शनिवार, 8 सितंबर 2012

अज्ञान के कारण चक्रव्यूह में फंस रहे किसान : शर्मा

खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ ने किसान-कीट विवाद पर किसानों के साथ की चर्चा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। आज हमारे देश के किसनों  की हालत भी पांडू पुत्र अभिमन्यू की तरह है, जिसे चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो आता था, लेकिन उसे उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना नहीं आता था। वैसा ही हाल हमारे किसानों का है, जिन्हें कृषि क्षेत्र में नई-नई तरीकब अपना कर एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसाया जा रहा है, जिसमें किसान दाखिल तो आसानी से हो जाते हैं, लेकिन उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना उनके बस की बात नहीं है। यह बात विश्व विख्यात खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ डा देवेंद्र शर्मा ने मंगलवार को निडाना गांव में आयोजित किसान खेत पाठशाला में किसान-कीट विवाद पर किसानों के साथ चर्चा करते हुए कही। इस अवसर पर पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ  से ढुल खाप प्रधान इंद्र सिह ढुल, खटकड खेड़ा खाप के प्रधान दलेल खटकड़, जाटू खाप प्रधान संदीप ढांड़ा, 84 खाप प्रधान भिवानी से राज सिंह घणघस, किसान क्लब के प्रधान फूल सिंह श्योकंद, बागवानी विभाग से डीएचओ डा. बलजीत सिंह  भयाणा, मिट्टी एवं संरक्षण विभाग जींद से डा. मीना सिहाग भी विशेष रूप  से मौजूद थी। पंचायत का संचालन खाप पंचायत के संचालक कुलदीप सिंह ढांडा ने किया।
डा देवेंद्र शर्मा ने कहा कि ज्यों-ज्यों कीटनाशकों का प्रयोग अधिक होता है, त्यों-त्यों कुदरत कीटों को भी उन कीटनाशकों से बचाव के लिए अधिक ताकत प्रदान कर देती है, जिससे दो-चार वर्ष बाद कीटनाशक बेअसर हो जाते हैं और कंपनियों फिर से उन कीटों को मारने के लिए नए कीटनाशक तैयार करती है। इस प्रकार नए-नए कीटनाशक व बीज तैयार कर कुछ मुनाफाखोर किसानों की जेबों पर डाका डाल रहे हैं।  इस प्रकार पूरी प्लांनिग के तहत किसानों को इस चक्रव्यूह में धकेला जाता है। डा. शर्मा ने आंध्रप्रदेश का उदहारण देते हुए बताया कि कई वर्ष पहले आंध्रप्रदेश के किसानों ने भी निडाना के किसानों की तरह कीटनाशक रहित खेती की मुहिम चलाई थी। जिसके परिणामस्वरूप आज आंध्रप्रदेश के 21 जिलों में 35 लाख  एकड में कीटनाशक रहित खेती होती और इस दौरान उनकी पैदावार घटने की बजाए बढ़ी है। अब तो वहां की सरकार भी किसानों के पक्ष में उतर आई है। सरकार ने किसानों की इस मुहिम को अपने हाथ में लेते हुए 2013 में 100 एकड जमीन में कीटनाशक रहित खेती करने का टारगेट रखा है। शर्मा ने बताया कि आंध्रप्रदेश के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम में वहां के कुछ एनजीओ भी आगे आए हैं। वहां के  एक स्वयं सेवी महिला समूह ने किसानों कि  इस मुहिम के लिए पांच हजार करोड रूपए कीराशि एक त्रित की है। उन्होंने बताया कि हमारी ·माई का 40-50 प्रतिशत पैसा तो हमारी बीमारी पर ही खर्च हो जाता है। डा. शर्मा ने कहा कि 1990-91 में जब अमेरिका बीटी को भारत में लाना चाहते थे तो उस समय अमेरिका ने बीटी के बीज की कीमत सिर्फ चार करोड़ रुपए मांगी थी, लेकिन 2004 से अब तक अमेरिका बीटी के बीज के माध्यम से देश के किसानों से 6 हजार करोड़ रुपए कमा चुका हैं। डा. शर्मा ने कहा कि थाली को जहर मुक्त करने की इस लडाई में आने वाले युग में निडाना के किसानों को याद किया जाएगा। कुलदीप ढांडा ने पाठशाला में आए किसानों व खाप प्रतिनिधियो पर सवाल दागते हुए कहा कि क्या आप पूरे दृढ़ निश्चय के साथ यह कह सकते हैं कि आपके परिवार या रिश्तेदारी में कोई कैंसर का मरीज नहीं है? ढांडा ने कहा कि कीटनाशकों के अंधाधूंध प्रयोग के कारण आज कैंसर जैसी घातक बीमारी भी काफी तेजी से फैल रही है। ढांडा ने बताया कि गांव चिडोठ जिला भिवानी में हर पांचवें घर में तथा भटिंडा (पंजाब) की गली नंबर दो के 10 घरों में से 9 घरों में कोई ना कोई व्यक्ति कैंसर का मरीज है। किसान रमेश ने बताया कि किसान कीटनाशक के माध्यम से कीटों पर जैसे ही अटैक करता है तो कीट अपना जीवनकाल छोटा करना शुरू कर देते हैं तथा बच्चे पैदा करने की क्षमता को बढ़ा लेते हैं। इससे खेत में कीटों की संख्या कम होने की बजाए ओर अधिक बढ़ जाती है। किसान अजीत ने बताया कि अंगीरा, जंगीरा, फंगीरा अकेले ही 98 प्रतिशत मिलीबग को कंट्रोल कर लेते हैं। किसान मनबीर ने बताया कि हमें पौधो की भाषा सीखने की जरुरत है। जब पौधों पर किसी शाकाहारी कीट का आक्रमण होता है तो पौधे मासाहारी कीटों को बुलाने के लिए एक अलग तरह की सुगंध छोडते हैं और मासाहारी कीट उस सुगंध के कारण फसल में शाकाहारी कीटों को खाने के लिए पहुंच जाते हैं। इस अवसर पर खाप प्रतिनिधियों ने पांच पौधों के पत्ते काट कर प्रयोग को आगे बढ़ाया। पाठशाला के समापन पर सभी खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।

कृषि विशेषज्ञ से की मार्गदर्शन की अपील

खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ डा. देवेंद्र शर्मा से इस विवाद का निपटारा करने के लिए नवंबर में होने वाली खाप पंचायत में पहुंचकर उनका मार्गदर्शन करने की अपील की। डा. शर्मा ने खाप पंचायत की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि खाप पंचायतों से फैसला सुनाते वक्त कोई चूक न हो, इसके लिए वे नवंबर में होने वाली सर्व खाप महापंचायत में अपने साथ-साथ हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश को भी साथ लेकर आएंगे। ताकि किसानों की इस मुहिम पर कानूनी मोहर भी लग सके।
किसानों को सम्बोधित करते डा. देवेंद्र शर्मा।
 डा. देवेंद्र शर्मा को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।


