गुरुवार, 18 जुलाई 2013

मानसून के इंतजार में मुरझाए किसानों के चेहरे

मानसून की दगाबाजी से फसलों पर छाए संकट के बादल

नरेंद्र कुंडू
जींद। धान की रोपाई का सीजन अंतिम चरण में है लेकिन अभी तक मानसून नहीं आने के कारण किसानों की फसलों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। बढ़ते तापमान के कारण सूख रही धान की फसलों को देखकर धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरें खींचने लगी हैं। ऐन वक्त पर मानसून के धोखा दे जाने के कारण किसानों के चेहरों पर मायूसी छा गई है। समय पर बारिश नहीं होने के कारण जिले में धान की रोपाई का कार्य भी प्रभावित हो रहा है। धीमी गति से चल रहे धान की रोपाई के कार्य के कारण कृषि विभाग को भी अपने टारगेट तक पहुंचने में पसीना आ रहा है। इस बार धान की रोपाई के लिए कृषि विभाग के पास 99 हजार हैक्टेयर का टारगेट है लेकिन समय पर बारिश नहीं होने के कारण अभी तक जिले में सिर्फ 75 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा धान की रोपाई के लिए उपयुक्त समय 15 जुलाई तक माना जाता है। 
जिले में 15 जून से धान की रोपाई का कार्य शुरू हो जाता है और 15 जुलाई तक रोपाई का कार्य जोरों पर चलता है। कृषि विभाग के अधिकारी भी धान की रोपाई के लिए इस समय को सबसे उपयुक्त मानते हैं। 15 जून के बाद से ही जिले के किसान धान की रोपाई के कार्य में लगे हुए हैं लेकिन धान की रोपाई के दौरान बारिश नहीं होने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें पडऩे लगी हैं। बिना बारिश के मुरझा रही फसलों के  साथ-साथ किसानों के चेहरे भी मुरझाने लगे हैं। किसान धान की फसल को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। मानसून की दगाबाजी व बिजली के लंबे कटों के कारण किसानों को धान की फसल को बचाने के लिए महंगे भाव का डीजल फूंकना पड़ रहा है। इससे किसानों की जेबें ढीली हो रही हैं। समय पर बारिश नहीं होने के कारण किसान धान की रोपाई को लेकर कसमकस की स्थिति में हैं। किसान रोपाई करने से पहले बारिश का इंतजार कर रहे हैं लेकिन मानसून किसानों के साथ आंख-मिचौली खेल रहा है। बीच-बीच में एकाध बार हल्की बूंदाबांदी होने से मौसम में ठंड आ जाती है तो उसके अगले ही दिन किसानों को फिर से सूर्य देवता के कड़े तेवरों का सामना करना पड़ता है। मौसम की इस आंख-मिचौली ने किसानों को असमंजस की स्थिति में डाल रखा है। इसके चलते किसान धान की रोपाई की बजाए बाजरे की बिजाई का मन बना रहे हैं। 

 बारिश नहीं होने के कारण बिना रोपाई के खाली पड़े खेत।

टारगेट तक पहुंचने में कृषि विभाग को छूट रहे पसीने

समय पर बारिश नहीं होने के कारण कृषि विभाग को भी टारगेट तक पहुंचने में पसीने छूट रहे हैं। इसलिए कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को धान की रोपाई के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ फसल को बचाने के लिए भी गाइड लाइन जारी कर रहे हैं। इस बार विभाग के पास धान की रोपाई के लिए 99 हजार हैक्टेयर का टारगेट है लेकिन बरसात के अभाव में अभी तक सिर्फ 75 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। विभाग के अधिकारी टारगेट तक पहुंचाने के लिए किसानों को कम पानी में भी धान की रोपाई करने के लिए लगातार गाइड लाइन जारी कर रहे हैं।

15 जून से 15 जुलाई तक धान की रोपाई का उपयुक्त समय

कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो धान की रोपाई के लिए 15 जून से 15 जुलाई तक का समय सबसे सही है। हालांकि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 25 जुलाई तक भी धान की रोपाई की जा सकती है लेकिन इस दौरान रोपाई करते समय पौधों की संख्या में बढ़ौतरी करनी होगी। धान की नर्सरी की अवधि ज्यादा होने के कारण लेट रोपाई से पौधों का फुटाव पूरा नहीं हो सकेगा। इससे उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए लेट रोपाई करते समय पौधों की संख्या में वृद्धि करें, ताकि एक साथ कई पौधे लगे होने के कारण फुटाव पूरा हो सके और किसान को पूरा उत्पादन मिल सके। 

मौसम किसानों के साथ खेल रहा आंख-मिचौली

 धान की रोपाई करते मजदूर।
धान की रोपाई का सीजन शुरू होते ही मौसम ने भी किसानों के साथ आंख-मिचौली का खेल शुरू कर दिया। रोपाई के सीजन के दौरान बीच-बीच में एकाध दिन हुई हल्की बूंदाबांदी से जहां एक बार तापमान में गिरावट हुई तो अगले ही दिन फिर से सूर्य देवता के कड़े तेवरों के चलते बढ़े पारे ने किसानों को दुविधा में डाल दिया। हालांकि बुधवार को भी जिले में हल्की बूंदाबांदी हुई लेकिन कुछ ही देरे के लिए हुई यह बूंदाबांदी किसानों की फसलों को बचाने के लिए नाकाफी है। मौसम की इस आंख-मिचौली से परेशान किसान धान की रोपाई को लेकर दुविधा में फंसे हुए हैं। कुछेक किसान धान की रोपाई का मन बना रहे हैं तो कुछ धान की बजाए बाजरे की बिजाई की तरफ रुझान कर रहे हैं। 

अभी तक हो चुकी है 243 एम.एम. बारिश

कृषि विभाग के बारिश के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो वर्ष 2012 की बजाए 2013 में बारिश अधिक हुई है। जनवरी 2012 से जुलाई 2012 तक सिर्फ 30 एम.एम. बारिश ही हुई थी लेकिन जनवरी 2013 से जुलाई 2013 तक जिले में 243 एम.एम. बारिश हो चुकी है। वर्ष 2012 में केवल जुलाई माह में 15 एम.एम. बारिश हुई थी और वर्ष 2013 में जुलाई माह में 40 एम.एम. बारिश हो चुकी है लेकिन यह बारिश धान की फसलों की रोपाई के लिए नाकाफी है। पिछले वर्ष की बजाए इस वर्ष मौसम में उमस काफी ज्यादा है। 

किसान क्या-क्या रखें सावधानियां

कृषि विभाग के पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल का कहना है कि मौसम में उमस को देखते हुए किसानों को धान की रोपाई के दौरान तथा रोपाई के बाद फसल को गर्मी से बचाने के लिए विशेष सावधानियां रखनी चाहिएं। 
1. धान की नर्सरी उखाडऩे से पहले नर्सरी में हल्के पानी की सिंचाई जरुर करें। 
2. रोपाई के दौरान पौधों की संख्या पर विशेष ध्यान रखें। 1 एस.क्यू. मीटर में 35 से 36 पौधे लगाएं। 
3. रोपाई से पहले खेत तैयार करते समय ही डी.ए.पी. खाद खेत में डालें। 
4. रोपाई लेट होने पर कम अवधि वाली किस्म की रोपाई करें और रोपाई के दौरान पौधों की संख्या बढ़ाकर 1 एस.क्यू. मीटर में 40 से 42 पौधे लगाएं। 
5. रोपाई के दौरान 20 से 25 दिन की नर्सरी का ही प्रयोग करें। इससे पौधों का फुटाव अच्छा हो सकता है।
6. रोपाई के बाद धान में ज्यादा पानी खड़ा करने की बजाए हल्की सिंचाई करें, ताकि कम पानी से अधिक एरिया कवर किया जा सके। 
7. धान की फसल पानी की फसल है। इसलिए इसमें बीमारी आने की संभावना कम है। इसलिए किसानों को चाहिए कि धान की फसल में अधिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करें और सीमित मात्रा में ही उर्वरक डालें। उर्वरक जमीन में डालने की बजाए उनका घोल तैयार कर फसल पर घोल का छिड़काव करें। 

ज्यादा पानी देने की बजाए फसल में कम पानी रखें किसान 

कृषि विभाग के पास इस बार धान की रोपाई के लिए 99 हजार हैक्टेयर का टारगेट है। इसमें से 75 हजार हैक्टेयर में रोपाई हो चुकी है। जल्द ही टारगेट को कवर कर लिया जाएगा। किसान अभी बारिश का इंतजार कर रहे हैं। बारिश आते ही धान की रोपाई के कार्य में तेजी आएगी। 25 जुलाई तक किसान धान की रोपाई कर सकते हैं। किसानों को चाहिए कि फसल में ज्यादा पानी देने की बजाए कम पानी रखें। इससे कम पानी में अधिक क्षेत्र को कवर किया जा सकेगा। 
रामप्रताप सिहाग, उप-निदेशक 
कृषि विभाग, जींद



शनिवार, 13 जुलाई 2013

सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े से भयभीत ना हों किसान

कीटाचार्य किसानों ने कीट ज्ञान से निकाला शाकाहारी कीटों का तोड़

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कपास की फसल में मौजूद शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े से किसानों को भयभीत होने की जरुरत नहीं है। कीट साक्षरता की मुहिम में जुड़े कीटाचार्य किसानों ने इन शाकाहारी कीटों का तोड़ ढूंढ़ निकाला है। जींद जिले के लगभग आधा दर्जन गांवों में चल रही किसान खेत पाठशालाओं में कपास की फसल की साप्ताहिक कीट तंत्र समीक्षा से प्राप्त हुए आंकड़ों के अनुसार अभी तक उक्त शाकाहारी कीट कहीं भी नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक सत्र तक नहीं पहुंच पाए हैं। यह बात कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला में मौजूद दर्जनभर गांवों के किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। 
डा. कमल सैनी ने कहा कि कपास की फसल में पाई जाने वाली सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नामक कीट की गिनती किसान मेजर कीटों में करते हैं और कपास की फसल में इन कीटों की उपस्थिति को देखकर किसान भयभीत होकर इन्हें नियंत्रित करने के लिए अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। किसानों का मानना है कि उक्त कीट कपास की फसल के लिए बेहद हानिकारक हैं लेकिन वास्तविकता इसके विपरित है। किसानों को कीटों और बीमारी के बीच का अंतर पता नहीं है। जानकारी के अभाव में किसान भ्रम के जाल में फंसे हुए हैं। ज्यादातर किसान तो कपास की फसल में मौजूद सलेटी भूंड को ही सफेद मक्खी समझ लेते हैं। जबकि सफेद मक्खी बिल्कुल सुक्ष्म कीट है, जिसे सुक्ष्मदर्शी लैंस के माध्यम से ही स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। इसी तरह चूरड़े और हरेतेले को भी सुक्ष्मदर्शी लैंस की सहायता से देखा जा सकता है। सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़ा तीनों ही कीट शाकाहारी हैं और कपास के पत्तों से रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। डा. सैनी ने कहा कि कपास की खेती करने वाले किसानों को अब उक्त कीटों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि जिले के कीटाचार्य किसानों ने कीट ज्ञान के माध्यम से इन कीटों का तोड़ ढूंढ़ लिया है। यहां के किसानों ने शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़ेका खातमा करने वाले मांसाहारी कीटों की खोज की है, जो प्राकृतिक तौर पर ही कपास की फसल में काफी तादात में पाए जाते हैं। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, सुरेश, महाबीर पूनिया, रामदेवा, मनबीर रेढ़ू, बलवान लौहान ने किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नामक शाकाहारी कीट को कीटनाशकों के माध्यम से नियंत्रित करने की जरुरत नहीं है। उक्त कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में क्राइसोपा नामक मांसाहारी कीट
किसानों द्वारा ढूंढ़े गए कुदरती कीटनाशी क्राइसोपे का अंडा, क्राइसोपे का बच्चा तथा प्रौढ़।

