गुरुवार, 12 जुलाई 2012

खाप पंचायतों के प्रतिनिधि पढ़ रहे कीटों की पढ़ाई

लड़ाई में दोनों पक्ष हो रहे हैं घायल 

नरेंद्र कुंडू
जींद। इतिहास गवाह है जब भी लड़ाइयां हुई हैं सिवाये विनाश के कुछ हाथ नहीं लगा है। इसलिए तो कहा जाता है कि लड़ाई का मुहं हमेशा काला ही होता है। अगर समय रहते किसानों व कीटों के बीच दशकों से चली आ रही इस लड़ाई को खत्म नहीं किया गया तो इसके परिणाम ओर भी गंभीर होंगे। जिसका खामियाजा हमारी आने वाली पुश्तों को भुगतना पड़ेगा। इस झगड़े को निपटाने का बीड़ा जो खाप पंचायतों ने उठाया है वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। लेकिन दशकों से चले आ रहे इस झगड़े को निपटाना इतना आसान काम नहीं है। यह एक बड़ा ही पेचीदा मसला है। इसलिए खाप पंचायत प्रतिनिधियों को इस विवाद को सुलझाने के लिए अपना फैसला देने से पहले इस विवाद की गहराई तक जाने तथा कीटों की भाषा सीखने की जरुरत पड़ेगी। ताकि पंचायत इस मसले को हल करते वक्त निष्पक्ष फैसला दे सकें। यह सुझाव कीट कमांडो किसान मनबीर रेढू ने मंगलवार को निडाना में खाप पंचायत में पहुंचे विभिन्न खाप पंचायत प्रतिनिधियों के सामने रखा। खाप पंचायत की तीसरी बैठक में अखिल भारतीय जाट महासभा  व मान खाप के प्रधान ओमप्रकाश मान, पूनिया खाप के प्रतिनिधि दलीप सिंह पूनिया, सांगवान खाप प्रतिनिधि कटार सिंह सांगवान, जाटू खाप चौरासी के प्रतिनिधि राजेश घनघस तथा सतरोल खाप प्रतिनिधि धूप सिंह खर्ब विशेष तौर पर मौजूद थे। पंचायत में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों ने कीटों की भाषा सीखने के लिए नरमा के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ गहन मंथन किया।
 पाठशाला में बही-खाता तैयार करते किसान।

पौधों के पत्ते काटते खाप प्रतिनिधि।
पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि आज लोगों में जो खून की कमी के मामले सामने आ रहे हैं उसका मुख्य कारण हमारा खान-पान का जहरीला होना है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण आज हमारा खान-पान पूरी तरह से जहरीला हो चुका है। अगर यही परिस्थितियां रही तो हमारी आने वाली पीढि़यों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। डा. दलाल ने कहा कि किसान कीटों को मारने के लिए जब कीटनाशकों का स्प्रे करता है तो उसका सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा ही कीटों पड़ता है, बाकी 99 प्रतिशत हिस्सा हवा, पानी व जमीन में घूल जाता है। कीटों के पत्ते खाने या रस चूसने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि फसल के उत्पादन बढ़ाने में तो कीटों की अहम भूमिका होती है। क्योंकि कीटों का परागरन में विशेष योगदान होता है। फसल के उत्पादन का मुख्य कारण खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या होना है। डा. दलाल ने मासाहारी मक्खियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि दैत्य मक्खी उड़ते हुए कीटों को खाती है और अपने वजन से ज्यादा मास खाने वाली यह दुनिया की एकमात्र मक्खी है। हमारे किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से जानते हैं। तुलसा मक्खी चूरड़े, हरातेले को खाती है और जब इसे भोजन नहीं मिलता है तो यह खुद के वंश को भी खा जाती है। डायन मक्खी उंचाई पर बैठकर शिकार करती है तथा शिकार को लुंज कर उसका खून पीती है। सिरफोड़ मक्खी कीटों को उछाल-उछाल कर खाती है। इसके अलावा टिकड़ो मक्खी सुंडी पर अपने अंडे देती है तथा अंडों में से बच्चे निकलने के बाद टिकड़ो मक्खी के बच्चे सुंडी को अपना भोजन बनाते हैं। डा. कमल सैनी ने कहा कि इन 20 वर्षों में कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। अकेले हिंदुस्तान में लगभग 40 हजार करोड़ के कीट रसायनों, लगभग 50 हजार करोड़ के खरपतवार नाशकों तथा लगभग 30 हजार करोड़ बीमारी, फफुंद व जीवाणु नाशक रसायनों का कारोबार होता है। इस कारोबार से होने वाली आमदनी का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा विदेशों में जा रहा है। सैनी ने राजपुरा भेंण का उदहारण देते हुए कहा कि इस गांव के अड्डे पर कीटनाशक बिक्री की चार दुकानें हैं, जिनका साला का चार करोड़ का कारोबार है और इसमें से अकेले तीन करोड़ के कीटनाशक राजपुरा भेंण के किसान खरीदते हैं।

कैंसर के मरीजों पर जताई चिंता 

पाठशाला में पहुंचे किसानों ने बढ़ते कैंसर के मरीजों की संख्या पर चर्चा की। चाबरी निवासी सुरेश ने कहा कि उनके गांव में 8 लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बन चुके हैं। ललीतखेड़ा निवासी रामदेवा ने बताया उनके गांव में कैंसर के कारण एक परिवार की दो पीढि़यां खत्म हो चुकी हैं। लाडवा (हिसार) से आए एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 25, अलेवा निवासी जोगेंद्र ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के 10 लोग, निडानी में 9, ईगराह में 11 तथा सिवाहा निवासी एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 7 लोग मौत के मुहं में समा चुके हैं।

सवाल का निकाला तोड़

रणबीर मलिक ने गत सप्ताह पंचायत के सामने अपना सवाल रखा था कि पौधे रंग-बिरंगे फूलों से श्रंगार क्यों करते हैं। इन्हें श्रंगार की क्या आवश्यकता है। इस मंगलवार को हुई पंचायत में किसानों ने रणबीर मलिक के सवाल का जवाब देते हुए बताया कि पौधे कीटों को अपनी ओर आकृषित करने के लिए रंग-बिरंगे फूलों का श्रंगार करते हैं। अगर कीट फूल के पत्तों को खा लेते हैं तो उससे पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि पत्तों का काम तो   केवल कीटों को आकर्षित करना है। कीट फसल में परागन की भूमिका निभाते हैं। इसलिए पौधे कीटों को आकर्षित करने के लिए फूलों का श्रंगार करते हैं।

जाट महासभा प्रधान को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान

दुसरे खाप प्रतिनिधिओं  को भी लांगे पाठशाला में 

आज 25 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण कैंसर है और कैंसर का कारण पेस्टीसाइड का बढ़ता प्रयोग है। खाप पंचायत के सामने निडाना के कीट मित्र किसानों ने इस विवाद को निपटाने की गुहार लगाई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पंचायत को इस झगड़े की गहराई तक जाकर कीटों की भाषा सीखने की जरुरत है। इसलिए पंचायत के प्रतिनिधि बारी-बारी किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर इनकी भाषा सीख रहे हैं। अगली बार वे भिवानी से 84 श्योराण खाप व तोशाम से फौगाट खाप सहित 6 खापों के प्रतिनिधियों को यहां लेकर आएंगे।
ओमप्रकाश मान, प्रधान
अखिल भारतीय जाट महासभा






खुले पड़े मौत के बोरवेल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
अभी हाल ही में गुड़गांव में बोरवले में फंसने के कारण हुई 5 वर्षीय माही की मौत ने भले ही हर किसी की आंखें खोल दी हों , लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी जिला प्रशासन की नींद नहीं टूट रही है। इससे यह बात साफ हो रही है कि जिला प्रशासन ने माही की मौत से भी कोई सबक नहीं लिया है। सरकार द्वारा खुले बोरवेलों को बंद करने के आदेशों के बाद  जिला प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। शायद प्रशासन को अभी और बच्चों को भी प्रिंस और माही बनने का इंतजार है। इसलिए तो जिला प्रशासन ने जिले में खुले बोरवेलों को बंद करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। शायद प्रशासनिक अधिकारियों को नरवाना के नेहरु पार्क में खुले बोरवेल व सीवरेज के मेनहाल दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। पार्क में खुले पड़े ये बोरवेल व मेनहाल कभी भी किसी बड़े हादसे को अंजाम दे सकते हैं। शहर के हजारों लोग हर रोज सुबह-शाम यहां अपने बच्चों के साथ घूमने के लिए आते हैं। जिस कारण यहां जरा सी लापरवाही दोबारा फिर गुड़गांव या अंबाला के हादसे को ताजा कर सकती है। सार्वजनिक स्थान पर खुले पडे इस बोरवेल व मेनहाल ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
देश में खुले बोरवेल के कारण हो रहे हादसों से प्रशासन सबक नही ले रहा। पिछले दिनों गुड़गांव में बोरवेल में गिरने से 5 वर्षीय माही की मौत के बाद तो प्रदेश सरकार ने खुले पड़े बोरवेलों को बंद करने के आदेश जारी किए थे। खुले बोरवेलों को बंद करने के साथ-साथ सरकार ने खुले बोरवेल की जानकारी देने वाले को ईनाम तक देने की भी घोषणा की थी। इतना ही नहीं बिना अनुमति के बोरवले खोदने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करने के आदेश जारी किए गए थे। लेकिन सरकार के आदेशों के बावजूद भी नरवाना के नेहरू पार्क में खुला बोरवेल व सीवरेज का खुला मेनहाल कभी भी अंबाला व गुड़गांव के हादसे को दोहरा सकता है। यहां के अधिकारियों पर तो जब सैईयां भैये कोतवाल तो डर काहे का वाली कहावत स्टीक बैठ रही है। क्योंकि नरवाना का पुराना वाटर वर्कस व नेहरू पार्क एक साथ लगते हैं और जिसके रख-रखाव की जिम्मेवारी खुद जन स्वास्थ्य विभाग की है। शहर का एकमात्र पार्क होने के कारण यहां पर सुबह-शाम शहर से सैकड़ों की संख्या में नन्हे-मुन्ने बच्चे अपने माता-पिता के साथ सैर करने के लिए आते हैं तथा पार्क में आकर मौज-मौस्ती करते हैं। ऐसे में पार्क में खुले बोरवेल व मेनहोल किसी बड़े हादसे को निमंत्रण दे सकते हैं। शायद अधिकारियों को इस बात का भी अंदाजा नहीं कि उनकी जरा सी लापरवाही किसी माता-पिता के लिए उम्र भर की सजा बन सकती है।

उनकी जानकारी में नहीं है सूचना

इस बारे में जब जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यकारी अभियंता ऐके पाहवा से बातचीत की गई तो उनका वही रटा-रटाया जवाब मिला कि इसके बारे में उनको जानकारी नही है। यह मामला अभी उनकी जानकारी में आया है। खुले पड़े इस बोरवेल व सीवरेज के मेनहाल को तुरंत बंद करवा दिया जाएगा।

