रविवार, 25 अक्तूबर 2015

ममता सोधा ने जिद्द से फतेह किया एवरेस्ट

लोगों के ताने सुन कर किया एवरेस्ट फतेह करने का इरादा
चिकित्सकों की सलाह की परवाह किए बिना लहराया एवरेस्ट पर तिरंगा

नरेंद्र कुंडू
 डीएसपी ममता सौदा का फोटो।
जींद। 'सपने उनके ही पूरे होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है, अकेले पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से ही उडान होती है।" इन पंक्तियों को सच कर दिखाया है एवरेस्ट विजेता डीएसपी ममता सोधा ने। समाज से मिल रहे ताने व परिवार की आर्थिक कमजोरी भी उसकी राह का रोड़ा नहीं बन पाई। 2003 में पर्वतारोहण के दौरान हुए हादसे में बुरी तरह से घायल होने के बाद भी ममता ने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी और चिकित्सकों की सलाह को नजरअंदाज कर जान पर खेलते हुए एवरेस्ट फतेह करने का काम किया। एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा कर पर्वतारोही ममता सोधा ने यह साबित कर दिया है कि नारी अबला नहीं सबला है। इतना ही नहीं ममता सोधा ने पिता की मौत के बाद अपना लक्ष्य पूरा करने के साथ-साथ परिवार के मुखिया का भी फर्ज अदा किया। परिवार में सभी भाई-बहनों में बड़ी होने के कारण पिता की मौत के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी ममता के कंधों पर आ गई थी। परिवार के पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई थी। परिवार की आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए ममता सोधा ने बीच में ही अपना प्रशिक्षण छोड़ अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाई। परिवार के सिर से दुख के बादल छटने के बाद दोबारा से ममता ने अपना प्रशिक्षण शुरू कर देश की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतेह कर अंतर्राष्ट्रीय पटल पर देश का नाम रोशन किया। एवरेस्ट फ़तहे करने के बाद सरकार ने ममता सोधा को हरियाणा पुलिस में डीएसपी के पद पर नौकरी दी।

बचपन में ही दिमाग में घर कर गई थी माउंटेन की पिक्चर

डीएसपी ममता सोधा ने बताया कि जब वह छोटी थी तो उसी समय माउंटेन के प्रति उसकी रुचि पैदा हो गई थी। उसके घर में लगी पहाड़ों की एक तस्वीर ने पहाड़ों के प्रति उसकी उत्सुकता को बढ़ा दिया था। आठवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान जब वह परिवार के साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए कटरा गई तो वहां पहली बार उसने पहाड़ों को देखा था। इसके बाद तो पहाड़ों के प्रति उसकी उत्सकता ओर भी बढ़ गई। 

बीए की पढ़ाई के दौरान लिया पर्वतारोहण का प्रशिक्षण

कैथल के आरकेएसडी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही ममता ने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। इसके बाद कुरुक्षेत्र से एमफील की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान ममता ने पैराग्राइडिंग, पैरा सैलिंग, माउंटेनिंग, सरवाइवर, साइकिलिंग, रिवर राफ्टिंग, माउंटेनिंग का बेसिक व एडवांस कोर्स ए ग्रेड के साथ पूरा किया। ममता ने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ  माउंटेनियरिंग से लिया। 

मां छिपाकर खिलाती थी घी, दूध

डीएसपी ममता सोधा ने बताया कि उसके माता-पिता ने बड़े नाज से उसका पालन-पोषण किया है। घर में उसका पालन-पोषण बिल्कुल लड़कों की तरह हुआ है। उसके माता-पिता ने बेटा व बेटी में कोई फर्क नहीं किया लेकिन उसकी दादी थोड़ी पुराने विचारों की थी। इसलिए वह उसकी बजाए उसके भाई को खाने के लिए घी-दूध ज्यादा देती थी लेकिन उसकी मां उसकी दादी से छिपाकर उसे भी घी-दूध खाने के लिए देती थी।

समाज ने उड़ाया था मजाक और चिकित्सकों ने दी थी माउंटेनिंग छोड़ने की सलाह 

वर्ष 2003 में ममता अपनी सहेलियों के साथ मनाली में पर्वतारोहण के लिए गई थी। पर्वतारोहण के दौरान वहां हुए हादसे में उसका पैर टूट गया और उसे उपचार के लिए चंडीगढ़ ले जाया गया। इस हादसे के बाद वह दो साल तक बैड पर रही। चिकित्सकों ने उसे माउंटेनिंग छोड़ने की सलाह दी। दूसरे लोग भी उसे ताने कसने लगे थे और उसका मजाक उड़ाते थे  लेकिन उसकी मां मेवा देवी ने उसकी पूरी सहायता की और उसका हौंसला बढ़ाया। समाज से मिले तानों ने उसे झकझोर कर रख दिया और उसने हर हाल में अपना लक्ष्य पूरा करने का संकल्प लिया और 2010 में एवरेस्ट फतेह कर अपना सपना पूरा किया।  