पाठशाला के दौरान कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
अकेला ही काफी है, जो सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को खत्म करने में कुदरती कीटनाशी का काम करता है। उन्होंने बताया कि क्राइसोपे का पूरा जीवनचक्र 35 से 40 दिन का होता है और यह फसल में एक स्थान पर अंडे देने की बजाए अलग-अलग स्थानों पर ऊंचाई पर अपने अंडे देता है। 5 से 7 दिन में इसके अंडों से बच्चे निकलने शुरू हो जाते हैं। क्राइसोपा का एक बच्चा 8 घंटे में 10 से 15 हरे तेले, चूरड़े और सफेद मक्खी के बच्चों को चट कर जाता है। उन्होंने बताया कि अगर कपास की फसल में प्रति पौधा एक क्राइसोपा मौजूद है तो किसानों को सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को काबू करने की कोई जरुरत नहीं है। 

फसल को नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर हैं शाकाहारी कीट 

डा. कमल सैनी ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े द्वारा कपास की फसल में नुक्सान पहुंचाने के लिए एक स्तर निर्धारित किया गया है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो अगर सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 6, चूरड़े की औसत 10 और हरे तेले की औसत 2 है तो इसके बाद भी किसानों को फसल में कीटनाशक के स्प्रे के बारे में सोचना चाहिए लेकिन जींद जिले के आधा दर्जन गांवों में चल रही किसान खेत पाठशालाओं से जुड़े लगभग 2 दर्जन गांवों के किसानों द्वारा पूरे सप्ताह की जो समीक्षा पेश की गई है, वह अभी किसानों के पक्ष में है। किसानों द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 2.3, हरेतेले की 1.8 और चूरड़े की 5.6 औसत आई है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उक्त कीटों की नुक्सान पहुंचाने की दर के साथ अगर किसानों की रिपोर्ट की समीक्षा की जाए तो अभी तक कहीं पर भी सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़ा नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक स्तर को छू भी नहीं पाए हैं। इसलिए किसानों को अभी इन कीटों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है।




शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

किसानों को नई राह दिखा गया किसानों का मसीहा

बेजुबानों को बचाने और थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए डा. दलाल ने जलाई थी कीट ज्ञान क्रांति की मशाल

नरेंद्र कुंडू
डॉ सुरेन्द्र दलाल 
जींद। हरियाणा प्रदेश के जींद जिले के जुलाना हलके के गांव नंदगढ़ में श्री गणेशीराम तथा श्रीमति धनपति देवी के घर अप्रैल 1962 में एक महान विभूति ने जन्म लिया। यह महान विभूति थे कीट साक्षरता के अग्रदूतडा. सुरेंद्र दलाल। डा. सुरेंद्र दलाल के पिता श्री गणेशीराम फौज में सैनिक थे और माता धनपति देवी एक सुशील गृहिणी थी। डा. सुरेंद्र दलाल एक किसान परिवार से सम्बंध रखते थे। डा. सुरेंद्र दलाल की प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही हुई और नौवीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से पूरी करने के बाद डा. सुरेंद्र दलाल ने सोनीपत के हिंदू हाई स्कूल से दसवीं की परीक्षा पास की। 3 भाइयों और 2 बहनों में सबसे बड़े होने के कारण छोटे भाइयों और बहनों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी इन्ही के कंधों पर थी। छोटे भाई विजय दलाल, जगत सिंह तथा राजसिंह को पढ़ाने की जिम्मेदारी इन्होंने बखूबी निभाई। घर की अर्थिक स्थित कमजोर होने के कारण छोटे भाइयों को पढ़ाने तथा घर की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डा. सुरेंद्र दलाल ने पढ़ाई बीच में ही छोड़कर हिसार में नौकरी शुरू कर दी। इस दौरान 1979 में डा. सुरेंद्र दलाल की शादी हो गई और श्रीमति कुसुम जैसी सुशील और सर्वगुण संपन्न जीवन संगिनी के साथ उन्होंने अपने जीवन का आगे का सफर शुरू किया। श्रीमति कुसुम ने भी हर तरह की परिस्थितियों में डा. सुरेंद्र दलाल का तहदिल से साथ दिया। श्रीमति कुसुम से इन्हें 2 पुत्रियां प्रीतिका, रीतिका तथा एक पुत्ररत्न अक्षत की प्राप्ति हुई। श्रीमति कुसुम की शिक्षा विभाग में नौकरी लग जाने के बाद डा. सुरेंद्र दलाल ने दोबारा से अपना पढ़ाई का सफर शुरू करते हुए अगस्त 1979 में हिसार के कृषि विश्वविद्यालय में बी.एस.सी. (आनर्स) कृषि में दाखिला लिया। 1983 में बी.एस.सी. की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1986 में एम.एस.सी. तथा 1991 में इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने 
पाठशाला में किसानो को कीटों की जानकारी देते डॉ दलाल 
दूरदर्शन की टीम के साथ बातचीत करते डॉ दलाल 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिलाएं 
पाठशाला में किसानो को कीटों की जानकारी देते डॉ दलाल 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान 
महिला पाठशाला में महिलाओं को कीटों के बारे जानकारी देते डॉ दलाल 
किसान पाठशाला में खाप पर्तिनिधियों को स्मृति चिहन देते किसान 