नेहरू पार्क में खुला छोड़ा गया बोरवेल

 नेहरू पार्क में खुला छोड़ा गया सीवरेज का खुला मेन हॉल।

बिना सुविधाओं के टोल वसूल रही मोबाइल कंपनियां

किसानों को नहीं मिल पा रही किसान कॉल सेंटर की फ्री हैल्प लाइन सुविधा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
इसे ट्राई की लापरवाही कहें या मोबाइल कंपनियों की दादागीरी जिसके चलते किसानों को ‘किसान हैल्प लाइन’ सुविधा का लाभ  नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा घर बैठे-बिठाए ही किसानों की समस्या के निदान के लिए 2007 में किसान हैल्प लाइन सुविधा शुरू की गई थी। किसान मोबाइल के माध्यम से किसान कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों के सामने अपनी समस्या रखकर उसका निदान करवा सकें इसके लिए सरकार द्वारा 1551 टोल फ्री नंबर जारी किया गया। अधिक से अधिक किसान इस सुविधा का लाभ ले सकें इसके लिए सरकार द्वारा प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे। लेकिन ट्राई (टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी आफ  इंडिया) की सुस्ती के चलते किसान हैल्प लाइन की इस सुविधा पर प्राइवेट मोबाइल कंपनियों की लापरवाही का ग्रहण लग गया। हालांकि प्राइवेट मोबाइल कंपनियां इन सेवाओं के बदले अपने उपभोक्ताओं से कॉल रेट के माध्यम से कुछ हिस्सा वसूलती हैं। लेकिन मोबाइल कंपनियां द्वारा इस सुविधा को बंद कर सरकार व उपभोक्ता दोनों को चूना लगाया जा रहा है।
भले ही सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक रुप से सुदृढ़ करने के लिए अनेकों योजनाएं क्रियविंत कर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हों, लेकिन वास्तव में अगर देखा जाए तो सरकार द्वारा शुरू की गई किसान हितैषी योजनाएं किसानों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। एक ऐसी ही किसान हितेषी योजना केंद्र सरकार द्वारा 2007 में ‘किसान हैल्प लाइन’ के नाम से शुरू की गई थी। इसके लिए 1551 नंबर निर्धारित किया गया था। सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसान कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों की सहायता से किसानों की समस्याओं का निदान करवाना था। इस योजना के तहत किसान घर बैठे-बिठाए ही मोबाइल के माध्यम से कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क कर उनके सामने कृषि संबंधी अपनी समस्याएं रखकर उनका समाधान जान सकते थे। अधिक से अधिक किसानों तक इस योजना को पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा इसका खूब प्रचार-प्रसार किया गया था। इसके प्रचार-प्रसार पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे। सभी  नेटवर्कों पर किसानों को यह सुविधा मिल सके इसके लिए सरकार ने ट्राई के माध्यम से सभी प्राइवेट मोबाइल कंपनियों के साथ टाईअप किया गया था। ट्राई द्वारा तय किए गए निमयों के अनुसार मोबाइल कंपनियां इस सुविधा के बदले अपने उपभोक्ताओं से कॉल रेट के माध्यम से कुछ हिस्सा वसूल सकती हैं। शुरूआत में तो सभी नेटवर्क पर ये सुविधा ठीक-ठाक चली, लेकिन बाद में ट्राई के सुस्त रवैये के चलते सभी मोबाइल कंपनियों ने इस सुविधा पर पर्दा डालना शुरू कर दिया। इस प्रकार मोबाइल कंपनियों की लापरवाही के चलते यह सुविधा अब पूरी तरह से ठप हो चुकी है। किसी भी प्राइवेट मोबाइल कंपनी के नेटवर्क से हैल्प लाइन के टोल फ्री नंबर 1551 पर कॉल नहीं हो पा रही है। प्राइवेट मोबाइल कंपनियां खुलेआम ट्राई के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। लेकिन इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। इस प्रकार मोबाइल कंपनियों की लापरवाही के कारण यह योजना आगाज के साथ ही दम तोड़ गई।

उपभोक्ताओं को लग रहा है चूना

सरकार द्वारा योजना शुरू करने के बाद ट्राई द्वारा तय किए गए नियमों के अनुसार मोबाइल कंपनियां किसान हैल्प लाइन की निशुल्क सेवाएं देने के बदले उपभक्ताओं से कॉल रेट में कुछ हिस्सा वसूल सकती थी। जिसके बाद प्राइवेट मोबाइल कंपनियों ने कॉल रेट में इस सुविधा के शुल्क को भी शामिल कर अपने कॉल रेट निर्धारित किए थे। लेकिन फिलहाल मोबाइल कंपनियों द्वारा यह सुविधा बंद किए जाने के कारण मोबाइल कंपनियां सरकार के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी मोटा चूना लगा रही हैं।      

बंद नहीं होने दी जाएंगी टोल फ्री सेवाएं

प्राइवेट मोबाइल कंपनियां किसान हैल्प लाइन की सुविधा को बंद कर खुलेआम ट्राई के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। इससे किसानों को भी काफी परेशानी हो रही है और सरकार द्वारा इस योजना पर खर्च किए गए करोड़ों रुपए भी बर्बाद हो रहे हैं। संघ इस सुविधा को दोबारा शुरू करवाने के लिए प्रयासरत है। इसके लिए उन्होंने ट्राई को इसकी शिकायत की है। संघ किसी भी कीमत पर टोल फ्री सुविधाओं को बंद नहीं होने देगा।
हितेष ढांडा, संस्थापक
हरियाणा तकनीकी संघ

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

‘लाडो’ को बचाने के लिए मैदान में आएंगी प्रदेश की पंचायतें

गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने के लिए गांव में बनाई जाएंगी कमेटियां

नरेंद्र कुंडू  
जींद। प्रदेश की ग्राम पंचायतें अब विकास कार्यों के साथ-साथ कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में भी खड़ी नजर आएंगी। अधिक से अधिक महिलाओं को इस मुहिम से जोड़ने के लिए सभी पंचायतों को हाईटैक पंचायत बीबीपुर की तर्ज पर महिला ग्राम सभा का आयोजन भी करना होगा। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने के लिए पंचायत द्वारा गांव में वार्ड स्तर पर कमेटियों का गठन भी किया जाएगा। इन कमेटियों की पूरी कार्रवाई पंचायत की निगरानी में चलेगी। पंचायत द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए की जाने वाली सभी कार्रवाइयों को पंचायत द्वारा अपने कारवाही रजिस्टर में कलमबद्ध करना होगा। प्रदेश में इस मुहिम को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव ने प्रदेश के पंचायती राज विभाग के वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव को पत्र जारी कर जल्द से जल्द इस मुहिम पर काम शुरू करने के सख्त निर्देश जारी किए हैं।
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में शुरू की गई लड़ाई ने अब युद्ध का रुप धारण कर लिया है। गौरतलब है कि बीबीपुर पंचायत की उपलब्धियों को देखते हुए पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. ऋषिकेश पांडा ने 29 मई को बीबीपुर गांव का दौरा किया था। यहां उन्होंने महिलाओं के समक्ष पंचायत में अपनी भागीदारी करने तथा महिला ग्राम सभा की बैठक करने की बात कही थी। अतिरिक्त सचिव के दिशा-निर्देशों पर गांव के सरपंच सुनील जागलान ने 18 जून को गांव में पहली महिला ग्राम सभा का आयोजन करवाया था। महिला ग्राम सभा का मुख्य एजेंडा कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ महिलाओं को जोड़ना था। इस ग्राम सभा में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सबसे पहले गर्भवती महिलाओं पर कड़ी नजर रखना था। जिसके लिए पंचायत ने गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने तथा उनका पंजीकरण करने के लिए गांव में वार्ड स्तर पर कमेटियों का गठन किया था। बीबीपुर पंचायत द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद यह मुद्दा पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था। जिस पर पंचायती राज मंत्रालय ने भी गहन मंथन किया था। अब पंचायती राज मंत्रालय ने पूरे हरियाणा प्रदेश की ग्राम पंचायतों को आईटी विलेज बीबीपुर के नकशे कदम पर चलाने के निर्देश दिए हैं। पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. ऋषिकेश पांडा ने प्रदेश के पंचायती राज विभाग के वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव को पत्र लिखकर कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पंचायतों की मुख्य भूमिका निभाने की जिम्मेदारी देने के लिए कहा है। इसके तहत पंचायतें अपने गांवों में महिला ग्राम सभा का आयोजन कर अधिक से अधिक महिलाओं को इस मुहिम में जोड़ने का काम करेंगी। इसके बाद ये महिलाएं गांवों में वार्ड स्तर पर कमेटियां बनाकर गर्भवती महिलाओं पर नजर रखेंगी। कमेटियों द्वारा पंचायत को दी गई रिपोर्ट को पंचायत को अपने कारवाही रजिस्टर में दर्ज करना इसका पूरा रिकार्ड तैयार करना होगा।

भविष्य में सकारात्मक परिणाम आएंगे सामने

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पंचायती राज मंत्रालय द्वारा जो निर्णय लिया गया है वह काफी सराहनीय है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए ग्राम पंचायतों का अहम योगदान रहेगा। अब तक यह मुहिम केवल कागजों में ही चल रही थी, लेकिन पंचायती राज मंत्रालय के इस निर्णय के बाद यह मुहिम वास्तव में धरातल पर शुरू हो सकेगी। भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

‘पाठशाला’ में पढ़ रही कीड़ों की पढ़ाई

खेती के औजारों की जगह हाथ में होते हैं कॉपी, पैन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सुबह के आठ बजे थे नजारा था गोहाना रोड पर स्थित ललीतखेड़ा गांव के पास का। कुछ महिलाएं सिर पर पानी का मटका लिए पूरे उत्साह के साथ गीत गुणगुनाती खेतों की तरफ जा रही थी। गीत के बोल थे ‘किड़यां का कट रहया चाला ऐ मैंन तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैंन तेरी सूं’ और इन महिलाओं के हाथों में खेती के औजारों की जगह थे कॉपी, पैन। यह नजारा वाकई में चौकाने वाला था। ये महिलाएं खेत में खेती के काम के लिए नहीं बल्कि कीटों की पढ़ाई पढ़ने के लिए जा रही थी। इन महिलाओं को कीट ज्ञान देने का जिम्मा उठाया है निडाना गांव की महिला कीट पाठशाला की मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने। कीटों की पहचान में माहरत हासिल करने के बाद अब इन महिलाओं ने ललीतखेड़ा गांव की तरफ अपनी टीम का रुख किया है। इन दिनों कीट पाठशाला की ये मास्टरनियां ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं को फसल में पाए जाने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर उत्पादन बढ़ाने के गुर सीखा रही हैं। ललीतखेड़ा की महिला किसान पूनम मलिक के खेत को पाठशाला के लिए चुना गया है। सप्ताह के हर बुधवार को पूनम मलिक के खेत पर महिला किसान पाठशाला का आयोजन किया जाता है।

कीटों के साथ-साथ पढ़ाया जाता है अनुशासन का पाठ

महिला किसान पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि इस पाठशाला में कीटों के पाठ के साथ-साथ महिलाओं को अनुशासन का पाठ भी पढ़ाया जाता है। ताकि सभी महिलाएं समय पर खेत में पहुंच सकें और उनकी दिनचर्या न डगमगाए। बुधवार को जब ललीतखेड़ा की यशवंती पाठशाला में लेट पहुंची तो मास्टर ट्रेनर अंग्रेजों ने लेट आने पर उसकी खूब खिंचाई करते हुए उससे लेट आने का कारण पूछा। अंग्रेजो के सवाल का जवाब देते हुए यशवंती ने बताया कि जब वह सुबह आठ बजे घर का कामकाज निपटाकर पाठशाला में आने के लिए चली तो घर पर कुछ मेहमान आ गए। मेहमानों की आवभगत में उसे पाठशाला में आने में देर हो गई। 

कीटों की भी होती खाप पंचायत

बराह कलां बारहा प्रधान कुलदीप ढांडा जब महिला किसान पाठशाला में पहुंचे तो पाठशाला की प्रशिक्षु शीला ने कहा कि ढांडा साहब खाप पंचायत सिर्फ मानस-मानसों की नहीं किड़यां की भी होवा सै। देखो पिछली बार तो दूसरे हथजोड़े ने आपका स्वागत किया था और इस बार कीटों की खाप के प्रतिनिधि दूसरा हथजोड़ा आपके स्वागत के लिए आया है।

पैदल ही तय करती हैं तीन किलोमीटर का सफर

निडाना गांव की मास्टर ट्रेनर महिलाओं में कीट ज्ञान की अलख जगाने का बहुत चाव है। इसलिए लिए तो वो निडाना से ललीतखेड़ा तक आने के लिए किसी व्हीकल का भी सहारा नहीं लेती हैं। झुलसा देने वाली इस गर्मी में वो निडाना से ललीतखेड़ा तक के तीन किलोमीटर के सफर को पैदल ही तय कर लेती हैं। इस सफर के बाद उन्हें घर का कामकाज भी निपटाना पड़ता है।

कीटों पर तैयार किए हैं गीत

 पाठशाला में बही-खाते में कीटों की संख्या दर्ज करवाती महिला।

 कांग्रेस घास के पौधे पर मिलीबग का खात्मा करता मासाहारी कीट अंगीरा।
कीटों की ये मास्टरनी केवल अध्यापन का कार्य ही नहीं करती। अध्यापन के साथ-साथ ये महिलाएं लेखक व गीतकार की भूमिका भी निभाती हैं। अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए इन महिलाओं ने कीटों के पूर जीवन चक्र की जानकारी जुटाकर उनपर गीतों की रचना भी की हैं। जिनमें प्रमुख गीत हैं किड़यां का कट रहया चालाए ऐ मैने तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं। म्हारी पाठशाला में आईए हो हो नंनदी के बीरा तैने न्यू तैने न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा। मैं बिटल हूं मैं किटल तुम समझो मेरी महता इत्यादि।

‘कोई समझाए इन किसानों को क्यों मार रहे बेजुबानों को’


