रविवार, 13 मई 2012

जिले में दम तोड़ रही स्वास्थ्य सेवाएं

बिना डाक्टरों के कैसे होगा इलाज

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार भले ही हर गांव तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के दावे करती हो, लेकिन जिला जींद में स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहर के सामान्य अस्पताल में भी  स्वास्थ्य सेवाएं लचर प्रणाली के सहारे चल रही हैं। सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों की कमी के चलते मरीजों को इलाज के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता है। मुख्य विशेषज्ञों की कमी के कारण मरीजों को निजी अस्पतालों का रूख करना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में लचर स्वास्थ्य सेवाओं और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण झोला छाप डाक्टरों की संख्या न केवल तेजी से बढ़ रही है, बल्कि धड़ल्ले से मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ भी किया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बनाए गए अस्पतालों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के हाथों में ही लोगों की इलाज करने की कमान थमाई गई है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के दावे किए जाते हैं, लेकिन जींद जिला स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में पूरी तरह से पिछड़ चुका है। जिले के सामान्य अस्पताल के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुख्य विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है। सिविल अस्पताल में फिजिशियन भी  नहीं है, जिससे मरीजों को रोहतक रेफर करना पड़ता है। जिले में शहरों और कस्बों के अलावा 307 गांव हैं। सरकार जिले के 158 गांवों में सब सेंटर, पांच में सीएचसी व 28 में पीएचसी की सुविधा उपलब्ध करवा पाई है। जिले के करीब सवा सौ गांव आजादी मिलने के कई दशक से अधिक समय बीतने पर भी स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम हैं। इस प्रकार की अव्यवस्थाओं के चलते स्वस्थ समाज की कल्पना करना एक सपने के समान है। स्वास्थ्य विभाग जिले में प्रेक्टिस कर रहे मुन्नाभाई एमबीबीएस पर कार्रवाई करने के नाम से भी गुरेज करता है। जिस कारण जिले में धड़ल्ले के साथ में झोला छाप डाक्टरों की फौज खड़ी हो रही है। जिला सामान्य अस्पताल में डिप्टी सिवल सर्जन के कुल 7 पद सृजित हैं, जिसमें से 4 पद खाली हैं। एसएमओ के कुल 12 पद सृजित हैं, जिनमें से 2 पद खाली हैं। इसके अलावा एमओ के कुल 114 पद सृजित हैं, जिसमें से 53 पद खाली हैं। सफीदों में 9 में से 1 और नरवाना में 11 में से 8 की नियुक्ति है। इसी प्रकार से सीएचसी कालवा में 6 में से 1, जुलाना में 5 में से 1, पद खाली है। यदि बात नरवाना सिविल अस्पताल की जाए तो यहां पर जरनल सर्जन, फिजिशियन, ईएनटी, बाल रोग विशेषज्ञ और अल्ट्रासोनोलिस्ट की कमी है। वहीं बच्चों के लिए शुरू की जाने वाली नर्सरी भी पूरी तरह से तैयार नहीं हो सकी है। उधर कालवा सामुदायिक केंद्र में महिलाए बाल रोग विशेषज्ञ के अलावा सर्जन की कमी खलती रहती है। उपकरण भी आधुनिक नहीं है। सफीदों सिविल अस्पताल में तो व्यवस्था बिल्कुल खराब हो चुकी है। यहां 9 में से मात्र एक ही मेडिकल आफिसर है।

घंटों इंतजार करते रहते हैं मरीज

उपचार के लिए सिविल अस्पताल में आने वाले मरीजों को घंटों लाइन में खडे होकर इंतजार करना पड़ता है। अस्पताल में सुबह डाक्टर तो बैठे मिल जाते हैं, लेकिन जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ता जाता है तो सीट पर डाक्टर नदारद होते चले जाते हैं। अधिकतर डाक्टर तो ड्यूटी के दौरान सिफारशियों को प्राथमिकता देते हैं। जिस मरीज की सिफारिश अच्छी है उसका नंबर जल्दी आ जाता है, लेकिन बिना सिफारिश वाले मरीजों को तो कमरों के बाहर बैठकर घंटों नंबर का इंतजार करना पड़ता है।
धूल फांक रही मशीनें
जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं हैं। यहां मशीनें तो हैं, लेकिन डाक्टर नहीं। जींद के सामान्य अस्पताल में लगभग 12 लाख रुपए की लागत तथा सामान्य अस्पताल नरवाना में लगभग 6 लाख रुपए की अल्ट्रासाउंड मशीन होने के बावजूद भी यहां के मरीजों को इधर-उधर धक्के खाने पड़ रहे हैं। इसके अलावा सफीदों में भी अल्ट्रासाउंड की कोई सुविधा नहीं है। अल्ट्रासाउंड डाक्टर नहीं होने के कारण मशीन से किसी भी मरीज का अल्ट्रासाउंड नही किया जा रहा है। अल्ट्रासाउंड करवाने वाले मरीजों को अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ रहा है। लोगों को अल्ट्रासाउंड के लिए निजी अस्पतालों में 500 से 600 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाउंड नही होने से मरीजों में काफी रोष है।

उच्चाधिकारियों को किया जा चुका है सूचित

सामान्य अस्पताल में डाक्टरों की कमी है। डाक्टरों की कमी के चलते स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। इसके लिए विभाग के उच्चाधिकारियों को सूचित किया जा चुका है। अस्पताल प्रशासन द्वारा सभी डाक्टरों व अन्य कर्मचारियों से अस्पताल में अनुशान बनाए रखने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। उनकी तरफ से अस्पताल में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
डा. धनकुमार, सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद

आईटी विलेज ने राष्टÑीय पक्षी को बचाने के लिए शुरू किया अभियान

नरेंद्र कुंडू
जींद। सूचना एवं प्रौद्यागिकी के क्षेत्र में धूम मचाने के बाद आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने राष्ट्रीय  पक्षी मोर के संरक्षण के लिए कदम बढ़ाए हैं। मोरों के अस्तित्व पर मंडराते खतरे को लेकर आईटी विलेज की पंचातय गंभीर है। विलुप्त होती मोर प्रजाति को बचाने के लिए पंचायत ने ‘मोर बचाओ अभियान’ शुरू किया है। इस मुहिम को धरातल पर लाने के लिए पंचायत ने गांव में दो टीमों का गठन कर गांव में जागरुकता अभियान चलाया है। टीम के सदस्य जागरुकता अभियान के साथ-साथ सर्वे कर मोरों की संख्या का पता भी  लगाएंगे। लोगों को जागरुक करने के लिए पंचायत ने बैनर भी तैयार करवाएं हैं। लोगों का ध्यान मोर बचाओ अभियान की ओर आकर्षित करने के लिए बैनरों पर मार्मिक स्लोगन लिखवाए गए हैं। इसके अलावा पंचायत ने मोर संरक्षण के लिए डिप्टी कमीश्नर की मार्फत वन्य जीव विभाग को भी मोर संरक्षण के लिए विशेष कदम उठाने के लिए एक प्रस्ताव भेजा है। पंचायत ने प्रस्ताव में विभाग से उत्तरांचल की तर्ज पर गांव में एक शैड का निर्माण करने की मांग की है। ताकि विलुप्त हो रही मोर की प्रजाति को बचाया जा सके।
विलुप्त हो रही राष्ट्रीय पक्षी मोर की प्रजाति को बचाने के लिए आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने ‘मोर बचाओ अभियान’ शुरू किया है। वन्य जीवों को बचाने के लिए पंचायत द्वारा शुरू की गई यह एक अनोखी पहल है। पूरे प्रदेश में यह एकमात्र पंचायत है, जिसनें राष्ट्रीय पक्षी मोर को बचाने के लिए पहल की है। पंचायत ने पूरी प्लानिंग के तहत यह मुहिम शुरू की है। लोगों को जागरुक करने के लिए पंचायत ने गांव में 24 बच्चों के दो ग्रुप बनाएं हैं। पंचायत ने दोनों ग्रुपों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी है। एक टीम के सदस्य मोरों की सुरक्षा के लिए लोगों को घर-घर जाकर खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग न करने के लिए प्रेरित करेंगे तो दूसरे गु्रप के सदस्य बैनरों के माध्यम से लोगों को मोर संरक्षण के लिए जागरुक करेंगे। जागरुकता अभियान के साथ-साथ ये बच्चे मोरों की संख्या की संख्या का पता लगाएंगे। बिजली की चपेट में आकर आकस्मिक काल का ग्रास बनने वाले मोरों को बचाने के लिए पंचायत द्वारा बिजली निगम से भी सहायता ली जाएगी। पंचायत ने बिजली निगम के अधिकारियों से मोरों के एरिए से गुजरने वाले बिजली के तारों पर प्लास्टिक लगाने की मांग की है। इसके अलावा पंचायत ने डिप्टी कमीश्नर के माध्यम से वन्यजीव विभाग को भी मोर संरक्षण के लिए पंचायत का सहयोग करने का प्रस्ताव  भेजा है। पंचायत ने वन्य जीव विभाग को प्रस्ताव में उत्तरांचल की तर्ज पर गांव में मोरों के रहने के लिए एक शैड का निर्माण करने की मांग की है। ताकि लगातार घट रही मोरों की संख्या पर अंकुश लगाकर राष्ट्रीय पक्षी मोर को बचाया जा सके।

मोरों को बचाने के लिए शुरू की पहल

पहले गांवों में मोरों की संख्या 60-70 के करीब थी। लेकिन खेतों में कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग व अन्य आपदाओं के कारण मोरों की संख्या लगातार घट रही है। पंचायत ने विलुप्त हो रही मोरों की प्रजाति को बचाने के लिए ही मोर बचाओ अभियान शुरू किया है। लोगों को जागरुक करने के लिए गांव में दो गु्रपों का गठन किया गया है। इसके अलावा गांव में शैड का निर्माण करवाने के लिए वन्य जीव विभाग को प्रस्ताव भेजा गया है। शैड के निर्माण के लिए पंचायत द्वारा जगह का चयन भी किया गया है।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद
 

विभाग को भेजा  प्रस्ताव 

बीबीपुर की पंचायत की तरफ से गांव में मोरों की संख्या घटने की सूचना मिली है। पंचायत ने गांव में मोर संरक्षण के लिए शैड के निर्माण के लिए भी प्रस्ताव भेजा है। पंचायत द्वारा शैड के लिए जगह देने के बाद गांव में शैड का निर्माण किया जाएगा। विभाग द्वारा बीबीपुर के अलावा बहबलपुर में भी मोरों को बचाने के लिए शैड का निर्माण किया जाएगा। विभाग द्वारा मोरों व अन्य वन्य जीवों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
राजबीर सिंह, निरीक्षक
वन्य जीव विभाग, जींद्

फाइलों से बाहर नहीं आ रही जांच

सरकार के निर्मल भारत के सपने को लगा झटका

नरेंद्र कुंडू
जींद।
नियमों को ताक पर रखकर गंदगी से अटे पड़े गांवों को निर्मल गांव का दर्जा दिलवाने का मामला प्रशासनिक अधिकारियों के गले की फांस बन गया है। मामला उजागर होने के बाद स्वच्छता अभियान से जुड़े अधिकारियों में हड़कंप मच गया है और अधिकारी किसी न किसी तरह इस मामले पर पर्दा डालने की कोशिश में जुटे हैं। प्रशासनिक अधिकारी अब जांच का आश्वासन देकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। मामला उजागर होने के तीन दिन बाद भी  जांच एक कदम आगे भी नहीं बढ़ पाई है। जांच के नाम पर केवल कागजी कार्रवाई ही की जा रही है। प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही से केंद्र सरकार द्वारा भारत को निर्मल बनाने के सपने को तो करारा झटका लगा ही है, साथ-साथ सरकार द्वारा स्वच्छता अभियान पर खर्च किए जा रहे करोड़ों रुपए भी पानी में व्यर्थ बह गए हैं। ऐसे में स्वच्छता अभियान के नाम पर सरकारी बाबूओं का भी बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आ गया है। अधिकारियों द्वारा इस मामले पर जवाब देते नहीं बन रहा है।
सरकार देश को स्वच्छ बनाने का सपना संजोए हुए है। अपने इस सपने को साकार करने के लिए सरकार हर वर्ष अरबों रुपए खर्च कर रही है। इसके लिए सरकार द्वारा प्रदेश के प्रत्येक जिले में स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों को जागरुक करने का काम किया जा रहा है। कागजों में अभियान की सफलता को देखते हुए सरकार आगामी दस वर्षों में पूरे भारत को निर्मल बनाने के बड़े-बड़े दावे कर रही है। लेकिन अगर धरातल पर देखा जाए तो वास्तविकता कुछ ओर ही है। जिला स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस अभियान की प्रगति रिपोर्ट केवल कागजों तक ही सीमित रहती है। अभियान को सफल बनाने के लिए अधिकारियों द्वारा फील्ड वर्क पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही सरकार द्वारा अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद भी वर्षों बाद भी स्वच्छता अभियान जमीन पर नहीं उतर पा रहा है। हाल ही में करनाल में आयोजित राज्यस्तरीय निर्मल पुरस्कार 2011 वितरण समारोह में भी फर्जी तरीके से ऐसे गांवों को निर्मल घोषित करवा दिया गया, जो गांव वास्तव में स्वच्छता अभियान से कोसों दूर हैं। इस समारोह में जींद जिले के आठ गांवों को निर्मल गांव घोषित किया गया है, जबकि इन गांवों में निर्मल गांव की एक भी  सुविधा नहीं हैं। इन गांवों में सभी परिवारों के पास न तो शौचालय हैं और न ही किसी भी गांव में अभी तक मैला ढोने की कूप्रथा समाप्त हुई है। इन गांवों में न तो पीने के स्वच्छ पानी की व्यवस्था है और न ही किसी भी गांव से गंदगी पूर्ण रूप से खत्म हुई है। जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने केवल अपनी इज्जत बचाने की फेर में इन गांवों को निर्मल गांव का दर्जा दिलवाया है। मामला उजागर होने के बाद अधिकारियों के गले की फांस बन गया है। अधिकारी जांच की आड़ लेकर मामले से बचने का प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन तीन दिन बाद भी जांच एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई है। इससे प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं।

