रविवार, 3 अगस्त 2014

कमलेश के मजबूत इरादे व सीखने के जुनून ने परिवार को दी नई दिशा

आठवीं पास कमलेश कीट ज्ञान में बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों को दे रही है चुनौती

परिवार के विरोध के बाद भी नहीं मानी हार और साधारण ग्रहणी से बन गई कीटों की मास्टरनी

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कहते हैं कि अगर मन में किसी काम को करने का जुनून पैदा हो जाए तो बड़ी से बड़ी बाधा भी उसका रास्ता नहीं रोक पाती। इस कहावत को सच साबित कर दिखाया है निडाना गांव की वीरांगना कमलेश ने। कमलेश चूल्हे-चौके के साथ-साथ खेती-बाड़ी के कामकाज में भी अपने पति जोगेंद्र का हाथ बंटवाती है। लगभग चार वर्ष पहले कमलेश को कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल से जहरमुक्त खेती की ऐसी प्रेरणा मिली की उसने परिवार की
कमलेश का फोटो।
मर्जी के खिलाफ कीट ज्ञान हासिल करने के लिए गांव के ही खेतों में चल रही महिला किसान खेत पाठशाला में भाग लेना शुरू कर दिया। पति और परिवार की मर्जी के खिलाफ कीट ज्ञान हासिल करने वाली कमलेश को लगभग दो वर्षों तक परिवार के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी और यह कमलेश की मेहनत का ही परिणाम है कि महज आठवीं पास कमलेश को आज सैंकड़ों कीटों के नाम कंठस्थ हैं। कमलेश फसल में मौजूद कीट को देखते ही उसके पूरे जीवन चक्र तथा इस कीट का फसल पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसके बारे में भी पूरी जानकारी रखती है। कीट ज्ञान के मामले में तो आठवीं पास कमलेश बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों को भी चुनौती दे रही है। जिस कमलेश को कभी परिवार वाले कीट ज्ञान हासिल करने से रोकते थे आज परिवार के वही सदस्य खुद कीट ज्ञान की तालीम लेने के लिए कमलेश के साथ किसान खेत पाठशाला में जाते हैं। आज कमलेश का पति जोगेंद्र कीट ज्ञान के प्रति इतना आकर्षित हो चुका है कि पिछले दो सालों से उसने अपनी किसी भी फसल में कीटनाशक का एक छटांक भी प्रयोग नहीं किया है। कीट ज्ञान हासिल कर कमलेश तथा उसका पति जोगेंद्र अब खुद भी जहरमुक्त खेती कर रहे हैं तथा दूसरे किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं।

कमलेश का ग्रहणी से कीटों की मास्टरनी बनने तक का सफर


अपने पति जोगेंद्र को लेपटॉप पर कीटों के बारे में जानकारी देती कमलेश।
महिला पाठशाला के दौरान महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देती कमलेश।
कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए निडाना गांव में वर्ष 2008 में पुरुष किसानों की पाठशाला की शुरूआत की गई थी। इसके बाद महिलाओं को भी इस मुहिम से जोडऩे के लिए वर्ष 2010 में निडाना गांव में ही एक महिला किसान खेत पाठशाला की भी शुरूआत की गई। पड़ोस के खेत में चल रही महिला किसान पाठशाला को देखकर कमलेश ने भी इस पाठशाला में जाना शुरू कर दिया। कमलेश पाठशाला से जो भी सीखती वह घर आकर परिवार के सदस्यों को समझाती और फसल में कीटनाशकों का छिड़काव नहीं करने का सुझाव देती लेकिन परिवार के सदस्य उसकी बात मानने की बजाये उल्टा उसे पाठशाला में जाने से रोकने के लिए दबाव डालने लगे। कमलेश ने बताया कि उसका पति जोगेंद्र फसल में काफी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करता था और उसे पाठशाला में जाने से भी रोकता था लेकिन कमलेश अपने पति जोगेंद्र को कहती कि पहले वह फसल में कीटनाशकों का छिड़काव बंद कर दे तो वह भी महिला किसान खेत पाठशाला में जाना छोड़ देगी। इसी बात को लेकर कई बार दोनों में झगड़ा भी हो जाता। लगभग दो साल तक यही क्रम जारी रहा। वर्ष 2012 में डॉ. सुरेंद्र दलाल ने जोगेंद्र के खेत में एक पुरुष किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की और जोगेंद्र को भी इस पाठशाला में आने के लिए तैयार किया। जब जोगेंद्र ने खुद किसान खेत पाठशाला में जाकर कीटों के बारे में जानकारी हासिल की तो जोगेंद्र को भी अपनी पत्नी कमलेश की बातों पर यकीन होने लगा। इसके बाद जोगेंद्र ने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया। अब 2014 में भी जोगेंद्र के खेत में एक नहीं बल्कि दो-दो पाठशालाएं चल रही हैं। एक पाठशाला पुरुषों की तो दूसरी पाठशाला महिलाओं की दोनों ही पाठशालाओं में दोनों पति-पत्नी भाग लेते हैं। इतना ही नहीं पाठशाला में किसानों के उठने-बैठने तथा पीने के पानी व अल्पाहार की व्यवस्था भी कमलेश व उसका पति जोगेंद्र खुद ही करते हैं। पाठशाला के सुचारू रूप से संचालन में दोनों का अहम योगदान है। यह कमलेश की दृढ़ इच्छा व मजबूत इरादों का ही परिणाम है कि कभी परिवार के जो लोग उसे पाठशाला में जाने से रोकते थे आज वही लोग उसके पीछे-पीछे पाठशाला में खुद ही जाने लगे हैं। पिछले दो वर्षों से कमलेश के पति जोगेंद्र ने फसल में एक छटांक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है।
कमलेश को सम्मानित करते तत्कालीन उपायुक्त डॉ. युद्धवीर ख्यालिया का फाइल फोटो।


कीटाचार्य महिलाएं निभा रही हैं चिकित्सक व कृषि वैज्ञानिक की भूमिका


जींद के श्रीराम विद्या मंदिर व निडाना के डेफोडिल्स पब्लिक स्कूल के विधार्थियों ने भी किया पाठशाला का भ्रमण

विधालयों ने समझा पौधे और कीटों के आपसी रिश्ते का अर्थ

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सामान्य अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राजेश भोला ने कहा कि कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़ी महिलाएं एक तरह से चिकित्सक व कृषि वैज्ञानिक दोनों की भूमिका निभा रही हैं। क्योंकि एक कीट वैज्ञानिक की तरह कीटों पर शोध करने के साथ-साथ थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए पिछले कई वर्षों से लगातार किसानों को जहरमुक्त खेती के लिए जागरूक करने का काम भी कर रही हैं। डॉ. भोला शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा निडाना गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में बतौर मुख्यातिथि शिरकत करने पहुंचे थे। इस अवसर पर पाठशाला में डेफोडिल्स स्कूल की प्राचार्या विजय गिल तथा अखिल भारतीय पर्यावरण एवं स्वास्थ्य मिशन से सुनील कंडेला भी विशेष तौर पर पाठशाला में मौजूद रहे। पाठशाला में शनिवार को डेफोडिल्स पब्लिक स्कूल के साथ-साथ जींद से श्रीराम विद्या मंदिर स्कूल के विद्यार्थी भी कीट ज्ञान अर्जित करने के लिए पहुंचे थे। बच्चों ने बड़ी ही रुचि के साथ पाठशाला में कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाई। मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने बच्चों के सवालों के जवाब देकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया। विद्यार्थी कीटों के बारे में इतनी बारीकी से जानकारी हासिल कर काफी उत्साहित नजर आ रहे थे। पाठशाला के समापन पर सभी अतिथिगणों को अमर उजाला फाउंडेशन की तरफ से स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित भी किया गया।
पाठशाला में मौजूद विद्यार्थी और महिलाएं।

