रविवार, 3 जून 2012

.....खत्म हुई ‘आत्मा’ की तलाश

बीटीएम व एसएमएस बनेंगे किसानों का सहारा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कृषि विभाग ‘आत्मा’ को ‘देह’ तक लाने की कवायद में जुट गया है। विभाग ने सुस्त पड़ी आत्मा योजना को चुस्त करने के लिए मैनपॉवर का सहारा लेने का मन बनाया है। इससे ‘देह’ के लिए भटकती ‘आत्मा’ की तलाश पूरी हो गई है। इसके लिए विभाग द्वारा अनुबंध के आधार पर लगभग 210 नए अधिकारियों की भर्त्ती की गई है। जिनमें 91 ब्लॉक टेक्नोलाजी मैनेजर (बीटीएम) व 119 विषय विशेषज्ञों (एसएमएस) की भर्ती की है। बीटीएम व एसएमएस किसानों को समय-समय पर खेती की नई तकनीकी जानकारी देकर कम खर्च से अधिक उत्पादन लेने के गुर सिखाएंगे। विभाग बीटीएम व एसएमएस को फील्ड में उतारने से पहले किसानों के समक्ष आने वाली सभी समस्याओं व उनके समाधान के बारे में ट्रेनिंग देकर विशेष तौर पर ट्रेंड करेगा। इसकी सबसे खास बात यह है कि किसान सामुहिक रूप से अपना कोई भी प्रोजेक्ट तैयार कर बीटीएम के माध्यम से विभाग को भेज सकते हैं। अगर विभाग की तरफ से किसान के प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिल जाती है तो विभाग किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए उस प्रोजेक्ट पर स्वयं पैसे खर्च करेगा। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से किसान सीधे विभागीय अधिकारियों के साथ जुड़ सकेंगे।
लगातार घटती कृषि जोत व जानकारी के अभाव के कारण खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही थी। जिस कारण खेती से किसानों का मोह भंग हो रहा था। जिसके बाद कृषि विभाग ने किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए आत्मा योजना शुरू की थी। इस योजना के माध्यम से विभाग द्वारा किसानों को समय-समय पर कई प्रकार की सहायता दी जाती थी। लेकिन विभाग में अधिकारियों व कर्मचारियों की कमी के कारण योजना के माध्यम से किसानों को समय पर किसी प्रकार का लाभा नहीं मिल पाता था। जिस कारण आत्मा योजना अपने मकशद में सफल नहीं हो पा रही थी। कृषि विभाग ने आत्मा योजना को दोबारा से खाड़ा करने के लिए अपनी मैनपॉवर बढ़ाने का निर्णय लिया और अनुबंध के आधार पर लगभाग 210 नए अधिकारियों की भर्त्ती की। जिसमें 91 ब्लॉक टेक्नोलाजी मैनेजर (बीटीएम) व 119 विषय विशेषज्ञों (एसएमएस) की नियुक्ती की है। विभाग बीटीएम व एसएमएस को फील्ड में उतारने से पहले किसानों के समक्ष आने वाली समस्याओं व उनके समाधान के बारे में ट्रेनिंग देकर विशेष रूप से ट्रेंड करेगा। इसके बाद ये बीटीएम व एसएमएस किसानों के बीच पहुंचकर उन्हें विभाग की नई-नई योजनाआ से अवगत करवाएंगे तथा आधुनिक तकनीकों की सहायता से कम खर्च से अधिक पैदावार लेने के गुर सिखाएंगे। बीटीएम के साथ कृषि संबंधी सभी विभागों जैसे बागवानी विभाग, पशुपालन, मछली पालन व अन्य विभाग से जुडेÞ सभी अधिकारियों की एक टीम होगी। इस प्रकार किसानों को कृषि विभाग से संबंधित जिस भी क्षेत्र में समस्या आएगी उसी विभाग से संबंधित अधिकारी किसान की उस समस्या का निदान मौके पर ही कर देगा। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से विभाग की सभी योजनाएं किसानों तक सीधे पहुंच सकेंगी और इससे किसानों के आर्थिक स्तर में भी सुधार हो सकेगा।

अपना प्रोजेक्ट भी विभाग को भेज सकते हैं किसान

इस योजना की सबसे खास बात यह है कि किसान सामुहिक रूप से कोई भी प्रोजेक्ट तैयार कर सकते हैं, जो किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सके। किसान इस तरह के प्रोजेक्ट को तैयार कर उसकी रिपोर्ट बीटीएम के माध्यम से विभाग को भेज सकते हैं। अगर विभागीय अधिकारियों को किसानों का वह प्रोजेक्ट पंसद आता है तो विभाग अधिक से अधिक किसानों तक उस प्रोजेक्ट को पहुंचाने के लिए अपने तरफ से पैसे खर्च करेगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि किसान अपनी योजनाएं भी विभाग के उच्च अधिकारियों तक पहुंचा सकेंगे।

किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करना है मुख्य उद्देश्य

मैनपॉवर की कमी के कारण विभाग की अधिकतर योजनाएं समय पर किसानों तक नहीं पहुंच पाती थी। इसलिए विभाग ने अपनी योजनाओं को समय पर किसानों तक पहुंचाने तथा उनकी समस्याओं के समाधान के लिए बीटीएम व एसएमएस की नियुक्ती की है। विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करना है।
बीएस नैन
डायरेक्टर, किसान प्रशिक्षण केंद्र, जींद

नशों में रम रहा नशा

नरेंद्र कुंडू
जींद। सरकार धूम्रपान पर रोक लगाने के लिए हर साल करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करना निषेध माना गया है। कोर्ट के इन आदेशों के तहत सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करते पकड़े जाने पर जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन लोगों को सरकार की इस मुहिम से कोई सरोकार नहीं है। क्योंकि नशा उनकी नश-नश में रम चुका है। जिस कारण लोगों में धुआं उड़ाने का क्रेज सिर चढ़कर बोल रहा है। जिले में लोगों द्वारा हर माह लाखों रुपए धूएं में उड़ा दिए जाते हैं। सार्वजनिक स्थलों के अलावा सरकारी कार्यालयों में भी सरकारी बाबुओं द्वारा खुलेआम धूम्रपान निषेध कानून की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। लोगों में तम्बाकू की बढ़ती लत के कारण प्रति वर्ष 8.5 लाख लोग मौत का ग्रास बन रहे हैं। पुरुषों के अलावा महिलाओं व बच्चों में भी धूम्रपान का क्रेज बढ़ रहा है। तम्बाकू व्यवसायियों की मानें तो शहर में रोजाना बीड़ी व सिगरेट के एक कैंटर की लोडिंग खप जाती है।
सरकार द्वारा धूम्रपान पर रोक लगाने के लिए लाखों प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार हर वर्ष विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। लेकिन लोगों में धुआं उड़ाने का क्रेज बढ़ता ही जा रहा है। बात यह नहीं है कि लोग तम्बाकू व गुटखे से होने वाली बीमारियों के बारे में अनजान हों। लोग धूम्रपान से होने वाले शारीरिक नुकसान के बारे में सबकुछ जानते हुए भी इस लत को नहीं छोड़ पा रहे हैं। तम्बाकू के जलने व उससे पैदा होने वाले धूएं से 4800 प्रकार के रासायनिक तत्व पैदा होते हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं। 60 प्रतिशत पुरुष व 12 प्रतिशत महिलाएं इस लत का शिकार हैं। धूम्रपान निषेध कानून लागू होने के चार साल बाद भी लोगों पर इसका कोई खासा प्रभाव नहीं पड़ा है। सरकार की धूम्रपान निषेधी मुहिम कागजों तक ही सिमट कर रह गई है। इस मुहिम का असर सरकारी कार्यालयों में बैठे बाबुओं पर भी नहीं पड़ रहा है। साल में एक बार तम्बाकू दिवस पर सरकारी कर्मचारी लोगों को जागरूक करने के लिए बरसाती मैंढ़कों की तरह बाहर आते हैं लेकिन इसके बाद इन कर्मचारियों द्वारा सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करने वाले लोगों के खिलाफ कोई मुहिम नहीं चलाई जाती।

प्रति वर्ष होते हैं 1.8 करोड़ रुपए खर्च

तम्बाकू व्यवसायियों की माने तो शहर में हर रोज लोग 30 हजार रुपए तम्बाकू व 20 हजार रुपए गुटखों पर खर्च करते हैं। इस प्रकार हर माह लोग 9 लाख रुपए धूएं में उड़ा रहे हैं तथा 6 लाख रुपए के गुटखे निगल रहे हैं। लोग प्रति वर्ष 1.8 करोड़ रुपए तम्बाकू व गुटखों पर खर्च करते हैं।

तम्बाकू में होते हैं घातक रासायनिक तत्व

वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि अधिकतर लोग अपनी तलब को पूरा करने के लिए तम्बाकू व गुटखे का सेवन करते हैं। तम्बाकू में अमोनिया व आर्सेनिक जैसे घातक रसायन डाले जाते हैं। अमोनिया का प्रयोग फर्श की सफाई व आर्सेनिक का प्रयोग चींटियों को मारने के लिए बनाई जाने वाली दवाई में किया जाता है। तम्बाकू में निकोटिन पदार्थ भी होता है। निकोटिन शरीर में फेफड़ों व जबड़े के  कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों को निमंत्रण देता है।
लघु सचिवालय के बाहर बीड़ी के कश लगाती बुजुर्ग महिला।

बस स्टेंड पर बीड़ी के कश लगाते यात्री।
 तम्बाकू से कोन-कोन सी होती हैं बीमारियां
चिकित्सक नरेश शर्मा ने बताया कि लंबे समय तक धूम्रपान करने से दिल का दौरा, प्रजजन विकार, जन्मदोष, मस्तिष्क संकोचन, अल्जाइमर रोग, स्ट्रोक, मोतिया बिंद, कैंसर, मुहं का कैंसर, भेजन नली, सरवाईकिल, फेफड़ा, पेट, जिगर, गुर्दा, गला, छाती व अधिवृक्त ग्रंथी, श्वसन विकार जैसे रोग उत्पन होते हैं। इस प्रकार धूम्रपान से होने वाली खतरनाक बीमारियों के कारण हर वर्ष 8.5 लोग मौत का ग्रास बन रहे हैं।


शुक्रवार, 1 जून 2012

किसानों के लिए सिर दर्द बनी ‘योजना’

टंकियों के नाम पर होता है फर्जीवाड़ा

नरेंद्र कुंडूजींद। कृषि विभाग द्वारा किसानों के उत्थान के लिए हर वर्ष अनेकों योजनाएं धरातल पर उतारी जाती हैं, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही व लंबी प्रक्रिया के कारण विभाग की अधिकतर योजनाएं धरातल पर आने से पहले ही धराशाही हो जाती हैं। कृषि विभाग द्वारा अन्न के सुरक्षित भंडारण के लिए सब्सिडी पर किसानों को टंकियां मुहैया करवाने के लिए शुरू की गई यह योजना भी खामियों का शिकार हो चुकी है। किसानों को लाभावित करने के लिए शुरू की गई यह योजना किसानों के लिए सिर का दर्द बन चुकी है। यह इसी का परिणाम है कि इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा रखे गए 1195 टंकियों के टारगेट में से सिर्फ 450 टंकियां ही किसानों तक पहुंच पाई हैं। बाकी बचे हुए किसानों को टंकियों के लिए आए दिन सरकारी बाबूओं के दरवाजे खटखटाने पड़ रहे हैं। अधिकतर किसान तो इस लंबी प्रक्रिया से परेशान होकर बीच में ही योजना से मुहं मोड़ लेते हैं।
रबी के सीजन के दौरान कृषि विभाग किसानों को अन्न के सुरक्षति भंडारण के लिए मैटलिक बीन के लिए प्रेरित करता है। ताकि अन्न भंडारण के दौरान किसानों का अन्न सुरक्षित रह सके। किसानों को प्रेरित करने के लिए विभाग सब्सिडी पर करोड़ों रुपए खर्च कर देता है। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा हर वर्ष जिलानुसार टारगेट भी  दिया जाता है। इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा जिले में एससी व जरनल के कुल 1195 किसानों को धातु की टंकियों मुहैया करवाने का टारगेट निर्धारित किया गया है। विभाग द्वारा 75 व 50 प्रतिशत अनुदान पर किसानों को टंकियां उपलब्ध करवाई जा रही हैं। टंकियों के निर्माण का कार्य विभाग हरियाणा कृषि उद्योग निगम से करवाता है। कृषि विभाग के अधिकारी कृषि उद्योग निगम के अधिकारियों से बिना तालमेल बनाए ही किसानों को परमिट दे देते हैं, लेकिन जब किसान टंकियां लेने के लिए निगम के कार्यालय पहुंचते हैं तो वहां उन्हें निराशा के सिवाए कुछ हाथ नहीं लगता है। फसल की कटाई यानि एक अप्रैल से ही टारगेट के अनुसार टंकियां बांटने का कार्य शुरू हो जाता है। लेकिन इसे अधिकारियों की लापरवाही कहें या आपसी तालमेल का अभाव जो अभी  तक कृषि विभाग अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाया है। विभाग द्वारा इस वर्ष निर्धारित किए गए 1195 टंकियों के टारगेट में से विभाग सिर्फ 450 किसानों को ही टंकियां मुहैया करवा पाया है। बाकी बचे किसान हर रोज टंकियां लेने के लिए अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी तरफ से भी उन्हें कोई संतुष्ट जवाब नहीं मिल रहा है। किसानों के हाथ में परमिट तो पहुंच गए हैं, लेकिन अभी टंकियां मिलने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।