किन-किन गांवों को मिला है निर्मल गांव का दर्जा

हाल ही में करनाल में आयोजित राज्यस्तरीय निर्मल पुरस्कार 2011 वितरण समारोह में जींद जिले से 8 गांवों को यह पुरस्कार दिया गया है। जिसमें जींद खंड में जीवनपुर, निडानी, रामगढ़, अलेवा खंड में बुलावाली खेड़ी, जुलाना में खेमाखेड़ी, नरवाना में रेवर, सफीदों में पाजू कलां तथा पिल्लूखेड़ा में भूरायण गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है। लेकिन सरकार द्वारा घोषित किए गए ये आठों गांव वास्तव में निर्मल ग्राम पंचायत योजना के नियमों पर खरे नहीं उतर रहे हैं।

जांच के बाद आगामी कार्रवाई पर किया जाएगा अमल

मामला उनके नोटिस में आ चुका है। जल्द ही अपने कार्यालय के अधिकारियों की बैठक बुलाकर इस मामले पर गौर किया जाएगा। अधिकारियों को सर्वे के लिए दोबारा निर्देश दिए जाएंगे। जांच के बाद जो तथ्य सामने आएंगे उनके अनुसार आगामी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
अरविंद मल्हान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद

सर्वे टीम ने किया था गांवों का निरीक्षण

इस तरह के कार्यक्रम में सारा का सारा काम फील्ड से संबंधित होता है। अभियान की सफलता के लिए जिन टीमों का गठन किया जाता है वह टीमें गांव-गांव जाकर लोगों को जागरुक करती हैं। गांव में सफाई की जिम्मेदारी ग्रामीणों की होती है। ग्रामीणों को भी इस तरह के कार्यक्रमों में अपना सहयोग देना चाहिए। निर्मल पुरस्कार के लिए गांवों का चयन करने से पहले सर्वे टीम ने सभी गांवों का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट के अनुसार ही इन गांवों को पुरस्कार के लिए चुना गया था।
डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया
उपायुक्त, जींद

....यहां कागजों में तैयार होते हैं निर्मल गांव

निर्मल गाँवों में लगे हैं गंदगी के ढेर

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार द्वारा देश को स्वच्छ बनाने के लिए हर वर्ष अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन वास्तविकता इसके विपरित ही है। सरकार ने जिन ग्राम पंचायतों के बल पर भारत को निर्मल बनाने का सपना देखा है उसकी बुनियाद ही कच्ची है। जिस कारण एक झटके में ही सरकार का यह सपना चकनाचुर हो सकता है। सरकार द्वारा शुरू की गई निर्मल ग्राम योजना केवल कागजों में ही दौड़ रही है। इस योजना ने आज तक धरातल पर कोई खास प्रगति नहीं की है। प्रशासनिक अधिकारी अपनी खाल बचाने के चक्कर में कागजों में ही इस योजना को शिखर में पहुंचा देते हैं। हाल ही में सरकार ने जिले के जिन आठ गांवों को निर्मल गांवों का दर्जा दिया है, वास्तव में वे गांव निर्मल गांव कहलाने के लायक ही नहीं हैं। इन आठों गांवों में सफाई व्यवस्था का जनाजा निकला हुआ है तथा ये निर्मल ग्राम पंचायत योजना के किसी भी मानक पर खरे नहीं उतर रहे हैं। जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने केवल अपनी इज्जत बचाने की फेर में पूरी प्लानिंग के तहत इस कार्रवाई को अंजाम दिया है। जिले से ऐसे आठ गांवों का चयन किया गया है, जिनकी आबादी कम है तथा जो मुख्य मार्ग से हटकर लिंक रोड पर स्थित हैं, ताकि सरकार की आंखों में धूल झौंक कर अपने आप को गाज गिरने से बच सकें। इस प्रकार प्रशासनिक अधिकारियों ने निर्मल गांव की घोषणा में जमकर फर्जीवाड़ा किया गया है। इन आठों गांवों में से किसी भी गांव में सभी परिवारों के पास न तो शौचालय हैं,  न ही किसी भी गांव में अभी  तक मैला ढोने की कूप्रथा समाप्त हुई है, न ही किसी भी गांव में पीने के स्वच्छ पानी की व्यवस्था है और न ही किसी भी गांव से गंदगी पूर्ण रूप से खत्म हुई है। आठों गांवों में से कोई भी गांव नियमों पर खरा नहीं उतरने के बावजूद भी इन गांवों को निर्मल गांव का दर्जा दिलवाने से प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में खड़ी हो रही है। आखिर प्रशासनिक अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रख कर इन गांवों का नाम निर्मल गांव के लिए क्यों प्रस्तावित किया।

किन-किन गांवों को मिला है निर्मल गांव का दर्जा

हाल ही में करनाल में आयोजित राज्यस्तरीय निर्मल पुरस्कार 2011 वितरण समारोह में प्रदेश के 330 गांवों को निर्मल गांव घोषित किया गया है, जिनमें से जींद जिले से 8 गांवों को यह पुरस्कार दिया गया है। जिसमें जींद खंड में जीवनपुर, निडानी, रामगढ़, अलेवा खंड में बुलावाली खेड़ी, जुलाना में खेमाखेड़ी, नरवाना में रेवर, सफीदों में पाजू कलां तथा पिल्लूखेड़ा में भूरायण गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है। लेकिन सरकार द्वारा घोषित किए गए ये आठों गांव वास्तव में निर्मल ग्राम पंचायत योजना के नियमों पर खरे नहीं हैं। जींद जिले के आठों गांव शहर के मुख्य मार्गों से हटकर लिंक रास्ते पर स्थित हैं।

क्या है निर्मल ग्राम पुरस्कार

समग्र स्वच्छता अभियान के क्रियान्वयन को और गति प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना आरंभ की है, जो पूरी तरह से स्वच्छ और खुले में शौच मुक्त ग्राम पंचायत विकास खंडों तथा जिलों को दिया जाता है। समग्र स्वच्छता अभियान का उद्देश्य खुले में शौच से मुक्ति हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सुविधाओं को व्यापक बनाना है तथा लोगों के स्वास्थ्य एवं जीवन स्तर को बेहतर बनाना है।
पुरस्कार के लिए पात्रता
1.    खुले में शौच रहित पंचायत।
2.    सभी परिवारों के पास शौचालय सुविधा।
3.    सभी विद्यालयों में छात्र व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय एवं मूत्रालय।
4.    आंगनबाड़ी केंद्रों में बाल उपयोगी शौचालय।
5.    शौचालयों का उपयोग एवं नियमित रखरखाव।
6.    ग्राम में पर्यावरणीय स्वच्छता।
7.    ग्राम में मैला ढोने की कूप्रथा की समाप्ति।
8.    गांव में सौ प्रतिशत शौचालय व सबके लिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध होना चाहिए।



दोबारा करवाया जाएगा गांव का सर्वे
 निर्मल गाँव भूरायण में गली में जमा कीचड़
निर्मल गाँवजीवनपुर गांव में फैली गंदगी

 निर्मल गांव रामगढ़ के बीच में बना गंदे पानी का तालाब।

निर्मल गाँवरामगढ़ गांव में सरकारी स्कूल के पास लगे गंदगी के ढेर।
निर्मल गाँव रामगढ़ गांव में गली में जमा गंदगी।
निर्मल गांव के लिए नाम प्रस्तावित किए जाने के बाद सर्वे टीम ने जिले के आठों गांवों का दौरा किया था। सर्वे टीम ने खुद इन गांवों में जाकर सभी औपचारिकताएं पूरी की थी और उसके बाद ही सरकार को इन गांवों के नाम पुरस्कार के लिए भेजे गए थे। अगर सर्वे के दौरान किसी प्रकार की गड़बड़ी हुई है तो वे दोबारा से टीमें भेज कर इसकी जांच इन गांवों की जांच करवाएंगे। 
 निर्मल गाँव भूरायण में गली में  गांव में फैली गंदगी।
अरविंद महलान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद
निर्मल गांव जीवनपुर  में गली में जमा कीचड़।





बुधवार, 9 मई 2012

पंचायत सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हुए आईटी विलेज ने की मिशाल कायम

नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश की पहली हाईटेक पंचायत बीबीपुर ने अन्य पंचायतों के सामने एक और मिसाल कायम कर दी है। आईटी विलेज की पंचायत ने देश की पंचायतों को सशक्तिकरण की राह दिखाई है। पंचायत ने रिकार्ड कायम करते हुए 21 माह में 88 बैठकें कर 274 प्रस्ताव पारित कर दिखाए हैं। एक तरफ जहां अन्य पंचायतें अपने पूरे कार्याकाल में विधिवत रूप से एक भी ग्राम सभा का आयोजन नहीं कर पाती वहीं आईटी विलेज की पंचायत ने इन 21 माह में 88 बैठकों के अलावा 12 ग्राम सभाएं कर अन्य पंचायतों तथा प्रशासन के सामने एक उदहारण पेश किया है। पंचायत ने एचआरडीएफ स्कीम के तहत 2, वैट स्कीम के तहत 4, मनरेगा स्कीम के तहत 11, पीआरआई स्कीम के तहत 16, सामान्य कार्यवाही के तहत 173, नई कार्यवाही के तहत 14 तथा 12 ग्राम सभाओं में 54 प्रस्ताव पास कर गांव को प्रगति की ओर अग्रसर किया है। पंचायत ने ग्राम सभा में सरपंच के अलावा 14 मैंबरों तथा गांव की कूल वोटर संख्या के 10 प्रतिशत आबादी के समक्ष गांव में होने वाले विकास कार्यों के प्रस्ताव पास कर विधिवत रूप से ग्राम सभा की वीडियो रिकार्डिंग करवा कर प्रशासनिक अधिकारियों को भी इसकी रिपोर्ट भेजी है।
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने एक ओर मिशाल कायम करते हुए पंचायत सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का कार्य किया है। बीबीपुर की पंचायत ने लीक से हटकर नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए अन्य पंचायतों को भी विकास की ओर अग्रसर होने के लिए राह दिखाई है। पंचायत ने 27 जुलाई 2010 से 27 अप्रैल 2012 यानि मात्र 21 माह में 88 बैठकें कर 274 प्रस्ताव पारित कर यह साबित कर दिया है कि अगर गांव में विकास की गंगा बहाने के लिए सरकार के खजाने से ग्रांट निकलवानी है तो विधिवत रूप से बैठकों में प्रस्ताव पास कर सरकारी अधिकारियों को ग्रांट देने पर विवश किया जा सकता है। क्योंकि पंचायत ने बैठक कर जितने भी प्रस्ताव पास किए हैं सभी प्रोजेक्टों को सरकार की तरफ से मंजूरी मिल चुकी है। एक तरफ जहां अपने पूरे कार्यकाल में ग्राम पंचायत एक भी ग्राम सभा  नहीं कर पाती वहीं आईटी विलेज की पंचायत ने 21 माह में पूरे विधिवत तरीके से 12 ग्राम सभाएं कर कुल 54 प्रस्ताव भी पास किए हैं। इन ग्राम सभाओं में पास किए गए कार्यों की वीडियो रिकार्डिंग करवा प्रशासनिक अधिकारियों को भी इसकी रिपोर्ट भेजी है।

किस-किस स्कीम के तहत किए प्रस्ताव पास

आईटी विलेज की पंचायत ने 27 जुलाई 2010 से 27 अप्रैल 2012 यानि 21 माह में ग्राम सभा सहित कुल 88 बैठक कर 274 प्रस्ताव पास किए हैं। जिसमें एचआरडीएफ स्कीम के तहत 2, वैट स्कीम के तहत 4, मनरेगा स्कीम के तहत 11, पीआरआई स्कीम के तहत 16, सामान्य कार्यवाही के तहत 173, नई कार्यवाही के तहत 14 तथा 12 ग्राम सभाओं में कुल 54 प्रस्ताव पास किए हैं।
कार्य शुरू करवाने के लिए रेजूलेशन तैयार करना जरुरी
गांव में किसी भी प्रकार का विकास कार्य करवाने के लिए रेजूलेशन तैयार करना जरुरी होता है। रेजूलेशन तैयार करने के लिए पंचायत के सभी सदस्यों की विधिवत रूप से बैठक बुलाई जाए। बैठक में मौजूद पंचायत के सभी सदस्यों के समक्ष विकास कार्य के लिए रेजूलेशन तैयार कर उस पर सभी पंचायत सदस्यों के हस्ताक्षर करवा मंजूरी के लिए जिला प्रशासन के पास भेजा जाए। पंचायत ने लीक से हटकर कुछ ऐसे रेजूलेशन पास किए हैं, जो अन्य पंचायतें नहीं करवाती। गांव में होने वाले विकास कार्यों में ग्राम सचिव राजेश कुमार का अहम योगदान रहा है।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

क्या-क्या करवाए विकास कार्य

रेजूलेशन डालकर गांव की वेबसाइट तैयार करवाना।
गांव में अन्न भंडारण के लिए केंद्रीय भंडारण निगम को गोदाम के निर्माण के लिए रेजूलेशन •ोजना।
अनाथ व बेसहारा बच्चों को आसरा देने के लिए बाल व सुधार गृह के निर्माण के लिए रेजूलेशन देना।
बैठक में रेजूलेशन तैयार कर गांव में राजीव गांधी सेवा केंद्र का निर्माण करवाना।
पंचायत घर का निर्माण करवाने के लिए रेजूलेशन तैयार करना।
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए 15 अगस्त व 26 जनवरी पर सौर ऊर्जा की लाइटें वितरित करने के लिए प्रस्ताव पास करना।
रेजूलेशन तैयार कर पाइलेट प्रोजैक्ट के तहत गांव में पानी संरक्षण सिस्टम का निर्माण करवाना।
ठोस कचरा प्रबंधन के निर्माण के लिए प्रस्ताव पास करना।
मनरेगा के तहत सभी गलियों की सफाई करवाने के लिए प्रस्ताव पास करना।
मनरेगा के तहत प्रस्ताव पास कर वाटर कंजर्वेशन एंड हारवेस्टिंग सिस्टम का निर्माण करवाना।
पीआरआई स्कीम के तहत रेजूलेशन डाल कर हाई मास्क लाइट लगवाना।
रेजूलेशन तैयार कर गांव के तालाबों व सार्वजनिक स्थलों पर  सिक्स सिटर चेयर लगवाना।
पक्षियों के संरक्षण की पहल करने के लिए प्रस्ताव पास करना।
मुर्राह नस्ल को बढ़ावा देने के लिए प्रस्ताव पास कर मुर्राह नस्ल के भैसें खरीदना।
 