पिछले सप्ताह की बजाय कम हुई सफेद मक्खी, हरेतेले व चूरड़े की संख्या

फसल का अवलोकन करने के बाद महिला किसानों ने बताया कि पिछले सप्ताह की बजाय इस सप्ताह फसल में सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े की संख्या फसल में कम हुई है। इसका कारण यह है कि इस बार इन रस चूसक कीटों को खाने वाले मांसाहारी कीट फसल में काफी हैं। इस समय फसल में इरो नामक मांसाहारी कीट भी आया हुआ है। यह कीट परपेटिया है और सफेद मक्खी के बच्चे के पेट में अपने अंड़े देता है। इरो नामक यह परपेटिया कीट अकेला ही 30 से 40 प्रतिशत सफेद मक्खी को नियंत्रित कर लेता है। वहीं क्राइसोपे का बच्चा भी एक दिन में 100 के लगभग सफेद मक्खी का काम तमाम कर देता है। इनो नामक कीट भी 10 से 15 प्रतिशत सफेद मक्खी को अकेले ही नियंत्रित कर लेती है। महिला किसानों ने बताया कि इस बार उन्होंने एक नए किस्म के कीट के अंड़े भी फसल में देखने को मिले हैं। यह अंड़े किस कीट हैं इसका पता लगाने के लिए इन अंड़ों पर शोध किया जाएगा।

अमर उजाला फाउंडेशन ने शुरू की नई पहल

अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला में फाउंडेशन की तरफ से १० मास्टर ट्रेनर महिला किसानों को मानदेय दिया गया। मानदेय पाकर महिला किसान काफी खुश नजर आ रही थी। मास्टर ट्रेनर मीनी मलिक, गीता, बिमला, कमलेश, राजवंती, शीला, ईशवंती, अनिता, शांति, सुषमा ने कहा कि पिछले लगभग चार वर्षों से वह अपनी जेब से पैसे खर्च कर पाठशालाएं चला रही हैं लेकिन अमर उजाला फाउंडेशन ने उन्हें मानदेय देकर उनका मान-सम्मान बढ़ाया है और एक नई पहल शुरू की है।

पाठशाला से मिली पौधों और कीट के आपसी रिश्ते की जानकारी

कीटों के बारे में जानकारी हासिल करते विद्यार्थी।
जींद के श्रीराम विद्या मंदिर स्कूल के विद्यार्थी मनप्रीत, नवीन, अजय, शुकर्ण, शुभम, ऋषिता, महक, भावना, ईशिका व प्रेक्षा ने बताया कि वह शहर में ही रहते हैं और उनके अभिभावक शहर में ही नौकरी व अपना व्यवसाय करते हैं। इसलिए उन्हें फसल व कीटों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। उन्होंने पहली बार खेत में जाकर इतनी नजदीक से फसल व कीटों के आपसी रिश्ते के बारे में समझने का अवसर मिला है। यहां आकर उन्हें यह पता चला है कि पौधे किस तरह से अपनी सुरक्षा के लिए समय-समय पर भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। यह पाठशाला उनके लिए काफी ज्ञानवर्धक रही है। 
मुख्यातिथि डॉ. राजेश भोला को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।


महिला किसानों को अमर उजाला की तरफ से मानदेय भेंट करते एडीओ डॉ. कमल सैनी।

रविवार, 27 जुलाई 2014

महिला पाठशाला में कीटों की मास्टरनियों ने ढूंढ़ा एक नया कीट

विधार्थियों  ने अपनी आंखों से देखा कैसे शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करते हैं मांसाहारी कीट

नरेंद्र कुंडू 
जींद। निडाना गांव के खेतों में चल रही की महिला किसान खेत पाठशाला के चौथे सत्र के दौरान शनिवार को महिला किसानों के साथ-साथ निडाना गांव के डेफोडिल्स पब्लिक स्कूल के नौंवी कक्षा के विद्यार्थियों ने भी पाठशाला में पहुंचकर मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की। पाठशाला में मौजूद विद्यार्थियों ने मांसाहारी कीटों को दूसरे कीटों का शिकार करते हुए भी अपनी आंखों से देखा और किस तरह से मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करते हैं, इसके बारे में भी जानकारी हासिल की। कीटाचार्या महिलाओं ने स्कूली विधार्थियों को कपास की फसल में मेजर कीटों के नाम से मशहूर सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़े के बारे में बारीकी से जानकारी दी। इसके साथ-साथ विधार्थियों को गुलाबी रंग की सुंडी, लोपा मक्खी तथा फौजन बिटल के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी दी। इस दौरान महिला किसानों ने एक नये किस्म का कीट भी ढूंढ़ा, जिस पर महिला किसानों ने अपना शोध भी शुरू कर दिया।
लोपा मक्खी ग्रुप की कीटाचार्या मुकेश रधाना व कृष्णा निडाना ने विद्याॢथयों को बताया कि आज के दिन सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को कपास की फसल के मेजर कीटों के नाम से जाना जाता है। इन तीनों से भयभीत होकर किसान फसल में सबसे ज्यादा पेस्टीसाइड का प्रयोग करता है। जबकि सच्चाई यह है कि यदि किसान इन कीटों के साथ छेड़छाड़ नहीं करे तो यह कीट फसल में नुकसान पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाते हैं। मांसाहारी कीट खुद ही इन कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। महिला किसानों ने बताया कि इस समय फसल में गुलाबी रंग की सुंडी के पतंगे भी देखे जा रहे हैं। गुलाबी रंग की सुंडी का पतंगा फलाहारी होता है और यह कपास के पौधे की बोकी, टिंड्डे तथा फल खाकर अपना जीवनचक्र चलाता है लेकिन इस पतंगे को नियंत्रित करने के लिए फसल में ड्रेगन फ्लाई (हेलीकॉपटर), हथजोड़ा तथा बुगड़े प्रचुर मात्रा में मौजूद होते हैं। ड्रेगन फ्लाई तथा हथजोड़ा गुलाबी सुंडी को खाकर नियंत्रित करते हैं तो बुगड़े इसका खून पी कर इसका काम तमाम करते हैं। इस दौरान विद्यार्थियों ने मांसाहारी कीटों को दूसरे कीटों का शिकार करते भी देखा। विद्याॢथयों ने देखा कि मकड़ी एक मांसाहारी कीट बीटल का शिकार कर रही है, वहीं एक मांसाहारी कीट कातिल बुगड़ा भी बीटल में अपना डंक घुसाकर बीटल का खून पी रहा है। विद्यार्थियों ने बताया कि उन्होंने अपनी आंखों से मांसाहारी कीटों को दूसरे कीटों का शिकार करते हुए देखकर यह अहसास हो गया है कि कीटों को मारने के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं है। मांसाहारी कीट खुद ही दूसरे कीटों को नियंत्रित कर फसल में कीटनाशी का काम करते हैं। महिला किसानों ने बताया कि फौजन बीटल एक मांसाहारी कीट है और यह जमीन में अपने अंड़े देती है। यह कीट जमीन में रहने वाले शाकाहारी कीटों का शिकार करती है। महिला किसानों ने बताया कि इस सप्ताह सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 2.1, हरे तेले की 2.5 तथा चूरड़े की 4.4 थी, जो फसल में नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से काफी कम थी।  
महिलाओं द्वारा खोजा गया नये किस्म का कीट।

अपने वजन से ज्यादा मांस खाती है लोपा मक्खी

लोपा मक्खी ग्रुप की महिला किसान मुकेश रधाना, कृष्णा निडाना, राजबाला निडाना, प्रमीला रधाना तथा गीता निडाना ने बताया कि लोपा मक्खी एक मांसाहारी कीट है और यह पानी, गोबर या गंदगी पर अपने अंड़े देती है और यह मचान (टिले) पर बैठकर उडते हुए कीटों का शिकार करती है। इसके बच्चे मांसाहारी होते हैं और यह प्रौढ़ बनने तक पानी में रहती है। प्रौढ़ बनने के बाद पानी से बाहर आती है। इसकी खास बात यह है कि यह अपने वजन से दो गुणा मांस खाती है। सूर्य की पहली किरण के साथ ही यह उड़कर अपने शिकार की तलाश शुरू कर देती है। सफेद मक्खी, मच्छर, पतंगे तथा उड़ते हुए सभी कीटों का यह शिकार करती है। 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

महिला किसानों ने ढूंढ़ा एक नया कीट

पाठशाला में भाग लेने के लिए पहुंचे डेफोडिल्स स्कूल के विद्यार्थी।
कीटाचार्या किसान द्वारा बताई जा रही जानकारी को नोट करते विद्यार्थी।
मैडम के साथ कीटों का अवलोकन करते विद्यार्थी।