रविवार, 2 सितंबर 2012

‘गांव’ की धरती से ‘जहान’ में उठेगी एक नई क्रांति की लहर

कीटनाशकों की दलदल में धंसता जा रहा किसान

उग्र हो रही है किसान-कीट की जंग

नरेंद्र कुंडू

जींद। आज फसलों में अंधाधूंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण मानव व पशु जगत पर जो खतरा मंडरा रहा है, वह किसी से छुपा नहीं है। अगर पिछले 40 सालों के इतिहास पर नजर डाली जाए तो इन 40 वर्षों में हर वर्ष कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ लगातार ऊपर की तरफ बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के मृत्युदर के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो उसमें 13 प्रतिशत लोग अकेले कैंसर के कारण मौत के मुहं में समा रहे हैं। इसी संगठन की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार फसल की सुरक्षा के लिए कीटनाशक का छिड़काव करते हुए हर वर्ष 20 हजार किसान काल का ग्रास बन रहे हैं। इस प्रकार पिछले 40 वर्षों में किसानों व कीटों की इस जंग में आठ लाख किसान अनामी शहीद हो चुके हैं। इसके अलावा विषायुक्त भेजन खाने के कारण कैंसर, शुगर, हार्ट फेल व सैक्स संबंधि बीमारियों के मरीजों की तादात भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। काटन व काजू बैलट में कीटनाशकों के अधिकतम इस्तेमाल के कारण इस बैलट में कैंसर के मरीजों की तादात में बढ़ोतरी हो रही है। इसलिए तो भठिंडा से बीकानेर जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन को कैंसर ट्रेन के नाम से पहचाना जाता है। क्योंकि इस ट्रेन में कैंसर के मरीजों व उनके सहयोगियों के अलावा सिर्फ कुछेक ही सवारियां होती हैं। अब तो पंजाब के फरीदकोट, फिरोजपुर, भठिंडा व मानसा जिले से हर रोज कैंसर का उपचार करवाने जाने वालों
 कपास की फसल में मौजूद नई किस्म की लोपा मक्खी।
की सालम सवारियों के रूप में गाड़ियां भी बुक होती हैं। क्योंकि इन क्षेत्रों में किसान अधिक उत्पादन के लालच में फसलों में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग में बढ़ोतरी होने का प्रमुख कारण किसानों में भय व भ्रम की स्थिति होना। किसान आज भी लदी-लदाई सोच का शिकार हैं और बुजुर्गों से विरासत में मिले ज्ञान के आधार पर ही खेती करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी खेती करने के बाद भी किसान खुद का ज्ञान पैदा नहीं कर पाए हैं। कुछ मुनाफाखोर लोगों ने इसका भरपूर फायदा उठाते हुए किसानों में भय व भ्रम की स्थिति पैदा कर इन्हे गुमराह कर दिया। इन मुनाफाखोरों ने किसानों को पैदावार बढ़ाने का लालच देकर इन्हें कीटनाशकों के दलदल में धकेल दिया और ऐसा धकेल दिया कि अब इस दलदल से निकल पाना इनके बस की बात नहीं। ज्ञान के अभाव के कारण किसान आज कीटनाशकों के इस दलदल में धंसता ही जा रहा है। कोई भी किसान आज इस बात को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं कि बिना कीटनाशक के भी खेती हो सकती। लेकिन हरियाणा प्रदेश के जींद जिले के गांव निडाना के किसानों ने इन मुनाफाखोरों को चुनौति देते हुए कीट प्रबंधन के माध्यम से कीटनाशकों का तोड़ ढूंढ़ निकाला है। इसलिए निडाना के किसानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि किसान-कीट की इस जंग में दुश्मन की पहचान सबसे जरुरी है। जब तक हमें दुश्मन की पहचान ही नहीं होगी, तब तक जंग में जीत निश्चित नहीं हो सकती। इस लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए निडाना के किसानों ने ‘कीट नियंत्रणाय कीटा: हि:अस्त्रामोघा’ के स्लोगन को अपनाते हुए कीटों को अपना अचूक अस्त्र बना लिया है।  इस निष्कर्ष के बाद ही निडाना के इतिहास में वर्ष 2009 में एक नया अध्याय जुड़ गया। 2009 में यहां के 30 किसानों ने 500-500 रुपए अपनी जेब से खर्च कर एक कीट साक्षरता केंद्र के नाम से एक पाठशाला की शुरूआत
किसानों को जानकारी देते कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल।
की और इसके लिए इनका मार्गदर्शन किया कृषि विभाग के कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने। निडाना के खेतों में सप्ताह के हर मंगलवार को चलने वाली यह एक अनोखी पाठशाला है। इस पाठशाला में कीटों की तालीम देकर देश की आर्थिक रीड (यानि किसानों) को सुदृढ़ करने के सपने बुने जा रहे हैं। यहां पर किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाए जाते हैं और किसान यहां खेत की मेड पर ही बैठकर अपने अनुभव सांझा करते हैं। इस पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि यहां न ही तो कोई अध्यापक है और न ही कोई स्टूडेंट है। यहां तो किसान खुद ही अध्यापक हैं और खुद ही स्टूडेंट। इस पाठशाला में किसान स्वयं मेहनत करते हैं और कागजी ज्ञान की बजाए व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते हैं।
कपास के पौधे पर मचान लगाकर बैठी मासाहारी डायन मक्खी।
कीटों की पहचान करने, परखने व इनके क्रियाकलापों को समझने के लिए किसान पूरी सिद्दत के साथ इस पाठशाला में भाग लेते हैं। अपनी कठोर मेहनत के बलबूत ही इन किसानों ने कपास की फसल में आए भस्मासुर (मिलबग) का तोड़ भी निकाल लिया। क्योंकि किसानों को सबसे ज्यादा खतरा मिलीबग से ही था और मिलीबग का नाम सुनकर बड़े-बड़े किसानों की भी पेंट गिली हो जाती थी। पाठशाला के दौरान निडाना के किसानों ने कीट नियंत्रण पर नजर दौड़ाई तो पाया कि 20वीं सदी के अंतिम व 21वीं सदी के प्रथम वर्ष में जितना कीटनाशकों का प्रयोग कपास की फसलों पर हुआ, इतना कभी भी किसी फसल पर नहीं हुआ। कई जगह तो किसानों ने कीटों का नियंत्रित कर अधिक उत्पादन लेने के चक्कर में कपास की फसल पर 40-40 स्प्रे प्रयोग किए। बाद में जो परिणाम किसानों के सामने आए उसने सबको चौंका दिया। क्योंकि इस दौरान उत्पादन बढ़ने की बजाये मुहं के बल गिरा है। फिलहाल ये किसान 152 किस्म के मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर चुके हैं। जिसमें 43 किस्म के शाकाहारी व 109 किस्म के मासाहारी कीट हैं। शाकाहारी कीटों में कपास की फसल में 20 किस्म के रस चूसक, 13 किस्म के पर्णभक्षी, 3 किस्म के पुष्पाहारी, 3 किस्म के फलाहारी व 4 अन्य किस्म के कीट हैं। इन किसानों ने मासाहारी कीटों को भी अलग-अलग कैटेगरी में बांटा हुआ है। जिसमें 12 किस्म के परपेटिये कीट हैं। ये ऐसे कीट हैं जो दूसरों के पेट में अपने अंडे देते हैं। 3 किस्म के ऐसे कीट हैं जो दूसरे कीटों के अंडों में अपने अंड़े देते हैं। एक किस्म के परजीवी, 5 किस्म के कीटाणु व विषाणु तथा 88 किस्म के परभक्षी कीट हैं। परभक्षी में दूसरे कीटों का खून पीने वाले 9 किस्म के बुगड़े, 12 किस्म की लेडीबिटल, 19 किस्म की मक्खियां, 10 किस्म की भिरड़, ततैये, 7 किस्म की भू बिटल, 8 किस्म के हथजोड़े, 2 किस्म के क्राइसोपा, 2 किस्म के जारजटिया, 4 किस्म के अन्य तथा 16 किस्म की मक्ड़ियां शामिल हैं। जींद जिले के अलावा रोहतक जिले के भी कुछ
 बारिश में भी छाता लेकर कीट अवलोकन करती महिलाएं।
किसान इस मुहिम से जुड़ चुके हैं। निडाना में तो कई ऐसे परिवार हैं, जिनकी तीन-तीन पीढ़ियां इसी काम में लगी हुई हैं और उनको इसके सुखद परिणाम मिल रहे हैं। निडाना गांव में रणबीर मलिक, जोगेंद्र, महाबीर, ललीतखेड़ा में रामदेवा, रमेश, कृष्ण, निडानी में जयभगवान, महाबीर, ईगराह में मनबीर रेढू का पूरा परिवार इसी काम में जुटा हुआ है। इन किसानों की मेहनत भी अब रंग लाने लगी है। धीरे-धीरे यह मुहिम अन्य गांवों में भी अपनी जड़ें जमाने लगी है। निडाना के साथ-साथ अब निडानी, चाबरी, ललीतखेड़ा, ईगराह, राजपुरा-भैण, सिवाहा, शामलोखुर्द, अलेवा, खरकरामजी आदि गांवों से हजारों किसान अब कीटनाशक मुक्त खेती करते हैं और भरपूर उत्पादन ले रहे हैं। निडाना गांव के खेतों से कीटनाशकों के विरोध में उठी क्रांति की एक छोटी सी चिंगारी अब जल्द ही ज्वालामुखी का रूप धारण करने जा रही है। क्योंकि पिछले चार दशकों से किसानों व कीटों के बीच चले आ रहे इस झगड़े को निपटाने का जिम्मा अब चुटकियों में बड़े-बड़े विवादों को निपटाने के लिए मशहूर उत्तर भारत की खाप पंचायतों ने अपने हाथों में ले लिया है। इस झगड़े में निष्पक्ष फैसला सुनाया जा सके इसके लिए खाप पंचायतों ने इस विवाद की गहराई में जाने के लिए पहले खेत में कीटों व पौधों के बीच बैठकर इस मुकद्दमे पर गहन मंथन करने का निर्णय लिया। जिसके तहत सप्ताह के हर मंगलवार को खाप पंचायतों के कुछ प्रतिनिधि निडाना के खेतों में चल रही किसान खेत पाठशाला में
महिला किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधि के साथ बातचीत करती महिलाएं।
पहुंचकर इस मुकद्दमे की सुनवाई करते हैं। खाप पंचायत के प्रतिनिधि जमीनी हकीकत को जानने के लिए कीटों व पौधों की भाषा सीख रहे हैं और कीट मित्र किसान पंचायत के सामने बेजुबान कीटों का पक्ष रखते हैं। ताकि पंचायत से फैसला सुनाते वक्त कीटों के साथ किसी प्रकार का अन्याय न हो सके। 18 पंचायतों के बाद अक्टूबर माह में 19वीं सर्व खाप पंचायत निडाना गांव में आयोजित होगी और यहां पर इस झगड़े का निपटारा कर एक ओर इतिहास लिखा जाएगा।

किसान-कीट जंग में क्यों कमजोर पड़ रहे हैं किसान

कपास के फूल को खाती तेलन कीट।
कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से यह बात तो साफ हो चुकी है कि पिछले चार दशकों में किसानों व कीटों के बीच जो जंग चली आ रही है, वह खत्म होने की बाजये उग्र रूप धारण करती जा रहा है। कीट मित्र किसानों का मानना है कि किसान व कीटों की इस जंग में कीट सेना को कोई क्षति हुई है या नहीं, लेकिन मानव जाति इस जंग में जरुर कमजोर पड़ती जा रही है। क्योंकि किसानों के पास तो केवल अस्त्र ही हैं और कीटों के पास तो अस्त्र व शस्त्र दोनों प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं, जो जंग जीतने के लिए अनिवार्य हैं। इंसान के पास तो केवल एक जोड़ी पैर व एक जोड़ी
 तेलन कीट द्वारा कपास के फूल के नर पुंकेशर खाने के बाद सुरक्षित बचा मादा पुंकेशर।
हाथ हैं। लेकिन कीटों के पास तो तीन-तीन जोड़ी पैरों के अलावा उड़ने के लिए पंख भी हैं। जब किसान कीटनाशक की सहायता से इन पर काबू पाने का प्रयत्न करता है तो, ये खतरा महशूस होने पर उड कर आसानी से दूर भाग सकते हैं। इसके अलावा कीटों के पास एक ऐसी ताकत है, जिसका किसान के पास कोई तोड़ नहीं है और वह है इनकी प्रजजन क्षमता अर्थात बच्चे पैदा करने की शक्ति। कीट अपने छोटे से जीवनकाल में एक साथ हजारों बच्चे पैदा कर सकते हैं। जिससे इनकी बीजमारी संभव नहीं है। कीटों के पास लड़ाई के लिए हवाई सेना
के रूप में टिड्डी व थल सेना के रूप में दीमक की फौज भी है, जो पलभर में ही सबकुछ तबाह कर सकती है।

कीट बही-खाता किया जा रहा है तैयार

महिला किसान पाठशाला में कीटों का आंकड़ा तैयार करती महिलाएं।
कीटों व किसानों के इस झगड़े में पंचायत सही न्याय कर सके इसके लिए कीट साक्षारता केंद्र के किसानों द्वारा पूरी योजना तैयार की गई है। पंचायत के समक्ष कीटों के पक्ष में सभी साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए किसानों के 5 ग्रुप बनाए गए हैं। कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनर को प्रत्येक ग्रुप का लीडर बनाया गया है। प्रत्येक ग्रुप 10-10 पौधों की गिनती करता है और एक पौधे पर मौजूद सभी पत्तों व उन पर मौजूद कीटों की पहचान कर उनका आंकड़ा तैयार करता है। सभी ग्रुपों द्वारा गिनती की जाने के बाद उनका अनुपात निकाला कर कीट बही-खाते में दर्ज किया जाता है। ये किसान हवा में बाते करने की बजाये जमीनी हकीकत पर आजमाई गई विधियों को  प्रयोग के साथ दूसरे किसानों के समक्ष रखते हैं।

पाठशाला बनी प्रयोगशाला

दशकों से चली आ रही इस लड़ाई में खाप पंचायत से फैसले में किसी प्रकार की चूक न हो इसके लिए कीट कमांडो किसानों ने किसान खेत पाठशाला को प्रयोगशाला बना दिया। शाकाहारी कीटों के पत्तों को खाने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क पड़ता है या नहीं इसको आजमाने के लिए किसानों ने एक फार्मुला अपनाया है। इसके लिए किसानों द्वारा खेत में खड़े कपास के पांच पौधों के प्रत्येक पत्ते का तीसरा हिस्सा कैंची से कटा जाता है। किसानों का मानना है कि उन द्वारा जितना पत्ता काटा जा रहा है, उतना पत्ता कोई भी कीट नहीं खा सकता। पाठशाला के संचालक डा. दलाल का कहना है कि फसल तैयार होने के बाद कटे हुए पत्तों वाले पौधों व दूसरे पौधों के उत्पादन की तुलान की जाएगी। अगर दोनों पौधों से बराबर का उत्पादन मिलता है तो इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि कीटों द्वारा अगर फसल के पत्तों को खा लिया जाए तो उससे उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वहीं दूसरी तरफ किसानों ने कपास के पांच पौधों से पौधे की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ने का प्रयोग भी शुरू कर दिया है। इस प्रयोग से किसान यह देखाना चाहते हैं कि कपास की फसल में बोकी खाने वाले कीटों से उत्पादन पर कोई प्रभाव होता है या नहीं। इस पाठशाला में 28 दिन बाद पांच पौधों की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ी जाती हैं। वही बोकी बार-बार न टूटें इसलिए 28 दिन बाद पौधे की बोकी तोड़ी जाती हैं, क्योकि बोकी से फूल बनने में 28 दिन का समय लगता है।

खाद डालने की विधि सीखें किसान

 पाठशाला के दौरान पौधों का अवलोकन करते खाप प्रतिनिधि।
पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल का कहना है कि किसानों को फसल में खाद की अवश्यकता व डालने की विधि भी सीखने की जरुरत है। क्योंकि किसान फसल में जो यूरिया खाद डालता हैं, उसका 11 से 28 प्रतिशत ही पौधों को मिलता है। बाकि का खाद वेस्ट ही जाता है। इसके अलावा डीएपी खाद में से सिर्फ 5 से 20 प्रतिशत ही खाद पौधों को मिलता है। बाकि की खाद की मात्रा जमीन में चली जाती है। इस तरह बिना जानकारी के व्यर्थ होने वाले खाद को बचाने के लिए खाद जमीन में डालने की बजाए सीधा पौधों को ही दिया जाए।

