शनिवार, 17 नवंबर 2018

जींद की धरती पर दादा की विरासत का वारिश बना गया डॉ. अजय चौटाला का परिवार

कहा, मैं अपने बेटे दुष्यंत को तुम्हें सौंप कर जा रहा हूं
--काफी लंबे समय से खुड़े लाइन रहे अजय के नजदीकी कार्यकर्ताओं में दिखा जोश
--चौधरी देवीलाल की तर्ज पर 9 दिसंबर को जींद की धरती पर ही होगा समस्त हरियाणा सम्मेलन
--चंडीगढ़ में बैठकर चौधरी देवीलाल की विचारधारा को खोखला करने का काम कर रहे हैं कुछ लोग

जींद, 17 नवंबर (नरेंद्र कुंडू) :- जींद के जिस मैदान से चौधरी देवीलाल ने न्याय युद्ध की शुरूआत कर हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन करने का काम किया था, उसी मैदान पर 32 वर्ष बाद चौधरी देवीलाल के पोते डॉ. अजय चौटाला ने भारी भीड़ जुटा कर उनकी विरासत का वारिश बनने का काम किया। पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के अभय चौटाला के पक्ष में जाने से चौधरी देवीलाल की जो विरासत अभय चौटाला के पक्ष में जाती नजर आ रही थी, उस विरासत को शनिवार को डॉ. अजय चौटाला ने कार्यकर्ताओं से मिले भारी जनसमर्थन के माध्यम से अपने पक्ष में कर लिया। डॉ. अजय चौटाला के परिवार के प्रति लोगों में काफी सहानुभूति नजर आई। डॉ. अजय चौटाला, दुष्यतं चौटाला व दिग्विजय चौटाला से मिलने के लिए लोगों में काफी उत्साह था। डॉ. अजय चौटाला के जेल में जाने के बाद अभय चौटाला द्वारा खुड़े लाइन लगाए गए डॉ. अजय चौटाला के नजदीकी कार्यकर्ताओं में काफी जोश दिखा। हजारों की संख्या में जींद में पहुंचे कार्यकर्ता अजय चौटाला व दुष्यंत चौटाला से मिलने के लिए बेताब नजर आ रहे थे। अब आगामी 9 दिसंबर को जींद की इसी धरती से डॉ. अजय चौटाला प्रदेश स्तरीय रैली कर अपनी नई पार्टी की शुरूआत करेंगे। जींद में शनिवार को हुए कार्यकर्ता सम्मेलन ने पूरी तरह से रैली का स्वरूप धारण कर लिया था। हजारों कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में डॉ. अजय चौटाला ने दरियादिल दिखाते हुए इनैलो पार्टी व चश्मा अपने भाई अभय चौटाला को सौंप दिया। इससे लोगों की सहानुभूति अजय चौटाला के परिवार के प्रति ओर भी ज्यादा बढ़ गई। डॉ. अजय चौटाला ने कहा कि वह 20 को वापिस जेल जा रहे हैं और आपके द्वारा दिए गए त्यागपत्रों को वह ओमप्रकाश चौटाला को दिखा कर बताएंगे कि असली पार्टी तो यहां है, दूसरी तरफ तो लोग पार्टी को कमजोर करने का काम कर रहे हैं। 

चौधरी देवीलाल व अजय चौटाला के परिवार के पक्ष में लगे नारे

कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान दीप पैलेस में मौजूद कार्यकर्ताओं ने चौधरी देवीलाल, डॉ. अजय चौटाला, दुष्यंत, दिग्विजय व नैना चौटाला के पक्ष में ही नारे लगाए। इस दौरान कार्यकर्ताओं द्वारा ओमप्रकाश चौटाला के पक्ष में नारे लगाने से भी परहेज रखा गया। चौधरी देवीलाल व अजय चौटाला के परिवार के पक्ष में लग रहे इन नारों से यह साफ हो गया कि डॉ. अजय चौटाला अपने दादा चौधरी देवीलाल की विरासत के वारिश बनने में सफल हो गए हैं। 

अपने बेटे दुष्यंत को तुम्हें सौंप कर जा रहा हूं

डॉ. अजय चौटाला ने कहा कि जब तक मैं राजनीति में रहा तब तक पार्टी को मजबूत बनाने का काम किया। कार्यकर्ताओं के मान-सम्मान के लिए लड़ाई लड़ी लेकिन मेरे जेल में जाने के बाद दुष्यंत और दिग्विजय ने मेरी कमी को पूरा करने का प्रयास किया। इसलिए अब मैं दुष्यंत को आप लोगों को सौंप कर जा रहा हूं। आप लोगों को ही इनका ख्याल रखना है। 