लेडी बीटल का शिकार करता कातिल बुगड़ा।
लेडी बीटल का शिकार करती मकड़ी।
कपास की फसल के अवलोकन के दौरान महिला किसानों ने एक नये किस्म का कीट देखा। इस कीट की कमर पर काले तथा पीले रंग के निशान थे और इसकी तीन जोड़ी टांगे थी। इस नये किस्म के कीट को देखकर महिला किसान काफी उत्साहित थी। यह कीट क्या खाता है और फसल में इसका क्या प्रभाव पड़ता है इसकी जानकारी जुटाने के लिए महिला किसानों ने इस कीट पर शोध शुरू कर दिया है।

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

महज 15 वर्ष की उम्र में जीते एक दर्जन मैडल

कुश्ती के क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड रही सीमा बेनिवाल

माता-पिता बनाना चाहते थे आईएएस व आईपीएस लेकिन सीमा ने खेलों में चुना अपना करियर

नरेंद्र कुंडू
जींद। कहते हैं कि पुत के पांव तो पालने में ही दिख जाते हैं। नरवाना निवासी सीमा बेनिवाल भी कुछ इसी तरह की शख्सियतों में से एक है। सीमा बेनिवाल पढ़ाई के साथ-साथ कुश्ती क्षेत्र में भी लगातार अपनी सफलता की छाप छोड़ रही है। सीमा बेनिवाल महज 15 वर्ष की उम्र में कुश्ती क्षेत्र में जिला स्तर से लेकर राष्ट्र स्तर तक की प्रतियोगिताओं में एक दर्जन के लगभग मैडल जीत कर अपनी सफलता के झंड़े गाड चुकी है। अब सीमा बेनिवाल का अगला टारगेट
सीमा बेनिवाल
अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में देश के लिए गोल्ड मैडल जीतने का है। सीमा बेनिवाल इस समय नरवाना के आर्य कन्या महाविद्यालय में नॉन मेडिकल से 12वीं कक्षा की पढ़ाई कर रही है। सातवीं कक्षा से कुश्ती क्षेत्र में अपने करियर की शुरूआत करने वाली सीमा बेनिवाल ने पिछले पांच वर्षों में लगभग दर्जनभर प्रतियोगिताओं में भाग लिया और अपने कठोर परिश्रम और मजबूत इरादों से उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए कई मैडल अपने नाम किये। सीमा बेनिवाल अब अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नरवाना के नवदीप स्टेडियम में कोच जोगेंद्र ङ्क्षसह लोहान के कुशल मार्गदर्शन में दिन-रात कठोर परिश्रम कर अपना पसीना बहा रही है। माता-पिता से भी उसे पूरा सहयोग मिल रहा है। परिवार की तरफ से मिल रहे भरपूर सहयोग तथा कोच के कुशल मार्गदर्शन की बदौलत ही सीमा तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ अपने कदम बढ़ा रही है।
कुश्ती प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर सीमा बेनिवाल को सम्मानित करते जिला खेल अधिकारी

कुश्ती मैट पर लड़कों को भी दे रही टक्कर

15वर्षीय सीमा बेनिवाल के इरादे कितने मजबूत हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किस तरह का जुनून उसके अंदर है इस बात का पता उसके अभ्यास करने के तरीके से ही लग जाता है। सीमा बेनिवाल कुश्ती के मैट पर अपने प्रतिद्वंद्वियों को पटकनी देने के लिए कुश्ती की बारीकियों को सीखने के अलावा लड़कियों के साथ-साथ लड़कों के साथ भी अभ्यास कर कुश्ती मैट पर लड़कों को भी टक्कर दे रही है।

सीमा के माता-पिता सीमा को बनाना चाहते थे आईएएस या आईपीएस

सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) जींद में डिप्टी सुपरीडेंट के पद पर कार्यरत सेवा ङ्क्षसह बेनिवाल का कहना है कि उन्होंने अपनी बेटी के लिए कुछ अलग ही सपने देखे थे। सेवा ङ्क्षसह बेनिवाल ने बताया कि वह सीमा को आईएएस या आईपीएस बनाना चाहते थे लेकिन सीमा का लक्ष्य कुछ ओर ही था। सीमा खेलों के क्षेत्र में अपने देश का नाम रोशन करने का सपना अपनी आंखों में पाल रही थी। सेवा सिंह बेनिवाल ने बताया कि जब सीमा ने उनके सामने खेलों के क्षेत्र में जाने की अपनी इच्छा जाहिर की तो उन्होंने उसे रोकने की बजाये उसे प्रोत्साहित किया। सीमा की रुचि बचपन से ही कुश्ती में थी। इसलिए सीमा ने कुश्ती को ही अपना माध्यम बनाया। सेवा ङ्क्षसह बेनिवाल का कहना है कि जब सीमा ने कुश्ती क्षेत्र में अपनी सफलता का परचम लहराना शुरू किया तो फिर सीमा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज उसके उन्हें अपनी बेटी पर नाज है और अब उनकी इच्छा है कि उनकी बेटी देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मैडल जीतकर देश का नाम रोशन करे।
विजेता खिलाडिय़ों व कोच के साथ मौजूद सीमा बेनिवाल।

पढ़ाई में भी नहीं सीमा का कोई सानी

नरवाना के आर्य कन्या महाविद्यालय में नॉन मेडिकल संकाय में १२वीं कक्षा की पढ़ाई कर रही सीमा का खेलों के साथ-साथ पढ़ाई में भी कोई सानी नहीं है। सीमा ने १०वीं तथा ११वीं कक्षा में मेरिट सूची में स्थान प्राप्त कर अपने माता-पिता तथा अपने स्कूल का नाम रोशन किया। सीमा की इस उपलब्धि पर स्कूल प्रबंधन की तरफ से सीमा को पुरस्कृत भी किया जा चुका है। स्कूल प्रबंधन को भी अपनी इस होनहार छात्रा पर नाज है। 
स्कूल स्टाफ के साथ मौजूद सीमा बेनिवाल मैडल दिखाते हुए।

इन-इन प्रतियोगिताओं में लहराया परचम

1. वर्ष 2010-11 में आयोजित तीसरी हरियाणा स्टेट ग्रामीण स्पोर्टस टूर्नामेंट में तीसरा स्थान प्राप्त किया।
2. वर्ष 2011-12 में जींद में आयोजित हुई जिला स्तरीय ग्रामीण खेलकूद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
3. वर्ष 2011-12 में आयोजित हुई हरियाणा स्टेट ग्रामीण खेलकूद प्रतियोगिता (पायका) में अंडर 16 आयु वर्ग में भाग लेकर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
4. वर्ष 2012-13 में ईटावा (यूपी) में आयोजित हुई 58वीं राष्ट्र स्तरीय स्कूल खेलकूद कुश्ती प्रतियोगिता में दूसरा स्थान हासिल किया।
5. वर्ष 2012-13 में आयोजित हुई जिला स्तरीय स्कूली खेलकूद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
6. वर्ष 2012-13 में आयोजित हुई जिला स्तरीय ग्रामीण खेलकूद प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया।
7. वर्ष 2012-13 में चंडीगढ़ में आयोजित हुई राज्य स्तरीय कुश्ती चैम्पियनशिप में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
8. वर्ष 2013-14 में फरीदाबाद में आयोजित स्वामी विवेकानंद हरियाणा स्टेट पायका ग्रामीण प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया।
9. वर्ष 2013-14 में आयोजित हुई जिला स्तरीय स्कूली खेलकूद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
10. वर्ष 2013-14 में आयोजित हुई 48वीं हरियाणा राज्य विद्यालय क्रीड़ा प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
11. नरवाना में आयोजित हुई 47वीं हरियाणा राज्य विद्यालय क्रीडा प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
 











कीटों की मास्टरनियों ने विधार्थियों को पढ़ाया कीट ज्ञान का पाठ

महिला किसान खेत पाठशाला में डेफोडिल्स स्कूल के विधार्थियों  ने ली कीट ज्ञान की तालीम

