रविवार, 23 जून 2013

कीटों को नियंत्रण करने में कीट ही सबसे बड़ा हथियार : डा. सैनी

कहा, प्रकृति ने सभी जीवों के लिए तय किए हैं नियम 
पाठशाला में किसानों ने कीटों का अवलोकन कर सीखे जहरमुक्त खेती के गुर

नरेंद्र कुंडू
जींद। कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जिले में शुरू की गई मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए शनिवार को कीट कमांडों किसानों तथा कृषि विभाग के सौजन्य से राजपुरा भैण गांव में किसान खेत पाठशाला का शुभारंभ किया गया। डा. सुरेंद्र दलाल के छोटे भाई विजय दलाल ने किसानों को कापी, पैन वितरित कर पाठशाला का शुभारंभ किया। कृषि विभाग के ए.डी.ओ. कमल सैनी तथा कीट मित्र किसान कमेटी के प्रधान रणबीर मलिक ने जहरमुक्त खेती की इस मुहिम को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। इस अवसर पर जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कृषि विभाग सफीदों उपमंडल के एस.डी.ओ. डा. सत्यवान आर्य, बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, चहल खाप के संरक्षक दलीप सिंह चहल, किसान क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया विशेष रूप से मौजूद थे। 
डा. बलजीत भ्याण तथा डा. सत्यवान आर्य ने किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल की इस मुहिम को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा तथा चहल खाप के संरक्षक दलीप  सिंह चहल ने खापों की तरफ से किसानों को पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया। इसके बाद किसानों ने 5-5 किसानों के 6 ग्रुप बनाकर कपास की फसल में कीटों का अवलोकन किया। कीट अवलोकन के बाद कीट बही-खाता तैयार किया गया। किसान मनबीर रेढ़ू ने कहा कि फसल के उत्पादन में खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या जरुरी है। रेढ़ू ने कहा कि एक एकड़ जमीन की लंबाई 220 तथा चौड़ाई 198 होती है। अगर किसान 3 बाई 3 की दूरी पर कपास के बीज की बिजाई करते हैं तो एक एकड़ में 73 लाइन बनेंगी और एक लाइन में 66 पौधे लगेंगे। इस प्रकार एक एकड़ में 4818 पौधे लगेंगे लेकिन उन्होंने पाठशाला के दौरान जिस खेत का अवलोकन किया है उस खेत में 4355 पौधे हैं और प्रत्येक पौधे पर औसतन 10 पत्ते हैं। इस पूरी फसल में कुल 43550 पत्ते हैं। पाठशाला में मौजूद किसानों द्वारा फसल के निरीक्षण के बाद तैयार किए गए बही खाते के आंकड़े के अनुसार पूरे खेत में कुल 46 हजार की संख्या में सफेद मक्खी और 46 हजार की संख्या में ही हरातेला तथा 60 हजार की संख्या में चूरड़ा फसल में मौजूद हैं। रेढ़ू ने बताया कि इसके अलावा इन कीटों को खाने वाले मांसाहारी कीट भी पूरी तादात में खेत में मौजूद हैं। 
 चार्ट पर कीटों का बही खाता तैयार करते किसान।
कपास के इस खेत में क्राइसोपा, क्राइसोपा के बच्चे, मकड़ी, बिंदुआ बुगड़ा तथा कातिल बुगड़ा भी मौजूद हैं। एक क्राइसोपा तथा एक बिंदुआ बुगड़ा एक दिन में 250-250 के करीब सफेद मक्खी, चूरड़े तथा हरेतेले का काम तमाम कर देते हैं और मकड़ी की खुराक तो इन सबसे ज्यादा है। इसलिए किसानों को फसल में मौजूद शाकाहारी कीटों से डरने की जरुरत नहीं है। किसान चतर  सिंह ने बताया कि कीट बही खाते के आंकड़ों के अनुसार इस खेत में प्रति पौधा 1.1 सफेद मक्खी, 1.1 हरातेला तथा 1.4 चूराड़ा की औसत आई है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अगर कपास की फसल में प्रति पौधा सफेद मक्खी की औसत 6, हरेतेले की औसत 2 तथा चूरड़े की औसत 10 प्रति पत्ता हो तो ही ये शाकाहारी कीट फसल में नुक्सान पहुंचाने के सत्र पर होते हैं लेकिन आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो अभी तक ये कीट हमारी फसल में नुक्सान पहुंचाने के सत्र से कोसों दूर हैं। डा. कमल सैनी ने कहा कि कीटों का आपसी तालमेल काफी अच्छा होता है। कपास की इस फसल में सूरा नामक कीट काफी तादात में मौजूद है। जबकि सूरा कीट सरसों की फसल का कीड़ा है लेकिन अब यह कीड़ा कपास की फसल में भी मौजूद है। सैनी ने बताया कि सूरा कीट के साथ-साथ उसका शिकारी कातिल बुगड़ा नामक मांसाहारी कीट भी काफी मात्रा में मौजूद है। इसलिए किसानों को इस कीट से भयभीत होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि कीट को नियंत्रण करने में कीट ही सबसे बड़ा हथियार होता है और प्रकृति ने पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों के लिए नियम तय किए हैं। इस अवसर पर पाठशाला में राजपुरा भैण, ईंटल,  सिंसर, छापड़ा, ईगराह, निडानी, निडाना, ललीतखेड़ा, रधाना, चाबरी, सिरसाखेड़ी गांवों से लगभग 50 किसान पाठशाला में मौजूद थे। 

पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर किसानों को कापी, पैन देते विजय दलाल तथा फसल पर कीटों का अवलोकन करते किसान। 



गुरुवार, 20 जून 2013

मानव जाति पर कस रहा कैंसर का शिकंजा

कैंसर के कारण हर वर्ष मौत के मुंह में समा जाती हैं लाखों जिंदगियां

नरेंद्र कुंडू
जींद। कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी का शिकंजा मानव पर लगातार कसता जा रहा है। कैंसर के मरीजों की बेहताशा वृद्धि के कारण सम्पूर्ण मानव जाति परेशान है। आज कैंसर ने एक गंभीर चुनौति का रूप धारण कर लिया है। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो हर वर्ष लगभग 6 करोड़ लोगों की मौत होती है और इनमें से अकेले 76 लाख लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बनते हैं। इसके अलावा 2 लाख 20 हजार लोग प्रति वर्ष पेस्टीसाइड प्वाइजनिग के कारण यानि जहर के सेवन से मरते हैं। अगर इसी संगठन की रिपोर्ट पर गौर फरमाया जाए तो कैंसर जैसी बीमारी का फैलने का मुख्य कारण सामने आता है किसानों द्वारा खाद्य पदार्थो यानि फसलों में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग करना। डब्ल्यू.एच.ओ. की एक रिपोर्ट के अनुसार खेतों में कीटनाशकों के स्प्रे नहीं करने वाले किसानों के मुकाबले कीटनाशकों के स्प्रे करने वाले किसानों में कैंसर होने की संभावना संख्यकीय तौर पर ज्यादा है। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपए खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं। फसलों में अत्याधिक पेस्टीसाइड के इस्तेमाल से आज दूध, सब्जी, पानी तथा हर प्रकार के खाद्य पदार्थों पर जहर का प्रभाव बढ़ रहा है। इस प्रकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से हर रोज काफी मात्रा में जहर हमारे शरीर में प्रवेश कर हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर रहा है। पेस्टीसाइड के अत्याधिक प्रयोग से केवल कैंसर ही नहीं बल्कि हार्ट अटैक, शुगर, लकवा, पौरुष हीनता, सैक्स समस्या जैसी न जाने कितनी बीमारियां हमारे शरीर में घर कर रही हैं। यू.एस.ए. की पर्यावरण संरक्षण एजैंसी के अनुसार दुनिया में विभिन्न किस्म के पेस्टीसाइडों में से 68 किस्म के ऐसे फंजीनाशक, फफुंदनाशक, खरपतवार नाशक और कीटनाशक हैं जो कैंसर कारक सिद्ध हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी भारत में इन पेस्टीसाइडों का धड़ले से प्रयोग हो रहा है। देश में पेस्टीसाइड ने सबसे पहले काजू बैलट में दस्तक दी और उसके बाद कॉटन बैलट में भी पैर जमा लिए। इसके बाद धीरे-धीरे धान व सब्जियों की फसलों और अब तो हर तरह की फसलों में इसका इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और आज परिणाम हमारे सामने हैं। पंजाब में तो हालात और भी बुरे हैं। यहां बड़े-बड़े शहरों में ट्रेन के रूप में कैंसर एक्सप्रेस ही नहीं बल्कि टैक्सी स्टैंडों पर भी कैंसर के मरीजों को राजस्थान के बीकानेर में स्थित कैंसर के अस्पताल में लाने-लेजाने के लिए कैंसर टैक्सियों के नाम से गाडिय़ां आसानी से मिल जाती हैं। पंजाब में कैंसर के मरीजों की तादात बढऩे का मुख्य कारण है यहां पेस्टीसाइड का अत्याधिक इस्तेमाल। पंजाब के बाद अब हरियाणा भी कैंसर की चपेट में आ चुका है।फसलों से अधिक उत्पादन की चाह में किसान अंधाधुंध पेस्टीसाइडों का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन किसानों का यह लालच मानव जाति के लिए एक बड़ा खतरा बन रहा है। इसके लिए हम सारा दोष अकेले किसान को भी नहीं दे सकते, क्योंकि हमारी सरकार भी इसमें बराबर की जिम्मेदार है। इतने बड़े खतरे की दस्तक के बाद भी सरकार की नींद नहीं टूट रही है। इसी का परिणाम है कि आज स्वास्थ्य पर अप्रत्यक्ष रूप से हमारा खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। कैंसर जैसे बड़े खतरे को देखते हुए सबसे पहले कृषि विभाग को जागने की जरुरत है। इसके लिए कृषि विभाग को हरियाणा के जींद जिले के निडाना-निडानी के आस-पास के गांवों के किसानों से प्रेरणा लेने की जरुरत है। क्योंकि यहां के किसानों ने कीट ज्ञान की मशाल जलाकर किसानों को नई दिशा देने का काम किया है। यहां सैंकड़ों ऐसे किसान हैं, जो बिना कीटनाशकों के इस्तेमाल के अन्य किसानों से अच्छा उत्पादन लेकर लोगों की थाली को जहरमुक्त करने के प्रयास में लगे हुए हैं। अगर इन किसानों के अनुभव को सही नजरिये से देखा जाए तो किसानों को कीटनाशकों की नहीं बल्कि कीट ज्ञान की जरुरत है। फसलों में पाए जाने वाले कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों को जानने की जरुरत है। क्योंकि कीट ज्ञान के हथियार के बिना इस पेस्टीसाइड के चक्रव्यूह को भेद पाना किसानों के लिए संभव नहीं है। 

मंगलवार, 18 जून 2013

जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए सर्वजाट खाप ने तैयार की नई रणनीति

नई रणनीति पर विचार-विमर्श के लिए 29 को सोनीपत में होगी महापंचायत
दूसरे प्रदेशों में भी शुरू की जाएगी आरक्षण की लड़ाई

नरेंद्र कुंडू
जींद। भारत सरकार की नौकरियों में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए सर्वजाट सर्वखाप हरियाणा के पदाधिकारी अब नए सिरे से आंदोलन शुरू करने के लिए रणनीति तैयार कर रही हैं। नई रणनीति के अनुसार इस बार आंदोलन हरियाणा प्रदेश के साथ-साथ दूसरे प्रदेशों में भी चलाया जाएगा। इसके लिए दूसरे प्रदेशों के जाटों को एकजुट किया जाएगा। सर्वजाट सर्वखाप हरियाणा के प्रधान दादा नफे सिंह नैन ने सोमवार को आंदोलन की नई रणनीति की घोषणा करते हुए कहा कि इस बार भारत सरकार की नौकरियों में जाटों को आरक्षण मिले बगैर यह आंदोलन समाप्त नहीं होगा। नई रणनीति पर विचार-विमर्श करने के लिए 29 जून को सोनीपत में हरियाणा की सभी खापों की महापंचायत का आयोजन किया जाएगा। इसमें खाप चौधरी आगामी ठोस रणनीति तैयार करेंगे। खाप प्रतिनिधियों द्वारा नजदीक आ रहे लोकसभा चुनाव को मद्देनजर रखकर आंदोलन की चोट करने के मन से नई रणनीति तैयार की गई है। भारत सरकार की नौकरियों के साथ-साथ प्रदेश में जाटों को आरक्षण देने के लिए लागू की गई नीति का भी निरीक्षण किया जाएगा।  
सर्वजाट सर्वखाप के अध्यक्ष दादा नफेसिंह नैन ने कहा कि देशभर के जाटों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। किसानों के पास खेती योग्य जमीन कम हो गई है। जाटों को आरक्षण नहीं मिलने के कारण इनके बच्चों नौकरियां नहीं मिल पा रही हैं। इससे जाटों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो चली है। इस कारण जाट समुदाय अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दिलवा पा रहा है। नैन ने कहा कि अब तो जाटों के पास सरकारी नौकरियां हासिल करने के लिए केवल आरक्षण का रास्ता ही बचा है। जाटों को आरक्षण तभी मिलेगा जब पूरे देश के जाट एकजुट होकर संघर्ष करेंगे। उन्होंने बताया कि हरियाणा, राजस्थान व दिल्ली में जाटों को आरक्षण दिया जा चुका है लेकिन भारत सरकार की नौकरियों में आरक्षण अभी तक नहीं दिया गया है। इसी कारण जाटों के युवक भारत सरकार की नौकरियों से वंचित हो रहे हैं। नैन ने बताया कि आरक्षण के आंदोलन को सफल बनाने तथा देशभर के जाटों को एकजुट कर आंदोलन में शामिल करने के लिए 29 जून को सोनीपत में हरियाणा की सभी खापों की बैठक बुलाई गई है। बैठक में नई रणनीति पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। प्रवक्ता सूबेसिंह सैमाण ने बताया कि प्रदेश में जाट आरक्षण को लेकर कुछ संगठनों से सहयोग लिया गया था लेकिन इन संगठनों में कोई खास दमखम दिखाई नहीं दिया। संगठन के पदाधिकारी बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन जब भीड़ के माध्यम से आंदोलन दिखाने की बारी आती है तो इनके पास मुठ्ठी भर लोग ही मिलते हैं। सैमाण ने बताया कि वे जाट संगठनों का विरोध नहीं कर रहे हैं। बल्कि उनकी हकीकत को ब्यां कर रहे हैं। सैमाण ने कहा कि एकाध संगठन तो काफी मजबूत है। बावजूद इसके अगर संगठन जाट आरक्षण के आंदोलन में सहयोग करेंगे तो उनको मना भी नहीं किया जाएगा। सैमाण ने कहा कि भारत सरकार की नौकरियों में आरक्षण की मांग के साथ-साथ प्रदेश में मिले जाटों को आरक्षण की नीति का भी निरीक्षण किया जाएगा। अगर निरीक्षण के दौरान आरक्षण नीति में कोई कमी नजर आती है तो उसे भी दूर करने के लिए आवाज उठाई जाएगी। 