पौध प्रजनन (Plant Breeding) में पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की। इन दोनों ही डिग्रियों के दौरान उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से फैलोशिप भी मिला। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में बी.एस.सी. की पढ़ाई के दौरान ही वे प्रगतिशील छात्र संगठन एस.एफ.आई. के सम्पर्क में आए और वामपंथी विचारधारा से जुड़े। डा. सुरेंद्र दलाल ने एस.एफ.आई. के साधारण सदस्य से सफर शुरू करते हुए आगे बढ़कर राज्य अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी भी निभाई। डा. सुरेंद्र दलाल का सम्पूर्ण जीवन बड़ा ही संघर्ष भरा रहा और इन्होंने बड़ी से बड़ी कठिनाई का भी डटकर मुकाबला किया। डा. सुरेंद्र दलाल ईमानदार, कठोर परिश्रमी, दृढ़ संकल्प और दूरदर्शी तथा एक अच्छे वक्ता भी थे। वक्तव्य में उनका कोई शानी नहीं था। डा. दलाल प्रत्येक विषय पर गंभीरता से विचार करते हुए उसकी गहराई तक जाते थे। किसानों तथा गरीब वर्ग के प्रति डा. दलाल का विशेष लगाव रहा। इसलिए पढ़ाई के दौरान छात्र आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ-साथ मजदूरों, किसानों और कर्मचारियों के संघर्षों में भी उनका अहम योगदान रहा। पी.एच.डी. की डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1992 में हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवॢसटी की ब्रांच कोल (कुरुक्षेत्र) में साइंटिस्ट के तौर पर नौकरी की शुरूआत की। लगभग एक वर्ष तक यहां पौध प्रजनन पर कार्य करने के बाद डा. सुरेंद्र दलाल ने इस नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। इसके बाद डा. दलाल ने 1994 में कृषि विभाग में ए.डी.ओ. के पद पर ज्वाइन किया और यहां से ऑन डेपुटेशन साक्षरता अभियान में जुड़कर उन्होंने अनपढ़ महिला और पुरुषों को अक्षर ज्ञान का रसपान करवाकर साक्षर करने का काम किया। डा. सुरेंद्र दलाल के पास सामाजिक सांस्कृतिक और परम्परा को लोगों की चेतना में विकसित करने तथा उन्हें संगठित करने की बेजोड़ कला थी। जींद में अन्य साथियों के साथ मिलकर साक्षरता सत्संग और सांग की रचना करना तथा उनका मंचन करना इसका जीता जागता एक उदाहरण है। वे मुश्किल से मुश्किल विषय को बहुत जल्द लोकभाषा में परिवॢतत कर उसे लोगों के बीच प्रस्तुत करने में भी माहिर थे। वे बड़े ही स्पष्टवादी और हाजिर जवाबी भी थे। लोक इतिहास में उनकी गहरी रुचि थी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिजवाना और आसपास के गांवों के लोगों की भूमिका पर भी उन्होंने शोधपूर्ण कार्य किया। भूरा और निघाइया नम्बरदारों के नेतृत्व में इलाके की जनता द्वारा अंग्रेजों, जींद, पटियाला और नाभा के राजाओं के विरुद्ध किए गए शानदार संघर्ष को उन्होंने नाटक, रागिनी और किस्सों के रूप में जनता के सामने प्रस्तुत किया। उनकी रचनाओं से यह स्पष्ट होता है कि वे एक महान इतिहासकार भी थे। साक्षरता अभियान के माध्यम से लोगों को अक्षर ज्ञान का रसपान करवाने के बाद भी समाजसेवा के प्रति उनकी जिज्ञासा कम होने की बजाए बढ़ती ही चली गई। साक्षरता अभियान के बाद वापिस कृषि क्षेत्र की जिम्मेदारी मिलने पर समाज के प्रति उनका लगाव ओर भी ज्यादा बढ़ता चला गया और उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित कर दिया। फसलों में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से थाली में बढ़ते जहर तथा वर्ष 2002 में बी.टी. कपास में फैले अमेरीकन सूंडी के प्रकोप ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी। इसके बाद उन्होंने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कीटों पर अपना शोध शुरू कर दिया। कीटों पर किए गए शोध से वर्ष 2007 में उन्होंने कपास की फसल के भस्मासुर मिलीबग का तोड़ ढूंढ़कर पहली सफलता हासिल की और इस कामयाबी में उनके मार्गदर्शक बने रुपगढ़ गांव के किसान। एक तरह से यह उनका बडप्पन ही था कि उन्होंने इसी गांव के कीटाचार्य राजेश नामक किसान को अपना कीट ज्ञान का गुरु मानकर अपने शोधों को गति दी। इसके बाद वर्ष 2008 में जींद जिले के निडाना गांव के खेतों से उन्होंने कीट ज्ञान क्रांति की मशाल जलाकर हरियाणा प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के मानचित्र पर निडाना गांव तथा जींद जिले को एक नई पहचान दिलाई। अपने आप में यह भी एक अनोखी बात है कि पौध प्रजनन पर पी.एच.डी. करने के बावजूद भी उन्होंने कीटों पर शोध कर एक नया अध्याय लिखा। अपनी 6-7 वर्षों की अथक मेहनत के बूते ही उन्होंने देश के किसानों को एक नई दिशा देने का काम किया। कीटों पर शोध करते हुए उन्होंने कपास की फसल में पाए जाने वाले 206 कीटों की पहचान की। इनमें 43 किस्म के शाकाहारी कीट तथा 163 किस्म के मांसाहारी कीट हैं। इन कीटों में से भी चबाकर खाने वाले, रस चूसने वाले, फूल-फल, पत्तियां खाने वाले कीटों की अलग-अलग श्रेणियां बांट दी। यह उनके शोधों का ही परिणाम है कि उन्होंने पिछले 40 वर्षों से किसानों और कीटों के बीच चली आ रही इस लड़ाई को समाप्त करने तथा किसानों को लड़ाई के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए कीट ज्ञान रूपी एक अचूक हथियार दिया। इतना ही नहीं कीट ज्ञान की क्रांति को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने पुरुष किसानों के साथ-साथ महिला किसानों को भी अपनी इस मुहिम में शामिल कर एक अनूठी मिशाल पेश की। डा. दलाल ने जिलेभर के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के किसानों को जय कीट ज्ञान के एक सूत्र में पिरो दिया। डा. दलाल के कुशल मार्गदर्शन की बदौलत ही आज जींद जिले के लगभग दर्जनभर से भी ज्यादा गांवों के पुरुष तथा महिला किसान कीट ज्ञान की डिग्री हासिल कर पाए। अपने प्रयोगों की बदोलत ही डा. दलाल तथा यहां के किसानों ने कपास जैसी कमजोर फसल में भी बिना पेस्टीसाइटों का इस्तेमाल किए अच्छा उत्पादन लेकर दुनिया को यह दिखा दिया कि जब कपास जैसी कमजोर फसल बिना पेस्टीसाइड पैदा 
रेडियो पत्रकार सम्पूर्ण सिंह डॉ सुरेन्द्र दलाल से बातचीत करते हुए 
की जा सकती है तो अन्य फसलों में भी बिना पेस्टीसाइड का इस्तेमाल किए अच्छा उत्पादन लिया जा सकता। इसके बाद डा. सुरेंद्र दलाल ने इस मुहिम को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए खाप पंचायतों को इस मुहिम से जोडऩे का काम किया। डा. दलाल से मार्गदर्शन लेकर यहां के कीट मित्र किसानों ने वर्ष 2012 में खाप पंचायतों की अदालत में एक अर्जी भेजकर पिछले 40 वर्षों से किसानों और कीटों के बीच चली आ रही इस अंतहीन लड़ाई को समाप्त करवा बेवजह मारे जा रहे बेजुबानों को बचाने की गुहार लगाई। बड़े-बड़े विवाद सुलझाने के लिए मशहूर रही खाप पंचायतों ने किसानों की इस अर्जी को स्वीकार करते हुए उन्हें सही न्याय करने के लिए आश्वस्त किया। इस विवाद में खाप पंचायतों द्वारा हस्तक्षेप किए जाने के बाद आधुनिकता के इस दौर में फतवे जारी करने तथा तालिबानी फरमान सुनाने के नाम से बदनाम हो चुकी खाप पंचायतों का एक सामाजिक चेहरा फिर से लोगों के सामने आया। खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों ने कीटाचार्य किसानों के निमंत्रण को स्वीकार कर इस अंतहीन लड़ाई को खत्म करने के लिए लगातार 18 सप्ताह तक किसान खेत पाठशालाओं में पहुंचकर कीट ज्ञान अर्जित किया। इन 18 सप्ताह के दौरान प्रदेशभर की लगभग 90 खापों के प्रतिनिधि कीट अवलोकन के लिए इन पाठशालाओं में पहुंचे। डा. सुरेंद्र दलाल ने अपनी समग्र दृष्टि का प्रयोग करते हुए खाप पंचायतों के माध्यम से किसानों में कीट ज्ञान का खूब प्रचार किया। इसी का परिणाम था कि खेती के क्षेत्र में समृद्ध हो चुके पंजाब जैसे प्रदेश के किसान भी यहां के किसानों से कीट ज्ञान के गुर सीखने के लिए समय-समय पर यहां पहुंचने लगे। इतना ही नहीं डा. दलाल ने टैक्रालाजी के इस युग को देखते हुए ब्लाग तथा इंटरनेट के माध्यम से विदेशों में भी कीटनाशक रहित खेती की अलख जगाई। डा. दलाल ने प्रभात कीट पाठशाला, निडाना गांव का गौरा, अपना खेत अपनी पाठशाला, महिला खेत पाठशाला, कृषि चौपाल, नौगामा ब्लाग तथा यू-ट्यूब पर भी कीटों की क्रियाकलापों की वीडियों डालकर विदेशियों का ध्यान इस तरफ अकर्षित किया। अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं करते हुए कीट साक्षरता के इस अग्रदूत ने कीट ज्ञान की इस क्रांति को एक विकल्प के रूप में किसानों के बीच स्थापित कर दिया। दुर्भाग्यवश फरवरी 2013 में डा. सुरेंद्र दलाल स्वाइन फ्लू की चपेट में आ गए। डा. दलाल को उपचार के लिए हिसार के जिंदल अस्पताल में भर्ती करवाया गया। यहां पर वैल्टीनेटर की सुविधा मुहैया नहीं हो पाने के कारण चिकित्सकों ने डा. दलाल को हिसार के ही गीतांजलि अस्पताल में रैफर कर दिया लेकिन यहां पर वह सघन कोमा में चले गए। इसके बाद डा. दलाल को दिल्ली के फोर्टिज अस्पताल में ले जाया गया। लगभग 3 माह तक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझने के बाद आखिरकार कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल दुनिया से विदा हो गए। अपना सबकुछ दाव पर लगाकर किसानों को जगाने वाला किसानों का यह मसीहा हमेशा-हमेशा के लिए सौ गया। 18 मई 2013 को डा. सुरेंद्र दलाल ने हिसार के जिंल अस्पताल में आखिरी सांस ली। डा. दलाल को बचाने के लिए 3 माह तक परिवार के सदस्यों द्वारा की गई अथक मेहनत, बड़े-बड़े डाक्टरों की दवाएं तथा देशभर से डा. दलाल के शुभचिंतकों की दुवाएं भी बेअसर हो गई। 19 मई 2013 को उनके पैतृक गांव नंदगढ़ में हजारों लोगों ने नम आंखों के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी। उनकी अंतिम यात्रा के दौरान पूरा नंदगढ़ गांव अपने इस डाक्टर के लिए फफक-फफक कर रो रहा था। चारों तरफ से उमड़ रहे आंसुओं के सैलाब के कारण गांव का माहौल पूरी तरह से गमगीन था और हर चेहरे पर इस महान विभूति को खो देने का दर्द साफ झलक रहा था। डा. दलाल के चले जाने से अकेले हरियाणा प्रदेश  ही नहीं बल्कि पूरे देश को बड़ी क्षति हुई है। यह क्षति कभी पूरी नहीं हो सकती। आज भले ही डा. दलाल हमारे बीच प्रत्यक्ष रूप से मौजूद नहीं हों लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से वे हमारे बीच हर वक्त मौजूद रहेंगे। उनके अनुभव, उनका कीट ज्ञान का संदेश, उनके विचार, उनकी जीवनशैली, उनका स्पष्टवादी व्यवहार, समाज के प्रति उनका समर्पण हमेशा हमें अपने बीच उनका एहसास करवाता रहेगा। उनके द्वारा दिया गया एक-एक संदेश हमेशा हमारे कानों में गुंजता रहेगा। वो सदा-सदा के लिए हमारे दिलों में बस गए हैं। दुनिया की कोई भी ताकत, कोई भी लालसा, उन्हें हमारे दिलो-दिमाक से नहीं निकाल पाएगी। उनकी इस मुहिम को आगे बढ़ाना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


जय जवान जय किसान जय कीट ज्ञान  

   

बुधवार, 10 जुलाई 2013

जहरमुक्त खेती की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कृषि विभाग ने किसानों की तरफ बढ़ाया हाथ

रधाना में महिला तथा निडानी में पुरुष किसानों की खेत पाठशालाएं शुरू 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा थाली को जहरमुक्त करने के लिए जींद जिले में शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए अब कृषि विभाग ने भी जिले के किसानों की तरफ हाथ बढ़ाया है। जिले के किसानों को कीटों की पहचान करवाकर जहरमुक्त खेती की तरफ आकर्षित करने के लिए कृषि विभाग द्वारा भारत सरकार की मिनी टैक्रोलोजी मिशन-2 योजना के तहत बुधवार को जिले के रधाना गांव में महिला किसान खेत पाठशाला तथा निडानी गांव में पुरुष किसान खेत पाठशाला का शुभारंभ किया गया। डा. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल ने महिला तथा पुरुष किसानों को राइटिंग पैड, पैन तथा सुक्ष्मदर्शी लैंस देकर पाठशाला का शुभारंभ किया। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विभाग के जिला उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग भी विशेष रूप से मौजूद थे। 
 किसानों को राइटिंग पैड तथा पैन वितरित करती कुसुम दलाल।
 फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
मैडम कुसुम दलाल ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल ने जिले के किसानों के साथ मिलकर जहरमुक्त खेती की जो मुहिम शुरू की है, उसे आगे बढ़ाने के लिए उनका परिवार हर वक्त किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहेगा। कृषि उप-निदेशक डा. राम प्रताप सिहाग ने किसानों को मिनी टैक्रोलोजी मिशन के बारे में जानकारी देते हुए महिला तथा पुरुष किसानों को कीटों की पहचान करने तथा उनके क्रियाकलापों को समझने के लिए प्रेरित किया। डा. सिहाग ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल तथा जींद के किसानों द्वारा कीटों पर जो शोध किए गए हैं, अब वैज्ञानिक ने भी किसानों के इस शोध पर अपनी सहमती की मोहर लगा दी है। उन्होंने कहा कि कीटों को न तो नियंत्रित करने की जरुरत है और न ही इन्हें मारने की। अगर जरुरत है तो इन्हें पहचानकर इनके क्रियाकलापों के बारे में ज्ञान हासिल करने की। डा. सिहाग ने कहा कि कपास की फसल में आने वाले जिस मिलीबग नामक कीट का नाम सुनकर बड़े-बड़े किसानों के पसीने छूटने लगते थे, उस मिलीबग को तो यहां के किसानों से आल-गोल कीट साबित कर दिया है। मिलीबग को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशी की जरुत नहीं पड़ती। इसे काबू करने के लिए तो कपास की फसल में अंगीरा, जंगीरा तथा फंगिरा नामक कूदरती कीटनाशी काफी संख्या में मौजूद होते हैं। इसके अलावा कपास की फसल में आने वाली सफेद मक्खी, हरा तेला तथा चूरड़े नामक शाकाहारी कीट से भी फिलहाल कपास की फसल को कोई खतरा नहीं है। यहां के किसानों ने सफेद मक्खी, चूरड़ा तथा हरेतेले का जो सर्वेक्षण किया है उसके आधार पर यह कीट अभी तक नुक्सान पहुंचाने के स्तर से काफी दूर हैं। जिला पौध संरक्षण अधिकारी अनिल कुमार व कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि वैज्ञानिक भी यही मानते हैं कि सफेद मक्खी की संख्या यदि प्रति पौधा 6 से अधिक है, हरे तेले की संख्या प्रति पौधा 2 तथा चूरड़े की संख्या प्रति पौधा 10 से अधिक आती है तो ही यह कीट फसल में कुछ नुक्सान पहुंचा सकते हैं लेकिन अभी तक इनका आंकड़ा इस स्तर से काफी नीचे है। इसलिए किसानों को इन कीटों से भयभीत होने 
 पाठशाला में कीटों का बही खाता तैयार करती महिला किसान। 
की जरुरत नहीं है। इस अवसर पर उनके साथ कृषि विभाग से एस.एम.एस. युद्धवीर सिवाच, ए.डी.ओ. रवि कादियान, राजेंद्र शर्मा, सनुील दलाल तथा डा. सुरेंद्र दलाल के पुत्र अक्षत दलाल भी विशेष रूप से मौजूद थे। 

