शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

किसान-कीट मुकदमे की सुनाई में खाप पंचायतों के साथ पहुंचे कृषि अधिकारी



 किसानों के सामने अपने विचार रखते कृषि विभाग के अधिकारी।
 कृषि विभाग के उपनिदेशक को स्मृति चिह्न भेंट करते निडाना के किसान।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीट-किसान मुकदमे की सुनवाई के लिए मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ से नौगाम खाप के प्रधान कुलदीप सिंह रामराये, लोहाना खाप के प्रतिनधि रामदिया तथा पूनिया खाप की तरफ से जोगेंद्र सिंह पहुंचे। खाप पंचायतों के अलावा हिसार के कृषि उपनिदेशक डा. रोहताश, बीएओ डा. महीपाल, एडीओ डा. मांगेराम भी विशेष रूप से मौजूद थे। खाप पंचायतों व कृषि अधिकारियों ने नरमे के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ कीटों की पढ़ाई पढ़ी। कीट मित्र किसान रणबीर रेढू ने बताया कि पहले उन्हें कपास की फसल में पाए जाने वाले सिर्फ 109 कीटों की पहचान थी। जिसमें 83 कीट मासाहारी तथा 26 कीट शाकाहारी थे। लेकिन अब उन्होंने कपास की फसल में 140 कीटों की पहचान कर ली है। जिसमें 43 कीट शाकाहारी तथा 97 कीट मासाहारी हैं। रेढू ने बताया कि शाकहारी कीटों में 20 किस्म के रस चूसक, 13 प्रकार के पर्णभक्षी, तीन प्रकार के फलाहारी तथा तीन प्रकार के पुष्पाहारी कीट मौजूद हैं। इसके बाद किसानों ने फसल में किए गए अवलोकन के आंकड़े दर्ज करवाए। किसानों ने बताया अवलोकन के दौरान उन्होंने कपास की फसल में कातिल बुगड़ा, लेडी बिटल, 5 तहर की मकड़ी, दिखोड़ी, फलेहरी बुगड़ा, डायन मक्खी, बुगड़े, हथजोड़ा, क्राइसोपा के अंडे व बच्चे, मकड़ी मकड़ी व टिडे का शिकार करते देखी। इसके अलावा मकड़ी द्वारा सफेद मक्खी का शिकार करते देखा गया। किसान रमेश ने अपने अनुभव के बारे में बताते हुए कहा कि उसने 24 जुलाई को सिंगुबुगड़े अंडे देते हुए पकड़ा था। रमेश ने बताया कि सिंगुबुगड़े के अंडे से बच्चे बनने में 115 घंटे यानि चार-पांच दिन का समय लगता है। उसने बताया कि इसके बाद बच्चे तीन दिन में एक बार कांजली भी  उतारते हैं। रमेश ने बताया कि 25 जुलाई को उसने कातिल बुगड़ा नामक कीट को पकड़ा था। कातिल बुगड़े ने 24 घंटे के दौरान 6 सलेटी भूडों को चट कर दिया। रमेश ने खाप प्रतिनिधियों को समझाते हुए कहा कि कातिल बुगड़े के अंडों से बच्चे निकलने में 113 घंटे लगते हैं। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि कपास की फसल में परपरागण में कीटों की अहम भूमिका होती है। इसका प्रमाण किसान 2001 में देख चुके हैं। 2001 में किसानों ने कपास की फसल में 40 के लगभग स्प्रे किए थे। यानि के किसान तीन दिन में एक बार कपास की फसल में कीटनाशक का छिड़काव करते थे। डा. दलाल ने कहा कि जब कीटों के बच्चों को अंडे से निकलने में चार से पांच दिन का समय लगता है और किसान तीन दिन में एक बार स्प्रे का प्रयोग करते थे। यानि के किसान बच्चों को पैदा होने से पहले ही लपेटे में ले लेते थे। फसल में कीटों की मौजूदगी न होने के कारण परागण प्रक्रिया भी  नहीं हो सकी। जिसका सीधा प्रभाव पैदावार पर पड़ा। इससे यह बात सिद्ध होती है कि अगर फसल में कीट होंगे तो परागण क्रिया होगी नहीं तो परागण क्रिया पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जिससे उत्पादन भी कम होगा। बराह कलां बाराह के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि जिस क्षेत्र में कॉटन की अधिक पैदावार होती है, वहां कैंसर के मरीजों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। क्योंकि कॉटन की फसल में सबसे ज्यादा कीटनाकशें का प्रयोग होता है। ढांडा ने पंजाब के भठिंडा का उदहारण देते हुए कहा कि भठिंडा में कॉटन की ज्यादा पैदावार होती है और वहां कैंसर के मरीजों की संख्या भी काफी ज्यादा है। भठिंडा में 10 में से 9 लोग कैंसर से पीडि़त हैं। हिसार से आए एडीओ डा. मांगे राम ने बताया कि 2003 में उसने तीन एकड़ में देसी कपास की फसल लगाई थी। इस दौरान उसने एक बार भी अपनी फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया और फिर भी उसे 19 मण प्रति एकड़ की पैदावार मिली। पाठशाला में लाडवा (हिसार) व बहादुरगढ़ के किसान भी विजिट के लिए पहुंचे थे।
निडाना के किसानों ने एक अनोखी पहल की है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए वे अपने क्षेत्र के किसानों को यहां पर ट्रेनिंग के लिए भेजेंगे। आज उनके साथ जो कृषि अधिकारी आए हैं, उन्हें भी अपने-अपने क्षेत्र में इस तरह की पाठशाला चलाने के लिए प्रेरित करेंगे। ताकि इस मुहिम को आगे बढ़ाकर देश के कोने-कोने तक पहुंचाया जा सके और थाली से जहर को कम किया जा सके।
डा. रोहताश
कृषि उपनिदेशक, हिसार

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

कीटों की ‘कलाइयों’ पर भी सजा बहनों का प्यार

‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’ 

राखी बांधकर कीटों से शुगुन के तौर पर मांगी फसलों की सुरक्षा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
भाई व बहन के प्यार के प्रतीक रक्षाबंधन के त्योहार पर आप ने बहनों को भाइयों की कलाइओं पर राखी बांधते हुए तो खूब देखा होगा, लेकिन कभी देखा या सुना है कि किसी लड़की या किसी महिला ने कीट को राखी बांधकर अपना भाई माना हो और कीट ने उसे राखी के बदले कोई शुगुन दिया हो नहीं ना। लेकिन निडाना व ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं ने रक्षाबंधन के अवसर पर कीटों की कलाइयों पर बहन का प्यार सजाकर यानि राखी बांधकर ऐसी ही एक नई रीति की शुरूआत की है। महिलाओं ने कीटों के चित्रों पर प्रतिकात्मक राखी बांध कर इन्हें अपने परिवार में शामिल कर इनको बचाने का संकल्प लिया है। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को ललीतखेड़ा गांव में पूनम मलिक के खेतों पर आयोजित महिला किसान पाठशाला में रक्षाबंधन के अवसर पर मासाहारी कीटों के चित्रों पर राखी बांध कर कीटों को भाई के रूप में अपना लिया। इसके साथ ही इन अनबोल मासाहारी कीटों ने भी इन महिला किसानों को शुगुन के रूप में उनकी थाली से जहर कम करने का आश्वासन दिया। रक्षाबंधन के आयोजन से पहले महिला किसान पाठशाला की रूटिन की कार्रवाई चली। महिला किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया।
निडाना व ललीतखेड़ा की महिला किसान पाठशाला की महिलाओं ने भाई-बहन के प्यार के प्रतिक रक्षाबंधन के पर्व पर कीटों को राखी बांधकर नई परंपरा की शुरूआत की है। इन महिला किसानों द्वारा शुरू की गई इस नई परंपरा से जहां कीटों को तो पहचान मिलेगी ही, साथ-साथ हमारे पर्यावरण पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को महिला किसान पाठशाला में मासहारी कीट हथजोड़े को राखी बांधकर सभी मासाहारी कीटों को अपना भाई स्वीकार कर उन्हें अपने परिवार का अंग बना लिया। महिलाओं ने राखी बांधकर यह संकल्प लिया कि वे फसल में मौजूद कीटों की सुरक्षा के लिए अपनी फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करेंगी। इसके साथ-साथ महिलाओं ने ‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’ गीत गाकर कीटों से राखी के शुगुन के तौर पर उनकी फसल की सुरक्षा करने की विनित की। महिलाओं ने रक्षाबंधन की पूरी परंपरा निभाई तथा कीटों के चित्रों को राखी बांधने के बाद उनकी आरती भी उतारी। इसके अलावा महिलाओं ने ‘ऐ बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है’, ‘निडाना-खेड़ा की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है’, ‘अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है’ आदि भावुक गीत गाकर किसानों को झकझोर कर रख दिया। अंग्रेजो, गीता मलिक, बिमला मलिक, कमलेश, राजवंती, मीना मलिक ने बताया कि किसान जानकारी के अभाव में अपनी फसल के रक्षकों के ही भक्षक बन जाते हैं। उन्होंने बताया कि फसल में दो प्रकार के कीट होते हैं एक शाकाहारी व दूसरे मासाहारी। मासाहारी मास खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। शाकाहारी फसल के फूल, पत्ते खाकर व इनका रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। खान-पान के अधार पर शाकाहारी कीट भी दो प्रकार के होते हैं। एक डंक वाले व दूसरे चबाकर खाने वाले। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही महिलाओं ने अपने रूटिन के कार्य पूरे किए। महिलाओं ने फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर फसल में अभी तक किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं थी। इस अवसर पर पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल के साथ खाप पंचायतों के संयोजक कुलदीप ढांडा, कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढू, रमेश सहित अन्य किसान भी मौजूद थे।  

140 पर पहुंची कीटों की गिनती

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र की आरती उतारती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र पर तिलक करती महिलाएं

बहना की कलाई पर राखी बंधवाने पहुँचा - मटकू बुग्ड़ा
महिलाओं ने बताया कि उन्हें अब तक 109 किस्म के कीटों की ही पहचान थी, लेकिन अब उन्हें 140 किस्म के कीटों की पहचान हो चुकी है। इनमें 43 शाकाहारी व 97 मासाहारी कीट होते हैं। मासाहारी कीटों की संख्या शाकाहारी कीटों से काफी ज्यादा है। जहां पर शाकाहारी कीट मौजूद होंगे वहां पर मासहारी कीट भी अपने आप आ जाएंगे। मासाहारी कीट अपने पालन-पोषण के लिए शाकाहारी कीटों को अपना भेजन बनाते हैं। इस प्रकार शाकाहारी व मासाहारी कीटों के जीवनचक्र में किसान को लाभ मिल जाता है।