नरेंद्र कुंडू
जींद।
किसानों व कीटों के बीच छिड़ी इस जंग ने खाप पंचायतों को भी असमंजश में डाल दिया है। बड़े-बडे विवादों को चुटकियों में निपटाने के लिए मशहूर हरियाणा की खाप पंचायतों के लिए यह मशला अब प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। क्योंकि प्रदेश ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के किसानों व पंचायतों की नजर अब हरियाणा की खाप पंचायतों पर टिक गई हैं। 18 पंचायतों के बाद 19वीं पंचायत में खाप के प्रतिनिधि जो फैसला सुनाएंगे वह कोई मामूली नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक फैसला होगा और उस फैसले पर ही हमारी आने वाली पीढि़यों की जिंदगी की नींव रखी जाएगी। इस झगड़े को निटवाने तथा अपने वंश को बचाने के लिए खाप पंचायत की शरण में पहुंचे जीव प्रणियों को अब प्रदेश की खाप पंचायत से बड़ी उम्मीद है। मंगलवार को निडाना में हुई सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत की बैठक में कीट मित्र किसानों ने खाप के चौधरियों के समक्ष आवाज उठाते हुए कहा कि ‘कोई समझाए इन किसानों को क्यों मार रहे बेजुबानों को’। पंचायत के समक्ष उठे इस स्लोगन ने पंचायत में मौजूद चौधरियों के दिलों पिंघला कर रख दिया। जिसके बाद पंचायत के प्रतिनिधियों के लिए भी बिना अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त किए वहां से निकला मुश्किल कर हो गया। आइए जाने क्या रही खाप प्रतिनिधियों की प्रतिक्रिया।

पंचायत के सामने पहली बार आया है ऐसा मामला

 नफे सिंह नैन
आज तक पंचायतों के सामने इस तरह का मामला नहीं आया है। पंचायत के सामने इस तरह का यह पहला मामला है।इस मुद्दे पर फैसला देने से पहले पंचायत को मामले को गं•ाीरता से लेते हुए इसकी तहत तक जाना होगा। किसी चौपाल या बैठक में बैठकर इस मुद्दे पर फैसला देना पंचायत के लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। इस मामले पर फैसला देने से पहले पंचायत को किसानों के बीच पहुंचकर इस झगड़े की असलियत को जानना होगा। 
नफे सिंह नैन, प्रधान
बिनैन खाप


 

 

काफी पेचीदा है मामला

सूबे सिंह गिल।



यहां आने से पहले उन्हें इसका बिल्कुल ही अहसास नहीं था कि यह झगड़ा वास्तव में इतना पेचीदा है। जब कीट हमारी फसल में किसी तरह का नुकसान ही नहीं करते हैं तो फिर में हम उन्हें बिना वजह क्यों मारने पर तुले हुए हैं। अगर किसान कीटों की पहचान कर लें तो उन्हें कीटनाशकों के लिए बाजार में भटकने की जरुरत नहीं पड़ेगी। 
सूबे सिंह गिल, प्रतिनिधि
समैन-बिठमड़ा खाप

  

 

क्यों पड़ रही है कीटों को मारने की जरुरत

 अमीर सिंह पूनिया
किसानों ने बताया कि कपास की फसल में 109 किस्म के शाकाहारी व मासाहारी कीट मौजूद होते हैं। जिसमें 27 किस्म के शाकाहारी व 82 किस्म के मासाहारी कीट  शामिल हैं। जब मासाहारी कीटों की संख्या शाकाहारी कीटों से ज्यादा है तो फिर किसानों को इन कीटों को मारने की जरुरत क्यों पड़ती है तथा कीटों व किसानों का झगड़ा किस बात पर है। इन सवालों के जवाब लिए बिना इस मुद्दे पर किसी प्रकार का फैसला नहीं दिया जा सकता।
अमीर सिंह पूनिया
पंचग्रामी प्रधान, खरक पूनिया

झगड़े निपटाने के लिए मशहूर हैं हरियाणा की पंचायतें

 कुलदीप ढांडा
मनुष्य का जीवन कीटों पर ही निर्भर करता है। प्राकृतिक ने सभी जीवों के लिए अलग-अलग नियम बनाए हैं, लेकिन इंसान अपने स्वार्थ के वशभूत होकर प्राकृतिक के निमयों को तोड़ रहा है। अगर किसान इसी तरह रासायनिक पदार्थों के प्रयोग पर जुटे रहे तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होंगे तथा फसल पैदा होनी बंद हो जाएगी। लखनऊ के नवाब का किस्सा सुनाते हुए ढांडा ने कहा कि हरियाणा की पंचायतें विवादों को निपटाने के लिए दूसरे प्रदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। इसलिए इस झगड़े का भी समाधान जरुर ढुंढ़ निकालेंगी।
कुलदीप ढांडा, प्रधान
बराह कलां बारहा
 

 

क्या है किसानों व कीटों की लड़ाई

खाप पंचायत के प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न देते किसान 
कीट कमांडो किसान रोशन ने बताया कि किसानों व कीटों की लड़ाई फसल की पैदावार को लेकर है। रोशन ने उदहारण देते हुए कहा कि पिछले वर्ष उसकी चार एकड़ में कपास के 8502 पौधे थे, प्रति एकड़ के हिसाब से उसके खेत में 2125 पौधे थे। 8502 पौधों से उसे 34 क्विंटल यानि 85 मण कपास की पैदावार मिली। प्रति एकड़ के हिसाब से उसे 21 से 22 मण की औसत पड़ी। रोशन ने कहा कि अगर किसान अपने खेत में सवा तीन बाई सवा तीन फुट पर कपास का पौधा लगाए तो एक एकड़ में 4100 से 4200 के करीब पौधे लगाए जा सकते हैं। जब उसे एक एकड़ में 2125 पौधों से 21 मण की औसत पड़ती है तो उसी एक एकड़ में दो गुणा पौधे लगने से पैदावार अपने आप ही बढ़ जाएगी। रोशन ने कहा कि पैदावार बढ़ाने के लिए कीटों को मारने की नहीं, बल्कि पौधों की संख्या को बढ़ाने की जरुरत है।

खाप चौधरियों ने किसानों के साथ की माथा-पच्ची


सर्व जातीय सर्व खाप की दूसरी बैठक संपन्न

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीटों व किसानों के बीच कई दशकों से चले आ रहे झगड़े में खाप पंचायत के हस्तक्षेप के बाद मामले ने एक अलग मोड़ ले लिया है। इस पेचीदा मसले को हल करने में खाप प्रतिनिधियों से किसी प्रकार का कोई गलत निर्णय न हो इसके लिए खाप के चौधरियों ने बारी-बारी से किसान खेत पाठशाला में पहुंच कर कीट मित्र किसानों के साथ माथा-पच्ची करनी शुरू कर दी है। क्योंकि यह कोई गांव का छोटा-मोटा विवाद नहीं है। यह झगड़ा तो उन दो पक्षों में है, जिसमें एक पक्ष में तर्क-वितर्क करने वाले किसान व दूसरे पक्ष में बेजुमान जीव हैं। कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों के आह्वान पर इस झगड़े को निपटाने उतरी खाप पंचायत की दूसरी बैठक मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में हुई। इस बैठक की अध्यक्षता बिनैन खाप के प्रधान नफे सिंह नैन ने की। बैठक में खरक पूनिया से पूनिया पंचग्रामी के प्रधान अमीर सिंह पूनिया, समैन-बिठमड़ा खाप के प्रतिनिधि व खाप प्रेस प्रवक्ता सूबे सिंह गिल तथा बरहा कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने भी विशेष तौर पर शिरकत की। सर्व जातीय सर्व खाप के प्रतिनिधियों ने किसान पाठशाला में पहुंचकर लगातार साढ़े चार घंटे इस मुद्दे पर गहन मंथन किया। इस दौरान मास्टर ट्रेनर किसानों ने खाप प्रतिनिधियों के समक्ष बेजुबान कीटों का पक्ष रखा।

पारा भी नहीं तोड़ पाया हौंसला

गर्मी के इस मौसम में जहां लोग 10 बजते ही घरों में दुबक जाते हैं, वहीं इतनी भयंकर गर्मी के बावजदू भी किसान खेतों में बैठकर कीटों की पढ़ाई करते नजर आए। 47 डिग्री का पारा भी किसानों के हौंसले को नहीं तोड़ पाया। किसानों ने झुलसा देने वाली इस गर्मी में खेत में बैठकर खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों के साथ बहर की।

पाठशाला बनी प्रयोगशाला

दशकों से चली आ रही इस लड़ाई में खाप पंचायत से फैसले में किसी प्रकार की चूक न हो इसके लिए कीट कमांडो किसानों ने किसान खेत पाठशाला को प्रयोगशाला बना दिया। शाकाहारी कीटों के पत्तों को खाने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क पड़ता है या नहीं इसको आजमाने के लिए किसानों ने एक फार्मुला अपनाया है। किसानों ने पंचायत में पहुंचे खाप के पांचों प्रतिनिधियों के हाथों खेत में खड़े कपास के पांच पौधों के प्रत्येक पत्ते का तीसरा हिस्सा कैंची से कटवा दिया। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि पत्ते काट कर फसल को जितना नुकसान उन्होंने किया है उतना नुकसान कोई कीट फसल में नहीं कर सकता। दलाल ने कहा कि फसल तैयार होने के बाद कटे हुए पत्तों वाले पौधों व दूसरे पौधों के उत्पादन की तुलान की जाएगी। अगर दोनों पौधों से बराबर का उत्पादन मिलता है तो इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि कीटों द्वारा अगर फसल के पत्तों को खा लिया जाए तो उससे उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

कौन-कौन से कीट थे फसल में मौजूद

खाप प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते डा. सुरेंद्र दलाल।

प्रयोग के लिए पत्तों को काटते पूनिया पंचग्रामी के प्रधान।
60 से 70 दिन की कपास की फसल में फिलहाल कौन-कौन से कीट मौजूद हैं इसकी पहचान करने के लिए किसानों के पांच ग्रुप बनाए गए। प्रत्येक ग्रुप के किसानों ने दस-दस पौधों पर मौजूद कीटों को बही-खाते में उतारा। इस दौरान किसानों ने फसल में सफेद मक्खी, चूरड़ा, डाकू बुगड़ा, क्राइसौपा, मकड़ी, मकड़ी, सलेटी भूँड, अंगीरा नामक कीट मौजूद थे। रणबीर मलिक ने बताया कि सफेद मक्खी, चूरड़ा व हरा तेला पत्तों से रस चुस कर तथा सलेटी भूँड पत्तों के किनारे खाकर अपना गुजारा करते हैं। डाकू बुगड़ा चूरड़ा का खून पी कर तथा क्राईसौपा शाकाहारी कीटों को खाकर अपनी वंशवृद्धि करता है। अंगीरा मिलीबग के पेट में अपने बच्चे पलवाता है और इस प्रक्रिया में मिलीबग का खत्मा हो जाता है। इस प्रकार शाकाहारी व मासाहारी कीटों की जीवन यापन की प्रक्रिया में किसान को लाभ मिल जाता है।

क्या करें किसान?

