रविवार, 25 अगस्त 2013

जिला प्रशासन सुस्त, सामाजिक संगठन चुस्त

डी.सी. के आदेशों के बाद भी नहीं शुरू हुआ आवारा पशुओं को पकडऩे का अभियान
शहर के सामाजिक संगठनों ने दिया अभियान को अंजाम

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद शहर में सड़कों पर घूम रहे आवारा पशुओं को सड़कों से हटाने का जो काम जिला प्रशासन को करना था, वह काम जिला प्रशासन की बजाए शहर के कुछ सामाजिक संगठनों के कार्यकत्ताओं ने किया है। सामाजिक संगठन के कार्यकत्ताओं ने शनिवार को एक विशेष अभियान चलाकर शहर में घूम रहे आवारा पशुओं को एक स्थान पर एकत्रित कर शहर की गौशालाओं में छोडऩे का काम किया है। जबकि शहर के आवारा पशुओं को सड़कों से हटाकर गौशालाओं में छोडऩे का काम जिला प्रशासन द्वारा किया जाना था। इसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन ने नगर परिषद के अधिकारियों को सौंपी थी और 23 अगस्त से इस अभियान का श्रीगणेश किया जाना था। इस अभियान की शुरूआत के लिए खुद उपायुक्त राजीव रत्न द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों को आदेश जारी किए गए थे लेकिन उपायुक्त के आदेशों के बाद भी 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत नहीं हो पाई।  
शहर की सड़कों पर आवारा पशुओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तथा आवारा पशुओं से शहर के लोगों, दुकानदारों तथा वाहन चालकों होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए जिला प्रशासन ने आवारा पशुओं को सड़कों से पकड़ कर गौशालाओं में छोडऩे के लिए योजना तैयार की थी। इस योजना को अमल में लाने के लिए उपायुक्त राजीव रत्न ने प्रशासनिक अधिकारियों को 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत करने के आदेश जारी किए थे। इस अभियान को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी नगर परिषद को सौंपी गई थी। नगर परिषद के अधिकारियों द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए एक टीम का गठन किया जाना था। अभियान को शुरू करने से पहले पशुपालकों को सूचना देने के लिए एक सप्ताह तक नगर परिषद द्वारा शहर में मुनादी भी करवाई जानी थी, ताकि कोई भी पशुपालक अपने पशुओं को शहर में आवारा न छोड़े। नगर परिषद द्वारा 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत की जानी थी लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों पर उपायुक्त के आदेशों को कोई प्रभाव नहीं हुआ और इसके चलते 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत नहीं हो पाई। जिला प्रशासन के अधिकारियों की सुस्ती को देखते हुए शहर के सामाजिक संगठन आगे आए और सामाजिक संगठनों के कार्यकत्ताओं ने इस मुहिम को अंजाम दिया। गौरक्षा दल, बजरंग दल, आर्य समाज, हरियाणा तकनीकी संघ, विश्व हिंदू परिषद, अन्ना टीम तथा कई अन्य सामाजिक संगठनों ने मिलकर शहर की सड़कों पर घूम रहे आवारा पशुओं को पकड़कर रानी तालाब में एकत्रित किया। यहां से सभी गायों को शहर की गौशालाओं में भेजा गया। इस प्रकार जो काम जिला प्रशासनिक अधिकारियों को करना चाहिए था, वह काम शहर के सामाजिक संगठनों ने किया।

पशुओं को छोडऩे वाले पशुपालकों के खिलाफ भी होनी थी कार्रवाई

जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं को सड़कों से पकड़कर गौशालाओं में छोडऩे के लिए जो योजना बनाई गई थी। उस योजना के अनुसार पशुओं का दूध दोह कर पशुओं को खुला छोडऩे वाले पशु पालकों के खिलाफ कार्रवाई अमल में लाने का प्रावधान था। इस योजना के अनुसार जिस पशु पालक का पशु आवारा घूमते पकड़ा जाए उस पशुपालक को पशु को छुड़वाने के लिए जुर्माना भरना पड़ेगा। जुर्माने के तौर पर पशु पालक को गौशाला में 2100 रुपए तथा चारा जुर्माने के तौर पर देने का प्रावधान किया गया था लेकिन जिला प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के कारण यह योजना तय समय सीमा में शुरू नहीं हो पाई।

केवल मुनादी तक ही सिमटा अभियान 

जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए जो योजना तैयार की गई थी उस योजना के अनुसार अभियान शुरू करने से पहले नगर परिषद द्वारा शहर में एक सप्ताह तक मुनादी करवाई जानी थी। मुनादी के एक सप्ताह बाद इस अभियान की शुरूआत करनी थी, ताकि कोई भी पशु पालक अपने पशुओं को आवारा छोडने की बजाए अपने घरों में बांध ले। नगर परिषद द्वारा शहर में मुनादी तो करवा दी गई लेकिन पशुओं को पकडऩे के लिए अभियान की शुरूआत नहीं की गई। इस प्रकार जिला प्रशासन के अधिकारियों की लापरवाही के चलते यह अभियान केवल मुनादी तक ही सिमट कर रह गया।

सड़कों से हटा मौत का सामान

शहर की सड़कों पर घूम रहे आवारा पशु राहगीरों तथा वाहन चालकों के लिए किसी मौत के सामान से कम नहीं हैं। आवारा पशुओं के कारण रात के अंधेरे में कई बार बड़े हादसे हो चुके हैं। सड़कों पर एक दम से वाहनों के सामने आवारा पशु आने के कारण वाहन चालक के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ-साथ कई बार पशु भी चोटिल हो जाता था। इसके अलावा 24 मार्च 2012 में जींद के इनैलो विधायक डा. हरिचंद मिढ़ा भी 2 सांडों की चपेट में आने के कारण गंभीर रुप से घायल हो गए थे, वहीं कई माह पूर्व सांडों की लड़ाई के दौरान चपेट में आने के कारण वार्ड 15 के एक व्यक्ति की मौत भी हो चुकी है। इस प्रकार से सड़कों पर घूम रहे आवारा पशु राहगीरों और वाहन चालकों के लिए बड़ी मुसिबत बने हुए हैं। सामाजिक संगठनों द्वारा आवारा पशुओं को सड़कों से पकड़कर गौशाला में छोड़े जाने का अभियान चलाने के बाद से सड़कों से मौत का सामान हट गया है।

पशु तस्करी पर भी लगेगी रोक

शहर में आवारा पशुओं की बढ़ती तादात के कारण शहर में पशु तस्कर गिरोह भी काफी सक्रीय है। यह गिरोह रात के अंधेरे में तस्करी की घटनाओं को अंजाम देते हैं। जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए अभियान चलाए जाने के बाद शहर में बढ़ रही पशु तस्करी की घटनाओं पर भी अंकुश लगेगा।

गायों को रानी तालाब में किया गया एकत्रित

गौरक्षा दल के साथ-साथ शहर के सामाजिक संगठनों द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए शहर में चलाए गए अभियान के दौरान पकड़े गए आवारा पशुओं तथा गायों को शहर के रानी तालाब में अस्थाई तौर पर रोका गया। यहां पर गायों तथा आवारा पशुओं के लिए पीने के पानी तथा चारे की व्यवस्था की गई। पशुओं के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए फायर ब्रिगेड के अधिकारियों ने सामाजिक संगठनों की मदद की। फायर ब्रिगेड की गाड़ी के माध्यम से रानी तालाब में पशुओं के लिए पानी भरवाया गया। बाद में सभी गायों को शहर की गौशालाओं में भेजा गया। अभियान की शुरूआत करने से पहले गौरक्षा संघ हरियाणा के प्रधान योगेंद्र आर्य की अध्यक्षता में एक बैठक का आयोजन भी किया गया। बैठक में गायों को पकड़कर गौशालाओं में छोडने का निर्णय लिया गया।

जिला प्रशासन कर रहा अनदेखी

गौरक्षा दल के नगर प्रमुख संजय ने बताया कि शहर की सड़कों पर आवरा हालत में घूम रही गायों तथा अन्य आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए वह कई बार जिला प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं। उनकी मांगों पर ही उपायुक्त द्वारा 23 अगस्त से यह अभियान चलाने के निर्देश जारी किए गए थे और उनके संगठन के कार्यकत्र्ता भी जिला प्रशासन के सहयोग के लिए आगे आए थे। उन्होंने तो अपना काम कर दिया लेकिन जिला प्रशासन की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिला। संजय ने कहा कि अब उनका संगठन जींद में गौचरण भूमि को मुक्त करवाने के लिए अभियान चलाएगा अगर जिला प्रशासन ने इस दौरान भी उनकी अनदेखी की तो वह अनशन पर बैठ कर अपना विरोध दर्ज करवाएंगे।
 अभियान को शुरू करने से पहले पत्रकारों से बातचीत करते गौरक्षा दल के सदस्य। 

 रानी तालाब में गायों के लिए पानी की व्यवस्था करते सामाजिक संगठन के कार्यकत्ता । 




सफेद मक्खी को कंट्रोल करने में मांसाहारी कीट सबसे कारगर हथियार : डा. सिहाग

जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. का घोल तैयार कर फसल पर निरंतर करें छिड़काव

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विभाग के जिला उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि प्रदेश में कपास की फसल में जहां-जहां किसानों ने सफेद मक्खी को कीटनाशकों की सहायता से कंट्रोल करने के लिए का प्रयास किया है, वहां-वहां सफेद मक्खी का प्रकोप निरंतर बढ़ता जा रहा है। कई जिलों में तो स्थिति ऐसी हो चुकी है कि सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण कई-कई एकड़ में खड़ी कपास की फसल पूरी तरह से तबाह हो गई है लेकिन जींद जिले के कीटाचार्य किसानों ने डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा दिए गए कीट ज्ञान के बूते पर फसल में मौजूद मांसाहारी कीटों की सहायता से ही सफेद मक्खी को कंट्रोल कर यह सिद्ध कर दिया है कि किसी भी प्रकार के शाकाहारी कीट को नियंत्रित करने के लिए किसी कीटनाशक की जरुरत नहीं है, बल्कि शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में मौजूद प्राकृति कीटनाशी ही काफी हैं। इसी का परिणाम है कि अभी तक जींद ब्लाक में कहीं पर भी सफेद मक्खी की संख्या कपास की फसल में नुक्सान पहुंचाने के कागार पर नहीं पहुंच पाई है। डा. सिहाग बुधवार को निडानी तथा रधाना गांव में चल रही डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशालाओं में फसल का निरीक्षण करने के लिए पहुंचे थे। इस अवसर पर उनके साथ कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी, डा. रमेश, डा. शैलेंद्र चहल भी मौजूद थे।
डा. सिहाग ने किसान पाठशालाओं में मौजूद किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जहां-जहां किसानों ने सफेद मक्खी के साथ छेडख़ानी की है, वहां-वहां स्थिति आज बहुत भयंकर रुप धारण कर चुकी है। हिसार जिले में इसके ताजा परिणाम देखने को मिल रहे हैं। आज हिसार जिले में सफेद मक्खी का प्रकोप चरम पर है और इसके प्रकोप के कारण सैंकड़ों एकड़ फसल नष्ट हो चुकी है। डा. सिहाग ने निडानी के किसानों की पीठ थपथपाते हुए कहा कि निडानी के किसानों ने स्कूली विद्यार्थियों को इस मुहिम से जोड़कर एक नई पहल शुरू की है। इससे आक्रोषित होकर आज हिसार जिले के किसान रोड जाम कर रहे हैं। कीटाचार्य किसान महाबीर पूनिया, जयभगवान, सुरेंद्र, जगमेंद्र, सुरेश ने बताया कि किसानों को फसल में मौजूद किसी भी शाकाहारी कीट के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए और न ही कीटनाशक के माध्यम से उसे नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। किसान कीट के साथ जितनी भी छेड़छाड़ करेगा या उसे नियंत्रित करने की कोशिश करेगा, उस कीट की संख्या उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद रहते हैं, जो इसका शिकार कर इसे कंट्रोल कर लेते हैं। फिलहाल कपास की फसल में मकडिय़ां, क्राइसोपा, लेडी बीटल काफी संख्या में मौजूद हैं। यह सभी मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के परभक्षी हैं और बड़े ही चाव से सफेद मक्खी का शिकार करते हैं। उन्होंने अपनी फसलों का उदहारण देते हुए बताया कि उनकी फसलों में भी सफेद मक्खी है लेकिन उन्होंने कभी भी उसे नियंत्रित करने के लिए किसी भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया। उन्होंने कहा कि कपास की फसल में मौजूद सफेद मक्खी एक रस चूसक कीट है और यह रस चूसकर अपना जीवन चक्र चलाता है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे फसल की खुराक पर ज्यादा ध्यान दें। ऐसी समय में पौधों को पौषक तत्वों की ज्यादा जरुरत होती है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे 100 लीटर पानी में आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो यूरिया तथा अढ़ाई किलो डी.ए.पी. का घोल तैयार कर प्रति एकड़ में इसका छिड़काव करें। हर 10 दिन बाद इस घोल का छिड़काव बेहद जरुरी है। इससे पौधे को पर्याप्त मात्रा में खुराक मिलती रहेगी और पौधा निरंतर अपनी बढ़वार करता रहेगा। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि जींद जिले के कीटाचार्य किसानों ने अपने प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिया है कि किसी भी कीट को नियंत्रित करने के लिए किसी कीटनाशक की जरुरत नहीं है। जींद ब्लाक के अलावा अन्य जिलों में सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप का यह ताजा उदहाराण इनकी इस सफलता का गवाह है। क्योंकि दूसरे क्षेत्र के किसानों ने सफेद मक्खी को कंट्रोल करने के लिए बेइंताह कीटनाशकों का प्रयोग किया है लेकिन वहां सफेद मक्खी कंट्रोल होने की बजाए निरंतर बढ़ती जा रही है। इस दौरान निडानी गांव के राजकीय हाई स्कूल के 2 दर्जनभर से भी ज्यादा विद्यार्थी भी कीट ज्ञान अर्जित करने के लिए किसान खेत पाठशाला में पहुंचे थे। 
 स्कूली बच्चों को कीटों की पहचान करवाता किसान तथा कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पाठशाला में भाग लेते बच्चे।