अब ‘लाडो’ के संदेश से शुरू होगी पंचायतों की कार्रवाई

बेटी को बचाने के लिए खाप प्रतिनिधियों ने शुरू की ऐतिहासिक व सकारात्मक पहल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
आनर किंलिंग व गौत्र विवाद जैसे संवेदनशील मामलों में फतवे जारी करने के लिए बदनाम हुई खाप पंचायतें अब ‘लाडो’ को बचाने के लिए दुनिया को रास्ता दिखाएंगी। बेटी बचाने के लिए खाप पंचायतों ने अब एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब किसी भी मसले को सुलझाने के लिए आयोजित होने वाली पंचायतों की कार्रवाई ‘बेटी बचाओ’ के संदेश से शुरू होगी। पंचायत के अध्यक्ष द्वारा पंचायत की कार्रवाई शुरू करने से पहले बेटी के महत्व के बारे में बताते हुए सभी लोगों को बेटी बचाओ का संकल्प दिलवाया जाएगा। बेटी बचाओ के संकल्प के बाद ही पंचायत की आगामी कार्रवाई शुरू हो सकेगी।
कन्या भ्रूण हत्या के कारण गिरते लिंगानुपात को सुधारने तथा अजन्मी कन्या को उसका हक दिलवाने का बीड़ा अब खाप पंचायतों ने अपने कंधों पर उठाया है। बेटी को बचाने के लिए खाप पंचायतों ने एक अनोखा रास्ता ढुंढ़ निकाला है। हालांकि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए खाप प्रतिनिधि 14 जुलाई को बीबीपुर गांव में सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत से इस लड़ाई का शंखनाद कर चुके हैं। इस पंचायत के दौरान खाप प्रतिनिधियों को इस बुराई को जड़ से मिटाने के लिए जागरुकता ही एक मात्र अचूक शस्त्र नजर आया था। इसलिए खाप प्रतिनिधियों ने इस लड़ाई में विजयश्री का ताज पहनने तथा इस अभियान को सफलता के शिखर तक पहुंचाकर लिंगानुपात के आंकड़ों को ऊपर उठाने के लिए लोगों को जागरुक करने का निर्णय लिया है। इसलिए अब किसी भी मसले का हल निकालने के लिए होने वाली पंचायतों में बेटी बचाओ का नारा सुनाई देगा और खाप प्रतिनिधि कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ संकल्प दिलवाते नजर आएंगे। खाप प्रतिनिधियों ने निर्णय लिया है कि भविष्य में जब भी किसी पंचायत का आयोजन किया जाएगा तो पंचायत की कार्रवाई शुरू करने से पहले लोगों को बेटी के महत्व के बारे में बताया जाएगा। पंचायत के अध्यक्ष द्वारा पंचायत में मौजूद सभी लोगों को बेटी बचाने का संकल्प दिलवाया जाएगा। इसके बाद ही पंचायत की आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी। खाप पंचायतों द्वारा बेटी बचाने के लिए शुरू की गई यह एक ऐतिहासिक व सकारात्मक पहल होगी।

बेटी के हत्यारों पर हो 302 का मुकदमा दर्ज

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए खाप पंचायत द्वारा मुख्यमंत्री को पत्र लिखा गया है। पत्र में खाप प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए कानून में संसोधन किया जाए। इस कानून में संसोधन कर बेटी के हत्यारों पर सीधा 302 का मुकदमा दर्ज कर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। कन्या भ्रूण हत्या करते पकड़े जाने पर मां-बाप के साथ-साथ चिकित्सक पर भी 302 का ही मुकदमा दर्ज किया जाए। ताकि  इस जघन्य अपराध में मां-बाप का साथ देकर चिकित्सक जैसे पवित्र पेश को बदनाम करने वाले चिकित्साक को सबक सीख कर इस सामाजिक बुराई को जड़ से उखाड़ा जा सके। इसके अलावा खाप प्रतिनिधियों ने पत्र लिखकर मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा बीबीपुर पंचायत को एक करोड़ रुपए देकर पंचायत का मान बढ़ाने तथा रोहतक के सांसद दीपेंद्र हुड्डा द्वारा इस मुहिम के लिए खाप पंचायतों की पीठ थपथपाने पर उनका आभार ज्याता है।

सर्वसम्मति से लिया गया है फैसला


  पत्र दिखाते कुलदीप ढांडा का
कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक बुराई और खाप पंचायतों ने तो हमेशा ही सामाजिक बुराइयों को मिटाने के लिए कार्य किए हैं। अगर कन्या भ्रूण हत्या को नहीं रोका गया तो एक दिन इस धरती से स्त्री जाति का अस्तित्व ही मिट जाएगा। अगर स्त्री ही नहीं रहेंगी तो मानव जाति ही समाप्त हो जाएगी। इसलिए खाप प्रतिनिधियों द्वारा लोगों को जागरुक करने का बीड़ा उठाया गया है। किसी भी पंचायत की कार्रवाई शुरू करने से पहले लोगों को बेटी के महत्व के बारे में समझा कर उन्हें कन्या भ्रूण हत्या को रोकने की शपथ दिलवाई जाएगी। इसके बाद ही पंचायत की आगामी कार्रवाई शुरू हो सकेगी। खाप प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से यह फैसला लिया है।
कुलदीप ढांडा, संचालक
सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत


फाइलों से नहीं निकल पाई निर्मल ग्राम पुरस्कार में हुई फर्जीवाड़े की जांच

निर्मल गांव के ताज पर पड़े गंदगी के छींटे

नरेंद्र कुंडूजींद। निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए जिले से गांवों का चयन करने में हुए फर्जीवाड़े को दबाने में जिला प्रशासन कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। पहले तो जिला प्रशासन ने ऐसे गांवों को निर्मल ग्राम पुरस्कार दिलवा दिया जो निर्मल गांव की शर्तें पूरी करने में कोसों दूर थे। लेकिन जब निर्मल गांव का ताज पहनने वाले गांवों की असली तस्वीरें जिले के लोगों के सामने आई तो प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी शाख बचाने के लिए अलग से कमेटी बनाकर इन गांवों की जांच करवाने का ढोंग रच दिया। इस फर्जीवाड़े पर लीपापोती करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा शुरू किए गए जांच के ड्रामे को दो माह से भी ज्यादा का समय हो गया, लेकिन अभी तक न तो जांच के लिए कोई कमेटी बनी और न ही किसी गांव का दोबारा से निरीक्षण हुआ। 
सरकार द्वारा देश को स्वच्छ बनाने के लिए शुरू की गई निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना को जिले में करारा झटका लगा है। प्रदेश सरकार द्वारा मई माह में करनाल में कार्यक्रम का आयोजन कर प्रदेश के 330 गांवों को निर्मल पुरस्कार से नवाजा गया था। इस पुरस्कार के लिए जींद जिले से आठ गांवों को चुना गया था। निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए जिले से गांवों का चयन करते समय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जमकर फर्जीवाड़ा किया गया। इस पुरस्कार के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा ऐसे गांवों का चयन कर दिया गया जो निर्मल गांव की शर्तों को पूरा करने से कोसों दूर थे। लेकिन फिर भी प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी खाल बचाने के लिए नियमों को ताक पर रख कर जिले से ऐसे आठ गांवों का चयन कर दिया जिनमें निर्मल गांव की एक भी सुविधा मौजूद नहीं थी। इसके बाद इस फर्जीवाड़े को  काफी गंभीरता से उठाया था। इन निर्मल गांवों की सच्ची तस्वीरें जिले के लोगों के सामने पेश करने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों में हड़कंप मच गया। प्रशासनिक अधिकारियों ने शर्मिंदगी से बचने के लिए जांच का ढोंग रच दिया और जांच के साथ-साथ दोबारा से इन गांवों का सर्वे करवाने के आदेश जारी कर दिए। लेकिन निर्मल ग्राम पुरस्कार में हुए इस फर्जीवाड़े के मामले को जनता की अदालत में आए दो माह से भी ज्यादा का वक्त गुजर गया है, लेकिन अभी तक न तो जांच के लिए कोई कमेटी बनी है और ही दोबारा से किसी गांव का सर्वे किया गया है। इतना ही नहीं अधिकारियों ने तो यह तक जानने की जहमत नहीं उठाई कि निर्मल ग्राम पुरस्कार के तहत इन गांवों को जो ग्रांट मिली है उस ग्रांट का सही प्रयोग हुआ या नहीं। अधिकारियों के इस ढुलमुल रवैये से यह बात तो साफ हो चुकी है कि अधिकारी इस मामले पर मिट्टी डालने के प्रयास में जुटे हुए हैं और किसी भी प्रकार की जांच नहीं करवाना चाहते हैं। क्योंकि अगर पूरी ईमानदारी से जांच हुई तो इस फर्जीवाड़े में कई अधिकारियों की खाल खिंचनी तय है।
किन-किन गांवों को मिला था निर्मल ग्राम पुरस्कार
निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए जिले से आठ गांवों का चयन किया गया था। जिसमें जींद खंड में जीवनपुर, निडानी, रामगढ़, अलेवा खंड में बुलावाली खेड़ी, जुलाना खंड में खेमाखेड़ी, नरवाना में रेवर, सफीदों में पाजू कलां तथा पिल्लूखेड़ा में भूरायण गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है।
क्या कहते हैं अधिकारी
इस बारे में जब अतिरिक्त उपायुक्त अरविंद महलान से उनके मोबाइल पर बातचीत की गई तो इस बार भी उनका वही पुराना रटारटाया जवाब मिला। उन्होंने इस बार भी पहले की तरह जल्द ही टीम का गठन कर इन गांवों का सर्वे करवाने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया।

निर्मल गांव भूरायण गांव की गलियों में जमा कीचड़।


 निर्मल गांव भूरायण में लगे कूड़े के ढेर।



शनिवार, 28 जुलाई 2012

आखरी सांस तक जारी रखेंगी लड़ाई


 नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीट चाहे शाकाहारी हों या मासाहारी दोनों ही किस्म के कीटों ने कीट मित्र महिलाओं के साथ दोस्ती कर ली है। जैसे ही महिलाएं महिला किसान पाठशाला में पहुंचती हैं, वैसे ही कीट महिलाओं के पास आकर  बैठ जाते हैं। बुधवार को ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पूनम मलिक के खेत पर जैसे ही महिलाओं का आगम शुरू हुआ, वैसे ही कीटों ने भी पाठशाला में दस्तक दे दी। पाठशाला शुरू होने से पहले ही सुमित्रा के हाथ पर कातिल बुगड़ा तथा सुषमा के हाथ पर मटकु बुगड़ा आकर बैठ गया। पाठशाला का आरंभ खाप पंचायतों के संचालक कुलदीप ढांडा ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल की मृत्यु पर दो मिनट का मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर की। ढांडा ने बताया कि कैप्टन लक्ष्मी सहगल नेता जी सुभाष चंद्र बोस की रानी झांसी रेजिमेंट की कैप्टन थी और इन्होंने देश की आजादी के बाद गरीबों के इलाज का बीड़ा उठाया था। उन्होंने बताया कि सहगल ने मृत्यु के तीन दिन पहले तक कानपुर में मरीजों का इलाज किया था। अंग्रेजो ने कहा कि देश को जहर से बचाने के लिए छेड़ी गई इस लड़ाई को वे आखरी सांस तक जारी रखेंगी और यही कैप्टन लक्ष्मी सहगल को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इसके बाद महिलाओं ने कपास के खेत में कीटों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में पाया कि कोई भी कीट पूनम मलिक के कपास के इस खेत में अगले एक सप्ताह हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं है। सुमित्रा  ने बताया कि कातिल बुगड़ा अपने बराबर व अपने से छोटे आकार के कीटों का खून पीकर अपनी वंशवृद्धि करता है। कातिल बुगड़ा शिकार को पकड़े ही उसका कत्ल कर देता है। सुषमा ने बताया कि मटकु बुगड़ा कपास में पाए जाने वाले लाल बनिए का खून पीकर अपना गुजारा करता है। सुषमा ने बताया कि अभी कपास में एकाध ही लाल बनिया आया है, लेकिन लाल बनिए की दस्तक के साथ ही मटकु बुगड़े ने भी कपास में दस्तक दे दी है। गीता ने कपास की फसल में फलेरी बुगड़े के बच्चे व प्रौढ़ देखा। शीला ने सर्वेक्षण के दौरान डायन मक्खी तथा सविता ने गोब की चितकबरी सुंडी के प्रौढ़ को पकड़ा।

