जहरीला बना देते हैं। इससे पशुओं के शरीर व उनका दूध भी प्रभावित हो रहा है। परिणामस्वरूप कीटनाशियों का जहरीला प्रभाव मवेशियों व पशुओं के शरीर पर पड़ता है तथा भैंसों और गायों से मिलने वाला दूध भी कीटनाशियों से प्रभावित हो जाता है। कीटनाशक पशुओं व मनुष्य के शरीर के लिए घातक हैं।

दूषित हो रहे खान-पान के कारण बढ़ रही हैं बीमारियां

कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के बढऩे का मुख्य कारण दूषित हो रहा खान-पान है। फसलों में अधिक कीटनाशकों के प्रयोग से स्तन, यकृत, लीवर, अग्राश्य, फेफड़ों के कैंसर, हड्डियों का कमजोर होना, चमड़ी के रोग, शुगर, लकवा, सैक्स समस्या, पेट दर्द, आंखों में परेशानी, श्वास संबंधि बीमारी, मानसिक परेशानी सहित अनेक बीमारियां हमारे शरीर में घर कर रही हैं। इतना ही नहीं गर्भवति महिलाओं के शरीर में कीटनाशकों के अंश पहुंचने के कारण गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी इसके दूष्प्रभाव पड़ रहे हैं। इससे जन्मजात बच्चों में विकृतियों का रिस्क बढ़ जाता है।
डॉ. पालेराम कटारिया, डिप्टी सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद 

क्या-क्या बरतें सावधानियां 

बीमारियों से बचने के लिए खान-पान में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिएं। नियमित रूप से योग, मोर्निंग वॉक, व्यायाम करने चाहिएं। रेसेदार फल व सलाद पर विशेष ध्यान देना चाहिए। तली हुई चटपटी वस्तुओं से परहेज रखें, खाद्य वस्तुओं में मेदे का भी प्रयोग कम से कम करना चाहिए। बिना छाने आटे का प्रयोग करना चाहिए, पौष्टीक खाद्य पदार्थों पर विशेष जोर देना चाहिए।

किसानों में जागरूकता की कमी से बढ़ रहा कीटनाशकों का प्रयोग 

किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करने का मुख्य कारण किसानों में जागरूकता की कमी है। पेस्टीसाइड कंपनियों ने किसानों में यह भ्रम फैला रखा है कि अधिक कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ता है। जबकि वास्तविकता यह है कि उत्पादन जमीन की उर्वरा शक्ति, उस क्षेत्र का पानी, वातावरण, खेत में पौधों की संख्या इत्यादि संसाधनों पर निर्भर करता है। किसानों को कीटों की पहचान नहीं होने के कारण किसान कीटों को बेवजह मार रहे हैं। जबकि कीट तो उत्पादन बढ़ाने में सहायक हैं। किसानों को कीटों को नियंत्रित करने की नहीं कीटों की पहचान करने की जरूरत है। पौधे कीटों को अपनी जरूरत के अनुसार बुलाते हैं। जब तक किसानों को कीटों की पहचान नहीं होगी फसल में उनके क्रियाकलापों से क्या प्रभाव पड़ा है इसकी जानकारी नहीं होगी तब तक किसानों को कीटनाशकों के इस चक्रव्यूह से बाहर निकालन अंसभव है।
शकुंतला रधाना, कीटाचार्य किसान
कीटाचार्य महिला किसान शकुंतला का फोटो।