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छोटे भाई बिल्लु को गिफ्ट करता हूं चश्मा और इनैलो, बशर्ते वह इसे संभाल कर रखे : अजय चौटाला

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कहा, नए डंडे, नए झंडे व नए निशान के साथ करेंगे नई पार्टी का गठन -- एक सप्ताह में कानूनी प्रक्रिया पूरी कर करेंगे नई पार्टी का ऐलान --9 दिसंबर को जींद की प्रदेश स्तर की रैली कर दिखाएंगे ताकत जींद, 17 नवंबर (नरेंद्र कुंडू) :- शहर के दीप पैलेस में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में डॉ. अजय सिंह चौटाला ने ऐलान करते हुए कहा कि ‘मैं इनेलो व चश्मा अपने छोटे भाई बिल्लु को गिफ्ट करता हूं।’ वह इसे संभालकर रखें। उन्होंने पहला इनेलो पर कब्जा करने, दूसरा किसी राष्ट्रीय पार्टी में शामिल होने व तीसरा नई पार्टी का गठन करने का प्रस्ताव रखा। कार्यकारिणी ने ध्वनि मत से नई पार्टी बनाने के प्रस्ताव को पारित कर दिया। अजय चौटाला ने कहा कि एक सप्ताह में कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद नई पार्टी की घोषणा कर दी जाएगी। इसके साथ-साथ नौ दिसंबर को जींद में नई पार्टी के बैनर नीचे महारैली करने का प्रस्ताव पारित किया गया। इसके बाद इनेलो के सभी पदाधिकारियों द्वारा 18 से 28 नवंबर तक इस्तीफे देने पर भी सभी ने मोहर लगा दी।  लगभग दो बजे डॉ. अजय सिंह चौटाला, उनकी विधायक पत्नी नैना चौटाला, उकलाना से विधायक अ...

जिस मैदान से दादा ने की थी न्याय युद्ध की शुरूआत आज उसी मैदान से दादा की विरासत को पाने के लिए पोता करेगा शंखनाद

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32 साल पहले पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीदलाल ने भी इसी मैदान से भरी थी हुंकार इनैलो के भविष्य को लेकर अजय चौटाला आज जींद के देवीलाल ग्राउंड में करेगा निर्णायक फैसला जब-जब देवीलाल परिवार कमजोर हुआ तब-तब जींद जिले ने दी है देवीलाल परिवार को राजनीतिक ताकत जींद, 16 नवंबर (नरेंद्र कुंडू) :- देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी देवीलाल ने लगभग 32 वर्ष पूर्व जि स मैदान से तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ न्याय युद्ध छेड़ा था उसी मैदान से आज उसका पोता डॉ. अजय चौटाला उसकी राजनीतिक विरासत को पाने के लिए शंखनाद करेगा। 17 नवंबर को डॉ. अजय चौटाला के नेतृत्व में जींद में आयोजित होने वाला कार्यकर्ता सम्मेलन इनैलो का भविष्य तय करेगा। डॉ. अजय चौटाला ने अपनी राजनीतिक विरासत को मजबूत करने के लिए जींद के उसी मैदान को चुना है जिस मैदान को ठीक 32 वर्ष पहले उसके दादा चौधरी देवीलाल ने कांग्रेस के खिलाफ न्याय युद्ध शुरू करने के लिए चुना था। जींद के इस मैदान से न्याय युद्ध की शुरूआत कर चौधरी देवीलाल ने प्रदेश की लगभग 85 के करीब विधानसभा सीटों पर अपना कब्जा जमाकर कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ कर बा...

प्रदेश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे म्हारे किसान

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बागवानी विभाग व आईसीएआर द्वारा कीटाचार्य किसानों को मास्टर ट्रेनर के तौर पर किया जाएगा नियुक्त थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए बागवानी विभाग द्वारा प्रदेश में शुरू की जा रही है गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिसेस स्कीम नरेंद्र कुंडू  जींद| थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जींद जिले में चल रहे डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन के कीटाचार्य किसान अब प्रदेश के अन्य जिलों के किसानों को भी कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) व बागवानी विभाग ने इन कीटाचार्य किसानों के अनुभव को देखते हुए इन्हें प्रदेश के दूसरे जिलों में चलने वाली किसान खेत पाठशालाओं में मास्टर ट्रेनर के तौर पर नियुक्त करने का प्रस्ताव तैयार किया है। थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए बागवानी विभाग जल्द ही प्रदेश में गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिसेस स्कीम (गेएप) शुरू करने जा रहा है। इस स्कीम के तहत प्रदेश के सभी जिलों में मंडल स्तर पर किसान खेत पाठशालाएं चलाई जाएंगी और इन पाठशालाओं में किसानों को कीटों की पहचान करने के साथ-साथ बिना रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग किए अच्छी पैदावार लेने के गुर सिखाए जाए...

जल संस्कृति को बचाना होगा

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नरेंद्र कुंडू   एक तरफ हम जल को देवता मानकर उसकी पूजा करते हैं, तो दूसरी तरफ इस देवता का निरादर करने में किसी भी तरह पीछे नहीं रहते हैं। कारण व्यत्तिफ़ हो या बाजार, हर कोई अपनी-अपनी तरह से इस दोहन में शामिल है। आज जरूरत है कि हम जल के प्रति अपने संस्कार और संस्कृति को पुनर्जीवित करें। पानी के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जन्म से लेकर मृत्यु तक पानी का हमारे जीवन में बहुत बड़ा स्थान है बल्कि कह सकते हैं कि पानी ही उसकी धुरी है। हमारे शास्त्रें में कहा गया है कि जल में ही सारे देवता रहते हैं। इसीलिये जब कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है तो सबसे पहले कलश यात्र निकलती है। हम किसी पवित्र सरोवर या जलाशय में जाते हैं और वहां से अपने कलश में जल भरकर ले आते हैं। चूंकि जल में हमारे सभी देवता बसते हैं इसलिये हम उसकी पूजा करते हैं और फिर उसी जलाशय में उसका विसर्जन कर देते हैं। इस तरह व्यष्टि को समष्टि में मिला देते हैं। ‘अमरकोश’ में जल के कई नाम गिनाये गये हैं। उसमें जल के लिये एक नाम जीवन भी है। जीवन जलम। अब सवाल यह है कि जल जो हमारी संस्कृति में इतना अहम स्थान रऽता रहा है, ...

