सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

20 को जींद जिले में जुटेंगे प्रदेशभर के कृषि वैज्ञानिक

राज्य स्तरीय खेत दिवस में कीटों के शोध पर होगा गहन मंथन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिला कृषि उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने थाली को जहरमुक्त करने की जो मुहिम शुरू की है उस मुहिम के साथ पूरे प्रदेश के किसानों को जोडऩे के लिए 20 फरवरी को जींद जिले के गांव ईगराह में राज्य स्तरीय किसान खेत दिवस का आयोजन किया जाएगा। हरियाणा के अलावा दूसरे प्रदेशों के कृषि वैज्ञानिक भी इस सम्मेलन में भाग लेंगे। कृषि विभाग तथा जींद जिले के किसानों की सहभागिता से होने वाला यह सम्मेलन प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर का पहला ऐसा अनोखा सम्मेलन होगा, जिसमें किसानों द्वारा कीटों पर किए गए शोध पर बड़े-बड़े कृषि वैज्ञानिक मंथन करेंगे। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में खाप पंचायतों की भी बड़ी भागीदारी रहेगी। प्रदेश के कृषि निदेशक डा. बृजेंद्र सिंह सम्मेलन में बतौर मुख्यातिथि तथा डी.सी. जींद राजीव रत्न विशिष्ठ अतिथि के तौर पर शिरकत करेंगे। डा. सिहाग सोमवार को शहर की अर्बन एस्टेट कालोनी में स्थित जाट धर्मशाला में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। 
 डा. सिहाग ने कहा कि कृषि विभाग के ए.डी.ओ. डा. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में थाली को जहरमुक्त करने के लिए जींद जिले के निडाना गांव से जिस मुहिम की शुरूआत की थी आज उस मुहिम ने एक क्रांति का रूप धारण कर लिया है और कृषि विभाग भी उनकी इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए बराबर की भागीदारी दर्ज करवा रहा है। यहां के किसानों ने डा. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में कीटों पर अनोखे शोध किए हैं। इसी की बदौलत आज यहां के किसानों को लगभग 206 किस्म के शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की पहचान हो चुकी है। इनके प्रयोग को देखकर दूसरे जिलों के किसान भी इनसे कीट ज्ञान लेने के लिए समय-समय पर यहां आते हैं। 
जींद जिले के किसानों ने कीटों की पहचान कर फसलों में बिना किसी पेस्टीसाइड का प्रयोग किए रिकार्ड तोड़ उत्पादन प्राप्त किया है। डा. सिहाग ने कहा कि अब तो कृषि वैज्ञानिकों ने भी इन किसानों के इस शोध पर अपनी सहमति की मोहर लगा दी है। उन्होंने कहा कि अब इस मुहिम से पूरे प्रदेश के किसानों को जोडऩे के लिए इस राज्य स्तरीय खेत पाठशाला के आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन में यहां के कीट कमांडो किसान बाहर से आए किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा करेंगे। इससे दूसरे जिलों के किसानों को भी उनकी इस मुहिम से जुडऩे का अवसर मिलेगा। बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल के निमंत्रण पर खाप पंचायतें भी पिछले 2 साल से इस मुहिम में शामिल होकर इन किसानों के इस शोध पर गहन मंथन कर रही हैं। अब तक 105 से ज्यादा खापों के प्रतिनिधि किसान पाठशालाओं में शामिल होकर इनकी इस मुहिम का बारिकी से निरीक्षण कर चुके हैं। इस सम्मेलन में खाप पंचायतें भी कृषि विभाग तथा इन किसानों के साथ मिलकर इस मिशन को आगे बढ़ाएंगी ताकि खाने की थाली को जहरमुक्त किया जा सके। उन्होंने कहा कि यहां के किसान तो कपास के साथ-साथ सभी फसलों में इस प्रक्रिया को अपना चुके हैं। उन्होंने कृषि विभाग से इस योजना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की मांग की ताकि फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे पेस्टीसाइड के कारण दूषित हो रहे खान-पान को दूषित होने से बचाया जा सके। इस मौके पर उनके साथ ए.डी.ओ. डा. कमल सैनी, राजपुरा भैण गांव के पूर्व सरपंच बलवान लोहान, डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता कमेटी के प्रधान रणबीर मलिक, मनबीर रेढू आदि भी मौजूद थे। 
 पत्रकारों से बातचीत करते डी.डी.ए. डा. रामप्रताप सिहाग तथा बराह खाप प्रधान कुलदीप ढांडा।

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

अब पैसे के अभाव में ईलाज से वंचित नहीं रहेंगे बच्चे

0 से 18 वर्ष तक के बच्चों को निशुल्क मिलेंगी स्वास्थ्य सुविधाएं
स्वास्थ्य विभाग ने किया 11 टीमों का गठन

गांव-गांव घूमकर बीमारी से पीडि़त बच्चों की पहचान करेंगी स्वास्थ्य विभाग की टीमें

नरेंद्र कुंडू
जींद। आंगनवाड़ी तथा सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले 0 से 18 वर्ष तक के बच्चे अब आर्थिक कमजोरी के कारण उपचार से वंचित नहीं रहेंगे। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य योजना के तहत स्वास्थ्य विभाग अब आंगनवाड़ी तथा सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को गंभीर बीमारी में भी निशुल्क स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाएगा। स्वास्थ्य विभाग की इस योजना की सबसे खास बात यह है कि इस सेवा का लाभ लेने के बच्चों को अस्पतालों के चक्कर भी नहीं काटने पड़ेंगे, बल्कि स्वास्थ्य विभाग की टीम खुद गंभीर बीमारी की चपेट में आने वाले बच्चों को ढूंढ़कर अस्पताल तक पहुंचाएगी। इस योजना को कारगर बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा सामान्य अस्पताल में डिस्ट्रीक अर्ली इंटरमैंशन सैंटर (डी.ई.आई.सी.) स्थापित किए जा रहे हैं और इस सैंटर को चलाने के लिए अलग से स्टाफ की नियुक्ति की जा रही है। 
सामान्य अस्पताल का वह कमरा, जहां डी.ई.आई.सी. का निर्माण किया जाना है।

11 मोबाइल टीमें करेंगी निगरानी

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य योजना के तहत आंगनवाड़ी तथा सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले 0 से 18 वर्ष तक के बच्चों को सरकार की इस योजना का लाभ पहुंचाने के लिए डी.ई.आई.सी. के तहत ब्लॉक वाइज 11 मोबाइल टीमों का गठन किया गया है। प्रत्येक टीम में एक मेल डॉक्टर, एक फीमेल डॉक्टर, एक ए.एन.एम. तथा एक फार्मासिस्ट को शामिल किया गया है। डी.ई.आई.सी. की यह 11 टीमें जिले के सभी गांवों में घूमकर गंभीर बीमारी से पीडि़त बच्चों का पता लगाएंगी। 

निशुल्क मिलेंगी सभी स्वास्थ्य सुविधाएं

स्वास्थ्य विभाग द्वारा राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य योजना के तहत ब्लड कैंसर, ह्रदय रोग, कैंसर सहित 30 प्रकार की ऐसी गंभीर बीमारियों को अपनी सूची में शामिल किया है, जिनके उपचार पर मोटी रकम खर्च होती है लेकिन स्वास्थ्य विभाग इन सभी बीमारियों से पीडि़त बच्चों का मुफ्त उपचार करवाएगा। स्वास्थ्य विभाग की सूची में शामिल इन 30 किस्म की गंभीर बीमारी से पीडि़त बच्चे को ओ.पी.डी. तक की पर्ची बनवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा बच्चे को एक अलग किस्म का कार्ड जारी किया जाएगा। इस कार्ड के आधार पर ही बच्चे का पूरा उपचार निशुल्क होगा। अगर बच्चे की बीमारी सामान्य है तो स्वास्थ्य विभाग की टीम पी.एच.सी., सी.एच.सी. स्तर पर बच्चे का उपचार करवाएगी। यदि पी.एच.सी. या सी.एच.सी. स्तर पर बच्चे का उपचार सही तरीके से नहीं हो पाया तो बच्चे को सामान्य अस्पताल ले जाया जाएगा। अगर बच्चे की बीमारी गंभीर है तो उसे सामान्य अस्पताल से पी.जी.आई. रोहतक या चंडीगढ़ रैफर किया जाएगा। 

डी.ई.आई.सी. के निर्माण पर खर्च होंगे 20 लाख

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य योजना के तहत जिला स्तर पर तैयार होने वाले डी.ई.आई.सी. के भवन के निर्माण पर 20 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे और भवन तैयार होने के बाद इसके डैकोरेशन पर 2 लाख रुपए खर्च होंगे। इस योजना को सही तरीके से चलाने के लिए जिला स्तर पर निॢमत सैंटर पर 15 सदस्यों का स्टाफ होगा। इसमें डॉटा आप्रेटर, स्टाफ नर्स, लैब टैक्नीशियन, सोशल वर्कर से लेकर विशेषज्ञ तक मौजूद रहेंगे। 

समय पर मिल पाएगा बच्चे को उपचार

जिला स्तर पर डी.ई.आई.सी. शुरू होने से बच्चों को काफी लाभ मिलेगा। पैसों के अभाव में कोई भी बच्चा उपचार से वंचित नहीं रह पाएगा। 0 से 18 वर्ष तक के बच्चों का निशुल्क उपचार किया जाएगा। इसकी सबसे खास बात यह होगी कि डी.ई.आई.सी. की टीमें गांव-गांव घूमेंगी और बच्चे के बीमारी की चपेट में आते ही उसका उपचार शुरू करवाएंगी। समय पर बच्चे को सही उपचार मिलने से बीमारी गंभीर रुप धारण नहीं कर पाएगी और बच्चे को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पाएंगी। 
 डा. राजेश भोला का फोटो।
डा. राजेश भोला, नोडल स्कूल हैल्थ अधिकारी
सामान्य अस्पताल, जींद 



खाद्य एवं पूर्ति विभाग का नया फरमान

अब बिना आई.डी. के नहीं मिलेगा राशन
अफसरशाही के नियमों के जाल में फंसी सरकार की खाद्य सुरक्षा योजना

नरेंद्र कुंडू 
जींद। गरीब लोगों को भरपेट दाल-रोटी देने की सरकार की योजना अफसरशाही के नियमों के जाल में फंसकर रह गई है। खाद्य एवं पूर्ति विभाग द्वारा राशन वितरण करने के लिए आए दिन नए-नए फरमान जारी किए जा रहे हैं। राशन वितरण के लिए खाद्य एवं पूर्ति विभाग द्वारा हर रोज निर्धारित किए जा रहे नए-नए नियमों के कारण राशन वितरण की प्रक्रिया काफी जटिल हो गई है। इसके चलते विभाग के कर्मचारियों से लेकर राशन लेने वाले पात्र लोगों तक को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ लेने के लिए एक सप्ताह पहले विभाग द्वारा जहां परिवार के सभी सदस्यों के लिए आधार कार्ड अनिवार्य किया गया था, वहीं अब विभाग ने इस नियम में फेरबदल करते हुए परिवार के सभी सदस्यों का एक पहचान पत्र होने का नया नियम तैयार कर दिया है। विभाग के नए नियमानुसार बिना पहचान पत्र वाले सदस्य को राशन नहीं दिया जाएगा। वहीं राशन लेने से पहले कार्ड धारक को अलग से एक नया फार्म भी भरना होगा।
देशभर के गरीब लोगों को 2 वक्त की दाल-रोटी मुहैया करवाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा देश में खाद्य सुरक्षा योजना लागू की गई थी। सरकार की इस योजना के तहत प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिमाह 2 रुपए किलो के भाव से 5 किलो गेहूं और बी.पी.एल. कार्ड धारक को अढ़ाई किलो दाल 20 रुपए प्रतिकिलो के भाव से हर माह देने का ऐलान किया था लेकिन खाद्य एवं पूर्ति विभाग द्वारा सरकार की इस योजना को अमल में लाने के लिए हर रोज नए-नए नियम निर्धारित किए जा रहे हैं। विभाग के महानिदेशक ने लगभग एक सप्ताह पहले पत्र जारी करते हुए योजना का लाभ लेने वाले सभी लोगों के लिए आधार कार्ड का होना अनिवार्य कर दिया था लेकिन सभी लोगों के पास आधार कार्ड नहीं होने के कारण लोगों को होने वाली परेशानी को देखते हुए विभाग ने एक सप्ताह में ही इस नियम में फेरबदल करते हुए एक ओर नया नियम खड़ा कर दिया। विभाग के इस नए नियम के अनुसार अब राशन लेने से पहले कार्ड धारक को अपने परिवार के सभी सदस्यों की आई.डी. डिपोधारक को दिखानी होगी। अगर कार्ड धारक के पास परिवार के किसी सदस्य की आई.डी. नहीं है तो बिना आई.डी. वाले सदस्य को राशन नहीं दिया जाएगा। इस तरह से विभाग द्वारा राशन वितरण के लिए हर रोज तैयार किए जा नियमों के जाल में उपभोक्ता उलझते जा रहे हैं। 

