बुधवार, 22 अगस्त 2012

आखिर कैसे पहुंचेगा माइनरों की टेलों पर पानी

सिंचाई विभाग में कर्मचारियों के टोटे से पानी पर डाका

नरेंद्र कुंडू
जींद।
मानसून की दगाबाजी के बाद सिंचाई विभाग से भी किसानों की उम्मीदें टूटने लगी हैं। नहरी पानी पर जमकर डाका डाला जा रहा है। सिंचाई विभाग में खाली पड़े अधिकारियों व कर्मचारियों के पदों के कारण तो पानी चोरों के हौसलें काफी बुलंद हैं और उनको कोई रोकने वाला तक नहीं है। इसी कारण नहरी पानी चोरी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। नहरी पानी को बीच में ही चुराने के कारण माइनरों की टेलों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। टेल तक पानी नहीं पहुंने के कारण किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। इससे खेतों में खड़ी किसानों की फसलें पानी के अभाव में सुख रही हैं।
मानसून की दगाबाजी की मार झेल रहे किसानों को अब सिंचाई विभाग में अधिकारियों व कर्मचारियों के टोटे की मार भी झेलनी पड़ रही है। विभाग में अधिकारियों व कर्मचारियों की कमी के कारण विभाग का कामकाज प्रभावित हो रहा है। सिंचाई विभाग के जुलाना ब्लॉक में रामकली, बराडखेड़ा, जुलाना व मोहला चार सैक्शन हैं। इन चारों सैक्सनों में चार जेई व करीबन 100 बेलदारों के पद खाली पड़े हैं। इसके अलावा मेट, फील्ड कर्मचारी व तार घर में सिंग्नल कर्मचारियों की भी भारी कमी है। नई भर्ती नहीं होने के कारण कर्मचारियों की कमी से विभाग बुरी तरह से जूझ रहा है। धीरे-धीरे बेलदार, जेई, मेट व फील्ड के कर्मचारी रिटायर्ड हो गए हैं। रिटायर्ड होने व नई भर्ती नहीं होने से विभाग में कर्मचारियों की कमी है। कर्मचारियों की कमी का फायदा पानी चोर धड़ल्ले से उठा रहे हैं। किसान माइनरों व नहरों से पाइप लगाकर खुलेआम पानी चोरी कर रहे हैं। क्योंकि विभाग में कर्मचारियों की कमी के कारण इन्हें पानी चोरी करने से रोकने वाला कोई नहीं है। पानी चोरी के मामलों में हो रही बढ़ोतरी के कारण माइनरों की टेलों तक पानी नहीं पहुंच पाता है। जिसके कारण जिन किसानों के खेत टेल पर हैं उन्हें सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है। इससे किसानों की फसलें सुख जाती हैं। कर्मचारियों के कमी के साथ विभाग में रेड करने के लिए वाहनों की कमी भी खल रही है। जुलाना ब्लॉक में रेड करने के लिए अधिकारियों के पास केवल एक ही जीप है और वह भी खस्ता हाल में है। वाहनों व कर्मचारियों की कमी किसानों पर भारी पड़ रही है। किसानों को उनके हिस्से का पानी नहीं मिल रहा है।

हांसी ब्रांच नहर तक हो चुकी है शिकार

पानी चोरों के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने हांसी ब्रांच नहर तक को नहीं बख्शा है, माइनरों की तो बिसात ही क्या है। गत एक अगस्त को रामराय व गुलकनी गांवों के बीच रात को नहर काट दी गई थी। इसके पीछे पानी चोरों का हाथ सामने आया था और इससे हजारों एकड़ फसलों में पानी फिर गया था और सैंकड़ों एकड़ फसल नष्ट भी हो गई थी। इसमें विभाग द्वारा काफी लोगों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करवाई गई थी। अब विभाग के अधिकारी व कर्मचारी किसानों पर जुर्माने लगाने के लिए आंकलन में जुटे हैं। जब नहर को ही नहीं बख्शा गया तो माइनरों का बचना मुश्किल है। इसके पीछे कर्मचारियों व अधिकारियों का टोटा सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है।

ज्यादा लंबा है एरिया

इन चारों सेक्शन का एरिया काफी लंबा है। इसमें 15 माइनरें तथा आठ ड्रेन आती हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों को दिन-रात अपनी ड्यूटी करनी पड़ रही है। पानी चोरों को पकड़ने के लिए वाहनों की भी कमी है। एरिया लंबा होने से एक वाहन से काम नहीं चल रहा है। किसानों ने भी पानी चोरी के नए-नए तरीके अपनाएं हुए हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
कुलदीप सिंह, एएसडीई

दिन-रात करनी पड़ रही है ड्यूटी

विभाग में अधिकारियों व कर्मचारी की भारी कमी है। इनकी कमी के कारण पानी चोर इसका फायदा उठाते हैं। कर्मचारियों को दिन-रात ड्यूटी करनी पड़ रही है। विभाग में रेड करने के लिए वाहनों की कमी भी है। एरिया लंबा है। फिलहाल विभाग में स्टाफ की कमी है।
बनवारी लाल
एसडीओ जुलाना
 पानी चोरों द्वारा काटी गई हांसी ब्रांच नहर का फाइल फोटो।

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

स्वतंत्रता दिवस पर महिलाओं ने लिया देश को जहर से आजाद करवाने का संकल्प

नरेंद्र कुंडू
जींद।
एक तरफ 15 अगस्त को जहां सारे देश में 66 वें स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मनाई जा रही थी। जगह-जगह कार्यक्रमों का आयोजन कर देशभक्ति से ओत-प्रोत भाषणों से युवा पीढ़ी में देशभक्ति का बीज बो कर उन्हें देश सेवा की शपथ दिलवाई जा रही थी, वहीं दूसरी तरफ जिले के ललीतखेड़ा गांव के खेतों में महिला किसान पाठशाला की महिलाएं देश को जहर से मुक्त करवाने का संकल्प ले रही थी। अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए महिलाएं हाथ में कागज-पैन उठाकर भादो की इस गर्मी में कीट सर्वेक्षण के लिए कपास के पौधों से लटापीन होती नजर आई। इस दौरान महिलाओं को प्रेरित करते हुए सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को हमें राजनीतिक आजादी तो मिली और इससे हमें विकास के लाभ भी हासिल हुए, लेकिन कीटनाशकों से मुक्ति की लड़ाई अभी जारी है। निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने हिंदूस्तान की जनता को जो रास्ता दिखाया है, इससे एक दिन यह लड़ाई जरुर सफल होगी और जनता को विषमुक्त भेजन भी मिलेगा। जिससे हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित बनेगा। इस अवसर पर महिलाओं ने 6 समूह बनाकर कपास के खेत का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षेण के दौरान महिलाओं ने पांच-पांच पौधों के पत्तों पर कीटों की गिनती की। महिलाओं ने पौधे के ऊपरी, बीच व निचले हिस्से से तीन-तीन पत्तों का सर्वेक्षण कर फसल में मौजूद सफेद मक्खी, चूरड़ा व तेले की तादात अपने रिकार्ड में दर्ज की। इसके बाद महिलाओं ने फसल में मौजूद कीटों का बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में महिलाओं ने अपने-अपने खेत से लाए गए आंकड़े भी दर्ज करवाए। महिलाओं ने अपने खेत से दस-दस पौधों से आंकड़ा तैयार किया था, लेकिन सुषमा पूरे 28 पौधों से आंकड़ा तैयार कर लाई थी। खुशी की बात यह थी कि इन महिलाओं ने अभी तक अपने खेत में एक छटाक भी  कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। पाठशाला के दौरान महिलाओं ने कपास के फूलों पर तेलन का हमला देखा। महिलाओं ने पाया कि तेलन द्वारा सिर्फ फूल की पुंखडि़यां व नर पुंकेशर खाए हुए थे, जबकि स्त्री पुंकेशर सुरक्षित था। तेलन द्वारा खाए गए फूलों से फसल के उत्पादन पर कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं इसे परखने के लिए महिलाओं ने इन फूलों को धागे बांधकर इनकी पहचान की। ताकि इससे यह पता चल सके की इन फूलों से फल बनता है या नहीं। ललीतखेड़ा में चल रही इस महिला पाठशाला में ललीतखेड़ा गांव से नरेश, शीला, संतोष, कविता, राजबाला, निडानी से संतोष व कृष्णा पूनिया, निडाना से कृष्णा, बीरमती, सुमित्रा, कमलेश, केलो तथा निडाना की मास्टर ट्रेनर मीनी, अंग्रेजो, बिमला, कमलेश व राजवंती मौजूद थी।
 कपास के फूल को खाती तेलन
कपास के पौधे पर कीटों की गिनती करती महिलाएं।



गुरुवार, 16 अगस्त 2012

‘असी तवाड़े प्यार नू कदे भी नहीं भूल पावांगे’

निडाना के ग्रामीणों के अतिथि सत्कार से गदगद हुए पंजाब के किसान

कीट ज्ञान के साथ-साथ निडाना के ग्रामीणों का प्यार साथ लेकर गए पंजाब के किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
निडाना दे किसाना नूं साडा जो आदर-सत्कार किता सी, असी ओना दे इस प्यार नू कदे वी नहीं भूल पावांगे। यह शब्द बयां कर रहे थे पंजाब के किसानों के जज्बात को, जो निडाना के ग्रामीणों के अतिथि सत्कार से खुश होकर बार-बार उनकी जुबान पर आ रहे थे। ये किसान आए तो थे निडाना के किसानों से कीट प्रबंधन के गुर सीखने, लेकिन यहां के ग्रामीणों की मेहमान नवाजी से इतने खुश हुए कि उसका जिक्र किए बिना नहीं रह पा रहे थे। पंजाब के किसान यहां के किसानों से कीट प्रबंधन के साथ-साथ अतिथि सत्कार के नए गुर भी सीख कर गए। ग्रामीणों ने पंजाब के किसानों को यह महशूस ही नहीं होने दिया कि ये यहां किसी टूर पर आए हुए हैं। ग्रामीणों ने पंजाब के किसानों को किसी, मंदिर, धर्मशाला में न ठहराकर अपने-अपने घरों में ही इनके रुकने की व्यवस्था की। निडाना के किसानों ने अपनी मेहमान नवाजी से पंजाब के किसानों के दिलो-दिमाक पर प्यार की एक अमीट छाप छोड़ दी।
पंजाब कृषि विभाग द्वारा आत्मा स्कीम के तहत जिला नवां शहर से 6 कृषि अधिकारियों के नेतृत्व में 38 किसानों का एक दल कीट प्रबंधन के गुर सीखने के लिए दो दिवसीय अनावरण यात्रा पर जींद जिले के निडाना गांव में भेजा था। निडाना के ग्रामीणों में भी पंजाब से आने वाले किसानों को लेकर खासा उत्साह था। इसलिए निडाना के ग्रामीणों ने इनके आदर-सत्कार के लिए पूरी तैयारी की हुई थी। निडाना के ग्रामीणों ने पंजाब के किसानों को किसी मंदिर, चौपाल या धर्मशाला में ठहराने की बजाए, इन्हें चार-चार के ग्रुप में बांटकर गांव में ही दस घरों में ठहराने व खाने-पीने का पूरा इंतजाम किया था। पंजाब के किसान ग्रामीणों द्वारा किए गए इस प्रबंध से गदगद हुए बिना नहीं रह सके। रात को खाना खाने के बाद पंजाब के किसानों ने इनके परिवार के साथ बैठकर बातचीत की व इनसे खेती के नए-नए नुस्खे सीखे। सुबह नाशता करने के बाद ये किसान गांव के खेतों में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचे और यहां के कीट मित्र किसानों से कीट प्रबंधन के गुर सीखे। इसके साथ ही इन किसानों ने कीट बही खाता तैयार करना, पौधों की भाषा सीखना व कीटों के क्रियाकलापों के बारे में भी जानकारी जुटाई। इसी दौरान पंजाब के किसानों ने इन कीट मित्र किसानों से खुलकर बहस की व अपनी समस्याओं के समाधान भी करवाए। पंजाब से आए किसानों ने बताया कि पंजाब कृषि क्षेत्र में हरियाणा से आगे है, जिस कारण यहां कीटनाशकों का प्रयोग भी काफी ज्यादा है। जिसके परिणाम स्वरूप ही पंजाब में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के मरीजों की तादात भी काफी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि वे भी इस जहर से छुटकारा पाना चाहते हैं, परंतु उन्हें इससे बचने का कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था। लेकिन अब निडाना के किसानों ने उन्हें एक नया रास्ता दिखाया है। उन्होंने कहा कि यहां से उन्होंने जो कुछ सीखा है उसे वे अपने क्षेत्र के किसानों को भी सिखाएंगे, ताकि लोगों की थाली में बढ़ रहे इस जहर को कम किया जा सके। निडाना के किसानों के कीट ज्ञान को देखकर पंजाब के किसान चकित रह गए। इसके बाद पंजाब के किसानों ने निडानी गांव में लंच किया। निडानी के ग्रामीणों ने भी इनके आदर-सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां से ये किसान अलेवा  के लिए रवाना हुए और अलेवा में कीटनाशक रहित धान व कीटनाशकों के प्रयोग वाली धान की तुलना की। इसके बाद शाम को यहां से ये किसान वापिस पंजाब के लिए रवाना हुए।