मैं तो कार्यकर्ताओं के मान-सम्मान के लिए सजा भुगत रहा हूं।

डॉ. अजय चौटाला ने कहा कि मेरे ऊपर न तो कोई एफआईआर है और न ही मैंने कोई जुर्म किया है लेकिन फिर भी मैं 10 वर्षों की सजा काट रहा हूं क्या यह सब मैं मुख्यमंत्री बनने के लिए कर रहा हूं। मैं तो कार्यकर्ताओं के मान-सम्मान के लिए यह सजा काट रहा हूं। 

अभय से पूछो राजस्थान बीजेपी के लिए वोट मांगने क्यों जाता है। 

डॉ. अजय चौटाला ने कहा कि कुछ लोग मुझ पर आरोप लगा रहे हैं कि मैंने तो 10 साल राजस्थान में राजनीति की लेकिन मैंने वहां राजनीति चौधरी देवीलाल की विचारधारा को मजबूत बनाने के लिए की। डॉ. चौटाला ने कहा कि कभी आपको अभय मिले तो उससे यह जरूर पूछना कि वह राजस्थान अपने साले के लिए बीजेपी के पक्ष में वोट मांगने क्यों जाता है। राजस्थान में अब फिर चुनाव हैं वहां वह अब फिर वोट मांगने के लिए जाएगा। 

कुछ लोग चंडीगढ़ में बैठकर कर रहे हैं फर्जी काम

डॉ. अजय चौटाला ने कहा कि कुछ लोग चंडीगढ़ में बैठकर फर्जी काम कर रहे हैं। मुझे पार्टी से निष्कासित किया गया जबकि मैंने तो पार्टी विरोधी कोई काम किया ही नहीं। पार्टी से निकालने से पहले मेरी अपील या दलिल तक नहीं सुनी गई। बिना मेरी अपील सुनने ही मुझे पार्टी से निकाल कर प्रजातंत्र का गला घौंटने का काम किया गया है। डॉ. चौटाला ने कहा कि 12 नवंबर को मुझे पार्टी से निष्कासित किया गया और 15 नवंबर को ओमप्रकश चौटाला से पत्र पर साइन करवाए गए। 

दुष्यंत तुम आगे बढ़ो मैं तुम्हारे साथ हूं

विधायक नैना चौटाला ने कहा कि मैं तो मां हूं इसलिए मुझे दुष्यंत व दिग्विजय के निष्कासन का ज्यादा दुख है। नैना चौटाला ने कहा कि कुछ लोग उन्हें पेड कांग्रेसी बता कर उनका अपमान कर रहे हैं लेकिन उनका बेटा दुष्यंत चंडीगढ़ में डंका बजा कर यह साबित करेगा कि कौन पेड कांग्रेसी है और कौन असली लोकदली। नैना चौटाला ने कहा कि दुष्यंत तुम आगे बढ़ो मैं तुम्हारे साथ हूं। 

कुछ विधायकों को बनाया हुआ है बंधक : दिग्विजय

दिग्विजय चौटाला ने कहा कि अभय चौटाला ने चंडीगढ़ में कुछ विधायकों को जबरदस्ती बंधक बनाया हुआ है, जैसे ही वह वहां से आजाद होंगे वह सीधे उनके पास पहुंचेंगे। दिग्विजय चौटाला ने कहा कि उनके झंडे का रंग हरा ही रहेगा। 

जनप्रिय होना कोई अपराध तो नहीं : दुष्यंत

सांसद दुष्यंत चौटाला ने कहा कि कौनसी गलती है हमारी यह तो बता दो, कौनसी अनुसाशनहीनता है हमारी यह तो दिखा दो, यदि जनप्रिय होना कोई अपराध है तो जो सजा दो यह मर्जी है तुम्हारी।  दुष्यंत ने कहा कि कुछ लोग चौधरी देवीलाल की विचारधारा को खोखला करने का काम कर रहे हैं। सांसद ने कहा कि उन्हें इनैलो से निकाल दिया गया लेकिन अब वापिस इनैलो में लौटने को उनका जहन नहीं मानता है इसलिए वह अब अलग पार्टी बना कर अपनी लड़ाई लड़ेंगे और अपने कार्यकर्ताओं के मान-सम्मान के लिए इतना संघर्ष करेंगे कि ओमप्रकाश चौटाला भी उनके साथ ही मंच पर आकर उनके साथ खड़े होंगे। 