नरेंद्र कुंडू
जींद। पौधा 24 घंटे में साढ़े चार ग्राम भोजन बनाता है। डेढ़ ग्राम भोजन पौधा अपने नीचे के हिस्से को देता है तथा डेढ़ ग्राम भोजन ऊपरी हिस्से को देता है। बाकि बचा हुआ डेढ़ ग्राम भोजन रिजर्व में रखता है ताकि एमरजैंसी में यह भोजन उसके काम आ सके। भोजन के आवागमन के लिए पौधे में दो नालियां होती हैं। एक नाली से पौधा कच्चा माल जड़ों तक पहुंचाता है और दूसरी नाली से पक्का हुआ माल पौधे के सभी हिस्सों तक पहुंचता है। यह जानकारी कीटों की मास्टरनी सविता तथा मिनी मलिक ने शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा निडाना गांव के खेतों में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में निडाना गांव स्थित डैफोडिल्स पब्लिक स्कूल के  विधार्थियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाते हुए दी। महिला पाठशाला में डैफोडिल्स पब्लिक स्कूल के 8वीं कक्षा के  विधार्थियों ने पढ़ाई के साथ-साथ फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में जानकारी हासिल की। 
पाठशाला में कीटों की जानकारी को नोट करते बच्चे।
 पाठशाला में बच्चों को कीटों की पहचान करवाती मास्टर ट्रेनर मिनी मलिक।

मांसाहारी कीट है भिरड़

भिरड़ ग्रुप की मास्टर ट्रेनर सुषमा, संतोष, सुमन, कमल तथा जसबीर कौर ने  विधर्थियों को बताया कि भिरड़ नामक कीट मांसाहारी होती है। यह छता बनाकर उसमें कीट को रोकती है और उसके बाद उसमें अपने अंड़े देती है। इसके बच्चे जिंदा कीट के मांस को खाते हैं। इसलिए भिरड़ कीट को पूरी तरह से मारने की बजाये बेहोश करके अपने छत्ते में रोकती है और फिर भिरड़ के बच्चे उस कीट को खाकर अपना गुजारा करते हैं।

कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं माशाहारी 

आज से पहले उन्हें यह पता नहीं था कि कीट हमारे लिए कितने लाभदायक होते हैं। महिला किसान खेत पाठशाला में आकर उन्हें कीटों के बारे में बहुत अच्छी व ज्ञानवर्धक जानकारी मिली। पाठशाला में महिलाओं ने उन्हें बताया कि ब्रिस्टल बिटल (तेलन) कपास के फूल की केवल पत्तियां व नर पुंकेशर खाकर गुजारा करती है और इस प्रक्रिया के दौरान वह फूल की प्रजनन करने में सहायता करती है। क्योंकि कपास के फूल में एक ही मादा पुंकेशर होता है और नर पुंकेशर काफी ज्यादा होते हैं। इसका मादा पुंकेशर नर पुंकेशर से ऊपर होता है। कपास के फूल का प्राग भारी होने के कारण हवा में नहीं तैर सकता। इसलिए जब ब्रिस्टल बिटल इस फूल की पंखुडिय़ों को खाती है तो उसके शरीर पर सैंकड़ों प्रागकण लग जाते हैं । इस प्रकार यह कीट फूल के प्रजजन में सहायता कर किसान को फायदा पहुंचाता है। वहीं ब्रिस्टल बिटल जमीन में अपने अंड़े देती है और इसके बच्चे मांसाहारी होते हैं, जो शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।
अजय मलिक, विद्यार्थी
डेफोडिल्ज पब्लिक स्कूल, निडाना

पौधों को होती है कीटों की जरूरत

पाठशाल में उन्होंने यह जानकारी हासिल की है कि शाकाहारी कीट फसल में क्यों आते हैं और पौधों को उनकी क्या जरूरत पड़ती है। कीटाचार्य महिलाओं ने उन्हें बताया कि इस समय कपास की फसल काफी बड़ी हो चुकी है। इससे कपास के पौधों के नीचे के पत्तों पर ठीक तरह से धूप नहीं पहुंच पा रही है। इससे नीचे के पत्ते पौधे के लिए भोजन नहीं बना पा रहे हैं। इसलिए इस समय कपास के पौधों को शाकाहारी कीटों की जरूरत होती है और पौधे भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं। इस समय कपास की फसल में टिड्डे आये हुए हैं। टिड्डे पत्तों के बीच से छेद करते हैं, जिससे पौधे के नीचे के पत्तों पर धूप पहुंचती है और नीचे के पत्ते भी पौधे के लिए भोजन बनाने का काम शुरू कर देते हैं। 
अंकुश, विद्यार्थी
डेफोडिल्स पब्लिक स्कूल, निडाना

नहीं बढ़ रही है सफ़ेद मक्खी की संख्या

पाठशाला में उन्हें यह सीखने को मिला की मांसाहारी कीट किस तरह से शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करते हैं। महिला किसानों ने उन्हें बताया कि तीन सप्ताह पहले कपास की फसल में सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 1.6 थी और एक सफेद मक्खी अपने जीवन में 100 से 120 अंड़े देती है। अंड़े से बच्चे निकलने में 5 दिन और बच्चों से प्रौढ़ होने में एक सप्ताह तक का समय लगता है। सफेद मक्खी की अंड़े देने की क्षमता को देखते हुए इस सप्ताह कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 100 के लगभग होनी चाहिए थे लेकिन तीन सप्ताह बाद भी सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता केवल 2.6 पर ही खड़ी और यही स्थिति हरे तेले और चूरड़े की है। इससे यह साफ हो रहा है कि मांसाहारी कीट ही सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को नियंत्रित करने में कुदरती कीटनाशी का काम कर रहे हैं।
अंजू, विद्यार्थी
डेफोडिल्स पब्लिक स्कूल, निडाना

तीन भागों में बता होता है कीट  का शरीर 

आज तक उन्होंने केवल किताबों में ही कीड़ों के बारे में थोड़ा बहुत पढ़ा था लेकिन आज महिला पाठशाला में पहुंचकर उन्होंने कीड़ों के क्रियाकलापों और उनके जीवनचक्र के बारे में बारीकी से जानकारी हासिल की है। महिला किसानों ने कीटों की शारीरिक बनावट के बारे में जानकारी दी। आज पाठशाला में उन्हें पता चला है कि कीडों का शरीर सिर, धड़ और पेट तीन भागों में बटा हुआ होता है और कीड़े के एक जोड़ी पंख, तीन जोड़ी पैर तथा परिस्थितियों को भांपने के लिए सिर पर ऐंटिने नूमा एक जोड़ी संवेदी संस्करण होते हैं। जबकि मकड़ी का शरीर दो भागों में बटा हुआ होता है। मकड़ी को चार जोड़ी टांग होती हैं और यह पंख विहिन होती है। मकड़ी की खासियत यह है कि यह अपने शिकार के शरीर में पहले डंक के माध्यम से जहर घोलकर उसे बेहोश करती है और फिर उसके मास को घोलकर पीती है। इसके अलावा माइट अष्टपदि होती है। इसलिए महिलाएं इसे आम बोलचाल में मकडिय़ा जूं भी कहती हैं।
आशीष, विद्यार्थी
डेफोडिल्स पब्लिक स्कूल, निडाना


पाठशाला में बच्चों को कीटों के बारे में जानकारी देती मास्टर ट्रेनर सविता।

कपास के फूल की पत्तियों को खाती ब्रिस्टल बिटल (तेलन)।





मंगलवार, 15 जुलाई 2014

सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए फसल में कूदरती कीटनशानी कीटों ने दी दस्तक

