सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

हॉकी के दम पर राजरानी ने देश में बनाई पहचान

परिस्थितियों से हार मानने वाली लड़कियों के लिए मिशाल बनी राजरानी
रियालटी शो की विजेता बन चुकी है राजरानी 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। संसाधनों के अभाव में जो लड़कियां अपना लक्ष्य छोड़कर परिस्थितियों से समझौता कर लेती हैं राजरानी उन लड़कियों के लिए एक मिशाल है। हॉकी खिलाड़ी राजरानी ने ग्रामीण क्षेत्र से निकल कर देश के मानचित्र पर अपने जिले व प्रदेश का नाम रोशन करने का काम किया है। राजरानी ने खेल ही नहीं  बल्कि छोटे पर्द पर भी अपनी सफलता की पहचान छोड़ी है। उचाना क्षेत्र के खेड़ीसफा गांव में किसान बारूराम के घर में जन्मी राजरानी ने वर्ष 2012 में स्टार प्लस चैनल पर आयोजित रियालटी शो 'सरवाइवर इंडिया' की विजेता बनकर शो में शामिल बड़े-बड़े स्टार को हरियाणा के दूध-दही की ताकत का ऐहसास करवाया था। टीवी चैनल व राष्ट्रीय स्तर पर खेलों के क्षेत्र में अपना नाम रोशन करने वाली राजरानी अब चंडीगढ़ में एक फिटनेश सेंटर पर लोगों को फिटनेश का प्रशिक्षण देती है। फिटनेश सेंटर से फ्री होने के बाद राजरानी शाम के समय स्टेडियम में जाकर खिलाडिय़ों को हॉकी के टिप्स भी सिखाती है।
रियालटी शो की विजेता राजरानी ट्राफी के साथ।
खेड़ीसफा निवासी राजरानी ने बताया कि परिवार में चार बहनें व एक भाई है। वह सभी भाई-बहनों में सबसे छोटी है। उसके पिता बारू राम खेती कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं और मां कृष्णा देवी गृहणी है। राजरानी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव से ही शुरू की। इसके बाद राजरानी ने आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए नरवाना के राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लिया। पढ़ाई के साथ-साथ राजरानी ने खेलों के क्षेत्र में भी रुचि दिखाई। हॉकी राजरानी का पसंदीदा खेला था। हॉकी में पूरी तरह से पारंगत होने के लिए वह घंटों मैदान पर पसीना बहाती थी लेकिन घर की आर्थिक परिस्थिति मजबूत नहीं होने के कारण उसे अपनी पढ़ाई व खेल को आगे बढ़ाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बाद में खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के बाद खेल विभाग की तरफ से राजरानी को आर्थिक सहायता मिलनी शुरू हुई तो राजरानी ने तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ कदम बढ़ाए। 27 वर्षीय राजरानी ने बताया कि स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से उसको आर्थिक सहायता मुहैया करवाई गई। इसके बाद उसने पंजाब विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी की।

सुबह लिफ्ट मांगकर गांव से शहर में जाती थी अभ्यास करने 

हॉकी खिलाड़ी राजरानी पर खेल का जुनून इस कदर सवार था कि वह सुबह जल्दी उठकर अभ्यास करने के लिए नरवाना जाती थी। राजरानी ने बताया कि गांव से शहर के लिए सुबह-सुबह कोई साधन नहीं होने के कारण उसे दूसरे वाहनों से लिफ्ट मांगनी पड़ती थी। शुरू-शुरू में तो कोई उसे लिफ्ट नहीं देता था लेकिन जब बाद में लोगों को उसके खेल के बारे में पता चला तो लोग उन्हें लिफ्ट देने लगे।

राजरानी ने इंडिया कैंप में बनाई जगह 

स्कूली खेलों से ही राजरानी ने मैदान पर अपनी हॉकी का जादू बिखेरना शुरू कर दिया था। इसी की बदौलत राजरानी ने स्कूल नेशनल, जूनियर नेशनल, सीनियर नेशनल ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी में कई पदक प्राप्त किए। इसके बाद वर्ष 2007-08 में राष्ट्रीय खेलों में भी राजरानी ने पदक प्राप्त किया। अपनी कड़ी मेहनत व उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर ही राजरानी ने इंडिया कैंप में अपने लिए जगह बनाई।

