जनता क्या बदना चाहती है सत्ता या व्यवस्था?
नरेंद्र कुंडू जींद। जैसे-जैसे यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के मामले एक-एक करके पर्दे से बाहर आ रहै है, वैसे-वैसे ही राजनीति के गलियारों की हलचल भी बढ़ती जा रही हैं। देश में परिवर्तन के नाम की आंधी उठने लगी है। कहीं विपक्षी पाॢटयां सत्ता परिवर्तन की आवाज बुलंद कर रही हैं तो कहीं सामाजिक संगठन या अन्य दल पूरी व्यवस्था के परिवर्तन पर जोर दे रहे हैं। सत्तासीन सरकार के माथे पर भ्रष्टाचारी सरकार का लेबल चसपाकर देश में मध्यावर्ति चुनाव का माहौल तैयार किया जा रहा है। सत्ता परिवर्तन के लिए सभी राजनैतिक दल पूरे जोर-शोर से तैयारियों में जुटे हुए हैं। फिर से देश में रैलियों का दौर शुरू हो चुका है। टिकट के दावेदारों द्वारा अपनी ताकत का ऐहसास करवाने के लिए रैली में अधिक से अधिक भीड़ जुटाकर अपने आकाओं की नजरों में अपना कद बढ़ाने की पूरजोर कोशिश की जा रही है। राजनैतिक पार्टियों के बीच वाक युद्ध का दौर पूरे यौवन पर है। मंच रूपी रथ पर सवार होकर शब्द रूपी बाणों से नेता एक-दूसरे का सीना छलनी कर रहे हैं। अपने दाग को छुपाने के लिए दूसरों के दामन पर कीचड़ उछाला जा रहा है। राजनैतिक दल जनता-जर्ना...