महिला पाठशाला में स्कूली बच्चों ने भी लिया कीट ज्ञान 

बच्चों ने कहा रोचक और ज्ञानवर्धक रही महिला किसान खेत पाठशाला

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटों की मास्टरनी गीता व मनीषा ने बताया कि सफेद मक्खी पौधे के पत्तों का रस चूसकर अपना गुजारा करती है लेकिन यह कपास की फसल में लीपकरल (मरोडिया) को फैलाने में एक माध्यम का भी काम करती है। सफेद मक्खी अपने डंक के माध्यम से लीपकरल के वायरस को एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचाती है और इस तरह धीरे-धीरे कर लीपकरल को पूरे खेत में पहुंचा देती है लेकिन किसानों को इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसे नियंत्रित करने के लिए फसल में कई किस्म के मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं जो सफेद मक्खी को नियंत्रित कर फसल में कूदरती कीटनाशी का काम करते हैं। कीटों की मास्टरनियां शनिवार को निडाना गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला के दूसरे सत्र में मौजूद महिलाओं को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में अवगत करवा रही थी। माह के दूसरे शनिवार की छुट्टी होने के कारण कई छोटे-छोटे स्कूली बच्चों ने भी पाठशाला में पहुंचकर कीटों के क्रियाकलापों के बारे में बारीकी से जानकारी ली। पाठशाला में निडाना, निडानी, ललितखेड़ा तथा रधाना गांव की महिलाओं ने भाग लिया।
महिलाओं को जानकारी देती कीटाचार्या महिलाएं।
कीटों की मास्टरनियों ने बताया कि सफेद मक्खी पौधे के पत्ते की निचली सतह पर अंडे देती है। एक सफेद मक्खी अपने जीवन काल में लगभग 100 से 125 अंडे देती है और अंडों से बच्चे निकलने में एक सप्ताह का समय लगता है। 6 से 7 दिन बाद सफेद मक्खी के बच्चे प्यूपे में बंद हो जाते हैं और इसके बाद सफेद मक्खी का प्रौढ़ बनता है। सफेद मक्खी के प्रौढ़ का जीवन काल 20 से 25 दिन का होता है। सफेद मक्खी के बच्चे पंख विहिन होने के कारण एक जगह से रस चूसते हैं। जबकि इसके प्रौढ़ के पंख होने के कारण वह फसल में घूम कर एक पौधे से पौधे पर जाकर रस चूसता है। इस बार पाठशाला में क्राइसोपा ग्रुप की महिलाओं ने मास्टर ट्रेनर की भूमिका निभाई और महिलाओं को मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी दी। मास्टर ट्रेनर गीता, मनीषा, केला, रामरत तथा सुमित्रा ने बताया कि क्राइसोपा भूरे और हरे दो अलग-अलग रंग का होता है। क्राइसोपो के पंख जालीदार होते हैं और इसके बच्चे मांसाहारी होते हैं लेकिन यह प्रौढ़ अवस्था में पहुंचने के बाद मास खाना छोड़ देता है। अपने जीवनकाल में यह 400 से 500 अंड़े देता है। हरे रंग का क्राइसोपा डंडी के शिखर पर एक-एक करके अपने अंडे देता है जबकि भूरे रंग का क्राइसोपा एक ही जगह पर कई-कई अंडे देता है। अंडे से बच्चे निकलने में 6-7 दिन का समय लगता है और 15 दिन बाद प्यूपे में चला जाता है। हथजोड़े का जीवन चक्र 30 से 35 दिन का होता है।
पौधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं।

छुट्टी के दिन छोटे-छोटे स्कूली बच्चों ने ली कीटों के क्रियाकलापों की जानकारी

माह के दूसरे शनिवार को स्कूली बच्चों की छुट्टी होने के कारण कुछ छोटे-छोटे बच्चे भी कीट ज्ञान लेने के लिए महिला पाठशाला में पहुंचे। तीसरी कक्षा की छात्रा मुस्कान, सातवीं कक्षा की छात्रा ममता, छात्र मोहित, दूसरी कक्षा के छात्र निखिल, छठी कक्षा के छात्र मोहित, प्रथम कक्षा के छात्र सचिन व जतिन ने भी कपास की फसल में मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान की तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी ली। बच्चों ने बताया कि उन्हें कपास की फसल में लाल बानिया, सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा तथा अन्य कई तरह के कीट देखे। महिलाओं की यह पाठशाला उनके लिए काफी रोचक व ज्ञानवर्धक रही। इस पाठशाला में उन्हें कीटों के जीवन चक्र तथा फसलों पर पडऩे वाले उनके प्रभाव के बारे में जानकारी हासिल की।

 मांसाहारी कीट फसल में करते हैं कूदरती कीटनाशी का काम

कीटाचार्या महिला गीता का फोटो।
गांव निडाना निवासी कीटाचार्या गीता ने बताया कि इस समय कपास की फसल में सफेद मक्खी, चूरड़े तथा हरे तेले को नियंत्रित करने के लिए फसल में क्राइसोपा, लेडी बर्ड बिटल, दीदड़ बुगड़ा, कातिल बुगड़ा, डाकू बुगड़ा मौजूद हैं। क्राइसोपा शिकार करने के बाद अपनी पहचान छुपाने के लिए शिकार की लाश को अपनी कमर पर डाल लेता है। दीदड़ बुगड़ा, कातिल बुगड़ा तथा डाकू बुगड़ा शाकाहारी कीटों का खून चूसकर उन्हें नियंत्रित करते हैं और लेडी बर्ड बीटल अपने शिकार को चबाकर खाती है। मांसाहारी कीट फसल में कूदरती कीटनाशी का काम करते हैं।

फसल को इस वक़्त है शाकाहारी कीटों की जरुरत

कीटाचार्या मनीषा का फोटो।
गांव ललितखेड़ा निवासी कीटाचार्या मनीषा ने बताया कि इस समय फसल में पत्ते खाने वाले कीट टिड्डे, तम्बाकू वाली सूंडी, सुरंगी सूंडी आई हुई हैं। क्योंकि पौधों को इनकी जरूरत है। इस समय पौधों के पत्ते बड़े-बड़े हो गए हैं। इससे नीचे के पत्तों को धूप नहीं मिल पाती और नीचे के पत्ते बिना धूप के पौधे के लिए भोजन नहीं बना पाते। पत्ते खाने वाले कीट पत्तों के बीच से छेद कर देते हैं और छेद से नीचे के पत्तों तक धूप पहुंच जाती है, जिससे पत्ते प्रकाश संशलेशन कर पौधे के लिए भोजन बना लेते हैं। साथ की साथ इन कीटों को कंट्रोल करने के लिए मकड़ी, हथजोड़े व ड्रेगन फलाई (हेलीकॉपटर) नामक मांसाहारी कीट भी फसल में मौजूद हैं। ड्रेगन फलाई तो उड़ते हुए इन कीटों का शिकार करती है।

लेडी बर्ड बीटल भी मिलीबग को खाकर नियंत्रित कर लेते हैं।

कीटाचार्या केला देवी का फोटो।
गांव निडाना निवासी कीटाचार्या केला देवी ने बताया कि इस समय कपास की फसल में मिलीबग नामक कीट भी आया हुआ है। यह कीट पौधों का रस चूसकर अपना गुजारा करता है लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए फसल में अंगीरा, जंगीरा तथा फंगीरा नामक परपेटिये कीट भी फसल में मौजूद हैं। यह कीट मिलीबग के पेट में अपने बच्चे पलवाते हैं। वैसे तो मिलीबग का रंग सफेद होता है लेकिन जब इसके पेट में अंगीरा, जंगीरा या फंगीरा कीट के बच्चे पल रहे होते हैं तो इसके शरीर से सफेद रंग का पाऊडर उतरने लगता है और इसका रंग चॉकलेटी तरह का हो जाता है। क्राइसोपा का बच्चा तथा लेडी बर्ड बीटल भी मिलीबग को खाकर नियंत्रित कर लेते हैं।

फसल को नुकसान पहुंचाने से काफी दूर हैं शाकाहारी कीट। 
कीटाचार्या रामरती का फोटो।

गांव रधाना निवासी कीटाचार्या रामरती ने बताया कि इस बार कपास की फसल में सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 1.2, हरे तेले की 1.5 तथा चूरड़े की प्रति पत्ता औसत 1.2 मिली। जबकि कृषि वैज्ञानिको द्वारा तैयार किये गए ईटीएल लेवल के अनुसार सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 6, हरे तेले की 2 तथा चूरेड़े की प्रति पत्ता 10 होनी चाहिये लेकिन अभी तक यह इस ईटीएल लेवल से काफी दूर हैं। इसलिए यह कीट फसल को नुकसान पहुंचाने से काफी दूर हैं।  