महिलाएं भी निभा रही हैं पूरी भागीदारी

पौधों पर मौजूद कीटों का आंकड़ा दर्ज करती महिलाएं।
निडाना गांव के खेतों से पेस्टीसाइड के विरोध में उठी इस आंधी को रफ्तार देने में निडाना गांव की गौरियां भी पुरुषों के बाराबर अपनी भागीदारी दर्ज करवा रही हैं। निडाना गांव की महिलाएं जहर मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। कीट मित्र किसानों ने जहां इस मुहिम को सफल बनाने के लिए खाप पंचायतों का दामन थाम है, वहीं गांव की महिलाओं ने भी इस मुहिम पर रंग चढ़ाने के लिए आस-पास के गांवों की महिलाओं को जागरुक करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए निडाना की महिलाओं द्वारा पास के गांव ललीतखेड़ा में महिला किसान पूनम मलिक के खेत में हर बुधवार को महिला किसान पाठशाला शुरू की है। पाठशाला के दौरान महिलाएं घंटों कड़ी धूप के बीच खेतों में बैठकर लैंस की सहायता से कीटों की पहचान में जुटी रहती हैं। अक्षर ज्ञान के अभाव का रोड़ा भी इन महिलाओं की रफ्तार को कम नहीं कर पा रहा है। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो देवी, गीता मलिक , कमलेश, मीना मलिक, सुदेश मलिक, राजवंती को कीटों की इतनी गहरी परख है कि ये कीट को देखते ही उसके पूरे खानदान का पौथा खोलकर रख देती हैं। इसलिए तो लोग अब इन महिलाओं को कीटों की मास्टरनी व वैद्य के नाम से जानने लगे हैं।

                                                                                                                    कीटों पर तैयार किए हैं गीत

 कपास के पौधों पर कीटों की गिनती करती महिलाएं।
कीटों की ये मास्टरनी केवल अध्यापन का कार्य ही नहीं करती। अध्यापन के साथ-साथ ये महिलाएं लेखक व गीतकार की भूमिका भी निभाती हैं। अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए इन महिलाओं ने कीटों के पूर जीवन चक्र की जानकारी जुटाकर उनपर गीतों की रचना भी की हैं। जिनमें प्रमुख गीत हैं ‘किड़यां का कट रहया चालाए ऐ मैने तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं’। ‘म्हारी पाठशाला में आईए हो हो नंनदी के बीरा तैने न्यू तैने न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा’। ‘मैं बिटल हूं मैं किटल तुम समझो मेरी महता’। ‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’। ‘ऐ बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है’। ‘निडाना-खेड़ा की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है’। ‘अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है’। इन गीतों को सुनने वाला न चाहते हुए भी इस तरफ आकर्षित हुए बिना नहीं रह पाता।

कीटों को राखी बांध कर लिया रक्षा का संकल्प

रक्षा बंधन पर कीटों को राखी बांधती महिलाएं।
निडाना व ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं ने रक्षाबंधन के अवसर पर कीटों की कलाइयों पर बहन का प्यार सजाकर यानि राखी बांधकर ऐसी ही एक नई रीति की शुरूआत की है। महिलाओं ने कीटों के चित्रों पर प्रतिकात्मक राखी बांध कर इन्हें अपने परिवार में शामिल कर इनको बचाने का संकल्प लिया है। महिलाओं ने रक्षाबंधन की पूरी परंपरा निभाई तथा कीटों के चित्रों को राखी बांधने के बाद उनकी आरती भी उतारी। इन महिला किसानों द्वारा शुरू की गई इस नई परंपरा से जहां कीटों को तो पहचान मिलेगी ही, साथ-साथ हमारे पर्यावरण पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे।
कीटों की आरती उतारती महिलाएं।

विदेशों में भी जगा रहे हैं  कीटनाशक रहित खेती की अलख

निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसान पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं। खेत से हासिल किए गए अपने अनुभवों को ये किसान ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से अन्य लोगों के साथ सांझा करते हैं। अपना खेत अपनी पाठशाला, कीट साक्षरता केंद्र, महिला खेत पाठशाला, चौपटा चौपाल, निडाना गांव का गौरा, कृषि चौपाल, प्रभात कीट पाठशाला सहित एक दर्जन के लगभग ब्लॉग बनाए हुए हैं और इन ब्लॉगों पर ये किसान पूरी ठेठ हरियाणवी भाषा में अपने विचार प्रकट करते हैं। इन ब्लॉगों की सबसे खास बात यह है कि ये ब्लॉग हरियाणा ही नहीं अपितू दूसरे देशों में भी पढ़े जाते हैं। इस प्रकार ये किसान विदेशों में भी ब्लॉग की सहायता से कीटनाशक रहित खेती की अलख जगा रहे हैं। लाखों लोग इनके ब्लॉग को पढ़ कर कीट ज्ञान अर्जित करते हैं। दूसरे प्रदेशों के किसान ब्लॉग के माध्यम से इन किसानों से सवाल-जबाव करते हैं और अपनी समस्याएं इन किसानों के समक्ष रखकर उनका समाधान भी पूछते हैं। इसके अलावा यू ट्यूब पर भी इन्होंने कीट साक्षरता के नाम से अपना चैनल बनाया हुआ है और इस चैनल पर फसल में कीटों के क्रियाकलापों की वीडियो डाली जाती हैं।

ट्रेनिंग लेने के लिए दूसरे राज्यों से भी यहां पहुंच रहे हैं किसान

खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।
इन किसानों के चर्चे सुनकर दूसरे राज्यों के किसान भी इनसे प्रेरित हो चुके हैं। इसलिए कीटनाशक रहित खेती के लिए कीट प्रबंधन के गुर सीखने के लिए पंजाब व गुजरात के किसानों ने निडाना में दस्तक देनी शुरू कर दी है। अभी हाल ही में 14 अगस्त को पंजाब के नवां शहर जिले से 35 किसानों का एक दल दो दिवसीय अनावरण यात्रा पर निडाना में पहुंचा था। निडाना के किसानों का ज्ञान देखकर ये किसान अचंभित रह गए थे। इसलिए पंजाब के किसानों ने भी इनकी तर्ज पर अपने जिले में भी इस तरह की पाठशाला शुरू करने का संकल्प लिया था। इसके बाद अब कीटों की पढ़ाई पढ़ने के लिए गुजरात से भी किसानों का एक दल यहां आएगा।















गुरुवार, 30 अगस्त 2012

अब विदेशों में भी जलेगी कीट ज्ञान की मशाल

दूरदर्शन की टीम ने शूटिंग को दिया अंतिम रूप, 165 देशों में होगा प्रशारण

नरेंद्र कुंडू
जींद।
बेजुबान कीटों को बचाने के लिए जिले के निडाना गांव की धरती से उठी आवाज अब विदेशों में भी गुंजेगी। किसानों की आवाज को दूसरे देशों तक पहुंचाने में दिल्ली दूरदर्शन की टीम इनका माध्यम बनी है। दिल्ली दूरदर्शन की टीम अपने कृषि दर्शन कार्यक्रम की रिकार्डिंग के लिए मंगलवार को निडाना गांव के किसानों के बीच पहुंची थी। टीम ने मंगलवार को निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला तथा बुधवार को ललीतखेड़ा की महिला किसान खेत पाठशाला की गतिविधियों को कैमरे में शूट किया। बुधवार को हुई बूंदाबांदी के बीच भी कार्यक्रम की शूटिंग चली और ललीतखेड़ा की महिला किसान खेत पाठशाला में शूटिंग को अंतिम रुप देकर टीम अपने गंतव्य की तरफ रवाना हो गई। दिल्ली दूरदर्शन द्वारा 4 सितंबर को सुबह 6.30 बजे कार्यक्रम का प्रसारण किया जाएगा और यह कार्यक्रम 165 देशों में प्रसारित होगा।
निडाना गांव के किसानों द्वारा जलाई गई कीट ज्ञान की मशाल अब देश ही नहीं बल्कि विदेश के किसानों की राह का अंधेरा दूर कर उन्हें एक नया रास्ता दिखाएगी। इस रोशनी को विदेशों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम पिछले दो दिनों से अपने पूरे तामझाम के साथ निडाना में डेरा डाले हुए थी। दूरदर्शन की इस टीम में रिपोर्टर विकास डबास, कैमरामैन सर्वेश व राकेश के अलावा 84 वर्षीय वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान भी मौजूद थे। कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान ने मंगलवार को निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर कीट कमांडो किसानों के साथ सीधे सवाल-जवाब किए और दूरदर्शन की टीम ने उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने कृषि वैज्ञानिक को अपने अनुभव के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वह 1988 से खेतीबाड़ी के कार्य से जुड़ा हुआ है। खेतीबाड़ी के कार्य से जुड़ने के साथ ही उसने अपने खेतीबाड़ी के सारे खर्च का रिकार्ड भी रखना शुरू किया हुआ है। 1988 से लेकर 2011 तक वह अपने खेतों में 70 लाख के पेस्टीसाइड डाल चुका है। लेकिन इस बार उसने निडाना के किसानों के साथ जुड़ने के बाद अपने खेत में एक छंटाक भी कीटनाशक नहीं डाला है और अब वह खुद भी कीटों की पहचान करना सीख रहा है। निडानी के किसान जयभगवान ने बताया कि वह 14 वर्ष की उम्र से ही खेती के कार्य में लगा हुआ है। जयभगवान ने बताया कि उनके एक रिश्तेदार की पेस्टीसाइड की दुकान है और वह हर वर्ष उससे कंट्रोल रेट पर दवाइयां खरीदता था। कंट्रोल रेट पर दवाइयां मिलने के बाद भी उसका हर वर्ष दवाइयों पर 80 हजार रुपए खर्च हो जाता था। लेकिन पिछले दो वर्षों से उसने इस मुहिम से जुड़ने के बाद कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया है। खरकरामजी के किसान रोशन ने बताया कि वह 10-12 एकड़ में खेती करता है, लेकिन वह अपने खेत में सुबह पांच बजे से आठ बजे तक सिर्फ तीन घंटे ही काम करता है। इसके बाद अपनी ड्यूटी पर चला जाता है। रोशन ने बताया कि अधिक पेस्टीसाइड के प्रयोग से पैदावार में बढ़ोतरी नहीं होती। पैदावार बढ़ाने में दो चीजें सबसे जरुरी हैं। पहला तो सिंचाई के लिए अच्छा पानी और दूसरा खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या। अगर खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या होगी तो अच्छी पैदावार निश्चित है। सिवाहा से आए किसान अजीत ने बताया कि वह अपनी जमीन ठेके पर देता था। जिस किसान को वह ठेके पर जमीन देता था, वह फसल में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। जहरयुक्त भेजन के कारण कैंसर की बीमारी ने उसे अपने पंजों में जकड़ लिया और पिछले वर्ष उसकी मौत हो गई। इसलिए इस वर्ष उसने अपने खेत ठेके पर नहीं देकर स्वयं खेती शुरू की है और उसने भी कीट ज्ञान अर्जित कर अपने खेत में एक बूंद भी कीटनाशक नहीं डाला है। उसके खेत में इस वर्ष शाकाहारी व मासाहारी कीट भरपूर संख्या में मौजूद हैं। लेकिन इन कीटों से उसकी फसल को रत्ती भर भी नुकसान नहीं हुआ है। इसके बाद बुधवार को टीम ललीतखेड़ा गांव में महिला किसान पाठशाला में पहुंची और यहां महिलाओं से भी उनके अनुभव के बारे में जानकारी जुटाई। महिलाओं ने कीटों पर लिखे गीत सुनाकर टीम का स्वागत किया। टीम ने महिलाओं द्वारा लिखे गए तीन गीतों की भी रिकार्डिंग की। इस दौरान टीम ने निडाना के किसान रणबीर द्वारा चार एकड़ में बोई गई देसी कपास के शॉट भी लिए।
किसानों से सवाल करते कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान।

किसानो से बातचीत करते कृषि 

कृषि दर्शन कार्यक्रम के लिए किसानों के अनुभव को शूट करते टीम के सदस्य।
कृषि वैज्ञानिक को उपहार भेंट करती महिला 

कृषि वैज्ञानिक ने थपथपाई किसानों की पीठ

टीम के साथ आए कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान ने किसानों द्वारा शुरू किए गए इस कार्य की खूब सराहना की। किसानों की पीठ थपथपाते हुए सांगवान ने कहा कि उनकी यह मुहिम एक दिन जरुर शिखर पर पहुंचेगी और दूसरे किसानों को राह दिखाएगी। उन्होंने कहा कि इंसान को प्रकृति के साथ छेडछाड़ नहीं करनी चाहिए। आज मौसम में जो परिवर्तन आ रहे हैं, वह सब प्रकृति के साथ हो रही छेड़छाड़ का ही नतीजा है।