फार्म के नाम पर भी  होता है घोटाला

योजना का लाभा  लेने के लिए किसानों को फार्म मुहैया करवाने की जिम्मेदारी कृषि विभाग की होती है, लेकिन कृषि विभाग के अधिकारी टारगेट के अनुसार फार्म तैयार नहीं करवाते। अधिकारी नामात्र फार्म तैयार करवा एडीओ को दे देते हैं। उन्हीं फार्मों से किसानों को अपना काम चलाना पड़ता है। एडीओ किसान को फार्म भरने के लिए नहीं सिर्फ फोटो कॉपी करवाने के लिए ही देते हैं। किसानों को अपनी जेब से पैसे खर्च कर फार्म की फोटो कॉपी करवानी पड़ती है और फार्म के लिए जो पैसा विभाग की तरफ से जारी होता है उसे अधिकारी चट कर जाते हैं। इस प्रकार फार्म के नाम पर भी  अधिकारी घोटाला करने से नहीं चुकते।

इस वर्ष कितना है टारगेट

कृषि विभाग द्वारा इस वर्ष जिले के सभी किसानों के लिए 1195 टंकियां वितरित करने का टारगेट रखा गया है। टारगेट के आधार पर 10 क्विंटल की 500 टंकियां जरनल व 600 टंकियां एससी के लिए निर्धारित की गई हैं। इसके अलावा 5.6 क्विंटल की 95 टंकियां एससी को दी जानी हैं।

बाहर से नहीं खरीद सकते टंकियां

टारगेट के आधार पर किसानों को टंकियां दी जाती हैं। विभाग किसानों के लिए बाहर से टंकियां नहीं खरीद सकता। टंकियों का निर्माण विभाग द्वारा हरियाणा कृषि उद्योग निगम द्वारा करवाया जाता है। टंकियों के निर्माण में प्रयोग होने वाला मैटीरियल विभाग चंडीगढ़ से खरीद कर भेजता है। समय पर मैटीरियल न मिलने के कारण टंकियों के निर्माण में देरी हो जाती है। जिस कारण समय पर किसानों को टंकियां नहीं मिल पाती। विभाग सभी  किसानों को टंकियां मुहैया करवाने के हर संभव प्रयास करता है।
अनिल नरवाल, एपीपीओ
कृषि विभाग, जींद

....टूट रही सांसों की डोर

एम्बुलेंस के साथ नहीं मिलती ईएमटी की सुविधा

 सामान्य अस्पताल में खड़ी एम्बुलेंस का फोटो
नरेंद्र कुंडू
जींद।
अस्पताल में बढ़ती मरीजों की संख्या पर सुविधाओं का टोटा हावी हो रहा है। खासकर दुरुह स्थिति में गंभीर मरीजों को तुरंत यहां से बाहर रेफर कर देना यहां की नियति बन गई है। अस्पताल प्रशासन द्वारा मरीजों को एम्बुलेंस की सुविधा तो दी जा रही है, लेकिन एम्बुलेंस के साथ मैडीकल टैक्नीशियन की ड्यूटी नहीं लगाई जाती है, जोकि नियम के अनुसार सबसे पहले जरुरी होती है। आपातकालीन परिस्थितियों में मरीज को समय पर प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध न होने के कारण अधिकतर मरीज अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। इस प्रकार अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण मौत मरीज के सिर पर तांडव करती रहती है और मरीज के तामीरदारों के पास सिवाए आंसू बहाने के कोई रास्ता नहीं होता।
जिले के सामान्य अस्पताल में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया न होने के कारण लोगों का विश्वास अस्पताल प्रशासन से उठ चुका है। अस्पताल में वर्तमान में एमरजेंसी एवं आईसीयू दोनों जगह गहन चिकित्सीय सुविधा का अभाव बना हुआ है। डाक्टरों की कमी एवं आधुनिकतम सुविधा के अभाव में अधिकांश मरीज बाहर रेफर कर दिए जाते हैं। खासकर दुर्घटना एवं हाइपरटेंशन के शिकार मरीजों को तो यहां किसी भी हाल में नहीं रखा जाता है। ऐसे थोड़ी सी गंभीर स्थिति में मरीजों को रोहतक पीजीआई रेफर करने की यहां आदत बनी हुई है। मरीज को रेफर करते वक्त एम्बुलेंस में चालक के अलावा ईएमटी या स्टाफ नर्स मौजूद नहीं रहती। जबकि नियम के अनुसार गंभीर परिस्थितियों के दौरान साधान एम्बुलेंस में भी एक ईएमटी होना अनिवार्य होता है। लेकिन शहर के सामान्य अस्पताल में ऐसा कोई नियम लागू नहीं होता। एम्बुलेंस में प्राथमिक चिकित्सा के आधुनिक उपकरण न होने व तकनीशियन की कमी के कारण मरीज को पीजीआई तक मौत के साए में सफर तय करना पड़ता है। रेफर के दौरान समय पर प्राथमिक चिकित्सा न मिलने के कारण कई बार मरीज भय के कारण ही अपने प्राण त्याग देता है। इस प्रकार अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण मरीज के जीवन की रक्षक एम्बुलेंस खुद ही मरीज के लिए भक्षक बन जाती है।

ऐसे जाती है जान

हाई रिस्की केश व एक्सिडेंट के अधिकतर मामलों में चिकित्सक घायल को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवा पीजीआई रेफर कर देते हैं। लेकिन साधारण एम्बुलेंस में प्राथमिक चिकित्सा उपकरण व अन्य सुविधाएं मौजूद न होने के कारण कई बार मरीज पीजीआई तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं, तो वहीं कई मरीज घंटों तक तड़पते रहते हैं। गंभीर परिस्थितियों को देखते हुए भी अस्पताल प्रशासन द्वारा किसी ईएमटी या स्टाफ नर्स को साथ नहीं भेजा जाता। जिस कारण बीच रास्ते में ही तड़फ-तड़फ कर मरीज अपनी जान दे देता है।

हर कोई उदासीन

मरीजों को तत्काल उपचार की अच्छी व्यवस्थाओं को लेकर कोई भी चिंतनशील नहीं है। अस्पताल प्रशासन संसाधनों की कमी बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं तो डॉक्टर स्थिति की नजाकत को देखते हुए मरीज को रेफर कर देते हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधि व आला अधिकारी प्रदेश सरकार से अस्पताल में पर्याप्त चिकित्सकीय उपकरणों की व्यवस्था कराने में अब तक सफल नहीं हो पाए हैं।

क्या-क्या सुविधाएं हैं अनिवार्य

किसी भी हादसे में घायल हुए मरीज को सही सलामत अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस में सबसे पहले फर्स्ड एड बॉक्स होना अनिवार्य है। ताकि अस्पताल पहुंचाने से पहले घायल को प्राथमिक उपचार देकर बचाया जा सके। इसके अलावा एम्बुलेंस में आक्सिजन सिलेंडर, चिकित्सा संबंधी सभी उपकरण व एमरजेंसी मेडीकल टेक्नीशियन (ईएमटी) होना चाहिए, जो घायल को समय पर सही उपचार देकर उसकी सांसों की डोर को टूटने से बचा सके।

चालकों को भी दिया जाएगा प्रशिक्षण

गंभीर परिस्थतियों में मरीज के साथ एक ईएमटी होना अनिवार्य होता है। अस्पताल प्रशासन द्वारा गंभीर परिस्थितियों के दौरान मरीज के साथ ईएमटी भेजने का प्रावधान किया गया है। लेकिन अब मरीजों की इस समस्या को खत्म करने के लिए अस्पताल प्रशासन द्वारा ईएमटी के अलावा एम्बुलेंस के चालकों को भी प्राथमिक उपचार की ट्रेनिंग दी जाएगी, ताकि रेफर करते समय अगर रास्ते में मरीज को किसी प्रकार की परेशानी होती है तो चालक उसे प्राथमिक उपचार देकर बचा सके।
डा. राजेंद्र प्रसाद
सिविल सर्जन, जींद

बिना बस्ता, पढ़ाई हुई खस्ता

 आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी नहीं पहुंची पुस्तकें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
गर्मियों की छुट्टियां सिर पर हैं और अभी तक सरकारी स्कूलों में किताबें नहीं पहुंची हैं। पुस्तकों के बिना विद्यार्थी किसी तरह की पढ़ाई कर पा रहे होंगे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी विद्यार्थियों तक पुस्तकें नहीं पहुंच पाने से प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग के शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर राजकीय स्कूलों में मुफ्त में बेहतर शिक्षा देने के सारे दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। इस प्रकार विद्यार्थियों को समय पर पुस्तकें उपलब्ध न करवाकर शिक्षा विभाग विद्यार्थियों के भविष्य के साथ सीधे तौर पर खिलवाड़ कर रहा है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण प्रदेशभर के 4476 सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी आज भी पुस्तकों का इंतजार कर रहे हैं। इससे अध्यापकों को भी सत्त शिक्षा मूल्यांकन की रिपोर्ट तैयार करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आखिर अध्यापक बिना पुस्तकों के किस तरह बच्चों का मूल्यांकन कर उनकी रिपोर्ट तैयार कर पाएंगे।
प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर छह से 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। मुफ्त शिक्षा के लिए कक्षा पहली से आठवीं तक के बच्चों को किताबें, कॉपियां, अन्य स्टेशनरी, स्कूल वर्दी व दूसरी पाठन सामग्री मुफ्त देने के भी दावे किए जा रहे हैं। लेकिन प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। दरअसल 2012-13 का शैक्षणिक सत्र एक अप्रैल से शुरू हो चुका है। लेकिन अभी तक स्कूलों में पाठयक्रम की पुस्तकें ही नहीं पहुची हैं। जबकि विभाग द्वारा पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक राजकीय स्कूलों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को दाखिले लेते समय ही  पाठयक्रम की सभी पुस्तकें निशुल्क मुहैया करवाई जाने का प्रावधान है। नियमों के अनुसार पाठयक्रम की पुस्तकें शैक्षणिक सत्र के शुभारम्भ पर ही विद्यार्थियों को मिलनी चाहिएं। लेकिन आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी अभी तक विद्यार्थियों को किताबें नहीं मिल पाई हैं। किताबें न मिलने से बच्चे व उनके अभिभावक दोनों निराश हैं। पाठयक्रम की पुस्तकें उपलब्ध न होने से विद्यार्थियों की व्यापक स्तर पर पढ़ाई प्रभावित हो रही है। पुस्तकों की स्थिति को देखते हुए सरकार व शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा के सुधार के बड़े-बड़े दावों की पोल खुल रही है। पिछले शैक्षणिक सत्र में भी राजकीय स्कूलों में समय पर पुस्तकें नहीं पहुची थी। वर्तमान में भी शिक्षा विभाग ने इस दिशा में कोई सुधार नहीं किया।

नए-नए प्रयोगों से गिर रहा है शिक्षा का स्तर

शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा पर हर बार किए जा रहे नए-नए प्रयोगों से प्रदेश में शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है। विभाग भले ही शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले पहली से आठवीं तक के बच्चों को मुफ्त में अच्छी शिक्षा देने के दावे कर रहा हो, लेकिन इसके परिणाम भी उल्टे ही निकल कर सामने आ रहे हैं। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी जब बच्चों को पुस्तकें नहीं मिलेंगी तो बच्चे किस तरह प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का मुकाबला कर पाएंगे। विभाग की तरफ से मुफ्त में पुस्तकें मिलने के लालच में अभिभावक भी बच्चों के लिए किताबें खरीदने से परहेज करते हैं। इस प्रकार विभाग की लापरवाही व अभिभावकों के लालच के फेर में आखिर नुकसान तो बच्चे को ही उठाना पड़ेगा।

कैसे तैयार करें सत्त शिक्षा मूल्यांकन की रिपोर्ट

शिक्षा विभाग द्वारा सत्त शिक्षा मूल्यांकन नियम के तहत कक्षा पहली से कक्षा आठवीं कक्षा तक किसी भी विद्यार्थियों को फेल न किए जाने का प्रावधान किया गया है। सत्त मूल्यांकन के तहत अध्यापक को हर रोज प्रत्येक बच्चे का मूल्यांकन कर उसकी रिपोर्ट तैयार करनी होती है। लेकिन बच्चों को समय पर पुस्तकें उपलब्ध न होने के कारण यह सवाल उठाना भी लाजमी है कि आखिर अध्यापक बिना पुस्तक के किस तरह बच्चों का मूल्यांकन कर पाएंगे।
परीक्षा परिणाम पर पड़ेगा प्रतिकूल प्रभव
आधा शैक्षणिक सत्र बीत चुका है, लेकिन अभी तक बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। इससे बच्चे पढ़ाई के क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं। जिसका परीक्षा परिणाम पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। बाद में विभागीय अधिकारियों द्वारा परीक्षा परिणाम खराब आने पर उल्टा अध्यापक को ही इसका जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
राजेश खर्ब, जिला प्रधान
हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ

प्रिंटिंग में देरी के कारण नहीं पहुंची पुस्तकें

प्रिंटिंग में हुई देरी के कारण उनके पास समय पर पुस्तकें नहीं पहुंच पाई हैं। जिस कारण अभी तक स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंच पाई हैं। इस बारे में विभागीय अधिकारियों को भी लिखित में सूचना दी जा चुकी है। ऊपर से पुस्तकें आते ही सभी स्कूलों में भिजवा दी जाएंगी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकार
एसएसए, जींद