सरवाइवर इंडिया में दिखाया हरियाणा के दूध-दही का जोश

वर्ष 2012 में स्टार प्लस चैनल पर शुरू हुए रियालटी शो सरवाइवर इंडिया में राजरानी के साथ-साथ कई बड़े स्टार इस शो में शामिल हुए। इस शो में शामिल प्रतिभागियों को आयोजकों द्वारा कठिन से कठिन टास्क दिए जाते थे। इन टॉस्क के दौरान बड़े-बड़े स्टार भी अपना हौंसला छोड़ कर हार मानने पर मजबूर हो जाते थे। शो के दौरान कई-कई दिनों तक जंगलों में भूखी रहकर भी राजरानी ने हिम्मत नहीं खोई। कठिन से कठिन टास्क को भी राजरानी ने अपनी हिम्मत व हौंसले से पूरा किया। रियालटी शो की विजेता बनकर कर राजरानी ने शो में शामिल बड़े-बड़े स्टारों को भी हरियाणा के दूध-दही का जोश दिखाया।





जिंदगी के गुणा-भाग ने बना दिया गणित टीचर

अमरेहड़ी की रितू ने विपरीत परिस्थितियों से जूझ पाया मुकाम
पिता की मौत के बाद संघर्ष कर पूरी की पढ़ाई

नरेंद्र कुंडू
जींद। आंखें खोलते ही जिंदगी में आई मुसीबतों ने ऐसा उलझाया कि मुसीबतों के गुणा-भाग से प्रेरणा लेकर वह गणित की टीचर बन गई। यह कहानी है अमरेहड़ी निवासी 23 वर्षीय रितू की। रितू ने विपरित रिस्थितियों से जूझ कर मैथ से एमएससी की अपनी पढ़ाई पूरी की। अब रितू हिंदू कन्या महाविद्यालय में मैथ की प्राध्यापिका के तौर पर अपनी सेवाएं दे कर परिवार का पालन-पोषण करने के साथ-साथ दूसरी छात्राओं का जीवन संवार रही है। मैथ प्राध्यापिका रितू अब दूसरी छात्राओं के लिए पे्ररणा स्त्रोत बन चुकी है। रितू का अगला लक्ष्य अब नेट की परीक्षा पास करना है। रितू अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही है। इसके लिए वह कॉलेज से घर जाने के बाद गांव में बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती है। रितू की मां कृष्णा देवी तथा उसकी बड़ी बहन संगीता भी उसके सपने को पूरा करने के लिए उसका पूरा सहयोग कर रही है। अमरेहड़ी निवासी रितू ने बताया कि वह डेढ़ वर्ष की थी जब उसके पिता राजकपूर की मौत हो गई थी। पिता की मौत ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। रितू तथा उसकी बड़ी बहन संगीता के पालन-पोषण की पूरी जिम्मेदारी अब उसकी मां कृष्णा देवी के कंधों पर आ गई। परिवार के पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया। रितू ने बताया कि परिवार के सामने आए आर्थिक संकट के चलते उसकी मां ने आंगनवाड़ी में काम कर परिवार का पालन-पोषण किया।
 अपनी मां व बहन के साथ मौजूद रितू। 
 परिवार के पास पूर्वजों की लगभग डेढ़ एकड़ जमीन थी। इस जमीन को ठेकेपर देकर जो थोड़ी बहुत आमदनी होती थी उससे रितू व उसकी बहन संगीता की पढ़ाई का खर्च चलता था। इस प्रकार विषम परिस्थितियों में रितू व उसकी बहन संगीता ने अपनी पढ़ाई पूरी की। रितू व उसकी बहन संगीता ने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई तो गांव के सरकारी स्कूल से पूरी की। इसके बाद रितू ने 12वीं कक्षा जींद के एसडी स्कूल और मैथ ऑनर्स से बीए की पढ़ाई हिंदू कन्या महाविद्यालय से पूरी की। इसके बाद रितू ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बीएड व एमएससी की पढ़ाई पूरी की। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से मैथ से एमएससी की पढ़ाई पूरी कर रितू अब हिंदू कन्या महाविद्यालय में मैथ प्राध्यापिका के तौर पर अपनी सेवाएं दे रही है। वहीं रितू की बड़ी बहन संगीता आर्ट एंड क्राफ्ट का कोर्स करने के बाद अब जेबीटी कर रही है। पिता की मौत के बाद रितू ने बिल्कुल विपरित परिस्थितियों में अपनी पढ़ाई पूरी की और अब रितू अपने परिवार का सहारा बन चुकी है। 