यहाँ के लोगों से खूब आदर-सत्कार मिला 

पंजाब से आए किसानों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते निडाना के किसान।
निडाना के ग्रामीणों ने उनका खूब आदर-सत्कार किया है। उनके इस प्यार को वह व उनके साथ आए किसान कभी भी भूला नहीं पाएंगे। यहां आने से पहले उनके दिमाक में यहां के किसानों के खेती करने व कीट प्रबंधन के बारे में कई प्रकार के सवाल थे, लेकिन यहां आकर सब कुछ साफ हो गया है। यहां के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम को वे अपने राज्य में भी शुरू करेंगे और खाने में बढ़ रहे इस जहर को कम करेंगे, ताकि आने वाली जरनेशन उनसे यह सवाल न करे कि उन्होंने उनके लिए क्या किया है।
डा. सुखजींद्र पाल
प्रोजैक्ट डायरेक्टर आत्मा स्कीम
कृषि विभाग, पंजाब

किताबों से नहीं बुनियाद से सीखकर खुद का ज्ञान पैदा करें किसान : दलाल

पंजाब के किसानों ने निडाना के किसानों से सीखे कीट प्रबंधन के गुर

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिस तरह शहीदे आजम भगत सिंह ने मात्र 23 वर्ष की अल्प आयु में ही फांसी के फंदे को चुमकर देश में क्रांति का तूफान खड़ा कर अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत में कील ठोकने का काम किया था, ठीक उसी तरह निडाना गांव के किसानों ने भी कीट प्रबंधन की यह मुहिम शुरू कर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। निडाना गांव के खेतों से उठी क्रांति की यह लहर भोले-भाले किसानों को गुमराह कर उनकी जेबें तरासने वाले फरेबियों के ताबूत में आखरी कील साबित होगी। यह बात बरहा कलां बाराह खाप के प्रधान एवं खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में शहीद भगत सिंह के जिला नवां शहर (पंजाब) से आए किसानों को संबोधित करते हुए कही। पंजाब के कृषि विभाग द्वारा आत्मा स्कीम के प्रोजैक्ट डायरेक्टर सुखजींद्र पाल के नेतृत्व में जिला नवां शहर से 38 किसान व 6 कृषि अधिकारियों के एक दल को कीट प्रबंधन के गुर सीखने के लिए निडाना में दो दिन की अनावरण यात्रा पर भेजा गया था। इस अवसर पर कीट-किसान मुकदमे की सुनवाई के लिए खाप पंचायत की तरफ बेनिवाल खाप के प्रधान जिले सिंह बेनिवाल, अखिल भारतीय क्षेत्रीय महासभा के कार्यकारी सदस्य महेंद्र सिंह तंवर, अमरपाल राणा व कृष्ण कुमार भी मौजूद थे।
ढांडा ने कहा कि भगत सिंह के जिले के लोगों द्वारा निडाना गांव के किसानों की इस मुहिम में शामिल होने से यह साफ हो गया है कि अब देश में यह क्रांति पूरी रफ्तार से फैलेगी, क्योंकि पंजाब के किसान कृषि क्षेत्र में हरियाणा से आगे हैं और यहां पर कीटनाशकों का प्रयोग भी सबसे ज्यादा होता है। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि किसानों को किताबों में लिखी हुई बातों पर यकीन करने की बजाए बुनियाद से सीखने की जरुरत है। जब तक किसान खुद का ज्ञान पैदा नहीं करेगा और घर पर ही बीज तैयार कर फसल की बिजाई करनी शुरू नहीं करेगा तब तक किसान को खेती से लाभ प्राप्त नहीं होगा। डा. दलाल ने कहा कि जिस ज्ञान को परखने के लिए पंजाब से किसान यहां आए हैं, वह ज्ञान किताबी नहीं है, बल्कि निडाना के किसानों द्वारा यह ज्ञान खेत में प्रयोग कर खुद पैदा किया गया है। बीटी पर चुटकी लेते हुए डा. दलाल ने कहा कि कीटों को कंट्रोल करने में बीटी-सीटी का कोई महत्व नहीं है और न ही किसानों को कीटों को कंट्रोल करने की जरुरत है। यहां के बाद इन किसानों ने निडानी गांव में लंच किया और यहां महाबीर व जयभगवान के खेत में कपास व मूंग की मिश्रित खेती का अवलोकन किया। इसके बाद अलेवा गांव में जाकर प्रगतिशील किसान जोगेंद्र सिंह लोहान के खेत में कीटनाशक रहित व कीटनाशक के प्रयोग वाली धान की फसल में आई पत्ता लपेट की तुलाना की। यहां से जलपान कर वापिस पंजाब के लिए रवाना हुए।

खाद डालने की विधि सीखें किसान

किसानों को फसल में खाद की अवश्यकता व डालने की विधि भी सीखने की जरुरत है। क्योंकि किसान फसल में जो यूरिया खाद डालता है,उसका 11 से 28 प्रतिशत ही पौधों को मिलता है। बाकि का खाद वेस्ट ही जाता है। इसके अलावा डीएपी खाद में से सिर्फ 5 से 20 प्रतिशत ही खाद पौधों को मिलता है। बाकि की खाद की मात्रा जमीन में चली जाती है। इस तरह बिना जानकारी के व्यर्थ होने वाले खाद को बचाने के लिए खाद जमीन में डालने की बजाए सीधा पौधों को ही दिया जाए।

बोकी तोड़ कर शुरू किया प्रयोग

किसानों द्वारा पाठशाला में नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। एक तरफ जहां पौधों के पत्तों की कटाई का प्रयोग चल रहा है तो दूसरी तरफ किसानों ने कपास के पांच पौधों से पौधे की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ने का प्रयोग भी शुरू कर दिया है। इस प्रयोग से किसान यह देखाना चाहते हैं कि कपास की फसल में बोकी खाने वाले कीटों से उत्पादन पर कोई प्रभाव होता है या नहीं। इस पाठशाला में 28 दिन बाद पांच पौधों की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ी जाती हैं। वही बोकी बार-बार न टूटें इसलिए 28 दिन बाद पौधे की बोकी तोड़ी जाती हैं, क्योकि बोकी से फूल बनने में 28 दिन का समय लगता है।

समस्याओं का किया समाधान

 पंजाब के किसानों को कीटों की पहचान करवाते निडाना के किसान।

 खेत पाठशाला में कीट बही खाता तैयार करते डा. सुरेंद्र दलाल।

खेत में पौधे की बोकी तोड़ते खाप प्रतिनिधि।
पंजाब से आए किसानों ने निडाना के किसानों से खूब सवाल-जवाब किए और धान, गन्ना, मक्की व सब्जी की फसल में पत्ता लपेट, तना छेदक, टिड्डे व फुदका कीटों से होने वाले नुकसान का समाधान भी पूछा। निडाना के किसानों ने पंजाब के किसानों की समस्याओं का समाधान करते हुए बताया कि इन कीटों को कीटनाशकों से काबू करने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इनको काबू करने के लिए फसल में मासाहारी कीट काफी तादाद में मौजूद होते हैं।

सोमवार, 13 अगस्त 2012

‘कीड़ों’ की पढ़ाई पढ़ने के लिए निडाना आएंगे पंजाब के किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के निडाना गांव के कीट मित्र किसानों की मेहतन अब रंग लाने लगी है। निडाना गांव के खेतों से शुरू हुई जहरमुक्त खेती की गुंज अब जिले ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी सुनाई देने लगी है। जिससे प्रेरित होकर दूसरे प्रदेशों के किसान भी अब कीटनाशक रहित खेती के गुर सीखने के लिए निडाना की ओर रूख करने लगे हैं। सोमवार को जिला नवां शहर (पंजाब) के 35 किसानों का एक दल कृषि अधिकारियों के साथ दो दिवसीय अनावरण यात्रा पर निडाना की 12 ग्रामी किसान खेत पाठशाला में पहुंच रहा। इस दौरान किसानों का यह ग्रुप निडाना के कीट मित्र किसानों से कीट प्रबंधन पर चर्चा करेगा तथा कीट नियंत्रण व किसान खेत पाठशाला के तौर तरीके सीखेगा। इन किसानों के रहने व खाने का प्रबंध भी निडाना गांव के किसानों द्वारा खुद अपने स्तर पर किया जाएगा। इस दौरान इनके बीच विश्व प्रसिद्ध कीट वैज्ञानिक डा. सरोज जयपाल भी मौजूद रहेंगी।
किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सीखा कर लोगों की थाली में बढ़ते जहर को कम करने के लिए निडाना गांव के किसानों द्वारा शुरू की गई यह मुहिम दूसरे प्रदेशों में भी फैलने लगी है। निडाना के खेतों से शुरू हुई कीटनाशक रहित खेती की इस क्रांति को पंजाब में फैलाने का बीड़ा अब जिला नवां शहर के किसानों ने उठाया है। इस क्रांति को पंजाब में सफल बनाने के लिए पंजाब का कृषि विभाग भी किसानों का पूरा सहयोग कर रहा है। वहां के कृषि विभाग के अधिकारियों ने नवां शहर के किसानों को कीट प्रबंधन तथा कीटनाशक रहित खेती की ट्रेनिंग दिलवाने के लिए 35 किसानों के एक दल का गठन किया है। यह दल अब सोमवार को दो दिवसीय ट्रेनिंग के लिए निडाना में पहुंच रहा है। इस दल में शामिल किसानों के रहने व खाने का प्रबंध खुद निडाना गांव के किसानों द्वारा अपने स्तर पर किया गया है। इसमें खास बात यह है कि पंजाब से आने वाले इन किसानों का रात को ठहरने का प्रबंधन किसी चौपाल, स्कूल या धर्मशाला में नहीं बल्कि निडाना के किसानों ने खुद अपने ही घर में किया है। निडाना के ग्रामीणों द्वारा इन किसानों का चार-चार, पांच-पांच का समूह बनाकर एक-एक घर में ठहराया जाएगा। ताकि नवां शहर के ये किसान खाना खाने के बाद रात को निडाना के किसानों के परिवार के साथ बैठकर उनके खेती के तौर-तरीकों व कीट प्रबंधन पर उनके साथ खुल कर चर्चा कर इसे अच्छी तरह से समझ सकें।