अब कृषि विभाग के अधिकारियों को कीट ज्ञान के क, ख, ग, सिखाएंगी कीटों की मास्टरनियां

जहरमुक्त खेती की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटों की मास्टरनियों ने कृषि विभाग को भेजा पत्र

नरेंद्र कुंडू
जींद। थाली को जहरमुक्त करने के लिए किसानों को कीट ज्ञान का संदेश देने वाली कीटों की मास्टरनियां अब किसानों के साथ-साथ कृषि विभाग के अधिकारियों को भी कीट ज्ञान के क, ख, ग सिखाएंगी। इसके लिए निडाना, ललीतखेड़ा और निडानी की वीरांगनाओं ने कृषि विभाग जींद के उप-निदेशक डा. आर.पी. सिहाग को पत्र भेजकर उनकी इस मुहिम में सहयोग की मांग की है। उप-निदेशक ने महिलाओं की इस मांग को स्वीकार करते हुए विभाग के 5-5 अधिकारियों को सप्ताह में एक-एक दिन महिला किसान खेत पाठशाला ललीतखेड़ा तथा किसान खेत पाठशाला राजपुरा भैण में जाकर कीट ज्ञान अर्जित करने के निर्देश जारी किए हैं।
अज्ञान के कारण फसलों में उर्वकों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे किसानों को ज्ञान रुपी प्रकाश दिखाकर जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित करने के लिए कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव के खेतों से कीट क्रांति की मशाल जलाई थी। इसके बाद इस मुहिम को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए वर्ष 2010 में महिलाओं को भी इस मुहिम से जोड़कर निडाना से ही महिला किसान खेत पाठशाला की शुरूआत हुई थी। इस पाठशाला में निडाना तथा निडानी की वीरांगनाओं को कीट ज्ञान की ट्रेनिंग दी गई थी। इस पाठशाला से कीट ज्ञान की डिग्री लेने के बाद इन वीरांगनाओं ने इसी तर्ज पर वर्ष 2012 में ललीतखेड़ा गांव में महिला किसान खेत पाठशाला का सफल आयोजन किया था और कपास की फसल में आने वाले कीटों पर 20 सप्ताह तक सफल प्रयोग भी किए थे। पाठशाला में महिलाओं ने 208 कीटों की पहचान की। इसमें 47 शाकाहारी तथा 161 मांसाहारी कीट शामिल हैं। कीट ज्ञान के बूते ही महिलाओं ने फसल में बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए अच्छा उत्पादन भी लिया। इस मुहिम में महिलाओं को आगे बढ़ाने में डा. सुरेंद्र दलाल की अहम भूमिका रही थी लेकिन दुर्भाग्यवश गंभीर बीमारी की चपेट में आने के कारण 3 माह तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद 18 मई 2013 को किसानों के मसीहा डा. सुरेंद्र दलाल दुनिया से विदा हो गए। डा. सुरेंद्र दलाल के कुशल नेतृत्व के अभाव को भांपते हुए कीटों की इन मास्टरनियों ने कृषि विभाग के अधिकारियों को इस मुहिम में अपना पथदर्शक बनाने की योजना तैयार की है। इसके लिए पाठशाला की आयोजक पूनम मलिक, सविता मलिक, मीनी मलिक, गीता देवी ने कृषि विभाग के आला अधिकारियों को पत्र भेजा है। निडाना, निडानी तथा ललीतखेड़ी की वीरांगनाओं द्वारा भेजे गए इस पत्र में कृषि विभाग जींद के उप-निदेशक डा. आर.पी. सिहाग को इस मुहिम से जुड़कर कीट ज्ञान की इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग करने की गुजारिश की है। उप-निदेशक ने महिलाओं की मांग को स्वीकार करते हुए इस मुहिम को आगे बढ़ाने में हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया है। इसके अलावा उप-निदेशक ने विभाग से 5-5 अधिकारियों को सप्ताह में एक दिन ललीतखेड़ा में चलने वाली महिला किसान खेत पाठशाला तथा राजपुरा भैण में चलने वाली किसान खेत पाठशाला में जाकर कीट ज्ञान अर्जित करने के निर्देश भी जारी किए हैं, ताकि कृषि विभाग के अधिकारी यहां की वीरांगनाओं से कीट ज्ञान के क, ख, ग सीखकर अधिक से अधिक किसानों को इस मुहिम से जोड़कर लोगों की थाली को जहरमुक्त करने में अपना योगदान दे सकें। कीट कमांडों किसानों द्वारा 22 जून से राजपुरा भैण में किसान खेत पाठशाला तथा ललीतखेड़ा, निडाना, निडानी की वीरांगनाओं द्वारा 27 जून से ललीतखेड़ा में महिला किसान खेत पाठशाला का श्रीगणेश किया जाएगा। खरीफ सीजन के दौराान लगातार 20 सप्ताह तक यह पाठशालाएं चलेंगी।
ललीतखेड़ा में चल रही महिला किसान खेत पाठशाला का फाइल फोटो। 

डा. सुरेंद्र दलाल ने किसानों को दिया कीट ज्ञान का अचूक हथियार

डा. सुरेंद्र दलाल ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जींद जिले के किसानों को कीट ज्ञान का अचूक हथियार दिया है। ललीतखेड़ा, निडाना, निडानी की महिलाओं तथा पुरुष किसानों ने उनके पास पत्र भेजकर इस मुहिम को आगे बढ़ाने में सहयोग देने की अपील की है। विभाग द्वारा उनकी मांग को स्वीकार कर लिया गया है और उन्हें इस अभियान को आगे बढ़ाने में हर संभव मदद दी जाएगी। कृषि विभाग के अधिकारियों को भी कीट ज्ञान हासिल करने के लिए इन पाठशालाओं से जोड़ा जाएगा। सप्ताह में 1 दिन विभाग के 5-5 अधिकारियों की ड्यूटी इन पाठशालाओं में लगाई जाएगी।
डा. आर.पी. सिहाग, उप-निदेशक
कृषि विभाग, जींद  


सोमवार, 17 जून 2013

लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए एक विधवा ने समाज को दिखाया आईना

बिना मां की लड़की को गोद लेकर दे रही है मां का प्यार
खुद की 2 बेटियां होने के बावजूद भी एक अनजान लड़की को लिया गोद
लड़कों की तरह कर रही है तीनों लड़कियों का पालन-पोषण

नरेंद्र कुंडू
जींद। आज देश में गिर रहे लिंगानुपात को सुधारने तथा लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए जींद जिले के धड़ौली गांव की एक अनपढ़ विधवा ने समाज को आईना दिखाने का काम किया है। धड़ौली गांव निवासी स्व. जगत सिंह की पत्नी शीलादेवी ने खुद की 2 लड़कियां होने के बाद भी एक बिना मां की गरीब लड़की को गोद लेकर समाज के सामने एक मिशाल पेश की है। अगर जिला प्रशासन शीला देवी के समाजहित के इस अनोखे प्रयास की तरफ ध्यान दे तो लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने में यह अनपढ़ महिला पूरे जिले के लिए रोल मॉडल की भूमिका निभा सकती है।
आज समाज में लड़कियों तथा महिलाओं पर बढ़ती आपराधिक वारदातों तथा लोगों की ओछी मानसिकता के कारण बढ़ रही कन्या भ्रूण हत्याओं के कारण देश के लिंगानुपात का ग्राफ तेजी से नीचे गिर रहा है। आज लड़का-लड़की के बीच असमानता की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के मामलों को रोकने के लिए लोगों को जागरुक करने के प्रयास केवल अभियानों तक ही सीमित रह गए हैं। लाख कोशिशों के बावजूद भी इन जागरुकता अभियानों से कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आना कहीं न कहीं इस तरफ इशारा कर रहा है कि कन्या भ्रूण हत्या के नाम पर चलाए जा रहे जागरुकता अभियान लोगों के लिए केवल सुर्खियों में बने रहने का एक माध्यम बन गए हैं। क्योंकि जागरुकता अभियानों पर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी लोग इनसे कोई सबक नहीं ले रहे हैं लेकिन लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए जींद जिले के धड़ौली गांव की एक विधवा महिला आगे आई है। ग्रामीण परिवेश में रहने वाली स्व. जगत सिंह की पत्नी शीला देवी को खुद की 2 लड़कियां ज्योति (14) और प्रमिला (12) हैं। शीला देवी ने खुद की 2 लड़कियां होने के बाद भी एक ओर लड़की को गोद लेकर समाज के सामने एक मिशाल पेश की। इस महिला ने जिस लड़की को गोद लिया है, उस लड़की से इस महिला का न तो कोई खून का रिश्ता है और न ही यह इसकी किसी रिश्तेदारी से सम्बंध रखती है। खुद की 2 लड़कियां होने के बाद भी एक अनजान लड़की को अपनाकर शीला देवी ने इंसानियत का परिचय दिया है। यहां सबसे खास बात यह है कि शीला देवी अपनी तीनों ही लड़कियों को खिलाड़ी बनाना चाहती है। इसके लिए यह बकायदा तीनों लड़कियों को गांव के ही एक अखाड़े से कबड्डी का प्रशिक्षण दिलवा रही है और इसकी तीनों लड़कियां कबड्डी की बड़ी अच्छी खिलाड़ी हैं। इन तीनों लड़कियों में से 2 लड़कियां तो कबड्डी प्रतियोगिताओं में नैशनल स्तर तक अपना दमखम दिखा चुकी हैं और सबसे छोटी जो लड़की है अभी कबड्डी का प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है। लड़कियों के प्रति शीला की सोच पूरी तरह से सकारात्मक है और यह अपनी तीनों लड़कियों का पालन-पोषण बिल्कुल लड़कों की तरह कर रही है। जुलाना हलके के किलाजफरगढ़ गांव की रीतू नामक जिस लड़की को शीला ने गोद लिया है, उसके सिर से मां का साया उठ चुका है और वह बिल्कुल ही गरीब परिवार से सम्बंध रखती है। रीतू के पालन-पोषण के साथ-साथ शीला देवी ने इसकी पढ़ाई की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर ले रखी है। बी.ए. प्रथम वर्ष में पढ़ाई करने वाली रीतू भी शीला को अपनी मां और इसकी दोनों लड़कियों को अपनी सगी बहनों से भी ज्यादा प्यार करती है। रीतू का कहना है कि उसे यहां रहते हुए लगभग एक वर्ष से भी ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन इस दौरान उसे कभी भी यहां परायापन महसूस नहीं हुआ है।
 शीला देवी का फोटो।

सड़क हादसे में हो गई थी पति और बेटे की मौत

धड़ौली गांव की शीला ने आज से लगभग 8 वर्ष पहले एक सड़क हादसे में अपने पति जगत सिंह तथा अपने बेटे को खो दिया था। जिस समय यह दुर्घटना घटी उस समय इनका पूरा परिवार शादी समारोह में शामिल होने के लिए जा रहा था। इस दर्दनाक सड़क हादसे में इनके परिवार के 5 लोगों की मौत हो गई थी। इतने बड़े हादसे के बाद भी शीला ने अपना धैर्य नहीं खोया। शीला ने कड़ी मेहनत कर अपनी दोनों बेटियों का पालन-पोषण किया और अब पिछले वर्ष रीतू को गोद लेने के बाद से 3 लड़कियों का पालन-पोषण कर रही है। शीला का एक सपना है कि उसकी तीनों लड़कियां कबड्डी में देश के लिए गोल्ड मैडल लेकर आएं और गांव, जिले तथा प्रदेश का नाम रोशन करें।

अखाड़े के लिए दान कर दी करोड़ों की जमीन 

धड़ौली गांव की शीला देवी एक अच्छी मां ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक महिला का भी फर्ज निभा रही है। शीला के पास खुद की 8 एकड़ जमीन थी लेकिन शीला ने इस 8 एकड़ जमीन में से करोड़ों रुपए कीमत की एक एकड़ जमीन बच्चों को खेल क्षेत्र में निपुर्ण करने के लिए अखाड़े को दान कर दी। जो जमीन शीला ने सालभर पहले दान की है आज उस जमीन में कृष्ण अखाड़ा चल रहा है और इस अखाड़े में आस-पास के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के करीबन 100 लड़के व लड़कियां प्रशिक्षण लेने के लिए आते हैं। इस अखाड़े का कोच कृष्ण आर्य यहां लड़के तथा लड़कियों को निशुल्क कबड्डी और कुश्ती का प्रशिक्षण दे रहा है। इसकी बदौलत आज धड़ौली गांव की लड़कियों की कबड्डी की टीम पूरे प्रदेश में ख्याति प्राप्त कर चुकी है।
 अपनी तीनों बेटियों रीतू, ज्योति व प्रमिला के साथ शीला देवी।

खेतीबाड़ी के सहारे कर रही है लड़कियों का पालन-पोषण

धड़ौली गांव निवासी शीला देवी के पास खुद की लगभग 7 एकड़ जमीन है और इसी जमीन पर शीला खेतीबाड़ी कर अपना तथा अपनी बेटियों का गुजर-बसर कर रही है। शीला देवी की तीनों बेटियां रीतू, ज्योति व प्रमिला खेतीबाड़ी के काम में भी उसका बराबर का हाथ बटाती हैं।

उपेक्षा का दंश झेल रहा है शीला का परिवार

लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए पराई लड़की को अपनाकर समाज को आईना दिखाने वाली शीला का परिवार आज भी जिला प्रशासन व सामाजिक संस्थाओं की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली इस विधवा ने भले ही आज इतनी बड़ी कुर्बानी दी हो लेकिन उसकी यह कुर्बानी न तो जिला प्रशासन को नजर आती है और न ही सामाजिक संस्थाओं को। कन्या भ्रूण हत्या के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए जागरुकता अभियानों पर करोड़ों खर्च करने वाले किसी भी सामाजिक संगठन के सदस्य ने आज तक एक बार भी शीला देवी के घर पर जाकर उसके इस सामाजिक कार्य के लिए उसकी पीठ नहीं थपथपाई है और न ही आज तक कभी भी जिला प्रशासन की तरफ से किसी कार्यक्रम में शीलादेवी को आमंत्रित कर सम्मानित किया गया है।




सोमवार, 27 मई 2013

अब किसानों को कीट साक्षरता का पाठ पढ़ाएंगी खापें

कीटनाशक रहित खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के लिए शुरू करेंगी अभियान

नरेंद्र कुंडू
जींद। भले ही आज कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल हमारे बीच नहीं रहे हों लेकिन डा. दलाल द्वारा जिले में शुरू की गई जहरमुक्त खेती के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए रविवार को हरियाणा की खाप पंचायतों ने एक बड़ा ऐलान कर दिया है। रविवार को डा. दलाल की शोक सभा में पहुंचे प्रदेशभर की बड़ी-बड़ी खापों के प्रतिनिधियों ने जहरमुक्त खेती की इस मुहिम को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली है। इस तरह की सामाजिक मुहिम में खाप चौधरियों की आहुति से एक बार फिर से खाप पंचायतों का एक नया चेहरा समाज के सामने आया है। इससे पहले खाप पंचायतें कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति को मिटाने के लिए अभियान चलाने का संकल्प भी ले चुकी हैं। 
काबिलेगौर है कि थाली को जहरमुक्त करने की मुहिम में जुटे कीटों के मित्र डा. सुरेंद्र दलाल पिछले 3 महीने तक संघन कौमा में रहने के बाद गत 18 मई को दुनिया से विदा हो गए थे। 19 मई को उनके पैतृक गांव नंदगढ़ में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। रविवार को जींद के पटवार भवन में डा. दलाल को श्रद्धांजलि देने के लिए एक शोक सभा का आयोजन किया गया था। डॉ. दलाल को श्रद्धाजंलि देने के लिए प्रदेशभर की 100 से अधिक  बड़ी-बड़ी खापों के प्रतिनिधि यहां पहुंचे थे। शोक सभा में डा. दलाल को श्रद्धांजलि अपॢत करते हुए पालम नई दिल्ली खाप के प्रधान रामकरण ङ्क्षसह सोलंकी ने कहा कि कीटनाशक रहित खेती की जो मुहिम डा. दलाल ने निडाना गांव के खेतों से शुरू की थी उसको आगे बढ़ाना अब खाप पंचायतों की जिम्मेदारी है। क्योंकि पिछले लगभग 4 दशकों से कीटों तथा किसानों के बीच चली आ रही इस जंग को समाप्त करवाने के लिए यह मामला 26 जून 2012 को खाप पंचायत की अदालत में आ चुका है और खाप प्रतिनिधियों ने इस विवाद के समझौते के लिए इसे स्वीकार भी किया है। समझौते के प्रयास को लेकर मामले की तहत तक जाने के लिए खुद उनकी खापों के प्रतिनिधियों ने निडाना के खतों में आकर इस विवाद की गहराई से जांच की थी। बराह बाहरा के प्रधान कुलदीप सिंह ढांडा ने कहा कि उन्होंने डा. दलाल को कीटों पर शोध करते हुए बड़ी बारीकी से देखा था। उन्होंने बताया कि डॉ. दलाल ने अपने घर में कीटों की रक्षा के लिए प्रयोगशाला बना रखी थी। ढांडा ने कहा कि दलाल को सही मायने में खापें तभी श्रद्धाजंलि दें सकेगी, जब उनके मिशन को खापें आगे बढ़ाएंगी। इसके बाद कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला, ढुल के खाप इंद्र सिंह ढुल, बिनैन खाप के प्रवक्ता सूबेसिंह नैन, नंदगढ़ बारहा के होशियार सिंह दलाल, सांगवान खाप के कटार सिंह सांगवान, मान खाप के ओमप्रकाश मान, सतरोल खाप के  सूबेदार इंद्र सिंह समेत अनेक खापों के प्रधानों व प्रतिनिधियों के बीच इस बात पर सहमति बनी कि डॉ. दलाल के मिशन को आगेे बढ़ाने की जिम्मेदारी खापें अपने ऊपर लें। मिशन की जिम्मेदारी खापें अपने ऊपर किस तरह से लेगी। इसका प्रस्ताव शोकसभा शुरू होने के करीब 3 घंटे बाद सर्वजाति सर्वखाप हरियाणा के प्रधान दादा नफेसिंह नैन लेकर आए। उन्होंने खाप प्रतिनिधियों को कहा कि आज भरी सभा में जो फैसला डॉ. सुरेंद्र दलाल को लेकर खापें करेंगी। उन पर खापों को खरा उतरना होगा। नैन की बातों पर सहमति जताते हुए पालम खाप नई दिल्ली के प्रधान रामकरण सिंह सोलंकी ने कहा कि दिल्ली प्रदेश में उनकी खाप सबसे बड़ी खाप है, और वे इस बात की जिम्मेदारी लेते हैं कि डॉ. सुरेंद्र के मिशन को आगे बढ़ाएगें। उन्होंने कहा कि डॉ. दलाल व्यक्ति नहीं विचार थे और विचार कभी भी मरते नहीं। उन्होंने कहा कि इन विचारों को ङ्क्षजदा रखने के लिए अब खापें अपना सहयोग देंगी। फरीदकोट पंजाब से आए खेती विरासत मिशन के अध्यक्ष उमेद दत्त ने कहा कि हरियाणा सरकार ने डा. दलाल के अमूल्य योगदान को देखते हुए कृषि विभाग में एक प्रयोगशाला बनानी चाहिए, जिसमें डा. दलाल द्वारा कीटों पर किए शोध के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। इंदिरा गांधी ओपन विश्वविद्यालय नई दिल्ली में शोध कर रहे छात्र धर्मबीर शर्मा ने बताया उनका गांव निडाना है और इसी गांव को डा. दलाल ने प्रयोगशाला बनाया हुआ था। इसलिए उनका डा. दलाल से कई बार कीटों के बारे में गहन विश्लेषण हुआ है। धर्मबीर ने बताया कि डॉ. दलाल उनके अप्रत्यक्ष रूप से गाइड बने रहे हैं। 

डा. दलाल के जीवन पर एक नजर

डा. सुरेंद्र दलाल का जन्म वर्ष 1960 में जींद जिले के गांव नंदगढ़ में किसान परिवार में हुआ। अपने बहन-भाइयों में सबसे बड़े सुरेंद्र के पिता सेवानिवृत्त सैनिक थे। 9वीं कक्षा तक गांव के ही स्कूल में पढ़ाई करने के बाद डा. दलाल हाई स्कूल की शिक्षा के लिए सोनीपत के हिंदू हाई स्कूल चले गए। चौधरी चरण कृषि विश्वविद्यालय हिसार से बी.एस.सी. आनर्स किया। इसके बाद पौध प्रजनन में एम.एस.सी. व पी.एच.डी. की। इसके बाद वर्ष 2007 से राजपुरा तथा 2008 में निडाना गांव में किसानों के साथ मिलकर फसलों में पाए जाने वाले मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों पर शोध किया। 
 शोक सभा में डा. दलाल की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए विचार-विमर्श करते खाप प्रतिनिधि।


डा. दलाल ने ता उम्र किसानों के लिए किया संघर्ष

प्रदेशभर के गणमान्य लोगों, खाप प्रतिनिधियों, कर्मचारी संगठनों तथा किसानों ने दी कीट साक्षरता के अग्रदूत को भावभीन श्रद्धांजलि

नरेंद्र कुंडू
जींद। कीट साक्षरता के अग्रदूत स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रविवार को रैडक्रास भवन के पास स्थित पटवार भवन में शोक सभा का आयोजन किया गया। शोक सभा में प्रदेशभर के गणमान्य लोगों के अलावा 100 से अधिक खापों के बड़े-बड़े प्रतिनिधियों, पंजाब के प्रगतिशील किसानों तथा जिले के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के कीट कमांडो पुरुष तथा महिला किसानों ने शामिल होकर स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित की।
कामरेड फूल सिंह श्योकंद ने स्व. डा. दलाल के जीवन परिचय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डा. दलाल ने प्लांट ब्रिङ्क्षडग से पी.एच.डी. करने के बाद कीट साक्षरता पर रिसर्च कर एक प्रकार से लीक से हटकर काम किया है। उन्होंने निडाना गांव में 18 सप्ताह तक चली किसान खेत पाठशाला में 96 से अधिक खाप प्रतिनिधियों की उपस्थित दर्ज करवाकर खाप प्रतिनिधियों को भी राह दिखाने का काम किया था। कामरेड वीरेंद्र सिंह ने कहा कि डा. दलाल ने ता उम्र किसानों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने विकट परिस्थितियों का डट कर सामना किया लेकिन कभी भी अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं किया। शोक सभा की अध्यक्षता करते हुए बराह कलां तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि डा. दलाल ने फसलों पर अपने सफल प्रयोग से यह सिद्ध करके दिखा दिया था कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती कतई संभव नहीं है, क्योंकि कीट फसलों में पर परागन में अहम भूमिका निभाते हैं। पंजाब से आए प्रगतिशील किसानों ने कहा कि पंजाब में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोगों के दूष्परिणाम अब वहां की जनता के सामने आने लगे हैं। वहां कैंसर तथा अन्य जानलेवा बीमारियां अपने पैर पसार चुकी हैं। उन्होंने अभी हाल ही में हुई एक रिसर्च के परिणाम के बारे में जानकारी देते हुए पंजाब के लोगों के खून 6 से 15 किस्म के कीटनाशकों के कण दौड़ रहे हैं। निडाना तथा ललितखेड़ा से आई महिला किसानों ने डा. सुरेंद्र दलाल के जनहित के कार्यों को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत स्टेट अवार्ड देने की मांग की। इस अवसर पर पूर्व विधायक आई.जी. शेर सिंह, जगबीर ढिगाना, राममेहर नम्बरदार और प्रदेशभर के तमाम कर्मचारी संगठनों तथा एसोसिएशन के प्रतिनिधियों और कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी अपने विचार रखे।
 कीट साक्षरता के अग्रदूत स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को श्रद्धांजलि देने पहुंचे खाप प्रतिनिधि तथा महिलाएं। 



शुक्रवार, 24 मई 2013

दुनिया से विदा हुए कृषि क्षेत्र के अग्रदूत डा. सुरेन्द्र दलाल

किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाकर नामुमकिन को कर दिखाया मुमकिन