महिला पाठशाला में पौधों पर कीटों के क्रियाकलापों की जानकारी लेते बच्चे।


 फसल में मौजूद मांसाहारी कीट हथजोड़ा।

मिलीबग का शिकार करता क्राइसोपा का बच्चा।








शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

मांसाहारी कीट हथजोड़ा और लेडी बर्ड बीटल

 मांसाहारी कीट हथजोड़ा


 हथजोड़े का फोटो।

हथजोड़ा (प्रेइंगमेंटिस) नामक इस कीट की अंडेदानी को आम बोलचाल की भाषा में गादड़ की सुंडी कहा जाता है। इसकी एक अंडेदानी में 500 से 600 अंडे होते हैं। 20 से 25 दिन में अंडे से बच्चे बनते हैं और बच्चों से यह प्रौढ़ अवस्था में आता है। तीन से छह माह का इसका जीवन काल होता है। इसके बच्चे व प्रौढ़ दोनों ही मांसाहारी होते हैं। यह अपने से छोटे व बराबर के कीटों का शिकार करता है। हथजोड़े की कई किस्में होती हैं लेकिन अभी तक 8 तरह की किस्में देखी जा चुकी हैं।  यह मांसाहारी कीट है और शाकहारी कीटों को खाकर अपना गुजारा करता है। यह फसल में शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में कुदरती कीटनाशाी का काम करता है। यह किसान के फायदे का कीट है।  
शारीरिक बनावट :- हथजोड़ा नामक इस कीट के अगले पैरों पर कांटे होते हैं और इन कांटों की मदद से यह अपना शिकार करता है। इन कांटों को बचाने के लिए यह कीट अपने अगले दोनों पैरों को मोड़कर रखता है। देखने वाले को ऐसा लगता है जैसे इसने हाथ जोड़ रखे हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह अपनी गर्दन को चारों तरफ घूमा सकता है।
हथजोड़े का भोजन : हथजोड़ा अकसर बड़े किस्म के शाकाहारी कीटों को अपना शिकार बनाता है। क्योंकि छोटे कीटों से इसका पेट नहीं भरता। ब्रिस्टल बिटल, लाल बानिया, सुंडी तथा सुंडी पैदा करने वाले हर किस्म के पतंगे को यह अपना शिकार बनाता है। हथजोड़े की एक अंडेदानी में 500 से 600 अंडे होते हैं। एक हथजोड़ा एक दिन में लगभग 10 शाकाहारी कीटों का खत्मा करता है। यदि एक एकड़ में हथजोड़े की 20 अंडेदानी भी हैं तो किसान को शाकाहारी कीटों से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि प्रत्येक अंडे दानी से यदि 500 हथजोड़े भी निकलते हैं तो एक दिन में यह एक लाख शाकाहारी कीटों का काम तमाम कर देंगे।


लेडी बर्ड बीटल

लेडी बर्ड बीटल का फोटो।
लेडी बर्ड बीटल के बच्चे भी मांसाहारी हैं और यह खुद भी मांसाहारी है। इसकी पहली अवस्था अंडे की होती है। अंडे से बच्चे बनते हैं और इसके बाद यह बच्चे प्यूपे में बंद हो जाते हैं और उसके बाद यह अपनी प्रौड अवस्था में आता है। अभी तक इसकी 20 किस्में देखी जा चुकी हैं।यह मांसाहारी कीट है और शाकहारी कीटों को खाकर अपना गुजारा करती है। यह फसल में शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में कुदरती कीटनाशाी का काम करती है। यह किसान के फायदे का कीट है।  
पहचान : इसके पंख शरीर से चिपके हुए होते हैं। पंखों पर बड़े-बड़े निशान होते हैं। इसकी कुछ किस्मों के पीठ पर डब्ल्यू का निशान भी होता है। कुछ किस्मों में सफेद व काले रंग की धारियां होती हैं। एक बार में यह 30 से 40 अंड़े देती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह एक जगह पर अंड़े देने की बजाय अलग-अलग स्थान पर अपने अंड़े देती है। सात-आठ दिन में अंडे से बच्चे तैयार हो जाते हैं और 15 से 20 दिन बाद यह प्यूपे में बंद हो जाते हैं। प्यूपे से प्रौढ़ बन जाता है। 
लेडी बर्ड बीटल का भोजन : लेडी बर्ड बीटल अपने से छोटे तथा अपने बराबर के कीट का शिकार करती है। मिलीबग, चेपा इसका प्रमुख भोजन होता है। इसकी सबसे बड़ी खाशियत यह है कि यह भूख से मर सकती है लेकिन मांस के अलावा कुछ ओर खाना पसंद नहीं करती।


गुरुवार, 3 जुलाई 2014

पंजाब के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे जींद के किसान

4 जुलाई को मानसा में आयोजित होने वाले समारोह में भाग लेंगे जींद के किसान

पंजाब कृषि विभाग ने सम्मेलन के लिए जींद के किसानों को भेजा निमंत्रण

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जींद जिले के कीट कमांडो किसान हरियाणा ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेश के किसानों के लिए भी रोल मॉडल बन चुके हैं। कीट ज्ञान हासिल करने के लिए इन किसानों को अब दूसरे प्रदेशों से भी निमंत्रण मिलने लगा है। गत चार जुलाई को पंजाब कृषि विभाग द्वारा मानसा (पंजाब) में आयोजित करवाए जा रहे सम्मेलन में यह कीट कमांडो किसान पंजाब के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे। इसके लिए पंजाब कृषि विभाग ने इन किसानों को सम्मेलन में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा है। चार जुलाई को होने वाले इस सम्मेलन में यह कीट कमांडो किसान अपने लेक्चर के माध्यम से फसल में मौजूद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों के क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
फसलों में कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग के कारण बिना वजह मारे जा रहे कीटों तथा दूषित हो रहे खान-पान को देखते हुए जींद जिले के किसानों ने वर्ष 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान की मुहिम की शुरूआत की थी। इस दौरान यहां के किसानों ने फसलों में मौजूद कीटों पर अनोखे ढंग से अपने शोध किये। कीटों के क्रियाकलापों के कारण फसलों पर पडऩे वाले प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पर गहन मंथन किया। कीट कमांडो किसानों द्वारा पिछले लगभग 6-7 वर्षों से कीटों पर किये जा रहे इस अनोखे शोध का यह परिणाम निकलकर सामने आया कि अब यहां के किसान हरियाणा ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेश के किसानों के लिए भी रोल मॉडल बनकर उभरे हैं। पंजाब कृषि विभाग द्वारा गत 4 जुलाई को मानसा में आयोजित किये जा रहे कृषि सम्मेलन में यहां के किसानों को पंजाब के किसानों के मार्ग दर्शन के लिए बुलाया गया है। ताकि पंजाब के किसान भी कीट ज्ञान की मुहिम को अपनाकर कीटनाशकों के कारण थाली में बढ़ते जहर के स्तर को कम कर सकें। पंजाब के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाने के लिए बुधवार को यहां के किसान मानसा के लिए रवाना 
होंगे।

जींद के किसानों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है

पंजाब के मानसा क्षेत्र में कपास का उत्पादन अधिक होता है। यहां के किसान जानकारी के अभाव में कपास में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। फसलों में कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण यहां अब गंभीर परिणाम सामने आने लगे हैं। फसलों में कीटनाशकों के अधिक प्रयोग को रोकने के लिए पंजाब कृषि विभाग द्वारा यहां पर किसानों को जागरूक करने के लिए एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है। इस सम्मेलन में जींद के किसानों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है ताकि वह पंजाब के किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा कर सकें और पंजाब के किसान कीट कमांडो किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर कीटनाशकों के प्रयोग को बंद कर सकें। 
अशोक कुमार, एसडीओ
पंजाब स्टेट ट्रांसमिशन कार्पोरेशन लिमिटेड, पंजाब