मां से मिली प्रेरणा

रितू का कहना है कि आज वह जो कुछ भी है उसके पीछे उसकी मां कृष्णा देवी का पूरा योगदान है। परिवार की विपरित परिस्थितियों में भी उसकी मां ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। अपनी मां से प्रेरणा लेकर ही उसने अपनी पढ़ाई का सफर जारी रखा। रितू ने बताया कि उसको आगे बढ़ाने में उसके ताऊ के लड़के दीपक ने भी पूरा सहयोग किया। भाई दीपक से मिले सहयोग ने भी उसके अंदर उर्जा का संचार करने का काम किया। 

गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी बेटी होने पर है गर्व

रितू आज अपने गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की है। गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी होने के कारण ही उसे 15 अगस्त पर गांव के स्कूल में तिरंगा लहराने का अवसर हासिल हुआ। रितू ने बताया कि जब सरकार की बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ अभियान के तहत स्कूल की तरफ से सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी होने पर 15 अगस्त पर गांव के स्कूल में तिरंगा लहराने के लिए निमंत्रण भेजा गया तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इस दिन उसे अपनी पढ़ाई व परिवार पर गर्व हुआ। 



शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

'व्हाइटफ्लाई की रफ्तार पर ड्रेगनफ्लाई ने लगाये ब्रेक'

मांसाहारी कीट खुद ही कर लेते हैं शाकाहारी कीटों को नियंत्रित
जींद जिले में एक हजार एकड़ कपास की फसल में नहीं सफेद मक्खी का प्रकोप 

नरेंद्र कुंडू
जींद। इस बार हरियाणा तथा पंजाब में व्हाइट फ्लाई (सफेद मक्खी) का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिला। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण पंजाब तथा हरियाणा में लाखों हैक्टेयर कपास की फसल पूरी तरह से तबाह हो गई। महंगे से महंगे कीटनाशक भी सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में बेअसर साबित हुए। किसानों द्वारा अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करने के बावजूद भी सफेद मक्खी की संख्या कम होने की बजाए उलटा बढ़ती चली गई। कई जगह तो ऐसे हालात पैदा हो गए की किसानों को अपनी खराब हुई कपास की फसलों को मजबूरन ट्रैक्टर से जोतना पड़ा। इस वर्ष कपास की फसलों पर बड़ी तेजी के साथ सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ा लेकिन जींद जिले के कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े कीटाचार्य किसानों ने ड्रेगनफ्लाई (तुलसामक्खी) व अन्य मांसाहारी कीटों की मदद से सफेद मक्खी की इस रफ्तार पर ब्रेक लगा दिए और परिणाम यह रहे कि इन किसानों की फसलों को सफेद मक्खी से किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ। जींद जिले में लगभग एक हजार एकड़ ऐसा रकबा है जहां पर सफेद मक्खी से कपास की फसल में कोई नुकसान नहीं हुआ है। पिछले सात-आठ वर्षों से यहां के किसान बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए सभी फसलों की अच्छी पैदावार ले रहे हैं। कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने में मेजर कीट मानी जाने वाली सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इन किसानों को किसी प्रकार के कीटनाशकों के प्रयोग की भी जरूरत नहीं पड़ती है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट अपने आप ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। वर्ष 2008 में कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में यहां के किसानों ने कीटों पर शोध शुरू किया था और इसके बाद से ही यह किसान इस मुहिम से जुड़े हुए हैं।
कपास की फसल को दिखाते किसान।

इस प्रकार फसल को नुकसान पहुंचाती है सफेद मक्खी    

सफेद मक्खी एक शाकाहारी कीट है। सफेद मक्खी का आकार पेन की नौक के आकार जितना होता है।  यह पौधे के पत्तों से रस चूसकर अपना गुजारा करती है। सफेद मक्खी कपास की फसल में लीपकरल (मरोडिया) के फैलाने में सहायक का काम करती है। लीपकरल का वायरस सफेद मक्खी के थूक में मिलकर एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचता है। यदि खेत में एक भी पौधे में लीपकरल है तो 10 सफेद भी उस लीपकरल के वायरस को पूरे खेत में फैला सकती हैं। सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर होता है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है उस पत्ते पर फफूंद लग जाती है और वह पत्ता भोजन बनाना बंद कर देता है।