आई.डी. दिखाने के बाद भरना होगा फार्म

खाद्य एवं पूर्ति विभाग के महानिदेशक द्वारा हाल ही में जारी किए गए नए नियमों के अनुसार राशन लेने के लिए कार्ड धारक को अपने परिवार के सभी सदस्यों की आई.डी. तो दिखानी ही होगी, इसके अलावा पहली बार राशन लेने पर परिवार के सभी सदस्यों की आई.डी. दिखाने के बाद अलग से एक फार्म भी भरना होगा।

कर्मचारियों के गले की फांस बने विभाग के नए नियम

खाद्य एवं पूर्ति विभाग के महानिदेशक द्वारा हाल ही में जारी किए गए नए नियम विभाग के कर्मचारियों के गले की फांस बन गए हैं। पहले स्मार्ट कार्ड के लिए फिर खाद्य सुरक्षा योजना और इसके बाद खाद्य सुरक्षा योजना के तहत अस्थाई फार्म भरवाने के बाद अब नए सिरे से एक अलग फार्म भरवाने के लिए विभाग के कर्मचारियों को लोगों के साथ काफी माथापच्ची करनी पड़ेगी। विभाग के कर्मचारियों की मानें तो बार-बार जनता से फार्म भरवाए जाने के कारण जनता फार्म भरने की इस प्रक्रिया से परेशान हो चुकी है। खासकर ग्रामीण क्षेत्र के लोग सबसे ज्यादा परेशान हो चुके हैं।

3-3 बार भरवाए जा चुके हैं फार्म

खाद्य एवं पूर्ति विभाग द्वारा लगभग 1 वर्ष पहले स्मार्ट कार्ड के लिए लोगों से फार्म भरवाए गए थे। इसके बाद खाद्य सुरक्षा योजना के लिए फार्म भरवाए गए और तीसरी बार खाद्य सुरक्षा योजना अस्थाई के नाम से फार्म भरवाए गए। इस योजना के तहत महिला को घर की मुखिया बनाया गया था लेकिन आज तक न तो लोगों के स्मार्ट कार्ड बने हैं और न ही महिला घर की मुखिया बन पाई हैं। इसके बावजूद अब विभाग द्वारा एक बार फिर नए सिरे से लोगों से फार्म भरवाने जाने के फरमान जारी कर दिए गए हैं।

राशन लेने के लिए अब आई.डी. दिखाना जरूरी

इस बारे में जानकारी लेने के लिए जब डी.एफ.एस.सी. अशोक कुमार से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह चंडीगढ़ मुख्यालय से यह निर्देश प्राप्त हुए थे कि बिना आधार कार्ड राशन वितरित नहीं किया जाए। राशन लेने के लिए परिवार के सभी सदस्यों के पास आधार कार्ड का होना अनिवार्य किया गया था लेकिन सभी लोगों के पास आधार कार्ड नहीं होने के कारण विभाग ने अब नियम में परिवर्तन किया है। आधार कार्ड के स्थान पर परिवार के सभी सदस्यों को राशन लेते समय एक आई.डी. दिखानी होगी। विभाग द्वारा जो नए सिरे से फार्म भरवाए जाएंगे वह प्रक्रिया सामान्य है। पहली बार ही कार्ड धारक को यह फार्म भरना होगा। इसके बाद कार्ड धारक से यह फार्म नहीं भरवाए जाएंगे। स्मार्ट कार्ड के लिए उन्होंने फार्म भरवा कर रख दिए हैं, अब आगामी कार्रवाई विभाग को करनी है।  

रविवार, 5 जनवरी 2014

क्या हरियाणा में आया राम, गया राम से बनेगी सरकार?

हरियाणा में अकेले सरकार बनाने की स्थिति में नहीं कोई भी राजनैतिक दल 
थ्री इडियट फिल्म के 'ऑल इज वैल' के फार्मूले को अपना रही है कांग्रेस पार्टी

नरेंद्र कुंडू
जींद। साल 2014 से चुनावी मौसम शुरू होने वाला है। इसी को मद्देनजर रखते हुए सभी राजनैतिक दलों ने अपने लंगर-लंगोट कसने शुरू कर दिए हैं। हरियाणा में पूरी तरह से राजनीति माहौल गर्मा चुका है। सभी राजनैतिक दलों ने अपने-अपने पक्ष में माहौल तैयार करने के लिए अपने घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए हैं। हाल ही में घोषित हुए दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ व मिजोरण के चुनाव परिणाम ने प्रदेश की राजनीति में उफान पैदा कर दिया है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ चुनाव में भाजपा को विजयश्री मिलने तथा दिल्ली में सबसे ज्यादा सीटें भाजपा के पक्ष में जाने के बाद कांग्रेस पार्टी हिलोरे खाने लगी है। इसी के चलते अब दिल्ली में बैठे कांग्रेस के सिपेसलहारों ने आगामी चुनाव में अपनी लाज बचाने के लिए पार्टी की कार्यप्रणाली पर मंथन भी शुरू कर दिया है। वहीं हाल ही में कांग्रेस पार्टी की इस बड़ी हार ने हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा के माथे पर भी चिंता की लकीरें पैदा कर दी। क्योंकि इससे एक तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री को प्रदेश में कांग्रेस विरोधी लहर पैदा होने का भय सता रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के ही उन नेताओं का डर है जो सत्ता में काबिज होने के दौरान भी उनके विरोध में खड़े हैं। फिलहाल हरियाणा प्रदेश में कांग्रेस 2 धड़ों में बटी हुई है। सांसद बीरेंद्र सिंह, कुमारी शैलजा, ईश्वर सिंह तथा राव इंद्रजीत सिंह सहित कई अन्य नेताओं का एक बड़ा धड़ा आज मुख्यमंत्री के समक्ष बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हुआ है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के लिए हरियाणा में लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करना एक छेद वाले मटके को पानी से भरने के बराबर है। क्योंकि पड़ोसी राज्यों में जहां कांग्रेस विरोधी लहर चल रही है तो हरियाणा में पार्टी के अंदर ही बगावत के सुर फूट रहे हैं। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी अब एक बाजिगर की तरह हारी हुई बाजी को जीतने के लिए अपने पैंतरे फैंकने शुरू कर दिए हैं। मुख्यमंत्री ने पहला पैंतरा 10 नवम्बर को गोहाना में आयोजित शक्ति रैली में कर्मचारियों को लुभाने के लिए कर्मचारी हित की घोषणाओं की झड़ी लगाकर फैंका है, तो दूसरा पैंतरा केंद्र सरकार से केंद्र में जाटों को आरक्षण देने की सिफारिश करवाकर फैंक दिया है लेकिन यहां सरकार के दोनों ही पैंतरे उल्ट पड़ते नजर आ रहे हैं। जाटों को केंद्र में आरक्षण की सिफारिश की घोषणा के बाद से मुख्यमंत्री पर एक जाति विशेष का मुख्यमंत्री का आरोप लगाते हुए प्रदेश के भिन्न-भिन्न पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ अपना मोर्चा खोल दिया है, तो दूसरी तरफ 22 दिसम्बर को रोहतक में आयोजित हल्ला बोल रैली में प्रदेश के कर्मचारी वर्ग ने भी सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का बिगुल फूंकते हुए आगामी चुनाव में सरकार को इसका खामियाजा भुगतने की चेतावनी दे डाली है। इस प्रकार हरियाणा में लगातार कांग्रेस के विपक्ष में तैयार हो रहे इस माहौल से कांग्रेस सरकार की नैया डांवाडोल होती नजर आ रही है लेकिन कांग्रेस सरकार इससे सबक लेने की बजाए थ्री इडियट फिल्म के मशहूर डॉयलाग ऑल 'इज वैल' के फार्मूले को अपनाकर अपने दिल को तसल्ली देने में जुटी है कि प्रदेश में तीसरी बार भी कांग्रेस की सरकार बनेगी। वहीं प्रदेश के दूसरे राजनैतिक दलों के लिए भी सत्ता की कुर्सी पर काबिज होना टेडी खीर साबित होगी। क्योंकि भाजपा पार्टी को हरियाणा में दिग्गज नेताओं की कमी खल रही है तो हजकां प्रदेश की जनता का विश्वास  जीत कर अभी तक अपना जनाधार नहीं बना पाई है। इसी तरह इनैलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला तथा अजय चौटाला को जेबीटी घोटाले में सजा होने के बाद इनैलो अभी तक अपना अगला सेनापति ही तय नहीं कर पा रही है। वहीं दिल्ली में मिले भारी जनसमर्थन से आसमान में उड़ रही आप पार्टी ने अब हरियाणा में भी चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है लेकिन हरियाणा में आप का यह सपना सच होते इसलिए नजर नहीं आ रहा है क्योंकि दिल्ली में आप को सत्ता की दहलीज तक पहुंचाने में शिक्षित व जागरूक तबके का बड़ा हाथ है लेकिन हरियाणा में शहरी की बजाए ग्रामीण लोगों की संख्या ज्यादा है और यहां प्रचार-प्रसार के अभाव के कारण शिक्षा व जागरूकता का काफी अभाव है। इस प्रकार हरियाणा में बन रहे समीकरण से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के लिए या तो हरियाणा में इनैलो, भाजपा व हजकां महागठबंध कर सकती हैं या फिर भाजपा हजकां का साथ छोड़कर इनैलो के साथ आएगी, क्योंकि यहां हजकां की बजाए इनैलो पार्टी काफी ज्यादा मजबूत है। इसके अलावा तीसरा रास्ता यह भी निकल सकता है कि आया राम, गया राम (खरीद-फरोख्त) से कांग्रेस तीसरी बार सत्ता में काबिज होने में कामयाब हो सकती है। 


शनिवार, 21 दिसंबर 2013

रोडवेज की बसों में छात्राओं को मुफ्त यात्रा से जींद डिपू को हर वर्ष झेलना पड़ेगा 33 लाख का घाटा

रोडवेज बेड़े में बसों की कमी के चलते छात्राओं को नहीं मिल पाएगा पूरा लाभ

 नरेंद्र कुंडू
जींद। नए वर्ष पर रोडवेज की बसों में छात्राओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना लागू होने जा रही है। इस योजना के अमल में आने के बाद हर वर्ष अकेले जींद डिपू को 33 लाख का नुक्सान उठाना पड़ेगा। हरियाणा रोडवेज की बसों में छात्राओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना शुरू होने के बाद हर वर्ष लगभग 24 करोड़ का घाटा झेल रहे जींद डिपू का यह नुक्सान बढ़कर 24 करोड़ 33 लाख हो जाएगा। वहीं रोडवेज बेड़े में घटती बसों की संख्या के कारण छात्राओं के लिए सरकार की यह योजना सफेद हाथी बनकर रह जाएगी। रोडवेज बेड़े में बसों की कमी के चलते छात्राएं पूरी तरह से इस योजना का लाभ नहीं उठा पाएंगी। ग्रामीण क्षेत्रों में हरियाणा रोडवेज की बसों की सुविधा नहीं होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र की छात्राओं को सरकार की इस योजना का कोई खास लाभ नहीं मिल पाएगा। इस योजना के शुरू होने के बाद रोडवेज की आय का एक ओर स्त्रोत कम हो जाएगा। इस योजना के शुरू होने से पहले रोडवेज के पास 26 ऐसी कैटेगरी हैं जो रोडवेज में पूरी तरह से फ्री यात्रा करती हैं और 7 ऐसी कैटेगरी हैं जो रियायत पर रोडवेज की बसों में यात्रा कर रही हैं। 
 जींद बस स्टैंड पर खड़ी बसों का फोटो। 