खुलेआम बट रहा मौत का सामान

 शाम होते ही सजने लगती हैं नशे की दुकानें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
पिल्लूखेड़ा क्षेत्र में स्मैक का गोरखधंधा खूब फल-फूल रहा है। नशे के सौदागर कस्बे में अपनी जड़ें जमा चुके हैं। शाम होते ही सार्वजनिक स्थानों पर स्मैक की महफिलें सज जाती हैं और यहां खुलेआम मौत का सामन बटता है। मंडी में ही दर्जभर से ज्यादा प्वाइंट हैं, जहां पर स्मैक की धड़ल्ले बिक्री की जा रही है। नशे के सौदागरों का निशाना कम उम्र के युवा वर्ग पर सबसे ज्यादा है। इसकी का परिणाम है कि यहां का युवा वर्ग सबसे ज्यादा नशे की गिरफ्त में आ चुका है। पुलिस सब कुछ जानकर भी अनजान बनी बैठी है। हैरानी की बात यह है पुलिस ने नशे के सौदागरों के नेटवर्क को तोड़ने के लिए आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है। इससे पुलिस की कार्य प्रणाली भी संदेह के घेरे में आ रही है।
शहर में नशे का कारोबार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। स्मैक के नशे ने युवाओं में अपनी पकड़ मजबूत बना ली है। इसीलिए नशे के कारोबारी भी अपने कारोबार को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। स्मैक के अलावा कस्बे में अफीम, गांजा, चरस का कारोबार भी खुल चल रहा है। नशे के सौदागर नशे के साथ-साथ लोगों को कई प्रकार की बीमारियां भी परोस रहे हैं। शहर के अनेक सम्पन्न व गरीब परिवार के लोग अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इस व्यवसाय के बढ़ते कारोबार से कस्बे के होनहार बच्चों का भविष्य खतरे में हैं।

किस-किस जगह पर सजती हैं महफिलें

पिल्लूखेड़ा क्षेत्र में पिछले काफी समय से नशे का कारोबार लगातार पैर पसार चुका है। जिस कारण कस्बे में एक दर्जन से भी ज्यादा स्थानों पर खुलेआम नशे का कारोबार चलता है। इनमें सबसे प्रमुख स्थान कस्बे का प्रभूनगर, सत्यम कॉलोनी, रेलवे फाटक, रेलवे स्टेशन, धड़ोली मोड़, अमरावली रोड, तहसील कैंप के पास, नई अनाज मंडी, रेलवे कॉलोनी, कालवा रोड मुख्य अड्डे बन चुके हैं। इन अड्डों पर शाम होते ही खुलेआम मौत का सामान बटने लगता है।   

आपराधिक घटनाओं में संलिप्त हो रहे हैं युवा

इन दिनों शहर के युवा कम उम्र में ही नशे की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। नशे के सौदागर कम उम्र के युवकों पर अपने निशाने पर लेते हैं, क्योंकि जानकारी के अभाव के कारण ये आसानी से इनकी गिरफ्त में आ जाते हैं। नशे के सौदागर युवाओं को अपने जाल में फांसने के लिए पहले युवाओं में नशे का शोक पैदा करते हैं और नामात्र कीमत पर इन्हें नशा उपलब्ध करवा देते हैं। बाद में जब ये नशे के आदि हो जाते हैं तो नशे के बदले में इनसे मुहं मांगे दाम वसूले जाते हैं। जिस कारण अधिकतर युवा अपनी लत को पूरा करने के लिए गलत रास्ते का सहारा लेकर आपराधिक घटनाओं में संलिप्त हो जाते हैं।

खत्म हो जाती है स्मरण शक्ति

स्मैक का नशा काफी खतरनाक होता है। एक बार इसकी लत लगने के  बाद यह आसानी से नहीं छुटती है। स्मैक की जकड़ में आने के बाद व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। शरीर कमजोर पड़ जाता है। वजन काफी तेजी से घटने लगता है। व्यक्ति का अपने शरीर पर कोई कंट्रोल नहीं रहता। व्यक्ति मानसिक व शारीरिक रूप से पूरी तरह से टूट जाता है।
दिलबाग दूहन, प्रोजैक्ट डायरेक्टर
नशा मुक्ति केंद्र, जींद

पुलिस नहीं उठा रही सख्त कदम

कस्बे में कई स्थानों पर नशे का कारोबार खुलेआम चल रहा है। लेकिन नशे की दुकानों को बंद करवाने में पुलिस की भूमिका सक्रीय नहीं है। पुलिस के ढुलमुल रवैये के कारण नशे के कारोबारी अपने कारोबार को चमकाने में जुटे हुए हैं। पुलिस सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनी हुई है। पुलिस की नकारात्मक भूमिका के कारण कस्बे के लोगों में पुलिस प्रशासन के प्रति गहरा रोष पनप रहा है। 
नवीन गोयल, प्रधान
भारत विकास मंच, पिल्लूखेड़ा

शिकायत मिलने पर की जाती है कार्रवाई

कस्बे में कई लोग स्मैके के कारोबार में शामिल हैं। पुलिस नशे के सौदागरों की हर गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए है। नशे के कई कारोबारियों को पुलिस सलाखों के पीछे पहुंचा चुकी है। शिकायत मिलने पर पुलिस तुरंत रेड डाल कर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करती है।
राजेंद्र सिंह थाना प्रभारी
पिल्लूखेड़ा

धरती पुत्रों को हाइटैक बनाने की योजना पर ग्रहण

किसानों को अभी  तक नहीं मिली वित्तवर्ष 2011 की सब्सिडी

सब्सिडी के लिए किसान काट रहे हैं कार्यालयों के चक्कर
नरेंद्र कुंडू
जींद।
धरती पुत्र को हाइटैक बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय  कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) पर कृषि विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का ग्रहण लग गया है। विभाग की तरफ से कृषि यंत्रों पर मुहैया करवाई जाने वाली वित्त वर्ष 2011 की सब्सिडी किसानों को अभी तक नहीं मिल पाई है। हालांकि किसानों ने अपनी जेब से पैसे खर्च कर कृषि यंत्र तो खरीद लिए हैं, लेकिन सब्सिडी के लिए किसानों को अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। अधिकारियों की लापरवाही के कारण ट्रेक्टर चालित स्प्रे पंप व कल्टीवेटर की खरीद करने वाले जिले के 170 किसान अभी तक सब्सिडी से वंचित हैं। इस प्रकार कृषि विभाग किसानों की लगभग 25 लाख रुपए की सब्सिडी राशि पर कुंडली मारे बैठा है।
किसानों को हाईटैक बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राष्टÑीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) शुरू की गई है। इस योजना के तहत केंद्र सरकार हर वर्ष किसानों को कृषि यंत्र खरीदवाने के लिए कृषि विभाग के माध्यम से लाखों रुपए की राशि जारी करती है। कृषि विभाग योजना पर अमल करते हुए कृषि यंत्र खरीदने के लिए किसानों से आवेदन मांगता है और जिस किसान ने पहले योजना का लाभा न लिया हो, उन किसानों का ड्रा सिस्टम के तहत ड्रा निकाल कर पात्र प्रमाण पत्र जारी कर कृषि यंत्र खरीदने की अनुमती प्रदान करता है। इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2011 में कृषि विभाग ने किसानों से ट्रेक्टर चालित स्प्रे पंप, कल्टीवेटर, स्ट्रा रिपर, जीरो ड्रिल मशीन, कोटन ड्रिल मशीन व अन्य कृषि यंत्र खरीदने के लिए आवेदन मांगे थे। इसके लिए सरकार द्वारा किसानों को सबिसडी देने के लिए विभाग को लाखों रुपए की राशि भी जारी कर दी गई थी। जिसके बाद कृषि विभाग ने किसानों से आवेदन मांगे थे। विभाग ने किसानों से आवेदन भी मांग लिए, ड्रा भी निकाल दिया तथा किसानों को कृषि यंत्र खरीदने के लिए पात्र प्रमाण पत्र भी जारी कर दिए, लेकिन सब्सिडी अभी तक जारी नहीं की। कृषि अभियंत्रिक विभाग की तरफ से पात्र प्रमाण पत्र जारी होने के बाद किसानों ने अपनी जेब से पैसे खर्च कर कृषि यंत्र खरीद लिए, लेकिन अब किसानों को सब्सिडी लेने के लिए विभागीय अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारी सब्सिडी लेने के लिए किसानों को कृषि अभियंत्रिक अधिकारियों के कार्यालय व कृषि अभियंत्रिक विभाग के अधिकारी उलटा कृषि विभाग के कार्यालय भेज देते हैं। इस प्रकार कृषि अभियंत्रिक व कृषि विभाग के अधिकारी अपनी खाल बचाने के चक्कर में किसानों की चक्करघिरनी बनाए हुए हैं।

कितने किसानों को नहीं मिली सब्सिडी

आरकेवीवाई योजना के तहत कृषि विभाग ने वित्त वर्ष 2011 में किसानों से ट्रेक्टर चालित स्प्रे पंप, कल्टीवेटर, स्ट्रा रिपर, जीरो ड्रिल मशीन, कोटन ड्रिल मशीन व अन्य कृषि यंत्र खरीदने के लिए आवेदन मांग थे। विभाग ने सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद किसानों को पात्र प्रमाण पत्र देकर कृषि यंत्र खरीदने की अनुमति दे दी थी। किसानों द्वारा कृषि यंत्र खरदीने के बाद विभाग ने कुछ किसानों को तो सब्सिडी दे दी, लेकिन ट्रेक्टर चालित स्प्रे पंप खरीदने वाले 100 व कल्टीवेटर खरीदने वाले 70 किसानों को अभी तक सब्सिडी का लाभ नहीं मिला है।

ग्रांट आते ही मुहैया करवा दी जाएगी सब्सिडी

विभाग द्वारा ज्यादातर किसानों को मार्च माह तक सब्सिडी मुहैया करवा दी थी, लेकिन ट्रेजरी में ई-सैलरी सिस्टम शुरू होने के कारण केंद्र सरकार की तरफ से विभाग को समय पर ग्रांट नहीं मिल सकी। जिस कारण किसानों को सब्सिडी मिलने में देरी हुई है। अभी सरकार की तरफ से लगभग 25 लाख रुपए की ग्रांट आनी बाकी है। ग्रांट आते ही सभी किसानों को सब्सिडी मुहैया करवा दी जाएगी।
जिले सिंह, सहायक कृषि अभियंता
कृषि अभियंत्रिक विभाग, जींद

कम्प्यूटर शिक्षा के पहिये पर ब्रेक

टेंडर अलाट न होने के कारण नहीं हो सकी कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती

नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा आगाज से पहले ही दम तोड़ गई है। पिछले दो वर्षो से सरकारी स्कूलों में बच्चों की कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति ही हो रही है। यही कारण है कि सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा के पहिये पर ब्रेक लगा हुआ है। सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए सरकार द्वारा टेंडर अलाट कर प्राइवेट कंपनी के माध्यम से प्रदेश के हाई स्कूलों के लिए 2622 कम्प्यूटर शिक्षक नियुक्त किए जाने थे, लेकिन सरकार द्वारा अभी   तक किसी भी कंपनी को टेंडर ही अलाट नहीं किए गए हैं। टेंडर अलाट न होने के कारण कम्प्यूटर शिक्षा अधर में लटकी पड़ी है। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी  कम्प्यूटर शिक्षकों की नियुक्ती न होने से सरकार की कार्य प्रणाली पर तो प्रश्न चिह्न लग ही रहा है, साथ में यह सवाल भी  खड़ा हो रहा है कि आखिर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी बिना गुरु के किस तरह कम्प्यूटर शिक्षा में दक्ष हो सकेंगे।
सूचना क्रांति के साथ आई कम्प्यूटर क्रांति ग्रामीण सरकारी स्कूलों में समय पर तो पहुंची, लेकिन सरकारी अव्यवस्था के कारण वह सिरे नहीं चढ़ सकी। इसके चलते विभिन्न योजनाओं के तहत स्कूलों में आए कम्प्यूटर अब प्रशिक्षक न होने के कारण धूल फांक रहे हैं। अगर फिलहाल प्रदेश के सरकारी स्कूलों की व्यवस्था पर नजर डाली जाए तो वहां पर कम्प्यूटर तो हैं, लेकिन बच्चों को इसका ज्ञान देने के लिए कोई शिक्षक उपलब्ध ही नहीं है। प्रदेश के अधिकतर स्कूलों की कम्प्यूटर लैब के कमरों पर से तो आज तक ताला ही नहीं खुल सका है। सरकारी स्कूलों में पिछले दो वर्षों से कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर केवल खानापूर्ति ही हो रही है। सीनियर सेकेंडरी स्कूलों को छोड कर किसी भी हाई स्कूल में अभी तक कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती नहीं हो पाई है। इस वर्ष सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए सरकार द्वारा टेंडर अलाट कर प्राइवेट कंपनी के माध्यम से प्रदेश के हाई स्कूलों के लिए 2622 कम्प्यूटर शिक्षक नियुक्त किए जाने थे, लेकिन सरकार द्वारा अभी तक किसी भी कंपनी को टेंडर ही अलाट नहीं किए गए हैं। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी कम्प्यूटर शिक्षकों की नियुक्ती न होने के कम्प्यूटर लैब में पड़े-पड़े धूल फांक रहे हैं और विद्यार्थी शिक्षकों के इंतजार में हैं। शिक्षकों के अभाव में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को अपना कम्प्यूटर शिक्षा का सपना साकार होता नहीं दिख रहा है।

चाहकर भी नहीं ले पा रहे शिक्षा

सूचना क्रांति के इस दौर में हर ग्रामीण विद्यार्थी कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त करना चाहता है, लेकिन सरकारी स्कूलों में व्यवस्था नहीं होने से उसे निजी इंस्टीट्यूटों में जाकर महंगे दामों पर यह शिक्षा प्राप्त करनी पड़ रही है। वे चाहकर भी सरकारी स्कूल में कम्प्यूटर भी शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं। शिक्षकों के अभाव के कारण सरकारी स्कूलों की लैब में रखे लाखों रुपए की कीमत के कम्प्यूटर धूल फांक रहे हैं।