किस-किस किसान के घर में होगा रात्रि ठहराव

पंजाब से आने वाले किसानों के रात्रि ठहराव व खाने की व्यवस्था की जिम्मेदारी निडाना गांव के दस किसानों को सौंपी गई है। जिसमें वीरेंद्र मलिक, रतन सिंह, रघुवीर सिंह, सत्यवान, कप्तान, राजेंद्र सिंह, रमेश मलिक, बलराज, विनोद, राजवंती। रात्रि के भोजन के पश्चात इन किसानों को कीटों की पहचान के लिए लैपटॉप पर कीटों के चित्र भी दिखाए जाएंगे।

क्या रहेगा किसानों का शैड्यूल

दो दिवसीय यात्रा पर आने वाले किसानों का समय व्यर्थ न जाए इसके लिए निडाना के किसानों ने पहले से ही पूरा शैड्यूल तैयार कर रखा है। पंजाब के किसान सोमवार सायं 5-6 बजे के करीब निडाना पहुंचेगे। यहां पहुंचने के बाद रात को खाना खिलाने के बाद इन किसानों को लैपटॉप पर कीटों की पहचान के लिए कीटों के चित्र दिखाए जाएंगे। इसके बाद मंगलवार सुबह आठ बजे ये किसान निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में कीट सर्वेक्षेण में भाग लेंगे तथा यहां कीट-बही खाता तैयार करना सीखेंगे। इसके बाद निडानी गांव के किसानों के घर लंच करेंगे। यहां पर लंच के बाद निडानी के जयभगवान व महाबीर पूनिया के खेतों का सर्वेक्षण कर इनके द्वारा बोई गई कपास व मुंग की मिश्रित खेती तथा घर से तैयार कर बोई गई बीटी कपास की फसल का निरीक्षण करेंगे। इसके बाद अलेवा में प्रगतिशील किसान जोगेंद्र सिंह लोहान के खेत में जाकर कीटनाशक रहित धान की फसल की तुलना आस-पड़ोस की फसलों के साथ करेंगे। यहां पर जलपान कर वापिस पंजाब के लिए रवाना होंगे।

मुख्य कृषि अधिकारी ने पहले स्वयं किया था निरीक्षण

निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला के चर्चे सुनने के बाद नवां शहर (पंजाब) के मुख्य कृषि अधिकारी डा. सर्वजीत कलंदरी मई माह में यहां स्वयं निरीक्षण के लिए आए थे। ताकि इस पाठशाला की वास्तविकता को परखा सकें। मुख्य कृषि अधिकारी ने निडाना के किसानों के कीट ज्ञान को खुब झाड़-परखने के बाद ही अपने जिले के किसानों की टीम को यहां भेजने का निर्णय लिया था।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

बुंदाबांदी के मौसम में भी महिलाओं ने किया कीट अवलोकन व निरीक्षण

महिलाओं ने तेलन नामक कीट के क्रियाकलापों पर किया मंथन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। ललीतखेड़ा गांव की किसान पूनम मलिक के खेत में चल रही महिला किसान पाठशाला में बुधवार को महिलाओं ने बुंदाबांदी के मौसम में भी कीट अवलोकन एवं निरीक्षण किया। कीट निरीक्षण के दौरान पाया गया कि अभी तक कपास की फसल में मौजूद रस चूसक कीट सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़ा फसल में आर्थिक कागार को पार नहीं कर पाए हैं। प्रेम मलिक ने पाठशाला में मौजूद महिला किसानों के समक्ष कपास के खेत में मौजूद तेलन के प्रति अपनी आशंका जताते हुए पूछा की तेलन कपास की फसल में क्या करती है। क्योंकि प्रेम मलिक पिछले सप्ताह अपनी कपास की फसल में तेलन नामक कीट के क्रियाकलापों को देखकर चिंतित थी। प्रेम मलिक ने महिलाओं को तेलन के क्रियाकलापों का जिकर करते हुए बताया कि तेलन कपास के पौधों पर बैठकर कपास के फूलों को खा रही थी। जिससे कारण उसे फसल के उत्पादन की चिंता सता रही है। महिलाओं ने प्रेम मलिक की समस्या का समाधान करने के लिए फसल में मौजूद तेलन के क्रियाकलापों को बड़े ध्यान से देखा। महिलाओं ने पाया कि तेलन द्वारा अधिकतर कपास के फूलों की पुंखडि़यों व फूल के नर पुंकेशर ही खाए हुए थे, जबकि स्त्री पुंकेशर सुरक्षित था। महिलाओं ने महिला किसान की समस्या का समधान धान करते हुए कहा कि जब तक फूल में स्त्री पुंकेशर सुरक्षित है तब तक फसल के उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। बल्कि तेलन इस प्रक्रिया में परागन करवाने की भूमिका भी निभाएगी। मीना मलिक ने बताया कि तेलन अपने अंडे जमीन में देती है और इसके अंडों में से निकलने वाले बच्चे दूसरे कीटों के अंडों व बच्चों को खाकर अपना गुजारा करते हैं। इनमें खासकर टिडे के बच्चे शामिल हैं। इसलिए जिस वर्ष कपास में तेलन की संख्या ज्यादा होगी उस वर्ष टिडे कम मिलेंगे। रणबीर मलिक ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह तेलन पिछले वर्ष उसकी देसी कपास में भी आई थी। जिसे देखकर उसके माथे पर भी चिंता की लकीरे पैदा हो गई थी, लेकिन यह जल्द ही कपास के फूलों को छोड़कर जंतर (ढैंचा) के फूलों पर चली गई थी। लेकिन इसमें ताज्जुब की बात यह है थी कि तेलन द्वारा जंतर पर चले जाने के बाद भी जंतर की एक भी फली खराब नहीं हुई। सुषमा मलिक ने बताया कि कपास की फसल का जीवन चक्र 170 से 180 दिन का होता है और अब फिलहाल कपास की फसल 100 दिन के लगभग हो चुकी है। लेकिन अब तक पाठशाला में आने वाली किसी भी महिला को अपनी फसल में एक छटांक भी कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत नहीं पड़ी है। इसलिए तो कहते हैं कीट नियंत्रणाय कीट हि: अस्त्रामोघा। अर्थात कीट नियंत्रण में कीट ही अचूक अस्त्र हैं।
कपास के फूलों की पुंखडि़यों को खाती तेलन 
 कपास की फसल का निरीक्षण करती महिला किसान।

खेत में कीटों का अवलोकन करती महिलाएं 



किसान-कीट की जंग में जीत के लिए किसानों को पैदा करना होगा खुद का ज्ञान

किसानों ने ढुंढ़े कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले तीन मेजर कीट

नरेंद्र कुंडू
जींद।
किसान-कीट के विवाद की सुनवाई के लिए मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की सातवीं बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता बराह कलां बारहा खाप के प्रधान एवं सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर बैठक में मलिक खाप के प्रधान दादा बलजीत मलिक, चौपड़ा खाप नरवाना के प्रधान अजमेर सिंह चौपड़ा तथा सतरोल खाप के प्रधान सूबेदार इंद्र सिंह विशेष रूप से मौजूद रहे। बैठक की अध्यक्षता करते हुए कुलदीप ढांडा ने कहा कि जिस तरह इंसानों के पास अपनी सुरक्षा के लिए वायु सेना व थल सेना हैं, ठीक उसी प्रकार कीटों के पास भी वायु सेना व थल सेना हैं। कीटों की थल सेना में दीमक की पूरी फौज है। जो जमीन के अंदर रहकर अपनी लड़ाई लड़ती है और रही बात वायु सेना की हवाई सेना में टिड्डी हैं। अगर खुदा न खास्ता कीटों की वायु सेना ने हमला कर दिया तो दूर-दूर तक कुछ नहीं बेचेगा। टिड्डियां जहां से गुजरती हैं वहां फसल, पेड़-पौधे सब कुछ खत्म हो जाता है। इसलिए कीटों का पलड़ा भारी है और किसान-कीट की इस जंग में जीत भी कीटों की ही निश्चित है। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि किसानों के पास अपना खुद का ज्ञान नहीं है तथा कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर किसानों में भय व भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जिस कारण किसान समय पर स्वयं निर्णय नहीं ले पाता और किसान को अपनी समस्या के समाधान के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए किसानों को इस जंग में जीत हासिल करने के लिए खुद का ज्ञान पैदा करना होगा। डा. दलाल ने कहा कि कीटों पर काम कर रहे किसानों ने अब तक 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान की है। इन कीटों को चार भागों में बांटा गया है। पहले भाग में रस चूसने वाले, दूसरे भाग में पर्णभक्षी तथा तीसरे भाग में फूलाहारी व चौथे भाग में फलाहारी कीटों को रखा गया है। इन 43 कीटों में से सिर्फ तीन किस्म के ही ऐसे मेजर कीट हैं, जो फसल का रस चूसते हैं और फसल को इनसे सबसे ज्यादा नुकसान का खतरा रहता है। इसलिए इस पाठशाला में कीटों का पक्ष रखने के लिए हर सप्ताह नए-नए प्रयोग किए जाते हैं और फसल में मौजूद इन तीनों मेजर कीटों की गिनती करवा कर कीट-बही खाता तैयार किया जाता है। अब तक तैयार किए गए कीट बही खाते से प्राप्त आंकड़ों से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि अब तक कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं है। जिस खेत में यह प्रयोग चल रहा है वह फसल भी अभी  तक पूरी तरह से स्वस्थ है। राजपुरा भैण से आए किसान बलवान ने बताया कि कीटों की पढ़ाई शुरू करने से पहले उनके गांव के किसान कपास की भस्मासुर के नाम से मशहूर मिलीबग से ज्यादा डरते थे। फसल में मिलीबग की दस्तक के साथ ही अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करते थे। लेकिन जब से किसानों को कीटों की पहचान होने लगी है तब से किसानों का मिलीबग के प्रति जो भय था वो निकल गया है। अब उनके गांव के किसानों ने फसल में कीटनाशकों की जगह डीएपी, यूरिया व जिंक का छिड़काव करते हैं। पाठशाला में चल रहे पत्ते काटने के प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए खाप प्रतिनिधियों से पत्ते कटवाए गए। इसके साथ ही किसानों ने फसल में अवलोकन के दौरान देखे दर्शयों को किसानों के साथ सांझा किया। मलिक खाप के प्रधान दादा बलजीत मलिक ने किसानों द्वारा शुरू किए गए इस अनोखे कार्य की सरहाना की। इस अवसर पर पाठशाला में निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा, चाबरी, सिवाहा, ईगराह, खरकरामजी, र्इंटलकलां, राजपुरा भैण सहित कई गांवों के किसान मौजूद थे।
पंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधि व किसान।
खाप प्रतिनिधियों से पत्ते कटवाते हुए किसान।
 खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।



