बुधवार, 25 जनवरी 2012

गुरुजियों के ये कैसे आदर्श

नरेंद्र कुंडू
जींद।
उत्तर भारत ने कोहरे और बर्फ की चादर ओढ़ ली है। पहाड़ी इलाकों से आने वाली गलन भरी हवाओं ने लोगों को घरों के अंदर कैद कर दिया है। लोग पिछले कई दिनों से ठंड के तीखे तेवर झेल रहे हैं। ठंड के साथ-साथ कोहरा भी कोहराम मचा रहा है। लेकिन उधर स्कूलों में बचपन ठंड में ठिठुर रहा है और शिक्षा विभाग मौन धारण किए हुए है। स्कूलों में अध्यापक खुद पर तो जमकर रहम कर रहे हैं, जबकि विद्यार्थियों पर सितम ढाह रहे हैं। कड़ाके की ठंड में विद्यार्थियों पर शॉल, स्कार्फ व मफलर पहनने पर बैन लगाया जा रहा है, जबकि अध्यापक खुद शॉल, चदरों, मफलरों में लिपटकर स्कूल में पहुंचते हैं। स्कूलों में चदर व मफलर ओढ़कर न आने के नियम सिर्फ बच्चों के लिए बनाए गए हैं। अध्यापकों के लिए इस तरह का कोई नियम नहीं बनया गया है।
 छात्राओं के पीछे शॉल ओढ़कर स्कूल आती अध्यापिका।

ठंड में ठिठुरती स्कूली छात्राएं।
हर रोज ठंड शबाब पर पहुंच रही है। दिनों दिन कोहरे व ठंड का कहर बढ़ रहा है। जनजीवन पूरी तरह से अस्तव्यस्त है। लोग बेहाल हैं और घर से निकलते ही लोगों की कंपकपी बंध रही है। इस सर्दी से बचने के लिए लोग गर्म कपड़ों व अलाव का सहारा भी ले रहे हैं। तापमान लुढ़क कर 3 डिग्री तक पहुंच गया है। अब दिन में भी ठंड का असर दिखाई दे रहा है। लेकिन इस हाड़ कंपकंपाने वाली सर्दी में बच्चे ठिठुरते स्कूलों में पहुंच रह हैं। कहते हैं कि विद्यार्थी जीवन में अध्यापक का दर्जा गुरु से भी बड़ा होता जाता है। क्योंकि अध्यापक विद्यार्थी को भगवान से मिलने का रास्ता दिखाता है। अध्यापक विद्यार्थियों के सामने अपने आप को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लेकिन यहां पर तो अध्यापक अपने लिए अलग नियम बनाकर विद्यार्थियों को अलग ही शिक्षा दे रहे हैं। स्कूल प्रबंधन द्वारा स्कूलों में बच्चों को शॉल, चदर, मफलर व स्कार्फ पहने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। जिससे बच्चे जुकाम, खांसी व अन्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं और उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है। सरकारी स्कूलों में शॉल व चदर ओढ़ने पर बैन सिर्फ बच्चों पर ही लगाया गया है। इस तरह का बैन अध्यापकों पर नहीं लगाया गया है। अध्यापक खुद शॉल व चदरों में लिपट कर स्कूल में पहुंच रहे हैं। छात्रा नेहा, रेखा, संतोष, सोनिया, अनिता, ममता, रेनू, सुमन, ने बताया कि स्कूल में शॉल, मफलर या स्कार्फ पहनने पर प्रतिबंध लगया गया है। अगर वे शॉल या स्कार्फ पहनकर स्कूल में आती हैं तो अध्यापक उनकी पिटाई करते हैं। जिस कारण उन्हें मजबूरन बिना शॉल या स्काप में आना पड़ता है और पूरा दिन ठंड में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है। छात्राओं ने बताया कि अध्यापक उन्हें तो बिना चदर या स्कार्फ के स्कूल में आने को मजबूर करते हैं, लेकिन अध्यापक स्वयं स्कूल में चदर व मफलर ओढ़कर आते हैं।
क्या है पेरेंट्स की राय
ठंड में सुबह-सुबह छोटे बच्चों को स्कूल जाने से बीमार होने की आशंका बनी रहती है। ठंड को देखते हुए शिक्षा विभाग द्वारा छोटे बच्चों की छुट्टियां कर देनी चाहिए। इसके अलावा बड़े बच्चों पर स्कूल में शॉल, चदर या मफलर इत्यादि पहन कर आने पर पाबंदी नहीं लगानी चाहिए। अगर स्कूल में बच्चों पर चदर, शॉल या मफलर पहनने पर पाबंदी लगा दी जाएगी तो ठंड के कारण बच्चे बीमारी की चपेट में आ जाएंगे, जिससे बच्चों को शारीरिक परेशानी तो होगी ही, साथ-साथ उनकी पढ़ाई भी बाधित होगी। ठंड के मौसम के देखते हुए स्कूल में शॉल, चदर या मफलर पर पाबंदी लगाना सरासर गलत है।


मंगलवार, 24 जनवरी 2012

फाइलों में दफन 5 हजार बच्चों का भविष्य

दो वर्ष बाद भी अमल में नहीं आ सकी योजना
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार एक तरफ तो शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के दावे कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकार के ये आसमानी दावे हकीकत में जमीन सुंघते नजर आते हैं। सरकार द्वारा राष्टÑीय बाल विकास नीति 2010 के तहत जिला बाल कल्याण परिषद के माध्यम से अनाथ व गरीब बच्चों को शिक्षा भत्ता देने के लिए आवेदन मांगे थे। इस योजना के तहत गरीब व बेसहारा बच्चों को हर माह 500 से 1500 रुपए शिक्षा भत्ता दिया जाना था। इसमें जिलेभर से 5 हजार बच्चों ने आवेदन किये थे, लेकिन अब हरियाण राज्य बाल कल्याण निदेशालय द्वारा इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। विभाग की अनदेखी के कारण 5 हजार बच्चों का भविष्य फाइलों में दफन हो गया है।
सरकार अनाथ व गरीब बच्चों के उत्थान के लिए हर रोज नई-नई योजनाएं तैयार कर रही है। सरकार द्वारा इन योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी ये योजनाएं फाइलों से बाहर नहीं निकल पाती हैं। सरकार शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर सबको शिक्षा का हक दिलवाने के दावे कर रही है। लेकिन उधर स्वयं सरकार द्वारा तैयार की गई रास्ट्रीय बाल विकास नीति 2010 फाइलों में ही दफन होकर रह गई है। हरियाणा राज्य बाल कल्याण परिषद निदेशालय ने जिला बाल कल्याण परिषद को पत्र क्रमांक 37048-102 के माध्यम से एक दिसंबर 2010 को अनाथ व बेसहारा बच्चों के आवेदन जमा करवाने के निर्देश जारी किए थे। जिसके तहत जिला बाल कल्याण परिषद ने विज्ञापन जारी कर गरीब, बेसहारा, अनाथ व असहाय बच्चों से आवेदन मांगे थे। जिसके बाद जिला बाल कल्याण परिषद को जिले से 5 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे। जिला बाल कल्याण परिषद ने प्राथमिकता के आधार पर पात्र व्यक्तियों से आवेदन प्राप्त कर और सभी औपचारिकताएं पूरी कर आवेदन निदेशालय को भेज दिए। निदेशालय को आवेदन प्राप्त होने के दो वर्ष बाद भी यह योजना अमल में नहीं आ पाई है। आवेदक आज भी विभाग से आर्थिक सहायता की आश लगाए बैठे हैं। योजना के ठंडे बस्ते में चले जाने से 5 हजार बच्चों के सपने फाइलों में ही दम तोड़ गए हैं।
क्या थी योजना
सरकार ने गरीब, बेसहारा, अनाथ व असहाय बच्चों को शिक्षा भत्ता देने के लिए रास्ट्रीय बाल विकास नीति 2010 नाम से एक योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत पात्र व्यक्तियों को 18 वर्ष तक 500 से लेकर 1500 रुपए तक भत्ता दिया जाना था। योजना का लाभ लेने के लिए पात्र व्यक्ति को एक सादे कागज पर अपना आवेदन तैयार कर संबंधित सरपंच या एमसी से सत्यापित करवाकर जिला बाल कल्याण परिषद को देने थे। इस योजना के तहत हरियाणा राज्य बाल कल्याण निदेशालय, चंडीगढ़ द्वारा पात्र आवेदकों के खाते खुलवाकर हर माह भत्ता उनके खाते में जमा करवाने का प्रावधान था। इस योजना के माध्यम से जिला बाल कल्याण परिषद को 5 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे।  


हरियाणा राज्य बाल कल्याण निदेशालय द्वारा दिसंबर 2010 में जिला बाल भवन के माध्यम से अनाथ व गरीब बच्चों को शिक्षा भत्ता देने के लिए रास्ट्रीय बाल विकास नीति के तहत पात्र व्यक्तियों के आवेदन मांगे गए थे। इस योजना के तहत पात्र व्यक्तियों को 18 वर्ष तक 500 से 1500 रुपए शिक्षा भत्ता दिया जाना था। योजना के तहत जिला बाल भवन को 5 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे। उन्होंने आवेदन प्राप्त कर सभी औपचारिकताएं पूरी करवा निदेशालय को आवेदन भेज दिये थे। लेकिन सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के बाद विभाग ने इस योजना को बंद कर दिया। जिस कारण आवेदकों को योजना का लाभ नहीं मिल सका।
सुरजीत कौर आजाद
जिला बाल कल्याण अधिकारी, जींद

बजट के बिना कैसे खिलेगा बचपन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
बाल भवन को सरकारी स्कूलों से मिलने वाला चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने के बाद अब जिला बाल कल्याण परिषद का खजाना खाली होने लगा है। खजाने में आय का स्त्रोत कम होने से बाल भवन में चलने वाली गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। बाल कल्याण विभाग को सरकारी स्कूलों से चाइल्ड वेलफेयर फंड मिलता था। इसी फंड से बाल भवन में होने वाली गतिविधियों का खर्चा उठाया जाता था। जिले में पहले प्रतिवर्ष सरकारी स्कूलों से लगभग 9 लाख रुपए चाइल्ड वेलफेयर फंड हो जाता था, लेकिन अब सिमटकर लगभग दो से तीन लाख रुपए रह गया है। बाल कल्याण परिषद की पोटली में आय कम होने से बहुत से गतिविधियां बंद हो चुकी है और कुछ बंद होने की कगार पर हैं। बाल भवन के खजाने में पैसे की कमी के चलते कर्मचारियों को समय पर वेतन भी  नहीं मिल पा रहा है। इस फंड का कुछ हिस्सा बाल भवन तथा कुछ हिस्सा मुख्यालय भेजा जाता था। सरकारी स्कूलों से चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने पर बाल भवन की गतिविधियों को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए इन खर्चों का बोझ निजी स्कूल के विद्यार्थी पर डालने की योजना बनाई थी। इसके लिए जिला शिक्षा विभाग की तरफ से सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को पत्र जारी करते हुए उनके ब्लाक में स्थित स्थायी व अस्थायी मान्यता प्राप्त स्कूलों से 50 रुपए प्रति छात्र वार्षिक लेकर उसे स्कूलों द्वारा बाल कल्याण अधिकारी कार्यालय में जमा कराने के निर्देश जारी किए गए थे। लेकिन निजी स्कूलों के संचालकों द्वारा इस योजना से हाथ पिछे खिंचने के कारण यह योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई।
शिक्षा का अधिकार कानून बना रास्ते का रोड़ा
सरकार ने अप्रैल 2010 से शिक्षा का अधिकार लागू होने के बाद पहली से आठवीं तक निशुल्क शिक्षा लागू कर दी। जिसके बाद से बच्चों से फीस व फंड लिए जाने बंद कर दिए गए। पहले ये फंड दस से बीस रुपए तक लिए जाते थे। जिले के सभी स्कूलों से लगभग 9 लाख रुपए का चाइड वेलेफेयर फंड एकत्रित होता था। जिसे बाद में छोटे बच्चों के विकास के लिए चलाई जाने वाली गतिविधियों पर खर्च किया जाता था। लेकिन अब यह फंड केवल कक्षा नौंवी से 12 तक के छात्रों के कंधों पर ही सिमटकर रह गया है। पहली से आठवीं तक सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण इनसे ज्यादा फंड मिलता था। लेकिन नौवीं से 12वीं तक छात्रों की संख्या घट जाती है। नौवीं से 12वीं के छात्रों से प्रत्येक माह दो रुपए प्रति बच्चा लिया जाता है। जिस कारण यह फंड अब दो से तीन लाख रुपए तक सिमटकर रह गया है।
सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित
चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने से बाल कल्याण परिषद के साथ-साथ सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित हुई हैं। बाल कल्याण परिषद में जहां इस फंड के माध्यम से घुमंतू जाति के बच्चों को पढ़ाई का खर्च उठाने व बच्चों के मानसिक विकास के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर खर्च किया जाता था। बच्चों से मिलने वाले इसी फंड से सरकारी स्कूलों में बच्चों के खेलकूद प्रतियोगिताएं, स्कूल की अन्य गतिविधियों पर खर्च होता था। लेकिन फंड बंद होने के कारण सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित हुई हैं।
गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने का किये जा रहे हैं प्रयास
पहले बाल भवन की गतिविधियां सरकारी स्कूलों से मिलने वाले चाइल्ड वेलफेयर फंड से चलाई जाती थी, जिसमें कुछ हिस्सा स्टेट हैड व कुछ उनके पास रहता था। सरकार ने पहली से आठवीं तक निशुल्क शिक्षा करने के बाद फंड समाप्त कर दिए हैं, जिससे खर्चों में दिक्कत आ रही है। बाल भवन की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिला प्रशासन ने स्थायी व अस्थायी निजी स्कूलों के विद्यार्थियों से भी यह फंड लेने की योजना बनाई थी। लेकिन निजी स्कूल संचालक फंड देने के लिए तैयार नहीं हुए। बाल कल्याण परिषद के पास अब आय के ज्यादा स्त्रोत नहीं हैं, जिस कारण कुछ गतिविधियां प्रभावित हुई हैं, लेकिन फिर भी बाल कल्याण परिषद बच्चों की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने का प्रयास कर रहा है।
सुरजीत कौर आजाद
जिला बाल कल्याण अधिकारी, जींद