खाप पंचायत के प्रतिनिधियों ने जब डा. सुरेंद्र दलाल से पूछा कि जब तक किसानों को कीटों का ज्ञान नहीं होता, तब तक किसानों को फसल में किस प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। डा. दलाल ने कहा कि अगर फसल में किसानों को किसी प्रकार के नुकसान की आशंका नजर आए तो किसान जिंक, यूरिया व डीएपी का घोल तैयार कर उसका छिड़काव कर सकते हैं। डा. दलाल ने कहा कि आधा केजी जिंक, अढ़ाई केजी यूरिया व अढ़ाई केजी डीएपी का 100 केजी पानी में घोल तैयार कर फसल पर स्प्रे कर सकते हैं।
फोटो कैप्शन


मंगलवार, 3 जुलाई 2012

इंद्र देव की बेरुखी से धरतीपुत्रों के माथे पर बढ़ी चिंता की लकीरें

महंगे भाव का डीजल फूंक कर तपती धरती की प्यास बुझा रहे हैं किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
मानसून की बेरुखी ने धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरों को गहरा कर दिया है। धान का सीजन सिर पर है, लेकिन बढ़ते पारे ने किसानों की सांसें फुला दी हैं। भीषण लू के थपेड़ों में हर रोज किसानों की उम्मीद दम तोड़ रही हैं। गर्मी के मौसम की सबसे ज्यादा मार किसानों पर पड़ रही है। इंद्र देवता की बेरुखी के कारण किसानों को महंगे भाव का डीजल फूंक कर तपती धरती की प्यास बुझानी पड़ रही है। कृषि विभाग द्वारा इस बार एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का टारगेट निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी।
भीषण गर्मी से जहां जनजीवन प्रभावित हो गया है वहीं किसानों की फसल भी सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है। मानसून नहीं आने से खेती किसानी पूरी तरह बिखरने लगी है। इससे किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। बरसात न होने के कारण जहां किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है, वहीं किसानों की फसल भी खराब हो रही हैं। बारिश के लिए आसमान ताक रहे किसानों की धान की रोपाई अधर में लटकी हुई है। वहीं दलहन फसलों, ज्वार, बाजरे व कपास की फसलें भी बिना बारिश के चौपट हो रही हैं। भीषण गर्मी और उमस से परेशान लोगों को राहत की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। किसानों का कहना है कि बारिश में देरी से खरीफ  की आधी फसल तो बर्बाद होने के कगार पर पहुंच चुकी है। एक दो दिन में बारिश नहीं हुई तो धान की रोपाई संकट में पड़ जाएगी। किसान अपनी फसल को बचाने के लिए अब आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। इस बार जिले में कृषि विभाग द्वारा एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी। इसके अलावा जिले में इस बार किसानों द्वारा 60 हजार हैक्टेयर में कपास की बिजाई की गई है। किसानों का मानना है कि अगर मानसून में थोड़ी सी देरी ओर हुई तो धान की रोपाई का सीजन हाथ से निकल जाएगा और किसानों को मजबूरन दूसरी फसलों की बिजाई करनी पड़ेगी। 

पानी के स्रोत सूखे

गर्मी के कारण पानी का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। जिससे कई ट्यूबवेल भी सूखने लगे हैं। नदियों में भी पानी का स्तर लगातार कम होता जा रहा है। बढ़ते पारे के कारण जहां भू जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है, वहीं बिना बारिश के तालाब भी खाली होने लगे हैं। पानी के स्त्रोत सूखने के कारण पशुधन पर भी संकट मंडरा रहा है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार पेयजल संकट गहरा रहा है।

कब तक है बिजाई का सीजन

 बिना बारिश के सूखा पड़ा धान का खेत।
कृषि अधिकारियों के अनुसार 14 जून से धान की रोपाई का सीजन शुरू हो जाता है। 14 जून से पहले धान की रोपाई का कार्य पूर्ण रुप से प्रतिबंधित है। 14 जून के बाद पूरे जुलाई माह तक धान की रोपाई का कार्य चलता है। 20 जुलाई के बाद तो किसान केवल बासमती धान की रोपाई पर ही जोर देते हैं।

चिंतित न हों किसान

मानसून में देरी के कारण धान की रोपाई का कार्य थोड़ा लेट चल रहा है। लेकिन किसानों को किसी प्रकार की चिंता करने की जरुरत नहीं है। अगर मानसून थोड़ा लेट आता है तो फसल की पैदावार को कोई ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। अभी किसानों के पास धान की रोपाई के लिए काफी समय है। जुलाई के आखिरी सप्ताह तक किसान धान की रोपाई कर सकते हैं। कपास, ज्वार, सब्जियों की फसलों में किसान हल्का-हल्का पानी लगाकर फसल को नुकसान से बचा सकते हैं।
अनिल नरवाल, सहायक पौध संरक्षण अधिकारी
कृषि विभाग, जींद

.....चली आओ इस देश ‘लाडो’

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मैदान में आया खेल गांव निडानी का युवा मंडल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
बेटी पैदा होने पर भी अब घरों में थाली बजेगी। बैंड-बाजे के साथ धूमधाम से कुआं पूजन भी होगा। आईटी विलेज बीबीपुर की तर्ज पर अब खेल गांव निडानी का युवा मंडल भी 'लाडो' को बचाने के लिए मैदान में कूद पड़ा है। बेटा-बेटी के बीच के फासले को कम करने के लिए युवा मंडल के सदस्यों ने निर्णय लिया है कि जो भी परिवार गांव में लड़की के जन्म पर कुआ पूजन करेगा उसका सारा खर्च युवा संगठन उठाएगा। इसके अलावा युवा संगठन के सदस्य कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए ग्रामीणों को भी प्रेरित करेंगे।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जिले में लगातार सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। आईटी विलेज बीबीपुर की महिलाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ शंखनाद करने के बाद इस मुहिम में लगातार कड़ियां जुड़ने लगी हैं। बीबीपुर की महिलाओं के साथ-साथ जहां सर्व खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों ने भी कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के फैसले पर मोहर लगा दी है, वहीं अब खेल गांव निडानी के युवा मंडल के सदस्य भी बेटी बचाने के लिए आगे आए हैं। युवा मंडल के सदस्यों ने बेटा-बेटी के बीच की खाई को पाटने तथा बेटियों के प्रति संकीर्ण सोच रखने वाले लोगों की सोच को बदलने का बीड़ा उठाया है। अपनी इस मुहिम के तहत युवा मंडल के सदस्य लड़कों के जन्म पर होने वाले आयोजन की तर्ज पर लड़कियों के जन्म पर भी समारोह का आयोजन करवाएंगे। जो भी परिवार लड़की के जन्म पर कुआ पूजन करवाएगा, तो कुआ पूजन के दौरान बैंड-बाजे पर आने वाला सारा खर्च युवा मंडल उठाएगा। युवा मंडल के सदस्यों का मानना है कि इस मुहिम के बाद गांव में लोगों की सोच में परिर्वतन आएगा। लोग बेटा-बेटी के बीच के अंतर को भूलकर बेटी के जन्म पर भी समारोह का आयोजन कर खुशियां मनाएंगे। इसके अलावा युवा मंडल के सदस्य कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लोगों को जागरुक करने के लिए समय-समय पर गांव में कार्यक्रमों का आयोजन भी करवाएंगे। ताकि  सदियों से बेटियों के प्रति लोगों के दिमाग में बनी नकारात्मक तस्वीर को बदला जा सके। इसके लिए युवा मंडल के सदस्यों ने अपनी पूरी रणनीति तैयार कर ली है।

युवा संगठन ने शुरू की अनोखी पहल

बेटों की चाह रखने वाले लोगों की छोटी सोच के कारण आज प्रदेश में लिंगानुपात काफी गड़बड़ा गया है, जो कि समाज के लिए चिंता का विषय है। अगर समय रहते इस ओर कोई सकारात्मक कदम नहीं बढ़ाए गए तो भविष्य में इसके ओर भी गंभीर परिणाम सामने आएंगे। इसलिए युवा संगठन ने इस सामाजिक बुराई को मिटाने के लिए बेटी के जन्म पर भी समारोह का आयोजन करवाने का निर्णय लिया है। युवा संगठन द्वारा शुरू की गई यह पहल एक अनोखी पहल है। युवा संगठन द्वारा इस शुरू की गई इस पहल से लोगों की सोच में परिवर्तन आएगा साथ ही अन्य गांव के लोग व सामाजिक संगठन भी उनसे सीख ले सकेंगे।
सुरेश पूनिया, चेयरमैन
युवा मंडल, निडानी

रविवार, 1 जुलाई 2012

रसोई घर के निर्माण कार्य में हो रहा फर्जीवाड़ा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकारी स्कूलों में सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) द्वारा मिड-डे-मील योजना के तहत बनवाए जा रहे कीचन शैड कम स्टोरों का निर्माण सवालों के घेरे में है। एसएसए द्वारा कीचन शैड कम स्टोर के निर्माण के लिए हर स्कूल को एक लाख 36 हजार रुपए की ग्रांट उपलब्ध करवाई जा रही है। लेकिन अगर इनके निर्माण में प्रयोग होने वाले मैटीरियल के बाजार के रेटों पर नजर डाली जाए तो इस ग्रांट से इनका निर्माण किसी तरह भी संभव नहीं है। मैटीरियल के बाजार भाव को देखते हुए इनका निर्माण एक लाख 85 हजार रुपए से भी  ज्यादा में पूरा होता है। इससे यह साफ है कि स्कूलों में नियमों को ताक पर रखकर घटिया निर्माण सामग्री के दम पर रसोई घर खड़े किए जा रहे हैं। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी सबकुछ जानते हुए भी इस मामले में अनजान बने हुए हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की यह लापरवाही कभी भी नौनिहालों पर भारी पड़ सकती है।
सवालों के घेरे में अधिकारी
सरकारी स्कूलों में कीचन शैड कम स्टोर के निर्माण कार्य के लिए एसएसए द्वारा जारी की जा रही ग्रांट निर्माण के लिए प्रर्याप्त न होने के बावजूद भी निर्माण में फर्जीवाड़ा कर धड़ल्ले से इन बिल्डिंगों का निर्माण करवाए जा रहा है। निर्माण कार्य के लिए एसएसए द्वारा एक लाख 36 हजार की ग्रांट जारी की जाती है, लेकिन बाजार के रेटों पर नजर डाली जाए तो इनके निर्माण पर एक लाख 85 हजार से भी ज्यादा का खर्च बैठता है। इस प्रकार ग्रांट में 50 हजार की कमी होने के बावजूद भी बिल्डिंग का निर्माण करवाने से लोगों के जहन में सवाल उठने तो लाजिमी हैं। पहला सवाल यह कि अगर नियमों को ताक पर रखकर स्कूलों में रसोई घरों का निर्माण किया जा रहा है तो स्कूल प्रबंधन कमेटी व प्रशासनिक अधिकारी इस ओर से चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? दूसरा यह कि अगर इन अधिकारियों केपास कोई ऐसा फार्मूला है कि जिससे ये कम राशि खर्च कर अच्छी बिल्डिंग का निर्माण करवा रहे हैं तो फिर जिले में बन रही अन्य बिल्डिंगों का कार्य भी इन्हीं अधिकारियों को क्यों नहीं सौंपा जाता?

नौनिहालों के सिर पर मंडरा रही मौत

सरकारी स्कूलों में घटिया सामग्री के दम पर खड़े किए जा रहे रसोई घर कभी भी नौनिहालों के लिए यमदूत बन सकते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही की छांव में निर्माण कार्य में जुटे अधिकारियों द्वारा स्कूलों में बच्चों के लिए मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। घटिया सामग्री के बल पर खडे किए गए ये रसोई घर कभी भी  भर भरा कर गिर सकते हैं। इससे स्कूल में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है और फिर हादसे के बाद प्रशासनिक अधिकारियों के पास सिवाए जांच करवाने के लंबे-चौड़े दावे करने व कागज स्याह करने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। 
कीचन शैड कम स्टोर के निर्माण में प्रयोग होने वाले मैटीरियल की सूची 
मैटीरियल का नाम              लागत     बाजार का न्यूनतम मूल्य        कुल राशि 
  1. सीमेंट                   96 थैले        270 रुपए प्रति थैला           25920
  2. रेता                    500 घन फुट     19 रुपए प्रति फुट            9500
  3. पत्थर व र्इंट रोड़ी         200 घन फुट     14 रुपए प्रति फुट            2800   
  4. बजरी                  145 घन फुट     33 रुपए प्रति फुट             4785
  5. इंट प्रथम श्रेणी           12.400 नग      3700 प्रति नग              45880
  6. टाईल इंट               760 र्इंटें        4 रुपए प्रति र्इंट             3040
  7. कुल सरिया              5.27 क्विंटल    4200 रुपए प्रति क्विंटल         22134
  8. क्रेसर                  100 फुट       37 रुपए प्रति फुट              3700
  9. सफेदी                  -----           ----------              2000               
  10. खिड़की व दरवाजे          ------        -----------               33600
  11. लेबर                   ------           -----------            30000
  12. बिजली का सामान        -------           -----------            2000         
कुल जोड़                                                           185,359
नोट:- इस सूची में  पॉलीथिन, भूसा व शिलान्यास पत्थर की कीमत नहीं जोड़ी गई है।

इसी ग्रांट से चलाना पड़ता है काम

कीचन शैड बनाने के लिए जो ग्रांट जारी की जा रही है, वह लागत के अनुमान से काफी कम है। लेकिन क्या करें इतनी ही ग्रांट से काम चलाना पड़ता है। जिले में लगभग सभी स्कूलों में कीचन शैड का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। कुछ ही ऐसे स्कूल बचे हैं जिनमें अभी तक कीचन शैड का निर्माण नहीं हो पाया है। जल्द ही बचे हुए स्कूलों में भी कीचन शैड का निर्माण करवा दिया जाएगा।
जागेराम, एसडीओ
सर्व शिक्षा अभियान, जींद