फसल के उत्पादन में पौधों की संख्या का योगदान 

निडानी के किसानों ने हवन कर पाठशाला का शुभारंभ किया। इसके बाद जिस खेत में पाठशाला का शुभारांभ किया उस खेत में मौजूद कपास की फसल के पौधों की गिनती की। डा. कमल सैनी ने बताया कि किसी भी फसल के उत्पादन में पौधों की संख्या का सीधा-सीधा योगदान होता है। यहां के किसानों ने जिस खेती के पौधों की गिनती की है, उस खेत में कुल 4436 पौधे हैं, जो की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। 





सोमवार, 8 जुलाई 2013

जमीन के टुकड़े ने करवा दिया रिश्तों का कत्ल

जमीन के लालच में भाई ही बन गया भाई का हत्यारा 

पुलिस की लापरवाही से गई एक की जान

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिल्लूखेड़ा खंड के कालवा गांव में रविवार को जमीनी विवाद को लेकर एक बड़ा खूनी संघर्ष हो गया। जमीन के टुकड़े को लेकर कालवा गांव में दिन दहाड़े रिश्तों का कत्ल हो गया। एक जमीन के टुकड़े ने एक भाई को दूसरे भाई का कातिल बना दिया। जमीन के लालच ने 2 सगे भाइयों के परिवारों के बीच सदा-सदा के लिए दुश्मनी की लकरी खींच दी। रविवार को जमीन को लेकर कालवा में हुए इस खूनी संघर्ष में एक भाई ने दूसरे भाई के बच्चों के सिर से बाप का साया छीन लिया। जमीन को लेकर हुए इस खूनी संघर्ष में एक 1 व्यक्ति की मौत हो गई तथा 5 लोग जख्मी हो गए। रविवार को हुए इस खूनी संघर्ष में पुलिस की लापरवाही भी साफ नजर आ रही है। अगर 15 दिन पहले दोनों परिवारों के बीच हुए विवाद को पुलिस गंभीरता से लेती और समय पर उचित कार्रवाई करती तो शायद आज इन दोनों परिवारों को यह दिन नहीं देखना पड़ता। पुलिस समय रहते अगर आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर आरोपियों को काबू कर लेती तो शायद आज रामङ्क्षसह की जान बच सकती थी। खूनी संघर्ष के बाद उजागर हुई पुलिस की लापरवाही को सफीदों के डी.एस.पी. वीरेंद्र सिंह ने गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं। विवाद कितनी जमीन को लेकर हुआ है इसकी जानकारी अभी तक पुलिस के पास भी नहीं है। 
 घायलों को रोहतक पी.जी.आई. ले जाते परिजन। 
 घायलों को रोहतक पी.जी.आई. ले जाते परिजन। 
गौरतलब है कि कालवा गांव में रविवार को 2 सगे भाइयों के बीच विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि वजीर पक्ष के लोगों ने रामसिंह पक्ष के लोगों पर गोलियां चला दी, जिसमें रामसिंह की मौत हो गई जबकि इसी पक्ष से रामङ्क्षसह का बेटा राममेहर तथा जयपाल घायल हो गए। रामसिंह पक्ष के लोगों ने भी तेजधार हथियार से हमला बोल दिया जिसमें वजीर समेत 2 अन्य घायल हो गए। सुबह खेत में जब विवाद हुआ तो सूचना पुलिस को दी गई। मौके पर पिल्लूखेड़ा थाना प्रभारी सुभाष, एस.आई. दिलबाग सिंह तथा पवन पहुंचे। जिस समय पुलिस पहुंची उस समय रामसिंह, उसके बेटे जयपाल तथा राममेहर को गोली लग चुकी थी। थाना प्रभारी तथा एस.आई. दिलबाग ने तीनों को गाड़ी में बैठा लिया। इसी दौरान वजीर पक्ष के 2 लोग बाइक पर सवार होकर आए तथा आते ही गाड़ी में मौजूद रामङ्क्षसह पक्ष के लोगों पर गोलियां दागनी शुरू कर दी। पुलिस कर्मचारी पवन ने इन लोगों को पकडऩे की कोशिश की लेकिन थाना प्रभारी सुभाष तथा एस.आई. दिलबाग ने इनको पकडऩे की कोशिश नहीं की। वजीर पक्ष के लोगों ने गाड़ी में बैठे रामङ्क्षसह पर दाग दी और उसकी मौके पर ही मौत हो गई तथा उसके दोनों बेटे भी गोली लगने से घायल हो गए। रामसिंह के बेटे रामकुमार ने आरोप लगाया कि यदि पुलिस आरोपियों को पकड़ती तो उसके पिता की जान बच सकती थी। पुलिस गाड़ी में बैठे लोगों पर आरोपियों द्वारा गोली दागना अपने आप में पुलिस के लिए शर्मनाक है। 

पुलिस की लापरवाही ने के कारण पैदा  हुई खूनी संघर्ष की स्थिति

 घायलों को रोहतक पी.जी.आई. ले जाते परिजन। 
मृतक रामसिंह के बेटे रामकुमार ने डी.एस.पी. वीरेन्द्र सिंह को लिखित में दी शिकायत में बताया कि 15 जून को भी वजीर सिंह के परिवार ने उसकी मां बीरमति पर हमला करके बाजू तोड़ दी थी। इसके बाद गंभीर हालात में रोहतक पी.जी.आई. में आप्रेशन हुआ था। इस दौरान इसकी शिकायत पिल्लूखेड़ा थाने में दे दी थी लेकिन पिल्लूखेड़ा थाना प्रभारी सुभाष तथा मामले की जांच अधिकार दिलबाग ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए उन पर ही दबाव डालना शुरू कर दिया। रविवार को भी झगड़े के दौरान पिल्लूखेड़ा थाना प्रभारी सुभाष तथा मामले के जांच अधिकार दिलबाग सिंह तथा पवन मौके पर पहुंचे थे। जब जिप्सी में उसके पिता तथा भाइयों पर फायरिंग की जा रही थी उस समय पुलिस कर्मचारी पवन ने तो गोली चला रहे लोगों से संघर्ष किया, लेकिन थाना प्रभारी सुभाष तथा दिलबाग मौके पर वैसे ही खड़े रहे। अगर दोनों पुलिस कर्मचारी मौके पर उचित कार्रवाई करते तो उसके पिता की जान बच सकती थी। उसने आरोप लगाया कि पिल्लूखेड़ा थाना प्रभारी तथा मामले के जांच अधिकारी दिलबाग इस मामले में लगातार लापरवाही बरत रहे थे। इसलिए इनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए।

सामान्य अस्पताल में मची अफरा-तफरी

 घायलों को रोहतक पी.जी.आई. ले जाते परिजन। 
गांव कालवा में हुए खूनी संघर्ष को लेकर जैसे ही पुलिस कर्मचारी घायलों को लेकर सामान्य अस्पताल पहुंचे तो वहां अफरा-तफरी मच गई। आनन फानन में एमरजैंसी में तैनात चिकित्सक द्वारा फोन पर अन्य चिकित्सकों को सूचना दी गई। सूचना पाकर सर्जन डा. अनिल बिरला व अन्य चिकित्सक एमरजैंसी में पहुंचे और घायलों का इलाज शुरू किया। वहीं घायलों के परिजन इलाज को लेकर कभी चिकित्सकों से उलझे तो कभी खुद ही उनकी तिमारदारी करते नजर आए।

सामान्य अस्पताल बना पुलिस छावनी

स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा घटना को गंभीरता से लेते हुए सामान्य अस्पताल में भारी संख्या में पुलिसबल को तैनात किया गया था। यहां तक की घायलों को पी.जी.आई.एम.एस. रोहतक रैफर करते समय पुलिस पी.सी.आर. को उनके साथ भेजा गया। वहीं घायल वजीर को उसका बेटा स्वयं ही अपनी बोलेरो गाड़ी से पी.जी.आई.एम.एस. रोहतक ले गया। 
 घायलों को रोहतक पी.जी.आई. ले जाते परिजन। 
पुलिसकर्मियों पर लगाए लापरवाही के आरोपइस मामले में सफीदों के डीएसपी वीरेंद्र सिंह का कहना है कि वह जांच करवाएंगे यदि इस मामले में पुलिस कर्मचारी कहीं दोषी मिले तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
मामले की जानकारी देते डी.एस.पी. आदर्शदीप।

9 के खिलाफ मामला दर्ज 

रामसिंह गुट के लोगों ने पिल्लूखेड़ा थाना प्रभारी सुभाष तथा एस.आई. दिलबाग पर लापरवाही का आरोप लगाया है। दोनों पुलिस कर्मचारियों के खिलाफ लिखित में जांच के आदेश दिए गए हैं। पुलिस ने सरपंच सहित 9 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। पुलिस मामले की जांच कर रही है। जांच में जो भी सच सामने आएगा पुलिस उसी के आधार पर कार्रवाई करेगी। किसी प्रकार की अनहोनी घटना न घटे इसके लिए कालवा गांव में दोनों परिवारों के घरों पर पुलिस कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है।
आदर्शदीप, डी.एस.पी.
जींद 