लूट खसोट पर नहीं अधिकारियों का कंट्रोल

मिली भगत से चलता है दलाली का गौरख धंधा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हाईकोर्ट ने गाड़ियों की स्पीड को नियंत्रित करने के लिए गाड़ी में स्पीड गवर्नर लगाने के आदेश तो दे दिए, लेकिन सराकरी अधिकारी गाड़ी में स्पीड गवर्नर लगाने की आड़ में चलने वाली दलाली को नियंत्रित करने के लिए किसी भी प्रकार का नियम तय नहीं कर पा रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारी इस गौरख धंधे को अंजाम देने वाले दलालों पर नकेल डालने में नाकाम हैं। ताज्जूब की बात तो यह है कि इन दलालों द्वारा गाड़ी में स्पीड गर्वनर लगाने से लेकर पासिंग तक की पूरी जिम्मेदारी ले ली जाती है। पासिंग के लिए तय नियमों पर खरी न उतरने के बावजूद भी गाड़ी की पासिंग करवाना इनके बायें हाथ का खेल है। इस धंधे में जुटे डीलर गाड़ी पासिंग व स्पीड गवर्नर लगाने के नाम पर वाहान चालकों की जेब तराश कर मोटी चांदी कूट रहे हैं। डीलर वाहन चालकों से स्पीड गवर्नर के नाम पर रुपए ज्यादा ऐंठते हैं तथा बिल कम राशि का थमा देते हैं। इतना ही नहीं गाड़ी में जो स्पीड गवर्नर लगाया जाता है, वह क्षेत्रिय प्राधिकरण द्वारा मान्य ही नहीं होते हैं। गाड़ी पासिंग के दौराना ऐसा ही एक मामला गत वीरवार को भी प्रशासनिक अधिकारियों के सामने आया था। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी इस मामले पर कार्रवाई करने की बजाए इसे दबाने में जुटे हुए हैं। जिला प्राधिकरण के अधिकारी इस मामले को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला बताकर दलालों पर कार्रवाई से हाथ पीछे खींच रहे हैं।
सफीदों रोड बाईपास स्थित सेक्टर नौ में हर सप्ताह के वीरवार को गाड़ी पासिंग के दौरान खुलेआम दलालों की दुकानें सजती हैं। दलाल वाहन चालक से गाड़ी में स्पीड गवर्नर लगाने से लेकर गाड़ी पासिंग तक का पूरा ठेका ले लेते हैं। ये दलाल पासिंग के लिए वाहन चालक को इतने ज्यादा नियम गिनवा देते हैं कि वाहन चालक इन झंझटों से बचने के लिए बड़ी आसानी से इनके चुंगल में फंस जाता हैं। शिकार के जाल में फंसते ही शुरू होता है इनका लूट-खशौट का खेल। वाहन के मालिक द्वारा पासिंग के लिए हामी भरते ही दलाल बड़ी आसानी से उनकी जेब तराशने का काम शुरू कर देते हैं और पासिंग के लिए आए वाहनों के मालिक जानकारी के अभाव में चुपचाप इनके जाल में उलझते चले जाते हैं। ऐसा ही एक मामला गत वीरवार को भी सामने आया था। मामले के तूल पकड़ने के बाद भी मौके पर मौजूद संबंधित अधिकारियों ने उक्त फर्म के मालिक के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की। इतना ही नहीं मामला उजागर होने के दो दिन बाद भी अधिकारी मामले की जांच करने की बजाए मामले से अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं। अधिकारी इस मामले को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला बताकर मामले को दबाने के प्रयास में जुटे हैं। सूत्रों की माने तो यह सब खेल अधिकारियों की मिलीभगत से ही चल रहा है। इन दलालों के साथ अधिकारियों की सांठ-गांठ पक्की होती है।

क्या था मामला

गत वीरवार को सफीदों रोड बाईपास स्थित सैक्टर नौ में गाड़ी पासिंग के दौरान वाहन मालिकों तथा गाड़ी में स्पीड गवर्नर लगाने वाले दलाल के बीच तू-तड़ाक का एक मामला सामने आया था। आटो की पासिंग के लिए आए झांझ गांव निवासी रोहताश तथा बीबीपुर निवासी अशोक ने बताया था कि उन्होंने आटो की पासिंग के लिए आटो में नवनीत एंटरप्राइजिज फर्म से स्पीड गवर्नर लगवाया था। रोहताश व अशोक ने बताया कि इस फर्म का स्पीड गवर्नर बेचने वाले एक व्यक्ति आटो में स्पीड गवर्नर लगाने के नाम पर 3500 रुपए ऐंठ लिए तथा बिल दो हजार का थमा दिया था। उन्होंने बताया था कि बाजार में इसकी कीमत मात्र 900 रुपए है। इसके अलावा उनकी आटो में जो स्पीड गवर्नर लगाया गया है उसे प्राधिकरण के एमवीआई ने भी अथोराइज्ड नहीं बताया था। जिसके बाद वाहन के मालिकों व उक्त फर्म के दलाल के बीच काफी देर तक खींचतान भी चली थी।

विभाग डीलर के खिलाफ नहीं कर सकता कार्रवाई

इस बारे में जब जिला क्षेत्रीय प्राधिकरण अधिकारी गिरीश अरोड़ा से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में है ही नहीं। इस मामले में वे कुछ नहीं कर सकते। अरोड़ा ने कहा कि विभाग किसी भी डीलर को स्पीड गवर्नर बेचने की इजाजत नहीं देता है और न ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकता है। विभाग का मौके पर मौजूद अधिकारी को केवल इतना ही देखना होता है कि गाड़ी में लगाया गया स्पीड गवर्नर मान्य है या नहीं। अगर स्पीड गर्वनर मान्य नहीं है तो उस गाड़ी की पासिंग नहीं हो सकती।

खतरे में गम्बुजिया, मलेरिया के खिलाफ कैसे बनेगा हथियार


 फिश हैचरी में भरा गंदा पानी।
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले का स्वास्थ्य विभाग मलेरिया से लड़ने के लिए गम्बूजिया को हथियार बनाने की कवायद में लगा हुआ है। अपने इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग बड़े-बडे दावे कर रहा है। लेकिन वास्तविकता कुछ ओर ही बयां कर रही है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण विभाग की यह योजना इस वर्ष आगाज से पहले ही दम तोड़ चुकी है। सामान्य अस्पताल में बनाए गए प्रजनन केंद्र में गम्बूजिया खुद ही बेमौत मर रही हैं। गम्बूजिया का आशियाना बदहाल है और उस पर निरंतर खतरा मंडरा रहा है। गम्बूजिया की रक्षा के लिए फिश हैचरी के ऊपर लगाया गया जाल पूरी तरह से तहस-नहस हो चुका है। इतना ही नहीं तालाब में स्वच्छ पानी भी नहीं है, जो गम्बूजिया के लिए काफी जरूरी होता है। जिसके दम पर सामान्य अस्पताल प्रशासन मलेरिया के खिलाफ अभियान छेड़कर लोगों का जीवन बचाने का दम भर रहा है अभी तक अस्पताल प्रशासन ने उसकी रक्षा के लिए ही कोई कदम नहीं उठाए हैं।
फिश हैचरी के ऊपर से टूटा पड़ा जाल।

मलेरिया के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग का हथियार बनने वाली गम्बुजिया को आज खुद ही अपनी रक्षा की आवश्यकता है। उपायुक्त के आदेशों के बावजूद भी अस्पताल प्रशासन ने गम्बुजिया के प्रजजन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। अस्पताल प्रशासन की उपेक्षा के कारण गम्बूजिया खुद ही गमगीन है। मलेरिया से लड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा गम्बूजिया मछली को तैयार किया गया था। इस योजना को सिरे चढ़ाने के मलेरिया विभाग के सामने फिश हैचरी बनाई गई और इस पर लाखों रुपए बहाए गए। गम्बूजिया को पालने के लिए सामान्य अस्पताल में 2005 में मलेरिया विभाग के सामने एक तालाब बनाया गया था। कौवे, बाज व अन्य पक्षी गम्बूजिया के दुश्मन माने जाते हैं और ये पलक झपकते ही गम्बूजिया का शिकार कर लेते हैं। इन दुश्मनों से गम्बूजिया को बचाने के लिए तालाब के ऊपर जाल लगा पूरे तालाब को इस जाल से कवर कर दिया गया था। कुछ समय तक यहां पर गम्बूजिया ठाठ से रही, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया गम्बूजिया के बुरे दिन शुरू होते गए। गम्बूजिया के सरवाइव करने के लिए सभी जरूरी सभी बुनियादी सुविधाएं दम तोड़ने लगी। गम्बूजिया स्वच्छ पानी को तरस रही है, क्योंकि इसके तालाब का पानी दूषित होकर हरा हो चुका है। तालाब में  गंदगी भी गम्बूजिया के साथ हिलोरे मार रही है। गम्बुजिया को पक्षियों से बचाने के लिए तालाब के ऊपर लगाया गया जाल तहस-नहस हो चुका है। कटे-फटे जाल के महज चंद अंश ही बचे हैं। तालाब की सही कवरिंग नहीं होने से कौवे, बाज व दूसरे पक्षी गम्बूजिया पर जानलेवा हमला कर रहे हैं। इससे तालाब में गम्बूजिया की तादाद सिकुड़ती जा रही है। साफ है कि दूसरों का जीवन बचाने वाली गम्बूजिया इन दिनों स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी की भेट चढ़ रही है। मौत उसके ऊपर तांडव कर रही है और विभाग बेखबर है। यदि अस्पताल प्रशासन ऐसे ही आंखें मूंदे बैठा रहा तो जल्द ही मलेरिया के खात्म के लिए तैयार किए गए गम्बूजिया नामक इस हथियार का नामोनिशान मिट जाएगा।

मलेरिया से कैसे लड़ती है गम्बूजिया

मलेरिया पर लगाम के लिए गम्बूजिया काफी कारगर मानी जाती है। गंबुजियां एवं गप्पी इस प्रकार की मछलियां है जो हर प्रकार के वातावरण के अनुसार ढलकर मच्छर के लारवा को समाप्त करने में सक्षम है। गप्पी किस्म की मछली प्रतिदिन 80 से 100 मच्छर के लारवा को अपना भेजन बना लेती है। गंबुजियां मछली मच्छर के लारवा को खाने में गप्पी मछली से कहीं अधिक सक्षम है। यह मछली प्रतिदिन 300 मच्छर के लारवा को खा सकती है। यह मछलियां पूर्ण रूप से मांसाहांसी होती है। इन मछलियों की खास बात यह है कि जिस प्रकार से मच्छर पानी की ऊपरी सतह पर अपना लारवा देता है। उसी प्रकार यह मछली भी पानी की ऊपरी सतह पर अधिक एवं कम तापमान पर रहकर लरवा को खत्म कर सकती है। जिस प्रकार से मच्छर एक दिन में असंख्य लारवा पैदा करता है, उसी प्रकार ये विशेष मछलियां भी असंख्य प्रजनन करती है जो मच्छर के लारवा के बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते है और उसी हिसाब से मच्छर के लारवा को नियंत्रित करती है।

गम्बूजिया के बचाव के लिए तालाब के ऊपर जाल काफी जरूरी होता है। इसके लिए स्वच्छ पानी की जरुरत नहीं होती। गम्बुजिया गंदे पानी में भी अपना जीवनचक्र चला सकती है। गम्बुजिया के रखरखाव व देखभाल के लिए मलेरिया विभाग के डिप्टी सिविल सर्जन डा. सुरेश चौहान को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

मंगलवार, 1 मई 2012

यहां तो लूटवा रहे 'भगवान'

 चिकित्सक द्वारा लिखी गई बाहर की दवाई दिखाते मरीज।
सरकारी अस्पताल में चिकित्सक लिखते हैं बाहर की दवाइयां
नरेंद्र कुंडू
जींद। शहर का सामान्य अस्पताल पूरी तरह से कमीशनखोरी का अड्डा बन चुका है। अस्पताल में भ्रष्टाचार पूरी तरह से अपनी जड़ें जमा चुका है। सरकारी अस्पताल में लोगों को मुफ्त में बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने के सरकार के सारे दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। शहर के सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों द्वारा खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यहां तो भगवान का दर्जा हासिल करने वाले चिकित्सक ही अपने कमीशन के फेर में गरीबों को दवा माफियाओं के हाथों में लूटवा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के सख्त आदेशों के बवाजूद भी चिकित्सक मरीजों को बाहर की दवा खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। चिकित्सक मरीजों को अस्पताल में उपलब्ध दवाइयां न लिखकर बाहर की महंगी दवाइयां लिख रहे हैं। जिस कारण मरीजों को मजबूरन बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं। सामान्य अस्पताल में खुलेआम दलाली का यह खेल चल रहा हैं और अस्पताल प्रशासन चुपचाप तमाशबीन बना हुआ है। अस्पताल प्रशासन की चुपी व चिकित्सकों की कमीशनखोरी के कारण अस्पताल में गरीबों के आंसू पौंछने वाला कोई नहीं है।
एक तरफ तो सरकार लोगों को मुफ्त में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के दावे कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों के लिए सरकार के ये दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा सभी सरकारी अस्पतालों को हिदायत दी गई है कि उनके यहां काम करने वाले चिकित्सक बाहर की दवाइयां न लिखें और जितना हो सके अस्पताल की सरकारी दवाइयों से ही रोगी का उपचार करें। लेकिन सामान्य अस्पताल में सरेआम स्वास्थ्य विभाग के आदेशों की धज्जियां उडाई जा रही हैं। विभाग के यह आदेश बेमानी साबित हो रहे हैं। बड़ी संख्या में मरीज प्रतिदिन अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन उनको यहां पर सरकारी दवाइयां उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं। मरीजों का कहना है कि सस्ते उपचार के लिए वे सामान्य अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन यहां चिकित्सक महंगी दवाइयां लिख देते हैं। इसके कारण उन्हे आर्थिक समस्या झेलनी पड़ती है। शायद ही कोई ऐसा मरीज होगा, जिसको अस्पताल से सभी सरकारी दवाइयां मिल पाती हों। अस्पताल में इस स्थिति के चलते गरीब लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। खास बात यह है कि सामान्य अस्पताल के डॉक्टर जो दवाइयां बाहर की लिखते हैं, वे दवाइयां केवल अस्पताल के नजदीक खुले मेडिकल स्टोरों पर ही उपलब्ध होती हैं। जबकि शहर के अन्य मेडिकल स्टोरों पर सामान्य अस्पताल के डॉक्टरों की ओर से लिखी दवाइयां नहीं मिलती हैं। इससे साफ जाहिर है कि सामान्य अस्पताल में कमीशन का फंडा जोरों पर चला हुआ है। बुखार के इलाज के लिए अस्पताल आए छान्ने गांव निवासी योगेश, गले के इलाज के लिए आए हाऊसिंग बोर्ड निवासी खुर्शिद, स्कीन के इलाज के लिए आए बराह खुर्द निवासी सुनील, पेट दर्द के इलाज के आए करसिंधू निवासी कृष्ण तथा महिला डाक्टर से जांच करवाने आई जींद निवासी प्रिया ने बताया कि जब चिकित्सक द्वारा लिखी गई दवा लेने के लिए वे खिड़की पर पहुंचे तो खिड़की पर मौजूद कर्मचारी ने एक-दो दवा देने के बाद कहा कि बाकी की दवा बाजार से मिलेंगी। उन्होंने बताया कि चिकित्सक द्वारा बाहर की जो दवा पर्ची पर लिखी गई हैं वह काफी महंगी होती हैं। चिकित्सकों द्वारा बाहर की दवा लिखने के कारण मरीज अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं। अगर कोई मरीज चिकित्सक से उस दवा के बदले कोई सस्ती दवा लिखने की गुहार लगाए तो चिकित्सक मरीज को यह कह कर टाल देता है कि दूसरी दवा के बदले यही दवा ज्यादा जल्दी असर करेगी, क्योंकि महंगी दवा में चिकित्सक को कमीशन जो ज्यादा मिलता है। अस्पताल में चल रहे इस कमीशनखोरी के खेल को अस्पताल प्रशासन भी चुपचाप देख रहा है।   