भय व भ्रम की भूल भूलैया से बाहर निकलने के लिए कीट ज्ञान ही एकमात्र द्वार

खाप पंचायत की 10वीं बैठक में मौजूद खाप प्रतिनिधियों ने किसान-कीट विवाद पर किया मंथन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हमारे बुजुर्गों से हमें जो मिला है, क्या वह सब कुछ हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को दे पाएंगे? आज यह सवाल हमारे सामने एक चुनौति बनकर खड़ा है। अगर फसलों में पेस्टीसाइड का प्रयोग इसी तरह बढ़ता रहा तो हम आने वाली अपनी पुस्तों को बंजर जमीन व दूषित पानी के साथ-साथ कई प्रकार की लाइलाज बीमारियां पैतृक संपत्ति के तौर पर देकर जाएंगे। देश में बीटी के प्रचलन से पहले किसान के पास देसी कपास की 34 किस्में होती थी। लेकिन 2002 में बीटी के प्रचलन के बाद से अब तक इन 10 वर्षों में हमे अपनी देसी कपास की इन 34 किस्मों को खो चुके हैं। जो भविष्य में हमारे सामने आने वाली एक भयंकर मुसिबत की आहट है। यह बात अखिल भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह ने मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में किसान खेत पाठशाला के दौरान पंचायत में किसान-कीट विवाद की सुनवाई के दौरान कही। पंचायत की अध्यक्षता बरहा कलां बारहा के प्रधान एवं सर्व खाप महापंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर पंचायत में अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष ओमप्रकाश मान, दिल्ली 360 पालम के प्रधान रामकरण सौलंकी, महम चौबिसी के प्रधान धर्मबीर केशव, प्रसिद्ध समाजसेवी देवव्रत ढांडा, राममेहर मलिक, प्रगतिशील किसान क्लब के सदस्य राजबीर कटारिया भी विशेष रूप से मौजूद थे।
पंचायत की शुरूआत के साथ ही किसानों ने अपने रुटीन  के कार्य को जारी रखते हुए कपास के पौधों पर कीटों की गिनती कर कीट बही खाता तैयार किया। आस-पास के गांवों से आए सभी कीट मित्र किसानों ने भी अपने-अपने खेत में मौजूद कीटों का आंकड़ा बही खाते में दर्ज करवाया। किसानों ने बही खाता तैयार कर पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया। बही खाते में दर्ज आंकड़ों के आधार पर कोई भी कीट अभी तक फसल में नुकसान पहुंचाने की आर्थिक स्थित के कागार से कोसों दूर हैं। किसान रामदेवा ने बताया कि कपास की फसल में कृषि वैज्ञानिक रस चूसने वाले कीट सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़े को सबसे खतरनाक मानते हैं। लेकिन अगर वास्तविकता पर नजर डाली जाए तो ये तीनों मेजर कीट कपास के पौधे से सिर्फ रस ही चूसते हैं, जिससे कपास की फसल पर कोई ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। इन कीटों को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशक की आवश्यकता नहीं है। इन कीटों को खाने के लिए कपास की फसल में कई किस्म के मासाहारी कीट मौजूद होते हैं। सिवाहा से आए किसान अजीत ने बताया कि किसान भय व भ्रम का शिकार है और इसीलिए भ्रमित होकर डर के मारे फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करता है। इस भय व भ्रम को दूर करने के लिए किसानों को कीटों की पहचाना होना जरुरी है। जब तक किसानों के पास अपना खुद का अनुभव या ज्ञान नहीं होगा तब तक किसान कीटनाशकों की इस भूल भूलैया से बाहर नहीं निकल पाएगा। इसी दौराना किसानों ने अपने प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए पाठशाला में आए सभी खाप प्रतिनिधियों से पांच पौधों के तीसरे हिस्से के पत्ते कटवाए। पाठशाला के समापन पर सभी खाप प्रतिनिधियों को पगड़ी बांधकर व स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।

आकाशवाणी की टीम ने भी बांटे किसानों के अनुभव

खाप प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न देते किसान 

कपास के पोधे के पत्ते काटे खाप प्रतिनिधि 

आकाशवाणी रोहतक से आए सीनियर अनाउंसर सम्पूर्ण भाई डा दलाल से बातचीत करते हुए 
निडाना के किसानों की आवाज को देश के अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए आकाशवाणी रोहतक की टीम भी किसानों के बीच पहुंची। पंचायत के समापन के बाद आकाशवाणी रोहतक से आए सीनियर अनाउंसर सम्पूर्ण भाई ने सभी किसानों से उनके अनुभव पर बातचीत की। आकाशवाणी ने इस पूरे कार्यक्रम का रेडियो पर 50 मिनट तक लाइव चलाकर देश के अन्य क्षेत्र के किसानों को भी इस मुहिम से रू-ब-रू करवाया। निडाना व ललीतखेड़ा से आई महिलाओं ने कीटों पर तैयार किए गए गीत सुनाकर सभी श्रोताओं का मनोरंजन भी किया और उन्हें भी बिना कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित किया। 50 मिनट के इस कार्यक्रम के दौरान निडाना के किसानों ने फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी व मासाहारी कीटों पर गहनता से चर्चा की।

सोमवार, 27 अगस्त 2012

दूरदर्शन पर अपने अनुभव बांटेंगे निडाना व ललीतखेड़ा के किसान

सूचना एवं प्रौद्योगीकी के क्षेत्र में पिछड़े क्षेत्रों के किसानों को मिलेगा लाभ 

नरेंद्र कुंडू
जींद।
निडाना व ललीतखेड़ा गांव के किसान अब देश के अन्य क्षेत्रों में बैठे किसानों को खेती-किसानी के गुर सिखाएंगे। ये किसान टीवी के माध्यम से अन्य किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा कर उन्हें कीट प्रबंधन के लिए प्रेरित कर बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए अधिक उत्पादन लेने के टिप्स देंगे। इनके इस काम में निडाना व ललीतखेड़ा की कीट मित्र महिला किसान भी इनका पूरा सहयोग करेंगी। किसानों की इस मुहिम को देश के दूर-दराज क्षेत्र के किसानों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम ने अपना हाथ आगे बढ़ाया है। कार्यक्रम की कवरेज के लिए दिल्ली दूरदर्शन की एक टीम मंगलवार को निडाना पहुंचेगी। यह टीम अपने कृषि दर्शन कार्यक्रम के लिए दो दिनों तक निडाना व ललीतखेड़ा के खेतों में जाकर किसानों के अनुभव व उनकी गतिविधियों के शाट अपने कैमरे में कैद करेगी। दूरदर्शन की इस पहल से सूचना एवं प्रौद्योगीकी के क्षेत्र में पिछड़े हुए क्षेत्रों के किसानों को काफी लाभ मिलेगा।
कीट प्रबंधन के क्षेत्र में माहरत हासिल कर चुके निडाना व ललीतखेड़ा के किसान अब टीवी के माध्यम से देश के अन्य क्षेत्रों के किसानों को कीटों की पढ़ाई का पाठ पढ़ाएंगे। दिल्ली दूरदर्शन ने इन किसानों की इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए इन्हें अपने कार्यक्रम में शामिल करने की योजना को हरी झंडी दे दी है। कार्यक्रम की कवरेज के लिए दिल्ली दूरदर्शन की एक टीम प्रोड्यूसर रघुनाथ सिंह के नेतृत्व में मंगलवार को निडाना पहुंचेगी। यह टीम अपने कृषि दर्शन कार्यक्रम के लिए इन किसानों के साथ इनके खेतों में जाकर लगातार दो दिनों तक इनकी गतिविधियों व इनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद करेगी। कार्यक्रम की रिकार्डिंग के दौरान इस टीम के साथ कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान भी मौजूद रहेंगे, जो इन किसानों से समय-समय पर फसल में आने वाले कीटों व फसल पर पड़ने वाले उनके प्रभाव के बारे में जानकारी जुटाएंगे। इसके अलावा किसानों द्वारा अब तक  उनकी फसलों में देखे गए मासाहारी व शाकाहारी कीटों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि अधिक से अधिक किसानों को कीटों की पहचान हो सके और किसान बीमारी व कीटों के बीच के अंतर को समझ सकें। निडाना व ललीतखेड़ा के किसान खेत में प्रयोगों कर पैदा किए गए अपने इस कीट ज्ञान को दूरदर्शन के माध्यम से अन्य क्षेत्र के किसानों तक पहुंचाने का काम करेंगे। इनकी इस मुहिम में यहां की कीट मित्र महिला किसान भी इनका पूरा सहयोग करेंगी। दूरदर्शन की टीम द्वारा मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में लगने वाली किसान खेत पाठशाला तथा बुधवार को ललीतखेड़ा गांव की पूनम मलिक के खेत में लगने वाली महिला किसान खेत पाठशाला में जाकर इनके कीट ज्ञान अर्जित करने का फार्मूला व इनकी काम करने की गतिविधियों के शाट लिए जाएंगे। ताकि इनके फार्मूले को दूरदर्शन के माध्यम से अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाया जा सके और निडाना गांव के खेतों से उठी इस क्रांति की लहर को पूरे देश में फैलाया जा सके। दूरदर्शन द्वारा किसानों को जागरुक करने के लिए शुरू की गई इस पहल से एक तरफ जहां कीटनाशकों के प्रयोग में कमी आएगी, वहीं दूसरी ओर लोगों को खाने के रूप में परोसे जा रहे इस जहर से मुक्ति भी मिलेगी।

सूचना एवं प्रौद्योगीकी के क्षेत्र में पिछड़े क्षेत्रों के किसानों को मिलेगा लाभ

दूरदर्शन द्वारा निडाना व ललीतखेड़ा गांव के किसानों की इस मुहिम को अपने कृषि दर्शन कार्यक्रम में शामिल किए जाने पर सूचना एवं प्रौद्योगीकी के क्षेत्र में पिछड़े क्षेत्रों के किसानों को काफी लाभ मिलेगा। क्योंकि आज भी बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर आज तक केवल इत्यादि सूचना पहुंचाने के साधन नहीं पहुंच पाए हैं। ऐसे क्षेत्रों में दूरदर्शन के अलावा सूचना पहुंचाने के ओर विकल्प नहीं हैं। इससे इन क्षेत्रों के लोगों तक समय पर नई-नई तकनीकों की जानकारियां नहीं पहुंच पाती हैं। जिस कारण ऐसे क्षेत्रों के लोग अब भी काफी पिछड़े हुए हैं। लेकिन अब दूरदर्शन पर निडाना व ललीतखेड़ा के किसानों का कार्यक्रम प्रसारित होने के कारण इस क्षेत्र के किसान भी जानकारी जुटा कर कीटों की पहचान व परख कर सकेंगे।

