शनिवार, 5 अप्रैल 2014

जहरीले पानी से मुक्ति दिलवाने की तैयारी

नहरी पानी मुहैया करवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग ने तैयार किया प्रारुप

पानी में बढ़ते फ्लोराइड व टीडीएस के कारण लिया फैसला 

नरेंद्र कुंडू
जींद। अंधाधुंध भूजल दोहन के कारण जहरीले हो रहे पेयजल से शहर के लोगों को मुक्ति दिलवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग ने कवायद शुरू कर दी है। इसके लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर के लोगों को नहरी पानी सप्लाई की योजना तैयार की जा रही है। शहर के लोगों को नहरी पानी मुहैया करवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर के बीचोंबीच से गुजर रही हांसी ब्रांच नहर के पास 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार किया जाएगा। योजना को अमल में लाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा इसका प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही इसकी मंजूरी के लिए विभाग के उच्च अधिकारियों को भेजा जाएगा। उच्चाधिकारियों से मंजूरी मिलते ही योजना पर अमल शुरू कर दिया जाएगा। शहर में नहरी पानी की सप्लाई शुरू होने पर शहर के लोगों को पानी में बढ़ रहे फ्लोराइड तथा टीडीएस से निजात मिल जाएगी। 
इस समय शहर की आधी से अधिक आबादी को पेयजल मुहैया करवाने का जिम्मा जन स्वास्थ्य विभाग के कंधों पर है। खुलेआम हो रही जल की बर्बादी तथा दिन-प्रतिदिन बढ़ती पानी की मांग के कारण हो रहे भूजल के दोहन के कारण भूमिगत पानी लगातार जहरीला हो रहा है। पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा बढऩे के कारण भूमिगत जल पीने लायक नहीं बचा है। इसी कारण लोगों में हड्डियों तथा जोड़ों की बीमारियां बढऩे के मामले भी लगातार सामने आने लगे हैं। पानी में बढ़ती फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा के कारण भविष्य में पेयजल से होने वाले खतरे को भांपते हुए अब जन स्वास्थ्य विभाग शहर के लोगों को इस जहरीले पानी से निजात दिलाने की कवायद में जुट गया है।  जन स्वास्थ्य विभाग अब शहर में नहरी पानी की सप्लाई की योजना तैयार कर रहा है। इसके लिए विभाग द्वारा शहर के बीचों-बीच से गुजर रही हांसी ब्रांच नहर के पास 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार किया जाएगा। बूस्टिंग स्टेशन से अंडर ग्राऊंड पाइप लाइन के माध्यम से शहर में पानी की सप्लाई की जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही योजना को अमल में लाने के लिए विभाग ग्रांट की मंजूरी के लिए इसे उच्चाधिकारियों के पास भेजेगा। उच्चाधिकारियों से मंजूरी मिलते ही योजना पर अमल शुरू किया जाएगा। 

47 ट्यूब्वैल और 13 हजार कनैक्शन

जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर में पेयजल की सप्लाई के लिए 47 ट्यूब्वैल लगाए गए हैं। इस समय जन स्वास्थ्य विभाग के पास शहर में कुल 13 हजार कनैैक्शन हैं। इन 47 ट्यूब्वैल के सहारे शहर के दो लाख से अधिक लोगों को पानी की सप्लाई किया जा रहा है। खुलेआम पानी की बर्बादी तथा पानी की अधिक मांग के कारण भूमिगत पानी का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। इससे जमीनी पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा बढ़ रही है और पानी पीने लायक नहीं बचा है।  

पेयजल में बढ़ते फ्लोराइड और टीडीएस से मिलेगी निजात

जमीनी पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इससे जमीनी पानी पीने योग्य नहीं बचा है। इसको देखते हुए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर में नहरी पानी की सप्लाई शुरू करने की योजना बनाई जा रही है। योजना के सिरे चढऩे के बाद शहर के लोगों को फ्लोराइड तथा टीडीएस से निजात मिलेगी। 

यह है पानी में फ्लोराइड व टीडीएस की मात्रा 

पानी में फ्लोराइड की मात्रा एक मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। जबकि शहर में इसकी मात्रा चार से पांच मिलीग्राम प्रति लीटर है। शहर में पानी का टीडीएस भी ज्यादा है। 200 टीडीएस तक का पानी पीने लायक होता है। इससे अधिक टीडीएस के पानी से बीमारियां होने का खतरा बन जाता है। जबकि शहर के पानी में टीडीएस की मात्रा 500 से 800 से तक है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 
जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय का फोटो।

बढ़ जाते हैं पेट व हड्डियों के रोग

सामान्य रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश भोला का कहना है कि पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस (टोटल डिजोलड सालट) की मात्रा बढऩे से पेट के रोग बढ़ जाते हैं। इससे पत्थरी तथा पेट में इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती हैं। यदि पानी में फ्लोराइड ज्यादा मात्रा में होता है तो इससे हड्डियों व दांतों के रोग भी हो जाते हैं। हड्डियां कमजोर होने के कारण जोड़ों के दर्द हो जाते हैं और दांत कमजोर तथा पीले पडऩे लगते हैं। पीने लायक पानी में टीडीएस की मात्रा 80 से 100 के बीच होती है। 

गोहाना बाइपास की तरफ की कालोनियों के हालात सबसे खतरनाक 

शहर के गोहाना बाइपास की तरफ की कालोनियों के हालात सबसे खतरनाक हैं। इस क्षेत्र में पानी में टीडीएस की मात्रा दो से ढाई हजार टीडीएस तक पहुंच चुकी है। जबकि 200 टीडीएस तक का पानी पीने लायक होता है। इससे यहां पर बीमारियों के ज्यादा फैलने का खतरा बन रहा है। 

पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लोगों को इससे निजात दिलवाने के लिए विभाग द्वारा शहर में नहरी पानी की सप्लाई का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही इसकी मंजूरी के लिए विभाग के उच्चाधिकारियों के पास भेजा जाएगा। प्रारूप के अनुसार हांसी ब्रांच नहर के पास ही 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार करने की योजना है। 
दलबीर सिंह दलाल
एक्सईएन, जन स्वास्थ्य विभाग, जींद

हांसी ब्रांच नहर का फोटो, जिसके पास बूस्टिंग स्टेशन का निर्माण किया जाना है।





स्टाफ ना अधिकारी कैसे बुझेगी आग

 दमकल विभाग के पास कर्मचारियों का भारी टोटा
 जींद में दमकल विभाग के पास महज एक शिफ्ट का स्टाफ
 कर्मचारियों के अभाव में खड़ी हैं दमकल विभाग की गाडिय़ां

नरेंद्र कुंडू
जींद। गेहूं की कटाई का सीजन शुरू होने के कारण आगजनी की घटनाएं बढऩे का अंदेशा भी बना रहता है। ऐसे में आगजनी की घटनाओं से निपटने की पूरी जिम्मेदारी दमकल विभाग के कंधों पर होती है लेकिन स्टाफ की कमी के कारण जींद के दमकल विभाग का दम निकल चुका है। दमकल विभाग के पास गाडिय़ां तो हैं लेकिन स्टाफ नहीं है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि बिना कर्मचारियों के आखिरी दमकल विभाग आगजनी की घटनाओं से कैसे निपटेगा। यही नहीं जींद में तो दमकल विभाग के पास गाडिय़ों में पानी भरने के लिए हाईडैंट या टैंक की भी कोई व्यवस्था नहीं है। यही कारण है कि आगजनी की घटना घटने के बाद घटना स्थल पर पहुंचने में दमकल विभाग की गाडिय़ों को अकसर देरी हो जाती है। क्योंकि गाडिय़ों में पानी भरने की प्रक्रिया में दमकल विभाग के कर्मचारियों का काफी समय खराब हो जाता है। इतना ही नहीं जींद जिले में पूरे दमकल विभाग के पास एक भी फायर स्टेशन अधिकारी नहीं है। सभी स्टेशनों पर फायर स्टेशन अधिकारी का पद खाली है।

गाडिय़ां चार स्टाफ एक का भी पूरा नहीं 

जींद दमकल विभाग के पास आगजनी से निपटने के लिए चार गाडिय़ां हैं लेकिन स्टाफ एक गाड़ी का भी पूरा नहीं है। इस समय यहां पर एक एएफएसओ तथा 15  कर्मचारियों का स्टाफ है। इसमें 5 चालक तथा 10 फायरमैन हैं। एक गाड़ी के साथ एक चालक, एक लीडिंग फायरमैन तथा चार फायरमैन की ड्यूटी होती है। इस तरह यहां पर 24 कर्मचारियों के स्टाफ की जरूरत है। स्टाफ की कमी के चलते यहां पर ड्यूटीरत कर्मचारियों को 12 -12 घंटे ड्यूटी देनी पड़ती है। इस बीच यदि किसी कर्मचारी को कोई एमरजैंसी हो जाती है तो यहां तैनात कर्मचारियों को 24 घंटे भी ड्यूटी करनी पड़ती है। यहां पर कर्मचारियों की कमी के बावजूद भी नगर परिषद द्वारा दमकल विभाग के 5 कर्मचारियों को यहां से हटाकर नगर परिषद का काम लिया जा रहा है। इस प्रकार बिना स्टाफ के आखिरी आगजनी की घटनाओं से कैसे निपटा जा सकता है।

स्माल फायर वाटर इंजन की भी नहीं व्यवस्था

जींद दमकल विभाग के पास इस वक्त चार बड़ी गाडिय़ां हैं लेकिन स्माल फायर वाटर इंजन नहीं है। शहर के बाजार की गलियां काफी तंग हैं और बाजार में अकसर भीड़-भड़ाका रहता है। ऐसे में आगजनी की घटना घटने के बाद बड़ी गाडिय़ां बाजार में नहीं जा पाती। बाजार में आगजनी की घटना से निटपने के लिए दमकल विभाग को स्माल फायर वाटर इंजन की जरूरत है लेकिन पिछले काफी लंबे समय से दमकल विभाग के पास यह व्यवस्था नहीं है।

बिना पानी के कैसे बुझेगी आग

फायर ब्रिगेड के पास गाडिय़ों में पानी भरने के लिए हाईडैंट या टैंक की कोई व्यवस्था नहीं है। इस कारण आगजनी की घटना के वक्त गाडिय़ों में पम्प इत्यादि से पानी भरने में दमकल विभाग के कर्मचारियों का काफी समय बर्बाद हो जाता है। दमकल विभाग के पास पानी के स्टॉक के लिए कोई टैंक नहीं होने के कारण दमकल विभाग की गाडिय़ां पानी के लिए ज्यादातर लाइट पर निर्भर रहती हैं। ऐसे में अगर आगजनी की घटना के समय शहर में लाइट व्यवस्था जवाब दे जाती है तो दमकल विभाग के कर्मचारियों के पास लाइट का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं है।

नगर परिषद के दमकल विभाग की सबसे बुरी हालत

जींद जिले में दमकल विभाग दो भागों में बंटा हुआ है। जींद तथा नरवाना में मार्केट कमेटी तथा नगर परिषद दोनों के दमकल विभाग के अलग-अलग कार्यालय हैं। इसके अलावा जुलाना, उचाना तथा सफीदों में दमकल विभाग मार्केट कमेटी के अधीन है। जींद तथा नरवाना में नगर परिषद के अधीन आने वाले दमकल विभाग का सबसे बुरा हाल है। जींद के दमकल विभाग के पास कर्मचारियों का टोटा है तो नरवाना के दमकल विभाग के पास गाड़ी का अभाव है। नरवाना के दमकल विभाग के पास दो गाडिय़ां हैं। इनमें से एक गाड़ी चालू हालत में है तो दूसरी गाड़ी कल-पुर्जों के अभाव में खस्ता हालत में खड़ी है।