महज 174 बसों के सहारे 5 हजार छात्राओं को कैसे मिलेगी मुफ्त सफर की सुविधा 

इस समय जींद जिले के रोडवेज बेड़े में कुल 174 बसें हैं। इसमें जींद डिपू में कुल 114 बसें, नरवाना डिपू में 24 और सफीदों डिपू के पास 36 बसें हैं। इसके अलावा इस बेड़े में से भी हर माह लगभग 10 बसें कंडम हो जाती हैं और कंडम होने वाली बसों के स्थान पर कम संख्या में नई बसें वापिस बेड़े में शामिल होती हैं। इन 174 बसों में से हर रोज महज 130 बसें ही मुश्किल से सड़कों पर दौड़ पाती हैं। बाकि बसें ड्राइवरों की कमी से वर्कशॉप में धूल फांकती रहती हैं। जबकि जींद जिले में बसों में सफर कर स्कूल, कालेजों व अन्य शिक्षण संस्थानों में जाने वाली छात्राओं की संख्या लगभग 5 हजार के करीब है। इस प्रकार महज 174 बसों के सहारे 5 हजार छात्राओं को सरकार किसी प्रकार से रोडवेज की बसों में मुफ्त सफर की सुविधा मुहैया करवा पाएगी। 

सिर्फ 60 किलोमीटर तक ही मिल पाएगा छात्राओं को मुफ्त सफर का लाभ 

प्रदेश सरकार द्वारा 10 नवम्बर को गोहाना रैली में की गई छात्राओं को रोडवेज की बसों में मुफ्त सफर की घोषणा पर 1 जनवरी 2014 से अमल शुरू हो जाएगा। इसके लिए रोडवेज विभाग के महानिदेशक द्वारा सभी डिपुओं को पत्र जारी किए जा चुके हैं। सरकार की घोषणा के अनुसार छात्राएं सिर्फ 60 किलोमीटर तक की रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा कर सकेंगी। 60 किलोमीटर से ज्यादा सफर करने वाली छात्राओं को आगे के सफर के लिए टिकट लेनी होगी। 

कैंसर के मरीजों को मिलेगा लाभ

छात्राओं के साथ-साथ कैंसर पीडि़त मरीजों को भी एक जनवरी से रोडवेज की बसों में मुफ्त सफर की योजना का लाभ मिलेगा। इसके लिए कैंसर के मरीजों को सामान्य अस्पताल के सिविल सर्जन कार्यालय से लिखित में पत्र लेकर आना होगा। सिविल सर्जन कार्यालय से जारी पत्र के आधार पर रोडवेज विभाग द्वारा कैंसर पीडि़त मरीज को उपचार के दौरान रोडवेज की बसों में सफर के लिए मुफ्त यात्रा का कार्ड जारी किया जाएगा।  

स्टूडैंट पास से जींद डिपू को हर वर्ष होती है 1 करोड़ 25 लाख की आमदनी

स्टूडैंट पास से हर वर्ष अकेले जींद डिपू को 1 करोड़ 25 लाख की आमदनी होती है। इस वर्ष जींद डिपू द्वारा लगभग 7400 विद्यार्थियों को पास जारी किए गए हैं। इनमें 5500 छात्र तथा 1900 छात्राएं पास होल्डर हैं। इस प्रकार जींद में शिक्षा प्राप्त करने के लिए आने वाले विद्यार्थी जींद डिपू की आमदनी का एक बड़ा स्त्रोत हैं लेकिन जनवरी 2014 से रोडवेज की बसों में छात्राओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना शुरू होने से जींद डिपू को हर वर्ष लगभग 33 लाख रुपए का नुक्सान उठाना पड़ेगा।

अब तक रोडवेज द्वारा लड़कियों से ली जाने वाली पास की फीस की सूची 

किलोमीटर      एक वर्ष का किराया

1 से 5 180
6 से 10 360
11 से 15          540
16 से 20          720
21 से 25          900
26 से 30         1080
31 से 40         1440
41 से 50         1800
51 से 60         2160

रोडवेज के पास पहले से हैं 26 फ्री तथा 7 रियायत पर सफर करने वाली कैटेगरी

रोडवेज विभाग के पास पहले ही 26 कैटेगरी ऐसी हैं, जो सरकार की अलग-अलग योजनाओं के तहत रोडवेज की बसों में फ्री यात्रा का लाभ ले रही हैं तथा 7 ऐसी कैटेगरी हैं, जो रोडवेज की बसों में रियायत पर सफर करती हैं। इस प्रकार अब रोडवेज की यह सूचि 26 से बढ़कर 28 हो जाएगी। 

सरकार निजी बसों में भी लागू करे मुफ्त यात्रा की योजना

प्रदेश सरकार द्वारा रोडवेज की बसों में छात्रओं के मुफ्त सफर की जो योजना लागू की गई है, वह सरकार की एक अच्छी पहल है लेकिन रोडवेज की बसों के साथ-साथ सरकार को यह योजना निजी बसों में भी लागू करनी चाहिए, ताकि ग्रामीण क्षेत्र से निजी बसों में आने वाली छात्राएं भी सरकार की इस योजना का लाभ ले सकें। वहीं सरकार द्वारा किसी भी कैटेगरी को रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा का लाभ देने पर उस कैटेगरी से रोडवेज को होने वाली आमदनी के बदले में सरकार को आॢथक सहायता भी देनी चाहिए ताकि रोडवेज विभाग को घाटे से बचाया जा सके। 
बलराज देशवाल, राज्य प्रधान
हरियाणा रोडवेज मिनिस्ट्रीयल स्टाफ एसोसिएशन
बलराज देशवाल का फोटो।











अलग तरह का होगा छात्राओं के बस पास का फार्मेट

एक जनवरी से छात्राओं के लिए रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा की योजना लागू हो जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा सभी स्कूलों, कालेजों व शिक्षण संस्थानों से पास होल्डर छात्राओं की सूची मांगी जाएगी, ताकि इस योजना के  लागू होने से जींद डिपू को होने वाले घाटे का अंकलन लगाया जा सके। वहीं रोडवेज विभाग द्वारा छात्राओं को जारी किए जाने वाले पास का फार्मेट भी अलग तरह का होगा, ताकि कोई लड़की नकली पास बनवाकर मुफ्त सफर की योजना की आड़ में रोडवेज को चूना न लगा सके। 
राहुल जैन, महाप्रबंधक का फ़ोटो 


राहुल जैन, महाप्रबंधक
हरियाणा रोडवेज, जींद डिपू 

किसी जंग जीतने से कम नहीं आर्म्स लाइसैंस हासिल करना

आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा नहीं निर्धारित की गई गाइड लाइन 

होमगार्ड की पर्ची से लेकर लाइसैंस बनवाने तक पैसे व सिफारिश के बिना नहीं बनता काम
आर्म्स डीलर की मनमर्जी पर भी नकेल नहीं डाल पा रहा प्रशासन 

नरेंद्र कुंडू
जींद। आर्म्स लाइसैंस बनवाकर पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर (पी.एस.ओ.) तथा सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की चाह रखने वाले बेरोजगारों के लिए आर्म्स लाइसैंस बनवाना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। इसके लिए बेरोजगार युवाओं को होमगार्ड की पर्ची से लेकर आर्म्स लाइसैंस बनवाने के लिए या तो दलालों का सहारा लेना पड़ता है या फिर किसी बड़े अधिकारी के दरवाजे की धूल चाटनी पड़ती है। अब तो हालत यह हो गए हैं कि आर्म्स लाइसैंस बनवाने वाले जरूरतमंद व बेरोजगार युवाओं को आर्म्स लाइसैंस की फाइल जमा करवाने के लिए भी अपरोच की जरुरत पडऩे लगी। जिला प्रशासन द्वारा आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए किसी तरह की कोई गाइड लाइन जारी नहीं किए जाने के  कारण आर्म्स लाइसैंस की चाह रखने वाले आवेदकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जबकि शौक के लिए हथियार खरीदने वाले बड़े-बड़े डीलरों के लाइसैंस आसानी से बन जाते हैं।
सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं होने के चलते बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं का रूझान आर्म्स लाइसैंस की तरफ काफी बढ़ रहा है लेकिन हथियार की सहायता से पी.एस.ओ. तथा सिक्योरिटी के क्षेत्र में इंट्री करने के इच्छुक युवाओं के लिए आर्म्स लाइसैंस बनवाना एक सपना बनाकर रह गया है। आर्म्स लाइसैंस बनवाने के लिए कई माह से डी.सी. कार्यालय तथा होमगार्ड कार्यालय के चक्कर काट रहे सतीश मलिक, मनोज सोनी, नरेंद्र निडानी, बिट्टू शर्मा, अजीत पूनिया, विक्रम भैण का कहना है कि आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा कोई गाइड लाइन जारी नहीं की गई हैं। इसके चलते सरकारी कार्यालयों में बैठे कुछेक अधिकारियों व कर्मचारियों ने इस प्रक्रिया को अपनी आमदनी का जरिया बना लिया है। आर्म्स लाइसैंस की आड़ में पैसा कमाने वाले इन चुनिंदा अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए खुद के नियम तय किए हुए हैं और ऐसे में आर्म्स लाइसैंस के आवेदन के लिए आने वाले उम्मीदवारों पर यह खुद के नियमों का भार डालकर उनकी जेबें तराशने का काम करते हैं। आर्म्स लाइसैंस की चाह रखने वाले युवाओं को होमगार्ड की पर्ची बनवाने से लेकर फाइल जमा करवाने तक अपरोच करवानी पड़ती है। खेल यहीं पर खत्म नहीं होता। इसके बाद पुलिस वैरिफिकेशन से लेकर फाइल को एक अधिकारी की टेबल से दूसरे अधिकारी की टेबल तक पहुंचाने के लिए या तो फाइल पर पैसों के पंख लगाने पड़ते हैं या फिर बड़े अधिकारी की सिफारिश करवानी पड़ती है। इस प्रकार सिक्योरिटी के क्षेत्र में हथियार की सहायता पर नौकरी की इच्छा रखने वाले युवाओं को आर्म्स लाइसैंस बनवाने से लेकर हथियार खरीदने तक लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। यदि किसी आवेदक के पास पैसा या अपरोच नहीं है तो उसे प्रशासनिक अधिकारियों के नियमों की चक्की में पिसना पड़ता है।
 वह युवा जिनसे बातचीत की गई। 

खिलाडिय़ों को प्राथमिकता के आधार पर जारी किया जाए आर्म्स लाइसैंस

पिस्टल शूटर सुरेश पूनिया ने कहा कि आज बढ़ती बेरोजगारी के कारण रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं लेकिन सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। रिवाल्वर, पिस्टल या गन की सहायता से पी.एस.ओ. या किसी कंपनी में 10 से 30 हजार रुपए मासिक की सिक्योरिटी की नौकरी आसानी से मिल सकती है। इसलिए सरकार व जिला प्रशासन को चाहिए कि आम्र्स लाइसैंस के नियमों में सरलीकरण लाया जाए और जरूरतमंदों की अच्छी तरह से वैरिफिकेशन करवाकर उन्हें जल्द से जल्द आर्म्स लाइसैंस मुहैया करवाया जाए, ताकि वह अपना तथा अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें। खाली शौक या प्रतिष्ठा के लिए हथियार रखने वालों के लाइसैंसों पर पाबंदी लगाई जाए।