टेंडर नहीं हुए हैं अलाट

लैब सहायक का टेंडर सरकार ने उनकी कंपनी को दिया हुआ है। सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर टीचर की नियुक्ती के लिए सरकार द्वारा टेंडर निकाले गए थे। जिसके तहत प्रदेशभर में 2622 कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती की जानी थी, लेकिन अभी  तक सरकार ने किसी भी  प्राइवेट कंपनी को टेंडर अलाट नहीं किए हैं। टेंडर अलाट न होने के कारण ही अभी  तक कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती नहीं हो पाई है।
आकाश रस्तोगी
सीनियर मैनेजर, एनआईसीटी
 सरकारी स्कूल में कम्प्यूटर लैब पर लटका ताला

प्राइवेट कंपनी की है जिम्मेदारी

सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर के रखरखाव के लिए लैब सहायकों की नियुक्ती के लिए सरकार ने एनआईसीटी को टेंडर दिया हुआ है। हाई स्कूलों में कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती के लिए सरकार द्वारा प्राइवेट कंपनी को टेंडर दिया जाना है। टेंडर के बाद ही स्कूलों में कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती हो सकेगी। सीनियर सैकेंडरी स्कूलों में कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती की जा चुकी है।
साधू राम रोहिल्ला
जिला शिक्षा अधिकारी, जींद


अब किसान घर पर ही जान सकेंगे मंडी के भाव व मौसम का हाल

किसान क्लब ने किसानों के लिए तैयार की वेबसाइट

नरेंद्र कुंडू
जींद। अब किसानों को मौसम की चिंता नहीं सताएगी। किसान घर बैठे-बिठाए ही प्रदेश की सभी  मंडियों के भावों की जानकारी भी ले सकेंगे। इसके लिए चौ. छोटू राम किसान क्लब घिमाना के सदस्यों द्वारा एक वेबसाइट तैयार की गई है। वेबसाइट पर अंग्रेजी व हिंदी दोनों भाषाओं में जानकारी उपलब्ध करवाई गई है। वेबसाइट के माध्यम से किसान आगामी 5 दिनों तक मौसम में होने वाले परिर्वतन का हाल जान सकेंगे। किसान क्लब द्वारा तैयार की गई वेबसाइट पर मौसम व मंडी के भावों के अतिरिक्त किसानों को फसल की बिजाई से लेकर कटाई तक की पूरी प्रक्रिया व कम लागत से अधिक पैदावार लेने संबंधी जानकारी  उपलब्ध करवाई जाएंगी। किसानों तक जो जानकारियां कृषि विभाग नहीं पहुंचा पा रहा है वह सभी जानकारियां किसान क्लब वेबसाइट के माध्यम से पहुंचाएगा। इसके पीछे क्लब का मुख्य उद्देश्य किसानों को सशक्त बनाना है।
किसान अब कम्प्यूटर के माध्यम से घर बैठे-बिठाए ही कृषि संबंधी सभी जानकारियां हासिल कर सकेंगे। मौसम से लेकर प्रदेश की सभी मंडियों के भावों तक की सारी जानकारी किसानों को एक ही वेबसाइट पर मिल जाएगी। किसानों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से चौ. छोटू राम किसान क्लब द्वारा एक वेबसाइट तैयार की गई है। क्लब द्वारा तैयार की गई डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट किसानक्लब डॉट कॉम वेबसाइट किसानों के लिए एक प्रकार से मास्टर ट्रेनर का काम करेगी। इस वेबसाइट से किसान फसल की बिजाई से लेकर कटाई तक की सारी प्रक्रिया तथा फसल में समय-समय पर आने वाली बीमारियां व उनके उपचार के बारे में विस्तार से जानकारी ले सकेंगे। घटती कृषि जोत को देखते हुए किसानों को कम लागत से अधिक पैदावार लेने के लिए विशेष टिप्स दिए जाएंगे। कृषि विभाग किसानों तक जो जानकारियां नहीं पहुंचा पा रहा है, वह सभी जानकारियां क्लब द्वारा वेबसाइट पर डाली जाएंगी। इस वेबसाइट की एक खास बात यह भी है कि कृषि विभाग मुख्यालय से किसानों के लिए जो योजनाएं लागू की जाएंगी वेबसाइट के माध्यम से उसकी जानकारी भी किसानों को साथ की साथ मिल जाएगी।

वेबसाइट से किसानों को क्या-क्या मिलेगी जानकारियां

चौ. छोटू राम किसान क्लब द्वारा तैयार की गई वेबसाइट पर फसल की बिजाई से लेकर कटाई तक तथा इस दौरान फसल में आने वाली बीमारियां व उनके उपचार। कम लागत से अधिक पैदावार लेने, कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए शुरू की गई योजनाएं, प्रदेश की सभी मंडियों के भाव, उत्तम कृषि उत्पाद लेने के टिप्स, प्रदेश व जिले के मौसम की जानकारी सहित कृषि संबंधी अन्य सभी जानकारियां वेबसाइट पर अपडेट रहेंगी। इस वेबसाइट की सबसे खास बात यह है कि किसान आगामी 5 दिनों तक मौसम में होने वाले परिवर्तन की जानकारी लेकर फसल को मौसम से होने वाले नुकसान से भी बचा सकेंगे तथा मौसम के अनुसार ही फसल में खाद व पानी दे कर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रकार वेबसाइट के माध्यम से किसान अपडेट रह सकेंगे।
कीटनाशक रहित खेती की जगाएंगे अलख
 किसान क्लब द्वारा तैयार की गई वेबसाइट का फोटो।

किसान क्लब के सलाहकार सुनील आर्य ने बताया कि किसानों को खेती के क्षेत्र में सशक्त करने के उद्देश्य से यह वेबसाइट तैयार की गई है। आर्य ने बताया कि किसान जानकारी के अभाव के कारण फसल में कीटनाशकों का अधिक प्रयोग करने लगे हैं। फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग के कारण हमारा भेजना तो जहरिला हो ही रहा है, साथ-साथ पर्यावरण पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। पर्यावरण को बचाने व खान-पान को जहर मुक्त करने के लिए किसानों को कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित किया जाएगा।



रविवार, 20 मई 2012

कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर मजाक!

आधा सत्र बीत जाने के बाद भी स्कूलों में नहीं पहुंची कम्प्यूटर की पुस्तकें

नरेंद्र कुंडू 
जींद। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के साथ कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर मजाक किया जा रहा है। शैक्षणिक सत्र आधा बीत चुका है, लेकिन अभी  तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों तक कम्प्यूटर की किताबें ही नहीं पहुंची हैं। ऐसे में बिना पुस्तकों के विद्यार्थी किस तरह पढ़ाई कर पाएंगे। समय पर पुस्तकें न मिलने के कारण विद्यार्थी सटीक नालेज की बजाय कम्प्यूटर पर गेम खेलकर अपना टाइम पास कर रहे हैं और अध्यापक मजबूर हैं, क्योंकि सरकारी तंत्र को नींद से जगाना उनके बूते की बात नहीं है। इससे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा व पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने वाली कंपनी द्वारा विद्यार्थियों के भविष्य के साथ सीधे तौर पर खिलवाड़ किया जा रहा है। कंपनी के अधिकारियों की लापरवाही के कारण प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग द्वारा सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा देकर विद्यार्थियों को हाईटेक बनाने के दावे बेमानी साबित हो रहे हैं।
शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से एनआईसीटी कंपनी को कॉन्ट्रेक्ट दिया था। शिक्षा विभाग के साथ हुए कॉन्ट्रेक्ट के अनुसार स्कूलों में विद्यार्थियों के लिए कम्प्यूटर उपलब्ध करवाने तथा सभी पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी एनआईसीटी कंपनी को ही दी गई थी। इसकी एवज में सरकार द्वारा कंपनी को हर वर्ष लाखों रुपए की वितिय सहायता दी जाती है। लेकिन फिर भी कंपनी अपने वायदे पर खरी नहीं उतर रही है। कंपनी के अधिकारियों की लापरवाही के कारण रह-रहकर कंपनी की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग रहे हैं। इस बार भी आधा शैक्षणिक सत्र गुजर चुका है, लेकिन अभी तक स्कूलों में विद्यार्थियों तक कम्प्यूटर की पुस्तकें नहीं पहुंच पाई हैं। जबकि नियम के अनुसार शैक्षणिक सत्र के आरंभ होते ही विद्यार्थियों को पुस्तकें उपलब्ध करवानी अनिवार्य होती हैं। लेकिन कंपनी सरकार के किसी भी  नियम को पूरा नहीं कर पा रही है। विद्यार्थियों को समय पर पुस्तकें न मिलने के कारण उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है और विद्यार्थी सटीक नालेज की बजाय कम्प्यूटर पर गेम खेलकर अपना टाइम पास कर रहे हैं। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि कंपनी द्वारा कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

पिछले वर्ष भी समय पर नहीं पहुंची थी पुस्तकें

स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने वाली कंपनी की कार्य प्रणाली हर वर्ष डावांडोल होती जा रही है। जिस कारण विद्यार्थी व अध्यापक बार-बार विरोध करने पर मजबूर हो रहे हैं। इस वर्ष की भाति पिछले वर्ष भी विद्यार्थियों को समय पर पुस्तकें नहीं मिली थी। पिछले वर्ष लेटलतिफी के बाद भी कंपनी सभी विद्यार्थियों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं करवा पाई थी। जिस कारण विद्यार्थियों को बिना पुस्तकों के ही काम चलाना पड़ा था। इससे यह बात साफ है कि पिछले वर्ष हुई गलती से इस बार भी कंपनी ने सीख नहीं ली है और यह इसी का परिणाम है कि आधा सत्र बीत जाने के बाद भी स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंच पाई है।

विद्यार्थियों की पढ़ाई हो रही है बाधित

स्कूलों में कम्प्यूटर के प्रेक्टीकल अभयास के साथ-साथ विद्यार्थियों को पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने की सारी जिम्मेदारी एनआईसीटी कंपनी की है। लेकिन आधा सत्र बीत जाने के बावजूद भी कंपनी ने स्कूलों में पुस्तकें नहीं भेजी हैं। जिस कारण विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित हो रही है। पिछले वर्ष भी कंपनी सभी विद्यार्थियों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं करवा पाई थी। कंपनी के अधिकारियों की लापरवाही के कारण विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में है।
देवेंद्र सिंह, जिला प्रधान

हरियाणा कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक संघ, जींद

छुट्टियों तक उपलब्ध करवा दी जाएंगी पुस्तकें
पिछले वर्ष सभी स्कूलों में समय पर पुस्तकें उपलब्ध करवा दी गई थी। इस वर्ष के लिए कंपनी द्वारा पुस्तकों की खरीद की जा रही है। गर्मियों की छुट्टियों तक सभी स्कूलों में पुस्तकें उपलब्ध करवा दी जाएंगी। विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
अशोक शर्मा, जिला कोर्डिनेटर
एनआईसीटी, जींद

पंचायत भवन पर विभागीय अधिकारियों ने जमाया कब्जा

पंचायत एसोसिएशन ने मुख्य संसदीय सचिव को दी शिकायत

नरेंद्र कुंडू
जींद।
शहर में पंचायत प्रतिनिधियों की सुविधा के लिए डीआरडीए में बनाए गए पंचायत भवन पर आबकारी विभाग, जिला आयुर्वेदिक अधिकारी व पंचायती राज के अधिकारियों ने कुंडली मारी हुई है। पंचायत भवन पर यह कुंडली दशकों से जारी है और आबकारी विभाग सहित अन्य अधिकारी पंचायत भवन को खाली करने को तैयार नहीं है। पंचायत भवन पर विभागीय अधिकारियों के कब्जे के कारण सरपंचों, पंचों व दूसरे जन प्रतिनिधियों को बिना भवन के ही काम चलना पड़ रहा है। अब पंचायत प्रतिनिधि इसको खाली करवाने की कवायद में लग गए हैं। पंचायत प्रतिनिधियों ने पंचायत भवन को खाली करवाने के लिए इसकी शिकायत मुख्य संसदीय सचिव को भी  की है। पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा पंचायत भवन को खाली करवाने की कवायद शुरू करने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों के पसीने छूटने लगे हैं। प्रशासनिक अधिकारी पंचायत प्रतिनिधियों को अलग से भवन बनवाने का लालीपॉप देकर मामले को शांत करने में जुटे हुए हैं।
डीआरडीए में पंचायत भवन का निर्माण सरपंचों, पंचों व दूसरे जनप्रतिनिधियों के ठहरने व रिफ्रेशमेंट के मकसद से किया गया था। लेकिन आबकारी विभाग द्वारा पंचायत भवन पर कब्जा जमाए जाने के कारण यह योजना शुरू होने से पहले ही दम तोड़ गई। पंचायत भवन पर आबकारी विभाग कई वर्षों से कुंडली मारे हुए है। इस भवन में आबकारी विभाग के अलावा जिला आयुर्वेदिक अधिकारी व एक्सईएन पंचायती राज का कार्यालय भी चल रहा है। पंचायत भवन पर विभागीय अधिकारियों के कब्जे के कारण सरपंचों, पंचों व दूसरे जन प्रतिनिधियों को बिना भवन के ही काम चलाना पड़ रहा है। शहर में पंचायत भवन के अभाव के कारण पंचायत व अन्य जनप्रतिनिधियों के लिए बैठने के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं है। पंचायत भवन न होने के कारण बाहर से आने वाले जन प्रतिनिधियों के लिए रात को ठहरने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन अब पंचायत प्रतिनिधियों ने पंचायत भवन के लिए अपनी मांग उठानी शुरू कर दी है। पंचायत भवन की मांग को लेकर पंचायत प्रतिनिधियों ने मुख्य संसदीय सचिव को भी शिकायत की है। पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा पंचायत भवन की मांग उठाए जाने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों के पसीने छूटने लगे हैं। लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों ने अब अपनी पंचायत भवन की मांग को पुरजोर से उठाना शुरू कर दिया है। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी पंचायत प्रतिनिधियों को अलग से भवन बनवाने का लालीपॉप थमा कर शांत करने में जुटे हुए हैं।