दोहरी नीति का शिकार हो रही हिन्दी

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नरेन्द्र कुंडू  जब से मानव अस्तित्व में आया तब से ही भाषा का उपयोग कर रहा है चाहे वह ध्वनि के रूप में हो या सांकेतिक रूप में। भाषा हमारे लिए बोलचाल व संप्रेषण का माध्यम होती है। भाषा राष्ट्र की एकता, अखंडता तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश में प्रचलित विविध भाषाएं व बोलियां हमारी संस्कृति, उदात्त परंपराओं, उत्कृष्ट ज्ञान एवं विपुल साहित्य को अक्षुष्ण बनाये रखने के साथ ही वैचारिक नवसृजन हेतु भी परम आवश्यक है। विविध भाषाओं में उपलब्ध साहित्य की अपेक्षा कई गुना अधिक ज्ञान गीतों, लोकोत्तिफ़यों तथा लोक कथाओं की मौखिक परंपरा के रूप में होता है। यदि राष्ट्र को सशक्त बनाना है तो एक भाषा होनी चाहिए। प्रत्येक विकसित तथा स्वाभिमानी देश की अपनी एक भाषा अवश्य होती है। किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उसे ही बनाया जाता है जो उस देश में व्यापक रूप में फैली होती है। हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी भारत के ज्यादातर राज्यों में प्रमुख रूप से बोली जाती है। हिन्दी भाषा के विकास में संतों, महात्माओं तथा उपदेशकों का योगदान भी कम नहीं आंका जा सकता। क्योंकि वह आम जनता के अत्यंत निकट होते हैं। इन...

‘विद्यार्थियों में बढ़ता तनाव’

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नरेंद्र कुंडू  प्रसिद्ध चिंतक अरस्तू ने कहा था कि आप मुझे 100 अच्छी माताएं दें तो मैं तुम्हें अच्छा राष्ट्र दूंगा। मां के हाथों में राष्ट्र निर्माण की कुंजी होती है किंतु आज ऐसी माताओं व सोच की कमी महसूस हो रही है। जीवन स्तर बढ़ने के साथ-साथ भौतिक प्रतिस्पर्धा भी अपने चरम पर है, जिसका दुष्प्रभाव तनाव युत्तफ़ जीवनशैली से आत्महत्या का बढ़ता चलन देखने में आ रहा है। बड़े दुःख  विषय है आज विद्यार्थियों में लगन व मेहनत से विद्या ग्रहण करने की प्रवृत्ति लुप्त होती जा रही है। वे जीवन के हर क्षेत्र में शॉर्टकट मार्ग अपनाना चाहते हैं और असफल रहने पर गलत कदम उठा लेते हैं। आजकल अभिभावक भी बच्चों पर पढ़ाई और करियर का अनावश्यक दबाव बनाते हैं। वे ये समझना ही नहीं चाहते की प्रत्येक बच्चे की बौद्धिक क्षमता भिन्न होती है जिसके चलते हर विद्यार्थी कक्षा में प्रथम नहीं आ सकता। बाल्यकाल से ही बच्चों को यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि असफलता ही सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। बच्चों में आत्मविश्वास की कमी भी एक बहुत बड़ा कारक है। आज खुशहाली के मायने बदल रहे हैं अभिभावक अपने बच्चाें को हर क्षेत्र में अव्...

कलेंडर बदलिए अपनी संस्कृति नहीं

नरेंद्र कुंडू  जनवरी आने से पहले ही सब नववर्ष की बधाई देने लगते हैं। मानो कितना बड़ा पर्व हो। नया केवल एक दिन ही नहीं कुछ दिन तो नई अनुभूति होनी ही चाहिए। आखिर हमारा देश त्यौहारों का देश है। ईस्वी-संवत् का नया साल एक जनवरी को और भारतीय नववर्ष (विक्रमी संवत्) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। आइये देखते हैं दोनों का तुलनात्मक अंतर। 1- प्रकृति: एक जनवरी को कोई अंतर नहीं जैसा दिसंबर वैसी जनवरी। वहीं चैत्र मास में चारों तरफ फूल खिल  जाते हैं, पेड़ाें पर नए पत्ते आ जाते हैं। चारों तरफ हरियाली मानो प्रकृति नया साल मना रही हो। 2- मौसम, वस्त्र: दिसंबर व जनवरी में वही वस्त्र, कंबल, रजाई, ठिठुरते हाथ पैर लेकिन चैत्र मास में सर्दी जा रही होती है, गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है। 3- विद्यालयों का नया सत्र: दिसंबर-जनवरी में वही कक्षा, कुछ नया नहीं। जबकि मार्च-अप्रैल में स्कूलाें का परिणाम आता है। नई कक्षा, नया सत्र यानि विद्यालयों में नया साल। 4- नया वित्तीय वर्ष: दिसंबर- जनवरी में कोई खातों की क्लोजिंग नहीं होती। जबकि 31 मार्च को बैंकों की क्लोजिंग होती है। नए बही खाते खोले ...