ब्लॉग के माध्यम से विदेशियों को भी दिखाई नई राह

कीटनाशक कंपनियों के साथ छेड़ा था शीत युद्ध

नरेंद्र कुंडू
जींद। दुनिया को जहर मुक्त कृषि का संदेश देने वाले कृषि क्षेत्र के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल 18 मई को दुनिया से विदा हो गए। हरियाणा के हिसार जिले के जिंदल अस्पताल में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। डा. दलाल पिछले 3 माह से गंभीर बीमारी के चलते कोमा में थे। दिल्ली के फोर्टिज अस्पताल में उपचार के बाद डा. दलाल को हिसार के जिंदल अस्पताल में रैफर किया गया था। 19 मई को डा. दलाल का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव नंदगढ़ (जींद) में किया गया। उनके अंतिम संस्कार में प्रदेशभर के हजारों गणमान्य लोगों ने शामिल होकर नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। जैसे ही गांव में उनकी अंतिम यात्रा निकाली जा रही थी पूरा नंदगढ़ गांव अपने डाक्टर के लिए फफक-फफक कर रो रहा था। महिलाओं ने घरों की खिड़कियों से घूंघट की आड़ से भरी आंखों से डा. दलाल को श्रद्धांजलि अर्पित की।
उल्लेखनिय है कि हरियाणा प्रदेश के जिला जींद में डा. सुरेंद्र दलाल ने कृषि क्षेत्र को एक नई दिशा देने के लिए लीख से हटकर एक अलग मुहिम की शुरूआत की थी। उनका मानना था कि प्रकृति में संतुलन बनाने की स्वयं क्षमता है। कृषि क्षेत्र में भी बिना कीटनाशकों के छिड़काव व प्रकृति से छेड़छाड़ किए बिना अच्छी पैदावार ली जा सकती है। इसी संदेश को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने जिला जींद के निडाना गांव में खेत पाठशाला के माध्यम से किसानों को जागरूक किया। डॉ. सुरेन्द्र दलाल की इस मुहिम का परिणाम यह रहा कि जिले के लगभग 500 किसानों ने फसलों में बिना कीटनाशक छिड़काव के लगातार पांच साल से रिकार्ड तोड़ पैदावार ली। जिसके चलते इसी मुहिम की प्रसिद्ध देश के कोने-कोने में फैल गई। उनका मानना था कि दुनियाभर की कृषि क्षेत्र की चुनिदा कंपनियां अपने निजी स्वार्थ के चलते किसानों को भ्रमित कर उनका शोषण कर रही हैं। डा. सुरेंद्र दलाल की इसी जिज्ञासा ने किसानों का मार्गदर्शन कर उन्हें जागरूक करने का काम किया। डा. सुरेंद्र दलाल का मामना था कि फसलों में 2 किस्म के कीट मौजूद होते हैं। इनमें एक किस्म शाकाहारी तथा दूसरी मांसाहारी कीटों की होती है। शाकाहारी तथा मांसाहारी कीट किसानों को लाभ या हानि पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि अपनी वंशवृद्धि के उद्देश्य से आते हैं और पौधे अपनी जरुरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की सुगंध छोड़कर शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों को अपनी सुरक्षा के लिए आमंत्रित करते हैं लेकिन कीटनाशक कंपनियां किसानों को शाकाहारी कीटों का डर दिखाकर भ्रमित कर उन्हें अपने मक्कड़ जाल में फांस लेती हैं और भोले-भाले किसान जानकारी के अभाव में शाकाहारी कीटों को अपना दुश्मन समझ बैठते हैं। अंधाधुंध कीटनाशकों का छिड़काव कर फसलों को बचाने में जुट जाते हैं। कंपनियों के निजी स्वार्थ के चलते ही पिछले लगभग 4 दशकों से कीटों और किसानों के बीच यह जंग छिड़ी हुई है और इस जंग में न जाने कितने किसान अपनी जान गंवा चुके हैं। फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से हमारी भोजन की थाली जहरयुक्त हो चुकी है।
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चुपके-चुपके निडाना के खेतों से हुई तीसरी क्रांति की शुरूआत

श्वेत क्रांति और हरित क्रांति ने देश की धरती पर दस्तक दी। हरितक्रांति की आड़ में रासायनिक कंपनियों ने भी देश के किसानों पर अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी। इसी का परिणाम है कि दुनियाभर के किसान यह मान बैठे हैं कि बिना कीटनाशकों के खेती संभव नहीं है लेकिन डा. सुरेंद्र दलाल ने लीक से हटकर कीट ज्ञान क्रांति की मशाल जलाई और यह सिद्ध कर दिखाया कि बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए भी अच्छी पैदावार ली जा सकती है। डा. दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव के खेतों में पहली किसान पाठशाला की शुरूआत की थी। पहले पाठशाला के दौरान आधा दर्जन किसान ही उसकी मुहिम में जुड़ पाए थे, लेकिन उन किसानों द्वारा बिना कीटनाशक रहित खेती से रिकार्ड उत्पादन लिए जाने पर आसपास के किसान भी अचभित रहे गए और बाद में देखते ही देखते गांव निडाना तथा आसपास के दर्जनों गांवों के लगभग 500 किसानों ने कीटनाशक के खिलाफ शंकनाद किया और अपने खेतों में कीटनाशक के छिड़काव के बिना ही रिकार्ड उत्पादन किया। इस मुहिम को देखकर दुनिया के चुङ्क्षनदा वैज्ञानिकों ने यह दावा तक कर दिया था कि हरियाणा प्रदेश के जिला जींद के निडाना गांव के खेतों में चुपके-चुपके  तीसरी क्रांति की शुरूआत हो चुकी थी।

कृषि विभाग की फजिहत ने पैदा किया जनून

वर्ष 2002 में कपास की फसल में अमेरिकन सूंडी के प्रकोप ने देश के किसानों को भयभीत कर दिया था। कृषि विभाग भी किसानों को इस मुसिबत से निजात दिलाने में पूरी तरह से विफल रहा था। इस वर्ष किसानों ने कपास की फसल में 40-40 कीटनाशकों के स्प्रे किए थे। इसके बावजूद भी किसानों का उत्पादन बढऩे की बजाए घटा था। इससे किसानों के सामने भारी आॢथक संकट गहरा गया और किसान आत्महत्या करने पर विवश हो गए थे। इसी दौरान एक अंग्रेजी के न्यूज पेपर में एक लेख प्रकाशित हुआ और लेख में जमकर कृषि विभाग फजिहत हुई। इस अवधी में डा. सुरेंद्र दलाल कृषि विभाग में ए.डी.ओ. के पद पर कार्यरत थे। इसी ने डा. दलाल को सोचने पर मजबूर कर दिया। इसी का परिणाम है कि आज डा. दलाल के इस जनून की बदौलत ही जींद ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों के किसान जींद के किसानों से प्रशिक्षण लेने पहुंच रहे हैं। इस दौरान कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अमेरिक सूंडी के प्रकोप को खत्म करने के लिए असंभव माने जाने पर डॉ. सुरेन्द्र दलाल ने अपनी मुहिम के माध्यम से संभव करके दिखाया। जिसके बाद देश के बड़े-बड़े वैज्ञानिक उनकी मुहिम के कायल हो गए।

रामदेव भी थे डा. दलाल के कायल

योग गुरु बाबा रामदेव ने देश में और्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देशभर के करीबन 12 चुनिन्दा कृषि वैज्ञानिकों को उत्तराखंड स्थित पतंजलि योगपीठ में आयोजित गोष्ठी में आमंत्रित किया था। इस गोष्ठी में सभी कृषि वैज्ञानिकों को अपने-अपने विचार रखने के लिए समय निर्धारित किया था लेकिन जैसे ही इस गोष्ठी में डा. सुरेंद्र दलाल ने बोलना शुरू किया तो मानों उनके लिए यह समय सीमा की शर्त समाप्त हो गई। डा. दलाल जैसे-जैसे उदहारण सहित अपने विचार गोष्ठी में रखते गए तो, वैसे-वैसे ही गोष्ठी मे मौजूद सभी बुद्धिजीवी लोगों की उत्सुकता बढ़ती चली गई। खुद बाबा रामदेव भी डा. दलाल को बोलने से नहीं रोक पाए। डा. दलाल के अनुभव को देखकर योग गुरु बाबा रामदेव ने उन्हें अपने साथ जोडऩे के लिए आमंत्रित किया लेकिन डा. दलाल को योगगुरु का यह आफर भी बंधन में बांध नहीं पाया। क्योंकि डा. दलाल का लक्ष्य तो केवल धरतीपुत्रों को जागरूक कर आत्म निर्भर बनाना था।

धरती से जुड़े हुए अधिकारी थे डा. दलाल

डा. सुरेंद्र दलाल एक कृषि से जुड़े हुए अधिकारी थे। डा. दलाल किसानों के साथ खेत की मेढ़ पर बैठकर अपनी रणनीति तैयार करते थे और किसानों के साथ अधिकारी की तरह नहीं एक किसान की तरह पेश आते थे। इसी का परिणाम था कि कोई भी किसान उनकी बात को न चहाकर भी टाल नहीं पाता था। डा. दलाल हवा में नहीं बल्कि धरातली फैसले लेने में काफी सक्षम थे।

डा. दलाल के मुख्य ब्लाग

1. कीट साक्षरता केन्द्र
2. अपना खेत अपनी पाठशाला
3. महिला खेत पाठशाला
4. प्रभात कीट पाठशाला
डॉ. सुरेन्द्र दलाल का फाइल फोटो। 
डॉ. सुरेन्द्र दलाल की महिला खेत पाठशाला में कीटों की पहचान करती महिलाएं।

किसान खेत पाठशाला में भाग लेती महिला किसान तथा कीटों के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. सुरेन्द्र दलाल।







सोमवार, 20 मई 2013

......ऐसी करणी कर चले तुम हंसे जग रोए


दुनिया को कीटनाशक रहित खेती का संदेश दे गए कीट क्रांति के जन्मदाता

नरेंद्र कुंडू
जींद। 'जब तुम दुनिया में पैदा हुए जग हंसा तुम रोए, ऐसी करणी कर चले तुम हंसे जग रोए'। ऐसी ही करणी कर कीट क्रांति के जन्मदाता डा. सुरेंद्र दलाल करके दुनिया से विदा हो गए। उनकी पूर्ति समाज भले ही न कर पाए लेकिन वो जिस काम के लिए दुनिया में आए थे उसे पूरा कर गए। डा. सुरेंद्र दलाल के जीवन का मकसद दशकों से चले आ रहे किसान-कीट विवाद को सुलझाकर दुनिया को कीटनाशक रहित खेती का संदेश देना था और यह संदेश उन्होंने दुनिया को दे दिया। डा. सुरेंद्र दलाल ने फसलों पर अपने सफल प्रयोगों से यह साबित करके दिखा दिया कि बिना कीटनाशकों के खेती हो सकती है और इससे उत्पादन पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। इसका प्रमाण उन्होंने दुनिया के सामने रख दिया। डा. दलाल के प्रयासों से वर्ष 2008 में निडाना के खेतों से शुरू हुई कीट क्रांति की इस मुहिम का असर अकेले जींद जिले ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी नजर आने लगा है। इसी का परिणाम है कि दूसरे प्रदेशों से भी किसान यहां प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आने लगे हैं। डा. दलाल की इस मुहिम की सबसे खास बात यह है कि आज तक जो महिलाएं खेतों में सिर्फ पुरुषों का हाथ बटाती थी आज वो महिलाएं कीटों की मास्टरनी बनकर फसलों में आने वाले शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों पर प्रयोग कर रही हैं। 
 डा. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में ललितखेड़ा में चल रही महिला किसान पाठशाला का फोटो।

खाप पंचायतों को दिखाई राह 

आनर किलिँग तथा तुगलकी फरमान सुनाने के नाम से बदनाम हो चुकी उत्तर भारत की खाप पंचायतों को डा. सुरेंद्र दलाल ने राह दिखाने का काम किया है। डा. दलाल ने वर्ष 2012 में दशकों से चले आ रहे किसान-कीट विवाद को सुलझाने के लिए खाप पंचायतों को किसानों की तरफ से फरियाद भेजी। किसानों की फरियाद को स्वीकार करने के बाद खाप प्रतिनिधियों को इस मसले पर फैसला करने के लिए लगातार 18 सप्ताह तक निडाना गांव के खेतों में जाकर किसानों के बीच बैठकर कक्षाएं लगानी पड़ी थी। इन कक्षाओं के बाद इस विवाद का फैसला करने के लिए खाप प्रतिनिधियों द्वारा जनवरी 2013 माह में निडाना में एक बड़ी खाप पंचायत बुलाकर इस पर फैसला सुनाना था लेकिन दिसम्बर माह में जाट आरक्षण के बाद यह पंचायत नहीं हो पाई। इस विवाद का फैसला अभी भी खाप पंचायतों के पास है। खाप पंचायतें इस विवाद पर क्या फैसला सुनाती हैं यह भले ही अभी भविष्य के गर्भ में हो लेकिन खाप पंचायतों को इस मुहिम में शामिल कर डा. दलाल ने खाप पंचायतों को राह दिखाने का काम किया। 

2002 में हुई कृषि विभाग की फजिहत से लिया सबक

डा. सुरेंद्र दलाल कृषि विभाग में ए.डी.ओ. के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 2002 में कपास की फसल में अमेरीकन सूंडी के प्रकोप ने किसानों की नींद हराम कर दी थी। अमेरीकन सूंडी के प्रकोप से बचने के लिए किसानों से कपास की फसल में कीटनाशकों के 40-40 स्प्रे किए थे लेकिन इसके बाद भी उत्पादन बढऩे की बजाए कम हुआ। उत्पादन कम तथा लागत बढऩे के कारण किसानों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था। कृषि विभाग की इस असफलता पर इसी वर्ष एक इंगलिस न्यूज़ पेपर में कृषि विभाग के खिलाफ एक लेख प्रकाशित हुआ था और इस लेख से देश में कृषि विभाग की खूब फजिहत हुई थी। इस लेख से सबक लेकर डा. सुरेंद्र दलाल ने फसलों पर अपने प्रयोग शुरू कर कीट ज्ञान की मशाल जलाई। इस मुहिम में डा. सुरेंद्र दलाल के गुरु बने जिले के रुपगढ़ गांव के राजेश नामक किसान। 