आगाज से पहले ही दम तोड़ गई योजना

सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण फाइलों में दफन है योजना
नरेंद्र कुंडू
जींद। रास्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर उपभोक्ताओं को अधिकारों के प्रति जागरूक करने वाले सरकारी अधिकारी स्वयं ही उपभोक्ताओं के हितों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए जिला स्तर पर बनाई जाने वाली उपभोक्ताओं सरंक्षण परिषद आज भी फाइलों से बाहर नहीं आ सकी है। सरकारी अधिकारी एनजीओज न मिलने का बहाना बनाकर हाथ खड़े कर रहे हैं। सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण योजना आगाज से पहले ही दम तोड़ गई है। परिषद का गठन न होने के कारण दुकानदार उपभोक्ताओं के अधिकारों पर खुलेआम डाका डाल रहे हैं।  
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने व मिलावट खोरों पर शिकंजा कसने के लिए प्रदेश सरकार ने जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद का गठन करने की योजना तैयार की थी। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा उपभोक्ताओं को सही मात्रा व शुद्ध सामान उपलब्ध करवाना ही परिषद का मुख्य उद्देश्य था। उपभोक्ताओं के हितों के साथ-साथ गैस एजेंसियों पर सिलेंडरों व बुकिंग को लेकर होने वाले झगड़ों को रोकने की जिम्मेदारी भी परिषद को सौंपी जानी थी।इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा नवंबर माह में सभी जिला उपायुक्तों को पत्र क्रमांक सीए-1-2011/26067 के माध्यम से जिला स्तर पर उपभोक्त संरक्षण परिषदों का गठन करने के निर्देश दिए गए थे। परिषद का गठन दो वर्ष के लिए किया जाना था, जिसमें कुल 30 सदस्य नियुक्त करने थे, इनमें 14 सरकारी तथा 16 गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जाना था। परिषद का अध्यक्ष उपायुक्त तथा उपाध्यक्ष अतिरिक्त उपायुक्त को नियुक्त किया जाना था। इसके अलावा जिला परिषद, नगर परिषद के अध्यक्ष सहित सरकारी विभगों से 14 कर्मचारियों, 10 सदस्य पंजीकृत सामाजिक संगठनों से नियुक्त करने तथा 2 महिला प्रतिनिधि, 2 युवा व 2 सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना था। परिषद का मुख्य उद्देश्य बाजार में मिलने वाले सामान के मूल्य, गुणवत्ता व मात्रा की जांच कर उपभोक्ताओं को सही सामान उपलब्ध करवाने के साथ-साथ उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करना तथा शिकायतों की जांच करना और उन पर कार्रवाई करना भी था। लेकिन योजना को सिरे चढ़ाने के लिए सरकारी अधिकारियों ने किसी प्रकार की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अधिकारियों की लापरवाही व एनजीओज न मिलने के कारण योजना आज तक फाइलों से बाहर नहीं आ सकी है।
क्या थी योजना
उपभोक्ताओं के हितो की रक्षा तथा उप•ाोक्ता को सही मात्रा तथा शुद्ध सामान उपलब्ध करवाने के लिए सरकार ने जिला स्तर पर उपभोक्ता सरंक्षण परिषद गठन करने का निर्णय लिया था। परिषद में कुल 30 सदस्य नियुक्त करने थे, जिनमें 14 सरकारी तथा 16 गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जाना था। परिषद का गठन दो वर्ष की अवधि के लिए किया जाना था। परिषद के गठन का उद्देश्य उपभोक्ताओं की समस्याओं का निवारण तथा शिकायतों की जांच करना और उन पर कार्रवाई करना था। इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा सभी जिला उपायुक्तों को पत्र के माध्यम से परिषद का गठन करने के निर्देश दिए गए थे। समय-समय पर परिषद के प्रतिनिधियों को दिशा-निर्देश देने के लिए वर्ष में दो बार परिषद की बैठक होनी निश्चित थी।
क्या कहती हैं डीएफएससी
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए जिला स्तर पर पहली बार उपभोक्ता संरक्षण परिषद का गठन किया जाना था। परिषद के लिए 30 सदस्य नियुक्त किए जाने था, जिनमें कुछ एनजीओज को भी शामिल करना था। लेकिन एनजीओज की कमी के कारण अभी तक परिषद का गठन नहीं हो पाया है। एनजीओज द्वारा परिषद के सदस्य बनने के लिए तैयार होने के बाद ही परिषद का गठन हो सकेगा।
अनिता खर्ब
जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक, जींद

रविवार, 22 जनवरी 2012

अब नहीं होगा गरीबों का इलाज

नरेंद्र कुंडू
जींद। गरीबों के लिए शुरू की गई रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना दम तोड़ती नजर आ रही है। बीमा कंपनी व निजी अस्पतालों की खींचतान में गरीब लोग पिस रहे हैं। निजी अस्पतालों में कार्ड पर इलाज न होने के कारण सरकार द्वारा बनाए गए स्मार्ट कार्ड जरूरतमंदों के लिए बेकार साबित हो रहे हैं। निजी अस्पताल पिछले 8 माह से बीमा कंपनी द्वारा इलाज की राशि का भुगतान न करने की बात कहकर हाथ खड़े कर रहे हैं। इस प्रकार बीमा कंपनी समय पर निजी अस्पतालों को इलाज की राशि का भुगतान न करके सरकार को भी चूना लगा रही है। कार्ड धारकों के लिए निजी अस्पतालों के दरवाजे बंद होने के कारण इन्हें इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ रहा हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिला ईकाइ के सदस्य दो बार उपायुक्त से इलाज की राशि की रिकवरी की गुहार लगा चुके हैं।
सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के उद्देश्य से रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की गई थी। सरकार द्वारा प्रदेश में सरकारी अस्पतालों के अलावा निजी अस्पतालों को भी स्मार्ट कार्ड धारकों के इलाज के लिए नेटवर्क में लिया। विभागिय सूत्रों की मानें तो जिले में 75 हजार के करीब स्मार्ट कार्ड धारक हैं। इन स्मार्ट कार्ड धारकों के इलाज के लिए जिले में सरकारी अस्पतालों के अलावा 14 निजी अस्पताल भी निर्धारित किए गये। शुरूआत में तो योजना कार्ड धारकों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुई, लेकिन बाद में बीमा कंपनी व निजी अस्पतालों की खिंचतान के कारण योजना कार्ड धारकों के लिए गले की फांस बन गई। निजी अस्पतल संचालकों की मानें तो उन्हें बीमा कंपनी से पिछले 8 माह से बीपीएल परिवारों को इलाज करवाने के लिए सरकार की तरफ से मिलने वाली पेमेंट ही नहीं मिल पा रही है। ऐसे में निजी अस्पतालों ने योजना से हाथ पीछे खिंचते हुए इन बीपीएल परिवारों का इलाज करना ही बंद कर दिया।
निजी अस्पताल में स्मार्ट कार्ड धारकों का इलाज न करने बारे लगाया गया नोटिस।
सरकार को भी लग रहा है चूना
सरकार द्वारा शुरू की गई रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत निजी अस्पतालों को इलाज पर खर्च की जाने वाली राशि के भुगतान के लिए बीमा कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। सरकार द्वारा बनाए गए स्मार्ट कार्ड पर एक साल तक कार्ड धारक का इलाज किया जाता है। सरकार पात्र बीपीएल परिवारों की पहचान कर बीमा कंपनी को एक साल की पेमेंट कर देती है। अब निजी अस्पतालों द्वारा कार्ड धारकों का इलाज बंद कर देने से बीपीएल परिवारों के लिए कार्ड बेकार साबित हो रहे हैं। क्योंकि कुछ ही महीनों के बाद इनकी निर्धारित अवधि समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार सरकार द्वारा बीमा कंपनी को दी गई राशि बीमा कंपनी ही हजम कर सरकार को चूना लगा रही है।
क्या है स्मार्ट कार्ड योजना
रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत बीपीएल परिवार के स्मार्ट कार्ड धारकों और उसमें दर्ज परिवार के किसी भी सदस्य के अस्पताल में भर्ती होने पर तीस हजार रुपए तक के इलाज की सुविधा निशुल्क मिलती है। इस योजना के तहत मरीज के भर्ती होने से डिस्चार्ज होने तक तीस हजार तक का खर्च नेटवर्क से जुड़े निजी अस्पताल या सरकारी अस्पताल वहन करते हैं। मरीज के डिस्चार्ज होने के बाद अस्पताल इसके भुगतान के लिए सरकार को मरीज के खर्च का रिकार्ड भेजती है, जिससे अस्पताल को सरकार बीमा कंपनी के माध्यम से भुगतान राशि मिलती है, लेकिन काफी दिनों से भुगतान बंद होने के कारण नेटवर्क से जुड़े निजी अस्पतालों का रुपया फंस गया है। इसके कारण निजी अस्पतालों द्वारा स्मार्ट कार्ड धारकों का इलाज करने की बजाय हाथ पीछे खींचने शुरू कर दिए हैं।
क्या कहते हैं मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिला प्रधान डा. सुरेश जैन, सचिव डा. अजय गोयल व मीडिया प्रभारी डा.सुशील मंगला का कहना है कि स्मार्ट कार्ड धारकों का नर्सिग होम में इलाज किया जाता था। उनके पास हर रोज 6 से 7 मरीज इलाज के लिए आते थे। लेकिन जून 2011 से बीमा कंपनी कि ओर से उन्हें कार्ड धारकों पर खर्च होने वाली राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है। बीमा कंपनी से समय पर राशि का भुगतान करवाने के लिए वे दो बार उपायुक्त को भी ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन स्थिति ज्यों कि त्यों है। इसलिए उन्होंने अब मजबूरीवश स्मार्ट कार्ड धारकों का इलाज करना बंद कर दिया है। इस बारे में नोडल अधिकारी से डा. अतुल गिल से संपर्क किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका।


रविवार, 15 जनवरी 2012

अब जिला पुस्तकालयों का डाटा होगा कम्प्यूटरीकृत


उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा पुस्तकालयों पर खर्च किए जाएंगे 75 लाख
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला पुस्तकालयों में कर्मचारियों पर बढ़ते काम के बोझ को कम करने तथा पाठकों को पुस्तकालयों में विशेष सुविधा मुहैया करवाने के उद्देश्य से महानिदेशक उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा द्वारा पुस्तकालयों के रिकार्ड को कम्प्यूटरीकृत करने का निर्णय लिया गया है। पुस्तकालयों को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए कोलकाता स्थित राजा राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान द्वारा प्रदेश के सभी जिला पुस्तकालयों पर 75 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रतिष्ठान द्वारा महानिदेशक उच्चत शिक्षा विभाग हरियाणा को पत्र लिख कर जल्द से जल्द सभी जिला पुस्तकालयों से कम्प्यूटरों की कुटेशन मांगी गई है। इस योजना के तहत जिला पुस्तकालयों में पुस्तकों को एक साफ्टवेयर में सूचीबद्ध कर डाटा बेस तैयार किया जाएगा। पुस्तकों का सूचीबुद्ध डाटा तैयार होने के बाद किताबों के रख-रखाव व पाठकों के लिए किताबें तलाशना काफी सुविधाजनक हो जाएगा। उच्चत शिक्षा विभाग तथा प्रतिष्ठान द्वारा उठाए गए इस कदम से पुस्तकालय के कर्मचारियों को भी काफी राहत मिलेगी।
प्रदेश के जिला पुस्तकालयों पर पिछले काफी समय से कर्मचारियों का भारी टोटा है। कर्मचारियों की कमी के कारण पुस्तकालयों का काम-काज भी प्रभावित हो रहा है। लेकिन अब कर्मचारियों पर काम के दबाव को कम करने के लिए राज राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान व उच्चतर शिक्षा विभाग ने जिला पुस्तकालयों को कम्प्यूटरीकृत करने का निर्णय लिया है। विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना से पुस्तकालयों का सारा रिकार्ड कम्प्यूटरीकृत किया जाएगा। पुस्तकालयों को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए कोलकाता स्थित राजा राम मोहन राय ट्रस्ट द्वारा प्रदेश के उच्चतर शिक्षा विभाग को 75 लाख रुपए की राशि दी जाएगी। योजना को जल्द से जल्द अमल में लाने के लिए ट्रस्ट द्वारा उच्चतर शिक्षा विभाग से प्रत्येक जिले से कम्प्यूटरों पर आने वाले खर्च की कुटेशन मांगी गई है। विभाग ने भी योजना में दिलचस्पी दिखाते हुए सभी जिला पुस्तकालयों से मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर इंस्टीच्यूट से कुटेशन तैयार करवाकर विभाग को भेजने के निर्देश दिए हैं। सभी जिला पुस्तकालयों पर कम्प्यूटर उपलब्ध करवाने के बाद एक साफ्टवेयर के माध्यम से पुस्तकों को सूचीबद्ध कर डाटा बेस तैयार किया जाएगा। पुस्तकों का सूचीबद्ध डाटा तैयार होने के बाद पुस्तकालय के कर्मचारियों को काफी राहत मिलेगी। पुस्तकों का डाटा कम्प्यूटरीकृत होने के बाद कर्मचारियों को पुस्तकों के  रख-रखाव में मदद मिलेगी तथा पाठकों के लिए पुस्तक तलाशना भी काफी सुविधाजनक हो जाएगा।
पुस्तकालय के कामकाज में लगे कर्मचारी
कम्प्यूटर के साथ-साथ पुस्तकालय को मिलेंगी अन्य सुविधाएं
जिला पुस्तकालय के सीनियर लाइब्रेरियन बलबीर चहल ने बताया कि महानिदेशक उच्चत शिक्षा विभाग द्वारा भेजे गए पत्र क्रमांक नंबर 9/8-2007 पु. (4) पुस्तकालय को राजा राम मोहन राय प्रतिष्ठान द्वारा 3 लाख रुपए की ग्रांट देने का जिक्र किया गया है। पत्र के माध्यम से उनसे जल्द से जल्द मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर सेंटर से कम्प्यूटरों पर आने वाली लागत की कुटेशन मांगी गई थी। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर सेंटर से कुटेशन तैयार करवा कर विभाग को भेज दी है। ट्रस्ट द्वारा पुस्तकालय को दी जाने वाली तीन लाख की ग्रांट से पुस्तकालयों में पाठकों की सुविधा के लिए कम्प्यूटर के अलावा कूलर, वाटर कूलर व पीने के पानी को शुद्ध करने के लिए आरओ भी लगवाया जाएगा।