निडाना की गौरियों ने भी उठाया खेती को जहरमुक्त करने का बीड़ा

पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं निडाना की महिलाएं

नरेंद्र कुंडू
जींद।
निडाना गांव के गौरे से पेस्टीसाइड के विरोध में उठी इस आंधी को रफ्तार देने में निडाना गांव की गौरियां भी पुरुषों के बाराबर अपनी भागीदारी दर्ज करवा रही हैं। निडाना गांव की महिलाएं ओर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। कीट मित्र किसानों ने जहां इस मुहिम को सफल बनाने के लिए खाप पंचायतों का दामन थाम है, वहीं गांव की महिलाओं ने भी इस मुहिम पर रंग चढ़ाने के लिए आस-पास के गांवों की महिलाओं को जागरुक करने का बीड़ा उठाया है। अक्षर ज्ञान के अभाव का रोड़ा भी इन महिलाओं की रफ्तार को कम नहीं कर पा रहा है। पुरुषों के साथ ही इन महिलाओं ने भी इस लड़ाई में शंखनाद कर दिया है। महिलाएं घंटों कड़ी धूप के बीच खेतों में बैठकर लैंस की सहायता से कीटों की पहचान में जुटी रहती हैं। बुधवार को भी महिलाओं ने ललितखेड़ा गांव में पूनम मलिक के खेत में महिला खेत पाठशाला का आयोजन किया। इस दौरान निडाना गांव की मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने ललितखेड़ा गांव की महिलाओं को कीटों का व्यवहारिक ज्ञान दिया।
मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो देवी, गीता मलिक  ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि फसल में मासाहारी व शाकाहारी दो प्रकार के कीट होते हैं। शाकाहारी कीट फसल के पत्तों से रस चूसकर या फसल के पत्तों को खाकर अपना जीवन चक्र चलाते हैं। मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों को अपना भेजन बनाते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं। मासाहारी व शाकाहारी कीटों की इस जीवन चक्र की प्रक्रिया में किसानों को अपने आप ही लाभ  पहुंचता है। कमलेश, मीना मलिक, सुदेश मलिक ने कहा कि अगर किसान फसल में मौजूद मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर उनके जीवन चक्र के बारे में ज्ञान अर्जित कर ले तो किसान को कभी भी  फसल में पेस्टीसाइड के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। खेत पाठशाला के दौरान मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने लैंस की सहायता से अन्य महिलाओं को भी कीटों की पहचान करवाई। इस दौरान महिलाओं ने फसल में शाकाहारी कीटों में सफेद मक्खी, हरा तेला, बुगड़ा तथा मासाहारी कीटों में क्राइसोपा के बच्चे, मकड़ी पदोकड़ी बिटल व दो किस्म के हथजोड़े देखे। महिलाओं को ट्रेंड करने के लिए महिलाओं के 5 ग्रुप तैयार किए गए। प्रत्येक ग्रुप में चार अनट्रेंड व एक मास्टर ट्रेनर महिलाओं को शामिल किया गया। इस अवसर पर महिलाओं ने मासाहारी व शाकाहारी कीटों पर तैयार किए गए गीत सुनाकर सबका मन मोह लिया। महिला खेत पाठशाला में मौजूद बराह कलां बारहा खाप के प्रधान कुलदीप ढाडा ने महिलाओं के गीतों पर खुश होकर सभी महिलाओं को 100-100 रुपए पुरस्कार राशि दी। महिलाओं ने लगातार साढ़े चार घंटे कीटों पर गहन मंथन किया।

बही-खात किया जा रहा है तैयार

 कपास के पौधों पर मौजूद कीटों की पहचान करती महिलाएं।

 महिला खेत पाठशाला में महिलाओं को कीटों की जानकारी देती मास्टर ट्रेनर।
कीट प्रबंधन की मास्टर ट्रेनर महिलाओं द्वारा कीटनाशक रहित खेती की इस मुहिम को सफल बनाने तथा कीटों का पूरा रिकार्ड तैयार करने के लिए एक बही-खाता तैयार किया जा रहा है। बही-खाते में पूरी जानकारी दर्ज करने के लिए सभी महिलाओं को अगले सप्ताह महिला खेत पाठशाला में आने से पहले अपने-अपने खेतों का पूरा निरीक्षण करने तथा  कपास की फसल में मौजूद मासाहारी व शाकाहारी कीटों का पूरा रिकार्ड तैयार करने के लिए प्रेरित किया गया, ताकि फसल में आने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों का पूरा डाटा तैयार किया जा सके।



कीट व किसानों के झगड़े को निपटाने के लिए पंचायत के प्रतिनिधियों ने किया मंथन

 सर्व खाप पंचायत की महिला विंग की प्रधान पंचायत में अपने विचार रखते हुए।
पंचायत प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न •ोंट करते कीट साक्षरता केंद्र के किसान।

नरेंद्र कुंडू
जींद। आप ने खाप पंचायतों को सामाजिक तानेबाने को बनाए रखने तथा आपसी भाईचारे को कामय रखने के लिए लोगों के बड़े-बड़े झगड़े निपटाते देखा होगा, लेकिन अब खाप पंचायतें पिछले 40-45 वर्षों से कीटों व किसानों के बीच चले आ रहे झगड़े को निपटाने में अपना सहयोग करेंगी। निडाना गांव के स्थित कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों के आह्वान पर मंगलवार को निडाना गांव के जोगेंद्र मलिक के खेत पर एक पंचायत का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता दाड़न खाप के प्रधान देवा सिंह ने की तथा पंचायत के सही संचालन की जिम्मेदारी बराह कलां बाहरा के प्रधान कुलदीप सिंह ढांडा को सौंपी गई। पंचायत में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि कीटों व किसानों के इस झगड़े को निपटाने के लिए सप्ताह के हर मंगलवार को सर्व खाप पंचायत की ओर से एक पंचायत का आयोजन किया जाएगा। 18 बैठकों के बाद 19वीं बैठक में सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत बुलाकर इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाएंगे। कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने बैठक में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों का हथजोड़े (प्रेइंगमेंटीस) कीट का स्मृति चिह्न देकर स्वागत किया।
सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत द्वारा आयोजित पंचायत में कीटों की तरफ से पक्ष रखते हुए कीट मित्र किसान रणबीर मलिक ने कहा कि आज किसानों द्वारा फसल में कीटनाशकों के अंधाधूंध प्रयोग के कारण दूध, पानी, सब्जी व अन्य खाद्य पदार्थों सहित सब कुछ जहरीला होता जा रहा है। मलिक ने कहा कि किसान ज्ञान के अभाव के कारण फसल में मौजूद कीटों को ही अपना दुश्मन समझते हैं, जबकि वास्तविकता इसके विपरित है। मलिक ने कहा कि फसल में शाकाहारी व मासाहारी दो प्रकार के कीट होते हैं। मलिक ने कहा कि 2001 में जब बीटी कपास में अमेरिकन सुंडी आई तो कोई भी कीटनाशक उस पर काबू नहीं पा सका। उन्होंने कहा कि खुद कृषि वैज्ञानिक यह मानते हैं कि कीटनाशकों के प्रयोग से सिर्फ सात प्रतिशत ही रिकवरी होती है । लेकिन अब वैज्ञानिकों द्वारा किए गए सोध से यह साबित हो चुका है कि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से हमारा खानपान तो जहरीला हुआ ही है साथ-साथ फसलों में 95 प्रतिशत नुकसान भी बढ़ा है। मलिक ने कहा कि वे खुद पिछले सात साल से देसी कपास की खेती कर रहे हैं और इन सात सालों के दौरान उन्होंने एक बार भी अपनी फसल में कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। इगराह से आए मनबीर रेढू ने कहा कि वह पिछले 5 वर्षों से कीटनाशक रहित खेती कर रहा है और उसे हर बार अच्छा उत्पादन मिल रहा है। कीट साक्षरता केंद्र के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों के रिकार्ड के अनुसार इस धरती पर 14 लाख किस्म के कीट हैं। जिनमें तीन लाख 8 हजार शाकाहारी व साढ़े चार लाख किस्म के मासाहारी कीट हैं। इन कीटों के पालन के लिए तीन लाख 65 हजार किस्म के पौधे धरती पर मौजूद हैं। दलाल ने कहा कि एक फसल के सीजन के दौरान देश में 1800 करोड़ रुपए के कीटनाशकों की बिक्री होती है और अकेले हरियाणा प्रदेश में 100 से ज्यादा किसानों की मौत कीटनाशक के छीड़काव के दौरान हो रही है। किसानों का पक्ष सुनने के बाद सर्व खाप पंचायत के सभी प्रतिनिधि उनसे सहमत नजर आए और उन्होंने लगातार 18 पंचायतों का आयोजन करने की मांग पर सहमती जताई। इस अवसर पर पंचायत में बैठक में कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला, दाड़न खाप उचाना के प्रधान देवा सिंह, बराह कलां बाहरा के प्रधान कुलदीप सिंह ढांडा, कुंडू खाप के प्रधान महावीर सिंह कुंडू, नरवाना खाप के प्रतिनिधि अमृतलाल चौपड़ा, ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह ढुल, चहल खाप के संरक्षक दलीप सिंह चहल, नगर पालिक उचाना के प्रधान फूलू राम तथा सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत की महिला विंग की प्रधान प्रो. संतोष दहिया ने महापंचायत की तरफ से प्रतिनिधित्व किया।
कीट बई खाता किया जा रहा है तैयार
कीटों व किसानों के इस झगड़े में पंचायत सही न्याय कर सके इसके लिए कीट साक्षारता केंद्र के किसानों द्वारा पूरी योजना तैयार की गई है। पंचायत के समक्ष कीटों के पक्ष में सभी साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए किसानों के 5 ग्रुप बनाए गए हैं। कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनर को प्रत्येक ग्रुप का लीडर बनाया गया है। प्रत्येक ग्रुप 10-10 पौधों की गिनती करता है और एक पौधे पर मौजूद सभी पत्तों व उन पर मौजूद कीटों की पहचान कर उनका आंकड़ा तैयार करता है। सभी ग्रुपों द्वारा गिनती की जाने के बाद उनका अनुपात निकाला कर कीट बई खाते में दर्ज किया जाता है। मंगलवार को तैयार की गई रिपोर्ट में किसानों ने कपास की फसल में मौजूद रस चुसने वाली सफेद मक्खी 1.3 अनुपात, हरा तेला 0.5 व चूरड़ा 1.64 अनुपात तथा शाकाहारी कीटों में डाकू बुगड़ा 0.5 और मकड़ी 0.40 के अनुपात में मौजूद है। डा. दलाल ने कहा कि अभी ये कीट फसल को नुकसान पहुंचाने की स्थित में नहीं हैं।
फोटो कैप्शन


कीट प्रबंधन अभियान में कूदी खाप पंचायतें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
फतवे जारी करने के लिए बदनाम प्रदेश की सर्व खाप पंचायतें अब नए क्लेवर में नजर आएंगी। पिछले 40-45 वर्षों से कीटों व किसानों के बीच चल रहे इस आपसी झगड़े को निपटाने के लिए सर्व खाप पंचायत द्वारा एक अदभूत व अनोखी पहल की गई है। कीटों व किसानों की इस आपसी लड़ाई से धरती पर मौजूद अन्य जीवों को हो रहे जानी नुकसान को बचाने के लिए खाप पंचायतों ने इस लड़ाई में हस्तक्षेप किया है। खाप पंचायत का प्रतिनिधिमंडल सप्ताह के हर मंगलवार को निडाना के कीट साक्षरता केंद्र पर पहुंचकर दोनों पक्षों की बहस सुनेगा और नजदीक से इस लड़ाई का जायजा लेगा। इस बहस के जरिए खाप पंचायतों के प्रतिनिधि कीटों व किसानों के झगड़े की वास्तविकता का पता लगाएंगे। यह सिलसिला लगातार 18 सप्ताह तक चलेगा और 19वें सप्ताह में प्रदेश के सर्व खाप पंचायत के प्रतिनिधि एकत्रित होकर अपना फैसला सुनाएंगे।
इतिहास गवाह रहा है कि फतवे जारी करने के लिए बदनाम प्रदेश की सर्व खाप पंचायतों ने पुरानी से पुरानी रंजीश पर समझौते की मोहर लगाकर आपसी भाईचारे को कायम रखने का काम किया है। आपसी भाईचारे को कायम रखने वाली ये खाप पंचायतें अब एक अनोखी मुहिम का हिस्सा बनने जा रही हैं। इस मुहिम के तहत खाप पंचायतें धरती पर मौजूद जीवों की जिंदगी को बचाने की भूमिका में नजर आएंगी। इसके लिए कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों ने सर्व खाप पंचायतों को चिट्ठी डालकर कीटों व किसानों के बीच चली आ रही इस लड़ाई को समाप्त करने की गुहार लगाई है। कीट मित्र किसानों की मांग को देखते हुए खर्व खाप के प्रतिनिधियों ने जीव रक्षक इस मुहिम में अपना योगदान देने के निर्णय पर मोहर लगा दी है। इस मुहिम के तहत प्रदेश की किसी भी खाप पंचायत के 5 प्रतिनिधि हर मंगलवार को निडाना गांव स्थित कीट साक्षरता केंद्र पर जाकर कीटों व किसानों के बीच चली आ रही इस लड़ाई का नजदीक से जायजा लेंगे। कीट साक्षरता केंद्र पर खाप पंचायत के प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता में होने वाली इन बैठकों का सिलसिला लगातार 18 सप्ताह तक चलेगा। 18 बैठकों के दौरान पक्षों की बहस सुनने के बाद 19वीं बैठक में पूरे प्रदेश की सर्व खाप पंचायत के प्रतिनिधि एकत्रित होंगे और दशकों से चली आ रही कीटों व किसानों की इस लड़ाई पर अपना एतिहासिक फैसला सुनाएंगे। 