चूल्हे-चौके के साथ साथ महिला किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी कीटों की मास्टरनियां

सप्ताह के हर बुधवार को रधाना गांव में किया जाएगा महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन 

नरेंद्र कुंडू
जींद। थाली को जहरमुक्त करने की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटों की मास्टरनियां अब आस-पास के गांवों की महिलाओं को भी कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी। तक सीमित रहने वाली महिलाओं को खेती किसानी के कार्य में निपुर्ण करने के लिए ललीतखेड़ा, निडाना तथा निडानी की महिलाओं द्वारा कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल के नाम से सप्ताह के हर बुधवार को रधाना गांव में महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। इस पाठशाला में रधाना गांव के साथ-साथ आस-पास के गांवों की महिलाओं को भी कीटों की पहचान करवाकर जहरमुक्त खेती के टिप्स दिए जाएंगे। महिलाओं की इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कृषि विभाग द्वारा भी विशेष सहयोग दिया जाएगा। 
फसलों में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण किसानों पर बढ़ते खर्च तथा रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से हो रही जीव हत्या को देखते कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल ने 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम का शंखनाद किया था। डा. सुरेंद्र दलाल ने यहां के किसानों को फसल में मौजूद कीटों की पहचान करवाने के साथ-साथ कीटों के क्रियाकलापों पर गहन शोध किया था। किसानों द्वारा किए गए शोध में यह सिद्ध हो चुका है कि कीट फसल में न तो हानि पहुंचाने के लिए आते हैं और न ही लाभ पहुंचाने के लिए आते हैं। कीट तो फसल में केवल अपना जीवन यापन करने के लिए आते हैं। इसके बाद इस मुहिम को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए डा. सुरेंद्र दलाल ने महिलाओं को इस मुहिम में शामिल किया और वर्ष 2010 में निडाना गांव से ही पहली महिला किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की। इसके बाद महिलाओं ने भी कीटों पर गहन अध्ययन किया और इसके बाद 2012 में ललीतखेड़ा से महिला किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की। इस प्रकार निडाना, निडानी तथा ललीतखेड़ा गांव की 2 दर्जनभर
 ललीतखेड़ा गांव के खेतों में चल रही महिला पाठशाला का फाइल फोटो। 
 कीटों की मास्टरनियों के फोटो। 
के लगभग महिलाएं कीट ज्ञान का अध्ययन करते-करते कीटों की मास्टरनियां बन गई। अब कीटों की इन मास्टरनियों ने थाली को जहरमुक्त करने की इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए आस-पास के गांवों की महिलाओं को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाने का निर्णय लिया है। निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा गांव की इन वीरांगनाओं द्वारा सप्ताह के हर बुधवार को रधाना गांव के जगमेंद्र के खेत में पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। 18 सप्ताह तक पाठशालाएं चलेंगी और इन पाठशालाओं में रधाना तथा आस-पास के गांवों की महिलाओं को फसल में मौजूद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की पहचान करवाने तथा कीटों के क्रियाकलापों की जानकारी देकर जहरमुक्त खेती के टिप्स दिए जाएंगे। कीटाचार्या पूनम मलिक, सविता मलिक, मीनी मलिक, गीता, कमलेश, राजवंती, बिमला तथा अंग्रेजो ने बताया कि किसान अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में बेहता रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर रहे हैं। फसल में अधिक उर्वरकों के प्रयोग से खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है। महिलाओं ने बताया कि अधिकतर किसानों को तो कीट तथा बीमारियों के बीच के अंतर के बारे में ही जानकारी नहीं है और जानकारी के अभाव में किसान भय व भ्रम के जाल में फंसकर बेजुबान कीटों की हत्या कर रहे हैं। इससे हमारे पर्यावरण के साथ-साथ हमारा खान-पान भी जहरीला होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर किसानों को भय व भ्रम के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना है तो उन्हें कीट ज्ञान का सहारा लेना होगा। कीटों की मास्टरनियों की इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कृषि विभाग द्वारा भी विशेष सहयोग दिया जाएगा।

जहरमुक्त खेती की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए विभाग ने तैयार की योजना

निडाना, निडानी तथा ललीतखेड़ा गांव की महिलाएं कीट ज्ञान के बूते पिछले 2-3 वर्षों से अच्छा उत्पादन ले रही हैं। इन महिला किसानों द्वारा अपनी फसलों में एक छटांक भी जहर का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इन महिलाओं की सफलता को देखते हुए कृषि विभाग ने इस मुहिम को पूरे जिले तथा जिले से बाहर फैलाने के लिए योजना तैयार की है। विभाग द्वारा आस-पास के गांवों में महिलाओं की पाठशालाएं लगवाई जाएंगी और उन पाठशालाओं में निडाना, निडानी तथा ललीतखेड़ा की महिलाओं को पढ़ाने के लिए भेजा जाएगा। इस सप्ताह से रधाना गांव में महिला पाठशाल का शुभारंभ किया जा रहा है। यहां पर महिलाओं को तकनीकी ज्ञान देने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों की ड्यूटी भी लगाई जाएगी। 
डा. रामप्रताप सिहाग, उप-निदेशक
 कृषि विभाग, जींद




रविवार, 7 जुलाई 2013

सफेद मक्खी का सबसे बड़ा भस्मासुर फलहारी बुगाडा

फलहारी बुगडे ने दी कपास की फसल में दस्तक 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विभाग के जिला उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने कीटों पर शोध का जो कार्य शुरू किया है, वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। आज तक पूरे देश में कीटों पर इस तरह से कहीं भी शोध नहीं हुआ है। डा. सिहाग शनिवार को राजपुरा गांव के खेतों में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला के तीसरे सत्र में बतौर मुख्यातिथि किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ कामरेड फूलकुमार श्योकंद, ए.डी.ओ. डा. कमल सैनी भी विशेष रूप से मौजूद थे। पाठशाला में आसपास के 12 गांवों के किसानों ने अपनी अनुपस्थिति दर्ज करवाई। 
  पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते डी.डी.ए. डा. आर.पी. सिहाग।
कामरेड फूलकुमार श्योकंद ने कहा कि अगर किसानों को जहर से निजात हासिल करनी है तो उन्हें डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा दिखाए गए कीट ज्ञान के रास्ते पर आगे बढ़कर कीटों के जीवनचक्र पर गहराई से अध्ययन करना होगा। श्योकंद ने कहा कि देश में जब हरित क्रांति ने दस्तक दी थी तो उसके साथ ही फसलों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग भी तेजी से होने लगा था। इसके चलते 1975-76 में वैज्ञानिकों ने रासायनिक उर्वरकों से मनुष्य के स्वास्थ्य पर होने वाले कूप्रभाव पर खोज शुरू की थी। उस समय इस खोज पर लगभग 1900 वैज्ञानिक कार्य कर रहे थे लेकिन समय के साथ-साथ आज यह खोज बंद होती चली गई। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने कीट अवलोकन किया और इसके बाद कीट बही खाता तैयार किया। किसानों ने बताया कि कपास के इस खेत में सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 2.7, हरे तेले की 1.7 और चूरड़े की 3.3 की औसत है। उन्होंने कहा कि अगर आंकड़े पर नजर डाली जाए तो इस वक्त सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़ा फसल को नुक्सान पहुंचाने के सत्र से काफी नीचे है। किसानों ने बताया कि उन्होंने कीट अवलोकन के दौरान क्राइसोपा के अंडे, बच्चे और प्रौढ़ नजर आया। इसके अलावा फलहरी बुगड़ा, लेडी बर्ड बीटल, हंडेर बीटल, अंगीरा नामक मांसाहारी कीट भी फसल में मौजूद थे। किसान बलवान, रमेश, महाबीर, सुरेश ने बताया कि फलहरी बुगड़ा लाल रंग का होता है डेढ़ मिनट में 1 कीड़े का काम तमाम कर देता है। अगर हमारी फसल में फलहरी बुगड़ा मौजूद है तो हमें सफेद मक्खी से डरने की जरुरत नहीं है। लेडी बर्ड बीटल 17-18 किस्मों की होती हैं तथा अपने शरीर के बराबर तक के कीटों का मांस खा कर गुजारा करती हैं। अंगीरा एक मांसाहारी कीट है तथा मिलीबग के पेट में अपने अंडे देता है। अंगीरा के बच्चे मिलीबग को अंदर से खाना शुरू करते हैं। इससे मिलीबग का रंग गहरा लाल होना शुरू हो जाता है और धीरे-धीर वह नष्ट हो जाती है। एक अंगीरा अपनी ङ्क्षजदगी में लगभग 100 मिलीबग का काम तमाम कर देता है। हंडेर बीटल जमीन के अंदर रहकर जमीन को खोदती हैं। हंडेर बीटल एक प्रकार से फसल में निराई-गुडाई का काम करती हैं तथा बरसात के दिनों में जमीन में पानी अधिक होने के कारण यह जमीन से बाहर निकलती हैं। जमीन के बाहर आकर यह शाकाहारी कीटों को अपना शिकार बनाती हैं। 

सही होनी चाहिए जमीन की पी.एच.