पहले भी उठ चुकी है मांग

पूर्व जिला पार्षद शमशेर ढाठरथ ने बताया कि जिला परिषद के सदस्यों ने 2009 में चेयरपर्सन सीमा बिरोली के नेतृत्व में पंचातय भवन की मांग को लेकर आवाज उठाई थी। उन्होंने डीआरडीए में स्थित जिला परिषद की इस बिल्डिंग से सरकारी कार्यालयों को खाली करवा कर पंचायत व अन्य जन प्रतिनिधियों के ठहरने के लिए पंचायत भवन का निर्माण करवाने की मांग की थी, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों से उन्हें झूठे आश्वासन के सिवाए कुछ हासिल नहीं हुआ है। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा आज तक पंचायत भवन के निर्माण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

मुख्य संसदीय सचिव के समक्ष रखी मांग

शहर में सरपंचों, पंचों व अन्य जनप्रतिनिधियों के लिए बैठने व रात को ठहरने के लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं है। हालांकि उपायुक्त द्वारा अस्थाई तौर पर सरपंचों को मीटिंग इत्यादि के लिए कुछ जगह उपलब्ध करवाई गई है, लेकिन यह जगह ज्यादा उपयुक्त नहीं है। सरकार द्वारा जनप्रतिनिधियों के लिए शहर में जो पंचायत भवन बनाया गया है, उस भवन में विभागीय अधिकारियों ने कब्जा जमाया हुआ है। इसलिए पंचायत भवन को खाली करवाने की मांग को लेकर पंचायत प्रतिनिधियों ने अपनी मांग उठाई है। जिला स्तरीय पंचायती सम्मेलन के दौरान भी सरपंच एसोसिएशन की तरफ से उन्होंने पंचायत भवन की मांग को मुख्य संसदीय सचिव के समक्ष रखा था। मुख्य संसदीय सचिव ने प्रशासनिक अधिकारियों को जल्द से जल्द पंचायत भवन उपलब्ध करवाने के निर्देश जारी किए हैं।
सुनील जागलान, प्रधान
सरपंच एसोसिएशन,जींद

ग्रांट के लिए सरकार को भेजा जाएगा एस्टीमेट

 डीआरडीए में स्थित पंचायत भवन की बिल्डिंग जिसमें सरकारी कार्यालय चल रहे हैं।
डीआरडीए में जिस बिल्डिंग में आबकारी विभाग व अन्य सरकारी कार्यालय चल रहे हैं, वह जगह जिला परिषद की है, लेकिन बिल्डिंग डीआरडी की है। जिला परिषद ने इस बिल्डिंग को किराए पर दे रखा है। सरपंच एसोसिएशन की मांग को देखते हुए पंचायत भवन के लिए एस्टीमेट तैयार कर सरकार को भेजा जाएगा। सरकार की तरफ से ग्रांट मिलते ही पंचायत भवन का निर्माण शुरू करवा दिया जाएगा।
अरविंद मल्हान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद

गुरुवार, 17 मई 2012

गुजरात के किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगे म्हारे किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद जिले के बाद अब जल्द ही दूसरे प्रदेशों में भी  कीटनाशक रहित खेती की गुंज सुनाई देगी। जिले के किसान अब गुजरात के किसानों को भी कीटनाशक रहित खेती के गुर सीखाएंगे। फसल में कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने के लिए मित्र कीटों को हथियार  बनाया जाएगा। कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनर किसान गुजरात के किसानों को फसल में मौजूद माशाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान करवाएंगे। इसके लिए गुजरात के ‘आवाद दे फाउंडेशन’ ने यहां के चौ. छोटूराम किसान क्लब घिमाना के सदस्यों को आमंत्रित किया है। फाउंडेशन के निमंत्रण पर किसानों का एक जत्था जून माह में गुजरात के लिए रवाना होगा। इस जत्थे के आने-जाने व रहने का खर्च फाउंडेशन स्वयं उठाएगी। चौ. छोटू राम किसान क्लब के पदाधिकारियों ने जत्थे की रवानगी के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस जत्थे में क्लब की ओर से 5-6 मास्टर ट्रेनर किसानों का चयन किया जाएगा।
निडाना के कीट साक्षरता केंद्र की तर्ज पर घिमाना में चल रहे चौ. छोटू राम किसान क्लब के सदस्य गुजरात के किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगे। इसके लिए गुजरात के बडोदरा से आए ‘आवाज दे फाउंडेशन’ के पदाधिकारियों ने किसान क्लब के सदस्यों को गुजरात के लिए निमंत्रण दिया है। फाउंडेशन के सदस्य मार्च 2012 में जींद जिले के घिमाना गांव के दौरे पर पहुंचे थे। इस दौरान किसान क्लब द्वारा शुरू की गई कीटनाशक रहित खेती की मुहिम को देख कर फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने गुजरात में भी इस मुहिम को शुरू करने की इच्छा जाहिर की थी। फाउंडेशन के पदाधिकारियों के निमंत्रण पर चौ. छोटू राम किसान क्लब के मास्टर ट्रेनरों का एक जत्था जून माह में गुजरात के लिए रवाना होगा। इस जत्थे में क्लब के 5-6 मास्टर ट्रेनरों को शमिल किया जाएगा। क्लब के पदाधिकारी कार्य के आधार पर ही जत्थे में जाने वाले मास्टर ट्रेनरों का चयन करेंगे। इन मास्टर ट्रेनरों का आने-जाने व रहने का खर्च फाउंडेशन द्वारा उठाया जाएगा। क्लब के मास्टर ट्रेनर गुजरात के किसानों को फसल में मौजूद शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान करवाएंगे। मास्टर ट्रेनरों द्वारा किसानों को मासाहारी व शाकाहारी कीटों के जीवन चक्र के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी। ताकि अधिक से अधिक किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सीखा कर फसल में बढ़ रहे कीटनाशकों के प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सके। कीट प्रबंधन के साथ-साथ मास्टर ट्रेनर किसानों को फसल की बिजाई के आधुनिक तरीके भी बताएंगे। कीटनाशकों के प्रयोग पर अंकुश लगाने के लिए जींद जिले के किसानों ने यह एक अनोखी मुहिम छेड़ी है और किसानों को इस मुहिम से काफी सकारात्मक परिणमा भी मिल रहे हैं।

जून में रवाना होगा क्लब का जत्था

फसल में किसानों द्वारा कीटनाशकों के अंधाधुध प्रयोग के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ रहा है और इससे पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है। इंसान की थाली से इस जहर को कम करने तथा पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए किसानों ने इसका तोड़ कीट प्रबंधन में ढुंढ़ा है। गुजरात की आवाज दे फाउंडेशन के निमंत्रण पर ही क्लब ने एक जत्थे को गुजरात भेजने का निर्णय लिया है। जून माह में क्लब के 5-6 किसानों का एक जत्था गुजरात के लिए रवाना होगा।
सुनील आर्य, सलाहकार
चौ. छोटू राम किसान क्लब, घिमाना

नालियों को ही डकार गए अधिकारी

गली बनाई पर नालियां नहीं, गली के साथ ही प्रस्तावित था नालियों के निर्माण का कार्य

नरेंद्र कुंडू
जींद।
पंचायती राज विभाग पर रह-रहकर भ्रष्टाचार के छींटे पड़ रहे हैं। विभाग द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य सवालों के घेरे में रहते हैं। पंचायती राज विभाग की देखरेख में शहर के सामान्य अस्पताल में निर्माणाधीन आयुष विभाग की बिल्डिंग के निर्माण कार्य में हो रहे फर्जीवाड़े के बाद अब पिल्लूखेड़ा खंड के गांव भूरायण में तैयार की गई गली के निर्माण पर सवालिया निशान लग गया है। यहां पर विभाग द्वारा 2008 में 10,82110 रुपए की राशि खर्च कर गली का निर्माण करवाया गया था। विभाग ने गांव में गली का निर्माण तो करवा दिया, लेकिन यहां पर गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण नहीं करवाया, जबकि विभाग द्वारा कागजों में नालियां तैयार की गई हैं। नियमों के अनुसार गलियों से पहले नालियां बनाना जरूरी होता है, लेकिन विभाग ने यहां पर गली का निर्माण करवाते समय सभी नियमों का ताक पर रख दिया।
पंचायती राज विभाग में भ्रष्टाचार अपनी जड़ें गहरी कर चुका है। यह इसी का परिणाम है कि विभाग द्वारा करवाए जा रहे निर्माण कार्यों से बार-बार फर्जीवाड़े की बू आती रहती है। पिल्लूखेड़ा खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी की देखरेख में भूरायण गांव में करवाए गए गली के निर्माण कार्य में हुए फर्जीवाड़े से अब विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है। विभाग द्वारा भूरायण गांव में पेयमेंट आफ स्ट्रीट स्कीम के तहत 2008 में इंटर लोकिंग गली का निर्माण करवाया गया था। गली के निर्माण का कार्य विभाग ने ठेके पर दिया था। इस गली के निर्माण पर 10,82110 रुपए की राशि खर्च की गई थी। विभाग ने यहां पर गली का निर्माण तो करवा दिया, लेकिन गली में गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां ही नहीं बनाई। जबकि नियम के अनुसार गली के निर्माण से पहले नालियां बनानी जरुरी होती हैं। नियम के अनुसार ही इस गली के निर्माण से पहले भी यहां नालियां बनाना प्रस्तावित था। लेकिन विभाग के अधिकारियों ने ठेकेदार के साथ मिलीभगत कर बिना नालियों के निर्माण के ही गली पास कर ठेकेदार को 10,82110 रुपए की पेमेंट भी कर दी। गली के निर्माण के चार वर्ष बाद भी विभाग यहां नालियों का निर्माण नहीं करवा सका। विभाग की इस लापरवाही का खामियाजा अब ग्रामीणों को भूगतना पड़ रहा है। गली में गंदे पानी की निकासी के लिए नाली न होने से गंदा पानी गली में ही इकट्ठा हो रहा है।

कैसे हुआ मामले का खुलासा

आरटीआई कार्यकर्त्ता द्वारा पिल्लूखेड़ा खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत गली निर्माण के बारे में सूचना मांगी गई। सूचना में विभाग से पूछा गया कि गली के निर्माण पर किस योजना के तहत करवाया गया है तथा इसके निर्माण पर कितनी राशि खर्च की गई है। गली के निर्माण में गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां बनाना प्रस्तावित था या नहीं। विभाग की तरफ से आवेदक को दिए गए जवाब में बताया गया कि गली का निर्माण पेयमेंट आफ स्ट्रीट स्कीम के तहत करवाया गया है। इसका निर्माण कार्य ठेके पर दिया गया था और इसके लिए विभाग की तरफ से 10,82110 रुपए की राशि खर्च की गई है। गली के निर्माण के दौरान नालियां बनाना प्रस्तावित था। विभाग अपने रिकार्ड में तो गली में नालियों के निर्माण करवाने की बात स्वीकार कर रहा है, लेकिन उधर विभाग द्वारा गली में नालियों का निर्माण करवाया ही नहीं गया है। इस प्रकार गली के निर्माण में हुए फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ।

विभाग की कार्यप्रणाली पर उठ रहे हैं सवाल

गली के निर्माण कार्य में हुए फर्जीवाड़े से खंड विकास एवं पंचायत कार्यालय सवालों के घेरे में है। इसमें सबसे पहला सवाल तो यही उठता है कि जब गली के निर्माण के दौरान नालियां बनाना प्रस्तावित था तो नालियां क्यों नहीं बनाई गई। दूसरा सवाल यह है कि नालियां प्रस्तावित होने के बाद भी जब ठेकेदार ने नालियां नहीं बनाई तो विभाग के अधिकारियों ने गली को पास कर ठेकेदार को पेमेंट क्यों की गई। इन सब सवालों से यह बात तो साफ है कि गली के निर्माण कार्य में जमकर फर्जीवाड़ा किया गया है और इस फर्जीवाड़े में खंड विकास एवं पंचायत कार्यालय के अधिकारी भी बराबार के हिस्सेदार हैं।

मैं अभी ट्रेफिक में हूं

इस बारे में जब पिल्लूखेड़ा खंड के बीडीपीओ नरेंद्र मल्होत्रा से उनके मोबाइल पर संपर्क कर इस बारे में जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने कहा कि अभी में ट्रेफिक में हूं, 10 मिनट बाद बात करना। लेकिन जब उनसे दोबारा संपर्क किया गया तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया।
भूरायण गांव में बिना नाली के बनाई गई गली।




रविवार, 13 मई 2012

प्रशासन के गले की फांस बने ‘फांस’