कीटों को राखी बांध कर मनाएंगे रक्षाबंधन का पर्व

महिला किसान पाठशाला की महिलाओं ने बताया कि वे रक्षाबंधन के पर्व पर कीटों को पौंची (राखी) बांधकर रक्षाबंधन का पर्व मनाएंगी। रक्षा बंधन पर भाई बहन से राखी बंधवाता है और बहन की रक्षा की सौगंध लेता है, लेकिन इस बार वे कीटों को राखी बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लेंगी। ताकि उनके बच्चों व उनके भाइयों की थाली जहर मुक्त हो सके। 

अनावरण यात्रा के लिए दिल्ली जाएंगी महिलाएं

सर्वेक्षण के बाद कीट बही-खाते की रिपोर्ट तैयार करवाती महिला।
कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कृषि विभाग की तरफ से महिलाओं को 27 जुलाई को दिल्ली में लगने वाले कृषि मेले की अनावरण यात्रा पर ले जाया जाएगा। ताकि कृषि मेले में महिलाएं ज्ञान प्राप्त कर सकें और इन महिलाओं में कृषि के प्रति और रुचि पैदा हो।


....खेलों के क्षेत्र में छात्राओं को तरासने की कवायद

नरेंद्र कुंडू
जींद।
पढ़ाई के साथ-साथ लड़कियों को खेल के क्षेत्र में और आगे बढने के लिए सर्व शिक्षा अभियान द्वारा एक नई पहल शुरू की गई है। इस पहल के अनुसार एसएसए पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक की छात्राओं के लिए खेलकूद प्रतियोगिताएं व सहपाठयक्रम गतिविधियों का आयोजन करवाएगा। प्रतियोगिता को दो ग्रुपों में बांटा जाएगा। पहले ग्रुप में पहली से पांचवीं तथा दूसरे ग्रुप में छठी से आठवीं कक्षा तक की छात्राओं को शामिल किया जाएगा। इसके लिए एसएसए ने जिले को दो भागों में बांटा है। पहले ग्रुप में शैक्षणिक रुप से पिछड़े तथा दूसरे ग्रुप में सामान्य खंडों को शामिल किया गया है। प्रदेश में इस वर्ष से पहली बार इन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है।
सर्व शिक्षा अभियान द्वारा छात्राओं को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद प्रतियोगिताओं में आगे बढ़ाने के लिए छात्राओं के लिए खेलकूद व सहपाठयक्रम गतिविधियों का आयोजन करवाया जाएगा। इन गतिविधियों में पहली से आठवीं तक की छात्राएं ही भाग ले सकेंगी। प्रतियोगिताओं की शुरूआत खंड स्तर से होगी। खंड स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली छात्राएं जिला स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेंगी। इसके बाद जिला स्तर पर प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्राएं राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले सकेंगी। एसएसए ने इन प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए जिले को दो भागों में बांटा है। एक भाग में शैक्षणिक रूप से पिछड़े खंडों तथा दूसरे भाग में शैक्षणिक रूप से सामान्य खंडों को शामिल किया गया है। जिले के सातों खंडों में अलग-अलग तिथि को प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाया जाएगा। ताकि एसएसए के अधिकारी स्वयं इन प्रतियोगिताओं में मौजूद होकर इन प्रतियोगिताओं का सफल आयोजन करवा सकें। एसएसए द्वारा उठाए गए इस कदम का मुख्य उद्देश्य पढ़ाई के साथ-साथ छात्राओं को खेलकूद के क्षेत्र में मजबूत करना है। ताकि नींव की शुरूआत से ही छात्राओं में खेलकूद के प्रति रुचि पैदा हो और ये आगे चलकर खेलों के क्षेत्र में प्रदेश व देश का नाम रोशन कर सकें। प्रतियोगिताओं में भाग लेने आने वाली छात्राओं को आने-जाने का खर्च व रिफरेशमेंट का प्रबंध भी एसएसए द्वारा किया जाएगा।
यहां होगी प्रतियोगिता
एसएसए द्वारा तैयार की गई इस योजना को अमलीजामा पहनाने का कार्य शुरू हो चुका है। खंड स्तर पर ये प्रतियोगिताएं शुरू हो चुकी हैं। जिला स्तर पर इन प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए एसएसए ने तिथि निर्धारित कर दी है। 27 जुलाई को जींद पुलिस लाइन में जींद, जुलाना, पिल्लूखेड़ा, सफीदों खंडों के खिलाडि़यों के लिए तथा 28 जुलाई को नरवाना के नवदीप स्टेडियम में नरवाना, उचाना, अलेवा के खिलाडि़यों के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा।

ये होंगे खेल

एसएसए द्वारा शुरू की गई इन खेलकूद प्रतियोगिताओं के प्राथमिक स्तर पर 100 व 200 मीटर दौड़, 4 गुणा 100 रीले दौड़, बैडमिंटन खेल आयोजित होंगे, जबकि मध्य स्तर पर प्रतियोगिता में 400 व 1500 मीटर दौड़ए 4 गुणा 400 मीटर रीले दौड़, शतरंज, कबड्डी, लंबी कूद व ऊंची कूद खेल करवाए जाएंगे। प्राथमिक स्तर में पहली से पांचवीं तथा मध्य स्तर पर छठी से आठवीं कक्षा तक की छात्राएं भाग लेंगी।

जिले को बांटा गया है दो भागों में।

एसएसए ने अपनी इस योजना को सफल बनाने के लिए जिले को खंडों के आधार पर दो भागों में बांटा है। पहले भाग में शैक्षणिक रूप से पिछड़े तथा दूसरे भाग में शैक्षणिक रूप से सामान्य खंडों को शामिल किया गया है। शैक्षणिक रूप से पिछड़े खंडों में नरवाना, उचाना, अलेवा को शामिल किया गया है। सामान्य खंडों में जींद, सफीदों, पिल्लूखेड़ा, जुलाना को शामिल किया गया है।

छात्राओं में बढ़ेगा आत्मविश्वास

लड़कियों में खेलों के प्रति रुचि पैदा करने के लिए एसएसए द्वारा यह योजना तैयार की गई है। अधिक से अधिक छात्राओं को इन गतिविधियों में भाग लेना चाहिए। इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने से छात्राओं में आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा उनके अंदर छिपी प्रतिभा निखर कर सामने आएगी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियाजना अधिकारी
एसएसए, जींद

कीटों-किसान मुकदमे की सुनवाई के लिए पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधि

कहा कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीट ही अचूक अस्त्र

नरेंद्र कुंडू   
जींद। ‘कीट नियंत्रणाय कीटा: हि:अस्त्रामोघा’ अर्थात कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीट ही अचूक अस्त्र है। यह बात कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक ने मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में आयोजित किसान पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों के सामने कीटों की पैरवी करते हुए रखी। पिछले कई दशकों से किसानों व कीटों के बीच चले आ रहे झगड़े को निपटाने के लिए खाप पंचायत की अदालत में आए मुकदमे की सुनवाई के लिए खाप प्रतिनिधि किसान पाठशाला में पहुंचे थे। खाप पंचायत की तरफ से आए सफीदों बारहा प्रधान रणबीर देशवाल, किनाना बाराह के प्रधान दरिया सिंह सैनी, हाट बारहा के प्रधान दयारनंद बूरा व हटकेश्वर धाम कमेटी के प्रधान बलवान सिंह बूरा ने कीट कमांडो किसानों के साथ खेत में बैठकर कीटों व पौधों की भाषा सीखने के लिए प्रयास किए। पाठशाला में किसानों ने 6 ग्रुप बनाकर कीटों का सर्वेक्षण किया। खाप प्रतिनिधियों ने कीट सर्वेक्षण में पाया कि कपास के इस खेत में रस पीकर गुजारा करने वाली सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़ा हानि पहुंचाने की स्थिति से काफी नीचे हैं। दर्जनभर गांवों से आए किसानों ने भी अपने-अपने खेतों से तैयार की कीट सर्वेक्षण रिपोर्ट को पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसमें कीट हानि पहुंचाने की स्थिति से दूर नजर आए। खेत अवलोकन के दर्शय प्रस्तुत करते हुए किसान संदीप ने बताया कि उनके ग्रुप ने मकड़ी द्वारा सलेटी भूड को खाते देख। रोशन मुनिम ने बताया कि इनके गु्रप ने क्राइसोपा के बच्चों को लेडी बिटल का गर्भ खाते देखा। इस दौरान उन्हें फसल में फलेरी बुगड़ा व हथजोड़ा कीट भी  देखे। लोहिया व जोगेंद्र ने बताया कि सर्वेक्षण के दौरान उन्हें मकोड़े को सलेटी भूड का काम तमाम करते हुए देखा। इंटल कलां से आए किसान चतर सिंह ने कहा कि उनके ग्रुप ने डायन मक्खी, लोपा मक्खी, दीदड़ बुगड़ा के बच्चे, कातिल बुगड़ा, सिंगु बुगड़ा आदि मासाहारी कीडे देखे। चतर सिंह की बात को बीच में ही काटते हुए महाबीर व सुरेश ने कहा कि कपास की फसल में 6 किस्म की मासाहारी मकड़ी उन्होंने देखी हैं। सर्वेक्षण के बाद जो रिपोर्ट सामने आई उस रिपोर्ट को देखते हुए अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने कहा कि कपास के इस खेत में तो मासाहारी कीटों के लिए दो दिन का भी भेजन नहीं है। किसान अजीत ने बताया कि डायन मक्खी पौधे के पत्ते को मचाम (ज्योंडे) के रुप में इस्तेमाल करती है और वहीं पर बैठकर कीटों पर घात लगाती है। डायन मक्खी शिकार को पकड़ कर लुंज करने के लिए उसके शरीर में जहर छोड़ती है और उसके बाद अपने ठिकाने पर ले जाकर उसका भक्षण करती है। कातिल बुगड़ा शिकार को  पहले कत्ल करता है उसके बाद उसके मास को तरल कर उसको चूसता है। किसानों ने अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि खुशी की बात तो यह है कि पाठशाला में ट्रेनिंग ले रहे किसानों को अभी तक फसल में स्प्रे के इस्तेमाल की जरुरत नहीं पड़ी। रणबीर मलिक ने बताया कि 2008 से वह इस मुहिम से जुड़ा हुआ है और इस दौरान उसने कभी भी स्प्रे नहीं किया है। वह पिछले दो सालों से देसी कपास की खेती ले रहा है। कपास की बिजाई के लिए बाजार से बीज खरीदने की बजाए कपास की लुढ़वाई करवाकर घर पर ही कपास का बीज तैयार कर देसी कपास की बिजाई करता है। इगराह के किसान मनबीर रेढू ने कहा कि उसने पिछले चार साल से एक बार भी अपनी फसल में स्प्रे का प्रयोग नहीं किया है। रमेश व रामदेवा ने बताया कि उन्होंने तीन साल से स्प्रे का प्रयोग
किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करते किसान।
पूरी तरह से बंद कर रखा है। जयभगवान ने बताया कि उसने पिछले दो वर्षों से एक बार भी स्प्रे का इस्तेमाल नहीं किया है। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि हमारी तो सिर्फ 36 बिरादरी ही हैं, लेकिन कीटों की तो 10 लाख किस्में हैं, तीस लाख किस्म के जीवाणु हैं। अगर खुदा ना खास्ता इस पृथ्वी से ये जीव लुप्त हो जाएं तो मानव समाज अपने बलबुते तो दो साल भी  जीवित नहीं रह सकता। ढांडा ने कहा कि 30 अक्टूबर को 18वीं पंचायत होगी और इस पंचायत के बाद खाप प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर नवंबर माह में 19वीं पंचायत के लिए समय निर्धारित किया जाएगा। इस पंचायत में पूरे प्रदेश की खाप पंचायतों के प्रतिनिधि भाग लेंगे तथा दशकों से चले आ रहे इस विवाद को निपटाने के लिए अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे। किसान पाठशाला के किसानों ने खाप प्रतिनिधियों को हथजोड़े का चित्र स्मृति चिह्न के तौर पर देकर सम्मानित किया।
अपने मचाम बना कर शिकार के इंतजार में बैठी डायन मक्खी।