कच्चे कर्मचारियों के कंधों पर है सफीदों का भार

सफीदों में आगजनी की घटनाओं से निपटने की पूरी जिम्मेदारी कच्चे कर्मचारियों के कंधों पर है। सफीदों में दमकल विभाग के पास कुल 15 कर्मचारियों का स्टाफ है। इनमें 9 फायरमैन, 3 लीडिंग फायरमैन तथा 3 चालक हैं। यह सभी कर्मचारी कच्चे कर्मचारी हैं। सफीदों में दमकल विभाग के पास एक भी पक्का कर्मचारी नहीं है। यहां तो स्थित यह है कि पिछले कई वर्षों से फायर स्टेशन अधिकारी (एफएसओ) ही नहीं है।

उचाना में नहीं एक भी गाड़ी

उचाना में दमकल विभाग के पास एक भी गाड़ी नहीं है। ऐसे में यदि उचाना या अलेवा में आगजनी की कोई घटना घटती है तो उससे निपटने के लिए जींद या नरवाना से गाड़ी बुलानी पड़ेगी। वहीं उचाना में स्टाफ की भी कमी है। इस वक्त उचाना में सिर्फ चार कर्मचारियों का ही स्टाफ है।
बॉक्स
स्थान का नाम गाडिय़ों की संख्या गाडिय़ों की जरुरत
जींद     4  2
नरवाना     2  
उचाना कोई गाड़ी  नहीं 2
जुलाना     1  1
सफीदों     1  1
 दमकल विभाग के कार्यालय में खड़ी गाडिय़ां।


कर्मचारियों की कमी को देखते हुए लगभग 2 -3  माह पहले डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रोजल तैयार कर जिला प्रशासन को भेजा गया था लेकिन अभी तक डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। जैसे ही प्रशासन की तरफ से डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति के निर्देश मिलेंगे उसके तुरंत बाद नए कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी।
जगदीशचंद
एएफएसओ, जींद  



बाजार में गैर प्रमाणिक बीटी की किस्मों की भरमार, किसान परेशान

कृषि विभाग नहीं कर पा रहा बीटी की किसी भी किस्म की सिफारिश
कृषि विश्वविद्यालय की नहीं मंजूरी, पर्यावरण मंत्रालय का सहारा

नरेंद्र कुंडू
जींद। गेहूं की फसल की कटाई के बाद कपास की बिजाई का सीजन शुरू होने जा रहा है। किसान गेहूं की कटाई की तैयारियों के साथ-साथ कपास की बिजाई की तैयारियों में भी जुटे हुए हैं लेकिन बीटी कॉटन के बीज की किस्म के चयन को लेकर किसान पूरी तरह से असमंजस की स्थिति में हैं, क्योंकि बाजार में बीटी के भिन्न-भिन्न किस्मों के बीजों की भरमार है। इस समय बाजार में 600 से भी ज्यादा बीटी की किस्में बाजार में आ चुकी हैं, लेकिन हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार इनमें से किसी की सिफरिश नहीं कर रहा है। बीटी के बीज के चयन को लेकर किसान विकट परिस्थितियों में फंसा हुआ है कि आखिरकार वह अपने खेत में बीटी की किस किस्म की बिजाई करें। इसमें सबसे खास बात यह है कि आज बाजार में बीटी की जितनी भी किस्में हैं, उनमें से कोई भी किस्म कृषि विश्वविद्याल द्वारा प्रमाणित नहीं है। इस कारण कृषि विभाग के अधिकारी भी किसानों को बीटी की किसी भी किस्म की बिजाई की सिफारिश नहीं कर पा रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा बीटी की किसी भी किस्म की सिफारिश नहीं किए जाने तथा बीटी के बीज को लेकर किसानों के पास विभिन्न विकल्प होने के कारण आज किसान कपास के उत्पादन तथा इसमें आने वाली बीमारियों की तरफ से संतुष्ट नहीं हो पा रहा है।  बीटी बीज निर्माणता कंपनियों ने पर्यावण मंत्रालय की मंजूरी तो ले ली है, लेकिन इससे किसानों का भ्रम जस का तस बना हुआ है। किसान किस किस्म और कंपनी के बिज का चुनाव करें इस पर स्थिति साफ नहीं है।

बीटी के कारण बाजार में आई कीटनाशकों की बाढ़

कपास के क्षेत्र में बीटी की भिन्न-भिन्न किस्मों के साथ-साथ कीटनाशकों की बाढ़ भी आ गई है। बीटी की बिजाई से कपास में सुंडियों से बचाव के लिए होने वाले कीटनाशकों का प्रयोग कम हुआ हो लेकिन दूसरी तरफ पिछले तीन-चार साल से अन्य कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ भी लगातार बढ़ता जा रहा है।

हरियाणा में 200 करोड़ का कारोबार

इसमें कोई शक नहीं है कि बीटी से कपास के युग में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है और इससे उत्पादन में काफी बढ़ौतरी हुई है लेकिन बीटी अपने साथ बीज और कीटनाशकों का एक बहुत बड़ा बाजार भी लेकर आई है। कृषि विभाग के अनुसार बीज और कीटनाशकों के क्षेत्र में अकेले हरियाणा प्रदेश में 200 करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार होता है। क्योंकि हरियाणा में लगभग 5.5 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में कपास की खेती होती है, जिसमें लगभग 95 फीसदी क्षेत्र में बीटी की बिजाई होती है और बीटी की सभी किस्में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधीन हैं। आज दो दर्जन से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियां बीटी का बीज तैयार कर रही हैं और बीटी की 600 से ज्यादा किस्में बाजार में उपलब्ध हैं।

एक किस्म तैयार करने में लगता है 9-10 वर्ष का समय

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसी भी बीज की सिफारिश करने से पहले उस बीज पर लगभग 9-10 साल तक रिसर्च होता है। इस 9-10 साल के लंबे सत्र के दौरान कृषि वैज्ञानिक नई किस्म के उत्पादन तथा फसल में आने वाली बीमारियों व नुकसान पर गहन रिसर्च करते हैं। इसके बाद ही वह कृषि विभाग को बीज की सिफारिश करते हैं। 9-10 साल के लंबे रिसर्च के बाद एक किस्म ईजाद हो पाती हैं। जबकि बाजार में आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां आए दिन लुभान्वित नामों से नई-नई किस्में उतार रही हैं।
बीटी के बीज की खरीदारी करने के दौरान बीज विक्रेता से विचार-विमर्श करते किसान। 

बीटी के बीज पर विश्वास करना संभव नहीं 

जितनी भी बीटी की किस्में आई हुई हैं किसी भी किस्म की कृषि विश्वविद्यालय सिफारिश नहीं करता है, क्योंकि बीटी का बीज कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाणित नहीं है। बीटी के बीज तैयार करने वाली कंपनियों द्वारा कृषि विश्वविद्यालय से बीज की बिक्री की अनुमति लेने की बजाए उत्तर भारत पर्यावरण मंत्रालयों से सीधी अनुमति ली जाती है। इसलिए बीटी के बीजों पर विश्वास नहीं किया जा सकता और इसके नुकसान या फायदे के बारे में भी कुछ कह पाना संभव नहीं है। बीटी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए किसानों को अपने सभी खेतों में बीटी की अलग-अलग किस्मों की बिजाई करनी चाहिए या बीटी के साथ-साथ बीच-बीच से देशी कपास की भी बिजाई किसान कर सकते हैं।
डॉ. यशपाल मलिक, कृषि वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केंद्र, पांडू पिंडारा, जींद




बेपरवाह बैंक प्रबंधन, उपभोक्ता परेशान

शाम होते ही बंद हो जाते हैं एटीएम के दरवाजे 

नरेंद्र कुंडू
जींद। बैंक प्रबंधन बेपरवाह है और उपभोक्ता परेशान हैं। पुलिस के निर्देश भी बैंक प्रबंधन पर बेअसर साबित हो रहे हैं। पुलिस द्वारा एटीएम पर गार्ड तैनाती के निर्देश के बाद भी बैंक प्रबंधन द्वारा एटीएम पर गार्ड की तैनाती नहीं की जा रही है। एटीएम में हो रही लूटपाट जैसी घटनाओं से बैंक प्रबंधन कोई सबक नहीं ले रहा है। बिना गार्ड वाले एटीएम को पुलिस द्वारा बंद करवाए जाने के कारण बैंक प्रबंधन की लापरवाही का खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। शाम होते ही शहर के ज्यादातर एटीएम के शटर बंद हो जाते हैं, जिस कारण रात के समय में जरूरत पडऩे पर उपभोक्ता एटीएम का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। बैंक प्रबंधन द्वारा उपभोक्ताओं को दी जा रही एटीएम की सुविधा का उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिल पा रहा है।   
एटीएम में बढ़ी चोरी व लूटपाट की घटनाओं को देखते हुए जिला पुलिस ने लगभग दो माह पहले जिले के उन एटीएम को बंद करवा दिया था, जिन एटीएम पर गार्ड तैनात नहीं थे। पुलिस प्रशासन ने बैंक प्रबंधन को अपने-अपने एटीएम पर गार्ड तैनात करने के निर्देश दिए थे। 1 माह का समय बीत जाने के बाद बैंक प्रबंधन ने एटीएम पर गार्ड तैनात करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं। बैंक प्रबंधन की इस लापरवाही के चलते शहर के ज्यादातर एटीएम बंद पड़े हैं। एटीएम बंद रहने के कारण उपभोक्ताओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के एटीएम का बुरा हाल

शहर में स्टेट बैंक ऑफ पटियाला की के एटीएम का बुरा हाल है। स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के किसी भी एटीएम पर गार्ड की तैनात नहीं है। स्टेट बैंक ऑफ पटियाला में दिन में ड्यूटी करने वाले गार्ड पर ही एटीएम की सुरक्षा का जिम्मा रहता है। रात में एटीएम में गार्ड की ड्यूटी नहीं होने के कारण एटीएम को बैंक के बंद होने के साथ ही बंद कर दिया जाता है। रात के समय स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के सभी एटीएम बंद रहने के कारण इसके उपभोक्ताओं को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। 

कई एटीएम में गार्ड से लिया जाता है दोहरा काम 

पुलिस के निर्देश के बाद कुछ बैंकों में एटीएम की सुरक्षा के लिए महज रात के समय गार्ड की तैनाती है तो कुछ बैंकों ने एटीएम में 24 घंटे गार्ड तैनात किए हैं। कई जगह बैंकों में एक गार्ड से दोहरा काम लिया जा रहा है तो कुछ बैंकों की एटीएम में गार्ड की तैनाती ही नहीं है। 24 घंटे की ड्यूटी देने वाले गार्डों से बैंक प्रबंधन द्वारा दोहरा काम लिया जा रहा है।
 बिना गार्ड के बंद पड़ा एटीएम।