महिलाओं को सिखाया फसलों पर प्रयोग करना

वर्ष 2008 में निडाना में किसान खेत पाठशाला शुरू हुई और यहां किसानों ने कीट ज्ञान हासिल करना शुरू किया। इसके बाद 2010 में निडाना में पहली महिला किसान पाठशाला की शुरूआत की गई। इस पाठशाला के सफल आयोजन के बाद 2012 में ललितखेड़ा में दूसरी महिला किसान पाठशाला चलाई गई। इस तरह कीटनाशक रहित खेती की इस मुहिम से आज निडाना, निडानी, ललितखेड़ा गांवों की लगभग 65 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। जिन महिलाओं को पहले खेतों में पुरुषों का हाथ बटाते देखा जाता था आज वे महिलाएं कीट ज्ञान हासिल कर फसलों पर प्रयोग कर रही हैं। फसलों पर अपने सफल प्रयोगों के कारण ही कीटों की यह मास्टरनी पूरे वर्ष मीडिया की सुर्खियां बनी रही। 

ब्लाग के माध्यम से विदेशों में भी दिया कीटनाशक रहित खेती का संदेश  

कीट क्रांति के जन्मदाता डा. सुरेंद्र दलाल ने ब्लाग के माध्यम से विदेशों में भी कीटनाशक रहित खेती का संदेश दिया है। डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा कीट साक्षरता केंद्र, अपना खेत अपनी पाठशाला, महिला खेत पाठशाला, प्रभात कीट पाठशाला ब्लाग पर कीटों के क्रियाकलापों तथा फसलों पर पडऩे वाले उनके प्रभाव की पूरी जानकारी दी जाती थी। डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा लिखे गए इन ब्लागों को विदेशों में बड़ी उत्सुकता के साथ पढ़ा जाता है। आज लाखों लोग इन ब्लागों से जानकारी हासिल कर रहे हैं। 

मुहिम को संभालना किसानों के लिए बना चुनौती 

डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीटनाशक रहित खेती की मुहिम को संभालना इस मुहिम से जुड़े कीट कमांडो किसानों के लिए बड़ी चुनौती है। इसमें सबसे बड़ी मुश्किल किसानों को एकजुट करना है। कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू, महाबीर पूनिया, महिला किसान अंग्रेजो, मीना, गीता, राजवंती का कहना है कि डा. सुरेंद्र दलाल के चले जाने से उनकी इस मुहिम को बड़ा झटका लगा है। उनका यह अभियान नेतृत्व विहिन हो गया है। कीट कमांडो किसानों का कहना है कि डा. दलाल की इस मुहिम को संभालने के लिए वह हर संभव प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि ये मुहिम अकेले उनकी नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति की है। इसलिए सभी को इसमें सहयोग करने की जरुरत है।  



कीट क्रांति के जन्मदाता को नम आंखों से दी विदाई


पंचतत्व में विलिन हुए डा. सुरेंद्र दलाल, अंतिम संस्कार में उमड़ा जनसैलाब

26 मई को जाट धर्मशाला में होगी शोक सभा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। लोगों की थाली को जहर मुक्त बनाने के लिए कीट क्रांति की मशाल जलाने वाले डॉ. सुरेंद्र दलाल का अंतिम संस्कार रविवार सुबह साढ़े 10 बजे उनके पैतृक गांव नंदगढ़ में किया गया। डा. सुरेंद्र दलाल के छोटे भाई विजय दलाल ने चिता को मुखाग्रि दी। नम आंखों के साथ लोगों ने डा. दलाल को अंतिम विदाई दी। उनके अंतिम संस्कार में आसपास के गांवों तथा दूर-दराज से आए किसानों सहित शहर के गणमान्य लोग शामिल हुए। डा. दलाल की अंतिम यात्रा में शामिल लोगों के साथ-साथ पूरा नंदगढ़ गांव अपने इस लाल की याद में फफक-फफक कर रो रहा था। दुनिया को जहर से मुक्ति दिलवाने के लिए किसान-कीट की जंग को खत्म करने की मुहिम में अपनी जान गंवाने वाले डा. सुरेंद्र दलाल के अंतिम संस्कार में जींद प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा खुलकर दिखाई दी। अन्य जिलों से तो प्रशासनिक अधिकारिय उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए लेकिन जींद जिले का कोई भी आला अधिकारी उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने नहीं पहुंचा। डा. सुरेंद्र दलाल की शोक सभा 26 मई को जाट धर्मशाला में की जाएगी। 
गौरतलब है कि डा. सुरेंद्र दलाल 7 फरवरी से बीमार चल रहे थे और शनिवार को उन्होंने हिसार के जिंदल अस्पताल में अंतिम सांस ली। कृषि जगत में डा. सुरेंद्र दलाल का अपना अलग से योगदान रहा है और उन्होंने अपना जीवन कीटनाशक रहित खेती को तो समर्पित किया ही साथ ही उन्होंने फसल में मौजूद कीटों के बचाव के लिए गांव निडाना में किसान कीट विवाद सुलझाने के लिए हर सप्ताह खाप पंचायत के प्रतिनिधियों को बुलाकर किसानों व कीटों में हुए विवाद को सुलझाने की मुहिम चलाई हुई थी। इससे पहले उन्होंने लगभग 5 वर्ष तक गांव निडाना में किसान खेत पाठशाला चलाकर कीटनाशक रहित खेती को नया आयाम दिया था, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे थे और प्रदेश से ही नहीं अन्य प्रदेशों से भी लोग कीटनाशक रहित खेती सीखने के लिए महिला खेत पाठशाला में आने लगे थे। 7 फरवरी को स्वायन फ्लू की चपेट में आने वाले डा. सुरेंद्र दलाल पिछले 3 महीनों से जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे और लगातार कोमा में थे। उनके अंतिम संस्कार में जहां आसपास के दर्जनों गांवों के किसानों ने शामिल होकर उन्हें नम आंखों से श्रद्धांजलि दी, वहीं शहर के गणमान्य लोगों ने भी उनके अंतिम संस्कार में पहुंचकर उन्हें अंतिम विदाई दी। अंतिम संस्कार में पहुंचने वालों में बराह तपा के अध्यक्ष कुलदीप ढांडा, हांसी के तहसीलदार रामफल कटारिया, पंचकूला की पी.ओ. राजबाला कटारिया, हिसार के कृषि उप-निदेशक रोहताश, डी.एच.ओ. डॉ. बलजीत भ्याण, खंड कृषि अधिकारी जयप्रकाश शर्मा, एस.डी.ओ. सुरेंद्र मलिक, ए.डी.ओ. कमल सैनी, ए.डी.ओ. सुनील, बलजीत लाठर, नंदगढ के पूर्व सरपंच जयसिंह दलाल, राजबीर कटारिया, शमशेर अहलावत, कामरेड फूल ङ्क्षसह श्योकंद, रमेशचंद्र, सुरेंद्र मलिक, वीरेंद्र मलिक, महावीर नरवाल, कामरेड प्रकाश, ताराचंद बागड़ी, कर्मचारी नेता सतपाल सिवाच, रामफल दलाल, सुनील आर्य तथा कीट कमांडो किसान भी मौजूद थे।
 डा. सुरेंद्र दलाल की अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब। 


 डा. सुरेंद्र दलाल की चिता को मुखाग्रि देते छोटे भाई विजय दलाल। 



शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

'बेसहारा' हुए दूसरों को सहारा देने वाले


बंद होने वाला है बेसहारों को आश्रय देने वाला शैल्टर होम 
शैल्टर होम चलाने वाली संस्था ने मदद से खींचे हाथ

नरेंद्र कुंडू
जींद। बेसहारों को सहारा देने तथा अपनों से बिछुड़े बच्चों को उनके अभिभावकों तक पहुंचाने में बाल संरक्षण विभाग एक कड़ी का काम करता है। बिछुड़े हुओं को मिलवाने का काम करने वाले इस विभाग के अधिकारियों के सामने अब जींद जिले में एक गंभीर समस्या आन खड़ी हुई है। क्योंकि अब जिले में अनाथ व बेसहारा बच्चों के रहने के लिए विभाग के पास कोई आश्रय स्थल नहीं बचा है। कारण यह है कि जिले में अनाथ व बेसहारा बच्चों को आश्रय देने वाली संस्था स्टेट कोर्डिनेटर मिशन इंडिया ने बेसहारों को सहारा देने से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। मिशन इंडिया संस्था द्वारा बेसहारा व अनाथ बच्चों के रखने के लिए शहर की अर्बन एस्टेट कालोनी में शुरू किए गए शैल्टर होम को बंद कर दिया है। शैल्टर होम बंद होने के कारण अब बाल संरक्षण विभाग के पास बेसहारा बच्चों को आश्रय देने के लिए कोई आश्रय स्थल नहीं है।  
अनाथ व बेसहारा बच्चों को सहारा देने की जिम्मेदारी भी बाल संरक्षण विभाग के पास है। किसी भी परिस्थितियों में अपनों से बिछुड़कर बाल संरक्षण विभाग के पास पहुंचे बच्चों को उनके परिजनों के मिलने तक विभाग द्वारा आश्रय दिया जाता है। बाल संरक्षण विभाग द्वारा जिले में बेसहारा बच्चों को सहारा देने के लिए एक सामाजिक संस्था स्टेट कोर्डिनेटर मिशन इंडिया के माध्यम से आश्रय मुहैया करवाया जाता था। इसके लिए मिशन इंडिया संस्था द्वारा शहर की अर्बन एस्टेट कालोनी में एक शैल्टर होम की व्यवस्था की गई थी। बाल संरक्षण विभाग को मिलने वाले बेसहारा व अनाथ बच्चों को इसी शैल्टर होम में आश्रय दिया जाता था लेकिन बेसहारा व अनाथों को सहारा देने वाले बाल संरक्षण विभाग के अधिकारियों के सामने जींद जिले में अब एक बड़ी समस्या आन खड़ी हुई है। यह समस्या है बेसहारा तथा अनाथ बच्चों को आश्रय मुहैया करवाने की। क्योंकि बेसहारों व अनाथों को आश्रय देने वाली मिशन इंडिया संस्था ने अब बाल संरक्षण विभाग की मदद से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। संस्था ने बाल संरक्षण विभाग को शैल्टर होम बंद करने सम्बंधि नोटिस भेजा है। संस्था द्वारा नोटिस मिलने के बाद बाल संरक्षण विभाग ने शैल्टर होम में रहने वाले बेसहारा बच्चों को दूसरे जिले के शैल्टर होम में शिफ्ट करवा दिया है। 

पूरे जिले में विभाग के पास था एकमात्र शैल्टर होम

मिशन इंडिया संस्था का शैल्टर होम बंद होने के कारण बाल संरक्षण विभाग के अधिकारी गंभीर समस्या में फंस गए हैं, क्योंकि बेसहारा व अनाथ बच्चों को आश्रय देने के लिए पूरे जिले में यह एक मात्र शैल्टर होम था और अब यह भी बंद हो गया है। ऐसे में अगर अब कोई बेसहारा या अनाथ बच्चा विभाग के पास पहुंचता है तो बच्चे के मैडीकल से लेकर अन्य कागजी कार्रवाई पूरी करने तक बच्चे को आश्रय देने के लिए विभाग के पास कोई स्थान नहीं बचा है। 

3 साल से कागजों में अटका शैल्टर होम का निर्माण

बाल संरक्षण विभाग द्वारा जिले में शैल्टर होम का निर्माण करने के लिए बीबीपुर गांव में साइट तय की गई है। विभाग द्वारा बीबीपुर गांव में शैल्टर होम के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण करने के लिए पिछले 3 साल से प्रयास जारी हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। अभी तक विभाग बीबीपुर गांव में शैल्टर होम के लिए जमीन भी अधिग्रहण नहीं कर पाया है। जमीन अधिग्रहण नहीं होने के कारण शैल्टर होम का निर्माण कार्य सिर्फ कागज में ही सिमट कर रह गया है। 
 वह मकान जहां मिशन इंडिया संस्था द्वारा शैल्टर होम खोला गया था। 

आर्थिक परेशानी के चलते लिया शैल्टर होम बंद करने का निर्णय

इस बारे में जब स्टेट कोर्डिनेटर मिशन इंडिया संस्था के संचालक मनफूल सिंह से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि संस्था आर्थिक परेशानी से गुजर रही थी। आर्थिक परेशानी के कारण उन्होंने शैल्टर होम बंद करने का निर्णय लिया है। शैल्टर होम बंद करने से सम्बंधित नोटिस बाल संरक्षण विभाग के अधिकारियों के पास भेज दिया गया है।  

मिशन इंडिया संस्था द्वारा शैल्टर होम बंद करने से सम्बंधित नोटिस मिला है। जिले में यह एकमात्र शैल्टर होम था। अनाथ व बेसहारा बच्चों को आश्रय से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं आने दी जाएगी। उन्होंने जिला प्रशासनिक अधिकारियों को इस बारे अवगत करवा दिया है। प्रशासन द्वारा शैल्टर होम से सम्बंधित समस्या का जल्द ही समाधान निकाल कर दूसरे शैल्टर होम की व्यवस्था कर दी जाएगी। बीबीपुर गांव में शैल्टर होम के लिए जमीन अधिग्रहण के लिए विभाग के उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट भेजी गई है। विभाग से मंजूरी मिलते ही जमीन अधिग्रहण कर शैल्टर होम का निर्माण शुरू करवा दिया जाएगा। 
सरोज तंवर
जिला बाल संरक्षण अधिकारी, जींद 