खेतों में अवशेष जलाने के बाद सड़क किनारे जले पेड़-पौधे।
खेतों में अवशेष जलाने के लिए लगाई गई आग।
प्रशासन द्वारा नियमों का उल्लंघन करने वाले किसानों के खिलाफ नहीं उठाए गए ठोस कदम
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में किसानों द्वारा खुलेआम खेतों में फसल के बचे हुए अवशेषों को आग के हवाले कर प्रशासनिक अधिकारियों के आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी नियमों को ठेंगा दिखाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई करने से गुरेज कर रहे है। किसानों की मनमर्जी के कारण प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश अवशेषों के साथ आग में जलकर राख हो रहे हैं। किसानों द्वारा अवशेष जलाने के लिए खेतों में लगाई गई आग से अब तक हजारों पेड़-पौधे भी  जलकर दम तोड़ चुके हैं। हालांकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व कृषि विभाग द्वारा हर वर्ष किसानों को जागरुक करने के लिए जागरुकता अभियानों पर लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन किसानों की सेहत पर विभाग द्वारा चलाए जा रहे जागरुकता अभियानों का भी कोई असर नहीं है। राज्य प्रदूषण बोर्ड व जिला प्रशासन द्वारा खेतों में अवशेष जलाने वाले किसानों के खिलाफ जुर्माने व सजा का प्रावधान किया हुआ है, लेकिन आज तक इस कानून की अवहेलना करने वाले किसानों को जुर्माना नहीं किया गया है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व कृषि विभाग किसानों को अवशेष न जलाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से जागरुकता अभियानों पर दोनों हाथों से पैसे लूटा रहा है। विभाग द्वारा किसानों को जागरुक करने के उद्देश्य से हर वर्ष लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। लेकिन विभाग के सारे अभियान केवल कागजों तक ही सीमित रहते हैं। किसानों पर विभाग के इन प्रयासों का कोई असर नहीं होता है। किसान उपजाऊ क्षमता की बर्बादी की परवाह किये बगैर तमाम किसान कटाई के बाद खेतों में आग लगा रहे है। सरकार द्वारा खेतों में अवशेष जलाने के कार्य को गैर कानूनी घोषित किए जाने के बावजूद भी किसान इस गैर कानूनी कार्य को अंजाम देकर खुलेआम कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं। लेकिन ताज्जूब की बात तो यह है कि विभाग द्वारा ऐसे किसानों के खिलाफ किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। जुर्माने व सजा के प्रावधान के बाद भी विभाग द्वारा किसी किसान के खिलाफ किसी तरह का जुर्माना नहीं किया गया है।
जुर्माने व सजा का भी है प्रावधान
खेतों में गेहूं के अवशेष जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है। लेकिन सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद भी किसान अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं। इसके लिए पर्यावरण प्रदूषण एक्ट के तहत दोषी व्यक्ति को सजा के साथ-साथ एक लाख रुपए तक का जुर्माना भी हो सकता है।
बंजर हो जाती है जमीन
कृषि विभाग के एसडीओ डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि खेत में फसल के बचे हुए अवशेष जलाना गैर कानूनी है। इसलिए किसानों को गैर कानूनी कार्य कर कानून की उल्लंघना नहीं करनी चाहिए। गेहूं की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेषों को जलाने से जमीन को नुकसान होता है। दलाल ने बताया कि खेतों में आग लगाने से कार्बनिक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। साथ ही मित्र कीट व सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं और जमीन की उर्वरा शक्ति कमजोर हो जाती है, जिस कारण फसलों में बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसके अलावा खुले में लगी आग किसी बड़े हादसे का कारण भी बन सकती है। इससे दूसरे किसानों को भी नुकसान हो सकता है। आग से फैलने वाले धुएं से बड़ी मात्रा में पर्यावरण भी प्रदूषित होता है।

विभाग द्वारा रखी जाती है कड़ी नजर

वैसे इस तरह के मामलों में कार्रवाई का अधिकार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को ही है, लेकिन विभाग भी खेतों में आग लगाने वालों पर कड़ी नजर रख रहा है। अपने खेत में आग लगाने वाले व्यक्ति के खिलाफ  शिकायत मिलने पर विभाग द्वारा पुलिस में मामला दर्ज करवाया जाएगा। गेहूं के अवशेषों में आग लगाने से धीरे-धीरे जमीन की उत्पादकता कम होती चली जाती है। इसलिए हमें तुरंत अवशेष जलाने से किसानों को रोकना होगा। विभाग द्वारा किसानों को खेती की जानकारी उपलब्ध करवाते समय साथ-साथ खेतों में बचे हुए अवशेष न जलाने के लिए भी प्रेरित किया जाता है।
आरपी सिहाग, उप कृषि निदेशक
कृषि विभाग, जींद

हवा हो गए साहब के आदेश

स्कूल की छुट्टी के बाद स्कूटी से घर लौटते स्कूली बच्चे

यातायाता नियमों को ताक पर रखकर बाइक चलाते स्कूली बच्चे।

सड़कों पर मौत लिए दौड़ रहे माइनर
नरेंद्र कुंडू
जींद।
पुलिस की सुस्ती से साहब के आदेश हवा हो गए हैं। पुलिस अधीक्षक के आदेशों के 6 माह बाद भी पुलिस किसी नाबालिग वाहन चालक या उसके अभिभावकों के खिलाफ किसी प्रकार की कोई कार्रवाई अमल में नहीं ला सकी है। पुलिस की इस लापरवाही से उसके अपने ही नियम कायदे ताक पर रखे जा रहे हैं। सड़कों को सुरक्षित रखने के लिए पुलिस ने बाल चालकों को सड़कों से हटाने की नीति बनाई थी। इसके लिए एसपी ने वाहन चलाने वाले बाल चालकों के चालान काटने तथा अभिभावकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के आदेश जारी किए थे। लेकिन जिला पुलिस द्वारा आज तक एक भी अभिभावक पर नकेल नहीं कसी गई है। स्कूली बच्चे सभी नियमों को दरकिनार करके तेज रफ्तार से दुपहिया वाहनों को दौड़ाते हुए नजर आते हैं। बाल वाहन चालक सड़कों पर दूसरे वाहन चालकों के लिए खतरा बनकर दौड़ रहे हैं। 

6 माह बाद भी फाइलों में दफन हैं एसपी के आदेश

बड़ रहे सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस से खास नीति बनाई थी। नाबालिग वाहन चालकों की लापरवाही से बढ़ रहे हादसों को देखते हुए पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार ने 17 नवंबर 2011 को नाबालिग बच्चों के अभिभावकों के खिलाफ भी कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। एसपी ने अपने निर्देश में स्पष्ट किया था कि अगर कोई भी बच्चा वाहन का प्रयोग करते पकड़ा गया तो उसके अभिभावकों के खिलाफ मामला दर्ज कर कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। इसके अलावा स्कूल टाइम में वाहन का प्रयोग करने वाले बच्चों के साथ-साथ स्कूल संचालकों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। लेकिन एसपी के आदेशों के 6 माह बाद भी पुलिस द्वारा किसी अभिभावक व स्कूल संचालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
दूसरों के लिए भी खतरा बन रहे हैं नाबालिग वाहन चालक
सड़कों पर तेज गति से दौड़ते नाबालिग वाहन चालक दूसरों के लिए भी खतरा बन रहे हैं। यातायात नियमों की जानकारी के अभाव व एक-दूसरे से वाहन आगे निकालने के हौड़ में नाबालिग वाहन चालक दुर्घटना को निमंत्रण दे देते हैं। तेज गति होने के कारण वाहन आउट आफ कंट्रोल हो जाते हैं और सड़क पर जा रहे अन्य वाहन के साथ टकरा कर दुर्घटना को अंजाम दे देते हैं। इस प्रकार नाबालिग वाहन चालक दूसरों के लिए भी खतरा बन रहे हैं।

अभिभावक भी हैं बराबर के दोषी

इसे अभिभावकों की लापरवाही कहें या उनका लाड-प्यार, जो बिना सोचे-समझे ही बच्चों के हाथों में मौत की चाबी थमा देते हैं। स्कूली बच्चे सड़कों पर बिना हेलमट के बेखौफ होकर मौत की डोर हाथों में थामे हुए इधर-उधर दौड़ते नजर आते हैं। अभिभावक बिना किसी रोक टोक के बच्चों के हाथों में वाहनों की चॉबी थमा रहे हैं और बच्चे अपने परिजनों के इस लाड-प्यारा का जमकर दुरुपयोग कर रहे हैं। बच्चे यातायात नियामों की धज्जियां उडाते हुए सड़कों पर वाहनों को सरपट दौड़ा रहे हैं। वाहन चलाते समय ये बच्चे न तो हेलमट का प्रयोग करते हैं और न ही इन बच्चों के पास लाइसेंस होता है। कई बार तो बाइकों पर एक की बजाय तीन-तीन, चार-चार बच्चे बैठ कर एक साथ कई-कई बाइकों की लंबी कतारें बनाकर बाइकों की रेश लगाते हैं, जिससे दुर्घटना होने का खतरा ओर भी बढ़ जाता है। बच्चों की इस गलती में अभिभावक भी बराबर के दोषी हैं।
मौके पर बुलाकर अभिभावकों को दिए जाते हैं सख्त निर्देश
एसपी के आदेशानुसार सभी स्कूल संचालकों को निर्देश दिए गए हैं कि अगर कोई भी नाबालिग विद्यार्थी बाइक लेकर स्कूल आता है तो उसे तुरंत स्कूल से बाहर कर दिया जाए। स्कूल में बाइक लेकर आने वाले विद्यार्थियों को स्कूल में प्रवेश नहीं करने दिए जाए। इसके अलावा अगर कोई बच्चा शहर में बाइक लेकर घुमता है तो तुरंत उस बच्चे के अभिभावकों को मौके पर बुला कर समझाया जाता है तथा भाविष्य में दोबारा पकड़े जाने पर बच्चे का चालान काट कर उनके अभिभावकों के खिलाफ भी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।
धूप सिंह
जिला यातायात प्रभारी, जींद



अब विश्व में लहराएगा हरियाणा का परचम

हरियाणा के गौरव पूर्ण इतिहास की विश्व में पहचान बनाने के लिए तीन भाषाओं में किया वेबसाइट का निर्माण
नरेंद्र कुंडू
इंटरनेट पर निडाना हाईटस के नाम से तैयार की गई वेबसाइट का फोटो।
जींद। हरियाणवी संस्कृति को विश्व में पहचान दिलाने तथा इंटरनेट पर भी हरियाणवी विश्वकोष बनाने के उद्देश्य से जींद जिले के एक होनहार ने विदेश में बैठकर एक वेबसाइट तैयार की है। फ्रांस के लीली शहर में ई-विपणन और वेब प्रबंधन सलाहकार के पद पर नौकरी कर रहे फूलकुमार ने डब्ल्यूडब्ल्यूडब्लयू डॉट निडानाहाईटस डाट कॉम वेबसाइट पर निडाना के गौरवशाली इतिहास व जींद जिले की उपलब्धियों के अलावा हरियाणवी संस्कृति से जुड़ी सभी जानकारियां उपलब्ध करवाई हैं। वेबसाइट का निर्माण अंग्रेजी, हिंदी व हरियाणवी तीन भाषाओं में किया गया है। इस वेबसाइट की सबसे खास बात यह है कि इस वेबसाइट पर हरियाणवी संस्कृति के अलावा किसानों के लिए मौसम व कृषि संबंधि जानकारी, पाठकों के लिए ई-लाइब्रेरी, विद्यार्थियों के लिए नौकरियों से संबंधित जानकारी, हरियाणवी मुहावरे, हरियाणवी संस्कृति, तीज-त्योहारों से संबंधित जानकारियां, मनोरंजन के लिए हरियाणवी रागनियां तथा कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के लिए संदेश डाले गए हैं। इस प्रकार इस होनहार की सोच से लोगों को एक ही वेबसाइट पर काफी जानकारियां उपलब्ध हो जाएंगी। विद्यार्थियों के अलावा किसानों को भी  इस वेबसाइट से काफी लाभ मिलेगा। फूलकुमार ने वेबसाइट तैयार करने की शुरूआत 23 जनवरी 2012 को सुभाष चंद्र बोस की जयंती से की और 19 अप्रैल 2012 को पहली बार इंटरनेट पर परीक्षण के लिए अपलोड किया गया। वेबसाइट के प्रति लोगों में अच्छा रूझान बना हुआ है। इसी का परिणाम है कि मात्र 18 दिन में इस वेबसाइट को 5693 लोग देख चुके हैं। फूलकुमार द्वारा तैयार की गई इस वेबसाइट से अब निडाना गांव भी हाईटेक हो गया है। वेबसाइट तैयार होने के बाद लोगों को एक ही जगह पर कई प्रकार की जानकारियां तो मिलेंगी ही, साथ-साथ हरियाणवी संस्कृति का परचम भी अब विश्व में लहराएगा।
कैसे मिली प्रेरणा
जींद जिले के निडाना गांव निवासी फूलकुमार का बचपन गांव में ही बीत तथा पढ़ाई-लिखाई भी ग्रामीण आंचल में ही हुई। फूलकुमार को हरियाणवी संस्कृति के प्रति प्रेम व लगाव की भावना अपने स्वर्गीय दादा फतेह सिंह मलिक व स्वर्गीय दादी धनकौर से विरास्त में मिली है। गांव में पढ़ाई-लिखाई करने के बाद 2005 में नौकरी के लिए फूलकुमार फ्रांस में चला गया। इसके बाद वहां से नवंबर 2011 में अपनी बहन की शादी में शरीक होने के लिए फूलकुमार वापिस गांव में आया। गांव में कृषि विभाग के एडीओ डा. सुरेंद्र दलाल के सानिध्य में चल रही महिला कीट साक्षरता केंद्र में महिलाओं की उपलब्धियों को देखकर ही फूलकुमार को अपनी संस्कृति को विश्व में पहचान दिलाने की प्रेरणा मिली।

वेबसाइट के लिए कैसे जुटाई जानकारी

अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए फूलकुमार ने डा. सुरेंद्र दलाल से संपर्क किया। डा. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में वेबसाइट के लिए हरियाणवी संस्कृति से संबंधित व अन्य जानकारियां जुटाने के लिए निडाना हाईटस सलाहकार बोर्ड कोर टीम तथा निडाना हाईटस सलाहकार बोर्ड सहायता टीम का गठन किया गया। सहायता बोर्ड टीम के सदस्यों ने वेबसाइट के बारे में अपनी राय कोर टीम के सदस्यों के समक्ष रखी। इसके बाद कोर टीम के सदस्यों ने इनकी राय पर विचार-विमर्श कर इनमें सुधार कर वेबसाइट के लिए उपयोगी जानकारियां फूलकुमार को दी। इसके बाद फूलकुमार ने टीम के सदस्यों से मिली जानकारी व सामग्री की मदद से वेबसाइट का निर्माण शुरू किया। वेबसाइट का डिजाइन फूलकुमार ने स्वयं तैयार कर रहा है। विश्व में हरियाणवी संस्कृति की पहचान बनाने के लिए फूलकुमार ने इस वेबसाइट को अंग्रेजी, हिंदी व हरियाणवी तीन भाषाओं में तैयार किया है। ताकि विश्व में हरियाणवी संस्कृति को अलग से पहचान मिल सके और हमारी आने वाली पीढ़ी भी इस वेबसाइट से हमारी प्राचीन संस्कृति के बारे में जानकारी जुटा सके। वेबसाइट को समय-समय पर अपडेट भी किया जाएगा।