शनिवार, 10 अगस्त 2013

कीटों की मास्टरनियों ने अनोखे ढंग से मनाया तीज का त्यौहार

खेतों में पहुंचकर कीटों को झुलाया झूला और कीटों पर आधारित गीत गाए

नरेंद्र कुंडू 

जींद। एक तरफ जहां शुक्रवार को प्रदेशभर में तीज का पर्व परंपरागत रीति-रिवाज के साथ मनाया गया, वहीं दूसरी तरफ कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ी ललीतखेड़ा, निडाना, निडानी की विरांगनाओं ने तीज के पर्व को एक अनोखे ढंग से मना। कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ी इन विरांगनाओं ने तीज पर्व के पावन अवसर पर खेतों में जाकर पेड़ों पर झूल डाली तथा वहां फसल में मौजूद कीटों को झूला झुलाया और कीटों के जीवन चक्र पर तैयार किए गए गीत गाए। झूला झूलाने की शुरूआत महिलाओं ने हथजोड़े नामक मांसाहारी कीट को झूला झुलाकर की। कीटों की मास्टरनियों ने एक अनोखे ढंग से तीज का पर्व मनाकर किसानों को जहर मुक्त खेती के लिए प्रेरित कर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया।
हरियाणा की संस्कृति के साथ जुड़े त्यौहारों में तीज का पर्व अपना विशेष स्थान रखता है और तीज के पर्व को अन्य त्यौहारों का जनक भी कहा जाता है। क्योंकि हरियाणा की संस्कृति में तीज के पर्व के बाद ही अन्य त्यौहारों की शुरूआत होती है। इसलिए कहा जाता है कि 'आई तीज बो गई त्यौहारों का बीज'। तीज का त्यौहार विशेष रूप से महिलाओं का त्यौहार होता है। इस दिन महिलाएं सजधज कर एक साथ एकत्रित होकर झूला झूलती हैं और मंगल गीत गाती हैं। इस दिन महिलाएं घर में गूलगूले, सुवहाली, पूड़े तथा अन्य मीठे पकवान भी तैयार करती हैं। पूरे प्रदेश में महिलाएं इसी तरीके से तीज का पर्व मनाती हैं लेकिन कीट ज्ञान की क्रांति से जुड़ी निडाना, निडानी व ललीतखेड़ा की वीरांगनाओं ने शुक्रवार को तीज का पर्व बिल्कुल अलग अंदाज में मनाया। यह सभी वीरांगनाएं सुबह-सुबह सजधज कर ललीतखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची और यहां पर पेड़ों पर झूल डाली। तीज की शुरूआत महिलाओं ने मांसाहारी कीट हथजोड़े को झूला झुलाकर की। इस अवसर पर महिलाओं ने कीटों के जीवनचक्र से जुड़े गीत 'कीडय़ां का कट रहया चाला ऐ मैने तेरी सूं, देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं', 'मैं बीटल हूं मैं कीटल हूं, तुम समझो मेरी मैहता को', हे बीटल म्हारी मदद करो हमनै तेरा एक 

सहारा है, जमीदार का खेत खा लिया तमनै आकै बचाना सै' आदि गीत सुनाए। महिला किसान सुनीता, अनिता, मीनी, अंग्रेजो, राजवंती, बिमला, यशवंती, पूजा, गीता, कमलेश ने बताया कि तीज का त्यौहार सावन के महीने में आता है। इस त्यौहार का हरियाणा की संस्कृति में विशेष महत्व है। यह त्यौहार सीधे-सीधे हरियाली का प्रतिक है और पर्यावरण के साथ हरियाली का विशेष संबंध है लेकिन आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रयोग होने के कारण हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है। पर्यावरण दूषित होने के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। मनुष्य लगातार गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहा है। उन्होंने बताया कि किसान अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर तथा अज्ञानता के कारण इस कीटनाशक रूपी दलदल में फंसा हुआ है। किसान अपनी अज्ञानता के कारण ही बेजुबान कीटों को मार रहा है। जबकि खेती में कीटों का विशेष महत्व होता है। महिलाओं ने बताया कि त्यौहार एक तरह से खुशियों का प्रतिक होता है लेकिन आज मनुष्य के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आने और पर्यावरण दूषित होने के कारण मनुष्य की यह खुशियां भी बिखरती जा रही हैं। अगर हमें अपनी खुशियां बरकरार रखनी हैं और अपने त्यौहारों की परम्परा को बचाए रखना है तो हमें सबसे पहले अपने पर्यावरण को बचाना होगा लेकिन यह तभी संभव है जब हम सभी मिलकर कीट ज्ञान हासिल कर जहरमुक्त

खेती की तरफ अपने कदम बढ़ाएंगे। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे वर्षों से कीटों के साथ चली आ रही इस अंतहीन लड़ाई को खत्म कर कीटों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाएं। क्योंकि बिना कीट ज्ञान के जहरमुक्त खेती संभव नहीं है। निडाना, निडानी और ललीतखेड़ा की महिलाओं ने एक अनोखे ढंग से तीज का पर्व मनाकर किसानों को पर्यावरण को बचाने के लिए जहरमुक्त खेती का संदेश दिया। 


शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

छात्राओं के लिए मर्ज बन गई नीली गोली

सामान्य अस्पताल प्रशासन को नहीं छात्राओं के स्वास्थ्य की फिक्र

चिकित्सक की बजाए ट्रेनिंग नर्सों के हाथ में थी छात्राओं के उपचार की कमान

नरेंद्र कुंडू
जींद। छात्राओं में खून की कमी दूर करने के लिए दी जा रही नीली गोलियां अब छात्राओं के लिए मर्ज बन चुकी हैं। मारे दर्द के छात्राओं का दम निकला जा रहा है लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी छात्राओं के इस दर्द को नजरअंदाज कर रहे हैं। जींद के सामान्य अस्पताल में तो आलम यह है कि यहां मौजूद चिकित्सक आयरन
सामान्य अस्पताल में उपचाराधीन छात्राएं दर्द के मारे बिलखती हुई।
की गोलियां लेने के बाद बीमार होकर आने वाली छात्राओं के उपचार की तरफ ध्यान देना भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहे हैं। अस्पताल प्रशासन के अधिकारी भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। अस्पताल प्रशासन के अधिकारियों की लापरवाही के कारण नीली गोलियों का खौफ छात्राओं के जहन में लगातार बढ़ता जा रहा है। सामान्य अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड में तैनात चिकित्सकों की लापरवाही वीरवार को उस समय फिर उजागर हुई, जब आयरन की गोलियां लेने के बाद तबीयत बिगडऩे पर गांव धनखड़ी के राजकीय उच्च विद्यालय की 11 छात्राओं को उपचार के लिए यहां लाया गया। एमरजैंसी वार्ड में तैनात चिकित्सक द्वारा इन छात्राओं का ठीक से उपचार करना तो दूर, चिकित्सक ने एक बार भी इन छात्राओं के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेने की जहमत तक नहीं उठाई। एमरजैंसी वार्ड में मौजूद ट्रेङ्क्षनग नर्सों द्वारा इन छात्राओं का उपचार किया गया।
धनखड़ी गांव के राजकीय उच्च विद्यालय में बुधवार को छात्राओं को आयरन की गोलियां बांटी गई थी। स्वास्थ्य विभाग की टीम की मौजूदगी में सभी छात्राओं को आयरन की गोलियां खिलाई गई। गोलियां लेने के बाद बुधवार को तो छात्राएं ठीक-ठाक घर चली गई लेकिन जैसे ही वीरवार सुबह स्कूल में पहुंची तो कई छात्राओं को पेट दर्द, सिर दर्द की शिकायत हुई। स्कूल प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी छात्राओं को उपचार के लिए सी.एच.सी. कंडेला में पहुंचाया लेकिन यहां मौजूद स्टाफ ने छात्राओं का उपचार करने की बजाए छात्राओं को जींद के सामान्य अस्पताल में रैफर कर दिया। इसके बाद स्कूल स्टाफ के सदस्य सभी छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में ले आए लेकिन यहां स्थिति वहां से भी बुरी थी। यहां मौजूद स्टाफ ने छात्राओं के साथ आए अध्यापकों से छात्राओं की पर्ची के पैसे की मांग की। इसके बाद अध्यापकों ने अपनी जेब से पैसे खर्च कर छात्राओं की पर्ची बनवाकर छात्राओं का उपचार शुरू करवाया।

ट्रेनिंग नर्सों ने किया छात्राओं का उपचार

सामान्य अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड में मरीजों के उपचार के लिए चिकित्सक तो मौजूद था लेकिन ड्यूटी पर मौजूद इस चिकित्सक ने एक बार भी दर्द से करहा रही छात्राओं के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेने की जहमत नहीं उठाई। वार्ड में मौजूद चिकित्सक द्वारा छात्राओं का उपचार शुरू नहीं करने पर वार्ड में मौजूद ट्रेनिंग नर्सों ने ही छात्राओं का उपचार किया।

जबरदस्ती खिलाई गोलियां

राजकीय उच्च विद्यालय धनखड़ी की 9वीं कक्षा की छात्रा अंजू, माफी, मन्नू, छात्र अंकित, 8वीं कक्षा की छात्रा नीतू, रेनू, रीतू, 7वीं कक्षा की छात्रा अंजू, अन्नू, ज्योति, तथा छठी कक्षा की छात्रा मोनिका ने कहा कि आयरन की गोलियां देने आए स्वास्थ्य विभाग की टीम के सामने ही उन्होंने गोलियां लेने से मना कर दिया था लेकिन स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जबरदस्ती उन्हें गोलियां खिलाई।

पैसे लेकर बनाई पर्ची

धनखड़ी गांव के राजकीय उच्च विद्यालय के पी.टी.आई. अध्यापक सतबीर ने बताया कि जब वह स्कूल की 11 छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में लेकर पहुंचा तो यहां मौजूद चिकित्सक ने उसे छात्राओं की पर्ची बनवाने को कहा। जब वह पर्ची बनवाने के लिए खिड़की पर पहुंचा तो वहां मौजूद कर्मचारी ने उससे पर्ची के पैसे मांगे। अध्यापक सतबीर ने बताया कि उसने खिड़की पर मौजूद कर्मचारी को पूरे मामले से अवगत करवाया लेकिन वह फिर भी पैसे लेकर पर्ची बनाने की जिद पर अड़ा रहा। इसके बाद उसने अपनी जेब से पैसे देकर पर्ची बनवाई। सतबीर ने बताया कि जब उसने मीडिया के सामने यह मामला रखा तो इसके बाद उसे पैसे वापिस दिलवाए गए।
सामान्य अस्पताल में पिछले 17 दिनों से उपचाराधीन नगूरां की छात्राएं।

सी.एच.सी. कंडेल पर नहीं दिया गया छात्राओं को प्राथमिक उपचार

छात्राओं के साथ आए अध्यापकों ने बताया कि जब वह छात्राओं को उपचार के लिए सी.एच.सी. कंडेला पर लेकर गए तो वहां मौजूद स्टाफ ने छात्राओं का प्राथमिक उपचार करना भी वाजिब नहीं समझा। वहां मौजूद स्टाफ ने बिना प्राथमिक उपचार के ही सभी छात्राओं को जींद के सामान्य अस्पताल में रैफर कर दिया। जबकि वहां छात्राओं के उपचार के लिए वह सभी दवाइयां मौजूद थी जो जींद के सामान्य अस्पताल में छात्राओं को दी
गई।
मीडिया के सामने अपनी बेटी को सरकारी स्कूल नहीं भेजने की जानकारी देते नगूरां की महिला।

स्टाफ नर्स ने बीमार छात्राओं पर झाड़ा रौब

सामान्य अस्पताल में उपचार के लिए आई छात्राएं उस समय बहुत डर गई जब वहां मौजूद स्टाफ नर्स ने उन पर अपना रौब झाडऩा शुरू किया। वहां मौजूद स्टाफ नर्स ने छात्राओं को डांटते हुए कहा कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ है, तुम जानबुझ कर यह ड्रामा कर रही हो। स्टाफ नर्स ने छात्राओं पर बरसते हुए कहा कि अगर अब कि बार किसी भी छात्रा ने पेट दर्द की शिकायत की तो वह उनकी नाक में नलकी डाल देगी। स्टाफ नर्स की इस धमकी के बाद तो छात्राओं की हालत और पतली हो गई। अब वह न तो अपने दर्द को छूपा सकती थी और न ही बयां कर सकती थी।

एक बैड पर हुए 11 छात्राओं का उपचार

आयरन की गोलियां लेने से धनखड़ी गांव के स्कूल की 11 छात्राओं की तबीयत बिगड़ गई। इसके बाद इन छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में लाया गया। यहां पर इन छात्राओं को लेटने के लिए तो क्या ठीक से बैठने के लिए भी जगह नहीं मिली। 11 छात्राओं का उपचार एक बैड पर ही किया गया। एक बैड पर 11 छात्राएं होने के कारण वह इस पर लेट तो क्या ठीक से बैठ भी नहीं पा रही थी।

बाहर से लानी पड़ रही हैं दवाइयां

लगभग 17 दिन पहले आयरन की गोलियां लेने के बाद बीमार हुई नगूरां स्कूल की 2 छात्राओं की तबीयत में अब तक भी कोई सुधार नहीं है। नगूरां स्कूल की 9वीं कक्षा की छात्रा मनीषा के पिता कपूर ङ्क्षसह तथा ताऊ हरकेश ने बताया कि लगभग 17 दिनों से वह अपनी बच्ची का उपचार करवा रहे हैंं लेकिन उसकी तबीयत में कोई सुधार नहीं है। मनीषा के परिजनों ने आरोप लगाया कि यहां मौजूद चिकित्सकों द्वारा उपचार के लिए उनसे बाहर से दवाइयां मंगवाई जा रही हैं। कपूर सिंह ने कहा कि वह मजदूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। उसकी आॢथक स्थित काफी कमजोर है। इसलिए वह बाहर से दवाइयां लाने में सक्षम नहीं है। वहीं नगूरां गांव की 9वीं कक्षा की छात्रा मोना की मां सावित्री ने कहा कि लगभग 17 दिन पहले उसकी बेटी ने भी आयरन की गोली ली थी और उसी दिन से वह भी बीमार चल रही है। पिछले 17 दिनों से अस्पताल में ही दाखिल है लेकिन इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी उसकी बेटी की हालत में कोई सुधार नहीं है। सावित्री ने कहा कि अब वह कभी भी अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में नहीं भेजेगी।

मानसिक रुप से कमजोर हैं छात्राएं

छात्राओं को ज्यादा दिक्कत नहीं है। उन्होंने खुद एमरजैंसी में जाकर छात्राओं से बातचीत की है और उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली है। गोलियों के कारण थोड़ा बहुत साइडिफेक्ट हो जाता है। यह इतनी ज्यादा गंभीर समस्या नहीं है लेकिन कुछ छात्राएं मानसिक रुप से कमजोर होने के कारण ज्यादा डर जाती हैं। नगूरां की जो लड़की पिछले कई दिनों से अस्पताल में दाखिल है, वह भी मानसिक रुप से कमजोर है। इसलिए वह ज्यादा डरी हुई है। उसे उपचार से ज्यादा एकांत की जरुरत है। यहां वह लोगों की ज्यादा भीड़ को देखकर भी भयभीत हो जाती है। सी.एच.सी. कंडेला में तैनात स्टाफ ने इस मामले में लापरवाही की है। इसलिए उनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
डा. दयानंद, सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल जींद

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

'कपास के खेत में कीडों के बीच लगी विद्यार्थियों की क्लाश'

किताबी ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों ने ली कीट ज्ञान की तालीम

अब स्कूल की बजाए सप्ताह के हर बुधवार को खेतों में लगेगी विद्यार्थियों की पाठशाला 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। बुधवार को निडानी गांव के राजकीय हाई स्कूल के 8वीं और 9वीं कक्षा के विद्यार्थियों की क्लाश स्कूल के बजाए कपास के खेत में कीडों के बीच लगी। स्कूल में मिल रहे किताबी ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों ने बुधवार को कपास के खेत में पहुंचकर कीट ज्ञान की तालीम ली। निडानी स्कूल के 8वीं और 9वीं के विद्यार्थी अब सप्ताह के हर बुधवार को इसी तरह खेतों में पहुंचकर कीट ज्ञान का पाठ पढ़ेंगे। स्कूली बच्चों को कीट ज्ञान की इस मुहिम से जोडऩे का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को जहरमुक्त खेती के गुर सिखाकर खेती के प्रति बच्चों में रुचि पैदा करना है, ताकि बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेती कार्य में अपने अभिभावकों का हाथ बटा सकें और लोगों की थाली को जहरमुक्त करने की इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा सके। पाठशाला का शुभारंभ विद्यार्थियों को राइटिंग पैड तथा पैन देकर किया गया। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विभाग की तरफ से कृषि विकास अधिकारी यशपाल, रमेश, शैलेंद्र तथा डा. कमल सैनी भी मौजूद थे।
 विद्यार्थियों को राइटिंग पैड व पैन देते कृषि विकास अधिकारी।
किसानों को जागरुक कर कीटों और किसानों के बीच लगभग 4 दशकों से चली आ रही अंतहीन जंग को खत्म करवाने तथा खाने की थाली को जहरमुक्त करने के लिए डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम में अब एक नया अध्याय जुड़ गया है। किसानों के साथ-साथ अब विद्यार्थियों ने भी इस मुहिम में रुचि दिखाई है। निडानी गांव के राजकीय हाई स्कूल के 8वीं और 9वीं कक्षा के विद्यार्थियों ने बुधवार को स्कूल की बजाए

 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते विद्यार्थी। 
निडानी गांव के खेतों में चल रही डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर क्लाश लगाई और यहां कीटाचार्य किसानों के साथ कपास की फसल के खेत में खड़े होकर कीट ज्ञान का पाठ पढ़ा। स्कूली विद्यार्थियों ने सुक्ष्मदर्शी लैंसों की सहायता से कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन किया और उनके जीवन चक्र के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की। कीटाचार्य किसान महाबीर पूनिया, रमेश, जयभगवान, रणबीर, पवन, जयभगवान, जसबीर, पालेराम ने विद्यार्थियों को बताया कि पिछले सप्ताह तक कपास की फसल में मेजर कीटों के नाम से जाने जाने वाले सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़े की उपस्थिति दर्ज की गई थी। इन कीटों के साथ-साथ इन्हें खाने वाले मांसाहारी कीट हथजोड़ा, अंगीरा, लेडी बिटल, बुगड़े, भिरड़, ततहीए, मकडिय़ां, लोपा मक्खी सहित कई प्राकृति कीटनाशी भी काफी संख्या में मौजूद थे। फसल में मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा होने के कारण इस बार कपास के इस खेत में शाकाहारी कीटों का पूरा सुपड़ा साफ हो चुका है। इससे यह बात साफ होती है कि शाकाहारी कीटों को खत्म करने के लिए कीटनाशकों किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं है।

विद्यार्थियों में खेती के  प्रति रुचि पैदा करना है मुख्य उद्देश्य

आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल होने के कारण हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है और इससे मानव के स्वास्थ्य पर भी दूष्प्रभाव पड़ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में पढऩे वाले ज्यादातर विद्यार्थियों के अभिभावकों का व्यवसाय खेतीबाड़ी है। पढ़ाई के साथ-साथ विद्यार्थियों को कीट ज्ञान की मुहिम से जोडऩे का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में खेती के प्रति रुचि पैदा करना है, ताकि विद्यार्थी खेतीबाड़ी के काम में अपने अभिभावकों का हाथ बटा सकें और उनको भी कीट ज्ञान की मुहिम से जोड़कर थाली को जहरमुक्त करने की इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा सके। विद्यालय के 8वीं और 9वीं के विद्यार्थियों को अब सप्ताह के हर बुधवार को किसान खेत पाठशाला में भेजा जाएगा, ताकि विद्यार्थी भी कीट ज्ञान की तालीम हासिल करे सकें।
शिवनारायण शर्मा, मुख्याध्यापक 
राजकीय हाई स्कूल, निडानी



बुधवार, 7 अगस्त 2013

प्रशासन की जिद बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रही भारी

प्रशासन के हिटलरशाही रवैये से अभिभावकों में रोष 

आयरन की गोलियां खाने से अब राजपुरा भैण गांव के स्कूल की छात्राओं की तबीयत बिगड़ी

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिला प्रशासनिक अधिकारियों की जिद बच्चों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है। प्रशासनिक अधिकारी बच्चों को आयरन की गोलियां खिलाने की जिद पर अड़े हुए हैं। प्रशासनिक अधिकारियों के दबाव के कारण आयरन की गोलियां लेने के बाद छात्राओं के बीमार होने के मामले सामने आ रहे हैं। आयरन की गोलियां खाने से छात्राओं के बीमार होने के मामलों के बाद भी प्रशासन कुछ सबक नहीं ले रहा है। प्रशासन के हिटलरशाही रवैये के कारण अभिभावकों में भी भारी रोष बना हुआ है। मंगलवार को जिले के गांव राजपुरा भैण के 
 सामान्य अस्पताल में उपचाराधीन राजपुरा गांव की छात्राएं।
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में आयरन की गोलियां लेने से 4 छात्राओं की तबीयत बिगडऩे का मामला प्रकाश में आया है। छात्राओं की हालत बिगड़ती देख स्कूल स्टाफ के सदस्यों ने चारों छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में भर्ती करवाया। यहां पर चारों छात्राओं का उपचार चल रहा है। 
छात्राओं में खून की कमी को दूर करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू किए गए विफस अभियान के तहत मंगलवार को राजपुरा भैण गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में छात्राओं को आयरन की गोलियां बांटी गई थी। स्कूल की आधी छुट्टी के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम की मौजूदगी में छात्राओं को गोलियां खिलाई गई। गोलियां लेने के कुछ देर बाद 4 छात्राओं को पेट दर्द की शिकायत शुरू हो गई। देखते ही देखते छात्राओं का दर्द बढ़ता चला गया। आयरन की गोलियां खाने से बीमार होने वाली छात्राओं में 7वीं कक्षा की आशा, 9वीं कक्षा की रीना, काजल, दिनेश थी। छात्राओं की हालत बिगड़ती देख स्कूल स्टाफ के सदस्यों के

15 दिन पहले नगूरां गांव के स्कूल में गोली लेने के अभी तक बीमार पड़ी छात्रा सामान्य अस्पताल में उपचाराधीन।
हाथ-पांव फूल गए। स्कूल स्टाफ के सदस्यों ने तुरंत चारों छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में दाखिल करवाया और मामले की सूचना छात्राओं के परिजनों को दी। अपनी बच्चियों की हालत बिगडऩे की सूचना पाकर परिजन भी अस्पताल में पहुंच गए। आयरन की गोलियां खाने के बाद चारों छात्राएं पेट दर्द से बुरी तरह से कराह रही थी। छात्राओं की हालत ऐसी थी कि वो मारे दर्द के कुछ बता भी नहीं पा रही थी। 

मना किया था कि नहीं खानी हैं गोलियां

आयरन की गोलियां खाने के बाद बीमार हुई छात्राओं के साथ आए परिजनों में स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के प्रति गहरा रोष था। महिला बबली और गुड्डी ने कहा कि उन्होंने तो अपनी लड़कियों को पहले ही मना किया था कि अगर स्कूल में उन्हें आयरन की गोलियां खिलाई जाएं तो वो गोलियां नहीं लें लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों के दबाव के कारण उनकी बच्चियों को जबरदस्ती गोलियां खिलाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि जिस दवा से मर्ज बढ़े ऐसी दवा फिर किस काम की। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारियों को कोसते हुए कहा कि उनके खुद के बच्चों के साथ ऐसा नहीं हो रहा है। इसलिए वो बच्चों को जबरदस्ती गोलियां खिला रहे हैं। अगर उनके बच्चों के साथ यह सब हो जाए तो तभी उन्हें एक मां का दर्द समझ में आएगा। 

नगूरां स्कूल की एक छात्रा की हालत अब भी गंभीर

लगभग 15 दिन पहले आयरन की गोलियां खाने से बीमार हुई नगूरां स्कूल की छात्राओं में से एक छात्रा की हालत अब भी गंभीर बनी हुई है। नगूरां निवासी बलवान ने कहा कि 22 जुलाई को नगूरां स्कूल में छात्राओं को आयरन की गोलियां खिलाई गई थी। उस दौरान उसकी भतीजी मोना ने भी गोली ली थी। बलवान ने बताया कि उसके बाद से ही उसकी भतीजी की हालत बिगड़ी हुई है। वह उसके उपचार के लिए रोहतक पी.जी.आई. तक धक्के खा चुके हैं लेकिन उसकी भतीजी की हालत में कोई सुधार नहीं है। उन्होंने कहा कि उसकी भतीजी को आयरन की गोली लिए 15 दिन का समय बीत चुका है लेकिन 15 दिन बाद भी आयरन की गोली का प्रभाव कम नहीं हुआ है। आज भी उनकी लड़की की हालत खराब है।

स्वास्थ्य विभाग की टीम की देखरेख में दी थी गोलियां

विद्यालय के प्राचार्य सुरेंद्र चहल ने कहा कि उनके स्कूल में गोलियां बांटने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंची थी। उन्होंने आधी छुट्टी होने से पहले ही सभी छात्राओं को आधी छुट्टी में खाना खाने के लिए बोल दिया था। ताकि सभी छात्राओं को गोलियां दी जा सकें। आधी छुट्टी के बाद सभी छात्राओं से खाना खाने के बारे में पूछा गया था और इसके बाद ही उन्हें गोलियां दी गई थी। स्वास्थ्य विभाग की टीम की देखरेख में पूरे नियमों के अनुसार सभी छात्राओं को गोलियां दी गई थी। गोलियां लेने के कुछ देर बाद 4 छात्राओं ने पेट दर्द की शिकायत की थी। चारों छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया है। 

मामले पर अधिकारियों ने साधी चुप्पी

इस बारे में जब स्वास्थ्य विभाग के जिला अधिकारियों का पक्ष जानने के लिए जब जिला स्कूल हैल्थ अधिकारी डा. अंशुल दलाल से संपर्क किया गया तो उन्होंने इस मामले पर चुप्पी साधते हुए कुछ भी बताने से मना कर दिया। डा. अंशुल दलाल ने कहा कि इस बारे में केवल सिविल सर्जन ही बता सकते हैं। इसलिए आप उनसे ही संपर्क करें। इस बारे में जब सिविल सर्जन डा. दयानंद के मोबाइल पर संपर्क किया गया तो सिविल सर्जन ने फोन ही रिसिव नहीं किया। सामान्य अस्पताल प्रशासन के अधिकारियों द्वारा इस तरह मामले में चुप्पी साधने से यह सवाल खड़ा होता है कि कहीं ना कहीं दाल में कुछ काला जरुर है। 



मुठभेड़ के बाद पुलिस ने दबोचे 4 बदमाश

बदमाशों के कब्जे से भारी मात्रा में असलाह बरामद

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जींद पुलिस के हाथ एक बड़ी सफलता लगी है। सोमवार रात को बदमाशों के साथ हुई मुठभेड़ के बाद पुलिस ने एक गिरोह के 4 बदमाशों को काबू कर उनके कब्जे से 4 पिस्टल, 1 राइफल, 3 बंदूकों सहित भारी मात्रा में कारतूस बरामद किए हैं। बदमाश जिले में किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे। पुलिस पूछताछ में चारों बदमाशों ने पहले भी 2 हत्याओं में संलिप्त होने की बात स्वीकारी है। चारों बदमाश यू.पी. से हथियारों की खरीद के सिलसिले के लिए जा रहे थे और यू.पी. से हथियारों की खरीद के बाद जींद में 3 लोगों की हत्या की योजना बनाई हुई थी। पुलिस चारों आरोपियों से पूछताछ कर रही है। पूछताछ में कई अन्य मामलों से पर्दा उठने की संभावना है।  
पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह राणा ने मंगलवार को पत्रकार वार्ता में मामले का खुलासा करते हुए बताया कि सी.आई.ए. पुलिस नरवाना क्षेत्र में गश्त कर रही थी। गश्त के दौरान पुलिस को गुप्त सुचना मिली कि कई 
 पत्रकारों से बातचीत करते पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह  राणा।
नौजवान लड़के भारी मात्रा में असला-अमुनेशन लेकर घूम रहे हैं, जो उचाना, जीन्द, नरवाना में कोई बड़ी वारदात करने की फिराक में हैं। सूचना के आधार पर सहायक उप-निरीक्षक जोगेंद्र सिंह ने अपनी टीम के साथ कैंची मोड़ डूमरखां कलां के पर नाकाबंदी कर वाहनों की जांच कर रही थी तो पुलिस को नरवाना की तरफ  से 2 बाइक आती दिखाई दी, जिस पर पुलिस पार्टी ने बाइकों को रुकवाने का प्रयास किया लेकिन बाइस सवार युवकों ने बाइकों को वापस मोड़ लिया। पुलिस पार्टी ने जब इनका पीछा किया तो बाइक सवार बदमाशों ने पुलिस पर फायरिंग कर दी। इसमें पुलिस के जवान बाल-बाल बच गए। उधर से पुलिस ने भी जवाबी फायरिंग कर बाइक सवार चारों बदमाशों को काबू कर लिया। पुलिस ने जब चारों बदमाशों की तलाशी ली तो उनके कब्जे से कारतूस से भरा एक 9 एम.एम. का पिस्तौल, 32 बोर के 2 पिस्तौल, 315 बोल का एक पिस्तौल बरामद हुआ। इसके अलावा उनके कब्जे से 315 बोर की मैगजीन वाली एक राइफल, 2 बंदूकें तथा 315 बोर की एक बंदूक और 45 कारतूस 
 बदमाशों के कब्जे से पकड़े गए हथियार।
बरामद हुए। पुलिस पूछताछ में बदमाशों की पहचान नवनीत पुत्र धर्मपाल निवासी राखी शाहपुर, कुलबीर उर्फ कुल्लू पुत्र धर्मबीर निवासी कोथ कलां, दिनेश उर्फ  दिन्ना पुत्र कृष्ण कुमार निवासी मोहनगढ़ छापड़ा, विजय उर्फ  पौली पुत्र फते सिंह निवासी कहसून के रुप में हुई।

पुलिस पूछताछ में कबूली हत्या में शामिल होने की बात 

 पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह राणा ने बताया कि पुलिस पूछताछ में चारों बदमाशों ने करीब एक साल पहले कोथ कलां गांव में घर में घुसकर मास्टर अमरजीत की गोलियां मारकर हत्या करने तथा मार्च 2013 में बडऩपुर गांव के नजदीक कार सवार प्रदीप उर्फ  काला पुत्र चन्द्र भान निवासी डोहाना खेड़ा की गोलियां मारकर हत्या करने की बात कबूली है। इसके अलावा फिलहाल यह चारों बदमाश जींद जिले में कई बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे और इसके लिए हथियारों की खरीद के लिए यू.पी. जा रहे थे। यू.पी. से हथियार लाने के लिए यह बदमाश जींद से गाड़ी छीनने की घटना को अंजाम देने के लिए जा रहे थे। इन बदमाशों द्वारा द्वारा यू.पी. से हथियारों की खरीद के बाद जींद में 3 लोगों की हत्या की घटना को अंजाम देने की योजना थी। उन्होंने बतताया कि यह चारों बदमाश विजय गैंग के हैं और विजय के इशारों पर काम करते हैं। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि चारों युवकों को पूछताछ के लिए हिरास्त में लिया गया है। पूछताछ के दौरान कई अन्य घटनाओं से भी पर्दा उठने की संभावना है। पुलिस अधीक्षक ने इस सफलता के लिए सिटी थाना प्रभारी कप्तान सिंह
 मुठभेड़ के बाद पकड़े गए बदमाश।
, दीपक कुमार तथा सी.आई.ए. टीम की पीठ थपथपाई। 




मंगलवार, 6 अगस्त 2013

...यहां चलती हैं देश की अनोखी पाठशालाएं

ककहर की बजाए दी जाती है कीट ज्ञान की तालीम

नरेंद्र कुंडू

जींद। आप ने ऐसी पाठशालाएं तो बहुत देखी होंगी, जहां चारदीवारी के अंदर बैठाकर देश के कर्णधारों को क, ख, ग की तालीम देकर उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ऐसी पाठशाला देखी या सुनी है जहां खुले आसमान के नीचे लगने वाली कक्षाओं में कीटों की तालीम देकर देश की आर्थिक रीड (यानि किसानों) को सुदृढ़ करने के प्रयास किए जा रहे हों। जी हां हम बात कर रहे हैं जींद जिले में चल रहे कीट साक्षरता केंद्रों की। यहां प्रति दिन अलग-अलग गांवों में किसान पाठशालाओं का आयोजन किया जाता है। कीट ज्ञान की मुहिम को जिले में फैलाने के लिए फिलहाल जींद जिले के आधा दर्जन गांवों में किसान खेत पाठशालाओं का आयोजन किया जा रहा है और इन आधा दर्जन पाठशालाओं में 2 दर्जन से भी ज्यादा गांवों के किसान कीट ज्ञान की तालीम लेने के लिए आते हैं। इस मुहिम को आगे बढ़ाने में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। कीट कमांडो किसानों द्वारा पाठशाला में आने वाले अनट्रेंड किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाकर जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित किया जाता है। इन पाठशालाओं में किसानों को मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलापों तथा फसल पर पडऩे वाले उनके प्रभाव और कीटों के जीवनचक्र के बारे में पूरी बारिकी से जानकारी दी जाती है। अपने आप में यह अजीब तरह की पाठशालाएं है। इन पाठशालाओं में एक पेड पर बोर्ड लगाकर किसानों को कीटों ज्ञान के साथ-साथ कीट बही खाता तैयार करने, फसल में लागत को कम कर अधिक उत्पादन लेने तथा अपने खेत की मेढ़ पर बैठकर अपने फैसले खुद लेने की शिक्षा दी जाती है। खुले आसमान के नीचे लगने वाली इन पाठशालाओं में किसान खेत की मेढ़ पर बैठकर एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव सांझा करते हैं। इन पाठशालाओं की सबसे खास बात यह है कि यहां न ही तो कोई अध्यापक है और न ही कोई स्टूडैंट है। यह पाठशालाएं किसानों द्वारा किसानों के लिए ही आयोजित की जाती हैं। यहां तो किसान खुद ही अध्यापक हैं और खुद ही स्टूडैंट हैं। इन पाठशालाओं में किसान स्वयं मेहनत करते हैं और कागजी ज्ञान की बजाए व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते हैं। इन पाठशालाओं में किसान फसल में मौजूद मांसाहारी व शाकाहारी कीटों पर खुलकर बहस करते हैं और फिर उस बहस से जो निष्कर्ष निकल कर सामने आता है किसान उस निष्कर्ष को ही अपना हथियार बनाकर फसल पर उसके प्रयोग करते हैं। इन पाठशालाओं में किसानों द्वारा कीटों पर शोध करने का मुख्य उद्देश्य फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को कम कर मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करना तथा बेवहज मारे जा रहे बेजुबान कीटों रक्षा कर नष्ट हो रही प्रकृति को बचना है। जींद जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई यह मुहिम देश में सबसे अनोखी मुहिम है। आज इसके चर्च प्रदेश ही नहीं बल्कि देश से बाहर भी चलने लगे हैं। इसका जीता-जागता प्रमाण यह है कि इंटरनैट पर ब्लाग के माध्यम से विदेशों के किसान भी इनके साथ जुड़ रहे हैं और यहां के किसानों द्वारा ब्लाग पर डाली जा रही जानकारी को पूरी रुचि के साथ पढ़ रहे हैं। देश के दूसरे प्रदेशों के किसान तथा कृषि अधिकारी भी इन किसानों से कीट ज्ञान के टिप्स लेने के लिए समय-समय पर इनके पास आते रहते हैं। यहां के किसानों के प्रयोगों को देखकर पंजाब के कई जिलों के किसान तो इन्हें अपना रोल मॉडल मानकर इनके पदचिह्नों पर चलते हुए जहरमुक्त खेती का अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।  

ग्रुप बनाकर करते हैं तैयारी


किसान खेत पाठशालाओं में आने वाले किसान किसी भी प्रयोग को उसके अंतिम चरण तक पहुंचाने के लिए पूरी लग्र व मेहनत से उस पर कार्य करते हैं तथा हर पहलु से उस प्रयोग पर बहस करते हैं। प्रयोग में किसी प्रकार की चूक न रहे इसके लिए यह किसान 5-5 किसानों के अलग-अलग ग्रुप बनाते हैं और फिर ग्रुप बनाकर खेत में अपना शोध शुरू करते हैं। यह किसान ग्रुप अनुसार फसल में घुसकर सुक्ष्मदर्शी लैंसों की सहायता से पौधों के पत्तों व टहनियों पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान कर उसके जीवन चक्र के बारे में बारिक से बारिक जानकारी जुटाते हैं। कई-कई घंटे कड़ी धूप में फसल में बैठकर कीटों पर कड़ा अध्यान करने के बाद फसल में किस-किस तरह के कीट हैं तथा उनकी तादाद का पूरा लेखा-जोखा कागज पर उतारा जाता है। इन किसानों को कीटों के बारे में इतनी ज्यादा जानकारी हो चुकी है कि ये कीट को देखते ही उसकी पूरी पीढ़ी का लेखाजोखा खेलकर रखदेते हैं। कीटों पर अगर चर्चा की जाए तो बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों के पास भी इनके सवालों का जवाब नहीं है।  

                                                                                       पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं किसान


डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता केंद्र के किसान पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं। खेत से हासिल किए गए अपने अनुभवों को ये किसान ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से अन्य लोगों के साथ सांझा करते हैं। अपना खेत अपनी पाठशाला, कीट साक्षरता केंद्र, महिला खेत पाठशाला, चौपटा चौपाल, निडाना गांव का गौरा, कृषि चौपाल, प्रभात कीट पाठशाला सहित इन किसानों ने इंटरनैट पर एक दर्जन के लगभग ब्लाग बनाए हुए हैं और इन ब्लागों पर ये किसान ठेठ हरियाणवी तथा हिंदी भाषा में अपने विचार प्रकट करते हैं। इन किसानों द्वारा संचालित इन ब्लागों की सबसे खास बात यह है कि ये ब्लॉग हरियाणा ही नहीं अपितू दूसरे देशों में भी पढ़े जाते हैं। दूसरे प्रदेशों के किसान ब्लाग व फेसबुक के माध्यम से इन किसानों से अपने सवाल-जबाव करते हैं और अपनी समस्याएं इन किसानों के समक्ष रखकर उनका समाधान भी पूछते हैं। 

कीट वैज्ञानिक भी लगा चुके हैं इनके अनोखे शोध पर सहमती की मोहर

कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा वर्ष 2008 में निडाना गांव के खेतों से शुरू की गई कीट ज्ञान क्रांति की लौ आज इतनी तेजी से देश में फैलने लगी है कि प्रदेश से बाहर भी इनके चर्चे शुरू हो चुके हैं। इन किसानों की सबसे बड़ी सफलता यह है कि जो कीट वैज्ञानिक आज से पहले कीटों को नियंत्रित करने के लिए किसानों को कीटनाशकों का प्रयोग करने का सुझाव देते थे आज वही वैज्ञानिक इन किसानों के बीच पहुंचकर इनके अनोखे शोध की सराहना कर कीटों को नियंत्रित करने की नहीं, बल्कि कीटों को पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाने की नसीहत देते हैं। 



रविवार, 4 अगस्त 2013

किसानों ने तोड़ी मरोडिय़े की मरोड़

किसान कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए बनाएं डाक्यूमैंट्री  : डा. सांगवान

नरेंद्र कुंडू
जींद। शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता किसान खेत पाठशाला में किसानों ने कृषि विशेषज्ञों के साथ मरोडिय़े की बीमारी पर गहन मंथन किया। इस अवसर पर कृषि विश्वविद्यालय हिसार से काटन विभाग के मुखिया डा. आर.एस. सांगवान, काटन वैज्ञानिक डा. उमेंद्र सांगवान तथा कीट वैज्ञानिक डा. कृष्णा भी भाग लेने के लिए पहुंचे थे। कृषि विश्वविद्यालय हिसार से आए डा. आर.एस. सांगवान ने कहा कि किसानों ने कीटों पर जो शोध किया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। किसानों को इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटों पर एक डाक्यूमैंट्री बनानी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक किसानों को इस मुहिम से जोड़ा जा सके।
किसानों के साथ कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते कृषि अधिकारी।
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि मरोडिया एक लाइलाज बीमारी है। यह जैमनी वायरस है और इस वायरस को खत्म करने के लिए आज तक कोई भी दवाई नहीं बनी है। क्योंकि यह वायरस न तो जीवित है और न ही मृत। अगर  किसी वस्तु या पौधे में इसका प्रवेश करवा दिया जाता है तो यह जीवित हो जाता है और अगर इसे बाहर निकाल दिया जाता है तो यह मृत अवस्था में चला जाता है। इस लिए इसका इलाज संभव नहीं है। मरोडिये के लक्षण दिखाने में पौधे को 30-40 दिन लग जाते हैं। डा. सैनी ने कहा कि इस वायर को फैलाने में सफेद मक्खी एक वाहक का काम करती है। सफेद मक्खी जब वायरस युक्त पौधे का रस चूसकर दूसरे पौधे पर जाकर रस चूसती है तो सफेद मक्खी के डंक के माध्यम से यह स्वस्थ पौधे में प्रेवश कर जाता है। अगर खेत में एक सफेद मक्खी भी है तो वह भी पूरे खेत में इस वायरस को फैला सकती है। इसलिए किसानों को कीटनाशकों में इसका विकल्प ढूंढऩे की बजाए पौधे की ताकत को बनाए रखने पर जोर देना चाहिए। क्योंकि यह वायरस पौधे से कार्बोहाइड्रेट को कम करता है। डा. सैनी ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो किसानों को एक एकड़ में लगाए गए कपास के पौधे को ताकत देने के लिए 100 लीटर पानी में आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो डी.ए.पी. तथा अढ़ाई किलो यूरिया का घोल तैयार कर उसका छिड़काव करना चाहिए। मरोडिया के कारण पौधों में जो कार्बोहाइड्रेट की कमी होगी, वह कमी यह घोल पूरी करता रहेगा। डा. सैनी ने कहा कि कीट साक्षरता की मुहिम से जुड़े किसानों ने इसी तहर सीमित मात्रा में उर्वरकों का यह घोल तैयार कर इस मरोडिये की मरोड़ निकाली है।
एच.ए.यू.  हिसार से आए डा. आर.एस. सांगवान को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।

किसान कीड़ों के साथ न करें छेडख़ानी 

किसान खेत पाठशाला में भाग लेने आए मास्टर ट्रेनर किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू, रामदेवा, बलवान, जोगेंद्र अलेवा, जयभगवान ने कहा कि किसानों को कीटों को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीटों की संख्या कम होने की बजाए बढ़ती है। मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा, राजपुरा भैण, ईंटल कलां, ईगराह आदि गांवों के किसान जो पिछले कई वर्षों से इस मुहिम के साथ जुड़े हुए हैं, उन्होंने अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष भी अपनी फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया है और उनके खेतों में सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े तथा अन्य शाकाहारी कीटों की संख्या कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित किए गए आॢथक कगार से अभी भी काफी दूर है। उन्होंने किसानों द्वारा की गई कीटों की साप्ताहिक कीट समीक्षा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सफेद मक्खी की संख्या 1.06, हरे तेले की 1.2 और चूरड़े की संख्या 1.4 तक पहुंची है, जो की नुक्सान के सत्र से कोसों दूर है।


बुधवार, 31 जुलाई 2013

...फिर सुलगने लगी जाट आरक्षण की चिंगारी


केंद्र में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई के मुढ़ में हैं खाप चौधरी
4 अगस्त को दनौला कलां के बिनैन खाप के चबूतरे से होगा आंदोलन का शंखनाद

नरेंद्र कुंडू
जींद। हरियाणा में जाट आरक्षण की चिंगारी फिर से सुलगने लगी है। केंद्र में आरक्षण की मांग को लेकर हरियाणा के जाट अब सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई के मुढ़ में हैं। आंदोलन की लड़ाई के लिए खाप के चौधरी रणनीति तैयार करने में लगे हुए हैं। आंदोलन के शंखनाद के लिए खाप चौधरियों द्वारा मंच तैयार किया जा रहा है। पिछले वर्ष की तर्ज पर इस बार भी दनौदा कलां गांव में स्थित बिनैन खाप के उसी चबूतरे से आंदोलन का आगाज किया जाएगा। इसी चबूतरे से 13 सितंबर 2012 को हरियाणा में जाट आरक्षण की नींव रखी गई थी। पंचायत में भाग लेने के लिए बिनैन खाप की तरफ से संदेश भेजने का काम शुरू किया जा चुका है। इस बार खाप चौधरियों के आंदोलन शुरू करने का लक्ष्य केंद्र में जाटों को आरक्षण दिलवाना है।
केंद्र में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए खाप प्रतिनिधियों ने फिर से बगावत के सुर छेड़ दिए हैं। खाप चौधरियों द्वारा आंदोलन को सफल बनाने के लिए रणनीति तैयार की जा रही है। इस बार खाप प्रतिनिधियों द्वारा सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई की रणनीति तैयार की जा रही है। आंदोलन को सफल बनाने के लिए खाप चौधरियों का पूरा फोक्स सरकार पर अधिक से अधिक दबाव बनाने का है। रणनीति को अंतिम रुप देने के लिए  4 अगस्त को दनौदा कलां गांव के बिनैन खाप के चबूतरे पर एक पंचायत का आयोजन किया जाएगा। पिछले वर्ष इसी चबूतरे से हरियाणा में जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए शुरू किए गए आंदोलन की नींव रखी गई थी। 4 अगस्त को होने वाली पंचायत में जाट चौधरी आंदोलन का शंखनाद करेंगे। केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए इस बार पूरे देश के जाटों को दिल्ली में एकत्रित करने की योजना तैयार की गई है। दिल्ली में होने वाले आंदोलन में सबसे ज्यादा अहम भूमिका हरियाणा के जाटों की होगी। क्योंकि जाट की सबसे अधिक संख्या हरियाणा में है। दनौदा कलां के चबूतरे पर होने वाली पंचायत में खाप चौधरी आंदोलन के लिए जाटों की नब्ज टटोलने का काम करेंगे।

पंचायत के लिए सभी खापों को भेजा गया है निमंत्रण

सर्वजाट सर्वखाप हरियाणा के प्रधान दादा नफे सिंह नैन ने बताया कि 4 अगस्त को दनौदा कलां के बिनैन खाप के चबूतरे पर होने वाली पंचायत के लिए सभी खापों को निमंत्रण भेज दिया गया है। पंचायत में जो फैसला किया जाएगा उसको दिल्ली में 13 अगस्त को होने वाली जाटों की महापंचायत में रख दिया जाएगा।

नौकरियों में आरक्षण लेना ही उनका उद्देश्य

सर्वजाट सर्वखाप हरियाणा के प्रवक्ता सूबे सिंह सैमाण ने कहा कि केंद्र की नौकरियों में जाट आरक्षण को लेना ही खाप पंचायतों का लक्ष्य है। आरक्षण के लिए इस बार वे आर-पार की लड़ाई के मुढ़ में हैं। इसके लिए 4 अगस्त को बिनैन खाप के चबूतरे पर पंचायत का आयोजन कर एक ठोस नीति बनाई जाएगी। इसके बाद 13 अगस्त को दिल्ली में पूरे देश के जाटों की महापंचायत का आयोजन कर आंदोलन शुरू किया जाएगा।

शिव भक्तों की आस्था पर भारी पड़ी आपदा

कांवडिय़ों पर नजर आया उत्तराखंड आपदा का असर
उत्तराखंड आपदा के कारण इस बार कांवडिय़ों की संख्या में आई कमी

नरेंद्र कुंडू
जींद। उत्तराखंड में आई आपदा शिव भक्तों की आस्था पर भारी पड़ रही है। आपदा का प्रभाव इस बार शिव भक्तों पर साफ नजर आ रहा है। इसके चलते इस बार पिछले वर्षों की भांति कांवडिय़ों की संख्या में काफी कमी नजर आ रही है। अन्य वर्षों के मुकाबले इस बार मात्र 10-15 प्रतिशत कांवडिय़े ही हरिद्वार व गौमुख से कांवड़ लेकर पहुंच रहे हैं। कांवडिय़ों की कम संख्या के कारण ही इस बार कांवडिय़ों की सेवा के लिए लगाए जा रहे शिविर भी खाली-खाली नजर आ रहे हैं।
सावन का महीना आते ही हरिद्वार और गौमुख से शिव की कांवड़ लाने के लिए शिव भक्तों में एक तरह से होड़ सी लग जाती थी। अकेले हरियाणा से लाखों की संख्या में श्रद्धालु कांवड़ लाने के लिए हरिद्वार का रुख करते थे। शिव भक्त अपने आराध्य देव भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए गौमुख तथा हरिद्वार से कांवड़ में गंगाजल भरकर लेकर आते थे। शिव रात्रि के नजदीक आते-आते सड़कों पर हर तरफ कांवडिय़ों का हुजूम नजर आने लगता था और शिव के जयकारों के कारण पूरा माहौल शिवमय हो जाता था लेकिन इस बार उत्तराखंड में भीष्ण त्रास्ती आने तथा त्रास्ती में हजारों लोगों की मौत ने शिव भक्तों की आस्था पर गहरा प्रहार किया है। आपदा के कारण उत्तराखंड में हुए विनाश की कहानी सुनकर इस बार हरिद्वार की तरफ शिव भक्तों के रुझान में भी काफी कमी आई है। इसी का परिणाम है कि अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष काफी कम संख्या में शिव भक्त हरिद्वार व गौमुख से कांवड़ लेकर यहां पहुंच रहे हैं। शिव रात्रि नजदीक आ चुकी है लेकिन सड़कों पर शिव भक्तों की तादात बहुत कम नजर आ रही है। अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष महज 10-15 प्रतिशत श्रद्धालु ही कांवड़ लेने हरिद्वार पहुंचे हैं। शिव भक्तों की विमुखता के कारण इस बार शिव भक्तों के ठहराव के लिए बनाए गए शिविर भी खाली-खाली नजर आ रहे हैं।
 हरिद्वारा से कांवड़ लेकर पहुंचे शिव भक्त। 


जींद-सफीदों मार्ग पर पगडिय़ों उगी झाडिय़ां।

शिव भक्तों की सुरक्षा के लिए होंगे पुख्ता इंतजाम  

इस बार कांवड़ लेकर पहुंचने वाले शिव भक्तों की सुरक्षा के लिए जिला पुलिस द्वारा पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे। कांवडिय़ों की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए इस बार पुलिस अधीक्षक बलवान ङ्क्षसह राणा ने सभी शिविरों में 2-2 पुलिस कॢमयों की ड्यूटी लगाने के अलावा 10 राइडर तथा 3 पी.सी.आर. की ड्यूटी लगाई है। एस.पी. ने सभी पुलिस कॢमयों को पूरी ईमानदारी व निष्ठा से अपनी ड्यूटी निभाने के  सख्त निर्देश दिए हैं।

कांवडिय़ों के चलने के लिए नहीं मिल रहा रास्ता

एक तरफ तो सरकार जींद-सफीदों स्टेट हाइवे को फोरलेन करने की योजना तैयार कर रही है लेकिन दूसरी तरफ पी.डब्ल्य.डी. विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते इस मार्ग पर पैदल यात्रियों के चलने के लिए पगडंडी तक की व्यवस्था नहीं है। जींद-सफीदों मार्ग पर पैदल यात्रियों के चलने के लिए जो पगडंडी छोड़ी गई है, उस पगडंडी पर कांटेदार झाडियों ने कब्जा जमा लिया है लेकिन पी.डब्ल्यू.डी. विभाग इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है। ऊपर से सावन का महीना शुरू होने के कारण कांवडिय़ों का आवागमन भी शुरू हो गया है लेकिन सड़क पर पैदल यात्रियों के चलने के लिए पगडंडिय़ां नहीं होने के कारण कांवडिय़ों को मजबूरीवश सड़क पर चलना पड़ रहा है। इससे यहां वाहन चालकों को तो परेशानियों का सामना करना पड़ ही रहा है साथ-साथ यहां दुर्घटना होने का अंदेशा भी बना हुआ है। जबकि नियमों के अनुसार सड़क के दोनों तरफ 5-5 फुट की पगड़ंडी होनी जरुरी है लेकिन पी.डब्ल्य.डी. विभाग का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है।

तलोड़ाखेड़ी गांव के पास है बुरा हाल

जींद-सफीदों सड़क पर वैसे तो हर जगह ही कांटेदार झाडिय़ों का अतिक्रमण बना हुआ है लेकिन तलोड़ाखेड़ी गांव के पास सबसे बुरा हाल है। यहां तीव्र मोड़ होने तथा मोड पर कांटेदार झाडिय़ों का जाल फैल जाने के कारण सामने से आ रहे वाहन का पता नहीं चलता है। इससे यहां सबसे ज्यादा दुर्घटना होने का अंदेशा बना हुआ है लेकिन पी.डब्ल्य.डी. विभाग कुंभकर्णी नींद सोया हुआ है। विभाग के अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी से कोई सरोकार नहीं है।



मंगलवार, 30 जुलाई 2013

'एक दिन के लिए जेल गई कीटों की मास्टरनियां'

जिला कारागार में लगी खेती की पाठशाला, कैदियों व बंदियों को पढ़ाया कीट ज्ञान का पाठ

कारागार में देश की पहली महिला किसान खेत पाठशाला के आयोजन से जींद कारागार के इतिहास में जुड़ा एक नया अध्याय

नरेंद्र कुंडू
जींद। कीट ज्ञान में माहरत हासिल कर चुकी ललीतखेड़ा, निडाना व निडानी गांव की कीटों की मास्टरनियां एक दिन के लिए जेल में गई। कीटों की मास्टरनियों ने जिला कारागार में एक दिन के लिए किसान खेत पाठशाला लगाई और यहां कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान क पाठ पढ़ाया। कारागार के अंदर डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला के आयोजन तथा फसलों में मौजूद मांसाहारी और शाकाहारी कीटों के बारे में इतनी बारिकी से जानकारी हासिल कर बंदी भी काफी खुश थे। वहीं जींद की जिला कारागार में देश की पहली महिला किसान खेत पाठशाला के आयोजन से जींद की जिला कारागार के इतिहास में भी एक नया अध्याय जुड़ गया। महिला किसान खेत पाठशाला का शुभारंभ जेल अधीक्षक डा. हरीश कुमार रंगा ने किया। इस अवसर पर कृषि विभाग के उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, ए.डी.ओ. कमल सैनी, डा. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, ढुल खाप के प्रतिनिधि इंद्र सिंह ढुल, दलीप सिंह चहल, राजबीर कटारिया, अक्षत दलाल जेल के उप-अधीक्षक सेवा सिंह व नरेश गोयल भी विशेष रूप से मोजूद थे।
महिला किसान अंग्रेजो ने बताया कि आज फसलों पर अंधाधुंध कीटनाशकों के इस्तेमाल से हमारा खान-पान जहरीला हो रहा है। फसलों पर कीटनाशकों का अधिक प्रयोग होने से कीट तो अपने वंश को बचाने के लिए अपनी शारीरिक शक्ति को बढ़ा रहे हैं लेकिन मनुष्य के शरीर में हर रोज जहरयुक्त खाद्य पदार्थों जाने के कारण मनुष्य शारीरिक रूप से कमजोर हो रहा है। अंग्रेजो ने बताया कि वह वर्ष 2010 से इस पाठशाला के साथ जुड़ी हुई हैं और जब से उन्हें कीटों की पहचान हुई है तब से उन्होंने फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल पूर्ण रूप से बंद कर दिया है और पिछले इन 3 सालों में उसने बिना कीटनाशकों का इस्तेमाल किए अच्छा उत्पादन लिया है। सविता ने बताया कि किसान खेत पाठशालाओं के दौरान वह 206 किस्म के मांसाहारी और शाकाहारी कीटों की पहचान कर चुके हैं। इनमें 43 किस्म के कीट शाकाहारी तथा 163 किस्म के कीट मांसाहारी हैं। मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा होने के कारण मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खुद ही कंट्रोल कर लेते हैं। इसलिए कीटों को मारने की नहीं बल्कि उनको समझने तथा परखने की जरुरत है।  कीटाचार्य मनबीर रेढ़ू ने बताया कि आज देश में कीटनाशकों का 8 से 10 हजार करोड़ रुपए का कारोबार होता है और यह कारोबार भय व भ्रम के बलबूते पर चलाया जाता है। पहले तो पेस्टीसाइड कंपनियां किसानों को भिन्न-भिन्न किस्म के कीट दिखाकर किसानों को भ्रमित करती हैं और उसके बाद उन कीटों के नुक्सान का झूठा प्रचार कर किसानों को भयभीत किया जाता है।

90 प्रतिशत मां का दूध भी हो चुका है जहर युक्त 

जेल अधीक्षक डा. हरीश कुमार रंगा ने कहा कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है, लेकिन कीटों के बिना खेती असंभव है। उन्होंने कहा कि खेती में अंधाधुंध  कीटनाशकों एवं खाद के प्रयोग से खाने की थाली पूरी तरह से जहर युक्त हो गई है। इसके कारण आदमी की औसतन आयु कम हो रही है। उन्होंने एक पत्रिका में छपे एक लेख का हवाला देते हुए कहा कि आज मां का दूध भी 90 प्रतिशत जहर युक्त हो चुका है। इस मुख्य कारण फसलों के उत्पादन बढ़ाने के लिए अत्याधिक कीटनाशकों का प्रयोग होना है। रंगा ने कीटज्ञान का अभियान चलाने वाले स्व. डा. सुरेन्द्र दलाल की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह हमारे जिले का सौभाग्य है कि हमें ऐसे व्यक्ति की प्रेरणा मिली, जिससे भविष्य में पूरी दुनिया अनुसरण करेगी। डा. रंगा ने कहा कि आज तक पूरे देश में कहीं भी इस तरह महिलाओं ने बंदियों को जहर मुक्त खेती के टिप्स नहीं दिए।

76 लाख लोग कैंसर के कारण बनते हैं काल का ग्रास 

जेल अधीक्षक को स्मृति चिहन भेंट करती मैडम कुसुम दलाल 
कीटाचार्य रणबीर मलिक ने बताया कि आज कैंसर ने एक गंभीर चुनौति का रूप धारण कर लिया है। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो हर वर्ष लगभग 6 करोड़ लोगों की मौत होती है और इनमें से अकेले 76 लाख लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बनते हैं। इसके अलावा 2 लाख 20 हजार लोग प्रति वर्ष पेस्टीसाइड प्वाइजनिग के कारण यानि जहर के सेवन से मरते हैं। अगर इसी संगठन की रिपोर्ट पर गौर फरमाया जाए तो कैंसर जैसी बीमारी का फैलने का मुख्य कारण सामने आता है किसानों द्वारा खाद्य पदार्थो यानि फसलों में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग करना। डब्ल्यू.एच.ओ. की एक रिपोर्ट के अनुसार खेतों में कीटनाशकों के स्प्रे नहीं करने वाले किसानों के मुकाबले कीटनाशकों के स्प्रे करने वाले किसानों में कैंसर होने की संभावना संख्यकीय तौर पर ज्यादा है। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपए खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं। फसलों में अत्याधिक पेस्टीसाइड के इस्तेमाल से आज दूध, सब्जी, पानी तथा हर प्रकार के खाद्य पदार्थों पर जहर का प्रभाव बढ़ रहा है। इस प्रकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से हर रोज काफी मात्रा में जहर हमारे शरीर में प्रवेश कर हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर रहा है। यू.एस.ए. की पर्यावरण संरक्षण एजैंसी के अनुसार दुनिया में 268 किस्म के पेस्टीसाइड रजिस्टर्ड हैं। इनमें से 68 किस्म के ऐसे फंजीनाशक, फफुंदनाशक, खरपतवार नाशक और कीटनाशक हैं जो कैंसर कारक सिद्ध हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी भारत में इन पेस्टीसाइडों का धड़ले से प्रयोग हो रहा है।

बंदियों को सुनाए कीटों पर आधारित गीत

जिला कारागार में कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाने पहुंची कीटों की मास्टरनियों ने कैदियों व बंदियों को कीटों के बारे में जानकारी देने के साथ-साथ उनको प्रेरित करने के लिए कीटों पर आधारित गीत भी सुनाए। कार्यक्रम का शुभारंभ महिलाओं ने 'कीडय़ां का कट रहया चाला ऐ मैने तेरी सूं तथा हे बीटल म्हारी मदद करो हामनै थारा एक सहारा है' गीत सुनाकर की और बंदियों व कैदियों को जहरमुक्त खेती का संदेश दिया।






मंगलवार, 23 जुलाई 2013

अब कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी कीटों की मास्टरनियां

25 जुलाई को जिला कारागार में लगाई जाएगी किसान खेत पाठशाला

नरेंद्र कुंडू
जींद। महिला किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाली निडाना व ललीतखेड़ा की कीटों की मास्टरनियां अब जिला कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को भी कीट ज्ञान की तालीम देंगी। इसके लिए जिला कारागार में 25 जुलाई को किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। इस पाठशाला में निडाना, निडानी तथा ललीतखेड़ा गांव की कीटाचार्या महिलाएं जेल में बंद कैदियों व बंदियों को जहरमुक्त खेती के टिप्स देंगी। जेल में इस कार्यक्रम के आयोजन का मुख्य उद्देश्य कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान के माध्यम से खेती के गुर सिखाकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩा है, ताकि जेल में बंद कैदियों व बंदियों को सही दिशा देकर गलत संगत से निकाला जा सके और जेल से छुटने के बाद वे कीट ज्ञान के बूते खेती को व्यवसाय के तौर पर अपनाकर अपने भविष्य को संवार सकें। 
कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा निडाना गांव के खेतों से शुरू की गई कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम अब जिले में तेजी से फैलने लगी है। कीट कमांडों किसानों के स्तही ज्ञान को देखते हुए अब कृषि विभाग के साथ-साथ जिला प्रशासन के अन्य अधिकारी भी इस मुहिम में अपनी भागीदारी दर्ज करवाने लगे हैं। इसी कड़ी के तहत अब जिला कारागार प्रशासन ने कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को भी कीट ज्ञान की शिक्षा दिलवाने के लिए योजना तैयार की है। जिला कारागार प्रशासन द्वारा 25 जुलाई को कारागार में किसान खेत पाठशाला का आयोजन करवाया जा रहा है। कीट ज्ञान में महारत हासिल कर चुकी निडाना, निडानी व ललीतखेड़ा गांव की वीरांगनाएं इस पाठशाला में कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी। महिला किसान सविता, मीनी, अंग्रेजो, बिमला, गीता, कमलेश, राजवंती ने बताया कि आज किसान अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे हमारा खान-पान तो जहरीला हो ही रहा है, साथ-साथ हमारा वातावरण भी दूषित हो रहा है। जबकि बिना कीटनाशकों के भी खेती संभव है और वह पिछले कई वर्षों से कीट ज्ञान के बूते बिना कीटनाशकों के खेती कर अच्छा उत्पादन ले रही हैं। जेल प्रशासन द्वारा कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान सिखाने के लिए जिस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। जेल प्रशासन द्वारा इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बंदियों व कैदियों को बुरी संगत से निकालकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩा है, ताकि कारागार से निकलने के बाद बंदी व कैदी खेती को व्यवसाय के तौर पर अपनाकर अपने भविष्य को उज्जवल बना सकें। 
जिला कारागार का फोटो, जहां कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।

कैदियों व बंदियों को मिलेगी नई दिशा

जिला कारागार में बंद ज्यादातर बंदी व कैदी ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। ज्यादातर बंदी व कैदी फसल की बिजाई व कटाई के दौरान छुट्टियां लेकर घर जाते हैं। इसके अलावा कारागार में भी लगभग 32 एकड़ में खेती की जाती है। खेती कार्य में कैदी भी सहयोग करते हैं। अगर बंदियों व कैदियों को कीटों के बारे में जानकारी होगी तो इससे फसलों में उर्वरकों पर बढ़ते खर्च में कमी आएगी तथा थाली में बढ़ते जहर के स्तर को भी कम किया जा सकेगा। इसके अलावा एक सामाजिक मुहिम से जुडऩे के कारण कैदियों व बंदियों की मानसिकता भी सुधरेगी और इन्हें एक नई दिशा मिलेगी। 
डा. हरीश रंगा, सुपरीडैंट
जिला कारागार, जींद


रविवार, 21 जुलाई 2013

'कीटाचार्य किसानों ने कृषि विकास अधिकारियों को पढ़ाया कीट ज्ञान का पाठ'

प्रशिक्षण शिविर के दौरान कीट शोध पर जानकारी लेने किसान पाठशाला में पहुंचे थे अधिकारी

नरेंद्र कुंडू
जींद। कीटाचार्य किसानों ने कृषि विभाग के कृषि विकास अधिकारियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाया तथा मांसाहारी और शाकाहारी कीटों की पहचान करवाकर उनके क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। जींद के किसान प्रशिक्षण केंद्र में 21 दिवसीय रिफरेश ट्रेनिंग कैंप में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे कृषि विकास अधिकारियों का 30 सदस्यीय दल शनिवार को ट्रेनिंग इंचार्ज डा. बलजीत लाठर के नेतृत्व में राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला में एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण पर पहुंचा था। यहां पर कृषि विकास अधिकारियों ने कीटाचार्य किसानों के साथ कपास की फसल का अवलोकन कर पौधों तथा कीटों के आपसी सम्बंध पर गहनता से विचार-विमर्श किया। पाठशाला के मुख्यातिथि रहे धर्मपाल उर्फ मानू लौहान ने किसानों की जहरमुक्त खेती की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए 11 हजार रुपए की राशि भेंट की। इस अवसर पर डा. सुभाषचंद्र, डा. राजेश लाठर, डा. हरिभगवान, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा तथा सुनील कंडेला, अक्षत दलाल भी विशेष तौर पर मौजूद  थे। 
पाठशाला के दौरान कृषि विकास अधिकारियों को कीटों की जानकारी देते डॉ कमल सैनी 
कीटाचार्य मनबीर रेढ़ू, रणबीर मलिक, बलवान, रमेश, रामदेवा, सुरेश की टीम ने कृषि विकास अधिकारियों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि पौधों और कीटों के बीच एक गहरा रिश्ता है लेकिन किसान अज्ञानता के कारण इस रिश्ते को समझ नहीं पा रहा है। अगर किसान खेती को फायदे का सौदा बनाना चाहते हैं तो उन्हें खेती पर अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ते खर्च को कम करना होगा। यह तभी संभव हो सकता है, जब किसानों के पास अपना खुद का ज्ञान होगा। उन्होंने कहा कि किसान का सही मार्गदर्शन करने में एक कृषि विकास अधिकारी अहम भूमिका निभा सकता है। इसलिए कृषि विकास अधिकारियों को चाहिए कि वे किताबी ज्ञान के साथ-साथ धरातल से पैदा किए गए व्यवहारिक ज्ञान को हासिल कर उसे अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाएं, ताकि किसानों में जागरूकता पैदा की जा सके। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि कीट 2 प्रकार के होते हैं। एक शाकाहारी तथा दूसरे मांसाहारी। फसल में सबसे पहले शाकाहारी कीट आते हैं और इसके बाद शाकाहारी कीटों को कंट्रोल करने के लिए मांसाहारी कीट आते हैं। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने कृषि विभाग अधिकारियों को फसल का अवलोकन करवाया। अवलोकन के दौरान बारिश के बाद जमीन के अंदर से पौधों पर आए कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि बरसात में जमीन में पानी भर जाने के कारण जमीनी कीड़े हंडेर बीटल, गुचको, घुमंतु बीटल इत्यादि अपनी सुरक्षा के लिए पौधों पर आ जाते हैं। ऐसी अवस्था में इनकी भूख बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और इन्हें जिस भी तरह का कीट मिल जाए ये उसी को खा कर उसका काम तमाम कर देते हैं। उन्होंने बताया कि जमीनी कीड़े पौधों पर आने के कारण कपास की फसल में मौजूद रस चूसक कीटों की संख्या काफी कम हो गई है। फसल के अवलोकन के बाद कीटाचार्य किसान तथा कृषि विकास अधिकारियों के बीच कीटों के क्रियाकलापों और फसलों पर पडऩे वाले उनके प्रभाव पर काफी देर तक चर्चा भी की।
 बरसात के बाद जमीन में पानी भर जाने के बाद पौधों पर आए मांसाहारी बीटल। 

साप्ताहिक कीट समीक्षा

गांव का नाम सफेद मक्खी हरा तेला चूरड़ा
राजपुरा                    1.7 1.9           2.8
ललीतखेड़ा                1.8 1.3             5.7
रधाना                     1.4 0.8           6.4
ईगराह                     1.4 1.4           4.6
कुल औसत              1.5 1.35          4.8
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि उपरोक्त आंकड़ा यहां के किसानों द्वारा अलग-अलग गांव में चल रही किसान खेत पाठशालाओं से एकत्रित किया गया है। सैनी ने बताया कि आंकड़े की कुल औसत को देखते हुए अभी तक कोई भी रस चूसक कीट कपास की फसल में नुक्सान पहुंचाने के आॢथक सत्र को छू भी नहीं पाया है। 
पाठशाला के दौरान कृषि विकास अधिकारियों को कीटों की जानकारी देते किसान।



गुरुवार, 18 जुलाई 2013

मानसून के इंतजार में मुरझाए किसानों के चेहरे

मानसून की दगाबाजी से फसलों पर छाए संकट के बादल

नरेंद्र कुंडू
जींद। धान की रोपाई का सीजन अंतिम चरण में है लेकिन अभी तक मानसून नहीं आने के कारण किसानों की फसलों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। बढ़ते तापमान के कारण सूख रही धान की फसलों को देखकर धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरें खींचने लगी हैं। ऐन वक्त पर मानसून के धोखा दे जाने के कारण किसानों के चेहरों पर मायूसी छा गई है। समय पर बारिश नहीं होने के कारण जिले में धान की रोपाई का कार्य भी प्रभावित हो रहा है। धीमी गति से चल रहे धान की रोपाई के कार्य के कारण कृषि विभाग को भी अपने टारगेट तक पहुंचने में पसीना आ रहा है। इस बार धान की रोपाई के लिए कृषि विभाग के पास 99 हजार हैक्टेयर का टारगेट है लेकिन समय पर बारिश नहीं होने के कारण अभी तक जिले में सिर्फ 75 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा धान की रोपाई के लिए उपयुक्त समय 15 जुलाई तक माना जाता है। 
जिले में 15 जून से धान की रोपाई का कार्य शुरू हो जाता है और 15 जुलाई तक रोपाई का कार्य जोरों पर चलता है। कृषि विभाग के अधिकारी भी धान की रोपाई के लिए इस समय को सबसे उपयुक्त मानते हैं। 15 जून के बाद से ही जिले के किसान धान की रोपाई के कार्य में लगे हुए हैं लेकिन धान की रोपाई के दौरान बारिश नहीं होने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें पडऩे लगी हैं। बिना बारिश के मुरझा रही फसलों के  साथ-साथ किसानों के चेहरे भी मुरझाने लगे हैं। किसान धान की फसल को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। मानसून की दगाबाजी व बिजली के लंबे कटों के कारण किसानों को धान की फसल को बचाने के लिए महंगे भाव का डीजल फूंकना पड़ रहा है। इससे किसानों की जेबें ढीली हो रही हैं। समय पर बारिश नहीं होने के कारण किसान धान की रोपाई को लेकर कसमकस की स्थिति में हैं। किसान रोपाई करने से पहले बारिश का इंतजार कर रहे हैं लेकिन मानसून किसानों के साथ आंख-मिचौली खेल रहा है। बीच-बीच में एकाध बार हल्की बूंदाबांदी होने से मौसम में ठंड आ जाती है तो उसके अगले ही दिन किसानों को फिर से सूर्य देवता के कड़े तेवरों का सामना करना पड़ता है। मौसम की इस आंख-मिचौली ने किसानों को असमंजस की स्थिति में डाल रखा है। इसके चलते किसान धान की रोपाई की बजाए बाजरे की बिजाई का मन बना रहे हैं। 

 बारिश नहीं होने के कारण बिना रोपाई के खाली पड़े खेत।

टारगेट तक पहुंचने में कृषि विभाग को छूट रहे पसीने

समय पर बारिश नहीं होने के कारण कृषि विभाग को भी टारगेट तक पहुंचने में पसीने छूट रहे हैं। इसलिए कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को धान की रोपाई के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ फसल को बचाने के लिए भी गाइड लाइन जारी कर रहे हैं। इस बार विभाग के पास धान की रोपाई के लिए 99 हजार हैक्टेयर का टारगेट है लेकिन बरसात के अभाव में अभी तक सिर्फ 75 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। विभाग के अधिकारी टारगेट तक पहुंचाने के लिए किसानों को कम पानी में भी धान की रोपाई करने के लिए लगातार गाइड लाइन जारी कर रहे हैं।

15 जून से 15 जुलाई तक धान की रोपाई का उपयुक्त समय

कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो धान की रोपाई के लिए 15 जून से 15 जुलाई तक का समय सबसे सही है। हालांकि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 25 जुलाई तक भी धान की रोपाई की जा सकती है लेकिन इस दौरान रोपाई करते समय पौधों की संख्या में बढ़ौतरी करनी होगी। धान की नर्सरी की अवधि ज्यादा होने के कारण लेट रोपाई से पौधों का फुटाव पूरा नहीं हो सकेगा। इससे उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए लेट रोपाई करते समय पौधों की संख्या में वृद्धि करें, ताकि एक साथ कई पौधे लगे होने के कारण फुटाव पूरा हो सके और किसान को पूरा उत्पादन मिल सके। 

मौसम किसानों के साथ खेल रहा आंख-मिचौली

 धान की रोपाई करते मजदूर।
धान की रोपाई का सीजन शुरू होते ही मौसम ने भी किसानों के साथ आंख-मिचौली का खेल शुरू कर दिया। रोपाई के सीजन के दौरान बीच-बीच में एकाध दिन हुई हल्की बूंदाबांदी से जहां एक बार तापमान में गिरावट हुई तो अगले ही दिन फिर से सूर्य देवता के कड़े तेवरों के चलते बढ़े पारे ने किसानों को दुविधा में डाल दिया। हालांकि बुधवार को भी जिले में हल्की बूंदाबांदी हुई लेकिन कुछ ही देरे के लिए हुई यह बूंदाबांदी किसानों की फसलों को बचाने के लिए नाकाफी है। मौसम की इस आंख-मिचौली से परेशान किसान धान की रोपाई को लेकर दुविधा में फंसे हुए हैं। कुछेक किसान धान की रोपाई का मन बना रहे हैं तो कुछ धान की बजाए बाजरे की बिजाई की तरफ रुझान कर रहे हैं। 

अभी तक हो चुकी है 243 एम.एम. बारिश

कृषि विभाग के बारिश के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो वर्ष 2012 की बजाए 2013 में बारिश अधिक हुई है। जनवरी 2012 से जुलाई 2012 तक सिर्फ 30 एम.एम. बारिश ही हुई थी लेकिन जनवरी 2013 से जुलाई 2013 तक जिले में 243 एम.एम. बारिश हो चुकी है। वर्ष 2012 में केवल जुलाई माह में 15 एम.एम. बारिश हुई थी और वर्ष 2013 में जुलाई माह में 40 एम.एम. बारिश हो चुकी है लेकिन यह बारिश धान की फसलों की रोपाई के लिए नाकाफी है। पिछले वर्ष की बजाए इस वर्ष मौसम में उमस काफी ज्यादा है। 

किसान क्या-क्या रखें सावधानियां

कृषि विभाग के पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल का कहना है कि मौसम में उमस को देखते हुए किसानों को धान की रोपाई के दौरान तथा रोपाई के बाद फसल को गर्मी से बचाने के लिए विशेष सावधानियां रखनी चाहिएं। 
1. धान की नर्सरी उखाडऩे से पहले नर्सरी में हल्के पानी की सिंचाई जरुर करें। 
2. रोपाई के दौरान पौधों की संख्या पर विशेष ध्यान रखें। 1 एस.क्यू. मीटर में 35 से 36 पौधे लगाएं। 
3. रोपाई से पहले खेत तैयार करते समय ही डी.ए.पी. खाद खेत में डालें। 
4. रोपाई लेट होने पर कम अवधि वाली किस्म की रोपाई करें और रोपाई के दौरान पौधों की संख्या बढ़ाकर 1 एस.क्यू. मीटर में 40 से 42 पौधे लगाएं। 
5. रोपाई के दौरान 20 से 25 दिन की नर्सरी का ही प्रयोग करें। इससे पौधों का फुटाव अच्छा हो सकता है।
6. रोपाई के बाद धान में ज्यादा पानी खड़ा करने की बजाए हल्की सिंचाई करें, ताकि कम पानी से अधिक एरिया कवर किया जा सके। 
7. धान की फसल पानी की फसल है। इसलिए इसमें बीमारी आने की संभावना कम है। इसलिए किसानों को चाहिए कि धान की फसल में अधिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करें और सीमित मात्रा में ही उर्वरक डालें। उर्वरक जमीन में डालने की बजाए उनका घोल तैयार कर फसल पर घोल का छिड़काव करें। 

ज्यादा पानी देने की बजाए फसल में कम पानी रखें किसान 

कृषि विभाग के पास इस बार धान की रोपाई के लिए 99 हजार हैक्टेयर का टारगेट है। इसमें से 75 हजार हैक्टेयर में रोपाई हो चुकी है। जल्द ही टारगेट को कवर कर लिया जाएगा। किसान अभी बारिश का इंतजार कर रहे हैं। बारिश आते ही धान की रोपाई के कार्य में तेजी आएगी। 25 जुलाई तक किसान धान की रोपाई कर सकते हैं। किसानों को चाहिए कि फसल में ज्यादा पानी देने की बजाए कम पानी रखें। इससे कम पानी में अधिक क्षेत्र को कवर किया जा सकेगा। 
रामप्रताप सिहाग, उप-निदेशक 
कृषि विभाग, जींद