रविवार, 14 अप्रैल 2013

खून से लाल हो रही है रेल की पटरियां


हर माह बढ़ रही है रेलवे ट्रैक पर मरने वालों की संख्या 

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले का रेलवे ट्रैक हर माह खून से लाल हो रहा है। जिंदगी से परेशान लोग मौत को गले लगाने के लिए रेलवे ट्रैक को चून रहे हैं। ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है। अकेले वर्ष 2013 में पिछले 3 माह में ही ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या करने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों की संख्या में हर माह 2 से 3 व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है। रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों में महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की संख्या काफी ज्यादा है। रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या के बढ़ते मामले जी.आर.पी. के लिए भी सिर दर्द बन रहे हैं। जी.आर.पी. को मृतकों की पहचान व उसके परिजनों का पता लगाने के लिए खाक छाननी पड़ रही है।
आज भाग दौड़ व टैंशन भरी ङ्क्षजदगी से परेशान होकर लोग अपने जीवन से मुहं मोड़ रहे हैं। टैंशन भरी जिंदगी से छुटकारा पाने के लिए लोग रेलवे ट्रैक को माध्यम बना रहे हैं। इसलिए ट्रेन के आगे कूद कर एक ही झटके में ङ्क्षजदगी से छुटकारा पाना चाहते हैं। अगर पिछले 3 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। वर्ष 2011 में रेलवे ट्रैक पर जान देने वालों की संख्या लगभग 110 के करीब थी, तो वर्ष 2012 में यह आंकड़ा 110 से बढ़कर 133 पर पहुंच गया। वर्ष 2013 में पिछले 3 माह में रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इन 3 माह में हर माह 2 से 3 व्यक्तियों का आंकड़ा बढ़ा है। इनमें महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की संख्या ज्यादा है। जनवरी माह में रेल की चपेट में आने के कारण 5 लोगों की मौत हुई है, जिनमें पांचों पुरुष थे। पांचों मामलों में 3 आत्महत्या के थे, जबकि 2 लोगों की मौत स्वभाविक रुप से हुई थी। फरवरी माह में ट्रेन की चपेट में आने से 7 लोग काल का ग्रास बने। इनमें 5 पुरुष तथा 2 महिला थी। सातों मामलों में 2 मामले आत्महत्या के तथा 5 मामले दुर्घटना के थे। मार्च माह में कुल 8 लोग ट्रेन की चपेट में आने के कारण जिंदगी से हाथ धो बैठे। इनमें 6 पुरुष व 2 महिलाएं थी। आठों मामलों में 5 आत्महत्या के तथा 3 मामले दुर्घटना के थे। लगातार बढ़ रहे आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो यह साफ हो रहा है कि लोग तनाव भरे जीवन से छूटकारा पाने के लिए ट्रेन को आसान साधन मानते हैं। रेलवे ट्रैक पर बढ़ते हादसे जी.आर.पी. के लिए भी सिरदर्द बनते हैं। जी.आर.पी. को मृतक की पहचान व उसके परिजनों का पता लगाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है।

72 घंटे तक रख सकते हैं शव 

रेलवे ट्रैक पर लावारिस शव मिलने पर जी.आर.पी. द्वारा पंचनामा भरने के बाद शव का पोस्टमार्टम करवाया जाता है। शव मिलने के बाद शव की पहचान के लिए जिला पुलिस को वायरलैस द्वारा सूचना दी जाती है। शव मिलने पर शव को 72 घंटे तक सुरक्षित रखा जाता है। इसके बाद उनकी पहचान नहीं होने पर शव का दांह संस्कार के लिए मार्कीट कमेटी को सौंप दिया जाता है।

लावारिश शव बनते हैं जी.आर.पी. के गले की फांस

जी.आर.पी. को शव मिलने पर उनकी पहचान नहीं होने पर जी.आर.पी. को शव की पहचान के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। पिछले 3 माह में रेलवे ट्रैक पर मरने वाले 20 लोगों में से अभी भी 4 शवों की पहचान नहीं हो पाई है। जिस कारण जी.आर.पी. ने शवों को लावारिश घोषित कर शवों को दहा संस्कार के लिए मार्कीट कमेटी को सौंप दिया है।

किया जाता है प्रचार-प्रसार

रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हो रही है। आत्महत्या के मामलों में वृद्धि होने के कारण जी.आर.पी. को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। स्टाफ की कमी के चलते जी.आर.पी. पर काम का बोझ भी बढ़ जाता है। जी.आर.पी. द्वारा शवों की पहचान के लिए काफी प्रचार-प्रसार भी किया जाता है। इसके बाद अगर शव की पहचान नहीं हो पाती है तो शव का दहा संस्कार के लिए  मार्कीट कमेटी को सौंप दिया जाता है।
विक्रम सिंह, एस.एच.ओ.
जी.आर.पी., जींद

लोगों के दिल में पनप रही है गलत धरना 

ट्रेन सबसे पुराना साधन है। पुराने समय में ट्रेन की चपेट में आने से कुछ हादसे होने के बाद ट्रेन की तरफ लोगों की गलत धारण भी जुड़ गई है। जब किसी व्यक्ति का जिन्दगी से मोह उठ जाता है तो उसके मन में मौत को लेकर किसी तरह का डर नहीं रहता है। इस तरह की परिस्थिति में व्यक्ति सिर्फ यह सोचता है कि आत्महत्या के दौरान संयोग से कहीं उसकी मौत नहीं हुई और उसके शरीर का कोई अंग भंग हो गया तो उसकी जिंदगी बेकार हो जाएगी। अन्य वाहनों की बजाए ट्रेन की चपेट में आने से मौत जल्दी हो जाती है। इसलिए आत्महत्या के लिए लोग ट्रेन को ही सबसे ज्यादा चुनते हैं, क्योंकि ट्रेन की चपेट में आने के बाद बचने के चांस कम होते हैं। जीवन भगवन का अनमोल तोहफा है छोटी-मोटी परेसनियों के कारण इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए
नरेश जागलान
 नरेश जागलान का फोटो

मनोचिकित्सक, जींद


रेलवे जंक्शन की सुरक्षा में सेंध

जंक्शन पर आने वाले यात्रियों के लिए नहीं कोई खास व्यवस्था 


नरेंद्र कुंडू
जींद। रेल किराये में वृद्धि के बावजूद भी जींद के रेलवे जंक्शन पर यात्रियों के लिए कोई खास व्यवस्था का इंतजाम नहीं हो पाया है। यहां सबसे बड़ा खतरा तो सुरक्षा व्यवस्था को है। शहर के रेलवे जंक्शन की सुरक्षा व्यवस्था में पूरी तरह से सेंध लग चुकी है। रेलवे जंक्शन पर सुरक्षा के कोई पुख्ता प्रबंध नहीं हैं। स्टेशन के प्रवेश द्वारा पर रखा डोर मैटलडिडक्टर शोपिस बना हुआ। इतना ही नहीं रेलवे स्टेशन पर बनी जी.आर.पी. व आर.पी.एफ. की चैकपोस्टों के गेटों पर भी ताले लटकते रहते हैं। ऐसे हालात में रेलवे जंक्शन पर आने वाले यात्रियों व जंक्शन की सुरक्षा का अंदाजा स्वयं ही लगाया जा सकता है। इसके अलावा स्टेशन पर सीनियर सिटीजन के लिए अलग से टिकट खिड़की की भी कोई व्यवस्था नहीं है। 

रेलवे जंक्शन पर सुरक्षा व्यवस्था का आलम यह है कि यहां कोई भी अपराधिक प्रवृति का व्यक्ति किसी भी 
जींद रेलवे जंक्शन का फोटो। 
घटना को अंजाम देकर आसानी से बच कर निकल सकता है। जंक्शन की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर टीम ने जब जंक्शन का मुआयना किया तो देखा कि रेलवे सुरक्षा बल के कार्यालय के बाहर लावारिश हालता में एक सामान से भरा बैग रखा हुआ था। लावारिश सामान का यह बैग लगभग 1 घंटे तक इसी अवस्था में कार्यालय के बाहर रखा रहा लेकिन किसी भी पुलिस कर्मी ने यहां इस सामान की तलाशी लेने की जहमत नहीं उठाई। 


 रेलवे जंक्शन पर खाली पड़ी पूछताछ कार्यालय की खिड़की। 

 रेलवे जंक्शन के गेट पर खराब अवस्था में एक तरफ रखा डोर मैटलडिडक्टर। 

पूछताछ खिड़की से नदारद रहते हैं कर्मचारी

रेलवे जंक्शन पर सबसे बुरा हाल तो पूछताछ खिड़की का है। यहां यात्रियों को ट्रेन इत्यादि की जानकारी के देने के लिए बनाई गई पूछताछ खिड़की से ज्यादातर समय कर्मचारी नदारद रहते हैं। खिड़की पर कर्मचारियों के मौजूद नहीं रहने के कारण यात्रियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं फोन के माध्यम से यात्रियों को गाडिय़ों की जानकारी देने के लिए जारी किए गए नम्बर पर भी यात्रियों को गाडिय़ों की जानकारी नहीं मिल पाती है। यात्री पूछताछ के नम्बर पर काल पर काल करके परेशान हो जाते हैं लेकिन पूछताछ नंबर से किसी तरह का कोई जवाब नहीं मिल पता है। 

सीनियर सिटीजन के लिए नहीं है अलग खिड़की

रेलवे जंक्शन पर यात्रियों के लिए टिकट लेने के लिए तो 2 खिड़कियां हैं लेकिन यहां सीनियर सिटीजन के लिए टिकट लेने के लिए कोई अलग से खिड़की की व्यवस्था नहीं की गई है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग से खिड़की नहीं होने के कारण उन्हें टिकट लेने के लिए कई बार युवाओं से उलझना पड़ता है। वरिष्ठ नागरिक पुरुषोतम, रामलाल, मोहनलाल, दयाकिशन, सुरजभान आदि ने बताया कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग से खिड़की होनी चाहिए। 

नियमित रूप से चिकित्सालय खोलने की मांग

जींद जंक्शन पर नियमित रुप से चिकित्सालय खोलने की मांग भी यात्रियों द्वारा की जा रही है। रेलयात्री शमशेर कश्यप, फतेहचंद, रमन अरोड़ा व अश्वनी का कहना है कि रेलवे जंक्शन पर नियमित रुप से चिकित्सालय खोला जाना चाहिए ताकि रेलवे परिसर में दुर्घटनाग्रस्त होने वाले यात्रियों को तत्काल प्राथमिक उपचार दिया जा सके।

जनता खाने की भी नहीं है व्यवस्था

रेलवे सुरक्षा बल के कार्यालय के बाहर रखा लावारिश सामान।
रेलवे मंत्रालय के निर्देशानुसार हर रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को सस्ता व अच्छा भोजन उपलब्ध करवाना जरुरी है, ताकि सफर के दौरान यात्रियों को कम कीमत पर अच्छा खाना मिल सके लेकिन रेलवे जंक्शन पर इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। रेलवे जंक्शन पर जनता खाने की कोई व्यवस्था नहीं है। 