पंजाब नेशनल बैंक के पास भी नहीं एक भी गार्ड 

जींद शहर में पंजाब नेशनल की कुल १८ एटीएम हैं लेनिक किसी भी एटीएम में गार्ड नहीं है। पंजाब नेशनल बैंक के पास एटीएम के लिए गार्ड नहीं होने के कारण शाम होते ही पंजाब नेशनल बैंक के सभी एटीएम बंद हो जाते हैं। पंजाब नेशनल बैंक के हालत तो इनते बुरे हैं कि इसकी मेन ब्रांच के एटीएम में भी कोई गार्ड नहीं है। पीएनबी की मेन ब्रांच की इस एटीएम से काफी लोग पैसा निकलवाते हैं लेकिन यहां गार्ड की तैनाती नहीं होने के कारण यहां पर आने वाले लोगों की सुरक्षा राम भरोसे हैं। 

निजी बैंकों में 24 घंटे एटीएम में गार्ड की तैनाती

जींद में निजी क्षेत्र के एक्सिस, आईसीआईसीआई, एचडीएफसी, यस बैंक के एटीएम की सुरक्षा व्यवस्था सरकारी क्षेत्र के बैंकों की सुरक्षा व्यवस्था से कहीं बेहतर है। जींद में इन बैंकों की शाखाओं के साथ बने एटीएम में 24 घंटे गार्ड की ड्यूटी रहती है। इन बैंकों में रात के समय अलग गार्ड और दिन के समय अलग गार्ड तैनात रहते हैं।  

एसबीआई के एटीएम में पैसे निकलवाने के साथ-साथ जमा करवाने की व्यवस्था भी

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मैनेजर अमित वर्मा ने बताया कि शहर में उनकी 4 ब्रांच हैं और उनके सभी एटीएम पर 24 घंटे गार्ड की तैनाती रहती है। उनके सभी एटीएम पर डबल गार्ड की व्यवस्था है। अमित वर्मा ने बताया कि उनके एटीएम में पैसे निकलवाने के साथ-साथ पैसे जमा करवाने की मशीन की भी व्यवस्था है। 

उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा एटीएम सुविधा का फायदा

उपभोक्ता अनिल, राजेश, सोमबीर, विकास, राकेश ने बताया कि पुलिस ने लुटपाट की घटनाओं को देखते हुए बिना गार्ड वाले एटीएम को बंद करवा दिया है लेकिन बैंक प्रबंधन द्वारा गार्ड की नियुक्ति के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। अगर उन्हें पैसे निकालने के लिए बैंक में ही जाना पड़ेगा तो फिर बैंक द्वारा दी जा रही एटीएम सुविधा का क्या फायदा। उपभोक्ताओं की परेशानी को देखते हुए बैंक प्रबंधन को जल्द से जल्द एटीएम पर गार्ड की तैनाती की जानी चाहिए।
 बिना गार्ड के खुला स्टेट बैंक ऑफ पटियाला का एटीएम। 
 

उच्च अधिकारियों के पास लिखित में भेजी गई है शिकायत

पुलिस प्रशासन के निर्देश के कारण बिना गार्ड के एटीएम को बंद किया गया है। उपभोक्ताओं की परेशानी को देखते हुए बिना गार्ड वाले एटीएम को दिन के समय खोला जाता है लेकिन पुलिस के निर्देशानुसार रात के समय बंद कर दिया जाता है। एटीएम पर गार्ड की तैनाती के लिए उच्च अधिकारियों के पास लिखित में शिकायत भेजी गई है। बिना उच्च अधिकारियों के निर्देश के गार्ड की नियुक्ति नहीं की जा सकती। 
बीएस देशवाल
लीड बैंक मैनेजर


 बिना गार्ड के बंद पड़ा पीएनबी का एटीएम। 

  




बालिकाएं आज भी बन रही हैं वधू

बाल विवाह का चलन जारी
लड़कियों के प्रति नहीं बदल रही लोगों की सोच 

नरेंद्र कुंडू
जींद। 21वीं सदी में भी बाल विवाह जैसी कूप्रथा रह-रहकर सिर उठा रही है। बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए बाल विवाह अधिनियम के बावजूद भी बाल विवाह का चलन रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय से प्राप्त हुए एक वर्ष के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो बाल विवाह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास अब तक 9 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से ज्यादातर मामले पुलिस के माध्यम से तो एक मामला इस कूप्रथा का शिकार होने वाली नाबालिग की सूझबुझ से पहुंचा है। जिला महिला एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय से मिले आंकड़ों से यह साफ हो रहा है कि आज भी जागरूकता के अभाव या मजबूरी में बालिकाएं वधू बन रही हैं।
देश में सदियों से चली आ रही बाल विवाह जैसी परम्परा को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा सख्त कदम उठाते हुए बाल विवाह अधिनियम बनाया गया है। इस कुरीति को जड़ से खत्म करने के लिए समय-समय पर जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं लेकिन सरकार तथा विभाग के लाख प्रयासों के बावजूद भी बाल विवाह का चलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इसे जागरूकता का अभाव कहा जाए या लोगों की मजबूरी जिस कारण 21वीं सदी में भी बालिकाएं वधू बन रही हैं। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय में अप्रैल 2013 से दिसम्बर 2013 तक बाल विवाह के 4 मामले सामने आए हैं। वहीं जनवरी 2014 में 2 और फरवरी 2014 में कुल 3 मामले महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे हैं। 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे मामलों में 8 मामले तो पुलिस के माध्यम से पहुंचे हैं और एक मामला खुद इस कूप्रथा का शिकार हो रही बालिका द्वारा दिया गया है।

लड़की को आज भी समझा जाता है जिम्मेदारी

समाज में लड़कियों को लड़कों के बराबर का दर्जा दिलवाने तथा लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए सामाजिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर चलाए जा रहे अभियानों के बाद भी लोगों की सोच में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो रहा है। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास पहुंच रहे बाल विवाह के ज्यादातर मामलों में यह सामने आया है कि परिवार के लोगों ने लड़की को जिम्मेदारी समझ कर बाल अवस्था में ही लड़की को विवाह के बंधन में बांधा जाता है।

दो साल की सजा का है प्रावधान

बाल विवाह अधिनियम के तहत बाल विवाह करवाने के आरोप में दो साल की सजा का प्रावधान है।
लड़कियों के प्रति लोगों की सोच नहीं बदली है। आज भी लोग लड़की को एक जिम्मेदारी समझते हैं और इस जिम्मेदारी को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए ही वह बाल विवाह जैसी कूप्रथा के चलन को जारी रखे हुए हैं। लोगों को सबसे पहले अपनी सोच बदलनी होगी। बिना सोच बदले इस कूप्रथा को रोक पाना संभव नहीं है। लोगों को जागरूक करने के लिए उनके द्वारा समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
कृष्णा चौधरी
जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी, जींद
फोटो कैप्शन
जिला महिला संरक्षण अधिकारी व पुलिस टीम। 






रास्ते से भटकी परिवहन समिति की बसें

यातायात सुविधा से महरूम सैकड़ों गांव
हर रोज रोडवेज को लाखों का चूना लगा रही सहकारी समितियों की बसें

नरेंद्र कुंडू
जींद। हरियाणा रोडवेज की अनदेखी लोगों पर भारी पड़ रही है। सहकारी परिवहन समितियों की बसें निर्धारित रूट पर नहीं चल रही और इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। सहकारी परिवन समितियों की इस मनमानी का दंश लोगों के साथ-साथ रोडजेव को भी झेलना पड़ रहा है। ये बसें रोडवेज को प्रतिदिन लाखों रुपये का चूना लगा रही हैं। रोडवेज कर्मचारियों की मानें तो प्रशासन ने इन्हें अपनी मौन स्वीकृति दे रखी है।
हरियाणा रोडवेज बेड़े में बसों की कमी को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर परिवहन सेवाएं मुहैया करवाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए परिवहन समितियों को परमिट जारी किए गए थे। 1999 में दिए गए परमिटों के अनुसार परिवहन विभाग ने गांवों के लोगों के लिए निजी बसें रोड पर उतारी थी। इसके अनुसार ही रोडवेज की बसों को भी ग्रामीण रूटों से हटा लिया गया। फिलहाल जिले में 48 निजी बसें चल रही हैं। इन सभी निजी बसों के रूट ग्रामीण क्षेत्रों में तय किए गए हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर निजी बस चालक निर्धारित रूटों पर अपनी सेवाएं देने की बजाए सीधे रूटों पर चल रहे हैं। निजी बस चालक अपने मूल रूटों पर चलने की बजाए निमयों को ठेंगा दिखाकर सीधे रूटों पर बसों को दौड़ा रहे हैं। निजी बस चालकों की इस मनमर्जी के कारण हर रोज रोडवेज विभाग को लाखों रुपए का चूना तो लग ही रहा है साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों की यातायात व्यवस्था प्रभावित हो रही है। इससे ग्रामीण क्षेत्र के यात्रियों व विद्याॢथयों को सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ रही है। रोडवेज विभाग व जिला परिवहन प्राधिकरण को बार-बार शिकायतें मिलने के बावजूद भी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। इस तरफ से विभागीय अधिकारियों की मौन स्वीकृति इन निजी बस चालकों को खुलकर नियमों की धज्जियां उडाने की छूट दे रही है।

विभागीय अधिकारी नहीं कर रहे हैं कार्रवाई

हरियाणा रोडवेज कर्मचारी यूनियन के राज्य सह-सचिव अजीत ङ्क्षसह नेहरा ने बताया कि जींद में चल रही निजी समितियों की सभी बसें अपने मूल रूटों पर चलने की बजाए सीधे रूटों पर चल रही हैं। नेहरा ने कहा कि कैथल से नरवाना रूट पर चार गाडिय़ां अवैध रूप से चल रही हैं। वहीं सफीदों, गोहाना तथा जुलाना रूट पर चलने वाली निजी बसें भी अपने मूल रूटों पर नहीं चल रही हैं। इसके बारे में वे कई बार जिला प्राधिकरण अधिकारी को लिखित में शिकायत भी दे चुके हैं लेकिन निजी बस संचालकों के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। रोडवेज तथा जिला परिहवन प्राधिकरण के अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही निजी बस चालक मूल रूटों पर चलने की बजाये सीधे रूटों पर चल रहे हैं। नेहरा ने कहा कि निजी बस चालक रोडवेज कर्मचारियों के साथ झगड़ा करने पर उतारु रहते हैं। बार-बार शिकायत देने के बावजूद भी निजी बस चालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। निजी बसों के मूल रूट पर नहीं चलने के कारण 100 से ज्यादा गांवों की परिवहन सुविधाएं बाधित हो रही हैं। ऊपर से सरकार भी रोडवेज का निजीकरण करने पर तुली हुई है।

यह है जुर्माने का प्रावधान

जिला परिवहन प्राधिकारण विभाग के नियमों के तहत पहली बार ओवर रूट पर बस पकड़े जाने पर 3500 रुपए, दूसरी बार पकड़े जाने पर सात हजार व तीसरी बार पकड़े जाने पर 10 हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। इसके बाद भी अगर निजी बस चालक अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है तो उसका परमिट भी रद्द किया जा सकता है।