पुस्तकालय का नाम                      राशि
 केंद्रीय पुस्तकालय अंबाला कैंट         6 लाख
जिला पुस्तकालय सिरसा                 लाख
जिला पुस्तकालय कुरुक्षेत्र                5 लाख
जिला पुस्तकालय पंचकूला              5 लाख
जिला पुस्तकालय हिसार                 4 लाख
जिला पुस्तकालय गुड़गांव                4 लाख
जिला पुस्तकालय नारनौल               4 लाख
जिला पुस्तकालय रोहतक                4 लाख
जिला पुस्तकालय सोनीपत              3 लाख
जिला पुस्तकालय करनाल               3 लाख
जिला पुस्तकालय भिवानी               3 लाख
जिला पुस्तकालय कैथल                 3 लाख
जिला पुस्तकालय यमुनानगर          3 लाख
जिला पुस्तकालय पानीपत              3 लाख
जिला पुस्तकालय जींद                   3 लाख
जिला पुस्तकालय रेवाड़ी                 3 लाख
जिला पुस्तकालय फतेहाबाद           3 लाख
जिला पुस्तकालय झज्जर               2 लाख
जिला पुस्तकालय नूह                     2 लाख
जिला पुस्तकालय फरीदाबाद           2 लाख
उपमंडल पुस्तकालय आदमपुर         1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय हांसी                1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय मंडी डबवाली     1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय गोहाना             1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय चरखी दादरी     1 लाख
कुल                                             75 लाख

चिकित्सक नदारद, मरीज परेशान

9:22 बजे अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड में खाली पड़ी चिकित्सक की कुर्सी
9:25 बजे नेत्र चिकित्सक कक्ष में खाली पड़ी चिकित्सक की कुर्सी
9:33 बजे महिला वार्ड में खाली पड़ी लेडी डाक्टर की कुर्सी।
9:41 बजे टीका कक्ष में चिकित्सक की कुर्सी पर बैठा बच्चा।

नरेंद्र कुंडू
जींद।
मरीजों के लिए चिकित्सक ही भगवान होते हैं, लेकिन अगर भगवान ही भक्त को अपने हाल पर तड़फता छोड़ दे तो भक्त का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा आप लगा ही सकते हैं। ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है शहर के सामान्य अस्पताल में। अस्पताल में मरीजों की लंबी लाइनें लगी रहती हैं, लेकिन मरीजों के भगवान यानि चिकित्सक अस्पताल से नदारद रहते हैं। समय पर उपचार न मिलने के कारण मरीज चिकित्सा कक्ष के बाहर ही तड़फते रहते हैं। ये बात अलग है कि अस्पताल में चिकित्सकों की भारी कमी है, लेकिन मौजूदा चिकित्सक भी समय पर ड्यूटी पर नहीं पहुंच रहे हैं। जिस कारण मरीजों कोभारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
एक तरफ प्रदेश सरकार सरकारी अस्पतालों में लोगों को बेहतर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध करवाने के दावे कर रही है। सरकार की तरफ से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाई जा रही है। लेकिन सरकार के ये दावे सिर्फ कागजों तक ही समित रहते हैं। अस्पताल में ईलाज के लिए जाने वाले मरीजों को ईलाज की जगह दर्द के सिवाय कुछ नहीं मिलता है। यहां चिकित्सकों की लापरवाही इन गरीब व लाचार लोगों पर भरी पड़ती है। चिकित्सकों का अस्पताल में न तो आने का कोई समय है और न ही जाने का। मरीज अगर चिकित्सकों के आने के बारे में अगर किसी कर्मचारी से पूछते हैं तो कर्मचारी भी चिकित्सक के राऊंड पर जाने की बात कह कर मरीजों को टरका देते हैं और मरीज के पास चुपचाप लाइन में लगकर इंतजार करने के अलावा ओर कुछ चारा नहीं होता। शहर के सामान्य अस्पताल की ऐसी ही शिकायतें आज समाज को पिछले कई दिनों से मिल रही थी। शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए टीम सामान्य अस्पताल पहुंची तो वहां का नजारा वाकई ही चौंकाने वाला था। सर्दी के मौसम में चिकित्सकों का अस्पताल में पहुंचने का समय है सुबह 9 बजे निर्धारित है। टीम ने सुबह 9:20 मिनट पर सामान्य अस्पताल में प्रवेश किया। इसके बाद 9:22 पर टीम पहुंची अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड में वहां पर सिर्फ दो स्टाफ नर्स ही मौजूद थी, एमरजेंसी वार्ड की चिकित्सक की कुर्सी खाली पड़ी थी। टीम ने यहां के चित्र को कैमरे में कैद किया और आगे बढ़ गई। टीम 9:25 मिनट पर पहुंची नेत्र जांच कक्ष में यहां मरीज तो थे, लेकिन चिकित्सक नदारद थे। इसके बाद टीम 9:33 मिनट पर पहुंची महिला वार्ड। यहां भी मरीजों की लंबी लाइन और लेडी डाक्टर की कुर्सी खाली पड़ी थी। वहां ईलाज करवाने आई सुमन, राजबाला, संतरो ने बताया कि वे काफी देर से यहां बैठी हैं, लेकिन अभी तक लेडी डाक्टर का कोई अता-पता नहीं है। इसके बाद 9:41 पर टीम सीधे पहुंची टीकाकरण कक्ष। टीका कक्ष में चिकित्सक की कुर्सी पर एक बच्चा बैठा हुआ था। बच्चे के अलवा वहां पर एक महिला भी मौजूद थी। संवाददाता ने जब महिला से बातचीत की तो महिला ने बताया कि वह तो अपने बच्चे को टीका लगवाने आई है और 9:30 बजे से यहां बैठी, लेकिन अभी तक किसी  ने उसकी सुध नहीं ली है। टीम ने बच्चे के इस अंदाज को कैमरे में कैद किया और हड्डी रोग कक्ष की तरफ चल दी। यहां पर चिकित्सक के मौजूद न होने के कारण मरीज कमरे में ताक-झाक कर वापिस जा रहे थे। टीम ने 9:45 पर हड्डी रोग कक्ष में प्रवेश किया और यहां भी नजारा वही था। टीम जब कक्ष में पहुंची तो वहां बैठे एक बुजुर्ग ने संवाददाता को ही चिकित्सक समझ कर अपने ईलाज के लिए मिन्नतें करनी शुरू कर दी। टीम ने जब बुजुर्ग से अपना परिचय दिया और उससे पूछा तो बुजुर्ग ने बताया कि उसके हाथ में दर्द है और वह ईलाज के लिए यहां काफी देर से बैठा है। लेकिन अभी तक चिकित्सक का कहीं अता-पता नहीं है।
सिफारशि को मिलती है प्राथमिकता
चिकित्सकों की लेट लतिफी के कारण मरीजों की लंबी लाइनें लग जाती हैं। जिस कारण ईलाज के लिए मरीजों को काफी देर तक इंतजार करना पड़ता है। चिकित्सक के कक्ष में प्रवेश करते ही सिफारशियों का तांता लगना शुरू हो जाता है। जिसके चलते लाइन में लगे मरीजों का इंतजार ओर लंबा हो जाता है। क्योंकि चिकित्स लाइन में लगे मरीजों को प्राथमिकता न देकर सिफारशियों की जांच पहले करते हैं। अगर कोई मरीज इस बात पर ऐतराज जताता है तो चिकित्सक के तेवर ओर उग्र हो जाते हैं और चिकित्सक मरीज के साथ अभद्र व्यवहार पर उतर आता है।







अब दूधिया रोशनी से जगमगाएगा हर्बल पार्क

सौर ऊर्जा लाइटों पर खर्च होंगे 16 लाख
हर्बल पार्क का फोटो
नरेंद्र कुंडू
जींद।
हर्बल पार्क में सैर करने वालों के लिए एक अच्छी खबर है। अब शहर के लोग पार्क में देर रात्रि तक सैर कर सकेंगे, क्योंकि हर्बल पार्क रात्रि के समय सौर ऊर्जा की दूधिया लाइटों से जगमगाएगा। पार्क में सौर ऊर्जा की लाइटें लगाने के लिए वन विभाग ने एक खास योजना तैयार की है। जिला प्रशासन की तरफ से वन विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना पर मोहर लगा दी गई है। इस योजना के तहत पार्क में 200 के करीब लाइटें लगाई जाएंगी। सौर ऊर्जा विभाग द्वारा लाइटों पर आने वाले खर्च का बजट तैयार कर वन विभाग को भेज दिया गया है। अक्षय ऊर्जा विभाग द्वारा वन विभाग को भेजे गए खर्च के ब्यौरे के अनुसार इस योजना पर 16 लाख रुपए खर्च होने का अनुमान है। विभाग द्वारा अब जल्द ही योजना को अमीलजामा पहना दिया जाएगा।
हर्बल पार्क के सौंदर्यकरण के लिए अब जिला प्रशासन ने कमर कस ली है। हर्बल पार्क को चकाचक बनाने के लिए उपायुक्त ने वन विभाग के उच्चाधिकारियों को सख्त निर्देश जारी किए हैं। वन विभाग द्वारा हर्बल पार्क में अब हर प्रकार की सुविधा मुहैया करवाई जाएगी। फिलहाल पार्क में लाइट की व्यवस्था के लिए एक खास योजना तैयार की गई है। योजना के तहत पार्क में सौर ऊर्जा की 200 के करीब लाइटें लगाई जाएंगी। जिससे रात के समय में पार्क दूधिया रोशनी से जगमगाएगा। पार्क में सौर ऊर्जा की दूधिया रोशनी से पार्क की फिजा को चार चांद लग जाएंगे। लाइट व्यवस्था के बाद पार्क में देर रात तक चहलकदमी नजर आएगी। जिला प्रशासन द्वारा वन वि•ााग के इस फैसले पर मोहर लगा दी गई है। योजना को सिरे चढ़ाने की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। वन विभाग द्वारा सौर ऊर्जा विभाग को प्रपोजल भेज कर योजना पर होने वाले खर्च की जानकारी मांगी गई थी। सौर ऊर्जा विभाग ने लाइटों पर आने वाले खर्र्च का बजट तैयार कर वन विभाग को भेज दिया है। सौर ऊर्जा विभाग द्वारा वन विभाग को भेजे गए बजट के अनुसार पार्क में लाइट व्यवस्था पर 16 लाख रुपए तक का खर्च आने का अनुमान है।
पगडंडियां भी होंगी पक्की
वन विभाग द्वारा हर्बल पार्क का कायाकल्प किया जा रहा है। इस दौरान हर्बल पार्क की सुंदरता को बनाए रखने के लिए वन विभाग द्वारा पार्क की पगडंड़ियों को भी पक्का करवाने का निर्णय लिया गया है। वन विभाग जल्द ही इस योजना पर भी अमल करेगा। पार्क में सैर करने वाले लोगों को कच्ची पगडंडियों के कारण बरसात के दिनों में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब वन विभाग पार्क की सभी पगड़ंडियों को पक्का करवाएगा। पार्क की पगडंडियों के लिए वन विभाग द्वारा अलग से बजट तैयार किया जाएगा।
योजना पर जल्द होगा अमल
हर्बल पार्क के सौंदर्यकरण व पार्क में सैर करने वाले लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए यह योजना तैयार की गई है। उपायुक्त की ओर से भी योजना को हरी झंडी मिल चुकी है। लाइटों पर आने वाले खर्च का रिकार्ड तैयार करवाने के लिए सौर ऊर्जा विभाग को प्रपोजल भेजा गया है। सौर ऊर्जा विभाग की ओर से योजना पर खर्च का एस्टिमेट तैयार होते ही योजना को मूर्त रूप दे दिया जाएगा।
सुनील कुंडू रेंज फोरेस्ट आफिसर, जींद
9जेएनडी21 : शहर का हर्बल पार्क जहां सौर ऊर्जा की लाइटें लगाने का प्रपोजल तैयार किया गया है।