रविवार, 22 जुलाई 2012

दूसरी फसल के कीटों ने भी दी महिला किसान पाठशाला में दस्तक



नरेंद्र कुंडू
जींद। नजारा है ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पाठशाला का। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही मास्टर ट्रेनर महिला किसान कविता ने महिलाओं को एक नई किस्म का कीट दिखाया, जिसका पेट भिरड़ जैसा था। इस कीट को निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने खेतों में पहली बार देखा था। कीट को देखते ही नारो पूछ बैठती है आएं यू डांगरां की माच्छरदानी आला कीड़ा आड़ै खेतां में के कैरा सै। इसे-इसे कीड़े तो डांगरां की माच्छरदानी में घैने पाया करें सैं। कविता ने नारो की बात को बीच में ही काटते हुए महिलाओं को नए कीट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह नए किस्म की लोपा मक्खी है जो खान-पान के आधार पर मासाहारी होती है। इस मक्खी की तीन जोड़ी पैर व दो जोड़ी पंख होते हैं। अकसर किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से पुकारते हैं। कविता ने बताया कि यह धान में लगने वाले तना छेदक, पत्ता लपेट के पतंगों का उडते हुए शिकार कर लेती है। कविता ने कहा कि जब पतंगे नहीं रहेंगे तो अंडे कहां से आएंगे और अंडे ही नहीं होंगे तो सुंडी नहीं
नए किस्म की लोपा मक्खी
आएंगी। सविता ने बताया कि लोपा मक्खी अपने अंडे धान के खेत में खड़े पानी में देती है। पानी में पैदा होने वाले इसके बच्चे भी मासाहारी होते हैं। शीला ने बताया कि इसे जिंदा रहने के लिए खाने में अपने वजन से ज्यादा मास चाहिए। शीला की बात सुनकर नारों की आंखें खुली की खुली रह गई। नारो ने पूछा आएं फेर यू खेतां का कीड़ा है तो माच्छरदानी में कै करया कैरै सै। कृष्णा ने नारो के सवाल का जवाब देते हुए बताया यू कीड़ा उड़ै माच्छरां नै खाया करै सै। इस बात पर बहस करने के बाद महिलाओं ने कीट बही खाता तैयार करने के लिए कपास के पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं ने पाया कि कपास की फसल में पाने वाले शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, मिलीबग कोई भी  फसल में हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं था। रही बात मासाहारी कीटों की, कपास की फसल में कोई भी पौधा ऐसा नहीं था, जिस पर फलेरी बुगड़े के बच्चे (निम्प) मौजूद न हों। शीला ने बताया कि फलेरी बुगड़े के बच्चे शाकाहारी कीटों का खून पीकर गुजारा करते हैं। कीट सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किए गए बही खाते से महिलाओं को कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत महसूस नहीं हुई। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि पृथ्वी पर साढ़े तीन करोड़ साल पहले पौधे विकसित हुए थे और पौधों पर गुजारा करने के लिए कीट
फसल में पाए गए लालड़ी कीट का फोटो।
आए थे। जबकि किसानों ने तो खेती की शुरूआत के साथ ही पौधों पर कब्जा करना शुरू किया है। कीटों व किसानों की इस अनावश्यक जंग में निश्चित तौर पर कीटों का पलड़ा भारी है। क्योंकि कीटों में इंसान की अपेक्षा प्रजजन करने की क्षमता अधिक व खुराक की जरुरत कम होती है। पंखों की वजह से कीटों के बच निकलने की संभावना भी ज्यादा रहती है।

किसान हरे नहीं पीले हाथ करने की चिंता करें

किसान पाठशाला की मास्टर ट्रेनर शीला ने कहा कि धान की फसल में लोपा मक्खी आने के बाद किसानों को धान में फूट के नाम पर डाली जाने वाली कीड़े मारने वाली हरी दवाई से हरे हाथ करने की जरुरत नहीं है। इसकी चिंता तो किसान लोपा मक्खी पर छोड़ अपने विवाह योग्य पुत्र-पुत्रियों के हाथ पीले करने की चिंता करें।
अन्य फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से बनाई दोस्ती
 किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधि के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं।
कीटों के प्रति महिला किसानों के सकारात्मक रवैये को देखकर दूसरी फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से दोस्ती बना ली है। बुधवार को ललीतखेड़ा में आयोजित महिला किसान पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के दौरान लालड़ी व अखटिया बग भी महिलाओं के बीच आ गए। कविता ने बताया कि लालड़ी कीट अकसर घीया, तोरी, कचरी की बेलों पर पाया जाता है। यह कीट बेल के पत्ते खाकर अपना गुजारा करता है। अखटिया बग औषधीय आख के पौधे पर पाया जाता है। यह कीट भी रस चूसकर अपना जीवन चक्र चलाता है।






चौधरियों ने गहनता से किया ‘किसान-कीट’ मुकदमे का अध्ययन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जवानों व किसानों को मजबूत करने के लिए ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था। लेकिन आज चंद स्वार्थी लोगों की मुनाफे की चाह में उनके इस नारे की चमक फीकी पड़ रही है। हम भगवान विष्णु को देश का पालनहार मानते हैं, लेकिन वास्तव में पालनहार का फर्ज तो किसान अदा करता है जो अपने पसीने से धरती को सींचता है और धरती का सीना चीर कर देश के लिए अन्न पैदा करता है। शरहद पर जो जवान खड़े हैं वो भी किसान के ही बेटे हैं। लेकिन बढ़ते रासायनिकों के प्रयोग के कारण खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है और देश का पालनहार अपना ही पालन-पोषण ढंग से नहीं कर पा रहा है। यह बात देशवाल खाप के प्रतिनिधि रामचंद्र देशवाल ने मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस दौरान खाप पंचायत की तरफ से आए खाप प्रतिनिधियों ने कीट मित्र किसानों के साथ बैठकर कीटों व किसानों के इस मुकदमे का गहन अध्ययन किया। इस अवसर पर उनके साथ नंदगढ़ बारहा के प्रधान होशियार सिंह दलाल भी मौजूद थे। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि कीटों को मारने की जरुरत नहीं है अगर जरुरत है तो कीटों को पहचानने की, कीटों को समझने की व कीटों को परखने की। सबसे पहले किसान को कीटों की पहचान होना जरुरी है। कीट की पहचान के साथ ही किसान को यह पता होना चाहिए कि कीट उसके खेत में क्या करते हैं। उन्होंने कहा कि खेत में पाई जाने वाली लेडी बिटल को स्कूली बच्चे फैल-पास के नाम से जानते हैं। डा. दलाल ने कहा कि अगर चूरड़ा रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाता है तो माइटल कीट को खाकर फसल को नुकसान से बचाता भी है। उन्होंने बताया कि देश में 221 किस्म की पेस्टीसाइड कंपनियां रजिस्टर्ड हैं और इनमें से 53 पेस्टीसाइडों को कैंसर की जननी घोषित किया जा चुका है। किसान मनबीर रेढू ने बताया कि कातिल बुगड़ा पहले कीट का कत्ल करता है उसके बाद उसका खून चूसता है। दीदड़ बुगड़ा मात्र 30 सैकेंड में मिलीबग का काम तमाम कर देता है। सिंगु बुगड़े के दोनों कंधों पर सिंग होते हैं और यह भी कीट का खून चूसकर गुजारा करता है। बिंदू बुगड़े के कंधों पर बिंदू होते हैं और यह रक्त चूसकर अपनी वंशवृद्धि करता है। रेढू ने देसी कपास व घर पर लुढ़वा कर बोई गई बीटी के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। इसी दौरान निडानी के किसान जयभगवान ने किसानों को अंड़े में से सिंगु बुगड़े के बच्चे निकलते तथा डाकू बुगड़े के बच्चों द्वारा चूरड़े को खाते हुए दिखाया। ईगराह, अलेवा, खरकरामजी, ललीतखेड़ा, निडाना, इंटलकलां व निडानी से आए किसानों ने मासाहारी व शाकाहारी कीटों का अलग-अलग बही खाता तैयार किया। जिसके अनुसार कपास की फसल 100 दिन की होने के बावजूद भी स्प्रे के प्रयोग की कोई जरुरत नजर नहीं आई। बरहा कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने बताया कि  कीटों की हड्डियां बाहर व मास अंदर होता है। कीटों में रक्त का संचार इंसान की तरह नलियों में नहीं खुले में होता है और कीट का खून हवा के संपर्क में आने के बाद भी नहीं जमता। अंडे से पर्याप्त भेजन न मिलने के कारण कीट का बच्चा विकसित होने के लिए बाहर आता है। पाठशाला में रुस्तम ऐ हिंद पहलवान दारा सिंह व किसान सुनील के के पिता के निधन पर दो मिनट का मौन धारण कर शोक प्रकट किया। इस अवसर पर गांव भैणी सुरजन (महम) से भी कुछ किसान कीट ज्ञान प्राप्त करने के लिए पाठशाला में पहुंचे।

नया प्रयोग किया शुरू

 खेत पाठशाला में बही खाता तैयार करते किसान।

कपास के पौधे से बोकियां तोड़ते खाप प्रतिनिधि।

खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।
डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कपास की फसल में बोकी से फूल बनने में 28 दिन का समय लगता है। पौधे पर क्षमता से ज्यादा बोकी आ जाती हैं तो पौधा कुछ बोकियों को गिरा देता है। अगर शाकाहारी कीट कुछ बोकियों को खा लेता है तो पैदावार पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस बात को पुख्ता करने के लिए तीन पौधों को प्रयोग के लिए चुना गया। इन पौधों पर नौ व दस बोकियां मिली। जिनमें से प्रत्येक पौधे से दो या तीन बोकियां खाप प्रतिनिधियों ने अपने हाथों से तोड़कर गिरा दी।