शनिवार, 25 अगस्त 2012

सुलभ, सस्ता व जल्दी न्याय के लिए ओल्ड इज गोल्ड हैं उत्तर भारत की खाप पंचायतें

खाप पंचायतों का  तालिबानी से एक अलग रूप 

 नरेंद्र कुंडू
जींद। खापों का प्रचलन उत्तर भारत में लंबे समय से रहा है। लोगों के छोटे-मोटे आपसी विवाद निपटाने के लिए ग्राम समूह का अस्तित्व किसी से छिपा नहीं है। खाप पंचायतों का ढांचा लगभग 1350 साल से भी पुराना है। जनतांत्रिक प्रणाली को आधार मानकर 643 ई. में महाराजा हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल में सर्वखाप पंचायत की स्थापना की थी। लेकिन इससे पहले भी आदि काल से ही पंचायतें समाज विकास के लिए किसी न किसी रूप में चली आ रही हैं। खाप पंचायतों ने अपने असल स्वरूप में कभी कोई स्थाई नेतृत्व धारण नहीं किया। यह तो वर्तमान में ही पनपा एक नया रोग है। खाप पंचायतों में नेतृत्व या किसी पद के लिए कोई चुनाव नहीं होता। रोजमर्रा के विवादों को निपटाने में अपनी क्षमता व प्रतिभाओं के बुते कुछ गणमान्य लोग समाज में उभर कर आते थे, जिनकी उपस्थिति विवाद निपटाने में जरुरी होती थी और ये लोग भाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर संबंधित पार्टी के द्वारा पर ही मुफ्त में उसके विवाद का निपटारा कर देते हैं। जिससे लोगों का पुलिस थाने, कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने से वक्त जाया होने से बच जाता है। निष्पक्ष एवं सर्व मान्य ढंग से विवादों का निपटारा करने में ही इनकी ताकत निहित थी, जो आज भी जारी है। लेकिन समय के साथ-साथ पूरे समाज का आवागमन खराब हो गया है तो खाप पंचायतें भी इससे अछूती नहीं रही हैं। पंचायत में निष्पक्ष व सर्वमान्य फैसले न दे पाने के कारण मौजूदा समय की दागी दुनिया में बहुत सारे खाप प्रतिनिधियों के कपड़े भी दागी हुई हैं, लेकिन बीजमारी किसी की नहीं होती है। इसलिए अब भी बहुत सारे ऐसे गणमान्य लोग पंचायतों में मौजूद हैं जो प्रचार-प्रसार से दूर रहकर निष्काम भाव से लोगों के झगड़े निपटाकर देश की कोर्ट-कचहरियों का भार कम करते हैं। खाप पंचायत में सुलभ, सस्ता व जल्दी न्याय मिल जाता है, जबकि कोर्ट कचहरियों में समय व पैसे की बर्बादी के बाद भी न्याय मिलने की उम्मीद काफी कम है। ग्रामीण स्तर पर विवादों का निपटारा करते समय ग्राम पंचायत सबसे छोटी इकाई होती है। यदि कोई विवाद दो या दो से अधिक गांवों में उलझ जाता है और उस पर विचार-विमर्श करके निर्णय लेना हो तो उन गांवों के समूह पर गठित तपा, बारहा व पाल से संबंधित पंचायतों को बुलाया जाता है। यदि विवाद दो तपों, बाहरों या पालों में हो जाए तो उसे निपटाने के लिलए सर्वखाप मंचायत बुलाई जाती है। पंचायतों के अलग-अलग समूह होते हैं जैसे चैगामा, अठगामा, बारहा, चैबीसी, सतरोल, चैरासी, 360 आदी। चार गांव के समूह को चैगामा, आठ गांवों के समूह को अठगामा, इसी प्रकार 70 गांवों के समूह को सतरोल, 84 गांवों के समूह को चैरासी व 360 गांवों के समूह को 360 कहा जाता है। 36 बिरादरी की पंचायत में सभी गांवों के 36 बिरादरी के लोग भाग लेते हैं तथा इसे महापंचायत के नाम से भी पुकारा जाता है। पंचायतों का दूसरा स्वरूप गोत्र के आधार पर है। गोत्र के आधार पर गठित खाप पंचायतों का भी अपना विशेष महत्व रहा है जैसे बाल्याण खाप, दहिया खाप, अहलावात, मलिक उर्फ गठवाला खाप, दलाल, सांगवान, कुंडू, श्योराण, हुड्डा, कादियान, नैन, ढांडा, राठी, मान तथा खत्री आदि गोत्र के नामों पर भी खाप बनी हुई हैं। बाल्याण खाप को सभी खापों का प्रधान माना जाता है। इस प्राकर की गोत्र पंचायतों में ज्यादातर मसले विवाह संबंधि विवादों के समाधान के लिए ही आते रहे हैं। जिसका समाधान भी सामाजिक परिस्थितियों में होता चला आ रहा है। आपसी भाईचारे के आधार पर या गोत्र के आधार पर बने गांवों के समूह को ग्रामीण इलाकों में तपा, बारहा, पाल या खाप के नाम से पुकारा जाता है। उत्तर भारत की पंचायतें बड़े-बड़े विवादों को निपटाने तथा अपने निष्पक्ष व सर्वमान्य फैसले सुनाने के लिए मसहूर हैं। खाप के इतिहास को देखते हुए सुलभ, सस्ता व जल्दी न्याय के लिए तो उत्तर भारत की पंचायतों को ओल्ड इज गोल्ड भी कहा जाता है।

सर्वखाप व पंचायत का अर्थ व उद्देश्य

सर्व का अर्थ है व्यापक या सर्वत्र। खाप ख$आप अर्थात खाप, ख का अर्थ है आकाश या व्यापक और आप का अर्थ है जल, पवित्र या शांतिदायक पदार्थ। पंचायत पांच या उससे अधिक निष्पक्ष, सत्यवादी, व्यवहारिक, न्यायप्रिय और समस्या से परिचित व्यक्तियों के समूह को पंचायत कहते हैं। वास्तव में पंचायत का अर्थ है पंच+आयत अर्थात पांचों से बनी आयत अथवा पंचायत। यदि हम दृष्टि डालें तो सृष्टि की रचना भी पांच महाभूतों से ही हुई है। भारतीय संस्कृति अथवा किसी भी धर्म की और दृष्टिडालने पर भी पांच शब्द का महत्वपूर्ण प्रयोग मिलता है। जैसे हरियाणा में हुक्के को पंच प्याला कहा जाता है। सिक्खों में पंच प्यारे आर्य समाज में पंच महायज्ञ, भारतीय शास्त्रवेताओं ने अपने वार्षिक कलैंडर को पंचाग का नाम दिया है आदि। धार्मिक कथाओं, अध्यात्मिक एवं राजनैतिक सभी क्षेत्रों में पांच शब्द को पर्याप्त महत्व दिया गया है। यही मूल कारण है कि इस संस्था को पंचायत कहा जाता है। इसलिए जो संगठन आकाश की भांति व्यापक, जल की भांति निर्मल तथा शांतिदायक हो तथा भाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर निष्पक्ष व सर्वमान्य फैसला सुना कर विवाद को सुलझाए उसे पंचायत कहा जाता है।

पंचायत की कार्यप्रणाली

खाप पंचायत लोकतांत्रितक आधार पर गठित की जाती हैं। जिस पर पंचायत की कार्यप्रणाली टिकी हुई है। आपसी भाईचारे को कायम रखने के लिए खापों के जरिए अपासी झगड़ों को बिना थाने, कोर्ट-कचहरी के हस्तक्षेप के किया जाता है। खाप पंचायतें सामाजिक ताने-बाने को कायम रखने में काफी कारगर साबित हो रही हैं। पंचायत में सुझाव देने व अपनी बात कहने की पूरी छूट होती है। इसी वजह से फैसलों को सर्वमान्यता मिलती है। पीड़ित को खाप पंचायत के मुखिया के पास जाकर जानकारी या अपनी शिकायत देनी होती है। इसके बाद मुखिया प्रभावशाली व्यक्तियों की सलाह लेकर योग्य पंचांे का चयन करता है।

पंचायत द्वारा सुलझाए गए विवाद

  1. गांव ढड़बा कलां जिला सिरसा में किसी मामूली बात को लेकर सन 1934 में कत्ल हुआ था। जिस कारण दोनों पक्षों के 55 व्यक्तियों के कत्ल हुए थे। इस मसले को बैनिवाल खाप ने 63 साल बाद यानि 1997 में दोनों पक्षों में भाईचारा बनाकर समझौता करवाया।
  2.  गांव थाना कलां जिला सोनीपत में भी दो पक्षों में 16-17 कत्ल हो चुके थे। जिनका सर्वखाप पंचायत ने दोनों पक्षों में भाईचारा बनवाकर समझौता करवाया।
  3.  गांव गौसाई खेड़ा जिला जींद में भी दो पक्षों के बीच दुश्मनी के कारण 7   व्यक्तियों के कत्ल हुए थे। 1962-63 में सर्वखाप पंचायत ने दोनों पक्षों का समझौता करवाया। जिसमें पूर्व मंत्री लहरी सिंह का विशेष योगदान रहा।
  4.  सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए गांव सिसाना में सन 1960 मंे दहिया खाप द्वारा सर्वखाप पंचायत तथा 1962 में विवाह-शादियों में होने वाली फिजूल खर्ची को रोकने के लिए बेरी मंे सर्वखाप पंचायत बुलाई गई। इन पंचायतों में विवाह-शादियों में होने वाली फिजूलखर्ची पर रोक लगाकर लोगों को लुटने से बचाया गया।
  5.  1993 में दहिया खाप द्वारा फिर सर्वखाप पंचायत बुलाई गई। इस सर्वखाप पंचायत में शराब का प्रचलन बंद करवाने का अह्वान किया गया था। 
  6.  जींद जिले के बीबीपुर गांव में 14 जुलाई 2012 को हुई सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत ने कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने के लिए अहम फैसला लिया। महापंचायत में चैधरियों ने सरकार से कानून में संसोधन कर कन्या भ्रूण हत्यारों के खिलाफ 302 का मुकदमा दर्ज करने की मांग की। सर्व खाप पंचायत द्वारा शुरू की गई इस पहल के बाद गांव में लक्ष्मी का प्रवेश हुआ और प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बीबीपुर गांव को एक करोड़ की ग्रांट देने की घोषणा। इससे यह सिद्ध होता है कि पंचायत जिस भी काम को हाथ में लेती हैं उसे सिरे चढ़ाकर ही दम लेती हैं।
  7.  बाल्याण खाप के प्रधान स्व. चै. महेंद्र सिंह टिकैत तथा पूर्व मंत्री स्व. चै. कबूल सिंह द्वारा सौरम गांव (यूपी) में 2010 में गौत्र विवाद विषय पर एक महापंचायत का आयोजन किया गया। इस महापंचायत में सरकार से हिंदू मैरिज एक्ट में संसोधन की मांग करते हुए एक ही गांव व एक ही गौत्र में विवाह पर रोक लगाने की मांग की गई।
  8.  जींद जिले के ही निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला के कीट मित्र किसानों द्वारा 40 वर्षों से चले आ रहे किसानों व कीटों के विवाद को सुलझाने के लिए खाप पंचायतों से आह्वान किया। किसानों के आह्वान पर खाप पंचायत ने इस चुनौती भरे मसले को स्वीकार किया और 26 जून 2012 से निडाना के खेतों में पहली पंचायत का आयोजन किया। इसका फैसला अभी भविष्य के गर्भ में है। खाप प्रतिनिधि हर मंगलवार को पाठशाला में पहुंचकर खेतों में बैठकर पौधों व कीटों की भाषा सीख रहे हैं। जिसके बाद लगातार 18 पंचायतों के गहन मंथन के बाद 19 वीं पंचायत में अपना फैसला सुनाएंगे। इनके अलावा भी खाप पंचायतों ने और भी बहुत से छोटे व बड़े झगड़े निपटाए हैं।

पंचायतों में नहीं बिकते गवाह  

1925 में रोहतक के तत्कालीन डीसी ने रहबरे आजम दीनबंधु चों. छोटू राप से खाप पंचायतों व कोर्ट-कचहरी में क्या फर्क या अंतर है के अंतर के बारे में पूछा गया था। जिस पर चों. छोटू राम ने उतर दिया था कि सरकारी कचहरियों में झूठ का बोलबाला होता है। गवाह बदल जाते हैं, टूट जाते हैं, तोड़े जाते हैं और एक निष्पक्ष, ईमानदार व स्वच्छ जज के लिए भी ये जानना कठिन हो जाता है कि सच क्या है? जबकि खाप पंचायतों में झूठ नहीं बोला जाता और न ही गवाह टूटते या बिकते हैं। खाप पंचायतों में झगड़े की गहराई तक जा कर सर्वमान्य व निष्पक्ष फैसला सुनाया जाता है।

खापें नहीं होती तो अनपढ़ रह जाते हरियाणा के लोग

हरियाणा में अगर खापों का प्रभुत्व नहीं होता तो आज हरियाणा के अधिकतर लोग या तो अनपढ़ होते या फिर उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए दूसरे प्रदेशों का रूख करना पड़ता। वर्ष 1911 में दहिया खाप ने बरोणा में सर्वखाप महापंचायत बुलाई थी और रोहतक का जाट स्कूल, मटिंडू, भैंसवाल, और खानपुर गुरुकुल उसी महापंचायत की देन हैं।

1857 की जनक्रांति की विफलता के बाद अंग्रेजों ने खाप पंचायतों पर लगा दिया था प्रतिबंध