गन हाऊस के संचालकों पर भी शिकांजा कसने की जरुरत

जिले में महज कुछेक गिने चुने गन हाऊस हैं। इसके चलते इनमें कम्पीटिशन भी ना के बराबर है। आर्म्स डीलर इस बात का खूब फायदा उठा रहे हैं। यह आर्म्स डीलर अपने मनमाने रेटों पर हथियार के कारतूस बेचते हैं। कारतूस के वास्तविक रेट से कई-कई गुणा ज्यादा रेटों पर कारतूसों की बिक्री की जा रही है। यदि कोई इनसे कारतूस के बिल की मांग करता है तो यह बिल देना से साफ मना कर देते हैं। यदि बिल के लिए कोई लाइसैंस धारक ज्यादा दबाब बनाता है तो उसे कम रेट का बिल बनाकर थमा दिया जाता है। इस प्रकार आर्म्स डीलरों की मनमर्जी से भी आर्म्स लाइसैंस काफी हद तक परेशान हैं। आर्म्स लाइसैंस धारकों का कहना है कि जिला प्रशासन को आर्म्स डीलरों पर भी शिकंजा कसने की जरुरत है।

ऑल इंडिया या 3 स्टेट लाइसैंस की प्रक्रिया हो सरल

आर्म्स लाइसैंस धारकों का कहना है कि केंद्र सरकार ने आम्र्स लाइसैंस के नियमों में जो फेरबदल कर आल इंडिया के लाइसैंसों पर पाबंदी लगाकर 3 स्टेट के लाइसैंस बनाने की प्रक्रिया शुरू की है, उस प्रक्रिया में भी काफी खामी हैं। जो व्यक्ति पी.एस.ओ. या सिक्योरिटी के क्षेत्र में नौकरी करना चाहता है, उसे एक स्टेट की बजाए कई स्टेट के लाइसैंस की जरुरत होती है। हरियाणा में ज्यादा बड़ी इंडस्ट्री नहीं होने के कारण यहां पी.एस.ओ. या सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार कम हैं। इसलिए हथियार खरीदने के बाद नौकरी के लिए युवाओं को दूसरे प्रदेशों का रुख करना पड़ता है लेकिन हरियाणा से बाहर का लाइसैंस नहीं होने के कारण वह मन मसोस कर रह जाते हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह या तो ऑल इंडिया के लाइसैंस शुरू करे या 3 स्टेट के लाइसैंस बनाने की प्रक्रिया को सरल करे, ताकि लाखों रुपए कीमत का हथियार खरीदने के बाद कोई भी जरूरतमंद दूसरे प्रदेश में जाकर अपना रोजगार तलाश कर सके।


 

रविवार, 15 दिसंबर 2013

घूंघट के पीछे से किसानों को दिया जहरमुक्त खेती का संदेश

देश की हर क्रांति में पुरुषों के बराबर रही है महिलाओं की भागीदारी : मैडम दलाल

नरेंद्र कुंडू
जींद। इतिहास गवाह है, जब-जब देश में क्रांति हुई है, तब-तब उस क्रांति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर रही है। यह बात मैडम कुसुम दलाल ने वीरवार को गांव रधाना में आयोजित महिला किसान खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि बोलते हुए कही। कार्यक्रम में कृषि विभाग के उप-निदेशक डा. आर.पी. सिहाग, जिला उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कृषि विभाग के एस.डी.ओ. डा. युद्धवीर सिंह, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, दलीप सिंह चहल, राजबीर कटारिया, कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी, डा. रवि, डा. राजेंद्र शर्मा तथा डा. युद्धवीर सिंह भी विशेष रूप से मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान महिला कीट कमांडों किसानों ने हरियाणवी संस्कृति को निभाते हुए घूंघट के पीछे से किसानों को जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देने का संदेश दिया और अन्य किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा किए। इस अवसर पर किसानों ने डा. सुरेंद्र दलाल के नाम से डायरी का विमोचन भी किया। 
महिला कीट कमांडो किसान अंग्रेजो, कमलेश, कविता, नारो, राजवंती ने कहा कि आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान के कारण बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित माने जाने वाले मां के दूध में भी अब जहर की मात्रा मिलने लगी है, जो पूरी मानव जाति के लिए एक गंभीर खतरे की दस्तक है। उन्होंने कहा कि 10 हजार साल पहले खेती की शुरूआत हुई थी और तभी से किसानों, कीटों और पौधों का आपस में गहरा रिश्ता था लेकिन लगभग 30 साल पहले इस रिश्ते को खत्म करने की साजिश रची गई और किसानों को गुमराह करते हुए बताया गया कि कीटों से फसल को 22 प्रतिशत नुक्सान होता है। इसके बाद 

 महिलाओं को सम्बोधित करती मैडम कुसुम दलाल। 

कृषि वैज्ञानिकों ने इस 22 प्रतिशत नुक्सान की रिकवरी के लिए पहले किसानों को कीटों को नियंत्रण करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करना तथा फिर कीटों का प्रबंधन करना सिखाया लेकिन इसके बाद भी कीटों पर 
डा. सुरेंद्र दलाल पर आधारित डायरी का विमोचन करते अधिकारी। 
काबू नहीं पाया जा सका। उन्होंने कहा कि अब खुद कृषि वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार चुके हैं कि कीटनाशकों के प्रयोग से मात्र 7 प्रतिशत ही रिकवरी होती है। मात्र 7 प्रतिशत की रिकवरी के लिए किसान अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर फसल खर्च तो बढ़ा रहा है, साथ-साथ खाने को भी जहरीला बना कर अपने तथा दूसरों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इस अवसर पर महिला किसानों ने 'खेतैं में खड़ी ललकारुं तू जहर ना लाइए, लैइए खाद का घोल कीडय़ां की जान बचाइए', 'खेती चौपट, कर्जा भारी दिखै घोर अंधेरा' आदि गीतों के माध्यम से कीटनाशकों पर कटाक्ष किए और किसानों को जहरमुक्त खेती कर कीटों को बचाने का आह्वान किया। किसानों ने कार्यक्रम में मौजूद सभी अतिथिगणों को पगड़ी तथा शाल भेंट कर स्वागत किया। महिलाओं के कार्यों को देखते हुए मैडम कुसुम दलाल ने निडाना, निडानी व रधाना गांव की महिलाओं को 1100-1100 रुपए और कुलदीप ढांडा ने 500 रुपए पुरस्कार  स्वरूप दिए। 

163 किस्म के मांसाहारी कीटों की खोज की



महिला किसानों को पुरस्कृत करती मैडम कुसुम दलाल। 
महिला कीट कमांडो किसानों ने बताया कि उन्होंने अभी तक 20 किस्म के रस चूसक, 13 किस्म के पत्ते खाने वाले कीट, 4 किस्म के फूल खाने वाले कीट तथा 3 किस्म के फल खाने वाले कीटों की खोज की है। इसके अलावा इनको कंट्रोल करने के लिए 163 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान भी की जा चुकी है। 

हरे तेले, चूरड़े व सफेद मक्खी से भयभीत न हो किसान

कीट कमांडों महिला किसानों ने बताया कि जब तक उन्हें कीटों की पहचान नहीं हुई थी, तब तक उन्हें कपास की फसल में मौजूद हरे तेले, चूरड़े व सफेद मक्खी से डर लगता था। क्योंकि यह तीनों कीट कपास की फसल को नुक्सान पहुंचाने वाले मेजर कीटों में शुमार हैं लेकिन जब से उन्हें कीटों की पहचान हुई है तथा इनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हुई है, तब से इनके प्रति इनका भय पूरी तरह से निकल चुका है। 
कार्यक्रम में अपने अनुभव सांझा करती महिला किसान

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

कीट ज्ञान में कृषि वैज्ञानिकों को भी मात दे रहे कीट कमांडो किसान

आज से पहले कीटों पर नहीं हुआ इस तरह का कोई शोध : डी.सी.
निडानी गांव में किया जिला स्तरीय खेत दिवस का आयोजन

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद जिले के किसानों ने कीटों पर जो अनोखा शोध किया है वह वास्तव में काबिले तारिफ है और आज से पहले कीटों पर कहीं भी इस तरह का शोध नहीं हुआ है। कीटों के बारे में जितनी जानकारी कीट कमांडों किसानों को है उतनी तो शायद कृषि वैज्ञानिकों को भी नहीं है। यह बात उपायुक्त राजीव रत्तन ने वीरवार को कृषि विभाग तथा कीट साक्षरता सोसायटी निडानी द्वारा आयोजित खेत दिवस पर निडानी गांव में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर कार्यक्रम में जिला कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, स्व. डा. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, विजय दलाल, रोहतक एम.डी.यू. से डा. राजेंद्र चौधरी, पी.जी.आई. रोहतक से सर्जन डा. रणबीर दहिया, बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह ढुल, जाट धर्मशाला जींद के प्रधान रामचंद्र, होशियार सिंह दलाल, दलीप चहल, प्राचार्य रमेश मलिक, समाजसेवी राधेश्याम, निडानी गांव के सरपंच अशोक, कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी सहित कृषि विभाग के अन्य अधिकारी भी विशेष रूप से मौजूद थे। 
खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मौजूद लोग। 
कार्यक्रम का शुभारंभ उपायुक्त राजीव रत्तन ने कीट साक्षरता के अग्रदूत स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को श्रद्धांजलि अर्पित की। डी.सी. ने कहा कि आज जींद जिले के लगभग 14 गांव के अनेकों किसान इस मुहिम से जुड़े हैं। राजपुरा, ईंटल, ईगराह, निडानी, निडाना, ललितखेड़ा, रधाना, चाबरी, भैराखेड़ा, ईक्कस, जलालपुरा कलां समेत कई गांवों के किसान बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए कपास, धान जैसी फसलें पैदा करने लगे हैं। कार्यक्रम में किसानों ने अपने अनुभव रखते हुए बताया कि कीटों और किसानों के बीच जो लड़ाई चल रही है वह आधारहीन है। कीटों को नियंत्रण करने के लिए तो कीट ही सबसे बड़ा शस्त्र है। इसलिए कीटों को नियंत्रण करने की जरूरत नहीं है। अगर जरूरत है तो इनकी पहचान करने की। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। महिला किसानों ने 'हो पिया तेरा हाल देखकै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधै टंकी जहर की या मेरै कसुती रड़क हो' तथा 'सबतै बढिय़ा हो सै बिना जहर की खेती' गीतों के माध्यम से किसानों की नब्ज को टटोलने का काम किया और कीटनाशकों पर कटाक्ष किए। एम.डी.यू. से आए डा. राजेंद्र चौधरी ने किसानों को गोबर की खाद तैयार करने तथा कुदरती खेती के  बारे में विस्तार से जानकारी दी। जिला उद्यान 
अधिकारी डा. बलजीत भ्याण ने कहा कि उन्होंने सब्जियों में जहर के स्तर की जांच के लिए जो भी सैम्पल लिए उन सभी सब्जियों में जहर की मात्रा शरीर को नुक्सान पहुंचाने के स्तर से काफी ज्यादा पाई गई है। 
कार्यक्रम के दौरान कीटों पर आधारित गीत प्रस्तुत करती महिला किसान।
इससे यह अंदाजा असानी से लगाया जा सकता है कि हमारा खान-पान कितना शुद्ध है। जिला कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल ने जो मुहिम शुरू की थी आज वह पूरी गति से प्रदेश में फैल रही है। पूरे कृषि विभाग को डा. सुरेंद्र दलाल पर फकर है। डा. सुरेंद्र दलाल की मौत के बाद इस मुहिम से जुड़े लोगों को बड़ी निराशा हुई थी और किसानों को इस मुहिम के खत्म होने का डर सता रहा था लेकिन डा. सुरेंद्र दलाल के बाद डा. कमल सैनी ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और वह बड़े अच्छे तरीके से इस मुहिम को सफल बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। 
डी.सी. को सम्मानित करते किसान व विभाग के अधिकारी ।