इन गांवों की परिवहन सेवाएं हो रही हैं बाधित

नरवाना तथा कैथल रोड पर निजी बसों के मूल रूट पर नहीं चलने के कारण धनखड़ी, छात्तर, घोघडिय़ां, बड़ोदी, काकड़ोद, जुलाना रूट पर गतौली, अनूपगढ़, बिरोली, शामलो तथा सफीदों रूट पर मलार, पिल्लूखेड़ा, हाट, बिटानी और गोहाना रोड पर गांव भावड़, घड़वाल, निजापुर इत्यादि गांवों की परिवहन सुविधाएं बाधित हो रही हैं। इस गांवों से आने वाले लोगों तथा विद्याॢथयों को शहर में आने के लिए निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ता है।

सहकारी परिवहन ऑपरेटरों के प्रति तालीबानी रवैया अपनाते हैं रोडवेज कर्मचारी

रोडवेज कर्मचारी सहकारी परिवहन ऑपरेटरों के प्रति तालीबानी रवैया अपनाते हैं। जिले की अधिकतर सहकारी बसें अपने तय रूटों पर चल रही हैं। सफीदों रूट वाली बस को अदालत से स्टे मिला हुआ है। रोडवेज कर्मचारी बस ऑपरेटों को परेशान करते हैं।
सुरेंद्र श्योकंद, महासचिव, हरियाणा को-ओपरेटिव ट्रांस्पोर्ट सोयासयटी वेल्फेयर एसोसिएशन
बॉक्स

31 से शुरू किया जाएगा अभियान

निजी बसों के मूल रूटों से हटकर सीधे रूटों पर चलने की शिकायत अकसर उनके पास आती रहती हैं। मूल रूटों से हटकर चलने वाली निजी बसों के समय-समय पर चालान भी किये जाते हैं। मूल रूट से हटकर चलने वाली निजी बसों के चालकों पर शिकंजा कसने के लिए ३१ मार्च से स्पेशल ड्राइव अभियान चलाया जाएगा, जो भी निजी बस मूल रूट को छोड़कर सीधे रूट पर चलती मिलेगी उसके चालक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
एसके चहल
क्षेत्रिय परिवहन प्राधिकरण अधिकारी, जींद
सामान्य बस स्टैंड पर निजी बसों के लिए अलग से बनाए गए बूथ।




सामान्य बस स्टैंड पर निजी बसों के लिए अलग से बनाए गए बूथ। 




सामान्य बस स्टैंड पर रोडवेज की बसों के बूथों पर खड़ी निजी सोसायटी की बसें।


शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

आधुनिकता की चकाचौंध में टूट रहे परिवार

एकल परिवार तथा पति-पत्नी के बीच अविश्वसनियता के चलते दाम्पत्य जीवन में बढ़ रही दरार

नरेंद्र कुंडू
जींद। आधुनिकत्ता की चकाचौंध व भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण विवाहिक जीवन में दरार बढ़ रही है। परिवारिक कलह के कारण महिला संरक्षण कार्यालय में मामलों की संख्या लगातार बढ़ी जा रही है। महिला संरक्षण कार्यालय के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो जिले में हर माह दो दर्जन परिवार दहेज व घरेलू कलह की आग से झुलस कर टूट रहे हैं। यह आधुनिकता के इस दौर का ही परिणाम है कि हर माह 40 से 50 मामले न्याय की तलाश में महिला संरक्षण तथा महिला सैल के दरवाजे पर पहुंच रहे हैं। पिछले लगभग एक साल में महिला संरक्षण कार्यालय में 217 मामले आ चुके हैं। महिला सैल कार्यालय में पहुंच रहे मामलों में सबसे ज्यादा मामले पत्नी-पत्नि के बीच आपसी कलह, मार पिटाई तथा मानसिक व शारीरिक हरासमैंट के होते हैं।
आधुनिकता की चकाचौंध व भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण आज दाम्पत्य जीवन में दरार लगातार बढ़ रही है। परिवारिक कलेह, दाम्पत्य जीवन में बढ़ती अविश्वसनियता व दहेज प्रताडऩा से विवाहिक जीवन में दरार बढ़ रही है। आधुनिकता के कारण सामाजिक तानाबाना टूटने तथा महिलाओं व उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून में लचिलेपन के कारण परिवार लगातार टूट कर बिखर रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो हर माह दहेज व घरेलू कलेह की आग में झुलस कर 40 से 50 मामले महिला संरक्षण कार्यालय तथा महिला सैल के पास आ रहे हैं। दाम्पत्य जीवन में बढ़ रही कड़वाहट के कारण सैंकड़ों परिवार अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। टूटते हुए परिवारों को बचाने के लिए सरकार द्वारा प्रत्येक जिले में जिला महिला संरक्षण तथा पुलिस महिला सैल का गठन किया गया है। ताकि टूटते परिवारों में अपसी सुलह करवाकर उन्हें एक नए सिरे से जीवन बसर करने के लिए प्रेरित किया जा सके। महिला संरक्षण तथा पुलिस महिला सैल की परिवारों को जोडऩे की मुहिम काफी हद तक सफल रहती है तो कुछ परिवारों में सहमति नहीं बन पाने के कारण कुछ परिवारों की डोर टूट जाती है। पिछले लगभग ११ माह में अब तक जिला महिला संरक्षण कार्यालय में २१७ मामले आए हैं। इन 217 मामलों में से कुछ मामलों में तो समझौते हो चुके हैं और कुछ मामले अभी जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास विचाराधीन हैं तो कुछ मामले समझौता नहीं होने के कारण अदालत के दरवाजे पर पहुंच गए हैं।

टूट रहा परिवारों का तानाबाना

जिला महिला संरक्षण कार्यालय तथा महिला सैल में पहुंचने वाले ज्यादात्तर मामलों में महिलाओं की एकल परिवार में रहने की इच्छा से विवाद शुरू होता है लेकिन बाद में यह दहेज प्रताडऩा के मामले बनकर अदालत तक पहुंच जाते हैं। एकल परिवार में रहने की इच्छा के कारण संयुक्त परिवार लगातार टूटते जा रहा हैं। संयुक्त परिवारों का चलन समाज में गिने-चूने जगह पर ही दिखाई देता है। संयुक्त परिवार से टूटकर मोतियों की तरह बिखरे एकल परिवार अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, जिससे एकल परिवार के बच्चों में भी संस्कारों की कमी भी दिखाई देने लगी है।

अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंच 238 मामले

अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण के पास कुल 238 मामले आए हैं। इनमें से 68 मामले अदालत द्वारा भेजे गए हैं। 14 मामले पुलिस द्वारा तथा १५६ मामले सीधे महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे हैं और एक मामला एनजीओ के माध्यम से आया है। महिला संरक्षण अधिकारी के पास सीधे पहुंच रहे मामलों की संख्या को देखते हुए यह साफ हो रहा है कि महिला अधिकारों के प्रति महिलाओं में जागरूकता बढ़ रही है और वह किसी कोर्ट-कचहरी या पुलिस के चक्कर में पडऩे की बजाए सीधे महिला संरक्षण कार्यालय पहुंच रही हैं।

समझौता करवा दोबारा से टूटे परिवारों को जोडऩे का किया जाता है काम

दहेज प्रताडऩा व घरेलु कलह के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इसका मुख्य कारण लोगों की छोटी मानसिकता है। छोटी-छोटी बातों को तूल देकर बड़ी समस्या का रूप दे दिया जाता है। उनके पास आने वाले ज्यादातर मामलों में पति-पत्नी के बीच आपसी अनबन रहना तथा विचारों का मतभेद होना रहता है। उनके पास आने वाले दंपत्तियों के परिवारों को दोबारा जोडऩे का हर संभव प्रयास किया जाता है। सबसे पहले दोनों पक्षों में सुलह करवाने की कोशिश की जाती है अगर किसी कारण से दोनों पक्षों में सुलह नहीं हो पाती तो मामले की गहण जांच की जाती है। इसके बाद आगामी कार्रवाई के लिए मामले को अदालत में भेजा दिया जाता है।
कृष्णा चौधरी
जिला महिला संरक्षण एवं
बाल विवाह निषेध अधिकारी
महिला संरक्षण अधिकारी कृष्णा चौधरी का फोटो। 



नेताओं के दल बदलने से बदली राजनीति की फिजा

प्रदेश में त्रिकोणिय नहीं बहुकोणिय हुआ लोकसभा चुनाव का मुकाबला

नरेंद्र कुंडू 
जींद। प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान नेताओं के दल बदलने के चलन से प्रदेश में राजनीति की फिजा पूरी तरह से बदल चुकी है। अब प्रदेश में लोकसभा चुनाव का मुकाबला त्रिकोणिय नहीं होकर बहुकोणिय हो गया है। नेताओं के इस दल बदलने के चलन से प्रदेश के राजनीतिक समीकरण भी पूरी तरह से बदल गए हैं। टिकट और अच्छे भविष्य की चाह में नेता कपड़ों की तरह पाॢटयां बदल रहे हैं। प्रदेश में गर्मा रहे चुनावी माहौल को देखते हुए कुछ पार्टियों ने दल-बदलुओं को हाथों हाथ ले लिया है। नेताओं के इस ट्रेंड से एक तरह से वोटरों में भी मायूसी का माहौल तैयार हो रहा है। वहीं चुनावी माहौल को देखते हुए हरियाणा में सभी राजनीतिक दलों द्वारा भी टिकट वितरण में जात, गौत्र तथा ऐरिया का विशेष ध्यान रखा गया है।   
प्रदेश में चुनाव से कुछ माह पहले तक कांग्रेस, इनेलो तथा भाजपा-हजकां गठबंधन के बीच त्रिकोणिया मुकाबले के कयास लगाए जा रहे थे। प्रदेश में पार्टी के विपक्ष में बन रहे माहौल को देखते हुए चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी ने जाट आरक्षण का दाव खेल कर जाट वोट बैंक को लुभाने का प्रयास किया है। वहीं भाजपा पार्टी द्वारा प्रदेश में आठ में से पांच लोकसभा सीटों पर कुछ दिनों पहले ही दल बदलकर आए नेताओं को टिकट दिए जाने से खफा भाजपा कार्यकत्र्ताओं द्वारा पार्टी के पदाधिकारियों पर टिकट वितरण में धांधली के आरोप लगाकर हंगामा करने के बढ़ते मामलों ने लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह में भी रोड़ा अटकाने का काम किया है। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला तथा अजय चौटाला के जेबीटी प्रकरण में जेल में होने के कारण इनेलो के नए नेता भी अभी तक मतदाताओं का विश्वास हासिल करने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रहे हैं। हरियाणा अध्यन केंद्र के निदेशक डॉ. एसएस चाहर का मानना है कि भाजपा द्वारा कांग्रेस छोड़कर हाल ही में भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं को टिकट देना भाजपा के लिए आत्मघाती हो सकता है। वहीं भाजपा द्वारा चंद्रमोहन को पहले करनाल से टिकट देना और फिर टिकट वापिस लेकर नए चेहरे को टिकट दिए जाने के मामले से गठबंधन में भी रार पैदा हुई है। डॉ. चाहर का कहना है कि इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला तथा अजय चौटाला के जेल में होने के कारण इनेलो के कार्यकत्र्ताओं में भी मायूसी है। मतदाता इनेलो के नए नेताओं पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। डॉ. चाहर का मानना है कि नेताओं के इस दल बदलने चलन के कारण प्रदेश की राजनीति की फिजा बदल गई है। इस समय प्रदेश में त्रिकोणिय मुकाबला नहीं होने की बजाये लोकसभा चुनाव में बहुकोणिय मुकाबले के आसार बने हुए हैं। 