क्या है वेबसाइट की विशेषता

निडाना हाईटस के नाम से तैयार इस वेबसाइट पर लोगों को एक साथ सभी प्रकार की सुविधाएं मिल सकेंगी। इस वेबसाइट पर हरियाणा के गौरव पूर्ण इतिहास के अलावा हरियाणवी रीति-रिवाज, हरियाणवी मुहावरे, मनोरंजन के लिए रागनियां, हरियाणवी गीत, हरियाणवी फिल्म, पाठकों के लिए ई-लाइब्रेरी, किसानों के लिए खेती व मौसम संबंधि जानकारी, नौकरियों से संबंधित जानकारियां उपलब्ध करवाई गई हैं। कन्या भ्रूण हत्या व अन्य सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए वेबसाइट पर संदेश भी डाले गए हैं। लोगों से राय लेने के लिए कॉमेंट का आपशन भी दिए गया है। ताकि लोग वेबसाइट के लिए अपनी राय उन तक पहुंचा सकें।


अब जिला पुस्तकालयों की कमान जनसंपर्क विभाग के हवाले

नरेंद्र कुंडू
जींद। उच्चतर शिक्षा विभाग की देखरेख में चल रहे पुस्तकालयों में पाठकों की घटती संख्या को देखते हुए सरकार ने राज्य केंद्रीय पुस्तकालय, जिला पुस्तकालय व उपमंडल स्तर पर चल रहे पुस्तकालयों की कमान लोक जनसूचना एवं सांस्कृतिक विभाग (डीपीआईआर) के हाथों में सौंपने का निर्णय लिया है। अब इन पुस्तकालयों में पाठकों का जुगाड़ करने की जिम्मेदारी लोक जनसूचना एवं सांस्कृतिक विभाग को करनी होगी। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद अब डीपीआईआर के कर्मचारी पुस्तकालयों में पाठकों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकारी योजनाओं के प्रचार के साथ-साथ गांवों में जाकर पुस्तकालयों के महत्व के बारे में भी प्रचार करेंगे। पुस्तकालयों में व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा अलग से कर्मचारियों की नियुक्ती की जाएगी। उच्चतर शिक्षा विभाग ने फिलहाल पुस्तकालयों में काम कर रहे कर्मचारियों से पत्र लिखकर उनके स्थानांतरित के लिए आपशन मांगा है।
कर्मचारियों से मांगे गए हैं आपशन
सरकार के इस निर्णय के बाद महानिदेशक उच्चतर शिक्षा विभाग ने सभी पुस्तकालय के कर्मचारियों को पत्र लिखकर उनके स्थानांतरित के आपशन मांगें हैं। महानिदेशक उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा जिला जींद पुस्तकालय के कर्मचारियों को लिखे पत्र क्रमांक 9/16-2009 पु./(4) में उनसे जवाब मांगा है कि वे उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा में रहना चाहते हैं या डीपीआईआर में जाना चाहते हैं। डीपीआईआर को यह जिम्मेदारी सौंपने के बाद पुस्तकालयों के लिए पाठकों की संख्या की व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी डीपीआईआर के कर्मचारियों की होगी।

क्यों सौंपी डीपीआईआर को पुस्तकालयों की जिम्मेदारी

उच्चतर शिक्षा विभाग के सानिध्य में राज्य केंद्रीय पुस्तकालय, जिला पुस्तकालय व उपमंडल स्तर पर चल रहे पुस्तकालयों में कम हो रही पाठक संख्या को बढ़ाने के लिए सरकार ने यह निर्णय लिया है। क्योंकि जन कल्याणकारी नीयितों के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी डीपीआईआर के कर्मचारियों की होती है। डीपीआईआर के कर्मचारी जनता व सरकार  के बीच एक कड़ी का काम करते हैं और इनके पास लोगों के बीच जाकार प्रचार करने के सभी साधन उपलब्ध होते हैं। डीपीआईआर के कर्मचारी जन कल्याणकारी नीतियों के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ लोगों के बीच जाकार पुस्तकालयों के महत्व के बारे में प्रचार-प्रसार कर सकेंगे। इससे पुस्तकालयों में पाठकों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। इसलिए सरकार ने डीपीआईआर को यह जिम्मेदारी सौंपी है।
फिलहाल क्या है पुस्तकालय में व्यवस्था
जिला पुस्तकालय में इस वक्त 43487 पुस्तकें मौजूद हैं। इन किताबों में जनरल नालेज, धार्मिक, स्वास्थ्य वर्धक, ग्रंथ, साहित्य, इतिहास, मनोरंजक व अन्य सभी प्रकार की पुस्तकें मौजूद हैं। पुस्तकों के अतिरिक्त पुस्तकालय में 14 मैगजिन व 12 अखबार आते हैं। इस वक्त जिला पुस्तकालय के पास 3469 मैम्बर हैं। इन मैम्बरों में विद्यार्थियों व सीनियर सिटीजन के अलावा 40 से 50 घरेलू महिलाएं तथा 80 से 90 छात्राएं भी   पुस्तकालय की मैम्बर हैं। युवाओं को रोजगार संबंधी जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए रोजगार समाचार की व्यवस्था भी है।

जिले में दम तोड़ रही स्वास्थ्य सेवाएं

बिना डाक्टरों के कैसे होगा इलाज

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार भले ही हर गांव तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के दावे करती हो, लेकिन जिला जींद में स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहर के सामान्य अस्पताल में भी  स्वास्थ्य सेवाएं लचर प्रणाली के सहारे चल रही हैं। सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों की कमी के चलते मरीजों को इलाज के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता है। मुख्य विशेषज्ञों की कमी के कारण मरीजों को निजी अस्पतालों का रूख करना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में लचर स्वास्थ्य सेवाओं और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण झोला छाप डाक्टरों की संख्या न केवल तेजी से बढ़ रही है, बल्कि धड़ल्ले से मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ भी किया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बनाए गए अस्पतालों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के हाथों में ही लोगों की इलाज करने की कमान थमाई गई है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के दावे किए जाते हैं, लेकिन जींद जिला स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में पूरी तरह से पिछड़ चुका है। जिले के सामान्य अस्पताल के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुख्य विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है। सिविल अस्पताल में फिजिशियन भी  नहीं है, जिससे मरीजों को रोहतक रेफर करना पड़ता है। जिले में शहरों और कस्बों के अलावा 307 गांव हैं। सरकार जिले के 158 गांवों में सब सेंटर, पांच में सीएचसी व 28 में पीएचसी की सुविधा उपलब्ध करवा पाई है। जिले के करीब सवा सौ गांव आजादी मिलने के कई दशक से अधिक समय बीतने पर भी स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम हैं। इस प्रकार की अव्यवस्थाओं के चलते स्वस्थ समाज की कल्पना करना एक सपने के समान है। स्वास्थ्य विभाग जिले में प्रेक्टिस कर रहे मुन्नाभाई एमबीबीएस पर कार्रवाई करने के नाम से भी गुरेज करता है। जिस कारण जिले में धड़ल्ले के साथ में झोला छाप डाक्टरों की फौज खड़ी हो रही है। जिला सामान्य अस्पताल में डिप्टी सिवल सर्जन के कुल 7 पद सृजित हैं, जिसमें से 4 पद खाली हैं। एसएमओ के कुल 12 पद सृजित हैं, जिनमें से 2 पद खाली हैं। इसके अलावा एमओ के कुल 114 पद सृजित हैं, जिसमें से 53 पद खाली हैं। सफीदों में 9 में से 1 और नरवाना में 11 में से 8 की नियुक्ति है। इसी प्रकार से सीएचसी कालवा में 6 में से 1, जुलाना में 5 में से 1, पद खाली है। यदि बात नरवाना सिविल अस्पताल की जाए तो यहां पर जरनल सर्जन, फिजिशियन, ईएनटी, बाल रोग विशेषज्ञ और अल्ट्रासोनोलिस्ट की कमी है। वहीं बच्चों के लिए शुरू की जाने वाली नर्सरी भी पूरी तरह से तैयार नहीं हो सकी है। उधर कालवा सामुदायिक केंद्र में महिलाए बाल रोग विशेषज्ञ के अलावा सर्जन की कमी खलती रहती है। उपकरण भी आधुनिक नहीं है। सफीदों सिविल अस्पताल में तो व्यवस्था बिल्कुल खराब हो चुकी है। यहां 9 में से मात्र एक ही मेडिकल आफिसर है।

घंटों इंतजार करते रहते हैं मरीज

उपचार के लिए सिविल अस्पताल में आने वाले मरीजों को घंटों लाइन में खडे होकर इंतजार करना पड़ता है। अस्पताल में सुबह डाक्टर तो बैठे मिल जाते हैं, लेकिन जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ता जाता है तो सीट पर डाक्टर नदारद होते चले जाते हैं। अधिकतर डाक्टर तो ड्यूटी के दौरान सिफारशियों को प्राथमिकता देते हैं। जिस मरीज की सिफारिश अच्छी है उसका नंबर जल्दी आ जाता है, लेकिन बिना सिफारिश वाले मरीजों को तो कमरों के बाहर बैठकर घंटों नंबर का इंतजार करना पड़ता है।
धूल फांक रही मशीनें
जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं हैं। यहां मशीनें तो हैं, लेकिन डाक्टर नहीं। जींद के सामान्य अस्पताल में लगभग 12 लाख रुपए की लागत तथा सामान्य अस्पताल नरवाना में लगभग 6 लाख रुपए की अल्ट्रासाउंड मशीन होने के बावजूद भी यहां के मरीजों को इधर-उधर धक्के खाने पड़ रहे हैं। इसके अलावा सफीदों में भी अल्ट्रासाउंड की कोई सुविधा नहीं है। अल्ट्रासाउंड डाक्टर नहीं होने के कारण मशीन से किसी भी मरीज का अल्ट्रासाउंड नही किया जा रहा है। अल्ट्रासाउंड करवाने वाले मरीजों को अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ रहा है। लोगों को अल्ट्रासाउंड के लिए निजी अस्पतालों में 500 से 600 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाउंड नही होने से मरीजों में काफी रोष है।

उच्चाधिकारियों को किया जा चुका है सूचित

सामान्य अस्पताल में डाक्टरों की कमी है। डाक्टरों की कमी के चलते स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। इसके लिए विभाग के उच्चाधिकारियों को सूचित किया जा चुका है। अस्पताल प्रशासन द्वारा सभी डाक्टरों व अन्य कर्मचारियों से अस्पताल में अनुशान बनाए रखने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। उनकी तरफ से अस्पताल में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
डा. धनकुमार, सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद

आईटी विलेज ने राष्टÑीय पक्षी को बचाने के लिए शुरू किया अभियान

नरेंद्र कुंडू
जींद। सूचना एवं प्रौद्यागिकी के क्षेत्र में धूम मचाने के बाद आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने राष्ट्रीय  पक्षी मोर के संरक्षण के लिए कदम बढ़ाए हैं। मोरों के अस्तित्व पर मंडराते खतरे को लेकर आईटी विलेज की पंचातय गंभीर है। विलुप्त होती मोर प्रजाति को बचाने के लिए पंचायत ने ‘मोर बचाओ अभियान’ शुरू किया है। इस मुहिम को धरातल पर लाने के लिए पंचायत ने गांव में दो टीमों का गठन कर गांव में जागरुकता अभियान चलाया है। टीम के सदस्य जागरुकता अभियान के साथ-साथ सर्वे कर मोरों की संख्या का पता भी  लगाएंगे। लोगों को जागरुक करने के लिए पंचायत ने बैनर भी तैयार करवाएं हैं। लोगों का ध्यान मोर बचाओ अभियान की ओर आकर्षित करने के लिए बैनरों पर मार्मिक स्लोगन लिखवाए गए हैं। इसके अलावा पंचायत ने मोर संरक्षण के लिए डिप्टी कमीश्नर की मार्फत वन्य जीव विभाग को भी मोर संरक्षण के लिए विशेष कदम उठाने के लिए एक प्रस्ताव भेजा है। पंचायत ने प्रस्ताव में विभाग से उत्तरांचल की तर्ज पर गांव में एक शैड का निर्माण करने की मांग की है। ताकि विलुप्त हो रही मोर की प्रजाति को बचाया जा सके।
विलुप्त हो रही राष्ट्रीय पक्षी मोर की प्रजाति को बचाने के लिए आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने ‘मोर बचाओ अभियान’ शुरू किया है। वन्य जीवों को बचाने के लिए पंचायत द्वारा शुरू की गई यह एक अनोखी पहल है। पूरे प्रदेश में यह एकमात्र पंचायत है, जिसनें राष्ट्रीय पक्षी मोर को बचाने के लिए पहल की है। पंचायत ने पूरी प्लानिंग के तहत यह मुहिम शुरू की है। लोगों को जागरुक करने के लिए पंचायत ने गांव में 24 बच्चों के दो ग्रुप बनाएं हैं। पंचायत ने दोनों ग्रुपों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी है। एक टीम के सदस्य मोरों की सुरक्षा के लिए लोगों को घर-घर जाकर खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग न करने के लिए प्रेरित करेंगे तो दूसरे गु्रप के सदस्य बैनरों के माध्यम से लोगों को मोर संरक्षण के लिए जागरुक करेंगे। जागरुकता अभियान के साथ-साथ ये बच्चे मोरों की संख्या की संख्या का पता लगाएंगे। बिजली की चपेट में आकर आकस्मिक काल का ग्रास बनने वाले मोरों को बचाने के लिए पंचायत द्वारा बिजली निगम से भी सहायता ली जाएगी। पंचायत ने बिजली निगम के अधिकारियों से मोरों के एरिए से गुजरने वाले बिजली के तारों पर प्लास्टिक लगाने की मांग की है। इसके अलावा पंचायत ने डिप्टी कमीश्नर के माध्यम से वन्यजीव विभाग को भी मोर संरक्षण के लिए पंचायत का सहयोग करने का प्रस्ताव  भेजा है। पंचायत ने वन्य जीव विभाग को प्रस्ताव में उत्तरांचल की तर्ज पर गांव में मोरों के रहने के लिए एक शैड का निर्माण करने की मांग की है। ताकि लगातार घट रही मोरों की संख्या पर अंकुश लगाकर राष्ट्रीय पक्षी मोर को बचाया जा सके।