सन 1857 में सम्राट बहादुरशाह जफर ने सर्वखाप से सहयोग मांगाा और अपना राज सर्वखाप पंचायत को सौंपने का ऐलान किया। लेकिन 1857 की जनक्रांति की विफलता के बाद अंग्रेजी शासकों ने इन खाप पंचायतों को दबाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और खाप पंचायतों पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन खाप पंचायतों ने उस दौरान भी अपने अस्तित्व को कायम रखा। लेकिन आजादी के बाद सन 1950 में पहली सर्वखाप पंचायत गांव सौरम जिला मुजफ्फरनगर (उत्तरप्रदेश) में हुई। इसके बाद 1956 में भी यहीं एक सर्व खाप पंचायत हुई। जिसके बाद सौरम गांव सर्वखाप पंचायत का मुख्यालय बना गया।

मीडिया ने नहीं छोड़ी खापों को बदनाम करने में कोई कसर

कुलदीप ढांडा, प्रधान बराह कलां बारहा खाप
एवं संचालक सर्व जातीय सर्व खाप पंचायत
खाप पंचायतों को बदनाम करने में मीडिया ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। मीडिया ने खाप पंचायतों को समाज के सामने तालिबानी और फतवे जारी करने वाली एक संस्था के तौर पर प्रकट किया है। गौत्र विवाह व आनर किलिंग के मामलों में पंचायत की छवी को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। सर्व जातीय सर्वखाप महापंचायत के संचालक व बराह कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा का कहना है कि खाप पंचायतें एक गौत्र व एक गांव में विवाह का विरोध करती हैं और एक ही खून में शादी करने के मामले को वैज्ञानिक भी गलत मानते हैं। क्यों कि इससे आने वाली पीढ़ियों में कुछ अवगुण भी आने का खतरा बनता हैं। खाप पंचायतों ने कभी भी किसी को मौत की सजा नहीं सुनाई है और न ही कोई फतवा जारी किया है। खाप पंचायतें प्रेम विवाह का विरोध नहीं करती, लेकिन एक गौत्र व एक गांव में विवाह करने का विरोध करती हैं। खाप पंचायतें भाईचारे को कायम करने तथा सामाजिक तानेबाने को कायम रखने का काम करती हैं। एक गौत्र व एक गांव में विवाह करने के मसले को मिटाने के लिए खाप पंचायत ने 10 जून 2010 को मुख्यमंत्री हरियाणा व 25 जून 2010 को यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी को पत्र लिखकर हिंदू मैरिज एक्ट में संधोसन कर इस पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की मांग की है। पांडीचेरी, तमिलनाडू व उत्तरप्रदेश के लोगों ने भी अपनी संस्कृति को बचाने के लिए सरकार से मांग कर अपने विवाह के नियमों परिवर्तन करवाया है।

महिलाओं व लड़कियों की सुरक्षा को देखते हुए लिया फैसला


राकेश टिकैत, प्रधान
भारतीय किसान यूनियन
बागपत (उत्तर प्रदेश) में महिलाओं के लिए जो फैसला सुनाया गया है वह किसी खाप पंचायत ने नहीं सुनाया। यह फैसला वहीं के एक-दो गांवों के समूह के लोगों ने सुनाया है। लेकिन उनके फैसले को मीडिया ने तोड़-मरोड़ के जनता के सामने पेश किया है। उन्होंने यह पंचायत महिलाओं व लड़कियों की सुरक्षा को देखते हुए बुलाई थी। जिसमें लड़कियों की सुरक्षा को  देखते हुए अकेली लड़कियों को बाजार जाते वक्त घर की बुजुर्ग महिलाओं को साथ ले जाने की हिदायत दी गई है तथा लड़कियों व लड़कों को मोबाइल पर खुले में गाने सुनने पर प्रतिबंध लगाया है। इसके अलावा लड़कियों को साधारण पहनावे के लिए प्रेरित किया जा रहा है ताकि उतेजित पहनावे के कारण लड़कियों को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े।

पंचायत के सामने किसी चुनौती से कम नहीं है किसान व कीटों का विवाद

खाप पंचायत में मोजूद खाप प्रतिनिधि 
खाप पंचायत में भाग लेती महिलाएं 
खाप पंचायत में फोटो लेती एक छात्रा 

खाप पंचायत में हाथ उठा कर कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में हाथ उठा कर संकल्प प्रतिनि
लगभग पिछले चार दशकों से भी ज्यादा समय से चले आ रहे किसान व कीटों के विवाद को देखते हुए कीट साक्षरता केंद्र निडाना से जुड़े 12 गांवों के किसानों ने खाप पंचायत से इस झगड़े को सुलझाने की गुहार लगाई है। इस विवाद में एक पक्ष बोलने वाला तथा दूसरा पक्ष बेजुबान है। किसानों ने सर्व खाप पंचायत हरियाणा के संयोजक कुलदीप ढांडा की मार्फत खाप पंचायत को चिट्ठी लिखी। खाप पंचायत ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए इस विवाद को निपटाने का जिम्मा अपने कंधों पर उठाया। इस मामले में सबसे खास बात यह है कि पंचायत को इस विवाद को निपटाने के लिए 12 ग्रामी पाठशाला में पहुंचकर खेतों में बैठकर कीटों व पौधों की भाषा व इनके कार्य समझने पड़ रहे हैं। जबकि आज तक इससे पहले पंचायत प्रतिनिधियों को ऐसा करने की जरुरत नहीं पड़ी थी। इस मामले को निपटाने के लिए हर मंगलवार को एक पंचायत का आयोजन किया जाता है। 18 पंचायतो के बाद 19वीं सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत में सर्व खाप प्रतिनिधि अपना फैसला सुनाएंगे। यह फैसला एक ऐतिहासिक होगा। इस पंचायत की सबसे खास बात यह है कि इसमें मनुष्यों की खाप की तरह कीटों की खाप भी है और हर बार कीटों के अलग-अलग खाप प्रतिनिधि पंचायत में पहुंच रहे हैं।



जहर से लड़ने के लिए तैयार हो रही महिलाओं की फौज

कीटनाशकों से लड़ने के लिए कीटों को बनाया अचूक हथियार

नरेंद्र कुंडू
जींद।
लोगों की थाली से जहर कम करने के लिए चलाए गए कीटनाशक रहित खेती के इस अभियान को शिखर पर पहुंचाने के लिए निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाएं जी-जान से जुटी हुई हैं। इस अभियान की जड़ें गहरी करने तथा अधिक से अधिक गांवों तक इस मुहिम को पहुंचाने के लिए इन महिला किसानों द्वारा अन्य महिलाओं को भी मास्टर ट्रेनर ते तौर पर ट्रेंड किया जा रहा है। इन महिलाओं द्वारा ललीतखेड़ा गांव के खेतों में चल रही महिला किसान पाठशाला में आने वाली अन्य महिलाओं को कीटों की पहचान करवाकर इनके क्रियाकलापों की भी जानकारी दी जाती है। बुधवार को भारी बारिश के दौरान भी ये महिलाएं खेत पाठशाला में पहुंची और हाथों में छाता लेकर खेत में कीट सर्वेक्षण भी किया। महिलाओं ने पांच-पांच के 6 ग्रुप बनाए और प्रत्येक ग्रुप ने पांच-पांच पौधों से 9-9 पत्तों पर मौजूद कीटों की गिनती की। कीट सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने चार्ट पर अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की। महिलाओं द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार पूनम मलिक के कपास के इस खेत में प्रत्येक पत्ते पर सफेद मक्खी की संख्या 0.4 प्रतिशत, तेले के शिशुओं की संख्या 0.6 प्रतिशत तथा चूरड़े की संख्या 1.3 प्रतिशत थी। वैज्ञानिक मापदंड के अनुसार खेत में मौजूद इन कीटों की संख्या आर्थिक हानि पहुंचाने से काफी नीचे थी। इसलिए महिलाओं को इस खेत में कीटनाशक के प्रयोग की कोई गुंजाइश नजर नहीं आई। पाठशाला के दौरान महिलाओं ने दो नई किस्म के हथजोड़े देखे। महिलाओं ने बताया कि अब तक वे 9 किस्म के हथजोड़े देख चुकी हैं। कीट सर्वेक्षण के दौरान शीला मलिक ने सभी महिलाओं का ध्यान अपने ऊपर मंडरा रही लोपा मक्खियों के झुंड की तरफ खींचा। लोपा मक्खियों के झुंड को देखकर अंग्रेजो ने कहा कि जब ये मक्खी काफी नीचे को उड़ती हैं तो भारी बारिश आने की संभावना रहती है। इसी दौरान राजवंती ने बताया कि हरियाणा के लोग इसे हैलीकॉप्टर (जहाज) के नाम से जानते हैं। लेकिन अंग्रेज इसे ड्रेगनफ्लाई कहते हैं। राजवंती की बात को बीच में काटते हुए संतोष ने कहा कि यह मक्खी पीछवाड़े से सांस लेती है। सरिता ने महिलाओं को चुप करते हुए कहा कि इसकी पहचान के साथ-साथ इसके काम पर ध्यान देने की जरुरत है। सरिता ने महिलाओं को समझाते हुए कहा कि यह मक्खी हमारे सिर पर इसलिए उड़ रही है कि जब हम खेत में से चलते हैं तो पौधों पर बैठे कीट व पतंगे उड़ते हैं और यह उड़ते हुए कीटों का शिकार कर अपना पेट भरती है। सरिता ने कहा कि यह मक्खी धान के खेत में खड़े पानी में अपने अंडे देती है। अगर किसान धान में कीटनाशक का प्रयोग न करें तो धान में आने वाली तन्ना छेदक व पत्ता लपेट को यह बड़ी आसानी से कंट्रोल कर लेती है। सरिता ने बताया कि हरियाणा का कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसने इसे देखा न हो, लेकिन उन्हें इसकी पहचान नहीं है। सरिता ने कहा कि उसने स्वयं लोपा मक्खी की चार प्रजातियों को देख चुकी है। इसी दौरान कपास के फूल पर पुष्पाहारी कीट तेलन को देखकर प्रेम ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। प्रेम ने कहा कि निडाना व ललीतखेड़ा में इस मक्खी का प्रकोप ज्यादा है, क्योंकि यहां के किसान कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते हैं। रणबीर मलिक ने प्रेम के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि तेलन तो उनकी फसल की हीरोइन है, क्योंकि यह कपास में परपरागन में अहम भूमिका निभाती है। मलिक ने बताया कि निडाना के किसानों ने अब तक तेलन द्वारा प्रकोपित 508 फूलों की फूलों की पहचान की है। इनमें से सिर्फ तीन फूल ही ऐसे थे, जिनके मादा भाग खाए गए थे। बाकि 505 फूलों के सिर्फ नर पुंकेशर व पंखुड़ियां खाई हुई थी तथा मादा भाग सुरक्षित था। मलिक ने बताया कि यह अपने अंडे जमीन में देती है और इसके बच्चे मासाहारी होते हैं, जो टिड्डो व अंडों को अपना शिकार बनाते हैं। रमेश मलिक ने महिलाओं को मटकू बुगड़े व लाल बणिये के अंडे दिखाए।
बारिश के दौरान छाता लेकर कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं।

कपास के पत्ते पर मौजूद लोपा मक्खी (ड्रेगनफ्लाइ)।

तेलन कीट द्वारा कपास के फूल के नर पुंकेशर खाने के बाद सुरक्षित मादा पुंकेशर।


बुधवार, 22 अगस्त 2012

बारिश भी नहीं तोड़ पाई किसानों के बुलंद हौसले

खाप प्रतिनिधियों ने भी किया देसी कपास की फसल का अवलोकन व निरीक्षण

 12 गाँव के किसानों ने चार्ट के माध्यम से प्रस्तुत किये आंकड़े 

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हौंसले हो बुलंद तो मंजिल अपने आप कदम चूमने लगती है, और जो अपने हौंसले को तोड़ देता है उससे मंजिल दूर होती चली जाती है, ऐसा ही मानना है गांव निडाना में चल रही खेत पाठशाला के किसानों का। सोमवार रात को हुई बारिश के बाद भी किसानों के हौंसले नहीं टूटे। खेतों में पानी भरा होने के बावजूद भी मंगलवार को किसान खेत पाठशाला के नौंवे स्तर में कीटों व किसानों के बीच चल रहे मुकद्दमें की सुनवाई के लिए खाप प्रतिनिधियों सहित किसान भी वहां पहुंचे। किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ से हुड्डाा खाप के प्रधान इंद्र सिंह हुड्डा, राखी बारह के प्रधान राजबीर सिंह, जाट धमार्थ जींद सभा के प्रधान रामचंद्र पहुंचे। खाप पंचायतों के प्रतिनिधि व किसानों ने गांव निडाना निवासी जोगेंद्र के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ कीटों के बारे में जानकारी हासिल की।