चौधरी चरण सिंह ने की थी चौधरी देवीलाल की छुट्टी

सांसद दुष्यंत चौटाला ने कहा कि चौधरी चरण सिंह ने चौधरी देवीलाल की पार्टी से छुट्टी की थी तो चौधरी देवीलाल ने राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित किया था। जब चौधरी देवीलाल ने चौधरी ओमप्राकश चौटाला की पार्टी से छुट्टी की तो चौधरी ओमप्रकाश चौटाला ने राजनीति में नया मुकाम हासिल किया अब चौधरी ओमप्रकाश चौटाला ने उनकी छुट्टी की है तो वह राजनीति में नया स्थान हासिल कर अपने साथ लगे कार्यकर्ताओं का मान-सम्मान बढ़ाएंगे। 

मोदी व राहुल के साथ लडऩी है लड़ाई

दुष्यंत चौटाला ने कहा कि राजा दशरथ ने भगवान श्रीराम को भी वनवास दिया था। कौरव ने पांडवों को भी वन में भेज दिया था अब उन दोनों भाइयों के साथ भी यही हुआ है लेकिन वह वनवास काट कर फिर से राज्य प्राप्त करने का काम करेंगे। सांसद ने कहा कि उन्हें इनैलो के साथ लड़ाई नहीं लडऩी है क्योंकि उनकी असली लड़ाई तो नरेंद्र मोदी व राहुल गांधी के साथ है। यदि वह इनैलो के साथ उलझ गए तो मोदी व राहुल के साथ लड़ाई कौन लड़ेगा। 


छोटे भाई बिल्लु को गिफ्ट करता हूं चश्मा और इनैलो, बशर्ते वह इसे संभाल कर रखे : अजय चौटाला

कहा, नए डंडे, नए झंडे व नए निशान के साथ करेंगे नई पार्टी का गठन-- एक सप्ताह में कानूनी प्रक्रिया पूरी कर करेंगे नई पार्टी का ऐलान--9 दिसंबर को जींद की प्रदेश स्तर की रैली कर दिखाएंगे ताकत

जींद, 17 नवंबर (नरेंद्र कुंडू) :- शहर के दीप पैलेस में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में डॉ. अजय सिंह चौटाला ने ऐलान करते हुए कहा कि ‘मैं इनेलो व चश्मा अपने छोटे भाई बिल्लु को गिफ्ट करता हूं।’ वह इसे संभालकर रखें। उन्होंने पहला इनेलो पर कब्जा करने, दूसरा किसी राष्ट्रीय पार्टी में शामिल होने व तीसरा नई पार्टी का गठन करने का प्रस्ताव रखा। कार्यकारिणी ने ध्वनि मत से नई पार्टी बनाने के प्रस्ताव को पारित कर दिया। अजय चौटाला ने कहा कि एक सप्ताह में कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद नई पार्टी की घोषणा कर दी जाएगी। इसके साथ-साथ नौ दिसंबर को जींद में नई पार्टी के बैनर नीचे महारैली करने का प्रस्ताव पारित किया गया। इसके बाद इनेलो के सभी पदाधिकारियों द्वारा 18 से 28 नवंबर तक इस्तीफे देने पर भी सभी ने मोहर लगा दी। 

लगभग दो बजे डॉ. अजय सिंह चौटाला, उनकी विधायक पत्नी नैना चौटाला, उकलाना से विधायक अनूप धानक व दादरी से विधायक राजदीप फौगाट दीप पैलेस में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में पहुंचे। इससे पहले सांसद दुष्यंत चौटाला व दिग्विजय सिंह चौटाला पहुंचे। लगभग डेढ़ घंटा चली प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में डॉ. अजय सिंह चौटाला ने कार्यकारिणी के सामने तीन प्रस्ताव रखे। इनेलो पर कब्जा करने, किसी राष्ट्रीय पार्टी में शामिल होने व नई पार्टी का गठन करने में से एक चुनने को कहा गया। सभी ने नई पार्टी बनाने के प्रस्ताव पर सहमति प्रकट की। सभी की सहमति मिलने के बाद अजय सिंह चौटाला ने कहा कि एक सप्ताह में कानूनी प्रक्रिया पूरी करके नई पार्टी की घोषणा की जाएगी। इसके साथ ही बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया कि नई पार्टी के बैनर तले नौ दिसंबर को जींद में ही महारैली की जाएगी। इसके साथ-साथ सभी ने सामूहिक इस्तीफे देने की भी घोषणा की। बैठक में कहा गया कि 18 से 28 नवंबर तक प्रदेशभर से इनेलो पदाधिकारी इस्तीफा देंगे। यह सभी इस्तीफे इनेलो के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला को सौंपे जाएंगे। प्रतिदिन दो जिलों के पदाधिकारी अपने इस्तीफे देंगे। इसके लिए भी एक शैड्यूल जारी किया गया। डॉ. अभय सिंह चौटाला ने कहा कि जिन लोगों ने रैली में नारे लगाए उन्हें कांग्रेसी बताया गया। उनकी पहचान की गई लेकिन इसके लिए दुष्यंत व दिग्विजय को पार्टी से निकालकर धक्काशाही चलाई गई। इसके बाद मैंने कभी पार्टी विरोधी कोई गतिविधि नहीं की लेकिन इसके बावजूद मुझे भी पार्टी से निकाल दिया गया। इस अवसर पर उनके साथ चौधरी सुल्तान सिंह, विधायक नैना चौटाला, उकलाना विधायक अनूप धानक, राजकुमार सैनी, मंगतराम, दादरी के विधायक राजबीर फोगट, अशोक शेरवाल, दिग्विजय चौटाला, अमित शर्मा, अशोक शेरवाल, पूर्व गृह मंत्री जगदीश नैयर, तेलू राम जोगी, राजेश मक्खन, राजेंद्र, राजेश खटक, विरेंद्र पाल, बलवीर सिंह बेनीवाल, कुमारी फूलमती, केसी बांगड़, रणजीत चिका, जयभगवान कश्यप, पंकज मेहता, ताऊ देवीलाल के पीएसओ रहे शमशेर सिंह आदि उपस्तिथ रहे।