यह कीट हैं सफेद मक्खी के कुदरती कीटनाशी 

ड्रेगनफ्लाई (तुलसा मक्खी) तथा छैल मक्खी उड़ते हुए सफेद मक्खी के प्रौढ़ का शिकार करती हैं। इनो, इरो नामक मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के सबसे बड़े दुश्मन हैं और यह सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इनो और इरो दोनों ही परपेटिये कीट हैं और यह सफेद मक्खी के बच्चों के पेट में अपने अंडे देते हैं। इनो व इरो के बच्चे सफेद मक्खी को अंदर ही अंदर से खाकर खत्म कर देते हैं। सफेद मक्खी के बच्चे पंख विहिन होते हैं। इसलिए बीटल क्राइसोपा के बच्चे तथा मकडिय़ां इनके बच्चों का आसानी से भक्षण कर देती हैं।

पौधों को दें पर्याप्त खुराक

कीटाचार्य किसान प्रमिला रधाना
फसल में शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट पर्याप्त संख्या में मौजूद होते हैं। मांसाहारी कीट अपने आप ही फसल को नुकसान पहुंचाने वाले शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। इसलिए फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए पौधों को पर्याप्त खुराक देनी चाहिए। इसके लिए ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक का घोल तैयार कर 100 लीटर पानी में फसल पर इसका छिड़काव करें। पिछले कई वर्षों से हम इस पद्धति से खेती कर रहे हैं और हर बार अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।
प्रमिला रधाना, कीटाचार्य किसान

ऐसे बढ़ती है शाकहारी कीटों की संख्या 

कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक
कई प्रकार के मांसाहारी कीट ऐसे हैं जो शाकाहारी कीटों के पेट में अपने बच्चे या अंडे देते हैं। वहीं कई प्रकार के मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों से छोटे आकार के होते हैं। जब किसान फसल पर कीटनाशक का प्रयोग करते हैं तो शाकाहारी कीट के पेट में पनप रहे मांसाहारी कीट के बच्चे व छोटे आकार वाले मांसाहारी कीट मर जाते हैं। इस प्रकार फसल में कुदरती कीटनाशियों की संख्या कम होने के कारण शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ जाती है और इससे फसल को नुकसान पहुंचता है। पिछले सात-आठ वर्षों से जींद जिले के दर्जनभर गांव के किसान कीटों पर अपना शोध कर रहे हैं।
रणबीर मलिक, कीटाचार्य किसान





बुधवार, 9 सितंबर 2015

'देश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे म्हारे किसान'

डीडी किसान चैनल की टीम ने कीटाचार्य किसानों के अनुभव किए कैमरे में कैद

कृषि अधिकारियों व कीटाचार्य किसानों के बीच हुए सीधे सवाल-जवाब 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम से अब पूरे देश के किसान सीख लेंगे। डीडी किसान चैनल के माध्यम से कीटाचार्य किसान देश के दूसरे किसानों को बिना कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों के खेती कैसे संभव है इसके बारे में बारिकी से जानकारी देंगे। डीडी किसान चैनल द्वारा प्रश्र मंच कार्यक्रम के तहत थाली को जहरमुक्त बनाने के विषय पर जींद जिले के कीटाचार्य पुरुष व महिला किसानों के दो घंटे का प्रोग्राम तैयार किया है। इस कार्यक्रम में किसानों के साथ-साथ कृषि अधिकारियों से भी कीट ज्ञान के बारे में उनकी राय ली गई है। कार्यक्रम के दौरान कीटनाशकों के बिना खेती संभव है या नहीं, सफेद मक्खी तथा अन्य कीटों की रोकथाम के क्या उपाय हैं। इन विषयों पर पूरा फोक्स रहा। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि किस तरह वह पिछले सात-आठ वर्षों से बिना पेस्टीसाइड के अच्छा उत्पादन ले रहे हैं और इस बार भी उनकी फसल सफेद मक्खी से सुरक्षित है जबकि प्रदेश में सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ रहा है। कीटाचार्य पुरुष किसानों के कार्यक्रम का प्रसारण बृहस्पतिवार शाम को साढ़े सात बजे किया जाएगा। जबकि महिला किसानों के कार्यक्रम का अभी समय निर्धारित नहीं हो पाया है।
कीटाचार्य किसानों के सुझाव लेते टीम के सदस्य।