पिता की मौत के बाद टूट गया था परिवार

ममता सोधा ने बताया कि उसके पिता लक्ष्मण दास सोधा खाद्य एवं पूर्ति विभाग में इंस्पेक्टर थे और 2004 में बीमारी के कारण उसके पिता की मौत हो गई थी। पिता की मौत के बाद एक वर्ष तक विभाग या सरकार की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिली। परिवार पूरी तरह से आर्थिक संकट से जूझ रहा था। वह एकदम से निराश हो चुकी थी। इसके बाद ममता सोधा ने हरियाणा टूरिज्म में नौकरी शुरू की। पांच साल यहां नौकरी करने के बाद फतेहाबाद कॉलेज में तीन वर्षों तक प्राध्यापिका के पद पर नौकरी की। 

2010 में एवरेस्ट पर लहराया तिरंगा

पिता की मौत के बाद नौकरी के साथ-साथ 2007 में दोबारा से ममता ने प्रशिक्षण शुरू किया। बिना कोच के ही वह अकेली अभ्यास करती थी। ममता का कहना है कि हरियाणा टूरिज्म के तत्कालीन इंचार्ज राजीव मिढ़ा ने उनकी बहुत सहायता की। 2009 में एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए आवदेन किया और इसमें उसका चयन हुआ। चयन के बाद परिवार के सामने सबसे बड़ी चिंता थी कैंप के लिए रुपयों की व्यवस्था की। इसके लिए उसे 21 लाख रुपये की जरूरत थी लेकिन परिवार के पास एक पैसा भी नहीं था। इसके बाद उसने कैथल की तत्कालीन डीसी अमित पी कुमार से संर्पक किया। ममता सौदा ने बताया कि प्रशासन, सामाजिक लोगों तथा मीडिया ने उसकी काफी मदद की। इसके बाद उसकी फीस के लिए रुपयों का इंतजाम हो पाया था। 

कदम-कदम पर खड़ी थी मौत

डीएसपी ममता सोधा ने बताया कि एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बीच-बीच में कई शव भी मिले, जिन्हें देखकर कई बार उसका मनोबल कमजोर पड़ा। पैर में दर्द होने के कारण उसके लिए यह सफर ओर भी कठिन हो गया था। सफर के दौरान कई बार शरीर भी जवाब दे गया लेकिन उसने हिम्मत नहीं जारी। ममता ने बताया कि एवरेस्ट से चंद किलोमीटर पहले हिलरी स्टेप को देखकर वह बुरी तरह से डर गई थी। क्योंकि इस रास्ते के दोनों तरफ गहरी खाई थी और उस खाई में कई शव भी पड़े हुए थे। इसके बाद जब उसने एवरेस्ट की चोटी को सामने देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। एक पल के लिए उसे लगा कि वक्त उसके लिए ठहर सा गया है। इसके बाद उसने एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया और आधे घंटे वहां रूककर वापस नीचे लौट आई।  




सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

हॉकी के दम पर राजरानी ने देश में बनाई पहचान

परिस्थितियों से हार मानने वाली लड़कियों के लिए मिशाल बनी राजरानी
रियालटी शो की विजेता बन चुकी है राजरानी 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। संसाधनों के अभाव में जो लड़कियां अपना लक्ष्य छोड़कर परिस्थितियों से समझौता कर लेती हैं राजरानी उन लड़कियों के लिए एक मिशाल है। हॉकी खिलाड़ी राजरानी ने ग्रामीण क्षेत्र से निकल कर देश के मानचित्र पर अपने जिले व प्रदेश का नाम रोशन करने का काम किया है। राजरानी ने खेल ही नहीं  बल्कि छोटे पर्द पर भी अपनी सफलता की पहचान छोड़ी है। उचाना क्षेत्र के खेड़ीसफा गांव में किसान बारूराम के घर में जन्मी राजरानी ने वर्ष 2012 में स्टार प्लस चैनल पर आयोजित रियालटी शो 'सरवाइवर इंडिया' की विजेता बनकर शो में शामिल बड़े-बड़े स्टार को हरियाणा के दूध-दही की ताकत का ऐहसास करवाया था। टीवी चैनल व राष्ट्रीय स्तर पर खेलों के क्षेत्र में अपना नाम रोशन करने वाली राजरानी अब चंडीगढ़ में एक फिटनेश सेंटर पर लोगों को फिटनेश का प्रशिक्षण देती है। फिटनेश सेंटर से फ्री होने के बाद राजरानी शाम के समय स्टेडियम में जाकर खिलाडिय़ों को हॉकी के टिप्स भी सिखाती है।
रियालटी शो की विजेता राजरानी ट्राफी के साथ।
खेड़ीसफा निवासी राजरानी ने बताया कि परिवार में चार बहनें व एक भाई है। वह सभी भाई-बहनों में सबसे छोटी है। उसके पिता बारू राम खेती कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं और मां कृष्णा देवी गृहणी है। राजरानी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव से ही शुरू की। इसके बाद राजरानी ने आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए नरवाना के राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लिया। पढ़ाई के साथ-साथ राजरानी ने खेलों के क्षेत्र में भी रुचि दिखाई। हॉकी राजरानी का पसंदीदा खेला था। हॉकी में पूरी तरह से पारंगत होने के लिए वह घंटों मैदान पर पसीना बहाती थी लेकिन घर की आर्थिक परिस्थिति मजबूत नहीं होने के कारण उसे अपनी पढ़ाई व खेल को आगे बढ़ाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बाद में खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के बाद खेल विभाग की तरफ से राजरानी को आर्थिक सहायता मिलनी शुरू हुई तो राजरानी ने तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ कदम बढ़ाए। 27 वर्षीय राजरानी ने बताया कि स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से उसको आर्थिक सहायता मुहैया करवाई गई। इसके बाद उसने पंजाब विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी की।

सुबह लिफ्ट मांगकर गांव से शहर में जाती थी अभ्यास करने 

हॉकी खिलाड़ी राजरानी पर खेल का जुनून इस कदर सवार था कि वह सुबह जल्दी उठकर अभ्यास करने के लिए नरवाना जाती थी। राजरानी ने बताया कि गांव से शहर के लिए सुबह-सुबह कोई साधन नहीं होने के कारण उसे दूसरे वाहनों से लिफ्ट मांगनी पड़ती थी। शुरू-शुरू में तो कोई उसे लिफ्ट नहीं देता था लेकिन जब बाद में लोगों को उसके खेल के बारे में पता चला तो लोग उन्हें लिफ्ट देने लगे।

राजरानी ने इंडिया कैंप में बनाई जगह 

स्कूली खेलों से ही राजरानी ने मैदान पर अपनी हॉकी का जादू बिखेरना शुरू कर दिया था। इसी की बदौलत राजरानी ने स्कूल नेशनल, जूनियर नेशनल, सीनियर नेशनल ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी में कई पदक प्राप्त किए। इसके बाद वर्ष 2007-08 में राष्ट्रीय खेलों में भी राजरानी ने पदक प्राप्त किया। अपनी कड़ी मेहनत व उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर ही राजरानी ने इंडिया कैंप में अपने लिए जगह बनाई।

सरवाइवर इंडिया में दिखाया हरियाणा के दूध-दही का जोश

वर्ष 2012 में स्टार प्लस चैनल पर शुरू हुए रियालटी शो सरवाइवर इंडिया में राजरानी के साथ-साथ कई बड़े स्टार इस शो में शामिल हुए। इस शो में शामिल प्रतिभागियों को आयोजकों द्वारा कठिन से कठिन टास्क दिए जाते थे। इन टॉस्क के दौरान बड़े-बड़े स्टार भी अपना हौंसला छोड़ कर हार मानने पर मजबूर हो जाते थे। शो के दौरान कई-कई दिनों तक जंगलों में भूखी रहकर भी राजरानी ने हिम्मत नहीं खोई। कठिन से कठिन टास्क को भी राजरानी ने अपनी हिम्मत व हौंसले से पूरा किया। रियालटी शो की विजेता बनकर कर राजरानी ने शो में शामिल बड़े-बड़े स्टारों को भी हरियाणा के दूध-दही का जोश दिखाया।





जिंदगी के गुणा-भाग ने बना दिया गणित टीचर

अमरेहड़ी की रितू ने विपरीत परिस्थितियों से जूझ पाया मुकाम
पिता की मौत के बाद संघर्ष कर पूरी की पढ़ाई