जैविक खेती को मिलेगा बल

निडाना गांव स्थित कीट साक्षरता केंद्र के किसान मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करने के लिए पिछले कई वर्षों से कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देने के लिए मुहिम शुरू किए हुए हैं। इस मुहिम को धरातल पर उतारने के लिए कीट मित्र किसानों ने फसल में मौजूद शाकाहारी व मासाहारी कीटों को अपना हथियार बनाया है। ये कीट मित्र किसान अन्य किसानों को भी फसल में मौजूद कीटों की पहचान करने तथा उनके जीवनचक्र को समझने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। सर्व खाप पंचायतों द्वारा इस मुहिम में शामिल होने के बाद उनकी इस मुहिम को बल मिलेगा और किसानों में जैविक खेती के प्रति रुझान बढ़ेगा।

पहली बैठक में खाप पंचायतों की ओर से ये प्रतिनिधि लेंगे भाग

कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों द्वारा सर्व खाप पंचायतों को चिट्ठी डालने के बाद खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों ने उनकी मांग पर सहमती जाई है। मंगलवार से शुरू होने वाली इस बैठक में नैन खाप के मुखिया नफे सिंह नैन, कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला, बराह कलां बाहरा के प्रधान कुलदीप सिंह ढांडा, दाहड़न खाप से देवा सिंह, नरवाना खाप से अमृतलाल चौपड़ा, नौगामा खाप से कुलदीप सिंह रामराये तथा सर्व खाप पंचायत की महिला विंग की प्रधान प्रो. संतोष दहिया सर्व खाप पंचायत की पहली बैठक में प्रतिनिधित्व करेंगी। गोहाना रोड पर स्थित निडाना गांव के बस अड्डे के पास खाप पंचायत के प्रतिनिधियों की पहली बैठक का आयोजन किया जाएगा।

खाप पंचायतों के इतिहास में अनोखी होगी पहल

किसान अधिक से अधिक उत्पादन लेने की होड़ में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। जो फसल में मौजूद शाकाहारी व मासाहारी कीटों तथा मनुष्य के लिए नुकसादायक है। पिछले कई वर्षों से किसानों में कीटनाशकों के प्रयोग को लेकर संशय बरकरार है। जिस कारण किसान जानकारी के अभाव में देशी व विदेशी कंपनी के बहकावे में आकर लुट रहे हैं। इस संशय को दूर करने तथा किसानों का उचित मार्गदर्शन करने के लिए कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों के अनुरोध पर इस मुहिम की शुरूआत की गई है। प्रदेश की सर्व खाप पंचायत के इतिहास में यह एक अनोखी पहल है।
कुलदीप सिंह ढांडा, संयोजक समन्वय कमेटी
सर्वजातिय सर्व खाप महापंचायत, हरियाणा


...ये है देश की अनोखी पाठशाला

देश की आर्थिक रीड को मजबूत करने के लिए यहां दी जाती है कीटों की तालीम

नरेंद्र कुंडू
किसान पाठशाला के दौरान कपास की फसल में कीटों की पहचान करते किसान।
जींद। आप ने ऐसी पाठशालाएं तो बहुत देखी होंगी, जहां देश के कर्णधारों को क, ख, ग की तालीम देकर उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ऐसी पाठशाला देखी या सुनी है जहां कीटों की तालीम देकर देश की आर्थिक रीड (यानि किसानों) को सुदृढ़ करने के सपने बुने जा रहे हों। जी हां हम बात कर रहे हैं जींद जिले के निडाना गांव में चल रहे कीट साक्षरता केंद्र की। यहां हर मंगलवार को किसान पाठशाला का आयोजन किया जाता है और किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाए जाते हैं। यह एक अजीब तरह की पाठशाला है। इस पाठशाला में पेड पर लकड़ी का बोर्ड लगाया जाता है और खेत की मेड पर ही बैठकर किसान अपने अनुभव सांझा करते हैं। इस पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि यहां न ही तो कोई अध्यापक है और न ही कोई स्टूडेंट है। यहां तो किसान खुद ही अध्यापक हैं और खुद ही स्टूडेंट। इस पाठशाला में किसान स्वयं मेहनत करते हैं और कागजी ज्ञान की बजाए व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते हैं। निडाना के खेतों में चलने वाली यह एक अनोखी पाठशाला है। इसमें किसान सिर्फ और सिर्फ फसल में मौजूद मासाहारी व शाकाहारी कीटों पर बहर करते हैं और फिर उससे जो परिणाम निकल कर सामने आते हैं उन्हें ही अपना हथियार बनाते हैं। इस पाठशाला के कीट कमांडों किसानों का मुख्य उद्देश्य कीटनाशकों के प्रयोग को कम कर मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करना है। अपने आप में किसानों द्वारा शुरू की गई यह एक अनोखी पहल है। जिसके चर्चा प्रदेश से बाहर भी चलने लगे हैं और दूसरे प्रदेशों के किसान ही नहीं कृषि अधिकारी भी इन्हें अपना रोल मॉडल मानकर यहां प्रशिक्षण लेने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं। अभी लगभग एक पख्वाड़ा पहले भी पंजाब के होशियारपुर जिले के मुख्य कृषि अधिकारी डा. सर्वजीत कंधारी व यहीं के एक प्रगतिशील किसान अशोक कुमार ने भी इस कीट साक्षरता केंद्र का दौरा कर यहां के किसानों से रु-ब-रु हुए थे।

ग्रुप बनाकर करते हैं तैयारी

निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसान पाठशाला के दौरान चार-चार किसानों के अलग-अलग ग्रुप बनाते हैं और फिर ग्रुप के अनुसार ही खेत को अलग-अलग भागों में बांट दिया जाता है। इस प्रकार ये किसान ग्रुप अनुसार फसल में घुसकर लैंसों की सहायता से पौधों के पत्तों पर मौजूद कीटों की पहचान कर उसके जीवन चक्र के बारे में जानकारी जुटाते हैं। इतना ही नहीं लगातार कई-कई घंटे कड़ी धूप में फसल में बैठकर कीटों पर कड़ा अध्यान करते हैं तथा फसल में किस-किस तरह के कीट हैं तथा उनकी तादाद का पूरा लेखा-जोखा कागज पर तैयार करते हैं। इन किसानों को कीटों के बारे में इतनी ज्यादा जानकारी हो चुकी है कि ये कीट को देखते ही उसकी पूरी पीढ़ी के बारे में बता देते हैं। कीट प्रबंधन के बारे में अगर बात की जाए तो बड़े-बडे कृषि विज्ञानिकों के पास भी इनके सवालों का तोड़ नहीं है।  

मिड-डे-मील व मनोरंज का भी रखते हैं ख्याल

कीट साक्षरता केंद्र के किसान पाठशाला के दौरान खूब मेहनत करते हैं, लेकिन साथ-साथ खाने-पीने व मनोरंजन का पूरा ध्यान रखते हैं। सप्ताह के हर मंगलवार को लगने वाली इस पाठशाला में किसान हर बार अलग-अलग किसान को खाने-पीने के सामान की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी सौंपते हैं। इस प्रकार जिस भी किसान को खाने-पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी मिलती है वह किसान अपने घर से सभी किसानों के लिए हलवा, दलिया या अन्य प्रकार का व्यंजन तैयार करवा कर लेकर आता है। कड़ी मेहनत करते-करते कहीं किसान उब ना जाएं इससे बचने के लिए बीच-बीच में चुटकले के माध्यम से मनोरंज करते रहते हैं।  

पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं किसान

निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसान पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं। खेत से हासिल किए गए अपने अनुभवों को ये किसान ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से अन्य लोगों के साथ सांझा करते हैं। अपना खेत अपनी पाठशाला, कीट साक्षरता केंद्र, महिला खेत पाठशाला, चौपटा चौपाल, निडाना गांव का गौरा, कृषि चौपाल, प्रभात कीट पाठशाला सहित एक दर्जन के लगभग ब्लॉग बनाए हुए हैं और इन ब्लॉगों पर ये किसान पूरी ठेठ हरियाणवी भाषा में अपने विचार प्रकट करते हैं। इन ब्लॉगों की सबसे खास बात यह है कि ये ब्लॉग हरियाणा ही नहीं अपितू दूसरे देशों में भी पढ़े जाते हैं। दूसरे प्रदेशों के किसान ब्लॉग के माध्यम से इन किसानों से सवाल-जबाव करते हैं और अपनी समस्याएं इन किसानों के समक्ष रखकर उनका समाधान भी पूछते हैं।


हाईटैक पंचायत ने रच दिया इतिहास

महिला ग्रामसभा में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए किया 14 कमेटियों का गठन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश की पहली हाईटैक पंचायत बीबीपुर ने सोमवार को एक नया इतिहास रच दिया है और इस इतिहास का गवाह बनी है गांव के तिहाड़ पाने की नीमवाली चौपाल। आईटी विलेज की पंचायत ने गांव में महिला ग्रामसभा का आयोजन करवाकर देश की पहली महिला ग्राम सभा करवाने वाली पंचायत का गौरव हासिल कर लिया है। जिस चौपाल के पास से कभी महिलाएं घुंघट तानकर निकलती थी आज उसी चौपाल में बैठकर महिलाओं ने लगभग दो घंटे तक गहन मंथन किया और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अहम फैसला लिया। ग्रामसभा में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए गांव में 14 कमेटियों का गठन किया गया और सरपंच को सभी कमेटियों का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। चार मैंबर की एक कमेटी बनाई गई, जिसमें तीन महिलाओं व एक पुरुष को कमेटी के मैंबर के तौर पर चुना गया। कमेटियों का कार्य केवल कन्या भ्रूण हत्या को रोकना ही नहीं, अपितू उन महिलाओं पर भी नकेल डालने का रहेगा, जो कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल होकर खुद अपनी ही जात की दुश्मन बनी हुई हैं।

महिलाओं ने रखे सुझाव

आईटी विलेज बीबीपुर की नीमवाली चौपाल में सरपंच सुनील जागलान की अध्यक्षता में सुबह ग्यारह बजे महिलाओं की ग्रामसभा शुरू हुई। ग्रामसभा में लगभग दो घंटे तक महिलाओं ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए गहन मंथन किया और सभी महिलाओं ने बारी-बारी अपने-अपने सुझाव रखे। पूनम, सुनीता ने अपने सुझाव देते हुए बताया कि खाली सरकार या प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अभियान चलाने से कन्या भ्रूण हत्या नहीं रुकेगी। जब तक महिलाएं खुद इस ओर अपने कदम नहीं बढ़ाएंगी तब तक हमें इस मिशन से सकारात्मक परिणाम भी नहीं मिलेंगे। गांव की एक बुजुर्ग महिला बीरमती ने अपना सुझाव रखते हुए कहा कि इस जघन्य कार्य को बढ़ावा देने में चिकित्सक भी पीछे नहीं हैं। चिकित्सक चंद पैसों के लालच में लिंग जांच कर देते हैं। उसने कहा कि अल्ट्रासाऊंड की फीस पांच रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए। बीरमति ने महिलाओं से आह्वान करते हुए कहा कि जो पांच हजार रुपए भ्रूण जांच के लिए चिकित्सकों को देती हैं और फिर पांच हजार रुपए भ्रूण की सफाई के लिए देती हैं उन पैसों को कन्या के नाम बैंक में डलवा दें तो वो पैसे भविष्य में लड़की के काम आ सकेंगे। एमए पास हेमलता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि जब तक महिलाएं इस अपराध को रोकने के लिए स्वयं कमर नहीं कसेंगी, तब तक सरकार को कोई प्रयास सुखद परिणाम नहीं दे सकता है। इस अवसर पर बीडीपीओ नीलम अरोड़ा, सीडीपीओ, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की महिला अधिकारी भी विशेष तौर पर मौजूद रही।
 महिला ग्रामसभा में अधिकारियों के सामने अपने विचार रखती महिलाएं।