शिकायत मिलने पर की जाएगी कार्रवाई

स्वास्थ्य विभाग के सख्त आदेश हैं कि कोई भी डॉक्टर सामान्य अस्पताल के दवा केंद्र में मौजूद दवाइयों के अलावा बाहर की दवाई नहीं लिख सकता है। अगर कोई डॉक्टर इस तरह का कार्य करता है या उनके पास कोई मरीज लिखित में शिकायत देता है तो उस चिकित्सक के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

रंग लाने लगी हाइटेक पंचायत की ऊर्जा संरक्षण मुहिम

ऊर्जा संरक्षण मुहिम से पंचातय को हर वर्ष होगी तीन लाख यूनिट बिजली की बचत

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हाइटेक पंचायत बीबीपुर द्वारा शुरू की गई ऊर्जा संरक्षण की मुहिम रंग लाई है। पंचायत द्वारा गांव में ऊर्जा संरक्षण के लिए एक विशेष मुहिम शुरू की गई है। इस मुहिम को सफल बनाने के लिए पंचायत ने गांव में 2700 सीएफएल ट्यूब लाइट लगवाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। पंचायत ने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए गांव में शुरू की गई ऊर्जा संरक्षण मुहिम के तहत 100 वॉट के 1713 बल्बों को हटवाकर उनके स्थान पर 20 वॉट की 1713 सीएफएल ट्यूब लगवा दी हैं। गांव में 100 वॉट के बल्बों की जगह 20 वॉट की 1713 सीएफएल लगने के बाद गांव में हर माह लगभग 25 हजार यूनिट बिजली की खपत में कमी आई है। इस प्रकार पंचायत द्वारा एक वर्ष में लगभग तीन लाख यूनिट बिजली की बचत की जाएगी। जिससे पंचायत को हर वर्ष लगभग नौ लाख रुपए की बचत होगी। जिस कारण पंचायत हाईटेक पंचायत का दर्जा हासिल करने के बाद ऊर्जा संरक्षण के मामले में भी देश में अपनी अलग पहचान बना लेगी।
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचातय द्वारा शुरू की गई ऊर्जा संरक्षण मुहिम रंग लाने लगी है। पंचातय द्वारा शुरू की गई ऊर्जा संरक्षण मुहिम से जहां बिजली निगम को हर वर्ष लाखों यूनिट बिजली की बचत होगी, वहीं बिल में कमी होने के कारण ग्रामीणों को भी लाखों रुपए की बचत होगी। पंचायत ने ऊर्जा संरक्षण अभियान के तहत गांव में 2700 सीएफएल ट्यूब लगवाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। अपनी इस मुहिम को सफल बनाने के लिए पंचायत ने गांव में सर्वे के लिए चार टीमें तैयार की हैं। लगभग 70 विद्यार्थियों को गांव में सर्वे का कार्यभार सौंपा गया है। सर्वे टीम के सदस्य ग्रामीणों को ऊर्जा संरक्षण के लिए जागरुक कर रहे हैं। यह सर्वे टीम की मेहनत का ही परिणाम है कि टीम ने गांव में 100 वॉट के 1713 बल्बों को हटवाकर उनके स्थान पर 20 वॉट की सीएफएल ट्यूब लाइट लगवा दी हैं। 1713 सीएफएल लगने के बाद गांव में हर माह लगभग 25 हजार यूनिट बिजली की खपत में कमी आएगी। इस प्रकार गांव में एक वर्ष में लगभग तीन लाख बिजली यूनिट की खपत में कमी आएगी। जिससे पंचायत को लगभग हर वर्ष 9 लाख रुपए की बचत होगी। 

ऊर्जा संरक्षण के लिए पंचायत द्वारा उठाए गए कदम

1.    स्वच्छता अभियान में सहयोग देने वाले 31 प्रतिभागियों को पंचायत की तरफ से 25 हजार रुपए के ईनाम के रूप में सौलर लालटेन वितरित की गई हैं।
2.    15 अगस्त व 26 जनवरी को सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा परीक्षा में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले बच्चों को सौलर लालटेन वितरित की गई हैं।
3.    ऊर्जा संरक्षण विषय पर गांव में दो बार संगोष्ठी का आयोजन किया जा चुका है, जिसमें पहले तीन स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी सौलर लालटेन ईनाम के रूप में दी गई हैं।
4.    ग्रामीणों में जागरुकता फैलाने के लिए गांव में अक्षय ऊर्जा विभाग की तरफ से प्रदर्शनी का आयोजन करवाया गया है।
5.    गांव में 6-7 गोबर गैस प्लांट लगाने की योजना तैयार की जा रही है।
6.    गांव के स्कूल में रेन कंजर्वेशन एंड हायर्वेस्टींग सिस्टम लगाया गया है।
7.    फेसबुक पर सौलर उपकरणों से संबंधित व ऊर्जा संरक्षण से जुड़ी बातों को शेयर किया जाता है।
8.    गांव में पीआरआई स्कीम के तहत साढ़े तीन लाख रुपए की राशि से सीएफएल ट्यूब लाइट खरीद कर दी गई हैं।
9.    गांव के जो बच्चे ऊर्जा संरक्षण में सहयोग कर रहे हैं, उन बच्चों के नाम गांव की चौपाल में ‘गांव के सितारे’ के रूप में लिखे जाते हैं।
10.    गांव में ऊर्जा संरक्षण की जागरुकता फैलने से पहले व बाद में हुई बिजली की खपत की फीडर से रिपोर्ट मांगी गई है।

ऊर्जा संरक्षण संरक्षण जरुरी 

दिन-प्रतिदिन ऊर्जा की बढ़ती खपत के कारण ऊर्जा के हमारे प्राकृतिक स्त्रोतो सिकुड रहे हैं। जिस कारण भविष्य में हमारे सामने ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है। ऊर्जा की खपत को देखते हुए ऊर्जा संरक्षण आज हमारे लिए बहुत जरुरी हो गया है। ऊर्जा संरक्षण को हमें अपनी आदत में शामिल करना चाहिए। ताकि भविष्य में हमारे सामने ऊर्जा संकट पैदा न हो सके। हमें ऊर्जा की बचत करने के लिए ज्यादा से ज्यादा सौलर उपकरणों तथा घरों में बल्बों के स्थान पर सीएफएल ट्यूब लाइट का प्रयोग करना चाहिए। ताकि अधिक से अधिक ऊर्जा की बचत की जा सके।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

आईसीपीएस से मिलेगा अनाथों को 'माँ-बाप' का प्यार

नरेंद्र कुंडू
जींद।
इंटीग्रेटीड चाइल्ड प्रोटैक्शन सोसायटी प्रदेश में अनाथ बच्चों का सहारा बनेगी। महिला एवं बाल विकास विभाग ने योजना को मूर्त रूप देने के लिए इंटीग्रेटीड चाइल्ड प्रोटैक्शन सोसायटी (आईसीपीएस) का गठन किया है। आईसीपीएस के सदस्य जिला स्तर पर सर्वे करेंगे तथा अनाथ व लावारिस बच्चों की पहचान कर उन्हें आश्रय देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य करेगें। आईसीपीएस अनाथ बच्चों की पहचान कर उनके लिए शिक्षा व सिर पर छत की व्यवस्था भी करेगी। विभाग द्वारा इस तरह के बच्चों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए इनको हर माह मिल रहे भत्ते में भी बढ़ोत्तरी करने के लिए विचार किया जा रहा है। अगर उच्च अधिकारियों की तरफ से भत्ते में बढ़ोत्तरी की मांग को हरी झंडी मिल गई तो इनका मासिक भत्ता 500 से बढ़कर 1500 रुपए प्रति माह भत्ता हो जाएगा। इसके अलावा आईसीपीएस के सदस्य बाल श्रम करवाने वालों पर भी पैनी नजर रखेंगे। इसके लिए विभाग ने एक हैल्पलाइन भी शुरू की है।
बेसहारा, अनाथ बच्चों को सहारा देने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक खास कवायद शुरू की है। बेसहारा बच्चों को सहारा देने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आईसीपीएस का गठन किया गया है। निराश्रित, अनाथ बच्चे, जिनके माता-पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी हो या उनको न्यायिक आदेशों के तहत मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा हो चुकी हो अथवा बच्चे के माता-पिता की मृत्यु के बाद बच्चे किसी रिश्तेदार के पास पल रहे हों तथा रिश्तेदार उनके अच्छा व्यवहार नहीं करता है, तो उनको इंटीग्रेटीड चाइल्ड प्रोटैक्शन सोसायटी सहारा देगी। आईसीपीएस अनाथ बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था तथा रहने के लिए छत का इंतजाम करेगी। ताकि बच्चे को पढ़ा-लिखा कर आत्म निर्भर बनाया जा सके। इसके अलावा आईसीपएस बाल श्रम को रोकने के लिए भी विशेष मुहिम चलाएगी। सोसायटी बाल मजदूरी करवाने वालों पर भी पैनी नजर रखेगी। इसके लिए सोसायटी ने शहर का सर्वे करवा कर दुकानों व ढाबों पर काम कर रहे बाल मजदूरों की रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेज दी है। जिला स्तर पर प्रोटैक्शन आफिसर व जिला चाइल्ड प्रोटैक्शन आफिसर की देखरेख में सोसायटी काम कर रही है। योजना को सफल बनाने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक टीम का गठन किया है। इस टीम के सदस्य ब्लॉक अनुसार गांवों का दौरा कर बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक कर रहे हैं तथा अनाथ व लावारिश बच्चों की पहचान कर उनके लिए शिक्षा व रहने की व्यवस्था भी कर रहे हैं। इसके लिए  सदस्यों को इसके लिए बाकायदा विशेष ट्रेनिंग भी दी गई है। बेसहार व अनाथ बच्चों की सूचना देने के लिए सोसायटी द्वारा 1098 नंबर पर चाइल्ड हैल्प लाइन भी  शुरू की गई है। हैल्प लाइन के माध्यम से भी अनाथ व बेसहारा बच्चों की सूचना सोसायटी को दी जा सकती है। विभाग द्वारा इस तरह के बच्चों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए इनको हर माह मिल रहे भत्ते में भी  बढ़ोत्तरी करने के लिए विचार किया जा रहा है। अगर उच्च अधिकारियों की तरफ से भत्ते में बढ़ोत्तरी की मांग को हरी झंडी मिल गई तो इनका मासिक भत्ता 500 से बढ़कर 1500 रुपए प्रति माह भत्ता हो जाएगा। इसके अलावा आईसीपीएस के सदस्य बाल श्रम करवाने वालों पर भी पैनी नजर रखेंगे।
 क्या कहती हैं अधिकारी
आईसीपीएस के सदस्य बच्चों को संरक्षण देकर उन्हें अत्याचारों से मुक्त करवाएंगे। बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने के लिए सोसायटी द्वारा गांवों में जाकर सेमिनारों का आयोजन भी किया जा रहा। इसके लिए सोसायटी के सभी सदस्यों को विशेष ट्रेनिंग दी गई है, ताकि विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना का लाभ अधिक से अधिक बच्चों को मिल सके। सोसायटी के सदस्यों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारी भी सेमिनारों में भाग लेकर बच्चों को प्रेरित करेंगे। इस तरह के बच्चों को मिलने वाले मासिक भत्ते में भीबढ़ोतरी का विचार किया जा रहा है।
सरोज वर्मा
जिला चाइल्ड प्रोटैक्शन आफिसर 


गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

एससी वर्ग की छात्राओं को मिलेगी छात्रावास की सौगात

जींद जिले में होगा 15 छात्रावास का निर्माण

नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश की एससी वर्ग की छात्राओं के लिए एक अच्छी खबर है। एससी वर्ग की छात्राओं को अब जल्द ही छात्रावास की सौगात मिलने जा रही है। इसके लिए प्रदेश के 19 जिलों के एससी बहुल क्षेत्र में जल्द ही महिला छात्रावास बनाए जाएंगे। छात्रावास के निर्माण से पहले हर खंड में पांच से दस ऐसे गांवों का चयन किया जाएगा, जिसमें अनुसूचित जाति की जनसंख्या कम से कम 40 प्रतिशत हो। ये सभी भवन बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजना के तहत बनाए जाएंगे। प्रत्येक छात्रावास में माध्यमिक व उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर रही सौ छात्राओं को दाखिला दिया जाएगा। छात्रावास के निर्माण के लिए कम से कम दो एकड़ जमीन होनी अनिवार्य है। इस योजना के तहत जींद जिले में 15 छात्रावासों का निर्माण किया जाएगा। योजना को अमल में लाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान ने प्रारंभिक स्तर पर जमीन तलाशने का कार्य शुरू कर दिया गया है।
एससी वर्ग की छात्राएं अब जल्द ही छात्रावास की सुविधा का लाभ ले सकेंगी। हरियाणा प्राथमिक शिक्षा परियोजना परिषद ने बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजना के तहत प्रदेश के 19 जिलों का चयन किया है। परिषद द्वारा चयनित पंचकुला, अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, पानीपत, सोनीपत, जींद, फतेहाबाद, सिरसा, हिसार, भिवानी, रोहतक, झज्जर, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुड़गांव व फरीदाबाद जिलों के एससी बहुल खंडों के गांवों में छात्रावास खोले जाएंगे। विभाग ने 40 प्रतिशत से अधिक एसएसी बहुल क्षेत्रों की सूची भेजी है। सर्वशिक्षा अभियान के जिला परियोजना समन्वयक को भेजे गए पत्र क्रमांक 39906 के अनुसार छात्रावास के लिए चयनित की जाने वाली जमीन शिक्षा विभाग या ग्राम पंचायत की होनी चाहिए तथा इस जमीन पर छात्रावास के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत की सहमति होनी अनिवार्य है। छात्रावास के निर्माण से पहले हर खंड में पांच से दस ऐसे गांवों का चयन किया जाएगा, जिनमें अनुसूचित जाति की जनसंख्या कम से कम 40 प्रतिशत हो। प्रत्येक छात्रावास में सौ माध्यमिक व उच्चत्तर शिक्षा प्राप्त कर रही सौ छात्राओं को दाखिला दिया जाएगा। विभाग की तरफ  से प्रत्येक छात्राओं को चारपाई, टेबल व कुर्सी खरीदने के लिए 2400 रुपए की सहायता राशि भी दी जाएगी। एसएसए की इस योजना के तहत जींद जिले में 15 महिला छात्रावासों का निर्माण किया जाना है। योजना को अमल में लाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान ने प्रारंभिक स्तर पर जमीन तलाशने का कार्य शुरू कर दिया है। जमीन पर सहमती बनने के बाद विभाग छात्रावास के निर्माण के लिए बजट तैयार कर एसएसए को भेज देगा।
जारी है जमीन तलाशने का कार्य
बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजना के तहत जींद जिले में 15 महिला छात्रावास का निर्माण किया जाएगा। छात्रावास के निर्माण के लिए जमीन तलाशने का कार्य किया जा रहा है। जमीन की तलाश पूरी होने के बाद विभाग को प्रपोजल भेजा जाएगा। ताकि जिले में जल्द से जल्द छात्रावास का निर्माण किया जा सके।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना समन्वयक
एसएसए, जींद

उन गांवों का नाम जहां छात्रावास का निर्माण किया जाएगा।
गांव का नाम              संख्या प्रतिशत में
  1. दातासिंगवाला                        40.92
  2.  किमाखेड़ी                          40.25
  3.  जींद ग्रामीण                        41.09
  4.  बिघाना                           41.33
  5.  राजगढ़ ढोबी                       42.27
  6.  जुलाना ग्रामीण                     44.63
  7.  बहादुरपुर                         45.09        
  8. कटवाल                           46.39
  9.  डिंडढोली                         47.83
  10.  गोबिंदपुरा                         47.63
  11. छपार                              46.60
  12.  मांडी खुर्द                         49.91
  13.  खेड़ी तलोड़ा                       52.43
  14.  सूरजाखेड़ा                        53.64
  15.  खातला                          76.27


‘फार्मर टू फार्मर’ योजना बनेगी किसानों का सहारा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
घटती कृषि जोत व बढ़ती लागत के कारण घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से किसानों को उबारने के लिए कृषि विभाग ने कमर कस ली है। किसानों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए कृषि विभाग ने ‘फार्मर टू फार्मर’ योजना तैयार की है। इस योजना के तहत कृषि विभाग अब किसानों को तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करेगा। इसके लिए विभाग ने टीमों का गठन कर जिले में सर्वे करवाया है। सर्वे के अनुसार प्रगतिशील व पिछड़े किसानों के बीच के अंतर के जो आंकड़ें निकल कर सामने आएंगे विभाग उस अंतर को मिटाने के लिए पिछड़े किसानों को प्रेरित करेगा। इसके लिए विभाग ‘फार्मर टू फार्मर’ योजना पर काम करेगा। इस योजना के तहत विभाग द्वारा प्रगतिशील किसानों के खेतों पर कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यशाला में प्रगतिशील किसान पिछड़े किसानों को तकनीकी खेती के टिप्स देंगे। इस योजना के माध्यम से विभाग प्रगतिशील व पिछड़े किसानों के बीच बनी इस खाई को पाटने का काम करेगा। इसके लिए विभाग ने जिले के पिछड़े किसानों की सूची भी तैयार कर ली है। 
आज कृषि जोत घटने व खेती पर लागत अधिक बढ़ने के कारण खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। इसके पीछे किसानों में तकनीकी खेती के प्रति जागरुकता न होना भी एक मुख्य कारण है। अब किसानों को जागरुक करने के लिए कृषि विभाग ने ‘फार्मर टू फार्मर’ योजना तैयार की है। इस योजना के तहत कृषि विभाग पिछड़े किसानों को तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करने के लिए प्रगतिशील किसानों से मिलवाएगा। इसके लिए प्रगतिशील किसानों के खेत पर समय-समय पर किसान गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा। इस गोष्ठियों के माध्यम से प्रगतिशील किसान पिछड़ने किसानों को तकनीकी खेती के गुर सीखाएंगे। खेती की बिजाई से लेकर कटाई तक अपनाई जाने वाली विधियों के बारे में किसानों को बारिकी से जानकारी देंगे। योजना को मूर्त रूप देने के लिए कृषि विभाग ने योजना पर अमल शुरू कर दिया है। इसके लिए विभाग ने जिले में सर्वे करवाया है। विभाग द्वारा सर्वे के लिए गठित की गई टीमों ने सफीदों ब्लॉक में रत्ताखेड़ा, जींद में गुलकनी व नरवाना में कोयल गांव में सर्वे किया गया है। सर्वे के दौरान विभाग की टीम ने गांव की औसत पैदावार, गांव के सबसे टॉप के किसानों व सबसे पिछड़े किसानों की पहचान कर उनके द्वारा खेती में प्रयोग की जाने वाली खाद व बीज तथा खेती करने के तरीके के बारे में जानकारी जुटाई है। अब विभाग प्रगतिशील किसानों व पिछड़े किसानों के बीच की खाई को पाटने के लिए प्रगतिशील किसानों का सहारा लेगा। प्रगतिशील किसान पिछड़े किसानों को तकनीकी खेती के टिप्स देंगे। ताकि अन्य किसान भी नई तकनीकों को अपना कर आर्थिक रूप से सुदृढ़ बन सकें तथा खेती को व्यवसाय के रूप में अपना कर अधिक से अधिक मुनाफा ले सकें। गेहूं कटाई के बाद फसल की बुआई का सीजन शुरू होते ही विभाग योजना पर अमल करेगा।
किसानों को तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से उठाया कदम
किसानों में जागरुकता लाने तथा तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करते के उद्देश्य से कृषि विभाग ने यह कदम उठाया है। विभाग ने इसके लिए सर्वे टीम का गठन कर जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में सर्वे करवाया है। सर्वे टीम ने डोर टू डोर सर्वे कर गांव की औसतन पैदावार निकाल कर गांव के सबसे अच्छे प्रगतिशील किसानों तथा पिछड़े किसानों की पहचान कर उनके खेती करने के तरीके की जानकारी जुटाई है। खेती की बुआई का सीजन शुरू होते ही टीम सेमिनारों का आयोजन कर किसानों को जागरुक करने का काम करेगी।
डा. रामप्रताप सिहाग
उप कृषि निदेशक, जींद


पेयजल आपूर्ति के नाम पर अधिकारी बुझा गए ‘प्यास’

जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा दी गई सूचना।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जनस्वास्थ्य विभाग द्वारा पानी की सप्लाई के लिए अहिरका गांव में बिछाई गई पाइप लाइन में हुआ फर्जीवाड़ा सामने आया है। जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा अहिरका गांव में बिछाई गई पाइप लाइन पिछले दो सालों से कागजों में ही चल रही है। लेकिन इस पाइप लाइन से आज तक गांव में पानी की सप्लाई शुरू नहीं हो सकी है। विभाग ने पाइप लाइन बिछाने पर लाखों रुपए का बजट भी खर्च कर दिया है। लेकिन लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद भी ग्रामीणों को इसका लाभ नहीं मिला है। मामले का खुलासा अहिरका गांव के एक व्यक्ति द्वारा जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना में हुआ। विभाग द्वारा व्यक्ति को दी गई सूचना में स्पष्ट लिखा हुआ है कि इस पाइप लाइन के जरिए गांव में 2010 से पानी की सप्लाई चालू है। लेकिन वास्तविकता कुछ ओर ही है। ग्रामीणों की प्यास बुझाने के नाम पर मंजूर हुई ग्रांट में गड़बड़झाला कर विभाग के अधिकारियों ने अपनी प्यास बुझाई है। योजना में हुए इस भ्रष्टाचार के कारण ग्रामीणों के सामने पेयजल संकट गहरा गया है।
सरकारी योजनाओं में फर्जीवाड़ा रह-रहकर सामने आ रहा है। यहां फर्जीवाड़े के रिकार्ड दर रिकार्ड टूट रहे हैं। अब यहां जन स्वास्थ्य विभाग में पेयजल संकट को मिटाने के लिए बिछाई गई पाइप लाइन में हुआ फर्जीवाड़ा सामने आया है। अहिरका गांव में दो साल पहले पानी की सप्लाई के लिए नई पाइप लाइन बिछाने का ठेका दिया गया था। ठेकेदार ने गांव में पाइप लाइन तो बिछा दी, लेकिन आज तक भी इस पाइप लाइन से गांव में पानी की सप्लाई शुरू नहीं हो सकी है। जबकि विभाग के रिकार्ड में पिछले दो साल से इस पाइप लाइन से ही गांव में पानी की सप्लाई की जा रही है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इस पाइप लाइन से पानी की सप्लाई तो दूर की बात आज तक ग्रामीणों के कैनेक्शन भी इससे नहीं जोड़े गए हैं। मामले का खुलास उस समय हुआ जब गांव के ही राजेश भोला नामक एक व्यक्ति ने जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत विभाग से इसकी जानकारी मांगी। विभाग के अधिकारियों ने मामले को गंभीरता से न लेते हुए राजेश को गोलमोल सा जवाब दे दिया। विभाग के अधिकारियों के जवाब से संतुष्ट न होने पर राजेश ने 20 जुलाई 2011 को विभाग के अधीक्षक अभियंता से दोबारा से इसकी सूचना मांगी। अधीक्षक अभियंता ने राजेश को पत्र क्रमांक 17963 के माध्यम से 5 अगस्त 2011 को जो जवाब दिया उसे देखकर राजेश दंग रह गया। अधीक्षक अभियंता द्वारा दी गई जानकारी में स्पष्ट लिखा था कि विभाग द्वारा अहिरका गांव में पानी की सप्लाई के लिए पाइप लाइन बिछाने का कार्य ठेकेदार को दिया गया था और इस पर 17 लाख 35 हजार रुपए का खर्च आया था। इस पाइप लाइन को विभाग द्वारा 3 अप्रैल 2010 को शुरू करना था। अधीक्षक अभियंता द्वारा दी गई इस जानकारी के बाद पाइप लाइन बिछाने के कार्य में हुआ फर्जीवाड़ा सामने आया। ग्रामीण राजेश ने बताया कि पाइप लाइन से पानी की सप्लाई तो दूर आज तक इस पाइप लाइन से ग्रामीणों के कैनेक्शन भी नहीं जोड़े गए हैं। गांव में पानी की सप्लाई शुरू न होने के कारण ग्रामीणों के समाने पेयजल संकट गहरा गया है। विभाग द्वारा लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद भी ग्रामीणों की प्यास नहीं बुझा सका है।
टंकियां तो मिली, लेकिन पानी नहीं
सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों के लिए शुरू की गई मुफ्त टंकी योजना के तहत दो साल पहले बीपीएल परिवारों को पानी की टंकियां दी गई थी। गांव में बिछाई गई पाइप लाइन से इन परिवारों को पानी का कैनेक्शन दिया जाना था। लेकिन पाइप लाइन बिछाने के कार्य में हुए फर्जीवाड़े के कारण आज तक बीपीएल परिवारों को पानी का कैनेक्शन नहीं मिला है। विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण इन परिवारों के लिए सरकार की मुफ्त टंकी योजना लाभदाय सिद्ध नहीं हो सकी। सरकार की योजना के तहत इन्हें टंकियां तो मिल गई, लेकिन पानी आज तक नहीं मिल सका है।
ठेकेदार से की जाएगी जवाब-तलबी
गांव में पाइप लाइन बिछाने का कार्य ठेकेदार को सौंपा गया था। वि•ााग ने रिकार्ड के अनुसार ही जानकारी उपलब्ध करवाई है। इस संबंध में ठेकेदार को बुलाकर जवाब-तलब किया जाएगा। अगर इस दौरान इस तरह का कोई मामला सामने आया तो ग्रामीणों की समस्या का जल्द से जल्द समाधान किया जाएगा।
डीपी मित्तल, एक्सईएन
जन स्वास्थ्य विभाग, जींद


कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों के भविष्य पर लटकी तलवार

117 रुपए प्रतिदिन मेहनताने से कर रहे हैं गुजारा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार एक तरफ तो सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा लागू कर शिक्षा स्तर को ऊंचा उठाने तथा बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने के दावे कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने वाले अध्यापकों तथा लैब सहायकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकारी स्कूलों में आऊटर्सोसिंग कंपनी द्वारा सरेआम श्रम कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं तथा कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों का शोषण किया जा रहा है। कंपनी कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों के साथ नियुक्ती के समय किए गए 5 साल के अनुबंध को बीच में ही तोड़ कर उसमें फेर बदल कर इनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। कंपनी के तानाशाही रवैये के कारण कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक असमंजस में हैं। कंपनी द्वारा उठाए गए इस कदम से प्रदेश भर के लगभग 6 हजार कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायकों के भविष्य पर तलवार लटक रही है। हरियाणा कम्प्यूटर अध्यापक संघ व लैब सहायक संघ अब अपने रोजगार को बचाने के लिए आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहा है।
प्रदेश सरकार ने सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2009 में पांच साल के अनुबंध पर कम्प्यूटर शिक्षक व लैब सहायकों की भर्ती के लिए एचसीएल कंपनी  से कॉन्ट्रेक्ट दिया था। एचसीएल कंपनी ने यह कॉन्ट्रेक्ट एनआईसीटी कंपनी को दे दिया। एनआईसीटी कंपनी  ने आऊटर्सोसिंग नीति के प्रदेश भर में लगभग 6 हजार कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायकों की भर्त्ती की थी। कंपनी ने ज्वार्इंनिग के समय अध्यापकों के साथ 5 साल का अनुबंध किया था। एनआईसीटी कंपनी ने कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों को प्रतिदिन 117 रुपए मेहनताना देने का अनुबंध किया था। लेकिन अब कंपनी  ने इस कॉन्ट्रेक्ट को रद्द कर नए सिरे से कॉन्ट्रेक्ट तैयार किया है। कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों ने कंपनी पर आरोप लगाया है कि कंपनी उनसे जिस नए कॉन्ट्रेक्ट पर साईन करवा रही है उसमें काफी खामिया हैं। नए कॉन्ट्रेक्ट पर कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक के पद पर नियुक्ती का जिक्र करने की बजाए स्वयं सेवक के तौर पर नियुक्ती का जिक्र किया गया है। उन्होंने कहा कि कंपनी उनकी नियुक्ती कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक के स्थान पर स्वयं सेवक के रूप में दिखाना चाहती है। अगर वे कंपनी द्वारा तैयार किए गए नए कॉन्ट्रेक्ट पर साईन करते हैं तो वे भविष्य में अपने हक के लिए आवाज नहीं उठा सकेंगे। कंपनी ने जानबुझ कर उनका शोषण करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया है। उन्होंने आरोप लगाए के कंपनी के अधिकारी पुराने अध्यापकों व लैब सहायकों को हटाकर उनकी जगह पैसे लेकर चोर दरवाजे से नई भर्ती कर रही है। कम्प्यूटर अध्यापकों का कहना है कि उनसे स्कूल में बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा देने के अलावा अध्यापकों की ई-सैलरी व एससी, बीसी के बच्चों के खाते तैयार करने का कार्य भी लिया जाता है। कंपनी मात्र 117 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मेहनताना देकर उनका शोषण कर रही है। कंपनी के तानाशाही रवैये के चलते ही हरियाणा अध्यापक संघ व लैब सहायक संघ आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहा है।
मात्र 117 रुपए से गुजारा चलाना मुश्किल
मात्र 117 रुपए प्रतिदिन के मेहनताने से आज की महंगाई में गुजारा होना मुश्किल है। इसलिए वे अपने मेहनताने में वृद्धि करवाने के लिए कंपनी से मांग कर रहे थे। इसके लिए वे सभी प्रशासनिक अधिकारियों व सरकारी नुमाइंदों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उन्हें कहीं से भी न्याय की उम्मीद नजर नहीं आ रही है। अब कंपनी ने उनकी आवाज को दबाने के उद्देश्य से नया कॉन्ट्रेक्ट तैयार किया है। उनसे जबरदस्ती नए कॉन्ट्रेक्ट पर हस्ताक्षर करए जा रहे हैं। कंपनी उनकी नियुक्ती कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक के पद की बजाए स्वयं सेवक के पद पर दिखाना चाहित है, ताकि वे भविष्य में अपने हक के लिए आवाज न उठा सकें। कंपनी पुराने कर्मचारियों को हटा कर पैसे लेकर चोर दरवाजे से नई भर्ती कर रही है।
देवेंद्र सिंह, जिला प्रधान
हरियाणा कम्प्यूटर अध्यापक
संघ, जींद
सरकार हर साल मांगती है नया एग्रीमेंट
कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों के साथ जो कॉन्ट्रेक्ट किया गया है, वह 5 साल के लिए ही है। सरकार हर साल नया एग्रीमेंट मांगती है। इसलिए सभी कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों से नए एग्रीमेंट पर साईन करवाए जा रहे हैं। कंपनी ने जो कॉन्ट्रेक्ट पहले तैयार किया था, वही कॉन्ट्रेक्ट इस बार भी है। पैसे लेकर चोर दरवाजे से भर्ती के इलजाम बेबुनिया हैं।
अशोक शर्मा, जिला कोर्डिनेटर
एनआईसीटी, जींद


निजी स्कूल लूट रहे खून-पसीने की कमाई

नरेंद्र कुंडू
जींद।
शहर के निजी स्कूलों की कमीशनखोरी ने अभिभावकों की जेबें खाली कर दी हैं। नया शैक्षिक सत्र शुरू होते ही निजी स्कूल संचालकों ने अपनी जेबें भरनी शुरू कर दी हैं। जहां पहले दाखिले के नाम पर अभिभावकों से मोटी फीस वसूली जा रही है, वहीं इन निजी स्कूलों ने वर्दी से लेकर किताबों तक कमीशन निर्धारित किया हुआ है। निजी स्कूलों में किताबों की चिट बनाकर अभिभावकों के हाथों में थमा दी जाती है। निजी स्कूल संचालकों द्वारा दी गई चिट में बकायदा बुक डिपो का नाम व पूरा पता लिखा होता है। इन बुक डिपो संचालकों के साथ निजी स्कूल संचालकों का कमीशन निर्धारित होता है। किताब-कापियों के लिए फिक्स दुकानों एवं मनमानी कीमत ने मजबूर अभिभावकों की खून पसीने की कमाई लूट ली है। प्रकाशक से लेकर दुकानदार तक सब सेट हैं और असहाय अभिभावकों बच्चों के भविष्य की चिंता में खामोश हैं। शासन, प्रशासन को निजी स्कूलों के इस लूटतंत्र पर कार्रवाई करने की फुरसत नहीं है। प्रशासन की लापरवाही के चलते निजी स्कूल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
हर साल नए शैक्षिक सत्र के दौरान किताबों व ड्रेस के नाम पर निजी स्कूल अभिभावकों की जेबें ढीली कर मोटा मुनाफा वसूलते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। शैक्षिक सत्र में सबसे ज्यादा लूट किताबों को लेकर मचती है। इन दिनों शहर के कुछ  दुकानों एवं स्कूलों में बाजार से कई गुनी कीमत पर किताबें, कापियां एवं ड्रेस बेचे जा रहे हैं। इस पूरे कारोबार में एक संगठित गिरोह काम कर रहा है। पूरा खेल नए शिक्षा सत्र के साथ ही फिर से शुरू हो गया है। इसमें स्कूल प्रबंधन से लेकर प्रकाशक और दुकानदार जुड़े हैं। ये शिक्षा के नाम पर अभिभावकों को लूट रहे हैं और मुनाफे का बंटवारा आपस में कर रहे हैं। किताबों से हर साल स्कूल से लेकर पुस्तक विक्रेता तक लाखों रुपए कमाते हैं। सत्र शुरू होने से पहले ही विक्रेता बिचौलियों की भूमिका में आ जाते हैं। प्रकाशकों को लेकर स्कूलों तक विक्रेता स्वयं पहुंचते हैं। उसके बाद स्कूल वाले उसी प्रकाशक की किताबें स्कूलों में लगाते हैं फिर शुरू हो जाता है अभिभावकों की जेब तराशी का दौर। एनसीईआरटी की ओर से जो किताबें पैटर्न में दी जाती है उसके साथ ही जरुरी न होते हुए भी हेल्पिंग बुक लगा दी जाती हैं। अंग्रेजी की किताब के साथ हैंड राइटिंग सुधारने, ग्रामर की किताब दी जाती है। छोटी-छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चे एक ही किताब नहीं पढ़ पाते हैं, तो दूसरी किताबें केवल बोझ बढ़ाने के लिए होती हैं। निजी स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों को किताबों के लिए खास दुकान बताई जाती है। अभिभावकों को स्कूल द्वारा किताबों की जो लिस्ट दी जाती है उस लिस्ट पर बुक डिपो का नाम व पूरा पता होता है। इस दुकान के अलावा वे पुस्तकें किसी अन्य दुकान पर नहीं मिलती। अभिभावकों बेचारे क्या करें बच्चों की पढ़ाई का सवाल है, वहीं से किताबें खरीदनी पड़ती हैं। हर अभिभावकों अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देना चाहता है। ऐसे में वे सरकारी स्कूलों से पहले निजी स्कूलों को तरजीह देते हैं। इन सब के बीच निजी स्कूलों ने अपनी दुकानदारी चला रखी हैं। अभिभावकों से किस तरह से अधिक से अधिक पैसे लिए जा सकते हैं, सत्र शुरू होने के साथ ही इसके उपाय ढूंढ निकालते है। मिशनरी एवं अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल इसमें कुछ ज्यादा ही आगे हैं। ये स्कूल प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीके से अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं कि वे संबंधित दुकान से ही किताब खरीदें। लेकिन जिला प्रशासन इस ओर से आंखें बंद किए बैठा है और निजी स्कूल संचालकों द्वारा खुलेआम शिक्षा अधिकार कानून की धज्जियां उडाई जा रही हैं।

कैसे चलता है कमीशन का धंधा

प्रकाशन से जुड़े जानकारों का कहना है कि इस कारोबार में भारी मुनाफा होता है। पुस्तकों पर 15 से 80 प्रतिशत तक मुनाफा होता है। प्रकाशक से वितरक व वितरक से थोक व्यवसायी तक मुनाफा एमआरपी के दो से दस प्रतिशत तक होता है। पुस्तक विक्रेता विद्यालय प्रबंधन के समक्ष मुनाफे में एक तय हिस्सा देने का आफर करता है। इसके अलावा प्रकाशक भी अलग सुविधा देते हैं। यह सुविधा किताबों की स्वीकृति मिलने पर दी जाती है।

हर साल बदल जाती हैं किताब

विद्यालय प्रबंधनों से बातचीत करने पर यह बात भी सामने भी आई कि हर साल किताब बदल जाती है। इसके पीछे कारण होता है प्रकाशक द्वारा अतिरिक्त कमीशन प्रबंधन को दिया जाना। हालांकि कई स्कूल तर्क देते हैं कि एडीशन बदलने से किताब बदलना मजबूरी है।
शिकायत मिलने पर होगी कार्रवाई

निजी स्कूल संचालक शिक्षा की आड़ में अपनी दुकानदारी चलाते हैं। यह सरासर गलत है। बुक डिपो संचालक के साथ निजी स्कूल संचालकों का कमीशन तय होता है और अपने कमीशन के लिए स्कूल संचालक एनसीईआरटी के पैटर्न  के अलावा भी अलग से सिलेबस लगवाते हैं। अगर कोई अभिभावक उनके पास इसकी शिकायत करता है तो वो उस स्कूल संचालक के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। बिना शिकायत के कार्रवाई नहीं की जा सकती।
साधू रोहिला
जिला शिक्षा अधिकारी, जींद


...अब किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगी गाँव की गौरी

 कार्यशाला के दौरान महिलाओं को कीटों की पहचान करवाती मास्टर ट्रेनर महिला।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
अब निडाना व आस-पास के गांवों के किसान निडाना की महिलाओं से खेती व कीट प्रबंधन के गुर सीखेंगे। ये महिलाएं अब चूल्हे-चौके के साथ-साथ कीट प्रबन्धन के काम-काज को भी संभालेंगी। इस तरह पर्दे की आड़ में रहने वाले ये चेहरे अब टीचर की भूमिका में नजर आएंगे। राष्ट्रीय कृषि ओर ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)द्वारा किसानों के उत्थान के लिए शुरू की गई किसान क्लबों के गठन की योजना के तहत जींद जिले के तीन गांवों में महिला किसान क्लबों का भी गठन किया गया है। निडाना,  भैरवखेड़ा व ललितखेड़ा में गठित किए गए ये महिला किसान क्लब प्रदेश के पहले महिला किसान क्लब हैं। इन महिला किसान क्लबों के संचालन की जिम्मेदारी कीट साक्षरता केंद्र की मास्टर ट्रेनर महिलाओं को सौंपी गई है। ये मास्टर ट्रेनर महिलाएं क्लब के माध्यम से किसानों को तकनीकी खेती के साथ-साथ कीट प्रबंधन के गुर भी सिखाएंगी। इन क्लबों के गठन से इन्हें अपने कीट साक्षरता अभियान को तो शिखर तक पहुंचाने का मौका मिलेगा ही, साथ-साथ ये महिलाएं अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बनेंगी।
कृषि, बागवानी, पशु पालन व ग्रामीण विकास के लिए नाबार्ड और केंद्र सरकार ने विभिन्न योजनाएं शुरू की है। इन योजनाओं को गांवों तक पहुंचाने व उनका लाभ उठाने के लिए प्रत्येक गांव में किसान क्लबों का गठन किया जा रहा है। इसी कड़ी के तहत जींद जिले के निडाना, भैरवखेड़ा व ललितखेड़ा गांवों में महिला किसान क्लबों का गठन किया गया है। निडाना गांव के महिला किसान क्लब के लिए अनिता को कोर्डिनेटर तथा अंग्रेजो देवी को सहकोर्डिनेटर नियुक्त किया गया है। भैरवखेड़ा के  महिला किसान क्लब के लिए संतोष को कोर्डिनेटर तथा कविता को सहकोर्डिनेटर नियुक्त किया गया है। ललितखेड़ा गांव में सविता मलिक को कोर्डिनेटर तथा मनीषा शर्मा को सहकोर्डिनेटर की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कृषि विभाग के अधिकारियों ने महिला किसान क्लबों के लिए इन महिलाओं का चयन कर तथा सभी औपचारिकताएं पूरी कर उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट भेज दी है। गांव में क्लब का गठन होने से इन महिलाओं की मंजिल ओर भी आसान हो गई है। अब ये महिलाएं गांव में क्लब की बैठक कर किसानों को तकनीकी खेती के साथ-साथ कीट प्रबंधन के गुर भी सिखाएंगी। ये मास्टर ट्रेनर महिलाएं अब खेतों में जाकर किसानों को कीटों की पहचान करवाएंगी। कीट प्रबंधन को बढ़ावा देने के पीछे इन महिलाओं का मुख्य उद्देश्य खाने को जहर मुक्त बनाना है। इनका मानना है कि अगर किसान फसल में मौजूद माशाहारी व साकाहारी कीटों की पहचान कर फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग को बंद कर दे तो मनुष्य की थाली में बढ़ते जहर को कम किया जा सकता है।