डा. कमल सैनी ने कहा कि फसल की पैदावार जमीन की पी.एच. पर निर्भर करती है। अगर जमीन की पी.एच. 6.5 से 7.5 के बीच है तो वह जमीन कृषि के लिए सबसे उपयुक्त होती है। इस तरह की जमीन में किसी भी तरह का उर्वरक डालने की जरुरत नहीं होती। अगर जमीन की पी.एच. ज्यादा हो तो पौधा फासफोरस तथा सल्फर को तो जमीन से आसानी से ले लेगा लेकिन बाकी पोषक तत्वों का वह प्रयोग करने में सक्ष्म नहीं होगा।  

 कपास के पौधों पर कीटों का अवलोकन करते किसान।







गुरुवार, 4 जुलाई 2013

कपास की फसल में महिलाओं ने ढूंढ़े कुदरती कीटनाशी

शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीटों ने दी फसल में दस्तक

नरेंद्र कुंडू  
फसल में अवलोकन के दौरान महिलाओं को मिला मांसाहारी कीट क्राइसोपा का अंड़ा।
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिलाएं।
जींद। कीटाचार्या सविता मलिक ने कहा कि किसानों को अपनी कपास की फसल में मौजूद शाकाहारी कीटों से घबराने की जरुरत नहीं है। शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए कपास की फसल में अब मांसाहारी कीटों ने भी दस्तक दे दी है। सविता वीरवार को ललीतखेड़ा गांव के खेतों में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल महिला किसान खेत पाठशाला के दूसरे सत्र के दौरान पाठशाला में मौजूद महिलाओं को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ा रही थी। इस अवसर पर बागवानी विभाग के जिला अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कृषि विभाग के ए.डी.ओ. डा. कमल सैनी, डा. शैलेंद्र चहल तथा डा. नेम कुमार भी विशेष रूप से मौजूद थे। पाठशाला की शुरूआत में महिलाओं ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। कीट अवलोकन के दौरान महिलाओं ने कपास की फसल में क्राइसोपा का अंडे भी देखे।
सविता मलिक ने कहा कि फसल में शाकाहारी तथा मांसाहारी 2 प्रकार के कीट होते हैं। पहले शाकाहारी कीट आते हैं तो उसके बाद उनको नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट आते हैं। मलिक ने कहा कि पिछले सप्ताह पाठशाला में कीट अवलोकन के दौरान फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला तथा चूरड़ा नामक शाकाहारी कीट नजर आए थे लेकिन इस पाठशाला में उन्हें क्राइसोपा के साथ-साथ कुछ अन्य मांसाहारी कीट भी नजर आए हैं, जो शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने में किसानों की सहायता करते हैं और किसानी भाषा में इन्हें कुदरती कीटनाशी के नाम से भी जाना जाता है। शीला ने बताया कि क्राइसोपा का बच्चा सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को अपना भोजन बनाता है तथा
पाठशाला में महिलाओं को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाती कीटाचार्या।
इसका प्रौढ़ हर प्रकार के शाकाहारी कीट को अपना शिकार बनाता है। अगर फसल में प्रति पौधा एक भी क्राइसोपा मौजूद हो तो वह फसल में शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने में काफी है। कीटाचार्या अंग्रेजो, राजवंती ने बताया कि कीट अवलोकन के दौरान फसल में उन्हें शाकाहारी कीट मिलीबग के अलावा अंगीरा, डायन मक्खी तथा लाल चिचड़ी नामक मांसाहारी कीट भी नजर आए। अंगीरा मिलीबग के पेट में अपने अंडे देता है और इस प्रकार अंगीरा के बच्चों के पालन-पोषण में मिलीबग का काम तमाम हो जाता है। इसी प्रकार लाल चिचड़ी खून चूसकर मिलीबग का खात्मा करती है तथा डायन मक्खी फसल में अपना मचान बनाकर शाकाहारी कीटों का शिकार करती है। डायन मक्खी अपने डंक से शिकार के शरीर में एक अजीब तरह का तरल पदार्थ छोड़ती है और फिर उसके मास को उस तरल पदार्थ में मिलाकर उसके मास को डंक की सहायता से चूसती है। इस अवसर पर महिलाओं ने कीटों का बही खाता भी तैयार किया। इसमें सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 1.9, हरा तेला 1.3 तथा चूरड़ा 2.9 की थी। डा. कमल सैनी ने कहा कि बही खाते के आंकड़े के अनुसार अभी तक कपास के इस खेत में कोई भी कीट फसल को नुक्सान पहुंचाने के आंकड़े से कोसों दूर है। निडाना गांव की महिलाओं ने महिला किसान खेत पाठशाला को सुचारू रूप से चलाने के लिए 1100 रुपए की  सहायता दी।  

बुधवार, 3 जुलाई 2013

हरियाणा विद्यालय बोर्ड की लापरवाही

10वीं और 12वीं की रि-अपीयर के फार्म भरने वाले विद्यार्थी हुए परेशान
बोर्ड की वेबसाइट से रि-अपीयर का लिंक गायब

नरेंद्र कुंडू 
जींद। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के अधिकारियों की लापरवाही के कारण हजारों विद्यार्थियों को परेशानी का सामना करना पड़ रह है। बोर्ड की नई योजना के तहत 10वीं तथा 12वीं के रि-अपीयर विद्यार्थियों को अपना फार्म ऑनलाइन भरना है, लेकिन बोर्ड की साइट में रि-पीयर फार्म भरने का लिंक ही नजर नहीं आ रहा है। यह लिंक 18 से 28 जून तक तो नजर आया लेकिन अब गायब है। रि-अपीयर फार्म अप्लाई करने की अंतिम तिथि 6 जुलाई है लेकिन लिंक नहीं होने के कारण हजारों विद्यार्थी यह फार्म अप्लाई नहीं कर पा रहे हैं। बोर्ड नियमों के अनुसार जो विद्यार्थी 6 जुलाई तक फार्म अप्लाई नहीं कर पाए तो उसके बाद उनको जुर्माना लगेगा। यह जुर्माना एक हजार रुपए तक हो सकता है। यदि फिर भी फार्म अप्लाई नहीं हो सका तो विद्यार्थी परीक्षा में बैठने से वंचित रह सकते हैं।
गौरतलब है कि अब से पहले हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड में रि-अपीयर के फार्म डाक द्वारा भेजे जाते थे। इस वर्ष से बोर्ड ने नई सुविधा दी है। इसके तहत जिन विद्यार्थियों की 10वीं तथा 12वीं कक्षा में रि-अपीयर है, वे बोर्ड की साइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। विद्यार्थियों को निर्धारित फीस बोर्ड के अकाउंट, जो कि पंजाब नेशनल बैंक का है, में जमा करवानी है तथा इसकी डिटेल साइट पर भरनी है। बोर्ड की साइट पर रि-अपीयर के लिए फार्म भरने का लिंक दिया हुआ है जोकि अब पूरी तरह से गायब हो चुका है। पिछले 4 दिन से विद्यार्थी इस लिंक को ढूंढ रहे हैं और साइबर कैफे के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन यह लिंक नहीं मिल रहा है। 18 जून से 28 जून तक को यह लिंक मिला लेकिन उसके बाद गायब हो गया। हजारों विद्यार्थी फार्म अप्लाई करने के लिए भटक रहे हैं। इस बारे में बोर्ड अधिकारी व कर्मचारी को संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहे हैं। उनका कहना है कि यह टैक्निकल फाल्ट है, जो जल्द ही ठीक कर दिया जाएगा लेकिन कब तक ठीक होगा, यह पता नहीं है। यदि 6 जुलाई के बाद यह ठीक होता है, तो विद्यार्थियों पर जुर्माना लगना तय है, जिसका खामियाजा अभिभावकों को भुगतना पड़ेगा। बोर्ड की लापरवाही के कारण
हरियाणा बोर्ड की साईट का फोटो 
हजारों अभिभावक ठगे जाएंगे।

टोल फ्री नंबर भी दे गया जवाब

हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने विद्यार्थियों तथा अभिभावकों की सुविधा के लिए एक टोल फ्री नंबर दिया गया है ताकि किसी भी समस्या के लिए विद्यार्थी तथा अभिभावक इस पर संपर्क करके अपनी समस्या का समाधान करवा सकें लेकिन पिछले काफी दिनों से यह टोल फ्री नंबर 18001804171भी खराब है। इस कारण भी अभिभावकों को कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा है। बोर्ड प्रशासन इस तरफ भी कोई ध्यान नहीं दे रहा ताकि नंबर को ठीक करवाया जा सके।

जल्द करवा दिया जाएगा समस्या का समाधान : सचिव

इस बारे में हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड सचिव डा. अनशज सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि अभी तक तो यह दिक्कत नहीं आई है लेकिन फिर भी कोई परेशानी है तो वह इस बारे में तकनीकी लोगों को समस्या का समाधान करने के निर्देश देंगे और जल्द ही समस्या का समाधान करा दिया जाएगा

थाली को जहरमुक्त करने की मुहिम में ईगराह गांव के किसानों ने भी बढ़ाया हाथ

ईगराह गांव में भी शुरू हुई डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला

नरेंद्र कुंडू
जींद।किसानों को फसल में मौजूद शाकाहारी और मांसाहारी कीटों की पहचान करवाकर थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए अब ईगराह गांव के किसान आगे आए हैं। अधिक से अधिक किसानों को कीट ज्ञान अर्जित करवाकर इस मुहिम के साथ जोडऩे के लिए ईगराह गांव के किसानों ने अपने स्तर पर निडाना, ललीतखेड़ा और राजपुरा भैण गांव के किसानों की तर्ज पर ईगराह गांव में भी डा. सुरेंद्र दलाल के नाम से किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की है। ईगराह गांव के किसान रमेश के खेत में  पाठशाला का आयोजन किया जा रहा है। सप्ताह के हर मंगलवार को लगातार 18 सप्ताह तक पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। कृषि विभाग के एस.एम.एस.एंड आई. देवेंद्र बाजवा ने किसानों को राइटिंग पैड व पैन देकर पाठशाना का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उनके साथ कृषि विभाग के  ए.पी.पी.ओ. डा. अनिल नरवाल, ए.डी.ओ. डा. पवन भारद्वाज और डा. कमल सैनी भी विशेष रूप से मौजूद थे। कृषि विभाग के अधिकारियों के पाठशाला में पहुंचने पर किसानों की तरफ से कीटाचार्य मनबीर रेढ़ू ने विभाग के अधिकारियों का स्वागत किया। 
पाठशाला का सुभारम्भ करते मुख्यातिथि
पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर किसानों की तादात को देखते हुए मुख्यातिथि देवेंद्र बाजवा ने कहा कि पाठशाला के प्रति किसानों में काफी उत्साह नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि इस पाठशाल से किसान फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में ज्ञान हासिल कर फसलों में रासायनिकों पर होने वाले अपने खर्च को तो कम कर ही सकेंगे, साथ-साथ देश को जहर मुक्त खाद्यान्न प्रदान कर स्वास्थ्य पर अप्रत्यक्ष रूप से खर्च होने वाले धन को भी बचाएंगे। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने 5-5 किसानों के 5 ग्रुप बनाकर कपास की फसल में कीटों का अवलोकन किया। कीट अवलोकन के बाद कीट बही खाता तैयार कर कीटों के नुक्सान पहुंचाने के स्तर का आकलन किया। कपास की फसल में मौजूद कीटों के बारे में जानकारी हासिल कर किसान फूले नहीं समा रहे थे। किसानों ने कहा कि जानकारी के अभावा में वे आज तक कीटों को अपना दुश्मन समझते थे और फसल में कीटों की बढ़ती तादात से घबराते थे। कीटों को लेकर उनके मन में भय व भ्रम की स्थित बनी हुई थी लेकिन पाठशाला में आने के बाद कीटों के प्रति उनकी घबराहट खत्म हो गई है। किसानों ने बताया कि कीट अवलोकन के दौरान उन्होंने क्राइसोपा के अंडे तथा बच्चे देखे। इसके अलावा उन्होंने एक लाल चिचड़ी नामक कीट को हरे तेले का खून चूसते हुए भी देखा। किसानों ने कहा किमंगलवार को पाठशाला में उनके सामने कीटों की जो तस्वीर उभर कर आई है उससे यह बात साफ हो गई है कि फसल के लिए कोई भी कीट नुक्सानदायक नहीं हैं। कीट तो फसल में केवल अपना जीवन यापन करने के लिए आते हैं। उन्होंने कहा कि कीटों को नियंत्रित करने में कीट ही सबसे बड़ा हथियार हैं। इस अवसर पर पाठशाला में लगभग 35 किसान भी मौजूद थे।

कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान 


रविवार, 30 जून 2013

कुदरत के साथ छेड़छाड़ रोकनी है तो कीट ज्ञान हासिल करें किसान : ढुल

किसान खेत पाठशाला के दूसरे सत्र में किसानों को फसल में नजर आए नए कीट

नरेन्द्र कुंडू 
जींद। पृथ्वी पर जीवन यापन के लिए मौजूद सभी सुविधाएं कुदरत का इंसान को एक अनोखा तोहफा हैं लेकिन आज इंसान अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर कुदरत के इस अनमोल तोहफे के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इसलिए भविष्य में इंसान को इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा। अगर किसानों को कुदरत का साथ देना है तो उन्हें कीट ज्ञान हासिल करना होगा। यह बात ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह ढुल ने शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता किसान खेत पाठशाला के दूसरे सत्र के दौरान किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर उनके साथ चहल खाप के प्रतिनिधि दलीप सिंह चहल और डा. सुरेंद्र दलाल के पुत्र अक्षत भी मौजूद थे। पाठशाला की अध्यक्षता बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने की तथा संचालन कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने किया। पाठशाला में राजपुरा भैण, ईंटल कलां, ईंटल खुर्द, निडाना, निडानी, रधाना, ईगराह, रामराये, चाबरी, ललीतखेड़ा सहित दर्जनभर गांवों के किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों पर रिसर्च किया। पाठशाला के आरंभ में सभी किसानों ने कीट बही खाता तैयार करने के लिए कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का आंकड़ा दर्ज किया। 
पाठशाला के आरंभ में किसानों ने फसल में कीटों का अवलोकन कर कीट बही खाता तैयार किया। कीट बही खाते में सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 1.9, हरे तेले की 1.8 और चूरड़े की 2.5 थी। किसानों ने बताया कि कीट बही खाते के अनुसार फसल में मौजूद शाकाहारी कीट कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई लक्ष्मण से कोसों दूर हैं। किसानों ने बताया कि शाकाहारी कीटों के साथ-साथ फसल में मांसाहारी कीट क्राइसोपा, क्राइसोपा के अंडे, फलहेरी बुगड़ा, बिंदुआ बुगड़ा, हंडेर बीटल तथा मकड़ी भी काफी संख्या में मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि इस बार कपास की फसल में कुछ नए कीट सलेटी भूंड, सुरंगी कीड़ा, टीडा भी नजर आए हैं। किसानों ने बताया कि कपास के इस खेत में कुल 4355 पौधे हैं और प्रति पौधा एक मांसाहारी कीट क्राइसोपा भी मौजूद है। एक क्राइसोपा 40 मिनट में 30 हरे तेलों तथा बुगड़े ढेड मिनट में 1 कीड़े का काम तमाम कर देते हैं। उन्होंने बताया कि कपास की फसल में किए गए रिसर्च के दौरान वह 43 किस्म के शाकाहारी तथा 161 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान कर चुके हैं। डा. कमल सैनी ने बताया कि पृथ्वी पर सबसे पहले पौधों की उत्पति हुई थी। इसके बाद धरती पर कीटों ने दस्तक दी थी। क्योंकि जीवों को जीवित रहने के लिए आक्सिजन की जरुरत होती है और आक्सिजन की उत्पति का केवल एक मात्र साधन हैंपौधे। बिना पौधों के धरती पर जीवन संभव नहीं है। पृथ्वी पर पौधों की लगभग 3 लाख किस्म की प्रजातियां हैं। इनमें से अढ़ाई हजार किस्म के पौधों को किसान फसलों के रूप में जानते हैं । 
 पाठशाला के आरंभ में कीट बही खाता तैयार करने के लिए फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान। 
डा. सैनी ने कहा कि फिजिक्स का नियम कहता है कि पृथ्वी पर जो वस्तु पैदा हुई है, वह कभी भी खत्म नहीं होती।  वह तो बस समय-समय पर अपना आकार बदलती रहता है। पृथ्वी में ऐसे सुक्ष्म जीवाणु हैं जो मृत जीव या बेकार की वस्तु को दोबारा से तोडफ़ोड़कर उसकी वास्तविक स्थिति में बदल देते हैं। प्रकृति अपने नियमानुसार ही किसी जीव को पैदा और नष्ट करती है। इसलिए हमें प्रकृति के साथ ज्यादा छेड़छाड़ करने की जरुरत नहीं है।उन्होंने कहा कि किसान भय व भ्रम के जाल में फंसकर कीटों को मारने में लगे हुए हैं, जबकि सच्चाई यह है कि कीड़ों को मारने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो कीड़ों को पहचानने और उनके क्रियाकलापों को समझने की। जो केवल कीट ज्ञान से संभव है। बिना कीट ज्ञान के किसान भय व भ्रम की स्थिति से बाहर नहीं निकल सकते। उन्होंने कहा कि एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार अमेरीका ने तो प्रकृति के साथ बढ़ती छेड़छाड़ को रोकने के लिए पौधों के साथ किसी भी प्रकार की छेडख़ानी करने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है। कीटाचार्य मनबीर रेढ़ू और रामदेवा ने बताया कि कीट इंसान से ज्यादा ताकतवर होते हैं। इसलिए वह अपने ऊपर आने वाली विपत्ति को पहले ही भांप लेते हैं और अपने वंश को बचाने के लिए अपना जीवन चक्र छोड़ा कर अपने अंड़े देने की क्षमता में वृद्धि कर लेते हैं। उन्होंने सफेद मक्खी का उदहारण देते हुए कहा कि सफेद मक्खी का जीवन काल 72 दिन का होता है और यह एक सप्ताह में 100 से 150 अंडे देती है लेकिन आपदा के समय सफेद मक्खी अपने जीवनकाल को छोटा कर 21 दिन का कर लेती है। 

 पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते कृषि अधिकारी तथा मौजूद किसान।





शनिवार, 29 जून 2013

जाट आरक्षण आंदोलन की रणनीति पर आज लग सकती है खाप चौधरियों की मोहर

सोनीपत की नई अनाज मंडी में आयोजित बैठक में प्रदेशभर की खापों के प्रतिनिधि लेंगे भाग

नरेंद्र कुंडू
जींद। केंद्र सरकार की नौकरियों में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए शुरू किए जाने वाले आंदोलन की रणनीति पर आज खाप चौधरियों की मोहर लग सकती है। आंदोलन की रणनीति तय करने के लिए शनिवार को सोनीपत की नई अनाज मंडी में सर्वजाट सर्वखाप आरक्षण समिति हरियाणा के सदस्यों द्वारा हरियाणा की खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई गई है। बैठक के लिए प्रदेशभर की सभी खापों को आमंत्रित किया गया है। शनिवार को होने वाली बैठक में आंदोलन की रणनीति तैयार की जाएगी।
अब केंद्र में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए खाप पंचायतें फिर से हुंकार भरने की तैयारी में जुट गई हैं। इस बार खाप चौधरियों ने आरक्षण के लिए आंदोलन शुरू करने के लिए जाटों का गढ़ माने जा रहे जींद की बजाए मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र से आंदोलन चलाने की रणनीति तैयार की है। इसके लिए खाप चौधरियों ने शनिवार को सोनीपत की नई अनाज मंडी में प्रदेशभर की खाप पंचायतों की बैठक बुलाई है। इस बैठक में आंदोलन की पूरी रुपरेखा तैयार की जाएगी तथा दूसरे प्रदेश के जाटों को भी आंदोलन में शामिल करने की योजना बनाई जाएगी। सोनीपत में बैठक  के आयोजन का मुख्य उद्देश्य मुख्यमंत्री के गृह जिले में सेंध लगाकर आरक्षण के लिए सरकार पर दबाव बनाना है। हालांकि इससे पहले दिसंबर 2012 में भी खापों के चौधरी पुराने रोहतक जिले के लोगों को जाट आंदोलन से जोडऩे का प्रयास कर चुके हैं लेकिन उस दौरान वहां के जाटों पर खापों का यह फार्मूला ज्यादा सफल नहीं हो सकता था। अब एक बार फिर से खाप प्रतिनिधि उसी फार्मूले को दोहराने जा रहे हैं। खाप प्रतिनिधियों द्वारा तैयार किए गए आरक्षण के एजैंडे के अनुसार अगर जाटों का काफिला एक लाख से अधिक होता है तो दिल्ली को चारों तरफ से घेरने की घोषणा जाट चौधरी कर सकते हैं। अगर जाटों को यह महसूस हुआ कि जाटों की हाजिरी आंदोलन में कम रहेगी तो फिर उन्होंने इसका विकल्प दिल्ली के जंतर मंतर पर अनिश्चितकालीन धरने के तौर पर तैयार किया है। फिलहाल खाप प्रतिनिधियों द्वारा आंदोलन आगामी रणनीति की घोषणा नहीं की जाएगी। इस बैठक के माध्यम से खाप चौधरी आरक्षण को लेकर खापों की नबज टटोलने का काम करेंगे। आंदोलन की रूपरेखा व स्वरूप को लेकर खाप प्रतिनिधियों द्वारा भविष्य में बैठक का आयोजन किया जाएगा। सोनीपत की बैठक में तो खाप चौधरियों को आंदोलन में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।

नए सिरे से आंदोलन शुरू किया जाएगा।

सर्वजाट सर्वखाप आरक्षण समिति हरियाणा के प्रवक्ता सूबे सिंह सैमाण ने बताया कि केंद्र में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए नए सिरे से आंदोलन शुरू किया जाएगा। इसके लिए सोनीपत में प्रदेशभर की खापों की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में जाट आरक्षण आंदोलन पर चर्चा की जाएगी। इसके बाद आंदोलन की रुपरेखा तैयार कर सभी खाप प्रतिनिधियों को आंदोलन में लोगों को एकजूट करने की जिम्मेदारी दी जाएगी।