त्यागपत्र देने के लिए यह बनाया शैड्यूल

18 नवंबर को हिसार व झज्जर
19 नवंबर को सोनीपत व पंचकूला
20 नवंबर को रोहतक व अंबाला
21 नवंबर को जींद व मेवात
22 नवंबर को भिवानी व फरीदाबाद
23 नवंबर को दादरी व कुरुक्षेत्र
24 नवंबर को पानीपत व गुडग़ांव
25 नवंबर को करनाल व रेवाड़ी
26 नवंबर को कैथल व महेंद्रगढ़
27 नवंबर को सिरसा व यमुनानगर
28 नवंबर को पलवल व फतेहाबाद

याचना नहीं अब रण होगा

डॉ. अजय सिंह चौटाला ने महाभारत का वाकया याद दिलवाया कि जब पांडवों ने दुर्योधन से 5 गांव मांगे तो दुर्योधन ने मना कर दिया था और कहा था कि मैं सुई की नोक जितनी जगह नहीं दूंगा। तब पांडवों ने कहा था कि जा दुर्योधन अब हम जाते हैं, ये संदेश सुनाते हैं। याचना नहीं अब रण होगा, जीवन या मरण होगा। दुर्योधन तू उत्तरदाई होगा। हिंसा का उत्तरदाई होगा।


जिस मैदान से दादा ने की थी न्याय युद्ध की शुरूआत आज उसी मैदान से दादा की विरासत को पाने के लिए पोता करेगा शंखनाद


32 साल पहले पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीदलाल ने भी इसी मैदान से भरी थी हुंकार
इनैलो के भविष्य को लेकर अजय चौटाला आज जींद के देवीलाल ग्राउंड में करेगा निर्णायक फैसला
जब-जब देवीलाल परिवार कमजोर हुआ तब-तब जींद जिले ने दी है देवीलाल परिवार को राजनीतिक ताकत

जींद, 16 नवंबर (नरेंद्र कुंडू) :- देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी देवीलाल ने लगभग 32 वर्ष पूर्व जिस मैदान से तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ न्याय युद्ध छेड़ा था उसी मैदान से आज उसका पोता डॉ. अजय चौटाला उसकी राजनीतिक विरासत को पाने के लिए शंखनाद करेगा। 17 नवंबर को डॉ. अजय चौटाला के नेतृत्व में जींद में आयोजित होने वाला कार्यकर्ता सम्मेलन इनैलो का भविष्य तय करेगा। डॉ. अजय चौटाला ने अपनी राजनीतिक विरासत को मजबूत करने के लिए जींद के उसी मैदान को चुना है जिस मैदान को ठीक 32 वर्ष पहले उसके दादा चौधरी देवीलाल ने कांग्रेस के खिलाफ न्याय युद्ध शुरू करने के लिए चुना था। जींद के इस मैदान से न्याय युद्ध की शुरूआत कर चौधरी देवीलाल ने प्रदेश की लगभग 85 के करीब विधानसभा सीटों पर अपना कब्जा जमाकर कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ कर बाहर करने का काम किया था। अब अपने दादा के पदचिह्नों पर चलते हुए डॉ. अजय चौटाला भी अपने व अपने बेटों के राजनीतिक भविष्य को लेकर निर्णायक फैसला करेंगे। एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि यह कार्यकर्ता सम्मेलन प्रदेश की राजनीति को भी नई दिशा देने का काम करेगा। 17 नवंबर के इस कार्यकर्ता सम्मेलन में प्रदेशभर से इनैलो पदाधिकारी व कार्यकर्ता शामिल होंगे। जींद में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन पर पूरे प्रदेश की जनता की नजर टिकी हुई हैं। क्योंकि पिछले काफी दिनों से इनैलो पार्टी में घमासान मचा हुआ है और ज्यादातर पदाधिकारी व कार्यकर्ता इनैलो से अपना इस्तिफा देकर डॉ. अजय चौटाला व दुष्यंत चौटाला के समर्थन में आ चुके हैं।