कार्यक्रम में यह-यह लोग रहे मौजूद 

जिला कृषि उपनिदेशक  डॉ. रामप्रताप सिहाग, हिसार से जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, डॉ. सर्वजीत सिंह, डीडी किसान चैनल से टेक्रिकल डायरेक्टर डीआर जाटव, प्रोड्यूसर विकास डबास, एंकर मुकुल शर्मा, टेक्रिकल सहायक जोगेंद्र कुमार, रविंद्र कुमार, कृपाल सिंह, सर्वेश कुमार, कैमरामैन विभू प्रसाद साहू, अजय यादव, रूपचंद, बराह कला खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा, ढुल खाप प्रधान इंद्र सिंह ढुल, प्रगतिशील क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया, महासचिव कर्मबीर यादव, रोहताश ढांडा, जाट धर्मशाला के पूर्व प्रधान रामचंद्र भी मौजूद रहे।
कार्यक्रम में अपने सुझाव देते कृषि अधिकारी।

यह हुए सीधे सवाल-जवाब

1. सवाल : क्या कीटनाशकों के बिना खेती संभव है। 
कीटाचार्य किसान : कीट को नियंत्रित करने में कीट ही सबसे अचूक शस्त्र है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार ही कीट को भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर बुलाते हैं। जब पौधे को शाकाहारी कीट की जरूरत नहीं होती जब पौधे उन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट को बुलाते हैं। इस प्रक्रिया में मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। इसलिए कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है।
कृषि अधिकारी : कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से कीटों की संख्या बढ़ती है। इसलिए किसानों को बिना कृषि अधिकारी की सलाह के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए
2. सवाल : कीटनाशकों से मिट्टी को क्या नुकसान होता है। 
कीटाचार्य किसान : कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म कीट मर जाते हैं तथा इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी नष्ट होती है।
कृषि अधिकारी : कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी के सूक्ष्म जीव खत्म हो जाते हैं। क्योंकि किसान जानकारी के अभाव में सही तरीके से कीटनाशक का प्रयोग नहीं करते हैं।
3. सवाल: कपास में कौन-कौन से कीट नुकसान पहुंचाते हैं। 
कीटाचार्य किसान : प्रकृति ने सभी जीवों को जीने का अधिकार दिया है। कीट किसी को नुकसान या फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से फसल में नहीं आते हैं। कीट तो अपना जीवन चक्र चलाने के लिए आते हैं और पौधे अपनी जरूरत के अनुसार उन्हें बुलाते हैं। लेकिन किसान जागरूकता के अभाव में इन कीटों को मार रहे हैं। ईटीएल लेवल पार करने के बाद ही कीट नुकसान पहुंचाने के स्तर तक पहुंच पाते हैं लेकिन अगर कीटों के साथ छेडख़ानी नहीं की जाए तो कीट ईटीएल लेवल पार नहीं करते हैं।
कृषि अधिकारी : कीट वैज्ञानिकों ने कीट द्वारा फसल को नुकसान पहुंचाने का एक आर्थिक स्तर निर्धारित किया हुआ है। कीट वैज्ञानिकों की भाषा में इसे ईटीएल लेवल बोला जाता है। जब कीटों की संख्या इस ईटीएल लेवल से ऊपर चली जाती है तो कीट फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
4. सवाल : कौन-कौन से दो कीट रस चूसक हैं।
कीटाचार्य किसान : सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, माइट रस चूसक कीट हैं। इनमें से फिल्हाल सफेद मक्खी, हरा तेला तथा चूरड़ा मेजर रस चूसक कीटों की स्टेज पर हैं।
कृषि अधिकारी : पिछले दो-तीन वर्षों से रस चूसक कीटों में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी ज्यादा बढ़ा है।
5. सवाल : सफेद मक्खी की रोकथाम के क्या उपाय हैं।
कीटाचार्य किसान : सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए कोई उपाय नहीं हैं। यदि किसान पौधों पर कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करे तो फसल में मौजूद मांसाहारी कीट अपने आप ही सफेद मक्खी को नियंत्रित कर लेते हैं। किसान को चाहिए कि वह पौधे को पर्याप्त खुराक दे।
कृषि अधिकारी : सफेद मक्खी के प्रकोप के कई कारण होते हैं। फसल की बिजाई सही समय व सही तरीके से हुई है या नहीं यह भी मुख्य कारण होता है। यह भी सही है कि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से भी सफेद मक्खी का स्तर बढ़ता है। इसलिए किसानों को बिना कृषि अधिकारियों की सलाह के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
6. सवाल : क्या फसल मेंं स्प्रे के सही तरीके से छिड़काव की जानकारी देने के लिए कृषि अधिकारी खेत में पहुंचकर किसानों को जागरूक करते हैं। 
कीटाचार्य किसान : कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों को कीटों की रोकथाम के लिए स्प्रे के प्रयोग की जरूरत नहीं पड़ती। वैसे कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर कीटाचार्य किसानों का सहयोग किया जाता है।
कृषि अधिकारी : किसानों को जागरूक करने के लिए विभाग द्वारा समय-समय पर कैंपों का आयोजन किया जाता है। किसान जानकारी लेने के लिए सीधे कृषि विभाग के कार्यालय में भी संपर्क कर सकते हैं।
7. सवाल : बेलदार सब्जियों का अधिक उत्पादन कैसे लिया जा सकता है। 
कीटाचार्य किसान : बेलदार सब्जियों को जमीन पर फैलाने की बजाए बांस इत्यादी खेत में गाड़कर बेल को तार के माध्यम से ऊपर की तरफ बढ़ाया जाए तथा समय पर पर्याप्त पौषक तत्व दिए जाएं।
कृषि अधिकारी : किसानों की बात से सहमत हैं। बेल को ऊपर चढ़ाने से फल की गुणवत्ता भी सही रहती है और फल खराब भी नहीं होता। किसान को कम जगह में अधिक उत्पादन मिल जाता है।