गेहूं की फसल पर भी आए कीट ज्ञान क्रांति के सकारात्मक प्रयोग


ईंटल कलां गांव के किसान ने गेहूं की फसल पर किया प्रयोग
नामात्र उर्वकों का प्रयोग कर गेहूं का लिया अच्छा उत्पादन

नरेंद्र कुंडू
जींद। निडाना गांव के गौरे से शुरू हुई कीट ज्ञान क्रांति के सकारात्मक परिणाम जिले के किसानों के सामने आने लगे हैं। हालांकि निडाना सहित लगभग दर्जनभर गांवों के किसान कपास व धान की फसल पर तो अपने कीट ज्ञान का सफल प्रयोग कर चुके हैं लेकिन इस बार इस मुहिम से जुड़े किसान द्वारा गेहूं की फसल पर किए गए प्रयोग से भी काफी सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आए हैं। कीटनाशक रहित खेती की मुहिम से जुड़े ईंटल कलां गांव के किसान कृष्ण कुमार ने गेहूं की फसल में नामात्र रासायनिक उर्वकों का प्रयोग कर गेहूं की फसल से अन्य किसानों से ज्यादा उत्पादन लिया है। किसान कृष्ण कुमार द्वारा तैयार की गई गेहूं की खास बात यह है कि इस गेहूं का वजन दूसरे किसानों द्वारा तैयार की गई गेहूं से ज्यादा है।
लोगों की थाली को जहरमुक्त करने के लिए कीट ज्ञान क्रांति की शुरूआत वर्ष 2007 में जिले के गांव रुपगढ़ से शुरू हुई थी। कीट ज्ञान क्रांति की इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2008 में गांव निडाना के किसानों इस मुहिम को अपना कर रफ्तार देने का काम किया था। इसके बाद निडाना गांव के साथ-साथ आस-पास के लगभग एक दर्जन से भी ज्यादा गांवों में इस क्रांति ने दस्तक दी। इसी के साथ गांव ईंटल कलां से भी कुछ किसान इस मुहिम में शामिल हुए। गांव ईंटल कलां के किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि पहले वह भी अन्य किसानों की तरह खेती-बाड़ी का काम करता था और अच्छे उत्पादन की चाह में फसल में अंधाधुंध उर्वकों व कीटनाशकों का इस्तेमाल करता था। फसल में अधिक उर्वकों के इस्तेमाल के कारण फसल उत्पादन पर उसका खर्च तो बढ़ता चला गया लेकिन उत्पादन नहीं बढ़ा। इससे उसके सामने आर्थिक संकट खड़ा होने लगा। किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि वह वर्ष 2012 में कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ा और कपास के सीजन के दौरान निडाना गांव में लगने वाली किसान पाठशालाओं से कीट ज्ञान हासिल किया। कीटों की पहचान के साथ-साथ उसने फसल में उर्वकों तथा कीटनाशकों का इस्तेमाल भी कम कर दिया। इससे उसकी काफी परेशानियां तो स्वयं ही खत्म हो गई। कृष्ण कुमार ने बताया कि इस बार उसने 4 एकड़ जमीन में 1711 तथा 17 नंबर गेहूं के बीज का मिश्रण कर बिजाई की थी। इसमें से अढ़ाई एकड़ जमीन से कृष्ण ने गेहूं की कटाई कर ली है, जबकि डेढ़ एकड़ से अभी गेहूं की कटाई बाकी है। किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि जहां कपास की फसल में उसने नामात्र उर्वकों का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लिया था, वहीं अब गेहूं की फसल में भी नामात्र उर्वकों का इस्तेमाल कर अन्य किसानों से अच्छा उत्पादन लिया है। किसान कृष्ण कुमार ने बताया कि उसे प्रति एकड़ से 50 मण गेहूं का उत्पादन हुआ। जबकि गांव के अन्य किसान को प्रति एकड़ से 40 से 45 मण का उत्पादन मिला है। अन्य किसानों के गेहूं के मुकाबले उसके गेहूं में वजन ज्यादा है। उसके गेहूं की खास बात यह है कि उसकी गेहूं की फसल में उर्वकों का प्रयोग नामात्र होने तथा कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने के कारण उसकी गेहूं काफी हद तक जहर मुक्त है।

इस तरह बढ़ाया उत्पादन

ईंटल कलां निवासी कृष्ण कुमार ने इस बार अपनी गेहूं की फसल की बिजाई के बाद केवल 68 किलोग्राम यूरिया, 8 किलोग्राम डी.ए.पी. तथा 2 किलोग्राम जिंक  डाली है। इसके लिए कृष्ण ने डी.ए.पी., यूरिया तथा जिंक का घोल तैयार कर हर 15 दिन के अंतर में कुल 4 बार फसल पर स्प्रे पम्प से इस घोल का छिड़काव किया है। एक बार के घोल में कृष्ण ने 100 लीटर पानी में 2 किलो यूरिया, 2 किलो डी.ए.पी. तथा आधा किलो जिंक प्रयोग की है। इसके अलावा 20-20 किलो यूरिया 3 बार सीधे फसल में डाला है। जबकि पहले यह किसान अपनी एक एकड़ फसल में 150 से 200 किलो यूरिया का इस्तेमाल करता था और इसके अलावा काफी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग भी करता था।
 ए.डी.ओ. कमल सैनी के साथ मौजूद किसान कृष्ण कुमार अपना अनुभव सांझा करते हुए।  

पकाई के दौरान फसल को नाइट्रोजन की होती है अधिक जरुरत 

पिछले वर्ष की बजाए इस वर्ष जिले में गेहूं का उत्पादन कम हुआ है। क्योंकि पिछले वर्ष ठंड का मौसम लंबा चला था लेकिन इस वर्ष तापमान में ज्यादा उतार-चढ़ाव हुआ है। इस कारण गेहूं की फसल को पकने के लिए पूरा समय नहीं मिल पाया। ईंटल कलां के किसान कृष्ण ने यूरिया, डी.ए.पी. व जिंक का घोल तैयार कर फसल पर जो छिड़काव किया है। उससे उसका उत्पादन बढ़ा है। क्योंकि गेहूं की फसल को पकते वक्त सबसे ज्यादा नाइट्रोजन व फासफोर्स की जरुरत होती है। नाइट्रोजन से फसल में अमीनो एसिड बनता है और अमीनो एसिड प्रोटीन बनाने में सहायक होता है। अगर फसल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होगी तो फसल का वजन बढ़ेगा। गेहूं की फसल को पकाई के दौरान नाइट्रोजन की अधिक जरुरत होती है लेकिन आखिरी स्टेज मेंपौधो जमीन से अधिक नाइट्रोजन नहीं ले पाता। इसलिए इस स्टेज में जमीन में खाद डालने की बजाए अगर यूरिया, डी.ए.पी. व जिंक का घोल तैयार कर फसल पर छिड़काव करें तो इससे पौधे के पत्ते को सीधे नाइट्रोजन मिल जाएगा और उसे जमीन से नाइट्रोजन लेने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इससे दाने में वजन बनेगा और ज्यादा उत्पादन होगा।
डा. कमल सैनी, ए.डी.ओ.
कृषि विभाग, रामराय


रविवार, 14 अप्रैल 2013

कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की कटाई की तरफ बढ़ा जिले के किसानों का रुझान


पशुओं के लिए चारे की कमी के कारण कम्बाइन से गेहूं की कटाई से हुआ किसानों का मोह भंग

नरेंद्र कुंडू
जींद।जिले में पिछले कुछ वर्षों से भले ही कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई का रकबा बढ़ा हो लेकिन इस वर्ष जिले में कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की फसल की कटाई के रकबे में बढ़ौतरी हुई है। इसे किसानों की मजबूरी कहें या पशुओं के लिए चारे की जरुरत जिस कारण जिले के किसानों को कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की कटाई करवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अगर कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो किसानों का कम्बाइन से गेहूं की कटाई से मोह भंग होने का मुख्य कारण पशुओं के लिए चारे की जरुरत के साथ-साथ गेहूं के बीज की किस्म में हुआ बदलाव रहा है। 
पिछले कुछ वर्षों से जिले के किसान का रुझान हाथ से गेहूं की फसल की कटाई की बजाए कम्बाइन से गेहूं की कटाई करवाने की तरफ बढ़ रहा था। जिस समय किसानों का रुझान कम्बाइन से गेहूं की कटवाई की तरफ बढ़ा था उस वक्त जिले में गेहूं के बिजाई के कुल क्षेत्र में से 70 प्रतिशत क्षेत्र में गेहूं की 343 किस्म की बिजाई होती थी। 343 किस्म की गेहूं की फसल की बढ़ौतरी काफी अच्छी होती थी। इस कारण कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई के बाद पशुओं के लिए चारे के लिए भी व्यवस्था ठीक-ठाक हो जाती थी लेकिन पिछले एक-दो वर्ष से गेहूं के बीज की किस्म में बड़ा बदलाव हुआ है। जिले में 343 की बजाए एच.डी. 2851 किस्म की बिजाई में वृद्धि हुई है। इस वर्ष जिले में गेहूं की फसल का कुल रकबा 2 लाख 17 हजार हैक्टेयर है। इस कुल रकबे में से 80 हजार हैक्टेयर में 343 किस्म तथा 80 हजार हैक्टेयर में एच.डी.2851 की बिजाई की गई है। यानि गेहूं के कुल क्षेत्र में से 40 प्रतिशत में 343 किस्म, 40 प्रतिशत में एच.डी. 2851 और बाकी 20 प्रतिशत में गेहूं की अन्य किस्मों की बिजाई की गई है। गेहूं की 343 किस्म की बजाए एच.डी. 2851 किस्म की फसल की बढ़ौतरी कम होती है। कृषि विभाग के अधिकारियों का मानना है कि गेहूं की एच.डी. 2851 किस्म की फसल की बढ़ौतरी कम होने के कारण कम्बाइन से कटाई करवाने के बाद इसका भूसा कम होता है। इससे पशुओं के लिए चारे की पूरी व्यवस्था नहीं हो पाती। एच.डी. 2851 का रकबा बढऩे तथा 343 किस्म का रकबा कम होने के कारण किसानों का रुझान मजबूरन हाथ की कटाई की तरफ बढ़ रहा है। 

क्यों बढ़ा एच.डी. 2851 का रकबा

जिले में पिछले कुछ वर्षों से गेहूं की एच.डी. 2851 किस्म का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि 343 किस्म का रकबा कम हुआ है। एच.डी. 2851 के रकबे में बढ़ौतरी का मुख्य कारण यह है कि इस किस्म की बिजाई पछेती होती है। पछेती बिजाई के बावजूद भी इस किस्म से 343 किस्म के बराबर का उत्पादन होता है। जिले में गेहूं की पछेती बिजाई का कारण कपास की फसल का सीजन लम्बा चलना रहा है। कपास की फसल का सीजन लम्बा चलने के कारण गेहूं की बिजाई भी लेट हो पाती है। इसलिए किसान 343 की बजाए एच.डी. 2851 को प्राथमिकता दे रहे हैं।

गेहूं खरीद को लेकर खरीद एजैंसियों ने सख्त किए नियम

गेहूं की खरीद को लेकर खरीद एजैंसियों द्वारा नियम भी सख्त तय किए गए हैं। खरीद एजैंसियों द्वारा गेहूं की फसल में ज्यादा नमी होने पर गेहूं की खरीद में देरी की जाती है। कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई होने पर गेहूं की फसल में नमी रह जाती है। इससे खरीद एजैंसियां गेहूं खरीद में देरी करती हैं। यह भी एक कारण है कि किसान कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की कटाई को प्राथमिकता दे रहे हैं। 

पशुओं के लिए चारे की कमी सबसे मुख्य कारण

जिले में हर वर्ष कम्बाइन से गेहूं की कटाई के रकबे में बढ़ौतरी होने के चलते किसानों के समक्ष पशुओं के चारे की किल्लत भी आड़े आने लगी थी। गेहूं की 343 किस्म की बजाए एच.डी. 2851 की ग्रोथ कम होने के कारण इस किस्म की फसल से भूसा कम निकलता है। कम्बाइन से गेहूं की फसल कटाई के बाद भूसा कम निकलने के कारण पशुओं के लिए पर्याप्त मात्रा में चारे की व्यवस्था नहीं हो पाती है। चारे की कमी के कारण भी किसान हाथ से कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं।
 हाथ से गेहूं की फसल की कटाई करते किसान। 

कम्बाइन की बजाए हाथ से कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं किसान । 

जिले में कुछ वर्षों से किसान हाथ की कटाई की बजाए कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई को प्राथमिकता देने लगे थे। अब एक-दो वर्षों से जिले में गेहूं की 343 किस्म की बजाए एच.डी. 2851 किस्म की बिजाई का क्षेत्र बढ़ा है। एच.डी. 2851 की पैदावार तो 343 के बराबर ही होती है लेकिन इसकी ग्रोथ कम होती है। कम ग्रोथ होने के कारण भूसा कम होता है। इस कारण पशुओं के लिए चारे की पूरी व्यवस्था नहीं हो पाती। पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था के लिए ही किसान कम्बाइन की बजाए हाथ से कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं। 
रामप्रताप सिहाग, उपनिदेशक
कृषि विभाग, जींद