क्या है योजना

किसानों को खेती के साथ-साथ तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करने के लिए नाबार्ड ने 1982 में किसान क्लबों के गठन की शुरूआत की थी। शुरूआत में प्रचार के अभाव के कारण प्रदेश में इस योजना को अच्छा रिस्पांश नहीं मिला था। नाबार्ड द्वारा प्रकाशित किसान क्लब कार्यक्रम पुस्तिका के आंकड़ों के अनुसार 2010 तक प्रदेश में केवल 899 किसान क्लबों का गठन ही हो पाया है। इसके बाद अब 2012 में इस योजना को सफल बनाने के लिए नाबार्ड ने इस योजना के प्रचार पर जोर दिया है। इस योजना को सफल बनाने की जिम्मेदारी प्रदेश में कृषि विभाग को सौंपी है। कृषि विभाग योजना को मूर्त रूप देने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी है। क्लब में कम से कम 10 सदस्य होने अनिवार्य हैं। इन क्लबों का सदस्य उसी किसान को बनाया जाएगा, जो किसान बैंक में नियमित रूप से लेन-देन करता है और बैंक द्वारा उसे डिफाल्टर घोषित नहीं किया गया हो।
महिलाओं ने की थी क्लब के गठन की मांग
निडाना गांव में कीट साक्षरता केंद्र चलाने वाली महिलाएं कीट प्रबंधन में पूर्ण तौर पर पारंगत हो चुकी हैं। इसलिए इन महिलाओं ने अन्य किसानों को जागरुक करने के लिए गांव में महिला किसान क्लब के गठन की मांग की थी। इन महिलाओं के हौंसले को देखते हुए पास के गांव भैरवखेड़ा तथा ललितखेड़ा की महिलाओं ने भी निडाना की तर्ज पर गांव में महिला किसान क्लब के गठन की मांग की थी। इन महिलाओं के हौंसले को देखते हुए ही इन गांवों में महिला किसान क्लब के गठन की प्रक्रिया शुरू की गई है। उन्होंने क्लब के गठन संबंधि सभी औपचारिकताएं पूरी कर आगामी कार्रवाई के लिए उच्च अधिकारियों के पास भेज दी है।
डा. सुरेंद्र दलाल
एडीओ, कृषि विभाग


ऊर्जा संरक्षण के लिए आईएसआई मार्क के उपकरणों को बनाया हथियार

आईटी विलेज बीबीपुर ने शुरू की एक अनुठी पहल
नरेंद्र कुंडू
जींद। आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने ऊर्जा संरक्षण के लिए एक अनोखा कदम उठाया है। सीएफएल ट्यूब युक्त गांव का दर्जा हासिल करने के लिए छेड़ी गई मुहिम के साथ-साथ अब सिर्फ गांव में आईएसआई या आईएसओ 9001 अनुपात 2000 के  मार्क वाले बिजली उपकरणों का प्रयोग करने का निर्णय लिया है। क्योंकि यह उपकरण अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार होते हैं। जिस कारण इन उपकरणों की क्वालिटी बहुत अच्छी होती है और इनमें जल्द खराबी आने की संभावनाएं भी कम ही होती हैं। इसके अलावा आईएसआई मार्क वाले उपकरणों में बिजली की खपत भी साधारण उपकरणों की बजाए काफी कम होती है। ग्रामीणों को इस क्षेत्र में जागरुक करने के लिए पंचायत ने एक सर्वे टीम का गठन किया है। इस टीम के सदस्य सुबह-सांय घर-घर जाकर घर में प्रयोग होने वाले साधारण बिजली उपकरणों तथा आईएसआई मार्क वाले उपकरणों की रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। रिपोर्ट तैयार करने के बाद सर्वे टीम घर के सभी सदस्यों को आईएसआई मार्क वाले उपकरणों के लाभ के बारे में भी विस्तार से जानकारी देती है। गांव के अलावा टीम खेतों में जाकर ट्यूबवैल पर प्रयोग होने वाली बिजली मोटरों की जांच भी  करती है। पंचायत द्वारा शुरू की गई इस मुहिम के बाद 60 प्रतिशत ग्रामीण आईएसआई मार्क वाले उपकरणों का प्रयोग करने लगे हैं।
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने गांव को पूर्ण रूप से सीएफएल ट्यूब युक्त बनाने की मुहिम के साथ ही अब अच्छी क्वालिटी के बिजली उपकरणों के प्रयोग पर जोर दिया है। इसके लिए पंचातय द्वारा लोगों को केवल आईएसआई व आईएसओ के मार्क वाले उपकरणों का ही प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाता है। पंचायत द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य ऊर्जा संरक्षण के साथ-साथ ग्रामीणों को अच्छी क्वालिटी के उपकरणों के प्रयोग के लिए जागरुक करना है। ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए पंचायत ने एक सर्वे टीम का गठन किया है। यह टीम घर-घर जाकर घर में प्रयोग होने वाले साधारण व आईएसआई के मार्क वाले उपकरणों का रिकार्ड तैयार कर रही है। इसके अलावा टीम के सदस्य खेतों में ट्यूबवैल पर चलने वाली बिजली की मोटरों की भी जांच कर रही हैं। टीम के सदस्यों द्वारा आईएसआई मार्क वाले उपकरणों में सबसे ज्यादा जोर चक्की मोटर व कृषि के क्षेत्र में ट्यूबवैल पर प्रयोग होने वाली मोटर पर दिया जा रहा है। क्योंकि लाईट में अचानक आने वाले फालट का सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव चक्की व ट्यूबवैल की मोटरों पर ही पड़ता है और इनकी रिपेयर में खर्च भी अन्य उपकरणों से कई गुणा ज्यादा आता है।

60 प्रतिशत ग्रामीण करते हैं आईएसआई मार्क वाले उपकरणों का प्रयोग

ग्राम पंचायत द्वारा इस मुहिम के बाद करवाए गए सर्वे में जो आंकड़े निकल कर सामने आए हैं, वह इस अभियान की सफलता को साफ दर्शाते हैं। पंचायत द्वारा इस मुहिम की शुरूआत से पहले 80 प्रतिशत लोग सस्ते के चक्कर में बिना आईएसआई के मार्क वाले बिजली उपकरणों का प्रयोग करते थे। लेकिन अब 60 प्रतिशत लोग आईएसआई व आईएसओ के मार्क वाले उपकरणों का प्रयोग करते हैं। गांव में फिलहाल 311 के लगभग पंपों व चक्की की मोटर  हैं। जिनमें से 94 सबमर्सिबल पंप, 41 दूसरे पंप व 52 चक्की की मोटरें आईएसआई मार्क वाली ही हैं। इसके अलावा जो 124 के लगभग पंप व मोटर बची हैं वह बिना आईएसआई मार्क की हैं। पंचायत ने बची हुई 40 प्रतिशत की इस खाई को जल्द से जल्द पाटने के लिए गांव के सभी बिजली मिस्त्रियों को भविष्य में किसी भी ग्रामीण को कोई भी बिजली उपकरण की खरीद करवाते समय बिना आईएसआई या आईएसओ के मार्क वाले उपकरण न दिलवाने के लिए प्रेरित किया है।

ऊर्जा संरक्षण व आर्थिक परेशानी से बचने के लिए उठाया कदम

आईएसआई मार्क वाले उपकरण अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार होते हैं। जिस कारण इनकी क्वालिटी लोकल उपकरणों से ज्यादा अच्छी होती है। लोकल उपकरणों के प्रयोग से बिजली की अधिक खपत होती है और ये उपकरण जल्द ही खराब हो जाते हैं। जिस कारण ग्रामीणों को काफी आर्थिक नुकसान वहन करना पड़ता है। ऊर्जा संरक्षण तथा ग्रामीणों को आर्थिक परेशानी से बचाने के लिए ही पंचायत ने यह कदम उठाया है। आईएसआई मार्क वाले उपकरण के प्रयोग से बिजली की बचत तो होती ही है और इनकी लाइफ लोकल उपकरणों से काफी ज्यादा होती है।
सुनील जागलान सरपंच
ग्राम पंचायत, बीबीपुर


केजीबीवी स्कूलों में जल्द शुरू होंगी स्मार्ट क्लास

प्रदेश में सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू करने वाला पहला जिला होगा जींद

नरेंद्र कुंडू
जींद।
‘ज्ञानेन शोभतेश्ण’ के नारे को साकार करने के लिए अब कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों को हाईटेक बनाने की योजना तैयार की गई है। योजना के तहत उचाना के खेड़ी सफा व नरवाना के फुलिया खुर्द दोनों कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) जल्द ही स्मार्ट क्लास रूम से सुसज्जित होंगे। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सर्व शिक्षा अभियान ने यह कदम उठाया है। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू करने वाला प्रदेश का यह पहला जिला है। इन स्कूलों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अंबाला मुख्यालय से जोड़ा जाएगा। एनिमेशन के जरिए कठिन चैप्टर भी बच्चों को समझने में आसानी होगी। इससे इन स्कूलों में शिक्षा में काफी सुधार होगा। एसएसए ने इन स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू करने के इसके लिए हरी झंडी दे दी है।
प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर अब कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय भी स्मार्ट क्लास रूम से सुसज्जित होंगे। इस योजना की शुरूआत प्रदेश में सबसे पहले जींद जिले के उचाना के खेड़ी सफा व नरवाना के फुलिया खुर्द स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय से की जाएगी। प्रदेश में सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू करने वाला यह प्रदेश का पहला जिला है। आने वाले दो-तीन माह में इन स्कूलों को स्मार्ट क्लास रूम की सौगात मिल जाएगी। एसएसए द्वारा उठाए गए इस कदम से इन स्कूलों के स्तर में काफी सुधार आएगा। प्रदेश में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के दौर को देखते हुए एसएसए ने यह कदम उठाया है। इन स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राएं इसी वर्ष से स्मार्ट क्लास का लाभ ले सकेंगी। सर्व शिक्षा अभियान ने इसके लिए हरी झंडी दे दी है। छठी से दसवीं कक्षा के सिलेबस आडियो व वीडियो विजुअल मोड में स्क्रीन पर उपलब्ध होंगे। एनिमेशन के जरिए कठिन चैप्टर भी  छात्राओं को समझने में आसानी होगी। एसएसए द्वारा उठाए गए इस कदम का मुख्य उद्देश्य आर्थिक तंगी या अन्य किसी परेशानी के चलते पढ़ाई छोड़ चुकी इन छात्राओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है। योजना को सिरे चढ़ाने के लिए गत दिनों अतिरिक्त उपायुक्त अरविंद मलहान ने जिले में चल रहे स्मार्ट क्लास वाले स्कूलों का दौरा भी किया है। स्मार्ट क्लास के जरिए इन स्कूलों को अंबाला से जोड़ा जाएगा। अंबाला में बैठे विशेषज्ञ छात्राओं को समय-समय पर शिक्षा में होने वाले नए-नए प्रयोगों की जानकारी उपलब्ध करवाएंगे।
कौशल का मिलेगा प्रशिक्षण
नए शिक्षा सत्र से कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में पढ़ने वाले छात्राओं को अंग्रेजी पर पकड़ बनाने के लिए उच्चारण कौशल का भी विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण के दौरान छात्राओं को कंप्यूटर शिक्षा की बारीकियों से भी अवगत कराया जाएगा। एसएसए का मकसद प्रशिक्षण कार्यक्रम के जरिए छात्राओं को कौशल दक्षता में पारंगत बनाना है।
कैसा होगा स्मार्ट स्कूल
स्मार्ट स्कूल पूरी तरह है टेक्नो लेवल पर डवलप होता है। इसमें क्लास रूम आॅडियो-वीडियो सुविधाओं वाला होगा। स्मार्ट क्लास रूम कम्प्यूटराइज होगा। इसे इंटनेट के माध्यम से अन्य कार्यालयों से जोड़ा जाएगा। छात्राएं स्मार्ट क्लास के माध्यम से स्कूल व पढ़ाई से जुड़ी सभी जानकारी आन लाइन ले सकेंगी। स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर्स भी आईटी एक्सपर्ट होंगे। इससे छात्राएं समय-समय पर पढ़ाई के क्षेत्र में आने वाली सभी नवीनतम जानकारियां उपलब्ध कर सकेंगी।
सरकारी खर्चे पर हाईटेक शिक्षा
केजीबीवी विद्यालयों में स्मार्ट क्लास शुरू करने पर विचार किया जा रहा है। अगर यह योजना सिरे चढ़ती है तो प्रदेश में जींद जिला सबसे पहला ऐसा जिला है जहां सरकारी स्कूल में ई-क्लास रूम शुरू किए जाएंगे। इन स्कूलों में ई-स्मार्ट क्लास रूम शुरू होने से छात्राएं समय-समय पर शिक्षा के क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों की जानकारी लेकर अपडेट हो सकेंगी। योजना को मूर्त रूप मिलते ही सरकारी खर्च पर इन स्कूलों की छात्राएं स्मार्ट क्लास रूम में शिक्षा हासिल कर सकेंगी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
एसएसए, जींद