देश-प्रदेश में फैलेगी कीट ज्ञान की क्रांति

अमर उजाला फाउंडेशन ने निडाना में किया पाठशाला का शुभारंभ

नरेंद्र कुंडू
जींद।
अकेले चले थे सफर में मन में एक ख्वाब लेकर लोग जुड़ते गए कारवां जुड़ता गया यह शब्द कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल ने बुधवार को निडाना गांव में अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा आयोजित की गई महिला किसान खेत पाठशाला के उद्घाटन अवसर पर कीटाचार्य महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विभाग के जिला उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग बतौर मुख्यातिथि तथा बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, प्रगतिशील किसान राजबीर कटारिया भी विशेष रूप से मौजूद रहे। डॉ. रामप्रताप सिहाग ने रिबन काटकर पाठशाला का उद्घाटन किया। मैडम कुसुम दलाल ने अमर उजाला फाउंडेशन की तरफ से दी गई पैड, पैन व लैंस महिला किसानों को वितरित किये। महिला किसानों ने बुके भेंटकर पाठशाला में आए सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने बताया के अब यह पाठशाला सप्ताह के हर शनिवार को लगेगी और यह 18 सप्ताह तक चलेगी ।
मैडम कुसुम दलाल ने कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जो पौधा लगाया था आज वह वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। अमर उजाला फाउंडेशन ने इस मुहिम को प्रदेश तथा प्रदेश से बाहर के किसानों तक फैलाने का जो प्रयास किया है वह वास्तव में काबिले तारीफ है। डॉ. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने कीट ज्ञान के माध्यम जहरमुक्त खेती की एक अनोखी पहल शुरू की है। आरंभ में तो कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस मुहिम को तवज्जो नहीं दी थी लेकिन अब कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस मुहिम पर शोध शुरू कर दिया है। जल्द ही इस काम पर कृषि वैज्ञानिकों की स्वीकृति की मोहर भी लग जाएगी। बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि किसानों और कीटों के बीच सदियों से चली आ रही इस लड़ाई को समाप्त करवाने के लिए खाप पंचायतें भी पिछले तीन सालों से इस मुहिम का बारीकी से अध्यनन कर रही हैं। कीटों और किसानों की इस लड़ाई को सुलझाने के लिए इस साल के अंत तक सभी खापों की एक महापंचायत का आयोजन कर इस विवाद को खत्म करने के लिए एक ठोस निर्णय लिया जाएगा। पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर महिला किसानों ने 5-5 के समूह में कपास की फसल में कीटों का अवलोकन किया और बाद में चार्ट पर शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का आंकड़ा तैयार किया। महिलाओं द्वारा तैयार किये गए आंकड़े में शाकाहारी कीटों की तुलना में मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा थी।

मांसाहारी कीट फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।

हथजोड़ा ग्रुप की मास्टर ट्रेनर महिला किसान शीला, राजवंती, सीता, शांति, बीरमति, असीम ने बताया कि कपास की फसल में कीटों के अवलोकन के दौरान उन्होंने कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मेजर कीट सफेद मक्खी, हरे तेले तथा चूरड़े का बारीकी से अवलोकन किया और प्रति पत्ता उनकी संख्या नोट की। उनके द्वारा तैयार किये गए आंकड़े के अनुसार सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 1.2, हरे तेले की 0.3 तथा चूरड़े की 2.2 है जबकि कृषि वैज्ञानिकों के ईटीएल लेवल के अनुसार यह कीट नुकसान पहुंचाने के स्तर तक उस समय पहुंचते हैं जब फसल में प्रति पत्ता सफेद मक्खी की औसत 6, हरे तेले की औसत 2 तथा चूरड़े की औसत 10 हो लेकिन अभी तक फसल को नुकसान पहुंचाने वाले यह मेजर कीट नुकसान पहुंचाने के आॢथक स्तर से कोसों दूर हैं। महिला किसानों ने बताया कि इस दौरान उन्होंने फसल में शाकाहारी कीटों में टिड्डे तथा मांसाहारी कीटों में डाकू बुगड़ा, मकड़ी, दखोड़ी, क्राइसोपा के अंडे भी दिखाई दिये। उन्होंने बताया कि डाकू बुगड़ा तथा मकड़ी शाकाहारी कीटों का खून चूसकर शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करते हैं, वहीं दखोड़ी नामक मांसाहारी कीट का पैशाब शाकाहारी कीटों पर तेजाब की तरह काम करता है और इस तरह से यह मांसाहारी कीट फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।

क्यों पड़ी कीट ज्ञान क्रांति की जरूरत

रिबन काटकर पाठशाला का शुभारंभ करते मुख्यातिथि जिला कृषि उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग।
 फसलों में कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को देखते हुए कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान क्रांति की शुरूआत की। इस दौरान देखने में आया कि अकसर किसान जानकारी के अभाव में फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। जबकि किसानों को तो कीटों की पहचान ही नहीं है। इसलिए किसानों को जागरूक करने के लिए इस मुहिम की जरूरत पड़ी।
पाठशाला में महिला किसानों को सम्बोधित करते मुख्यातिथि जिला कृषि उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग।
 पाठशाला के प्रथम स्तर में फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार करती महिला किसान।
पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर महिला किसानों को लैंस व पैड भेंट करती मैडम कुसुम दलाल।

पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर अतिथिगणों के साथ मौजूद महिला किसान।









रविवार, 29 जून 2014

अब प्रदेश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे म्हारे किसान

हरियाणा किसान आयोग ने कीट कमांडो किसानों से मांगे सुझाव
30 जून को गुडग़ांव में होगी किसानों और किसान आयोग के अधिकारियों की बैठक

नरेंद्र कुुंडू
जींद। जिले के निडाना गांव से शुरू हुई कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम को पूरे प्रदेश में फैलाकर थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जिले के कीट कमांडो किसानों ने एक योजना तैयार की है। उनकी इस योजना को आगे बढ़ाने में हरियाणा किसान आयोग इनका माध्यम बनेगा। कीट ज्ञान की इस मुहिम को पूरे प्रदेश में फैलाने के लिए हरियाणा किसान आयोग ने इन किसानों से इनके सुझाव मांगे हैं। किसान आयोग ने कीट कमांडो किसानों से सुझाव लेने के लिए गत 30 जून को गुडग़ांव बुलाया है। 30 जून को हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन डॉ. आरएस प्रौधा की अध्यक्षता में गुडग़ांव में होने वाली बैठक में कीट कमांडो किसान अधिकारियों को अपने सुझाव देंगे। ताकि इस मुहिम को जींद जिले से बाहर निकालकर पूरे प्रदेश में फैलाकर प्रदेश के सभी किसानों को इस मुहिम के साथ जोड़ा जा सके।

मीटिंग में कीट कमांडो किसानों द्वारा यह रखा जाएगा सुझाव

कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू का कहना है कि सरकार ने जिस तरह से अनपढ़ता को खत्म करने के लिए देश व प्रदेश में साक्षरता मिशन चलाया था उसी मिशन की तर्ज पर कीट साक्षरता मिशन चलाया जाए। कीट साक्षरता मिशन के माध्यम से प्रदेश के सभी किसानों को कीट ज्ञान की मुहिम से बारीकी से अवगत करवाया जाए। किसानों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में बताया जाए। शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का फसल पर क्या प्रभाव पड़ता है और उससे किसान को कितना नुकसान या फायदा होता है उसके बारे में भी विस्तार से जानकारी दी जाए। जब तक किसानों को जागरूक नहीं किया जाएगा और किसानों के पास अपना खुद का ज्ञान नहीं होगा तब तक खान-पान में बढ़ते जहर को रोकना संभव नहीं है। क्योंकि आज किसान जागरूकता के अभाव में ही फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं।

यह-यह महिला किसान लेंगी बैठक में भाग

निडाना से मिनी मलिक, अंग्रेजो, कमलेश, बिमला, राजवंती, गीता। ललितखेड़ा से सविता, सुषमा, जसवंती, शीला तथा रधाना से प्रमीला, अचिम, शकुंतला व मुकेश बैठक में भाग लेने के लिए जाएंगी। इसके अलावा कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, बराह कलां खाप प्रधान कुलदीप ढांडा तथा निडाना के डैफोडिल स्कूल के प्राचार्य विजय भी बैठक में भाग लेने के लिए जाएंगे।

स्कूल स्तर बच्चों को भी किया जा सकता है जागरूक

निडाना डैफोडिल स्कूल के प्राचार्य विजय का कहना है कि महिला किसानों ने 2010 में उनके स्कूल के बच्चों की अलग से पाठशाला शुरू कर बच्चों को फसलों में मौजूद कीटों का ज्ञान दिया था। अगर हम बच्चों को ही शुरू से कीटों का ज्ञान देंगे तो इस मुहिम को काफी बल मिलेगा। इसलिए स्कूल स्तर पर भी बच्चों के लिए एक सलेबस तैयार कर उनको कीट ज्ञान दिया जा सकता है।