कहीं बर्निंग भवन न बन जाए लघु सचिवालय की बिल्डिंग

कंडम पड़े लघु सचिवालय के फायर सेफ्टि उपकरण

नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश में आए दिन हो रही आगजनी की घटनाओं से यहां का जिला प्रशासन कोई सबक नहीं ले रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की यह लापरवाही लघु सचिवालय में कभी भी किसी बड़े हादसे को दावत दे सकती है। यहां एक छोटी सी चिंगारी ज्वालामुखी बन सकती है और उस समय प्रशासनिक अधिकारियों के पास सिवाए तमाशा देखने के कुछ नहीं बचेगा। इस प्रकार अधिकारियों की यह चूक यहां रखे जरुरी दस्तावेजों के साथ-साथ सैंकड़ों जिंदगियों को पलभर में पिंघला सकती है। क्योंकि लघु सचिवालय में आग पर काबू पाने के लिए लगाए गए फायर सेफ्टी उपकरण पूरी तरह से कंडम हो चुके हैं और ऐसी कमरों में बैठे ये सरकारी बाबू इस ओर ध्यान देना मुनासिब ही नहीं समझते हैं।
जिले के लगभग तमाम सरकारी कार्यालय लघु सचिवालय में चल रहे हैं। यहां रोजाना सैंकड़ों लोग अपने कामकाज के सिलसिले में आते हैं। सभी सरकारी कार्यालय इस बिल्डिंग में होने के कारण यहां पर अति महत्वपूर्ण दस्तावेज भी रखे हैं। लेकिन लघु सचिवालय में फैली अव्यवस्थाओं के चलते यहां कुछ भी सुरक्षित नहीं है। और शायद प्रशासनिक अमला भी इनकी सुरक्षा की तरफ ध्यान देना अपनी जिम्मेदारी नहीं समझता है। लघु सचिवालय में आगजनी की घटना पर काबू पाने के लिए लगवाए गए फायर सेफ्टी उपकरण पूरी तरह से जवाब दे गए हैं और शायद साहब इन्हें बदलवाना ठीक नहीं समझते हैं। अगर यहां आगजनी की छोटी सी भी घटना घटित हुई तो शायद उस पर काबू पाना भी इनके काबू में ना रहे। इस प्रकार प्रशासनिक अधिकारियों की यह लापरवाही कभी भी जरुरी दस्तावेजों के साथ-साथ सैंकड़ों लोगों की जिंदगियों को भी आग की लपटों में झौंक सकती है। 

टूटा पड़ा है इलैक्ट्रानिक फायर सिस्टम

लघु सचिवालय में आग पर काबू पाने के लिए लगाया गया इलैक्ट्रानिक फायर सिस्टम पिछले कई महीनों से बंद पड़ा है। इसके अलावा यहां एमरजैंसी में प्रयोग के लिए रखी गई बाल्टियों में पानी व रेत तो दूर की बात यहां तो बाल्टियां ही जंग खा चुकी हैं। जो प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही को खुद-बे-खुद बयां कर रही हैं।

एक्सटैंशनों से पाइपें गायब

सबसे हैरानी की बात है कि यहां जगह-जगह पानी के लिए एक्सटैंशन लगे हैं, लेकिन इनमें से पाइपें ही गायब हैं। ऐसे में अगर बिल्डिंग के ऊपरे हिस्से में आगजनी की घटना होती है तो वहां तक बिना पाइपों के पानी पहुंचाना मुश्किल ही नहीं नामुकिन है। एक्सटैंशनों से पाइप गायब होने के बाद भी  अधिकारियों का ध्यान इस ओर नहीं है।

अग्निशमन यंत्रों पर नहीं है तारीख

लघु सचिवालय में रखे गए अग्निशमन सिलैंडर मौके पर धोखा दे सकते हैं। क्योंकि इन सिलैंडरों पर रिफिल की तारीख देखने को नहीं मिल रही है। इन सिलैंडरों का किसी को ये पता नहीं है कि ये यहां कब रखे गए थे और इन्हें दोबारा कब रिफिल करवाना है।

क्या कहते हैं अधिकारी

फायर सेफ्टि उपकरणों की मियाद दो साल की होती है और दो साल के बाद इन उपकरणों को बदलवा दिया जाता है। अगर लघु सचिवालय के फायर सेफ्टि उपकरणों को बदला नहीं गया है तो कल ही इसकी फाइल तैयार कर इन्हें बदलवाने का कार्य शुरू करवा दिया जाएगा।
दलबीर सिंह
एसडीएम, जींद
बिना पाइपों के खाली पड़ी एक्सटैंसन।

जंग लगने के कारण टूटी पड़ी एमरजैंशी में प्रयोग के लिए रखी गई बाल्टियां।

 खराब पड़ा इलेक्ट्रोनिक फायर सिस्टम।



रविवार, 5 अगस्त 2012

सत्यमेव जयते के पर्दे पर दिखेंगी कीटों की मास्टरनी

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीटों के वैद्य के नाम से मशहूर निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाएं अब सत्यमेव जयते के पर्दे पर नजर आएंगी। कीटों की इन मास्टरिनयों से रू-ब-रू होने के लिए शनिवार को दिल्ली से सत्यमेव जयते की टीम ललीतखेड़ा गांव के खेतों में चल रही महिला किसान पाठशाला पहुंची। इस दौरान टीम ने लगभग आधे घंटे तक ललीतखेड़ा व निडानी की महिलाओं से कीटनाशक रहित खेती पर सवाल-जवाब किए व उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। दरअसल सत्यमेव जयते की ये टीम अपने 'असर' कार्यक्रम की शूटिंग के लिए यहाँ आई थी और इसी  कार्यक्रम के लिए महिलाओं के शाट लिए।
निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाएं अब सत्यमेव जयते के पर्दे से दुनिया के सामने खेतों से पैदा किए गए अपने कीट ज्ञान को बांटेगी। इसकी कवरेज के लिए सत्यमेव जयते की एक टीम शनिवार को ललीतखेड़ा गांव में चल रही महिला किसान पाठशाला में पहुंची। टीम की रिपोर्टर रितू भारद्वाज ने लगातार आधे घंटे तक इन महिलाओं के बीच बैठकर कीटनाशक रहित खेती के इनके ज्ञान को परखा तथा कैमरामैन कपील सिंह ने इनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। टीम ने महिलाओं से बिना कीटनाशक के फसल से अधिक पैदावार लेने का फार्मूले पर काफी देर तक चर्चा की। महिलाओं ने भी बिना किसी झिझक के खुलकर टीम के सामने अपने विचार रखे। कीटों की मास्टर ट्रेनर सविता, मनीषा, मीना मलिक ने बताया कि उन्होंने 142 प्रकार के कीटों की पहचान कर ली है। जिसमें 43 किस्म के कीट शाकाहारी व 99 किस्म के कीट मासाहारी होते हैं। शाकाहारी कीट फसल में रस चूसकर व पत्ते खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं, लेकिन मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर अपना गुजारा करते हैं। इस प्रकार मासहारी कीट शाकाहारी कीटों को चट कर देते हैं। कीटों के जीवनचक्र के दौरान किसान को कीटनाशक का प्रयोग करने की जरुरत नहीं पड़ती। आज किसान को अगर जरुरत है तो वह है कीटों का ज्ञान अर्जित करने की। कीट मित्र किसान रणबीर मलिक ने टीम द्वारा पुछे गए बिना कीटनाशक का प्रयोग किए अच्छी पैदावार लेने के सवाल का जवाब देते हुए मलिक ने बताया कि अच्छी पैदावार के लिए दो चीजों की जरुरत होती है। पहली तो सिंचाई के लिए अच्छे पानी व दूसरी खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या। खेत में अगर पौधों की पर्याप्त संख्या होगी तो अधिक पैदावार अपने आप ही मिल जाएगी। किसान रामदेवा ने टीम के सामने कीटनाशक का प्रयोग न करने वाले एक किसान का ताजा उदहाराण रखते हुए बताया कि उनके पड़ोसी किसान कृष्ण की गन्ने की फसल में काली कीड़ी का काफी ज्यादा प्रकोप हो गया था, लेकिन कृष्ण ने एक बार भी अपनी फसल में कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया। कुछ दिन बाद काली कीड़ी को मासाहारी कीटों ने चट कर उसका खात्मा कर दिया और आज कृष्ण की गन्ने की फसल सुरक्षित है। इस प्रकार किसान का कीटनाशक पर खर्च होने वाला पैसा भी बच गया और उसकी फसल जहर से भी बच गई। इस दौरान टीम ने महिलाओं द्वारा कीटों पर लिखे गए गीतों की रिकार्डिंग भी की। बाद में महिलाओं ने टीम को हथजोड़ा कीट का चित्र स्मृति चिह्न के रूप में भेंट किया।
महिलाओं की कायल हो गई टीम की रिपोर्टरटीम की रिपोर्टर रितू भारद्वाज कार्यक्रम की रिकार्रिंड़ग के दौरान महिलाओं से सवाल-जवाब करते समय उनके अनुभव को देखकर उनकी कायल हो गई। रितू ने इन महिलाओं से प्रेरणा लेकर इस अभियान की जमीनी हकीकत से रू-ब-रू होने के लिए महिलाओं से दौबारा अपने पिता के साथ उनकी पाठशाला में आने का वायदा किया।

पाठशाला में महिलाओं को कैमरे में शूट करते टीम के सदस्य।
 टीम की रिपोर्टर को स्मृति चिह् भेंट करती महिलाएं।





अब होमगार्ड भी देगा शूटिंग प्रतियोगिता में टारगेट पर निशाना लगाने का मौका

नरेंद्र कुंडू
जींद।
होमगार्ड से हथियारों का प्रशिक्षण लेने वाले प्रशिक्षुओं के लिए एक अच्छी खबर है। अब आर्म्स लाइसेंस के लिए होमगार्ड की ट्रेनिंग लेने वाले आवेदक शूटिंग प्रतियोगिता में भी अपना भाग्य आजमा सकेंगे। योजना को अमल में लाने के लिए गृहरक्षी विभाग के डीआईजी ने सभी जिला कमांडेंटों को पत्र लिखकर यह आदेश जारी कर दिए हैं। जिला कमांडेंटों को मिले आदेशों के अनुसार अब गृहरक्षी विभाग द्वारा हर वर्ष जिला व राज्य स्तर पर शूटिंग प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी। जिला स्तरीय प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को ही राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में खेलने का अवसर दिया जाएगा।
सिर्फ हथियार का शौक पूरा करने या पीएसओ की नौकरी में भाग्य आजमाने के लिए होमगार्ड से हथियारों का प्रशिक्षण लेने वाले आवेदक भीअब शूटिंग प्रतियोगिता में अपना निशाना लगा सकेंगे। इसके लिए गृहरक्षी विभाग ने सीविलयन राइफल ट्रेनिंग स्कीम (सीआरटीएस) के नियमों में परिवर्तन करते हुए यह निर्णय लिया है। गृहरक्षी विभाग द्वारा लिए गए इस निर्णय से अब प्रशिक्षण के लिए आने वाले आवेदकों को भी शूटिंग प्रतियोगिता में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अवसर मिलेगा। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से जहां प्रतिभागियों में भी आगे बढ़ने की जिज्ञासा पनपेगी वहीं देश को भी शूटिंग के क्षेत्र में अच्छे खिलाड़ी मिलने की उम्मीद जगेगी। विभाग द्वारा योजना को सफल बनाने के लिए हर वर्ष जिला व राज्य स्तर पर शूटिंग प्रतियोगिता आयोजित करवाई जाएंगी। गृहरक्षी विभाग के डीआईजी संजीव कुमार जैन ने सभी जिला कमांडेंटों को पत्र जारी कर सीआरटीएस स्कीम के तहत हर वर्ष जिला स्तर पर शूटिंग प्रतियोगिता करवाने के निर्देश जारी कर दिए हैं। जिला स्तर पर प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागी को ही राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिलेगा। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले खिलाडि़यों को विभाग द्वारा पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया जाएगा। गृहरक्षी विभाग द्वारा तैयार की गई यह योजना ट्रेनिंग के दौरान प्रशिक्षुओं को सही दिशा देने में रामबाण का काम करेगी। इससे शूटिंग प्रतियोगिता में प्रदेश से काफी खेल प्रतिभाएं निखर कर आगे आएंगी।