रक्त में फैले जहर को निकालने के लिए नहीं बनी कोई मशीन

रोहतक पी.जी.आई. से आए सर्जन डा. रणबीर सिंह दहिया ने कहा कि आज तक कोई ऐसी मशीन नहीं बनी जो खाने के माध्यम से हमारे खून में फैले जहर को बाहर निकाल सके। डा. दहिया ने कहा कि रोहतक पी.जी.आई. में भी ऐसे टैस्ट की सुविधा नहीं है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि मरीज के शरीर में जहर का स्तर कितना बढ़ चुका है। उन्होंने कहा कि हरियाणा में इस टैस्ट को शुरू करने के लिए आज से लगभग 20 वर्ष पहले विधानसभा में यह मुद्दा उठा था और विधानसभा में इस टैस्ट को शुरू करने के लिए प्रस्ताव भी तैयार किया गया लेकिन आज तक यह सुविधा शुरू नहीं हो पाई है। डा. दहिया ने सरकारी अस्पतालों में इस टैस्ट को शुरू करवाने के लिए खाप पंचायतों को लड़ाई शुरू करने का आह्वान किया। डा. दहिया ने कहा कि आज लोगों में हड्डियों व पेट के रोगों के फैलेने का मुख्य कारण पेस्टीसाइड के कारण दूषित 
होता हमारा खान-पान है।  

कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए पूरा प्रयास करेंगी खाप पंचायतें

बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई थाली को जहर मुक्त बनाने की इस मुहिम को जींद के अलावा पूरे प्रदेश में फैलाने के लिए खाप पंचायतें हर संभव प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि किसान-कीट की लड़ाई का मामला खाप की अदालत में है और खाप पंचायतों के प्रतिनिधि पिछले 2 वर्ष से इन पाठशालाओं में जाकर अपना रिकार्ड तैयार कर रहे हैं। खाप पंचायतें अगले वर्ष एक बड़ी पंचायत का आयोजन कर इसके खिलाफ लड़ाई की अगली रणनीति तैयार करेंगी। 






शनिवार, 16 नवंबर 2013

माइलार्ड आम जनता के लिए खुलवा दिए गए हैं अस्पताल के टायलट !

सिविल सर्जन की तरफ से अदालत टायलट के ताले खुलवाने के ब्यान दर्ज करवाए लेकिन दिनभर टायलट पर लटके रहे ताले

स्थायी लोक अदालत में डी.सी. तथा सिविल सर्जन की तरफ से दर्ज करवाए गलत ब्यान 

नरेंद्र कुंडू
जींद। माइलार्ड आम जनता के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में बने टायलट के ताले खुलवा दिए गए हैं और भविष्य में सामान्य अस्पताल प्रशासन द्वारा इसके अच्छे से रखरखाव के इंतजाम भी किए जाएंगे। यह ब्यान शुक्रवार को स्थायी लोक अदालत में सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक टायलट पर ताले लगाए जाने के मामले की सुनवाई के दौरान उपायुक्त तथा सिविल सर्जन की तरफ से दर्ज करवाए गए लेकिन हकीकत कुछ ओर ही थी। स्थायी लोक अदालत में सार्वजनिक टायलट के ताले खोल दिए जाने का ब्यान दर्ज करवाया गया लेकिन वास्तव में शुक्रवार को भी सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक टायलट पर ताले लटके हुए थे। इन तालों को खोलने के लिए शुक्रवार को सामान्य अस्पताल प्रशासन की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई लेकिन स्थायी लोक अदालत में सिविल सर्जन की तरफ से गलत ब्यान दर्ज करवाकर अदालत को गुमराह करने का काम जरूर किया गया है। 
गौरतलब है कि डी.आर.डी.ए. ने संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत 11 लाख रूपए की राशि से जींद नगर परिषद के माध्यम से सामान्य अस्पताल में आधुनिक टायलट काम्पलैक्स के निर्माण की योजना बनाई थी। योजना के तहत खुद जींद के डी.सी. ने सामान्य अस्पताल में गोहाना रोड की तरफ की साइट को आधुनिक टायलट काम्पलैक्स के लिए चुना था। गोहाना रोड की तरफ सामान्य अस्पताल में आधुनिक टायलट काम्पलैक्स इसलिए बनाया गया था ताकि राह चलते आम लोग इस टायलट का इस्तेमाल कर सकें। साल 2011 में 11 लाख रूपए की लागत से सामान्य अस्पताल में गोहाना रोड की तरफ आधुनिक टायलट काम्पलैक्स बनकर तैयार हो गया लेकिन आज तक इसका इस्तेमाल शुरू नहीं हो पाया है। इसके निर्माण का कार्य पूरा होने के साथ ही इस पर ताला जड़ दिया गया था और यह ताला आज तक नहीं खुल पाया है। नतीजा यह है कि जिस मकसद से सरकार ने 11 लाख रूपए की राशि सामान्य अस्पताल के टायलट काम्पलैक्स के निर्माण पर खर्च की थी, उस मकसद पर सामान्य अस्पताल प्रशासन की ढील ने पानी फेर दिया है। नगर परिषद के अधिकारियों ने सामान्य अस्पताल में टायलट काम्पलैक्स का निर्माण पूरा करने के बाद सामान्य अस्पताल प्रशासन को इसे हैंडओवर कर दिया था लेकिन सामान्य अस्पताल प्रशासन इसे इस्तेमाल करने में रूचि नहीं दिखा रहा। इस मामले में सामान्य अस्पताल प्रशासन टायलट काम्पलैक्स को अपने लिए बोझ मान रहा है। 
 जींद के सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक शौचालय पर शुक्रवार को भी लटके ताले।

एडवोकेट विनोद बंसल ने स्थायी लोक अदालत में दायर की थी याचिका

युवा एडवोकेट विनोद बंसल ने 25 अक्तूबर 2013 को जींद की जन उपयोगी सेवाओं की स्थाई लोक अदालत में याचिका दायर कर जींद के सामान्य अस्पताल में 11 लाख रूपए की लागत से साल 2011 में बने इस सार्वजनिक टायलट का ताला खुलवाने की गुहार लगाई थी। याचिका में विनोद बंसल ने कहा है कि टायलट का ताला नहीं खुलने से लोगों और खासकर महिलाओं का भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर किया जा रहा है। इससे अस्पताल में गंदगी फैल रही है। विनोद बंसल ने याचिका में उपायुक्त और सिविल सर्जन को पार्टी बनाते हुए अदालत से गुहार लगाई थी कि वह इन दोनों को अस्पताल परिसर में बने सार्वजनिक टायलट पर जड़े गए ताले को खोलने के आदेश जारी करे। शुक्रवार के स्थायी लोक अदालत में इसी मामले की सुनवाई के दौरान उपायुक्त तथा सिविल सर्जन की तरफ से ब्यान दर्ज करवाए गए कि आम जनता के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में बने टायलट के ताले खुलवा दिए गए हैं और भविष्य में सामान्य अस्पताल प्रशासन द्वारा इसके अच्छे से रखरखाव के इंतजाम भी किए जाएंगे लेकिन हकीकत में शुक्रवार को भी जींद के सामान्य अस्पताल में बने टायलट पर ताले ज्यों की त्यों लटक रहे थे। 

सामान्य अस्पताल के टायलट इस्तेमाल लायक नहीं

जींद के सामान्य अस्पताल के अंदर बने टायलट इस्तेमाल के लायक नहीं हैं। इनमें हर समय गंदगी रहती है। पानी अपने आप चलता रहता है। आम आदमी अस्पताल के टायलट का इस्तेमाल करने से परहेज करता है। लोग अस्पताल परिसर में ही खुले में लघु शंका और कई बार तो शौच के लिए जाते देखे जा सकते हैं। ऐसे में अगर अस्पताल परिसर में बने आधुनिक टायलट काम्पलैक्स पर 2 साल से लटका ताला खुल जाए तो लोगों को काफी सुविधा होगी। इससे अस्पताल में दाखिल मरीजों के परिजनों के साथ-साथ राह चलते लोगों को भी सुविधा होगी। 

आम जन की परेशानी को देखते हुए स्थायी लोक अदालत का खटखटाया था दरवाजा

आम लोगों की परेशानी को देखते हुए उन्होंने स्थायी लोक अदालत में सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक शौचालय पर ताले लटकाए जाने के मामले को उठाया था। शुक्रवार को स्थायी लोक अदालत में इसी मामले की सुनवाई थी। सुनवाई के दौरान उपायुक्त तथा सिविल सर्जन की तरफ से सामान्य अस्पताल प्रशासन में बने सार्वजनिक टायलट के ताले खुलवाने का ब्यान दर्ज करवाए हैं। 
विनोद बंसल
एडवोकेट, जींद

ताले खुलवाए जाने के ब्यान करवाए गए हैं दर्ज

शुक्रवार को स्थायी लोक अदालत में सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक शौचालय पर लगे ताले की मामले की सुनवाई के दौरान उपायुक्त तथा सिविल सर्जन की तरफ से शौचालय के ताले खुलवाए जाने के ब्यान दर्ज करवाए गए हैं। 
विकास देशवाल
एडवोकेट, जींद

शनिवार को खुलवा दिए जाएंगे ताले

आज वह छुट्टी पर हैं। इस कारण आज अस्पताल में बने टायलट का ताला नहीं खुल पाया है। शनिवार से वह टायलट के ताले खुलवाकर भविष्य में इसके रखरखाव के लिए एक सफाई कर्मचारी की यहां पर नियमित रूप से ड्यूटी लगा देंगे। 
डा. धनकुमार, सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद 


देशभर के कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान की मुहिम से रू-ब-रू करवाएंगे म्हारे किसान

कीट कमांडों किसानों का 8 सदस्यीय दल राष्ट्रीय सैमीनार में भाग लेने के लिए रवाना

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जींद जिले से शुरू हुई थाली को जहर मुक्त बनाने की मुहिम को देशभर में फैलाने के लिए वीरवार को जींद के कीट कमांडों किसानों का 8 सदस्यीय दल कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी के नेतृत्व में उत्तराखंड के पंतनगर के लिए रवाना हुआ। जींद जिले के यह कीट कमांडो किसान पंतनगर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित 2 दिवसीय राष्ट्रीय सैमीनार में मौजूद देशभर के कृषि वैज्ञानिकों को अपने अनुभव से रू-ब-रू करवाएंगे। खाप पंचायत की तरफ से किसानों की इस मुहिम की वकालत करने के लिए बराह तपा बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा भी इस दल के साथ गए हैं।
फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों के कारण बेमौत मर रहे बेजुबान कीट और दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को देखते हुए कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने जींद जिले के किसानों के साथ मिलकर वर्ष 2008 में कीट ज्ञान की अलख जगाई थी। यह किसान पिछले 5 वर्षों से जींद जिले के साथ-साथ प्रदेश तथा आस-पास के प्रदेशों के किसानों को भी कीट ज्ञान की तालीम दे रहे हैं। इसी के चलते इन किसानों को यहां के लोग कीट कमांडों किसानों के नाम से जानते हैं। कीट कमांडों किसानों का कहना है कि कीटों को न तो काबू करने की जरूरत है और न ही नियंत्रित करने की। अगर जरूरत है तो बस कीटों को पहचानने और इनके क्रियाकलापों को जानने की। कीट कमांडों किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू, सुरेश, जयभगवान, सुरेश, रमेश, बलवान इत्यादि का कहना है कि कीट ही कीटों को नियंत्रण करने में सबसे बड़ा हथियार हैं। इसलिए इनको काबू करने के लिए किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरूरत नहीं है। कीट कमांडों किसानों द्वारा कीटों पर किए गए अनोखे प्रयोग को देखते हुए दूसरे प्रदेश के किसानों के साथ-साथ कई कृषि वैज्ञानिक भी जींद का दौरा कर चुके हैं तथा इन किसानों के इस शोध पर अपनी सहमती की मोहर लगा चुके हैं। इन किसानों की इस अनोखी मुहिम को देखते हुए अब उत्तराखंड के पंतनगर स्थित कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से इन किसानों को बुलावा भेजा गया है। पंतनगर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में 15 व 16 नवम्बर को आयोजित 2 दिवसीय राष्ट्रीय सैमीनार में देशभर के कृषि वैज्ञानिक भाग लेंगे। इस सैमीनार में यह कीट कमांडों कृषि वैज्ञानिकों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए कीटों पर किए गए इस अनोखे प्रयोग से कृषि वैज्ञानिकों को रू-ब-रू करवाएंगे, ताकि देशभर के किसानों को जागरूक कर थाली को जहरमुक्त बनाने की इस मुहिम को शिखर तक पहुंचाया जा सके। वीरवार को जींद से रवाना हुए कीट कमांडों के इस दल का नेतृत्व कृषि विभाग के कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी कर रहे हैं। प्रदेशभर की खाप पंचायतों द्वारा भी किसानों की इस मुहिम को काफी करीब से देखा तथा समझा गया है। इसलिए खापों की तरफ से इस मुहिम की वकालत करने के लिए बराह तपा बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा भी इस टीम के साथ गए हैं। ताकि खाप पंचायत भी जनहित की इस मुहिम में अपना योगदान दर्ज करवा सकें।