सोमवार, 7 सितंबर 2015

'कीट ज्ञान पर कृषि वैज्ञानिकों के साथ सीधे सवाल-जवाब करेंगी कीटों की मास्टरनी'

दूरदर्शन में किसान प्रश्र मंच कार्यक्रम में होगी कीट ज्ञान पर चर्चा

आठ सितंबर को निडाना पहुंचेगी दिल्ली दूरदर्शन की टीम

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़ी कीटों की मास्टरनी अब कीट ज्ञान पर कृषि वैज्ञानिकों के साथ सीधे सवाल-जवाब करेंगी। दिल्ली दूरदर्शन पर प्रशारित होने वाले किसान प्रश्र मंच कार्यक्रम में कीटाचार्य महिला एवं पुरुष किसान कृषि वैज्ञानिकों के साथ विशेष रूप से चर्चा करेंगे। आगामी आठ सितंबर को कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम निडाना पहुंचेगी। कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य महिला तथा पुरुष किसान कृषि विशेषज्ञों के बीच सीधे सवाल-जवाब होंगे। लगातार दो घंटे तक कृषि विशेषज्ञों तथा कीटाचार्य किसानों के बीच कीट ज्ञान पर बहस चलेगी। कार्यक्रम में एनसीआईपीएम दिल्ली के कृषि विशेषज्ञ तथा जिले के कृषि अधिकारी भाग लेंगे।
फसलों में लगातार बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग के कारण किसान की जेब पर बढ़ रहे आर्थिक बोझ तथा दूषित हो रहे खान-पान को देखते हुए कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा जींद जिले के निडाना गांव से वर्ष 2008 में खेती को जहरमुक्त बनाने के लिए कीट ज्ञान की मुहिम की शुरूआत की गई थी। ताकि फसलों में बढ़ते कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम कर थाली में बढ़ रहे जहर के स्तर को कम किया जा सके। डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में दर्जनभर गांव से ज्यादा किसान इस मुहिम से जुड़े और इन किसानों ने फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों पर अपना शोध किया। शोध के दौरान किसानों ने पौधे के साथ मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का क्या रिश्ता है और यह फसल में कीट क्यों आते हैं तथा फसल पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है, इस विषय पर बारिकी से जानकारी जुटाई। शोध के दौरान किसानों के सामने आया कि कीटों तथा पौधे का आपस में गहरा रिश्ता है। पौधे समय-समय पर अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की गंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। पुरुषों के साथ-साथ महिला किसान भी कंधे से कंधा मिलाकर इस मुहिम को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं। पिछले सात-आठ वर्षों से यह किसान बिना कीटनाशकों के प्रयोग के अच्छी पैदावार लेकर थाली को जहरमुक्त बनाने का अभियान चलाए हुए हैं। इसी विषय पर कृषि वैज्ञानिकों तथा किसानों की राय जानने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम द्वारा आगामी आठ सितंबर को निडाना गांव में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के दौरान लगातार दो घंटे तक किसानों तथा कृषि विशेषज्ञों के बीच कीट ज्ञान के विषय पर बहस होगी। कीटाचार्य किसान कृषि विशेषज्ञों से सीधे सवाल-जवाब करेंगे। बाद में दिल्ली दूरदर्शन द्वारा किसान प्रश्र मंच कार्यक्रम के माध्यम से इसका प्रसारण किया जाएगा।