प्रशिक्षुओं को मिलेगी सही दिशा

विभाग द्वारा शुरू की जाने वाली यह एक अनोखी पहल है। इससे हथियारों का प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले आवेदकों को एक साथ दो-दो लाभ होंगे और उन्हें एक प्रशिक्षण के लिए एक उद्देश्य भी मिल जाएगा। विभाग की इस योजना से शूटिंग के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं को भी आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा और प्रदेश को निशानेबाजी के लिए अच्छे खिलाड़ी मिल सकेंगे।
बीरबल कुंडू, जिला कमांडेंट
गृहरक्षी विभाग, जींद

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

किसान-कीट मुकदमे की सुनाई में खाप पंचायतों के साथ पहुंचे कृषि अधिकारी



 किसानों के सामने अपने विचार रखते कृषि विभाग के अधिकारी।
 कृषि विभाग के उपनिदेशक को स्मृति चिह्न भेंट करते निडाना के किसान।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीट-किसान मुकदमे की सुनवाई के लिए मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ से नौगाम खाप के प्रधान कुलदीप सिंह रामराये, लोहाना खाप के प्रतिनधि रामदिया तथा पूनिया खाप की तरफ से जोगेंद्र सिंह पहुंचे। खाप पंचायतों के अलावा हिसार के कृषि उपनिदेशक डा. रोहताश, बीएओ डा. महीपाल, एडीओ डा. मांगेराम भी विशेष रूप से मौजूद थे। खाप पंचायतों व कृषि अधिकारियों ने नरमे के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ कीटों की पढ़ाई पढ़ी। कीट मित्र किसान रणबीर रेढू ने बताया कि पहले उन्हें कपास की फसल में पाए जाने वाले सिर्फ 109 कीटों की पहचान थी। जिसमें 83 कीट मासाहारी तथा 26 कीट शाकाहारी थे। लेकिन अब उन्होंने कपास की फसल में 140 कीटों की पहचान कर ली है। जिसमें 43 कीट शाकाहारी तथा 97 कीट मासाहारी हैं। रेढू ने बताया कि शाकहारी कीटों में 20 किस्म के रस चूसक, 13 प्रकार के पर्णभक्षी, तीन प्रकार के फलाहारी तथा तीन प्रकार के पुष्पाहारी कीट मौजूद हैं। इसके बाद किसानों ने फसल में किए गए अवलोकन के आंकड़े दर्ज करवाए। किसानों ने बताया अवलोकन के दौरान उन्होंने कपास की फसल में कातिल बुगड़ा, लेडी बिटल, 5 तहर की मकड़ी, दिखोड़ी, फलेहरी बुगड़ा, डायन मक्खी, बुगड़े, हथजोड़ा, क्राइसोपा के अंडे व बच्चे, मकड़ी मकड़ी व टिडे का शिकार करते देखी। इसके अलावा मकड़ी द्वारा सफेद मक्खी का शिकार करते देखा गया। किसान रमेश ने अपने अनुभव के बारे में बताते हुए कहा कि उसने 24 जुलाई को सिंगुबुगड़े अंडे देते हुए पकड़ा था। रमेश ने बताया कि सिंगुबुगड़े के अंडे से बच्चे बनने में 115 घंटे यानि चार-पांच दिन का समय लगता है। उसने बताया कि इसके बाद बच्चे तीन दिन में एक बार कांजली भी  उतारते हैं। रमेश ने बताया कि 25 जुलाई को उसने कातिल बुगड़ा नामक कीट को पकड़ा था। कातिल बुगड़े ने 24 घंटे के दौरान 6 सलेटी भूडों को चट कर दिया। रमेश ने खाप प्रतिनिधियों को समझाते हुए कहा कि कातिल बुगड़े के अंडों से बच्चे निकलने में 113 घंटे लगते हैं। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि कपास की फसल में परपरागण में कीटों की अहम भूमिका होती है। इसका प्रमाण किसान 2001 में देख चुके हैं। 2001 में किसानों ने कपास की फसल में 40 के लगभग स्प्रे किए थे। यानि के किसान तीन दिन में एक बार कपास की फसल में कीटनाशक का छिड़काव करते थे। डा. दलाल ने कहा कि जब कीटों के बच्चों को अंडे से निकलने में चार से पांच दिन का समय लगता है और किसान तीन दिन में एक बार स्प्रे का प्रयोग करते थे। यानि के किसान बच्चों को पैदा होने से पहले ही लपेटे में ले लेते थे। फसल में कीटों की मौजूदगी न होने के कारण परागण प्रक्रिया भी  नहीं हो सकी। जिसका सीधा प्रभाव पैदावार पर पड़ा। इससे यह बात सिद्ध होती है कि अगर फसल में कीट होंगे तो परागण क्रिया होगी नहीं तो परागण क्रिया पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जिससे उत्पादन भी कम होगा। बराह कलां बाराह के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि जिस क्षेत्र में कॉटन की अधिक पैदावार होती है, वहां कैंसर के मरीजों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। क्योंकि कॉटन की फसल में सबसे ज्यादा कीटनाकशें का प्रयोग होता है। ढांडा ने पंजाब के भठिंडा का उदहारण देते हुए कहा कि भठिंडा में कॉटन की ज्यादा पैदावार होती है और वहां कैंसर के मरीजों की संख्या भी काफी ज्यादा है। भठिंडा में 10 में से 9 लोग कैंसर से पीडि़त हैं। हिसार से आए एडीओ डा. मांगे राम ने बताया कि 2003 में उसने तीन एकड़ में देसी कपास की फसल लगाई थी। इस दौरान उसने एक बार भी अपनी फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया और फिर भी उसे 19 मण प्रति एकड़ की पैदावार मिली। पाठशाला में लाडवा (हिसार) व बहादुरगढ़ के किसान भी विजिट के लिए पहुंचे थे।
निडाना के किसानों ने एक अनोखी पहल की है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए वे अपने क्षेत्र के किसानों को यहां पर ट्रेनिंग के लिए भेजेंगे। आज उनके साथ जो कृषि अधिकारी आए हैं, उन्हें भी अपने-अपने क्षेत्र में इस तरह की पाठशाला चलाने के लिए प्रेरित करेंगे। ताकि इस मुहिम को आगे बढ़ाकर देश के कोने-कोने तक पहुंचाया जा सके और थाली से जहर को कम किया जा सके।
डा. रोहताश
कृषि उपनिदेशक, हिसार

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

कीटों की ‘कलाइयों’ पर भी सजा बहनों का प्यार

‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’ 

राखी बांधकर कीटों से शुगुन के तौर पर मांगी फसलों की सुरक्षा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
भाई व बहन के प्यार के प्रतीक रक्षाबंधन के त्योहार पर आप ने बहनों को भाइयों की कलाइओं पर राखी बांधते हुए तो खूब देखा होगा, लेकिन कभी देखा या सुना है कि किसी लड़की या किसी महिला ने कीट को राखी बांधकर अपना भाई माना हो और कीट ने उसे राखी के बदले कोई शुगुन दिया हो नहीं ना। लेकिन निडाना व ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं ने रक्षाबंधन के अवसर पर कीटों की कलाइयों पर बहन का प्यार सजाकर यानि राखी बांधकर ऐसी ही एक नई रीति की शुरूआत की है। महिलाओं ने कीटों के चित्रों पर प्रतिकात्मक राखी बांध कर इन्हें अपने परिवार में शामिल कर इनको बचाने का संकल्प लिया है। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को ललीतखेड़ा गांव में पूनम मलिक के खेतों पर आयोजित महिला किसान पाठशाला में रक्षाबंधन के अवसर पर मासाहारी कीटों के चित्रों पर राखी बांध कर कीटों को भाई के रूप में अपना लिया। इसके साथ ही इन अनबोल मासाहारी कीटों ने भी इन महिला किसानों को शुगुन के रूप में उनकी थाली से जहर कम करने का आश्वासन दिया। रक्षाबंधन के आयोजन से पहले महिला किसान पाठशाला की रूटिन की कार्रवाई चली। महिला किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया।
निडाना व ललीतखेड़ा की महिला किसान पाठशाला की महिलाओं ने भाई-बहन के प्यार के प्रतिक रक्षाबंधन के पर्व पर कीटों को राखी बांधकर नई परंपरा की शुरूआत की है। इन महिला किसानों द्वारा शुरू की गई इस नई परंपरा से जहां कीटों को तो पहचान मिलेगी ही, साथ-साथ हमारे पर्यावरण पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को महिला किसान पाठशाला में मासहारी कीट हथजोड़े को राखी बांधकर सभी मासाहारी कीटों को अपना भाई स्वीकार कर उन्हें अपने परिवार का अंग बना लिया। महिलाओं ने राखी बांधकर यह संकल्प लिया कि वे फसल में मौजूद कीटों की सुरक्षा के लिए अपनी फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करेंगी। इसके साथ-साथ महिलाओं ने ‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’ गीत गाकर कीटों से राखी के शुगुन के तौर पर उनकी फसल की सुरक्षा करने की विनित की। महिलाओं ने रक्षाबंधन की पूरी परंपरा निभाई तथा कीटों के चित्रों को राखी बांधने के बाद उनकी आरती भी उतारी। इसके अलावा महिलाओं ने ‘ऐ बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है’, ‘निडाना-खेड़ा की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है’, ‘अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है’ आदि भावुक गीत गाकर किसानों को झकझोर कर रख दिया। अंग्रेजो, गीता मलिक, बिमला मलिक, कमलेश, राजवंती, मीना मलिक ने बताया कि किसान जानकारी के अभाव में अपनी फसल के रक्षकों के ही भक्षक बन जाते हैं। उन्होंने बताया कि फसल में दो प्रकार के कीट होते हैं एक शाकाहारी व दूसरे मासाहारी। मासाहारी मास खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। शाकाहारी फसल के फूल, पत्ते खाकर व इनका रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। खान-पान के अधार पर शाकाहारी कीट भी दो प्रकार के होते हैं। एक डंक वाले व दूसरे चबाकर खाने वाले। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही महिलाओं ने अपने रूटिन के कार्य पूरे किए। महिलाओं ने फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर फसल में अभी तक किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं थी। इस अवसर पर पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल के साथ खाप पंचायतों के संयोजक कुलदीप ढांडा, कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढू, रमेश सहित अन्य किसान भी मौजूद थे।  

140 पर पहुंची कीटों की गिनती

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र की आरती उतारती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र पर तिलक करती महिलाएं

बहना की कलाई पर राखी बंधवाने पहुँचा - मटकू बुग्ड़ा
महिलाओं ने बताया कि उन्हें अब तक 109 किस्म के कीटों की ही पहचान थी, लेकिन अब उन्हें 140 किस्म के कीटों की पहचान हो चुकी है। इनमें 43 शाकाहारी व 97 मासाहारी कीट होते हैं। मासाहारी कीटों की संख्या शाकाहारी कीटों से काफी ज्यादा है। जहां पर शाकाहारी कीट मौजूद होंगे वहां पर मासहारी कीट भी अपने आप आ जाएंगे। मासाहारी कीट अपने पालन-पोषण के लिए शाकाहारी कीटों को अपना भेजन बनाते हैं। इस प्रकार शाकाहारी व मासाहारी कीटों के जीवनचक्र में किसान को लाभ मिल जाता है।