मंगलवार, 25 मार्च 2014

बाल स्वास्थ्य योजना पर प्रशासन की लापरवाही का दंश

तीन माह बाद भी नहीं शुरू हो पाया डीईआईसी की भवन का निर्माण
कैबिनों में होगा बच्चों का इलाज
अस्पताल के निरीक्षण के लिए 27 को जींद पहुंचेगी एनआरएचएम की टीम
लिपापोती में जुटा अस्पताल प्रशासन 

नरेंद्र कुंडू
जींद। स्वास्थ्य विभाग द्वारा राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य योजना के तहत आंगनवाड़ी तथा सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले 0 से 18 वर्ष तक के बच्चों के मुफ्त इलाज की योजना पर सामान्य अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का दंश लग चुका है। विभाग की योजना के तहत 0 से 18 वर्ष के बच्चों को मुफ्त उपचार देने के लिए सामान्य अस्पताल में स्थापित होने वाले डिस्ट्रिक अर्ली इंटरमेंशन सेंटर (डीईआईसी) की बिल्डिंग का निर्माण तीन माह बीत जाने के बाद भी शुरू नहीं हो पाया है। 27 मार्च को अस्पताल के निरीक्षण के लिए एनएचआरएम की टीम जींद पहुंच रही है। एनएचआरएम की टीम के जींद पहुंचने की सूचना मिलने पर अस्पताल प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। टीम के सामने अस्पताल प्रशासन की पोल नहीं खुले इसलिए अस्पताल प्रशासन लिपापोती पर लगा हुआ है। अपनी गलती पर पर्दा डालने के लिए अस्पताल प्रशासन द्वारा बिल्डिंग का निर्माण करने की बजाये अस्पताल के अंदर कमरों में ही अलग से कैबिन तैयार करवाए जा रहे हैं।

यह है स्वास्थ्य विभाग की योजना

स्वास्थ्य विभाग द्वारा राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य योजना के तहत आंनवाड़ी तथा सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले 0 से 18 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त इलाज किया जाना है। इस योजना के तहत विभाग ने ब्लड कैंसर, ह्रदय रोग, कैंसर सहित 30 प्रकार की ऐसी गंभीर बीमारियों को अपनी सूची में शामिल किया है, जिनके उपचार पर मोटी रकम खर्च होती है। इस योजना को सफल बनाने के लिए जिले में प्रत्येक ब्लॉक पर मोबाइल टीमों का गठन किया गया है। यह टीमें बच्चों में बीमारी के लक्षण नजर आते ही पीएचसी तथा सीएचसी स्तर पर उनके उपचार की व्यवस्था करेंगी। यदि यहां पर उपचार संभव नहीं हो पाता है तो बच्चे को जींद के सामान्य अस्पताल में रैफर किया जाएगा। यदि बीमारी गंभीर है तो बच्चे को उपचार के लिए पीजीआई भेजा जाएगा। बच्चे की पर्ची बनवाने से लेकर बच्चे के उपचार तक की पूरी जिम्मेदारी इस टीम में शामिल सदस्यों की होगी।

बिल्डिंग के निर्माण पर खर्च होने थी 10  लाख की राशि 

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य योजना के तहत जींद के सामान्य अस्पताल में डीईआईसी सेंटर स्थापित किया जाना था। इस सेंटर में बच्चों के पर्ची बनाने से लेकर उपचार तक की सभी सुविधाएं मुहैया करवाई जानी थी। जिला स्तर पर निॢमत सैंटर पर 15 सदस्यों के स्टाफ की नियुक्ति की जानी है। इसमें डॉटा आप्रेटर, स्टाफ नर्स, लैब टैक्नीशियन, सोशल वर्कर से लेकर विशेषज्ञ तक की नियुक्ति की जानी थी। सेंटर की बिल्डिंग के निर्माण पर 10 लाख रुपए तथा डैकोरेशन पर लगभग दो लाख रुपए की राशि खर्च की जानी थी।

लीपापोती में जुटा अस्पताल प्रशासन 

सामान्य अस्पताल में 10 लाख की राशि से तैयार होने वाली डीईआईसी की बिल्डिंग के निर्माण के लिए लगभग तीन माह पहले विभाग द्वारा सामान्य अस्पताल प्रशासन को निर्देश जारी किए गए थे लेकिन अस्पताल प्रशासन द्वारा विभाग के निर्देशों पर कोई अमल नहीं किया गया। अब 27 मार्च को सेंटर के निरीक्षण के लिए एनआरएचएम की टीम अस्पताल का दौरा करेगी। टीम के दौरे की सूचना के बाद से अस्पताल प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। निरीक्षण के दौरान अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए अस्पताल प्रशासन लीपापोती में जुटा हुआ है। बिल्डिंग का निर्माण शुरू करवाने की बजाए अब अस्पताल प्रशासन ने अस्पताल के अंदर कमरों में ही इस सेंटर के लिए कैबिन बनाने शुरू कर दिए हैं। बिल्डिंग की बजाए अब अस्पताल प्रशासन द्वारा कैबिनों में बच्चों का इलाज किया जाएगा।

सिविल सर्जन डॉ. दीपा जाखड़ से सीधे सवाल 

सवाल : तीन माह पहले विभाग द्वारा निर्देश जारी किए जाने के बाद भी बिल्डिंग का निर्माण शुरू क्यों नहीं हो पाया?
जवाब : यहां पर उनकी नियुक्ति अभी हुई है। उनके पास समय कम था और बिल्डिंग के निर्माण की प्रक्रिया लंबी थी, इसलिए उन्होंने फिलहाल डॉक्टरों के बैठने के लिए कैबिनों का निर्माण करवाया है।
सवाल : क्या बिल्डिंग की राशि से कैबिन तैयार करवाए जा रहे हैं?
जवाब : नहीं यह खर्च बिल्डिंग की राशि से अलग है।
सवाल : बिल्डिंग का निर्माण कब शुरू करवाया जाएगा?
जवाब : बिल्डिंग के निर्माण के लिए सम्बंधित विभाग के पास पत्र भेजा गया है। जल्द ही निर्माण शुरू करवा दिया जाएगा।
अस्पताल में डीईआईसी के लिए कमरों के अंदर ही तैयार करवाए जा रहे कैबिन।

सामान्य अस्पताल में डीईआईसी की टीम के बैठने के लिए बनाए गए कैबिन।

सामान्य अस्पताल में वह जगह जहां पर डीईआईसी की बिल्डिंग का निर्माण किया जाना था। 
 




 


तैयारी 200 बैड की,सुविधाएं 100 बैड की भी नहीं

मरीजों की मर्ज बढ़ा रही सामान्य अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाएं
बिना चिकित्सकों के कैसा मुफ्त इलाज

नरेंद्र कुंडू
जींद। प्रदेश सरकार की सामान्य अस्पतालों में मरीजों को मुफ्त इलाज की योजना को लागू हुए तीन माह का समय बीत चुका है, लेकिन जींद शहर के सामान्य अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाएं मरीजों का दर्द कम करने की बजाए उनकी मर्ज बनती जा रही हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा 100  बैड के इस अस्पताल को अपग्रेड कर 200 बैड का किया जा रहा है लेकिन सामान्य अस्पताल में सुविधाएं 100 बैड की भी नहीं हैं। सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों की कमी के चलते हुए यहां आने वाले मरीजों को सरकार की मुफ्त इलाज योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। छोटी सी बीमारी के उपचार के लिए भी मरीजों को यहां घंटों इंतजार करना पड़ता है। सामान्य अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का आलम यह है कि कई-कई घंटों तक इंतजार करने के बाद भी उन्हें कोई यह बताने वाला नहीं है कि जिस डॉक्टर से उन्हें इलाज करवाना है आज वह ड्यूटी पर है या छुट्टी पर है। सामान्य अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के चलते मरीजों को मजबूरीवश निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है। ऐसे में आखिर सवाल यह उठता है कि चिकित्सकों के बिना सरकार की मुफ्त योजना कैसे सफल हो पाएगी।

 20 पद खाली

सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों की कुल 50 पद सैंक्शन हैं। इनमें से 20 पद खाली पड़ी हैं और 20 पदों भरी हुई हैं। इनमें से कई महीनों से एक डॉक्टर अनुपस्थित चल रहा तो दो डॉक्टर पिछले कई माह से लंबी छुट्टी पर हैं और एक डॉक्टर को छह माह की ट्रेनिंग पर भेजा गया है। इस प्रकार 100 बैड के इस अस्पताल की जिम्मेदारी महज 26 डॉक्टरों के सहारे चल रही है। इनमें से भी हर रोज कुछ डॉक्टरों को कोर्ट इत्यादि में गवाही के लिए जाना पड़ता है।

सर्जन सहित रेडियोलाजिस्ट और त्वचा रोग विशेष की भी कमी

जिला मुख्यालय पर स्थित सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों की कमी का आलम यह है कि 100 बैड के इस अस्पताल में सिर्फ एक सर्जन है और वह भी पिछले लगभग 20 दिनों से छुट्टी पर चल रहे हैं। सर्जन के छुट्टी पर चले जाने के कारण इस समय सामान्य अस्पताल में आप्रेशन बंद पड़े हैं। ऑप्रेशन के लिए आने वाले मरीजों को निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है। सर्जन के अलावा सामान्य अस्पताल में रेडियोलाजिस्ट तथा त्वचा रोग विशेषज्ञ की भी कमी है। यहां पर न तो रेडियोलाजिस्ट है और न ही त्वचा रोग विशेषज्ञ। सामान्य अस्पताल में ऑर्थो का भी केवल एक चिकित्सक है और वह भी अब ३१ मार्च को सेवानिवृत्त होने जा रहा है।

कैंटिन की भी नहीं है सुविधा

सामान्य अस्पताल में मरीजों के लिए कैंटिन तक की सुविधा नहीं है। अस्पताल परिसर में कैंटिन नहीं होने के कारण मरीजों को खाली पेट ही घंटों तक बैठकर डॉक्टरों का इंतजार करना पड़ता है।

 10 दिन से काट रहा हूं अस्पताल के चक्कर

सामान्य अस्पताल में उपचार के लिए आए गांव लोहचब निवासी सतबीर ने बताया कि उसकी हड्डी में फ्रेक्चर है और वह हड्डी के उपचार के लिए पिछले 10 दिन से सामान्य अस्पताल के चक्कर काट रहा है लेकिन हर बार उसे चिकित्सक नहीं मिलने के कारण वापिस लौटना पड़ता है। सतबीर ने बताया कि जब वह एक्सरे के लिए एक्सरे विभाग में गया तो उसे बताया गया कि लाइट नहीं है इसलिए एक्सरे नहीं होगा।
ईगराह निवासी सतबीर का फोटो। 