 महिला ग्रामसभा में अधिकारियों के सामने अपने विचार रखती महिलाएं

 महिला ग्रामसभा को सम्बोधित करते सरपंच सुनील जागलान।

महिलाओं में दिखा जोश

जैसे ही सुबह के 11 बजे और महिला ग्राम सभा के लिए प्रशासनिक अधिकारी चौपाल में पहुंचे, वैसे ही महिलाओं का हजूम पूरे उत्साह के साथ चौपाल में पहुंचा। देखते ही देखते चौपाल महिलाओं से ठसा-ठस भर गई। महिलाओं ने पूरे जोश के साथ खुलकर ठेठ हरियाणावी भाषा में अपने विचार रखे।

ग्राम सभा में झलका महिला का दर्द

ग्राम सभा के दौरान महिलाओं के विचार सुनकर गांव की एक पढ़ी लिखी औरत तान्या (काल्पनिक नाम) अपने दर्द को नहीं छुपा सकी। ग्रामसभा में तान्या का दर्द झलक गया। तान्या ने चौपाल में महिलाओं से अलग होकर बताया किस उसके पास दो बेटियां है और परिवार वाले उसको आए दिन ताने कसते रहते हैं। उन्होंने बताया कि परिवार की महिलाएं ही ताने ज्यादा  कसती हैं। ऐसे में वो क्या करे, क्या न करे। इसी प्रकार गांव की ही एक अधेड़ महिला ने भी तान्या का समर्थन करते हुए बताया कि लड़का या लड़की यह तो परमात्मा की मर्जी पर निर्भर करता है। मां का इसमें क्या कसूर होता, लेकिन फिर भी उसे आए दिन परिवार की महिलाओं के तानों का सामना करना पड़ता है।

दूसरी पंचायतों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनेगी पंचायत

ग्रामसभा के बाद मिनिस्ट्री आफ पंचायती राज के अतिरिक्त सचिव डॉ. ऋषिकेश पांडा ने सरपंच सुनील जागलान से फोन पर संपर्क कर महिला ग्रामसभा की जानकारी ली। पांडा ने कहा कि अगर उनकी इस मुहिम से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं तो पूरे देश की पंचायतों में महिला ग्रामसभा को प्राथमिकता से लागू किया जाएगा और देश की सभी ग्राम पंचायतों को बीबीपुर की महिला ग्रामसभा की वीडियो फिल्म दिखा कर प्रेरित भी  किया जाएगा। इस प्रकार बीबीपुर की ग्राम पंचायत देश की अन्य पंचायतों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन जाएगी।



बेटी बचाने के लिए मैदान में उतरेंगी आईटी विलेज की गौरी

सोमवार को आईटी विलेज में किया जाएगा महिला ग्रामसभा का आयोजन

 बीबीपुर ग्राम पंचायत का लोगो।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
आईटी विलेज बीबीपुर की गौरी अब चूल्हे-चौके के साथ-साथ बेटी बचाने के लिए मैदान तैयार करेंगी। इसी कड़ी के तहत सोमवार को गांव में महिला ग्रामसभा का आयोजन किया जाएगा। इसके बाद महिला ग्राम सभा का आयोजन करने वाली देश की यह पहली ग्राम पंचायत बन जाएगी। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ शंखनाद करने से पहले महिलाएं ग्राम सभा में विधिवत रुप से रेजुलेशन डालकर प्रस्ताव पास करवाएंगी। ग्राम सभा में ग्रामीण महिलाओं के अलावा जिला प्रशासन की तरफ से विभिन्न विभागों से महिला अधिकारी भी भाग लेंगी। मिनिस्ट्री आफ पंचायती राज के निर्देशानुसार ही गांव में महिला ग्राम सभा का आयोजन करवाया जा रहा है। पंचायत की उपलब्धियों को देखते हुए गत 29 मई को मिनिस्ट्री आफ पंचायती राज नई दिल्ली की टीम ने गांव का दौर कर महिलाओं को भी ग्रामसभा में शामिल करने के निर्देश दिए थे।
देश की पहली हाईटैक पंचायत बीबीपुर में सोमवार को पहली महिला ग्राम सभा का आयोजन किया जाएगा। महिला ग्राम सभा के आयोजन के बाद आईटी विलेज की पंचायत के खाते में एक उपलब्धि ओर जुड़ जाएगी। देश की यह पहली पंचायत बन जाएगी जो महिला ग्राम सभा का आयोजन करेगी। इससे पहले आज तक पूरे देश में किसी भी पंचायत ने महिला ग्राम सभा का आयोजन नहीं किया है। मिनिस्ट्री आफ पंचायती राज के निर्देशानुसार ही पंचायत द्वारा महिला ग्राम सभा का आयोजन करवाया जा रहा है। पंचायत की उपलब्धियों को देखते हुए गत 29 मई को मिनिस्ट्री आॅफ पंचायती राज की एक टीम पंचायती राज के अतिरिक्त सचिव डॉ. ऋर्षिकेश पांडा के नेतृत्व में गांव के दौरे पर पहुंची थी। इस टीम के सदस्यों ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने तथा गांव के विकास में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ही महिलाओं को भी ग्रामसभा में शामिल करने के निर्देश दिए थे। पंचायत द्वारा विधिवत रुप से महिला ग्राम सभा का आयोजन करवाया जाएगा तथा ग्राम सभा की वीडियो रिर्काडिंग करवाकर बीडीपीओ की मार्फत मिनिस्ट्री आफ पंचायती राज को भेजी जाएगी। सोमवार को होने वाली महिला ग्रामसभा में ग्रामीण महिलाओं के अलावा बीडीपीओ, आईसीपीएस सैल से सीडीपीओ, आंगनवाड़ी वर्कर, आशा वर्कर, स्वास्थ्य विभाग तथा जिला प्रशासन की अन्य महिला अधिकारी भी भाग लेंगी। ग्राम सभा में महिला अधिकारियों की उपस्थिति में ही ग्रामीण महिलाओं द्वारा पंचायत में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए रेजुलेशन डाल कर प्रस्ताव पास करवाया जाएगा। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के साथ-साथ महिलाओं से ग्राम सभा में महिलाओं में जागरुकता लाने के बारे में भी सुझाव मांगे जाएंगे।

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए उठाया कदम

ग्राम पंचायत गांव के विकास के साथ-साथ सामाजिक गीतिविधियों में भी सहयोग कर रही है। आज समाज के सामने कन्या भ्रूण हत्या एक गंभीर विषय बना हुआ है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में सबसे अहम योगदान महिलाएं दे सकती हैं। इसलिए ग्राम पंचायत द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए महिला ग्रामसभा का आयोजन करवाया जा रहा है।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

क्या कहती हैं बीडीपीओ

मिनिस्ट्री आफ पंचायती राज नई दिल्ली की एक टीम ने गांव का दौरा किया था। टीम ने पंचायत को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए महिलाओं को भी ग्रामसभा में शामिल करने के निर्देश दिए थे। जिसके आधार पर बीबीपुर गांव में सोमवार को महिला ग्रामसभा का आयोजन करवाया जा रहा है। ग्राम सभा में जिला प्रशासन की तरफ से विभिन्न विभागों से महिला अधिकारी भी भाग लेंगी।
नीलम अरोड़ा
बीडीपीओ, जींद

....यहां तो बाड़ ही खा रही खेत

ट्रांसफार्मरों की खरीद-फरोख्त में निगम को लग रहा करोड़ों का चूना

 बिजली निगम के स्टोर में पड़े खराब ट्रांसफार्मर
नरेंद्र कुंडू
जींद।
घाटे की मार झेल रहे बिजली निगम को खुद उसके ही अधिकारी डुबोने पर तुले हुए हैं। निगम के अधिकारी अपनी जेबे गर्म करने के चक्कर में प्रति माह निगम को करोड़ों रुपए का चूना लगा रहे हैं। गर्मी के मौसम में आॅवर लोड़ के कारण प्रतिदिन निगम के दर्जनों ट्रांसफार्मर खराब हो रहे हैं। लेकिन ऐसे में निगम के अधिकारियों द्वारा खराब हुए ट्रांसफार्मरों को ठीक करवाने की बजाए कमिशन ऐंठने के चक्कर में नए ट्रांसफार्मर खरीदने के कार्यों को तवज्जों दी जा रही है। अधिकारियों द्वारा तय किए गए नए नियामों के कारण एक तरफ जहां करोड़ों रुपए के ट्रांसफार्मर जंग की भेंट चढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी और नए ट्रांसफार्मर की खरीद-फरोख्त की आड़ में अधिकारी निगम को मोटा चूना लगा रहे हैं। नए ट्रांसफार्मरों की खरीददारी के कारण निगम के कर्मचारियों पर काम का बोझ भी बढ़ गया है।
बाड़ ही खेत को खाने वाली कहावत बिजली निगम के अधिकारियों पर स्टीक बैठ रही है। गर्मी के मौसम में आॅवर लोड होने के कारण प्रतिदिन निगम के दर्जनों ट्रांसफार्मर खराब हो रहे हैं। ट्रांसफार्मर खराब होने के कारण लोगों के सामने बिजली संकट गहरा रहा है, जिस कारण लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन निगम के अधिकारियों को लोगों की परेशानियों से कोई सरोकार नहीं है। निगम के अधिकारी खराब हुए ट्रांसफार्मरों को रिपेयर करवाने की बजाए नए ट्रांसफार्मर खरीदने के कार्य को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके पीछे अधिकारियों की मंशा मोटा कमिशन कमाने की होती है। नए ट्रांसफार्मर खरीदने से निगम पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है। जिस कारण निगम कर्ज के दलदल में धंसती जा रही है। जबकि नए ट्रांसफार्मर खरीदने की बजाए पुराने ट्रांसफार्मरों को रिपेयर करवाने में निगम को नामात्र पैसे खर्च करने पड़ते हैं। अधिकारियों की नए ट्रांसफार्मर खरीदने की नीति से निगम पर दोहरी मार पड़ रही है, एक तो करोड़ों रुपए के पुराने ट्रांसफार्मर जंग की भेंट चढ़ रहे हैं तथा दूसरा निगम के कर्मचारियों पर काम का अतिरिक्त बोझ भी बढ़ रहा है। नए ट्रांसफार्मरों की खरीद-फरोख्त में अधिकारी निगम को मोटा चूना लगाकर अपनी जेबें भर रहे हैं।

गहरा सकता है बिजली संकट

बिजली निगम के अधिकारियों की लापरवाही के कारण जिले के लोगों को कभी भी बिजली संकट का सामना करना पड़ सकता है। निगम के अधिकारियों की पुराने ट्रांसफार्मरों को रिपेयर न करवा कर नए ट्रांसफार्मरों की खरीद-फरोख्त की नीति लोगों पर भारी पड़ सकती है। दरअसल नए ट्रांसफार्मरों की खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया लंबी है तथा कर्मचारियों को नए ट्रांसफार्मरों के लिए दूसरे जिलों का रुख करना पड़ता है। जिस कारण निगम के स्टोर में समय पर ट्रांसफार्मर नहीं पहुंच पाते हैं। फिलहाल जिले के बिजली निगम के स्टोर में ट्रांसफार्मरों का भारी टोटा है। स्टोर में 25 व 100 केवीए का एक भी ट्रांसफार्मर मौजूद नहीं है। स्टोर में सिर्फ 63 केवीए के 20-25 ट्रांसफार्मर ही मौजूद हैं तथा खराब ट्रांसफार्मरों की संख्या 265 के लगभग है। स्टोर में ट्रांसफार्मरों की कमी के चलते जिला कभी भी अंधेरे की गिरफ्त में फंस सकता है।

जेई को भुगतना पड़ता है खामियाजा

ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रांसफार्मरों पर आवर लोड़ होने के कारण ट्रांसफार्मर खराब होने का खामियाजा जेई को भुगतना पड़ता है। ट्रांसफर्मार खराब होने पर निगम के अधिकारी जेई पर लापरवाही बरतने के आरोप लगाकार उसके खाते से तीन से चार हजार रुपए की कटोती कर देते हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोड को कम करने तथा बिजली चोरी को रोकने के लिए निगम के अधिकारियों द्वारा कोई विशेष कदम नहीं उठाए जाते हैं। इस प्रकार बिजली चोरी से ट्रांसफार्मर पर आवर लोड़ होने से ट्रांसफार्मर खराब हो जाते हैं और फिर अधिकारियों के कोप का शिकार जेई व अन्य कर्मचारियों को होना पड़ता है।