फसल में कीटों की पहचान करती महिला किसानों का फोटो।  

शनिवार, 21 जून 2014

कीटनाशक नहीं कीट ज्ञान ही फसलों को कीटों से बचाने का सबसे बड़ा हथियार

मांसाहारी कीट करते हैं फसल में कूदरती कीटनाशी का काम 

नरेंद्र कुंडू
जींद। कपास खरीफ सीजन की एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है जिसका रकबा साल दर साल बढ़ता चला आ रहा है। जिस प्रकार नकदी फसलों में कपास की फसल अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है ठीक उसी प्रकार कीटों के लिहाज से भी कपास की फसल की अपनी एक पहचान रही है, क्योंकि हमारी फसलों में सबसे ज्यादा कीट कपास की फसल पर ही आते हैं। हमारे कीट वैज्ञानिकों के अनुसार कपास की फसल के सीजन में समय-समय पर लगभग 1300 प्रकार के कीट आते हैं। इसलिए फसल को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक नहीं बल्कि कीट की पहचान करना तथा कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करना ही एक कारगर हथियार है। क्योंकि कीट की कीट का दुश्मन होता है। 

बीटी कपास कीट प्रबंधन का विकल्प नहीं

आमतौर पर हम ये मान लें कि बीटी कपास आने से एक तरफ कपास के चार महत्वपूर्ण कीटों जैसे अमेरिकन सुंडी, गुलाबी सुंडी, चितकबरी सुंडी एवं तम्बाकू वाली सुंडी जहां  कम हुई हैं, वहीं दूसरी तरफ कपास की फसल में बहुत सारे माईनर कहे जाने वाले कीट मुख्य श्रेणी में आ खड़े हुए हैं। इसलिए हम कपास की फसल में बीटी तकनीक को पूर्ण रूप से कीट प्रबंधन का विकल्प नहीं मान सकते। 
कपास की फसल में पाया जाने वाला हथजोड़ा (प्रेंगमेंटिस)नामक मांसाहारी कीट।

कपास की फसल में रस चूसक कीटों की भूमिका 

रस चूसक कीटों की बात करें तो कपास की फसल रस चूसक कीटों के लिए स्वर्ग की तरह होती है, जिसमें बिजाई से लेकर कटाई तक रस चूसक कीटो की भरमार रहती है जो समय-समय पर कपास की फसल में आते रहते हैं। रस चूसक कीटों की बात करें तो कपास की फसल में तीन मुख्य श्रेणी जैसे चूरड़ा, सफेद मक्खी और हरा तेला कीट आते हैं तथा पांच द्वितीय श्रेणी जैसे मिलीबग, माईट, लाल बाणिया, काला बाणिया व चेपा नामक कीट आते हैं। इनके साथ-साथ कुछ अन्य श्रेणी के रस चूसक कीट जैसे मिरिड बग, मकसरा बग, स्टिलट बग आदि भी आते हैं। पौधे समय-समय पर अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं।
कपास के पौधे पर मौजूद अल नामक शाकाहारी कीट को खाता सिरफड मक्खी का बच्चा।

कपास में कीटों की रोकथाम कैसे करें

आमतौर पर जब कीटों की रोकथाम की बात आती है तो हमारे दिमाक मेंं केवल एक ही विकल्प सुझता है कि कीटनाशकों का छिड़काव लेकिन हम आमतौर पर देखते हैं कि किसान कीटनाशक का प्रयोग कर लेते हैं जो कि आज कल शायद शुरू भी हो गया होगा क्योंकि नरमा की फसल का सीजन शुरू हो चुका है। फिर भी कीटों की रोकथाम नहीं हो पाती और हमारी जेब पर निरंतर कीटनाशकों का खर्च बढ़ता ही जाता है। दूसरी तरफ यदि हम कीटों के प्रबंधन के लिए दूसरे विकल्पों की तरफ सोचें तो वो बहुत ज्यादा किफायती एवं सस्ते साबित होते हैं जैसे इस समय कपास की फसल में चूरड़ा नामक रस चूसक कीट आ चुका है जो कि अधिक तापमान पर ही आता है, जिस पर कोई भी कीटनाशक सही तरीके से किफायती नहीं लेकिन फिर भी किसान चूरड़े पर कंट्रोल करने के लिए अंधाधुंध कीटनाशक का प्रयोग कर रहे हैं। यदि इस समय किसान कपास की फसल में कसोले (फावड़े) से गुडाई करके तथा 250 ग्राम जिंक, एक किलो यूरिया तथा एक किलो डीएपी का १०० लीटर पानी में घोल तैयार कर फसल में छिड़काव करें तो कपास के पौधों को चूरड़े नामक रस चूसक कीटों से बचा सकते हैं। इसके साथ-साथ सफेद मक्खी एवं हरे तेला नामक कीट के लिए भी हम समय-समय पर जिंक, यूरिया तथा डीएपी के घोल का छिड़काव कर सकते हैं। 
बरिस्टल बिटल का शिकार करती मकड़ी।

कपास की फसल में सफेद मक्खी एवं मिलीबग की रोकथाम

कपास की फसल में यदि सफेद मक्खी एवं मिलीबग नामक कीटों की बात करें तो ये दो कीट ऐसे हैं जिन्होंने कीटनाशकों के ग्राफ को दोबारा से ऊंचा उठा दिया है। सफेद मक्खी और मिलीबग ने कई बार तो किसानों के सामने ऐसे हालात खड़े कर दिये हैं कि किसानों को खड़ी बीटी कपास जोतनी पड़ी है। यह दोनों कीट हैं जिनकी रोकथाम के लिए दर्जनों कीटनाशकों की लिस्ट समय-समय पर आती रहती है लेकिन कीट कमांडो किसानों की मानें तो हम उपरोक्त दोनों ही कीटों पर जितने ज्यादा कीटनाशकों के विकल्प प्रयोग करते हैं, इनकी संख्या उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाती है। इसलिए मिलीबग एवं सफेद मक्खी नामक कीटों के लिए यदि हम बाजारी विकल्पों को छोड़कर प्राकृतिक विकल्पों को अपनाएं तो ज्यादा किफायती एवं फायदेमंद साबित होते हैं। प्राकृतिक विकल्पों से हमारा मतलब है कपास में आने वाले मांसाहारी कीट जैसे लेडी बर्ड बीटल, मांसाहारी बुगड़े (बग) क्राइसोपा, दिखोड़ी, परपेटिये एवं मकडिय़ां जो कि सभी के सभी मिलीबग एवं सफेद मक्खी के लिए कपास के पौधों पर आते हैं और इनके लिए हमें कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता यह हमारी फसल में काफी संख्या में मिल जाते हैं, बशर्त यह है कि फसल में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग नहीं किया गया हो। दूसरी तरफ स्प्रे के तौर पर हम जिंक, यूरिया, डीएपी के घोल का छिड़काव करे सकते हैं, जिससे पौधों को पर्याप्त उर्वरा शक्ति मिलती है। कीटनाशकों के खर्च को यदि कम करना है तो किसानों को कपास में आने वाले शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की पहचान करनी होगी। कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों को जानकर ही हम कीटों की रोकथाम कर सकते हैं क्योंकि जिस संख्या में हमारी फसल पर शाकाहारी कीट आते हैं, उससे कहीं ज्यादा संख्या में मांसाहारी कीट आते हैं। कपास की फसल में निरंतर १०-१५ दिन के अंतराल में जिंक, यूरिया, डीएपी के घोल का छिड़काव करें। फसल की बढ़वार के साथ ही जिंक, यूरिया तथा डीएपी की मात्रा में बढ़ौतरी कर आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो यूरिया तथा अढ़ाई किलो डीएपी का १०० लीटर पानी में घोल तैयार कर छिड़काव करें। 
कपास की फसल में मौजूद बिटल नामक मांसाहारी कीट।





कपास की फसल में मौजूद सुंदरो नामक मांसाहारी कीट। 

मक्खी का शिकार करती मांसाहारी डायन मक्खी। 

कपास की फसल में शाकाहारी कीट का खून चूसता बिंदुआ बुगड़ा।


कपास की फसल में पाए जाने वाली रस चूसक कीट सफेद मक्खी का फोटो।