मेडिकल के लिए भी घंटों करना पड़ता है इंतजार

सामान्य अस्पताल में आए पति-पत्नी नरसी तथा पूजा ने बताया कि उन्हें अपना मेडिकल करवाना है और वह कई देर से यहां बैठे हैं लेकिन ड्यूटी पर मौजूद चिकित्सक उनकी सुध नहीं ले रहा है। जब भी वह चिकित्सक से मेडिकल करने के लिए कहते हैं तो चिकित्सक उन्हें बाहर इंतजार करने के लिए कह देते हैं। घंटों इंतजार के बाद भी उनका मेडिकल नहीं हुआ है।
 नरसी का फोटो।

छह घंटे के इंतजार के बाद भी नहीं हुआ बच्चों का इलाज

ईगराह गांव निवासी कमलेश ने बताया कि वह अपने बच्चों के चैकअप के लिए सामान्य अस्पताल में आई थी लेकिन यहां पर चिकित्सक ही नहीं है। कमलेश ने बताया कि वह सुबह साढ़े दस बजे अस्पताल में आई थी और तीन बजे तक इंतजार करने के बाद भी वहां कोई डॉक्टर नहीं पहुंचा। इसलिए कई घंटे के इंतजार के बाद भी बिना बच्चों का उपचार करवाए ही उसे घर लौटना पड़ेगा।
 बच्चों के उपचार के लिए सामान्य अस्पताल में चिकत्सकों का इंतजार करती ईगराह निवासी कमलेश। 




 जींद के सामान्य अस्पताल का फोटो। 





मंगलवार, 18 मार्च 2014

छोटी सी उम्र में निकल पड़ा बेटी बचाने

अब अंधेरी जिंदगियों को रोशन करने के लिए छेड़ दी मुहिम 

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिस उम्र में बच्चों को मौज-मस्ती के सिवाये कुछ नहीं सुझता, उस उम्र में उसने सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के सपने बुन लिए और उन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए महज १५ साल की उम्र में ही संघर्ष शुरू कर दिया। खेल गांव निडानी निवासी अमित के सिर पर छोटी सी उम्र में ही समाज सेवा का ऐसा भूत सवार हुआ कि फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अमित ने उम्र के 24वें पड़ाव तक पहुंचते-पहुंचते शराब बंदी तथा कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के अभियानों को शिखर तक पहुंचाने के बाद अब अंधेरी जिंदगियों को रोशन करने के लिए नेत्रदान के लिए अभियान की शुरूआत की है। अमित निडानी ने वंदे मातरम प्रतिष्ठान के माध्यम से 24 फरवरी 2014  को गांव में एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर दो हजार से ज्यादा पुरुषों और महिलाओं को नेत्रदान के लिए प्रेरित किया।  
जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खेल गांव निडानी निवासी अमित ने समाज सेवा की अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए सबसे पहले अपने संघर्ष की शुरूआत अपने गांव से ही की। गांव को शराब मुक्त बनाने के लिए अमित ने गांव के युवाओं को एकत्रित कर युवा संगठन का गठन किया और ग्रामीणों के सहयोग से गांव में चल रहे शराब के अवैध खुर्दों को बंद करवाकर गांव में जड़ें जमा रहे शराब माफियाओं को उखाड़ कर गांव से बाहर कर दिया। इसके बाद अमित का टारगेट था नन्ही बेटियों को बचाने का। कन्या भ्रूण हत्या के कारण गिरते लिंगानुपात को देखते हुए अमित निडानी ने गर्भ में मारी जा रही बेटियों को बचाने के लिए वर्ष 2008 में बेटी बचाओ सृष्टि बचाओ अभियान की नींव रखी। अमित ने गांव में जागरूकता अभियान शुरू कर गांव के लोगों को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जागरूक किया। अमित ने समाज में बेटी के महत्व को देखते हुए बेटे के जन्म पर निभाई जाने वाली कुआ पुजन की परंपरा को बेटी के जन्म पर शुरू करवाया। धीरे-धीरे यह अभियान एक गांव से दूसरे गांव से चलकर जिला स्तर और फिर राज्य स्तर तक जा पहुंचा। प्रदेशभर के लोगों को इस मुहिम से जोडऩे के लिए अमित ने 12 दिसम्बर 2012 को राज्य स्तरीय जागरूकता रथ यात्रा की शुरूआत की। भारत सरकार के ग्रह सचिव उदयचंद्र अग्रवाल ने इस रथ यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए यह रथ यात्रा पूरे प्रदेश में घूमी। एक जननवरी 2013 में नव वर्ष के अवसर पर अमित निडानी ने कन्या भ्रूण हत्या के कारण गर्भ में मारी गई अजन्मी कन्याओं की आत्मा की शांति के लिए जिला स्तर पर एक हवन का आयोजन किया और शहर के गणमान्य लोगों ने हवन में आहुति देकर गर्भ में मारी गई अजन्मी कन्याओं की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। इस दौरान लोगों ने हवन में आहुति देकर कन्या भ्रूण हत्या नहीं करने का संकल्प लिया। अमित निडानी ने भ्रूण हत्या करने वालों पर शिकंजा कसने के लिए बड़े ईनाम की घोषणा की। अमित ने भ्रूण हत्या करने की सूचना देने वाले को सवा लाख रुपये का ईनाम देने की घोषणा की। इसी बीच शहर में महिलाओं के साथ बढ़ रही चेन स्नेचिंग की घटनाओं तथा चोरी की घटनाओं को रोकने के लिए अमित ने अपने खर्च पर शहर में कई स्थानों पर खुफिाया कैमरे लगवाए। इसके बाद निडानी ने गौहत्या को बंद करवाने के लिए अगस्त 2013 में गौहत्या को बंद करवाने के लिए आवाज उठाते हुए राज्य स्तरीय युवा कार्यक्रम का आयोजन किया। इस प्रकार अमित निडानी ने एक के बाद एक कर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की। 

अब अंधेरी जिंदगियों को रोशन करने के लिए छेड़ दी मुहिम

 हरी झंडी दिखाकर जागरूकता रैली को रवाना करते अमित निडानी।
अमित निडानी ने शराब बंदी, कन्या भ्रूण हत्या तथा गौ हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के बाद अब अंधेरी जिंदगियों को रोशन करने के लिए मुहिम शुरू कर दी। वंदे मातरम प्रतिष्ठान एनजीओ का गठन कर 24 फरवरी 2014 को गांव में विशाल नेत्रदान महोत्सव का आयोजन किया। इस महोत्सव में निडानी ने दो हजार से ज्यादा पुरुषों तथा महिलाओं को नेत्रदान का संकल्प करवाया। इस प्रकार अब अमित निडानी ने कन्या भ्रूण हत्या के अभियान के बाद अंधेरी जिंदगियों को रोशन करने की मुहिम शुरू कर दी है। अमित का अगला लक्ष्य नेत्रदान के कानून में बदलाव करवाकर प्रत्येक व्यक्ति से नेत्रदान करवाना है। 

पिता से मिली प्रेरणा

अमित निडानी के पिता सरकारी स्कूल में कला अध्यापक हैं। निडानी ने बताया कि उसे सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ मुहिम शुरू करने की प्रेरणा अपने पिता मास्टर समुंद्र सिंह से मिली है। निडानी ने कहा कि उनके पिता ने न केवल उसका मार्ग दर्शन किया बल्कि उसकी मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव मदद भी की। 

सरकार ने दिया जिला स्तरीय सर्वश्रेष्ठ युवा अवार्ड 

अमित निडानी द्वारा सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जिले में शुरू की गई मुहिम को देखते हुए सरकार की तरफ से अमित को 2013 का सर्वश्रेष्ठ युवा का जिला स्तरीय अवार्ड देकर सम्मानित किया गया। 

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए शहर में जागरूकता रैली निकालते अमित निडानी का फाइल फोटो।


बेटी के जन्म पर खाप प्रतिनिधियों से रिबन कटवाकर कुआ पुजन की परम्परा शुरू करते अमित निडानी का फाइल फोटो।

अजन्मी कन्याओं की आत्मा की शांति के लिए नव वर्ष पर हवन में आहुति डलवाते अमित निडानी का फाइल फोटो।  

बेटी के जन्म पर कुआ पुजन के दौरान ढोल-नगाड़ों के साथ खुशी मनाते लोगों का फाइल फोटो।  





बुधवार, 12 मार्च 2014

अल के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए किसान समय पर दें पर्याप्त खुराक

अल की रोकथाम के लिए किसी भी तरह के कीटनाशकों का प्रयोग ना करें किसान
फसल में मौजूद कूदरती कीटनारियों की मदद से ही होगा अल पर कंट्रोल

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिछले कई दिनों से मौसम में हो रहे परिवर्तन के कारण गेहूं तथा सरसों की फसल में अल (चेपा) का प्रकोप बढऩे लगा है। गेहूं और सरसों की फसल मेंं बढ़ते अल के प्रकोप को देखकर किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींचने लगी हैं। अल को कंट्रोल करने के लिए किसान फसल में महंगे-महंगे कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर रहे हैं। महंगे-महंगे कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी सरसों व गेहूं की फसल से अल का प्रकोप कम नहीं हो रहा है। वहीं कृषि विभाग ने किसानों की परेशानी को समझते हुए अल का तोड़ फसल में ही मौजूद मांसाहारी कीटों में ढूंढ़ निकाला है। कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा किसानों को अल को कंट्रोल करने के लिए फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाये फसल में मौजूद मांसाहारी कीटों की पहचान करने तथा फसल को पर्याप्त खुराक देने की गाइड लाइन जारी की गई हैं।  

क्या है अल (चेपा)

एडीओ डॉ. कमल सैनी के अनुसार अल कोई बीमारी नहीं है। यह एक शाकाहारी कीट है, जो पौधों से रस चूसकर अपना जीवन यापन करता है। इस कीट का प्रकोप मुख्यत फरवरी से मार्च माह तक अधिक होता है। यह कीट हरे रंग की जूं की तरह होता है। अल शिशु तथा प्रौढ़ दोनों ही अवस्थाओं में पौधों की कोमल पत्तियों व गेहूं की बालियों से रस चूसता है। अल से प्रकोपित पौधे की पत्तियां मुराझा जाती हैं। यह कीट शर्करायुक्त चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है। इससे चीटियां इन पौधों की तरफ आकॢषत होती हैं। इस कीट की साल में १२ से १४ पीढिय़ां पाई जाती हैं, जो समय-समय पर अलग-अलग फसलों में आती रहती हैं। इसलिए इस कीट की बीजमारी नहीं हो सकती।  

फसल में कब बढ़ता है अल का प्रकोप

फसल में नाइट्रोजन युक्त खाद का अधिक प्रयोग करने तथा आसमान में बादल छाए रहने के कारण फसल में अल की शुरूआत होती है। छिटपुट बारिश के कारण अल का प्रकोप ज्यादा बढ़ता है। इस समय बारिश का मौसम रहने के कारण गेहूं तथा सरसों की फसल में इसका प्रकोप ज्यादा बढ़ रहा है। 