आधुनिकता की भेंट चढ़ रही शादी की परम्पराएं


फिल्मी संगीत की भेंट चढ़ रहे महिलाओं द्वारा शादी में गाए जाने वाले मंगल गीत

नरेंद्र कुंडू
जींद। आज आधुनिकता के इस दौर में बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हरियाणवी संस्कृति लगातार अपनी पहचान खो रही है। हमारे खान-पान व पहनावे के साथ-साथ इसका प्रभाव अब विवाह-शदियों के दौरान दिए जाने वाले बाने की रीति-रिजवों पर भी तेजी से पड़ रहा है। बाने की रीति-रिवाज को निभाते वक्त सुनाई देने वाले महिलाओं के मंगल गीतों की जगह अब फिल्मी संगीत ने ले ली है। जिस कारण महिलाएं विवाह-शादियों में हरियाणवी गीतों की बजाए फिल्मी गीतों पर थिरकती नजर आती हैं। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण अब विवाह-शादी के दौरान निभाई जाने वाली हरियाणवी रीति-रिवाज लगातार अपनी पहचान खोती जा रही है।  
हरियाणवी संस्कृति में शादी से पहले बन्ने (दूल्हा) या बन्नी (दुल्हन) के लिए बाने की रिवाज होती थी। इस रिवाज के अनुसार शादी से पहले परिवार के लोगों द्वारा बारी-बारी बन्ना या बन्नी के लिए अपने-अपने घरों पर एक वक्त के खाने की व्यवस्था की जाती थी। हरियाणवी संस्कृति में इसे बाना कहा जाता था। बाने के दौरान एक ही व्यक्ति के घर में पूरे परिवार के लोगों का खाना तैयार किया जाता था। बन्ना या बन्नी को खाना खिलाने के बाद महिलाएं मंगल गीत गाती हुई उन्हें उनके घर तक ले जाती थी। इस दौरान बन्ने या बन्नी के सिर पर लाल चुन्नी रखकर एक थाली रखी जाती थी। थाली में सरसों के तेल का दिया व अन्य सामग्री भी रखी जाती थी। बाने के दौरान महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले गीतों में 'किसियां बाना ए नोंदिया, किसयां के घर जा', 'चालो सांझड़ी ए सांझघर चालो, जिस घर दिवला नित बलै', 'बन्नी हे म्हारी कमरे में घूमै' व 'म्हारे बनड़े का भूरा-भूरा मुखड़ा, ऊपर धार धरी ऐ शेरे की' इत्यादि प्रमुख थे। इसके बाद महिलाएं विवाह-शादी वाले घर में एकत्रित होकर गीत गाती थी और नृत्य करती थी। इनमें 'तेरा दामण सिमादू बनड़ी बोलैगी के ना', 'बन्ना काला कोठ सिमाले रे, अंग्रेजी बटन लगवाले रे', 'पहलां तो पिया दामण सिमादे, फेर जाइए हो पलटल में', 'मेरा दामण धरा री तकियाले में हे री-हे री ननद पकड़ा जाइए', मेरी छतरी के नीचे आ जा, क्यों भिजे कमला खड़ी-खड़ी' इत्यादि प्रमुख थे। बुजुर्ग बताते हैं कि प्राचीन समय से चली आ रही इस रिवाज के पीछे का कारण शादी से पहले लड़के या लड़की को अच्छा खाना खिलाकर शारीरिक रूप से मजबूत करना था। विवाह-शादी में बाने की रिवाज को काफी शुभ माना जाता था। बाने की शुरूआत शादी के दिन से 7 दिन पहले की जाती थी। बाने के दौरान महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले मंगल गीत सुनने वालों के दिल में एक तरह की उमंग सी भर देते थे। बाने की परम्परा को पूरा करते हुए महिलाएं देर रात तक गीत गाती और नृत्य करती थी लेकिन आधुनिकता के इस दौर में पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव ने हरियाणवी संस्कृति को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इसमें हमारे खान-पान व पहनावे के साथ-साथ हमारी रीति-रिवाजों को भी काफी हद तक समाप्त ही कर दिया है। आधुनिकता के इस युग में बाने की परम्परा शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से भी समाप्त होती जा रही है। बाने की परम्परा के दौरान महिलाओं के मंगल गीतों की जगह फिल्मी गीत सुनाई देते हैं। नई पीढ़ी की महिलाएं पुरानी रीति-रिवाजों को भूलती जा रही हैं। अब महिलाएं बाने की परम्परा के दौरान महिलाओं के गीतों की बजाए ज्यादातर फिल्मी गीतों पर ही नृत्य करती नजर आती हैं। इस दौरान फिल्मी गीतों पर महिलाओं का डांस देखने के
 शादी के दौरान डी.जे. पर फिल्मी गीतों पर थिरकती महिलाएं।
लिए काफी संख्या में लोग भी एकत्रित हो जाते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण विवाह-शादियों में अब अश्लीलता भी पैर पसारने लगी है।

फेशियल व बलिच ने लिया मटने का स्थान

विवाह-शादी के दौरान पहले बन्ने या बन्नी का रंग निखारने के लिए हल्दी, ज्यों व चने का मिश्रण कर एक लेप तैयार किया जाता था। जिसे मटना कहा जाता था। शादी से कई दिन पहले ही महिलाएं बन्ने या बन्नी को मटना लगाना शुरू कर देती थी। प्राकृतिक रूप से तैयार किया गया है यह लेप बन्ने या बन्नी के रंग को निखारने में काफी कारगर साबित होता था लेकिन आधुनिकता के साथ-साथ मटने का स्थान फेशियल व बलिच ने ले लिया है। अब शादी के दौरान बन्ना या बन्नी मटने का इस्तेमाल करने की बजाए पार्लर में जाकर फेशियल व बलिच करवाने को प्रथमिकता देते हैं। रासायनिक उत्पादों से तैयार किए गए यह प्रौडक्ट एक बार तो भले ही चेहरे पर नूर चढ़ा देते हैं लेकिन बाद में ये चेहरे की रंगत को बिगाड़ देते हैं। 


तारखां में हुए हादसे ने खोली सामान्य अस्पताल में चिकित्सा व्यवस्था की पोल


जहरीला पानी पीने से बीमार लोगों का खुद साथ आए लोगों ने किया उपचार 

उपचार के लिए सामान्य अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड में नहीं थे चिकित्सक

नरेंद्र कुंडू
जींद। उचाना के तारखां गांव में जहरीले पानी से एक व्यक्ति की मौत और कई के गंभीर रुप से बीमार हो जाने के हादसे ने शुक्रवार दोपहर जींद के सामान्य अस्पताल में चिकित्सा सुविधाओं की पोल खोल कर रख दी। इतने बड़े हादसे का शिकार हुए लोग जब सामान्य अस्पताल लाए गए तो यहां एमरजैंसी वार्ड में उनके उपचार के लिए चिकित्सक नहीं थे। इसके चलते बीमार लोगों के साथ आए ग्रामीणों को खुद बीमारों का इलाज करना पड़ा। इतना ही नहीं जब अस्पताल में बीमारों को उचित चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाने पर ग्रामीण बीमारों को एम्बुलैंस से रोहतक पी.जी.आई. ले जा रहे थे तो बीमारों को एम्बुलैंस तक पहुंचाने के लिए स्ट्रैचर भी उपलब्ध नहीं करवाई गई। इस कारण बीमारों के साथ आए लोगों ने उन्हें अपनी गोद में उठाकर ही एम्बुलैंस तक पहुंचाया। इतने बड़े हादसे के बाद भी अस्पताल प्रशासन द्वारा बीमारों को समय पर उचित चिकित्सा सुविधा मुहैया नहीं करवाए जाने के कारण अस्पताल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान लग गया है। 

यह था मामला 

उचाना कस्बे के तारखां कोठी गांव निवासी फूलकुमार सहित परिवार के अन्य 8 सदस्यों ने संदिग्ध परिस्थितियों के चलते जहरीला पानी पी लिया था। जहरीला पानी पीने से परिवार के सदस्यों की हालत बिगडऩे लगी थी। इस हादसे में फूलकुमार की रोहतक पी.जी.आई. ले जाते समय रास्ते में ही मौत हो गई थी। जबकि परिवार के अन्य सदस्यों की सेहत खराब हो गई थी। परिवार के सभी लोगों को उपचार के लिए सामान्य अस्पताल लाया गया था। सामान्य अस्पताल में पहले 4 लोगों को पहुंचाया गया। उस समय आपातकालीन में एक डॉक्टर मौजूद था। डॉक्टर ने उक्त मरीजों का इलाज शुरू किया और उन्हें पी.जी.आई. रोहतक रैफर कर दिया। कुछ देर बाद परिवार के ही 4 अन्य पीडि़तों को अस्पताल लाया गया, लेकिन उनका इलाज करने के लिए एमरजैंसी में कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। डॉक्टर व हैल्पर नहीं होने के कारण मरीजों के साथ आए लोगों का पारा चढ़ गया। इस हादसे में फूलकुमार की मौत हो गई तथा फूलकुमार का भाई राजकुमार, कर्ण सिंह, फूलकुमार का पुत्र अजय, पुत्री मधू, सुनिधि, पत्नी सरोज, बहन बिमला, कर्ण सिंह की पुत्री ज्योति की हालत गंभीर है। परिवार के आठों सदस्य पी.जी.आई. में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। 
 सामान्य अस्पताल के एमरजैंसी में उपचार के लिए लाए गए मरीज।

बीमारों के साथ आए लोगों ने खुद ही किया उपचार

गांव तारखां के फूलकुमार के परिवार के सदस्यों को गंभीर हालत में उपचार के लिए सामान्य अस्पताल में लाया गया था लेकिन यहां पर बीमारों को समय पर उचित उपचार नहीं मिल पाया। एमरजैंसी में डॉक्टर मौजूद नहीं होने के कारण साथ आए लोग डॉक्टरों को बुलाने के लिए चीख पुकार करते रहे लेकिन वहां उनकी सुनने वाला कोई नहीं थी। बार-बार डॉक्टरों को बुलाए जाने पर भी जब कोई डॉक्टर वहां नहीं पहुंचा तो मरीजों के साथ लोगों ने खुद ही मरीजों का फस्र्ट एड शुरू कर दिया। मरीज के साथ आए गांव के वीरभान व एक अन्य युवक ने चारों मरीजों को पहले प्राथमिक उपचार दिया। ड्रिप से लेकर अन्य जरूरी प्राथमिक उपचार उन्होंने खुद ही किया। 
एमरजैंसी में डॉक्टर नहीं होने के कारण खुद ही बीमारों को प्राथमिक चिकित्सा देते साथ आए लोग।








4 मरीजों के लिए एक ही एम्बुलैंस करवाई गई उपलब्ध

उपचार के लिए सामान्य अस्पताल लाए गए गांव तारखां के फूलकुमार के परिवार के सदस्यों की हालत बेहद गंभीर थी लेकिन सामान्य अस्पताल में बीमारों को समय पर उचित उपचार नहीं मिलने के कारण लगभग आधे घंटे के बाद ही साथ आए लोगों ने चारों को रोहतक पी.जी.आई. ले जाने का निर्णय लिया। पी.जी.आई. ले जाने के कारण उन्होंने अस्पताल प्रशासन से एम्बुलैंस की व्यवस्था की मांग की। हद तो उस वक्त हो गई, जब चारों मरीजों को पी.जी.आई. ले जाने के लिए अस्पताल प्रशासन द्वारा एक एम्बुलैंस की उपलब्ध करवाई गई। इसके बाद गंभीर रूप से बीमार चारों मरीजों को एक ही एम्बुलैंस में डालकर रोहतक पी.जी.आई. के लिए ले जाया गया।

स्ट्रेचर भी नहीं करवाई गई उपलब्ध

उपचार के लिए सामान्य अस्पताल में लाए गए कई मरीजों की हालत तो इतनी खराब थी कि वह स्वयं खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। मरीजों को प्राथमिक उपचार दे रहे गांव के ही 2 युवकों ने मरीजों को उठा-उठाकर एम्बुलैंस तक पहुंचाया। मरीजों को एम्बुलैंस तक पहुंचाने के लिए अस्पताल प्रशासन द्वारा स्टे्रचर भी उपलब्ध नहीं करवाई गई। यहां तक कि आपातकालीन में मौजूद अन्य सरकारी कर्मचारी भी इलाज कराने में किसी प्रकार की सहायता करते नजर नहीं आए। जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब गांव वाले खुद ही प्राथमिक उपचार में लगे हैं तो वह हाथ क्यों लगाएं?
बीमारों को पी.जी.आई. ले जाने के लिए एम्बुलैंस में ले जाते साथ आए लोग।