मोरों को बचाने के लिए शुरू की पहल

पहले गांवों में मोरों की संख्या 60-70 के करीब थी। लेकिन खेतों में कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग व अन्य आपदाओं के कारण मोरों की संख्या लगातार घट रही है। पंचायत ने विलुप्त हो रही मोरों की प्रजाति को बचाने के लिए ही मोर बचाओ अभियान शुरू किया है। लोगों को जागरुक करने के लिए गांव में दो गु्रपों का गठन किया गया है। इसके अलावा गांव में शैड का निर्माण करवाने के लिए वन्य जीव विभाग को प्रस्ताव भेजा गया है। शैड के निर्माण के लिए पंचायत द्वारा जगह का चयन भी किया गया है।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद
 

विभाग को भेजा  प्रस्ताव 

बीबीपुर की पंचायत की तरफ से गांव में मोरों की संख्या घटने की सूचना मिली है। पंचायत ने गांव में मोर संरक्षण के लिए शैड के निर्माण के लिए भी प्रस्ताव भेजा है। पंचायत द्वारा शैड के लिए जगह देने के बाद गांव में शैड का निर्माण किया जाएगा। विभाग द्वारा बीबीपुर के अलावा बहबलपुर में भी मोरों को बचाने के लिए शैड का निर्माण किया जाएगा। विभाग द्वारा मोरों व अन्य वन्य जीवों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
राजबीर सिंह, निरीक्षक
वन्य जीव विभाग, जींद्

फाइलों से बाहर नहीं आ रही जांच

सरकार के निर्मल भारत के सपने को लगा झटका

नरेंद्र कुंडू
जींद।
नियमों को ताक पर रखकर गंदगी से अटे पड़े गांवों को निर्मल गांव का दर्जा दिलवाने का मामला प्रशासनिक अधिकारियों के गले की फांस बन गया है। मामला उजागर होने के बाद स्वच्छता अभियान से जुड़े अधिकारियों में हड़कंप मच गया है और अधिकारी किसी न किसी तरह इस मामले पर पर्दा डालने की कोशिश में जुटे हैं। प्रशासनिक अधिकारी अब जांच का आश्वासन देकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। मामला उजागर होने के तीन दिन बाद भी  जांच एक कदम आगे भी नहीं बढ़ पाई है। जांच के नाम पर केवल कागजी कार्रवाई ही की जा रही है। प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही से केंद्र सरकार द्वारा भारत को निर्मल बनाने के सपने को तो करारा झटका लगा ही है, साथ-साथ सरकार द्वारा स्वच्छता अभियान पर खर्च किए जा रहे करोड़ों रुपए भी पानी में व्यर्थ बह गए हैं। ऐसे में स्वच्छता अभियान के नाम पर सरकारी बाबूओं का भी बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आ गया है। अधिकारियों द्वारा इस मामले पर जवाब देते नहीं बन रहा है।
सरकार देश को स्वच्छ बनाने का सपना संजोए हुए है। अपने इस सपने को साकार करने के लिए सरकार हर वर्ष अरबों रुपए खर्च कर रही है। इसके लिए सरकार द्वारा प्रदेश के प्रत्येक जिले में स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों को जागरुक करने का काम किया जा रहा है। कागजों में अभियान की सफलता को देखते हुए सरकार आगामी दस वर्षों में पूरे भारत को निर्मल बनाने के बड़े-बड़े दावे कर रही है। लेकिन अगर धरातल पर देखा जाए तो वास्तविकता कुछ ओर ही है। जिला स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस अभियान की प्रगति रिपोर्ट केवल कागजों तक ही सीमित रहती है। अभियान को सफल बनाने के लिए अधिकारियों द्वारा फील्ड वर्क पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही सरकार द्वारा अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद भी वर्षों बाद भी स्वच्छता अभियान जमीन पर नहीं उतर पा रहा है। हाल ही में करनाल में आयोजित राज्यस्तरीय निर्मल पुरस्कार 2011 वितरण समारोह में भी फर्जी तरीके से ऐसे गांवों को निर्मल घोषित करवा दिया गया, जो गांव वास्तव में स्वच्छता अभियान से कोसों दूर हैं। इस समारोह में जींद जिले के आठ गांवों को निर्मल गांव घोषित किया गया है, जबकि इन गांवों में निर्मल गांव की एक भी  सुविधा नहीं हैं। इन गांवों में सभी परिवारों के पास न तो शौचालय हैं और न ही किसी भी गांव में अभी तक मैला ढोने की कूप्रथा समाप्त हुई है। इन गांवों में न तो पीने के स्वच्छ पानी की व्यवस्था है और न ही किसी भी गांव से गंदगी पूर्ण रूप से खत्म हुई है। जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने केवल अपनी इज्जत बचाने की फेर में इन गांवों को निर्मल गांव का दर्जा दिलवाया है। मामला उजागर होने के बाद अधिकारियों के गले की फांस बन गया है। अधिकारी जांच की आड़ लेकर मामले से बचने का प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन तीन दिन बाद भी जांच एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई है। इससे प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं।

किन-किन गांवों को मिला है निर्मल गांव का दर्जा

हाल ही में करनाल में आयोजित राज्यस्तरीय निर्मल पुरस्कार 2011 वितरण समारोह में जींद जिले से 8 गांवों को यह पुरस्कार दिया गया है। जिसमें जींद खंड में जीवनपुर, निडानी, रामगढ़, अलेवा खंड में बुलावाली खेड़ी, जुलाना में खेमाखेड़ी, नरवाना में रेवर, सफीदों में पाजू कलां तथा पिल्लूखेड़ा में भूरायण गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है। लेकिन सरकार द्वारा घोषित किए गए ये आठों गांव वास्तव में निर्मल ग्राम पंचायत योजना के नियमों पर खरे नहीं उतर रहे हैं।

जांच के बाद आगामी कार्रवाई पर किया जाएगा अमल

मामला उनके नोटिस में आ चुका है। जल्द ही अपने कार्यालय के अधिकारियों की बैठक बुलाकर इस मामले पर गौर किया जाएगा। अधिकारियों को सर्वे के लिए दोबारा निर्देश दिए जाएंगे। जांच के बाद जो तथ्य सामने आएंगे उनके अनुसार आगामी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
अरविंद मल्हान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद

सर्वे टीम ने किया था गांवों का निरीक्षण

इस तरह के कार्यक्रम में सारा का सारा काम फील्ड से संबंधित होता है। अभियान की सफलता के लिए जिन टीमों का गठन किया जाता है वह टीमें गांव-गांव जाकर लोगों को जागरुक करती हैं। गांव में सफाई की जिम्मेदारी ग्रामीणों की होती है। ग्रामीणों को भी इस तरह के कार्यक्रमों में अपना सहयोग देना चाहिए। निर्मल पुरस्कार के लिए गांवों का चयन करने से पहले सर्वे टीम ने सभी गांवों का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट के अनुसार ही इन गांवों को पुरस्कार के लिए चुना गया था।
डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया
उपायुक्त, जींद

....यहां कागजों में तैयार होते हैं निर्मल गांव

निर्मल गाँवों में लगे हैं गंदगी के ढेर

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार द्वारा देश को स्वच्छ बनाने के लिए हर वर्ष अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन वास्तविकता इसके विपरित ही है। सरकार ने जिन ग्राम पंचायतों के बल पर भारत को निर्मल बनाने का सपना देखा है उसकी बुनियाद ही कच्ची है। जिस कारण एक झटके में ही सरकार का यह सपना चकनाचुर हो सकता है। सरकार द्वारा शुरू की गई निर्मल ग्राम योजना केवल कागजों में ही दौड़ रही है। इस योजना ने आज तक धरातल पर कोई खास प्रगति नहीं की है। प्रशासनिक अधिकारी अपनी खाल बचाने के चक्कर में कागजों में ही इस योजना को शिखर में पहुंचा देते हैं। हाल ही में सरकार ने जिले के जिन आठ गांवों को निर्मल गांवों का दर्जा दिया है, वास्तव में वे गांव निर्मल गांव कहलाने के लायक ही नहीं हैं। इन आठों गांवों में सफाई व्यवस्था का जनाजा निकला हुआ है तथा ये निर्मल ग्राम पंचायत योजना के किसी भी मानक पर खरे नहीं उतर रहे हैं। जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने केवल अपनी इज्जत बचाने की फेर में पूरी प्लानिंग के तहत इस कार्रवाई को अंजाम दिया है। जिले से ऐसे आठ गांवों का चयन किया गया है, जिनकी आबादी कम है तथा जो मुख्य मार्ग से हटकर लिंक रोड पर स्थित हैं, ताकि सरकार की आंखों में धूल झौंक कर अपने आप को गाज गिरने से बच सकें। इस प्रकार प्रशासनिक अधिकारियों ने निर्मल गांव की घोषणा में जमकर फर्जीवाड़ा किया गया है। इन आठों गांवों में से किसी भी गांव में सभी परिवारों के पास न तो शौचालय हैं,  न ही किसी भी गांव में अभी  तक मैला ढोने की कूप्रथा समाप्त हुई है, न ही किसी भी गांव में पीने के स्वच्छ पानी की व्यवस्था है और न ही किसी भी गांव से गंदगी पूर्ण रूप से खत्म हुई है। आठों गांवों में से कोई भी गांव नियमों पर खरा नहीं उतरने के बावजूद भी इन गांवों को निर्मल गांव का दर्जा दिलवाने से प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में खड़ी हो रही है। आखिर प्रशासनिक अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रख कर इन गांवों का नाम निर्मल गांव के लिए क्यों प्रस्तावित किया।

किन-किन गांवों को मिला है निर्मल गांव का दर्जा

हाल ही में करनाल में आयोजित राज्यस्तरीय निर्मल पुरस्कार 2011 वितरण समारोह में प्रदेश के 330 गांवों को निर्मल गांव घोषित किया गया है, जिनमें से जींद जिले से 8 गांवों को यह पुरस्कार दिया गया है। जिसमें जींद खंड में जीवनपुर, निडानी, रामगढ़, अलेवा खंड में बुलावाली खेड़ी, जुलाना में खेमाखेड़ी, नरवाना में रेवर, सफीदों में पाजू कलां तथा पिल्लूखेड़ा में भूरायण गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है। लेकिन सरकार द्वारा घोषित किए गए ये आठों गांव वास्तव में निर्मल ग्राम पंचायत योजना के नियमों पर खरे नहीं हैं। जींद जिले के आठों गांव शहर के मुख्य मार्गों से हटकर लिंक रास्ते पर स्थित हैं।

क्या है निर्मल ग्राम पुरस्कार

समग्र स्वच्छता अभियान के क्रियान्वयन को और गति प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना आरंभ की है, जो पूरी तरह से स्वच्छ और खुले में शौच मुक्त ग्राम पंचायत विकास खंडों तथा जिलों को दिया जाता है। समग्र स्वच्छता अभियान का उद्देश्य खुले में शौच से मुक्ति हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सुविधाओं को व्यापक बनाना है तथा लोगों के स्वास्थ्य एवं जीवन स्तर को बेहतर बनाना है।
पुरस्कार के लिए पात्रता
1.    खुले में शौच रहित पंचायत।
2.    सभी परिवारों के पास शौचालय सुविधा।
3.    सभी विद्यालयों में छात्र व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय एवं मूत्रालय।
4.    आंगनबाड़ी केंद्रों में बाल उपयोगी शौचालय।
5.    शौचालयों का उपयोग एवं नियमित रखरखाव।
6.    ग्राम में पर्यावरणीय स्वच्छता।
7.    ग्राम में मैला ढोने की कूप्रथा की समाप्ति।
8.    गांव में सौ प्रतिशत शौचालय व सबके लिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध होना चाहिए।



दोबारा करवाया जाएगा गांव का सर्वे
 निर्मल गाँव भूरायण में गली में जमा कीचड़
निर्मल गाँवजीवनपुर गांव में फैली गंदगी

 निर्मल गांव रामगढ़ के बीच में बना गंदे पानी का तालाब।

निर्मल गाँवरामगढ़ गांव में सरकारी स्कूल के पास लगे गंदगी के ढेर।
निर्मल गाँव रामगढ़ गांव में गली में जमा गंदगी।
निर्मल गांव के लिए नाम प्रस्तावित किए जाने के बाद सर्वे टीम ने जिले के आठों गांवों का दौरा किया था। सर्वे टीम ने खुद इन गांवों में जाकर सभी औपचारिकताएं पूरी की थी और उसके बाद ही सरकार को इन गांवों के नाम पुरस्कार के लिए भेजे गए थे। अगर सर्वे के दौरान किसी प्रकार की गड़बड़ी हुई है तो वे दोबारा से टीमें भेज कर इसकी जांच इन गांवों की जांच करवाएंगे। 
 निर्मल गाँव भूरायण में गली में  गांव में फैली गंदगी।
अरविंद महलान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद
निर्मल गांव जीवनपुर  में गली में जमा कीचड़।