जींद जिले से देवीलाल परिवार को मिलती रही है राजनीतिक ताकत 

जींद जिले को राजनीतिक का गढ़ माना जाता है। प्रदेश की राजनीति में जींद का अहम स्थान है। जब-जब भी प्रदेश की राजनीति में हलचल हुई है तो उसकी शुरूआत जींद जिले की धरती से ही हुई है। पूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के परिवार के लिए जींद जिला काफी अहमियत रखता है। जब-जब चौधरी देवीलाल का परिवार राजनीतिक तौर पर कमजोर हुआ है तब-तब जींद जिले ने इस परिवार को राजनीतिक ताकत देने का काम किया है। 1986 में चौधरी देवीलाल ने इसी जिले से न्याय युद्ध की शुरूआत कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर सत्ता हासिल की थी। 90 के दशक में जब ओमप्रकाश चौटाला बंसीलाल की सरकार को गिराकर सत्ता में काबिज हुए थे तब जींद जिले के विधायकों ने ओमप्रकाश चौटाला को सत्ता तक पहुंचाने में सहयोग किया था। अब जब इनैलो में पार्टी को लेकर घमासान मचा हुआ तब भी देवीलाल परिवार ने अपना राजनीतिक फैसला लेने के लिए इसी जिले की धरती को चुना है। 

यह रहेगा शैड्यूल

दीप पैलेस में सुबह 11 बजे इनैलो प्रदेश कार्यकारिणी की मीटिंग होगी। इस मीटिंग को डॉ. अजय सिंह चौटाला, सांसद दुष्यंत चौटाला सहित इनैलो के वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद रहेंगे। कार्यकारिणी की बैठक के बाद दोपहर 3 बजे गोहाना रोड स्थित ताऊ देवीलाल ग्राउंड में डॉ. अजय चौटाला कार्यकर्ता सम्मेलन को सम्बोधित करेंगे।

सोमवार, 2 जुलाई 2018

प्रदेश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे म्हारे किसान

बागवानी विभाग व आईसीएआर द्वारा कीटाचार्य किसानों को मास्टर ट्रेनर के तौर पर किया जाएगा नियुक्तथाली को जहरमुक्त बनाने के लिए बागवानी विभाग द्वारा प्रदेश में शुरू की जा रही है गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिसेस स्कीम

नरेंद्र कुंडू 
जींद| थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जींद जिले में चल रहे डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन के कीटाचार्य किसान अब प्रदेश के अन्य जिलों के किसानों को भी कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) व बागवानी विभाग ने इन कीटाचार्य किसानों के अनुभव को देखते हुए इन्हें प्रदेश के दूसरे जिलों में चलने वाली किसान खेत पाठशालाओं में मास्टर ट्रेनर के तौर पर नियुक्त करने का प्रस्ताव तैयार किया है। थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए बागवानी विभाग जल्द ही प्रदेश में गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिसेस स्कीम (गेएप) शुरू करने जा रहा है। इस स्कीम के तहत प्रदेश के सभी जिलों में मंडल स्तर पर किसान खेत पाठशालाएं चलाई जाएंगी और इन पाठशालाओं में किसानों को कीटों की पहचान करने के साथ-साथ बिना रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग किए अच्छी पैदावार लेने के गुर सिखाए जाएंगे ताकि फसलों में उर्वरकों व कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को रोका जा सके। इस स्कीम में कीटाचार्य किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बागवानी विभाग के अधिकारियों की एक टीम वीरवार को निडाना गांव पहुंची और यहां कीटाचार्य किसानों के साथ बैठक कर आगामी कार्रवाई के लिए रणनीति तैयार की। इस टीम में सेवानिवृत्त जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, सेवानिवृत्त जिला बागवानी अधिकारी डॉ. इंद्रजीत मलिक, बैंक ऑफ बड़ौदा से सेवानिवृत्त सीनियर मैनेजर डॉ. खजान सिंह नैन मौजूद रहे। बागवानी विभाग से सेवानिवृत्त यह अधिकारी विभाग द्वारा शुरू की जाने वाली गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिसेस स्कीम को कोर्डिनेट करेंगे। 

2008 में जींद जिले के निडाना गांव में शुरू हुई थी कीट ज्ञान की मुहिम

फसलों में रासायनिक व कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से खाने की थाली में बढ़ रहे जहर के स्तर को देखते हुए कृषि विभाग के कृषि विकास अधिकारी (एडीओ) डॉ. सुरेंद्र दलाल ने 2008 में जींद जिले के निडाना गांव में पुरूष किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की थी। इन किसान खेत पाठशालाओं में डॉ. दलाल व किसानों द्वारा फसल में मौजूद मांसाहारी व शाकाहारी कीटों पर लंबे समय तक शोध किया गया। इन कीटाचार्य किसानों द्वारा 206 किस्म के कीटों की पहचान की जा चुकी है। इनमें 43 किस्म के शाकाहारी तथा 163 किस्म के मांसाहारी कीट हैं। शोध में यह सामने आया कि फसल में मौजूद कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं है, जरूरत है तो सिर्फ इन कीटों को पहचानने की। क्योंकि फसल में मौजूद मांसाहारी कीट स्वयं ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। शोध में यह भी निष्कर्ष निकला कि उत्पादन बढ़ाने में कीटों की अहम भूमिका होती है और पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन की एक खास बात यह भी है कि कीटों पर शोध करने में पुरुष किसानों के साथ-साथ महिला किसान भी अहम भूमिका निभा रही हैं।  

 बागवानी विभाग गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिसेस स्कीम करने जा रहा है  शुरू

फसलों में कीटनाशकों के अधिक प्रयोग को रोकने तथा प्रदेश के लोगों को शुद्ध भोजन उपलब्ध करवाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) व बागवानी विभाग गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिसेस स्कीम शुरू करने जा रहा है। इस स्कीम के तहत प्रदेश के सभी जिलों में मंडल स्तर पर किसान खेत पाठशालाएं शुरू की जाएंगी। इन पाठशालाओं में किसानों को कीटों की पहचान करने तथा बिना रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग किए अच्छी पैदावार लेने के टिप्स दिए जाएंगे। प्रदेश के अन्य जिले के किसानों को कीटों की पहचान करवाने के लिए निडाना जिले में चल रहे डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन के कीटाचार्य किसानों को मास्टर ट्रेनर के तौर पर नियुक्त किया जाएगा। 
डॉ. बलजीत भ्याण
सेवानिवृत्त जिला बागवानी अधिकारी एवं कोर्डिनेटर गेएप

कीटाचर्या किसानों को किया जाएगा मास्टर ट्रेनर नियुक्त  

प्रदेश के किसानों को जहरमुक्त खेती के प्रति जागरूक करने के लिए बागवानी विभाग द्वारा गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिसेस स्कीम शुरू की जा रही है। इस स्कीम के तहत ऐसे किसानों को मास्टर ट्रेनर नियुक्त किया जाएगा जो खेती के क्षेत्र में अलग हटकर कार्य कर रहे हैं। विभाग के उच्च अधिकारियों के पास निडाना गांव के किसानों द्वारा कीटों पर किए गए शोध का प्रस्ताव भी भेजा गया था। इन किसानों को प्रदेश के अन्य जिलों में चलने वाली किसान खेत पाठशालाओं में बतौर मास्टर ट्रेनर नियुक्त करने के लिए विभाग से हरी झंडी मिल गई है। जल्द ही प्रस्ताव को अंतिम रूप देकर इस पर अमल किया जाएगा। 
डॉ. इंद्रजीत मलिक
सेवानिवृत्त जिला बागवानी अधिकारी एवं कोर्डिनेटर गेएप