रविवार, 8 अप्रैल 2012

‘नौकरी’ मिली, लेकिन नहीं मिला रोजगार

1716 परिचालकों को अभी ओर करना पड़ेगा इंतजार, बिना वेतन के ही करना पड़ेगा गुजारा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हरियाणा रोडवेज में परिचालक पद के लिए चयनित हुए 3504 में से 1716 उम्मीदवारों को अभी 6 माह तक ओर सीटी व थैले का इंतजार करना पड़ेगा। नौकरी मिलने के बाद भी परिचालकों के हाथ ज्वाईनिंग लेटर के लिए तरस रहे हैं। हरियाणा ट्रांस्पोर्ट डिपार्टमेंट द्वारा फिलहाल 3504 चयनित परिचालकों में से सिर्फ 1788 परिचालकों को ही डिपो अलाट करवाए गए हैं। इससे काऊंसलिंग के माध्यम से शुरू की गई अलाटमेंट प्रक्रिया पर भी सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। बाकी बचे हुए परिचालक काऊंसलिंग कमेटी पर अपने चहेतों को ही डिपो अलाट करवाने के आरोप लगा रहे हैं। अपने उज्जवल भविष्य के सपने बुनने वाले इन परिचालकों के सपनों पर काऊंसलिंग कमेटी की काली छाया का ग्रहण लगा गया है। जिस कारण इन्हें अब चयन होने के बावजूद भी कई माह बिना वेतन के ही अपना गुजारा करना पड़ेगा। आयोग द्वारा शुरू की गई इस नई प्रक्रिया से इनकी सांसें अटकी हुई हैं। चयन प्रक्रिया से निराश हो चुके ये परिचालक अब अदालत का दरवाजा खटखटाने के का मन बना रहे हैं। इन्हे ‘नौकरी’ तो मिल गई है, लेकिन रोजगार  नहीं मिला   
हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के तहत 3837 परिचालकों के पदों के लिए साक्षात्कार लिए गए थे। जिनमें से 3504 उम्मीदवार इसमें सफल हुए थे। इसके बाद हरियाणा ट्रांस्पोर्ट डिपार्टमेंट ने खाली पदों से अधिक परिचालकों का चयन होने का बहाना बना कर चयनित परिचालकों को मैरिट के आधार पर काऊंससिंलग के माध्यम से डिपो अलाट करवाने की प्रक्रिया शुरू करने की योजना तैयार की।इस पहली काउंसलिंग के तहत 1902 उम्मीदवारों को डिपो अलाट करने के लिए बुलाया गया था, लेकिन डिपार्टमेंट ने इनमें से भी केवल 1788 परिचालकों को नियुक्त किया है। इनमें से भी 114 परिचालकों को भी बिना ज्वाईनिंग लेटर के वापिस घर लौटना पड़ा। चयनित परिचालक प्रदीप, सुशील, अशोक, ओमप्रकाश, शमशेर, दलबीर, कृष्ण ने बताया कि1788 उम्मीदवारों को डिपो अलाट करने के बाद डिपार्टमेंट ने उन्हें दूसरी काउंसलिंग के लिए अभी तक कोई सूचना नहीं दी गई है। उन्होंने कहा कि अगर अनुसूचित जाति के 20 प्रतिशत उम्मीदवारों को आरक्षण दिया गया तो इनकी संख्या ही 358 बन जाएगी। पर पहली काउंसलिंग में ऐसे 135 उम्मीदवार ही बुलाए गए हैं। बाकी 223 उम्मीदवारों को किस आधार पर छोड़ गया है, यह भी अभी  तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। इससे उन्हें काऊंसलिंग कमेटी की नीयत में खोट नजर आ रहा है। इस प्रकार काऊंसलिंग कमेटी की जालसाजी के कारण उनके सामने असमंजस की स्थिति बनी हुई है। नौकरी मिलने के बाद भी उनके हाथ ज्वाईनिंग लेटर के बिना खाली हैं। उन्होंने कहा अब तो उन्हें मजबूरन अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा।
किस-किस तारीख को हुई है काऊंसलिंग 
काऊंसलिंग कमेटी द्वारा चयनित परिचालकों को डिपो अलाट करवाने के लिए रोहतक स्थित छोटू राम स्टेडियम में मैरिट के आधार पर बुलाया गया था। जिसमें मैरिट संख्या 1 से 700 तक के उम्मीदवारों को 2 अप्रैल को और मैरिट संख्या 701 से 1400 तक के उम्मीदवारों को 3 अप्रैल को काऊंसलिंग के लिए बुलाया गया था। इसी प्रकार मैरिट संख्या 1401 से 1902 तक के उम्मीदवारों को 4 अप्रैल को बुलाया गया था। काऊंसलिंग के इस पहले दौर में मैरिट सूची के केवल पहले 1902 उम्मीदवारों को काऊंसलिंग के लिए बुलाया गया था। लेकिन इनमें से भी  केवल 1788 उम्मीदवारों को ही डिपो दिए गए हैं। इनके अलावा बाकी बचे हुए परिचालकों को ज्वाइनिंग के लिए अभी ओर इंतजार करना होगा।
जल्द से जल्द करवाई जाएगी ज्वाईन
31 मार्च 2012 तक सेवानिवृत्ति के बाद डिपार्टमेंट में केवल 1788 परिचालकों के पद खाली  हुए थे। खाली पद कम होने तथा उम्मीदवार अधिक होने के कारण डिपार्टमेंट ने काऊंसलिंग कमेटी के माध्यम से मैरिट सूची के आधार पर परिचालकों को डिपो अलाट करवाए हैं। अभी रोडवेज बेडेÞ में कुछ नई बसें शामिल होनी हैं तथा अगले महीनों में होने वाली रिटार्यमेंट के बाद कुछ पद खाली होंने हैं। जिसके बाद बचे हुए परिचालकों को तुरंत ज्वाईनिंग करवा दी जाएगी। लगभग 6 माह के अंदर-अंदर सभी परिचालकों को ज्वाईन करवा दिया जाएगा।
जोगेंद्र सिंह, महाप्रबंधक
रोहतक डिपो एवं सदस्य काऊंसलिंग कमेटी

किस डिपो को कितने मिले परिचालक
जिले का नाम    पदों की संख्या

  • अंबाला                       98
  • भिवानी                       69
  • चंडीगढ़                      156
  •  दादरी                      17
  • दिल्ली                       98
  • फरीदाबाद                   364
  • फतेहाबाद                   18
  • गुड़गांव                      175
  • हिसार                       27
  • जींद                          29
  • झज्जर                      71
  • कुरुक्षेत्र                      41
  • करनाल                      62
  • कैथल                         19
  • नारनौल                      53
  • पानीपत                      50
  • रोहतक                       78
  • रेवाड़ी                         79
  • सोनीपत                     89
  • सिरसा                        07
  • यमुनानगर                    90
  • आईएसबीटी दिल्ली             98
कुल                                  1788

....ताकि खिलता रहे बचपन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
महिला एवं बाल विकास विभाग ने बचपन को संरक्षण देने की कवायद शुरू की है। योजना को सफल बनाने के लिए विभाग द्वारा एक टीम का गठन किया जाएगा। टीम के सदस्य गांव-गांव जाकर बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करेंगे। टीम के सदस्यों द्वारा ब्लॉक अनुसार गांवों का दौरा किया जाएगा तथा गांवों की चौपालों में सेमिनारों का आयोजन कर बच्चों को उनके अधिकार व संरक्षण के बारे में जानकारी दी जाएगी। विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों पर हो रहे अत्याचारों को रोकना तथा अनाथ व बेसहारा बच्चों को सहारा देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है।        
बच्चे ही देश के  भविष्य हैं, बच्चों की अच्छी देखरेख एवं उचित वातावरण ही उन्हें अच्छा और जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए प्रेरित कर सकता है। अगर बच्चों को समय पर सही मार्गदर्शन मिल जाए तो देश का भविष्य उज्जवल हो जाएगा। लेकिन दिन-प्रतिदिन बच्चों पर बढ़ते अत्याचारों व अधिकारों की जानकारी के अभाव के कारण देश के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। बढ़ते अत्याचारों व मार्गदर्शन के अभाव में देश के ये कर्णधार समाज से की धारा से कट रहे हैं। लेकिन अब बचपन को संरक्षण देने का बीड़ा उठाया है महिला एवं बाल विकास विभाग ने। इसके लिए विभाग एक योजना तैयार कर रहा है। उच्च अधिकारियों की तरफ से इस योजना को हरी झंडी मिलते ही विभाग योजना को मूर्त रूप देने की कवायद शुरू कर देगा। योजना को सफल बनाने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग एक टीम का गठन करेगा। इस टीम के सदस्य ब्लॉक अनुसार गांवों का दौरा करेंगे। इस दौरान टीम द्वारा प्रत्येक गांव में सार्वजनिक स्थल पर सेमिनार लगाए जाएंगे। कैंप के दौरान ये सदस्य बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक कर उन पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित करेंगे। इसके लिए ब्लॉक और गांव लेवल पर भी समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति के सदस्य इस योजना के तहत लावारिस, मानसिक रोग से ग्रसित और विकलांग बच्चों को संरक्षण देकर उनको उनके अधिकारों के बारे में विस्तार से जानकारी मुहैया करवाएंगे। विभाग द्वारा योजना को सफल बनाने के लिए सामाजिक संस्थाओं से भी सहयोग लिया जाएगा। विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों पर हो रहे शोषण को खत्म कर संरक्षण देना तथा बच्चों को उनके अधिकारों की जानकारी देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है। ताकि बच्चों को पढ़ा-लिखा कर आत्म निर्भर बनाया जा सके। जिला स्तर पर प्रोटैक्शन आफिसर व जिला चाइल्ड प्रोटैक्शन आफिसर की देखरेख में कमेटी काम करेगी। इसके लिए जिला स्तर पर सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। सोसायटी के सदस्यों को इसके लिए बाकायदा विशेष ट्रेनिंग भी दी गई है।
बच्चों को जागरूक करने के लिए उठाया कदम
महिला एवं बाल विकास विभाग बच्चों को संरक्षण देकर उन्हें अत्याचारों से मुक्त करवाएगा। बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने के लिए विभाग द्वारा गांवों में जाकर सेमिनारों का आयोजन भी किया जाएगा। इसके लिए सोसायटी के सभी सदस्यों को विशेष ट्रेनिंग दी गई है, ताकि विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना का लाभ अधिक से अधिक बच्चों को मिल सके। सोसायटी के सदस्यों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारी भी सेमिनारों में भाग लेकर बच्चों को प्रेरित करेंगे। इसके लिए विभाग ने जिला प्लान के तहत योजना तैयार की है।
सरोज वर्मा
जिला चाइल्ड प्रोटैक्शन आफिसर

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

....ताकि थाली से कम हो सके जहर

कृषि पंचायत के बाद खेतों में कीटों की पहचान करते किसान।
  हर माह के अखिरी शनिवार को गांवों में किया जाएगा कृषि पंचायतों का आयोजन
नरेंद्र कुंडू
जींद। कीट साक्षरता केंद्र निडाना के किसान अब गांव-गांव जाकर कीट प्रबंधन की अलख जगाएंगे।  अपने इस मिशन को सफल बनाने के लिए कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने एक कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी में कीट प्रबंधन में पूर्ण रूप से दक्षता हासिल कर चुके किसानों को शामिल किया गया है। कीट साक्षरता केंद्र के ये मास्टर ट्रेनर किसान हर माह के आखिरी शनिवार को गांवों में जाकर कृषि पंचायत का आयोजन करेंगे। ये मास्टर ट्रेनर कृषि पंचायत में किसानों के साथ कीट प्रबंधन पर विचार-विमर्श करने के बाद किसानों को खेतों में ले जाकर व्यवहारिक ज्ञान भी देंगे, ताकि अधिक से अधिक किसानों को फसल में मौजूद मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान करवाई जा सके। किसानों को कीटों की पहचान होने से किसान कीटनाशक रहित खेती को अपना कर दूसरे किसानों के सामने उदहारण प्रस्तुत कर सकेंगे। कीट साक्षरता केंद्र के किसानों द्वारा छेड़ी गई इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग पर अंकुश लगाकर मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करना है।
लेपटॉप पर कीटों की पहचान करवाते मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक
फसलों में अंधाधूंध रासायनिक पदार्थों के प्रयोग के कारण आज हमारा भोजन विषेला हो चुका है। जिस कारण इंसान हर रोज नई-नई बीमारियों की चपेट में आ रहा है। यह इन रासायनिक पदार्थों का ही परिणाम है कि आज मनुष्य का शरीर कई ऐसी बीमारियों की चपेट में आ चुका है, जिसका ईलाज संभव ही नहीं है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में कीटनाशक तैयार करने वाली कंपनियां भी हर रोज नए-नए कीटनाशक बाजार में उतार रही हैं। जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर तो प्रतिकूल प्रभाव पड़ ही रहा है साथ-साथ किसान को भी आर्थिक रूप से मोटी चपत लग रही है। लेकिन अब किसानों को जागरुक करने के लिए निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने एक विशेष मुहिम छेड़ी है। इस मुहिम के तहत कीट कमांडो के नाम से जाने जाने वाले कीट साक्षरता केंद्र के किसान गांव-गांव जाकर कीट प्रबंधन की अलख जगाएंगे। इसके लिए इन किसानों ने एक कमेटी तैयार की है। इस कमेटी में ईगराह से मनबीर रेढू, कुलदीप, राजपुरा से बलवान सिंह, ललित खेड़ा से रामदेवा, रमेश, निडाना से रणबीर मलिक व राममेहर ने मास्टर ट्रेनर की कमान संभाली है। ये मास्टर ट्रेनर किसान हर माह के आखिरी शनिवार को अलग-अलग गांवों में जाकर कृषि पंचायत का आयोजन करेंगे। कृषि पंचायत में किसानों के साथ कीट प्रबंधन पर चर्चा करने के बाद किसानों को खेतों में ले जाकर फसल में पाए जाने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान करवाई जाएगी। इस अभियान की सबसे खास बात यह है कि ये किसान गांवों में आने-जाने का सारा खर्च स्वयं उठाएंगे तथा कृषि पंचायत के दौरान किसानों को लेपटॉप पर भी फोटो के माध्यम से कीटों की पहचान करवाएंगे। काबिले गौर है कि कीट साक्षरता केंद्र को ये लेपटॉप जाट धर्मशाला द्वारा पुरस्कार के रूप में दिए गए हैं। कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने 31 मार्च से इसकी शुरूआत भी कर दी है। इन किसानों ने अभियान की शुरुआत 31 मार्च को निडानी गांव से कर दी है। निडानी गांव में दलीप सिंह की बैठक में किसानों ने अपनी पहली कृषि पंचायत का आयोजन किया। इस पंचायत का संचालन महाबीर पूनिया ने किया। इस दौरान कृषि विभाग की तरफ से डा. कमल सेनी व डा. सुरेंद्र दलाल ने किसानों का मार्गदर्शन किया। कृषि पंचायत के बाद कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनरों ने किसानों को खेतों में ले जाकर गेहूं की फसल में मौजूद कीटों की पहचान करवाई। इस दौरान किसानों ने गेहूं की फसल में अल को खाते हुए विभिन्न प्रकार के लेडी बीटल व सिरफड मक्खी के बच्चे देखे। किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य कीटनाशकों के प्रयोग पर अंकुश लगाना है, ताकि मनुष्य की थाली में बढ़ते जहर को कम किया जा सके।