वेतन न मिलने से कड़की में गुरुजी

इधर-उधर से उधार लेकर कर रहे हैं आटा-दाल का इंतजाम
नरेंद्र कुंडू
जींद।
6 से 8 हैड के तहत कार्यरत अध्यापकों को पिछले कई माह से वेतन नहीं मिल रहा है। कई माह से वेतन अटकने के कारण गुरुजी कड़की में हैं। अध्यापक संघ द्वारा बार-बार ज्ञापनों के बावजूद भी अध्यापकों को वेतन नहीं मिल रहा है। इस वजह से घर का गुजारा मुश्किल हो गया है। भूखे पेट भजन नहीं होत गोपाला वाली कहावत यहां साफ जाहिर हो रही है। अगर अध्यापकों के सामने ही रोटी के लाले पड़ जाएंगे तो ये बच्चों को किस तरह शिक्षा दे पाएंगे। अध्यापक इधर-उधर से उधार लेकर आटा-दाल का इंतजाम कर रहे हैं। करियाना दुकानदार से लेकर दूध वाले तक जल्द हिसाब करने के लिए आंखें दिखाने लगे हैं। हालत यह हो गई है कि अध्यापक यूनियनों को आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना पड़ रहा है।
जिले में 6 से 8 हैड में कार्यरत हजारों अध्यापकों को पिछले कई माह से वेतन नहीं मिल रहा है। पिछले कई माह से वेतन न मिलने के कारण इस महंगाई के दौर में गुरु जी कड़की में हैं। समय पर वेतन न मिल पाने के कारण करियाना दुकान वाले ने राशन व दूध वाले ने दूध की सप्लाई बंद कर दी। महंगाई ने वैसे ही कमर तोड़ रखी है। ऐसे में देर से वेतन मिलना मुश्किलों को बढ़ा रहा है। अध्यापक यूनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार को पक्के नियम बनाने चाहिएं और सभी को समय पर वेतन देना चाहिए।
सरकार बताये कैसे चलाएं घर का खर्च
हरियाणा अध्यापक संघ के सचिव संजीव सिंगला ने बताया कि 6 से 8 हैड के तहत कार्यरत हजारों अध्यापकों को पिछले कई माह से वेतन न मिल पाने के कारण घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। दोस्तों-रिश्तेदारों से उधार लेकर करियाना व दूध वाले का भुगतना करना पड़ रहा है। घर के बड़े.बुजुर्गो की दवा का इंतजाम भी मुश्किल हो गया है। सिंगला ने कहा कि हर साल वेतन भुगतान में देरी होती है। बार-बार ज्ञापन देने के बावजूद भी समय पर वेतन नहीं जारी होता। अधिकारी हर बार एक्सपेंडेशन न मिलने का बहाना बनाकर अपना पल्ला झाड़ देते हैं। अब सरकार ही बता दे कि इस महंगाई के दौर में घर का खर्च कैसे चलाएं।
जल्द हो सकता है आंदोलन का शंखनाद
6 से 8 हैड के तहत कार्यरत अध्यापकों का पिछले कई माह से वेतन अटका पड़ा है। जिससे अध्यापक वर्ग में रोष पनप रहा है। संघ द्वारा जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी से कई बार समय पर वेतन देने की मांग की जा चुकी है, लेकिन अधिकारी उनकी समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। अगर जल्द से जल्द अध्यापकों को वेतन नहीं दिया गया तो संघ जल्द ही आंदोलन का शंखनाद कर देगा।
महताब मलिक
राज्य उपप्रधान, हरियाणा अध्यापक संघ

समय पर नहीं मिलती एक्सपेंडेशन
स्कूलों द्वारा अध्यापकों की एक्सपेंडेशन तैयार कर विभाग को नहीं भेजी जा रही हैं। जिस कारण अध्यापकों को वेतन देने में देरी होती है। स्कूलों से एक्सपेंडेशन तैयार करवाकर विभाग को देने की जिम्मेदारी बीईओ की होती है। सभी बीईओ को समय पर एक्सपेंडेशन तैयार करवा कर विभाग को देने के सख्त निर्देश दिए गए हैं।
साधू राम रोहिला
जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी, जींद

महज 44 दिनों में टूटे 6 साल के रिकार्ड

जरूरतमंद को रक्त देते ब्लड बैंक के कर्मचारी
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिलेभर में चल रही ब्लड डोनेशन की मुहिम जबरदस्त रंग ला रही है। ब्लड डोनेशन के मामले में मात्र 44 दिनों में ही पिछले 6 सालों के रिकार्ड टूट गए हैं। जिस तरह से जिले के लोग रक्तदान के लिए सामने आ रहे हैं, उसकी उम्मीद खुद स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन को भी नहीं थी। 44 दिनों में 2050 यूनिट रक्त जमा हो चुका है। जिले का ब्लड बैंक ‘ब्लड’ से मालामाल हो गया है। अब स्थिति यह हो गई है कि जिले के ब्लड बैंक के पास ब्लड रखने के लिए जगह नहीं है। इस कारण अब शिविरों में एकत्रित किए गए रक्त को आस-पास के जिलों में भेजा जा रहा है। ब्लड बैंक अच्छी स्थिति में होने के कारण अब जरूरतमंद से ब्लड के बदले ब्लड नहीं लिया जा रहा है।
रक्तदान के प्रति युवाओं में आ रही जागृति ने ब्लड बैंक को ब्लड से मालामाल कर दिया है। युवाओं में इस तरह की जागृति लाने के पीछे रेड क्रॉस, नेहरू युवा केंद्र व सामान्य अस्पताल की ब्लड बैंक की टीम अपना विशेष सहयोग दे रही है। रेड क्रॉस से ईश्वर सांगवान, ब्लड बैंक के इंचार्ज जेके मान व नेहरू युवा केंद्र के कोर्डिनेटर प्रदीप युवाओं को रक्तदान के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इस टीम का नेतृत्व कर रहे हैं उपायुक्त डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया। उपायुक्त डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया के सानिध्य में शुरू की गई इस मुहिम ने जबरदस्त रंग दिखाया है। जिले में कुल 308 गांव हैं और रक्तदान शिविरों का आयोजन करने वाली इस टीम द्वारा 308 गांवों में 365 दिनों तक लगातार रक्तदान शिविरों का आयोजन करने की योजना तैयार की गई है। टीम द्वारा एक दिसंबर 2011 से शुरू की गई मुहिम ने महज 44 दिनों में ही पिछले 6 साल के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए हैं। 44 दिनों में 44 रक्तदान शिविरों के माध्यम से 2050 यूनिट रक्त एकत्रित किया जा चुका है और ब्लड डोनेशन की यह मुहिम अब रूकने का नाम नहीं ले रही है। रेड क्रॉस को युवाओं से मिल रहे अच्छे रिस्पोंस के कारण रेड क्रॉस ने रक्तदान शिविरों का मार्च तक का शैड्यूल तैयार कर लिया है। ब्लड डोनेशन की यह मुहिम इतनी गति पकड़ चुकी है कि रेड क्रॉस द्वारा रविवार को भी कैंपों का आयोजन किया जा रहा है। सामान्य अस्पताल का ब्लड बैंक ब्लड से लबालब हो चुका है। ब्लड बैंक में ब्लड के लिए जगह न होने के कारण अब आस-पास के जिलों से मदद ली जा रही है। जींद के अलावा कैथल, करनाल व रोहतक पीजीआई के ब्लड बैंक की टीमें भी ब्लड के लिए जींद पहुंच रही हैं। 
ब्लड के बदले नो रिप्लेशमेंट
ब्लड बैंक में रक्त की कमी न रहने के कारण ब्लड बैंक द्वारा जरूरतमंद से ब्लड के बदले ब्लड नहीं लिया जा रहा है। ब्लड बैंक द्वारा ब्लड के बदले मरीज से सिर्फ सरकारी चार्ज ही लिए जा रहा है। प्राइवेट अस्पताल में एडमिट मरीज को 500 रुपए में एक यूनिट ब्लड तथा सरकारी अस्पताल में एडमिट मरीज से एक यूनिट के बदले 250 रुपए चार्ज लिया जा रहा है। इसके अलावा सरकारी अस्पताल में एडमिट बीपीएल कार्ड धारक मरीज को मुफ्त में ब्लड दिया जा रहा है।
26 जनवरी पर किया जाएगा सम्मानित
ब्लड डोनेशन की इस मुहिम को आगे बढ़ाने व अन्य युवाओं को भी इस मुहिम में शामिल करने के लिए उपायुक्त ने एक विशेष फैसला लिया है। 26 जनवरी पर उपायुक्त या संबंधित मंत्री द्वारा सबसे ज्यादा रक्तदान करने वाले रक्तदाता व सबसे ज्यादा रक्तदान शिविर लगाने वाली संस्था को सम्मानित किया जाएगा।
वर्ष       कैंप लगे    यूनिट रक्त
2006         30        1570
2007         29        1570
2008         29        1255
2009         43        2096
2010         52        2546
नवंबर 2011   54   2997
1 दिसंबर 2011 से
13 जनवरी 2012 तक  44        2050   

रविवार, 8 जनवरी 2012

पशु तस्करों के लिए सुरक्षित गलियारा बना जींद

 नरेंद्र कुंडू
जींद।
पशु तस्करों के लिए जींद जिला सुरक्षित गलियारा साबित हो रहा है। पशु तस्कर पंजाब के क्षेत्रों से सस्ता पशुधन खरीदकर इसे यूपी में महंगे दामों पर बूचड़खानों में बेच रहे हैं। इसके लिए पशु तस्करों को केवल जींद जिले की सीमाओं को ही लांघना होता है। बस जींद क्षेत्र पार किया और पंजाब से झट यूपी में प्रवेश कर जाते हैं। इस तरह से जींद जिला पशु तस्करों के लिए आसान व सुरक्षित गलियारा बन गया है। इसका प्रमाण मिल रहा है दिन-प्रतिदिन यहां सामने आ रहे पशु तस्करी के मालमों से।
पशुतस्करी का धंधा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। ठंड बढ़ने के साथ ही पशु तस्करों की गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं। इन तस्करों के निशाने पर सबसे ज्यादा पंजाब व हरियाणा रहता है। पशु तस्कर पंजाब से सस्ता पशुधन खरीद कर उसे महंगे दामों पर बेचने के लिए हरियाणा के रास्ते यूपी के बुचड़खानों में ले जाते हैं। पशु तस्करी के लिए इन तस्करों ने हरियाणा के जींद जिले को अपना सबसे सुरक्षित गलियारा बनाया हुआ है, क्योंकि पंजाब से यूपी जाने के लिए यह सबसे छोटा रास्ता है। पशु तस्करी के दौरान इन्हें रास्तों को लेकर किसी प्रकार की परेशानियों का सामना न करना पड़े, इसलिए ये तस्कर पंजाब की सीमा से सटे क्षेत्र में अपने विश्वस्त सहायक तैयार कर लेते हैं। पशु तस्करी को अंजाम देते समय ये तस्कर यहां पर मौजूद अपने सहायकों का सहारा लेते हैं। जब इन्हें कभी गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है तो साथ में मौजूद इनका लोकल सहयोगी इन्हें रास्तों से अवगत करवा कर आसानी से बचा कर निकाल देता है।
पुलिस पार्टी पर हमले से भी नहीं चुकते
ये तस्कर रात के समय पशुओं की तस्करी करते हैं यदि पुलिस से इनकी मुठभेड़ हो भी जाए तो ये तस्कर हर प्रकार के हथकंडे अपना लेते हैं। पहले तो ये पुलिस से सांठ-गांठ करने की कोशिश करते हैं। यदि पुलिस के साथ इनकी सांठ-गांठ नहीं हो पाती तो ये पुलिस पार्टी पर हमला करने से भी नहीं चुकते हैं। इस दौरान यदि इनको गोली भी चलानी पड़े तो ये बेखौफ  होकर पुलिस पर गोली बारी करके फरार हो जाते हैं।
स्थानीय लोगों के साथ भी हो चुकी है झड़प
अकेले नरवाना क्षेत्र में पिछले एक माह में पशु तस्करी के एक दर्जन से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। अधिकतर मामलों में पशु तस्करों ने भागने के लिए पुलिस व स्थानीय लोगों के साथ झड़प भी की है। लगभग एक पख्वाड़ा पहले भी नरवाना में पशु तस्करों ने पीछा कर रहे स्थानीय लोगों पर हमला बोल दिया था। जिसके बाद गुस्साए लोगों ने पकड़े गए ट्रक को आग के हवाले कर दिया था और तस्करों की जमकर पिटाई की थी।
कानून में नहीं सख्त सजा का प्रावधान
पशु तस्करी के मामले में सख्त कानूनी प्रक्रिया का प्रावधान न होने के कारणा इन तस्करों के हौंसले काफी बुलंद हैं। पशु तस्करी के आरोप में पकड़े जाने पर अधिकतर मामलों में थोड़ा बहुत जुर्माना लगा कर छोड दिया जाता है और इस तरह के मामले में जमानत भी साथ के साथ मिल जाती है। कानून में सख्त सजा का प्रावधान न होने के कारण ही पशु तस्करी के मामले कम नहीं हो रहे हैं। 
ट्रक से मुक्त करये 14 बैल
 तस्करों के कब्जे से बैलों को मुक्त करवाते स्थानीय लोग। 
शहर थाना पुलिस ने दिल्ली पटियाला राष्ट्रीय राजमार्ग पर आईटीआई के पास अलसुबह गौकशी के लिए ले जाए जा रहे बैलों से भरे एक ट्रक को काबू कर उससे 14 बैलों को मुक्त करवाया। पुलिस ने बैलों को मुक्त करवा स्थानीय गौशाला में छोड़ दिया। पुलिस को रात्रि गस्त के दौरान सूचना मिली थी कि पंजाब से एक ट्रक में बैलों को भर कर नरवाना के रास्ते यूपी ले जाया जा रहा है। पुलिस ने सूचना मिलते ही शहर में नाकेबंदी कर चेकिंग शुरू कर दी। इस दौरान उन्होंने पंजाब की तरफ से आ रहे एक ट्रक को रूकवाकर तलाशी ली तो ट्रक में बैलों को ठूंस-ठूंस कर भरा हुआ था। पुलिस ने ट्रक से 14 बैलों को मुक्त करवा कर स्थानीय गौशाला में छोड़ दिया। पुलिस ने मुज्जफरनगर निवासी दिलसाज व साजैव को हिरासत में लेकर उनके खिलाफ गौकशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है।