मंगलवार को नहीं हो सका सर्वेक्षण

सोमवार रात को हुई तेज बारिश से खेत में गोड्यां-गोड्यां तक पानी जमा हो गया। जिसके चलते किसान कीटों का सर्वेक्षण नहीं कर सके। हालांकि 12 गांवों के किसानों ने अपने-अपने कीटों के बही खाते को चार्ट के माध्यम से पेश किया। किसी भी गांव में सफेद मक्खी 0.5 प्रतिशत, तेला 0.4 प्रतिशत, चूरड़ा 1.8 प्रतिशत प्रति पत्ता पाया गया। जो कीट वैज्ञानिकों द्वारा तय किए गए मापदंडों से काफी कम है। किसानों की मेहनत के चलते उनके खेतों में एक छटांक भी कीटनाश की आवश्यकता नहीं पड़ी है।

किसानों तथा खाप प्रतिनिधियों ने किया कीट अवलोकन

किसान रमेश मलिक ने कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मटकू बुगड़ा देखने में लाल बणिया कीट जैसा लगता है। लेकिन यह उससे बिल्कुल अलग है और उसका खून पीता है। मटकू बुगड़ा एक रात में छह लाल बणिया कीटों का खून पी लेता है। किसानों ने ध्यान से मटकू बुगड़ा की पहचान की। रमेश मलिक ने बताया कि यह दुर्लभ  पर भक्षियों में से एक है। जो लाल बणिया का खून पीकर उसे खत्म करता है।

सलेटी भूड का शिकार करते मोबाइल पर दिखाया

गांव इंटल कलां के किसान चतर सिंह ने मंगलवार को हुई इस पाठशाला में किसानों को भी मोबाइल युग का अहसास करवा दिया। क्योंकि चतर सिंह ने अपने मोबाइल के माध्यम से खेत पाठशाला में किसानों को डायन मक्खी द्वारा सलेटी भूंड का शिकार करते हुए का वीडि़यो रिकार्ड कर रखी थी, जिसे उसने पाठशाला में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व किसानों के समक्ष दिखाया।

किसानों ने किया रणबीर सिंह की देशी कपास का सर्वेक्षण

खाप प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न भेंट करता किसान महाबीर पूनिया।

 कपास की फसल में मौजूद लाल बनिए का परभक्षी मटकू बुगड़ा।
किसानों ने रणबीर सिंह की देशी कपास का सर्वेक्षण व अवलोकन किया। सर्वेक्षण के दौरान हर दूसरे पौधे पर डायन मक्खी, कातिल बुगड़ा, सिंगू बुगड़ा, भिरड़, ततैया व इंजनहारी बहुतायात में पाए गए। सर्वेक्षण के दौरान किसान अजीत सिंह ने पहली बार डायन मक्खी को देखा जो अपने पंजे में पतंगे को फंसाए कपास के पत्ते पर बैठी हुई थी। इस मौके पर गांव राजपुरा के पूर्व सरपंच बलवान व धर्मपाल के मुंह से बरबस ही निकल गया कि फसल में इतने कीट हैं, लेकिन कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। किसान रणबीर ने बताया कि वह सात साल से देशी कपास की खेती कर रहा है। उसने कभी भी अपनी फसल में एक बूंद भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। बाद में किसानों ने पाठशाला में आए खाप प्रतिधिनियों को स्मृति चिह्न भेंट किए।


आखिर कैसे पहुंचेगा माइनरों की टेलों पर पानी

सिंचाई विभाग में कर्मचारियों के टोटे से पानी पर डाका

नरेंद्र कुंडू
जींद।
मानसून की दगाबाजी के बाद सिंचाई विभाग से भी किसानों की उम्मीदें टूटने लगी हैं। नहरी पानी पर जमकर डाका डाला जा रहा है। सिंचाई विभाग में खाली पड़े अधिकारियों व कर्मचारियों के पदों के कारण तो पानी चोरों के हौसलें काफी बुलंद हैं और उनको कोई रोकने वाला तक नहीं है। इसी कारण नहरी पानी चोरी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। नहरी पानी को बीच में ही चुराने के कारण माइनरों की टेलों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। टेल तक पानी नहीं पहुंने के कारण किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। इससे खेतों में खड़ी किसानों की फसलें पानी के अभाव में सुख रही हैं।
मानसून की दगाबाजी की मार झेल रहे किसानों को अब सिंचाई विभाग में अधिकारियों व कर्मचारियों के टोटे की मार भी झेलनी पड़ रही है। विभाग में अधिकारियों व कर्मचारियों की कमी के कारण विभाग का कामकाज प्रभावित हो रहा है। सिंचाई विभाग के जुलाना ब्लॉक में रामकली, बराडखेड़ा, जुलाना व मोहला चार सैक्शन हैं। इन चारों सैक्सनों में चार जेई व करीबन 100 बेलदारों के पद खाली पड़े हैं। इसके अलावा मेट, फील्ड कर्मचारी व तार घर में सिंग्नल कर्मचारियों की भी भारी कमी है। नई भर्ती नहीं होने के कारण कर्मचारियों की कमी से विभाग बुरी तरह से जूझ रहा है। धीरे-धीरे बेलदार, जेई, मेट व फील्ड के कर्मचारी रिटायर्ड हो गए हैं। रिटायर्ड होने व नई भर्ती नहीं होने से विभाग में कर्मचारियों की कमी है। कर्मचारियों की कमी का फायदा पानी चोर धड़ल्ले से उठा रहे हैं। किसान माइनरों व नहरों से पाइप लगाकर खुलेआम पानी चोरी कर रहे हैं। क्योंकि विभाग में कर्मचारियों की कमी के कारण इन्हें पानी चोरी करने से रोकने वाला कोई नहीं है। पानी चोरी के मामलों में हो रही बढ़ोतरी के कारण माइनरों की टेलों तक पानी नहीं पहुंच पाता है। जिसके कारण जिन किसानों के खेत टेल पर हैं उन्हें सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है। इससे किसानों की फसलें सुख जाती हैं। कर्मचारियों के कमी के साथ विभाग में रेड करने के लिए वाहनों की कमी भी खल रही है। जुलाना ब्लॉक में रेड करने के लिए अधिकारियों के पास केवल एक ही जीप है और वह भी खस्ता हाल में है। वाहनों व कर्मचारियों की कमी किसानों पर भारी पड़ रही है। किसानों को उनके हिस्से का पानी नहीं मिल रहा है।

हांसी ब्रांच नहर तक हो चुकी है शिकार

पानी चोरों के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने हांसी ब्रांच नहर तक को नहीं बख्शा है, माइनरों की तो बिसात ही क्या है। गत एक अगस्त को रामराय व गुलकनी गांवों के बीच रात को नहर काट दी गई थी। इसके पीछे पानी चोरों का हाथ सामने आया था और इससे हजारों एकड़ फसलों में पानी फिर गया था और सैंकड़ों एकड़ फसल नष्ट भी हो गई थी। इसमें विभाग द्वारा काफी लोगों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करवाई गई थी। अब विभाग के अधिकारी व कर्मचारी किसानों पर जुर्माने लगाने के लिए आंकलन में जुटे हैं। जब नहर को ही नहीं बख्शा गया तो माइनरों का बचना मुश्किल है। इसके पीछे कर्मचारियों व अधिकारियों का टोटा सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है।

ज्यादा लंबा है एरिया

इन चारों सेक्शन का एरिया काफी लंबा है। इसमें 15 माइनरें तथा आठ ड्रेन आती हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों को दिन-रात अपनी ड्यूटी करनी पड़ रही है। पानी चोरों को पकड़ने के लिए वाहनों की भी कमी है। एरिया लंबा होने से एक वाहन से काम नहीं चल रहा है। किसानों ने भी पानी चोरी के नए-नए तरीके अपनाएं हुए हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
कुलदीप सिंह, एएसडीई

दिन-रात करनी पड़ रही है ड्यूटी

विभाग में अधिकारियों व कर्मचारी की भारी कमी है। इनकी कमी के कारण पानी चोर इसका फायदा उठाते हैं। कर्मचारियों को दिन-रात ड्यूटी करनी पड़ रही है। विभाग में रेड करने के लिए वाहनों की कमी भी है। एरिया लंबा है। फिलहाल विभाग में स्टाफ की कमी है।
बनवारी लाल
एसडीओ जुलाना
 पानी चोरों द्वारा काटी गई हांसी ब्रांच नहर का फाइल फोटो।

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

स्वतंत्रता दिवस पर महिलाओं ने लिया देश को जहर से आजाद करवाने का संकल्प

नरेंद्र कुंडू
जींद।
एक तरफ 15 अगस्त को जहां सारे देश में 66 वें स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मनाई जा रही थी। जगह-जगह कार्यक्रमों का आयोजन कर देशभक्ति से ओत-प्रोत भाषणों से युवा पीढ़ी में देशभक्ति का बीज बो कर उन्हें देश सेवा की शपथ दिलवाई जा रही थी, वहीं दूसरी तरफ जिले के ललीतखेड़ा गांव के खेतों में महिला किसान पाठशाला की महिलाएं देश को जहर से मुक्त करवाने का संकल्प ले रही थी। अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए महिलाएं हाथ में कागज-पैन उठाकर भादो की इस गर्मी में कीट सर्वेक्षण के लिए कपास के पौधों से लटापीन होती नजर आई। इस दौरान महिलाओं को प्रेरित करते हुए सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को हमें राजनीतिक आजादी तो मिली और इससे हमें विकास के लाभ भी हासिल हुए, लेकिन कीटनाशकों से मुक्ति की लड़ाई अभी जारी है। निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने हिंदूस्तान की जनता को जो रास्ता दिखाया है, इससे एक दिन यह लड़ाई जरुर सफल होगी और जनता को विषमुक्त भेजन भी मिलेगा। जिससे हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित बनेगा। इस अवसर पर महिलाओं ने 6 समूह बनाकर कपास के खेत का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षेण के दौरान महिलाओं ने पांच-पांच पौधों के पत्तों पर कीटों की गिनती की। महिलाओं ने पौधे के ऊपरी, बीच व निचले हिस्से से तीन-तीन पत्तों का सर्वेक्षण कर फसल में मौजूद सफेद मक्खी, चूरड़ा व तेले की तादात अपने रिकार्ड में दर्ज की। इसके बाद महिलाओं ने फसल में मौजूद कीटों का बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में महिलाओं ने अपने-अपने खेत से लाए गए आंकड़े भी दर्ज करवाए। महिलाओं ने अपने खेत से दस-दस पौधों से आंकड़ा तैयार किया था, लेकिन सुषमा पूरे 28 पौधों से आंकड़ा तैयार कर लाई थी। खुशी की बात यह थी कि इन महिलाओं ने अभी तक अपने खेत में एक छटाक भी  कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। पाठशाला के दौरान महिलाओं ने कपास के फूलों पर तेलन का हमला देखा। महिलाओं ने पाया कि तेलन द्वारा सिर्फ फूल की पुंखडि़यां व नर पुंकेशर खाए हुए थे, जबकि स्त्री पुंकेशर सुरक्षित था। तेलन द्वारा खाए गए फूलों से फसल के उत्पादन पर कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं इसे परखने के लिए महिलाओं ने इन फूलों को धागे बांधकर इनकी पहचान की। ताकि इससे यह पता चल सके की इन फूलों से फल बनता है या नहीं। ललीतखेड़ा में चल रही इस महिला पाठशाला में ललीतखेड़ा गांव से नरेश, शीला, संतोष, कविता, राजबाला, निडानी से संतोष व कृष्णा पूनिया, निडाना से कृष्णा, बीरमती, सुमित्रा, कमलेश, केलो तथा निडाना की मास्टर ट्रेनर मीनी, अंग्रेजो, बिमला, कमलेश व राजवंती मौजूद थी।
 कपास के फूल को खाती तेलन
कपास के पौधे पर कीटों की गिनती करती महिलाएं।