एक-एक घंटे के दो प्रोग्राम होंगे रिकार्ड

दिल्ली दूरदर्शन की टीम द्वारा आठ सितंबर को कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े पुरुष तथा महिला किसानों के दो कार्यक्रम रिकार्ड किए जाएंगे। इसमें एक घंटे का कार्यक्रम पुरुष किसानों का होगा तथा दूसरा एक घंटे का कार्यक्रम महिला किसानों का होगा। दूरदर्शन की टीम द्वारा एक-एक घंटे के दो कार्यक्रम रिकार्ड किए जाएंगे।


बीटी कपास के जर्रे-जर्रे में होता है जहर

कीटों के मामले में बीटी से ज्यादा सुरक्षित है अमेरिकन व देशी कपास

नरेंद्र कुंडू
बरवाला/जींद।
कीटाचार्य महिला किसान अंग्रेजो, राजवंती, बीरमती, गीता तथा केलो ने कहा कि शाकाहारी कीटों के मामले में बीटी की बजाए अमेरिकन कपास काफी सुरक्षित है। इस बार अमेरिकन कपास की बजाए बीटी कपास में कीटों का प्रकोप काफी ज्यादा है। जहां-जहां पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं हुआ है, वहां-वहां कपास की फसल कीटों के मामले में सुरक्षित है। कीटाचार्य महिला किसान शनिवार को बरवाला के जेवरा गांव में आयोजित किसान खेत पाठशाला में मौजूद किसानों को संबोधित कर रही थी। इस अवसर पर हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण भी मौजूद रहे। इस मौके पर अमर उजाला फाउंडेशन की तरफ से कीटाचार्य महिला किसानों को 500-500 रुपये आर्थिक सहायता मुहैया भी करवाई गई।
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
कीटाचार्य महिला किसानों ने कहा कि प्राकृतिक द्वारा पैदा किए गए प्रत्येक जीव का अपना महत्व है लेकिन आए दिन प्राकृतिक के साथ हो रही छेड़छाड़ के कारण प्राकृतिक का तालमेल गड़बड़ा रहा है। उन्होंने बताया कि बीटी को कीड़ों के मामले में सबसे सुरक्षित माना जाता था लेकिन अगर आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो बीटी में ही सबसे ज्यादा कीट इस समय मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि बीटी के जर्रे-जर्रे में जहर है और यह जहर पत्ते चबाकर खाने वाले कीटों के लिए खतरनाक है। जबकि रस चूसक कीटों के लिए यह फसल काफी सुरक्षित मानी जाती है। उन्होंने आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए बताय कि अमेरिकन कपास में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता तीन, तेले व चूरड़े की शून्य तथा माइट 10 है। वहीं बीटी में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता नौ, तेले व चूरड़े की शून्य तथा माइट की शून्य प्वाइंट पांच है। उन्होंने बताया कि जिन-जिन फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया, उस फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप नामात्र है। उन्होंने बताया कि कीटनाशकों के प्रयोग से फसल में मौजूद कूदरती कीटनाशनी यानि के मांसाहारी कीट मारे जाते हैं। मांसाहारी कीटों के खत्म होने के कारण शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि इस समय कपास की फसल में सफेद मक्खी व दूसरे शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए इनो, इरो, छैल मक्खी, ड्रेगनफ्लाई, दीदड़ बुगड़ा, डाकू बुगड़ा, बीटल तथा क्राइसोपा जैसे मांसाहारी कीट मौजूद हैं। इनो-इरो सफेद मक्खी के पेट में अपने बच्चे पलवाती हैं तो डे्रगनफ्लाई, छैल मक्खी इसके प्रौढ़ का उड़ते हुए शिकार करती हैं। वहीं डाकू बुगड़ा व दीदड़ बुगड़ा सफेद मक्खी के बच्चों का ख्ूान चूसकर इसको नियंत्रित करते हैं तो बीटल व क्राइसोपा सफेद मक्खी के बच्चों का काम तमाम कर देते हैं। इसलिए हमें कीटों को मारने की नहीं उनको पहचानने की जरूरत है।