अब ‘लाडो’ के संदेश से शुरू होगी पंचायतों की कार्रवाई

बेटी को बचाने के लिए खाप प्रतिनिधियों ने शुरू की ऐतिहासिक व सकारात्मक पहल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
आनर किंलिंग व गौत्र विवाद जैसे संवेदनशील मामलों में फतवे जारी करने के लिए बदनाम हुई खाप पंचायतें अब ‘लाडो’ को बचाने के लिए दुनिया को रास्ता दिखाएंगी। बेटी बचाने के लिए खाप पंचायतों ने अब एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब किसी भी मसले को सुलझाने के लिए आयोजित होने वाली पंचायतों की कार्रवाई ‘बेटी बचाओ’ के संदेश से शुरू होगी। पंचायत के अध्यक्ष द्वारा पंचायत की कार्रवाई शुरू करने से पहले बेटी के महत्व के बारे में बताते हुए सभी लोगों को बेटी बचाओ का संकल्प दिलवाया जाएगा। बेटी बचाओ के संकल्प के बाद ही पंचायत की आगामी कार्रवाई शुरू हो सकेगी।
कन्या भ्रूण हत्या के कारण गिरते लिंगानुपात को सुधारने तथा अजन्मी कन्या को उसका हक दिलवाने का बीड़ा अब खाप पंचायतों ने अपने कंधों पर उठाया है। बेटी को बचाने के लिए खाप पंचायतों ने एक अनोखा रास्ता ढुंढ़ निकाला है। हालांकि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए खाप प्रतिनिधि 14 जुलाई को बीबीपुर गांव में सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत से इस लड़ाई का शंखनाद कर चुके हैं। इस पंचायत के दौरान खाप प्रतिनिधियों को इस बुराई को जड़ से मिटाने के लिए जागरुकता ही एक मात्र अचूक शस्त्र नजर आया था। इसलिए खाप प्रतिनिधियों ने इस लड़ाई में विजयश्री का ताज पहनने तथा इस अभियान को सफलता के शिखर तक पहुंचाकर लिंगानुपात के आंकड़ों को ऊपर उठाने के लिए लोगों को जागरुक करने का निर्णय लिया है। इसलिए अब किसी भी मसले का हल निकालने के लिए होने वाली पंचायतों में बेटी बचाओ का नारा सुनाई देगा और खाप प्रतिनिधि कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ संकल्प दिलवाते नजर आएंगे। खाप प्रतिनिधियों ने निर्णय लिया है कि भविष्य में जब भी किसी पंचायत का आयोजन किया जाएगा तो पंचायत की कार्रवाई शुरू करने से पहले लोगों को बेटी के महत्व के बारे में बताया जाएगा। पंचायत के अध्यक्ष द्वारा पंचायत में मौजूद सभी लोगों को बेटी बचाने का संकल्प दिलवाया जाएगा। इसके बाद ही पंचायत की आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी। खाप पंचायतों द्वारा बेटी बचाने के लिए शुरू की गई यह एक ऐतिहासिक व सकारात्मक पहल होगी।

बेटी के हत्यारों पर हो 302 का मुकदमा दर्ज

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए खाप पंचायत द्वारा मुख्यमंत्री को पत्र लिखा गया है। पत्र में खाप प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए कानून में संसोधन किया जाए। इस कानून में संसोधन कर बेटी के हत्यारों पर सीधा 302 का मुकदमा दर्ज कर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। कन्या भ्रूण हत्या करते पकड़े जाने पर मां-बाप के साथ-साथ चिकित्सक पर भी 302 का ही मुकदमा दर्ज किया जाए। ताकि  इस जघन्य अपराध में मां-बाप का साथ देकर चिकित्सक जैसे पवित्र पेश को बदनाम करने वाले चिकित्साक को सबक सीख कर इस सामाजिक बुराई को जड़ से उखाड़ा जा सके। इसके अलावा खाप प्रतिनिधियों ने पत्र लिखकर मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा बीबीपुर पंचायत को एक करोड़ रुपए देकर पंचायत का मान बढ़ाने तथा रोहतक के सांसद दीपेंद्र हुड्डा द्वारा इस मुहिम के लिए खाप पंचायतों की पीठ थपथपाने पर उनका आभार ज्याता है।

सर्वसम्मति से लिया गया है फैसला


  पत्र दिखाते कुलदीप ढांडा का
कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक बुराई और खाप पंचायतों ने तो हमेशा ही सामाजिक बुराइयों को मिटाने के लिए कार्य किए हैं। अगर कन्या भ्रूण हत्या को नहीं रोका गया तो एक दिन इस धरती से स्त्री जाति का अस्तित्व ही मिट जाएगा। अगर स्त्री ही नहीं रहेंगी तो मानव जाति ही समाप्त हो जाएगी। इसलिए खाप प्रतिनिधियों द्वारा लोगों को जागरुक करने का बीड़ा उठाया गया है। किसी भी पंचायत की कार्रवाई शुरू करने से पहले लोगों को बेटी के महत्व के बारे में समझा कर उन्हें कन्या भ्रूण हत्या को रोकने की शपथ दिलवाई जाएगी। इसके बाद ही पंचायत की आगामी कार्रवाई शुरू हो सकेगी। खाप प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से यह फैसला लिया है।
कुलदीप ढांडा, संचालक
सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत


फाइलों से नहीं निकल पाई निर्मल ग्राम पुरस्कार में हुई फर्जीवाड़े की जांच

निर्मल गांव के ताज पर पड़े गंदगी के छींटे

नरेंद्र कुंडूजींद। निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए जिले से गांवों का चयन करने में हुए फर्जीवाड़े को दबाने में जिला प्रशासन कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। पहले तो जिला प्रशासन ने ऐसे गांवों को निर्मल ग्राम पुरस्कार दिलवा दिया जो निर्मल गांव की शर्तें पूरी करने में कोसों दूर थे। लेकिन जब निर्मल गांव का ताज पहनने वाले गांवों की असली तस्वीरें जिले के लोगों के सामने आई तो प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी शाख बचाने के लिए अलग से कमेटी बनाकर इन गांवों की जांच करवाने का ढोंग रच दिया। इस फर्जीवाड़े पर लीपापोती करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा शुरू किए गए जांच के ड्रामे को दो माह से भी ज्यादा का समय हो गया, लेकिन अभी तक न तो जांच के लिए कोई कमेटी बनी और न ही किसी गांव का दोबारा से निरीक्षण हुआ। 
सरकार द्वारा देश को स्वच्छ बनाने के लिए शुरू की गई निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना को जिले में करारा झटका लगा है। प्रदेश सरकार द्वारा मई माह में करनाल में कार्यक्रम का आयोजन कर प्रदेश के 330 गांवों को निर्मल पुरस्कार से नवाजा गया था। इस पुरस्कार के लिए जींद जिले से आठ गांवों को चुना गया था। निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए जिले से गांवों का चयन करते समय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जमकर फर्जीवाड़ा किया गया। इस पुरस्कार के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा ऐसे गांवों का चयन कर दिया गया जो निर्मल गांव की शर्तों को पूरा करने से कोसों दूर थे। लेकिन फिर भी प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी खाल बचाने के लिए नियमों को ताक पर रख कर जिले से ऐसे आठ गांवों का चयन कर दिया जिनमें निर्मल गांव की एक भी सुविधा मौजूद नहीं थी। इसके बाद इस फर्जीवाड़े को  काफी गंभीरता से उठाया था। इन निर्मल गांवों की सच्ची तस्वीरें जिले के लोगों के सामने पेश करने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों में हड़कंप मच गया। प्रशासनिक अधिकारियों ने शर्मिंदगी से बचने के लिए जांच का ढोंग रच दिया और जांच के साथ-साथ दोबारा से इन गांवों का सर्वे करवाने के आदेश जारी कर दिए। लेकिन निर्मल ग्राम पुरस्कार में हुए इस फर्जीवाड़े के मामले को जनता की अदालत में आए दो माह से भी ज्यादा का वक्त गुजर गया है, लेकिन अभी तक न तो जांच के लिए कोई कमेटी बनी है और ही दोबारा से किसी गांव का सर्वे किया गया है। इतना ही नहीं अधिकारियों ने तो यह तक जानने की जहमत नहीं उठाई कि निर्मल ग्राम पुरस्कार के तहत इन गांवों को जो ग्रांट मिली है उस ग्रांट का सही प्रयोग हुआ या नहीं। अधिकारियों के इस ढुलमुल रवैये से यह बात तो साफ हो चुकी है कि अधिकारी इस मामले पर मिट्टी डालने के प्रयास में जुटे हुए हैं और किसी भी प्रकार की जांच नहीं करवाना चाहते हैं। क्योंकि अगर पूरी ईमानदारी से जांच हुई तो इस फर्जीवाड़े में कई अधिकारियों की खाल खिंचनी तय है।
किन-किन गांवों को मिला था निर्मल ग्राम पुरस्कार
निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए जिले से आठ गांवों का चयन किया गया था। जिसमें जींद खंड में जीवनपुर, निडानी, रामगढ़, अलेवा खंड में बुलावाली खेड़ी, जुलाना खंड में खेमाखेड़ी, नरवाना में रेवर, सफीदों में पाजू कलां तथा पिल्लूखेड़ा में भूरायण गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है।
क्या कहते हैं अधिकारी
इस बारे में जब अतिरिक्त उपायुक्त अरविंद महलान से उनके मोबाइल पर बातचीत की गई तो इस बार भी उनका वही पुराना रटारटाया जवाब मिला। उन्होंने इस बार भी पहले की तरह जल्द ही टीम का गठन कर इन गांवों का सर्वे करवाने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया।

निर्मल गांव भूरायण गांव की गलियों में जमा कीचड़।


 निर्मल गांव भूरायण में लगे कूड़े के ढेर।



शनिवार, 28 जुलाई 2012

आखरी सांस तक जारी रखेंगी लड़ाई


 नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीट चाहे शाकाहारी हों या मासाहारी दोनों ही किस्म के कीटों ने कीट मित्र महिलाओं के साथ दोस्ती कर ली है। जैसे ही महिलाएं महिला किसान पाठशाला में पहुंचती हैं, वैसे ही कीट महिलाओं के पास आकर  बैठ जाते हैं। बुधवार को ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पूनम मलिक के खेत पर जैसे ही महिलाओं का आगम शुरू हुआ, वैसे ही कीटों ने भी पाठशाला में दस्तक दे दी। पाठशाला शुरू होने से पहले ही सुमित्रा के हाथ पर कातिल बुगड़ा तथा सुषमा के हाथ पर मटकु बुगड़ा आकर बैठ गया। पाठशाला का आरंभ खाप पंचायतों के संचालक कुलदीप ढांडा ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल की मृत्यु पर दो मिनट का मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर की। ढांडा ने बताया कि कैप्टन लक्ष्मी सहगल नेता जी सुभाष चंद्र बोस की रानी झांसी रेजिमेंट की कैप्टन थी और इन्होंने देश की आजादी के बाद गरीबों के इलाज का बीड़ा उठाया था। उन्होंने बताया कि सहगल ने मृत्यु के तीन दिन पहले तक कानपुर में मरीजों का इलाज किया था। अंग्रेजो ने कहा कि देश को जहर से बचाने के लिए छेड़ी गई इस लड़ाई को वे आखरी सांस तक जारी रखेंगी और यही कैप्टन लक्ष्मी सहगल को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इसके बाद महिलाओं ने कपास के खेत में कीटों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में पाया कि कोई भी कीट पूनम मलिक के कपास के इस खेत में अगले एक सप्ताह हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं है। सुमित्रा  ने बताया कि कातिल बुगड़ा अपने बराबर व अपने से छोटे आकार के कीटों का खून पीकर अपनी वंशवृद्धि करता है। कातिल बुगड़ा शिकार को पकड़े ही उसका कत्ल कर देता है। सुषमा ने बताया कि मटकु बुगड़ा कपास में पाए जाने वाले लाल बनिए का खून पीकर अपना गुजारा करता है। सुषमा ने बताया कि अभी कपास में एकाध ही लाल बनिया आया है, लेकिन लाल बनिए की दस्तक के साथ ही मटकु बुगड़े ने भी कपास में दस्तक दे दी है। गीता ने कपास की फसल में फलेरी बुगड़े के बच्चे व प्रौढ़ देखा। शीला ने सर्वेक्षण के दौरान डायन मक्खी तथा सविता ने गोब की चितकबरी सुंडी के प्रौढ़ को पकड़ा।