शनिवार, 7 जनवरी 2012

शिकायत देने के बाद गवाही से मुकरे तो खैर नहीं

धारा 182 के तहत दर्ज होगा मामला
नरेंद्र कुंडू 
जींद।
अब विजीलेंस ब्यूरो रिश्वतखोरों के साथ-साथ उन शिकायतकर्त्ताओं पर शिकंजा कसने जा रहा है, जो शिकायत देकर बाद में गवाही के दौरान मुकर जाते हैं। गवाही के दौरान मुकरने वाले शिकायतकर्त्ता के खिलाफ धारा 182 के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। अधिकतर मामलों में शिकायतकर्त्ता द्वारा गवाही के दौरान मुकर जाने के कारण विजीलेंस द्वारा रंगे हाथों पकड़ा गया कर्मचारी बच निकलता था और कोर्ट में विजीलेंस की फजीहत होती थी। सरकार द्वारा जारी इन आदेशों के बाद अब शिकायतकर्त्ता मुकर नहीं सकेगा और रिश्वत के आरोप में धरे गए कर्मचारी का बचना मुश्किल हो जाएगा।
सरकारी कार्यालयों से रिश्वतखोरी को मिटाने के लिए विजीलेंस का गठन किया गया था। लेकिन विजीलेंस की लाख कोशिशों के बावजूद भी आरोपी कर्मचारी बच निकलते थे। रिश्वत के आरोप में धरे गए कर्मचारी को बचाने में खुद शिकायतकर्त्ता ही उसकी ढाल बनता था। अधिकतर मामलों में पकड़े गए कर्मचारी द्वारा शिकायतकर्त्ता को पैसे देकर या सामाजिक दबाव बनाकर समझौता कर लिया जाता था। जिस के बाद शिकायतकर्त्ता कोर्ट में गवाही के दौरान मुकर जाता था। शिकायतकर्त्ता द्वारा गवाही से मुकर जाने के बाद विजीलेंस द्वारा रंगे हाथों पकड़ा गया कर्मचारी बच निकलता था। इससे कोर्ट में विजीलेंस की फजीहत होती थी। लेकिन अब शिकायतकर्त्ता गवाही के दौरान मुकर नहीं सकेगा। अगर गवाही के दौरान शिकायतकर्त्ता मुकरता है तो उसके खिलाफ धारा 182 के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी। सरकार द्वारा जारी किए गए इन आदेशों के बाद अब शिकायतकर्त्ता के गवाही से मुकरने के चांस बहुत कम हो गए हैं। इन आदेशों के बाद अब विजीलेंस को तो राहत मिलेगी ही साथ-साथ रिश्वतखोरों पर भी विजीलेंस का शिकंजा कसेगा।
सरकारी कार्यालयों के बाहर लिखवाए जा रहे हैं नंबर
अन्ना हजारे व बाबा रामदेव द्वारा शुरू की गई भ्रष्टाचारी विरोधी मुहिम का असर विजीलेंस ब्यूरो की कार्यप्रणाली पर भी देखने को मिल रहा है। अब विजीलेंस रिश्वतखोरों पर शिकंजा कसने तथा लोगों को जागरूक करने के लिए हर सरकारी विभाग के बाहर बोर्ड लगा रहा है, इसमें विजीलेंस के कॉन्टेक्ट नंबर दर्शाए गए हैं। किसी कर्मचारी द्वारा रिश्वत मांगने पर तुरंत इन नंबरों पर शिकायत दी जा सकेगी। विभाग ने अभियान को सफल बनाने के लिए सभी सरकारी कार्यालयों के बाहर अपने नंबर लिखवा दिए हैं। किसी कर्मचारी द्वारा रिश्वत मांगने पर 9991411155 व 01681-245358 पर संपर्क कर शिकायत की जा सकती है।
विजीलेंस द्वारा पकड़े गए कर्मचारियों का ब्यौरा
महिना        विभाग का नामजनवरी 2011    बीडीपीओ
फरवरी 2011    पब्लिक हैल्थ से एक्सईएन
जुलाई 2011    बिजली निगम से जेई
अगस्त 2011    हुडा विभाग से क्लर्क
सितंबर 2011    नहरी विभाग से जेई
अक्तूबर 2011    सामान्य अस्पताल से क्लर्क

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

शूटिंग रेंज के अभाव में दम तोड़ रही खेल प्रतिभाएं

शूटिंग रेंज के लिए 2008 में भेजा गया था मुख्यमंत्री को ज्ञापन 
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में पिछले चार साल से उठ रही शूटिंग रेंज की आवाज के बाद भी आज तक शूटिंग रेंज अस्तित्व में नहीं आ पाई है। जिला प्रशासन बिना शूटिंग रेंज व सुविधाओं के अभाव में ही खिलाड़ियों से मैडलों की आश लगाए बैठा है। शूटिंग रेंज के अभाव के कारणा एनसीसी कैडेट्स व होमगार्ड के जवानों को फायरिंग की ट्रायल देने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिले में फिलहाल पांडू पिंडारा गांव के पास अस्थायी शूटिंग रेंज चल रही है, जिससे जान व माल का बड़ा खतरा रहता है। खुले में चल रही शूटिंग रेंज के कारणा यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
जिले में शूटिंग रेंज न होने के कारण खेल प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं। खिलाड़ियों को मजबूरन जिले से बाहर प्राइवेट शूटिंग रेंज में जाकर अपने खर्च पर अभयास करना पड़ रहा है। प्राइवेट शूटिंग रेंज में प्रशिक्षण का खर्च ज्यादा होने के कारण खिलाड़ियों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जिस कारण खिलाड़ी खेल से मुहं मोड़ रहे हैं। खिलाड़ियों के अलावा एनसीसी कैडेट्स व होमगार्ड के जवानों को भी प्रशिक्षण के दौरान काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिले में हर साल एनसीसी के दो एनुअल ट्रेनिंग कैंप लगते हैं। इन कैंपों में जींद के अलावा रोहतक जिले के कैडेस भी भाग लेते हैं। इन कैंपों में कैडेस को फायरिंग का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। लेकिन जिले में शूटिंग रेंज के अभाव के कारण कैडेस को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा होम गार्ड के जवानों को भी साल में कई बार फायरिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन जिले में शूटिंग रेंज की व्यवस्था न होने के कारण जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर दूर स्थित पांडू पिंडारा गांव में अस्थाई तौर पर शूटिंग रेंज तैयार की गई है। जिले में स्थाई तौर पर शूटिंग रेंज न होने के कारण यहां होमगार्ड के जवानों से खुले में ही फायरिंग करवाई जाती है। खुले में फायरिंग होने के कारण यहां कभी  भी बड़ा हादसा हो सकता है। लेकिन जिला प्रशासन को इससे कोई सरोकार नहीं है। जिले के खिलाड़ियों द्वारा शूटिंग रेंज के लिए जिला प्रशासन व मुख्यमंत्री से कई बार गुहार लगाई गई है, लेकिन आज तक जिले में स्थाई रूप से कहीं पर भी शूटिंग रेंज की कोई व्यवस्था नहीं की गई। जिले में शूटिंग के खले को बढ़ावा देने के लिए खेल गांव निडानी व पड़ाना गांव की पंचायत जिला प्रशासन को शूटिंग रेंज स्थापित करने के लिए गांव की शामलात जमीन देने को तैयार हैं। इसके लिए दोनों गांव की पंचायतों ने 2008 में खिलाड़ियों के साथ मिलकर उपयुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी  भेजा था। लेकिन पंचायत के इस प्रपोजल की तरफ जिला प्रशासन और सरकार का  कोई ध्यान नहीं है।
निशुल्क प्रशिक्षण देकर प्रतिभाशाली शूटर तैयार करने की है तमन्ना
जिले से सीनियर राज्य शूटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने वाले जिले के एकमात्र खिलाड़ी सुरेश पूनिया भी शूटिंग रेंज स्थापित करने की मांग को लेकर कई बार जिला अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं। सुरेश पूनिया स्वयं निशुल्क प्रशिक्षण देकर जिले के कई प्रतिभाशाली शूटरों को तैयार करना चाहते हैं, लेकिन शूटिंग रेंज न होने के कारण खुले में फायरिंग करना खतरनाक साबित हो सकता है।
शूटिंग रेंज जिले की जरूरत
जिले में शूटिंग रेंज होना अनिवार्य ही नहीं, अपितू जिले की जरूरत भी  है। जिले में एक एनसीसी कॉम्पलेक्स बना कर उसी कॉम्पलेक्स में शूटिंग रेंज स्थापित की जानी चाहिए। जिले में एनसीसी कॉम्पलेक्स बनने के बाद एक पंथ दो काज हो सकते हैं। यहां पर एनसीसी के एनुअल कैंप के साथ-साथ कैडेट्स व अन्य खिलाड़ियों को फायरिंग का प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है।
मेजर महताब एनसीसी, जींद
अस्थाई तौर पर की गई है शूटिंग रेंज की व्यवस्था
जिले में शूटिंग रेंज न होने के कारण पांडू पिंडारा गांव में अस्थाई तौर पर शूटिंग रेंज की व्यवस्था की गई है और इस रेंज पर होमगार्ड के जवानों को फायरिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। होमगार्ड के जवानों को प्वाइंट टूटू राइफल से प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन राज्य स्तर की शूटिंग प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए रिवाल्वर, पिस्टल व अन्य हथियारों का अभयास होना अति आवश्यक है। लेकिन इन हथियारों के प्रशिक्षण के लिए जिले में कोई रेंज नहीं है।
बीरबल कुंडू जिला कमांडेंट होमगार्ड, जींद

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

प्रदेश की पंचायतों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी बीबीपुर की पंचायत

ई डिजीटल पंचायत का निर्माण कर अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर लहराया परचम

बीबीपुर पंचायत का इंटरनेट पर बनाये गई वेबसाइट
नरेंद्र कुंडू
जींद।
एक तरफ जहां ग्रामीण क्षेत्र विकास कार्यों में पिछड़ रहे हैं, वहीं जिले का एक गांव ऐसा भी है, जिसने विकास के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए छोटे से लेकर बड़े प्रोजैक्ट में अपनी भागीदारी दर्ज करवाई है। आदर्श गांव का दर्जा प्राप्त करने के साथ-साथ डिजीटल पंचायत बनाकर देश की प्रथम हाईटेक पंचायत की सूची में अपना नाम दर्ज करवाया है। जिले के बीबीपुर गांव की पंचायत राष्टÑीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुकी है। बीबीपुर गांव की पंचायत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर प्रदेश की पंचायत के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गई है। ताज्जुब की बात तो यह है कि बीबीपुर गांव की पंचायत को आज तक प्रदेश सरकार की तरफ से एक भी ग्रांट नहीं मिली है। गांव में सारे विकास कार्य जिला प्लानिंग के तहत मिलने वाली ग्रांट व पंचायती फंड से करवाए गए हैं। 
जिला जींद जहां विकास कार्यों में पिछड़ने के कारण अपनी पहचान खो रहा है, वहीं जिले का गांव बीबीपुर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जिले का प्रतिनिधित्व कर जिले को गौरवांतित कर रहा है। अपने विकास कार्यों के बलबुते ही गांव की पंचायत अक्षय ऊर्जा अवार्ड सहित अन्य कई पुरस्कार जीत कर पूरे वर्ष सुर्खियों में रही है। गांव को इस मुकाम तक पहुंचाने में गांव के युवा व जागरूक सरपंच सुनील जागलान ने अहम भूमिका निभाई है। अपने थोड़े से कार्यकाल में ही गांव का कायाकल्प करते हुए गांव की पंचायत को पूरे प्रदेश की पहली हाईटेक पंचायत का दर्जा दिलवाकर अपनी सुझबुझ का परिचय दिया। विकास कार्यों में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए डिजीटल पंचायत का निर्माण किया गया। जिससे गांव के विकास कार्यों में तो पारदर्शिता आई ही, साथ-साथ गांव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान भी  मिली। गांव की उपलब्धियों को देखते हुए अब तक 18 देशों के लोग गांव में विजिट कर चुके हैं। इसके अलावा इंग्लैंड की ओआरसीबीटी संस्था गांव को गोद लेने के लिए कई बार गांव की विजिट कर चुकी है। गत माह मिनिस्ट्री आफ रूरल डेवलपमेंट एवं डिजीटल फाऊंडेशन इंडिया द्वारा इंडिया हेबिटेट सेंटर नई दिल्ली में आयोजित डिजीटल पंचायत समिट में गांव के सरपंच सुनील कुमार ने हरियाणा प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया था। इस समिट में 8 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
प्रदेश सरकार की ओर से नहीं मिली कोई ग्रांट
बीबीपुर गांव भले ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा चुका हो, लेकिन ताज्जूब की बात तो यह है कि गांव को प्रदेश सरकार द्वारा आज तक कोई ग्रांट नहीं मिली है। गांव में सभी विकास कार्य वल्ड बैंक द्वारा जिला प्लानिंग योजना के तहत भेजे जाने वाले पैसे व पंचायती फंड से करवाए जा रहे हैं। गांव की पंचायत ने गांव में नरेगा योजना के तहत सबसे अधिक कार्य करवाए हैं।
थाने नहीं जाते गांव के लोग
बीबीपुर गांव के लोग थाने-तहसील में ज्यादा विश्वास नहीं रखते हैं। इसलिए गांव में हुए आपसी विवादों को पंचायत के माध्यम से ही निपटा लेते हैं। गांव में आज तक मात्र दो केस ही थाने तक पहुंचे हैं। पंचायत द्वारा 77 केसों का निपटारा गांव की चौपाल में बैठकर किया जा चुका है। यह भी अपने-आप में एक विशेष उपलब्धि है।
खेलों को भी दिया जा रहा है बढ़ावा
विकास कार्यों के साथ-साथ बीबीपुर गांव में खेलों को •ाी बढ़ावा दिया जा रहा है। ग्राम पंचायत की तरफ से सभी  खेलों की टीमें बनाई गई हैं। गांव में पंचायत द्वारा खिलाड़ियों को खेल की सभी  सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं। समय-समय पर गांव में खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी  किया जाता है। पंचायत के सहयोग व खिलाड़ियों की अथक मेहनत के बलबुते गांव की हैंडबाल की टीम राज्य स्तर पर दो बार गोल्ड मैडल जीत चुकी है।
एचयूबीएन से वसूले 74 लाख 66 हजार
गांव की पंचायत द्वारा हरियाणा उत्तरी बिजली वितरण निगम को बिजली बोर्ड के लिए जमीन दी गई थी। लेकिन निगम द्वारा जमीन के बदले में गांव को किसी तरह की कोई सुविधा या कोई शुल्क नहीं दिया जा रहा था। बाद में गांव की पंचायत ने कोर्ट के माध्यम से निगम से जमीन के बदले 74 लाख 66 हजार रुपए की राशि वसूली, जिसे गांव के विकास कार्यों में प्रयोग किया जाएगा।
सुनील जागलान, सरपंच बीबीपुर
इस वर्ष क्या-क्या होने हैं विकास कार्य
गांव को सिंचाई आपूर्ति के लिए पानी उपलब्ध करवाने के लिए नहर का निर्माण होगा, जिसके लिए दो हजार एकड़ भूमि रिकवायर की गई है।
अन्न भंडारण के लिए केंद्रीय भंडारण निगम द्वारा गोदाम का निर्माण किया जाएगा।
अनाथ व बेसहारा बच्चों को आसरा देने के लिए बाल ग्रह का निर्माण किया जाएगा।
पंचायत घर का निर्माण किया जाएगा।
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए 26 जनवरी पर 18 बच्चों को सौर ऊर्जा की लाइटें वितरित की जाएंगी।
पाइलेट प्रोजैक्ट के तहत गांव में पानी संरक्षण सिस्टम का निर्माण किया जाएगा।