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

जहरमुक्त खेती की मुहिम को शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं किसान : डा. सिहाग


विधिवत रूप से हुआ साप्ताहिक बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला का समापन

कहा, रंग लाने लगी डा. सुरेंद्र दलाल की मुहिम 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विभाग जींद के उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कीटनाशक रहित खेती की जो मुहिम शुरू की थी कीट कमांडों किसान उस मुहिम को सफलता के शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि आज उनकी यह मुहिम रंग लाने लगी है और जींद जिले के साथ-साथ दूसरे जिलों के किसान भी इन किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर जहरमुक्त खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। डा. सुरेंद्र दलाल ने जहरमुक्त थाली का जो सपना देखा था बहुत जल्द वह सपना साकार होगा और जहरयुक्त भोजन से होने वाली शारीरिक बीमारियों से लोगों को छुटकारा मिलेगा, वहीं कीटनाशकों पर अनावश्यक रूप से बढ़ते खर्च से भी किसानों को निजात मिलेगी। डा. सिहाग वीरवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला के समापन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। राजपुरा भैण गांव के पूर्व सरपंच टेकराम ने डा. सिहाग को पगड़ी पहनाकर तथा स्मृति चिह्न भेंट कर किसानों को दिए जा रहे योगदान के लिए उनका आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर उनके साथ बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के उप-प्रधान बिल्लू खांडा, जिला प्रधान महेंद्र घीमाना, ईश्वर भी मौजूद थे।
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि 22 जून से इस पाठशाला का शुभारंभ हुआ था और हर सप्ताह के शनिवार को पाठशाला का आयोजन किया जाता था। 18 सप्ताह तक चलने वाली इस पाठशाला में दूसरे जिलों के किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस पाठशाला का भ्रमण कर किसानों की मुहिम में अपनी भागीदारी दर्ज करवाई है। डा. सैनी ने पाठशालाओं में किसानों द्वारा किए गए कार्यों तथा पौधों का कीट के साथ क्या रिश्ता है और कीट फसल में क्यों आते हैं आदि विषयों पर विस्तार से जानकारी दी। डा. सैनी ने कहा किकीटों को काबू करने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो कीटों को पहचाने और उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करने की और यह काम किसानों को खुद ही करना होगा। राजपुरा भैण के किसान रामस्वरूप ने पाठशाला में अपना अनुभव रखते हुए बताया कि उसने कपास का एक एकड़ पाठशाला को समॢपत किया हुआ है और कीट कमांडों किसानों की मानकर उसने अपने इस एक एकड़ में एक छटांक भी जहर का प्रयोग नहीं किया है, जबकि उसके साथ लगते कपास की 2 एकड़ फसल में उसने कीटनाशकों का प्रयोग किया है लेकिन आज भी बिना जहर की कपास की फसल से दूसरी फसलों के बराबर का उत्पादन मिल रहा तथा इस एक एकड़ पर उसका दूसरी फसलों से खर्च भी काफी कम हुआ है। पाठशाला के समापन पर बाहर से आए सभी गणमान्य लोगों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सभी किसानों को अपनी खेती का लेखा-जोखा रखने के लिए डायरी तथा पैन भी भेंट किए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई किसानों की मुहिम पर मोहर

बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने एक अंग्रेजी न्यूज पेपर का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कीट कमांडों की मुहिम पर अपनी मोहर लगाई है। ढांडा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जनता को जहर रहित खाना उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को इस तरफ प्रयास करने की जरुरत है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि देश में पेस्टीसाइड एक्ट की पालना नहीं हो रही है और इस सब के लिए सरकार जिम्मेदार है। ढांडा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साबित हो गया है कि जींद के किसान जिस मुहिम को पिछले 6 वर्षों से अपने बलबूते पर चला रहे हैं, वह एक दिन बहुत बड़ी क्रांति की शुरूआत है और देश को इसकी बहुत जरुरत है।

भैंस बेच कर उतारा कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज

पाठशाला में अपने अनुभव किसानों के साथ सांझा करते हुए गांव निडाना के किसान सुरेंद्र ने भावूक होते हुए कहा कि एक वह समय था जब उसने अपनी भैंस बेचकर कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज उतारा था। सुरेंद्र ने बताया कि वह पैदावार बढ़ाने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। वर्ष 2002 में एक एकड़ कपास की फसल में उसका खर्च 16 हजार था लेकिन इतने ज्यादा कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी उसकी पैदावार महज 10 से 12 मण की होती थी। फसल में अधिक खर्च होने तथा पैदावार कम होने के कारण उस पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रही था। इसी से परेशान होकर उसने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग छोड़ दिया था। सुरेंद्र ने बताया कि वर्ष 2012 में वह कीट कमांडों किसानों के संपर्क में आया। अब वह पूरी तरह से जहरमुक्त खेती करता है और उसकी पैदावार भी लगातार बढ़ रही है।

याद आए डा. सुरेंद्र दलाल

पाठशाला के समापन अवसर पर किसान डा. सुरेंद्र दलाल को याद कर भावूक हो गए थे। किसानों ने बताया कि जिस कीट ज्ञान की बदौलत आज उन्होंने जहरमुक्त खेती को अपना कर कीटनाशकों पर होने वाले खर्च से मुक्ति पाई है, उस कीट ज्ञान की खोज डा. सुरेंद्र दलाल ने की थी। सरकारी पद पर रहते हुए उन्होंने कभी भी अपनी नौकरी और स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर किसानों को कीट ज्ञान की तालीम देकर उन्हें जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित किया और आज उनकी यह मेहनत रंग ला रही है।
 पाठशाला के समापन अवसर पर किसानों को सम्बोधित करते डी.डी.ए. डा. रामप्रताप सिहाग।

 डा. कमल सैनी को पगड़ी पहनाकर तथा किसान को डायरी पैन देकर सम्मानित करते बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा। 


सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

अज्ञानता के कारण कृषि से भंग हो रहा है किसानों का मोह

कहा, कृषि पर आधारित है देश की जी.डी.पी. और रोजगार  

कपास को कहते हैं कीड़ों का स्वर्ग

नरेंद्र कुंडू
जींद। सफीदों के लैंडमोरगेज बैंक के चेयरमैन एवं नव वैदिक कन्या विद्यापीठ के संस्थापक बलबीर आर्य ने कहा कि देश को 20 प्रतिशत जी.डी.पी. तथा 65 प्रतिशत रोजगार कृषि देती है लेकिन इसके बावजूद भी कृषि बुरे दौर से गुजर रही है और किसानों का कृषि से मोह भंग हो रहा है। कोई भी किसान अपनी फसल की पैदावार से संतुष्ट नहीं है, क्योंकि पैदावार बढ़ाने के लिए उसने खेती पर होने वाले खर्च को भी बढ़ाया है। बलबीर आर्य शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, चहल खाप के प्रतिनिधि दलीप सिँह चहल, भनवाला खाप के प्रधान महा सिँह भनवाला, जोगेंद्र कुंडू तथा कैथल जिले के कुछ किसान भाग लेने पहुंचे थे। 
बलबीर आर्य ने कहा कि खेती पर खर्च बढऩे का प्रमुख कारण किसान का भयभीत तथा भ्रमित होना है। पहले तो किसान को कीटों का भय दिखाकर उसे भयभीत किया जाता है और फिर उसे भिन्न-भिन्न किस्म के कीटनाशकों से उसकी समस्या के समाधान का सपना दिखाकर उसे भ्रमित किया जाता है। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि कपास की फसल को कीड़ों का स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि कपास की फसल में कीड़ों के लिए हर किस्म का भोजन उपलब्ध होता है। डा. सैनी ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि बिना कीटनाशक के कपास की फसल हो सकती है। जब कपास की फसल 
 कृषि अधिकारी के साथ सवाल-जवाब करते लैंड मोरगेज बैंक के चेयरमैन व किसान।
बिना कीटनाशक के हो सकती हैं तो फिर दूसरी फसलें भी बिना कीटनाशकों के पैदा हो सकती हैं। डा. सैनी ने कहा कि इसी समय धान की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशक प्रयोग करने की बजाए किसान खेत में नमी की मात्रा बरकरार रखें। इससे बीमारियों को आगे बढऩे का मौका नहीं मिल पाएगा। क्योंकि बीमारियों को फैलाने में कीड़े नहीं जीवानु, विषाणु और फफुंद तथा तापमान सहायक हैं। पाठशाला के अंत में सभी खाप प्रतिनिधियों व अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। 

राख से हुई थी कीटनाशकों की खोज


पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित करते किसान

डा. सैनी ने कहा कि 1934 में भारत में पेस्टीसाइड का पहला कारखाना स्थापित हुआ था। इससे पहले पेस्टीसाइड दूसरे देशों से मंगवाया जाता था। डा. सैनी ने कहा कि पहले किसान फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए फसल में राख का प्रयोग करते थे। पौधों पर राख डालने से पत्तों का टेस्ट चेंज हो जाता था, जिस कारण कीट पत्तों को नहीं खाते थे। इसके अलावा राख से पौधे को काफी मात्रा में पोषक तत्व भी मिलते थे। यहीं से कीटनाशक की खोज हुई और कृषि वैज्ञानिकों ने राख में मिलाकर फसल में डालने वाली बी.एच.सी. की खोज की थी। यह एक जहरीला कीटनाशक था, जो पौधे में कड़वास पैदा कर देता था। बाद में स्प्रे के माध्यम से कीटनाशकों का छिड़काव फसलों में किया जाने लगा। 1965 के बाद खेती में बाजार का हस्तक्षेप बढ़ता चला गया।

पंजाब बना कैंसर की राजधानी

किसान चतर ङ्क्षसह, बलवान, महाबीर, कृष्ण ने कहा कि खेती की क्षेत्र में दूसरे प्रदेशों की बजाए पंजाब प्रदेश एडवांस है। खेती में जो भी नई तकनीक आई, पंजाब ने सबसे पहले उस तकनीक को अपनाया। चाहे वह कीटनाशकों का प्रयोग हो या नई-नई मशीनरी का प्रयोग। इसके चलते ही पंजाब में फसलों में कीटनाशकों का खूब प्रयोग हुआ और आज परिणाम हमारे सामने हैं। कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण ही आज पंजाब में कैंसर के मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज देश में पंजाब को कैंसर की राजधानी के नाम से जाना जाता है। अगर कीटनाशकों के प्रयोग का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो बहुत जल्द यही हालात हरियाणा में भी होने वाले हैं।  