पुलिस के हाथ लगी सफलता

एक बड़े चोर गिरोह का पर्दाफाश

जिले में चोरी की 45 घटनाओं को अंजाम देने की बात कबूली

नशे की पूर्ति के लिए देते थे चोरी की घटनाओं को अंजाम

नरेंद्र कुंडू
जींद। शुक्रवार को जींद पुलिस के हाथ एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। पुलिस ने पिछले लंबे समय से शहर के लोगों तथा पुलिस महकमे के लिए सिरदर्द बन चुके एक बड़े चोर गिरोह का पर्दाफाश किया है। पकड़े गए चोर गिरोह के सदस्यों ने पुलिस पूछताछ में 45 चोरियों की वारदातों को अंजाम देने की बात कबूली है। पुलिस आरोपियों से अन्य मामलों के बारे में भी पूछताछा कर रही है। पूछताछ के दौरान कई अन्य वारदातों का भी खुलासा होने की संभावना जताई जा रही है। पकड़े गए आरोपी स्मैक के नशे की पूर्ति  के लिए चोरी की वारदातों को अंजाम देते थे। चोर गिरोह के पकड़े जाने के बाद शहर के लोगों ने भी थोड़ी राहत की सांस ली है।
पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह राणा ने शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत में मामले का खुलासा करते हुए बताया कि पिछले कई दिनों से यह गिरोह जींद जिले में पूरी तरह से सक्रीय था। जिले में बढ़ती चोरी की वारदातों के कारण यह चोर गिरोह जिले के लोगों तथा जिला पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था। इस चोर गिरोह ने जींद जिले के साथ-साथ अन्य कई जिलों में भी वाहन चोरी के अलावा घरों में सेंध लगाकर भारी मात्रा में नकदी तथा जेवरात चोरी की घटनाओं को अंजाम दिया है। पुलिस को पिछले काफी समय से इस गिरोह की तलाश थी। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि देर शाम रोहतक रोड पुलिस चौकी के इंचार्ज राजेन्द्र सिंह अपने कर्मचारियों के साथ गश्त कर रहे थे तभी उन्हें सूचना मिली की हांसी रोड स्थित बीड़ में कुछ व्यक्ति वाहनों व राहगिरों को लूटने की फिराक में हैं। इससे पहले की चोर किसी अन्य बड़ी घटना को अंजाम दे पाते तभी चौकी इंचार्ज ने अपने दलबल के साथ मौके पर छापेमारी की और गिरोह के 3 सदस्यों को काबू कर लिया। पकड़े गए चोर गिरोह के सदस्यों से जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने जींद जिले में चोरी की 45 घटनाओं को अंजाम देने की बात कबूली। पुलिस ने इस गिरोह से 315 बोर का एक पिस्तौल, एक कारतूस व एक लोहे का सरिया तथा एक बाइक बरामद किया। पकड़े गए आरोपियों ने अपनी पहचान गांव निडाना निवासी प्रवेश उर्फ भिंडा, गांव नगूरां निवासी धर्मबीर उर्फ भोलू, इंप्लाइज कालोनी निवासी जलदीप के रूप में बताई। पुलिस पूछताछ में जिले में कम से कम 16 बाइक चोरी करने तथा 6 दुकानों से इन्वर्टर चोरी और मकानों के ताले तोड़कर उनमे से नकदी व जेवरात चुराने की बात भी कबूली है। पुलिस तीनों आरोपियों से गहनता से पूछताछ कर रही है। पूछताछ में कई अन्य घटनाओं से पर्दा उठने की संभावनाएं जताई जा रही है। चोर गिरोह के सदस्य नशे के आदी हैं और अपने नशे की पूर्ति लिए चोरी की घटनाओं को अंजाम देते थे। चोर गिरोह का पर्दाफाश होने से पुलिस के साथ-साथ जिले के लोगों ने भी राहत की सांस ली है।

अभियान तेज करने के लिए पुलिस को दिए निर्देश

शुक्रवार को बड़े चोर गिरोह का पर्दाफाश होने के बाद पुलिस को जिले में बढ़ रही चोरी की वारदातों की जड़ का पता चल गया है। पकड़े गए चोर गिरोह के सदस्यों ने कबूल किया है कि वह नशे की पूर्ति के लिए चोरी की घटनाओं को अंजाम देते थे। चोरी की घटनाओं में नशेडिय़ों का हाथ होने की बात पुलिस प्रशासन के सामने उजागर होने के बाद पुलिस ने अब नशेडिय़ों तथा नशे के सौदागरों के खिलाफ अभियान चलाने का मन बनाया है। पुलिस अधीक्षक ने जिले के सभी एस.एच.ओ को अपने-अपने अधीनस्थ क्षेत्रों में नशामुक्ति अभियान चलाएं और नशे का कारोबार करने वाले लोगों की धरपकड़ तेज करें के स्पष्ट निर्देश दिए हैं, ताकि नशे के कारोबार पर अंकुश लगाकर चोरी की घटनाओं को भी रोका जा सके।
 पुलिस हिरास्त में मौजूद पकड़े गए चोर गिरोह के सदस्य। 

 चोर गिरोह और नशेडिय़ों के खिलाफ चलाया जाएगा अभियान

अन्य चोर गिरोहों को पकडऩे के लिए पुलिस द्वारा और भी तेजी से अभियान चलाया जाएगा। ऐसे शातिर बदमाशों को जल्द ही काबू किया जाएगा। चोरों को पकडऩे के साथ-साथ पुलिस नशे के खिलाफ भी अभियान चलाएगी। क्योंकि नशेड़ी किस्म के युवक ही चोरी की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। पकड़े गए चोर गिरोह के सदस्य स्मैक के आदी हैं और नशे की पूर्ति के लिए ही चोरी की घटनाओं को अंजाम देते थे।
बलवान सिंह राणा
पुलिस अधीक्षक, जींद


शुक्रवार, 28 जून 2013

खेती में पुरुषों से ज्यादा होता है महिलाओं का योगदान : ढांडा

विधिवत रूप से ललीतखेड़ा में हुआ महिला किसान खेत पाठशाला का शुभारंभ

जिला कृषि उपनिदेशक तथा जिला बागवानी अधिकारी सहित कई अधिकारियों ने की पाठशाला में शिरकत

नरेंद्र कुंडू  
जींद। इतिहास गवाह है कि खेती की खोज सबसे पहले महिलाओं ने की थी और आज भी खेती के कार्यों में पुरुषों से ज्यादा योगदान महिलाओं का है। एक सर्वे के अनुसार पुरुष खेती का सिर्फ 25 प्रतिशत कार्य ही करते हैं, जबकि बाकी बचा हुआ 75 प्रतिशत कार्य महिलाएं निपटाती हैं। यह बात बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने वीरवार को ललीतखेड़ा गांव में डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता महिला खेत पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर महिला किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर पाठशाला में मुख्यातिथि के तौर पर मौजूद डा. सुरेंद्र दलाल की धर्मपत्नी कुसुम दलाल ने महिला किसानों को राइटिंग पैड तथा पैन देकर पाठशाला का शुभारंभ किया। जिला कृषि उपनिदेशक डा. आर.पी. सिहाग, जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, ज्ञान-विज्ञान समिति से सोहनदास, निडाना स्कूल के मुख्याध्यापक धर्मबीर सिंह, ए.डी.ओ. डा. कमल सैनी, डा. नेमकुमार, डा. यशपाल भी विशेष रूप से मौजूद थे।
जिला कृषि उपनिदेशक डा. आर.पी. सिहाग तथा जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण ने कहा कि निस्वार्थ सेवा भाव से शुरू किया गया कोई भी कार्य अवश्य ही पूरा होता है। ललीतखेड़ा, निडाना तथा निडानी की महिलाओं ने कीटों को बचाने तथा थाली को जहरमुक्त बनाने की जो मुहिम शुरू की है, वह किसी व्यक्ति विशेष की मुहिम नहीं है। यह तो पूरे समाज की मुहिम है। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि कीटों की पहचान का काम सबसे आसान काम है। अगर किसान प्रतिदिन 1 घंटा भी अपनी फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन कर उनके क्रियाकलापों की जानकारी जुटाए तो कुछ ही दिन में वह कीटाचार्य बनकर फसल में प्रयोग होने वाले रासायनिक उर्वरकों के खर्च को कम कर सकता है। डा. सैनी ने कहा कि हमारे शास्त्रों में जीव हत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है लेकिन किसान भय व भ्रम के जाल में फंसकर निरंतर इस पाप में भागीदार बन रहे हैं। डा. सैनी ने कहा कि कीटों का प्रकृति के साथ बड़ा गहरा रिश्ता है। इसलिए हमें इस रिश्ते की अहमियत को समझते हुए प्रकृति और कीटों को बचाने के लिए कीट ज्ञान अर्जित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि निडाना, निडानी तथा ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं द्वारा पिछले 3 वर्षों से जो महिला
 महिला किसानों को राइटिंग पैड तथा पैन देकर पाठशाला का शुभारंभ करती मैडम कुसुम दलाल।
पाठशाला चलाई जा रही है, वह एक तरह से अनोखी मुहिम है। क्योंकि पूरे उत्तर भारत में खेती के क्षेत्र में कहीं पर भी महिलाओं की कोई पाठशाला नहीं चल रही है। उन्होंने कहा कि आज कीट ज्ञान क्रांति के जन्मदाता डा. सुरेंद्र दलाल हमारे बीच नहीं है। उनकी कमी उन्हें हमेशा खलती रहेगी। डा. सुरेंद्र दलाल के देहांत के बाद से इस मुहिम को आगे बढ़ाने की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर है। इसलिए महिलाओं को इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए तहदिल से अपना सहयोग देना होगा। महिला किसान मीनी मलिक ने बताया कि यहां की महिलाएं वर्ष 2010 से इस मुहिम से जुड़ी हुई हैं। 15 जून 2010 को निडाना के खेतों महिला किसान खेत पाठशाला की शुरूआत हुई थी। उन्होंने बताया कि कपास की फसल में सबसे पहले शाकाहारी कीट के रूप में चूरड़ा आता है और इसके बाद हरातेला तथा सफेद मक्खी दस्तक देती हैं। शाकाहारी कीटों के साथ ही मांसाहारी कीट भी फसल में आते हैं। सुदेश मलिक ने पाठशाला के महत्व के बारे में बताया तथा पाठशाला को आगे बढ़ाने के लिए 1100 रुपए की आर्थिक सहायता दी। कुसुम दलाल ने महिला किसानों को पाठशाला को आगे बढ़ाने के लिए उनकी तरफ से हर संभव सहायता देने का आह्वान किया। ज्ञान-विज्ञान समिति से आए सोहनदास तथा मुख्याध्याक धर्मबीर ने भी अपने विचार रखे। महिलाओं ने कीटों पर तैयार किए गए गीत 'कीडय़ां का कट रहया चाला ऐ मैने तेरी सूं, देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं' तथा 'मैं बीटल हूं मैं कीटल हूं, तुम समझो मेरी मैहता को' गीत से पाठशाला का समापन किया। 
 पाठशाला में महिला किसानों को सम्बोधित करते कृषि विभाग के अधिकारी तथा मौजूद महिला किसान।