कर्मचारियों की कमी के कारण बढ़ रहा है काम का बोझ

नए ट्रांसफार्मरों की खरीदारी के लिए कर्मचारियों को दूसरे जिलों का रुख करना पड़ता है। निगम में कर्मचारियों की कमी के कारण काम का बोझ काफी बढ़ गया है। अधिकारियों को चाहिए कि निगम से ठेका प्रथा को बंद कर सभी कच्चे कर्मचारियों को पक्का कर दिया जाए। ठेकेदारी प्रथा बंद होने से कमिशनखोरी पर भी अंकुश लग जाएगा और इससे निगम की आमदनी भी बढ़ेगी।
राजेश शर्मा, यूनिट सचिव
एचएसईबी वर्करज यूनियन

मैटीरियल की कमी आती है आड़े

गर्मी के मौसम में ट्रांसफार्मर जल्दी खराब हो जाते हैं। जिस कारण ट्रांसफार्मरों की मांग काफी बढ़ जाती है। नए ट्रांसफार्मर तैयार करने में कई प्रकार के मैटीरियल की आवश्कता पड़ती है, लेकिन वर्कशॉप में मैटीरियल उपलब्ध न होने के कारण ट्रांसफार्मर समय पर तैयार नहीं हो पाते हैं। पुराने ट्रांसफार्मरों को रिपेयर करने की जिम्मेदारी वर्कशॉप की होती है। लेकिन वर्कशॉप में पुराने ट्रांसफार्मरों को रिपेयर करने के टारगेट फिक्श होता है। टारगेट के आधार पर ही पुराने ट्रांसफार्मरों को रिपेयर किया जाता है।
राजबीर, एक्सईएन
सेंट्रल स्टोर, रोहतक

आवेदकों पर भारी पड़ रहे सरकारी आदेश

रैडक्रॉस फार्म बुथ पर दो माह से नहीं पहुंची गन बुक

 रैडक्रॉस का फार्म बुथ जहां पर अभी तक गन बुक नहीं पहुंची हैं।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
आर्म्ज लाइसेंस बनवाने के लिए सरकार द्वारा लागू किए गए नए नियम आवेदकों की राह का रोड़ा बन रहे हैं। सरकार द्वारा आर्म्ज लाइसेंस के नियमों में परिवर्तन करते हुए यह शर्त लागू कर दी गई है कि कोई भी आवेदक बाहर से गन बुक नहीं खरीद सकेगा। आवेदक को लाइसेंस बनवाने के लिए केवल रैडक्रॉस के फार्म बुथ से ही गन बुक खरीदकर जमा करवानी होगी। हालांकि पहले आवेदकों पर इस प्रकार की कोई पाबंदी नहीं होती थी। अब आलम यह है कि लाइसेंस बनवाने वाले आवेदकों ने आवेदन की सारी प्रक्रिया तो पूरी कर ली हैं, लेकिन अभी तक रैडक्रॉस फार्म बुथ से उन्हें गन बुक नहीं मिल पा रही हैं। नियमों में परिवर्तन होने के लगभग दो माह बाद भी रैडक्रॉस फार्म बुथ पर गन बुक नहीं पहुंची हैं। दो माह बाद भी गन बुक रैडक्रॉस के बुथ पर नहीं पहुंचपाने से प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं।
सरकार द्वारा आर्म्ज लाइसेंस बनवाने के नियमों में परिवर्तन किया गया है। सरकार ने नियमों में परिवर्तन करते हुए आवेदकों पर यह आदेश थोप दिए हैं कि कोई भी आवेकद गन हाऊस से गन बुक नहीं खरीद सकेगा। लाइसेंस बनवाने वाले आवेदक को केवल रैडक्रॉस के फार्म बुथ से ही गन बुक खरीदनी होगी। लेकिन पहले आवेदकों पर इस तरह की कोई पाबंदी नहीं होती थी। जिससे आवेदकों के सामने गन बुक को लेकर किसी प्रकार की समस्या कोई समस्या नहीं आती थी। लेकिन अब सरकार द्वारा नियमों में फेरबदल कर रैडक्रॉस से ही गन बुक खरीदने के नए नियम से आवेदकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि लगभग दो माह से रैडक्रॉस फार्म बुथ पर गन बुक ही नहीं पहुंची हैं। रैडक्रॉस के पास गन बुक उपलब्ध न होने के कारण आवेदकों की लाइसेंस की फाइल पीएलए वि  आवेदकों पर भारी पड़ रहे सरकारी आदेश
ग के कार्यालय में ही धूल फांक रही हैं। हजारों रुपए खर्च कर लंबी व कठिन प्रक्रिया से गुजरने के बावजूद भी आवेदकों को सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। आवेदक सारी औपचारिकताएं पूरी करवा चुके हैं, लेकिन सिर्फ गन बुक के इंतजार में ही उनके लाइसें अटके पड़े हैं। इस प्रकार लाइसेंस प्रक्रिया में लागू किए गए नए नियम आवेदकों की राह में रोड़ा बने हुए हैं।

प्रक्रिया से गुजरते वक्त आवेदक को लग जाता है हजारों का चूना

आर्म्ज लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया काफी लंबी और कठिन है। जिस कारण आवेदक फाइल जमा करवाने से लेकर लाइसेंस बनने तक कई बार रिश्वतखोरों के चुंगल में फंसकर हजारों रुपए एंठवा देते हैं। फाइल जमा करवाते समय ही दलाल आवेदक को अपने जाल में फांसने के लिए दाना डालने लगते हैं। फाइल जमा करवाते समय आवेदक को आर्म्ज विभाग के कार्यालय में बैठे कर्मचारियों की सेवा करनी पड़ती है। उसके बाद संबंधित थाने में गवाही करवाते वक्त भी पुलिस कर्मचारियों को सेवा के तौर पर मोटी रकम देनी पड़ती है, तब जाकर उसकी फाइल आगे सरकती है। उसके बाद डीएसपी तथा एसपी कार्यालय में भी दलाल आवेदक की जेब तरासने से नहीं चुकते। एसपी कार्यालय से डीसी कार्यालय में फाइल के पहुंचने के बाद साहब की टेबल तक फाइल पहुंचवाने के लिए भी आवेदक को जब ढीली करनी पड़ती है। उपायुक्त के दरबार में फाइल पहुंचने के बाद उपायुक्त द्वारा रैडक्रॉस की फीस के तौर पर पर्ची काटी जाती है, जिसकी फीस निर्धारित नहीं होती। रैडक्रॉस की पर्ची के नाम पर आवेदक से 1100 से लेकर 21 हजार रुपए तक की फीस वसूली जाती है। अगर आवेदक की ऊपर अच्छी पहुंच है तो उसका काम कम रुपए से चल जाता है। खेल यहीं खत्म नहीं होता। आवेदक को लाइसेंस बनने के बाद भी पीएलए ब्रांच के अधिकारियों की सेवा करनी पड़ती है। बिना सेवा शुल्क लिए तो पीएलए ब्रांच के अधिकारी भी आवेदक को कमरे से बाहर ही नहीं निकलने देते। इस प्रकार फाइल जमा करवाने से लेकर लाइसेंस बनने तक आवेदक को जमकर चूना लगाया जाता है।

क्या कहते हैं अधिकारी

सरकार द्वारा नियमों में परिवर्तन कर गन बुक का नया फार्मेट भेजा गया है। जिस कारण नया फार्मेट तैयार करवाने में समय लग रहा है। गन बुक तैयार हो चुकी हैं, जल्द ही गन बुक रैडक्रॉस के फार्म बुथ पर उपलब्ध करवा दी जाएंगी। ताकि लाइसेंस बनवाने वाले आवेदकों को किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।
नरेंद्र पाल मलिक
नगराधीश, जींद

3 माह, 96 सैंपल, 9 की रिपोर्ट

सैंपलों की आड़ में विभाग कर रहा खानापूर्ति, किसान बेबस

 उप कृषि अधिकारी कार्यालय का फोटो।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में नकली बीज व दवाइयों का गोरखधंधा पूरे यौवन पर है। इसके लिए पूरी तरह से कृषि विभाग की सुस्ती जिम्मेदार है। विभाग द्वारा क्वालिटी कंट्रोल अभियान चलाकर नकली बीज व दवा विक्रेताओं पर नकेल डालने की बजाए सैंपलों की आड़ में केवल खानापूर्ति की जा रहा है। आलम यह है कि अप्रैल माह से अब तक विभाग द्वारा जिलेभर की दुकानों से महज 96 सैंपल ही लिए गए हैं और इनमें से भी मात्र 9 सैंपलों की रिपोर्ट ही विभाग द्वारा मंगवाई गई है। जिसमें मात्र एक सैंपल ही फेल दिखाया गया है। इस प्रकार विभाग की कछुआ चाल के कारण बीज किसानों को मोटा चूना लग रहा है। बाकि सैंपलों की रिपोर्ट जब तक विभाग के पास पहुंचेगी तब तक सारा का सारा नकली बीज व कीटनाशक किसानों में बट चुका होगा और विभाग के पास खाली लकीर पीटने के सिवाए कुछ नहीं बचेगा।
खरीफ सीजन की बिजाई के साथ ही नकली बीज व कीटनाशक तैयार करने वाला गिरोह सक्रीय हो चुका है। बेहतर फसल उत्पादन हासिल करने की तमन्ना दिल में पाले किसान जब बीज बिक्री केंद्र पर पहुंचते हैं तो अधिकांश किसानों के हाथों में बेखौफ होकर बीज और कीटनाशकों के डुप्लीकेट उत्पाद थमा दिए जाते हैं। लेकिन कृषि विभाग के अधिकारी आराम से मुकदर्शक बने तमाशा देखते रहते हैं। विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण जिले में नकली बीज व कीटनाशकों का कारोबार पूरे यौवन पर है। कृषि विभाग के अधिकारियों द्वार क्वालिटी कंट्रोल अभियान के नाम पर केवल खानापूर्ति ही की जाती है। इससे नकली बीज व कीटनाशक बेचने वाले डीलरों के हौंसले बुलंद हो चुके हैं। कृषि विभाग के अधिकारी नकली बीज विक्रेताओं पर नकेल डालने के लिए कितने सक्रीय हैं इसका पता खुद उनके द्वारा ही प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से चल रहा है। विभागीय अधिकारियों द्वारा उपायुक्त के समक्ष प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि विभाग ने अप्रैल माह से अब तक जिलेभर की दुकानों से केवल 96 सैंपल ही लिए हैं। इन 96 सैंपलों में से अब तक मात्र 9 ही सैंपलों की रिपोर्ट विभाग के पास पहुंची है। इन 9 सैंपलों में से केवल एक ही सैंपल फेल दिखाया गया है। बाकि बचे सैंपलों की रिपोर्ट जब तक विभाग के हाथों में पहुंचेगी तब तक सारा का सारा नकली बीज व कीटनाशक किसानों के हाथों में पहुंचकर फसल पर अपना प्रभाव भी दिखा चुका होगा। उस वक्त किसानों के पास सिवाए रोने व विभाग के पास खाली लकीर पीटने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। विभाग की कछुआ चाल के कारण आज जिले में नकली बीज व कीटनाशक विक्रेता जमकर चांदी कूट रहे हैं और भोलेभाले किसान जानकारी के अभाव में इनके चुंगल में फंस कर लुट रहे हैं। नकली बीज व कीटनाशकों के प्रयोग से किसान पर दोहरी मार पड़ रही है। एक तो किसान को आर्थिक नुकसान हो रहा है और दूसरा फसल की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

अभी मीटिंग में हूं

इस बारे में जब कृषि विभाग के उप कृषि अधिकारी आरपी सिहाग से उनके मोबाइल पर बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि अभी मैं मीटिंग में हूं थोड़ी देर बाद बात करना, लेकिन जब उनसे दोबारा संपर्क किया गया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

समय-समय पर चलाए जाते हैं अभियान

नकली बीज व कीटनाशकों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए विभाग द्वारा समय-समय पर जिले में क्वालिटी कंट्रोल अभियान चलाए जाते हैं। दुकानों पर जाकर बीज व कीटनाशकों के सैंपल भी लिए जाते हैं। लेकिन प्रक्रिया लंबी होने के कारण सैंपल की रिपोर्ट आने में एक माह से भी  ज्यादा का समय लग जाता है।
अनिल नरवाला, एपीपीओ
कृषि विभाग, जींद