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

सुलगने लगी आंदोलन की चिंगारी

नए साल से करेंगे आंदोलन की शुरूआत
नरेंद्र कुंडू
जींद।
अपने साथ हो रहे सौतेले व्यवहार व अपने हक के लिए डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारियों में आंदोलन की चिंगारी सुलगने लगी है। मुख्यमंत्री द्वारा अनुबंधित अध्यापकों को वेतनवृद्धि का तोहफा दिए जाने के बाद डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारियों के अंदर छिपी ये चिंगारी अब उग्र रूप धारण कर रही है, जो जल्द ही आंदोलन का रूप धारण कर सकती है। समान काम व समान वेतन की मांग को लेकर लड़ाई लड़ने के लिए ये कर्मचारी आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहे हैं। अपने इस आंदोलन में अपनी मांगों के साथ-साथ काल का ग्रास बन चुके डीसी रेट के 93 कर्मचारियों के हक के लिए भी आवाज उठाई जाएगी। डीसी रेट के कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले आंदोलन के संकेत अभी गत दिवस 28 दिसंबर को नेहरू पार्क में हुई बैठक के माध्यम मिल चुके हैं। आंदोलन को सफल बनाने के लिए डीसी रेट के कर्मचारी सूचना एवं प्रौद्योगिकी का भी सहारा ले रहे हैं। एसएमएस के माध्यम से सभी कर्मचारियों को आंदोलन के लिए निमंत्रण दिया जा रहा है।
हरियाणा बिजली वितरण निगम ने कर्मचारियों की तंगी से राहत पाने के लिए 2008 में 6 हजार असिस्टेंट लाइनमैन (एएलएम) भर्ती किए थे। पिछले तीन साल से जान हथेली पर लेकर काम कर रहे ये कर्मचारी निगम व सरकार द्वारा कोई विशेष सुविधा मुहैया न करवाए जाने से निराश हैं। टूल किट व अन्य सुविधाओं के अभाव के कारण इन तीन सालों में डीसी रेट पर कार्यरत 93 कर्मचारी अपनी जान गवां चुके हैं। काम के दौरान जान गवाने वाले इन कर्मचारियों को निगम या सरकार द्वारा आज तक किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया गया है। निगम में कर्मचारियों की कमी के चलते डीसी रेट के कर्मचारियों के कंधों पर ही काम का सारा भार है। काम ज्यादा व वेतन कम होने के कारण ये कर्मचारी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा हाल ही में अनुबंधित अध्यापकों को दिए गए वेतन के तोहफे के बाद डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारियों के सब्र का बांध टूट गया है। अपने साथ हो रहे सौतेले व्यवहार से परेशान ये कर्मचारी अब अपने हक के लिए लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। डीसी रेट के कर्मचारियों द्वारा भविष्य में किए जाने वाले आंदोलन के संकेत हाल ही में 28 दिसंबर को शहर के नेहरू पार्क में हुई बैठक के माध्यम से मिल चुके हैं। अपने इस आंदोलन के लिए ये कर्मचारी रणनीति तैयार कर रहे हैं। कर्मचारियों द्वारा इस आंदोलन की शुरूआत भी नए साल से की जाएगी। नए साल पर शहर के नेहरू पार्क में होने वाली बैठक में पूरे प्रदेश के डीसी रेट के बिजली कर्मचारी भाग लेंगे और आंदोलन की आगामी रूपरेखा तैयार करेंगे।  
एसएमएस के माध्यम से दे रहे हैं निमंत्रण
समान काम, समान वेतन की मांग को लेकर अपने हक की लड़ाई लड़ने वाले इन कर्मचारियों ने आंदोलन को सफल बनाने के लिए हाईटेक विधि को अपनाया है। सूचना एवं प्रौद्योगीकी के इस युग में इन कर्मचारियों ने इंटरनेट  को अपना हथियार बनाया है। अपने आंदोलन को सफल बनाने के लिए डीसी रेट के कर्मचारियों ने नेट पर एसएमएस का अपना एकाऊंट बनवा लिया है और एसएमएस के जरिये अपने साथियों को निमंत्रण दे रहे हैं। ताकि आंदोलन में किसी भी प्रकार की कमी न रहे। अभी एसएमएस के माध्यम से एक जनवरी 2012 को जींद के नेहरू पार्क में एकत्रित होने के लिए निमंत्रण दिया जा रहा है।
मृतक कर्मचारियों के हक के लिए भी लड़ेंगे लड़ाई
इस आंदोलन के जरिये अपनी मांगों के साथ-साथ काम के दौरान काल का ग्रास बने उन 93 कर्मचारियों के हक के लिए भी आवाज उठाई जाएगी। सब डिविजन प्रधान रविंद्र राणा, सुनिल, जसबीर, सागर व योगेश बताया कि मृतक कर्मचारियों के परिजनों को कम से कम 5 लाख रुपए मुआवजा दिलवाने की मांग की जाएगी। ताकि मृतक कर्मचारी के परिजन आसानी से अपना गुजर-बसर कर सकें। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए हरियाणा उत्तरी बिजली निगम के पदाधिकारियों से भी सहयोग लिया जाएगा।
क्या है आंदोलन की रणनीति
अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए डीसी रेट के कर्मचारियों ने नए साल से आंदोलन की शुरूआत करने का निर्णय लिया है। एक जनवरी 2012 को शहर के नेहरू पार्क में पूरे प्रदेश के डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारी इकट्ठा होकर आंदोलन की आगामी रूप रेखा तैयार करेंगे। एक जनवरी 2012 को शहर के नेहरू पार्क में एकत्रित होंगे। यहां से शहर में प्रदर्शन कर उपायुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री व बिजली मंत्री के नाम अपना ज्ञापन सौंपेंगे। इसके बाद 7 जनवरी को बिजली मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के आवास का घेराव करेंगे। इसके बाद भी अगर मांगें पूरी नहीं हुई तो अन्ना हजारे के रास्ते पर चलते हुए जिला स्तर पर भूख हड़ताल करेंगे।
क्या हैं डीसी रेट के कर्मचारियों की मांगें
  1. नई भर्ती को रोक कर डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारियों को पक्का किया जाए।
  2. डीसी रेट के सभी कर्मचारियों को टूल किट उपलब्ध करवाई जाएं।
  3. पक्के कर्मचारियों के समान वेतन व अन्य सुविधाएं प्रदान की जाएं।
  4. काम के दौरान काल का ग्रास बने सभी कर्मचारियों को 5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए।

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

टूटे दिलों को जोड़ने की कवायद

परिवार परामर्श केंद्र ने निपटाए 867 मामले 
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला बाल कल्याण परिषद द्वारा चलाया जा रहा परिवार परामर्श केन्द्र रिश्तों में आई दरार को जोड़ने में वरदान साबित हो रहा है। परिवार परामर्श केन्द्र में अब तक 876 मामले सामने आए। जिसमें से परामर्शदाताओं ने 867 परिवारों को जोड़ने का काम किया। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष ज्यादा मामले निपटारे के लिए परिवार परामर्श केंद्र में आए हैं। हर वर्ष औसतन 50 से 60 मामले रजिस्ट्र हो रहे हैं। जागरूकता के अभाव के कारण दाम्पत्य जीवन में आई कड़वाहट को दूर करने व लोगों को जागरूक करने के लिए जिला बाल कल्याण परिषद ने गांव व कस्बों में जाकर जागरूकता शिविर लगाने का निर्णय लिया है।
आधुनिकता की चकाचौंध व भागदोड़ भरी जिंदगी के कारण आज इंसान अपने वास्तविक रिश्तों की पहचान खो रहा है। आपसी तालमेल के अभाव व जागरूकता की कमी के कारण दाम्पत्य जीवन में कड़वाहट बढ़ रही है। जिस कारण कई बार तो दोनों में तलाक तक की नौबत आ जाती है और लोग जागरूकता के अभाव के कारण कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ जाते हैं। कोर्ट-कचहरी की लंबी प्रक्रिया से हार-थक जाने के बाद भी जब उन्हें न्याय नहीं मिलता तो उन्हें अपनी गलती का अहसार होता और जब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वहीं जिला बाल कल्याण परिषद द्वारा चलाया जा रहा परिवार परामर्श केंद्र रिश्तों में आई इस दरार को जोड़ने में वरदान साबित हो रहा है। परिवार परामर्श केंद्र में 1995 से लेकर अब तक 876 केश रजिस्टर्ड हुए हैं। जिनमें से 867 मामलों का निपटारा किया जा चुका है और आज वो परिवार बड़े अच्छे ढंग से अपना जीवन बसर कर रहे हैं। परिवार परामर्श केंद्र के प्रति अब लोगों की सोच बदल रही है। अब अधिक से अधिक लोग परिवार परामर्श केंद्र के माध्यम से अपने मामलों का निपटारा करवाने में रुचि दिखा रहे हैं। हर वर्ष केंद्र में 50 से 60 मामले रजिस्ट्र हो रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 2010 की बजाए 2011 में ज्यादा मामले परिवार परामर्श केंद्र के पास पहुंचे हैं। 2010 में 54 मामले परिवार परामर्श केंद्र में आए थे, जिनमें से लगभग 90 प्रतिशत मामलों का समाधान आपसी सुलह से करवा दिया गया है और अप्रैल 2011 से सितंबर यानि 6 माह में 41 मामले रजिस्टर्ड हुए हैं, जिनमें से 32 मामलों का निपटारा आपसी सुलह से करवा दिया गया है और 9 केश अब भी विचाराधीन चल रहे हैं।
क्या होती है प्रक्रिया
जिला बाल कल्याण अधिकारी सुरजीत कौर आजाद व प्रोग्राम अधिकारी मलकीत चहल ने बताया कि कोई भी  पीड़ित व्यक्ति या महिला उनके पास आकर साधारण पत्र पर अपना केस रजिस्ट्र करवा सकता है। यहां पर सारी प्रक्रिया निशुल्क होती है, पीड़ित व्यक्ति से किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। उन्होंने बताया कि उनके पास केस आने के बाद वे पीड़ित पक्ष से सारी जानकारी जुटाते हैं और फिर दूसरे पक्ष को एक नोटिस देते हैं। दोनों पक्षों को केंद्र में बुलाकर उनसे पूरी जानकारी जुटाते हैं और फिर दोनों पक्षों की मीटिंग ले कर उनके बीच सुलह करवा कर उन्हें नए सिरे से जीवन बसर करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
किस तरह के केसों की होती है सुनवाई
दहेज पीड़ित महिलाओं के मामलों की
असहाय, लाचार व पीड़ित महिलाओं के मामलों
पति-पत्नी की पारिवारिक व व्यक्तिगत समस्याओं के मामलों की
गरीब, बेसहारा महिलाओं व व्यक्तियों के केसों की
दिमागी रूप से परेशान बच्चों व महिलाओं के मामलों की सुनवाई की जाती है।
किस तरह के मामले भेजे जाते हैं परिवार परामर्श केंद्र में
परामर्शदाता सुरेंद्र दुग्गल व सोमलता सैनी ने बताया कि परिवार परामर्श केंद्र के पास पीड़ित व्यक्ति सीधा आकर भी केस रजिस्ट्र करवा सकता है। इसके अलावा कोर्ट व डीसी द्वारा भी केस भेजे जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि मजिस्ट्रेट द्वारा घरेलू हिंसा संरक्षण की प्रक्रिया के दौरान किसी भी स्तर पर दोनों पक्षों के आपसी तालमेल के लिए परामर्शदाता के पास भेजा जा सकता है, यदि दोनों पक्ष समझोते के लिए तैयार होते हैं तो न्यायालय द्वारा समझोते के दृष्टिगत आदेश जारी कर परिवार परामर्श केंद्र के पास भेजे जा सकते हैं।
दहेज, असमायोजन व मारपीट के होते हैं अधिक मामले
परामर्शदाता सुरेंद्र दुग्गल व सोमलता सैनी ने बताया कि उनके पास मारपीट, महिलाओं का शोषण, गलतफहमी, अतिरिक्त वैवाहिक सम्बंध, दहेज, असमायोजन, नशे की लत, सम्पत्ति विवाद, सैक्ष्वल प्रॉब्लम, वायदा खिलाफी, नाबालिग बच्चों की शादी, दूसरा विवाह, मनोवैज्ञानित समस्या, ससुराल पक्ष का अत्याधिक हस्तक्षेप के मामले आते हैं। इनमें सबसे अधिक मामले दहेज, असमायोजन व मारपीट के होते हैं। 
दोनों पक्षों में सुलह न होने पर क्या होती है कार्रवाई
परिवार परामर्श केंद्र में अधिकत्तर मामलों का निपटारा अपसी सुलह से करवा दिया जाता है। अगर किसी मामले में दोनों पक्षों में सुलह नहीं हो पाती हो मामले को जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास भेज दिया जाता, जहां पर महिला संरक्षण अधिकारी द्वारा अपने स्तर पर अग्रीम कार्रवाई की जाती है। उन्होंने बताया कि अब तक उनके द्वारा सिर्फ दो ही मामले जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास •ोजे गए हैं।  