कीटों को राखी बांध कर मनाएंगे रक्षाबंधन का पर्व

महिला किसान पाठशाला की महिलाओं ने बताया कि वे रक्षाबंधन के पर्व पर कीटों को पौंची (राखी) बांधकर रक्षाबंधन का पर्व मनाएंगी। रक्षा बंधन पर भाई बहन से राखी बंधवाता है और बहन की रक्षा की सौगंध लेता है, लेकिन इस बार वे कीटों को राखी बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लेंगी। ताकि उनके बच्चों व उनके भाइयों की थाली जहर मुक्त हो सके। 

अनावरण यात्रा के लिए दिल्ली जाएंगी महिलाएं

सर्वेक्षण के बाद कीट बही-खाते की रिपोर्ट तैयार करवाती महिला।
कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कृषि विभाग की तरफ से महिलाओं को 27 जुलाई को दिल्ली में लगने वाले कृषि मेले की अनावरण यात्रा पर ले जाया जाएगा। ताकि कृषि मेले में महिलाएं ज्ञान प्राप्त कर सकें और इन महिलाओं में कृषि के प्रति और रुचि पैदा हो।


....खेलों के क्षेत्र में छात्राओं को तरासने की कवायद

नरेंद्र कुंडू
जींद।
पढ़ाई के साथ-साथ लड़कियों को खेल के क्षेत्र में और आगे बढने के लिए सर्व शिक्षा अभियान द्वारा एक नई पहल शुरू की गई है। इस पहल के अनुसार एसएसए पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक की छात्राओं के लिए खेलकूद प्रतियोगिताएं व सहपाठयक्रम गतिविधियों का आयोजन करवाएगा। प्रतियोगिता को दो ग्रुपों में बांटा जाएगा। पहले ग्रुप में पहली से पांचवीं तथा दूसरे ग्रुप में छठी से आठवीं कक्षा तक की छात्राओं को शामिल किया जाएगा। इसके लिए एसएसए ने जिले को दो भागों में बांटा है। पहले ग्रुप में शैक्षणिक रुप से पिछड़े तथा दूसरे ग्रुप में सामान्य खंडों को शामिल किया गया है। प्रदेश में इस वर्ष से पहली बार इन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है।
सर्व शिक्षा अभियान द्वारा छात्राओं को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद प्रतियोगिताओं में आगे बढ़ाने के लिए छात्राओं के लिए खेलकूद व सहपाठयक्रम गतिविधियों का आयोजन करवाया जाएगा। इन गतिविधियों में पहली से आठवीं तक की छात्राएं ही भाग ले सकेंगी। प्रतियोगिताओं की शुरूआत खंड स्तर से होगी। खंड स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली छात्राएं जिला स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेंगी। इसके बाद जिला स्तर पर प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्राएं राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले सकेंगी। एसएसए ने इन प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए जिले को दो भागों में बांटा है। एक भाग में शैक्षणिक रूप से पिछड़े खंडों तथा दूसरे भाग में शैक्षणिक रूप से सामान्य खंडों को शामिल किया गया है। जिले के सातों खंडों में अलग-अलग तिथि को प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाया जाएगा। ताकि एसएसए के अधिकारी स्वयं इन प्रतियोगिताओं में मौजूद होकर इन प्रतियोगिताओं का सफल आयोजन करवा सकें। एसएसए द्वारा उठाए गए इस कदम का मुख्य उद्देश्य पढ़ाई के साथ-साथ छात्राओं को खेलकूद के क्षेत्र में मजबूत करना है। ताकि नींव की शुरूआत से ही छात्राओं में खेलकूद के प्रति रुचि पैदा हो और ये आगे चलकर खेलों के क्षेत्र में प्रदेश व देश का नाम रोशन कर सकें। प्रतियोगिताओं में भाग लेने आने वाली छात्राओं को आने-जाने का खर्च व रिफरेशमेंट का प्रबंध भी एसएसए द्वारा किया जाएगा।
यहां होगी प्रतियोगिता
एसएसए द्वारा तैयार की गई इस योजना को अमलीजामा पहनाने का कार्य शुरू हो चुका है। खंड स्तर पर ये प्रतियोगिताएं शुरू हो चुकी हैं। जिला स्तर पर इन प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए एसएसए ने तिथि निर्धारित कर दी है। 27 जुलाई को जींद पुलिस लाइन में जींद, जुलाना, पिल्लूखेड़ा, सफीदों खंडों के खिलाडि़यों के लिए तथा 28 जुलाई को नरवाना के नवदीप स्टेडियम में नरवाना, उचाना, अलेवा के खिलाडि़यों के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा।

ये होंगे खेल

एसएसए द्वारा शुरू की गई इन खेलकूद प्रतियोगिताओं के प्राथमिक स्तर पर 100 व 200 मीटर दौड़, 4 गुणा 100 रीले दौड़, बैडमिंटन खेल आयोजित होंगे, जबकि मध्य स्तर पर प्रतियोगिता में 400 व 1500 मीटर दौड़ए 4 गुणा 400 मीटर रीले दौड़, शतरंज, कबड्डी, लंबी कूद व ऊंची कूद खेल करवाए जाएंगे। प्राथमिक स्तर में पहली से पांचवीं तथा मध्य स्तर पर छठी से आठवीं कक्षा तक की छात्राएं भाग लेंगी।

जिले को बांटा गया है दो भागों में।

एसएसए ने अपनी इस योजना को सफल बनाने के लिए जिले को खंडों के आधार पर दो भागों में बांटा है। पहले भाग में शैक्षणिक रूप से पिछड़े तथा दूसरे भाग में शैक्षणिक रूप से सामान्य खंडों को शामिल किया गया है। शैक्षणिक रूप से पिछड़े खंडों में नरवाना, उचाना, अलेवा को शामिल किया गया है। सामान्य खंडों में जींद, सफीदों, पिल्लूखेड़ा, जुलाना को शामिल किया गया है।

छात्राओं में बढ़ेगा आत्मविश्वास

लड़कियों में खेलों के प्रति रुचि पैदा करने के लिए एसएसए द्वारा यह योजना तैयार की गई है। अधिक से अधिक छात्राओं को इन गतिविधियों में भाग लेना चाहिए। इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने से छात्राओं में आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा उनके अंदर छिपी प्रतिभा निखर कर सामने आएगी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियाजना अधिकारी
एसएसए, जींद

कीटों-किसान मुकदमे की सुनवाई के लिए पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधि

कहा कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीट ही अचूक अस्त्र

नरेंद्र कुंडू   
जींद। ‘कीट नियंत्रणाय कीटा: हि:अस्त्रामोघा’ अर्थात कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीट ही अचूक अस्त्र है। यह बात कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक ने मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में आयोजित किसान पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों के सामने कीटों की पैरवी करते हुए रखी। पिछले कई दशकों से किसानों व कीटों के बीच चले आ रहे झगड़े को निपटाने के लिए खाप पंचायत की अदालत में आए मुकदमे की सुनवाई के लिए खाप प्रतिनिधि किसान पाठशाला में पहुंचे थे। खाप पंचायत की तरफ से आए सफीदों बारहा प्रधान रणबीर देशवाल, किनाना बाराह के प्रधान दरिया सिंह सैनी, हाट बारहा के प्रधान दयारनंद बूरा व हटकेश्वर धाम कमेटी के प्रधान बलवान सिंह बूरा ने कीट कमांडो किसानों के साथ खेत में बैठकर कीटों व पौधों की भाषा सीखने के लिए प्रयास किए। पाठशाला में किसानों ने 6 ग्रुप बनाकर कीटों का सर्वेक्षण किया। खाप प्रतिनिधियों ने कीट सर्वेक्षण में पाया कि कपास के इस खेत में रस पीकर गुजारा करने वाली सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़ा हानि पहुंचाने की स्थिति से काफी नीचे हैं। दर्जनभर गांवों से आए किसानों ने भी अपने-अपने खेतों से तैयार की कीट सर्वेक्षण रिपोर्ट को पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसमें कीट हानि पहुंचाने की स्थिति से दूर नजर आए। खेत अवलोकन के दर्शय प्रस्तुत करते हुए किसान संदीप ने बताया कि उनके ग्रुप ने मकड़ी द्वारा सलेटी भूड को खाते देख। रोशन मुनिम ने बताया कि इनके गु्रप ने क्राइसोपा के बच्चों को लेडी बिटल का गर्भ खाते देखा। इस दौरान उन्हें फसल में फलेरी बुगड़ा व हथजोड़ा कीट भी  देखे। लोहिया व जोगेंद्र ने बताया कि सर्वेक्षण के दौरान उन्हें मकोड़े को सलेटी भूड का काम तमाम करते हुए देखा। इंटल कलां से आए किसान चतर सिंह ने कहा कि उनके ग्रुप ने डायन मक्खी, लोपा मक्खी, दीदड़ बुगड़ा के बच्चे, कातिल बुगड़ा, सिंगु बुगड़ा आदि मासाहारी कीडे देखे। चतर सिंह की बात को बीच में ही काटते हुए महाबीर व सुरेश ने कहा कि कपास की फसल में 6 किस्म की मासाहारी मकड़ी उन्होंने देखी हैं। सर्वेक्षण के बाद जो रिपोर्ट सामने आई उस रिपोर्ट को देखते हुए अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने कहा कि कपास के इस खेत में तो मासाहारी कीटों के लिए दो दिन का भी भेजन नहीं है। किसान अजीत ने बताया कि डायन मक्खी पौधे के पत्ते को मचाम (ज्योंडे) के रुप में इस्तेमाल करती है और वहीं पर बैठकर कीटों पर घात लगाती है। डायन मक्खी शिकार को पकड़ कर लुंज करने के लिए उसके शरीर में जहर छोड़ती है और उसके बाद अपने ठिकाने पर ले जाकर उसका भक्षण करती है। कातिल बुगड़ा शिकार को  पहले कत्ल करता है उसके बाद उसके मास को तरल कर उसको चूसता है। किसानों ने अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि खुशी की बात तो यह है कि पाठशाला में ट्रेनिंग ले रहे किसानों को अभी तक फसल में स्प्रे के इस्तेमाल की जरुरत नहीं पड़ी। रणबीर मलिक ने बताया कि 2008 से वह इस मुहिम से जुड़ा हुआ है और इस दौरान उसने कभी भी स्प्रे नहीं किया है। वह पिछले दो सालों से देसी कपास की खेती ले रहा है। कपास की बिजाई के लिए बाजार से बीज खरीदने की बजाए कपास की लुढ़वाई करवाकर घर पर ही कपास का बीज तैयार कर देसी कपास की बिजाई करता है। इगराह के किसान मनबीर रेढू ने कहा कि उसने पिछले चार साल से एक बार भी अपनी फसल में स्प्रे का प्रयोग नहीं किया है। रमेश व रामदेवा ने बताया कि उन्होंने तीन साल से स्प्रे का प्रयोग
किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करते किसान।
पूरी तरह से बंद कर रखा है। जयभगवान ने बताया कि उसने पिछले दो वर्षों से एक बार भी स्प्रे का इस्तेमाल नहीं किया है। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि हमारी तो सिर्फ 36 बिरादरी ही हैं, लेकिन कीटों की तो 10 लाख किस्में हैं, तीस लाख किस्म के जीवाणु हैं। अगर खुदा ना खास्ता इस पृथ्वी से ये जीव लुप्त हो जाएं तो मानव समाज अपने बलबुते तो दो साल भी  जीवित नहीं रह सकता। ढांडा ने कहा कि 30 अक्टूबर को 18वीं पंचायत होगी और इस पंचायत के बाद खाप प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर नवंबर माह में 19वीं पंचायत के लिए समय निर्धारित किया जाएगा। इस पंचायत में पूरे प्रदेश की खाप पंचायतों के प्रतिनिधि भाग लेंगे तथा दशकों से चले आ रहे इस विवाद को निपटाने के लिए अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे। किसान पाठशाला के किसानों ने खाप प्रतिनिधियों को हथजोड़े का चित्र स्मृति चिह्न के तौर पर देकर सम्मानित किया।
अपने मचाम बना कर शिकार के इंतजार में बैठी डायन मक्खी।


