सोमवार, 28 जनवरी 2013

पूरे वर्ष प्रदेश के किसानों के लिए मार्गदर्शक बने रहे निडाना व ललितखेड़ा के किसान


निडाना व ललित खेड़ा के किसानों ने ढुंढ़ा कीटनाशकों का विकल्प 
पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसानों को पढ़ाया कीटों की पढ़ाई का पाठ

नरेंद्र कुंडू
जींद। किसानों में जागरूकता के अभाव के कारण फसलों में अधिक उर्वकों तथा कीटनाशकों के प्रयोग के कारण आज कैंसर, हार्ट अटैक, शुगर, सैक्स सम्बंधि कई लाइलाज बीमारियों ने इंसान को अपनी चपेट में ले लिया है। किसानों को जानकारी नहीं होने के कारण किसान लगातार कीटनाशकों के दलदल में धंसते ही जा रहे हैं लेकिन जिले के निडाना तथा ललितखेड़ा के किसानों ने प्रदेश के किसानों को नई राह दिखाने का काम किया है। एक तरफ जहां किसान फसलों के अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं, वहीं निडाना तथा ललितखेड़ा के किसानों ने बिना कीटनाशकों के अच्छा उत्पादन लेकर प्रदेश ही नहीं अपितू देश के किसानों के लिए एक मिशाल कायम की है। निडाना व ललितखेड़ा के किसानों ने फसलों में पाए जाने वाले शाकाहारी तथा मासाहारी कीटों को कीटनाशकों के विकल्प के रूप में तैयार किया है। कीटनाशकों के विरोध में 2008 में निडाना गांव के गौरे से शुरू हुई यह मुहिम 2012 तक जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश के बाहर भी जा पहुंची। अपनी इस अनोखी पढ़ाई के कारण यहां के किसान पूरे वर्ष चर्चा का विषय बने रहे। 2012 में यहां के किसानों ने जहां खाप पंचायत का आयोजन कर इस मुहिम को एक नई दिशा दी, वहीं पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसानों को भी कीटों की पढ़ाई सीखाकर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से मुक्ति पाने की संजीवनी दिखा दी। निडाना तथा ललितखेड़ा के किसानों ने फसलों में नए-नए प्रयोग कर 146 किस्म के मासाहारी तथा 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की खोज की है जो फसलों में कीटनाशकों का काम करते हैं। यहां के किसानों का कहना है कि कीटनाशक किसान को धोखा दे सकते हैं लेकिन फसलों में मौजूद शाकाहारी तथा मासाहारी कीट किसान को धोखा नहीं देते। किसानों का मानना है कि अगर किसान अपनी फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करे तो मासाहारी कीट ही उसकी फसल में कीटनाशक का काम कर देते हैं और उनकी थाली भी जहर से मुक्त हो सकती है।  
68 किस्म के कीटनाशक हो चुके हैं कैंसरकार घोषित
 किसान पाठशाला में मौजूद किसानों का फाइल फोटो। 


 महिला किसान पाठशाला में भाग लेती महिलाएं।
देश में 223 किस्म के कीटनाशक रजिस्टर्ड हैं। इनमें से 68 किस्म के ऐसे कीटनाशक, खरपतवार नाशक तथा फफुंदनाशी हैं जिन्हें यू.एस.ए. की पर्यावरण सुरक्षा एजैंसी कैंसरकारक घोषित कर चुकी है लेकिन इसके बावजूद भी ये कीटनाशक धड़ले से बिक रहे हैं। 

पूरा वर्ष चर्चा में बने रहे किसान

अपने इस अनोखे प्रयोग के कारण निडाना तथा ललितखेड़ा के किसान पूरा वर्ष यहां के किसानों तथा कृषि विभाग के लिए चर्चा का विषय बने रहे। किसानों तथा कीटों के बीच पिछले 40 वर्षों से चली आ रही जंग को खत्म करवाने के लिए लगातार 18 सप्ताह तक खाप पंचायतों का आयोजन कर खाप के चौधरियों को भी कीटों की पढ़ाई पढऩे के लिए मजबूर कर दिया। इसके अलावा पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसानों को भी कीटों की पढ़ाई पढ़ाकर कीटनाशकों से बचने का एक अचूक शस्त्र थमा दिया। अपनी इस अनोखी पढ़ाई के कारण यहां के किसानों ने सत्यमेव जयते, रेडियो, दूरदर्शन सहित अन्य चैनलों के माध्यम से देश में कीटनाशक रहित खेती की अलख जगाई। 

तेजी से बढ़ रहा है कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ

20 वर्षों में कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। अकेले ङ्क्षहदुस्तान में लगभग 40 हजार करोड़ के कीट रसायनों, लगभग 50 हजार करोड़ के खरपतवार नाशकों तथा लगभग 30 हजार करोड़ बीमारी, फफुंद व जीवाणु नाशक रसायनों का कारोबार होता है। इस कारोबार से होने वाली आमदनी का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा विदेशों में जा रहा है। इसमें से जींद जिले के राजपुरा भैण गांव में कीटनाशकों का सबसे ज्यादा प्रयोग होता है। अकेले 3 करोड़ के कीटनाशक राजपुरा भैण के किसान खरीदते हैं। 

पुरुषों के साथ-साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं महिलाएं 

निडाना तथा ललितखेड़ा की महिलाएं भी किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। इन महिलाओं ने भी पुरुषों की तर्ज पर लगभग 20 सप्ताह तक महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन कर खेतों में नए-नए प्रयोग कर अपनी दक्षता  का परिचय दिया। इतना ही नहीं इन महिलाओं ने तो पुरुषों से आगे निकलते हुए कीटों पर गीतों की रचना भी की हुई है। इस पाठशाला में निडानी, निडाना तथा ललितखेड़ा से 70 के लगभग महिलाएं जुड़ चुकी हैं और ये सभी महिलाएं अपने खेतों में एक छटांक भी जरह का इस्तेमाल नहीं करती हैं। 



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