किसान कैसे करें अल की रोकथाम

जिला कृषि उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग का कहना है कि जानकारी के अभाव में किसान आमतोर पर कीटों को नियंत्रित करने के लिए रासायनों का प्रयोग करते हैं लेकिन ज्यादातर देखने को मिलता है कि रासायनों के प्रयोग से भी कीट नियंत्रित नहीं हो पाते। डॉ. सिहाग ने बताया कि कीटों को नियंत्रित करने के लिए हमारी फसलों में मौजूद मांसाहारी कीट ही हमारे लिए कूदरती कीटनाशी का काम करते हैं। इस समय गेहूं तथा सरसों के पौधों पर अल के प्राकृतिक कीटनाशी या परभक्षी कीट देखेे जा सकते हैं। इनमें सिॢफड मक्खी, लेडी बर्ड बीटल के बच्चे, क्राइसोपा के बच्चे प्रमुख हैं जो अल को बड़े चाव के साथ खाकर इसे नियंत्रित करने का काम करते हैं। इसके साथ-साथ एक्डियस नामक कीट अल का परजीवी है जो कि अल के पेट में अपने अंडे देता है, जिससे अल का आकार बढ़ जाता है और एक्डियस नामक कीट को जन्म देता है। इस प्रकार फसल में मौजूद यह मांसाहारी कीट अपने आप ही अल को कंट्रोल कर देते हैं। अल को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशक की जरूरत नहीं है। बस जरूरत है तो किसानों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान करने तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी लेने की। 
मांसाहारी कीट क्राइसोपा का फोटो।

पौधों को समय पर दें पर्याप्त खुराक

कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि फसल को अल के प्रकोप से बचाने के लिए फसल को पर्याप्त रूप से खुराक देना भी बेहद जरूरी है। अल के प्रकोप के दौरान समय-सयम पर फसल मेें पोषक तत्वों का छिड़काव करें। इसमें प्रति एकड़ के लिए अढ़ाई किलो यूरिया, अढ़ाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक  29 प्रतिशत का 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर फसल में इसका छिड़काव करें। एक-एक सप्ताह के अंतराल पर इसका छिड़काव किया जा सकता है। यह घोल अल से फसल को होने वाले नुकसान की पूर्ति कर फसल को दोगुणा फायदा पहुंचाता है। इसके प्रयोग से पैदावार में भी बढ़ौतरी होती है। 

फसल में कूदरती कीटनाशी का काम करने वाली लेड़ी बर्ड बीटल का फोटो।

गेहूं की फसल में मौजूद अल को चट करता मांसाहारी कीट का फोटो। 




सोमवार, 10 मार्च 2014

अब भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में सुनाई देगा बेजुबानों का दर्द

कीट साक्षरता की मुहिम को देश में फैलाने की किसानों की मांग को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करेगी भाजपा
रविवार को किसानों के साथ हुई भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में भाजपा नेताओं ने किसानों को दिया आश्वासन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। अब भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में जनहित के मुद्दों के साथ-साथ बेजुबान कीटों का दर्द भी सुनाई देगा। फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण मारे जा रहे कीटों को बचाने की किसानों की मांग को भाजपा नेताओं ने अपने घोषणा पत्र में शामिल करने का आश्वासन दिया है। रविवार को भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के दिल्ली स्थित आवास पर भाजपा नेताओं के साथ हुई जींद के कीटाचार्य किसानों की बैठक में भाजपा नेताओं ने कीट ज्ञान की इस मुहिम को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने पर सहमति जता दी है। इतना ही नहीं भाजपा नेताओं ने इस मुहिम को पूरे देश में फैलाने के लिए सत्ता में आने पर इस मुहिम के लिए अलग से प्रोजैक्ट तैयार करवाने का वायदा भी किसानों से किया है। 
फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को देखते हुए भाजपा पार्टी द्वारा रविवार को भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के दिल्ली के राय सिन्हा रोड पर स्थित कोठी नंबर छह में देशभर के प्रगतिशील किसानों की एक बैठक बुलाई थी। इस बैठक में भाग लेने के लिए भाजपा के केंद्रीय एवं किसान नेता नरेश सिरोही द्वारा जींद के कीटाचार्य किसानों को भी आमंत्रित किया गया था। भाजपा के आमंत्रण को स्वीकार करते हुए रविवार को जींद से खाप प्रतिनिधि कुलदीप ढांडा के नेतृत्व में जींद जिले से दो महिला तथा दो पुरुष किसान भाजपा की बैठक में भाग लेने के लिए दिल्ली पहुंचे थे। बैठक में हरियाणा के किसानों का प्रतिनिधित्व करते हुए कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक ने भाजपा नेताओं को बताया कि फसलों में जिस तरह से अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा वह सब जानकारी के अभाव में किया जा रहा है। किसानों को फसलों में मौजूद कीटों की पहचान नहीं है और न ही उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी है। जानकारी के अभाव के कारण किसान फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर बेजूबान कीटों को मार रहे हैं। इससे हमारा खान-पान तथा पर्यावरण दूषित हो रहा है। मलिक ने बताया कि अगर खान-पान तथा पर्यावरण को दूषित होने से बचाना है तो सबसे पहले किसानों को  फसलों में मौजूद कीटों की पहचान करवाकर जागरूक करना होगा। किसानों को जागरूक किये बिना खान-पान तथा पर्यावरण को दूषित होने से बचाना संभव नहीं है। किसानों को जागरूक करने के लिए बैठक में किसानों ने भाजपा नेताओं के सामने चार मांगें रखी। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने किसानों की इस मुहिम को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने का आश्वासन दिया। 

यह रखी मांगें 

1. कृषि प्रधान देश को कृषक प्रधान देश बनाने के लिए रेल बजट की तर्ज पर कृषि के लिए अलग से बजट बनाया जाये। 
2. किसानों की कीट साक्षरता की मुहिम के लिए एक अलग से प्रोजैक्ट तैयार किया जाये
3. प्रोजैक्ट का नाम कीट क्रांति के जन्मदाता स्व. डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से रखा जाये। 
4. कृषि क्षेत्र में स्व. डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा किये गये कार्यों को देखते हुए डॉ. दलाल को मरणोपरांत राष्ट्रपति अवार्ड दिया जाये।

जींद के इन किसानोंं ने की भाजपा नेताओं से मुलाकात

गांव ललितखेड़ा से कीटाचार्य किसान रामदेवा, महिला किसान सविता, गांव निडाना से महिला किसान मिन्नी मलिक और कीटाचार्य रणबीर मलिक तथा बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने रविवार को भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहरजोशी से मुलाकात की। 





शनिवार, 8 मार्च 2014

कीटों को मारने की नहीं पहचानने की जरूरत

एकीकृत कीट प्रबंधन विषय पर एक दिवसीय सेमिनार
सेमिनार में कीट प्रबंधन पर कृषि अधिकारियों और किसानों के बीच हुई चर्चा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को बचाने के लिए हरियाणा किसान आयोग तथा कृषि विभाग के सौजन्य से शुक्रवार को जींद के रोहतक रोड स्थित किसान प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन विषय पर बुद्धिशीलता सत्र का आयोजन किया गया। हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन डॉ. आरएस परोदा ने सेमिनार में बतौर मुख्यातिथि तथा सचिव डॉ. आरएस दलाल, सिरसा रीजनल सेंटर के डायरेक्टर डॉ. डी. मोंगा, एनसीआईपीएम के डायरैक्टर सी चटोपाध्या, हमेटी के डायरैक्टर डॉ. बीएस नैन, जिला उप-कृषि निदेशक डॉ. आरपी सिहाग, हिसार उद्यान विभाग के डीएचओ. डॉ. बलजीत भ्याण और बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने विशेष अतिथि के तौर पर मौजूद रहे। सेमिनार में किसान आयोग, कृषि विभाग के अधिकारियों तथा किसानों के बीच फसलों में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के महत्व पर विस्तार से चर्चा की गई। कृषि विभाग के अधिकारियों तथा किसानों ने बारी-बारी अपने-अपने विचार रखे। डॉ. आरएस परोदा ने कहा कि जींद के किसानों ने एक अच्छी पहल शुरू की है। इसलिए इस पर रिसर्च की जरूरत है। 

कीटों को काबू करने की नहीं कीटों को पहचानने की जरूरत 

सेमिनार में मौजूद कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक ने कहा कि कीटों से फसलों को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए पहले कृषि विभाग ने कीटों को नियंत्रण करने का प्लान बनाया लेकिन कीट नियंत्रित नहीं हुये। इसके बाद कीटों का प्रबंधन करने की सोची लेकिन यहां भी विभाग को कोई सफलता नहीं मिली। अब समकेतिक कीट प्रबंधन पर जोर दिया जा लेकिन इससे भी बात नहीं बन रही है। मलिक ने कहा कि कीटों को न तो काबू करने की जरूरत है और न ही कीटों का प्रबंधन करने की जरूरत है। जरूरत है तो सिर्फ किसानों को कीटों की पहचान करवाने की। अगर किसानों को फसलों में मौजूद कीटों की पहचान हो गई तो आगे का फैसला किसान खुद-बे-खुद कर लेगा। 
 प्रोजेक्टर के माध्यम से कीटों के बारे में जानकारी देती महिला किसान।

कीटों को न समझें मित्र और समझें दुश्मन

मास्टर ट्रेनर किसान मनबीर रेढ़ू ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसल में 18 प्रतिशत नुकसान कीटों से होता है लेकिन जानकारी के अभाव में किसान इस नुकसान को बचाने के लिए इससे ज्यादा खर्च फसल पर कर देता है। रेढ़ू ने कहा कि किसान और कृषि विभाग के अधिकारियों के बीच भाषा का अंतर है। विभाग द्वारा कीटों को दो भागों में बांट कर मित्र और दुश्मन की श्रेणी में रखा गया है। जबकि कीट न तो हमारे मित्र हैं और न ही हमारे दुश्मन। कीट तो फसल में अपना जीवन यापन करने के लिए आते हैं और पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर अपनी सुरक्षा के लिए कीटों को बुलाते हैं। रेढ़ू ने कपास की फसल में पाई जाने वाली ब्रिस्टल बिटल का उदाहरण देते हुए कहा कि ब्रिस्टल बिटल कपास के फूल, पत्तियां और नर पुंकेशर को खाती है। इसको देखकर किसान भयभीत हो जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि कपास के उत्पादन में ब्रिस्टल बिटल का अहम योगदान है। क्योंकि ब्रिस्टल बिटल फूल के मादा भाग पर बैठकर पुंकेशर तथा पत्तियां खाती है। इस प्रक्रिया में नर का पोलन मादा तक पहुंचता है और इससे आगे चलकर टिंड्डे बनते हैं। 

यह रखे सुझाव 

सेमिनार में मौजूद महिला किसान।
बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि इस मुहिम को प्रदेश में फैलाने के लिए मास्टर ट्रेनर किसानों को अन्य जिलों के किसानों को ट्रेनिंग देने के लिए समय-समय दूसरे जिलों में भेजा जाए। 
किसानों द्वारा एक एकड़ के लिए 100 लीटर पानी में अढ़ाई किलो डीएपी, अढ़ाई किलो यूरिया तथा आधा किलो जिंक का जो घोल तैयार कर फसलों में छिड़काव किया जाता है, उसे कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से वैज्ञानिक तौर पर मंजूरी दिलवाई जाए। 

प्रोजेक्टर के माध्यम से दिया कीट ज्ञान 

सेमिनार में मौजूद महिला किसानों ने भी प्रोजेक्टर के माध्यम से फसलों में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। महिला किसान सविता ने बताया कि अगस्त माह में कपास की फसल के पत्ते बड़े हो जाते हैं और इससे नीचे के पत्तों तक धूप नहीं पहुंचती। इससे पौधे की भोजन बनाने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इस दौरान पौधे अपनी सहायता के लिए टिड्डों को बुलाते हैं। टिड्डे ऊपरी पत्तों के बीच में छोटे-छोटे छेद कर देते हैं। इससे नीचे के पत्तों तक भी धूप पहुंच जाती है और पौधे के सभी पत्ते भोजन बनाने लगते हैं। 


सेमिनार में भाग लेते कृषि अधिकारी तथा किसान। 







प्रदेश के किसानों को जहरमुक्त खेती का संदेश देंगे जींद के किसान

जहरमुक्त खेती की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए किसान आयोग ने थामा जींद के किसानों का हाथ 

इनोवेशन फंड के तहत हर वर्ष हरियाणा किसान आयोग खर्च करेगा दो करोड़

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद जिले से शुरू हुई थाली को जहरमुक्त बनाने की मुहिम से अब पूरे प्रदेश के किसान जुड़ेंगे। जिले के मास्टर ट्रेनर किसान अब प्रदेशभर के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे। कीट ज्ञान की इस मुहिम को प्रदेश के सभी किसानों तक पहुंचाने के लिए हरियाणा किसान आयोग माध्यम बनेगा। किसान आयोग द्वारा इस मुहिम को शिखर तक पहुंचाने के लिए इनोवेशन फंड के तहत हर वर्ष दो करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। शुक्रवार को जींद के किसान प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में कपास में एकीकृत कीट प्रबंधन विषय पर आयोजित बुद्धिशीलता सत्र के दौरान हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन डा. आरएस परोदा ने जींद के किसानों की इस मुहिम को प्रदेशभर में फैलाने की मांग पर अपनी सहमति की मोहर लगा दी है। 
फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान को देखते हुए कृषि विभाग के एडीओ डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में वर्ष 2008 में जींद जिले के निडाना गांव से कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम की शुरूआत हुई थी। इस मुहिम से जुड़े किसानों द्वारा पिछले पांच-छह वर्षों से अपने खर्च पर किसाना पाठशालाओं का आयोजन कर इस मुहिम को आगे बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं। कीटों पर किसानों द्वारा किये जा रहे सफल प्रयोगों को देखते हुए पिछले दो वर्षों से जींद जिले के कृषि विभाग के अधिकारी भी इन किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे लेकिन संशाधनों तथा बजट के अभाव के कारण प्रदेशभर के किसानों को इस मुहिम से जोडऩे में जींद के मास्टर ट्रेनर किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। जींद जिले में चल रही कीट ज्ञान की इस मुहिम की सार्र्थकता को देखते हुए अब हरियाणा किसान आयोग ने जींद जिले के इन कीटाचार्य किसानों का हाथ थाम लिया है। हरियाणा किसान आयोग अब कीट ज्ञान की इस मुहिम को प्रदेशभर में फैलाने के लिए जींद के किसानों को मास्टर ट्रेनर के तौर पर प्रदेश के अन्य जिलों में भेजेगा। इसके लिए आयोग द्वारा 2 करोड़ का बजट तैयार किया गया है। आयोग द्वारा प्रगतिशील किसानों के अनुभवों को अन्य जिलों के किसानों तक पहुंचाने के लिए हर वर्ष दो करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे। इनोवेशन फंड के तहत दो करोड़ हरियाणा किसान आयोग खर्च करेगा तथा एक करोड़ रुपये मार्केटिंग बोर्ड से एकत्रित करेगा। 

वैज्ञानिक रूप से अनुमति दिलवाने के लिए होगा रिसर्च

जींद के किसानों द्वारा कीटों पर किए गए शोध को वैज्ञानिक रूप से अनुमति दिलवाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय में इस काम पर वैज्ञानिक शोध भी करवाया जाएगा। शोध के बाद कृषि विभाग से इस काम को वैज्ञानिक तौर पर अनुमति मिलने के बाद इस मुहिम को प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर के किसानों तक पहुंचाने में काफी आसानी होगी। 
डॉ. आरएस परोदा के चेयरमैन हरियाणा किसान आयोग
किसानों से बातचीत करते हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन डॉ. आरएस परोदा। 





दिल्ली तक पहुंची जींद के किसानों की कीट साक्षरता की गूंज

राहुल गांधी के बाद अब भाजपा पार्टी ने किसानों को भेजा निमंत्रण
नौ मार्च को दिल्ली में भाजपा नेताओं के साथ मुलाकात करेंगे जींद के किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद जिले से शुरू हुई कीट ज्ञान की मुहिम की आवाज दिल्ली तक पहुंच गई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बाद अब भाजपा नेताओं ने कीट साक्षरता की इस मुहिम से रूबरू होने के लिए कीटाचार्य किसानों को दिल्ली बुलाया है। भाजपा नेताओं की तरफ से मिले निमंत्रण पर जिले के कीटाचार्य किसान नौ मार्च को भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के दिल्ली स्थित आवास पर भाजपा नेताओं से मुलाकात कर कीट साक्षरता की मुहिम से अवगत करवाएं। अगर कीटाचार्य किसान कीट ज्ञान की इस मुहिम को भाजपा नेताओं के समक्ष प्रस्तुत करने में सफल रहे तो आगामी चुनाव में भाजपा पार्टी अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस मुहिम को शामिल करेगी। 
थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए वर्ष 2008 में डा. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में जींद जिले के किसानों द्वारा निडाना गांव से शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम लगातार रफ्तार पकड़ रही है। कीट ज्ञान की यह मुहिम अब जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश से बाहर निकलकर दिल्ली तक जा पहुंची है। मजे की बात तो यह है कि अब तो राजनीतिक पार्टियों ने भी इस मुहिम में अपनी दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी है। गत 24 फरवरी को गन्नौर में आयोजित किसान संसद में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कीट ज्ञान की इस मुहिम की तह तक जाने के लिए खुद इन किसानों से मुलाकात की थी और किसानों को जल्द ही इस मुहिम पर काम शुरू करवाने का आश्वासन दिया था। राहुल गांधी के बाद अब भाजपा पार्टी की तरफ से इन किसानों को निमंत्रण भेजा गया है। भाजपा के केंद्रीय एवं किसान नेता नरेश सिरोही द्वारा कीटाचार्य किसानों को नौ मार्च को दिल्ली में बुलाया गया है। नौ मार्च को यह किसान भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की राय सिन्हा रोड पर स्थित कोठी नंबर 6 पर होने वाली बैठक में भाजपा नेताओं से मुलाकात करेंगे। सुबह 11 से दोपहर 2 बजे तक भाजपा नेताओं और किसानों के बीच बातचीत का दौर चलेगा। इस दौरान कीटाचार्य किसान भाजपा नेताओं को इस मुहिम की शुरूआत कैसे हुई, किस तरह इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा सकता है तथा इस मुहिम से देश के लोगों को क्या लाभ होगा? इसके बारे में विस्तार से समझाएंगे। 

चुनावी घोषणापत्र में शामिल हो सकती है किसानों की यह मुहिम

नौ मार्च को दिल्ली में भाजपा नेताओं के साथ होने वाली बैठक के दौरान यदि कीटाचार्य किसान भाजपा नेताओं को इस मुहिम की तरफ आकॢषत करने में सफल रहते हैं तो भाजपा पार्टी किसानों की इस मुहिम को पूरे देश में फैलाने की मांग को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल कर सकती है। 

किसान आयोग और कृषि अधिकारियों को कीट ज्ञान देंगे जींद के किसान

सात मार्च को जींद के किसान प्रशिक्षण केंद्र में होगा एक दिवसीय सैमीनार का आयोजन

नरेंद्र कुंडू
जींद। कीट साक्षरता की मुहिम से जुड़े जींद जिले के किसान अब कृषि विभाग तथा हरियाणा किसान आयोग के अधिकारियों को कीट ज्ञान की मुहिम से रू-ब-रू करवाएंगे। इसके लिए सात मार्च को जींद के रोहतक रोड स्थित किसान प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में एक दिवसीय सैमीनार का आयोजन किया जाएगा। इस सैमीनार में हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन डॉ. पड़ौदा, सचिव डा.. आर.एस. दलाल, कोर्डिनेटर डॉ. श्रीवास्तवा, नई दिल्ली स्थित एनसीआईटीएम के डायरेक्टर, सिरसा तथा नागपूर स्थित काटन रीजनल सैंटर के डायरेक्टर, हिसार एग्रीकल्यर यूनिवर्सिटी के प्रचार-प्रसार एवं अनुसंधान निदेशक डॉ. एस एस सिवाच सहित कई अन्य कृषि अधिकारी भाग लेंगे। इस कार्यक्रम में मौजूद अधिकारी कीट कमांडो किसानों के साथ कीटों पर गहन मंथन करेंगे। 
फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को जहरमुक्त बनाने के लिए जींद जिले के किसानों द्वारा वर्ष 2008 में कीट ज्ञान की मुहिम शुरू की गई थी। कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े इन किसानों द्वारा पिछले पांच-छह वर्षों में फसलों में मौजूद कीटों की पहचान करने के साथ-साथ कीटों के क्रियाकलापों पर काफी शोध किए गए हैं। इन किसानों द्वारा अब तक २०६ किस्म के मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान की जा चुकी है। वर्ष 2008  से जींद जिले में चल रही कीट ज्ञान क्रांति की यह मुहिम अब रंग लाने लगी है। पंजाब के किसानों के बाद हाल ही में गन्नौर में आयोजित किसान सम्मेलन में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाने के बाद अब जींद के यह कीट कमांडो किसान हरियाणा किसान आयोग तथा कृषि विभाग के अधिकारियों को कीट ज्ञान की इस मुहिम से रू-ब-रू करवाएंगे। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा सात मार्च को जींद के किसान प्रशिक्षण केंद्र में एक दिवसीय सैमीनार का आयोजन किया गया है। इस सैमीनार की अध्यक्षता कृषि विभाग जींद के उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग करेंगे। सैमीनार में हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन डॉ. पड़ौदा, सचिव डा.. आर.एस. दलाल, कोर्डिनेटर डॉ. श्रीवास्तवा, नई दिल्ली स्थित एनसीआईटीएम के डायरेक्टर, सिरसा तथा नागपूर स्थित काटन रीजनल सैंटर के डायरेक्टर, हिसार एग्रीकल्यर यूनिवर्सिटी के प्रचार-प्रसार एवं अनुसंधान निदेशक डॉ. एस एस सिवाच सहित कई अन्य कृषि अधिकारी भाग लेंगे। इस सैमीनार के बाद किसान आयोग तथा कृषि विभाग द्वारा इस मुहिम को पूरे प्रदेश के किसानों तक पहुंचाने के लिए योजना तैयार की जाएगी। 

आठ घंटों तक कीटों पर होगा गहन मंथन

सात मार्च को जींद के किसान प्रशिक्षण केंद्र में आयोजित होने वाले एक दिवसीय सैमीनार में जींद के कीट कमांडों किसानों तथा किसान आयोग और कृषि विभाग के अधिकारियों के बीच कीटों पर गहन मंथन किया जाएगा। सैमीनार सुबह नौ से सायं चार बजे तक चलेगा। किसानों द्वारा सैमीनार में मौजूद अधिकारियों को कीट फसल में क्यों आते हैं और फसलों पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है इसके बारे में अपने अनुभव बताए जाएंगे।