टी.बी. मरीज को भी नहीं मिला उपचार

सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों की लापरवाही का आलम यह है कि यहां शुक्रवार अल सुबह से उपचार के लिए आए टी.बी. के मरीज की भी डॉक्टरों ने सुध नहीं ली। सामान्य अस्पताल में उपचार के लिए पहुंचे नरवाना निवासी नरेश ने बताया कि वह टी.बी. का मरीज है और वह अपने इलाज के लिए अस्पताल आया था। नरेश ने बताया कि सुबह जब वह अपने उपचार के लिए 
बीमार बच्ची को पी.जी.आई. ले जाने के लिए गोद में उठाए एम्बुलैंस में ले जाती साथ आई महीला। 
डॉक्टर से मिला तो डॉक्टर ने उसे एक्स-रे लेकर आने को कहा। नरेश ने बताया कि जब वह एक्स-रे करवाकर दोबारा से चिकित्सक के पास पहुंचा तो वहां पर उसे कोई डॉक्टर नहीं मिला। नरेश ने बताया कि वह अपने उपचार के लिए सुबह से ही डॉक्टर के इंतजार में यहां बैठा हुआ है लेकिन यहां कोई भी चिकित्सक उसकी सुध नहीं ले रहा है। 

सामान्य अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा कोई सुनवाई नहीं करने के बाद आपबीती सुनाता डी.बी. पेसैंट।









खून से लाल हो रही है रेल की पटरियां


हर माह बढ़ रही है रेलवे ट्रैक पर मरने वालों की संख्या 

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले का रेलवे ट्रैक हर माह खून से लाल हो रहा है। जिंदगी से परेशान लोग मौत को गले लगाने के लिए रेलवे ट्रैक को चून रहे हैं। ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है। अकेले वर्ष 2013 में पिछले 3 माह में ही ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या करने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों की संख्या में हर माह 2 से 3 व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है। रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों में महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की संख्या काफी ज्यादा है। रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या के बढ़ते मामले जी.आर.पी. के लिए भी सिर दर्द बन रहे हैं। जी.आर.पी. को मृतकों की पहचान व उसके परिजनों का पता लगाने के लिए खाक छाननी पड़ रही है।
आज भाग दौड़ व टैंशन भरी ङ्क्षजदगी से परेशान होकर लोग अपने जीवन से मुहं मोड़ रहे हैं। टैंशन भरी जिंदगी से छुटकारा पाने के लिए लोग रेलवे ट्रैक को माध्यम बना रहे हैं। इसलिए ट्रेन के आगे कूद कर एक ही झटके में ङ्क्षजदगी से छुटकारा पाना चाहते हैं। अगर पिछले 3 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। वर्ष 2011 में रेलवे ट्रैक पर जान देने वालों की संख्या लगभग 110 के करीब थी, तो वर्ष 2012 में यह आंकड़ा 110 से बढ़कर 133 पर पहुंच गया। वर्ष 2013 में पिछले 3 माह में रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इन 3 माह में हर माह 2 से 3 व्यक्तियों का आंकड़ा बढ़ा है। इनमें महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की संख्या ज्यादा है। जनवरी माह में रेल की चपेट में आने के कारण 5 लोगों की मौत हुई है, जिनमें पांचों पुरुष थे। पांचों मामलों में 3 आत्महत्या के थे, जबकि 2 लोगों की मौत स्वभाविक रुप से हुई थी। फरवरी माह में ट्रेन की चपेट में आने से 7 लोग काल का ग्रास बने। इनमें 5 पुरुष तथा 2 महिला थी। सातों मामलों में 2 मामले आत्महत्या के तथा 5 मामले दुर्घटना के थे। मार्च माह में कुल 8 लोग ट्रेन की चपेट में आने के कारण जिंदगी से हाथ धो बैठे। इनमें 6 पुरुष व 2 महिलाएं थी। आठों मामलों में 5 आत्महत्या के तथा 3 मामले दुर्घटना के थे। लगातार बढ़ रहे आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो यह साफ हो रहा है कि लोग तनाव भरे जीवन से छूटकारा पाने के लिए ट्रेन को आसान साधन मानते हैं। रेलवे ट्रैक पर बढ़ते हादसे जी.आर.पी. के लिए भी सिरदर्द बनते हैं। जी.आर.पी. को मृतक की पहचान व उसके परिजनों का पता लगाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है।

72 घंटे तक रख सकते हैं शव 

रेलवे ट्रैक पर लावारिस शव मिलने पर जी.आर.पी. द्वारा पंचनामा भरने के बाद शव का पोस्टमार्टम करवाया जाता है। शव मिलने के बाद शव की पहचान के लिए जिला पुलिस को वायरलैस द्वारा सूचना दी जाती है। शव मिलने पर शव को 72 घंटे तक सुरक्षित रखा जाता है। इसके बाद उनकी पहचान नहीं होने पर शव का दांह संस्कार के लिए मार्कीट कमेटी को सौंप दिया जाता है।

लावारिश शव बनते हैं जी.आर.पी. के गले की फांस

जी.आर.पी. को शव मिलने पर उनकी पहचान नहीं होने पर जी.आर.पी. को शव की पहचान के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। पिछले 3 माह में रेलवे ट्रैक पर मरने वाले 20 लोगों में से अभी भी 4 शवों की पहचान नहीं हो पाई है। जिस कारण जी.आर.पी. ने शवों को लावारिश घोषित कर शवों को दहा संस्कार के लिए मार्कीट कमेटी को सौंप दिया है।

किया जाता है प्रचार-प्रसार

रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हो रही है। आत्महत्या के मामलों में वृद्धि होने के कारण जी.आर.पी. को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। स्टाफ की कमी के चलते जी.आर.पी. पर काम का बोझ भी बढ़ जाता है। जी.आर.पी. द्वारा शवों की पहचान के लिए काफी प्रचार-प्रसार भी किया जाता है। इसके बाद अगर शव की पहचान नहीं हो पाती है तो शव का दहा संस्कार के लिए  मार्कीट कमेटी को सौंप दिया जाता है।
विक्रम सिंह, एस.एच.ओ.
जी.आर.पी., जींद

लोगों के दिल में पनप रही है गलत धरना 

ट्रेन सबसे पुराना साधन है। पुराने समय में ट्रेन की चपेट में आने से कुछ हादसे होने के बाद ट्रेन की तरफ लोगों की गलत धारण भी जुड़ गई है। जब किसी व्यक्ति का जिन्दगी से मोह उठ जाता है तो उसके मन में मौत को लेकर किसी तरह का डर नहीं रहता है। इस तरह की परिस्थिति में व्यक्ति सिर्फ यह सोचता है कि आत्महत्या के दौरान संयोग से कहीं उसकी मौत नहीं हुई और उसके शरीर का कोई अंग भंग हो गया तो उसकी जिंदगी बेकार हो जाएगी। अन्य वाहनों की बजाए ट्रेन की चपेट में आने से मौत जल्दी हो जाती है। इसलिए आत्महत्या के लिए लोग ट्रेन को ही सबसे ज्यादा चुनते हैं, क्योंकि ट्रेन की चपेट में आने के बाद बचने के चांस कम होते हैं। जीवन भगवन का अनमोल तोहफा है छोटी-मोटी परेसनियों के कारण इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए
नरेश जागलान
 नरेश जागलान का फोटो

मनोचिकित्सक, जींद


रेलवे जंक्शन की सुरक्षा में सेंध

जंक्शन पर आने वाले यात्रियों के लिए नहीं कोई खास व्यवस्था 


नरेंद्र कुंडू
जींद। रेल किराये में वृद्धि के बावजूद भी जींद के रेलवे जंक्शन पर यात्रियों के लिए कोई खास व्यवस्था का इंतजाम नहीं हो पाया है। यहां सबसे बड़ा खतरा तो सुरक्षा व्यवस्था को है। शहर के रेलवे जंक्शन की सुरक्षा व्यवस्था में पूरी तरह से सेंध लग चुकी है। रेलवे जंक्शन पर सुरक्षा के कोई पुख्ता प्रबंध नहीं हैं। स्टेशन के प्रवेश द्वारा पर रखा डोर मैटलडिडक्टर शोपिस बना हुआ। इतना ही नहीं रेलवे स्टेशन पर बनी जी.आर.पी. व आर.पी.एफ. की चैकपोस्टों के गेटों पर भी ताले लटकते रहते हैं। ऐसे हालात में रेलवे जंक्शन पर आने वाले यात्रियों व जंक्शन की सुरक्षा का अंदाजा स्वयं ही लगाया जा सकता है। इसके अलावा स्टेशन पर सीनियर सिटीजन के लिए अलग से टिकट खिड़की की भी कोई व्यवस्था नहीं है। 

रेलवे जंक्शन पर सुरक्षा व्यवस्था का आलम यह है कि यहां कोई भी अपराधिक प्रवृति का व्यक्ति किसी भी 
जींद रेलवे जंक्शन का फोटो। 
घटना को अंजाम देकर आसानी से बच कर निकल सकता है। जंक्शन की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर टीम ने जब जंक्शन का मुआयना किया तो देखा कि रेलवे सुरक्षा बल के कार्यालय के बाहर लावारिश हालता में एक सामान से भरा बैग रखा हुआ था। लावारिश सामान का यह बैग लगभग 1 घंटे तक इसी अवस्था में कार्यालय के बाहर रखा रहा लेकिन किसी भी पुलिस कर्मी ने यहां इस सामान की तलाशी लेने की जहमत नहीं उठाई। 


 रेलवे जंक्शन पर खाली पड़ी पूछताछ कार्यालय की खिड़की। 

 रेलवे जंक्शन के गेट पर खराब अवस्था में एक तरफ रखा डोर मैटलडिडक्टर। 

पूछताछ खिड़की से नदारद रहते हैं कर्मचारी

रेलवे जंक्शन पर सबसे बुरा हाल तो पूछताछ खिड़की का है। यहां यात्रियों को ट्रेन इत्यादि की जानकारी के देने के लिए बनाई गई पूछताछ खिड़की से ज्यादातर समय कर्मचारी नदारद रहते हैं। खिड़की पर कर्मचारियों के मौजूद नहीं रहने के कारण यात्रियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं फोन के माध्यम से यात्रियों को गाडिय़ों की जानकारी देने के लिए जारी किए गए नम्बर पर भी यात्रियों को गाडिय़ों की जानकारी नहीं मिल पाती है। यात्री पूछताछ के नम्बर पर काल पर काल करके परेशान हो जाते हैं लेकिन पूछताछ नंबर से किसी तरह का कोई जवाब नहीं मिल पता है। 

सीनियर सिटीजन के लिए नहीं है अलग खिड़की

रेलवे जंक्शन पर यात्रियों के लिए टिकट लेने के लिए तो 2 खिड़कियां हैं लेकिन यहां सीनियर सिटीजन के लिए टिकट लेने के लिए कोई अलग से खिड़की की व्यवस्था नहीं की गई है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग से खिड़की नहीं होने के कारण उन्हें टिकट लेने के लिए कई बार युवाओं से उलझना पड़ता है। वरिष्ठ नागरिक पुरुषोतम, रामलाल, मोहनलाल, दयाकिशन, सुरजभान आदि ने बताया कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग से खिड़की होनी चाहिए। 

नियमित रूप से चिकित्सालय खोलने की मांग

जींद जंक्शन पर नियमित रुप से चिकित्सालय खोलने की मांग भी यात्रियों द्वारा की जा रही है। रेलयात्री शमशेर कश्यप, फतेहचंद, रमन अरोड़ा व अश्वनी का कहना है कि रेलवे जंक्शन पर नियमित रुप से चिकित्सालय खोला जाना चाहिए ताकि रेलवे परिसर में दुर्घटनाग्रस्त होने वाले यात्रियों को तत्काल प्राथमिक उपचार दिया जा सके।

जनता खाने की भी नहीं है व्यवस्था

रेलवे सुरक्षा बल के कार्यालय के बाहर रखा लावारिश सामान।
रेलवे मंत्रालय के निर्देशानुसार हर रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को सस्ता व अच्छा भोजन उपलब्ध करवाना जरुरी है, ताकि सफर के दौरान यात्रियों को कम कीमत पर अच्छा खाना मिल सके लेकिन रेलवे जंक्शन पर इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। रेलवे जंक्शन पर जनता खाने की कोई व्यवस्था नहीं है। 

नियमित रुप से लगाई जाती है कर्मचारियों की ड्यूटी।

पूछताछ खिड़की पर नियमित रुप से कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है। यात्रियों की सुविधा के लिए स्टेशन पर ट्रेनों के टाइम टेबल से सम्बंधित चार्ट भी लगाए गए हैं। सीनियर सिटीजन के लिए अलग से खिड़की की व्यवस्था नहीं है लेकिन खिड़की पर मौजूद कर्मचारियों को निर्देश जारी किए गए हैं कि टिकट वितरण के दौरान वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता दी जाए। 
अनिल यादव, स्टेशन अधीक्षक
रेलवे जंक्शन, जींद

स्टाफ की है कमी

खाली पड़ी रेलवे सुरक्षा बल की चैक पोस्ट।
जी.आर.पी. के पास स्टाफ की काफी कमी है। इस वक्त जी.आर.पी. के पास सिर्फ 20 पुलिस कर्मी मौजूद हैं। इनमें से कुछ पुलिस कर्मी कागजी कार्रवाई का कामकाज देखते हैं तथा कुछ सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभालते हैं। जी.आर.पी. को कम से कम 20 पुलिस कर्मियों की ओर जरुरत है। स्टाफ की कमी के चलते चैक पोस्टों पर पुलिस कर्मियों की स्थाई ड्यूटी नहीं लगाई जा रही है। ट्रेनों के समय पर पुलिस कर्मी रूटीन में ट्रेनों तथा यात्रियों की चैकिंग करते हैं। 
विक्रम सिंह, इंचार्ज
जी.आर.पी., जींद