 कीटाचार्य किसानों को प्रोत्साहन राशि भेंट करते जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण।





सोमवार, 31 अगस्त 2015

राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के साथ जोड़ेंगे कीट ज्ञान की मुहिम : डॉ. बराड़

 कहा, कीटों पर हुए शोध पर बनाई जाए डाक्यूमेंटरी 
कपास की फसलों के नुकसान का अवलोकन करने के लिए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक ने किया जींद का दौरा 
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले में सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण खराब हो रही किसानों की कपास की फसलों का अवलोकन करने के लिए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ. जगदीप बराड़ मंगलवार को जींद पहुंचे। इस दौरान डॉ. बराड़ ने कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ जिले के रधाना, शादीपुर, किनाना, ईंटल कलां, ईंटल खुर्द, राजपुरा सहित दर्जनभर गांवों का दौरा कर किसानों की फसलों का अवलोकन किया। रधाना गांव में किसानों की फसलों का अवलोकन करने के साथ ही डॉ. बराड़ कीटाचार्य किसानों से भी रूबरू हुए। इस दौरान कीटाचार्य किसानों ने अतिरिक्त निदेशक के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि किस तरह वह पिछले सात-आठ वर्षों से बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। किसानों द्वारा कीटों पर किए गए शोध की बारिकी से जानकारी लेने के बाद अतिरिक्त निदेशक ने कीटाचार्य किसानों को राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के तहत जोड़कर कीट ज्ञान की मुहिम को प्रदेश में फैलाने का आश्वासन दिया। इस मौके पर उनके साथ जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग, पौध संरक्षण अधिकारी डॉ. अनिल नरवाल, एडीओ डॉ. सुनील, डॉ. महेंद्र, मैडम कुसुम दलाल भी मौजूद थी।
डॉ. बराड़ ने कहा कि पूरे प्रदेश में कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी बढ़ रहा है। इसके चलते किसानों की कपास की फसल खराब हो रही है। डॉ. बराड़ ने कहा कि कपास की फसम में सफेद मक्खी के प्रकोप के बढऩे का मुख्य कारण किसानों में जागरूकता की कमी है। जागरूकता के अभाव में किसान बिना कृषि अधिकारियों की सलाह के फसल में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि
अतिरिक्त निदेशक को कीटों की जानकारी देती कीटाचार्या महिला किसान
जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग ना के बराबर हुआ है, वहां-वहां सफेद मक्खी का प्रकोप नहीं है। जींद जिले में डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम की प्रशांसा करते हुए उन्होंने कहा कि जींद के कीटाचार्य किसानों द्वारा कीटों पर किए गए इस अनोखे शोध के अब कृषि विभाग के अधिकारी भी मुरीद हो गए हैं लेकिन यह कृषि विभाग का दुर्भाग्य रहा है कि विभाग इन किसानों का सार्थक रूप से प्रयोग नहीं कर पाया। इसलिए कीट ज्ञान की मुहिम को प्रदेश के प्रत्येक किसान तक पहुंचाने के लिए कीटाचार्य किसानों को राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के तहत जोड़कर इनकी सहायता से दूसरे जिले के किसानों को भी कीटनाशक रहित खेती के प्रति जागरूक किया जाएगा। इस दौरान डॉ. बराड़ ने किसानों की कीटनाशक रहित फसलों का अवलोकन भी किया और बताया कि कीटनाशक के प्रयोग वाली फसलों उनकी फसल काफी बेहतर है। इस अवसर पर डॉ. बराड़ ने कृषि विभाग के अधिकारियों को अगले रबी के सीजन से कीटाचार्य किसानों के शोध पर एक डाक्यूमेंटरी बनाने के निर्देश दिए। कीटाचार्य किसानों ने भी अतिरिक्त निदेशक को इस मुहिम को आगे बढ़ाने के सुझाव रखे।