कपास में यह-यह कीट थे मौजूद 

पाठशाला के आरांभ में कीटाचार्य किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन किया और फसल में मौजूद कीटों का आकलन कर उनकी संख्या को अपनी बही में दर्ज किया। कीटों के आकलन के दौरान कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या 0.9, हरा तेला 0.6 तथा चूरड़ा शून्य था, जो कि नुक्सान पहुंचाने के आॢथक कागार से काफी नीचे है। इसके अलावा शाकाहारी कीटों को खाने वाले मांसाहारी कीटों में हथजोड़ा, लेडी बर्ड बीटल, मकड़ी, क्राइसोपा, अंगीरा, इरो, इनो भी काफी संख्या में फसल में मौजूद थी। 


शौक पूरा के लिए सरकारी नौकरी को मार दी ठोकर

आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है सिवाहा का रोहताश

नरेंद्र  कुंडू
जींद। महंगाई व बेरोजगारी के इस दौर में लोग जहां नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं और अपने शौक के विपरित भी जाकर काम करने को मजबूर हैं, वहीं एक शख्स ऐसा भी है, जिसने अपने शौक को पूरा करने के लिए सरकारी नौकरी को ही ठोकर मार दी। जींद जिले के सिवाहा गांव निवासी रोहताश ने मूर्ति कला के अपने शौक को पूरा करने के लिए आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ दी। 
मूर्ति कला के क्षेत्र में रोहताश का आज कोई शानी नहीं है। अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ रोहताश अपनी कला के दम पर ही अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है और रोहताश द्वारा निर्मित बहुत सी मूर्तियां तो आज जींद जिले ही नहीं बल्कि जींद जिले से बाहर के मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।   
गांव सिवाहा निवासी रोहताश को पढ़ाई के  दौरान मूर्ति निर्माण का शौक लगा था। रोहताश के अंदर छिपे एक मूर्ति कलाकार को निखाकर बाहर निकालने में उसकी मदद की उसके ड्राइंग अध्यापक महेंद्र भनवाला ने। रोहताश ने छठी कक्षा में पढ़ाई के दौरान अपने गुरु महेंद्र भनवाला से ड्राइंग की बारीकियों को सीखा और अपने अंदर के कलाकार को पहचान कर कागज के टुकड़ों पर मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया। कागज के टुकड़ों के बाद रोहताश ने कच्चे रंगों से मूर्तियों का निर्माण शुरू किया लेकिन जैसे-जैसे समय ने करवट ली और मिट्टी का स्थान सीमैंट ने लेना शुरू किया तो रोहताश ने भी अपने कार्य में परिवर्तन करते हुए सीमैंट से मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया। 12वीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद 1989 में रोहताश ने आई.टी.बी.पी. में सिपाही के पद पर नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन रोहताश के अंदर बैठे मूर्ति कलाकार को यह रास नहीं आया। आई.टी.बी.पी. में एक साल तक देश सेवा करने के बाद 1990 में रोहताश ने नौकरी छोड़ दी। सरकारी नौकरी छोडऩे के बाद रोहताश ने अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्तियों का निर्माण कर रहा है लेकिन इस दौरान रोहताश को कभी भी अपने
मूर्ति को अंतिम रुप देता मूर्ति कलाकार रोहताश सिंह।

मूर्ति कलाकार रोहताश द्वारा निर्मित शिव की मूॢतयां।
नौकरी छोडऩे के फैसले पर रतीभर भी अफशोस नहीं हुआ। रोहताश अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ आज अपनी इसी कला के दम पर अपने परिवार का पालन-पोषण भी अच्छे तरीके से कर रहा है। इतना ही नहीं रोहताश हर किस्म की मूर्तियां बनाने का एक्सपर्ट है। 

एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का लग जाता है समय  

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि मूर्ति निर्माण का कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता है। मूर्ति के निर्माण में सीमैंट का प्रयोग होने के कारण मूर्ति का थोड़ा-थोड़ा निर्माण करना पड़ता है। इसलिए एक मूर्ति के निर्माण में काफी समय लग जाता है। एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का समय लग जाता है। 

मुनाफे के नहीं लागत के आधार पर तय होती है कीमत 

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि वह मुनाफे के लिए नहीं बल्कि अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्तियों का निर्माण करता है। रोहताश का कहना है कि शौक की कोई कीमत नहीं होती। इसलिए वह अपनी मूर्तियों की कीमत मुनाफा लेने के लिए नहीं सिर्फ लागत पूरी करने के लिए लागत के आधार पर ही मूर्ति की कीमत तय करता है। 
 


अंधाधुंध कीटनाशकों के इस्तेमाल से बढ़ रहा है कैंसर का प्रकोप

फसल में नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर हैं शाकाहारी कीट

नरेंद्र कुंडू 
जींद। हाल ही में हुए एक ताजा सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में कपास बैल्ट वाले क्षेत्र में हर रोज औसतन 18 लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बन रहे हैं। हरियाणा में तो स्वास्थ्य विभाग के पास कैंसर के वास्तुविक स्थिति का सही रिकार्ड ही नहीं है। यू.एस.ए. की पर्यावरण संरक्षण एजैंसी के अनुसार दुनिया में विभिन्न किस्म के पेस्टीसाइडों में से 68 किस्म के ऐसे फंजीनाशक, फफुंदनाशक, खरपतवार नाशक और कीटनाशकहैं जो कैंसर कारक सिद्ध हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी भारत में इन पेस्टीसाइडों का धड़ले से प्रयोग हो रहा है। यह बात कीटाचार्य किसान सुरेश अहलावत ने राजपुरा भैण गांव में चल रही डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर कीटाचार्य किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन भी किया।
अहलावत ने कहा कि तम्बाकू को कैंसरकारक बताकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। जबकि वास्तविकता कुछ ओर ही है। उन्होंने कहा कि पंजाब में तो तम्बाकू का सेवन बिल्कुल नहीं होता और वहां की महिलाएं तो तम्बाकू के सेवन से कोसों दूर हैं लेकिन फिर भी वहां कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसमें पुरुषों की बजाए महिलाओं की संख्या ज्यादा है। पंजाब में एक लाख लोगों के पीछे 359 महिलाएं और 325 पुरुष कैंसर से पीडि़त हैं। किसान सत्यवान ईगराह, कृष्ण ईंटल, प्रकाश भैण, सुरेंद्र निडाना, रणबीर ईगराह, दिनेश रधाना ने फसल में कीटों के अवलोकन के बाद बताया कि कपास के इस खेत में सफेद मक्खी की औसतन संख्या 1.9, हरेतेले की संख्या 0.6 और चूरड़े की संख्या शून्य है, जो कि फसल में नुक्सान पहुंचाने के स्तर से कोसों दूर है। उन्होंने बताया कि इन शाकाहारी कीटों को कंट्रोल करने के लिए इस समय फसल में क्राइसोपा के बच्चे, इनो, इरो, सिंगु बुगड़ा, बिन्दुआ, दीदड़ बुगड़ा, हथजोड़ा, भूरी पुष्पक, बीटल, मकड़ी सिरफड़ मक्खी के बच्चे मौजूद हैं। इसकेअलावा शाकाहारी सूबेदार मेजर कीटों में मिलीबग, अल, माइट, लाल व काला बानिया तथा तम्बाकु वाली सूंडी भी मौजूद हैं। किसानों ने बताया कि सफेद मक्खी के प्रकोप के बाद फसल के पत्ते ऊपर से मुड़ जाते हैं और पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। हरे तेले के प्रकोप से पत्ते नीचे की तरफ मुड़ जाते हैं और पत्ते के चारों तरफ लाल रंग के निशान दिखाई देने लगते हैं। उन्होंने कहा कि आज किसानों के सामने कई गंभीर समस्याएं हैं। जब तक किसान को खुद का ज्ञान नहीं होगा, तब तक किसान इन समस्याओं से पार नहीं पा सकता। इसलिए किसान को खुद का ज्ञान पैदा करना होगा और खुद के ही बीज तैयार करने होंगे।

 फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान। 

कीटों की मास्टरनियां अब गीतों के माध्यम से किसानों को देंगी जहरमुक्त खेती का संदेश

दूरदर्शन पर गीत गाती नजर आएंगी कीटों की मास्टरनियां 

दूरदर्शन की टीम ने गीतों की रिकार्डिंग के लिए महिलाओं को दिया निमंत्रण

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटों की मास्टरनियां अब गीतों के माध्यम से देश के किसानों को जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित करेंगी। इसके लिए इन मास्टरनियों द्वारा कीटों के पूरे जीवनचक्र पर आधा दर्जन के करीब मार्मिक गीतों की रचना की गई हैं। महिलाओं के गीतों की रिकार्डिंग के लिए दूरदर्शन हिसार के निदेशक द्वारा महिलाओं को हिसार स्थित दूरदर्शन के स्टूडियो में आमंत्रित किया गया है। गीतों की रिकार्डिंग के लिए रविवार को निडानी, निडाना व ललितखेड़ा गांव से 2 दर्जन के करीब महिलाएं स्टूडियों में जाएंगी।
जींद जिले में पिछले लगभग 7-8 वर्षों से जहरमुक्त खेती की मुहिम चल रही है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने में पुरुष किसानों के साथ-साथ महिला किसान भी अहम भूमिका निभा रही हैं। निडानी, निडाना, ललितखेड़ा व रधाना गांव से लगभग 100 से भी ज्यादा महिलाएं इस मुहिम के साथ जुड़ी हुई हैं। जींद जिले के लोग इन वीरांगनाओं को कीटों की मास्टरनियों के नाम से जानते हैं। जींद जिले में चल रही जहरमुक्त खेती का मुख्य उद्देश्य किसानों को कीटों के बारे में जानकारी देकर कम खर्च से अधिक पैदावार देने के साथ-साथ खाने की थाली को जहरमुक्त करना है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटों की इन मास्टरनियों द्वारा कीटों पर अधारित लगभग आधा दर्जन गीत तैयार किए गए हैं। इन गीतों में महिलाओं ने कीट हमारे खेत में क्यों आते हैं?, कीटों का फसल में क्या महत्व है?, कीटों के पूरे जीवनचक्र तथा क्रियाकलापों का विस्तार से वर्णन किया गया है। कीटाचार्या अंग्रेजो, राजवंती, सविता, शीला, नारो, सुषमा, नीलम का कहना है कि किसानों द्वारा जानकारी के अभाव में फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है। इसके चलते आज मानव जाति पर एक बहुत बड़ा खतरा मंडराने लगा है। मनुष्य को भिन्न-भिन्न किस्म की गंभीर बीमारियों ने अपनी चपेट में ले लिया है। कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी के बढऩे के पीछे भी फसलों में पेस्टीसाइड का अधिक प्रयोग करना पाया गया है। उन्होंने बताया कि फसलों में अधिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से जहां हमारा खान-पान व वातावरण दूषित हो रहा है, वहीं किसान के सिर पर फसलों में मौजूद लाखों किस्म के बेजुबान कीटों की हत्या के पाप का बोझ भी बढ़ रहा है। किसान यह सब इसलिए कर रहा है क्योंकि किसान इस चीज की जानकारी नहीं है। किसान के पास आज खुद का ज्ञान नहीं है और दूसरों के ज्ञान केे बूते ही किसान आज इस अंतहीन जंग के मैदान में डटा हुआ है। महिला किसानों का कहना है कि हमारी संस्कृति में महिलाओं के गीतों का बहुत महत्व है। विवाह-शादी जैसे शुभ कार्यों में महिलाओं द्वारा मंगल गीत गाए जाते हैं। बिना महिलाओं के गीतों के इस तरह के शुभ कार्य अधुरे से नजर आते हैं। जींद जिले के किसानों द्वारा जहरमुक्त खेती की जो मुहिम चलाई गई है, वह एक जनहित का कार्य है। इस मुहिम में समस्त मानव जाति की भलाई छिपी हुई है। जनहित के कार्य से शुभ कोई कार्य नहीं होता। इसलिए उन्होंने इस शुभ कार्य को पूरा करने के लिए इन गीतों की रचना की है। गीतों के माध्यम से वह देश के किसानों को जहरमुक्त खेती का संदेश देना चाहती हैं। ताकि अधिक से अधिक किसानों को प्रेरित कर इस मुहिम से जोड़ा जा सके।