अब जरुरतमंदों को ही मिलेगा हथियार चलाने का प्रशिक्षण


बदमाशों का निशाना बने लोगों को दी जाएगी प्रशिक्षण में वरीयता

नरेंद्र कुंडू
जींद।
लंबे अर्से के बाद जिले में हथियार प्रशिक्षण की शुरूआत होने जा रही है। एक वर्ष की कड़ी मशक्कत के बाद होमगार्ड विभाग को कुछ कारतूस मिल पाए हैं। कारतूसों की कमी को देखते हुए जिला प्रशासन व होमगार्ड विभाग ने विशेष व्यक्तियों को ही हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने का निर्णय लिया है। होमगार्ड विभाग द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार अभी सिर्फ उन्हीं लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी जो बदमाशों का निशाना बने हैं या निशाने पर हैं, ताकि ये लोग ट्रेनिंग लेकर अपना आर्म्ज लाइसेंस बनवाकर हथियार खरीद कर अपनी सुरक्षा खुद कर सकें। फिलहाल होमगार्ड विभाग को सिर्फ 40 लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए एमिनेशन मिल पाया है।
जिले में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में पिछले एक वर्ष से कारतूसों की कमी के चलते होमगार्ड की ट्रेनिंग नहीं हो पा रही थी। ट्रेनिंग बंद होने के कारण आर्म्ज लाइसेंस बनवाने के इच्छु आवेदकों में मायूसी छाई हुई थी। हथियारों का प्रशिक्षण न मिलने के कारण जरुतमंद लोग भी लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं कर पा रहे थे। दरअसल लाइसेंस बनवाने के लिए प्रक्रिया शुरू करने की पहली सीढ़ी होमगार्ड में हथियार चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है। बिना होमगार्ड या एनसीसी के प्रमाण पत्र के आर्म्ज लाइसेंस की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती। लेकिन होमगार्ड विभाग के पास कारतूस उपलब्ध न होने के कारण सारी प्रक्रिया बंद पड़ी थी। जिले में बढ़ते आपराधिक ग्राफ व लोगों के दबाव को देखते हुए जिला प्रशासन ने होमगार्ड मुख्यालय से कारतूसों की डिमांड की थी। जिसके बाद होमगार्ड मुख्यालय द्वारा ट्रेनिंग शुरू करवाने के लिए कारतूस मुहैया करवाए गए। फिलहाल होमगार्ड मुख्यालय द्वारा सिर्फ 40 लोगों को ही ट्रेनिंग देने के लिए कारतूस उपलब्ध करवाए गए हैं। एमिनेशन की कमी को देखते हुए फिलहाल जिला प्रशासन व गृहरक्षी विभाग के जिला कमांडेंट ने जरुरतमंद लोगों को ही ट्रेनिंग देने की योजना तैयार की है। जिला प्रशासन द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार सिर्फ ऐसे लोगों को ही प्रशिक्षण में प्राथमिकता दी जाएगी जो बदमाशों के निशाने पर आ चुके हैं या फिर जिन पर बदमाशों का निशाना टिका हुआ है। गृहरक्षी विभाग द्वारा ट्रेनिंग के लिए उन्हीं आवेदकों को दाखिला दिया जाएगा, जिन्हें पुलिस प्रशासन की तरफ से मंजूरी दी जाएगी। जिला प्रशासन द्वारा इस योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य जरुरतमंदों को लाइसेंस उपलब्ध करवाना है, ताकि जरुरतमंद व्यक्ति अपना स्वयं का हथियार खरीदकर अपनी सुरक्षा कर सकें।

हथियारों के प्रति युवाओं में बढ़ रहे क्रेज पर लगेगा अंकुश

जिले के युवाओं में हथियारों के प्रति काफी क्रेज बढ़ रहा है। लाइसेंस बनवाने की होड़ में युवाओं में मारामारी रहती है। पुलिस प्रशासन व होमगार्ड विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना के बाद हथियारों के प्रति युवाओं में बढ़ रहे क्रेज पर भी अंकुश लगेगा। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से दिखावे या शौक के लिए लाइसेंस बनवाने वाले युवाओं पर अब नकेल कसी जा सकेगी।

जरुरतमंदों को दी जाएगी प्राथमिकता

 जिला कमांडेंट बीरबल कुंडू का फोटो।
कारतूसों की कमी के कारण एक वर्ष से प्रशिक्षण का कार्य बंद था। मुख्यालय की तरफ से अभी 40 व्यक्तियों की ट्रेनिंग के लिए एमिनेशन उपलब्ध करवाय गया है। कारतूसों की कमी को देखते हुए जिला प्रशासन ने विभाग से ऐसे लोगों को ही ट्रेनिंग में प्राथमिकता देने की मांग की थी जो बदमाशों के निशाने पर हैं। इसलिए इस ट्रेनिंग में उन्हीं लोगों को प्राथमिकता दी गई है, जिन्हें इसकी जरुरत है। उन्होंने विभाग से ओर एमिनेशन की मांग की है। ताकि बचे हुए आवेदकों को भी प्रशिक्षण दिया जा सके।
बीरबल कुंडू, जिला कमांडेंट
गृहरक्षी विभाग, जींद 

आईटी विलेज के इतिहास में जुड़ा एक ओर नया अध्याय

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ बिगुल बजाकर पंचायत ने शुरू की नई पहल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
आईटी विलेज बीबीपुर के इतिहास में शनिवार को एक ओर अध्याय जुड़ गया। ग्राम पंचायत ने सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत के नेतृत्व में कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति के विरोध में बिगुल बजा दिया। गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हुई इस महापंचायत में हरियाणा के अलावा दूसरे प्रदेशों से आए खाप चौधरियों ने खुलकर कन्या भ्रूण हत्या को विरोध किया। खाप चौधरी के अलावा महिला खाप प्रतिनिधि व अन्य सामाजिक संगठनों से आई महिला अधिकारी भी इस सामाजिक बुराई के विरोध में जमकर बरसी। बीबीपुर पंचायत ने महापंचायत के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में यह लड़ाई शुरू कर 2004 में खाप पंचायतों द्वारा शुरू किये गए अभियान को गति प्रदान कर दी है। इस महापंचायत के फैसले को सुनने के लिए आस-पास के लोगों के अलावा दूर-दूर से शोधार्थी, शिक्षाविद व सामाजिक संगठनों के लोग भी आए हुए थे। इस महापंचायत के फैसले पर प्रदेश ही नहीं अपितू दूसरे प्रदेशों के लोगों की भी नजर टिकी हुई थी। लोगों को उम्मीद थी कि महापंचायत कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कोई नया फतवा जारी करेगी और बड़े-बडेÞ विवादों को चुटिकियों में सुलझाने वाली खाप पंचायतें शायद इस समस्या का भी कोई तोड़ निकाल कर दुनिया को नया रास्ता दिखाएंगी।

जागरुकता के अलावा नहीं नजर आया कोई रास्ता

खाप पंचायतों ने भले ही वर्षों पुराने विवादों का तोड़ ढुंढ़ कर दुनिया के सामने मिशाल कायम की हो, लेकिन कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने के लिए खाप चौधरियों को केवल जागरुकता के अलावा ओई कोई उपाय नहीं सुझा। लगातार पांच घंटे तक हुए गहन मंथन के बाद खाप प्रतिनिधि इसी फैसले पर पहुंचे कि अगर कन्या भ्रूण हत्या को रोकना है तो इसके लिए उन्हें लोगों को जागरुक करना होगा। इसलिए महापंचायत में चौधरियों ने पूरे उत्तर भारत के लोगों को जागरुक करने का फैसला लिया और सभी खाप पंचायतों को अपने-अपने क्षेत्र में जागरुकता अभियान चलाने की जिम्मेदारी सौंपी।

पढ़े लिखे लोगों ने ही बोया कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराई का बीज

महापंचायत में जितने भी वक्ताओं ने अपने विचार रखे सभी के विचारों से एक बात तो साफ हो गई कि इस बुराई का बीज गांव के अनपढ़ लोगों ने नहीं बल्कि पढ़े लिखे शहरी बाबूओं ने बोया है। खाप प्रतिनिधियों ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि गांव के अनपढ़ लोगों को तो इस रास्तों का पता ही नहीं था। शहरी लोगों ने ही उन्हें यह रास्ता दिखाया है। इसलिए तो आज भी गांवों में एक-एक परिवार में कई-कई लड़कियां मिल जाती हैं, लेकिन शहर में 99 प्रतिशत परिवारों में एक लड़की के सिवाए दूसरी लड़की नहीं मिलती। इससे यह बात साफ है कि शहर के पढ़े लिखे लोग जिन्हें समाज की प्रगति की सीढ़ी कहा जाता है कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने में आगे हैं।

लेडिज फर्स्ट

महापंचायत में महिलाओं को प्राथमिकता दी गई। महापंचायत की कार्रवाई राजकीय कॉलेज की लेक्चरार सुप्रिया ढांडा द्वारा ‘कोर्ट मै एक कसूता मुकदमा आया, एक सिपाही कुत्ते नै बांध कै लाया’ कविता के साथ शुरू हुई। इसके साथ ही गांव की महिलाएं हरियाणवी रीति-रिवाज के अनुसार गीत गाती व नाचती हुई स्कूल में पहुंची। इसके बाद सरपंच सुनील जागलान की बहन रीतू जागलान द्वारा ट्रेंड की गई लड़कियों ने ‘बेटी है अनमोल’ नाटक के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर कटाक्ष किया। नाटक में लड़कियों ने ‘चाहे मुझको प्यार न देना चाहे मुझको दुलार ने देना, करना बस इतना काम मुझको गर्भ में न देना मार’ गीत प्रस्तुत कर पंचायत में मौजूद लोगों को भावुक कर दिया।

बेटी पर खर्च होता है प्रोपार्टी का केवल दस प्रतिशत हिस्सा

 महापंचायत में पहुंचने के बाद हरियाणवी रीति-रिवाज के अनुसार नृत्य करती महिलाएं।

 कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में नाटक प्रस्तुत करती लड़कियां।

 पंचायत की कार्रवाई शुरू होने से पहले कविता प्रस्तुत करती सुप्रिया ढांडा।
महिला प्रधान डा. संतोष दहिया ने कहा कि उन्होंनें कन्या भ्रूण हत्या पर काफी शोध किया है और वे लोगों को जागरुक करने के लिए 35 हजार हस्ताक्षर भी करवा चुकी हैं। इस दौरान महिलाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या करवाने का मुख्य कारण यह सामने आया है कि महिलाएं समझती हैं कि जो दुख उन्होंने सहन किए हैं, वे दुख उनकी बेटी का न सहन करना पड़े इसलिए वे कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कार्य में संलिप्त होती हैं। दहिया ने बताया कि आज महिलाएं घर व बाहर कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत महिलाएं अपनी जमीन अपने भाई के नाम कर देती हैं। लेकिन क्या कभी कोई ऐसा भाई देखा है जिसने अपनी जमीन अपनी बहन या दूसरे भाई के नाम की हो। दहिया ने कहा कि प्रत्येक बाप अपनी प्रोपार्टी का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही बेटी पर खर्च करता है।