नियमित रुप से लगाई जाती है कर्मचारियों की ड्यूटी।

पूछताछ खिड़की पर नियमित रुप से कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है। यात्रियों की सुविधा के लिए स्टेशन पर ट्रेनों के टाइम टेबल से सम्बंधित चार्ट भी लगाए गए हैं। सीनियर सिटीजन के लिए अलग से खिड़की की व्यवस्था नहीं है लेकिन खिड़की पर मौजूद कर्मचारियों को निर्देश जारी किए गए हैं कि टिकट वितरण के दौरान वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता दी जाए। 
अनिल यादव, स्टेशन अधीक्षक
रेलवे जंक्शन, जींद

स्टाफ की है कमी

खाली पड़ी रेलवे सुरक्षा बल की चैक पोस्ट।
जी.आर.पी. के पास स्टाफ की काफी कमी है। इस वक्त जी.आर.पी. के पास सिर्फ 20 पुलिस कर्मी मौजूद हैं। इनमें से कुछ पुलिस कर्मी कागजी कार्रवाई का कामकाज देखते हैं तथा कुछ सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभालते हैं। जी.आर.पी. को कम से कम 20 पुलिस कर्मियों की ओर जरुरत है। स्टाफ की कमी के चलते चैक पोस्टों पर पुलिस कर्मियों की स्थाई ड्यूटी नहीं लगाई जा रही है। ट्रेनों के समय पर पुलिस कर्मी रूटीन में ट्रेनों तथा यात्रियों की चैकिंग करते हैं। 
विक्रम सिंह, इंचार्ज
जी.आर.पी., जींद 






सोमवार, 18 मार्च 2013

विद्यार्थियों पर हावी हो रहा परीक्षा का भूत


अच्छे अंकों की चाहत में ले रहे यादाशत बढ़ाने वाली दवाओं का सहारा 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। परीक्षा का भूत विद्यार्थियों पर इस कदर हावी हो चुका है कि वे अच्छे अंक प्राप्त करने, याददाशत बढ़ाने और एनर्जी लेवल मेनटेन रखकर तनाव कम करने के लिए दवाओं पर निर्भर हो चुके हैं। कम्पीटीशन का दौर है, लिहाजा वे पीछे नहीं रहना चाहते। आगे निकलने की होड़ में वे अपने ही स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि एनर्जी बढ़ाने के लिए जिन दवाओं का सहारा लेने की वे नादानी कर रहे हैं, वही उनके भविष्य को गहन अंधकार में डूबो देगी। ऎसी दवाओं का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव दिमाग व लीवर पर पड़ता है। तनाव से मुक्ति दिलाने वाला यह धीमा जहर धीरे-धीरे उनकी रगों में फैलकर खोखला कर रहा है। समय की मांग है कि लिहाजा अभिभावकों का दबाव भी कम नहीं है। उज्जवल भविष्य के लिए परीक्षा में अच्छे अंक लाने की अनिवार्यता जाहिर है। यह महत्वाकांक्षा और प्रतिस्पर्धा छात्रों के रास्ते का कांटा बन गई है। इस कारण वे गहरे अवसाद में जा रहे हैं। तनाव के चलते याद किया टॉपिक भी भूल रहे हैं। समस्या से निजात पाने के लिए वे बाजारों का रुख करते हैं और याददाशत और एनर्जी लेवल बढ़ाने वाली दवाइयों की मांग कर रहे हैं। अच्छी काउंसलिंग की कमी के कारण विद्यार्थी पथभ्रष्ट होकर अपनी बची-खुची प्रतिभा भी खो रहे हैं। दवा निर्माता कंपनियां भी अवसर को भुनाने से नहीं चुक रही हैं और अपनी जेब भरने के चक्कर में पहले तो हौव्वा पैदा करती हैं, फिर उनसे निजात दिलाने के लिए प्रलोभनों के जाल में फंसा लेती हैं। हालांकि तनाव कम करने तथा याददाशत बढ़ाने की दवाएं प्राय: प्रतिबंधित होती हैं और इन्हें बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लिया जा सकता। इसके बावजूद हर मैडीकल स्टोर पर इन्हें बेहिचक बेचा जा रहा है। परीक्षा करीब आते ही याददाशत बढ़ाने वाली दवाइयों के खरीदारों की संख्या में इजाफा हो जाता है। शहर में याददाशत के साथ-साथ एनर्जी बढ़ाने वाले पाउडर, कैप्सूल व सीरप की बिक्री भी 40 फीसदी तक बढ़ गई है। मेमोरी में इजाफा करने के चाह्वान विद्यार्थिओं  में सर्वाधिक संख्या साइंस संकाय या प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रतिभागियों की होती है। 

बढ़ जाती हैं बीमारियों की सम्भावना

 डा. राजेश भोला का फोटो।
याददाश्त बढ़ाने की कोई दवाइया नहीं आती। दवा कंपनियां झूठा प्रचार कर लोगों को गुमराह करती हैं। इस तरह के भ्रमक प्रचार से बचना चाहिए। इस तरह की दवाइयां शॉर्ट टर्म के लिए भले ही फायदा करती हों, लेकिन इनके लांग टर्म साइड इफेक्ट काफी देखे जा रहे हैं। वैज्ञानिक तौर पर ये दवाइयां अपडेट नहीं होती, साथ ही इनमें स्टीरॉयड की मात्रा रहती है, जिससे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, चिड़चिड़ापन होना, नींद नहीं आना व आंखें भारी होना तथा हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती हैं। अंदर ही अंदर इन दवाइयों का धीमा जहर शरीर को खोखला कर देता है। इसका सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव दिमाक व लीवर पर पड़ता है। 
डा. राजेश भोला, डिप्टी सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद


नरेश जागलान का फोटो। 
इस बारे में मनोविज्ञानिक नरेश जागलान का कहना है कि परीक्षा का समय विद्यार्थियों के लिए बेहद संवेदनशील होता है, इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि उनपर पढ़ाई का जरुरत से अधिक दबाव नहीं डालें बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करने का प्रयास करें। अभिभावक बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार बनाएं ताकि वे तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सकें। अभिभावक अपने बच्चों की मानसिक क्षमता को समझें। दूसरे के बच्चों से अपने बच्चों की तुलना नहीं करें। बच्चों को चाहिए कि वे परीक्षा से भयभीत नहीं हों। परीक्षा से भयभीत होकर कोई गलत कदम नहीं उठाएं। जिंदगी अनमोल है और परीक्षा उनकी इस मूल्यवान जिंदगी का ही एक हिस्सा है। परीक्षा तो केवल बच्चे की एक वर्ष की पढ़ाई को मापने का पैमाना है। परीक्षा की सफलता तथा असफलता से जीवन की खुशहाली और कामयाबी को नहीं मापा जा सकता। 

परीक्षा के दौरान इन बातों का ध्यान रखें विद्यार्थी। 

1. परीक्षा को जीवन का हिस्सा मानें।
2. लंबी पढ़ाई की बजाए छोटे-छोटे ब्रेक लेकर पढ़ाई करें। 
3. बड़ी-बड़ी बुकों की बजाए छोटे-छोटे नोट्स तैयार कर पढ़ाई करें। 
4. परीक्षा में दूसरों की नकल करने से बचें और खुद की काबलियत के अनुसार जवाब दें। 
5. समय से पहले परीक्षा स्थल पर पहुंचे। 
6. हड़बड़ाहट में परीक्षा ना दें, परीक्षा शुरू करने से पहले 5 मिनट पेपर को अच्छी तरह पढ़ें।
7. सवाल के जवाब के मुताबिक हर सवाल का समय निश्चित करें। 
8. विशेष प्वाइंटों को अंडर लाइन या बोल्ड करें। 
9. बुक्स की बजाए सह-समूह में डिस्कस करें।
10. पढ़ाई से उबने पर शरीर और मन को रिफरेश करें। 
11. मैडीटेशन और हल्की योगा जरुर करें। 
12. पानी ज्यादा पीएं लेकिन खाना ज्यादा नहीं खाएं। 
13. पढ़ाई करने के 48 घंटे तक एक बार आवश्यक रूप से रिवाइज करें। 
14. परीक्षा से पहले पूर्ण रूप से आराम कर के जाएं। 
15. परीक्षा से सम्बंधित आवश्यक सामग्री पहले दिन तैयार करें। 
16. ऐसे गेम नहीं खेलें, जिनसे शरीर को थकावट महसूह हो। 
17. अंतरद्वंद में ना जाएं, अपने ऊपर विश्वास रखें।
18. किसी भी प्रकार की दवा का प्रयोग नहीं करें। 

अभिभावक और अध्यापक क्या करें

1. अभिभावकों व अध्यापकों को आपसी तालमेल रखना चाहिए। 
2. बच्चों पर पढ़ाई के लिए अनावश्यक दबाब नहीं बना चाहिए। 
3. परीक्षा के दौरान अभिभावकों को बच्चों की विशेष देखभाल करनी चाहिए। 
4. बच्चों को मनपसंद खाना देना चाहिए और उनकी दिनचार्य का ख्याल रखना चाहिए। 
5. किसी अन्य अनावश्यक कार्य में बच्चों को शामिल नहीं करें। 
6. बच्चों के साथ तालमेल बनाकर उनकी सभी बातों को शेयर करें। 
7. परीक्षा के प्रति बच्चों के मन में भय पैदा नहीं करें। 

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

क्या केवल फांसी या कठोर कानून से रूक जाएंगे बलात्कार के मामले?


लोगों को भी समझनी होगी अपनी जिम्मेदारी और महिलाओं के प्रति अपने नजरिए में लाना होगा बदलाव 

नरेंद्र कुंडू
जींद।  आज देश में बढ़ रही रेप तथा गैंगरेप की घटनओं के कारण विश्व में देश का सिर शर्म से झुक गया है। दिल्ली गैंगरेप की घटना ने तो महिलाओं की अंतरआत्मा को बुरी तरह से जख्मी कर सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। चारों तरफ घटना की पूर जोर ङ्क्षनदा हो रही है। देश का हर नागरिक इस घटना से आहत है। देश की राजधानी में घटीत इस घिनौने कांड के बाद जनता में आक्रोष की लहर दौड़ गई है। इस घटना के लिए देश का हर नागरिक सरकार को कोस रहा है। विपक्षी दलों ने भी बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दों की आंच पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का काम किया है। दूसरों को जगाने वाली दामिनी जिंदगी की जंग हार कर खुद हमेशा के लिए सो गई है। आज देश का हर व्यक्ति दामिनी को मौत की नींद सुलाने वालों के लिए फांसी की सजा तथा रेप की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कठोर कानून की मांग कर रहा है लेकिन जरा सोचिए क्या बलात्कारियों को फांसी देने या बलात्कारियों के खिलाफ कठोर कानून बनाने मात्र से ही देश में बलात्कार की घटनाएं रूक जाएंगी? शायद नहीं। किसी को मौत का डर दिखाने से इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगापाना संभव नहीं है। क्योंकि मौत किसी समस्या का समाधान नहीं है। मृत्युदंड देकर हम पापी को मार सकते हैं पाप को नहीं। इस बुराई को अगर जड़ से उखाडऩा है तो प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और इस बुराई को जड़ से कुरेदने के लिए इस मसले पर गंभीरता से विचार करना होगा लेकिन हम अपनी जिम्मेदारी कहां समझ रहे हैं। क्योंकि किसी ने भी इस बुराई को जड़ से खत्म करने पर विचार-विमर्श करने की बजाए दोषियों को फांसी देने और कठोर कानून की ही मांग की है या फिर विरोध प्रदर्शन कर या कैंडल मार्च निकाल कर अपने कर्त्तव्य से इतिश्री कर ली है। केवल सड़कों पर केंडल मार्च निकालना, प्रदर्शन करना या सरकार को इन सब के लिए दोषी ठहराना हमारी जिम्मेदारी नहीं है। इस तरह की घटनाओं के लिए सरकार और हम बराबर के दोषी हैं, क्योंकि हम खुद ही इस तरह के अपराधों को बढ़ावा देने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं और इसमें सरकार हमारा सहयोग कर रही है। आज टी.वी. चैनलों तथा अन्य प्रचार-प्रसार के माध्यम से खुलेआम अश्लीलता परोसी जा रही है और हम सब मिलकर बड़े मजे से इसका आनंद ले रहे हैं। सरकार भी इस तरह के कार्यक्रमों को रोकने में किसी तरह की सख्ती नहीं दिखा रही है। आज हमारी संस्कृति और मनोरंजन के साधन पूरी तरह से अश्लीलता  की भेंट चढ़ चुके हैं। हमारे प्रचार-प्रसार के साधनों के माध्यम से हमारी प्रजनन क्रियाओं के अंगों को हमारे सामने मनोरंजन के साधन के रूप में पेश किया जा रहा है। इससे युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट होकर प्रजनन क्रियाओं के अंगों को मनोरंजन का साधन समझकर इस तरफ कुछ ज्यादा ही आकर्षित  हो रही है। इसलिए कहीं ना कहीं हमारे मनोरंजन के साधन भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। 

फांसी या कठोर कानून नहीं किसी समस्या का समाधान 

किसी को फांसी देना या कठोर कानून किसी समस्या का समाधान नहीं है। जरा सोचिए क्या 302 के अपराधी यानि किसी की हत्या करने वाले व्यक्ति को कानून में फांसी देने का प्रावधान नहीं है। जब हत्यारे को कानून में फांसी देने का प्रावधान है और इस कानून के तहत मुजरिमों को फांसी की सजा दी भी जा चुकी है तो क्या देश में हत्या होनी बंद हो गई हैं, नहीं। तो फिर हम यह कैसे सोच सकते हैं कि बलात्कारियों को फांसी देने से देश में बलात्कार रूक जाएंगे। मैं बलात्कारियों को फांसी नहीं देने या इस तरह के अपराधियों के लिए कठोर कानून नहीं बनाने का पक्षधर नहीं हूं लेकिन यह भी तो सच है कि केवल फांसी देने या कठोर कानून से इस तरह की घटनाओं को रोक पाना संभव नहीं है। मैं तो अगर पक्षधर हूं तो केवल इस बात का कि इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए इन घटनाओं की तह तक जाने की जरूरत है। क्योंकि हमारी कानून प्रणाली काफी लचिली है और कठोर कानून बनाने के बाद जहां उसका सद्उपयोग होगा, उससे कहीं ज्यादा उसका दुरुपयोग भी होगा। जैसा की दहेज उन्मूलन कानून में हो रहा है। 

क्यों बढ़ रही हैं रेप की घटनाएं

हमारे लिए कितने दुख की बात है कि भारत जैसे देश में हर 18 मिनट में एक बलात्कार की घटना घट रही है। इसका मुख्य कारण अश्लीलता की भेंट चढ़ रहे हमारे मनोरंजन के साधन हैं। आज हमारे पास मनोरंज के अच्छे साधन होने के बावजूद भी हमारे पास मनोरंजन की अच्छी सामग्री नहीं है। बढ़ रही अश्लीलता तथा दूषित हो रहे हमारे खान-पान से हमारी मानसिक प्रवृति में काफी परिर्वतन हो चुका है। नैतिक मूल्य में काफी गिरावट हुई है। हम अपने प्रजनन के अंगों को मनोरंजन के रूप में देखने लगे हैं। हमारा रहन-सहन काफी बदल गया है, हमारा पहनावा काफी उतेजक हो चुका है। हमारी शिक्षा प्रणाली सही नहीं है, जिससे किशोर अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन के दौरान किशोरों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता और वे अपने पथ से भटक जाते हैं। 

किस तरह हो सकता है समस्या का समाधान 

अगर बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगानी है तो केवल फांसी या कठोर कानून का सहारा लेने की बजाए इसकी जड़ों को कुरेदना होगा। हमें सबसे पहले तो अपने मनोरंजन के साधनों में परिवर्तन करना होगा। हमें अपने मनोरंजन के साधनों में अश्लीलता गीतों की बजाए देशभक्ति गीत, हमारी संस्कृति से जुड़े गीत, हमारी दिनचर्या से जुड़े गीत, वीरता, बहादुरी के किस्सों से ओत-प्रोत नाटक, फिल्मों को शामिल करना होगा। ताकि खाली समय में हम इस तरह के गीत या फिल्में देखकर अपने मनोरंजन के साथ-साथ इससे प्रेरणा ले सकें और हमारा दिमाक गलत दिशा में जाने से बच सके। इसके बाद बात आती है दंड की, तो दंड कठोर होने के साथ-साथ सामाजिक तौर पर निष्पक्ष रूप से दिया जाए, जैसा की कई बार पंचायतों द्वारा दिया जाता है। क्योंकि इस तरह का दंड अपराधियों को सबक सिखाने में काफी कारगर सिद्ध होता है और समाज में बेज्जती के भय से लोग गलत काम को अंजाम देने से हिचकते हैं। हमें हमारे रहन-सहन तथा पहनावे में भी थोड़ा परिवर्तन करना चाहिए। हमें उतेजक पहनावे से परहेज करना चाहिए। हमारी शिक्षा प्रणाली में भी परिवर्तन की जरूरत है। नैतिक शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक शिक्षा पर भी जोर दिया जाना चाहिए। खासकर किशोर अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन तथा उससे पैदा होने वाली समस्याएं और उनके समाधान के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी जाए। हमें अपने बच्चों के साथ कठोर व्यवहार की बजाए नर्म तथा दोस्ताना रवैया अपना चाहिए तथा उनकी परेशानियों, समस्याओं को नजर अंदाज करने की बजाए उन्हें उसके समाधान के बारे में बताना चाहिए। इसके अलावा राजनेताओं को भी चाहिए कि वे किसी भी प्रकार की सामाजिक समस्या को सत्तासीन पार्टी के खिलाफ हथियार बनाने की बजाए उसके समाधान के लिए सरकार की मदद करे। और इस समस्या के समाधान में सबसे अहम योगदान समाज का हो सकता है। समाज को लड़कियों और महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा।

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

बिना कीटों की पहचान के जहर से मुक्ति असंभव : डी.सी.


राजपुरा भैण में किसानों ने मनाया किसान खेत दिवस

नरेंद्र कुंडू 
जींद। उपायुक्त डा. युद्धबीर सिंह ख्यालिया ने कहा कि फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी और मासाहारी कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों की जानकारी जुटाकर ही थाली को जहरमुक्त बनाया जा सकता है। बिना कीटों की पहचान के जहर से मुक्ति पाना असंभव है। जींद जिले के लगभग एक दर्जन गांवों के किसानों ने कीट ज्ञान की जो मशाल जलाई है आज उसका प्रकाश जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश से बाहर भी पहुंचने लगा है। इसकी बदौलत ही आज पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसान भी जींद जिले में कीट ज्ञान हासिल करने के लिए आ रहे हैं। उपायुक्त जींद जिले के राजपुरा भैण गांव में किसान खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। 
उपायुक्त ने कहा कि जींद जिले में पिछले कई वर्षो से किसान खेत पाठशालाएं चलाई जा रही हैं। इन पाठशालाओं में किसानों ने अपने बलबुते शाकाहारी और मांसाहारी कीटों की खोज कर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। शाकाहारी कीट पौधों की फूल-पतियां खा कर अपना जीवनचक्र चलाते हैं, तो मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर वंशवृद्धि करते हैं। प्रकृति ने जीवों के बीच संतुलन बनाने के लिए यह एक अजीब चक्र बनाया है। इसलिए हमें कभी भी प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। डी.सी. ने कहा कि किसानों की इस अद्वितीय खोज को पूरे जिला के किसानों को अपनाने के लिए कार्य योजना तैयार की है। इसके लिए कई गांवों में इस प्रकार की किसान खेत दिवसों का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने किसानों की मांग पर गांवों में प्रशिक्षण की व्यवस्था के लिए किसानों को कार्य योजना तैयार करने के लिए कहा और उसके लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध करवाने की बात कही। उप कृषि निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने उपायुक्त का स्वागत किया। अपनी तरह के इस किसान खेत दिवस के मौके पर उपायुक्त ने कृषि विभाग के ए.डी.ओ. डा. सुरेन्द्र दलाल के प्रयासों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। किसान बलवान सिंह ने बताया कि उनके ये कीट कमांडो किसान भले ही ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हों, लेकिन इन्होंने खेत पाठशालाओं में 163 किस्म के मासाहारी तथा 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान की है। इनमें 104 किस्म के परभक्षी, 21 परपेटिए, 6 किस्म के परअंडिए, 4 किस्म के परप्यूपिए, 2 किस्म के परजीवी, 21 किस्म की मकड़ी, 5 किस्म के रोगाणु हैं। इसके अलावा 43 किस्म के शाकाहारी कीट हैं। मासाहारी कीट फसल में प्राकृतिक तौर पर स्प्रे का काम करते हैं। मानव द्वारा निॢमत स्प्रे में मिलावट हो सकती है, जिस कारण उनके अच्छे परिणाम की संभावनाएं कम हो जाती हैं लेकिन प्रकृति के कीट स्प्रे के परिणामों शत प्रतिशत सही होते हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं और जरूरत पूरी होने के बाद भिन्न-प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को कंट्रोल करने के लिए मासाहारी कीटों को बुलाते हैं। निडाना गांव की महिला किसान अंग्रेजो ने कार्यक्रम में अपने विचार सांझा करते हुए बताया कि उन्होंने 4 साल से खेत में कोई स्प्रे नहीं किया है ,फिर भी अच्छी पैदावार ले रहे हैं। मिनी मलिक नामक महिला किसान ने कहा कि उसने 148 मांसाहारी तथा 43 शाकाहारी कीटों की पहचान की है। जब पौधे को जरूरत होती है तो वह कीटों की अपनी ओर स्वत: ही आकर्षित कर लेते हंै। रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग करके हम प्राकृतिक सिस्टम से छेड़छाड करते हंै। पाठशाला में ईंटलकलों के कृष्ण, ललित खेड़ा की मनीषा, हसनपुर के रविन्द्र, निडानी के जयभगवान ने भी अपने विचार सांझा किए। इस अवसर पर कार्यक्रम में कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला  उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कुलदीप ढांडा भी मौजूद थे। 

2001 में कपास में हुए थे सबसे ज्यादा स्प्रे का प्रयोग

 कार्यक्रम के दौरान कीटों पर तैयार किए  गए गीत सुनाती महिलाएं।
ए.डी.ओ. डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कपास की फसल में 2001 में अमेरीकन सुंडी  का प्रकोप हुआ था। जिस काबू करने के लिए किसानों ने कीटनाशकों के 40-40 स्प्रे किए थे। डा. दलाल ने कहा कि कीटों को काबू करने की जरूरत नहीं है, जरूरत है तो कीटों की पहचान की। उन्होंने कहा कि धान की एक बैल में लगभग 100 दाने होते हैं। इनका वजन लगभग अढ़ाई ग्राम होता है। अगर धान की फसल में तनाछेदक आती है और पूरे खेत में एक हजार बैल खराब होती हैं तो इनका वजन लगभग अढ़ाई किलो बनता है। किसान इस अढ़ाई किलो दानों को बचाने के लिए इससे ज्यादा खर्च कर देता है। डा. दलाल ने कहा कि हमें अगर अपनी आने वाली पीढिय़ों को बचाना है तो सबसे पहले इस जहर से छुटकारा दिलवाना होगा। 

90  प्रतिशत आमदनी विदेशों में जाता है। 

ए.डी.ओ. डा. कमल सैनी ने बताया कि राजपुरा भैण गांव में कुल 1330 हैक्टेयर जमीन है। इसमें से 1205 हैक्टेयर में कास्तकार होती है। इसमें से 290 हैक्टेयर में कपास, 650 हैक्टेयर में धान, 240 हैक्टेयर में गन्ना तथा लगभग 50 हैक्टेयर में गवार की फसल की बिजाई की जाती है। डा. सैनी ने बताया कि अकेले राजपुरा भैण में 6 माह में कीटनाशकों पर कपास की फसल में 11 लाख, धान की फसल में 29 लाख, गन्ने की फसल में 13 लाख रुपए खर्च होते है। डा. सैनी ने बताया कि पूरे भारत में 90 लाख हैक्टेयर में कपास और 100 लाख हैक्टेयर में धान की खेती होती है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे देश में फसलों पर 
 कीटों के चित्र देखते किसान। 
कीटनाशकों पर कितना खर्च होता है। कीटनाशकों पर हम जितना खर्च करते हैं, उसका 90 प्रतिशत भाग विदेशों में जाता है। 

पंजाब के किसानो ने भी अर्जित किया कीट ज्ञान 


 कार्यक्रम में मौजूद महिलाएं। 
 कार्यक्रम में मौजूद महिलाएं। 
पंजाब के नवांशहर से डा. अशविंद्र, डा. नितिन के नेतृत्व में आए 25 किसानों ने बताया कि वे यहां के किसानों से कीट प्रबंधन के गुर सीखने आए हैं, क्योंकि उनके क्षेत्र में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग होता है। जिस कारण कीटों पर कीट नाशकों का प्रभाव नहीं होतो है। कीटों की पहचान सीख कर वे अपने क्षेत्र को जहरमुक्त बनाना चाहते हैं। 



सोमवार, 28 जनवरी 2013

जहरमुक्त खेती को बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन तैयार कर रहा एक्शन प्लान


प्रदेश के किसानों के लिए रोल माडल बनेंगे जींद जिले के किसान
निडाना तथा ललितखेड़ा के किसान पढ़ाएंगे कीटों की पढ़ाई

नरेंद्र कुंडू
जींद। कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देने में जींद जिला प्रदेश के किसानों के लिए रोल मॉडल के रूप में उभरेगा। किसानों तथा कीटों के बीच पिछले 4 दशकों से चल रही जंग को समाप्त करने में निडाना और ललितखेड़ा गांव के किसान अहम भूमिक निभाएंगे। निडाना तथा ललित के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन ने अब इन किसानों का हाथ थाम लिया है। लोगों की थाली को जहरमुक्त करने तथा बेजुबान कीटों को बचाने के लिए अब जिला प्रशासन के सहयोग से निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के मास्टर ट्रेनर किसान पूरे जिले में कीटनाशक रहित खेती की अलख जाएंगे। जहरमुक्त खेती की इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन ने कृषि विभाग तथा बागवानी विभाग के अधिकारियों के हाथों में इस मुहिम की कमान सौंपने का निर्णय लिया है। किसानों के इस अभियान को सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा एक्शन प्लान तैयार किया जा रहा है। जिला प्रशासन जल्द ही इस प्लान पर अमल शुरू करने जा रहा है। 

जींद ब्लॉक से होगी मुहिम की शुरूआत

जिले के किसानों को कीटनाशक रहित खेती का पाठ पढ़ाने के लिए जल्द ही जिला प्रशासन द्वारा निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के किसानों के सहयोग से एक विशेष मुहिम शुरू की जाएगी। निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के मास्टर ट्रेनर जिले के अन्य गांवों में पाठशाला लगाकर किसानों को शाकाहारी तथा मासाहारी कीटों की पहचान के साथ-साथ उनके क्रियाकलापों के बारे में भी विस्तार से जानकारी देंगे। जिले के सभी गांवों में पाठशाला लगाने के लिए जिला प्रशासन मास्टर ट्रेनर किसानों को हर सुविधा मुहैया करवाएगा। सबसे पहले इस अभियान की शुरूआत जींद ब्लाक से की जाएगी। 

जिला प्रशासन किसानों का करेगा पूरा सहयोग

डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया
उपायुक्त, जींद

आज किसान अधिक उत्पादन की चाह में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। फसलों में कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण हमारा खान-पान जहरीला हो रहा है। लोगों की थाली को जहर मुक्त बनाने के लिए निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के किसानों ने अपना खुद का कीट ज्ञान पैदा कर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। यहां के किसानों ने मासाहारी तथा शाकाहारी कीटों एक अच्छा शोध किया है। अपने इस कीट ज्ञान के बूते ही ये किसान बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए ही अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। डा. सुरेंद्र दलाल ने किसानों के सहयोग से इस अभियान की शुरूआत की है। इनकी इस मुहिम को पूरे जिले में फैलाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा इनका सहयोग किया जाएगा। बागवानी तथा कृषि विभाग के अधिकारियों को इस मुहिम को  सफल बनाने की जिम्मेदारी दी जाएगी। इसके लिए प्रशासन द्वारा एक एक्शन प्लान तैयार किया जा रहा है। सोमवार को कृषि तथा बागवानी विभाग के अधिकारियों की बैठक बुलाकर इस एक्शन प्लान पर अमल किया जाएगा। 



प्रशासन के सहयोग से अभियान को मिलेगा बल

किसान जानकारी के अभाव में बेजुबान कीटों को मार रहे हैं। पिछले लगभग 4 दशकों से किसानों तथा कीटों 
डा. सुरेंद्र दलाल
पाठशाला के संचालक

के बीच यह जंग चली आ रही है लेकिन निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के किसानों ने खुद का कीट ज्ञान पैदा किया है। यहां के किसानों ने मासाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान की और उनके क्रियाकलापों के बारे में पूरी जानकारी जुटाई है। ना तो कीट हमारे मित्र हैं और ना ही हमारे दुश्मन। कीट तो अपना जीवन यापन करने के लिए फसल में आते हैं। कीट पौधों के परागन में विशेष भूमिका निभाते हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की सुगंध छोड़कर कीटों को आकॢषत करते हैं। इसलिए हमें कीटों तथा पौधों की भाषा तथा कीटों के क्रियाकलापों को समझने की जरूरत है। जिला प्रशासन द्वारा इस मुहिम में किसाानों का सहयोग करने से इस अभियान को काफी बल मिलेगा और सभी लोगों को इस मुहिम में अपना योगदान देना चाहिए, क्योंकि यह किसी व्यक्ति विशेष या समुदाय की समस्या नहीं, बल्कि पूरे समाज की समस्या है। 
डा. सुरेंद्र दलाल
पाठशाला के संचालक

तेजी से ऊपर जा रहा महिला उत्पीडऩ की घटनाओं का ग्राफ


नरेंद्र कुंडू
जींद। महिलाओं पर बढ़ रहे उत्पीडऩ तथा यौन शोषण की घटनाओं के आगे कानून की तमाम धाराएं तथा सरकार की नीतियां बौनी साबित हो रही हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे कदमों के बावजूद भी अत्याचार तथा यौन शोषण की घटनाओं पर लगाम लगने के बजाए लगातार ग्राफ ऊपर जा रहा है। जिले में बलात्कार तथा घरेलू ङ्क्षहसा के मामले का आंकड़ा पिछले वर्षों के मुकाबले दोगना हो गया है। वर्ष 2012 में अब तक जिले में 34 बलात्कार के मामले पुलिस ने दर्ज करके 56 आरोपियों को गिरफ्तार किया। इसी तरह महिलाओं पर घरों में हो रहे अन्य अत्याचार के 460 मामले जिला प्रोटैक्शन अधिकारी के पास पहुंचे लेकिन महिलाओं पर बढ़ रहे अत्याचार पर रोक लगाने के लिए ठोस कानून नहीं होने के चलते इस पर लगाम नहीं लग पा रही है। महिला एवं बाल विकास विभाग की तरफ से महिलाओं पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए कानून का प्रचार प्रसार करके जागरूक किया जा रहा है। अभियानों के बावजूद भी लोगों की मानसिकता नहीं बदल पा रही है। घृणित मानसिकता के चलते ही महिलाओं पर घरेलू हिंसा तथा यौवन शोषण के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसे में हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं की फरियाद लगाने के आंकड़ों में कोई कमी नहीं आ रही है और प्रति वर्ष घरेलू हिंसा के आंकड़ों का ग्राफ ऊपर ही जा रहा है। यह आंकड़ा तो प्रशासन के पास पहुंच रहे मामलों का है, महिलाओं की एक बड़ी संख्या ऐसी भी है जो लोकलाज, रिश्ते टूटने व कोर्ट, कचहरी के चक्कर काटने से डरती है। इसलिए वे ऐसी योजना का फायदा नहीं उठा पाती हैं और ऐसे में यह मामले सामने नहीं आ पाते। 

हर वर्ष बढ़ रही हिंसा


महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए सरकार द्वारा वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम लागू किया था। महिला एवं बाल विकास निदेशालय द्वारा प्रदेश के सभी जिलों में महिला प्रोटैक्शन अधिकारियों की नियुक्ति की थी। इसके बावजूद आज भी कुछ लोगों द्वारा कानून की अवमानना की जा रही है। पिछले 3 साल में घरेलू हिंसा के 881 मामले सामने आए हैं। वर्ष 2009 में घरेलू हिंसा के 128 अंक मामले सामने आए हैं। वर्ष 2010 में 141 घरेलू हिंसा के सामने आए। वर्ष 2011 में यह आंकड़ा बढ़ते हुए 152 पर पहुंच गया। जबकि 2012 में यह आंकड़ा कई गुना बढ़ गया। जहां 3 वर्षो में कुल 421 मामले सामने आए, वहीं वर्ष 2012 में 460 मामले सरकारी आंकड़ों में दर्ज हुए हैं। बलात्कार की घटनाओं का आंकड़ा भी लगभग दोगना हो गया है। वर्ष 2011 में बलात्कार के लगभग 23 मामले प्र्रकाश में आए थे, जबकि 2012 में 34 महिलाओं को यौवन शोषण हुआ। ऐसे में आंकड़ों से अनुमान लगाया जा सकता है कि घरेलू हिंसा अधिनियम भी इस पर रोक लगाने में कामयाब नहीं हो पा रहा हैं। 
कठोर कानून बने


प्राचार्य निर्मला रोहिल्ला
रोहिल्ला स्कूल की प्राचार्य निर्मला रोहिल्ला ने कहा कि महिलाओं पर अत्याचार को रोकने के लिए कठोर कानून की जरूरत है। इसके लिए देश के कानून में संशोधन करके रेप जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देने वालों को फांसी का प्रावधान करना होगा। जब तक कानून में कठोर प्रावधान नहीं किए जाएंगे तब तक महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर अंकुश नहीं लग पाएगा। इसलिए सरकार को जल्द से जल्द कानून में संशोधन करना चाहिए। 

फास्ट कोर्ट की जाए स्थापित


प्राचार्या सविता भोला 
श्रीराम पब्लिक स्कूल की प्राचार्या सविता भोला ने कहा कि गैंगरेप तथ महिलाओं के साथ अत्याचार करने वाले लोगों को जल्द से जल्द सजा देने के लिए फास्ट कोर्ट बनाने की आवश्यकता है। फास्ट कोर्ट न होने के चलते आरोपी लोगों को कई-कई वर्षो तक सजा नहीं मिल पाती है। जिसके चलते अपराधियों के हौंसले बुलंद हो जाते है। देशभर में फास्ट कोर्ट स्थापित करके गैगरेप करने वाले लोगों को फांसी की सजा दी जाए। 

मानसिकता बदलने की आवश्यकता

चेयरपर्सन वीणा देशवाल
जिला परिषद की चेयरपर्सन वीणा देशवाल ने कहा कि आज समाज में महिलाओं के साथ अत्याचार बढऩे का मुख्य कारण लोगों की बिगड़ती मानसिकता है। लोगों की घृणित मानसिकता के चलते महिलाओं तथा छात्राओं के साथ छेड़खानी की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसके लिए शिक्षण संस्थाओं में भी छात्र-छात्राओं को इसके लिए जागरूक करने की आवश्यकता है। 

सुरक्षा बढ़ाई जाए

छात्रा रीना ने कहा कि छात्राओं के साथ छेड़खानी की घटनाएं आम हो चुकी है। इसके लिए प्रशासन को चाहिए कि सभी शिक्षण संस्थाओं के बाहर सुरक्षा बढ़ाई जाए तथा ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली बसों में भी पुलिस कर्मचारी तैनात किए जाए। शिक्षण संस्थाओं में आने वाली छात्राओं को रास्तों में मनचले युवकों के अत्याचार का सामना करना पड़ता है। इसके लिए कठोर कदम उठाए जाए। 

पूरे वर्ष प्रदेश के किसानों के लिए मार्गदर्शक बने रहे निडाना व ललितखेड़ा के किसान


निडाना व ललित खेड़ा के किसानों ने ढुंढ़ा कीटनाशकों का विकल्प 
पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसानों को पढ़ाया कीटों की पढ़ाई का पाठ

नरेंद्र कुंडू
जींद। किसानों में जागरूकता के अभाव के कारण फसलों में अधिक उर्वकों तथा कीटनाशकों के प्रयोग के कारण आज कैंसर, हार्ट अटैक, शुगर, सैक्स सम्बंधि कई लाइलाज बीमारियों ने इंसान को अपनी चपेट में ले लिया है। किसानों को जानकारी नहीं होने के कारण किसान लगातार कीटनाशकों के दलदल में धंसते ही जा रहे हैं लेकिन जिले के निडाना तथा ललितखेड़ा के किसानों ने प्रदेश के किसानों को नई राह दिखाने का काम किया है। एक तरफ जहां किसान फसलों के अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं, वहीं निडाना तथा ललितखेड़ा के किसानों ने बिना कीटनाशकों के अच्छा उत्पादन लेकर प्रदेश ही नहीं अपितू देश के किसानों के लिए एक मिशाल कायम की है। निडाना व ललितखेड़ा के किसानों ने फसलों में पाए जाने वाले शाकाहारी तथा मासाहारी कीटों को कीटनाशकों के विकल्प के रूप में तैयार किया है। कीटनाशकों के विरोध में 2008 में निडाना गांव के गौरे से शुरू हुई यह मुहिम 2012 तक जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश के बाहर भी जा पहुंची। अपनी इस अनोखी पढ़ाई के कारण यहां के किसान पूरे वर्ष चर्चा का विषय बने रहे। 2012 में यहां के किसानों ने जहां खाप पंचायत का आयोजन कर इस मुहिम को एक नई दिशा दी, वहीं पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसानों को भी कीटों की पढ़ाई सीखाकर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से मुक्ति पाने की संजीवनी दिखा दी। निडाना तथा ललितखेड़ा के किसानों ने फसलों में नए-नए प्रयोग कर 146 किस्म के मासाहारी तथा 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की खोज की है जो फसलों में कीटनाशकों का काम करते हैं। यहां के किसानों का कहना है कि कीटनाशक किसान को धोखा दे सकते हैं लेकिन फसलों में मौजूद शाकाहारी तथा मासाहारी कीट किसान को धोखा नहीं देते। किसानों का मानना है कि अगर किसान अपनी फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करे तो मासाहारी कीट ही उसकी फसल में कीटनाशक का काम कर देते हैं और उनकी थाली भी जहर से मुक्त हो सकती है।  
68 किस्म के कीटनाशक हो चुके हैं कैंसरकार घोषित
 किसान पाठशाला में मौजूद किसानों का फाइल फोटो। 


 महिला किसान पाठशाला में भाग लेती महिलाएं।
देश में 223 किस्म के कीटनाशक रजिस्टर्ड हैं। इनमें से 68 किस्म के ऐसे कीटनाशक, खरपतवार नाशक तथा फफुंदनाशी हैं जिन्हें यू.एस.ए. की पर्यावरण सुरक्षा एजैंसी कैंसरकारक घोषित कर चुकी है लेकिन इसके बावजूद भी ये कीटनाशक धड़ले से बिक रहे हैं। 

पूरा वर्ष चर्चा में बने रहे किसान

अपने इस अनोखे प्रयोग के कारण निडाना तथा ललितखेड़ा के किसान पूरा वर्ष यहां के किसानों तथा कृषि विभाग के लिए चर्चा का विषय बने रहे। किसानों तथा कीटों के बीच पिछले 40 वर्षों से चली आ रही जंग को खत्म करवाने के लिए लगातार 18 सप्ताह तक खाप पंचायतों का आयोजन कर खाप के चौधरियों को भी कीटों की पढ़ाई पढऩे के लिए मजबूर कर दिया। इसके अलावा पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसानों को भी कीटों की पढ़ाई पढ़ाकर कीटनाशकों से बचने का एक अचूक शस्त्र थमा दिया। अपनी इस अनोखी पढ़ाई के कारण यहां के किसानों ने सत्यमेव जयते, रेडियो, दूरदर्शन सहित अन्य चैनलों के माध्यम से देश में कीटनाशक रहित खेती की अलख जगाई। 

तेजी से बढ़ रहा है कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ

20 वर्षों में कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। अकेले ङ्क्षहदुस्तान में लगभग 40 हजार करोड़ के कीट रसायनों, लगभग 50 हजार करोड़ के खरपतवार नाशकों तथा लगभग 30 हजार करोड़ बीमारी, फफुंद व जीवाणु नाशक रसायनों का कारोबार होता है। इस कारोबार से होने वाली आमदनी का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा विदेशों में जा रहा है। इसमें से जींद जिले के राजपुरा भैण गांव में कीटनाशकों का सबसे ज्यादा प्रयोग होता है। अकेले 3 करोड़ के कीटनाशक राजपुरा भैण के किसान खरीदते हैं। 

पुरुषों के साथ-साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं महिलाएं 

निडाना तथा ललितखेड़ा की महिलाएं भी किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। इन महिलाओं ने भी पुरुषों की तर्ज पर लगभग 20 सप्ताह तक महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन कर खेतों में नए-नए प्रयोग कर अपनी दक्षता  का परिचय दिया। इतना ही नहीं इन महिलाओं ने तो पुरुषों से आगे निकलते हुए कीटों पर गीतों की रचना भी की हुई है। इस पाठशाला में निडानी, निडाना तथा ललितखेड़ा से 70 के लगभग महिलाएं जुड़ चुकी हैं और ये सभी महिलाएं अपने खेतों में एक छटांक भी जरह का इस्तेमाल नहीं करती हैं। 



यहां कर्मचारी नहीं खुद तलाशने होते हैं जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र


6-6 कर्मचारियों की तैनाती के बावजूद यहां सब कुछ राम भरोसे

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी यहां की बदइंतजामियों पर रोक लगाने में नाकाम

नरेंद्र कुंडू
जींद। यहां कर्मचारी नहीं खुद उन लोगों को अपनों के जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र तलाशने होते हैं, जिन्होंने इनके लिए आवेदन किया होता है। यहां 6-6 कर्मचारियों की नियुक्ति के बावजूद सब कुछ राम भरोसे है। कोई किसी का जन्म-मृत्यु प्रमाण  पत्र ले जाए तो यहां के कर्मचारियों की बला से। उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं है। 
यह कड़वी और चौंकाने वाली सच्चाई है जींद के सामान्य अस्पताल की जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने वाली उस  ङ्क्षवग की, जो सिविल सर्जन से लेकर स्वास्थ्य विभाग के दूसरे अधिकारियों की नाक हर मौके पर कटवाने का काम करती रही है। वीरवार को 'पंजाब केसरी' की टीम ने यहां का मुआयना किया तो यहां इसी तरह का नजारा था जब यहां का बेहद अहम रिकार्ड कार्यालय से बाहर बरामदे में पटक दिया गया था। इस रिकार्ड से लोग अपनों के जन्म और मृत्यु के प्रमाण पत्र खंगालने और तलाशने में लगे हुए थे। यहां प्रमाण पत्र लेने के लिए आए लोगों को कर्मचारियों का काम खुद ही करना पड़ रहा था। लोगों के सामने फाइलों का ढेर लगा हुआ था और लोग उन फाइलों से खुद ही अपने प्रमाण पत्र ढुंढ़ रहे थे। 'पंजाब केसरी' की टीम ने जब इन लोगों से बातचीत की तो इन लोगों ने टीम के सामने अपना दुखड़ा रोते हुए अपनी परेशानी ब्यां की।
गांव गांगोली निवासी महाबीर ने बताया कि उसने अपने बेटे का जन्म प्रमण पत्र लेने के लिए उसने 3 नवंबर को फार्म भरकर जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र कार्यालय में जमा करवा था। वह पिछले एक माह से कार्यालय के चक्कर काट रहा है लेकिन कार्यालय में मौजूद कर्मचारी उसे प्रमाण पत्र देने की बजाए एक-दो दिन में दोबारा आने की बात कह कर टरका देते हैं। यहां उसकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। महाबीर ने बताया कि आज जब वह कार्यालय में जन्म प्रमाण पत्र लेने के लिए पहुंचा तो कार्यालय के कर्मचारियों ने कई फाइल उसके हाथ में थमाते हुए कह दिया कि बाहर बैठकर इन फाइलों में से अपना प्रमाण पत्र खुद ढुंढ़ लो, लेकिन इन फाइलों में भी जब उसे उसके बेटे का जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिला तो कर्मचारियों ने उसे दो-चार दिन में दोबारा आने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ दिया। एक माह बाद भी उसे जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया है। कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों का रवैया ठीक नहीं है।
नारायणगढ़ निवासी अजय तथा इस्माइलपुर निवासी मोहन लाल ने बताया कि उन्हें पासपोर्ट बनवाना है। पासपोर्ट बनवाने के लिए उन्हें अपने जन्म प्रमाण पत्र की जरूरत है। अजय तथा मोहन लाल ने बताया कि उन्होंने लगभग 3 माह पहले जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र कार्यालय में जन्म प्रमाण पत्र लेने के लिए फार्म जमा करवाया था। फार्म जमा करवाने के बाद कार्यालय के कर्मचारियों ने उन्हें एक माह का समय दिया था। अब वह पिछले 2 माह से अपना प्रमाण पत्र लेने के लिए कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं लेकिन अभी तक उन्हें उनका जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया है। उन्हें हर बार या तो यह कहकर टाल दिया जाता है कि अभी उनका प्रमाण पत्र तैयार नहीं हुआ है, या फिर उनके हाथों में फाइल थमा कर इन फाइलों में से अपना प्रमाण पत्र ढुंढऩे के लिए कह देते हैं। उन्होंने बताया कि कार्यालय के कर्मचारियों की लापरवाही से उनका पासपोर्ट का काम नहीं हो पा रहा है। 
गांव डूमराखां निवासी प्रदीप ने बताया कि वह डेढ़ माह से जन्म प्रमाण पत्र के लिए कार्यालय के चक्कर काट रहा है लेकिन अभी तक उसे जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिला है। कार्यालय में कार्यरत कर्मचारी उसे फाइलों में से स्वयं अपना जन्म प्रमाण पत्र ढुंढऩे की बात कह देते हैं लेकिन कार्यालय में फाइलों का ढेर लगा हुआ है। इनती फाइलों में से वह किस तरह से अपना प्रमाण पत्र ढुंढ़े उसे कुछ समझ नहीं आ रहा है। गांव बराहा खुर्द निवासी दरवेश ने कहा कि उसे दाखिले के लिए जन्म प्रमाण पत्र की जरूरत है लेकिन वह पिछले 3 माह से जन्म-प्रमाण पत्र कार्यालय के चक्कर काट रहा है उसे अभी तक न तो जन्म प्रमाण पत्र मिला है और ना ही कर्मचारी कोई संतुष्ट जवाब दे रहे हैं। कर्मचारियों की लापरवाही से उसका दाखिले का काम रूका हुआ है। 

बेटे के जन्म पत्र में नाम ठीक करवाने के लिए 23 जुलाई 2012 को यहां फाइल जमा करवाई थी। फाइल जमा करवाए उसे 5 माह हो चुके हैं लेकिन अभी तक उसका काम नहीं हुआ है। 5 माह से वह बेटे का नाम ठीक करवाने के लिए कार्यालय के चक्कर काट रहा है लेकिन नाम ठीक करना तो दूर की बात यहां मौजूद कर्मचारी उसे उसकी फाइल की स्थिति के बारे में ही जानकारी नहीं दे रहे हैं। 
बूरा राम का फोटो।
बूराराम
गांव रेवर


जन्म प्रमाण पत्र में नाम ठीक करवाने के लिए 4 अक्तूबर को फाइल जमा करवाई थी लेकिन अभी तक जन्म प्रमाण पत्र में नाम ठीक नहीं किया है। वह कार्यालय के चक्कर लगा-लगाकर थक गया है लेकिन कार्यालय में मौजूद कर्मचारी कब तक उसका काम कर देंगे इसके बारे में कुछ बताने को तैयार नहीं हैं। 
कृष्ण
गांव शामदो
कृष्ण कुमार का फोटो।

जन्म प्रमाण पत्र लेने के लिए 19 अक्तूबर को जींद कार्यालय में फाइल जमा करवाई थी। वह पिछले 2 माह से जन्म प्रमाण पत्र लेने के लिए कार्यालय के चक्कर काट रहा है लेकिन अभी तक उसे जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया है। आज जब वह जन्म प्रमाण पत्र लेने के लिए यहां कार्यालय में पहुंचा तो उसे यह बताया गया कि अब उसे जन्म प्रमाण पत्र जींद की बजाए कैथल से मिलेगा। उसे यह बात समझ नहीं आ रही है कि जब उसका गांव जींद जिले में पड़ता है तो उसे जन्म प्रमाण पत्र के लिए कैथल क्यों भेजा जा रहा है।
 आत्माराम पेगां का फोटो।
आत्मा राम 
गांव पेगां


जन्म प्रमाण पत्र लेने के लिए 3 माह पहले कार्यालय में फार्म जमा करवाया था लेकिन अभी तक जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिला है। आज जब वह प्रमाण पत्र लेने के लिए यहां कार्यालय में पहुंचा तो कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों ने उसे खुद ही फाइलों से अपना जन्म प्रमाण पत्र ढुंढऩे के लिए कह कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। 
सुरेंद्र, नरवाना 
सुरेंद्र का फोटो।

बुधवार को नहीं मिलते प्रमाण पत्र

अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के चलते जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों के हौंसले इतने बुलंद हैं कि इन्होंने अपनी मनमर्जी के मुताबित नियम तय कर रखे हैं। कर्मचारियों ने कार्यालय के बाहर पोस्टर चस्पा कर लिखा हुआ है कि यहां बुधवार के दिन जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र लेने-देने का कार्य नहीं होगा। यहां सवाल यह उठता है कि आखिरी बुधवार को जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र लेने देने का कार्य क्यों बंद रखा जाता है। 

सिविल सर्जन के पास नहीं कुछ जवाब

इस बारे में जब सिविल सर्जन डा. राजेंद्र प्रसाद से बातचीत की गई तो उनके पास कोई ठोस जबाव नहीं था। डा. राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि आज जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र कार्यालय के इंचार्ज छुट्टी पर हैं। छुट्टी से लोटने के बाद ही इस बारे में उनसे बातचीत की जाएगी।  









बेसहारों को नहीं मिल रहा कोई सहारा


अभी तक जिला प्रशासन द्वारा नहीं की गई रैन बसेरों की कोई व्यवस्था 

कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं बेसहारा लोग

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कंपकपाने वाली सर्दी पडऩी शुरू हो गई है लेकिन अभी तक जिला प्रशासन द्वारा बेसहारा लोगों के लिए जिले में कहीं भी रैन बसेरे की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। प्रशासन द्वारा रैन बसेरे की व्यवस्था करना तो दूर की बात अभी तक तो अलाव के लिए भी कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। जिसके सहारे बेसहारा लोग इस ठंड के मौसम में अपनी रात गुजार सकें। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद भी जिले में रैन बसेरे की योजना कागजों से बाहर नहीं निकल पाई है। अभी तक तो प्रशासनिक अधिकारी सिर्फ रैन बसेरों की व्यवस्था की योजना पर विचार ही कर रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की इस लापरवाही के चलते कड़ाके की ठंड में बेसहारा लोग खुले आसमान के नीचे ही रात गुजारने को मजबूर हैं।
बेसहारा लोगों को सर्दी से बचाने के लिए उनके रात्रि ठहराव के लिए पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने रैन बसेरों और अलाव के इंतजाम के आदेश जारी किए थे। ताकि ठंड के मौसम में बेसहारा लोगों को आसरा मिल सके और ठंड के कारण किसी मजदूर या बेसहारा की मौत ना हो। शहर में रैन बसेरों और अलाव की व्यवस्था जिला प्रशासन को अपने स्तर पर करनी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार रैन बसेरों व अलाव की व्यवस्था करने के साथ-साथ उनके प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी भी प्रशासन की होती है लेकिन जिला प्रशासन द्वारा अभी तक इस तरफ कोई कदम नहीं बढ़ाए गए हैं। सर्दी का मौसम चरम पर होने के बावजूद अभी तक जिले में स्थाई और अस्थाई रैन बसेरों के निर्माण की योजना फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई है। इस योजना पर अमल करना तो दूर की बात अभी तक प्रशासन ने इस पर विचार नहीं किया है। रैन बसेरों के निर्माण की तरफ से प्रशासनिक अधिकारियों की यह बेरूखी इस बात की तरफ इशारा कर रही है कि प्रशासनिक अधिकारियों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी कोई प्रभाव नहीं है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते बेसहारा लोग खुले आसमान के नीचे ही रात बिताने को मजबूर हैं।

अभी तक प्रचार-प्रसार की भी नहीं की गई कोई व्यवस्था

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार जिले में रैन बसेरे और अलाव की व्यवस्था करने के साथ-साथ पूरे जोर-शोर से उनका प्रचार-प्रसार भी किया जाना चाहिए। ताकि अधिक से अधिक लोगों को रैन बसेरों की साइट के बारे में पता चल सके और वे उनका लाभ ले सकें लेकिन अभी तक जिला प्रशासन की तरफ से रैन बसेरों के प्रचार-प्रसार की बात तो दूर अभी तक रैन बसेरों की ही व्यवस्था नहीं की गई है।
स्थाई तौर पर रैन बसेरे की योजना पर किया जा रहा है विचार
इस बारे में जब रैड क्रॉस सोसायटी के सचिव रणदीप श्योकंद से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि सफीदों में अंटा वाली धर्मशाला, नरवाना में सिक्खों की धर्मशाला तथा जींद में जाट धर्मशाला में रैन बसेरे की व्यवस्था की जा रही है। इसके अलावा जींद में अपोलो चौक, सफीदों रोड स्थित झोटा फार्म तथा शहर के सामान्य अस्पताल में रैड क्रॉस की जो एक एकड़ जमीन है उस पर स्थाई तौर पर रैन बसेरे के निर्माण की योजना तैयार की जा रही है। प्रचार-प्रसार के लिए बैनर तैयार करवाए जा रहे हैं।  

प्रचार-प्रसार के लिए जल्द करेंगे व्यवस्था

सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार प्रशासन द्वारा जिले में रैन बसेरों तथा अलाव की व्यवस्था की जिम्मेदारी रैड क्रॉस सोसायटी को सौंपी गई है। रैन बसेरों की व्यवस्था के साथ-साथ उनके प्रचार-प्रसार के लिए भी रैड क्रॉस के अधिकारियों को निर्देश जारी किए जाएंगे।
दलबीर सिंह
एस.डी.एम. जींद

टपका सिंचाई की तरफ नहीं बढ़ रहा किसानों को रूझान


किसानों की बेरूखी के कारण टारगेट पूरा नहीं कर पाया बागवानी विभाग

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिला बागवानी विभाग लाख प्रयासों के बावजूद भी जिले के किसानों का रूझान टपका सिंचाई (ड्रिप सिस्टम) की तरफ आकॢषत नहीं कर पाया है। किसानों की बेरूखी के चलते बागवानी विभाग अपने ड्रिप सिस्टम के टारगेट के नजदीक भी नहीं पहुंच पाया है। इस प्रकार जिला बागवानी विभाग द्वारा टारगेट को पूरा नहीं कर पाने के कारण विभाग की जल संरक्षण की मुहिम को बड़ा झटका लगा है। 
किसानों द्वारा कृषि कार्यों में पानी के अंधाधुंध दोहन के कारण गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए बागवानी विभाग ने जल संरक्षण के लिए एक खास योजना तैयार की थी। इसके लिए विभाग द्वारा किसानों को कृषि कार्यों में टपका सिंचाई का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाना था। अधिक से अधिक किसानों को ड्रिप सिस्टम के प्रति आकर्षित करने के लिए विभाग द्वारा किसानों को ड्रिप सिस्टम पर 90 प्रतिशत सबसिडी दी जा रही है। ताकि अधिक से अधिक किसान टपका सिंचाई को अपना कर पानी की बचत कर सकें और अच्छी पैदावार ले सकें। योजना को सफल बनाने के लिए विभाग की तरफ से जिला बागवानी विभाग को टारगेट दिया गया था। जिला बागवानी विभाग के अधिकारियों को टारगेट के अनुसार 100 हैक्टेयर में मिनी स्प्रींग कलर तथा ड्रिप एंड फोगिंग सिस्टम इन पोली हाऊस के तहत 44 हजार सुकेयर मीटर में पोली हाऊस में ड्रिप सिस्टम लगाने थे। ताकि अधिक से अधिक किसानों को ड्रिप सिस्टम के लिए प्रेरित किया जा सके। लेकिन विभाग लाख प्रयासों के बावजूद भी किसानों को ड्रिप सिस्टम लगवाने के लिए राजी नहीं कर पाया। अभी तक विभाग अपने मिनी स्प्रींग कलर के 100 हैक्टेयर के टारगेट में से सिर्फ 10 हैक्टेयर तथा ड्रिप एंड फोगिंग सिस्टम इन पोली हाऊस के 44 हजार सुकेयर मीटर के टारगेट में से सिर्फ 1440 सुकेयर मीटर ही टारगेट पूरा कर पाया है। इस प्रकार ड्रिप सिस्टम के प्रति किसानों की बेरूखी के चलते जिले में विभाग की जल संरक्षण की मुहिम को कड़ा झटका लगा है। 

योजना का नाम   टारगेट   पूरा किया

मिनी स्प्रींग कलर  100 हैक्टेयर            10 हैक्टेयर
ड्रिप एंड फोगिंग   इन पोली हाऊस  44 हजार सुकेयर मीटर  1440 सुकेयर मीटर

ड्रिप पर 90 तथा तालाब पर 100 प्रतिशत सबसिडी देता है विभाग

बागवानी विभाग द्वारा ड्रिप सिस्टम को अधिक कामयाब बनाने के लिए किसानों को खेत में तालाब बनाने के लिए भी प्रेरित किया जाता है। ताकि कृषि कार्यां में किसान को पानी की किल्लत न हो। इसके लिए विभाग द्वारा ड्रिप सिस्टम पर 90 तथा तालाब के निर्माण पर 100 प्रतिशत सबसिडी दी जाती है। 

किसानों को किया जाता है प्रेरित

बागवानी में ड्रिप सिस्टम सबसे ज्यादा कारगर साबित होती है। जींद में बाग का क्षेत्र कम होने के कारण किसान ड्रिप सिस्टम में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। फिर भी विभाग के अधिकारियों द्वारा किसानों को ड्रिप सिस्टम के बारे में पूरी जानकारी देकर प्रेरित किया जाता है। विभाग के अधिकारी टारगेट को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं।
डा. बलजीत भ्याण
जिला उद्यान अधिकारी

स्मार्ट कार्ड के नाम पर हो रही लूट


फार्म भरने की एवज में डिपो होल्डर उपभोक्ताओं से वसूल रहे हैं फीस

नरेंद्र कुंडू
जींद। डिपो होल्डरों द्वारा स्मार्ट कार्ड बनाने के नाम पर लोगों के साथ जमकर लूट की जा रही है। डिपो होल्डर उपभोक्ता से फार्म भरने की एवज में पैसे वसूल रहे हैं लेकिन उपभोक्ताओं को खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की स्मार्ट कार्ड की योजना की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं होने के चलते उपभोक्ता चुपचाप डिपो होल्डर की जालसाजी का शिकार हो रहे हैं। हालांकि खाद्य एवं आपूॢत विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड बनाने का कार्य प्राइवेट कंपनी को ठेके पर दिया हुआ है और स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की जिम्मेदारी भी खाद्य एवं आपूर्ति विभाग तथा संबंधित कंपनी की ही है। डिपो होल्डर के पास फार्म भरने की आथोरिटी नहीं है लेकिन खाद्य एवं आपूॢत विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड के इस कार्य में केवल मदद के तौर पर डिपो होल्डर को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है और डिपो होल्डर विभाग की मदद करने की आड में लोगों की जेबें तरास रहे हैं। जबकि विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की कोई फीस ही निर्धारित नहीं की गई है। विभाग द्वारा उपभोक्ताओं के फार्म निशुल्क भरवाए जाने हैं।   
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा राशन वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाने तथा डिपो होल्डरों पर नकेल कसने के लिए राशन वितरण के पूरे कार्य को कम्प्यूटरिकृत करने की योजना तैयार की गई है। इस योजना के तहत सभी राशन कार्ड धारकों के स्मार्ट कार्ड बनाए जाने हैं। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड बनाने का कार्य मुम्बई की वकरांगी साफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को ठेके पर दिया गया है। विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड बनाने के लिए राशनकार्ड धारकों से फार्म भरवाए जा रहे हैं। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों द्वारा फार्म भरने के झंझट से पिंड छुटवाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में फार्म भरवाने का कार्य डिपो होल्डरों को सौंप दिया गया है। जबकि स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की जिम्मेदारी खुद विभाग के अधिकारियों व सम्बंधित कंपनी के कर्मचारियों की है। इस प्रकार विभाग की मदद की आड में डिपो होल्डर खुलेआम उपभोक्ताओं की जेबों पर कैंची चला रहे हैं। उपभोक्ताओं के फार्म भरने के लिए डिपो होल्डरों ने अपनी मनमर्जी के मुताबिक फीस निर्धारित की हुई है। हालांकि विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरकर जमा करवाने तक की पूरी प्रक्रिया निशुल्क है लेकिन लोगों को विभाग की पूरी पॉलिसी की जानकारी नहीं होने के कारण उपभोक्ता बड़ी आसानी से डिपो होल्डरों के इस जाल में फंस रहे हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी पर विश्वास किया जाए तो अलग-अलग डिपो होल्डरों द्वारा फार्म भरने के लिए अलग-अलग फीस निर्धारित की गई है। कई डिपो होल्डर फीस के तौर पर 20 रुपए ले रहा है तो कोई डिपो होल्डर उपभोक्ता से 50 रुपए फीस के वसूल रहा है। चूंकि फार्म भरवाने की जिम्मेदारी खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों की है। इसलिए शिकायत मिलने पर विभाग के अधिकारी भी शिकायत को गोल कर देते हैं, ताकि वो खुद फार्म भरने के इस पचड़े से बचे रह सकें। इस प्रकार विभाग के अधिकारियों की इस लापरवाही के चलते ही डिपो होल्डर उपभोक्ताओं की जेबें तरास कर जमकर चांदी कूट रहे हैं और उपभोक्ता चुपचाप इनका शिकार हो रहे हैं। 

पुराने राशन कार्डों की बढ़ाई गई है अवधि

स्मार्ट कार्ड बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी होने के कारण उपभोक्ताओं को स्मार्ट कार्ड मुहैया करवाने में विभाग को काफी वक्त लगेगा। हालांकि विभाग ने स्मार्ट कार्ड बनाने का कार्य प्राइवेट कंपनी को ठेके पर दिया गया है लेकिन फिर भी इस प्रक्रिया में लंबा वक्त लगने के कारण विभाग ने पुराने राशन कार्डों की अवधि एक साल तक बढ़ाई गई है। ताकि उपभोक्ताओं को राशन खरीदने में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं आए। 

समय पर पूरा नहीं हो पाएगा फार्म भरने का कार्य

खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की तिथि 31 दिसम्बर तक तय की गई है लेकिन अभी फार्म भरने की प्रक्रिया कछुआ चाल से चलने के चलते 31 दिसम्बर तक यह कार्य पूरा होना संभव नहीं है। इसलिए विभाग को स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की अपनी समयावधि में बदलाव करना होगा। 

शिकायत मिलने पर डिपो होल्डर के खिलाफ होगी सख्त कार्रवाई

स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की पूरी प्रक्रिया निशुल्क है। इसके लिए विभाग द्वारा कोई फीस निर्धारित नहीं की गई है। अगर कोई डिपो होल्डर फार्म भरने की एवज में फीस ले रहा है तो शिकायत मिलने पर उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने के कार्य को समयावधि में पूरा करने के लिए डिपो होल्डरों की मदद ली जा रही है। 
अशोक कुमार
खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक, जींद 

सरकार के चहेतों ने बिगाड़ी जाट आंदोलन की चाल


मुख्यमंत्री पर लगाए खाप प्रतिनिधियों की लाबिंग के आरोप

नरेंद्र कुंडू
जींद। अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष धर्मपाल छोत ने कहा कि सरकार के चहेतों ने जाट आंदोलन की चाल बिगाड़ी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने खाप के कुछ प्रतिनिधियों को अपना प्यादा बनाकर पहले से ही आंदोलन के इस चक्रव्यहू को तोडऩे की पूरी प्लाङ्क्षनग तय कर रखी थी। छोत ने हुड्डा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने 13 सितम्बर को नरवाना के दनौदा गांव के ऐतिहासिक चबूतरे पर हुए सर्व जाट खाप की पंचायत के बाद से ही खाप प्रतिनिधियों की लाबिंग करनी शुरू कर दी थी। ताकि समय आने पर आंदोलन को बीच में ही बाधित करवाया जा सके। छोत ने सर्व जाट खाप के प्रधान नफे ङ्क्षसह नैन व समिति के पूर्व जरनल सैक्रेटरी कुलदीप ढांडा पर आरोप लगाते हुए कहा कि आंदोलन की बागडोर ऐसे नेताओं को हाथों में सौपी गई थी जो मुख्यमंत्री के काफी करीबी थे। उन्हें तो पहले ही इन पर विश्वास नहीं था। छोत ने पंजाब केसरी से विशेष बातचीत में कहा कि खाप प्रतिनिधियों ने अपने निजी स्वार्थों व मुख्यमंत्री के दरबार में अपने नंबर बनाने की फेर में यह फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि खाप प्रतिनिधियों ने अपनी कौम के साथ गद्दारी की है। अगर उन्होंने मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में इतना अच्छा फैसला लिया था तो उन्हें जत्थों में शामिल लोगों के बीच जाकर अपना फैसला सुनाना चाहिए था। मुख्यमंत्री के साथ बैठक के लिए 21 सदस्यों की कमेटी का गठन किया गया था लेकिन बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने पहले से ही अपने लोगों को वहां शामिल किया हुआ था। बैठक में ऐसे लोग मौजूद थे जिनका आंदोलन से कोई लेना-देना ही नहीं था। छोत ने कहा कि वे अपनी कौम के लोगों का विश्वास नहीं टूटने देंगे। इसके लिए चाहे उन्हें दोबारा से आंदोलन क्यों ना शुरू करना पड़े। आगामी कार्रवाई की रूपरेखा तैयार करने के लिए आगामी 30 दिसम्बर को जींद की जाट धर्मशाला में अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति की राज्य स्तरीय बैठक बुलाई जाएगी। बैठक में सभी प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श करने के बाद ही अगला फैसला लिया जाएगा। छोत ने कहा कि आरक्षण की अलगी लड़ाई में खापों को आंदोलन से दूर रखा जाएगा और यह लड़ाई हरियाणा की धरती पर ही लड़ी जाएगी। उन्होंने कहा कि अब उनका विश्वास खापों से उठ चुका है, क्योंकि कुछेक समाज के ठेकेदारों ने उनको गुमराह कर उनका फायदा उठाया है। उन्होंने कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य गुरूनाम ङ्क्षसह आयोग की रिपोर्ट के अनुसार जाटों को प्रदेश व केंद्र में दोबारा से आरक्षण दिलवाना है। भविष्य में अगर आंदोलन हुआ तो वह अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले ही होगा। 
उधर सर्व जाट खाप आरक्षण समिति के प्रधान नफे ङ्क्षसह नैन ने सभी आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उन्होंने 21 सदस्यीय कमेटी के सदस्यों की सहमती के बाद ही यह फैसला लिया है। जिस वक्त फैसला हुआ उस वक्त धर्मपाल छोत भी वहीं मौजूद थे लेकिन उस वक्त उन्होंने इस फैसले से इंकार क्यों नहीं किया। नैन ने कहा कि कमेटी में सभी पाॢटयों के लोग शामिल थे और उन्होंने बैठक में हुए फैसले के बाद सभी जत्थों को फोन के माध्यम से सूचना दे कर वापिस लौटने का निर्णय किया था। 
धर्मपाल छोत का फोटो।



सुविधाओं के अभाव में बिगड़ रही कलाकारों के कैरियर की लय

सोनू निगम ने जींद की धरती से ही शुरू किया था कैरियर का पहला पड़ाव

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद जिला विकास के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि संगीत के क्षेत्र में भी पिछड़ चुका है। जिले में संगीत के उभरते कलाकारों को अच्छा प्लेटफार्म नहीं मिलने के कारण कलाकारों के कैरियर की लय बिगड़ रही है। बिना सुर-ताल के जिले के कलाकारों का जीवन रूपी राग बेसुरा हो रहा है। हालांकि संगीत की दुनिया में जींद जिले का विशेष महत्व है और जिले के कई गांवों के नाम संगीत के रागों व तालों के नाम पर ही रखे गए हैं। इसके अलावा संगीत के आसमान पर सोनू निगम जैसे चमकते सितारे ने भी अपने कैरियर का पहला पड़ाव जींद की धरती से ही शुरू किया था। जींद के इतिहास में संगीत रचा-बसा हुआ है लेकिन सुविधाओं के अभाव के कारण संगीत के कई उभरते सितारे टूट कर बिखर चुके हैं। 

निगम ने जींद की धरती से ही शुरू किया था जीवन का पहला पड़ाव। 

लगभग 4 दशक पहले जींद के रॉयल क्लब द्वारा लोगों के मनोरंजन के लिए हर वर्ष जींद में एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया जाता था। इस कार्यक्रम में हर वर्ष देश के बड़े-बड़े कलाकारों को आमंत्रित किया जाता था। सोनू निगम के पिता अगम कुमार निगम उस वक्त रंगरंगीला नामक पार्टी चलाते थे और हर वर्ष वो भी जींद के कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुती देने आते थे। इसी बीच 1976 में अगम कुमार निगम के साथ उनका बेटा सोनू निगम भी जींद आया था। सोनू निगम ने 1976 में आयोजित एक कार्यक्रम में ही 'क्या हुआ तेरा वादा' गीत गाकर अपने कैरियर का पहला पड़ाव शुरू किया था। जिस वक्त सोनू निगम ने जींद में अपनी पहली परफोरमैंश दी थी उस वक्त सोनू निगम की उम्र लगभग 4 वर्ष थी। 

संगम कला ग्रुप जगा रहा है उम्मीद की किरण

भले ही जिले में कलाकारों के लिए संगीत की दुनिया में उतरने के लिए कोई प्लेटफार्म नहीं हो लेकिन ऐसे में जिले के उभरते कलाकारों के लिए संगम कला ग्रुप उम्मीद की किरण जगाए हुए है। वर्ष 2005 से संगम कला ग्रुप द्वारा मां सरस्वती की अराधना के इच्छुक असमर्थ व गरीब बच्चों को निशुल्क संगीत की शिक्षा दिलवाकर उन्हें परफोरमैंश के लिए बड़े-बड़े कार्यक्रमों तक पहुंचाने के लिए एक अच्छा प्लेटफार्म दे रहा है। संगम कला ग्रुप द्वारा हर वर्ष जिला स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन कर सुरों के बादशाहों का चयन कर उन्हें परफोरमैंशन के लिए राज्य से बाहर भी कार्यक्रमों में भेजा जाता है। 
सुविधाओं के अभाव में टूट रहे हैं संगीत के तारे
संगम कला ग्रुप के कोर्डिनेटर विनय अरोड़ा ने बताया कि उन्हें भी बचपन से संगीत का शौक था। विनय ने बताया कि वे सुविधाओं के अभाव के बावजूद भी अपने बलबूते पर 'सारे गामा' व 'इंडियन आइडल' जैसे कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुती दे चुके हैं लेकिन समय के अनुसार उन्हें अच्छी सुविधा व सही प्लेटफार्म नहीं मिलने के कारण उनकी प्रतिभा ने बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया। विनय ने बताया कि  अब वे संगम कला ग्रुप के साथ जुड़कर दूसरे बच्चों को संगीत की दुनिया में आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। ताकि सुविधाओं के अभाव में उनकी तरह संगीत की दुनिया का कोई ओर तारा नहीं टूटे। प्रधान नरेश शर्मा ने बताया कि गांव पोकरी खेड़ी निवासी अमित ढुल व शहर की टपरीवास कालोनी निवासी खन्ना भी आज आर्थिक कमजोरी व सुविधाओं के अभाव के कारण अच्छा मुकाम हासिल नहीं कर पाए हैं। फिलहान उनके ग्रुप द्वारा शहर के रूद्र शर्मा व जय रोहिल्ला को भी संगीत की दुनिया के लिए तरासने का काम किया जा रहा है। शर्मा ने कहा कि सरकार को चाहिए कि जिले में भी संगीत सिखाने के लिए अच्छे इंस्टीच्यूट की व्यवस्था करे तथा आर्थिक कमजोरी के कारण पिछड़ रहे कलाकारों की फाइनैंस मदद कर उन्हें आगे बढऩे के लिए अवसर मुहैया करवाए। 

जींद के इतिहास में संगीत रचा-बसा हुआ है।

जींद के इतिहास में संगीत किस तरह से रचा-बसा हुआ है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिले के कई गांवों के नाम संगीत के राग व तालों के नाम पर रखे हुए हैं। गांव का नाम राग का नाम
पिल्लूखेड़ा पिल्लू 
जैजवंती जैजवंती 
श्रीराग खेड़ा राग
भैरोखेड़ा भैरवी 
कलावती कलावती
नोट इसके अलावा भी कई गांवों के नाम संगीत के तालों के नाम पर भी रखे गए हैं। 
जींद में आयोजित कार्यक्रम में अपने पिता अगम कुमार निगम के साथ सोनू निगम का फाइल फोटो। 


 जी.टी.वी. के सैट पर प्रस्तुति देती जींद की कलाकार का फाइल फोटो।

सारे गामा कार्यक्रम में सोनू निगम के साथ मौजूद जींद के विनय अरोड़ा व उनके साथी का फाइल फोटो। 




मंगलवार, 8 जनवरी 2013

एस.एस.ए. की योजना पर लगा बजट के अभाव का ग्रहण


बजट के अभाव के कारण नहीं हो सका पेरैंट्स अवेयरनैस कैंपों का आयोजन

नरेंद्र कुंडू
जींद।  सर्व शिक्षा अभियान द्वारा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए उनके अभिभावकों को जागरूक करने के लिए शुरू की गई योजना पर बजट के अभाव का ग्रहण लग गया है। बजट के अभाव के कारण एस.एस.ए. विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के अभिभावकों के लिए अभी तक जागरूकता कैंप नहीं लगा पाया है। जबकि विभागीय आदेशों के अनुसार यह कैंप 15 दिसम्बर तक आयोजित किए जाने थे।
डिफैंस कॉलोनी स्थित एस.एस.ए. का कार्यालय।
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के अच्छे लालन-पालन तथा उनको प्रोत्साहित कर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए सर्व शिक्षा अभियान द्वारा उनके अभिभावकों के लिए जागरूकता कैंप लगाने की योजना तैयार की गई थी। एस.एस.ए. द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत खंड स्तर पर इन कैंपों का आयोजन किया जाना था। इसके लिए हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद् के स्टेट परोजैक्ट डायरेक्टर द्वारा एस.एस.ए. के सभी जिला परियोजना अधिकारियों को 3 दिसंबर को पत्र जारी कर कैंपों के आयोजन के निर्देश दिए गए थे। स्टेट परोजैक्ट डायरेक्टर द्वारा भेजे गए पत्र में जिला परियोजना अधिकारियों को हर हालत में 15 दिसम्बर तक इन कैंपों के आयोजन का उल्लेख किया गया था। खंड स्तर पर लगने वाले इन 2 दिवसीय कैंपों पर विभाग द्वारा लगभग 30 हजार रुपए खर्च किए जाने थे। इन 2 दिवसीय कैंपों में प्रत्येक खंड से विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के अभिभावकों को उनके बच्चों को प्रोत्साहित करने, सरकार द्वारा उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं की विस्तार से जानकारी देने तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया जाना था। ताकि इस तरह के बच्चों के अंदर हीन भावना घर ना कर सके और वे किसी भी क्षेत्र में अपने-आप को दूसरों से कमजोर ना समझें लेकिन विभाग द्वारा तैयार की गई योजना के धरातल पर आने से पहले ही इस पर बजट के अभाव का ग्रहण लग गया। बजट के अभाव के कारण अभी तक इन कैंपों का आयोजन नहीं किया जा सका।

हर रोज 100 अभिभावकों को देना था प्रशिक्षण

एस.एस.ए. द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले के सभी खंडों पर 2 दिनों तक कैंप का आयोजन किया जाना था। इन कैंपों में हर रोज मास्टर ट्रेनरों द्वारा लगभग 100 अभिभावकों को उनके बच्चों को प्रोत्साहित कर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के टिप्स दिए जाने थे लेकिन बजट के अभाव के कारण इन कैंपों का आयोजन नहीं हो सका।

बजट आने के बाद किया जाएगा कैंपों का आयोजन

विभाग द्वारा अभी तक कैंपों के आयोजन के लिए सिर्फ गाइड लाइन जारी की गई हैं। अभी तक विभाग द्वारा कैंपों के आयोजन के लिए बजट जारी नहीं किया गया है। बजट जारी होने के बाद ही कैंपों का आयोजन किया जाएगा।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
एस.एस.ए., जींद