यह है महिलाओं द्वारा रचित गीत

'पिया जी तेरा हाल देख कै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधे ऊपर जहर की टंकी मेरै कसुती रड़कै हो'। 'किडय़ां का कट रहया चालाए ए' मैनै तेरी सूं देखया ढंग निराला ए मैनै तेरी सूं'। 'म्हारी पाठशाला में आईए हो-हो नंनदी के बीरा तैनै न्यू तैनै न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा'। 'मैं बिटल हूं मैं किटल तुम समझो मेरी महता को'। 'ए बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है'। 'निडाना-खेड़े की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है'।  'अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है' इत्यादि।

दूरदर्शन के इतिहास में जुड़ेगा नया अध्याय 

जींद जिले के किसानों ने एक अनोखी मुहिम शुरू की है। इस मुहिम में महिलाओं का अहम योगदान हैं। महिलाओं द्वारा आज तक जितने भी गीत गाए जाते थे, वह सभी हमारे आम जीवन पर आधारित थे लेकिन यहां की महिलाओं ने कीटों के जीवन पर गीत लिखकर एक अलग तरह की शुरूआत की है। इन गीतों में महिलाओं ने यह दर्शाया है कि कीटों का हमारी फसलों में क्या महत्व है। महिलाओं की जनहित की भावना को देखते हुए दूरदर्शन ने उन्हें गीतों की रिकार्डिंग के लिए आमंत्रित किया है। इस तरह के गीतों की रिकार्डिंग कर दूरदर्शन के इतिहास में भी एक नया अध्याय जुड़ेगा। इसेस पहले दूरदर्शन पर इस तरह के किसी कार्यक्रम की रिकार्डिंग नहीं की गई है।
जिले सिँह जाखड़, डायरैक्टर
दूरदर्शन, हिसार 

विदेश से आई हिंदी कवि को तर्क-वितर्क की खुली चुनोती

कुमार विश्वास द्वारा फेसबुक पर जाट समुदाय और खापों के प्रति की जा रही हैं गलत टिप्पणियां

नरेंद्र कुंडू 
जींद। मशहूर हिंदी कवि एवं आप पार्टी के कार्यकर्त्ता कुमार विश्वास द्वारा रोहतक में हुई ऑनर किलिंग के मामले में सोशल नैटवॢकंग साइट फेशबुक पर जाट समुदाय और खाप पंचायतों पर की जा रही उल-जुलुल टिपणियों के खिलाफ कड़ा संज्ञान लेते हुए फ्रांस में ई-मार्कीटिंग कंसलटैंट के पद पर कार्यरत जींद जिले के गांव निडाना निवासी फूलकुमार ने कुमार विश्वास को पब्लिक स्टेज पर तर्क-वितर्क के लिए आमंत्रित किया है। फूलकुमार का कहना है कि किसी परिवार विशेष की गलती के कारण पूरे समुदाय के खिलाफ गलत टिपणियां ठीक नहीं हैं।
फूलकुमार ने फ्रांस से इंटरनैट के माध्यम से भेजी एक ई-मेल में कहा कि वह न तो प्रेम विवाह के खिलाफ  हैं और न ही ऑनर किलिंग के समर्थक हैं लेकिन जब समाज में एक सभ्य छवि तथा महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले कुमार विश्वास जैसे कविता पाठक, जिसके वह खुद कायल हैं भी ऐसे गैर जिम्मेदाराना ब्यान-बाजी कर रहे हैं तो, वह खुद को उन्हें खुले तौर पर तर्क-वितर्क से रोक नहीं पाए। फूलकुमार ने कहा कि पिछले दिनों रोहतक में हुई एक ऑनर किलिंग की घटना पर कुमार विश्वास द्वारा फेसबुक पर जाट समुदाय और खापों के खिलाफ गलत टिप्पणियां की जा रही हैं। रोहतक में हुई ऑनर किलिंग समाज के लिए बेहद शर्मनाक है लेकिन इस तरह की घटना के साथ किसी जात या किसी समुदाय को जोडऩा उससे भी ज्यादा शर्मनाक है।
 फूलकुमार का फोटो।   
फूलकमार ने देश की राजधानी दिल्ली में हुए आरुषी हत्याकांड तथा विगत वर्ष पानीपत में हुई इंदू शर्मा की ऑनर किलिंग के मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि यह दोनों कांड भी तो ऑनर किलिंग थे, जो अभी तक अदालत में विचाराधीन है। शायद यह दोनों घटनाएं एक समाज विशेष में नहीं हुई। इसलिए इनको ले किसी ने जाति या सामाजिक संस्थाओं पर टिप्पणी नहीं की। उक्त दोनों घटनाओं से यह साफ हो रहा है कि ऑनर किलिंग जैसी घटना किसी विशेष कास्ट या वर्ग की नहीं बल्कि छोटी मानसिकता या मामले का सही तरीके से नहीं संभाल पाने का परिणाम है। अगर इस तरह के मामालों को ठंडे दिमाग व सही सोच से निपटाने की कोशिश की जाए तो इसका आसानी से हल निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि रोहतक में हुई ऑनर किलिंग की घटना न तो जाट समुदाय की देन है और न ही किसी खाप पंचायत की। यह घटना दोनों परिवारों की अपनी अल्पमति और मामले को ठीक से नहीं संभाल पाने का नतीजा है। जाट समाज और खाप पंचायतें प्रेम विवाह के खिलाफ नहीं हैं। किसी परिवार विशेष की नादानी के कारण पूरे जाट समाज या खापों को बदनाम करना कहां तक ठीक है? फूलकुमार ने कुमार विश्वास को चैलेंज करते हुए कहा कि अगर वह वास्तव में प्रेम विवाह के पक्षधर हैं और ऑनर किलिंग के खिलाफ हैं तो विवाह के समय लड़का-लड़की की कुंडली मिलाने और गौत्र मिलाने की रीति-रिवाज को, समाचार पत्रों में ब्याह-शादी के जाति धर्म की प्राथमिकता के आधार पर दिए जाने वाले विज्ञापनों को क्यों नहीं बंद करवाते। फूलकुमार ने कहा कि कुमार विश्वास किसी भी समय, किसी भी माध्यम से उसके साथ तर्क-वितर्क कर सकते हैं। वह हर वक्त इसके लिए तैयार हैं। निडाना हाइट्स वैबसाइट के ऑनर फूलकुमार ने कहा कि खाप पंचायतों का एक सामाजिक चेहरा भी है। अगर खाप पंचायतों के इतिहास पर नजर डाली जाए तो खापों ने बड़े-बड़े विवादों को भी सुलझाया है। खाप पंचायतों का पूरा इतिहास उन्होंने अपनी वेबसाइट पर भी डाला हुआ है। खाप एक संस्था नहीं, बल्कि एक सामाजिक गुण भी है, ऐसा गुण कि जो बुद्धिजीव जनता की नब्ज पकडऩे का हुनर रखते हैं। उन्होंने कहा कि जनता की इस नब्ज को पकडऩे के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तक सारी उम्र शोध करते रह जाते हैं लेकिन कभी पकड़ नहीं पाते।

अब दूरदर्शन में भी सुनाई देगा जींद के किसानों का जहरमुक्त खेती का संदेश

दूरदर्शन की टीम ने किसानों के अनुभव की रिकार्डिंग के कार्यक्रम को दिया फाइनल टच

नरेंद्र कुंडू  
जींद। जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई जहरमुक्त खेती की मुहिम से देशभर के किसानों को रू-ब-रू करवाने के लिए कीटाचार्य किसानों के अनुभव को कैमरे में कैद करने के लिए जींद पहुंची दिल्ली दूरदर्शन की टीम ने राजपुरा भैण गांव के खेतों में जाकर कीटाचार्य किसानों के अनुभवों और क्रियाकलापों को शूट किया। इस दौरान किसानों ने दूरदर्शन की टीम को कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों क्रियाकलाप भी दिखाए। जींद जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई इस अनोखी मुहिम को देखकर दिल्ली दूरदर्शन की टीम भी इन किसानों की कायल हो गई। इस अवसर पर कृषि विभाग से सेवानिवृत्त एस.डी.ओ. राजपाल सुरा भी हांसी से किसानों की एक टीम के साथ यहां पहुंचे थे।
जींद जिले के किसानों द्वारा कीट ज्ञान के दम पर की जा रही जहरमुक्त खेती के चर्चे सुनकर दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में वीरवार को ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। यहां पर टीम के सदस्यों ने महिलाओं से कीटों के बारे में विस्तार से चर्चा की और उनके क्रियाकलापों को कैमरे में कैद किया। इसके बाद टीम शनिवार को राजपुरा भैण गांव के खेतों में पहुंची और यहां कीटाचार्य किसानों से भी कीट ज्ञान पर चर्चा की। टीम के सदस्यों ने शनिवार देर सायं तक किसानों के क्रियाकलापों को सांझा करते हुए दर्जनभर से भी ज्यादा किसानों के अनुभवों को कैमरे में कैद किया। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, मनबीर ईगराह, बलवान, ईंटलकलां के जयभगवान, रणधीर सिंह ने बताया कि वह पिछले 5 वर्षों से कीटनाशक रहित खेती कर रहे हैं। बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए उनकी पैदावार उन किसानों से ज्यादा आ रही है, जो कीटनाशकों का
कीटों का बही खाता तैयार करते टीम के सदस्य। 
अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस तरह वह कम खर्च से अधिक पैदावार तो ले ही रहें हैं, साथ-साथ अपने परिवार की थाली से जहर के स्तर को कम करने का प्रयास भी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह अब तक 204 किस्म के कीटों की पहचान कर चुके हैं, जिनमें 43 किस्म के शाकाहारी तथा 161 किस्म के मांसाहारी शामिल हैं। फसल में शाकाहारी कीटों की तादाद मांसाहारी कीटों से काफी कम होने के कारण मांसाहारी कीट अपने खुद ही शाकाहारी कीटों को कंट्रोल कर लेते हैं। इसलिए उन्हें फसल में कीटनाशकों के प्रयोग की जरुरत नहीं है। किसानों ने बताया कि कीटनाशकों का व्यापार भय व भ्रम के दम पर चल रहा है। पहले तो किसान को कीटों से फसल में होने वाले नुक्सान का झूठा भय दिखाया जाता है और फिर उन्हें भ्रमित कर फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल करना सिखाया जाता है लेकिन जींद जिले के लगभग 2 दर्जन गांवों के किसानों ने अपना खुद का ज्ञान पैदा कर इस भय व भ्रम के जाल को तोडऩे का काम किया है। आज जींद जिले में 200 से ज्यादा पुरुष किसान और 100 से ज्यादा महिला किसान इस मुहिम के साथ जुड़ी हुई हैं। जींद जिले में एक हजार एकड़ कपास और एक हजार एकड़ के लगभग धान की ऐसी खेती की जा रही है, जिसमें एक छटांक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया गया है। कीट ज्ञान के बल पर उन्होंने यह सिद्ध कर के दिखा दिया है कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। सिरसाखेड़ी गांव से आए किसान कर्मबीर ने बताया कि वह भी इस वर्ष से इस मुहिम के साथ जुड़ा है और उसने इन पाठशालाओं में आकर ऐसी काफी ज्ञानवर्धक जानकारियां हासिल की हैं, जिनके बारे में एक आम किसान कभी सोच भी नहीं सकता। इस दौरान किसानों ने दूरदर्शन की टीम को कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलाप भी दिखाए। बाद में टीम के सभी सदस्यों को स्मृति चिह्न भेंट कर जींद पहुंचने पर उनका आभार व्यक्त किया।
 कीटाचार्य किसानों के अनुभव शूट करते दूरदर्शन की टीम के सदस्य।