कन्या भ्रूण हत्या पर खापों ने सुनाया फतवा

कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों पर दर्ज हो 302 का मुकदमा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। आईटी विलेज बीबीपुर में शनिवार को उत्तर भारत की सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया। महापंचायत में हरियाणा के अलावा दिल्ली व उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों के 100 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने शिरकत की। महापंचायत की अध्यक्षता नौगामा खाप प्रधान कुलदीप रामराये व कार्यकारी चंद्रभान नंबरदार ने संयुक्त रुप से की। पंचायत में विभिन्न खापों से आए प्रतिनिधियों ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अपने-अपने विचार प्रकट किए तथा इस सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने के लिए पांच घंटों तक गहन मंथन किया। सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने महापंचायत का फैसला सुनाते हुए कहा कि महापंचायत उत्तर भारत के लोगों को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का आह्वान करेगी तथा कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों के साथ सख्ती से निपटेंगी। इसके अलावा सरकार से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए अधिनियम में संसोधन करवाने की मांग करते हुए कन्या भ्रूण हत्या में दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ 302 का मुकदमा दर्ज कर सख्त से सख्त कार्रवाई करवाने का प्रस्ताव पास किया गया। इस महापंचायत की सबसे खास बात यह रही कि इसमें महिलाओं को भी पुरुषों के साथ मंच पर बैठने के लिए बराबर स्थान दिया गया।
आईटी विलेज बीबीपुर में 18 जून को पहली महिला ग्रामसभा का आयोजन कर महिलाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रस्ताव डाल कर सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत बुलाने की मांग की थी। जिसके तहत शनिवार को गांव में सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया। महापंचायत में हरियाणा, दिल्ली व उत्तर प्रदेश की विभिन्न खापों से आए प्रतिनिधियों ने भाग लिया था इस सामाजिक बुराई को मिटाने के लिए अपने-अपने विचार पंचायत के समक्ष रखे। इस महापंचायत में पुरुषों के साथ-साथ महिला प्रतिनिधियों ने भी शिरकत की तथा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अपने सुझाव खाप चौधरियों के सामने रखे। पंचायत के दौरान सभी खाप प्रतिनिधियों ने इस मसले को हल करने के लिए गहन मंथन किया। सभी प्रतिनिधियों के विचार सुनने के बाद इस मामले में ठोस निर्णय लेने के लिए एक 11 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। लेकिन सभी खाप प्रतिनिधियों ने पंचायत द्वारा मंच पर ही किए गए फैसले को अपना समर्थन देकर कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रस्ताव पास करवाने की मांग की। सर्व खाप महापंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने महापंचायत द्वारा लिया गया फैसला सुनाते हुए कहा कि महापंचायत उत्तर भारत के लोगों को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का आह्वान करेगी। सभी खाप पंचायतें अपने-अपने क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जागरुकता अभियान चलाएंगी तथा कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों के साथ सख्ती से निपटेंगी। इसके अलावा सरकार से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए अधिनियम में संसोधन करवाने की मांग करते हुए कन्या भ्रूण हत्या में दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ 302 का मुकदमा दर्ज कर सख्त से सख्त कार्रवाई करवाने का प्रस्ताव पास किया गया। महापंचायत में मौजूद सभी प्रतिनिधियों ने हाथ उठाकर कन्या भ्रूण हत्या न करने की शपथ ली। इस अवसर पर पंचायत में 103 वर्षीय वयोवृद्ध समाजसेवी उदय सिंह मान, बाल्याण खाप के प्रधान राकेश टिकैत, भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर, रामकरण सोलंकी प्रधान पालम 360 खाप दिल्ली, नौगामा खाप प्रधान कुलदीप रामराये, चंद्रभान नंबरदार, देशवाल खाप प्रतिनिधि रामचंद्र देशवाल, कंडेला खाप प्रधान टेकराम कंडेला, राव मान सिंह, सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत की महिला अध्यक्ष डा. संतोष दहिया केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय से उमा अय्यर, मानवाधिकार आयोग के प्रदेशाध्यक्ष मनोज दहिया, सहित अन्य खाप प्रतिनिधि मौजूद थे।

दारा सिंह को दी श्रद्धांजलि

महापंचायत में मौजूद सभी खाप प्रतिनिधियों ने रुस्तम ऐ हिंद व हिंदी सिनेमा के महानायक दारा सिंह के निधन पर शोक प्रकट किया। पंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व अन्य लोगों ने खड़े होकर दो मिनट का मौन धारण कर स्व. दारा सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। कुलदीप ढांडा ने कहा कि दारा सिंह की मृत्यु से देश को गहरा आघात पहुंचा है।
पंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधि।

पंचायत में मौजूद महिलाएं।

पंचायत में मंच पर बैठे खाप प्रतिनिधि।



सोमवार, 16 जुलाई 2012

मौत के साये में सफर करने को मजबूर हैं नौनिहाल

बड़े हादसे को अंजाम दे सकती है जरा सी लापरवाही

नरेंद्र कुंडू
जींद।
नौनिहालों को घर से स्कूल तक का सफर मौत के साये में तय करना पड़ रहा है। विगत जनवरी माह में अम्बाला में हुए भयंकर स्कूल बस हादसे से भी शायद जिला प्रशासन व स्कूल संचालकों ने कोई सबक नहीं लिया है। जिला प्रशासन, पुलिस व स्कूल संचालक इस हादसे को पूरी तरह से भूला चुके हैं। अम्बाला हादसे के कुछ दिन तक तो सबकुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन अब फिर से सिस्टम पुराने ढर्रे पर लौट आया है। स्कूल बसों व आटो का वही खतरनाक मंजर फिर से शुरू हो गया है। स्कूली वाहनों में बच्चों को बेतरतीब व खचाखच भरा जाता है। आटो व रिक्शाओं में तो बच्चे लटक कर सफर करने पर मजबूर हैं। स्कूली बस व आटो चालक खुलेआम ट्रेफिक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं और इसकी परवाह  न तो पुलिस प्रशासन को है और न ही स्कूल संचालकों को। लगता है जिला प्रशासन व स्कूल संचालक फिर से किसी बड़े हादसे के इंतजार में हैं।
ट्रैफिक पुलिस जिले में ट्रैफिक व्यवस्था को पूरी तरह से दुरस्त करने की बड़ी-बड़ी ढींगें हांक रही है। लेकिन दूसरी ओर शहर की सड़कों पर हर रोज स्कूल वाहन चालकों द्वारा ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ट्रैफिक पुलिस, स्कूल संचालकों व वाहन चालकों की लापरवाही के चलते हर रोज हजारों बच्चों को घर से स्कूल तक का सफर मौत के साये में तय करना पड़ रहा है। पुलिस प्रशासन की यह लापरवाही कभी भी अभिभावकों पर भारी पड़ सकती है। विगत 2 जनवरी को साहा (अम्बाला) में स्कूल वाहन हादसे में 13 बच्चों की मौत के बाद कुछ दिन प्रशासन चौकस रहा तथा स्कूलों ने भी  इस ओर गंभीरता दिखाई, सख्ती भी  हुई, व्यवस्था में कुछ सुधार भी होता दिखा। लेकिन फिर से सिस्टम पुराने ढर्रे पर लौटता दिख रहा है। प्रशासन सो चुका है और स्कूल प्रबंधन ढीले पड़ गए हैं। ऐसे में बच्चों की जान की किसी को परवाह नहीं है। प्रशासन की आंखों के सामने फिर से स्कूली बच्चों की जान से खिलवाड़ एक बार फिर शुरू हो चुका है। ट्रैफिक पुलिस भले ही कानूनी कार्रवाई की बात कहे, लेकिन सड़कों पर स्कूली बसों, आटो और प्राइवेट वाहनों में सामान की तरह ठूंसे गए बच्चे खतरनाक तस्वीर को पेश करते हैं। स्कूल वाहन चालकों की लापरवाही को देखकर ऐसा लगता है जैसी जिला पुलिस और प्रशासन की नींद फिर किसी हादसे के बाद ही खुलेगी। ‘आज समाज’ की टीम ने जब कई स्कूलों के वाहनों को चेक किया तो प्राइवेट स्कूलों की छुट्टी के समय अधिकांश स्कूली बसों के ड्राइवर नियमों की खुलेआम अवहेलना करते हुए सड़कों पर दौड़ते नजर आए। सबसे गंभीर स्थिति आटो में सवार बच्चों की थी। सामान्यत तीन से चार की क्षमता वाले आटो में फिर से 10 से 15 बच्चों को भरकर ले जा रहे हैं। इन पर न तो ट्रेफिक पुलिस की नजर इन पर पड़ रही है और न ही प्रशासन इस संबंध में कोई कार्रवाई कर रहा है। स्कूल संचालक भी  वाहन चालकों की लापरवाही की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। पुलिस भले ही कानूनी कार्रवाई की बात कहे, लेकिन हर रोज सड़कों पर स्कूली बसों, आॅटो और प्राइवेट वाहनों में बच्चों को बुरी तरह से सामान की तरह ठुंस-ठुंस कर भरकर ले जाते देखा जा सकता है। स्कूल वाहन चालकों की यह तस्वीर देखकर ऐसा लगता है जैसे जिला पुलिस और प्रशासन की नींद फिर से किसी बड़े हादसे के बाद ही खुलेगी।

की जाएगी सख्त कार्रवाई

स्कूल की छुट्टी के बाद बच्चों को आॅटो में भरकर ले जाता आटो चालक।
ट्रेफिक नियमों की अवहेलाना करने वालों को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा। ट्रेफिक पुलिस की टीम गठित कर पूरे शहर में अभियान चलाए जाएंगे। स्कूलों में जाकर वाहन चालकों को भी ट्रेफिक नियमों का पालन करने के लिए जागरुक किया जाएगा। पहले वाहन चालकों को अभियान चलाकर जागरुक किया जाएगा। अगर फिर भी वाहन चालक नियमों की अवहेलना करते पाए गए तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सज्जन सिंह
ट्रेफिक इंचार्ज, जींद


गुरुवार, 12 जुलाई 2012

महापंचायत में ‘नायक’ की भूमिका निभाएंगी खाप पंचायतें

खापों की छवि पर लगे तालिबानी के दाग को धोने के लिए उठाया कदम

नरेंद्र कुंडू  
जींद। तुगलकी फरमान जारी करने तथा तालिबानी के नाम से जानी जाने वाली उत्तर भारत की खाप पंचायतें अब कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ मोर्चा खोलकर दुनिया को अपना सामाजिक चेहरा दिखाएंगी। इसके लिए 14 जुलाई को बीबीपुर गांव के राजकीय सीनियर सैकेंडरी स्कूल में एक सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है। इस महापंचायत में पूरे उत्तर भारत की तमाम खापों के चौधरी भाग लेंगे तथा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सर्व सम्मति से फैसला कर अपना फतवा जारी करेंगे। इस मुहिम से जुड़ने के बाद जहां खाप पंचायतों का एक नया चेहरा दुनिया के सामने आएगा, वहीं खाप पंचायतें एक अलग इतिहास रच कर दूसरी खाप पंचायतों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बनेंगी। खाप पंचायतों के अलावा गांव की महिलाएं भी इस महापंचायत में एक अहम रोल अदा करेंगी। जिन महिलाओं पर पंचायत में बोलने पर प्रतिबंध होता था, वही महिलाएं गीतों व नाटक के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर कटाक्ष कर चौधरियों से न्याय की गुहार लगाएंगी।    

उदय सिंह मान व राजराम मील ने भी स्वीकारा निमंत्रण

14 जुलाई को बीबीपुर गांव के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में होने वाले सर्व खाप महापंचायत में 103 बसंत देख चुके रोहतक निवासी उदय सिंह मान भी शिरकत करेंगे। यह उदय सिंह मान और कोई नहीं बल्कि वही हैं, जो बंसीलाल सरकार में चंडीगढ़ को पंजाब में मिलाने की कोशिश के दौरान प्रदेश की खाप पंचायतों के प्रतिनिधि के रूप में 47 दिन तक भूख हड़ताल पर बैठे थे। रोहतक निवासी उदय सिंह मान ने बीबीपुर गांव की पंचायत द्वारा 14 जुलाई के भेजे गए सर्व खाप महापंचायत के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। 103 वर्षीय उदय सिंह मान अपने पोते राजीव मान के साथ महापंचायत में शिरकत करेंगे। वहीं महापंचायत में आने के लिए राजस्थान की जाट महासभा के प्रधान राजाराम मील ने भी हामी भर दी है। वह भी अपने प्रतिनिधियों के साथ 14 जुलाई को बीबीपुर गांव में होने वाली महापंचायत में शिरकत करेंगे।