गुरुवार, 16 अगस्त 2012

‘असी तवाड़े प्यार नू कदे भी नहीं भूल पावांगे’

निडाना के ग्रामीणों के अतिथि सत्कार से गदगद हुए पंजाब के किसान

कीट ज्ञान के साथ-साथ निडाना के ग्रामीणों का प्यार साथ लेकर गए पंजाब के किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
निडाना दे किसाना नूं साडा जो आदर-सत्कार किता सी, असी ओना दे इस प्यार नू कदे वी नहीं भूल पावांगे। यह शब्द बयां कर रहे थे पंजाब के किसानों के जज्बात को, जो निडाना के ग्रामीणों के अतिथि सत्कार से खुश होकर बार-बार उनकी जुबान पर आ रहे थे। ये किसान आए तो थे निडाना के किसानों से कीट प्रबंधन के गुर सीखने, लेकिन यहां के ग्रामीणों की मेहमान नवाजी से इतने खुश हुए कि उसका जिक्र किए बिना नहीं रह पा रहे थे। पंजाब के किसान यहां के किसानों से कीट प्रबंधन के साथ-साथ अतिथि सत्कार के नए गुर भी सीख कर गए। ग्रामीणों ने पंजाब के किसानों को यह महशूस ही नहीं होने दिया कि ये यहां किसी टूर पर आए हुए हैं। ग्रामीणों ने पंजाब के किसानों को किसी, मंदिर, धर्मशाला में न ठहराकर अपने-अपने घरों में ही इनके रुकने की व्यवस्था की। निडाना के किसानों ने अपनी मेहमान नवाजी से पंजाब के किसानों के दिलो-दिमाक पर प्यार की एक अमीट छाप छोड़ दी।
पंजाब कृषि विभाग द्वारा आत्मा स्कीम के तहत जिला नवां शहर से 6 कृषि अधिकारियों के नेतृत्व में 38 किसानों का एक दल कीट प्रबंधन के गुर सीखने के लिए दो दिवसीय अनावरण यात्रा पर जींद जिले के निडाना गांव में भेजा था। निडाना के ग्रामीणों में भी पंजाब से आने वाले किसानों को लेकर खासा उत्साह था। इसलिए निडाना के ग्रामीणों ने इनके आदर-सत्कार के लिए पूरी तैयारी की हुई थी। निडाना के ग्रामीणों ने पंजाब के किसानों को किसी मंदिर, चौपाल या धर्मशाला में ठहराने की बजाए, इन्हें चार-चार के ग्रुप में बांटकर गांव में ही दस घरों में ठहराने व खाने-पीने का पूरा इंतजाम किया था। पंजाब के किसान ग्रामीणों द्वारा किए गए इस प्रबंध से गदगद हुए बिना नहीं रह सके। रात को खाना खाने के बाद पंजाब के किसानों ने इनके परिवार के साथ बैठकर बातचीत की व इनसे खेती के नए-नए नुस्खे सीखे। सुबह नाशता करने के बाद ये किसान गांव के खेतों में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचे और यहां के कीट मित्र किसानों से कीट प्रबंधन के गुर सीखे। इसके साथ ही इन किसानों ने कीट बही खाता तैयार करना, पौधों की भाषा सीखना व कीटों के क्रियाकलापों के बारे में भी जानकारी जुटाई। इसी दौरान पंजाब के किसानों ने इन कीट मित्र किसानों से खुलकर बहस की व अपनी समस्याओं के समाधान भी करवाए। पंजाब से आए किसानों ने बताया कि पंजाब कृषि क्षेत्र में हरियाणा से आगे है, जिस कारण यहां कीटनाशकों का प्रयोग भी काफी ज्यादा है। जिसके परिणाम स्वरूप ही पंजाब में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के मरीजों की तादात भी काफी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि वे भी इस जहर से छुटकारा पाना चाहते हैं, परंतु उन्हें इससे बचने का कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था। लेकिन अब निडाना के किसानों ने उन्हें एक नया रास्ता दिखाया है। उन्होंने कहा कि यहां से उन्होंने जो कुछ सीखा है उसे वे अपने क्षेत्र के किसानों को भी सिखाएंगे, ताकि लोगों की थाली में बढ़ रहे इस जहर को कम किया जा सके। निडाना के किसानों के कीट ज्ञान को देखकर पंजाब के किसान चकित रह गए। इसके बाद पंजाब के किसानों ने निडानी गांव में लंच किया। निडानी के ग्रामीणों ने भी इनके आदर-सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां से ये किसान अलेवा  के लिए रवाना हुए और अलेवा में कीटनाशक रहित धान व कीटनाशकों के प्रयोग वाली धान की तुलना की। इसके बाद शाम को यहां से ये किसान वापिस पंजाब के लिए रवाना हुए।

यहाँ के लोगों से खूब आदर-सत्कार मिला 

पंजाब से आए किसानों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते निडाना के किसान।
निडाना के ग्रामीणों ने उनका खूब आदर-सत्कार किया है। उनके इस प्यार को वह व उनके साथ आए किसान कभी भी भूला नहीं पाएंगे। यहां आने से पहले उनके दिमाक में यहां के किसानों के खेती करने व कीट प्रबंधन के बारे में कई प्रकार के सवाल थे, लेकिन यहां आकर सब कुछ साफ हो गया है। यहां के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम को वे अपने राज्य में भी शुरू करेंगे और खाने में बढ़ रहे इस जहर को कम करेंगे, ताकि आने वाली जरनेशन उनसे यह सवाल न करे कि उन्होंने उनके लिए क्या किया है।
डा. सुखजींद्र पाल
प्रोजैक्ट डायरेक्टर आत्मा स्कीम
कृषि विभाग, पंजाब

किताबों से नहीं बुनियाद से सीखकर खुद का ज्ञान पैदा करें किसान : दलाल

पंजाब के किसानों ने निडाना के किसानों से सीखे कीट प्रबंधन के गुर

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिस तरह शहीदे आजम भगत सिंह ने मात्र 23 वर्ष की अल्प आयु में ही फांसी के फंदे को चुमकर देश में क्रांति का तूफान खड़ा कर अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत में कील ठोकने का काम किया था, ठीक उसी तरह निडाना गांव के किसानों ने भी कीट प्रबंधन की यह मुहिम शुरू कर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। निडाना गांव के खेतों से उठी क्रांति की यह लहर भोले-भाले किसानों को गुमराह कर उनकी जेबें तरासने वाले फरेबियों के ताबूत में आखरी कील साबित होगी। यह बात बरहा कलां बाराह खाप के प्रधान एवं खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में शहीद भगत सिंह के जिला नवां शहर (पंजाब) से आए किसानों को संबोधित करते हुए कही। पंजाब के कृषि विभाग द्वारा आत्मा स्कीम के प्रोजैक्ट डायरेक्टर सुखजींद्र पाल के नेतृत्व में जिला नवां शहर से 38 किसान व 6 कृषि अधिकारियों के एक दल को कीट प्रबंधन के गुर सीखने के लिए निडाना में दो दिन की अनावरण यात्रा पर भेजा गया था। इस अवसर पर कीट-किसान मुकदमे की सुनवाई के लिए खाप पंचायत की तरफ बेनिवाल खाप के प्रधान जिले सिंह बेनिवाल, अखिल भारतीय क्षेत्रीय महासभा के कार्यकारी सदस्य महेंद्र सिंह तंवर, अमरपाल राणा व कृष्ण कुमार भी मौजूद थे।
ढांडा ने कहा कि भगत सिंह के जिले के लोगों द्वारा निडाना गांव के किसानों की इस मुहिम में शामिल होने से यह साफ हो गया है कि अब देश में यह क्रांति पूरी रफ्तार से फैलेगी, क्योंकि पंजाब के किसान कृषि क्षेत्र में हरियाणा से आगे हैं और यहां पर कीटनाशकों का प्रयोग भी सबसे ज्यादा होता है। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि किसानों को किताबों में लिखी हुई बातों पर यकीन करने की बजाए बुनियाद से सीखने की जरुरत है। जब तक किसान खुद का ज्ञान पैदा नहीं करेगा और घर पर ही बीज तैयार कर फसल की बिजाई करनी शुरू नहीं करेगा तब तक किसान को खेती से लाभ प्राप्त नहीं होगा। डा. दलाल ने कहा कि जिस ज्ञान को परखने के लिए पंजाब से किसान यहां आए हैं, वह ज्ञान किताबी नहीं है, बल्कि निडाना के किसानों द्वारा यह ज्ञान खेत में प्रयोग कर खुद पैदा किया गया है। बीटी पर चुटकी लेते हुए डा. दलाल ने कहा कि कीटों को कंट्रोल करने में बीटी-सीटी का कोई महत्व नहीं है और न ही किसानों को कीटों को कंट्रोल करने की जरुरत है। यहां के बाद इन किसानों ने निडानी गांव में लंच किया और यहां महाबीर व जयभगवान के खेत में कपास व मूंग की मिश्रित खेती का अवलोकन किया। इसके बाद अलेवा गांव में जाकर प्रगतिशील किसान जोगेंद्र सिंह लोहान के खेत में कीटनाशक रहित व कीटनाशक के प्रयोग वाली धान की फसल में आई पत्ता लपेट की तुलाना की। यहां से जलपान कर वापिस पंजाब के लिए रवाना हुए।

खाद डालने की विधि सीखें किसान

किसानों को फसल में खाद की अवश्यकता व डालने की विधि भी सीखने की जरुरत है। क्योंकि किसान फसल में जो यूरिया खाद डालता है,उसका 11 से 28 प्रतिशत ही पौधों को मिलता है। बाकि का खाद वेस्ट ही जाता है। इसके अलावा डीएपी खाद में से सिर्फ 5 से 20 प्रतिशत ही खाद पौधों को मिलता है। बाकि की खाद की मात्रा जमीन में चली जाती है। इस तरह बिना जानकारी के व्यर्थ होने वाले खाद को बचाने के लिए खाद जमीन में डालने की बजाए सीधा पौधों को ही दिया जाए।

बोकी तोड़ कर शुरू किया प्रयोग

किसानों द्वारा पाठशाला में नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। एक तरफ जहां पौधों के पत्तों की कटाई का प्रयोग चल रहा है तो दूसरी तरफ किसानों ने कपास के पांच पौधों से पौधे की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ने का प्रयोग भी शुरू कर दिया है। इस प्रयोग से किसान यह देखाना चाहते हैं कि कपास की फसल में बोकी खाने वाले कीटों से उत्पादन पर कोई प्रभाव होता है या नहीं। इस पाठशाला में 28 दिन बाद पांच पौधों की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ी जाती हैं। वही बोकी बार-बार न टूटें इसलिए 28 दिन बाद पौधे की बोकी तोड़ी जाती हैं, क्योकि बोकी से फूल बनने में 28 दिन का समय लगता है।

समस्याओं का किया समाधान

 पंजाब के किसानों को कीटों की पहचान करवाते निडाना के किसान।

 खेत पाठशाला में कीट बही खाता तैयार करते डा. सुरेंद्र दलाल।

खेत में पौधे की बोकी तोड़ते खाप प्रतिनिधि।
पंजाब से आए किसानों ने निडाना के किसानों से खूब सवाल-जवाब किए और धान, गन्ना, मक्की व सब्जी की फसल में पत्ता लपेट, तना छेदक, टिड्डे व फुदका कीटों से होने वाले नुकसान का समाधान भी पूछा। निडाना के किसानों ने पंजाब के किसानों की समस्याओं का समाधान करते हुए बताया कि इन कीटों को कीटनाशकों से काबू करने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इनको काबू करने के लिए फसल में मासाहारी कीट काफी तादाद में मौजूद होते हैं।