नरेंद्र कुंडू
जींद। आंखें खोलते ही जिंदगी में आई मुसीबतों ने ऐसा उलझाया कि मुसीबतों के गुणा-भाग से प्रेरणा लेकर वह गणित की टीचर बन गई। यह कहानी है अमरेहड़ी निवासी 23 वर्षीय रितू की। रितू ने विपरित रिस्थितियों से जूझ कर मैथ से एमएससी की अपनी पढ़ाई पूरी की। अब रितू हिंदू कन्या महाविद्यालय में मैथ की प्राध्यापिका के तौर पर अपनी सेवाएं दे कर परिवार का पालन-पोषण करने के साथ-साथ दूसरी छात्राओं का जीवन संवार रही है। मैथ प्राध्यापिका रितू अब दूसरी छात्राओं के लिए पे्ररणा स्त्रोत बन चुकी है। रितू का अगला लक्ष्य अब नेट की परीक्षा पास करना है। रितू अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही है। इसके लिए वह कॉलेज से घर जाने के बाद गांव में बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती है। रितू की मां कृष्णा देवी तथा उसकी बड़ी बहन संगीता भी उसके सपने को पूरा करने के लिए उसका पूरा सहयोग कर रही है। अमरेहड़ी निवासी रितू ने बताया कि वह डेढ़ वर्ष की थी जब उसके पिता राजकपूर की मौत हो गई थी। पिता की मौत ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। रितू तथा उसकी बड़ी बहन संगीता के पालन-पोषण की पूरी जिम्मेदारी अब उसकी मां कृष्णा देवी के कंधों पर आ गई। परिवार के पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया। रितू ने बताया कि परिवार के सामने आए आर्थिक संकट के चलते उसकी मां ने आंगनवाड़ी में काम कर परिवार का पालन-पोषण किया।
 अपनी मां व बहन के साथ मौजूद रितू। 
 परिवार के पास पूर्वजों की लगभग डेढ़ एकड़ जमीन थी। इस जमीन को ठेकेपर देकर जो थोड़ी बहुत आमदनी होती थी उससे रितू व उसकी बहन संगीता की पढ़ाई का खर्च चलता था। इस प्रकार विषम परिस्थितियों में रितू व उसकी बहन संगीता ने अपनी पढ़ाई पूरी की। रितू व उसकी बहन संगीता ने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई तो गांव के सरकारी स्कूल से पूरी की। इसके बाद रितू ने 12वीं कक्षा जींद के एसडी स्कूल और मैथ ऑनर्स से बीए की पढ़ाई हिंदू कन्या महाविद्यालय से पूरी की। इसके बाद रितू ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बीएड व एमएससी की पढ़ाई पूरी की। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से मैथ से एमएससी की पढ़ाई पूरी कर रितू अब हिंदू कन्या महाविद्यालय में मैथ प्राध्यापिका के तौर पर अपनी सेवाएं दे रही है। वहीं रितू की बड़ी बहन संगीता आर्ट एंड क्राफ्ट का कोर्स करने के बाद अब जेबीटी कर रही है। पिता की मौत के बाद रितू ने बिल्कुल विपरित परिस्थितियों में अपनी पढ़ाई पूरी की और अब रितू अपने परिवार का सहारा बन चुकी है। 

मां से मिली प्रेरणा

रितू का कहना है कि आज वह जो कुछ भी है उसके पीछे उसकी मां कृष्णा देवी का पूरा योगदान है। परिवार की विपरित परिस्थितियों में भी उसकी मां ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। अपनी मां से प्रेरणा लेकर ही उसने अपनी पढ़ाई का सफर जारी रखा। रितू ने बताया कि उसको आगे बढ़ाने में उसके ताऊ के लड़के दीपक ने भी पूरा सहयोग किया। भाई दीपक से मिले सहयोग ने भी उसके अंदर उर्जा का संचार करने का काम किया। 

गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी बेटी होने पर है गर्व

रितू आज अपने गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की है। गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी होने के कारण ही उसे 15 अगस्त पर गांव के स्कूल में तिरंगा लहराने का अवसर हासिल हुआ। रितू ने बताया कि जब सरकार की बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ अभियान के तहत स्कूल की तरफ से सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी होने पर 15 अगस्त पर गांव के स्कूल में तिरंगा लहराने के लिए निमंत्रण भेजा गया तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इस दिन उसे अपनी पढ़ाई व परिवार पर गर्व हुआ।