दो मिनट का ही मिलेगा समय

14 जुलाई को बीबीपुर गांव में होने वाली सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत में पूरे उत्तर भारत से 150 खाप प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है। महापंचायत के आयोजन का मुख्य एजेंडा गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कोई ठोस निर्णय लेना है। सरपंच सुनील जागलान ने बताया कि पंचायत में सभी प्रतिनिधियों को अपने विचार प्रकट करने के लिए सिर्फ दो मिनट का ही समय मिल पाएगा। महापंचायत में खाप पंचायत प्रतिनिधियों की संख्या को देखते हुए समय सीमा तय की गई है। ताकि सभी प्रतिनिधियों को पंचायत के सामने अपने विचार रखने का मौका मिल सके।

नाटक व गीतों के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर करेंगी कटाक्ष

महापंचायत में खाप चौधरियों के सामने अपने विचार रखने के लिए गांव की महिलाएं तैयारियों में जुटी हुई हैं। महिलाओं को ट्रेंड करने के लिए सरपंच की बहन रीतू जागलान हर रोज महिलाओं को विशेष ट्रेनिंग दे रही है। कन्या भ्रूण हत्या पर के खिलाफ लोगों को जागरुक करने के लिए महिलाओं ने एक लघु नाटक ‘कन्या है अनमोल’ तैयार किया है। नाटक में खुद रीतू जागलान एक जागरुक महिला की भूमिका निभाएंगी। नाटक के साथ-साथ इन महिलाओं ने ‘सुन कन्या की बात देख कै क्यूं रोया निर्भग जगत में आ लेनदे’ गीत भी तैयार किया है। इस गीत के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या करवाने वाले लोगों पर कटाक्ष किया गया है। इस गीत को गांव की ही एक अनपढ़ महिला शीला ने खुद तैयार किया है। इसके अलावा महिलाओं ने ‘एक अजनमी बच्ची की पुकार’ कविता तथा डांस भी तैयार किया है। इस सारे कार्यक्रम के लिए रीतू जागलान 6 लड़कियों व 12 महिलाओं को ट्रेनिंग दे रही है।

महिलाओं ने कीटों की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ

नरेंद्र कुंडू 
जींद। फसल में जिन कीटों को देखकर किसान अकसर डर जाते हैं और उन्हें अपना दुश्मन समझकर उनके खात्मे के लिए स्प्रे टंकियां उठा लेते हैं, उन्हीं कीटों को ललीतखेड़ा व निडाना गांव की महिलाएं किसान का सबसे बड़ा दोस्त बताती हैं। इसलिए इन महिलाओं ने कीटों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। कीटों ने भी इनकी भावनाओं को समझते हुए इनके साथ पहचान बना ली है। इसलिए तो महिलाओं  के खेत में पहुंचते ही कीट इनके पास आकर बैठ जाते हैं। ललीतखेड़ा गांव में लगने वाली महिला किसान पाठशाला में अकसर इस तरह के नजारे देखने को मिल जाते हैं। बुधवार को आयोजित महिला किसान पाठशाला में भी इसी तरह का वाक्या सामने आया, जब एक मासाहारी दीदड़ बुगड़ा शांति नामक एक महिला के चेहरे पर आकर बैठ गया। शांति शांत ढंग से बैठी रही और पाठशाला में मौजूद अन्य सभी महिलाएं लैंस की सहायता से उसे देखने में मशगुल हो गई। अंग्रेजो ने महिलाओं को दीदड़ बुगड़ा दिखाते हुए बताया कि यह व इसके बच्चे खून चूसक होते है। इस दौरान पिंकी ने सवाल उठाया कि यह किस का खून चूसता है। मनीषा ने जवाब देते हुए कहा कि आज के दिन कपास की फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला व चूराड़े ही मौजूद हैं। इसलिए दीदड़ बुगड़ा इन्ही कीटों का खून चूसता है। शीला ने महिलाओं को सलेटी भूंड दिखाते हुए बताया कि आज के दिन कपास में सलेटी भूंड  की तादात प्रति पौधा एक की है और यह शाकाहारी है तथा पत्तों को खाकर अपना गुजारा करता है। इसी दौरान शीला ने महिलाओं को प्रजनन क्रियाएं करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल दिखाते हुए कहा कि इसके बच्चे व इसका प्रौढ़ दोनों मासाहारी होते हैं जो शाकाहारी कीटों को खा कर अपना वंश चलाते हैं। सविता ने सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं को हरिया बुगड़े को पत्तों से रस चूसते हुए दिखाया। रणबीर मलिक ने बताया कि कपास की फसल में 2 से 28 प्रतिशत तक पर परागन होता है और यह केवल कीटों से ही संभव है। अगर किसान फसल में मौजूद कीटों के साथ छेड़खानी न करें तो पर पररागन के कारण 2 से 28 प्रतिशत तक फूल से टिंडे ज्यादा बनने की संभावाना होती है। मनबीर रेढू ने महिलाओं द्वारा खेत का सर्वेक्षण कर प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से तैयार किए गए बही-खाते से हिसाब लगाकर बताया कि फिलहाल कपास की फसल में कोई भी शाकाहारी कीट हानि पहुचाने की स्थिति में नहीं है। मनबीर रेढू की इस बात पर पाठशाला में मौजूद कृषि अधिकारियों, खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा व सभी महिलाओं ने सहमती जताई। विषय विशेषज्ञ डा. राजपाल सूरा ने महिलाओं को राजपुरा-माडा तथा पाली गांव का उदहारण देते हुए बताया कि राजपुरा-माडा गांव में किसानों द्वारा पाली गांव से ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए पाली के मुकाबले राजपुरा-माडा गांव में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। उपमंडल कृषि अधिकारी सुरेंद्र मलिक ने महिलाओं को गोबर का ढेर लगाने की बजाए कुरड़ी में गोबर डालने की सलाह दी। खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने किसान व कीटों की इस लड़ाई की तुलना महाभारत की लड़ाई से करते हुए कहा कि कीटों की तीन जोड़ी टांग व दो जोड़ी पंख होते हैं तथा कीटों में प्रजनन की क्षमता भी ज्यादा होती है। इसलिए इस जंग में किसानों की अपेक्षा कीटों का पलड़ा भारी है। ढांडा ने कहा कि किसान के पास कीटों को मारने के लिए कीटनाशक शस्त्र के अलावा कुछ नहीं है जबकि कीटों के पास अपने बचाव के लिए अस्त्र व शास्त्र दोनों हैं। इस अवसर पर उनके साथ सहायक पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल व खंड कृषि अधिकारी जेपी कौशिक भी मौजूद थे।  
 प्रजनन क्रिया करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल


अपने चेहरे पर बैठे कीट को दिखाती महिला।

पोधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं
पौधों कीटों की संख्या दर्ज करती महिलाएं।

खाप पंचायतों के प्रतिनिधि पढ़ रहे कीटों की पढ़ाई

लड़ाई में दोनों पक्ष हो रहे हैं घायल 

नरेंद्र कुंडू
जींद। इतिहास गवाह है जब भी लड़ाइयां हुई हैं सिवाये विनाश के कुछ हाथ नहीं लगा है। इसलिए तो कहा जाता है कि लड़ाई का मुहं हमेशा काला ही होता है। अगर समय रहते किसानों व कीटों के बीच दशकों से चली आ रही इस लड़ाई को खत्म नहीं किया गया तो इसके परिणाम ओर भी गंभीर होंगे। जिसका खामियाजा हमारी आने वाली पुश्तों को भुगतना पड़ेगा। इस झगड़े को निपटाने का बीड़ा जो खाप पंचायतों ने उठाया है वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। लेकिन दशकों से चले आ रहे इस झगड़े को निपटाना इतना आसान काम नहीं है। यह एक बड़ा ही पेचीदा मसला है। इसलिए खाप पंचायत प्रतिनिधियों को इस विवाद को सुलझाने के लिए अपना फैसला देने से पहले इस विवाद की गहराई तक जाने तथा कीटों की भाषा सीखने की जरुरत पड़ेगी। ताकि पंचायत इस मसले को हल करते वक्त निष्पक्ष फैसला दे सकें। यह सुझाव कीट कमांडो किसान मनबीर रेढू ने मंगलवार को निडाना में खाप पंचायत में पहुंचे विभिन्न खाप पंचायत प्रतिनिधियों के सामने रखा। खाप पंचायत की तीसरी बैठक में अखिल भारतीय जाट महासभा  व मान खाप के प्रधान ओमप्रकाश मान, पूनिया खाप के प्रतिनिधि दलीप सिंह पूनिया, सांगवान खाप प्रतिनिधि कटार सिंह सांगवान, जाटू खाप चौरासी के प्रतिनिधि राजेश घनघस तथा सतरोल खाप प्रतिनिधि धूप सिंह खर्ब विशेष तौर पर मौजूद थे। पंचायत में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों ने कीटों की भाषा सीखने के लिए नरमा के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ गहन मंथन किया।
 पाठशाला में बही-खाता तैयार करते किसान।

पौधों के पत्ते काटते खाप प्रतिनिधि।
पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि आज लोगों में जो खून की कमी के मामले सामने आ रहे हैं उसका मुख्य कारण हमारा खान-पान का जहरीला होना है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण आज हमारा खान-पान पूरी तरह से जहरीला हो चुका है। अगर यही परिस्थितियां रही तो हमारी आने वाली पीढि़यों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। डा. दलाल ने कहा कि किसान कीटों को मारने के लिए जब कीटनाशकों का स्प्रे करता है तो उसका सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा ही कीटों पड़ता है, बाकी 99 प्रतिशत हिस्सा हवा, पानी व जमीन में घूल जाता है। कीटों के पत्ते खाने या रस चूसने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि फसल के उत्पादन बढ़ाने में तो कीटों की अहम भूमिका होती है। क्योंकि कीटों का परागरन में विशेष योगदान होता है। फसल के उत्पादन का मुख्य कारण खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या होना है। डा. दलाल ने मासाहारी मक्खियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि दैत्य मक्खी उड़ते हुए कीटों को खाती है और अपने वजन से ज्यादा मास खाने वाली यह दुनिया की एकमात्र मक्खी है। हमारे किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से जानते हैं। तुलसा मक्खी चूरड़े, हरातेले को खाती है और जब इसे भोजन नहीं मिलता है तो यह खुद के वंश को भी खा जाती है। डायन मक्खी उंचाई पर बैठकर शिकार करती है तथा शिकार को लुंज कर उसका खून पीती है। सिरफोड़ मक्खी कीटों को उछाल-उछाल कर खाती है। इसके अलावा टिकड़ो मक्खी सुंडी पर अपने अंडे देती है तथा अंडों में से बच्चे निकलने के बाद टिकड़ो मक्खी के बच्चे सुंडी को अपना भोजन बनाते हैं। डा. कमल सैनी ने कहा कि इन 20 वर्षों में कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। अकेले हिंदुस्तान में लगभग 40 हजार करोड़ के कीट रसायनों, लगभग 50 हजार करोड़ के खरपतवार नाशकों तथा लगभग 30 हजार करोड़ बीमारी, फफुंद व जीवाणु नाशक रसायनों का कारोबार होता है। इस कारोबार से होने वाली आमदनी का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा विदेशों में जा रहा है। सैनी ने राजपुरा भेंण का उदहारण देते हुए कहा कि इस गांव के अड्डे पर कीटनाशक बिक्री की चार दुकानें हैं, जिनका साला का चार करोड़ का कारोबार है और इसमें से अकेले तीन करोड़ के कीटनाशक राजपुरा भेंण के किसान खरीदते हैं।

कैंसर के मरीजों पर जताई चिंता 

पाठशाला में पहुंचे किसानों ने बढ़ते कैंसर के मरीजों की संख्या पर चर्चा की। चाबरी निवासी सुरेश ने कहा कि उनके गांव में 8 लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बन चुके हैं। ललीतखेड़ा निवासी रामदेवा ने बताया उनके गांव में कैंसर के कारण एक परिवार की दो पीढि़यां खत्म हो चुकी हैं। लाडवा (हिसार) से आए एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 25, अलेवा निवासी जोगेंद्र ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के 10 लोग, निडानी में 9, ईगराह में 11 तथा सिवाहा निवासी एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 7 लोग मौत के मुहं में समा चुके हैं।

सवाल का निकाला तोड़

रणबीर मलिक ने गत सप्ताह पंचायत के सामने अपना सवाल रखा था कि पौधे रंग-बिरंगे फूलों से श्रंगार क्यों करते हैं। इन्हें श्रंगार की क्या आवश्यकता है। इस मंगलवार को हुई पंचायत में किसानों ने रणबीर मलिक के सवाल का जवाब देते हुए बताया कि पौधे कीटों को अपनी ओर आकृषित करने के लिए रंग-बिरंगे फूलों का श्रंगार करते हैं। अगर कीट फूल के पत्तों को खा लेते हैं तो उससे पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि पत्तों का काम तो   केवल कीटों को आकर्षित करना है। कीट फसल में परागन की भूमिका निभाते हैं। इसलिए पौधे कीटों को आकर्षित करने के लिए फूलों का श्रंगार करते हैं।

जाट महासभा प्रधान को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान

दुसरे खाप प्रतिनिधिओं  को भी लांगे पाठशाला में 

आज 25 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण कैंसर है और कैंसर का कारण पेस्टीसाइड का बढ़ता प्रयोग है। खाप पंचायत के सामने निडाना के कीट मित्र किसानों ने इस विवाद को निपटाने की गुहार लगाई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पंचायत को इस झगड़े की गहराई तक जाकर कीटों की भाषा सीखने की जरुरत है। इसलिए पंचायत के प्रतिनिधि बारी-बारी किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर इनकी भाषा सीख रहे हैं। अगली बार वे भिवानी से 84 श्योराण खाप व तोशाम से फौगाट खाप सहित 6 खापों के प्रतिनिधियों को यहां लेकर आएंगे।
ओमप्रकाश मान, प्रधान
अखिल भारतीय जाट महासभा






खुले पड़े मौत के बोरवेल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
अभी हाल ही में गुड़गांव में बोरवले में फंसने के कारण हुई 5 वर्षीय माही की मौत ने भले ही हर किसी की आंखें खोल दी हों , लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी जिला प्रशासन की नींद नहीं टूट रही है। इससे यह बात साफ हो रही है कि जिला प्रशासन ने माही की मौत से भी कोई सबक नहीं लिया है। सरकार द्वारा खुले बोरवेलों को बंद करने के आदेशों के बाद  जिला प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। शायद प्रशासन को अभी और बच्चों को भी प्रिंस और माही बनने का इंतजार है। इसलिए तो जिला प्रशासन ने जिले में खुले बोरवेलों को बंद करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। शायद प्रशासनिक अधिकारियों को नरवाना के नेहरु पार्क में खुले बोरवेल व सीवरेज के मेनहाल दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। पार्क में खुले पड़े ये बोरवेल व मेनहाल कभी भी किसी बड़े हादसे को अंजाम दे सकते हैं। शहर के हजारों लोग हर रोज सुबह-शाम यहां अपने बच्चों के साथ घूमने के लिए आते हैं। जिस कारण यहां जरा सी लापरवाही दोबारा फिर गुड़गांव या अंबाला के हादसे को ताजा कर सकती है। सार्वजनिक स्थान पर खुले पडे इस बोरवेल व मेनहाल ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
देश में खुले बोरवेल के कारण हो रहे हादसों से प्रशासन सबक नही ले रहा। पिछले दिनों गुड़गांव में बोरवेल में गिरने से 5 वर्षीय माही की मौत के बाद तो प्रदेश सरकार ने खुले पड़े बोरवेलों को बंद करने के आदेश जारी किए थे। खुले बोरवेलों को बंद करने के साथ-साथ सरकार ने खुले बोरवेल की जानकारी देने वाले को ईनाम तक देने की भी घोषणा की थी। इतना ही नहीं बिना अनुमति के बोरवले खोदने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करने के आदेश जारी किए गए थे। लेकिन सरकार के आदेशों के बावजूद भी नरवाना के नेहरू पार्क में खुला बोरवेल व सीवरेज का खुला मेनहाल कभी भी अंबाला व गुड़गांव के हादसे को दोहरा सकता है। यहां के अधिकारियों पर तो जब सैईयां भैये कोतवाल तो डर काहे का वाली कहावत स्टीक बैठ रही है। क्योंकि नरवाना का पुराना वाटर वर्कस व नेहरू पार्क एक साथ लगते हैं और जिसके रख-रखाव की जिम्मेवारी खुद जन स्वास्थ्य विभाग की है। शहर का एकमात्र पार्क होने के कारण यहां पर सुबह-शाम शहर से सैकड़ों की संख्या में नन्हे-मुन्ने बच्चे अपने माता-पिता के साथ सैर करने के लिए आते हैं तथा पार्क में आकर मौज-मौस्ती करते हैं। ऐसे में पार्क में खुले बोरवेल व मेनहोल किसी बड़े हादसे को निमंत्रण दे सकते हैं। शायद अधिकारियों को इस बात का भी अंदाजा नहीं कि उनकी जरा सी लापरवाही किसी माता-पिता के लिए उम्र भर की सजा बन सकती है।

उनकी जानकारी में नहीं है सूचना

इस बारे में जब जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यकारी अभियंता ऐके पाहवा से बातचीत की गई तो उनका वही रटा-रटाया जवाब मिला कि इसके बारे में उनको जानकारी नही है। यह मामला अभी उनकी जानकारी में आया है। खुले पड़े इस बोरवेल व सीवरेज के मेनहाल को तुरंत बंद करवा दिया जाएगा।

नेहरू पार्क में खुला छोड़ा गया बोरवेल

 नेहरू पार्क में खुला छोड़ा गया सीवरेज का खुला मेन हॉल।

बिना सुविधाओं के टोल वसूल रही मोबाइल कंपनियां

किसानों को नहीं मिल पा रही किसान कॉल सेंटर की फ्री हैल्प लाइन सुविधा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
इसे ट्राई की लापरवाही कहें या मोबाइल कंपनियों की दादागीरी जिसके चलते किसानों को ‘किसान हैल्प लाइन’ सुविधा का लाभ  नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा घर बैठे-बिठाए ही किसानों की समस्या के निदान के लिए 2007 में किसान हैल्प लाइन सुविधा शुरू की गई थी। किसान मोबाइल के माध्यम से किसान कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों के सामने अपनी समस्या रखकर उसका निदान करवा सकें इसके लिए सरकार द्वारा 1551 टोल फ्री नंबर जारी किया गया। अधिक से अधिक किसान इस सुविधा का लाभ ले सकें इसके लिए सरकार द्वारा प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे। लेकिन ट्राई (टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी आफ  इंडिया) की सुस्ती के चलते किसान हैल्प लाइन की इस सुविधा पर प्राइवेट मोबाइल कंपनियों की लापरवाही का ग्रहण लग गया। हालांकि प्राइवेट मोबाइल कंपनियां इन सेवाओं के बदले अपने उपभोक्ताओं से कॉल रेट के माध्यम से कुछ हिस्सा वसूलती हैं। लेकिन मोबाइल कंपनियां द्वारा इस सुविधा को बंद कर सरकार व उपभोक्ता दोनों को चूना लगाया जा रहा है।
भले ही सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक रुप से सुदृढ़ करने के लिए अनेकों योजनाएं क्रियविंत कर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हों, लेकिन वास्तव में अगर देखा जाए तो सरकार द्वारा शुरू की गई किसान हितैषी योजनाएं किसानों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। एक ऐसी ही किसान हितेषी योजना केंद्र सरकार द्वारा 2007 में ‘किसान हैल्प लाइन’ के नाम से शुरू की गई थी। इसके लिए 1551 नंबर निर्धारित किया गया था। सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसान कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों की सहायता से किसानों की समस्याओं का निदान करवाना था। इस योजना के तहत किसान घर बैठे-बिठाए ही मोबाइल के माध्यम से कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क कर उनके सामने कृषि संबंधी अपनी समस्याएं रखकर उनका समाधान जान सकते थे। अधिक से अधिक किसानों तक इस योजना को पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा इसका खूब प्रचार-प्रसार किया गया था। इसके प्रचार-प्रसार पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे। सभी  नेटवर्कों पर किसानों को यह सुविधा मिल सके इसके लिए सरकार ने ट्राई के माध्यम से सभी प्राइवेट मोबाइल कंपनियों के साथ टाईअप किया गया था। ट्राई द्वारा तय किए गए निमयों के अनुसार मोबाइल कंपनियां इस सुविधा के बदले अपने उपभोक्ताओं से कॉल रेट के माध्यम से कुछ हिस्सा वसूल सकती हैं। शुरूआत में तो सभी नेटवर्क पर ये सुविधा ठीक-ठाक चली, लेकिन बाद में ट्राई के सुस्त रवैये के चलते सभी मोबाइल कंपनियों ने इस सुविधा पर पर्दा डालना शुरू कर दिया। इस प्रकार मोबाइल कंपनियों की लापरवाही के चलते यह सुविधा अब पूरी तरह से ठप हो चुकी है। किसी भी प्राइवेट मोबाइल कंपनी के नेटवर्क से हैल्प लाइन के टोल फ्री नंबर 1551 पर कॉल नहीं हो पा रही है। प्राइवेट मोबाइल कंपनियां खुलेआम ट्राई के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। लेकिन इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। इस प्रकार मोबाइल कंपनियों की लापरवाही के कारण यह योजना आगाज के साथ ही दम तोड़ गई।

उपभोक्ताओं को लग रहा है चूना

सरकार द्वारा योजना शुरू करने के बाद ट्राई द्वारा तय किए गए नियमों के अनुसार मोबाइल कंपनियां किसान हैल्प लाइन की निशुल्क सेवाएं देने के बदले उपभक्ताओं से कॉल रेट में कुछ हिस्सा वसूल सकती थी। जिसके बाद प्राइवेट मोबाइल कंपनियों ने कॉल रेट में इस सुविधा के शुल्क को भी शामिल कर अपने कॉल रेट निर्धारित किए थे। लेकिन फिलहाल मोबाइल कंपनियों द्वारा यह सुविधा बंद किए जाने के कारण मोबाइल कंपनियां सरकार के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी मोटा चूना लगा रही हैं।      

बंद नहीं होने दी जाएंगी टोल फ्री सेवाएं

प्राइवेट मोबाइल कंपनियां किसान हैल्प लाइन की सुविधा को बंद कर खुलेआम ट्राई के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। इससे किसानों को भी काफी परेशानी हो रही है और सरकार द्वारा इस योजना पर खर्च किए गए करोड़ों रुपए भी बर्बाद हो रहे हैं। संघ इस सुविधा को दोबारा शुरू करवाने के लिए प्रयासरत है। इसके लिए उन्होंने ट्राई को इसकी शिकायत की है। संघ किसी भी कीमत पर टोल फ्री सुविधाओं को बंद नहीं होने देगा।
हितेष ढांडा, संस्थापक
हरियाणा तकनीकी संघ