अब तहसील स्तर पर खुलेंगे कृषि विज्ञान केंद्र

हिसार कृषि विवि से शुरू होगी पहल
कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए वरदान साबित होगी योजना
नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश में शहरीकरण और औद्योगिकरण से कम हो रही कृषि जोत तथा कृषि क्षेत्र में लागत बढ़ने के बावजूद कृषि उत्पादन व मुनाफे में आ रही कमी के कारण असमंजसता के दौर से गुजर रहे किसानों के लिए अच्छी खबर है। कृषि क्रियाओं में उनकी तकनीक को बढ़ाने तथा मुनाफे के तरीके शेयर करने के लिए तहसील स्तर पर कृषि विज्ञान केंद्र खोले जाएंगे। आमतौर पर हर जिले में एक ही कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहा है। नए केंद्रों के लिए हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने रणनीति बनाकर उसे मूर्त रूप देने की तैयारी शुरू कर दी है।
प्रदेश के अधिकांश जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से किसानों को कृषि तथा अन्य सहायक गतिविधियों से रूबरू कराने वाले हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए एक सर्वे में यह साफ हो गया था कि किसानों को खेती प्रबंधन से लेकर अपनी लागत निकालने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। इसके कारण किसानों का कृषि क्षेत्र से मोह भंग हो रहा है। उनके खेती से विमुख होने के संभावित खतरे को टालने के लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन ने किसानों को अपने से सीधे जोड़ने की कवायद में कई योजनाएं शुरू की हैं। इसी कड़ी में अब प्रदेश की सभी तहसीलों में कृषि विज्ञान केंद्र शुरू करने की प्रक्रिया शुरू हो रही है।
किसानों की चुनौतियों पर गंभीर एचएयू
प्रदेश में कृषि क्रियाओं पर सबसे ज्यादा असर भूमि अधिग्रहण कर नए प्रोजेक्टों को शुरू करने से पड़ रहा है। अधिकांश क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि इन प्रोजेक्टों का हिस्सा बन रही है। इन क्षेत्रों के किसानों के ना चाहते हुए भी खेती से दूर होना पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर पैसों की चमक-धमक को देखते हुए कृषि क्षेत्र में बढ़ रही मुसीबतों के कारण भी किसानों के माथे पर शिकन है। शहरीकरण, औद्योगिकरण से कम हो रही जोत, तापमान में बढ़ोतरी, पानी की कमी, बीज की गुणवत्ता, मौसम की मार तथा पुरानी तकनीकों पर काम करने से किसान न तो ठीक से फसल का उत्पादन ले पा रहा है और न ही अपना मुनाफा बढ़ा रहा हैं। इसके कारण उसे खेती घाटे का सौदा नजर आने लगा है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के प्रबंधन का मानना है कि प्रदेश की 11 प्रतिशत की विकास दर में किसानों का बड़ा रोल है, ऐसे में किसानों के सामने आ रही चुनौतियों को एचएयू गंभीरता से ले रहा है।
किसानों तक पहुंच बढ़ाएंगे कृषि विज्ञान केंद्र
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार ने अब तहसील स्तर पर कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया है। यहां बता दें कि प्रत्येक जिले में संचालित कृषि विज्ञान केंद्रों में प्रगतिशील किसानों को कृषि, बागवानी, पशुपालन समेत सभी कृषि सहायक गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि किसानों के आर्थिक स्तर को बढ़ाने में मदद की जा सके। लेकिन विवि प्रबंधन को लगने लगा था कि जिले में इकलौते कृषि विज्ञान केंद्र के सहारे हर किसान को कृषि की तकनीकों से अवगत कराना मुमकिन नहीं है। इसलिए हर तहसील में एक कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित किया जाएगा। इन केंद्रों में किसानों को घटती जोत, पानी की कमी, बीजों की गुणवत्ता में सुधार लाते हुए तकनीक तौर पर समक्ष बनाकर फसल उत्पादन में इजाफा करते हुए मुनाफ की ओर बढ़ना है।

नए साल पर कर्मचारियों की रहेगी मौज

हर माह कर्मचारियों को एक साथ मिलेंगी तीन-तीन छुट्टियां
नरेंद्र कुंडू
जींद।
वर्ष 2012 कर्मचारियों के लिए खासी सौगात लेकर आएगा। नए साल की शुरूआत छुट्टी से होगी और समाप्त वर्किंग डे पर होगा। सालभर में छुट्टियों की रेल चलती रहेगी। नए वर्ष में कर्मचारियों के लिए तीन का आंकड़ा काफी मजेदार रहेगा। कर्मचारियों को हर माह 3-3 छुट्टियों की सौगात एक साथ मिलती रहेगी। जिसके चलते कर्मचारी अपने परिवार को टाइम दे पाएंगे। एक जनवरी को रविवार पड़ने से सरकारी कर्मचारियों के लिए नए साल का जश्न दो गुणा हो जाएगा। दूर-दराज नौकरी करने वाले कर्मचारी इस बार अपने परिवार के साथ नया साल मना पाएंगे। हर माह एक साथ तीन-तीन छुट्टियों पड़ने के कारण सरकारी कार्यालयों में कामकाज भी काफी धीमी गति से चलेगा, जिस कारण आम जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
लोग शायद सच ही कहते हैं कि साल की शुरूआत जैसा होगी, पूरा साल उसी तहर चलेगा। इस बार नया साल सरकारी कर्मचारियों के लिए अच्छा बितेगा। क्योंकि नए साल की शुरूआत ही छुट्टी से हो रही है। इस बार सरकारी कर्मचारियों को हर माह एक साथ तीन-तीन छुट्टियों की सौगात मिलेगी। यही कारण है कि नए साल को एक पर्व की तरह मनाने वाले लोगों का मजा दोगुणा होने जा रहा है। खासकर जॉब करने वालों के लिए नए साल के जश्न में भाग लेने का अच्छा मौका है। नए साल की शुरूआत छुट्टी से होगी तथा वर्किंग डे के साथ साल समाप्त होगा। एक जनवरी को रविवार होने के कारण साल की शुरूआत छुट्टी से होगी तो 31 दिसंबर 2012 को सोमवार के दिन साल वर्किंग डे के साथ समाप्त होगा। इतना ही नहीं जिन लोगों के सरकारी विभागों में काम लटके हैं वे एक-दो दिन में काम निपटा लें, अन्यथा उनका काम कुछ दिन के लिए लटक जाएगा। क्योंकि साल की बची छुट्टियां भी कर्मचारी दिसंबर में ही मनाते हैं। इसलिए दिसंबर में सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या कम हो जाती है। नए साल में तीन का फेर कर्मचारियों की मौज के लिए काफी है। दूर-दराज नौकरी करने वाले कर्मचारी त्योहारों पर लगातार मिलने वाली तीन-तीन छुट्टियों से परिवार को समय दे पाएंगे। तीन के फेर की शुरूआत जनवरी से होगी। 13 जनवरी को लोहड़ी है, इस दिन शुक्रवार पड़ेगा। इसके बाद 14 व 15 जनवरी को शनिवार व रविवार को खुद-ब-खुद छुट्टी मिल जाएगी। इसके बाद 18 व 19 फरवरी को शनिवार व रविवार की छुट्टी रहेगी तो 20 फरवरी सोमवार को महाशिवरात्रि की छुट्टी रहेगी। 23 मार्च को शुक्रवार के दिन शहीदी दिवस पर सरकारी छुट्टी रहेगी तथा 24 व 25 मार्च को शनिवार व रविवार की तीन छुट्टियों का योग स्वयं ही बन जाएगा। अप्रैल माह में 13 को बैशाखी है, उस दिन शुक्रवार है। इसके बाद फिर शनिवार व रविवार की छुट्टी का लाभ कर्मचारियों को मिलेगा। इसके बाद 25 मई को गुरु अर्जुन देव दिवस पर छुट्टी रहेगी, इस दिन शुक्रवार पड़ता है। इस प्रकार शनिवार व रविवार को फिर तीन का आंकड़ा चलेगा। जून माह में 4 जून को सोमवार के दिन कबीर जयंती की छुट्टी रहेगी। इसके पहले शनिवार व रविवार की छुट्टी रहेगी। 10 अगस्त को शुक्रवार पड़ता है इस दिन जन्माष्टमी की छुट्टी रहेगी। इसके बाद फिर शनिवार व रविवार की छुट्टी का योग रहेगा। अगस्त माह में 20 अगस्त को सोमवार के दिन ईद उल फितर की छुट्टी रहेगी। इससे पहले शनिवार व रविवार की छुट्टी रहेगी। कुल मिलाकर वर्ष 2012 में 10 त्योहार कर्मचारियों के लिए तीन का फेर लेकर आएंगे। ऐसे में कर्मचारियों की नए साल में मौज रहेगी।
इन छुट्टियों पर लगेगा ग्रहण
वर्ष 2012 में जो सरकारी छुट्टी शनिवार व रविवार के दिन आई हैं, उनमें 28 जनवरी को शनिवार के दिन छोटू राम जयंती और बसंत पंचमी की छुट्टी, 5 फरवरी को ईद उल मिलाद की छुट्टी के दिन रविवार रहेगा। इसके बाद एक अप्रैल को रामनवमी की छुट्टी भी रविवार के दिन ही होगी। 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के दिन शनिवार रहेगा। 6 मई को बुध पूर्णिमा व 22 जुलाई को तीज का त्योहार भी रविवार के दिन ही पड़ता है। इसके बाद सितंबर माह में 23 तारीख को हरियाणा शहीदी दिवस भी रविवार को ही पड़ता है। 27 अक्टूबर को ईद उल जुहा तथा 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस के दिन भी शनिवार है। नवंबर माह में 25 तारीख को मोहर्रम के त्योहार के दिन भी रविवार रहेगा।

मौत के साये में पढ़ाई

जर्जर हो चुका है स्कूल का भवन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार द्वारा शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया जा रहा है, वहीं क्षेत्र के कई स्कूलों के पास या तो भवन की कमी है या भवन जर्जर हो चुके है। ऐसे में गांव भूरायण के राजकीय प्राथमिक पाठशाला का भवन की छत्त टूटने के कगार पर है। जिसके कारण स्कूली छात्र मौत के साये में पढ़ाई करने पर मजबूर हैं। स्कूल स्टाफ द्वारा शिक्षा विभाग को भवन के निर्माण के लिए मौखिक व लिखित शिकायत दी जा चुकी है। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारी शिकायत मिलने के बाद भी लंबी तानकार सोये हुए हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण लगभग 500 विद्यार्थियों के सिर पर मौत का साया मंडरा रहा है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है, जो स्कूल में पढ़ रहे इन नौनिहालों को मौत के मुहं में धकेल सकता है।
प्रदेश सरकार शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ अनेकों सुविधाएं देने के दावे कर रही है। लेकिन प्रदेश सरकार के यह दावे सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं। सरकार के इन दावों की वास्तविकता कुछ ओर ही होती है। पिल्लूखेड़ा खंड के भूरायण गांव के राजकीय प्राथमिक पाठशाला में भी ऐसा ही मामला सामने आया है। इस पाठशाला में लगभग 500 बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं। गांव की प्राथमिक पाठशाला के भवन का निर्माण हुए 5 दशक से भी ज्यादा का समय बीत चुका है। बिल्डिंग ज्यादा पुरानी होने के कारण यह जर्जर हो चुकी है। बिल्डिंग की दीवारों में दरार आ चुकी है। स्कूल की बिल्डिंग जर्जर होने के कारण बच्चे मौत के साये में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। स्कूल के अधिकतर कमरों की छत से लैंटर व कड़ियां टूट चुकी हैं। छत से कड़ियां टूटने के कारण छत कभी भी गिर सकती है। छत के अलावा बिल्डिंग की दीवारों में भी दरार आ चुकी हैं। बिल्डिंग में जगह-जगह दरार आने के कारण यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। इस बारे में स्कूल स्टाफ से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि वे कई बार जिला स्तर पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों को मौखिक व लिखित शिकायत दे चुके हैं। लेकिन विभाग ने इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। शिकायत मिलने के बाद विभाग द्वारा बिल्डिंग का जायजा लेने के लिए इंजीनियर तो भेजा गया था, लेकिन इंजीनियर ने यह कह कर अपना पल्ला झाड़ दिया कि जब तक बिल्डिंग गिर नहीं जाती तब-तक वो इस बिल्डिंग का निर्माण नहीं कर सकते। इसके बाद विभाग द्वारा दोबारा इस ओर कोई कार्रवाई नहीं की गई। विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण यहां हर वक्त बड़ा हादसा होने का अंदेशा बना रहता है।
                                                                                            खतरे में बचपन
अगर अधिकारियों की बातों पर विश्वास किया जाए तो बिल्डिंग के निर्माण के लिए काफी लंबी प्रक्रिया चलेगी। इस प्रक्रिया में कई माह का समय लग जाएगा। लेकिन अनहोनी तो विभाग की इस लंबी प्रक्रिया का इंतजार नहीं करेगी। वह तो कभी भी मौत बनकर इन मासूम बच्चों को अपने चुंगल में ले सकती है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को तो शायद इस बात का इलम भी नहीं होगा कि अपने कलजे के टुकड़े को वे जहां पढ़ाने के लिए भेज रहे हैं, वहां पढ़ाई के अलावा मौत भी फन फैलाए बैठी है। स्कूल का जर्जर भवन कभी भी बड़े हादसे को निमंत्रण दे सकता है। प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के कारण  आज स्कूल में पढ़ने वाले इन मासूम बच्चों का बचपन खतरे में है।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

चिठ्ठी ना कोई संदेश....