मंगलवार, 29 मई 2018

जल संस्कृति को बचाना होगा

नरेंद्र कुंडू 
एक तरफ हम जल को देवता मानकर उसकी पूजा करते हैं, तो दूसरी तरफ इस देवता का निरादर करने में किसी भी तरह पीछे नहीं रहते हैं। कारण व्यत्तिफ़ हो या बाजार, हर कोई अपनी-अपनी तरह से इस दोहन में शामिल है। आज जरूरत है कि हम जल के प्रति अपने संस्कार और संस्कृति को पुनर्जीवित करें। पानी के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जन्म से लेकर मृत्यु तक पानी का हमारे जीवन में बहुत बड़ा स्थान है बल्कि कह सकते हैं कि पानी ही उसकी धुरी है। हमारे शास्त्रें में कहा गया है कि जल में ही सारे देवता रहते हैं। इसीलिये जब कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है तो सबसे पहले कलश यात्र निकलती है। हम किसी पवित्र सरोवर या जलाशय में जाते हैं और वहां से अपने कलश में जल भरकर ले आते हैं। चूंकि जल में हमारे सभी देवता बसते हैं इसलिये हम उसकी पूजा करते हैं और फिर उसी जलाशय में उसका विसर्जन कर देते हैं। इस तरह व्यष्टि को समष्टि में मिला देते हैं। ‘अमरकोश’ में जल के कई नाम गिनाये गये हैं। उसमें जल के लिये एक नाम जीवन भी है। जीवन जलम। अब सवाल यह है कि जल जो हमारी संस्कृति में इतना अहम स्थान रऽता रहा है, उसकी इतनी दुर्दशा क्यों हो रही है? कारण दैवीय और आसुरी शत्तिफ़यों के संघर्ष में छिपा है। यह संघर्ष सनातन है। कभी एक पक्ष की शत्तिफ़ बढ़ती है, कभी दूसरे की। जो जल संरक्षण के लोग हैं वे दैवीय शत्तिफ़ के लोग हैं। दूसरी तरफ आसुरी शत्तिफ़यां हैं जो जल को नष्ट करने का स्वाभाविक रूप से प्रयास करती रहती हैं। जब हम पूजा में बैठते हैं तो सबसे पहले कलश में जल की उपासना करते हैं कि वे कलश में आ कर विराजमान हों। इस समय हम एक मंत्र पढ़ते हैं जिसमें सभी नदियों, जलाशय और समुद्र का आ“वान करते हैं कि वे इस कलश में विराजें और देवी पूजा में सहायक हों। जब हम ऐसा करते हैं तो हमें इस बात का भी एहसास होता है कि देवी पूजा के लिये जिस जल का हम आ“वान कर रहे हैं उसे प्रदूषणमुत्तफ़ बनाना भी हमारा कर्त्तव्य है। अन्यथा प्रदूषित पानी कलश में आएगा और हमें उसी से देवी-देवताओं की पूजा करनी पड़ेगी। हम मानते हैं कि जल में दो प्रकार की शत्तिफ़ है। एक तो वह भौतिक मैल को धोता है। दूसरा उसमें आधि भौतिक मैल धोने की भी शत्तिफ़ है। यदि जल संरक्षण के उपाय शीघ्र न किये गये तो जल संस्कृति का भविष्य खतरे में घिरता नजर आ रहा है। 

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

दोहरी नीति का शिकार हो रही हिन्दी

नरेन्द्र कुंडू 
जब से मानव अस्तित्व में आया तब से ही भाषा का उपयोग कर रहा है चाहे वह ध्वनि के रूप में हो या सांकेतिक रूप में। भाषा हमारे लिए बोलचाल व संप्रेषण का माध्यम होती है। भाषा राष्ट्र की एकता, अखंडता तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश में प्रचलित विविध भाषाएं व बोलियां हमारी संस्कृति, उदात्त परंपराओं, उत्कृष्ट ज्ञान एवं विपुल साहित्य को अक्षुष्ण बनाये रखने के साथ ही वैचारिक नवसृजन हेतु भी परम आवश्यक है। विविध भाषाओं में उपलब्ध साहित्य की अपेक्षा कई गुना अधिक ज्ञान गीतों, लोकोत्तिफ़यों तथा लोक कथाओं की मौखिक परंपरा के रूप में होता है। यदि राष्ट्र को सशक्त बनाना है तो एक भाषा होनी चाहिए। प्रत्येक विकसित तथा स्वाभिमानी देश की अपनी एक भाषा अवश्य होती है। किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उसे ही बनाया जाता है जो उस देश में व्यापक रूप में फैली होती है। हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी भारत के ज्यादातर राज्यों में प्रमुख रूप से बोली जाती है। हिन्दी भाषा के विकास में संतों, महात्माओं तथा उपदेशकों का योगदान भी कम नहीं आंका जा सकता। क्योंकि वह आम जनता के अत्यंत निकट होते हैं। इनका जनता पर बहुत बड़ा प्रभाव होता है। हमारा फिल्म उद्योग तथा संगीत हिन्दी भाषा के आधार पर ही टिका हुआ है। 4 सितम्बर 1949 को संविधान की भाषा समिति ने हिंदी को राजभाषा के पद पर आसीन किया क्योंकि भारत की बहुसंख्यक जनता द्वारा हिन्दी भाषा का प्रयोग किया जा रहा था। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हिन्दी भाषा में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं ने देश को आजाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई तथा भारतीयों को एक सूत्र में बांधे रखा। स्वतंत्रता के पश्चात् भले ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा व राजभाषा का दर्जा दिया गया लेकिन भाषा के प्रचार व प्रसार के लिए सरकार द्वारा सराहनीय कदम नहीं उठाए गए। अंग्रेजी भाषा का प्रयोग अनवरत चलता रहा। भले ही आज विश्व के सभी महत्वपूर्ण देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। परन्तु विडंबना यह है कि विश्व में अपनी अच्छी स्थिति के बावजूद हिन्दी भाषा अपने ही घर में उपेक्षित जिंदगी जी रही है। आज विविध भारतीय भाषाओं व बोलियों के चलन तथा उपयोग में आ रही कमी, उनके शब्दों का विलोपन व विदेशी भाषाओं के शब्दों से प्रतिस्थापन एक गम्भीर चुनौती बन कर उभर रहा है। अपने देश में अंग्रेजी बोलने वालों को तेज-तर्रा, बुद्धिमान व हिन्दी बोलने वालों को अनपढ़, गवार जताने की परम्परा रही है। राजनेताओं द्वारा हिन्दी को लेकर राजनीति की जा रही है। जब भी हिन्दी दिवस आता है, हिन्दी को लेकर लम्बे-लम्बे वक्तव्य देकर हिन्दी पखवाड़े का आयोजन कर इतिश्री कर ली जाती है। हिन्दी हमारी दोहरी नीति का शिकार हो चुकी है। यही कारण है कि हिन्दी आज तक व्यावहारिक दृष्टि से राष्ट्र भाषा नहीं बन पाई है। देश की विविध भाषाओं तथा बोलियों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिये सरकारों, नीति निर्धारकों, स्वैच्छिक संगठनों व समस्त समाज को सभी संभव प्रयास करने चाहियें।

रविवार, 4 मार्च 2018

‘विद्यार्थियों में बढ़ता तनाव’

नरेंद्र कुंडू 
प्रसिद्ध चिंतक अरस्तू ने कहा था कि आप मुझे 100 अच्छी माताएं दें तो मैं तुम्हें अच्छा राष्ट्र दूंगा। मां के हाथों में राष्ट्र निर्माण की कुंजी होती है किंतु आज ऐसी माताओं व सोच की कमी महसूस हो रही है। जीवन स्तर बढ़ने के साथ-साथ भौतिक प्रतिस्पर्धा भी अपने चरम पर है, जिसका दुष्प्रभाव तनाव युत्तफ़ जीवनशैली से आत्महत्या का बढ़ता चलन देखने में आ रहा है। बड़े दुःख  विषय है आज विद्यार्थियों में लगन व मेहनत से विद्या ग्रहण करने की प्रवृत्ति लुप्त होती जा रही है। वे जीवन के हर क्षेत्र में शॉर्टकट मार्ग अपनाना चाहते हैं और असफल रहने पर गलत कदम उठा लेते हैं। आजकल अभिभावक भी बच्चों पर पढ़ाई और करियर का अनावश्यक दबाव बनाते हैं। वे ये समझना ही नहीं चाहते की प्रत्येक बच्चे की बौद्धिक क्षमता भिन्न होती है जिसके चलते हर विद्यार्थी कक्षा में प्रथम नहीं आ सकता। बाल्यकाल से ही बच्चों को यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि असफलता ही सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। बच्चों में आत्मविश्वास की कमी भी एक बहुत बड़ा कारक है। आज खुशहाली के मायने बदल रहे हैं अभिभावक अपने बच्चाें को हर क्षेत्र में अव्वल देऽने व सामाजिक दिखवे के चलते उन्हें मार्ग से भटका रहे हैं। वास्तविकता यह है कि गरीब बच्चे फिर भी संघर्षपूर्ण जीवन में मेहनत व हौंसले के बलबूते अपनी मंजिल पा ही लेते हैं। किन्तु अक्सर धन-वैभव से भरे घरों में अधिक तनाव का माहौल होता है और एक-दूसरे से अधिक अपेक्षाएं रखी जाती हैं। शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चे वक्त से पहले परिपक्व हो रहे हैं। इसके फलस्वरूप वे अपने निर्णय स्वयं लेना चाहते हैं और अपने द्वारा लिए गए निर्णयों के अनुसार अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होने पर आत्महत्या का निर्णय ले लेते हैं। आज परिवार अपने मौलिक स्वरूप से भटक कर आधुनिकतावाद की बलिवेदी पर होम हो रहे हैं। अभिभावकों को समझना होगा कि बच्चे मशीन या रोबोट नहीं है। बच्चाें को बचपन से अच्छे संस्कार दिये जाने चाहिएं ताकि वे अपनी मंजिल खुद चुनें किन्तु आत्मविश्वास न खोएं। आज की शिक्षा बच्चो को डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर तो बना देती है परंतु वह चरित्रवान इंसान बने, इसकी उपेक्षा करती है। एक पक्षी को ऊंची उड़ान भरने के लिए दो सशक्त पंखों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दोनों प्रकार की शिक्षा अपने बच्चों को देनी होगी। सांसारिक शिक्षा उसे जीविका योग्य और आध्यात्मिक शिक्षा उसके जीवन को मूल्यवान बनाएगी।