बुधवार, 7 अगस्त 2013

प्रशासन की जिद बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रही भारी

प्रशासन के हिटलरशाही रवैये से अभिभावकों में रोष 

आयरन की गोलियां खाने से अब राजपुरा भैण गांव के स्कूल की छात्राओं की तबीयत बिगड़ी

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिला प्रशासनिक अधिकारियों की जिद बच्चों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है। प्रशासनिक अधिकारी बच्चों को आयरन की गोलियां खिलाने की जिद पर अड़े हुए हैं। प्रशासनिक अधिकारियों के दबाव के कारण आयरन की गोलियां लेने के बाद छात्राओं के बीमार होने के मामले सामने आ रहे हैं। आयरन की गोलियां खाने से छात्राओं के बीमार होने के मामलों के बाद भी प्रशासन कुछ सबक नहीं ले रहा है। प्रशासन के हिटलरशाही रवैये के कारण अभिभावकों में भी भारी रोष बना हुआ है। मंगलवार को जिले के गांव राजपुरा भैण के 
 सामान्य अस्पताल में उपचाराधीन राजपुरा गांव की छात्राएं।
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में आयरन की गोलियां लेने से 4 छात्राओं की तबीयत बिगडऩे का मामला प्रकाश में आया है। छात्राओं की हालत बिगड़ती देख स्कूल स्टाफ के सदस्यों ने चारों छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में भर्ती करवाया। यहां पर चारों छात्राओं का उपचार चल रहा है। 
छात्राओं में खून की कमी को दूर करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू किए गए विफस अभियान के तहत मंगलवार को राजपुरा भैण गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में छात्राओं को आयरन की गोलियां बांटी गई थी। स्कूल की आधी छुट्टी के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम की मौजूदगी में छात्राओं को गोलियां खिलाई गई। गोलियां लेने के कुछ देर बाद 4 छात्राओं को पेट दर्द की शिकायत शुरू हो गई। देखते ही देखते छात्राओं का दर्द बढ़ता चला गया। आयरन की गोलियां खाने से बीमार होने वाली छात्राओं में 7वीं कक्षा की आशा, 9वीं कक्षा की रीना, काजल, दिनेश थी। छात्राओं की हालत बिगड़ती देख स्कूल स्टाफ के सदस्यों के

15 दिन पहले नगूरां गांव के स्कूल में गोली लेने के अभी तक बीमार पड़ी छात्रा सामान्य अस्पताल में उपचाराधीन।
हाथ-पांव फूल गए। स्कूल स्टाफ के सदस्यों ने तुरंत चारों छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में दाखिल करवाया और मामले की सूचना छात्राओं के परिजनों को दी। अपनी बच्चियों की हालत बिगडऩे की सूचना पाकर परिजन भी अस्पताल में पहुंच गए। आयरन की गोलियां खाने के बाद चारों छात्राएं पेट दर्द से बुरी तरह से कराह रही थी। छात्राओं की हालत ऐसी थी कि वो मारे दर्द के कुछ बता भी नहीं पा रही थी। 

मना किया था कि नहीं खानी हैं गोलियां

आयरन की गोलियां खाने के बाद बीमार हुई छात्राओं के साथ आए परिजनों में स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के प्रति गहरा रोष था। महिला बबली और गुड्डी ने कहा कि उन्होंने तो अपनी लड़कियों को पहले ही मना किया था कि अगर स्कूल में उन्हें आयरन की गोलियां खिलाई जाएं तो वो गोलियां नहीं लें लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों के दबाव के कारण उनकी बच्चियों को जबरदस्ती गोलियां खिलाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि जिस दवा से मर्ज बढ़े ऐसी दवा फिर किस काम की। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारियों को कोसते हुए कहा कि उनके खुद के बच्चों के साथ ऐसा नहीं हो रहा है। इसलिए वो बच्चों को जबरदस्ती गोलियां खिला रहे हैं। अगर उनके बच्चों के साथ यह सब हो जाए तो तभी उन्हें एक मां का दर्द समझ में आएगा। 

नगूरां स्कूल की एक छात्रा की हालत अब भी गंभीर

लगभग 15 दिन पहले आयरन की गोलियां खाने से बीमार हुई नगूरां स्कूल की छात्राओं में से एक छात्रा की हालत अब भी गंभीर बनी हुई है। नगूरां निवासी बलवान ने कहा कि 22 जुलाई को नगूरां स्कूल में छात्राओं को आयरन की गोलियां खिलाई गई थी। उस दौरान उसकी भतीजी मोना ने भी गोली ली थी। बलवान ने बताया कि उसके बाद से ही उसकी भतीजी की हालत बिगड़ी हुई है। वह उसके उपचार के लिए रोहतक पी.जी.आई. तक धक्के खा चुके हैं लेकिन उसकी भतीजी की हालत में कोई सुधार नहीं है। उन्होंने कहा कि उसकी भतीजी को आयरन की गोली लिए 15 दिन का समय बीत चुका है लेकिन 15 दिन बाद भी आयरन की गोली का प्रभाव कम नहीं हुआ है। आज भी उनकी लड़की की हालत खराब है।

स्वास्थ्य विभाग की टीम की देखरेख में दी थी गोलियां

विद्यालय के प्राचार्य सुरेंद्र चहल ने कहा कि उनके स्कूल में गोलियां बांटने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंची थी। उन्होंने आधी छुट्टी होने से पहले ही सभी छात्राओं को आधी छुट्टी में खाना खाने के लिए बोल दिया था। ताकि सभी छात्राओं को गोलियां दी जा सकें। आधी छुट्टी के बाद सभी छात्राओं से खाना खाने के बारे में पूछा गया था और इसके बाद ही उन्हें गोलियां दी गई थी। स्वास्थ्य विभाग की टीम की देखरेख में पूरे नियमों के अनुसार सभी छात्राओं को गोलियां दी गई थी। गोलियां लेने के कुछ देर बाद 4 छात्राओं ने पेट दर्द की शिकायत की थी। चारों छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया है। 

मामले पर अधिकारियों ने साधी चुप्पी

इस बारे में जब स्वास्थ्य विभाग के जिला अधिकारियों का पक्ष जानने के लिए जब जिला स्कूल हैल्थ अधिकारी डा. अंशुल दलाल से संपर्क किया गया तो उन्होंने इस मामले पर चुप्पी साधते हुए कुछ भी बताने से मना कर दिया। डा. अंशुल दलाल ने कहा कि इस बारे में केवल सिविल सर्जन ही बता सकते हैं। इसलिए आप उनसे ही संपर्क करें। इस बारे में जब सिविल सर्जन डा. दयानंद के मोबाइल पर संपर्क किया गया तो सिविल सर्जन ने फोन ही रिसिव नहीं किया। सामान्य अस्पताल प्रशासन के अधिकारियों द्वारा इस तरह मामले में चुप्पी साधने से यह सवाल खड़ा होता है कि कहीं ना कहीं दाल में कुछ काला जरुर है। 



मुठभेड़ के बाद पुलिस ने दबोचे 4 बदमाश

बदमाशों के कब्जे से भारी मात्रा में असलाह बरामद

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जींद पुलिस के हाथ एक बड़ी सफलता लगी है। सोमवार रात को बदमाशों के साथ हुई मुठभेड़ के बाद पुलिस ने एक गिरोह के 4 बदमाशों को काबू कर उनके कब्जे से 4 पिस्टल, 1 राइफल, 3 बंदूकों सहित भारी मात्रा में कारतूस बरामद किए हैं। बदमाश जिले में किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे। पुलिस पूछताछ में चारों बदमाशों ने पहले भी 2 हत्याओं में संलिप्त होने की बात स्वीकारी है। चारों बदमाश यू.पी. से हथियारों की खरीद के सिलसिले के लिए जा रहे थे और यू.पी. से हथियारों की खरीद के बाद जींद में 3 लोगों की हत्या की योजना बनाई हुई थी। पुलिस चारों आरोपियों से पूछताछ कर रही है। पूछताछ में कई अन्य मामलों से पर्दा उठने की संभावना है।  
पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह राणा ने मंगलवार को पत्रकार वार्ता में मामले का खुलासा करते हुए बताया कि सी.आई.ए. पुलिस नरवाना क्षेत्र में गश्त कर रही थी। गश्त के दौरान पुलिस को गुप्त सुचना मिली कि कई 
 पत्रकारों से बातचीत करते पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह  राणा।
नौजवान लड़के भारी मात्रा में असला-अमुनेशन लेकर घूम रहे हैं, जो उचाना, जीन्द, नरवाना में कोई बड़ी वारदात करने की फिराक में हैं। सूचना के आधार पर सहायक उप-निरीक्षक जोगेंद्र सिंह ने अपनी टीम के साथ कैंची मोड़ डूमरखां कलां के पर नाकाबंदी कर वाहनों की जांच कर रही थी तो पुलिस को नरवाना की तरफ  से 2 बाइक आती दिखाई दी, जिस पर पुलिस पार्टी ने बाइकों को रुकवाने का प्रयास किया लेकिन बाइस सवार युवकों ने बाइकों को वापस मोड़ लिया। पुलिस पार्टी ने जब इनका पीछा किया तो बाइक सवार बदमाशों ने पुलिस पर फायरिंग कर दी। इसमें पुलिस के जवान बाल-बाल बच गए। उधर से पुलिस ने भी जवाबी फायरिंग कर बाइक सवार चारों बदमाशों को काबू कर लिया। पुलिस ने जब चारों बदमाशों की तलाशी ली तो उनके कब्जे से कारतूस से भरा एक 9 एम.एम. का पिस्तौल, 32 बोर के 2 पिस्तौल, 315 बोल का एक पिस्तौल बरामद हुआ। इसके अलावा उनके कब्जे से 315 बोर की मैगजीन वाली एक राइफल, 2 बंदूकें तथा 315 बोर की एक बंदूक और 45 कारतूस 
 बदमाशों के कब्जे से पकड़े गए हथियार।
बरामद हुए। पुलिस पूछताछ में बदमाशों की पहचान नवनीत पुत्र धर्मपाल निवासी राखी शाहपुर, कुलबीर उर्फ कुल्लू पुत्र धर्मबीर निवासी कोथ कलां, दिनेश उर्फ  दिन्ना पुत्र कृष्ण कुमार निवासी मोहनगढ़ छापड़ा, विजय उर्फ  पौली पुत्र फते सिंह निवासी कहसून के रुप में हुई।

पुलिस पूछताछ में कबूली हत्या में शामिल होने की बात 

 पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह राणा ने बताया कि पुलिस पूछताछ में चारों बदमाशों ने करीब एक साल पहले कोथ कलां गांव में घर में घुसकर मास्टर अमरजीत की गोलियां मारकर हत्या करने तथा मार्च 2013 में बडऩपुर गांव के नजदीक कार सवार प्रदीप उर्फ  काला पुत्र चन्द्र भान निवासी डोहाना खेड़ा की गोलियां मारकर हत्या करने की बात कबूली है। इसके अलावा फिलहाल यह चारों बदमाश जींद जिले में कई बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे और इसके लिए हथियारों की खरीद के लिए यू.पी. जा रहे थे। यू.पी. से हथियार लाने के लिए यह बदमाश जींद से गाड़ी छीनने की घटना को अंजाम देने के लिए जा रहे थे। इन बदमाशों द्वारा द्वारा यू.पी. से हथियारों की खरीद के बाद जींद में 3 लोगों की हत्या की घटना को अंजाम देने की योजना थी। उन्होंने बतताया कि यह चारों बदमाश विजय गैंग के हैं और विजय के इशारों पर काम करते हैं। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि चारों युवकों को पूछताछ के लिए हिरास्त में लिया गया है। पूछताछ के दौरान कई अन्य घटनाओं से भी पर्दा उठने की संभावना है। पुलिस अधीक्षक ने इस सफलता के लिए सिटी थाना प्रभारी कप्तान सिंह
 मुठभेड़ के बाद पकड़े गए बदमाश।
, दीपक कुमार तथा सी.आई.ए. टीम की पीठ थपथपाई। 




मंगलवार, 6 अगस्त 2013

...यहां चलती हैं देश की अनोखी पाठशालाएं

ककहर की बजाए दी जाती है कीट ज्ञान की तालीम

नरेंद्र कुंडू

जींद। आप ने ऐसी पाठशालाएं तो बहुत देखी होंगी, जहां चारदीवारी के अंदर बैठाकर देश के कर्णधारों को क, ख, ग की तालीम देकर उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ऐसी पाठशाला देखी या सुनी है जहां खुले आसमान के नीचे लगने वाली कक्षाओं में कीटों की तालीम देकर देश की आर्थिक रीड (यानि किसानों) को सुदृढ़ करने के प्रयास किए जा रहे हों। जी हां हम बात कर रहे हैं जींद जिले में चल रहे कीट साक्षरता केंद्रों की। यहां प्रति दिन अलग-अलग गांवों में किसान पाठशालाओं का आयोजन किया जाता है। कीट ज्ञान की मुहिम को जिले में फैलाने के लिए फिलहाल जींद जिले के आधा दर्जन गांवों में किसान खेत पाठशालाओं का आयोजन किया जा रहा है और इन आधा दर्जन पाठशालाओं में 2 दर्जन से भी ज्यादा गांवों के किसान कीट ज्ञान की तालीम लेने के लिए आते हैं। इस मुहिम को आगे बढ़ाने में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। कीट कमांडो किसानों द्वारा पाठशाला में आने वाले अनट्रेंड किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाकर जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित किया जाता है। इन पाठशालाओं में किसानों को मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलापों तथा फसल पर पडऩे वाले उनके प्रभाव और कीटों के जीवनचक्र के बारे में पूरी बारिकी से जानकारी दी जाती है। अपने आप में यह अजीब तरह की पाठशालाएं है। इन पाठशालाओं में एक पेड पर बोर्ड लगाकर किसानों को कीटों ज्ञान के साथ-साथ कीट बही खाता तैयार करने, फसल में लागत को कम कर अधिक उत्पादन लेने तथा अपने खेत की मेढ़ पर बैठकर अपने फैसले खुद लेने की शिक्षा दी जाती है। खुले आसमान के नीचे लगने वाली इन पाठशालाओं में किसान खेत की मेढ़ पर बैठकर एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव सांझा करते हैं। इन पाठशालाओं की सबसे खास बात यह है कि यहां न ही तो कोई अध्यापक है और न ही कोई स्टूडैंट है। यह पाठशालाएं किसानों द्वारा किसानों के लिए ही आयोजित की जाती हैं। यहां तो किसान खुद ही अध्यापक हैं और खुद ही स्टूडैंट हैं। इन पाठशालाओं में किसान स्वयं मेहनत करते हैं और कागजी ज्ञान की बजाए व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते हैं। इन पाठशालाओं में किसान फसल में मौजूद मांसाहारी व शाकाहारी कीटों पर खुलकर बहस करते हैं और फिर उस बहस से जो निष्कर्ष निकल कर सामने आता है किसान उस निष्कर्ष को ही अपना हथियार बनाकर फसल पर उसके प्रयोग करते हैं। इन पाठशालाओं में किसानों द्वारा कीटों पर शोध करने का मुख्य उद्देश्य फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को कम कर मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करना तथा बेवहज मारे जा रहे बेजुबान कीटों रक्षा कर नष्ट हो रही प्रकृति को बचना है। जींद जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई यह मुहिम देश में सबसे अनोखी मुहिम है। आज इसके चर्च प्रदेश ही नहीं बल्कि देश से बाहर भी चलने लगे हैं। इसका जीता-जागता प्रमाण यह है कि इंटरनैट पर ब्लाग के माध्यम से विदेशों के किसान भी इनके साथ जुड़ रहे हैं और यहां के किसानों द्वारा ब्लाग पर डाली जा रही जानकारी को पूरी रुचि के साथ पढ़ रहे हैं। देश के दूसरे प्रदेशों के किसान तथा कृषि अधिकारी भी इन किसानों से कीट ज्ञान के टिप्स लेने के लिए समय-समय पर इनके पास आते रहते हैं। यहां के किसानों के प्रयोगों को देखकर पंजाब के कई जिलों के किसान तो इन्हें अपना रोल मॉडल मानकर इनके पदचिह्नों पर चलते हुए जहरमुक्त खेती का अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।  

ग्रुप बनाकर करते हैं तैयारी


किसान खेत पाठशालाओं में आने वाले किसान किसी भी प्रयोग को उसके अंतिम चरण तक पहुंचाने के लिए पूरी लग्र व मेहनत से उस पर कार्य करते हैं तथा हर पहलु से उस प्रयोग पर बहस करते हैं। प्रयोग में किसी प्रकार की चूक न रहे इसके लिए यह किसान 5-5 किसानों के अलग-अलग ग्रुप बनाते हैं और फिर ग्रुप बनाकर खेत में अपना शोध शुरू करते हैं। यह किसान ग्रुप अनुसार फसल में घुसकर सुक्ष्मदर्शी लैंसों की सहायता से पौधों के पत्तों व टहनियों पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान कर उसके जीवन चक्र के बारे में बारिक से बारिक जानकारी जुटाते हैं। कई-कई घंटे कड़ी धूप में फसल में बैठकर कीटों पर कड़ा अध्यान करने के बाद फसल में किस-किस तरह के कीट हैं तथा उनकी तादाद का पूरा लेखा-जोखा कागज पर उतारा जाता है। इन किसानों को कीटों के बारे में इतनी ज्यादा जानकारी हो चुकी है कि ये कीट को देखते ही उसकी पूरी पीढ़ी का लेखाजोखा खेलकर रखदेते हैं। कीटों पर अगर चर्चा की जाए तो बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों के पास भी इनके सवालों का जवाब नहीं है।  

                                                                                       पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं किसान


डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता केंद्र के किसान पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं। खेत से हासिल किए गए अपने अनुभवों को ये किसान ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से अन्य लोगों के साथ सांझा करते हैं। अपना खेत अपनी पाठशाला, कीट साक्षरता केंद्र, महिला खेत पाठशाला, चौपटा चौपाल, निडाना गांव का गौरा, कृषि चौपाल, प्रभात कीट पाठशाला सहित इन किसानों ने इंटरनैट पर एक दर्जन के लगभग ब्लाग बनाए हुए हैं और इन ब्लागों पर ये किसान ठेठ हरियाणवी तथा हिंदी भाषा में अपने विचार प्रकट करते हैं। इन किसानों द्वारा संचालित इन ब्लागों की सबसे खास बात यह है कि ये ब्लॉग हरियाणा ही नहीं अपितू दूसरे देशों में भी पढ़े जाते हैं। दूसरे प्रदेशों के किसान ब्लाग व फेसबुक के माध्यम से इन किसानों से अपने सवाल-जबाव करते हैं और अपनी समस्याएं इन किसानों के समक्ष रखकर उनका समाधान भी पूछते हैं। 

कीट वैज्ञानिक भी लगा चुके हैं इनके अनोखे शोध पर सहमती की मोहर

कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा वर्ष 2008 में निडाना गांव के खेतों से शुरू की गई कीट ज्ञान क्रांति की लौ आज इतनी तेजी से देश में फैलने लगी है कि प्रदेश से बाहर भी इनके चर्चे शुरू हो चुके हैं। इन किसानों की सबसे बड़ी सफलता यह है कि जो कीट वैज्ञानिक आज से पहले कीटों को नियंत्रित करने के लिए किसानों को कीटनाशकों का प्रयोग करने का सुझाव देते थे आज वही वैज्ञानिक इन किसानों के बीच पहुंचकर इनके अनोखे शोध की सराहना कर कीटों को नियंत्रित करने की नहीं, बल्कि कीटों को पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाने की नसीहत देते हैं। 



रविवार, 4 अगस्त 2013

किसानों ने तोड़ी मरोडिय़े की मरोड़

किसान कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए बनाएं डाक्यूमैंट्री  : डा. सांगवान

नरेंद्र कुंडू
जींद। शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता किसान खेत पाठशाला में किसानों ने कृषि विशेषज्ञों के साथ मरोडिय़े की बीमारी पर गहन मंथन किया। इस अवसर पर कृषि विश्वविद्यालय हिसार से काटन विभाग के मुखिया डा. आर.एस. सांगवान, काटन वैज्ञानिक डा. उमेंद्र सांगवान तथा कीट वैज्ञानिक डा. कृष्णा भी भाग लेने के लिए पहुंचे थे। कृषि विश्वविद्यालय हिसार से आए डा. आर.एस. सांगवान ने कहा कि किसानों ने कीटों पर जो शोध किया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। किसानों को इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटों पर एक डाक्यूमैंट्री बनानी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक किसानों को इस मुहिम से जोड़ा जा सके।
किसानों के साथ कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते कृषि अधिकारी।
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि मरोडिया एक लाइलाज बीमारी है। यह जैमनी वायरस है और इस वायरस को खत्म करने के लिए आज तक कोई भी दवाई नहीं बनी है। क्योंकि यह वायरस न तो जीवित है और न ही मृत। अगर  किसी वस्तु या पौधे में इसका प्रवेश करवा दिया जाता है तो यह जीवित हो जाता है और अगर इसे बाहर निकाल दिया जाता है तो यह मृत अवस्था में चला जाता है। इस लिए इसका इलाज संभव नहीं है। मरोडिये के लक्षण दिखाने में पौधे को 30-40 दिन लग जाते हैं। डा. सैनी ने कहा कि इस वायर को फैलाने में सफेद मक्खी एक वाहक का काम करती है। सफेद मक्खी जब वायरस युक्त पौधे का रस चूसकर दूसरे पौधे पर जाकर रस चूसती है तो सफेद मक्खी के डंक के माध्यम से यह स्वस्थ पौधे में प्रेवश कर जाता है। अगर खेत में एक सफेद मक्खी भी है तो वह भी पूरे खेत में इस वायरस को फैला सकती है। इसलिए किसानों को कीटनाशकों में इसका विकल्प ढूंढऩे की बजाए पौधे की ताकत को बनाए रखने पर जोर देना चाहिए। क्योंकि यह वायरस पौधे से कार्बोहाइड्रेट को कम करता है। डा. सैनी ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो किसानों को एक एकड़ में लगाए गए कपास के पौधे को ताकत देने के लिए 100 लीटर पानी में आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो डी.ए.पी. तथा अढ़ाई किलो यूरिया का घोल तैयार कर उसका छिड़काव करना चाहिए। मरोडिया के कारण पौधों में जो कार्बोहाइड्रेट की कमी होगी, वह कमी यह घोल पूरी करता रहेगा। डा. सैनी ने कहा कि कीट साक्षरता की मुहिम से जुड़े किसानों ने इसी तहर सीमित मात्रा में उर्वरकों का यह घोल तैयार कर इस मरोडिये की मरोड़ निकाली है।
एच.ए.यू.  हिसार से आए डा. आर.एस. सांगवान को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।

किसान कीड़ों के साथ न करें छेडख़ानी 

किसान खेत पाठशाला में भाग लेने आए मास्टर ट्रेनर किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू, रामदेवा, बलवान, जोगेंद्र अलेवा, जयभगवान ने कहा कि किसानों को कीटों को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीटों की संख्या कम होने की बजाए बढ़ती है। मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा, राजपुरा भैण, ईंटल कलां, ईगराह आदि गांवों के किसान जो पिछले कई वर्षों से इस मुहिम के साथ जुड़े हुए हैं, उन्होंने अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष भी अपनी फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया है और उनके खेतों में सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े तथा अन्य शाकाहारी कीटों की संख्या कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित किए गए आॢथक कगार से अभी भी काफी दूर है। उन्होंने किसानों द्वारा की गई कीटों की साप्ताहिक कीट समीक्षा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सफेद मक्खी की संख्या 1.06, हरे तेले की 1.2 और चूरड़े की संख्या 1.4 तक पहुंची है, जो की नुक्सान के सत्र से कोसों दूर है।


बुधवार, 31 जुलाई 2013

...फिर सुलगने लगी जाट आरक्षण की चिंगारी


केंद्र में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई के मुढ़ में हैं खाप चौधरी
4 अगस्त को दनौला कलां के बिनैन खाप के चबूतरे से होगा आंदोलन का शंखनाद

नरेंद्र कुंडू
जींद। हरियाणा में जाट आरक्षण की चिंगारी फिर से सुलगने लगी है। केंद्र में आरक्षण की मांग को लेकर हरियाणा के जाट अब सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई के मुढ़ में हैं। आंदोलन की लड़ाई के लिए खाप के चौधरी रणनीति तैयार करने में लगे हुए हैं। आंदोलन के शंखनाद के लिए खाप चौधरियों द्वारा मंच तैयार किया जा रहा है। पिछले वर्ष की तर्ज पर इस बार भी दनौदा कलां गांव में स्थित बिनैन खाप के उसी चबूतरे से आंदोलन का आगाज किया जाएगा। इसी चबूतरे से 13 सितंबर 2012 को हरियाणा में जाट आरक्षण की नींव रखी गई थी। पंचायत में भाग लेने के लिए बिनैन खाप की तरफ से संदेश भेजने का काम शुरू किया जा चुका है। इस बार खाप चौधरियों के आंदोलन शुरू करने का लक्ष्य केंद्र में जाटों को आरक्षण दिलवाना है।
केंद्र में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए खाप प्रतिनिधियों ने फिर से बगावत के सुर छेड़ दिए हैं। खाप चौधरियों द्वारा आंदोलन को सफल बनाने के लिए रणनीति तैयार की जा रही है। इस बार खाप प्रतिनिधियों द्वारा सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई की रणनीति तैयार की जा रही है। आंदोलन को सफल बनाने के लिए खाप चौधरियों का पूरा फोक्स सरकार पर अधिक से अधिक दबाव बनाने का है। रणनीति को अंतिम रुप देने के लिए  4 अगस्त को दनौदा कलां गांव के बिनैन खाप के चबूतरे पर एक पंचायत का आयोजन किया जाएगा। पिछले वर्ष इसी चबूतरे से हरियाणा में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए शुरू किए गए आंदोलन की नींव रखी गई थी। 4 अगस्त को होने वाली पंचायत में जाट चौधरी आंदोलन का शंखनाद करेंगे। केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए इस बार पूरे देश के जाटों को दिल्ली में एकत्रित करने की योजना तैयार की गई है। दिल्ली में होने वाले आंदोलन में सबसे ज्यादा अहम भूमिका हरियाणा के जाटों की होगी। क्योंकि जाट की सबसे अधिक संख्या हरियाणा में है। दनौदा कलां के चबूतरे पर होने वाली पंचायत में खाप चौधरी आंदोलन के लिए जाटों की नब्ज टटोलने का काम करेंगे।

पंचायत के लिए सभी खापों को भेजा गया है निमंत्रण

सर्वजाट सर्वखाप हरियाणा के प्रधान दादा नफे सिंह नैन ने बताया कि 4 अगस्त को दनौदा कलां के बिनैन खाप के चबूतरे पर होने वाली पंचायत के लिए सभी खापों को निमंत्रण भेज दिया गया है। पंचायत में जो फैसला किया जाएगा उसको दिल्ली में 13 अगस्त को होने वाली जाटों की महापंचायत में रख दिया जाएगा।

नौकरियों में आरक्षण लेना ही उनका उद्देश्य

सर्वजाट सर्वखाप हरियाणा के प्रवक्ता सूबे सिंह सैमाण ने कहा कि केंद्र की नौकरियों में जाट आरक्षण को लेना ही खाप पंचायतों का लक्ष्य है। आरक्षण के लिए इस बार वे आर-पार की लड़ाई के मुढ़ में हैं। इसके लिए 4 अगस्त को बिनैन खाप के चबूतरे पर पंचायत का आयोजन कर एक ठोस नीति बनाई जाएगी। इसके बाद 13 अगस्त को दिल्ली में पूरे देश के जाटों की महापंचायत का आयोजन कर आंदोलन शुरू किया जाएगा।

शिव भक्तों की आस्था पर भारी पड़ी आपदा

कांवडिय़ों पर नजर आया उत्तराखंड आपदा का असर
उत्तराखंड आपदा के कारण इस बार कांवडिय़ों की संख्या में आई कमी

नरेंद्र कुंडू
जींद। उत्तराखंड में आई आपदा शिव भक्तों की आस्था पर भारी पड़ रही है। आपदा का प्रभाव इस बार शिव भक्तों पर साफ नजर आ रहा है। इसके चलते इस बार पिछले वर्षों की भांति कांवडिय़ों की संख्या में काफी कमी नजर आ रही है। अन्य वर्षों के मुकाबले इस बार मात्र 10-15 प्रतिशत कांवडिय़े ही हरिद्वार व गौमुख से कांवड़ लेकर पहुंच रहे हैं। कांवडिय़ों की कम संख्या के कारण ही इस बार कांवडिय़ों की सेवा के लिए लगाए जा रहे शिविर भी खाली-खाली नजर आ रहे हैं।
सावन का महीना आते ही हरिद्वार और गौमुख से शिव की कांवड़ लाने के लिए शिव भक्तों में एक तरह से होड़ सी लग जाती थी। अकेले हरियाणा से लाखों की संख्या में श्रद्धालु कांवड़ लाने के लिए हरिद्वार का रुख करते थे। शिव भक्त अपने आराध्य देव भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए गौमुख तथा हरिद्वार से कांवड़ में गंगाजल भरकर लेकर आते थे। शिव रात्रि के नजदीक आते-आते सड़कों पर हर तरफ कांवडिय़ों का हुजूम नजर आने लगता था और शिव के जयकारों के कारण पूरा माहौल शिवमय हो जाता था लेकिन इस बार उत्तराखंड में भीष्ण त्रास्ती आने तथा त्रास्ती में हजारों लोगों की मौत ने शिव भक्तों की आस्था पर गहरा प्रहार किया है। आपदा के कारण उत्तराखंड में हुए विनाश की कहानी सुनकर इस बार हरिद्वार की तरफ शिव भक्तों के रुझान में भी काफी कमी आई है। इसी का परिणाम है कि अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष काफी कम संख्या में शिव भक्त हरिद्वार व गौमुख से कांवड़ लेकर यहां पहुंच रहे हैं। शिव रात्रि नजदीक आ चुकी है लेकिन सड़कों पर शिव भक्तों की तादात बहुत कम नजर आ रही है। अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष महज 10-15 प्रतिशत श्रद्धालु ही कांवड़ लेने हरिद्वार पहुंचे हैं। शिव भक्तों की विमुखता के कारण इस बार शिव भक्तों के ठहराव के लिए बनाए गए शिविर भी खाली-खाली नजर आ रहे हैं।
 हरिद्वारा से कांवड़ लेकर पहुंचे शिव भक्त। 


जींद-सफीदों मार्ग पर पगडिय़ों उगी झाडिय़ां।

शिव भक्तों की सुरक्षा के लिए होंगे पुख्ता इंतजाम  

इस बार कांवड़ लेकर पहुंचने वाले शिव भक्तों की सुरक्षा के लिए जिला पुलिस द्वारा पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे। कांवडिय़ों की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए इस बार पुलिस अधीक्षक बलवान ङ्क्षसह राणा ने सभी शिविरों में 2-2 पुलिस कॢमयों की ड्यूटी लगाने के अलावा 10 राइडर तथा 3 पी.सी.आर. की ड्यूटी लगाई है। एस.पी. ने सभी पुलिस कॢमयों को पूरी ईमानदारी व निष्ठा से अपनी ड्यूटी निभाने के  सख्त निर्देश दिए हैं।

कांवडिय़ों के चलने के लिए नहीं मिल रहा रास्ता

एक तरफ तो सरकार जींद-सफीदों स्टेट हाइवे को फोरलेन करने की योजना तैयार कर रही है लेकिन दूसरी तरफ पी.डब्ल्य.डी. विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते इस मार्ग पर पैदल यात्रियों के चलने के लिए पगडंडी तक की व्यवस्था नहीं है। जींद-सफीदों मार्ग पर पैदल यात्रियों के चलने के लिए जो पगडंडी छोड़ी गई है, उस पगडंडी पर कांटेदार झाडियों ने कब्जा जमा लिया है लेकिन पी.डब्ल्यू.डी. विभाग इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है। ऊपर से सावन का महीना शुरू होने के कारण कांवडिय़ों का आवागमन भी शुरू हो गया है लेकिन सड़क पर पैदल यात्रियों के चलने के लिए पगडंडिय़ां नहीं होने के कारण कांवडिय़ों को मजबूरीवश सड़क पर चलना पड़ रहा है। इससे यहां वाहन चालकों को तो परेशानियों का सामना करना पड़ ही रहा है साथ-साथ यहां दुर्घटना होने का अंदेशा भी बना हुआ है। जबकि नियमों के अनुसार सड़क के दोनों तरफ 5-5 फुट की पगड़ंडी होनी जरुरी है लेकिन पी.डब्ल्य.डी. विभाग का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है।

तलोड़ाखेड़ी गांव के पास है बुरा हाल

जींद-सफीदों सड़क पर वैसे तो हर जगह ही कांटेदार झाडिय़ों का अतिक्रमण बना हुआ है लेकिन तलोड़ाखेड़ी गांव के पास सबसे बुरा हाल है। यहां तीव्र मोड़ होने तथा मोड पर कांटेदार झाडिय़ों का जाल फैल जाने के कारण सामने से आ रहे वाहन का पता नहीं चलता है। इससे यहां सबसे ज्यादा दुर्घटना होने का अंदेशा बना हुआ है लेकिन पी.डब्ल्य.डी. विभाग कुंभकर्णी नींद सोया हुआ है। विभाग के अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी से कोई सरोकार नहीं है।



मंगलवार, 30 जुलाई 2013

'एक दिन के लिए जेल गई कीटों की मास्टरनियां'

जिला कारागार में लगी खेती की पाठशाला, कैदियों व बंदियों को पढ़ाया कीट ज्ञान का पाठ

कारागार में देश की पहली महिला किसान खेत पाठशाला के आयोजन से जींद कारागार के इतिहास में जुड़ा एक नया अध्याय

नरेंद्र कुंडू
जींद। कीट ज्ञान में माहरत हासिल कर चुकी ललीतखेड़ा, निडाना व निडानी गांव की कीटों की मास्टरनियां एक दिन के लिए जेल में गई। कीटों की मास्टरनियों ने जिला कारागार में एक दिन के लिए किसान खेत पाठशाला लगाई और यहां कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान क पाठ पढ़ाया। कारागार के अंदर डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला के आयोजन तथा फसलों में मौजूद मांसाहारी और शाकाहारी कीटों के बारे में इतनी बारिकी से जानकारी हासिल कर बंदी भी काफी खुश थे। वहीं जींद की जिला कारागार में देश की पहली महिला किसान खेत पाठशाला के आयोजन से जींद की जिला कारागार के इतिहास में भी एक नया अध्याय जुड़ गया। महिला किसान खेत पाठशाला का शुभारंभ जेल अधीक्षक डा. हरीश कुमार रंगा ने किया। इस अवसर पर कृषि विभाग के उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, ए.डी.ओ. कमल सैनी, डा. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, ढुल खाप के प्रतिनिधि इंद्र सिंह ढुल, दलीप सिंह चहल, राजबीर कटारिया, अक्षत दलाल जेल के उप-अधीक्षक सेवा सिंह व नरेश गोयल भी विशेष रूप से मोजूद थे।
महिला किसान अंग्रेजो ने बताया कि आज फसलों पर अंधाधुंध कीटनाशकों के इस्तेमाल से हमारा खान-पान जहरीला हो रहा है। फसलों पर कीटनाशकों का अधिक प्रयोग होने से कीट तो अपने वंश को बचाने के लिए अपनी शारीरिक शक्ति को बढ़ा रहे हैं लेकिन मनुष्य के शरीर में हर रोज जहरयुक्त खाद्य पदार्थों जाने के कारण मनुष्य शारीरिक रूप से कमजोर हो रहा है। अंग्रेजो ने बताया कि वह वर्ष 2010 से इस पाठशाला के साथ जुड़ी हुई हैं और जब से उन्हें कीटों की पहचान हुई है तब से उन्होंने फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल पूर्ण रूप से बंद कर दिया है और पिछले इन 3 सालों में उसने बिना कीटनाशकों का इस्तेमाल किए अच्छा उत्पादन लिया है। सविता ने बताया कि किसान खेत पाठशालाओं के दौरान वह 206 किस्म के मांसाहारी और शाकाहारी कीटों की पहचान कर चुके हैं। इनमें 43 किस्म के कीट शाकाहारी तथा 163 किस्म के कीट मांसाहारी हैं। मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा होने के कारण मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खुद ही कंट्रोल कर लेते हैं। इसलिए कीटों को मारने की नहीं बल्कि उनको समझने तथा परखने की जरुरत है।  कीटाचार्य मनबीर रेढ़ू ने बताया कि आज देश में कीटनाशकों का 8 से 10 हजार करोड़ रुपए का कारोबार होता है और यह कारोबार भय व भ्रम के बलबूते पर चलाया जाता है। पहले तो पेस्टीसाइड कंपनियां किसानों को भिन्न-भिन्न किस्म के कीट दिखाकर किसानों को भ्रमित करती हैं और उसके बाद उन कीटों के नुक्सान का झूठा प्रचार कर किसानों को भयभीत किया जाता है।

90 प्रतिशत मां का दूध भी हो चुका है जहर युक्त 

जेल अधीक्षक डा. हरीश कुमार रंगा ने कहा कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है, लेकिन कीटों के बिना खेती असंभव है। उन्होंने कहा कि खेती में अंधाधुंध  कीटनाशकों एवं खाद के प्रयोग से खाने की थाली पूरी तरह से जहर युक्त हो गई है। इसके कारण आदमी की औसतन आयु कम हो रही है। उन्होंने एक पत्रिका में छपे एक लेख का हवाला देते हुए कहा कि आज मां का दूध भी 90 प्रतिशत जहर युक्त हो चुका है। इस मुख्य कारण फसलों के उत्पादन बढ़ाने के लिए अत्याधिक कीटनाशकों का प्रयोग होना है। रंगा ने कीटज्ञान का अभियान चलाने वाले स्व. डा. सुरेन्द्र दलाल की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह हमारे जिले का सौभाग्य है कि हमें ऐसे व्यक्ति की प्रेरणा मिली, जिससे भविष्य में पूरी दुनिया अनुसरण करेगी। डा. रंगा ने कहा कि आज तक पूरे देश में कहीं भी इस तरह महिलाओं ने बंदियों को जहर मुक्त खेती के टिप्स नहीं दिए।

76 लाख लोग कैंसर के कारण बनते हैं काल का ग्रास 

जेल अधीक्षक को स्मृति चिहन भेंट करती मैडम कुसुम दलाल 
कीटाचार्य रणबीर मलिक ने बताया कि आज कैंसर ने एक गंभीर चुनौति का रूप धारण कर लिया है। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो हर वर्ष लगभग 6 करोड़ लोगों की मौत होती है और इनमें से अकेले 76 लाख लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बनते हैं। इसके अलावा 2 लाख 20 हजार लोग प्रति वर्ष पेस्टीसाइड प्वाइजनिग के कारण यानि जहर के सेवन से मरते हैं। अगर इसी संगठन की रिपोर्ट पर गौर फरमाया जाए तो कैंसर जैसी बीमारी का फैलने का मुख्य कारण सामने आता है किसानों द्वारा खाद्य पदार्थो यानि फसलों में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग करना। डब्ल्यू.एच.ओ. की एक रिपोर्ट के अनुसार खेतों में कीटनाशकों के स्प्रे नहीं करने वाले किसानों के मुकाबले कीटनाशकों के स्प्रे करने वाले किसानों में कैंसर होने की संभावना संख्यकीय तौर पर ज्यादा है। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपए खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं। फसलों में अत्याधिक पेस्टीसाइड के इस्तेमाल से आज दूध, सब्जी, पानी तथा हर प्रकार के खाद्य पदार्थों पर जहर का प्रभाव बढ़ रहा है। इस प्रकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से हर रोज काफी मात्रा में जहर हमारे शरीर में प्रवेश कर हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर रहा है। यू.एस.ए. की पर्यावरण संरक्षण एजैंसी के अनुसार दुनिया में 268 किस्म के पेस्टीसाइड रजिस्टर्ड हैं। इनमें से 68 किस्म के ऐसे फंजीनाशक, फफुंदनाशक, खरपतवार नाशक और कीटनाशक हैं जो कैंसर कारक सिद्ध हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी भारत में इन पेस्टीसाइडों का धड़ले से प्रयोग हो रहा है।

बंदियों को सुनाए कीटों पर आधारित गीत

जिला कारागार में कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाने पहुंची कीटों की मास्टरनियों ने कैदियों व बंदियों को कीटों के बारे में जानकारी देने के साथ-साथ उनको प्रेरित करने के लिए कीटों पर आधारित गीत भी सुनाए। कार्यक्रम का शुभारंभ महिलाओं ने 'कीडय़ां का कट रहया चाला ऐ मैने तेरी सूं तथा हे बीटल म्हारी मदद करो हामनै थारा एक सहारा है' गीत सुनाकर की और बंदियों व कैदियों को जहरमुक्त खेती का संदेश दिया।






मंगलवार, 23 जुलाई 2013

अब कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी कीटों की मास्टरनियां

25 जुलाई को जिला कारागार में लगाई जाएगी किसान खेत पाठशाला

नरेंद्र कुंडू
जींद। महिला किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाली निडाना व ललीतखेड़ा की कीटों की मास्टरनियां अब जिला कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को भी कीट ज्ञान की तालीम देंगी। इसके लिए जिला कारागार में 25 जुलाई को किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। इस पाठशाला में निडाना, निडानी तथा ललीतखेड़ा गांव की कीटाचार्या महिलाएं जेल में बंद कैदियों व बंदियों को जहरमुक्त खेती के टिप्स देंगी। जेल में इस कार्यक्रम के आयोजन का मुख्य उद्देश्य कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान के माध्यम से खेती के गुर सिखाकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩा है, ताकि जेल में बंद कैदियों व बंदियों को सही दिशा देकर गलत संगत से निकाला जा सके और जेल से छुटने के बाद वे कीट ज्ञान के बूते खेती को व्यवसाय के तौर पर अपनाकर अपने भविष्य को संवार सकें। 
कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा निडाना गांव के खेतों से शुरू की गई कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम अब जिले में तेजी से फैलने लगी है। कीट कमांडों किसानों के स्तही ज्ञान को देखते हुए अब कृषि विभाग के साथ-साथ जिला प्रशासन के अन्य अधिकारी भी इस मुहिम में अपनी भागीदारी दर्ज करवाने लगे हैं। इसी कड़ी के तहत अब जिला कारागार प्रशासन ने कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को भी कीट ज्ञान की शिक्षा दिलवाने के लिए योजना तैयार की है। जिला कारागार प्रशासन द्वारा 25 जुलाई को कारागार में किसान खेत पाठशाला का आयोजन करवाया जा रहा है। कीट ज्ञान में महारत हासिल कर चुकी निडाना, निडानी व ललीतखेड़ा गांव की वीरांगनाएं इस पाठशाला में कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी। महिला किसान सविता, मीनी, अंग्रेजो, बिमला, गीता, कमलेश, राजवंती ने बताया कि आज किसान अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे हमारा खान-पान तो जहरीला हो ही रहा है, साथ-साथ हमारा वातावरण भी दूषित हो रहा है। जबकि बिना कीटनाशकों के भी खेती संभव है और वह पिछले कई वर्षों से कीट ज्ञान के बूते बिना कीटनाशकों के खेती कर अच्छा उत्पादन ले रही हैं। जेल प्रशासन द्वारा कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान सिखाने के लिए जिस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। जेल प्रशासन द्वारा इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बंदियों व कैदियों को बुरी संगत से निकालकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩा है, ताकि कारागार से निकलने के बाद बंदी व कैदी खेती को व्यवसाय के तौर पर अपनाकर अपने भविष्य को उज्जवल बना सकें। 
जिला कारागार का फोटो, जहां कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।

कैदियों व बंदियों को मिलेगी नई दिशा

जिला कारागार में बंद ज्यादातर बंदी व कैदी ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। ज्यादातर बंदी व कैदी फसल की बिजाई व कटाई के दौरान छुट्टियां लेकर घर जाते हैं। इसके अलावा कारागार में भी लगभग 32 एकड़ में खेती की जाती है। खेती कार्य में कैदी भी सहयोग करते हैं। अगर बंदियों व कैदियों को कीटों के बारे में जानकारी होगी तो इससे फसलों में उर्वरकों पर बढ़ते खर्च में कमी आएगी तथा थाली में बढ़ते जहर के स्तर को भी कम किया जा सकेगा। इसके अलावा एक सामाजिक मुहिम से जुडऩे के कारण कैदियों व बंदियों की मानसिकता भी सुधरेगी और इन्हें एक नई दिशा मिलेगी। 
डा. हरीश रंगा, सुपरीडैंट
जिला कारागार, जींद


रविवार, 21 जुलाई 2013

'कीटाचार्य किसानों ने कृषि विकास अधिकारियों को पढ़ाया कीट ज्ञान का पाठ'

प्रशिक्षण शिविर के दौरान कीट शोध पर जानकारी लेने किसान पाठशाला में पहुंचे थे अधिकारी

नरेंद्र कुंडू
जींद। कीटाचार्य किसानों ने कृषि विभाग के कृषि विकास अधिकारियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाया तथा मांसाहारी और शाकाहारी कीटों की पहचान करवाकर उनके क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। जींद के किसान प्रशिक्षण केंद्र में 21 दिवसीय रिफरेश ट्रेनिंग कैंप में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे कृषि विकास अधिकारियों का 30 सदस्यीय दल शनिवार को ट्रेनिंग इंचार्ज डा. बलजीत लाठर के नेतृत्व में राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला में एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण पर पहुंचा था। यहां पर कृषि विकास अधिकारियों ने कीटाचार्य किसानों के साथ कपास की फसल का अवलोकन कर पौधों तथा कीटों के आपसी सम्बंध पर गहनता से विचार-विमर्श किया। पाठशाला के मुख्यातिथि रहे धर्मपाल उर्फ मानू लौहान ने किसानों की जहरमुक्त खेती की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए 11 हजार रुपए की राशि भेंट की। इस अवसर पर डा. सुभाषचंद्र, डा. राजेश लाठर, डा. हरिभगवान, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा तथा सुनील कंडेला, अक्षत दलाल भी विशेष तौर पर मौजूद  थे। 
पाठशाला के दौरान कृषि विकास अधिकारियों को कीटों की जानकारी देते डॉ कमल सैनी 
कीटाचार्य मनबीर रेढ़ू, रणबीर मलिक, बलवान, रमेश, रामदेवा, सुरेश की टीम ने कृषि विकास अधिकारियों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि पौधों और कीटों के बीच एक गहरा रिश्ता है लेकिन किसान अज्ञानता के कारण इस रिश्ते को समझ नहीं पा रहा है। अगर किसान खेती को फायदे का सौदा बनाना चाहते हैं तो उन्हें खेती पर अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ते खर्च को कम करना होगा। यह तभी संभव हो सकता है, जब किसानों के पास अपना खुद का ज्ञान होगा। उन्होंने कहा कि किसान का सही मार्गदर्शन करने में एक कृषि विकास अधिकारी अहम भूमिका निभा सकता है। इसलिए कृषि विकास अधिकारियों को चाहिए कि वे किताबी ज्ञान के साथ-साथ धरातल से पैदा किए गए व्यवहारिक ज्ञान को हासिल कर उसे अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाएं, ताकि किसानों में जागरूकता पैदा की जा सके। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि कीट 2 प्रकार के होते हैं। एक शाकाहारी तथा दूसरे मांसाहारी। फसल में सबसे पहले शाकाहारी कीट आते हैं और इसके बाद शाकाहारी कीटों को कंट्रोल करने के लिए मांसाहारी कीट आते हैं। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने कृषि विभाग अधिकारियों को फसल का अवलोकन करवाया। अवलोकन के दौरान बारिश के बाद जमीन के अंदर से पौधों पर आए कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि बरसात में जमीन में पानी भर जाने के कारण जमीनी कीड़े हंडेर बीटल, गुचको, घुमंतु बीटल इत्यादि अपनी सुरक्षा के लिए पौधों पर आ जाते हैं। ऐसी अवस्था में इनकी भूख बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और इन्हें जिस भी तरह का कीट मिल जाए ये उसी को खा कर उसका काम तमाम कर देते हैं। उन्होंने बताया कि जमीनी कीड़े पौधों पर आने के कारण कपास की फसल में मौजूद रस चूसक कीटों की संख्या काफी कम हो गई है। फसल के अवलोकन के बाद कीटाचार्य किसान तथा कृषि विकास अधिकारियों के बीच कीटों के क्रियाकलापों और फसलों पर पडऩे वाले उनके प्रभाव पर काफी देर तक चर्चा भी की।
 बरसात के बाद जमीन में पानी भर जाने के बाद पौधों पर आए मांसाहारी बीटल। 

साप्ताहिक कीट समीक्षा

गांव का नाम सफेद मक्खी हरा तेला चूरड़ा
राजपुरा                    1.7 1.9           2.8
ललीतखेड़ा                1.8 1.3             5.7
रधाना                     1.4 0.8           6.4
ईगराह                     1.4 1.4           4.6
कुल औसत              1.5 1.35          4.8
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि उपरोक्त आंकड़ा यहां के किसानों द्वारा अलग-अलग गांव में चल रही किसान खेत पाठशालाओं से एकत्रित किया गया है। सैनी ने बताया कि आंकड़े की कुल औसत को देखते हुए अभी तक कोई भी रस चूसक कीट कपास की फसल में नुक्सान पहुंचाने के आॢथक सत्र को छू भी नहीं पाया है। 
पाठशाला के दौरान कृषि विकास अधिकारियों को कीटों की जानकारी देते किसान।



गुरुवार, 18 जुलाई 2013

मानसून के इंतजार में मुरझाए किसानों के चेहरे

मानसून की दगाबाजी से फसलों पर छाए संकट के बादल

नरेंद्र कुंडू
जींद। धान की रोपाई का सीजन अंतिम चरण में है लेकिन अभी तक मानसून नहीं आने के कारण किसानों की फसलों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। बढ़ते तापमान के कारण सूख रही धान की फसलों को देखकर धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरें खींचने लगी हैं। ऐन वक्त पर मानसून के धोखा दे जाने के कारण किसानों के चेहरों पर मायूसी छा गई है। समय पर बारिश नहीं होने के कारण जिले में धान की रोपाई का कार्य भी प्रभावित हो रहा है। धीमी गति से चल रहे धान की रोपाई के कार्य के कारण कृषि विभाग को भी अपने टारगेट तक पहुंचने में पसीना आ रहा है। इस बार धान की रोपाई के लिए कृषि विभाग के पास 99 हजार हैक्टेयर का टारगेट है लेकिन समय पर बारिश नहीं होने के कारण अभी तक जिले में सिर्फ 75 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा धान की रोपाई के लिए उपयुक्त समय 15 जुलाई तक माना जाता है। 
जिले में 15 जून से धान की रोपाई का कार्य शुरू हो जाता है और 15 जुलाई तक रोपाई का कार्य जोरों पर चलता है। कृषि विभाग के अधिकारी भी धान की रोपाई के लिए इस समय को सबसे उपयुक्त मानते हैं। 15 जून के बाद से ही जिले के किसान धान की रोपाई के कार्य में लगे हुए हैं लेकिन धान की रोपाई के दौरान बारिश नहीं होने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें पडऩे लगी हैं। बिना बारिश के मुरझा रही फसलों के  साथ-साथ किसानों के चेहरे भी मुरझाने लगे हैं। किसान धान की फसल को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। मानसून की दगाबाजी व बिजली के लंबे कटों के कारण किसानों को धान की फसल को बचाने के लिए महंगे भाव का डीजल फूंकना पड़ रहा है। इससे किसानों की जेबें ढीली हो रही हैं। समय पर बारिश नहीं होने के कारण किसान धान की रोपाई को लेकर कसमकस की स्थिति में हैं। किसान रोपाई करने से पहले बारिश का इंतजार कर रहे हैं लेकिन मानसून किसानों के साथ आंख-मिचौली खेल रहा है। बीच-बीच में एकाध बार हल्की बूंदाबांदी होने से मौसम में ठंड आ जाती है तो उसके अगले ही दिन किसानों को फिर से सूर्य देवता के कड़े तेवरों का सामना करना पड़ता है। मौसम की इस आंख-मिचौली ने किसानों को असमंजस की स्थिति में डाल रखा है। इसके चलते किसान धान की रोपाई की बजाए बाजरे की बिजाई का मन बना रहे हैं। 

 बारिश नहीं होने के कारण बिना रोपाई के खाली पड़े खेत।

टारगेट तक पहुंचने में कृषि विभाग को छूट रहे पसीने

समय पर बारिश नहीं होने के कारण कृषि विभाग को भी टारगेट तक पहुंचने में पसीने छूट रहे हैं। इसलिए कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को धान की रोपाई के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ फसल को बचाने के लिए भी गाइड लाइन जारी कर रहे हैं। इस बार विभाग के पास धान की रोपाई के लिए 99 हजार हैक्टेयर का टारगेट है लेकिन बरसात के अभाव में अभी तक सिर्फ 75 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। विभाग के अधिकारी टारगेट तक पहुंचाने के लिए किसानों को कम पानी में भी धान की रोपाई करने के लिए लगातार गाइड लाइन जारी कर रहे हैं।

15 जून से 15 जुलाई तक धान की रोपाई का उपयुक्त समय

कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो धान की रोपाई के लिए 15 जून से 15 जुलाई तक का समय सबसे सही है। हालांकि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 25 जुलाई तक भी धान की रोपाई की जा सकती है लेकिन इस दौरान रोपाई करते समय पौधों की संख्या में बढ़ौतरी करनी होगी। धान की नर्सरी की अवधि ज्यादा होने के कारण लेट रोपाई से पौधों का फुटाव पूरा नहीं हो सकेगा। इससे उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए लेट रोपाई करते समय पौधों की संख्या में वृद्धि करें, ताकि एक साथ कई पौधे लगे होने के कारण फुटाव पूरा हो सके और किसान को पूरा उत्पादन मिल सके। 

मौसम किसानों के साथ खेल रहा आंख-मिचौली

 धान की रोपाई करते मजदूर।
धान की रोपाई का सीजन शुरू होते ही मौसम ने भी किसानों के साथ आंख-मिचौली का खेल शुरू कर दिया। रोपाई के सीजन के दौरान बीच-बीच में एकाध दिन हुई हल्की बूंदाबांदी से जहां एक बार तापमान में गिरावट हुई तो अगले ही दिन फिर से सूर्य देवता के कड़े तेवरों के चलते बढ़े पारे ने किसानों को दुविधा में डाल दिया। हालांकि बुधवार को भी जिले में हल्की बूंदाबांदी हुई लेकिन कुछ ही देरे के लिए हुई यह बूंदाबांदी किसानों की फसलों को बचाने के लिए नाकाफी है। मौसम की इस आंख-मिचौली से परेशान किसान धान की रोपाई को लेकर दुविधा में फंसे हुए हैं। कुछेक किसान धान की रोपाई का मन बना रहे हैं तो कुछ धान की बजाए बाजरे की बिजाई की तरफ रुझान कर रहे हैं। 

अभी तक हो चुकी है 243 एम.एम. बारिश

कृषि विभाग के बारिश के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो वर्ष 2012 की बजाए 2013 में बारिश अधिक हुई है। जनवरी 2012 से जुलाई 2012 तक सिर्फ 30 एम.एम. बारिश ही हुई थी लेकिन जनवरी 2013 से जुलाई 2013 तक जिले में 243 एम.एम. बारिश हो चुकी है। वर्ष 2012 में केवल जुलाई माह में 15 एम.एम. बारिश हुई थी और वर्ष 2013 में जुलाई माह में 40 एम.एम. बारिश हो चुकी है लेकिन यह बारिश धान की फसलों की रोपाई के लिए नाकाफी है। पिछले वर्ष की बजाए इस वर्ष मौसम में उमस काफी ज्यादा है। 

किसान क्या-क्या रखें सावधानियां

कृषि विभाग के पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल का कहना है कि मौसम में उमस को देखते हुए किसानों को धान की रोपाई के दौरान तथा रोपाई के बाद फसल को गर्मी से बचाने के लिए विशेष सावधानियां रखनी चाहिएं। 
1. धान की नर्सरी उखाडऩे से पहले नर्सरी में हल्के पानी की सिंचाई जरुर करें। 
2. रोपाई के दौरान पौधों की संख्या पर विशेष ध्यान रखें। 1 एस.क्यू. मीटर में 35 से 36 पौधे लगाएं। 
3. रोपाई से पहले खेत तैयार करते समय ही डी.ए.पी. खाद खेत में डालें। 
4. रोपाई लेट होने पर कम अवधि वाली किस्म की रोपाई करें और रोपाई के दौरान पौधों की संख्या बढ़ाकर 1 एस.क्यू. मीटर में 40 से 42 पौधे लगाएं। 
5. रोपाई के दौरान 20 से 25 दिन की नर्सरी का ही प्रयोग करें। इससे पौधों का फुटाव अच्छा हो सकता है।
6. रोपाई के बाद धान में ज्यादा पानी खड़ा करने की बजाए हल्की सिंचाई करें, ताकि कम पानी से अधिक एरिया कवर किया जा सके। 
7. धान की फसल पानी की फसल है। इसलिए इसमें बीमारी आने की संभावना कम है। इसलिए किसानों को चाहिए कि धान की फसल में अधिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करें और सीमित मात्रा में ही उर्वरक डालें। उर्वरक जमीन में डालने की बजाए उनका घोल तैयार कर फसल पर घोल का छिड़काव करें। 

ज्यादा पानी देने की बजाए फसल में कम पानी रखें किसान 

कृषि विभाग के पास इस बार धान की रोपाई के लिए 99 हजार हैक्टेयर का टारगेट है। इसमें से 75 हजार हैक्टेयर में रोपाई हो चुकी है। जल्द ही टारगेट को कवर कर लिया जाएगा। किसान अभी बारिश का इंतजार कर रहे हैं। बारिश आते ही धान की रोपाई के कार्य में तेजी आएगी। 25 जुलाई तक किसान धान की रोपाई कर सकते हैं। किसानों को चाहिए कि फसल में ज्यादा पानी देने की बजाए कम पानी रखें। इससे कम पानी में अधिक क्षेत्र को कवर किया जा सकेगा। 
रामप्रताप सिहाग, उप-निदेशक 
कृषि विभाग, जींद



शनिवार, 13 जुलाई 2013

सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े से भयभीत ना हों किसान

कीटाचार्य किसानों ने कीट ज्ञान से निकाला शाकाहारी कीटों का तोड़

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कपास की फसल में मौजूद शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े से किसानों को भयभीत होने की जरुरत नहीं है। कीट साक्षरता की मुहिम में जुड़े कीटाचार्य किसानों ने इन शाकाहारी कीटों का तोड़ ढूंढ़ निकाला है। जींद जिले के लगभग आधा दर्जन गांवों में चल रही किसान खेत पाठशालाओं में कपास की फसल की साप्ताहिक कीट तंत्र समीक्षा से प्राप्त हुए आंकड़ों के अनुसार अभी तक उक्त शाकाहारी कीट कहीं भी नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक सत्र तक नहीं पहुंच पाए हैं। यह बात कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला में मौजूद दर्जनभर गांवों के किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। 
डा. कमल सैनी ने कहा कि कपास की फसल में पाई जाने वाली सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नामक कीट की गिनती किसान मेजर कीटों में करते हैं और कपास की फसल में इन कीटों की उपस्थिति को देखकर किसान भयभीत होकर इन्हें नियंत्रित करने के लिए अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। किसानों का मानना है कि उक्त कीट कपास की फसल के लिए बेहद हानिकारक हैं लेकिन वास्तविकता इसके विपरित है। किसानों को कीटों और बीमारी के बीच का अंतर पता नहीं है। जानकारी के अभाव में किसान भ्रम के जाल में फंसे हुए हैं। ज्यादातर किसान तो कपास की फसल में मौजूद सलेटी भूंड को ही सफेद मक्खी समझ लेते हैं। जबकि सफेद मक्खी बिल्कुल सुक्ष्म कीट है, जिसे सुक्ष्मदर्शी लैंस के माध्यम से ही स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। इसी तरह चूरड़े और हरेतेले को भी सुक्ष्मदर्शी लैंस की सहायता से देखा जा सकता है। सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़ा तीनों ही कीट शाकाहारी हैं और कपास के पत्तों से रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। डा. सैनी ने कहा कि कपास की खेती करने वाले किसानों को अब उक्त कीटों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि जिले के कीटाचार्य किसानों ने कीट ज्ञान के माध्यम से इन कीटों का तोड़ ढूंढ़ लिया है। यहां के किसानों ने शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़ेका खातमा करने वाले मांसाहारी कीटों की खोज की है, जो प्राकृतिक तौर पर ही कपास की फसल में काफी तादात में पाए जाते हैं। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, सुरेश, महाबीर पूनिया, रामदेवा, मनबीर रेढ़ू, बलवान लौहान ने किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नामक शाकाहारी कीट को कीटनाशकों के माध्यम से नियंत्रित करने की जरुरत नहीं है। उक्त कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में क्राइसोपा नामक मांसाहारी कीट
किसानों द्वारा ढूंढ़े गए कुदरती कीटनाशी क्राइसोपे का अंडा, क्राइसोपे का बच्चा तथा प्रौढ़।

पाठशाला के दौरान कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
अकेला ही काफी है, जो सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को खत्म करने में कुदरती कीटनाशी का काम करता है। उन्होंने बताया कि क्राइसोपे का पूरा जीवनचक्र 35 से 40 दिन का होता है और यह फसल में एक स्थान पर अंडे देने की बजाए अलग-अलग स्थानों पर ऊंचाई पर अपने अंडे देता है। 5 से 7 दिन में इसके अंडों से बच्चे निकलने शुरू हो जाते हैं। क्राइसोपा का एक बच्चा 8 घंटे में 10 से 15 हरे तेले, चूरड़े और सफेद मक्खी के बच्चों को चट कर जाता है। उन्होंने बताया कि अगर कपास की फसल में प्रति पौधा एक क्राइसोपा मौजूद है तो किसानों को सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को काबू करने की कोई जरुरत नहीं है। 

फसल को नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर हैं शाकाहारी कीट 

डा. कमल सैनी ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े द्वारा कपास की फसल में नुक्सान पहुंचाने के लिए एक स्तर निर्धारित किया गया है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो अगर सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 6, चूरड़े की औसत 10 और हरे तेले की औसत 2 है तो इसके बाद भी किसानों को फसल में कीटनाशक के स्प्रे के बारे में सोचना चाहिए लेकिन जींद जिले के आधा दर्जन गांवों में चल रही किसान खेत पाठशालाओं से जुड़े लगभग 2 दर्जन गांवों के किसानों द्वारा पूरे सप्ताह की जो समीक्षा पेश की गई है, वह अभी किसानों के पक्ष में है। किसानों द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 2.3, हरेतेले की 1.8 और चूरड़े की 5.6 औसत आई है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उक्त कीटों की नुक्सान पहुंचाने की दर के साथ अगर किसानों की रिपोर्ट की समीक्षा की जाए तो अभी तक कहीं पर भी सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़ा नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक स्तर को छू भी नहीं पाए हैं। इसलिए किसानों को अभी इन कीटों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है।




शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

किसानों को नई राह दिखा गया किसानों का मसीहा

बेजुबानों को बचाने और थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए डा. दलाल ने जलाई थी कीट ज्ञान क्रांति की मशाल

नरेंद्र कुंडू
डॉ सुरेन्द्र दलाल 
जींद। हरियाणा प्रदेश के जींद जिले के जुलाना हलके के गांव नंदगढ़ में श्री गणेशीराम तथा श्रीमति धनपति देवी के घर अप्रैल 1962 में एक महान विभूति ने जन्म लिया। यह महान विभूति थे कीट साक्षरता के अग्रदूतडा. सुरेंद्र दलाल। डा. सुरेंद्र दलाल के पिता श्री गणेशीराम फौज में सैनिक थे और माता धनपति देवी एक सुशील गृहिणी थी। डा. सुरेंद्र दलाल एक किसान परिवार से सम्बंध रखते थे। डा. सुरेंद्र दलाल की प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही हुई और नौवीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से पूरी करने के बाद डा. सुरेंद्र दलाल ने सोनीपत के हिंदू हाई स्कूल से दसवीं की परीक्षा पास की। 3 भाइयों और 2 बहनों में सबसे बड़े होने के कारण छोटे भाइयों और बहनों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी इन्ही के कंधों पर थी। छोटे भाई विजय दलाल, जगत सिंह तथा राजसिंह को पढ़ाने की जिम्मेदारी इन्होंने बखूबी निभाई। घर की अर्थिक स्थित कमजोर होने के कारण छोटे भाइयों को पढ़ाने तथा घर की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डा. सुरेंद्र दलाल ने पढ़ाई बीच में ही छोड़कर हिसार में नौकरी शुरू कर दी। इस दौरान 1979 में डा. सुरेंद्र दलाल की शादी हो गई और श्रीमति कुसुम जैसी सुशील और सर्वगुण संपन्न जीवन संगिनी के साथ उन्होंने अपने जीवन का आगे का सफर शुरू किया। श्रीमति कुसुम ने भी हर तरह की परिस्थितियों में डा. सुरेंद्र दलाल का तहदिल से साथ दिया। श्रीमति कुसुम से इन्हें 2 पुत्रियां प्रीतिका, रीतिका तथा एक पुत्ररत्न अक्षत की प्राप्ति हुई। श्रीमति कुसुम की शिक्षा विभाग में नौकरी लग जाने के बाद डा. सुरेंद्र दलाल ने दोबारा से अपना पढ़ाई का सफर शुरू करते हुए अगस्त 1979 में हिसार के कृषि विश्वविद्यालय में बी.एस.सी. (आनर्स) कृषि में दाखिला लिया। 1983 में बी.एस.सी. की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1986 में एम.एस.सी. तथा 1991 में इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने 
पाठशाला में किसानो को कीटों की जानकारी देते डॉ दलाल 
दूरदर्शन की टीम के साथ बातचीत करते डॉ दलाल 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिलाएं 
पाठशाला में किसानो को कीटों की जानकारी देते डॉ दलाल 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान 
महिला पाठशाला में महिलाओं को कीटों के बारे जानकारी देते डॉ दलाल 
किसान पाठशाला में खाप पर्तिनिधियों को स्मृति चिहन देते किसान 

पौध प्रजनन (Plant Breeding) में पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की। इन दोनों ही डिग्रियों के दौरान उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से फैलोशिप भी मिला। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में बी.एस.सी. की पढ़ाई के दौरान ही वे प्रगतिशील छात्र संगठन एस.एफ.आई. के सम्पर्क में आए और वामपंथी विचारधारा से जुड़े। डा. सुरेंद्र दलाल ने एस.एफ.आई. के साधारण सदस्य से सफर शुरू करते हुए आगे बढ़कर राज्य अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी भी निभाई। डा. सुरेंद्र दलाल का सम्पूर्ण जीवन बड़ा ही संघर्ष भरा रहा और इन्होंने बड़ी से बड़ी कठिनाई का भी डटकर मुकाबला किया। डा. सुरेंद्र दलाल ईमानदार, कठोर परिश्रमी, दृढ़ संकल्प और दूरदर्शी तथा एक अच्छे वक्ता भी थे। वक्तव्य में उनका कोई शानी नहीं था। डा. दलाल प्रत्येक विषय पर गंभीरता से विचार करते हुए उसकी गहराई तक जाते थे। किसानों तथा गरीब वर्ग के प्रति डा. दलाल का विशेष लगाव रहा। इसलिए पढ़ाई के दौरान छात्र आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ-साथ मजदूरों, किसानों और कर्मचारियों के संघर्षों में भी उनका अहम योगदान रहा। पी.एच.डी. की डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1992 में हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवॢसटी की ब्रांच कोल (कुरुक्षेत्र) में साइंटिस्ट के तौर पर नौकरी की शुरूआत की। लगभग एक वर्ष तक यहां पौध प्रजनन पर कार्य करने के बाद डा. सुरेंद्र दलाल ने इस नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। इसके बाद डा. दलाल ने 1994 में कृषि विभाग में ए.डी.ओ. के पद पर ज्वाइन किया और यहां से ऑन डेपुटेशन साक्षरता अभियान में जुड़कर उन्होंने अनपढ़ महिला और पुरुषों को अक्षर ज्ञान का रसपान करवाकर साक्षर करने का काम किया। डा. सुरेंद्र दलाल के पास सामाजिक सांस्कृतिक और परम्परा को लोगों की चेतना में विकसित करने तथा उन्हें संगठित करने की बेजोड़ कला थी। जींद में अन्य साथियों के साथ मिलकर साक्षरता सत्संग और सांग की रचना करना तथा उनका मंचन करना इसका जीता जागता एक उदाहरण है। वे मुश्किल से मुश्किल विषय को बहुत जल्द लोकभाषा में परिवॢतत कर उसे लोगों के बीच प्रस्तुत करने में भी माहिर थे। वे बड़े ही स्पष्टवादी और हाजिर जवाबी भी थे। लोक इतिहास में उनकी गहरी रुचि थी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिजवाना और आसपास के गांवों के लोगों की भूमिका पर भी उन्होंने शोधपूर्ण कार्य किया। भूरा और निघाइया नम्बरदारों के नेतृत्व में इलाके की जनता द्वारा अंग्रेजों, जींद, पटियाला और नाभा के राजाओं के विरुद्ध किए गए शानदार संघर्ष को उन्होंने नाटक, रागिनी और किस्सों के रूप में जनता के सामने प्रस्तुत किया। उनकी रचनाओं से यह स्पष्ट होता है कि वे एक महान इतिहासकार भी थे। साक्षरता अभियान के माध्यम से लोगों को अक्षर ज्ञान का रसपान करवाने के बाद भी समाजसेवा के प्रति उनकी जिज्ञासा कम होने की बजाए बढ़ती ही चली गई। साक्षरता अभियान के बाद वापिस कृषि क्षेत्र की जिम्मेदारी मिलने पर समाज के प्रति उनका लगाव ओर भी ज्यादा बढ़ता चला गया और उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित कर दिया। फसलों में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से थाली में बढ़ते जहर तथा वर्ष 2002 में बी.टी. कपास में फैले अमेरीकन सूंडी के प्रकोप ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी। इसके बाद उन्होंने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कीटों पर अपना शोध शुरू कर दिया। कीटों पर किए गए शोध से वर्ष 2007 में उन्होंने कपास की फसल के भस्मासुर मिलीबग का तोड़ ढूंढ़कर पहली सफलता हासिल की और इस कामयाबी में उनके मार्गदर्शक बने रुपगढ़ गांव के किसान। एक तरह से यह उनका बडप्पन ही था कि उन्होंने इसी गांव के कीटाचार्य राजेश नामक किसान को अपना कीट ज्ञान का गुरु मानकर अपने शोधों को गति दी। इसके बाद वर्ष 2008 में जींद जिले के निडाना गांव के खेतों से उन्होंने कीट ज्ञान क्रांति की मशाल जलाकर हरियाणा प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के मानचित्र पर निडाना गांव तथा जींद जिले को एक नई पहचान दिलाई। अपने आप में यह भी एक अनोखी बात है कि पौध प्रजनन पर पी.एच.डी. करने के बावजूद भी उन्होंने कीटों पर शोध कर एक नया अध्याय लिखा। अपनी 6-7 वर्षों की अथक मेहनत के बूते ही उन्होंने देश के किसानों को एक नई दिशा देने का काम किया। कीटों पर शोध करते हुए उन्होंने कपास की फसल में पाए जाने वाले 206 कीटों की पहचान की। इनमें 43 किस्म के शाकाहारी कीट तथा 163 किस्म के मांसाहारी कीट हैं। इन कीटों में से भी चबाकर खाने वाले, रस चूसने वाले, फूल-फल, पत्तियां खाने वाले कीटों की अलग-अलग श्रेणियां बांट दी। यह उनके शोधों का ही परिणाम है कि उन्होंने पिछले 40 वर्षों से किसानों और कीटों के बीच चली आ रही इस लड़ाई को समाप्त करने तथा किसानों को लड़ाई के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए कीट ज्ञान रूपी एक अचूक हथियार दिया। इतना ही नहीं कीट ज्ञान की क्रांति को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने पुरुष किसानों के साथ-साथ महिला किसानों को भी अपनी इस मुहिम में शामिल कर एक अनूठी मिशाल पेश की। डा. दलाल ने जिलेभर के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के किसानों को जय कीट ज्ञान के एक सूत्र में पिरो दिया। डा. दलाल के कुशल मार्गदर्शन की बदौलत ही आज जींद जिले के लगभग दर्जनभर से भी ज्यादा गांवों के पुरुष तथा महिला किसान कीट ज्ञान की डिग्री हासिल कर पाए। अपने प्रयोगों की बदोलत ही डा. दलाल तथा यहां के किसानों ने कपास जैसी कमजोर फसल में भी बिना पेस्टीसाइटों का इस्तेमाल किए अच्छा उत्पादन लेकर दुनिया को यह दिखा दिया कि जब कपास जैसी कमजोर फसल बिना पेस्टीसाइड पैदा 
रेडियो पत्रकार सम्पूर्ण सिंह डॉ सुरेन्द्र दलाल से बातचीत करते हुए 
की जा सकती है तो अन्य फसलों में भी बिना पेस्टीसाइड का इस्तेमाल किए अच्छा उत्पादन लिया जा सकता। इसके बाद डा. सुरेंद्र दलाल ने इस मुहिम को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए खाप पंचायतों को इस मुहिम से जोडऩे का काम किया। डा. दलाल से मार्गदर्शन लेकर यहां के कीट मित्र किसानों ने वर्ष 2012 में खाप पंचायतों की अदालत में एक अर्जी भेजकर पिछले 40 वर्षों से किसानों और कीटों के बीच चली आ रही इस अंतहीन लड़ाई को समाप्त करवा बेवजह मारे जा रहे बेजुबानों को बचाने की गुहार लगाई। बड़े-बड़े विवाद सुलझाने के लिए मशहूर रही खाप पंचायतों ने किसानों की इस अर्जी को स्वीकार करते हुए उन्हें सही न्याय करने के लिए आश्वस्त किया। इस विवाद में खाप पंचायतों द्वारा हस्तक्षेप किए जाने के बाद आधुनिकता के इस दौर में फतवे जारी करने तथा तालिबानी फरमान सुनाने के नाम से बदनाम हो चुकी खाप पंचायतों का एक सामाजिक चेहरा फिर से लोगों के सामने आया। खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों ने कीटाचार्य किसानों के निमंत्रण को स्वीकार कर इस अंतहीन लड़ाई को खत्म करने के लिए लगातार 18 सप्ताह तक किसान खेत पाठशालाओं में पहुंचकर कीट ज्ञान अर्जित किया। इन 18 सप्ताह के दौरान प्रदेशभर की लगभग 90 खापों के प्रतिनिधि कीट अवलोकन के लिए इन पाठशालाओं में पहुंचे। डा. सुरेंद्र दलाल ने अपनी समग्र दृष्टि का प्रयोग करते हुए खाप पंचायतों के माध्यम से किसानों में कीट ज्ञान का खूब प्रचार किया। इसी का परिणाम था कि खेती के क्षेत्र में समृद्ध हो चुके पंजाब जैसे प्रदेश के किसान भी यहां के किसानों से कीट ज्ञान के गुर सीखने के लिए समय-समय पर यहां पहुंचने लगे। इतना ही नहीं डा. दलाल ने टैक्रालाजी के इस युग को देखते हुए ब्लाग तथा इंटरनेट के माध्यम से विदेशों में भी कीटनाशक रहित खेती की अलख जगाई। डा. दलाल ने प्रभात कीट पाठशाला, निडाना गांव का गौरा, अपना खेत अपनी पाठशाला, महिला खेत पाठशाला, कृषि चौपाल, नौगामा ब्लाग तथा यू-ट्यूब पर भी कीटों की क्रियाकलापों की वीडियों डालकर विदेशियों का ध्यान इस तरफ अकर्षित किया। अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं करते हुए कीट साक्षरता के इस अग्रदूत ने कीट ज्ञान की इस क्रांति को एक विकल्प के रूप में किसानों के बीच स्थापित कर दिया। दुर्भाग्यवश फरवरी 2013 में डा. सुरेंद्र दलाल स्वाइन फ्लू की चपेट में आ गए। डा. दलाल को उपचार के लिए हिसार के जिंदल अस्पताल में भर्ती करवाया गया। यहां पर वैल्टीनेटर की सुविधा मुहैया नहीं हो पाने के कारण चिकित्सकों ने डा. दलाल को हिसार के ही गीतांजलि अस्पताल में रैफर कर दिया लेकिन यहां पर वह सघन कोमा में चले गए। इसके बाद डा. दलाल को दिल्ली के फोर्टिज अस्पताल में ले जाया गया। लगभग 3 माह तक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझने के बाद आखिरकार कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल दुनिया से विदा हो गए। अपना सबकुछ दाव पर लगाकर किसानों को जगाने वाला किसानों का यह मसीहा हमेशा-हमेशा के लिए सौ गया। 18 मई 2013 को डा. सुरेंद्र दलाल ने हिसार के जिंल अस्पताल में आखिरी सांस ली। डा. दलाल को बचाने के लिए 3 माह तक परिवार के सदस्यों द्वारा की गई अथक मेहनत, बड़े-बड़े डाक्टरों की दवाएं तथा देशभर से डा. दलाल के शुभचिंतकों की दुवाएं भी बेअसर हो गई। 19 मई 2013 को उनके पैतृक गांव नंदगढ़ में हजारों लोगों ने नम आंखों के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी। उनकी अंतिम यात्रा के दौरान पूरा नंदगढ़ गांव अपने इस डाक्टर के लिए फफक-फफक कर रो रहा था। चारों तरफ से उमड़ रहे आंसुओं के सैलाब के कारण गांव का माहौल पूरी तरह से गमगीन था और हर चेहरे पर इस महान विभूति को खो देने का दर्द साफ झलक रहा था। डा. दलाल के चले जाने से अकेले हरियाणा प्रदेश  ही नहीं बल्कि पूरे देश को बड़ी क्षति हुई है। यह क्षति कभी पूरी नहीं हो सकती। आज भले ही डा. दलाल हमारे बीच प्रत्यक्ष रूप से मौजूद नहीं हों लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से वे हमारे बीच हर वक्त मौजूद रहेंगे। उनके अनुभव, उनका कीट ज्ञान का संदेश, उनके विचार, उनकी जीवनशैली, उनका स्पष्टवादी व्यवहार, समाज के प्रति उनका समर्पण हमेशा हमें अपने बीच उनका एहसास करवाता रहेगा। उनके द्वारा दिया गया एक-एक संदेश हमेशा हमारे कानों में गुंजता रहेगा। वो सदा-सदा के लिए हमारे दिलों में बस गए हैं। दुनिया की कोई भी ताकत, कोई भी लालसा, उन्हें हमारे दिलो-दिमाक से नहीं निकाल पाएगी। उनकी इस मुहिम को आगे बढ़ाना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


जय जवान जय किसान जय कीट ज्ञान  

   

बुधवार, 10 जुलाई 2013

जहरमुक्त खेती की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कृषि विभाग ने किसानों की तरफ बढ़ाया हाथ

रधाना में महिला तथा निडानी में पुरुष किसानों की खेत पाठशालाएं शुरू 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा थाली को जहरमुक्त करने के लिए जींद जिले में शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए अब कृषि विभाग ने भी जिले के किसानों की तरफ हाथ बढ़ाया है। जिले के किसानों को कीटों की पहचान करवाकर जहरमुक्त खेती की तरफ आकर्षित करने के लिए कृषि विभाग द्वारा भारत सरकार की मिनी टैक्रोलोजी मिशन-2 योजना के तहत बुधवार को जिले के रधाना गांव में महिला किसान खेत पाठशाला तथा निडानी गांव में पुरुष किसान खेत पाठशाला का शुभारंभ किया गया। डा. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल ने महिला तथा पुरुष किसानों को राइटिंग पैड, पैन तथा सुक्ष्मदर्शी लैंस देकर पाठशाला का शुभारंभ किया। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विभाग के जिला उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग भी विशेष रूप से मौजूद थे। 
 किसानों को राइटिंग पैड तथा पैन वितरित करती कुसुम दलाल।
 फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
मैडम कुसुम दलाल ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल ने जिले के किसानों के साथ मिलकर जहरमुक्त खेती की जो मुहिम शुरू की है, उसे आगे बढ़ाने के लिए उनका परिवार हर वक्त किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहेगा। कृषि उप-निदेशक डा. राम प्रताप सिहाग ने किसानों को मिनी टैक्रोलोजी मिशन के बारे में जानकारी देते हुए महिला तथा पुरुष किसानों को कीटों की पहचान करने तथा उनके क्रियाकलापों को समझने के लिए प्रेरित किया। डा. सिहाग ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल तथा जींद के किसानों द्वारा कीटों पर जो शोध किए गए हैं, अब वैज्ञानिक ने भी किसानों के इस शोध पर अपनी सहमती की मोहर लगा दी है। उन्होंने कहा कि कीटों को न तो नियंत्रित करने की जरुरत है और न ही इन्हें मारने की। अगर जरुरत है तो इन्हें पहचानकर इनके क्रियाकलापों के बारे में ज्ञान हासिल करने की। डा. सिहाग ने कहा कि कपास की फसल में आने वाले जिस मिलीबग नामक कीट का नाम सुनकर बड़े-बड़े किसानों के पसीने छूटने लगते थे, उस मिलीबग को तो यहां के किसानों से आल-गोल कीट साबित कर दिया है। मिलीबग को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशी की जरुत नहीं पड़ती। इसे काबू करने के लिए तो कपास की फसल में अंगीरा, जंगीरा तथा फंगिरा नामक कूदरती कीटनाशी काफी संख्या में मौजूद होते हैं। इसके अलावा कपास की फसल में आने वाली सफेद मक्खी, हरा तेला तथा चूरड़े नामक शाकाहारी कीट से भी फिलहाल कपास की फसल को कोई खतरा नहीं है। यहां के किसानों ने सफेद मक्खी, चूरड़ा तथा हरेतेले का जो सर्वेक्षण किया है उसके आधार पर यह कीट अभी तक नुक्सान पहुंचाने के स्तर से काफी दूर हैं। जिला पौध संरक्षण अधिकारी अनिल कुमार व कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि वैज्ञानिक भी यही मानते हैं कि सफेद मक्खी की संख्या यदि प्रति पौधा 6 से अधिक है, हरे तेले की संख्या प्रति पौधा 2 तथा चूरड़े की संख्या प्रति पौधा 10 से अधिक आती है तो ही यह कीट फसल में कुछ नुक्सान पहुंचा सकते हैं लेकिन अभी तक इनका आंकड़ा इस स्तर से काफी नीचे है। इसलिए किसानों को इन कीटों से भयभीत होने 
 पाठशाला में कीटों का बही खाता तैयार करती महिला किसान। 
की जरुरत नहीं है। इस अवसर पर उनके साथ कृषि विभाग से एस.एम.एस. युद्धवीर सिवाच, ए.डी.ओ. रवि कादियान, राजेंद्र शर्मा, सनुील दलाल तथा डा. सुरेंद्र दलाल के पुत्र अक्षत दलाल भी विशेष रूप से मौजूद थे। 

फसल के उत्पादन में पौधों की संख्या का योगदान 

निडानी के किसानों ने हवन कर पाठशाला का शुभारंभ किया। इसके बाद जिस खेत में पाठशाला का शुभारांभ किया उस खेत में मौजूद कपास की फसल के पौधों की गिनती की। डा. कमल सैनी ने बताया कि किसी भी फसल के उत्पादन में पौधों की संख्या का सीधा-सीधा योगदान होता है। यहां के किसानों ने जिस खेती के पौधों की गिनती की है, उस खेत में कुल 4436 पौधे हैं, जो की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं।