रविवार, 22 जुलाई 2012

अब जरुरतमंदों को ही मिलेगा हथियार चलाने का प्रशिक्षण


बदमाशों का निशाना बने लोगों को दी जाएगी प्रशिक्षण में वरीयता

नरेंद्र कुंडू
जींद।
लंबे अर्से के बाद जिले में हथियार प्रशिक्षण की शुरूआत होने जा रही है। एक वर्ष की कड़ी मशक्कत के बाद होमगार्ड विभाग को कुछ कारतूस मिल पाए हैं। कारतूसों की कमी को देखते हुए जिला प्रशासन व होमगार्ड विभाग ने विशेष व्यक्तियों को ही हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने का निर्णय लिया है। होमगार्ड विभाग द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार अभी सिर्फ उन्हीं लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी जो बदमाशों का निशाना बने हैं या निशाने पर हैं, ताकि ये लोग ट्रेनिंग लेकर अपना आर्म्ज लाइसेंस बनवाकर हथियार खरीद कर अपनी सुरक्षा खुद कर सकें। फिलहाल होमगार्ड विभाग को सिर्फ 40 लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए एमिनेशन मिल पाया है।
जिले में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में पिछले एक वर्ष से कारतूसों की कमी के चलते होमगार्ड की ट्रेनिंग नहीं हो पा रही थी। ट्रेनिंग बंद होने के कारण आर्म्ज लाइसेंस बनवाने के इच्छु आवेदकों में मायूसी छाई हुई थी। हथियारों का प्रशिक्षण न मिलने के कारण जरुतमंद लोग भी लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं कर पा रहे थे। दरअसल लाइसेंस बनवाने के लिए प्रक्रिया शुरू करने की पहली सीढ़ी होमगार्ड में हथियार चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है। बिना होमगार्ड या एनसीसी के प्रमाण पत्र के आर्म्ज लाइसेंस की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती। लेकिन होमगार्ड विभाग के पास कारतूस उपलब्ध न होने के कारण सारी प्रक्रिया बंद पड़ी थी। जिले में बढ़ते आपराधिक ग्राफ व लोगों के दबाव को देखते हुए जिला प्रशासन ने होमगार्ड मुख्यालय से कारतूसों की डिमांड की थी। जिसके बाद होमगार्ड मुख्यालय द्वारा ट्रेनिंग शुरू करवाने के लिए कारतूस मुहैया करवाए गए। फिलहाल होमगार्ड मुख्यालय द्वारा सिर्फ 40 लोगों को ही ट्रेनिंग देने के लिए कारतूस उपलब्ध करवाए गए हैं। एमिनेशन की कमी को देखते हुए फिलहाल जिला प्रशासन व गृहरक्षी विभाग के जिला कमांडेंट ने जरुरतमंद लोगों को ही ट्रेनिंग देने की योजना तैयार की है। जिला प्रशासन द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार सिर्फ ऐसे लोगों को ही प्रशिक्षण में प्राथमिकता दी जाएगी जो बदमाशों के निशाने पर आ चुके हैं या फिर जिन पर बदमाशों का निशाना टिका हुआ है। गृहरक्षी विभाग द्वारा ट्रेनिंग के लिए उन्हीं आवेदकों को दाखिला दिया जाएगा, जिन्हें पुलिस प्रशासन की तरफ से मंजूरी दी जाएगी। जिला प्रशासन द्वारा इस योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य जरुरतमंदों को लाइसेंस उपलब्ध करवाना है, ताकि जरुरतमंद व्यक्ति अपना स्वयं का हथियार खरीदकर अपनी सुरक्षा कर सकें।

हथियारों के प्रति युवाओं में बढ़ रहे क्रेज पर लगेगा अंकुश

जिले के युवाओं में हथियारों के प्रति काफी क्रेज बढ़ रहा है। लाइसेंस बनवाने की होड़ में युवाओं में मारामारी रहती है। पुलिस प्रशासन व होमगार्ड विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना के बाद हथियारों के प्रति युवाओं में बढ़ रहे क्रेज पर भी अंकुश लगेगा। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से दिखावे या शौक के लिए लाइसेंस बनवाने वाले युवाओं पर अब नकेल कसी जा सकेगी।

जरुरतमंदों को दी जाएगी प्राथमिकता

 जिला कमांडेंट बीरबल कुंडू का फोटो।
कारतूसों की कमी के कारण एक वर्ष से प्रशिक्षण का कार्य बंद था। मुख्यालय की तरफ से अभी 40 व्यक्तियों की ट्रेनिंग के लिए एमिनेशन उपलब्ध करवाय गया है। कारतूसों की कमी को देखते हुए जिला प्रशासन ने विभाग से ऐसे लोगों को ही ट्रेनिंग में प्राथमिकता देने की मांग की थी जो बदमाशों के निशाने पर हैं। इसलिए इस ट्रेनिंग में उन्हीं लोगों को प्राथमिकता दी गई है, जिन्हें इसकी जरुरत है। उन्होंने विभाग से ओर एमिनेशन की मांग की है। ताकि बचे हुए आवेदकों को भी प्रशिक्षण दिया जा सके।
बीरबल कुंडू, जिला कमांडेंट
गृहरक्षी विभाग, जींद 

आईटी विलेज के इतिहास में जुड़ा एक ओर नया अध्याय

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ बिगुल बजाकर पंचायत ने शुरू की नई पहल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
आईटी विलेज बीबीपुर के इतिहास में शनिवार को एक ओर अध्याय जुड़ गया। ग्राम पंचायत ने सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत के नेतृत्व में कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति के विरोध में बिगुल बजा दिया। गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हुई इस महापंचायत में हरियाणा के अलावा दूसरे प्रदेशों से आए खाप चौधरियों ने खुलकर कन्या भ्रूण हत्या को विरोध किया। खाप चौधरी के अलावा महिला खाप प्रतिनिधि व अन्य सामाजिक संगठनों से आई महिला अधिकारी भी इस सामाजिक बुराई के विरोध में जमकर बरसी। बीबीपुर पंचायत ने महापंचायत के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में यह लड़ाई शुरू कर 2004 में खाप पंचायतों द्वारा शुरू किये गए अभियान को गति प्रदान कर दी है। इस महापंचायत के फैसले को सुनने के लिए आस-पास के लोगों के अलावा दूर-दूर से शोधार्थी, शिक्षाविद व सामाजिक संगठनों के लोग भी आए हुए थे। इस महापंचायत के फैसले पर प्रदेश ही नहीं अपितू दूसरे प्रदेशों के लोगों की भी नजर टिकी हुई थी। लोगों को उम्मीद थी कि महापंचायत कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कोई नया फतवा जारी करेगी और बड़े-बडेÞ विवादों को चुटिकियों में सुलझाने वाली खाप पंचायतें शायद इस समस्या का भी कोई तोड़ निकाल कर दुनिया को नया रास्ता दिखाएंगी।

जागरुकता के अलावा नहीं नजर आया कोई रास्ता

खाप पंचायतों ने भले ही वर्षों पुराने विवादों का तोड़ ढुंढ़ कर दुनिया के सामने मिशाल कायम की हो, लेकिन कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने के लिए खाप चौधरियों को केवल जागरुकता के अलावा ओई कोई उपाय नहीं सुझा। लगातार पांच घंटे तक हुए गहन मंथन के बाद खाप प्रतिनिधि इसी फैसले पर पहुंचे कि अगर कन्या भ्रूण हत्या को रोकना है तो इसके लिए उन्हें लोगों को जागरुक करना होगा। इसलिए महापंचायत में चौधरियों ने पूरे उत्तर भारत के लोगों को जागरुक करने का फैसला लिया और सभी खाप पंचायतों को अपने-अपने क्षेत्र में जागरुकता अभियान चलाने की जिम्मेदारी सौंपी।

पढ़े लिखे लोगों ने ही बोया कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराई का बीज

महापंचायत में जितने भी वक्ताओं ने अपने विचार रखे सभी के विचारों से एक बात तो साफ हो गई कि इस बुराई का बीज गांव के अनपढ़ लोगों ने नहीं बल्कि पढ़े लिखे शहरी बाबूओं ने बोया है। खाप प्रतिनिधियों ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि गांव के अनपढ़ लोगों को तो इस रास्तों का पता ही नहीं था। शहरी लोगों ने ही उन्हें यह रास्ता दिखाया है। इसलिए तो आज भी गांवों में एक-एक परिवार में कई-कई लड़कियां मिल जाती हैं, लेकिन शहर में 99 प्रतिशत परिवारों में एक लड़की के सिवाए दूसरी लड़की नहीं मिलती। इससे यह बात साफ है कि शहर के पढ़े लिखे लोग जिन्हें समाज की प्रगति की सीढ़ी कहा जाता है कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने में आगे हैं।

लेडिज फर्स्ट

महापंचायत में महिलाओं को प्राथमिकता दी गई। महापंचायत की कार्रवाई राजकीय कॉलेज की लेक्चरार सुप्रिया ढांडा द्वारा ‘कोर्ट मै एक कसूता मुकदमा आया, एक सिपाही कुत्ते नै बांध कै लाया’ कविता के साथ शुरू हुई। इसके साथ ही गांव की महिलाएं हरियाणवी रीति-रिवाज के अनुसार गीत गाती व नाचती हुई स्कूल में पहुंची। इसके बाद सरपंच सुनील जागलान की बहन रीतू जागलान द्वारा ट्रेंड की गई लड़कियों ने ‘बेटी है अनमोल’ नाटक के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर कटाक्ष किया। नाटक में लड़कियों ने ‘चाहे मुझको प्यार न देना चाहे मुझको दुलार ने देना, करना बस इतना काम मुझको गर्भ में न देना मार’ गीत प्रस्तुत कर पंचायत में मौजूद लोगों को भावुक कर दिया।

बेटी पर खर्च होता है प्रोपार्टी का केवल दस प्रतिशत हिस्सा

 महापंचायत में पहुंचने के बाद हरियाणवी रीति-रिवाज के अनुसार नृत्य करती महिलाएं।

 कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में नाटक प्रस्तुत करती लड़कियां।

 पंचायत की कार्रवाई शुरू होने से पहले कविता प्रस्तुत करती सुप्रिया ढांडा।
महिला प्रधान डा. संतोष दहिया ने कहा कि उन्होंनें कन्या भ्रूण हत्या पर काफी शोध किया है और वे लोगों को जागरुक करने के लिए 35 हजार हस्ताक्षर भी करवा चुकी हैं। इस दौरान महिलाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या करवाने का मुख्य कारण यह सामने आया है कि महिलाएं समझती हैं कि जो दुख उन्होंने सहन किए हैं, वे दुख उनकी बेटी का न सहन करना पड़े इसलिए वे कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कार्य में संलिप्त होती हैं। दहिया ने बताया कि आज महिलाएं घर व बाहर कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत महिलाएं अपनी जमीन अपने भाई के नाम कर देती हैं। लेकिन क्या कभी कोई ऐसा भाई देखा है जिसने अपनी जमीन अपनी बहन या दूसरे भाई के नाम की हो। दहिया ने कहा कि प्रत्येक बाप अपनी प्रोपार्टी का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही बेटी पर खर्च करता है।



कन्या भ्रूण हत्या पर खापों ने सुनाया फतवा

कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों पर दर्ज हो 302 का मुकदमा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। आईटी विलेज बीबीपुर में शनिवार को उत्तर भारत की सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया। महापंचायत में हरियाणा के अलावा दिल्ली व उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों के 100 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने शिरकत की। महापंचायत की अध्यक्षता नौगामा खाप प्रधान कुलदीप रामराये व कार्यकारी चंद्रभान नंबरदार ने संयुक्त रुप से की। पंचायत में विभिन्न खापों से आए प्रतिनिधियों ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अपने-अपने विचार प्रकट किए तथा इस सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने के लिए पांच घंटों तक गहन मंथन किया। सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने महापंचायत का फैसला सुनाते हुए कहा कि महापंचायत उत्तर भारत के लोगों को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का आह्वान करेगी तथा कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों के साथ सख्ती से निपटेंगी। इसके अलावा सरकार से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए अधिनियम में संसोधन करवाने की मांग करते हुए कन्या भ्रूण हत्या में दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ 302 का मुकदमा दर्ज कर सख्त से सख्त कार्रवाई करवाने का प्रस्ताव पास किया गया। इस महापंचायत की सबसे खास बात यह रही कि इसमें महिलाओं को भी पुरुषों के साथ मंच पर बैठने के लिए बराबर स्थान दिया गया।
आईटी विलेज बीबीपुर में 18 जून को पहली महिला ग्रामसभा का आयोजन कर महिलाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रस्ताव डाल कर सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत बुलाने की मांग की थी। जिसके तहत शनिवार को गांव में सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया। महापंचायत में हरियाणा, दिल्ली व उत्तर प्रदेश की विभिन्न खापों से आए प्रतिनिधियों ने भाग लिया था इस सामाजिक बुराई को मिटाने के लिए अपने-अपने विचार पंचायत के समक्ष रखे। इस महापंचायत में पुरुषों के साथ-साथ महिला प्रतिनिधियों ने भी शिरकत की तथा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अपने सुझाव खाप चौधरियों के सामने रखे। पंचायत के दौरान सभी खाप प्रतिनिधियों ने इस मसले को हल करने के लिए गहन मंथन किया। सभी प्रतिनिधियों के विचार सुनने के बाद इस मामले में ठोस निर्णय लेने के लिए एक 11 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। लेकिन सभी खाप प्रतिनिधियों ने पंचायत द्वारा मंच पर ही किए गए फैसले को अपना समर्थन देकर कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रस्ताव पास करवाने की मांग की। सर्व खाप महापंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने महापंचायत द्वारा लिया गया फैसला सुनाते हुए कहा कि महापंचायत उत्तर भारत के लोगों को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का आह्वान करेगी। सभी खाप पंचायतें अपने-अपने क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जागरुकता अभियान चलाएंगी तथा कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों के साथ सख्ती से निपटेंगी। इसके अलावा सरकार से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए अधिनियम में संसोधन करवाने की मांग करते हुए कन्या भ्रूण हत्या में दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ 302 का मुकदमा दर्ज कर सख्त से सख्त कार्रवाई करवाने का प्रस्ताव पास किया गया। महापंचायत में मौजूद सभी प्रतिनिधियों ने हाथ उठाकर कन्या भ्रूण हत्या न करने की शपथ ली। इस अवसर पर पंचायत में 103 वर्षीय वयोवृद्ध समाजसेवी उदय सिंह मान, बाल्याण खाप के प्रधान राकेश टिकैत, भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर, रामकरण सोलंकी प्रधान पालम 360 खाप दिल्ली, नौगामा खाप प्रधान कुलदीप रामराये, चंद्रभान नंबरदार, देशवाल खाप प्रतिनिधि रामचंद्र देशवाल, कंडेला खाप प्रधान टेकराम कंडेला, राव मान सिंह, सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत की महिला अध्यक्ष डा. संतोष दहिया केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय से उमा अय्यर, मानवाधिकार आयोग के प्रदेशाध्यक्ष मनोज दहिया, सहित अन्य खाप प्रतिनिधि मौजूद थे।

दारा सिंह को दी श्रद्धांजलि

महापंचायत में मौजूद सभी खाप प्रतिनिधियों ने रुस्तम ऐ हिंद व हिंदी सिनेमा के महानायक दारा सिंह के निधन पर शोक प्रकट किया। पंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व अन्य लोगों ने खड़े होकर दो मिनट का मौन धारण कर स्व. दारा सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। कुलदीप ढांडा ने कहा कि दारा सिंह की मृत्यु से देश को गहरा आघात पहुंचा है।
पंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधि।

पंचायत में मौजूद महिलाएं।

पंचायत में मंच पर बैठे खाप प्रतिनिधि।



सोमवार, 16 जुलाई 2012

मौत के साये में सफर करने को मजबूर हैं नौनिहाल

बड़े हादसे को अंजाम दे सकती है जरा सी लापरवाही

नरेंद्र कुंडू
जींद।
नौनिहालों को घर से स्कूल तक का सफर मौत के साये में तय करना पड़ रहा है। विगत जनवरी माह में अम्बाला में हुए भयंकर स्कूल बस हादसे से भी शायद जिला प्रशासन व स्कूल संचालकों ने कोई सबक नहीं लिया है। जिला प्रशासन, पुलिस व स्कूल संचालक इस हादसे को पूरी तरह से भूला चुके हैं। अम्बाला हादसे के कुछ दिन तक तो सबकुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन अब फिर से सिस्टम पुराने ढर्रे पर लौट आया है। स्कूल बसों व आटो का वही खतरनाक मंजर फिर से शुरू हो गया है। स्कूली वाहनों में बच्चों को बेतरतीब व खचाखच भरा जाता है। आटो व रिक्शाओं में तो बच्चे लटक कर सफर करने पर मजबूर हैं। स्कूली बस व आटो चालक खुलेआम ट्रेफिक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं और इसकी परवाह  न तो पुलिस प्रशासन को है और न ही स्कूल संचालकों को। लगता है जिला प्रशासन व स्कूल संचालक फिर से किसी बड़े हादसे के इंतजार में हैं।
ट्रैफिक पुलिस जिले में ट्रैफिक व्यवस्था को पूरी तरह से दुरस्त करने की बड़ी-बड़ी ढींगें हांक रही है। लेकिन दूसरी ओर शहर की सड़कों पर हर रोज स्कूल वाहन चालकों द्वारा ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ट्रैफिक पुलिस, स्कूल संचालकों व वाहन चालकों की लापरवाही के चलते हर रोज हजारों बच्चों को घर से स्कूल तक का सफर मौत के साये में तय करना पड़ रहा है। पुलिस प्रशासन की यह लापरवाही कभी भी अभिभावकों पर भारी पड़ सकती है। विगत 2 जनवरी को साहा (अम्बाला) में स्कूल वाहन हादसे में 13 बच्चों की मौत के बाद कुछ दिन प्रशासन चौकस रहा तथा स्कूलों ने भी  इस ओर गंभीरता दिखाई, सख्ती भी  हुई, व्यवस्था में कुछ सुधार भी होता दिखा। लेकिन फिर से सिस्टम पुराने ढर्रे पर लौटता दिख रहा है। प्रशासन सो चुका है और स्कूल प्रबंधन ढीले पड़ गए हैं। ऐसे में बच्चों की जान की किसी को परवाह नहीं है। प्रशासन की आंखों के सामने फिर से स्कूली बच्चों की जान से खिलवाड़ एक बार फिर शुरू हो चुका है। ट्रैफिक पुलिस भले ही कानूनी कार्रवाई की बात कहे, लेकिन सड़कों पर स्कूली बसों, आटो और प्राइवेट वाहनों में सामान की तरह ठूंसे गए बच्चे खतरनाक तस्वीर को पेश करते हैं। स्कूल वाहन चालकों की लापरवाही को देखकर ऐसा लगता है जैसी जिला पुलिस और प्रशासन की नींद फिर किसी हादसे के बाद ही खुलेगी। ‘आज समाज’ की टीम ने जब कई स्कूलों के वाहनों को चेक किया तो प्राइवेट स्कूलों की छुट्टी के समय अधिकांश स्कूली बसों के ड्राइवर नियमों की खुलेआम अवहेलना करते हुए सड़कों पर दौड़ते नजर आए। सबसे गंभीर स्थिति आटो में सवार बच्चों की थी। सामान्यत तीन से चार की क्षमता वाले आटो में फिर से 10 से 15 बच्चों को भरकर ले जा रहे हैं। इन पर न तो ट्रेफिक पुलिस की नजर इन पर पड़ रही है और न ही प्रशासन इस संबंध में कोई कार्रवाई कर रहा है। स्कूल संचालक भी  वाहन चालकों की लापरवाही की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। पुलिस भले ही कानूनी कार्रवाई की बात कहे, लेकिन हर रोज सड़कों पर स्कूली बसों, आॅटो और प्राइवेट वाहनों में बच्चों को बुरी तरह से सामान की तरह ठुंस-ठुंस कर भरकर ले जाते देखा जा सकता है। स्कूल वाहन चालकों की यह तस्वीर देखकर ऐसा लगता है जैसे जिला पुलिस और प्रशासन की नींद फिर से किसी बड़े हादसे के बाद ही खुलेगी।

की जाएगी सख्त कार्रवाई

स्कूल की छुट्टी के बाद बच्चों को आॅटो में भरकर ले जाता आटो चालक।
ट्रेफिक नियमों की अवहेलाना करने वालों को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा। ट्रेफिक पुलिस की टीम गठित कर पूरे शहर में अभियान चलाए जाएंगे। स्कूलों में जाकर वाहन चालकों को भी ट्रेफिक नियमों का पालन करने के लिए जागरुक किया जाएगा। पहले वाहन चालकों को अभियान चलाकर जागरुक किया जाएगा। अगर फिर भी वाहन चालक नियमों की अवहेलना करते पाए गए तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सज्जन सिंह
ट्रेफिक इंचार्ज, जींद


गुरुवार, 12 जुलाई 2012

महापंचायत में ‘नायक’ की भूमिका निभाएंगी खाप पंचायतें

खापों की छवि पर लगे तालिबानी के दाग को धोने के लिए उठाया कदम

नरेंद्र कुंडू  
जींद। तुगलकी फरमान जारी करने तथा तालिबानी के नाम से जानी जाने वाली उत्तर भारत की खाप पंचायतें अब कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ मोर्चा खोलकर दुनिया को अपना सामाजिक चेहरा दिखाएंगी। इसके लिए 14 जुलाई को बीबीपुर गांव के राजकीय सीनियर सैकेंडरी स्कूल में एक सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है। इस महापंचायत में पूरे उत्तर भारत की तमाम खापों के चौधरी भाग लेंगे तथा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सर्व सम्मति से फैसला कर अपना फतवा जारी करेंगे। इस मुहिम से जुड़ने के बाद जहां खाप पंचायतों का एक नया चेहरा दुनिया के सामने आएगा, वहीं खाप पंचायतें एक अलग इतिहास रच कर दूसरी खाप पंचायतों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बनेंगी। खाप पंचायतों के अलावा गांव की महिलाएं भी इस महापंचायत में एक अहम रोल अदा करेंगी। जिन महिलाओं पर पंचायत में बोलने पर प्रतिबंध होता था, वही महिलाएं गीतों व नाटक के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर कटाक्ष कर चौधरियों से न्याय की गुहार लगाएंगी।    

उदय सिंह मान व राजराम मील ने भी स्वीकारा निमंत्रण

14 जुलाई को बीबीपुर गांव के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में होने वाले सर्व खाप महापंचायत में 103 बसंत देख चुके रोहतक निवासी उदय सिंह मान भी शिरकत करेंगे। यह उदय सिंह मान और कोई नहीं बल्कि वही हैं, जो बंसीलाल सरकार में चंडीगढ़ को पंजाब में मिलाने की कोशिश के दौरान प्रदेश की खाप पंचायतों के प्रतिनिधि के रूप में 47 दिन तक भूख हड़ताल पर बैठे थे। रोहतक निवासी उदय सिंह मान ने बीबीपुर गांव की पंचायत द्वारा 14 जुलाई के भेजे गए सर्व खाप महापंचायत के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। 103 वर्षीय उदय सिंह मान अपने पोते राजीव मान के साथ महापंचायत में शिरकत करेंगे। वहीं महापंचायत में आने के लिए राजस्थान की जाट महासभा के प्रधान राजाराम मील ने भी हामी भर दी है। वह भी अपने प्रतिनिधियों के साथ 14 जुलाई को बीबीपुर गांव में होने वाली महापंचायत में शिरकत करेंगे।

दो मिनट का ही मिलेगा समय

14 जुलाई को बीबीपुर गांव में होने वाली सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत में पूरे उत्तर भारत से 150 खाप प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है। महापंचायत के आयोजन का मुख्य एजेंडा गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कोई ठोस निर्णय लेना है। सरपंच सुनील जागलान ने बताया कि पंचायत में सभी प्रतिनिधियों को अपने विचार प्रकट करने के लिए सिर्फ दो मिनट का ही समय मिल पाएगा। महापंचायत में खाप पंचायत प्रतिनिधियों की संख्या को देखते हुए समय सीमा तय की गई है। ताकि सभी प्रतिनिधियों को पंचायत के सामने अपने विचार रखने का मौका मिल सके।

नाटक व गीतों के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर करेंगी कटाक्ष

महापंचायत में खाप चौधरियों के सामने अपने विचार रखने के लिए गांव की महिलाएं तैयारियों में जुटी हुई हैं। महिलाओं को ट्रेंड करने के लिए सरपंच की बहन रीतू जागलान हर रोज महिलाओं को विशेष ट्रेनिंग दे रही है। कन्या भ्रूण हत्या पर के खिलाफ लोगों को जागरुक करने के लिए महिलाओं ने एक लघु नाटक ‘कन्या है अनमोल’ तैयार किया है। नाटक में खुद रीतू जागलान एक जागरुक महिला की भूमिका निभाएंगी। नाटक के साथ-साथ इन महिलाओं ने ‘सुन कन्या की बात देख कै क्यूं रोया निर्भग जगत में आ लेनदे’ गीत भी तैयार किया है। इस गीत के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या करवाने वाले लोगों पर कटाक्ष किया गया है। इस गीत को गांव की ही एक अनपढ़ महिला शीला ने खुद तैयार किया है। इसके अलावा महिलाओं ने ‘एक अजनमी बच्ची की पुकार’ कविता तथा डांस भी तैयार किया है। इस सारे कार्यक्रम के लिए रीतू जागलान 6 लड़कियों व 12 महिलाओं को ट्रेनिंग दे रही है।

महिलाओं ने कीटों की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ

नरेंद्र कुंडू 
जींद। फसल में जिन कीटों को देखकर किसान अकसर डर जाते हैं और उन्हें अपना दुश्मन समझकर उनके खात्मे के लिए स्प्रे टंकियां उठा लेते हैं, उन्हीं कीटों को ललीतखेड़ा व निडाना गांव की महिलाएं किसान का सबसे बड़ा दोस्त बताती हैं। इसलिए इन महिलाओं ने कीटों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। कीटों ने भी इनकी भावनाओं को समझते हुए इनके साथ पहचान बना ली है। इसलिए तो महिलाओं  के खेत में पहुंचते ही कीट इनके पास आकर बैठ जाते हैं। ललीतखेड़ा गांव में लगने वाली महिला किसान पाठशाला में अकसर इस तरह के नजारे देखने को मिल जाते हैं। बुधवार को आयोजित महिला किसान पाठशाला में भी इसी तरह का वाक्या सामने आया, जब एक मासाहारी दीदड़ बुगड़ा शांति नामक एक महिला के चेहरे पर आकर बैठ गया। शांति शांत ढंग से बैठी रही और पाठशाला में मौजूद अन्य सभी महिलाएं लैंस की सहायता से उसे देखने में मशगुल हो गई। अंग्रेजो ने महिलाओं को दीदड़ बुगड़ा दिखाते हुए बताया कि यह व इसके बच्चे खून चूसक होते है। इस दौरान पिंकी ने सवाल उठाया कि यह किस का खून चूसता है। मनीषा ने जवाब देते हुए कहा कि आज के दिन कपास की फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला व चूराड़े ही मौजूद हैं। इसलिए दीदड़ बुगड़ा इन्ही कीटों का खून चूसता है। शीला ने महिलाओं को सलेटी भूंड दिखाते हुए बताया कि आज के दिन कपास में सलेटी भूंड  की तादात प्रति पौधा एक की है और यह शाकाहारी है तथा पत्तों को खाकर अपना गुजारा करता है। इसी दौरान शीला ने महिलाओं को प्रजनन क्रियाएं करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल दिखाते हुए कहा कि इसके बच्चे व इसका प्रौढ़ दोनों मासाहारी होते हैं जो शाकाहारी कीटों को खा कर अपना वंश चलाते हैं। सविता ने सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं को हरिया बुगड़े को पत्तों से रस चूसते हुए दिखाया। रणबीर मलिक ने बताया कि कपास की फसल में 2 से 28 प्रतिशत तक पर परागन होता है और यह केवल कीटों से ही संभव है। अगर किसान फसल में मौजूद कीटों के साथ छेड़खानी न करें तो पर पररागन के कारण 2 से 28 प्रतिशत तक फूल से टिंडे ज्यादा बनने की संभावाना होती है। मनबीर रेढू ने महिलाओं द्वारा खेत का सर्वेक्षण कर प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से तैयार किए गए बही-खाते से हिसाब लगाकर बताया कि फिलहाल कपास की फसल में कोई भी शाकाहारी कीट हानि पहुचाने की स्थिति में नहीं है। मनबीर रेढू की इस बात पर पाठशाला में मौजूद कृषि अधिकारियों, खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा व सभी महिलाओं ने सहमती जताई। विषय विशेषज्ञ डा. राजपाल सूरा ने महिलाओं को राजपुरा-माडा तथा पाली गांव का उदहारण देते हुए बताया कि राजपुरा-माडा गांव में किसानों द्वारा पाली गांव से ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए पाली के मुकाबले राजपुरा-माडा गांव में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। उपमंडल कृषि अधिकारी सुरेंद्र मलिक ने महिलाओं को गोबर का ढेर लगाने की बजाए कुरड़ी में गोबर डालने की सलाह दी। खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने किसान व कीटों की इस लड़ाई की तुलना महाभारत की लड़ाई से करते हुए कहा कि कीटों की तीन जोड़ी टांग व दो जोड़ी पंख होते हैं तथा कीटों में प्रजनन की क्षमता भी ज्यादा होती है। इसलिए इस जंग में किसानों की अपेक्षा कीटों का पलड़ा भारी है। ढांडा ने कहा कि किसान के पास कीटों को मारने के लिए कीटनाशक शस्त्र के अलावा कुछ नहीं है जबकि कीटों के पास अपने बचाव के लिए अस्त्र व शास्त्र दोनों हैं। इस अवसर पर उनके साथ सहायक पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल व खंड कृषि अधिकारी जेपी कौशिक भी मौजूद थे।  
 प्रजनन क्रिया करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल


अपने चेहरे पर बैठे कीट को दिखाती महिला।

पोधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं
पौधों कीटों की संख्या दर्ज करती महिलाएं।

खाप पंचायतों के प्रतिनिधि पढ़ रहे कीटों की पढ़ाई

लड़ाई में दोनों पक्ष हो रहे हैं घायल 

नरेंद्र कुंडू
जींद। इतिहास गवाह है जब भी लड़ाइयां हुई हैं सिवाये विनाश के कुछ हाथ नहीं लगा है। इसलिए तो कहा जाता है कि लड़ाई का मुहं हमेशा काला ही होता है। अगर समय रहते किसानों व कीटों के बीच दशकों से चली आ रही इस लड़ाई को खत्म नहीं किया गया तो इसके परिणाम ओर भी गंभीर होंगे। जिसका खामियाजा हमारी आने वाली पुश्तों को भुगतना पड़ेगा। इस झगड़े को निपटाने का बीड़ा जो खाप पंचायतों ने उठाया है वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। लेकिन दशकों से चले आ रहे इस झगड़े को निपटाना इतना आसान काम नहीं है। यह एक बड़ा ही पेचीदा मसला है। इसलिए खाप पंचायत प्रतिनिधियों को इस विवाद को सुलझाने के लिए अपना फैसला देने से पहले इस विवाद की गहराई तक जाने तथा कीटों की भाषा सीखने की जरुरत पड़ेगी। ताकि पंचायत इस मसले को हल करते वक्त निष्पक्ष फैसला दे सकें। यह सुझाव कीट कमांडो किसान मनबीर रेढू ने मंगलवार को निडाना में खाप पंचायत में पहुंचे विभिन्न खाप पंचायत प्रतिनिधियों के सामने रखा। खाप पंचायत की तीसरी बैठक में अखिल भारतीय जाट महासभा  व मान खाप के प्रधान ओमप्रकाश मान, पूनिया खाप के प्रतिनिधि दलीप सिंह पूनिया, सांगवान खाप प्रतिनिधि कटार सिंह सांगवान, जाटू खाप चौरासी के प्रतिनिधि राजेश घनघस तथा सतरोल खाप प्रतिनिधि धूप सिंह खर्ब विशेष तौर पर मौजूद थे। पंचायत में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों ने कीटों की भाषा सीखने के लिए नरमा के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ गहन मंथन किया।
 पाठशाला में बही-खाता तैयार करते किसान।

पौधों के पत्ते काटते खाप प्रतिनिधि।
पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि आज लोगों में जो खून की कमी के मामले सामने आ रहे हैं उसका मुख्य कारण हमारा खान-पान का जहरीला होना है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण आज हमारा खान-पान पूरी तरह से जहरीला हो चुका है। अगर यही परिस्थितियां रही तो हमारी आने वाली पीढि़यों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। डा. दलाल ने कहा कि किसान कीटों को मारने के लिए जब कीटनाशकों का स्प्रे करता है तो उसका सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा ही कीटों पड़ता है, बाकी 99 प्रतिशत हिस्सा हवा, पानी व जमीन में घूल जाता है। कीटों के पत्ते खाने या रस चूसने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि फसल के उत्पादन बढ़ाने में तो कीटों की अहम भूमिका होती है। क्योंकि कीटों का परागरन में विशेष योगदान होता है। फसल के उत्पादन का मुख्य कारण खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या होना है। डा. दलाल ने मासाहारी मक्खियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि दैत्य मक्खी उड़ते हुए कीटों को खाती है और अपने वजन से ज्यादा मास खाने वाली यह दुनिया की एकमात्र मक्खी है। हमारे किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से जानते हैं। तुलसा मक्खी चूरड़े, हरातेले को खाती है और जब इसे भोजन नहीं मिलता है तो यह खुद के वंश को भी खा जाती है। डायन मक्खी उंचाई पर बैठकर शिकार करती है तथा शिकार को लुंज कर उसका खून पीती है। सिरफोड़ मक्खी कीटों को उछाल-उछाल कर खाती है। इसके अलावा टिकड़ो मक्खी सुंडी पर अपने अंडे देती है तथा अंडों में से बच्चे निकलने के बाद टिकड़ो मक्खी के बच्चे सुंडी को अपना भोजन बनाते हैं। डा. कमल सैनी ने कहा कि इन 20 वर्षों में कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। अकेले हिंदुस्तान में लगभग 40 हजार करोड़ के कीट रसायनों, लगभग 50 हजार करोड़ के खरपतवार नाशकों तथा लगभग 30 हजार करोड़ बीमारी, फफुंद व जीवाणु नाशक रसायनों का कारोबार होता है। इस कारोबार से होने वाली आमदनी का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा विदेशों में जा रहा है। सैनी ने राजपुरा भेंण का उदहारण देते हुए कहा कि इस गांव के अड्डे पर कीटनाशक बिक्री की चार दुकानें हैं, जिनका साला का चार करोड़ का कारोबार है और इसमें से अकेले तीन करोड़ के कीटनाशक राजपुरा भेंण के किसान खरीदते हैं।

कैंसर के मरीजों पर जताई चिंता 

पाठशाला में पहुंचे किसानों ने बढ़ते कैंसर के मरीजों की संख्या पर चर्चा की। चाबरी निवासी सुरेश ने कहा कि उनके गांव में 8 लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बन चुके हैं। ललीतखेड़ा निवासी रामदेवा ने बताया उनके गांव में कैंसर के कारण एक परिवार की दो पीढि़यां खत्म हो चुकी हैं। लाडवा (हिसार) से आए एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 25, अलेवा निवासी जोगेंद्र ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के 10 लोग, निडानी में 9, ईगराह में 11 तथा सिवाहा निवासी एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 7 लोग मौत के मुहं में समा चुके हैं।

सवाल का निकाला तोड़

रणबीर मलिक ने गत सप्ताह पंचायत के सामने अपना सवाल रखा था कि पौधे रंग-बिरंगे फूलों से श्रंगार क्यों करते हैं। इन्हें श्रंगार की क्या आवश्यकता है। इस मंगलवार को हुई पंचायत में किसानों ने रणबीर मलिक के सवाल का जवाब देते हुए बताया कि पौधे कीटों को अपनी ओर आकृषित करने के लिए रंग-बिरंगे फूलों का श्रंगार करते हैं। अगर कीट फूल के पत्तों को खा लेते हैं तो उससे पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि पत्तों का काम तो   केवल कीटों को आकर्षित करना है। कीट फसल में परागन की भूमिका निभाते हैं। इसलिए पौधे कीटों को आकर्षित करने के लिए फूलों का श्रंगार करते हैं।

जाट महासभा प्रधान को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान

दुसरे खाप प्रतिनिधिओं  को भी लांगे पाठशाला में 

आज 25 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण कैंसर है और कैंसर का कारण पेस्टीसाइड का बढ़ता प्रयोग है। खाप पंचायत के सामने निडाना के कीट मित्र किसानों ने इस विवाद को निपटाने की गुहार लगाई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पंचायत को इस झगड़े की गहराई तक जाकर कीटों की भाषा सीखने की जरुरत है। इसलिए पंचायत के प्रतिनिधि बारी-बारी किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर इनकी भाषा सीख रहे हैं। अगली बार वे भिवानी से 84 श्योराण खाप व तोशाम से फौगाट खाप सहित 6 खापों के प्रतिनिधियों को यहां लेकर आएंगे।
ओमप्रकाश मान, प्रधान
अखिल भारतीय जाट महासभा






खुले पड़े मौत के बोरवेल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
अभी हाल ही में गुड़गांव में बोरवले में फंसने के कारण हुई 5 वर्षीय माही की मौत ने भले ही हर किसी की आंखें खोल दी हों , लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी जिला प्रशासन की नींद नहीं टूट रही है। इससे यह बात साफ हो रही है कि जिला प्रशासन ने माही की मौत से भी कोई सबक नहीं लिया है। सरकार द्वारा खुले बोरवेलों को बंद करने के आदेशों के बाद  जिला प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। शायद प्रशासन को अभी और बच्चों को भी प्रिंस और माही बनने का इंतजार है। इसलिए तो जिला प्रशासन ने जिले में खुले बोरवेलों को बंद करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। शायद प्रशासनिक अधिकारियों को नरवाना के नेहरु पार्क में खुले बोरवेल व सीवरेज के मेनहाल दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। पार्क में खुले पड़े ये बोरवेल व मेनहाल कभी भी किसी बड़े हादसे को अंजाम दे सकते हैं। शहर के हजारों लोग हर रोज सुबह-शाम यहां अपने बच्चों के साथ घूमने के लिए आते हैं। जिस कारण यहां जरा सी लापरवाही दोबारा फिर गुड़गांव या अंबाला के हादसे को ताजा कर सकती है। सार्वजनिक स्थान पर खुले पडे इस बोरवेल व मेनहाल ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
देश में खुले बोरवेल के कारण हो रहे हादसों से प्रशासन सबक नही ले रहा। पिछले दिनों गुड़गांव में बोरवेल में गिरने से 5 वर्षीय माही की मौत के बाद तो प्रदेश सरकार ने खुले पड़े बोरवेलों को बंद करने के आदेश जारी किए थे। खुले बोरवेलों को बंद करने के साथ-साथ सरकार ने खुले बोरवेल की जानकारी देने वाले को ईनाम तक देने की भी घोषणा की थी। इतना ही नहीं बिना अनुमति के बोरवले खोदने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करने के आदेश जारी किए गए थे। लेकिन सरकार के आदेशों के बावजूद भी नरवाना के नेहरू पार्क में खुला बोरवेल व सीवरेज का खुला मेनहाल कभी भी अंबाला व गुड़गांव के हादसे को दोहरा सकता है। यहां के अधिकारियों पर तो जब सैईयां भैये कोतवाल तो डर काहे का वाली कहावत स्टीक बैठ रही है। क्योंकि नरवाना का पुराना वाटर वर्कस व नेहरू पार्क एक साथ लगते हैं और जिसके रख-रखाव की जिम्मेवारी खुद जन स्वास्थ्य विभाग की है। शहर का एकमात्र पार्क होने के कारण यहां पर सुबह-शाम शहर से सैकड़ों की संख्या में नन्हे-मुन्ने बच्चे अपने माता-पिता के साथ सैर करने के लिए आते हैं तथा पार्क में आकर मौज-मौस्ती करते हैं। ऐसे में पार्क में खुले बोरवेल व मेनहोल किसी बड़े हादसे को निमंत्रण दे सकते हैं। शायद अधिकारियों को इस बात का भी अंदाजा नहीं कि उनकी जरा सी लापरवाही किसी माता-पिता के लिए उम्र भर की सजा बन सकती है।

उनकी जानकारी में नहीं है सूचना

इस बारे में जब जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यकारी अभियंता ऐके पाहवा से बातचीत की गई तो उनका वही रटा-रटाया जवाब मिला कि इसके बारे में उनको जानकारी नही है। यह मामला अभी उनकी जानकारी में आया है। खुले पड़े इस बोरवेल व सीवरेज के मेनहाल को तुरंत बंद करवा दिया जाएगा।

नेहरू पार्क में खुला छोड़ा गया बोरवेल

 नेहरू पार्क में खुला छोड़ा गया सीवरेज का खुला मेन हॉल।

बिना सुविधाओं के टोल वसूल रही मोबाइल कंपनियां

किसानों को नहीं मिल पा रही किसान कॉल सेंटर की फ्री हैल्प लाइन सुविधा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
इसे ट्राई की लापरवाही कहें या मोबाइल कंपनियों की दादागीरी जिसके चलते किसानों को ‘किसान हैल्प लाइन’ सुविधा का लाभ  नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा घर बैठे-बिठाए ही किसानों की समस्या के निदान के लिए 2007 में किसान हैल्प लाइन सुविधा शुरू की गई थी। किसान मोबाइल के माध्यम से किसान कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों के सामने अपनी समस्या रखकर उसका निदान करवा सकें इसके लिए सरकार द्वारा 1551 टोल फ्री नंबर जारी किया गया। अधिक से अधिक किसान इस सुविधा का लाभ ले सकें इसके लिए सरकार द्वारा प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे। लेकिन ट्राई (टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी आफ  इंडिया) की सुस्ती के चलते किसान हैल्प लाइन की इस सुविधा पर प्राइवेट मोबाइल कंपनियों की लापरवाही का ग्रहण लग गया। हालांकि प्राइवेट मोबाइल कंपनियां इन सेवाओं के बदले अपने उपभोक्ताओं से कॉल रेट के माध्यम से कुछ हिस्सा वसूलती हैं। लेकिन मोबाइल कंपनियां द्वारा इस सुविधा को बंद कर सरकार व उपभोक्ता दोनों को चूना लगाया जा रहा है।
भले ही सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक रुप से सुदृढ़ करने के लिए अनेकों योजनाएं क्रियविंत कर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हों, लेकिन वास्तव में अगर देखा जाए तो सरकार द्वारा शुरू की गई किसान हितैषी योजनाएं किसानों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। एक ऐसी ही किसान हितेषी योजना केंद्र सरकार द्वारा 2007 में ‘किसान हैल्प लाइन’ के नाम से शुरू की गई थी। इसके लिए 1551 नंबर निर्धारित किया गया था। सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसान कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों की सहायता से किसानों की समस्याओं का निदान करवाना था। इस योजना के तहत किसान घर बैठे-बिठाए ही मोबाइल के माध्यम से कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क कर उनके सामने कृषि संबंधी अपनी समस्याएं रखकर उनका समाधान जान सकते थे। अधिक से अधिक किसानों तक इस योजना को पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा इसका खूब प्रचार-प्रसार किया गया था। इसके प्रचार-प्रसार पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे। सभी  नेटवर्कों पर किसानों को यह सुविधा मिल सके इसके लिए सरकार ने ट्राई के माध्यम से सभी प्राइवेट मोबाइल कंपनियों के साथ टाईअप किया गया था। ट्राई द्वारा तय किए गए निमयों के अनुसार मोबाइल कंपनियां इस सुविधा के बदले अपने उपभोक्ताओं से कॉल रेट के माध्यम से कुछ हिस्सा वसूल सकती हैं। शुरूआत में तो सभी नेटवर्क पर ये सुविधा ठीक-ठाक चली, लेकिन बाद में ट्राई के सुस्त रवैये के चलते सभी मोबाइल कंपनियों ने इस सुविधा पर पर्दा डालना शुरू कर दिया। इस प्रकार मोबाइल कंपनियों की लापरवाही के चलते यह सुविधा अब पूरी तरह से ठप हो चुकी है। किसी भी प्राइवेट मोबाइल कंपनी के नेटवर्क से हैल्प लाइन के टोल फ्री नंबर 1551 पर कॉल नहीं हो पा रही है। प्राइवेट मोबाइल कंपनियां खुलेआम ट्राई के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। लेकिन इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। इस प्रकार मोबाइल कंपनियों की लापरवाही के कारण यह योजना आगाज के साथ ही दम तोड़ गई।

उपभोक्ताओं को लग रहा है चूना

सरकार द्वारा योजना शुरू करने के बाद ट्राई द्वारा तय किए गए नियमों के अनुसार मोबाइल कंपनियां किसान हैल्प लाइन की निशुल्क सेवाएं देने के बदले उपभक्ताओं से कॉल रेट में कुछ हिस्सा वसूल सकती थी। जिसके बाद प्राइवेट मोबाइल कंपनियों ने कॉल रेट में इस सुविधा के शुल्क को भी शामिल कर अपने कॉल रेट निर्धारित किए थे। लेकिन फिलहाल मोबाइल कंपनियों द्वारा यह सुविधा बंद किए जाने के कारण मोबाइल कंपनियां सरकार के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी मोटा चूना लगा रही हैं।      

बंद नहीं होने दी जाएंगी टोल फ्री सेवाएं

प्राइवेट मोबाइल कंपनियां किसान हैल्प लाइन की सुविधा को बंद कर खुलेआम ट्राई के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। इससे किसानों को भी काफी परेशानी हो रही है और सरकार द्वारा इस योजना पर खर्च किए गए करोड़ों रुपए भी बर्बाद हो रहे हैं। संघ इस सुविधा को दोबारा शुरू करवाने के लिए प्रयासरत है। इसके लिए उन्होंने ट्राई को इसकी शिकायत की है। संघ किसी भी कीमत पर टोल फ्री सुविधाओं को बंद नहीं होने देगा।
हितेष ढांडा, संस्थापक
हरियाणा तकनीकी संघ

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

‘लाडो’ को बचाने के लिए मैदान में आएंगी प्रदेश की पंचायतें

गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने के लिए गांव में बनाई जाएंगी कमेटियां

नरेंद्र कुंडू  
जींद। प्रदेश की ग्राम पंचायतें अब विकास कार्यों के साथ-साथ कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में भी खड़ी नजर आएंगी। अधिक से अधिक महिलाओं को इस मुहिम से जोड़ने के लिए सभी पंचायतों को हाईटैक पंचायत बीबीपुर की तर्ज पर महिला ग्राम सभा का आयोजन भी करना होगा। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने के लिए पंचायत द्वारा गांव में वार्ड स्तर पर कमेटियों का गठन भी किया जाएगा। इन कमेटियों की पूरी कार्रवाई पंचायत की निगरानी में चलेगी। पंचायत द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए की जाने वाली सभी कार्रवाइयों को पंचायत द्वारा अपने कारवाही रजिस्टर में कलमबद्ध करना होगा। प्रदेश में इस मुहिम को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव ने प्रदेश के पंचायती राज विभाग के वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव को पत्र जारी कर जल्द से जल्द इस मुहिम पर काम शुरू करने के सख्त निर्देश जारी किए हैं।
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में शुरू की गई लड़ाई ने अब युद्ध का रुप धारण कर लिया है। गौरतलब है कि बीबीपुर पंचायत की उपलब्धियों को देखते हुए पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. ऋषिकेश पांडा ने 29 मई को बीबीपुर गांव का दौरा किया था। यहां उन्होंने महिलाओं के समक्ष पंचायत में अपनी भागीदारी करने तथा महिला ग्राम सभा की बैठक करने की बात कही थी। अतिरिक्त सचिव के दिशा-निर्देशों पर गांव के सरपंच सुनील जागलान ने 18 जून को गांव में पहली महिला ग्राम सभा का आयोजन करवाया था। महिला ग्राम सभा का मुख्य एजेंडा कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ महिलाओं को जोड़ना था। इस ग्राम सभा में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सबसे पहले गर्भवती महिलाओं पर कड़ी नजर रखना था। जिसके लिए पंचायत ने गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने तथा उनका पंजीकरण करने के लिए गांव में वार्ड स्तर पर कमेटियों का गठन किया था। बीबीपुर पंचायत द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद यह मुद्दा पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था। जिस पर पंचायती राज मंत्रालय ने भी गहन मंथन किया था। अब पंचायती राज मंत्रालय ने पूरे हरियाणा प्रदेश की ग्राम पंचायतों को आईटी विलेज बीबीपुर के नकशे कदम पर चलाने के निर्देश दिए हैं। पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. ऋषिकेश पांडा ने प्रदेश के पंचायती राज विभाग के वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव को पत्र लिखकर कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पंचायतों की मुख्य भूमिका निभाने की जिम्मेदारी देने के लिए कहा है। इसके तहत पंचायतें अपने गांवों में महिला ग्राम सभा का आयोजन कर अधिक से अधिक महिलाओं को इस मुहिम में जोड़ने का काम करेंगी। इसके बाद ये महिलाएं गांवों में वार्ड स्तर पर कमेटियां बनाकर गर्भवती महिलाओं पर नजर रखेंगी। कमेटियों द्वारा पंचायत को दी गई रिपोर्ट को पंचायत को अपने कारवाही रजिस्टर में दर्ज करना इसका पूरा रिकार्ड तैयार करना होगा।

भविष्य में सकारात्मक परिणाम आएंगे सामने

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पंचायती राज मंत्रालय द्वारा जो निर्णय लिया गया है वह काफी सराहनीय है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए ग्राम पंचायतों का अहम योगदान रहेगा। अब तक यह मुहिम केवल कागजों में ही चल रही थी, लेकिन पंचायती राज मंत्रालय के इस निर्णय के बाद यह मुहिम वास्तव में धरातल पर शुरू हो सकेगी। भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

‘पाठशाला’ में पढ़ रही कीड़ों की पढ़ाई

खेती के औजारों की जगह हाथ में होते हैं कॉपी, पैन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सुबह के आठ बजे थे नजारा था गोहाना रोड पर स्थित ललीतखेड़ा गांव के पास का। कुछ महिलाएं सिर पर पानी का मटका लिए पूरे उत्साह के साथ गीत गुणगुनाती खेतों की तरफ जा रही थी। गीत के बोल थे ‘किड़यां का कट रहया चाला ऐ मैंन तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैंन तेरी सूं’ और इन महिलाओं के हाथों में खेती के औजारों की जगह थे कॉपी, पैन। यह नजारा वाकई में चौकाने वाला था। ये महिलाएं खेत में खेती के काम के लिए नहीं बल्कि कीटों की पढ़ाई पढ़ने के लिए जा रही थी। इन महिलाओं को कीट ज्ञान देने का जिम्मा उठाया है निडाना गांव की महिला कीट पाठशाला की मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने। कीटों की पहचान में माहरत हासिल करने के बाद अब इन महिलाओं ने ललीतखेड़ा गांव की तरफ अपनी टीम का रुख किया है। इन दिनों कीट पाठशाला की ये मास्टरनियां ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं को फसल में पाए जाने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर उत्पादन बढ़ाने के गुर सीखा रही हैं। ललीतखेड़ा की महिला किसान पूनम मलिक के खेत को पाठशाला के लिए चुना गया है। सप्ताह के हर बुधवार को पूनम मलिक के खेत पर महिला किसान पाठशाला का आयोजन किया जाता है।

कीटों के साथ-साथ पढ़ाया जाता है अनुशासन का पाठ

महिला किसान पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि इस पाठशाला में कीटों के पाठ के साथ-साथ महिलाओं को अनुशासन का पाठ भी पढ़ाया जाता है। ताकि सभी महिलाएं समय पर खेत में पहुंच सकें और उनकी दिनचर्या न डगमगाए। बुधवार को जब ललीतखेड़ा की यशवंती पाठशाला में लेट पहुंची तो मास्टर ट्रेनर अंग्रेजों ने लेट आने पर उसकी खूब खिंचाई करते हुए उससे लेट आने का कारण पूछा। अंग्रेजो के सवाल का जवाब देते हुए यशवंती ने बताया कि जब वह सुबह आठ बजे घर का कामकाज निपटाकर पाठशाला में आने के लिए चली तो घर पर कुछ मेहमान आ गए। मेहमानों की आवभगत में उसे पाठशाला में आने में देर हो गई। 

कीटों की भी होती खाप पंचायत

बराह कलां बारहा प्रधान कुलदीप ढांडा जब महिला किसान पाठशाला में पहुंचे तो पाठशाला की प्रशिक्षु शीला ने कहा कि ढांडा साहब खाप पंचायत सिर्फ मानस-मानसों की नहीं किड़यां की भी होवा सै। देखो पिछली बार तो दूसरे हथजोड़े ने आपका स्वागत किया था और इस बार कीटों की खाप के प्रतिनिधि दूसरा हथजोड़ा आपके स्वागत के लिए आया है।

पैदल ही तय करती हैं तीन किलोमीटर का सफर

निडाना गांव की मास्टर ट्रेनर महिलाओं में कीट ज्ञान की अलख जगाने का बहुत चाव है। इसलिए लिए तो वो निडाना से ललीतखेड़ा तक आने के लिए किसी व्हीकल का भी सहारा नहीं लेती हैं। झुलसा देने वाली इस गर्मी में वो निडाना से ललीतखेड़ा तक के तीन किलोमीटर के सफर को पैदल ही तय कर लेती हैं। इस सफर के बाद उन्हें घर का कामकाज भी निपटाना पड़ता है।

कीटों पर तैयार किए हैं गीत

 पाठशाला में बही-खाते में कीटों की संख्या दर्ज करवाती महिला।

 कांग्रेस घास के पौधे पर मिलीबग का खात्मा करता मासाहारी कीट अंगीरा।
कीटों की ये मास्टरनी केवल अध्यापन का कार्य ही नहीं करती। अध्यापन के साथ-साथ ये महिलाएं लेखक व गीतकार की भूमिका भी निभाती हैं। अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए इन महिलाओं ने कीटों के पूर जीवन चक्र की जानकारी जुटाकर उनपर गीतों की रचना भी की हैं। जिनमें प्रमुख गीत हैं किड़यां का कट रहया चालाए ऐ मैने तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं। म्हारी पाठशाला में आईए हो हो नंनदी के बीरा तैने न्यू तैने न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा। मैं बिटल हूं मैं किटल तुम समझो मेरी महता इत्यादि।

‘कोई समझाए इन किसानों को क्यों मार रहे बेजुबानों को’


नरेंद्र कुंडू
जींद।
किसानों व कीटों के बीच छिड़ी इस जंग ने खाप पंचायतों को भी असमंजश में डाल दिया है। बड़े-बडे विवादों को चुटकियों में निपटाने के लिए मशहूर हरियाणा की खाप पंचायतों के लिए यह मशला अब प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। क्योंकि प्रदेश ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के किसानों व पंचायतों की नजर अब हरियाणा की खाप पंचायतों पर टिक गई हैं। 18 पंचायतों के बाद 19वीं पंचायत में खाप के प्रतिनिधि जो फैसला सुनाएंगे वह कोई मामूली नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक फैसला होगा और उस फैसले पर ही हमारी आने वाली पीढि़यों की जिंदगी की नींव रखी जाएगी। इस झगड़े को निटवाने तथा अपने वंश को बचाने के लिए खाप पंचायत की शरण में पहुंचे जीव प्रणियों को अब प्रदेश की खाप पंचायत से बड़ी उम्मीद है। मंगलवार को निडाना में हुई सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत की बैठक में कीट मित्र किसानों ने खाप के चौधरियों के समक्ष आवाज उठाते हुए कहा कि ‘कोई समझाए इन किसानों को क्यों मार रहे बेजुबानों को’। पंचायत के समक्ष उठे इस स्लोगन ने पंचायत में मौजूद चौधरियों के दिलों पिंघला कर रख दिया। जिसके बाद पंचायत के प्रतिनिधियों के लिए भी बिना अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त किए वहां से निकला मुश्किल कर हो गया। आइए जाने क्या रही खाप प्रतिनिधियों की प्रतिक्रिया।

पंचायत के सामने पहली बार आया है ऐसा मामला

 नफे सिंह नैन
आज तक पंचायतों के सामने इस तरह का मामला नहीं आया है। पंचायत के सामने इस तरह का यह पहला मामला है।इस मुद्दे पर फैसला देने से पहले पंचायत को मामले को गं•ाीरता से लेते हुए इसकी तहत तक जाना होगा। किसी चौपाल या बैठक में बैठकर इस मुद्दे पर फैसला देना पंचायत के लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। इस मामले पर फैसला देने से पहले पंचायत को किसानों के बीच पहुंचकर इस झगड़े की असलियत को जानना होगा। 
नफे सिंह नैन, प्रधान
बिनैन खाप


 

 

काफी पेचीदा है मामला

सूबे सिंह गिल।



यहां आने से पहले उन्हें इसका बिल्कुल ही अहसास नहीं था कि यह झगड़ा वास्तव में इतना पेचीदा है। जब कीट हमारी फसल में किसी तरह का नुकसान ही नहीं करते हैं तो फिर में हम उन्हें बिना वजह क्यों मारने पर तुले हुए हैं। अगर किसान कीटों की पहचान कर लें तो उन्हें कीटनाशकों के लिए बाजार में भटकने की जरुरत नहीं पड़ेगी। 
सूबे सिंह गिल, प्रतिनिधि
समैन-बिठमड़ा खाप

  

 

क्यों पड़ रही है कीटों को मारने की जरुरत

 अमीर सिंह पूनिया
किसानों ने बताया कि कपास की फसल में 109 किस्म के शाकाहारी व मासाहारी कीट मौजूद होते हैं। जिसमें 27 किस्म के शाकाहारी व 82 किस्म के मासाहारी कीट  शामिल हैं। जब मासाहारी कीटों की संख्या शाकाहारी कीटों से ज्यादा है तो फिर किसानों को इन कीटों को मारने की जरुरत क्यों पड़ती है तथा कीटों व किसानों का झगड़ा किस बात पर है। इन सवालों के जवाब लिए बिना इस मुद्दे पर किसी प्रकार का फैसला नहीं दिया जा सकता।
अमीर सिंह पूनिया
पंचग्रामी प्रधान, खरक पूनिया

झगड़े निपटाने के लिए मशहूर हैं हरियाणा की पंचायतें

 कुलदीप ढांडा
मनुष्य का जीवन कीटों पर ही निर्भर करता है। प्राकृतिक ने सभी जीवों के लिए अलग-अलग नियम बनाए हैं, लेकिन इंसान अपने स्वार्थ के वशभूत होकर प्राकृतिक के निमयों को तोड़ रहा है। अगर किसान इसी तरह रासायनिक पदार्थों के प्रयोग पर जुटे रहे तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होंगे तथा फसल पैदा होनी बंद हो जाएगी। लखनऊ के नवाब का किस्सा सुनाते हुए ढांडा ने कहा कि हरियाणा की पंचायतें विवादों को निपटाने के लिए दूसरे प्रदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। इसलिए इस झगड़े का भी समाधान जरुर ढुंढ़ निकालेंगी।
कुलदीप ढांडा, प्रधान
बराह कलां बारहा
 

 

क्या है किसानों व कीटों की लड़ाई

खाप पंचायत के प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न देते किसान 
कीट कमांडो किसान रोशन ने बताया कि किसानों व कीटों की लड़ाई फसल की पैदावार को लेकर है। रोशन ने उदहारण देते हुए कहा कि पिछले वर्ष उसकी चार एकड़ में कपास के 8502 पौधे थे, प्रति एकड़ के हिसाब से उसके खेत में 2125 पौधे थे। 8502 पौधों से उसे 34 क्विंटल यानि 85 मण कपास की पैदावार मिली। प्रति एकड़ के हिसाब से उसे 21 से 22 मण की औसत पड़ी। रोशन ने कहा कि अगर किसान अपने खेत में सवा तीन बाई सवा तीन फुट पर कपास का पौधा लगाए तो एक एकड़ में 4100 से 4200 के करीब पौधे लगाए जा सकते हैं। जब उसे एक एकड़ में 2125 पौधों से 21 मण की औसत पड़ती है तो उसी एक एकड़ में दो गुणा पौधे लगने से पैदावार अपने आप ही बढ़ जाएगी। रोशन ने कहा कि पैदावार बढ़ाने के लिए कीटों को मारने की नहीं, बल्कि पौधों की संख्या को बढ़ाने की जरुरत है।

खाप चौधरियों ने किसानों के साथ की माथा-पच्ची


सर्व जातीय सर्व खाप की दूसरी बैठक संपन्न

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीटों व किसानों के बीच कई दशकों से चले आ रहे झगड़े में खाप पंचायत के हस्तक्षेप के बाद मामले ने एक अलग मोड़ ले लिया है। इस पेचीदा मसले को हल करने में खाप प्रतिनिधियों से किसी प्रकार का कोई गलत निर्णय न हो इसके लिए खाप के चौधरियों ने बारी-बारी से किसान खेत पाठशाला में पहुंच कर कीट मित्र किसानों के साथ माथा-पच्ची करनी शुरू कर दी है। क्योंकि यह कोई गांव का छोटा-मोटा विवाद नहीं है। यह झगड़ा तो उन दो पक्षों में है, जिसमें एक पक्ष में तर्क-वितर्क करने वाले किसान व दूसरे पक्ष में बेजुमान जीव हैं। कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों के आह्वान पर इस झगड़े को निपटाने उतरी खाप पंचायत की दूसरी बैठक मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में हुई। इस बैठक की अध्यक्षता बिनैन खाप के प्रधान नफे सिंह नैन ने की। बैठक में खरक पूनिया से पूनिया पंचग्रामी के प्रधान अमीर सिंह पूनिया, समैन-बिठमड़ा खाप के प्रतिनिधि व खाप प्रेस प्रवक्ता सूबे सिंह गिल तथा बरहा कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने भी विशेष तौर पर शिरकत की। सर्व जातीय सर्व खाप के प्रतिनिधियों ने किसान पाठशाला में पहुंचकर लगातार साढ़े चार घंटे इस मुद्दे पर गहन मंथन किया। इस दौरान मास्टर ट्रेनर किसानों ने खाप प्रतिनिधियों के समक्ष बेजुबान कीटों का पक्ष रखा।

पारा भी नहीं तोड़ पाया हौंसला

गर्मी के इस मौसम में जहां लोग 10 बजते ही घरों में दुबक जाते हैं, वहीं इतनी भयंकर गर्मी के बावजदू भी किसान खेतों में बैठकर कीटों की पढ़ाई करते नजर आए। 47 डिग्री का पारा भी किसानों के हौंसले को नहीं तोड़ पाया। किसानों ने झुलसा देने वाली इस गर्मी में खेत में बैठकर खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों के साथ बहर की।

पाठशाला बनी प्रयोगशाला

दशकों से चली आ रही इस लड़ाई में खाप पंचायत से फैसले में किसी प्रकार की चूक न हो इसके लिए कीट कमांडो किसानों ने किसान खेत पाठशाला को प्रयोगशाला बना दिया। शाकाहारी कीटों के पत्तों को खाने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क पड़ता है या नहीं इसको आजमाने के लिए किसानों ने एक फार्मुला अपनाया है। किसानों ने पंचायत में पहुंचे खाप के पांचों प्रतिनिधियों के हाथों खेत में खड़े कपास के पांच पौधों के प्रत्येक पत्ते का तीसरा हिस्सा कैंची से कटवा दिया। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि पत्ते काट कर फसल को जितना नुकसान उन्होंने किया है उतना नुकसान कोई कीट फसल में नहीं कर सकता। दलाल ने कहा कि फसल तैयार होने के बाद कटे हुए पत्तों वाले पौधों व दूसरे पौधों के उत्पादन की तुलान की जाएगी। अगर दोनों पौधों से बराबर का उत्पादन मिलता है तो इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि कीटों द्वारा अगर फसल के पत्तों को खा लिया जाए तो उससे उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

कौन-कौन से कीट थे फसल में मौजूद

खाप प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते डा. सुरेंद्र दलाल।

प्रयोग के लिए पत्तों को काटते पूनिया पंचग्रामी के प्रधान।
60 से 70 दिन की कपास की फसल में फिलहाल कौन-कौन से कीट मौजूद हैं इसकी पहचान करने के लिए किसानों के पांच ग्रुप बनाए गए। प्रत्येक ग्रुप के किसानों ने दस-दस पौधों पर मौजूद कीटों को बही-खाते में उतारा। इस दौरान किसानों ने फसल में सफेद मक्खी, चूरड़ा, डाकू बुगड़ा, क्राइसौपा, मकड़ी, मकड़ी, सलेटी भूँड, अंगीरा नामक कीट मौजूद थे। रणबीर मलिक ने बताया कि सफेद मक्खी, चूरड़ा व हरा तेला पत्तों से रस चुस कर तथा सलेटी भूँड पत्तों के किनारे खाकर अपना गुजारा करते हैं। डाकू बुगड़ा चूरड़ा का खून पी कर तथा क्राईसौपा शाकाहारी कीटों को खाकर अपनी वंशवृद्धि करता है। अंगीरा मिलीबग के पेट में अपने बच्चे पलवाता है और इस प्रक्रिया में मिलीबग का खत्मा हो जाता है। इस प्रकार शाकाहारी व मासाहारी कीटों की जीवन यापन की प्रक्रिया में किसान को लाभ मिल जाता है।

क्या करें किसान?

खाप पंचायत के प्रतिनिधियों ने जब डा. सुरेंद्र दलाल से पूछा कि जब तक किसानों को कीटों का ज्ञान नहीं होता, तब तक किसानों को फसल में किस प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। डा. दलाल ने कहा कि अगर फसल में किसानों को किसी प्रकार के नुकसान की आशंका नजर आए तो किसान जिंक, यूरिया व डीएपी का घोल तैयार कर उसका छिड़काव कर सकते हैं। डा. दलाल ने कहा कि आधा केजी जिंक, अढ़ाई केजी यूरिया व अढ़ाई केजी डीएपी का 100 केजी पानी में घोल तैयार कर फसल पर स्प्रे कर सकते हैं।
फोटो कैप्शन


मंगलवार, 3 जुलाई 2012

इंद्र देव की बेरुखी से धरतीपुत्रों के माथे पर बढ़ी चिंता की लकीरें

महंगे भाव का डीजल फूंक कर तपती धरती की प्यास बुझा रहे हैं किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
मानसून की बेरुखी ने धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरों को गहरा कर दिया है। धान का सीजन सिर पर है, लेकिन बढ़ते पारे ने किसानों की सांसें फुला दी हैं। भीषण लू के थपेड़ों में हर रोज किसानों की उम्मीद दम तोड़ रही हैं। गर्मी के मौसम की सबसे ज्यादा मार किसानों पर पड़ रही है। इंद्र देवता की बेरुखी के कारण किसानों को महंगे भाव का डीजल फूंक कर तपती धरती की प्यास बुझानी पड़ रही है। कृषि विभाग द्वारा इस बार एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का टारगेट निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी।
भीषण गर्मी से जहां जनजीवन प्रभावित हो गया है वहीं किसानों की फसल भी सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है। मानसून नहीं आने से खेती किसानी पूरी तरह बिखरने लगी है। इससे किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। बरसात न होने के कारण जहां किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है, वहीं किसानों की फसल भी खराब हो रही हैं। बारिश के लिए आसमान ताक रहे किसानों की धान की रोपाई अधर में लटकी हुई है। वहीं दलहन फसलों, ज्वार, बाजरे व कपास की फसलें भी बिना बारिश के चौपट हो रही हैं। भीषण गर्मी और उमस से परेशान लोगों को राहत की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। किसानों का कहना है कि बारिश में देरी से खरीफ  की आधी फसल तो बर्बाद होने के कगार पर पहुंच चुकी है। एक दो दिन में बारिश नहीं हुई तो धान की रोपाई संकट में पड़ जाएगी। किसान अपनी फसल को बचाने के लिए अब आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। इस बार जिले में कृषि विभाग द्वारा एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी। इसके अलावा जिले में इस बार किसानों द्वारा 60 हजार हैक्टेयर में कपास की बिजाई की गई है। किसानों का मानना है कि अगर मानसून में थोड़ी सी देरी ओर हुई तो धान की रोपाई का सीजन हाथ से निकल जाएगा और किसानों को मजबूरन दूसरी फसलों की बिजाई करनी पड़ेगी। 

पानी के स्रोत सूखे

गर्मी के कारण पानी का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। जिससे कई ट्यूबवेल भी सूखने लगे हैं। नदियों में भी पानी का स्तर लगातार कम होता जा रहा है। बढ़ते पारे के कारण जहां भू जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है, वहीं बिना बारिश के तालाब भी खाली होने लगे हैं। पानी के स्त्रोत सूखने के कारण पशुधन पर भी संकट मंडरा रहा है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार पेयजल संकट गहरा रहा है।

कब तक है बिजाई का सीजन

 बिना बारिश के सूखा पड़ा धान का खेत।
कृषि अधिकारियों के अनुसार 14 जून से धान की रोपाई का सीजन शुरू हो जाता है। 14 जून से पहले धान की रोपाई का कार्य पूर्ण रुप से प्रतिबंधित है। 14 जून के बाद पूरे जुलाई माह तक धान की रोपाई का कार्य चलता है। 20 जुलाई के बाद तो किसान केवल बासमती धान की रोपाई पर ही जोर देते हैं।

चिंतित न हों किसान

मानसून में देरी के कारण धान की रोपाई का कार्य थोड़ा लेट चल रहा है। लेकिन किसानों को किसी प्रकार की चिंता करने की जरुरत नहीं है। अगर मानसून थोड़ा लेट आता है तो फसल की पैदावार को कोई ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। अभी किसानों के पास धान की रोपाई के लिए काफी समय है। जुलाई के आखिरी सप्ताह तक किसान धान की रोपाई कर सकते हैं। कपास, ज्वार, सब्जियों की फसलों में किसान हल्का-हल्का पानी लगाकर फसल को नुकसान से बचा सकते हैं।
अनिल नरवाल, सहायक पौध संरक्षण अधिकारी
कृषि विभाग, जींद

.....चली आओ इस देश ‘लाडो’

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मैदान में आया खेल गांव निडानी का युवा मंडल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
बेटी पैदा होने पर भी अब घरों में थाली बजेगी। बैंड-बाजे के साथ धूमधाम से कुआं पूजन भी होगा। आईटी विलेज बीबीपुर की तर्ज पर अब खेल गांव निडानी का युवा मंडल भी 'लाडो' को बचाने के लिए मैदान में कूद पड़ा है। बेटा-बेटी के बीच के फासले को कम करने के लिए युवा मंडल के सदस्यों ने निर्णय लिया है कि जो भी परिवार गांव में लड़की के जन्म पर कुआ पूजन करेगा उसका सारा खर्च युवा संगठन उठाएगा। इसके अलावा युवा संगठन के सदस्य कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए ग्रामीणों को भी प्रेरित करेंगे।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जिले में लगातार सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। आईटी विलेज बीबीपुर की महिलाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ शंखनाद करने के बाद इस मुहिम में लगातार कड़ियां जुड़ने लगी हैं। बीबीपुर की महिलाओं के साथ-साथ जहां सर्व खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों ने भी कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के फैसले पर मोहर लगा दी है, वहीं अब खेल गांव निडानी के युवा मंडल के सदस्य भी बेटी बचाने के लिए आगे आए हैं। युवा मंडल के सदस्यों ने बेटा-बेटी के बीच की खाई को पाटने तथा बेटियों के प्रति संकीर्ण सोच रखने वाले लोगों की सोच को बदलने का बीड़ा उठाया है। अपनी इस मुहिम के तहत युवा मंडल के सदस्य लड़कों के जन्म पर होने वाले आयोजन की तर्ज पर लड़कियों के जन्म पर भी समारोह का आयोजन करवाएंगे। जो भी परिवार लड़की के जन्म पर कुआ पूजन करवाएगा, तो कुआ पूजन के दौरान बैंड-बाजे पर आने वाला सारा खर्च युवा मंडल उठाएगा। युवा मंडल के सदस्यों का मानना है कि इस मुहिम के बाद गांव में लोगों की सोच में परिर्वतन आएगा। लोग बेटा-बेटी के बीच के अंतर को भूलकर बेटी के जन्म पर भी समारोह का आयोजन कर खुशियां मनाएंगे। इसके अलावा युवा मंडल के सदस्य कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लोगों को जागरुक करने के लिए समय-समय पर गांव में कार्यक्रमों का आयोजन भी करवाएंगे। ताकि  सदियों से बेटियों के प्रति लोगों के दिमाग में बनी नकारात्मक तस्वीर को बदला जा सके। इसके लिए युवा मंडल के सदस्यों ने अपनी पूरी रणनीति तैयार कर ली है।

युवा संगठन ने शुरू की अनोखी पहल

बेटों की चाह रखने वाले लोगों की छोटी सोच के कारण आज प्रदेश में लिंगानुपात काफी गड़बड़ा गया है, जो कि समाज के लिए चिंता का विषय है। अगर समय रहते इस ओर कोई सकारात्मक कदम नहीं बढ़ाए गए तो भविष्य में इसके ओर भी गंभीर परिणाम सामने आएंगे। इसलिए युवा संगठन ने इस सामाजिक बुराई को मिटाने के लिए बेटी के जन्म पर भी समारोह का आयोजन करवाने का निर्णय लिया है। युवा संगठन द्वारा शुरू की गई यह पहल एक अनोखी पहल है। युवा संगठन द्वारा इस शुरू की गई इस पहल से लोगों की सोच में परिवर्तन आएगा साथ ही अन्य गांव के लोग व सामाजिक संगठन भी उनसे सीख ले सकेंगे।
सुरेश पूनिया, चेयरमैन
युवा मंडल, निडानी

रविवार, 1 जुलाई 2012

रसोई घर के निर्माण कार्य में हो रहा फर्जीवाड़ा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकारी स्कूलों में सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) द्वारा मिड-डे-मील योजना के तहत बनवाए जा रहे कीचन शैड कम स्टोरों का निर्माण सवालों के घेरे में है। एसएसए द्वारा कीचन शैड कम स्टोर के निर्माण के लिए हर स्कूल को एक लाख 36 हजार रुपए की ग्रांट उपलब्ध करवाई जा रही है। लेकिन अगर इनके निर्माण में प्रयोग होने वाले मैटीरियल के बाजार के रेटों पर नजर डाली जाए तो इस ग्रांट से इनका निर्माण किसी तरह भी संभव नहीं है। मैटीरियल के बाजार भाव को देखते हुए इनका निर्माण एक लाख 85 हजार रुपए से भी  ज्यादा में पूरा होता है। इससे यह साफ है कि स्कूलों में नियमों को ताक पर रखकर घटिया निर्माण सामग्री के दम पर रसोई घर खड़े किए जा रहे हैं। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी सबकुछ जानते हुए भी इस मामले में अनजान बने हुए हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की यह लापरवाही कभी भी नौनिहालों पर भारी पड़ सकती है।
सवालों के घेरे में अधिकारी
सरकारी स्कूलों में कीचन शैड कम स्टोर के निर्माण कार्य के लिए एसएसए द्वारा जारी की जा रही ग्रांट निर्माण के लिए प्रर्याप्त न होने के बावजूद भी निर्माण में फर्जीवाड़ा कर धड़ल्ले से इन बिल्डिंगों का निर्माण करवाए जा रहा है। निर्माण कार्य के लिए एसएसए द्वारा एक लाख 36 हजार की ग्रांट जारी की जाती है, लेकिन बाजार के रेटों पर नजर डाली जाए तो इनके निर्माण पर एक लाख 85 हजार से भी ज्यादा का खर्च बैठता है। इस प्रकार ग्रांट में 50 हजार की कमी होने के बावजूद भी बिल्डिंग का निर्माण करवाने से लोगों के जहन में सवाल उठने तो लाजिमी हैं। पहला सवाल यह कि अगर नियमों को ताक पर रखकर स्कूलों में रसोई घरों का निर्माण किया जा रहा है तो स्कूल प्रबंधन कमेटी व प्रशासनिक अधिकारी इस ओर से चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? दूसरा यह कि अगर इन अधिकारियों केपास कोई ऐसा फार्मूला है कि जिससे ये कम राशि खर्च कर अच्छी बिल्डिंग का निर्माण करवा रहे हैं तो फिर जिले में बन रही अन्य बिल्डिंगों का कार्य भी इन्हीं अधिकारियों को क्यों नहीं सौंपा जाता?

नौनिहालों के सिर पर मंडरा रही मौत

सरकारी स्कूलों में घटिया सामग्री के दम पर खड़े किए जा रहे रसोई घर कभी भी नौनिहालों के लिए यमदूत बन सकते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही की छांव में निर्माण कार्य में जुटे अधिकारियों द्वारा स्कूलों में बच्चों के लिए मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। घटिया सामग्री के बल पर खडे किए गए ये रसोई घर कभी भी  भर भरा कर गिर सकते हैं। इससे स्कूल में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है और फिर हादसे के बाद प्रशासनिक अधिकारियों के पास सिवाए जांच करवाने के लंबे-चौड़े दावे करने व कागज स्याह करने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। 
कीचन शैड कम स्टोर के निर्माण में प्रयोग होने वाले मैटीरियल की सूची 
मैटीरियल का नाम              लागत     बाजार का न्यूनतम मूल्य        कुल राशि 
  1. सीमेंट                   96 थैले        270 रुपए प्रति थैला           25920
  2. रेता                    500 घन फुट     19 रुपए प्रति फुट            9500
  3. पत्थर व र्इंट रोड़ी         200 घन फुट     14 रुपए प्रति फुट            2800   
  4. बजरी                  145 घन फुट     33 रुपए प्रति फुट             4785
  5. इंट प्रथम श्रेणी           12.400 नग      3700 प्रति नग              45880
  6. टाईल इंट               760 र्इंटें        4 रुपए प्रति र्इंट             3040
  7. कुल सरिया              5.27 क्विंटल    4200 रुपए प्रति क्विंटल         22134
  8. क्रेसर                  100 फुट       37 रुपए प्रति फुट              3700
  9. सफेदी                  -----           ----------              2000               
  10. खिड़की व दरवाजे          ------        -----------               33600
  11. लेबर                   ------           -----------            30000
  12. बिजली का सामान        -------           -----------            2000         
कुल जोड़                                                           185,359
नोट:- इस सूची में  पॉलीथिन, भूसा व शिलान्यास पत्थर की कीमत नहीं जोड़ी गई है।

इसी ग्रांट से चलाना पड़ता है काम

कीचन शैड बनाने के लिए जो ग्रांट जारी की जा रही है, वह लागत के अनुमान से काफी कम है। लेकिन क्या करें इतनी ही ग्रांट से काम चलाना पड़ता है। जिले में लगभग सभी स्कूलों में कीचन शैड का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। कुछ ही ऐसे स्कूल बचे हैं जिनमें अभी तक कीचन शैड का निर्माण नहीं हो पाया है। जल्द ही बचे हुए स्कूलों में भी कीचन शैड का निर्माण करवा दिया जाएगा।
जागेराम, एसडीओ
सर्व शिक्षा अभियान, जींद


निडाना की गौरियों ने भी उठाया खेती को जहरमुक्त करने का बीड़ा

पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं निडाना की महिलाएं

नरेंद्र कुंडू
जींद।
निडाना गांव के गौरे से पेस्टीसाइड के विरोध में उठी इस आंधी को रफ्तार देने में निडाना गांव की गौरियां भी पुरुषों के बाराबर अपनी भागीदारी दर्ज करवा रही हैं। निडाना गांव की महिलाएं ओर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। कीट मित्र किसानों ने जहां इस मुहिम को सफल बनाने के लिए खाप पंचायतों का दामन थाम है, वहीं गांव की महिलाओं ने भी इस मुहिम पर रंग चढ़ाने के लिए आस-पास के गांवों की महिलाओं को जागरुक करने का बीड़ा उठाया है। अक्षर ज्ञान के अभाव का रोड़ा भी इन महिलाओं की रफ्तार को कम नहीं कर पा रहा है। पुरुषों के साथ ही इन महिलाओं ने भी इस लड़ाई में शंखनाद कर दिया है। महिलाएं घंटों कड़ी धूप के बीच खेतों में बैठकर लैंस की सहायता से कीटों की पहचान में जुटी रहती हैं। बुधवार को भी महिलाओं ने ललितखेड़ा गांव में पूनम मलिक के खेत में महिला खेत पाठशाला का आयोजन किया। इस दौरान निडाना गांव की मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने ललितखेड़ा गांव की महिलाओं को कीटों का व्यवहारिक ज्ञान दिया।
मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो देवी, गीता मलिक  ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि फसल में मासाहारी व शाकाहारी दो प्रकार के कीट होते हैं। शाकाहारी कीट फसल के पत्तों से रस चूसकर या फसल के पत्तों को खाकर अपना जीवन चक्र चलाते हैं। मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों को अपना भेजन बनाते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं। मासाहारी व शाकाहारी कीटों की इस जीवन चक्र की प्रक्रिया में किसानों को अपने आप ही लाभ  पहुंचता है। कमलेश, मीना मलिक, सुदेश मलिक ने कहा कि अगर किसान फसल में मौजूद मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर उनके जीवन चक्र के बारे में ज्ञान अर्जित कर ले तो किसान को कभी भी  फसल में पेस्टीसाइड के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। खेत पाठशाला के दौरान मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने लैंस की सहायता से अन्य महिलाओं को भी कीटों की पहचान करवाई। इस दौरान महिलाओं ने फसल में शाकाहारी कीटों में सफेद मक्खी, हरा तेला, बुगड़ा तथा मासाहारी कीटों में क्राइसोपा के बच्चे, मकड़ी पदोकड़ी बिटल व दो किस्म के हथजोड़े देखे। महिलाओं को ट्रेंड करने के लिए महिलाओं के 5 ग्रुप तैयार किए गए। प्रत्येक ग्रुप में चार अनट्रेंड व एक मास्टर ट्रेनर महिलाओं को शामिल किया गया। इस अवसर पर महिलाओं ने मासाहारी व शाकाहारी कीटों पर तैयार किए गए गीत सुनाकर सबका मन मोह लिया। महिला खेत पाठशाला में मौजूद बराह कलां बारहा खाप के प्रधान कुलदीप ढाडा ने महिलाओं के गीतों पर खुश होकर सभी महिलाओं को 100-100 रुपए पुरस्कार राशि दी। महिलाओं ने लगातार साढ़े चार घंटे कीटों पर गहन मंथन किया।

बही-खात किया जा रहा है तैयार

 कपास के पौधों पर मौजूद कीटों की पहचान करती महिलाएं।

 महिला खेत पाठशाला में महिलाओं को कीटों की जानकारी देती मास्टर ट्रेनर।
कीट प्रबंधन की मास्टर ट्रेनर महिलाओं द्वारा कीटनाशक रहित खेती की इस मुहिम को सफल बनाने तथा कीटों का पूरा रिकार्ड तैयार करने के लिए एक बही-खाता तैयार किया जा रहा है। बही-खाते में पूरी जानकारी दर्ज करने के लिए सभी महिलाओं को अगले सप्ताह महिला खेत पाठशाला में आने से पहले अपने-अपने खेतों का पूरा निरीक्षण करने तथा  कपास की फसल में मौजूद मासाहारी व शाकाहारी कीटों का पूरा रिकार्ड तैयार करने के लिए प्रेरित किया गया, ताकि फसल में आने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों का पूरा डाटा तैयार किया जा सके।



कीट व किसानों के झगड़े को निपटाने के लिए पंचायत के प्रतिनिधियों ने किया मंथन

 सर्व खाप पंचायत की महिला विंग की प्रधान पंचायत में अपने विचार रखते हुए।
पंचायत प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न •ोंट करते कीट साक्षरता केंद्र के किसान।

नरेंद्र कुंडू
जींद। आप ने खाप पंचायतों को सामाजिक तानेबाने को बनाए रखने तथा आपसी भाईचारे को कामय रखने के लिए लोगों के बड़े-बड़े झगड़े निपटाते देखा होगा, लेकिन अब खाप पंचायतें पिछले 40-45 वर्षों से कीटों व किसानों के बीच चले आ रहे झगड़े को निपटाने में अपना सहयोग करेंगी। निडाना गांव के स्थित कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों के आह्वान पर मंगलवार को निडाना गांव के जोगेंद्र मलिक के खेत पर एक पंचायत का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता दाड़न खाप के प्रधान देवा सिंह ने की तथा पंचायत के सही संचालन की जिम्मेदारी बराह कलां बाहरा के प्रधान कुलदीप सिंह ढांडा को सौंपी गई। पंचायत में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि कीटों व किसानों के इस झगड़े को निपटाने के लिए सप्ताह के हर मंगलवार को सर्व खाप पंचायत की ओर से एक पंचायत का आयोजन किया जाएगा। 18 बैठकों के बाद 19वीं बैठक में सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत बुलाकर इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाएंगे। कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने बैठक में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों का हथजोड़े (प्रेइंगमेंटीस) कीट का स्मृति चिह्न देकर स्वागत किया।
सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत द्वारा आयोजित पंचायत में कीटों की तरफ से पक्ष रखते हुए कीट मित्र किसान रणबीर मलिक ने कहा कि आज किसानों द्वारा फसल में कीटनाशकों के अंधाधूंध प्रयोग के कारण दूध, पानी, सब्जी व अन्य खाद्य पदार्थों सहित सब कुछ जहरीला होता जा रहा है। मलिक ने कहा कि किसान ज्ञान के अभाव के कारण फसल में मौजूद कीटों को ही अपना दुश्मन समझते हैं, जबकि वास्तविकता इसके विपरित है। मलिक ने कहा कि फसल में शाकाहारी व मासाहारी दो प्रकार के कीट होते हैं। मलिक ने कहा कि 2001 में जब बीटी कपास में अमेरिकन सुंडी आई तो कोई भी कीटनाशक उस पर काबू नहीं पा सका। उन्होंने कहा कि खुद कृषि वैज्ञानिक यह मानते हैं कि कीटनाशकों के प्रयोग से सिर्फ सात प्रतिशत ही रिकवरी होती है । लेकिन अब वैज्ञानिकों द्वारा किए गए सोध से यह साबित हो चुका है कि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से हमारा खानपान तो जहरीला हुआ ही है साथ-साथ फसलों में 95 प्रतिशत नुकसान भी बढ़ा है। मलिक ने कहा कि वे खुद पिछले सात साल से देसी कपास की खेती कर रहे हैं और इन सात सालों के दौरान उन्होंने एक बार भी अपनी फसल में कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। इगराह से आए मनबीर रेढू ने कहा कि वह पिछले 5 वर्षों से कीटनाशक रहित खेती कर रहा है और उसे हर बार अच्छा उत्पादन मिल रहा है। कीट साक्षरता केंद्र के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों के रिकार्ड के अनुसार इस धरती पर 14 लाख किस्म के कीट हैं। जिनमें तीन लाख 8 हजार शाकाहारी व साढ़े चार लाख किस्म के मासाहारी कीट हैं। इन कीटों के पालन के लिए तीन लाख 65 हजार किस्म के पौधे धरती पर मौजूद हैं। दलाल ने कहा कि एक फसल के सीजन के दौरान देश में 1800 करोड़ रुपए के कीटनाशकों की बिक्री होती है और अकेले हरियाणा प्रदेश में 100 से ज्यादा किसानों की मौत कीटनाशक के छीड़काव के दौरान हो रही है। किसानों का पक्ष सुनने के बाद सर्व खाप पंचायत के सभी प्रतिनिधि उनसे सहमत नजर आए और उन्होंने लगातार 18 पंचायतों का आयोजन करने की मांग पर सहमती जताई। इस अवसर पर पंचायत में बैठक में कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला, दाड़न खाप उचाना के प्रधान देवा सिंह, बराह कलां बाहरा के प्रधान कुलदीप सिंह ढांडा, कुंडू खाप के प्रधान महावीर सिंह कुंडू, नरवाना खाप के प्रतिनिधि अमृतलाल चौपड़ा, ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह ढुल, चहल खाप के संरक्षक दलीप सिंह चहल, नगर पालिक उचाना के प्रधान फूलू राम तथा सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत की महिला विंग की प्रधान प्रो. संतोष दहिया ने महापंचायत की तरफ से प्रतिनिधित्व किया।
कीट बई खाता किया जा रहा है तैयार
कीटों व किसानों के इस झगड़े में पंचायत सही न्याय कर सके इसके लिए कीट साक्षारता केंद्र के किसानों द्वारा पूरी योजना तैयार की गई है। पंचायत के समक्ष कीटों के पक्ष में सभी साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए किसानों के 5 ग्रुप बनाए गए हैं। कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनर को प्रत्येक ग्रुप का लीडर बनाया गया है। प्रत्येक ग्रुप 10-10 पौधों की गिनती करता है और एक पौधे पर मौजूद सभी पत्तों व उन पर मौजूद कीटों की पहचान कर उनका आंकड़ा तैयार करता है। सभी ग्रुपों द्वारा गिनती की जाने के बाद उनका अनुपात निकाला कर कीट बई खाते में दर्ज किया जाता है। मंगलवार को तैयार की गई रिपोर्ट में किसानों ने कपास की फसल में मौजूद रस चुसने वाली सफेद मक्खी 1.3 अनुपात, हरा तेला 0.5 व चूरड़ा 1.64 अनुपात तथा शाकाहारी कीटों में डाकू बुगड़ा 0.5 और मकड़ी 0.40 के अनुपात में मौजूद है। डा. दलाल ने कहा कि अभी ये कीट फसल को नुकसान पहुंचाने की स्थित में नहीं हैं।
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कीट प्रबंधन अभियान में कूदी खाप पंचायतें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
फतवे जारी करने के लिए बदनाम प्रदेश की सर्व खाप पंचायतें अब नए क्लेवर में नजर आएंगी। पिछले 40-45 वर्षों से कीटों व किसानों के बीच चल रहे इस आपसी झगड़े को निपटाने के लिए सर्व खाप पंचायत द्वारा एक अदभूत व अनोखी पहल की गई है। कीटों व किसानों की इस आपसी लड़ाई से धरती पर मौजूद अन्य जीवों को हो रहे जानी नुकसान को बचाने के लिए खाप पंचायतों ने इस लड़ाई में हस्तक्षेप किया है। खाप पंचायत का प्रतिनिधिमंडल सप्ताह के हर मंगलवार को निडाना के कीट साक्षरता केंद्र पर पहुंचकर दोनों पक्षों की बहस सुनेगा और नजदीक से इस लड़ाई का जायजा लेगा। इस बहस के जरिए खाप पंचायतों के प्रतिनिधि कीटों व किसानों के झगड़े की वास्तविकता का पता लगाएंगे। यह सिलसिला लगातार 18 सप्ताह तक चलेगा और 19वें सप्ताह में प्रदेश के सर्व खाप पंचायत के प्रतिनिधि एकत्रित होकर अपना फैसला सुनाएंगे।
इतिहास गवाह रहा है कि फतवे जारी करने के लिए बदनाम प्रदेश की सर्व खाप पंचायतों ने पुरानी से पुरानी रंजीश पर समझौते की मोहर लगाकर आपसी भाईचारे को कायम रखने का काम किया है। आपसी भाईचारे को कायम रखने वाली ये खाप पंचायतें अब एक अनोखी मुहिम का हिस्सा बनने जा रही हैं। इस मुहिम के तहत खाप पंचायतें धरती पर मौजूद जीवों की जिंदगी को बचाने की भूमिका में नजर आएंगी। इसके लिए कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों ने सर्व खाप पंचायतों को चिट्ठी डालकर कीटों व किसानों के बीच चली आ रही इस लड़ाई को समाप्त करने की गुहार लगाई है। कीट मित्र किसानों की मांग को देखते हुए खर्व खाप के प्रतिनिधियों ने जीव रक्षक इस मुहिम में अपना योगदान देने के निर्णय पर मोहर लगा दी है। इस मुहिम के तहत प्रदेश की किसी भी खाप पंचायत के 5 प्रतिनिधि हर मंगलवार को निडाना गांव स्थित कीट साक्षरता केंद्र पर जाकर कीटों व किसानों के बीच चली आ रही इस लड़ाई का नजदीक से जायजा लेंगे। कीट साक्षरता केंद्र पर खाप पंचायत के प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता में होने वाली इन बैठकों का सिलसिला लगातार 18 सप्ताह तक चलेगा। 18 बैठकों के दौरान पक्षों की बहस सुनने के बाद 19वीं बैठक में पूरे प्रदेश की सर्व खाप पंचायत के प्रतिनिधि एकत्रित होंगे और दशकों से चली आ रही कीटों व किसानों की इस लड़ाई पर अपना एतिहासिक फैसला सुनाएंगे। 

जैविक खेती को मिलेगा बल

निडाना गांव स्थित कीट साक्षरता केंद्र के किसान मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करने के लिए पिछले कई वर्षों से कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देने के लिए मुहिम शुरू किए हुए हैं। इस मुहिम को धरातल पर उतारने के लिए कीट मित्र किसानों ने फसल में मौजूद शाकाहारी व मासाहारी कीटों को अपना हथियार बनाया है। ये कीट मित्र किसान अन्य किसानों को भी फसल में मौजूद कीटों की पहचान करने तथा उनके जीवनचक्र को समझने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। सर्व खाप पंचायतों द्वारा इस मुहिम में शामिल होने के बाद उनकी इस मुहिम को बल मिलेगा और किसानों में जैविक खेती के प्रति रुझान बढ़ेगा।

पहली बैठक में खाप पंचायतों की ओर से ये प्रतिनिधि लेंगे भाग

कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों द्वारा सर्व खाप पंचायतों को चिट्ठी डालने के बाद खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों ने उनकी मांग पर सहमती जाई है। मंगलवार से शुरू होने वाली इस बैठक में नैन खाप के मुखिया नफे सिंह नैन, कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला, बराह कलां बाहरा के प्रधान कुलदीप सिंह ढांडा, दाहड़न खाप से देवा सिंह, नरवाना खाप से अमृतलाल चौपड़ा, नौगामा खाप से कुलदीप सिंह रामराये तथा सर्व खाप पंचायत की महिला विंग की प्रधान प्रो. संतोष दहिया सर्व खाप पंचायत की पहली बैठक में प्रतिनिधित्व करेंगी। गोहाना रोड पर स्थित निडाना गांव के बस अड्डे के पास खाप पंचायत के प्रतिनिधियों की पहली बैठक का आयोजन किया जाएगा।

खाप पंचायतों के इतिहास में अनोखी होगी पहल

किसान अधिक से अधिक उत्पादन लेने की होड़ में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। जो फसल में मौजूद शाकाहारी व मासाहारी कीटों तथा मनुष्य के लिए नुकसादायक है। पिछले कई वर्षों से किसानों में कीटनाशकों के प्रयोग को लेकर संशय बरकरार है। जिस कारण किसान जानकारी के अभाव में देशी व विदेशी कंपनी के बहकावे में आकर लुट रहे हैं। इस संशय को दूर करने तथा किसानों का उचित मार्गदर्शन करने के लिए कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों के अनुरोध पर इस मुहिम की शुरूआत की गई है। प्रदेश की सर्व खाप पंचायत के इतिहास में यह एक अनोखी पहल है।
कुलदीप सिंह ढांडा, संयोजक समन्वय कमेटी
सर्वजातिय सर्व खाप महापंचायत, हरियाणा