रविवार, 22 जुलाई 2012

दूसरी फसल के कीटों ने भी दी महिला किसान पाठशाला में दस्तक



नरेंद्र कुंडू
जींद। नजारा है ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पाठशाला का। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही मास्टर ट्रेनर महिला किसान कविता ने महिलाओं को एक नई किस्म का कीट दिखाया, जिसका पेट भिरड़ जैसा था। इस कीट को निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने खेतों में पहली बार देखा था। कीट को देखते ही नारो पूछ बैठती है आएं यू डांगरां की माच्छरदानी आला कीड़ा आड़ै खेतां में के कैरा सै। इसे-इसे कीड़े तो डांगरां की माच्छरदानी में घैने पाया करें सैं। कविता ने नारो की बात को बीच में ही काटते हुए महिलाओं को नए कीट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह नए किस्म की लोपा मक्खी है जो खान-पान के आधार पर मासाहारी होती है। इस मक्खी की तीन जोड़ी पैर व दो जोड़ी पंख होते हैं। अकसर किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से पुकारते हैं। कविता ने बताया कि यह धान में लगने वाले तना छेदक, पत्ता लपेट के पतंगों का उडते हुए शिकार कर लेती है। कविता ने कहा कि जब पतंगे नहीं रहेंगे तो अंडे कहां से आएंगे और अंडे ही नहीं होंगे तो सुंडी नहीं
नए किस्म की लोपा मक्खी
आएंगी। सविता ने बताया कि लोपा मक्खी अपने अंडे धान के खेत में खड़े पानी में देती है। पानी में पैदा होने वाले इसके बच्चे भी मासाहारी होते हैं। शीला ने बताया कि इसे जिंदा रहने के लिए खाने में अपने वजन से ज्यादा मास चाहिए। शीला की बात सुनकर नारों की आंखें खुली की खुली रह गई। नारो ने पूछा आएं फेर यू खेतां का कीड़ा है तो माच्छरदानी में कै करया कैरै सै। कृष्णा ने नारो के सवाल का जवाब देते हुए बताया यू कीड़ा उड़ै माच्छरां नै खाया करै सै। इस बात पर बहस करने के बाद महिलाओं ने कीट बही खाता तैयार करने के लिए कपास के पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं ने पाया कि कपास की फसल में पाने वाले शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, मिलीबग कोई भी  फसल में हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं था। रही बात मासाहारी कीटों की, कपास की फसल में कोई भी पौधा ऐसा नहीं था, जिस पर फलेरी बुगड़े के बच्चे (निम्प) मौजूद न हों। शीला ने बताया कि फलेरी बुगड़े के बच्चे शाकाहारी कीटों का खून पीकर गुजारा करते हैं। कीट सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किए गए बही खाते से महिलाओं को कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत महसूस नहीं हुई। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि पृथ्वी पर साढ़े तीन करोड़ साल पहले पौधे विकसित हुए थे और पौधों पर गुजारा करने के लिए कीट
फसल में पाए गए लालड़ी कीट का फोटो।
आए थे। जबकि किसानों ने तो खेती की शुरूआत के साथ ही पौधों पर कब्जा करना शुरू किया है। कीटों व किसानों की इस अनावश्यक जंग में निश्चित तौर पर कीटों का पलड़ा भारी है। क्योंकि कीटों में इंसान की अपेक्षा प्रजजन करने की क्षमता अधिक व खुराक की जरुरत कम होती है। पंखों की वजह से कीटों के बच निकलने की संभावना भी ज्यादा रहती है।

किसान हरे नहीं पीले हाथ करने की चिंता करें

किसान पाठशाला की मास्टर ट्रेनर शीला ने कहा कि धान की फसल में लोपा मक्खी आने के बाद किसानों को धान में फूट के नाम पर डाली जाने वाली कीड़े मारने वाली हरी दवाई से हरे हाथ करने की जरुरत नहीं है। इसकी चिंता तो किसान लोपा मक्खी पर छोड़ अपने विवाह योग्य पुत्र-पुत्रियों के हाथ पीले करने की चिंता करें।
अन्य फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से बनाई दोस्ती
 किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधि के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं।
कीटों के प्रति महिला किसानों के सकारात्मक रवैये को देखकर दूसरी फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से दोस्ती बना ली है। बुधवार को ललीतखेड़ा में आयोजित महिला किसान पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के दौरान लालड़ी व अखटिया बग भी महिलाओं के बीच आ गए। कविता ने बताया कि लालड़ी कीट अकसर घीया, तोरी, कचरी की बेलों पर पाया जाता है। यह कीट बेल के पत्ते खाकर अपना गुजारा करता है। अखटिया बग औषधीय आख के पौधे पर पाया जाता है। यह कीट भी रस चूसकर अपना जीवन चक्र चलाता है।






चौधरियों ने गहनता से किया ‘किसान-कीट’ मुकदमे का अध्ययन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जवानों व किसानों को मजबूत करने के लिए ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था। लेकिन आज चंद स्वार्थी लोगों की मुनाफे की चाह में उनके इस नारे की चमक फीकी पड़ रही है। हम भगवान विष्णु को देश का पालनहार मानते हैं, लेकिन वास्तव में पालनहार का फर्ज तो किसान अदा करता है जो अपने पसीने से धरती को सींचता है और धरती का सीना चीर कर देश के लिए अन्न पैदा करता है। शरहद पर जो जवान खड़े हैं वो भी किसान के ही बेटे हैं। लेकिन बढ़ते रासायनिकों के प्रयोग के कारण खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है और देश का पालनहार अपना ही पालन-पोषण ढंग से नहीं कर पा रहा है। यह बात देशवाल खाप के प्रतिनिधि रामचंद्र देशवाल ने मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस दौरान खाप पंचायत की तरफ से आए खाप प्रतिनिधियों ने कीट मित्र किसानों के साथ बैठकर कीटों व किसानों के इस मुकदमे का गहन अध्ययन किया। इस अवसर पर उनके साथ नंदगढ़ बारहा के प्रधान होशियार सिंह दलाल भी मौजूद थे। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि कीटों को मारने की जरुरत नहीं है अगर जरुरत है तो कीटों को पहचानने की, कीटों को समझने की व कीटों को परखने की। सबसे पहले किसान को कीटों की पहचान होना जरुरी है। कीट की पहचान के साथ ही किसान को यह पता होना चाहिए कि कीट उसके खेत में क्या करते हैं। उन्होंने कहा कि खेत में पाई जाने वाली लेडी बिटल को स्कूली बच्चे फैल-पास के नाम से जानते हैं। डा. दलाल ने कहा कि अगर चूरड़ा रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाता है तो माइटल कीट को खाकर फसल को नुकसान से बचाता भी है। उन्होंने बताया कि देश में 221 किस्म की पेस्टीसाइड कंपनियां रजिस्टर्ड हैं और इनमें से 53 पेस्टीसाइडों को कैंसर की जननी घोषित किया जा चुका है। किसान मनबीर रेढू ने बताया कि कातिल बुगड़ा पहले कीट का कत्ल करता है उसके बाद उसका खून चूसता है। दीदड़ बुगड़ा मात्र 30 सैकेंड में मिलीबग का काम तमाम कर देता है। सिंगु बुगड़े के दोनों कंधों पर सिंग होते हैं और यह भी कीट का खून चूसकर गुजारा करता है। बिंदू बुगड़े के कंधों पर बिंदू होते हैं और यह रक्त चूसकर अपनी वंशवृद्धि करता है। रेढू ने देसी कपास व घर पर लुढ़वा कर बोई गई बीटी के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। इसी दौरान निडानी के किसान जयभगवान ने किसानों को अंड़े में से सिंगु बुगड़े के बच्चे निकलते तथा डाकू बुगड़े के बच्चों द्वारा चूरड़े को खाते हुए दिखाया। ईगराह, अलेवा, खरकरामजी, ललीतखेड़ा, निडाना, इंटलकलां व निडानी से आए किसानों ने मासाहारी व शाकाहारी कीटों का अलग-अलग बही खाता तैयार किया। जिसके अनुसार कपास की फसल 100 दिन की होने के बावजूद भी स्प्रे के प्रयोग की कोई जरुरत नजर नहीं आई। बरहा कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने बताया कि  कीटों की हड्डियां बाहर व मास अंदर होता है। कीटों में रक्त का संचार इंसान की तरह नलियों में नहीं खुले में होता है और कीट का खून हवा के संपर्क में आने के बाद भी नहीं जमता। अंडे से पर्याप्त भेजन न मिलने के कारण कीट का बच्चा विकसित होने के लिए बाहर आता है। पाठशाला में रुस्तम ऐ हिंद पहलवान दारा सिंह व किसान सुनील के के पिता के निधन पर दो मिनट का मौन धारण कर शोक प्रकट किया। इस अवसर पर गांव भैणी सुरजन (महम) से भी कुछ किसान कीट ज्ञान प्राप्त करने के लिए पाठशाला में पहुंचे।

नया प्रयोग किया शुरू

 खेत पाठशाला में बही खाता तैयार करते किसान।

कपास के पौधे से बोकियां तोड़ते खाप प्रतिनिधि।

खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।
डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कपास की फसल में बोकी से फूल बनने में 28 दिन का समय लगता है। पौधे पर क्षमता से ज्यादा बोकी आ जाती हैं तो पौधा कुछ बोकियों को गिरा देता है। अगर शाकाहारी कीट कुछ बोकियों को खा लेता है तो पैदावार पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस बात को पुख्ता करने के लिए तीन पौधों को प्रयोग के लिए चुना गया। इन पौधों पर नौ व दस बोकियां मिली। जिनमें से प्रत्येक पौधे से दो या तीन बोकियां खाप प्रतिनिधियों ने अपने हाथों से तोड़कर गिरा दी।