मोबाइल संचार क्रांति के बाद घटा ग्रीटिंग का क्रेज
इस बार मार्केट में आए नए ग्रीटिंग कार्ड को दिखाता दुकानदार।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
चिठ्ठी  ना कोई संदेश.... जी हां हम बात कर रहे हैं उस जमाने की जब लोग चिठ्ठी  या पत्र के माध्यम से दूर बैठे अपने प्रियजनों का हालचाल मालूम करते थे। काफी दिनों तक उनका कोई संदेश या चिठ्ठी  न मिलने पर इस गजल को गुणगुणा कर उन्हें याद भी करते थे। होली, दीपावली व नव वर्ष पर ग्रीटिंग के माध्यम से लोग अपने शुभचिंतकों को शुभकामनाएं देते थे। जिसके चलते त्योहारी सीजन पर कई-कई दिनों तक ग्रीटिंग कार्डों का आदान-प्रदान चलता था। करीबन एक डेढ़ दशक तक सूचना एवं संदेश भजने के कारोबार में ग्रीटिंग का साम्राज्य कायम रहा है, लेकिन इस साम्राज्य को अब मोबाइल टेक्नोलाजी ने हिलाकर रख दिया है। अब महंगे ग्रीटिंग कार्ड खरीदना और दो दिन बाद मिलने का जमाना लदने लगा है। अब यह काम एक पैसे व एक सैकेंड में हो जाता है। अब मार्केट में अच्छे से अच्छे ग्रीटिंग आए हुए हैं, लेकिन अब इनके खरीदार बहुत कम रह गए हैं। पहले त्योहारी सीजन पर ग्रीटिंग का करोड़ों रुपए का कारोबार होता था, लेकिन अब यह कारोबार सिकुड़ने लगा है।
होली, दिवाली हो या नव वर्ष का अवसर लोग ग्रीटिंग कार्ड भेज कर अपने प्रियजनों को शुभकामनाएं देना नहीं भूलते थे। उस समय लोगों में शुभ अवसरों पर ग्रीटिंग कार्ड भेजने का काफी क्रेज होता था। कई-कई दिनों पहले बाजार में ग्रीटिंग कार्ड की दुकानें सज जाती थी और लोग अपने शुभचिंतकों की खैर खबर लने व उन्हें बधाई देने के लिए जमकर ग्रीटिंग कार्डों की खरीदारी करते थे। उस समय लोगों के पास अपने प्रियजनों को बधाई देने का इसके अलावा कोई दूसरा माध्यम भी नहीं था। भले ही इस प्रक्रिया में शुभकामनाएं भेजने व अपने शुभचिंतकों का हालचाल मालूम करने में कई-कई दिनों का समय लग जाता हो, लेकिन जब भी उनका कोई पत्र या चिठ्ठी  मिलती थी तो दिल को बड़ा सकून मिलता था। उस जमाने के प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह की  ‘चिठ्ठी  न कोई संदेश’ नामक गजल भी शायद इसी कारण से काफी हिट रही थी। लोगों की जुबान पर इसी गजल के चर्चे रहते थे और कई दिनों तक अपने प्रियजनों का कोई संदेश न मिलने पर इस गजल को गुणगुणा कर वे अपने दिल का बोझ हलका करते थे। करीबन एक-डेढ़ दशक तक सूचना एवं संदेश भेजने के कारोबार में ग्रीटिंग का साम्राज्य भी कायम रहा, लेकिन अब मोबाइल व टेक्नोलाजी ने ग्रीटिंग के कारोबार पर ग्रहण लगा दिया है। पिछले 4-5 सालों से ग्रीटिंग का कारोबार सिकुड़ रहा है। ग्रीटिंग कार्ड विक्रेता मनोज ने बताया कि इस बार उनके पास 20 रुपए से लेकर  300 रुपए तक के ग्रीटिंग कार्ड हैं। जिसमें म्यूजिकल व खुशबूदार कार्ड भी मौजूद हैं। राजेश ने बताया कि 4-5 साल पहले ग्रीटिंग का कारोबार अच्छा चलता था, लेकिन अब मोबाइल टेक्नोलाजी ने ग्रीटिंग कार्ड के कारोबार को हिला कर रख दिया है। लोग अब फोन द्वारा एसएमएस या कॉल करके अपने शुभचिंतकों को शुभकामनाएं दे देते हैं और उनका हालचाल पूछ लेते हैं। लोगों का मोह अब ग्रीटिंग की तरफ से कम हो रहा है। अब तो एक पैसे व एक सैकेंड में ही शुभकानाएं देने का यह काम आसानी से हो जाता है। इसलिए अब महंगे ग्रीटिंग खरीदने व भेजने का जमाना लदने लगा है।
म्यूजिकल, खुशबुदार व डिजाइनिंग कार्डों की बहार
मोबाइल टैक्नोलाजी आने के बाद से ग्रीटिंग कार्डों का कारोबार लगातार सिकुड रहा है, लेकिन लोगों का रूझान ग्रीटिंग की ओर बनाए रखने के लिए हर बार बाजार में नए-नए डिजाइनदार कार्ड उतारे जा रहे हैं। इस बार बाजार में म्यूजिकल कार्ड, खुशबुदार कार्ड, डिजाइनिंग कार्ड मौजूद हैं। पहले लोग साधारण कार्ड के माध्यम से ही शुभकामनाएं देते थे, लेकिन अब लोग साधारण ग्रीटिंग की बाजाये म्यूजिकल, खुशबुदार व डिजाइनिंग कार्डों की ही खरीदारी करते हैं।
 

सरवाइकल बन रहा युवाओं का दुश्मन


नरेंद्र कुंडू                                                                   
जींद।
सावधान! अगर आप कम्प्यूटर पर ज्यादा समय बिताते हैं, आपका सोने का तरीका व बिस्तर सही नहीं है या आप एक ही अवस्था में ज्यादा देर तक टीवी देखते हो तो आप सरवाइकल का शिकार हो सकते हैं। आज सरवाइकल की बीमारी युवाओं की दुश्मन बनी हुई है। सरवाइकल की चपेट में सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी आ रही है। शहर के सामान्य अस्पताल के आयुर्वैदिक पंचकर्म केंद्र पर रोजाना औसतन 15 केस सरवाइकल के पहुंच रहे हैं। पंचकर्म केंद्र पर आने वाले सरवाइकल के मरीजों में ज्यादातर युवा शामिल हैं। चिकित्सक इसके लिए ज्यादा देर तक कम्प्यूटर पर कार्य करना, टीवी देखना, सोने का तरीका व बिस्तर सही नहीं होना व डिप्रेशन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
युवाओं में इंटरनेट के बढ़ते क्रेज के कारण ज्यादा समय कम्प्यूटर पर बिताने, दिनचर्या सही न होने के कारण सरवाइकल की बीमारी दस्तक दे रही है। युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा इस बीमारी का शिकार हो रही है। सरवाइकल युवा पीढ़ी की दुश्मन बनी हुई है। कम्प्यूटर पर काम करते समय बैठने व काम करने का तरीका सही नहीं होने, एक ही अवस्था में लेट कर ज्यादा देर तक टीवी देखने व उपयुक्त बिस्तर न होने के कारण सरवाइकल की बीमारी अपने पैर पसार रही है। सामान्य अस्पताल के पंचकर्म केंद्र पर हर रोज 20 से 25 मरीज इलाज के लिए आते हैं। जिनमें से रोजाना औसतन 15 मरीज सरवाइकल के आते हैं। पंचकर्म के थैरेपिस्ट की मानें तो सबसे ज्यादा युवा इसका शिकार हो रहे हैं।
क्यों बढ़ रहे हैं सरवाइकल के मरीज
थैरेपिस्ट की मानें तो आज सबसे ज्यादा युवा वर्ग इस बीमारी की चपेट में आ रहा है। क्योंकि आज इंटरनेट का प्रयोग काफी बढ़ गया है, जिस कारण युवा ज्यादा समय कम्प्यूटर पर बिताते हैं। कम्प्यूटर पर काम करने  व बैठने का सही तरीका न होने के कारण मासपेसियों में खींचाव बन जाता है। जिससे व्यक्ति सरवाइकल की शिकार हो जाता है। इसके अलावा एक ही अवस्था में ज्यादा देर तक टीवी देखने, रात को सोते समय ऊंचे तकीये का प्रयोग करने व डिप्रेशन के कारण युवा सरवाइकल का शिकार हो रहे हैं। सरवाइकल होने पर व्यक्ति की गर्दन में दर्द रहने लगता है। सरवाइकल होने पर व्यक्ति ज्यादा देर तक बैठकर काम नहीं कर पाता। रात को देर तक नींद नहीं आती। शरीर में बेचैनी रहती है। बिस्तर से उठने के बाद सारे शरीर में दर्द रहता है।
क्या है सरवाइकल का उपचार
सामान्य अस्पताल में चल रहे आयुर्वैदिक पंचकर्म केंद्र पर रोजाना सरवाइकल, कमर दर्द, जोड़ों के दर्द, सिर दर्द, गठिया बाय, अनीद्रा, थाइराइड के 20 से 25 मरीज रोजाना आते हैं। इन मरीजों में सबसे ज्यादा सरवाइकल के मरीज होते हैं। पंचकर्म केंद्र पर रोजाना 15 मरीज सरवाइकल के पहुंच रहे हैं। पंचकर्म केंद्र पर थैरेपिस्ट द्वारा फिजियोथैरेपी, एक्यूप्रैसर, योग से सरवाइकल व अन्य बीमारियों का इलाज किया जाता है।
क्या रखें सावधानियां
कम्प्यूटर पर काम करते समय बीच-बीच में थोड़ा आराम करते रहें। कम्प्यूटर पर बैठने का तरीका सही होना चाहिए। कम्प्यूटर पर काम करते समय कंधों व हाथों का खिंचाव ज्यादा नहीं होना चाहिए। काम करते समय बीच-बीच में गर्दन को हिलाते रहना चाहिए। रात को सोते समय ज्यादा ऊंचे तकीए का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा बिस्तर न तो ज्यादा सख्त व न ही ज्यादा मुलायम होना चाहिए। हर रोज नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए।
समय पर इलाज न होने से गंभीर हो सकते हैं परिणाम : गोयल
जिला आयुर्वैदिक आफिसर डा. रामनिवास गोयल ने बताया कि अगर व्यक्ति की दिनचर्या सही हो तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। अगर समय पर इलाज नहीं करवाया जाए तो यह बीमारी गंभीर रूप धारण कर सकती है। इसलिए सरवाइकल के शुरूआती दौर में ही इसका सही व पूरा इलाज जरूरी है। पंचकर्म केंद्र पर फिजियोथैरेपी, एक्यूप्रेसर व योग के माध्यम से इसका पूरा इलाज किया जाता है।

रविवार, 18 दिसंबर 2011

थाली से जहर कम करने का महिलाओं ने उठाया बीड़ा

पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को सीखा रही हैं कीट प्रबंधन के गुर


नरेंद्र कुंडू
जींद।
फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के इस्तेमाल को
विद्यार्थियों को कीटों की जानकारी देती महिलाएं।
रोकने तथा मित्र कीटों को बचाने के लिए कीट प्रबंधन का बीड़ा निडाना की महिलाओं ने उठाया है। महिलाओं ने स्वयं इस कार्य में दक्षता हासिल करने के बाद विद्यार्थियों को मित्र कीटों के बारे में जागरूक करने की ठानी है। निडाना गांव के डैफोडिल पब्लिक स्कूल में ये महिलाएं हर शनिवार को विद्यार्थियों की क्लास लेती हैं। विद्यार्थियों को व्यवहारिक ज्ञान देने के लिए खेतों में ले जाकर इन्हें मित्र कीटों की पहचान करवाती हैं।  पूरे भारत में यह बच्चों की अकेली मित्र कीट पाठशाला है।
फसलों की अधिक से अधिक पैदावार लेने के लिए किसान आज फसलों पर जमकर कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। फसलों पर अत्याधिक कीटनाशकों के प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति तो कम ही रही है साथ-साथ हमारे खाद्य पदार्थ भी  विषैले हो रहे हैं। जिस कारण हमारी सेहत पर भी इनका विपरित प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने तथा मनुष्य की थाली से इस जहर कम करने की बीड़ा अब निडाना की महिलाओं ने उठाया है। ये महिलाएं सप्ताह के हर शनिवार को निडाना स्थित डैफोडिल पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों को कीट प्रबंधन व इससे होने वाले लाभ के बारे में जागरूक करती हैं। मित्र कीटों पर प्रयोग के लिए विद्यार्थियों को खेतों में ले जाकर मित्र कीटों की पहचान करवाई जाती हैं। पूरे भारत में इस तरह की यह एकमात्र मित्र कीट पाठशाला है, जहां पर विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ-साथ मित्र कीटों के बारे में जागरूक किया जाता है।
अनपढ़ता को ही बना लिया हथियार
मित्र कीट पाठशाला चालने वाली महिलाओं की संख्या 30 से 35 के बीच है। इन महिलाओं मैं चार-पांच महिलाओं को छोड़ बाकि सभी महिलाएं अनपढ़ हैं। इन महिलाओं ने अनपढ़ता को ही अपना हथियार बना लिया। पहले स्वयं इस कार्य में दक्षता हासिल की और बाद में अपने लक्ष्य को शिखर तक पहुंचाने के लिए इन्होंने मित्र कीट पाठशाला शुरू की।
प्रति एकड़ पर होता है दो से अढ़ाई हजार रुपए की बचत
अंग्रेजो, राजवंती, मीनी, बिमला, कमलेश, गीता ने बताया कि अगर फसल पर कीटनाशकों का प्रयोग न करके मित्र कीटों का संरक्षण किया जाए तो किसान का कीटनाशकों पर होने वाला खर्च बच जाता है और पैदावार भी  अच्छी होती है। उन्होंने बताया कि मित्र कीटों की सहायता से किसान को प्रति एकड़Þ पर दो से अढ़ाई हजार रुपए की बचत हो जाती है।
जागरूकता के लिए गीतों की भी की है रचना
इन महिलाओं ने लोगों को मित्र कीटों के प्रति जागरूक करने के लिए गीतों की भी रचना की है। ताकि गीतों के माध्यम से अधिक से अधिक किसानों तक अपनी बात पहुंचाकर उन्हें जागरूक कर सकें। ‘कीड़यां का पाट रहया चाला ए मनै तेरी सूं’ तथा बीटल कीट पर ‘बीटल हूं मैं कीटल हूं’ गीत की रचना की है। 
मासाहारी कीट करते हैं फसल की सुरक्षा
उत्प्रेरक डॉ. सुरेन्द्र दलाल ने बताया कि एक एकड़ कपास की फसल में लगभग 26 किस्म के शाकाहारी व 57 किस्म के मासाहारी कीट पाए जाते हैं। शाकाहारी कीट फसल पर निर्भार करते हैं और मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों पर निर्भर करते हैं। माशाहारी कीटों की संख्या ज्यादा होने के कारण शाकाहारी कीट फसल को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाते।