गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

आपदाओं से निपटने के लिए लोगों को किया जाएगा ट्रेंड

जिले में विकसित किया जाएगा सिविल डिफेंस टाउन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने तथा ऐसे समय में दूसरे लोगों की मदद करने में अब जिले के लोग सक्षम होंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग अब लोगों को नागरिक सुरक्षा के गुर सिखाएगा। जींद जिले को जल्द ही सिविल डिफेंस टाउन की सौगात मिलने जा रही है। विभाग द्वारा जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। मुख्यालय की तरफ से योजना को हरी झंडी मिलते ही योजना को मूर्त रूप दिया जाएगा। जींद के साथ-साथ 5 अन्य जिलों को भी सिविल डिफेंस टाउन का तोहफा मिलेगा। 
अब जिले के लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक सुरक्षा के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। प्रदेश के 10 जिलों की तर्ज पर अब जींद जिले में भी सिविल डिफेंस टाउन विकसित किया जाएगा। जिसका कंट्रोलर उपायुक्त को बनाया जाएगा। आपदा के समय स्वयं व अन्य लोगों की जान की रक्षा के लिए लोगों को ट्रेंड करने के लिए विभाग विशेष ट्रेनर नियुक्त करेगा। विभाग द्वारा नियुक्त किए गए ट्रेनर स्कूलों, कॉलेजों व सेमीनारों का आयोजन कर लोगों को ट्रेनिंग देंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग ने प्रदेश के पांच जिलों कैथल, जींद,  भिवानी, करनाल व रिवाड़ी का चयन सिविल डिफेंस टाउन के रूप में किया है। विभाग के अधिकारी टाउन के लिए विभिन्न जगहों की निशानदेही कर रहे हैं। ताकि किसी प्रकार की आपातकालीन स्थिति में सबसे पहले सिविल डिफेंस की कहां ज्यादा जरूरत पडेगी। इसके लिए विभाग लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित शहर के अन्य प्रमुख स्थानों पर प्वाइंट बना रहे हैं। इसकी रूपरेखा तैयार होने के बाद प्रपोजल बनाकर मुख्यालय को भेजा जाएगा ताकि बजट प्राप्त हो सके। बजट जारी होने के बाद विभाग के अधिकारी लोगों को इसकी ट्रेनिंग देंगे ताकि आपदा से निपटने में किसी प्रकार की परेशानी न हो और आपदा के समय जानी नुकसान होने से बचाया जा सके। इसके लिए जिले के सिविलिय लोगों को रिस्क्यू, फायर फाइटिंग, प्राथमिक चिकित्सा इत्यादि की ट्रेनिंग दी जाएगी।
गैस प्लांट बनाया जाएगा अतिसंवेदनशिल प्वाइंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग जिले में सिविल डिफेंस टाउन नियुक्त करने के लिए प्वाइंटों को चिह्नत कर रही है। इसके लिए विभाग ने शहर के लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित अन्य प्रमुख स्थानों को चिह्नत किया है। विभाग द्वारा इन सभी  प्वाइंटों में से गैस प्लांट को अतिसंवेदनशिल प्वाइंट बनाया है।
किस-किस जिले में चल रहा सिविल डिफेंस टाउन
अंबाला, हिसार, सिरसा, सोनीपत, रोहतक, गुड़गांव, फरीदाबाद, झज्जर, पानीपत, पंचकूला में सिविल डिफेंस टाउन चल रहे हैं। विभाग द्वारा एक करोड़ 60 लाख की ग्रांट जारी की जाती है।
जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। इसके लिए प्रपोजल तैयार किया जा रहा है। जल्द से जल्द प्रपोजल तैयार कर डायरेक्टर जनरल को भेजा जाएगा। विभाग की तरफ से बजट मिलते ही आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
बीरबल कुंडू कमांडेंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

पंचायतों में गड़बड़झाला

नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश में ग्राम पंचायतें नियमों व कायदों पर खरी नहीं उतर रही हैं। पंचायत को अपने कार्यकाल के दौरान कम से कम तीन बार ग्राम सभा की बैठक अवश्य करनी होती है और इसकी विडियोग्राफी करवाकर इसकी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजनी होती है, लेकिन प्रदेश की ग्राम पंचायतें इसकी जहमत नहीं उठाती हैं। सरपंच ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति कर उच्च अधिकारियों के सामने झूठी रिपोर्ट पेश कर देते हैं। सरपंचों के इस भ्रष्टाचार में उच्च अधिकारियों भी संलिप्त होते हैं। सरकारी अधिकारी भी चुपचाप अपना कमिशन ऐंठकर बिना किसी जांच पड़ताल के सरपंचों के प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगा देते हैं। अधिकारियों व सरपंचों की लापरवाही के कारण ग्राम पंचायतें आज भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बनी हुई हैं।
कहने को तो गांवों में पंचायती राज लागू है। सरकार पंचायती राज के आंकड़े गिनाते-गिनाते नहीं थकती। लेकिन अधिकारी अपने निजी स्वार्थ के चक्कर में सरकार की सारी योजनाओं को पलिता लगा रहे हैं। कानून के मुताबिक पंचायत के पांच साल के कार्यकाल में तीन ग्राम सभा की बैठकें होनी अनिवार्य हैं और इन ग्राम सभा की वीडियोग्राफी करवा उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट भेजनी भी  जरूरी है। इसके अलावा जिला प्लान के तहत गांव के विकास के लिए ग्रांट पास करने से पहले ग्राम सभा में उसका प्रस्ताव पास होना भी अनिवार्य है। अगर ग्राम सभा में प्रस्ताव पास न हो तो उस गांव को ग्रांट नहीं दी जा सकती। लेकिन सरपंच अपने कुछ भ्रष्ट साथियों के साथ मिलकर ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति कर देते हैं। दूसरी तरफ  अगर कोई प्रधान ईमानदारी से काम करना चाहे तो उसे इलाके के बीडीपीओ, एसडीओ व सीडीपीओ काम नहीं करने देते। गांव के फंड पर इन लोगों का शिकंजा इतना खतरनाक है कि वे चाहें तो गांव की ओर एक पैसा न जाने दें। सरपंच अगर इनके साथ मिलकर बेईमानी करे तो सब कुछ आसान है और अगर ईमानदारी से काम कराना चाहे तो ये उसकी फाइल आगे न बढ़ाएं। इसीलिए ईमानदार से ईमानदार सरपंच भी अपने गांव के फंड को इन अफसरों के चंगुल से नहीं छुटा सकता। ऐसा नहीं है कि देश में ईमानदार लोग सरपंच नहीं चुने जाते हैं। लेकिन देश भर के अनुभवों से यह देखा गया है कि सिर्फ  वही ईमानदार सरपंच इन अफसरों की मनमानी पर अंकुश लगा पाए हैं, जो वास्तव में अपने सारे फैसले ग्राम सभा में लेते हैं। हालांकि ऐसे प्रधानों की संख्या बेहद सीमित है, लेकिन इनके उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि पंचायती राज को सफल बनाने के लिए उसमें ग्राम सभाओं को किस तरह की कानूनी ताकत चाहिए।
एचआईआरडी की होती है जिम्मेदारी
सरपंच एसोसिएशन के प्रधान सुनील जागलान ने बताया कि प्रदेश की 6700 पंचायतों में से अधिकतर पंचायतों को तो नियमों की जानकारी ही नहीं होती। इसलिए वे ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति करते हैं और फिर सरकारी अधिकारियों के चुंगल में उलझ जाते हैं। पंचायतों को ग्राम सभा की पूरी जानकारी देने की जिम्मेदारी एचआईआरडी की होती है। एचआईआरडी के अधिकारियों को पंचायत के गठन के बाद पंचायत को ग्राम सभा का पूरा डेमो सिखाना होता है। लेकिन एचआईआरडी के अधिकारी इस तरह की कोई कार्रवाई अमल में नहीं लेते हैं।
क्या है नियम
एक पंचायत के पांच साल के कार्यालय काल में तीन बार ग्राम सभा होनी जरूरी हैं। ग्राम सभा में गांव के कुल वोटरों में से 10 प्रतिशत वोटर बैठक में होने अनिवार्य हैं। बैठक का एजेंडा सचिव द्वारा तय किया जाएगा और बैठक से एक सप्ताह पहले ग्राम सभा के सभी लोगों के बीच इसे वितरित किया जाएगा। ग्राम सभा के सदस्य यदि किसी मुद्दे को एजेंडे में डलवाना चाहें तो बैठक से पहले लिखित या मौखिक तौर पर सचिव को दे सकता है। ग्राम सभा में जो प्रस्ताव पास होता है, उस प्रस्ताव पर बैठक में मौजूद सभी सदस्यों के हस्ताक्षर होने भी जरूरी होते हैं। इसके अलावा ग्राम सभा करने से पहले उच्च अधिकारियों को सूचित करना भी जरूरी है। ग्राम सभा की वीडियोग्राफी करवा बीडीपीओ, डीडीपीओ, एडीसी, डीसी व डायरेक्टर पंचायती राज को देनी होती है।

आपदाओं से निपटने के लिए किया जाएगा ट्रेंड

जिले में विकसित किया जाएगा सिविल डिफेंस टाउन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने तथा ऐसे समय में दूसरे लोगों की मदद करने में अब जिले के लोग सक्षम होंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग अब लोगों को नागरिक सुरक्षा के गुर सिखाएगा। जींद जिले को जल्द ही सिविल डिफेंस टाउन की सौगात मिलने जा रही है। विभाग द्वारा जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। मुख्यालय की तरफ से योजना को हरी झंडी मिलते ही योजना को मूर्त रूप दिया जाएगा। जींद सहित 5 अन्य जिलों को भी सिविल डिफेंस टाउन का तोहफा मिलेगा। 
अब जिले के लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक सुरक्षा के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। प्रदेश के 10 जिलों की तर्ज पर अब जींद जिले में भी सिविल डिफेंस टाउन विकसित किया जाएगा। जिसका कंट्रोलर उपायुक्त को बनाया जाएगा। आपदा के समय स्वयं व अन्य लोगों की जान की रक्षा के लिए लोगों को ट्रेंड करने के लिए विभाग विशेष ट्रेनर नियुक्त करेगा। विभाग द्वारा नियुक्त किए गए ट्रेनर स्कूलों, कॉलेजों व सेमीनारों का आयोजन कर लोगों को ट्रेनिंग देंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग ने प्रदेश के पांच जिलों कैथल, जींद, भिवानी, करनाल व रिवाड़ी का चयन सिविल डिफेंस टाउन के रूप में किया है। विभाग के अधिकारी टाउन के लिए विभिन्न जगहों की निशानदेही कर रहे हैं। ताकि किसी प्रकार की आपातकालीन स्थिति में सबसे पहले सिविल डिफेंस की कहां ज्यादा जरूरत पडेगी। इसके लिए विभाग लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित शहर के अन्य प्रमुख स्थानों पर प्वाइंट बना रहे हैं। इसकी रूपरेखा तैयार होने के बाद प्रपोजल बनाकर मुख्यालय को भेजा जाएगा ताकि बजट प्राप्त हो सके। बजट जारी होने के बाद विभाग के अधिकारी लोगों को इसकी ट्रेनिंग देंगे ताकि आपदा से निपटने में किसी प्रकार की परेशानी न हो और आपदा के समय जानी नुकसान होने से बचाया जा सके। इसके लिए जिले के सिविलिय लोगों को रिस्क्यू, फायर फाइटिंग, प्राथमिक चिकित्सा इत्यादि की ट्रेनिंग दी जाएगी।
गैस प्लांट बनाया जाएगा अतिसंवेदनशिल प्वाइंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग जिले में सिविल डिफेंस टाउन नियुक्त करने के लिए प्वाइंटों को चिह्नत कर रही है। इसके लिए विभाग ने शहर के लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित अन्य प्रमुख स्थानों को चिह्नत किया है। वि•ााग द्वारा इन सभी  प्वाइंटों में से गैस प्लांट को अतिसंवेदनशिल प्वाइंट बनाया है।
किस-किस जिले में चल रहा सिविल डिफेंस टाउन
अंबाला, हिसार, सिरसा, सोनीपत, रोहतक, गुड़गांव, फरीदाबाद, झज्जर, पानीपत, पंचकूला में सिविल डिफेंस टाउन चल रहे हैं। विभाग द्वारा एक करोड़ 60 लाख की ग्रांट जारी की जाती है।
जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। इसके लिए प्रपोजल तैयार किया जा रहा है। जल्द से जल्द प्रपोजल तैयार कर डायरेक्टर जनरल को भेजा जाएगा। विभाग की तरफ से बजट मिलते ही आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
बीरबल कुंडू कमांडेंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

प्रदेश में होमगार्ड्स को भत्तों में बढ़ोतरी की सौगात

नरेंद्र कुंडू 
जींद। प्रदेश के होमगार्ड जवानों की किस्मत अब जल्द ही बदलने वाली है। होमगार्ड के जवानों को जल्द ही वेतन भत्तों में बढ़ोतरी की सौगात मिलने जा रही है। होमगार्ड के जवानों को अब प्रतिदिन ड्यूटी भत्ता 150 रुपए की बजाय 250 रुपए के हिसाब से मिलेगा। इसके अलावा टेÑनिंग भत्ता भी 100 से 250 तथा मासिक भत्ता 40 से 60 रुपए दिया जाएगा। होमगार्ड एवं सिविल डिफेंस विभाग ने जवानों की समस्याओं को देखते हुए उनके पक्ष में यह हितकारी निर्णय लिया है। विभाग के इस फैसले से प्रदेश के 14025 जवानों को फायदा मिलेगा। आगामी एक अप्रैल 2012 से जवानों को बढ़े हुए भत्तों का लाभ मिलेगा। इसके लिए विभाग के उच्चाधिकारियों ने सभी जिला अनुदेशकों को पत्र जारी कर निर्देश दे दिए हैं। पत्र जारी होने के बाद जवानों में काफी खुशी है।
काफी लंबे समय से आर्थिक तंगी से जुझ रहे होमगार्ड के जवानों के लिए अच्छी खबर है। लंबे समय से वेतन व भत्तों में बढ़ोतरी का इंतजार कर रहे होमगार्ड के जवानों को अब जल्द ही वेतन व भत्तों में बढ़ोतरी की सौगात मिलने जा रही है। होमगार्ड एवं सिविल डिफेंस विभाग के वित्तायुक्त द्वारा जिला अनुदेशकों को जारी किए गए पत्र क्रमांक 34/126/88-1एचजी-111 में स्पष्ट किया है कि होम गार्ड के दैनिक व मासिक भत्तों में वृद्धि की जा रही है। अब होम गार्ड को ड्यूटी भत्ते के रूप में 150 की बजाय 250 रुपए, ट्रेनिंग भत्ते में 100 की बजाय 250 रुपए दिए जाएंगे। इसके अलावा जवानों के मासिक भत्ते में भी बढ़ोतरी करते हुए 40 रुपए की बजाय 60 रुपए देने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह आदेश एक अप्रैल 2012 से लागू होंगे। विभाग द्वारा जारी इन आदेशों के बाद होमगार्ड के जवानों में काफी उत्साह है। नए आदेश लागू होने के बाद होमगार्ड के जवानों को काफी राहत मिलेगी। 
अप्रैल से लागू होंगे बढ़े हुए भत्तेमहंगाई के इस दौर में कम वेतन के कारण होमगार्ड के जवान आर्थिक तंगी से जुझ रहे थे। जवानों की परेशानी को देखते हुए विभाग ने उनके दैनिक व मासिक भत्तों में बढ़ोतरी का निर्णय लिया है। होमगार्ड के दैनिक व मासिक भत्तों की बढ़ोतरी के आदेश उन्हें मिल चुके हैं। विभाग द्वारा जारी किए गए पत्र के अनुसार नए नियम एक अप्रैल 2012 से लागू किए जाएंगे।
बीरबल कुंडू, कमांडेंट
गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस, जींद

कमांडेंट बीरबल कुंडू का फोटो।



बदला मौसम का मिज़ाज, धरती पुत्रों के माथे पर बनी चिंता की लकीरें

पाले से फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा भारी असर
चारे की फसल पर जमा पाला।
नरेंद्र कुंडू 
जींद। क्षेत्र में पाला रिकार्ड तोड़ रहा है। रबी की फसलों पर पाला बर्फ की तरह जम मिलता है। पाले के प्रकोप से फसलों पर संकट मंडरा रहा है। फसलें नष्ट होने लगी हैं। खासकर सरसों व सब्जियों की फसल के लिए पाला भष्मासुर साबित होता है। फसलों को बचाने के लिए कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को तुरंत हल्की सिंचाई की सलाह दी है। जिस तरह से पाला रिकार्ड तोड़ रहा है, उससे उत्पादन पर असर पड़ना लाजिमी है।  
एक सप्ताह से मौसम में आ रहे बदलाव के साथ ही किसानों के माथे पर चिंता की लकीर दिखाई देने लगी हैं। किसानों को पाला की चिंता सताने लगी है। वीरवार सुबह क्षेत्र के कई गांवों में फसलों पर पाला जमा नजर आया है। मंगलवार रात को हुई बारिश के बाद तापमान में लगातार गिरवाट जारी है। किसानों का कहना है कि रात के तापमान में गिरावट से फसलों पर पाले का खतरा मंडराने लगा है। पाले के प्रकोप के कारण सरसों, जौं, सब्जियों व चारे की फसल नष्ट हो रही हैं। सप्ताह के पहले दिन से मौसम में आए बदलाव के बाद तापमान में उतार-चढ़ाव आता रहा है। बीते तीन दिनों में शीत लहर और रात के तापमान में काफी गिरावट दर्ज की गई है। दिन के समय जहां हवा में नमी 40 प्रतिशत के आस-पास होती है तो रात को हवा में नमी शत प्रतिशत हो जाती है। पाले के बढ़ते प्रकोप के कारण रबी की अधिकतर फसलों की खराब होने की आशंका बढ़ गई है। मौसम ने किसानों की धड़कने बढ़ा दी हैं। कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को पाले से सचेत रहने की सलाह दी है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम में आए परिवर्तन से सरसों एवं जौ की फसल में मोयला कीट, चेपा का प्रकोप अधिक बढ़ जाएगा। तापमान में गिरावट होने से मटर, मेथी एवं धनिया की फसल में पाइडरी मिल्ड्यू का असर बढ़ जाता है। कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि बैंगन की फसल में फल एवं तना छेदक लट का प्रकोप बढ़ने के आसार रहते हैं। पाला और कोहरे से आलू, मटर और टमाटर की फसल को भी नुकसान होने के आसार बने हुए हैं। कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि मोयला कीट से फसलों को बचाने के लिए काश्तकारों को पैराथियॉन दो प्रतिशत या एंडोसल्फान पांच प्रतिशत चूर्ण का 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव और पानी की सुविधा वाले क्षेत्रों में एंडोसल्फान 35 ईसी 1-5 मिली का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने से फसल को पाले के प्रकोप से बचाया जा सकता है। सरसों, आलू, मटर, धनिया, बैंगन, टमाटर की फसल को पाले के प्रकोप से बचाने के लिए फसलों में फूल आने के समय गंधक के तनु अम्ल के 0-1 प्रतिशत या एक हजार लीटर पानी में 500 ग्राम थायोयूरिया मिलाकर 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करने से फसल पर पाले का असर कम होता है। उनका कहना है कि बैंगन की फसल को तना छेदक लट से बचाने के लिए प्रभावित शाखाओं और फलों को तोड़कर नष्ट कर दिया जाना चाहिए। फल बनने पर कार्बोरिल 50 डब्ल्यूसी या एंडोसल्फान 35 ईसी 1-5 मिली या एसी फेट 75 एससी 0-5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कने से बैंगन की फसल और फल को तना छेदक लट से बचाया जा सकता है।
पाला से आलू और टमाटर की फसल चौपट
जिले में पिछले तीन दिनों से पड़ रहे पाले ने सब्जी उत्पादक किसानों की नींद उड़ा दी है। पाले से सब्जी की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है। खासकर आलू, मटर व टमाटर की फसल पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इससे किसानों को भारी नुकसान की चिंता सताने लगी है। अगर जल्द ही मौसम में बदलाव नहीं हुआ तो फसल पूरी तरह से चौपट हो जाएगी। वहीं कृषि वैज्ञानिकों ने भी किसानों को अपनी फसल में जल्द से जल्द हल्का पानी लगाने की सलाह दी है। जिससे पाले के असर को कम किया जा सके।
दामों में हो सकता है इजाफा
पाले के प्रभाव के कारण इस बार फसल की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सब्जी की फसल में नुकसान होने के कारण पैदावार काफी कम होगी। इससे सब्जी के दामों में भी बढ़ोतरी हो सकती है। फिलहाल आलू पांच से छह रुपए, टमाटर 15 से 20 व मटर 20 रुपए किलो बिक रही है।
तापमान के आंकड़े
दिन    दिन का तापमान    रात का तापमान
रविवार    20 डिग्री        12 डिग्री
सोमवार    18 डिग्री        10 डिग्री
मंगलवार    15 डिग्री        6 डिग्री
बुधवार    13 डिग्री        1 डिग्री
हल्का पानी लगाकर बचाई जा सकती है फसल
फसल को पाले से बचाने के लिए किसानों के पास एक मात्र माध्यम पानी लगाना ही है। फसल में हल्का पानी लगाने से पाले के प्रकोप को कम किया जा सकता है। साथ ही हल्के पानी का फसल के उत्पादन पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। इसके अलावा फसल के पास धुआं कर या फसल को ढककर भी बचाया जा सकता है। पाला सरसों व सब्जी की फसल के लिए हानिकारक तथा गेहूं की फसल के लिए लाभदायक है।
डा. प्रताप सबरवाल
कृषि उपनिदेशक, जींद

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

स्कूलों में नहीं पार्कों में ले रहे हैं तालीम!

अंधकार में देश के कर्णधारों का भविष्य
 स्कूल टाइम में अर्जुन स्टेडियम में आराम फरमाते स्कूली बच्चे।
अर्जुन स्टेडियम में बैठकर ताश खेलते स्कूली बच्चे।
नरेंद्र कुंडू

जींद। विद्यार्थी देश के कर्णधार होते हैं, देश का भविष्य विद्यार्थियों के कंधों पर टिका होता है। अगर देश के ये भावी कर्णधार ही अपने पथ से भ्रष्ट हो जाएं तो, यह साफ है कि देश का भविष्य अंधकार में है। देश के इन कर्णधारों की करतूतों से समाज का सिर शर्म से झुक जाता है। शहर में पढ़ाई के लिए आने वाले विद्यार्थियों की कक्षाएं स्कूलों या कॉलेजों में नहीं, बल्कि शहर के पार्कों में लगती हैं। इनकी करतूतों से शहरवासी ही नहीं, पुलिस प्रशासन भी परेशान है। लेकिन पुलिस प्रशासन इन पर नकेल कसने में नाकामयाब है। पार्कों में पूरा दिन इनके नशे व ताशबाजी के दौरे चलते रहते हैं। स्कूल टाइम में कॉलोनियों के सभी पार्कों में छात्रों का जमावड़ा लगा रहता है। यहां से गुजरने वाली छात्राओं से छेड़छाड़ इनका प्रिय शौक है। इनको सबक सिखाने के लिए पुलिस भी खानापूर्ति के सिवाए कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है।

 
पार्क में सिगरेट के कश लगते स्कूली बच्चे
बस स्टेंड पार्क में आराम करते स्कूली बच्चे।


हर मां-बाप का सपना होता है कि उनका बेटा पढ़-लिख कर अच्छा आदमी बने, उसे अच्छी नौकरी मिले। अपने सपने को पूरा करने के लिए वे अपने बच्चों की हर इच्छा पूरी करते हैं, चाहे उसके लिए उन्हें कितनी ही परेशानी क्यों न उठानी पड़े। अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से वे उसे शहर के महंगे से महंगे स्कूल में दाखिला दिलवाते हैं। ताकि उनका बेटा शहर से अच्छी तालीम लेकर उनका सपना पूरा कर सके। लेकिन यहां हकीकत कुछ ओर ही बयां करती है। न जाने कितने मां-बापों के सपने हर दिन शहर के पार्कों में टूटते नजर आते हैं। इनकी कक्षाएं स्कूलों या कॉलेजों में नहीं, बल्कि कॉलोनियों के पार्कों में लगती हैं। स्कूल टाइम में पार्कों में लगे विद्यार्थियों के टोल को देख कर यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि देश के ये भावी कर्णधार कैसी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। दिनभर कॉलोनी के पार्कों में टोलियां बनाकर बैठे इन विद्यार्थियों की करतूतों से कॉलोनी वासी ही नहीं, पुलिस भी परेशान है। बस स्टेंड, नेहरू पार्क, अर्जुन स्टेडियम, अर्बन एस्टेट कॉलोनी, गांधी नगर, स्कीम नंबर 6, हाऊसिंग बोर्ड, शहीदी पार्क तथा अन्य पार्कों में छात्रों की टोलियां बैठी रहती हैं। पार्कों में बैठकर ये अपना कीमती समय तो खराब कर अपने मां-बाप की आंखों में धूल भी झौंकते हैं। कुसंगति के कारण न जाने कितनी गंदी आदतें इनके अंदर घर कर लेती हैं। कुसंगति के कारण इनका भविष्य बर्बाद हो रहा है। पूरा दिन पार्कों में इनके नशे व ताशबाजी के दौरे चलते रहते हैं। इसके अलावा यहां से गुजरने वाली छात्राओं से छेड़खानी करना व उन पर अश्लील फब्तियां कसना इनका खास शौक है। पार्कों में टोलियां बनाकर बैठ ये छात्र ऊंची आवाज में गंदी-गंदी गालियां देते रहे हैं तथा मोबाइल फोन की पूरी आवाज में अश्लील गानों पर थिरकते भी नजर आते हैं। इनकी हरकतें देखकर यहां से गुजरने वाली लड़कियां व महिलाएं शर्म से सिर झुकाकर चुपचाप यहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझती हैं। इनकी करतूतों से कॉलोनी के लोग परेशान हो कर कई बार पुलिस को भी शिकायत कर चुके हैं। लेकिन पुलिस प्रशासन भी इन पर नकेल कसने में नाकामयाब हो रहा है।
अभिभावक भी हैं बराबार के दोषी
इस बारे में जब शहर के बुद्धिजीवी लोगों से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि बच्चों की इन करतूतों के लिए उनके अभिभावक भी बराबार के दोषी हैं।  अभिभावक बच्चों से बिना पूछताछ किए ही जेब खर्च के लिए पैसे दे देते हैं। पैसे देने के बाद बच्चों से यह भी नहीं पूछते की उसने पैसे कहां खर्च किए। अभिभावकों के इस लाड-प्यार का बच्चे गलत प्रयोग करते हैं और जेब खर्च के लिए मिले पैसे से बच्चे नशा व अपने दूसरे शौक पूरे करते हैं। इसके अलावा ना ही वे कभी बच्चों के स्कूल में जाकर उनका रिकार्ड चैक करते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे समय-समय पर स्कूल में जाकर बच्चों का रिकार्ड चैक करें, पैसे देने से पहले उनसे पूछें की उन्हें किसी चीज के लिए पैसे चाहिएं। पढ़े-लिखे अभिभावकों को अपने बच्चों का होमवर्क भी चैक करना चाहिए तथा घर पर भी  अपने बच्चे का टेस्ट लेना चाहिए। बच्चों की हर गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। छोटी-छोटी कमियों को अनदेखा कर उनकी आदत न बनने दें।

आधुनिक सुविधाओं से लैस होगा किसान प्रशिक्षण केंद्र

कांफ्रेस हाल व लाइब्रेरी के निर्माण पर खर्च किए जाएंगे एक करोड़
रोहतक रोड स्थित किसान प्रशिक्षण केंद्र जहां कांफ्रेस हाल का निर्माण किया जाना है।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
रोहतक रोड स्थित किसान प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) जल्द ही आधुनिक सुविधाओं से लैस होने जा रहा है। विभाग द्वारा यहां प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसानों को सभी आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी। हमेटी में दो कांफ्रेंस हाल बनाए जाएंगे। दोनों कांफ्रेंस हालों में सभी हाईटेक सुविधाएं मौजूद होंगी। कांफ्रेस हाल के साथ-साथ एक आधुनिक लाइब्रेरी भी बनाई जाएगी। ताकि किसान व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ किताबी ज्ञान भी प्राप्त कर सकें। लाइब्रेरी में किसान किताबों के माध्यम से अपना मनोरंजन कर सकेंगे। इससे किसान प्रशिक्षण के दौरान उबन महशूस नहीं करेंगे। विभाग द्वारा हमेटी की कायाकल्प के लिए लगभग एक करोड़ रुपए का बजट तैयार किया गया है।
आधुनिक खेती को बढ़ावा देने के साथ-साथ कृषि विभाग किसानों को भी हाईटेक करने में जुटा हुआ है। यहां प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसानों को आधुनिक खेती के साथ-साथ तकनीकी गुर भी सीखाए जाएंगे। किसानों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कृषि विभाग द्वारा हमेटी में सभी आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी। इसके लिए विभाग यहां दो कांफ्रेस हालों का निर्माण करवाएगा। ये कांफ्रेस हाल अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे। इनके निर्माण के लिए विभाग ने एक करोड़ रुपए का बजट तैयार कर मंजूरी के लिए सरकार को भेजा है। जैसे ही सरकार की ओर से योजना को हरी झंडी मिल जाएगी, वैसे ही योजना को अमल में लाने के लिए कार्रवाई शुरू की जाएगी। कांफ्रेस हाल के निर्माण के बाद यहां प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसान सभी आधुनिक सुविधाओं का लाभ ले सकेंगे। खेती के प्रशिक्षण के साथ-साथ किसानों को तकनीकी कार्यों के लिए भी प्रशिक्षित किया जाएगा। ताकि किसान सभी नई तकनीकों का ज्ञान प्राप्त कर आधुनिक समाज की धारा के साथ जुड़ सकें।
हाईटेक लाइब्रेरी की भी मिलेगी सौगात
किसान प्रशिक्षण केंद्र में कांफ्रेस हालों के निर्माण के साथ-साथ एक हाईटेक लाइब्रेरी भी स्थापित की जाएगी। इस लाइब्रेरी में खेती के अलावा हर प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध होंगी। लाइब्रेरी में किसानों को किताबी ज्ञान भी दिया जाएगा। ताकि किसान खेती के व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ किताबी ज्ञान अर्जित कर हर क्षेत्र में पारंगत हो सकें। कृषि विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से किसान प्रशिक्षण के दौरान उबन महशूस नहीं करेंगे। प्रशिक्षण के साथ-साथ लाइब्रेरी में मनोरंजक किताबों के माध्यम से किसान अपने आप को तरोताज कर सकेंगे।
बजट पास होते ही शुरू किया जाएगा निर्माण कार्य
प्रशिक्षण केंद्र में किसानों को सभी आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए विभाग प्रयासरत है। हमेटी में दो कांफ्रेस हालों के साथ-साथ एक लाइब्रेरी का निर्माण भी करवाया जाएगा। कांफ्रेस हाल सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे। इनके निर्माण पर विभाग द्वारा एक करोड़ से भी ज्यादा रुपया खर्च किया जाएगा। कृषि विभाग के महानिदेशक के आदेशानुसार बजट तैयार कर सरकार को भेज दिया गया है। बजट मंजूर होते ही निर्माण कार्य शुरू करवा दिया जाएगा।
बीएस नैन
निदेशक, हमेटी, जींद


सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

नौकरी के साथ-साथ जिंदगी भी खतरे में

अधिकारियों द्वारा सेंक्शन खत्म होने के बाद भी दबाव बना कर लिया जाता है काम
नरेंद्र कुंडू
जींद।
बिजली निगम में डीसी रेट पर कार्यरत एएलएम इन दिनों अनाथ हो गए हैं। प्रदेशभर में कार्यरत लगभग 6 हजार एएलएम की सेंक्शन एक फरवरी से खत्म हो गई है और बिजली निगम मुख्यालय द्वारा अब तक कोई नई सेंक्शन नहीं भेजी गई है। सेंक्शन खत्म होने के बाद भी बिजली निगम डीसी रेट के कर्मचारियों से पहले की तरह काम ले रहा है। नौकरी खोने के भय से ये कर्मचारी दबाव में काम करने के लिए मजबूर हैं। यदि इस दौरान डीसी रेट के किसी कर्मचारी के साथ कोई हादसा हो जाता है तो उसका जिम्मेदार तो भगवान ही होगा, क्योंकि निगम को इस हादसे से पल्ला झाड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी।
हरियाणा बिजली वितरण निगम ने कर्मचारियों की तंगी से राहत पाने के लिए 2008 में 6 हजार असिस्टेंट लाइनमैन (एएलएम)6 माह के लिए डीसी रेट पर भर्ती किए थे। 2008 के बाद बिजली निगम मुख्यालय द्वारा हर 6 माह बाद डीसी रेट के कर्मचारियों के लिए नई सेंक्शन तैयार की जाती थी। मुख्यालय से नई सेंक्शन मिलने के बाद इन कर्मचारियों को दोबारा से काम सौंपा जाता था। लेकिन इस बार बिजली निगम द्वारा इस तरह की कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। बिजली निगम मुख्यालय द्वारा डीसी रेट के कर्मचारियों के लिए भेजी गई 6 माह की सेंक्शन एक फरवरी को समाप्त हो चुकी है, लेकिन अब तक बिजली निगम मुख्यालय की ओर से कर्मचारियों के लिए कोई नई सेंक्शन नहीं भेजी गई है। मुख्यालय से नई सेंक्शन न मिलने के कारण डीसी रेट के कर्मचारी अनाथ हो गए हैं। बिजली निगम के अधिकारी सेंक्शन खत्म होने के बाद भी इन कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का दबाव बनाकर काम ले रहे हैं। बेरोजगारी के इस दौर में अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में ये कर्मचारी मुफ्त में काम करने को मजबूर हैं। खुदा ना खास्ता अगर इस दौरान इनके साथ किसी प्रकार का हादसा हो जाता है तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। क्योंकि बिजली निगम को तो इस हादसे से पल्ला झाड़ने में किसी प्रकार की कोई परेशानी नही होगी। निगम के अधिकारी तो सेंक्शन खत्म होने का बहाना बनाकर हादसे का ठिकरा उल्टा कर्मचारी के सिर पर ही फोड़ देंगे। अब तो नई सेंक्शन आने तक इन कर्मचारियों की सुरक्षा का जिम्मा भगवान भरोसे ही है। 
क्या है नियम
बिजली निगम ने कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए 2008 में डीसी रेट पर नए कर्मचारी भर्त्ती करने की योजना बनाई थी। योजना पर अमल करते हुए निगम ने 6 माह के लिए डीसी रेट पर 6 हजार कर्मचारी भर्त्ती किए थे। निगम ने इस भर्त्ती के लिए जो नियम बनाए थे, उनके मुताबित इन कर्मचारियों को सिर्फ 6 माह के लिए भर्त्ती किया गया था। इसके बाद अगर निगम इन कर्मचारियों को काम पर रखना चाहती है तो निगम को उसके लिए दोबारा से नई सेंक्शन तैयार करनी होगी। डीसी रेट पर काम कर रहे कर्मचारियों की सेंक्शन एक फरवरी को खत्म हो चुकी, लेकिन बिजली निगम मुख्यालय द्वारा अब तक डीसी रेट के कर्मचारियों के लिए कोई नई सेंक्शन नहीं भेजी गई है। सेंक्शन खत्म होने के बावजूद भी निगम के अधिकारियों द्वारा डीसी रेट के कर्मचारियों पर दबाव बनाकर काम लिया जा रहा है। 
कौन होगा इनका जिम्मेदारी
पिछले तीन सालों में डीसी रेट पर कार्यरत 93 कर्मचारी काम के दौरान हादसों का शिकार होकर अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। ड्यूटी पर जान गंवाने वाले इन कर्मचारियों के परिजनों को निगम या सरकार की ओर से किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया गया है। काम के दौरान इन कर्मचारियों को निगम द्वारा कोई टूल किट भी नहीं दी जाती, जिस कारण हादसे की आशंका ओर भी ज्यादा बढ़ जाती है। इस दौरान अगर निगम मुख्यालय से नई सेंक्शन आने से पहले डीसी रेट के कर्मचारी के साथ कोई हादसा हो जाता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।

पेंशन की टेंशन को कम करने के लिए विभाग ने तोड़ी चुप्पी

नरेंद्र कुंडू
जींद। पेंशन की टेंशन को कम करने के लिए समाज कल्याण विभाग ने पेंशन वितरण प्रणाली में कुछ फेर बदल किए हैं। विभाग ने अब इस समस्या से निजात पाने के लिए अपनी चुप्पी तोड़ दोबारा से पुराना पेटनर अपनाया है। इस पेटनर में सिर्फ थोड़ा बदलाव किया गया है। विभाग द्वारा नियमों में किए गए फेरबदल के अनुसार अब निजी कंपनियों से ग्रामीण क्षेत्रों की पेंशन वितरण का काम छिन कर सिर्फ शहरी क्षेत्रों की पेंशन वितरण का जिम्मा सौंपा गया है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में पेंशन वितरण का काम दोबारा से पंचायतों को सौंपा गया है। अब देखना यह है कि फीनों कंपनी विभाग द्वारा सौंपी गई इस नई जिम्मेदारी को निभाने में कहां तक सफल हो पाएगी।
प्रदेश में लगभग एक साल पहले सरकार ने पेंशन वितरण प्रणाली को सुगम बनाने के लिए पेंशन वितरण का काम बैंकों के सुपुर्द किया था। जिसके बाद बैंकों ने अपने सिर से बोझ कम करने के लिए यह काम विभिन्न निजी कंपनियों को सौंप दिया था। निजी कंपनियों को प्रदेश में पेंशन वितरण की जिम्मेदारी देने के साथ-साथ साफ निर्देश जारी किए थे कि कंपनियों को पात्र पेंशन धारकों के कार्ड बनाने होंगे तथा समय पर गांवों में जाकर पेंशन वितरण करनी होगी। जिसके बाद जींद जिले में पेंशन वितरण के कार्य की जिम्मेदारी फीनों कंपनी को सौंपी गई थी। लेकिन अधिकतर निजी कंपनियां अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने में सफल नहीं हो पाई थी। पेंशन वितरण का ठेका लेने वाली निजी कंपनियों ने सरकार की जमकर फजीहत करवाई। पात्रों को 6-6 माह तक पेंशन नसीब नहीं हो पाई थी। हर रोज बुजुर्ग पेंशन के लिए सड़कों पर उतरते रहे थे, पेंशन न मिलने से आक्रोशित बुजुर्गों द्वारा जगह-जगह जाम लगाए जा रहे थे। हर रोज पेंशन धारकों के बढ़ते आक्रोश के कारण सरकार के भी पसीने छुट रहे थे। इस प्रकार पेंशन वितरण का ठेका लेने वाली कंपनियों की लापरवाही के कारण सरकार की यह योजना सफल नहीं हो पाई। लेकिन अब सरकार ने डेमेज कंट्रोल की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार ने इसके लिए विभाग को जल्द से जल्द नियमों में बदलाव के आदेश जारी किए थे। विभाग ने आदेशों पर अमल करते हुए पेंशन वितरण प्रणाली के नियमों में फेरबदल कर जिला स्तर के सभी अधिकारियों को पत्र के माध्यम से नए निर्देश जारी कर दिए हैं। विभाग द्वारा किए गए फेरबदल में अब देहात में पेंशन वितरण का कार्य निजी कंपनियों से छीनकर दोबारा से पंचायतों के सुपुर्द कर दिया गया है। जबकि शहरी क्षेत्रों में पेंशन वितरण का काम संबंधित कंपनी के बिजनेस कोरपोनडेंट एजेंट ही करेंगे। शहरी क्षेत्रों में नई पेंशन बनाने, स्मार्ट कार्ड में आ रही दिक्कतों को दूरकरने का काम निजी कंपनी के नुमाइंदे ही करेंगे।  पेंशन वितरण के समय संबंधित वार्ड के पार्षद भी मौजूद रहेंगे और उनके समक्ष ही पेंशन वितरण का काम किया जाएगा। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में पेंशन वितरण का काम सरपंच करेंगे। इसके अलावा ग्राम सचिव, पटवारी, पंच, नंबरदार आदि भी पेंशन वितरण के कार्य में शामिल हो सकते हैं। पेंशन की राशि पंचायत स्तर पर केलकुट की जाएगी और निदेशालय द्वारा राशि को सीधे पंचायतों के अकाउंट में डाल दिया जाएगा। यह राशि हर माह की आठ तारीख तक अकाउंट में डाल दी जाएगी। सरपंच को दस दिनों के अंदर पेंशन वितरण का काम पूरा करना होगा। बकाया राशि को सरपंच हर माह की 25 तारीख को बीडीपीओ को वापस करेंगे। इसके बाद बीडीपीओ पूरी रिपोर्ट तैयार करके जिला समाज कल्याण विभाग के पास भेजेंगे।
50 हजार से ज्यादा आमदनी वालों को नहीं मिलेगी पेंशन
अपात्र पेंशन धारकों पर शिकंजा कसने के लिए विभाग ने कमर कस ली है। इसके लिए विभाग ने दोबारा से सर्वे करवाया है। जिले में लगभग 1,36,103 पेंशन धारक हैं। विभाग द्वारा दोबारा से करवाए गए सर्वे में 10,700 ऐसे लोगों की पहचान की गई है, जो विभाग के इन नियमों को पूरा नहीं करते हैं। इसके अलावा जो लोग इस सर्वे में शामिल नहीं हो पाए हैं, उनके लिए विभाग ने एक मौका ओर दिया है। ये लोग अब 8 से 10 फरवरी तक बीडीपीओ कार्यालय में जाकर अपनी जांच करवा सकते हैं। अगर ये लोग इस सर्वे में भी शामिल नहीं होंगे तो विभाग इन पेंशनधारकों का नाम भी पेंशन सूची से हटा देगा। इसके अलावा विभाग द्वारा पेंशन के लिए बनाए नए नियमों में किसी भी सेवानिवृत की पत्नी या 50 हजार से ज्यादा की आमदनी वाले लोगों की पेंशन नहीं बनाई जाएगी। अगर कोई भी व्यक्ति शर्तों को पूरा किए बिना धोखाधड़ी से पेंशन लेता मिलेगा तो विभाग उसके खिलाफ कार्रवाई भी करेगा।
 
क्या कहते हैं अधिकारी 
अब नगर परिषद तथा नगर पालिका के अधीन आने वाले वार्डों में फीनो कंपनी के नुमाइंदे पेंशन वितरण का काम करेंगे जबकि गांवों में पंच, सरपंचों के माध्यम से पेंशन वितरण का काम किया जाएगा। इसके लिए विभाग से निर्देश मिल चुके हैं। इसके अलावा अगर कोई भी अपात्र व्यक्ति पेंशन लेता मिलेगा तो विभाग उसके खिलाफ भी कार्रवाई करेगा।
ओपी यादव
जिला समाज कल्याण अधिकारी, जींद

जिले में खूब चमक रहा है मिलावटखोरों का कारोबार


खाली पड़ा है ड्रग इंस्पेक्टर का पद
नरेंद्र कुंडू
जींद।
आप जो दवा खा रहे हैं, वह असली है या नकली इसकी कोई गारंटी नहीं है। क्योंकि जिस विभाग के कंधों पर यह जिम्मेदारी है, वह विभाग खुद ही बेसहारा है। जिले में गत चार सालों से ड्रग इंस्पेक्टर का पद खाली पड़ा है। कुछ समय तक तो स्वास्थ्य विभाग ने दूसरे जिलों से आयातित ड्रग इंस्पेक्टर के सहारे काम चलाया, लेकिन अब यह व्यवस्था भी दम तोड़ चुकी है। क्योंकि स्वास्थ्य विभाग के पास अब यह जिम्मेदारी नहीं है। सरकार ने स्वास्थ्य विभाग को इससे अलग करते हुए इसकी जिम्मेदारीफूड एंड ड्रग सेफ्टी विभाग को सौंप दी है। जिस कारण स्वास्थ्य विभाग भी अब इस ओर से अपना मुहं मोड़ चुका है। जिस कारण अब एक साल से यहां किसी भी अधिकारी को इसका अतिरिक्त चार्ज नहीं सौंपा गया है। इस पद के खाली होने से मिलावटखोर व नकली दवा विक्रेता बेलगाम हैं। जिले में पिछले काफी समय से न तो मैडीकल स्टोरों की चेकिंग हुई है और न ही सैंपल भरे जा रहे हैं। इसके अलावा नकली मिठाई व दूध का कारोबार करने वालों का गोरखधंधा भी चमक रहा है। विभाग की इस लापरवाही से लोगों का स्वास्थ्य दांव पर है।
जिले में पिछले चार साल से लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी राम भरोसे है। विभागीय सूत्रों की मानें तो पिछले चार साल से जिले में ड्रग इंस्पेक्टर का पद खाली पड़ा है। कुछ समय तो स्वास्थ्य विभाग ने दूसरे जिलों के ड्रग इंस्पेक्टर के सहारे यहां का काम चलाया, लेकिन जल्द ही यह व्यवस्था भी दम तोड़ गई। अब पिछले एक साल से यहां ड्रग इंस्पेक्टर का पद बिल्कुल खाली पड़ा है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा सालभर से किसी को अतिरिक्त कार्यभार भी नहीं सौंपा गया है। इतने लंबे समय से ड्रग इंस्पेक्टर का पद खाली रहने से मिलावटखोर जमकर चांदी कूट रहे हैं। मिलावट के कारोबार के साथ-साथ शहर में नकली दवाइयों का कारोबार भी फल-फुल रहा है। नकली दवा विक्रेता खुलेआम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग तमाशबिन बनकर सबकुछ चुपचाप देख रहा है। पिछले एक साल से जिले में न तो मैडीकल स्टोरों की चेकिंग हुई है और न ही सैंमल भरे गए हैं। इसके अलावा शहर में नकली मिठाई व दूध का कारोबार करने वालों का गोरखधंधा भी खूब चमक रहा है। जिले के लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी राम भरोसे है। अब इस बात की गारंटी कोन ले कि शहर के मैडीकल स्टोरों पर जो दवा बिक रही है, वह असली है या नकली, दुकानों पर जो खाद्य सामग्री बिक रही है, वह प्योर है या मिलावटी। विभाग की इस लापरवाही से खुलेआम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रही है।
अब स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं इसकी जिम्मेदारी
पहले मैडीकल स्टोरों की चेकिंग व सैंपल की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग के पास होती थी। यह सब कामकाज स्वास्थ्य विभाग की निगरानी में होता था। जिस कारण स्वास्थ्य विभाग किसी अधिकारी का पद खाली होने के बाद इसकी जिम्मेदारी किसी दूसरे अधिकारी को सौंप देता था, ताकि कामकाज प्रभावित न हो सके। लेकिन अब सरकार ने इसके लिए अलग से विभाग बना दिया। स्वास्थ्य विभाग को इससे अलग कर इसकी जिम्मेदारी फूड एंड ड्रग सेफ्टी विभाग को सौंप दी है। इस जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने भी इस ओर से मुहं मोड़ लिया है और पिछले एक साल से यहां ड्रग इंस्पेक्टर का अतिरिक्त चार्ज किसी भी अधिकारी को नहीं सौंपा गया है। जिस कारण मिलावटखोरों के हौंसले बुलंद हो गए हैं।
जिले से बाहर भी होती है नकली घी व दूध की सप्लाई
जिले में जमकर नकली घी व दूध का कारोबार चलता है। मिलावटखोर खुलेआम अपना कारोबार चलाते हैं। ये लोग यहां पर मिल्क प्लांट होने का फायदा उठाते हैं। मिलावटखोर नकली घी व दूध तैयार कर, उन पर मिल्क प्लांटों का नकली लेबल लगा कर जिले से बाहर भी इसकी सप्लाई करते हैं। इस तरह के मामले कई बार पुलिस के सामने आ चुके हैं। लेकिन जिले में ड्रग इंस्पेक्टर का पद खाली होने के कारण प्रशासन इस गौरख धंधे पर नकेल कसने में नाकामयाब है।


डिजीटल पंचायत ने साक्षरता की ओर बढ़ाए कदम


.....ताकि मजबूत हो सके देश की नीव
शिक्षा समिति उठा रही गरीब व असहाय बच्चों की पढ़ाई का बीड़ा
नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश की पहली डिजीटल पंचायत का दर्जा हासिल करने वाली बीबीपुर की पंचायत अब शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी धाक जमाने की कवायद में लगी हुई है। पंचायत द्वारा गांव के भावी कर्णधारों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध करवा, एक अच्छे समाज के निर्माण में अपनी भागीदारी दर्ज करवाने के उद्देश्य से गांव में शिक्षा समिति का गठन किया गया है। यह समिति समय-समय पर गांव के स्कूलों का निरीक्षण करती है और जरूरतमंद बच्चों की मदद करती है। पंचायत ने समिति में रिटायर्ड टीचरों को नियुक्त किया है, ताकि इनकी सेवाएं लेकर बच्चों को शिक्षा में पारंगत किया जा सके। जो बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, उनको कक्षाओं तक ले जाने की कवायद भी समिति कर रही है। शिक्षा के साथ-साथ समिति गांव में आपसी भाईचारे को कायम रखने के लिए भी प्रयासरत है। समिति द्वारा हर त्यौहार को स्कूलों में पूरे परंपरागत ढंग से मनाया जाता है। ताकि बच्चे हमारी संस्कृति व रीति-रिवाजों का अनुसरण कर आपसी प्यार-प्रेम व भाईचारे को कायम रख सकें। पंचायत द्वारा उठाए गए इस कदम से देश की यह पहली ऐसी पंचायत बनने जा रही है, जो गांव में शत-प्रतिशत साक्षरता के प्रयास में लगी है।
बीबीपुर गांव की पंचायत देश की अन्य पंचायतों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी हुई है। गांव की पंचायत देश की पहली डिजीटल पंचायत का दर्जा प्राप्त करने के अलावा भी कई प्रकार के अवार्ड जीतकर  अंतर्रास्ट्रीय  स्तर पर सुर्खियां बटोर चुकी है। पंचायत ने अनेकों उपलब्धियां प्राप्त करने के बाद भी विकास के क्षेत्र में अपनी रफ्तार को रुकने नहीं दिया। नई सोच व शिक्षित सरपंच के युवा नेतृत्व में अनेक बुलंदिया छूने के बाद भी पंचायत का जोश ठंडा नहीं पड़ा। इसके बाद पंचायत ने गांव से बाहर निकलकर देश के विकास की ओर अपना ध्यान केंद्रीत किया। इसकी शुरूआत पंचायत ने अपने ही गांव से की। पंचायत ने देश के भावी कर्णधारों को शिक्षित करने के उद्देश्य से गांव में शिक्षा समिति का गठन किया। ताकि आगामी पीढ़ी अच्छी शिक्षा ग्रहण कर देश के विकास में अपना योगदान दे सकें। शिक्षा समिति के संचालन की जिम्मेदारी सेवानिवृत्त अध्यापक ओमप्रकाश जागलान, नारायण सिंह, चंद्रभान व रामकिशन को सौंपी गई है। समिति की गतिविधियों में पैसे की कमी रोड़ा न बन सके, इसके लिए पंचायत द्वारा समिति को आमदनी के साधन भी उपलब्ध करवाए गए हैं। इस प्रकार गांव की यह पंचायत शत-प्रतिशत साक्षरता लाने की कवायद में लगी हुई है।
शिक्षा समिति के पास क्या है आमदनी का साधन
पैसे की कमी के कारण शिक्षा समिति की गतिविधियों पर कोई प्रभाव न पड़े इसके लिए पंचायत ने समिति को साढ़े तीन एकड़ जमीन दी हुई है। जमीन को हर वर्ष 20 से 25 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से ठेके पर दिया जाता है। इस प्रकार जमीन से समिति को हर वर्ष एक लाख के करीब आमदनी हो जाती है। इसके अलावा  पंचायत ने समिति के नाम 6 लाख रुपए की एफडी बैंक में डालवा रखी है। इस एफडी के ब्याज को भी समिति बच्चों की शिक्षा पर खर्च करती है।
क्या है समिति की जिम्मेदारी
गांव के स्कूलों की देखभाल व स्कूलों की जरूरतों को पूरा करती है।
शिक्षा समिति समय-समय पर स्कूलों का निरीक्षण करती है।
गरीब व असहाय बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्च समिति उठाती है।
स्कूल के खिलाड़ियों को खेल की सभी सुविधाएं मुहैया करवाती है।
स्कूलों में समय-समय पर खेलों का आयोजन व एनएसएस कैंपों का आयोजन करवाती है।
स्कूली बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखती है।
पढ़ाई में कमजोर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है।
गांव में आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए हर त्यौहार पर स्कूल में कार्यक्रम का आयोजन करवाती है।
ताकि गांव में बना रहे भाईचारा
गांव के लोगों में प्यार-प्रेम व भाईचारे की भावना बनी रहे और लोग सुख-दुख में एक दूसरे के काम आ सकें, इसके लिए शिक्षा समिति हर पर्व को स्कूल में ही बड़े हर्षोल्लास से मनाती है। हर पर्व पर स्कूल में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में समिति के सदस्य बच्चों के बीच में रहकर उन्हें अपने रीति-रिवाजों व संस्कृति के बारे में अवगत करवाते हैं। इस प्रकार समिति के प्रयासों से गांव के लोगों में भाईचारे की भावना भी विकसित होती है।
बच्चे देश का भविष्य
बच्चे देश का भविष्य हैं और बच्चों का भविष्य शिक्षा में सुरक्षित है। शिक्षा के बिना देश का विकास संभाव नहीं है। इसलिए पंचायत ने बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से गांव में शिक्षा समिति का गठन किया है। गांव के सेवानिवृत्त अध्यापकों को समिति का सदस्य बनाया गया है। अपने गांव के साथ-साथ व अन्य गांवों की पंचायतों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। शिक्षा समिति को किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाने पड़ें, इसके लिए समिति को आय के साधन भी उपलब्ध करवाए गए हैं।
सुनील जागलान
सरपंच, बीबीपुर


नौकरी सरकारी, बने व्यापारी

सैंपल के लिए आई दवाइयों के बदले पशु पालकों से ऐंठे जाते हैं पैसे
नरेंद्र कुंडू
जींद।
नौकरी सरकार की हो रही है, लेकिन खुद का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। जिले में वेटरनरी सर्जन व सहायक वेटरनरी चिकित्सक सरकारी ड्यूटी बजाने की बजाय प्राइवेट प्रेक्टिस को ज्यादा तव्वजो दे रहे हैं। पशु चिकित्सक निजी स्वार्थ के लिए पशु पालकों की जेबों पर डाका डाल रहे हैं। सारा दिन सरकारी अस्पताल सूने पड़े रहते हैं, जबकि इनमें ड्यूटीरत चिकित्सक गांवों में प्राइवेट प्रेक्टिस में लीन रहते हैं। इनता ही नहीं दवा कंपनियों की ओर से पशु चिकित्सकों को मिलने वाले सैंपलों को भी ये धड़ल्ले से बेच रहे हैं। इस तरह वेटरनरी सर्जन व सहायक वेटरनरी चिकित्सक खुलेआम पशु पालकों की जेबें कट कर मोटी चांदी कूट रहे हैं।
प्रदेश में पशु व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। लेकिन सरकारी अस्पताल में मौजूद वेटरनरी सर्जन (वीएस) व सहायक वेटरनरी चिकित्सक (वीएलडीए) सरकार की इस मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। यहां तो बाड़ ही खेत को खा रही है। ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में मौजूद पशु चिकित्सक सरकार की ड्यूटी कम, अपना बिजनश ज्यादा चला रहे हैं। अपनी जेबें गर्म करने के चक्कर में पशु चिकित्सक अस्पताल में कम और बाहर ज्यादा रहते हैं। जिससे सारा दिन अस्पताल खाली पड़े रहते हैं। चिकित्सक अस्पताल में पशुओं का ईलाज करने की बजाय पशु पालक के घर पर जा कर पुश का ईलाज करने को ज्यादा तवज्जो देते हैं। क्योंकि घर पर पशु का ईलाज करने के बाद वह पशु पालक से पूरी फीस वसूलते हैं। इस प्रकार सरकार की ड्यूटी के साथ-साथ वह अपना बिजनश धड़ल्ले से चला रहे हैं। इतना ही नहीं दवा कंपनी की तरफ से पशु चिकित्सकों को सैंपल के तौर पर मिलने वाली दवाइयों को भी ये खुलेआम बेचते हैं। सैंपल की दवाई को सैंपल के तौर पर इस्तेमाल न कर पशु पालक से दवाई के पूरे पैसे ऐंठे जाते हैं। इस प्रकार पशु चिकित्सक सरकारी नियमों को ताक पर रख कर पशु पालकों को चूना लगा रहे हैं। 
क्या है नियम
पशु अस्पताल में मौजूद सरकारी चिकित्सक ड्यूटी के दौरान किसीभी पशुपालक से पशु के ईलाज के बदले पैसे नहीं ले सकता। चिकित्सक अगर पशु पालक के घर पर जाकर पशु का ईलाज करता है तो वह उसके लिए भी पशुपालक से किसी तरह की फीस नहीं ले सकता। अगर अस्पताल में दवाई उपलब्ध नहीं है तो पर्ची पर दवा लिख कर पशुपालक से मेडीकल स्टोर से दवा मंगवा सकता है। इसके अलावा अगर दवा कंपनी की तरफ से चिकित्सक को सैंपल के लिए कोई दवाई दी गई है तो वह पशु पालक से उस दवाई के भी पैसे नहीं ले सकता।
शिकायत मिलने पर की जाएगी कार्रवाई
इस तरह की कोई भी शिकायत उनके पास नहीं आई है। अगर उनके पास इस तरह की शिकायत आती है, तो वह मामले की जांच करवाएंगे। कोई भी चिकित्सक ईलाज के बदले पशु पालक से पैसे लेता है तो, यह सरासर गलत है। अगर अस्पताल में दवाई मौजूद नहीं है तो चिकित्सक वह दवाई पशु पालक को लिख कर मेडीकल स्टोर से मंगवा सकता है।
डा. राजीव जैन, उपनिदेशक
सघन पशुधन परियोजना, जींद


रविवार, 29 जनवरी 2012

हमेटी को जल्द मिलेगी सोलर सिस्टम की सौगात

विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर खर्च किए जाएंगे 15 लाख
सोलर लाइटों से रात के अंधेरे में भी जगमगाएगा प्रशिक्षण केंद्र
वाटर हीटिंग सिस्टम के बारे में जानकारी देते डायरेक्टर बीएस नैन।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
रोहतक रोड स्थित हमेटी को जल्द ही सोलर सिस्टम की सौगात मिलेगी। हमेटी में प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसानों को खान-पान व रहन-सहन संबंधी सुविधाएं अब सोलर आधारित मिलेंगी। यह सोलर सिस्टम काफी हाईटेक होगा। सर्दी के मौसम में किसानों को गर्म पानी उपलब्ध करवाने के लिए सोलर वाटर हीटिंग सिस्टम व 65 सोलर लाइटें भी लगाई जाएंगी। सोलर लाइटें लगने से हमेटी रात के अंधेरे में भी जगमगाएगी। हमेटी में सोलर सिस्टम लगने के बाद बिजली व पानी की बचत के साथ-साथ विभाग को लाखों रुपए के राजस्व का लाभ भी  होगा। विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर 15 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए यहां पर प्रशिक्षण के लिए आने वाले लोगों को भी सोलर सिस्टम के बारे में विस्तार से जानकारी देकर प्रेरित किया जाएगा।
हमेटी में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले किसानों को सोलर सिस्टम पर आधारित सभी सुविधाएं मिलेंगी। कड़ाके की ठंड में भी किसानों को 24 घंटे गर्म पानी उपलब्ध होगा। विभाग द्वारा हमेटी में 2 हजार लीटर की क्षमता वाला वाटर हीटिंग सिस्टम लगाया जाएगा। इसमें एक हजार लीटर क्षमता का वाटर हीटिंग सिस्टम तो लगाया जा चुका है। कभी-कभार अगर धूंध के कारण सूर्य उदय नहीं होगा तो भी ज्यादा चिंता की बात नहीं है, क्योंकि वाटर हीटिंग सिस्टम से गर्म किया गया पानी टंकी में कम से कम दो दिनों तक गर्म रह सकता है। इससे  इसके अलावा केंद्र के प्रांगण में जल्द ही सोलर लाइटें भी लगाई जाएंगी। वाटर हीटिंग सिस्टम से मेस में खाना बनाने में भी इसी पानी का प्रयोग किया जाएगा। जिससे खाना भी जल्द ही तैयार हो जाएगा। इसके अलावा वाटर हीटिंग सिस्टम के साथ रीप सिस्टम लगने से पानी भी बर्बाद होने से बच जाएगा। यहां पर कृषि प्रशिक्षण के साथ-साथ किसानों को सोलर सिस्टम से होने वाली बचत के बारे में जानकारी देकर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा। ताकि अधिक से अधिक लोग सोलर सिस्टम का लाभ ले सकें। प्रशिक्षण केंद्र में सोलर सिस्टम लगने से बिजली व पानी की बचत के साथ-साथ विभाग को हर साल लाखों रुपए के राजस्व का भी लाभ होगा।
क्या है वाटर हीटिंग सिस्टम
वाटर हीटिंग सिस्टम छत पर रखी पानी की टंकी पर लगाया जाता है। यह सिस्टम सूर्य की किरणों से ऊर्जा लेकर टंकी के पानी को गर्म कर देता है। इसके अलावा इस सिस्टम के साथ रीप सिस्टम भी लगाया जाता है। रीप सिस्टम सोलर एनर्जी पर बेस्ड सिस्टम है और यह आम सोलर पैनल की तरह नहीं है। आम सोलर पैनल जहां सोलर एनर्जी से बिजली बनाता है और इसे बैटरी में स्टोर करता है, वहीं रीप सिस्टम सूरज की रोशनी से एनर्जी लेकर उसका इस्तेमाल सीधे जमीन के अंदर से पानी को खींचने में करता है। अगर पानी किसी पाइपलाइन के जरिये आ रहा है तो रीप सिस्टम से बिना बिजली खर्च किए उसे ओवरहेड टैंक तक पहुंचाया जा सकता है। जैसे ही टैंक भरेगा, रीप सिस्टम काम करना बंद कर देगा। फिर टैंक से पानी का लेवल कम होने के बाद वह दोबारा काम करना शुरू करेगा और टैंक को फिर भर देगा। इस तरह यह सिस्टम अंडरग्राउंड वॉटर और पाइपलाइन से आ रहे पानी की बर्बादी को भी रोकेगा। इसके इस्तेमाल से पानी व बिजली दोनों की बचत होगी।
सोलर सिस्टम से रोशन होगा हमेटी।
किसान प्रशिक्षण केंद्र में अब लाइट की समस्या नहीं रहेगी। शहर में ओर कहीं लाइट रहे या न रहे, लेकिन हमेटी में लाइट जरूर रहेगी। सोलर सिस्टम लगने से हमेटी में चौबिसों घंटे लाइट रहेगी। हमेटी में बिजली से होने वाले सभी कार्य सोलर सिस्टम पर आधारित होंगे। हमेटी प्रांगण में एनर्जी सेविंग वाली 65 एलईडी सोलर लाइटें लगाई जाएंगी। यह पूरी तरह से आटोमेटीक होंगी। शाम होते ही अपने आप लाइटें जल जाएंगी और सुबह होते ही अपने आप बंद जाएंगी। इस प्रकार हमेटी में सोलर सिस्टम शुरू होने के बाद कोई भी काम प्रभावित नहीं होगा।
ऊर्जा की बचत करना है उद्देश्य
विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर 15 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रशिक्षण केंद्र में सोलर सिस्टम शुरू होने से लाइट व पानी की बचत होगी। जिससे विभाग को हर माह लाखों रुपए की बचत होगी। प्रशिक्षण केंद्र में इस सिस्टम को लगवाने के पीछे उनका उद्देश्य एनर्जी सेविंग करना है। इस योजना को जल्द से जल्द अमल में लाने के लिए सभी कागजी कार्रवाई पूरी कर रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजी जा चुकी है।
बीएस नैन
डायरेक्टर, हमेटी, जींद


अब कृषि विज्ञानिकों से सीधे रूबरू होंगे किसान

      हमेटी में जल्द शुरू होगा वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम
हमेटी में लगाया गया वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
कृषि विभाग अब किसानों को हाईटेक करने की तैयारी कर रहा है। किसानों को समय-समय पर सभी आधुनिक जानकारियां उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से रोहतक रोड स्थित किसान प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में विभाग द्वारा वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम लगाया जाएगा। वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम के माध्यम से किसान कृषि वैज्ञानिकों के साथ सीधे रूबरू होकर सवाल-जवाब कर सकेंगे। सिस्टम के शुरू होने से जहां किसानों को नवीनतम जानकारियां उपलब्ध होंगी, वहीं उनके समय व पैसे की बचत भी होगी।
खेती किसानों के लिए लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है। जिस कारण किसान खेती से अपना मुहं मोड़ रहे हैं। किसानों को समय-समय पर खेती की आधुनिक जानकारियां उपलब्ध न होना भी इसका मुख्य कारण है। लेकिन अब किसानों की इस समस्या का समाधान करने के लिए कृषि विभाग ने एक खास योजना तैयार की है। इस योजना के तहत हमेटी में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम लगाया जाएगा। प्रशिक्षण केंद्र में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम लगाने का 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। विभाग द्वारा हमेटी में लगवाए गए इस वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम पर 5 से 6 लाख रुपए तक खर्च आने का अनुमान है। सिस्टम के शुरू होते ही हमेटी में प्रशिक्षण पर आने वाले किसानों को विभाग द्वारा समय-समय पर कृषि संबंधि सभी आधुनिक जानकारियां वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये दी जाएंगी। इस सिस्टम के तहत किसान चंडीगढ़ व दिल्ली के कृषि विज्ञानिकों के साथ जुड़कर अपने सवाल-जवाब कर सकेंगे। अब किसानों को अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों पर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उनकी सभी  समस्याओं का समाधान कृषि विज्ञानिकों द्वारा वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से किया जाएगा। किसानों को फसल में अपने वाली बीमारियों व उनकी रोकथाम की पूरी आधुनिक जानकारी समय पर उपलब्ध होने से किसान खेती से अधिक से अधिक लाभ अर्जित कर आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो सकेंगे। सिस्टम के शुरू होने के बाद किसानों को आधुनिक खेती के लिए प्रेरित करने के लिए कृषि विभाग को ज्यादा दौड़-धूप नहीं करनी पड़ेगी। वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम से कृषि विज्ञानिकों व किसानों को समय व पैसे की बचत भी होगी।
वीसी सिस्टम से विभाग को भी होगा लाभ
किसान प्रशिक्षण केंद्र में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम शुरू होने से किसानों के साथ-साथ विभाग को भी काफी लाभ होगा। सिस्टम शुरू होने के बाद हमेटी में ट्रेनिंग के लिए आने वाले एडीओ व सेकेंड क्लाश के अधिकारियों को चंडीगढ़ मुख्यालय से अधिकारी सीधे संपर्क कर दिशा-निर्देश दे सकेंगे। सिस्टम के माध्यम से ही मुख्यालय में बैठे-बिठाए उच्च अधिकारी अपना लेक्चर ट्रेनिंग पर आने वाले एडीओ व अन्य अधिकारियों को दे सकेंगे। वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम शुरू होने से विभाग को समय व पैसे दोनों की बचत होगी।
किसानों को जल्द मिलेगी वीसी की सौगात
हमेटी में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम शुरू करने के पीछे विभाग का उद्देश्य किसानों को समय-समय पर आधुनिक जानकारियां उपलब्ध करवाना है। यह सिस्टम शुरू होने से किसान कृषि विज्ञानिकों के साथ सीधे रूबरू होकर अपने सवाल जवाब कर सकेंगे। इस योजना से विभाग एवं किसानों को समय व पैसे दोनों की बचत होगी। हमेटी में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम लगाने का 90 प्रतिशत कार्य पूरा किया जा चुका है। बाकि की बची प्रक्रिया को जल्द ही पूरा कर वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम को शुरू किया जाएगा।
बीएस नैन
डायरेक्टर, किसान प्रशिक्षण केंद्र, जींद


अब लघु सचिवालय से छिड़ेगी सौर ऊर्जा की मुहिम


साढ़े दस लाख की लागत से तैयार किया जाएगा साढ़े चार केजी वॉट का संयत्र
 सौर ऊर्जा संयत्र का फाइल फोटो।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन ने कमर कस ली है। लोगों को सौर ऊर्जा के लिए जागरूक करने की मुहिम अब लघु सचिवालय से छेड़ी जाएगी। इस मुहिम को सिरे चढ़ाने के लिए जिला प्रशासन ने लघु सचिवालय में प्रदर्शन के रूप में एक सौर ऊर्जा बिजली संयत्र लगाने का निर्णय लिया है। साढ़े दस लाख रुपए की लगात से तैयार होने वाले इस साढ़े चार किलो वॉट के बिजली संयत्र से हर माह एक हजार यूनिट बिजली का उत्पादन होगा। लघु सचिवालय के सभी मुख्य कार्यालयों को इस प्लांट से जोड़ा जाएगा। इस प्रोजेक्ट के परवान चढ़ने के बाद लघु सचिवालय सौर ऊर्जा से जगमगाएगा। इस संयत्र से जहां बिजली की बचत होगी, वहीं यह पर्यावरण के भी अनुकूल होगा।
बिजली किल्लत के कारण सरकारी कामकाज प्रभावित होने से लघु सचिवालय में आने वाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई-कई दिनों तक उनके काम लटकते रहते हैं। लघु सचिवालय के बार-बार चक्कर काटने से उनका समय व पैसे दोनों बर्बाद होते हैं। लेकिन अब इन परेशानियों से बचने के लिए जिला प्रशासन ने एक खास योजना तैयार की है। इस योजना के तहत लघु सचिवालय में एक सौर ऊर्जा बिजली संयत्र लगाया जाएगा। सौर ऊर्जा संयत्र लगने के बाद लघु सचिवालय में बिजली की किल्लत के कारण कोई कार्य प्रभावित नहीं होंगे। कोई भी कर्मचारी बिजली न होने का बहाना बनाकर टरका नहीं सकेगा। सौर ऊर्जा प्लांट से लघु सचिवालय के सभी मुख्य कार्यालयों को जोड़ा जाएगा। इससे सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ आम आदमी को भी काफी राहत मिलेगी। यहां बिजली संयत्र लगने के बाद जहां बिजली किल्लत दूर होगी, वहीं सौर ऊर्जा को भी बढ़ावा मिलेगा। सौर ऊर्जा को बढ़ाने की इस मुहिम को अब लघु सचिवालय से शुरू किया जाएगा। क्योंकि लघु सचिवालय में हर रोज सरकारी कामकाज से हजारों लोग यहां आते हैं, इसलिए यहां लगने वाले इस संयत्र को लोगों के सामने मॉडल के तौर पर प्रस्तुत किया जाएगा। ताकि अधिक से अधिक लोग प्रेरित हों और सौर ऊर्जा को बढ़ावा मिले। लघु सचिवालय में लगने वाले साढ़े चार किलो वॉट के सौर ऊर्जा बिजली संयत्र पर साढ़े दस लाख रुपए की लागत आएगी। साढ़े चार केजी वॉट के इस संयत्र से हर माह एक हजार यूनिट बिजली पैदा की जा सकेगी। संयत्र लगने के बाद बिजली की बचत तो होगी ही साथ-साथ प्रशासन को हर माह लाखों रुपए के राजस्व का भी लाभ होगा। इस संयत्र की सबसे खास बात यह है कि इन उपकरणों की लाइफ बहुत ज्यादा है और यह आसानी से खराब भी नहीं होते हैं। अक्षय ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की मानें तो इन उपकरणों की लाइफ 35 साल से भी ज्यादा होती है। अधिकारियों का कहना है कि कई जगह तो लोग इस तरह के प्लांट लगाकर सरकार को बिजली बेच रहे हैं।
वातावरण पर नहीं होगा दूष्प्रभाव
थर्मल पॉवर प्लांट में एक यूनिट बिजली बनाने पर एक किलो कार्बन वातावरण में फैल जाती हैं, जिससे वातावरण दूषित होता है। कोयले से बिजली बनाने पर जहां हमारे वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, वहीं कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधन भी सिकुड़ रहे हैं। जिससे भविष्य में हमारे सामने गंभीर परिणाम हो सकते हैं। लघु सचिवालय में लगने वाला सौर ऊर्जा बिजली संयत्र वातावरण के अनुकूल होगा। इस संयत्र से किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होगा। यह संयत्र सूर्य की किरणों से बिजली पैदा करेगा। इस तरह काफी हद तक वातावरण दूषित होने से बचेगा।
प्रदर्शन के तौर पर लगाया जाएगा संयत्र
लघु सचिवालय में सरकारी कामकाज के सिलसिले में हर रोज हजारों लोग आते हैं। इसलिए इस संयत्र को लघु सचिवालय में प्रदर्शन के तौर पर लगाया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोगों को जागरूक किया जा सके। इस संयत्र से किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है। क्योंकि यह सूर्य की किरणों से बिजली पैदा करता है। यह पूरी तरह से वातावरण के अनुकूल है और यह लंबे समय तक चलने वाला प्लांट है। इस पर किए गए प्रयोगों से लगातार सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं।
ओडी शर्मा
प्रोजेक्ट आफिसर, अक्षय ऊर्जा विभाग, जींद

बुधवार, 25 जनवरी 2012

प्रशासन सुस्त, शराब माफिया चुस्त


ग्रामीण क्षेत्रों में जमा चुके हैं जड़ें
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में शराब माफिया पूरी तरह बेकाबू हैं। शराब माफिया एक्साइज के नियमों को धत्ता बताकर विभाग को हर माह लाखों रुपए के राजस्व का चूना लगा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध शराब की बिक्री धड़ल्ले से जारी है। बार-बार शिकायतें मिलने के बावजूद भी आबकारी विभाग व पुलिस प्रशासन शराब मफियाओं पर शिकंजा कसने में नाकामयाब हैं। विभाग अब तक 310 लोगों पर ही हाथ डाल पाया है और इनसे जुर्माने के तौर पर लगभग 12 लाख रुपए ही वसूले गए हैं। अगर विभाग सख्ती से कार्रवाई करने पर राजस्व का आंकड़ा इससे ज्यादा बढ़ सकता है। विभाग की सुस्ती से यह साफ होता है कि विभाग शराब माफियाओं के सामने पूरी तरह से नतमस्तक हो चुका है। इस प्रकार प्रशासन की सह में ही अवैध शराब का कारोबार फल-फुल रहा है। 
जिले में शराब माफियाओं ने पूरी तरह से अपना जाल फैला रखा है। अवैध शराब के इस कारोबार से अच्छी कमाई होने के कारण शराब माफियाओं का मोह इस धंसे से कम नहीं हो रहा है। शराब माफियाओं के निशाने पर सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र रहते हैं। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में शराब माफियाओं के विश्वस्त सूत्र होते हैं, जो इनके इस काम को अंजाम देने में इनका पूरा सहयोग करते हैं। यहां पर शराब माफियाओं को पुलिसया कार्रवाई का डर भी कम होता है तथा पुलिस का शिकंजा कसे जाने पर यहां से बच निकलना भी आसान होता है। अगर विश्वस्त सूत्रों की मानें तो शराब माफियाओं के तार आबकारी व पुलिस विभाग से भी जुड़े होते हैं, जो रेड से पहले ही इनको सचेत कर देते हैं। जिस कारण शराब माफिया रेड से पहले ही अपना ठिकाना बदलकर आसानी से बच निकलते हैं। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो आबकारी विभाग अब तक सिर्फ 310 लोगों पर ही अपना शिकंजा कसने में कामयाब हो पाया है। विभाग द्वारा पकड़े गए लोगों से जुर्माने के तौर पर लगभग 12 लाख रुपए वसूले गए हैं। अगर आबकारी विभाग व पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से काम करे तो यह आंकड़ा इससे कई गुणा बढ़ सकता है। विभाग को बार-बार शिकायतें मिलने के बाद भी विभाग द्वारा कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाती। जिस कारण शराब माफियाओं के हौंसले काफी बुलंद हैं। कभी-कभार अगर मामला ज्यादा तूल पकड़ता दिखाई दे या ग्रामीणों का दबाव प्रशासन पर बढ़े तो विभाग कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर देता है।
कानून के लचीलेपन के कारण भी शराब माफिया का मोह नहीं हो रहा कम
आबकारी एक्ट में शराब माफियाओं पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान न होने के कारण भी शराब माफियाओं के हौंसले बुलंद रहते हैं। धंधा है पर गंदा है, लेकिन यह तो चंगा है की कहावत यहां स्टीक बैठती है। इस धंधे में आमदनी ज्यादा व जुर्माना नामात्र होने के कारण शराब माफियाओं का मोह इस धंधे से कम नहीं हो रहा है। आबकारी विभाग द्वारा अवैध शराब के साथ पकड़े जाने पर सजा का कोई प्रावधान नहीं है। विभाग शराब माफियाओं पर केवल जुर्माना लगा सकता है। विभाग जुर्माने के तौर पर पकड़े गए आरोपी पर बोतल के हिसाब से 50 से 500 रुपए का जुर्माना कर सकता है। लेकिन शराब माफिया पकड़े जाने पर विभाग के अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ कर कम से कम जुर्माना अदा कर आसानी से बच निकलते हैं।
निडानी गांव में उठ चुका है कई बार विवाद
खेल गांव निडानी में पिछले कई सालों से अवैध शराब का कारोबार लगातार अपनी जड़ें फैला रहा है। गांव में अवैध शराब के बढ़ते कारोबार के कारण ग्रामीणों का कई बार शराब माफियाओं के साथ विवाद हो चुका है। गांव से अवैध खुर्द बंद करवाने की मांग को लेकर ग्रामीण कई बार जिला प्रशासन से भी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन स्थिति वही जस की तस है। जिससे ग्रामीण आबकारी विभाग व पुलिस प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं। गांव के सरपंच अशोक कमार, सुरेश पूनिया, रामेश्वर, शमशेर, कृष्ण, संजय, मनोज, नरेश ने बताया कि गांव में सरकार की तरफ से शराब का ठेका या सबबैंड अधिकृत नहीं किया गया है। गांव में शराब का ठेका या सबबैंड अधिकृत न होने के बावजूद भी गांव में शराब तस्करों द्वारा खुलेआम शराब बेची जाती है। ग्रामीणों ने बताया कि वे कई बार इसकी शिकायत आबकारी विभाग व पुलिस प्रशासन को कर चुके हैं। ग्रामीण सुरेश पूनिया ने बताया वे खुद भी दो बार 19-7-2011 व 21-12-11 को रजिस्ट्री के माध्यम से पुलिस अधीक्षक व उपायुक्त के नाम शिकायत भेज चुका हूं, लेकिन आज तक एक बार भी शराब तस्करों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ग्रामीणों ने बताया कि कई बार तो शराब ठेकेदार व अवैध रूप से खुर्दा चलाने वालों में अपनी-अपनी शराब की बिक्री को लेकर विवाद भी  हो जाता है। जिससे गांव का माहोल खराब हो रहा है।
शिकायत मिलने पर की जाती है कार्रवाई
विभाग को शिकायत मिलने पर तुरंत कार्रवाई की जाती है। इसके अलावा भी विभाग की टीमें रूटीन में छापेमारी करती है। पकड़े गए आरोपी से कानून के अनुसार कार्रवाई कर जुर्माना वसूला जाता है। पकड़े गए आरोपी के साथ किसी प्रकार की ढिलाई नहीं बरती जाती है। लेकिन कई बार ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के सहयोग के कारण शराब विक्रेता बच कर   निकल जाते हैं। 
कृष्ण कुमार
इंस्पेक्टर उप आबकारी एवं कराधान, जींद

रेडक्रॉस की राशि पर पंचायतों ने मारी कुंडली

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सामाजिक कार्यों के लिए पंचायती फंड से रेडक्रॉस को दी जाने वाली रकम पर ग्राम पंचायतें कुंडली मारे बैठी हैं। पिछले कई वर्षों से ग्राम पंचायतों द्वारा रेडक्रॉस में यह राशि जमा नहीं करवाई जा रही है। संस्था की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण सामाजिक कार्यों पर ब्रेक लगना भी लाजमी है। रेडक्रॉस द्वारा पंचायतों के खाते से रकम जमा करवाने के लिए बीडीपीओ कार्यालय को कई बार-बार पत्र लिखे जा चुके हैं, लेकिन बीडीपीओ कार्यालय द्वारा रकम जमा करानी तो दूर की बात संस्था के इन पत्रों का जवाब भी नहीं दिया जा रहा है। वर्ष 2011 में पूरे जिले से सिर्फ एक पंचायत ने 60 हजार रुपए की राशि संस्था में जमा करवाई है।
रेडक्रॉस की माली हालत को सुधारने तथा सामाजिक कार्यों में गति लाने के लिए सरकार ने 1986 में ग्राम पंचायत कंट्रीब्यूशन योजना तैयार की थी। इस योजना में प्रावधान किया गया था कि पंचायतें अपनी आय का कुछ  प्रतिशत हिस्सा रेडक्रॉस को देंगी। यह राशि पंचायतों को बीडीपीओ कार्यालय में जमा करवानी तय की गई थी। रेडक्रॉस को पंचायती खाते से मिलने वाली इस ग्रांट को सामाजिक कार्यों के लिए प्रयोग करना था। कुछ  सालों तक राशि जमा होने का सिलसिला ठीक चला, लेकिन बाद में अचानक यह राशि रास्ते में गोल होनी शुरू हो गई। कुछ पंचायतों ने तो यह राशि जमा करवानी ही बंद कर दी। इसके अलावा जो पंचायतें संस्था के लिए राशि देती थी उन्होंने भी राशि में कटोती करनी शुरू कर दी। विभागीय सूत्रों की मानें तो जो पंचायतें संस्था को पहले लाख से ज्यादा की वितीय सहायता देती थी, उन पंचायतों ने अपनी रकम में कटोती कर 50 से 60 हजार रुपए की रकम ही संस्था को दी है। संस्था के अधिकारियों द्वारा बीडीपीओ कार्यालयों को रकम जमा करवाने के लिए कई बार पत्र लिखी चुकी है, लेकिन बीडीपीओ कार्यालयों की ओर से रकम जमा करवानी तो दूर की बात संस्था के पत्रों का जवाब भी नहीं दिया जा रहा है।
2011 में एक पंचायत ने ही जमा करवाई रकम
सरकार द्वारा शुरू की गई ग्राम पंचायत कंट्रीब्यूशन योजना में पंचायतों द्वारा रूचि न लेने के कारण संस्था को ज्यादा लाभ नहीं मिल पा रहा है। जींद जिले में 299 पंचायतें हैं। वर्ष 2011 में 299 पंचायतों में से सिर्फ एक ही पंचायत ने 60 हजार रुपए की रकम संस्था में जमा करवाई है। इस प्रकार खंड विकास एवं पंचायत अधिकारियों की लापरवाही के कारण संस्था को पंचायती खाते से मिलने वाली वितीय सहायता बंद हो गई है।
उपायुक्त  के आदेशों की भी नहीं हो रही पालना
संस्था को समय पर वितीय सहायता उपलब्ध करवाने के लिए उपायुक्त डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया ने सभी बीडीपीओ को जल्द से जल्द सारी रकम की रिकवरी कर रेडक्रॉस में जमा करवाने के निर्देश जारी किए थे। लेकिन उपायुक्त के आदेशों के बावजूद भी अभी तक किसी पंचायत की ओर से संस्था में रकम जमा नहीं करवाई गई है। इस प्रकार खंड विकास एवं पंचायत अधिकारियों पर उपायुक्त के आदेशों का भी कोई असर नहीं है।

 बीडीपीओ की ओर से नहीं मिल रहे सकारात्मक परिणाम
सरकार द्वारा शुरू की गई ग्राम पंचायत कंट्रीब्यूशन योजना के तहत पंचायतों की आय से कुछ  प्रतिशत हिस्सा रेडक्रॉश में जमा करवाने का प्रावधान था। लेकिन पिछले कई वर्षों से पंचायतों द्वारा समय पर यह राशि संस्था में जमा नहीं करवाई जा रही है। इसके लिए उनके द्वारा संबंधित बीडीपीओ को पत्र लिखकर राशि जमा करवाने के लिए अवगत भी करवाया जाता है, लेकिन संस्था को बीडीपीओ की ओर से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहे हैं।
रणदीप श्योकंद
सचिव रेडक्रॉस सोसायटी, जींद


हमेटी को जल्द मिलेगी सोलर सिस्टम की सौगात

 सोलर सिस्टम पर खर्च किए जाएंगे 15 लाख
नरेंद्र कुंडू
जींद।
रोहतक रोड स्थित हमेटी को जल्द ही सोलर सिस्टम की सौगात मिलेगी। हमेटी में प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसानों को खान-पान व रहन-सहन संबंधी सुविधाएं अब सोलर आधारित मिलेंगी। यह सोलर सिस्टम काफी हाईटेक होगा। सर्दी के मौसम में किसानों को गर्म पानी उपलब्ध करवाने के लिए सोलर वाटर हीटिंग सिस्टम व 65 सोलर लाइटें भी लगाई जाएंगी। सोलर लाइटें लगने से हमेटी रात के अंधेरे में भी जगमगाएगी। हमेटी में सोलर सिस्टम लगने के बाद बिजली व पानी की बचत के साथ-साथ विभाग को लाखों रुपए के राजस्व का लाभ भी होगा। विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर 15 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए यहां पर प्रशिक्षण के लिए आने वाले लोगों को भी सोलर सिस्टम के बारे में विस्तार से जानकारी देकर प्रेरित किया जाएगा।
हमेटी में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले किसानों को सोलर सिस्टम पर आधारित सभी सुविधाएं मिलेंगी। कड़ाके की ठंड में भी किसानों को 24 घंटे गर्म पानी उपलब्ध होगा। विभाग द्वारा हमेटी में 2 हजार लीटर की क्षमता वाला वाटर हीटिंग सिस्टम लगाया जाएगा। इसमें एक हजार लीटर क्षमता का वाटर हीटिंग सिस्टम तो लगाया जा चुका है। कभी-कभार अगर धूंध के कारण सूर्य उदय नहीं होगा तो भी ज्यादा चिंता की बात नहीं है, क्योंकि वाटर हीटिंग सिस्टम से गर्म किया गया पानी टंकी में कम से कम दो दिनों तक गर्म रह सकता है। इससे  इसके अलावा केंद्र के प्रांगण में जल्द ही सोलर लाइटें भी लगाई जाएंगी। वाटर हीटिंग सिस्टम से मेस में खाना बनाने में भी इसी पानी का प्रयोग किया जाएगा। जिससे खाना भी जल्द ही तैयार हो जाएगा। इसके अलावा वाटर हीटिंग सिस्टम के साथ रीप सिस्टम लगने से पानी भी बर्बाद होने से बच जाएगा। यहां पर कृषि प्रशिक्षण के साथ-साथ किसानों को सोलर सिस्टम से होने वाली बचत के बारे में जानकारी देकर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा। ताकि अधिक से अधिक लोग सोलर सिस्टम का लाभ ले सकें। प्रशिक्षण केंद्र में सोलर सिस्टम लगने से बिजली व पानी की बचत के साथ-साथ विभाग को हर साल लाखों रुपए के राजस्व का •ाी ला•ा होगा।
वाटर हीटिंग सिस्टम के बारे में जानकारी देते डायरेक्टर बीएस नैन।
क्या है वाटर हीटिंग सिस्टम
वाटर हीटिंग सिस्टम छत पर रखी पानी की टंकी पर लगाया जाता है। यह सिस्टम सूर्य की किरणों से ऊर्जा लेकर टंकी के पानी को गर्म कर देता है। इसके अलावा इस सिस्टम के साथ रीप सिस्टम भी लगाया जाता है। रीप सिस्टम सोलर एनर्जी पर बेस्ड सिस्टम है और यह आम सोलर पैनल की तरह नहीं है। आम सोलर पैनल जहां सोलर एनर्जी से बिजली बनाता है और इसे बैटरी में स्टोर करता है, वहीं रीप सिस्टम सूरज की रोशनी से एनर्जी लेकर उसका इस्तेमाल सीधे जमीन के अंदर से पानी को खींचने में करता है। अगर पानी किसी पाइपलाइन के जरिये आ रहा है तो रीप सिस्टम से बिना बिजली खर्च किए उसे ओवरहेड टैंक तक पहुंचाया जा सकता है। जैसे ही टैंक भरेगा, रीप सिस्टम काम करना बंद कर देगा। फिर टैंक से पानी का लेवल कम होने के बाद वह दोबारा काम करना शुरू करेगा और टैंक को फिर भर देगा। इस तरह यह सिस्टम अंडरग्राउंड वॉटर और पाइपलाइन से आ रहे पानी की बर्बादी को भी रोकेगा। इसके इस्तेमाल से पानी व बिजली दोनों की बचत होगी।
सोलर सिस्टम से रोशन होगा हमेटी।
किसान प्रशिक्षण केंद्र में अब लाइट की समस्या नहीं रहेगी। शहर में ओर कहीं लाइट रहे या न रहे, लेकिन हमेटी में लाइट जरूर रहेगी। सोलर सिस्टम लगने से हमेटी में चौबिसों घंटे लाइट रहेगी। हमेटी में बिजली से होने वाले सभी कार्य सोलर सिस्टम पर आधारित होंगे। हमेटी प्रांगण में एनर्जी सेविंग वाली 65 एलईडी सोलर लाइटें लगाई जाएंगी। यह पूरी तरह से आटोमेटीक होंगी। शाम होते ही अपने आप लाइटें जल जाएंगी और सुबह होते ही अपने आप बंद जाएंगी। इस प्रकार हमेटी में सोलर सिस्टम शुरू होने के बाद कोई भी काम प्रभावित नहीं होगा।
ऊर्जा की बचत करना है उद्देश्य
विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर 15 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रशिक्षण केंद्र में सोलर सिस्टम शुरू होने से लाइट व पानी की बचत होगी। जिससे विभाग को हर माह लाखों रुपए की बचत होगी। प्रशिक्षण केंद्र में इस सिस्टम को लगवाने के पीछे उनका उद्देश्य एनर्जी सेविंग करना है। इस योजना को जल्द से जल्द अमल में लाने के लिए सभी कागजी कार्रवाई पूरी कर रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजी जा चुकी है।
बीएस नैन
डायरेक्टर, हमेटी, जींद


गुरुजियों के ये कैसे आदर्श

नरेंद्र कुंडू
जींद।
उत्तर भारत ने कोहरे और बर्फ की चादर ओढ़ ली है। पहाड़ी इलाकों से आने वाली गलन भरी हवाओं ने लोगों को घरों के अंदर कैद कर दिया है। लोग पिछले कई दिनों से ठंड के तीखे तेवर झेल रहे हैं। ठंड के साथ-साथ कोहरा भी कोहराम मचा रहा है। लेकिन उधर स्कूलों में बचपन ठंड में ठिठुर रहा है और शिक्षा विभाग मौन धारण किए हुए है। स्कूलों में अध्यापक खुद पर तो जमकर रहम कर रहे हैं, जबकि विद्यार्थियों पर सितम ढाह रहे हैं। कड़ाके की ठंड में विद्यार्थियों पर शॉल, स्कार्फ व मफलर पहनने पर बैन लगाया जा रहा है, जबकि अध्यापक खुद शॉल, चदरों, मफलरों में लिपटकर स्कूल में पहुंचते हैं। स्कूलों में चदर व मफलर ओढ़कर न आने के नियम सिर्फ बच्चों के लिए बनाए गए हैं। अध्यापकों के लिए इस तरह का कोई नियम नहीं बनया गया है।
 छात्राओं के पीछे शॉल ओढ़कर स्कूल आती अध्यापिका।

ठंड में ठिठुरती स्कूली छात्राएं।
हर रोज ठंड शबाब पर पहुंच रही है। दिनों दिन कोहरे व ठंड का कहर बढ़ रहा है। जनजीवन पूरी तरह से अस्तव्यस्त है। लोग बेहाल हैं और घर से निकलते ही लोगों की कंपकपी बंध रही है। इस सर्दी से बचने के लिए लोग गर्म कपड़ों व अलाव का सहारा भी ले रहे हैं। तापमान लुढ़क कर 3 डिग्री तक पहुंच गया है। अब दिन में भी ठंड का असर दिखाई दे रहा है। लेकिन इस हाड़ कंपकंपाने वाली सर्दी में बच्चे ठिठुरते स्कूलों में पहुंच रह हैं। कहते हैं कि विद्यार्थी जीवन में अध्यापक का दर्जा गुरु से भी बड़ा होता जाता है। क्योंकि अध्यापक विद्यार्थी को भगवान से मिलने का रास्ता दिखाता है। अध्यापक विद्यार्थियों के सामने अपने आप को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लेकिन यहां पर तो अध्यापक अपने लिए अलग नियम बनाकर विद्यार्थियों को अलग ही शिक्षा दे रहे हैं। स्कूल प्रबंधन द्वारा स्कूलों में बच्चों को शॉल, चदर, मफलर व स्कार्फ पहने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। जिससे बच्चे जुकाम, खांसी व अन्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं और उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है। सरकारी स्कूलों में शॉल व चदर ओढ़ने पर बैन सिर्फ बच्चों पर ही लगाया गया है। इस तरह का बैन अध्यापकों पर नहीं लगाया गया है। अध्यापक खुद शॉल व चदरों में लिपट कर स्कूल में पहुंच रहे हैं। छात्रा नेहा, रेखा, संतोष, सोनिया, अनिता, ममता, रेनू, सुमन, ने बताया कि स्कूल में शॉल, मफलर या स्कार्फ पहनने पर प्रतिबंध लगया गया है। अगर वे शॉल या स्कार्फ पहनकर स्कूल में आती हैं तो अध्यापक उनकी पिटाई करते हैं। जिस कारण उन्हें मजबूरन बिना शॉल या स्काप में आना पड़ता है और पूरा दिन ठंड में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है। छात्राओं ने बताया कि अध्यापक उन्हें तो बिना चदर या स्कार्फ के स्कूल में आने को मजबूर करते हैं, लेकिन अध्यापक स्वयं स्कूल में चदर व मफलर ओढ़कर आते हैं।
क्या है पेरेंट्स की राय
ठंड में सुबह-सुबह छोटे बच्चों को स्कूल जाने से बीमार होने की आशंका बनी रहती है। ठंड को देखते हुए शिक्षा विभाग द्वारा छोटे बच्चों की छुट्टियां कर देनी चाहिए। इसके अलावा बड़े बच्चों पर स्कूल में शॉल, चदर या मफलर इत्यादि पहन कर आने पर पाबंदी नहीं लगानी चाहिए। अगर स्कूल में बच्चों पर चदर, शॉल या मफलर पहनने पर पाबंदी लगा दी जाएगी तो ठंड के कारण बच्चे बीमारी की चपेट में आ जाएंगे, जिससे बच्चों को शारीरिक परेशानी तो होगी ही, साथ-साथ उनकी पढ़ाई भी बाधित होगी। ठंड के मौसम के देखते हुए स्कूल में शॉल, चदर या मफलर पर पाबंदी लगाना सरासर गलत है।


मंगलवार, 24 जनवरी 2012

फाइलों में दफन 5 हजार बच्चों का भविष्य

दो वर्ष बाद भी अमल में नहीं आ सकी योजना
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार एक तरफ तो शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के दावे कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकार के ये आसमानी दावे हकीकत में जमीन सुंघते नजर आते हैं। सरकार द्वारा राष्टÑीय बाल विकास नीति 2010 के तहत जिला बाल कल्याण परिषद के माध्यम से अनाथ व गरीब बच्चों को शिक्षा भत्ता देने के लिए आवेदन मांगे थे। इस योजना के तहत गरीब व बेसहारा बच्चों को हर माह 500 से 1500 रुपए शिक्षा भत्ता दिया जाना था। इसमें जिलेभर से 5 हजार बच्चों ने आवेदन किये थे, लेकिन अब हरियाण राज्य बाल कल्याण निदेशालय द्वारा इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। विभाग की अनदेखी के कारण 5 हजार बच्चों का भविष्य फाइलों में दफन हो गया है।
सरकार अनाथ व गरीब बच्चों के उत्थान के लिए हर रोज नई-नई योजनाएं तैयार कर रही है। सरकार द्वारा इन योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी ये योजनाएं फाइलों से बाहर नहीं निकल पाती हैं। सरकार शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर सबको शिक्षा का हक दिलवाने के दावे कर रही है। लेकिन उधर स्वयं सरकार द्वारा तैयार की गई रास्ट्रीय बाल विकास नीति 2010 फाइलों में ही दफन होकर रह गई है। हरियाणा राज्य बाल कल्याण परिषद निदेशालय ने जिला बाल कल्याण परिषद को पत्र क्रमांक 37048-102 के माध्यम से एक दिसंबर 2010 को अनाथ व बेसहारा बच्चों के आवेदन जमा करवाने के निर्देश जारी किए थे। जिसके तहत जिला बाल कल्याण परिषद ने विज्ञापन जारी कर गरीब, बेसहारा, अनाथ व असहाय बच्चों से आवेदन मांगे थे। जिसके बाद जिला बाल कल्याण परिषद को जिले से 5 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे। जिला बाल कल्याण परिषद ने प्राथमिकता के आधार पर पात्र व्यक्तियों से आवेदन प्राप्त कर और सभी औपचारिकताएं पूरी कर आवेदन निदेशालय को भेज दिए। निदेशालय को आवेदन प्राप्त होने के दो वर्ष बाद भी यह योजना अमल में नहीं आ पाई है। आवेदक आज भी विभाग से आर्थिक सहायता की आश लगाए बैठे हैं। योजना के ठंडे बस्ते में चले जाने से 5 हजार बच्चों के सपने फाइलों में ही दम तोड़ गए हैं।
क्या थी योजना
सरकार ने गरीब, बेसहारा, अनाथ व असहाय बच्चों को शिक्षा भत्ता देने के लिए रास्ट्रीय बाल विकास नीति 2010 नाम से एक योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत पात्र व्यक्तियों को 18 वर्ष तक 500 से लेकर 1500 रुपए तक भत्ता दिया जाना था। योजना का लाभ लेने के लिए पात्र व्यक्ति को एक सादे कागज पर अपना आवेदन तैयार कर संबंधित सरपंच या एमसी से सत्यापित करवाकर जिला बाल कल्याण परिषद को देने थे। इस योजना के तहत हरियाणा राज्य बाल कल्याण निदेशालय, चंडीगढ़ द्वारा पात्र आवेदकों के खाते खुलवाकर हर माह भत्ता उनके खाते में जमा करवाने का प्रावधान था। इस योजना के माध्यम से जिला बाल कल्याण परिषद को 5 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे।  


हरियाणा राज्य बाल कल्याण निदेशालय द्वारा दिसंबर 2010 में जिला बाल भवन के माध्यम से अनाथ व गरीब बच्चों को शिक्षा भत्ता देने के लिए रास्ट्रीय बाल विकास नीति के तहत पात्र व्यक्तियों के आवेदन मांगे गए थे। इस योजना के तहत पात्र व्यक्तियों को 18 वर्ष तक 500 से 1500 रुपए शिक्षा भत्ता दिया जाना था। योजना के तहत जिला बाल भवन को 5 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे। उन्होंने आवेदन प्राप्त कर सभी औपचारिकताएं पूरी करवा निदेशालय को आवेदन भेज दिये थे। लेकिन सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के बाद विभाग ने इस योजना को बंद कर दिया। जिस कारण आवेदकों को योजना का लाभ नहीं मिल सका।
सुरजीत कौर आजाद
जिला बाल कल्याण अधिकारी, जींद

बजट के बिना कैसे खिलेगा बचपन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
बाल भवन को सरकारी स्कूलों से मिलने वाला चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने के बाद अब जिला बाल कल्याण परिषद का खजाना खाली होने लगा है। खजाने में आय का स्त्रोत कम होने से बाल भवन में चलने वाली गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। बाल कल्याण विभाग को सरकारी स्कूलों से चाइल्ड वेलफेयर फंड मिलता था। इसी फंड से बाल भवन में होने वाली गतिविधियों का खर्चा उठाया जाता था। जिले में पहले प्रतिवर्ष सरकारी स्कूलों से लगभग 9 लाख रुपए चाइल्ड वेलफेयर फंड हो जाता था, लेकिन अब सिमटकर लगभग दो से तीन लाख रुपए रह गया है। बाल कल्याण परिषद की पोटली में आय कम होने से बहुत से गतिविधियां बंद हो चुकी है और कुछ बंद होने की कगार पर हैं। बाल भवन के खजाने में पैसे की कमी के चलते कर्मचारियों को समय पर वेतन भी  नहीं मिल पा रहा है। इस फंड का कुछ हिस्सा बाल भवन तथा कुछ हिस्सा मुख्यालय भेजा जाता था। सरकारी स्कूलों से चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने पर बाल भवन की गतिविधियों को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए इन खर्चों का बोझ निजी स्कूल के विद्यार्थी पर डालने की योजना बनाई थी। इसके लिए जिला शिक्षा विभाग की तरफ से सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को पत्र जारी करते हुए उनके ब्लाक में स्थित स्थायी व अस्थायी मान्यता प्राप्त स्कूलों से 50 रुपए प्रति छात्र वार्षिक लेकर उसे स्कूलों द्वारा बाल कल्याण अधिकारी कार्यालय में जमा कराने के निर्देश जारी किए गए थे। लेकिन निजी स्कूलों के संचालकों द्वारा इस योजना से हाथ पिछे खिंचने के कारण यह योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई।
शिक्षा का अधिकार कानून बना रास्ते का रोड़ा
सरकार ने अप्रैल 2010 से शिक्षा का अधिकार लागू होने के बाद पहली से आठवीं तक निशुल्क शिक्षा लागू कर दी। जिसके बाद से बच्चों से फीस व फंड लिए जाने बंद कर दिए गए। पहले ये फंड दस से बीस रुपए तक लिए जाते थे। जिले के सभी स्कूलों से लगभग 9 लाख रुपए का चाइड वेलेफेयर फंड एकत्रित होता था। जिसे बाद में छोटे बच्चों के विकास के लिए चलाई जाने वाली गतिविधियों पर खर्च किया जाता था। लेकिन अब यह फंड केवल कक्षा नौंवी से 12 तक के छात्रों के कंधों पर ही सिमटकर रह गया है। पहली से आठवीं तक सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण इनसे ज्यादा फंड मिलता था। लेकिन नौवीं से 12वीं तक छात्रों की संख्या घट जाती है। नौवीं से 12वीं के छात्रों से प्रत्येक माह दो रुपए प्रति बच्चा लिया जाता है। जिस कारण यह फंड अब दो से तीन लाख रुपए तक सिमटकर रह गया है।
सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित
चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने से बाल कल्याण परिषद के साथ-साथ सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित हुई हैं। बाल कल्याण परिषद में जहां इस फंड के माध्यम से घुमंतू जाति के बच्चों को पढ़ाई का खर्च उठाने व बच्चों के मानसिक विकास के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर खर्च किया जाता था। बच्चों से मिलने वाले इसी फंड से सरकारी स्कूलों में बच्चों के खेलकूद प्रतियोगिताएं, स्कूल की अन्य गतिविधियों पर खर्च होता था। लेकिन फंड बंद होने के कारण सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित हुई हैं।
गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने का किये जा रहे हैं प्रयास
पहले बाल भवन की गतिविधियां सरकारी स्कूलों से मिलने वाले चाइल्ड वेलफेयर फंड से चलाई जाती थी, जिसमें कुछ हिस्सा स्टेट हैड व कुछ उनके पास रहता था। सरकार ने पहली से आठवीं तक निशुल्क शिक्षा करने के बाद फंड समाप्त कर दिए हैं, जिससे खर्चों में दिक्कत आ रही है। बाल भवन की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिला प्रशासन ने स्थायी व अस्थायी निजी स्कूलों के विद्यार्थियों से भी यह फंड लेने की योजना बनाई थी। लेकिन निजी स्कूल संचालक फंड देने के लिए तैयार नहीं हुए। बाल कल्याण परिषद के पास अब आय के ज्यादा स्त्रोत नहीं हैं, जिस कारण कुछ गतिविधियां प्रभावित हुई हैं, लेकिन फिर भी बाल कल्याण परिषद बच्चों की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने का प्रयास कर रहा है।
सुरजीत कौर आजाद
जिला बाल कल्याण अधिकारी, जींद


आगाज से पहले ही दम तोड़ गई योजना

सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण फाइलों में दफन है योजना
नरेंद्र कुंडू
जींद। रास्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर उपभोक्ताओं को अधिकारों के प्रति जागरूक करने वाले सरकारी अधिकारी स्वयं ही उपभोक्ताओं के हितों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए जिला स्तर पर बनाई जाने वाली उपभोक्ताओं सरंक्षण परिषद आज भी फाइलों से बाहर नहीं आ सकी है। सरकारी अधिकारी एनजीओज न मिलने का बहाना बनाकर हाथ खड़े कर रहे हैं। सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण योजना आगाज से पहले ही दम तोड़ गई है। परिषद का गठन न होने के कारण दुकानदार उपभोक्ताओं के अधिकारों पर खुलेआम डाका डाल रहे हैं।  
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने व मिलावट खोरों पर शिकंजा कसने के लिए प्रदेश सरकार ने जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद का गठन करने की योजना तैयार की थी। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा उपभोक्ताओं को सही मात्रा व शुद्ध सामान उपलब्ध करवाना ही परिषद का मुख्य उद्देश्य था। उपभोक्ताओं के हितों के साथ-साथ गैस एजेंसियों पर सिलेंडरों व बुकिंग को लेकर होने वाले झगड़ों को रोकने की जिम्मेदारी भी परिषद को सौंपी जानी थी।इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा नवंबर माह में सभी जिला उपायुक्तों को पत्र क्रमांक सीए-1-2011/26067 के माध्यम से जिला स्तर पर उपभोक्त संरक्षण परिषदों का गठन करने के निर्देश दिए गए थे। परिषद का गठन दो वर्ष के लिए किया जाना था, जिसमें कुल 30 सदस्य नियुक्त करने थे, इनमें 14 सरकारी तथा 16 गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जाना था। परिषद का अध्यक्ष उपायुक्त तथा उपाध्यक्ष अतिरिक्त उपायुक्त को नियुक्त किया जाना था। इसके अलावा जिला परिषद, नगर परिषद के अध्यक्ष सहित सरकारी विभगों से 14 कर्मचारियों, 10 सदस्य पंजीकृत सामाजिक संगठनों से नियुक्त करने तथा 2 महिला प्रतिनिधि, 2 युवा व 2 सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना था। परिषद का मुख्य उद्देश्य बाजार में मिलने वाले सामान के मूल्य, गुणवत्ता व मात्रा की जांच कर उपभोक्ताओं को सही सामान उपलब्ध करवाने के साथ-साथ उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करना तथा शिकायतों की जांच करना और उन पर कार्रवाई करना भी था। लेकिन योजना को सिरे चढ़ाने के लिए सरकारी अधिकारियों ने किसी प्रकार की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अधिकारियों की लापरवाही व एनजीओज न मिलने के कारण योजना आज तक फाइलों से बाहर नहीं आ सकी है।
क्या थी योजना
उपभोक्ताओं के हितो की रक्षा तथा उप•ाोक्ता को सही मात्रा तथा शुद्ध सामान उपलब्ध करवाने के लिए सरकार ने जिला स्तर पर उपभोक्ता सरंक्षण परिषद गठन करने का निर्णय लिया था। परिषद में कुल 30 सदस्य नियुक्त करने थे, जिनमें 14 सरकारी तथा 16 गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जाना था। परिषद का गठन दो वर्ष की अवधि के लिए किया जाना था। परिषद के गठन का उद्देश्य उपभोक्ताओं की समस्याओं का निवारण तथा शिकायतों की जांच करना और उन पर कार्रवाई करना था। इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा सभी जिला उपायुक्तों को पत्र के माध्यम से परिषद का गठन करने के निर्देश दिए गए थे। समय-समय पर परिषद के प्रतिनिधियों को दिशा-निर्देश देने के लिए वर्ष में दो बार परिषद की बैठक होनी निश्चित थी।
क्या कहती हैं डीएफएससी
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए जिला स्तर पर पहली बार उपभोक्ता संरक्षण परिषद का गठन किया जाना था। परिषद के लिए 30 सदस्य नियुक्त किए जाने था, जिनमें कुछ एनजीओज को भी शामिल करना था। लेकिन एनजीओज की कमी के कारण अभी तक परिषद का गठन नहीं हो पाया है। एनजीओज द्वारा परिषद के सदस्य बनने के लिए तैयार होने के बाद ही परिषद का गठन हो सकेगा।
अनिता खर्ब
जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक, जींद

रविवार, 22 जनवरी 2012

अब नहीं होगा गरीबों का इलाज

नरेंद्र कुंडू
जींद। गरीबों के लिए शुरू की गई रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना दम तोड़ती नजर आ रही है। बीमा कंपनी व निजी अस्पतालों की खींचतान में गरीब लोग पिस रहे हैं। निजी अस्पतालों में कार्ड पर इलाज न होने के कारण सरकार द्वारा बनाए गए स्मार्ट कार्ड जरूरतमंदों के लिए बेकार साबित हो रहे हैं। निजी अस्पताल पिछले 8 माह से बीमा कंपनी द्वारा इलाज की राशि का भुगतान न करने की बात कहकर हाथ खड़े कर रहे हैं। इस प्रकार बीमा कंपनी समय पर निजी अस्पतालों को इलाज की राशि का भुगतान न करके सरकार को भी चूना लगा रही है। कार्ड धारकों के लिए निजी अस्पतालों के दरवाजे बंद होने के कारण इन्हें इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ रहा हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिला ईकाइ के सदस्य दो बार उपायुक्त से इलाज की राशि की रिकवरी की गुहार लगा चुके हैं।
सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के उद्देश्य से रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की गई थी। सरकार द्वारा प्रदेश में सरकारी अस्पतालों के अलावा निजी अस्पतालों को भी स्मार्ट कार्ड धारकों के इलाज के लिए नेटवर्क में लिया। विभागिय सूत्रों की मानें तो जिले में 75 हजार के करीब स्मार्ट कार्ड धारक हैं। इन स्मार्ट कार्ड धारकों के इलाज के लिए जिले में सरकारी अस्पतालों के अलावा 14 निजी अस्पताल भी निर्धारित किए गये। शुरूआत में तो योजना कार्ड धारकों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुई, लेकिन बाद में बीमा कंपनी व निजी अस्पतालों की खिंचतान के कारण योजना कार्ड धारकों के लिए गले की फांस बन गई। निजी अस्पतल संचालकों की मानें तो उन्हें बीमा कंपनी से पिछले 8 माह से बीपीएल परिवारों को इलाज करवाने के लिए सरकार की तरफ से मिलने वाली पेमेंट ही नहीं मिल पा रही है। ऐसे में निजी अस्पतालों ने योजना से हाथ पीछे खिंचते हुए इन बीपीएल परिवारों का इलाज करना ही बंद कर दिया।
निजी अस्पताल में स्मार्ट कार्ड धारकों का इलाज न करने बारे लगाया गया नोटिस।
सरकार को भी लग रहा है चूना
सरकार द्वारा शुरू की गई रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत निजी अस्पतालों को इलाज पर खर्च की जाने वाली राशि के भुगतान के लिए बीमा कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। सरकार द्वारा बनाए गए स्मार्ट कार्ड पर एक साल तक कार्ड धारक का इलाज किया जाता है। सरकार पात्र बीपीएल परिवारों की पहचान कर बीमा कंपनी को एक साल की पेमेंट कर देती है। अब निजी अस्पतालों द्वारा कार्ड धारकों का इलाज बंद कर देने से बीपीएल परिवारों के लिए कार्ड बेकार साबित हो रहे हैं। क्योंकि कुछ ही महीनों के बाद इनकी निर्धारित अवधि समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार सरकार द्वारा बीमा कंपनी को दी गई राशि बीमा कंपनी ही हजम कर सरकार को चूना लगा रही है।
क्या है स्मार्ट कार्ड योजना
रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत बीपीएल परिवार के स्मार्ट कार्ड धारकों और उसमें दर्ज परिवार के किसी भी सदस्य के अस्पताल में भर्ती होने पर तीस हजार रुपए तक के इलाज की सुविधा निशुल्क मिलती है। इस योजना के तहत मरीज के भर्ती होने से डिस्चार्ज होने तक तीस हजार तक का खर्च नेटवर्क से जुड़े निजी अस्पताल या सरकारी अस्पताल वहन करते हैं। मरीज के डिस्चार्ज होने के बाद अस्पताल इसके भुगतान के लिए सरकार को मरीज के खर्च का रिकार्ड भेजती है, जिससे अस्पताल को सरकार बीमा कंपनी के माध्यम से भुगतान राशि मिलती है, लेकिन काफी दिनों से भुगतान बंद होने के कारण नेटवर्क से जुड़े निजी अस्पतालों का रुपया फंस गया है। इसके कारण निजी अस्पतालों द्वारा स्मार्ट कार्ड धारकों का इलाज करने की बजाय हाथ पीछे खींचने शुरू कर दिए हैं।
क्या कहते हैं मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिला प्रधान डा. सुरेश जैन, सचिव डा. अजय गोयल व मीडिया प्रभारी डा.सुशील मंगला का कहना है कि स्मार्ट कार्ड धारकों का नर्सिग होम में इलाज किया जाता था। उनके पास हर रोज 6 से 7 मरीज इलाज के लिए आते थे। लेकिन जून 2011 से बीमा कंपनी कि ओर से उन्हें कार्ड धारकों पर खर्च होने वाली राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है। बीमा कंपनी से समय पर राशि का भुगतान करवाने के लिए वे दो बार उपायुक्त को भी ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन स्थिति ज्यों कि त्यों है। इसलिए उन्होंने अब मजबूरीवश स्मार्ट कार्ड धारकों का इलाज करना बंद कर दिया है। इस बारे में नोडल अधिकारी से डा. अतुल गिल से संपर्क किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका।


रविवार, 15 जनवरी 2012

अब जिला पुस्तकालयों का डाटा होगा कम्प्यूटरीकृत


उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा पुस्तकालयों पर खर्च किए जाएंगे 75 लाख
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला पुस्तकालयों में कर्मचारियों पर बढ़ते काम के बोझ को कम करने तथा पाठकों को पुस्तकालयों में विशेष सुविधा मुहैया करवाने के उद्देश्य से महानिदेशक उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा द्वारा पुस्तकालयों के रिकार्ड को कम्प्यूटरीकृत करने का निर्णय लिया गया है। पुस्तकालयों को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए कोलकाता स्थित राजा राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान द्वारा प्रदेश के सभी जिला पुस्तकालयों पर 75 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रतिष्ठान द्वारा महानिदेशक उच्चत शिक्षा विभाग हरियाणा को पत्र लिख कर जल्द से जल्द सभी जिला पुस्तकालयों से कम्प्यूटरों की कुटेशन मांगी गई है। इस योजना के तहत जिला पुस्तकालयों में पुस्तकों को एक साफ्टवेयर में सूचीबद्ध कर डाटा बेस तैयार किया जाएगा। पुस्तकों का सूचीबुद्ध डाटा तैयार होने के बाद किताबों के रख-रखाव व पाठकों के लिए किताबें तलाशना काफी सुविधाजनक हो जाएगा। उच्चत शिक्षा विभाग तथा प्रतिष्ठान द्वारा उठाए गए इस कदम से पुस्तकालय के कर्मचारियों को भी काफी राहत मिलेगी।
प्रदेश के जिला पुस्तकालयों पर पिछले काफी समय से कर्मचारियों का भारी टोटा है। कर्मचारियों की कमी के कारण पुस्तकालयों का काम-काज भी प्रभावित हो रहा है। लेकिन अब कर्मचारियों पर काम के दबाव को कम करने के लिए राज राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान व उच्चतर शिक्षा विभाग ने जिला पुस्तकालयों को कम्प्यूटरीकृत करने का निर्णय लिया है। विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना से पुस्तकालयों का सारा रिकार्ड कम्प्यूटरीकृत किया जाएगा। पुस्तकालयों को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए कोलकाता स्थित राजा राम मोहन राय ट्रस्ट द्वारा प्रदेश के उच्चतर शिक्षा विभाग को 75 लाख रुपए की राशि दी जाएगी। योजना को जल्द से जल्द अमल में लाने के लिए ट्रस्ट द्वारा उच्चतर शिक्षा विभाग से प्रत्येक जिले से कम्प्यूटरों पर आने वाले खर्च की कुटेशन मांगी गई है। विभाग ने भी योजना में दिलचस्पी दिखाते हुए सभी जिला पुस्तकालयों से मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर इंस्टीच्यूट से कुटेशन तैयार करवाकर विभाग को भेजने के निर्देश दिए हैं। सभी जिला पुस्तकालयों पर कम्प्यूटर उपलब्ध करवाने के बाद एक साफ्टवेयर के माध्यम से पुस्तकों को सूचीबद्ध कर डाटा बेस तैयार किया जाएगा। पुस्तकों का सूचीबद्ध डाटा तैयार होने के बाद पुस्तकालय के कर्मचारियों को काफी राहत मिलेगी। पुस्तकों का डाटा कम्प्यूटरीकृत होने के बाद कर्मचारियों को पुस्तकों के  रख-रखाव में मदद मिलेगी तथा पाठकों के लिए पुस्तक तलाशना भी काफी सुविधाजनक हो जाएगा।
पुस्तकालय के कामकाज में लगे कर्मचारी
कम्प्यूटर के साथ-साथ पुस्तकालय को मिलेंगी अन्य सुविधाएं
जिला पुस्तकालय के सीनियर लाइब्रेरियन बलबीर चहल ने बताया कि महानिदेशक उच्चत शिक्षा विभाग द्वारा भेजे गए पत्र क्रमांक नंबर 9/8-2007 पु. (4) पुस्तकालय को राजा राम मोहन राय प्रतिष्ठान द्वारा 3 लाख रुपए की ग्रांट देने का जिक्र किया गया है। पत्र के माध्यम से उनसे जल्द से जल्द मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर सेंटर से कम्प्यूटरों पर आने वाली लागत की कुटेशन मांगी गई थी। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर सेंटर से कुटेशन तैयार करवा कर विभाग को भेज दी है। ट्रस्ट द्वारा पुस्तकालय को दी जाने वाली तीन लाख की ग्रांट से पुस्तकालयों में पाठकों की सुविधा के लिए कम्प्यूटर के अलावा कूलर, वाटर कूलर व पीने के पानी को शुद्ध करने के लिए आरओ भी लगवाया जाएगा।

पुस्तकालय का नाम                      राशि
 केंद्रीय पुस्तकालय अंबाला कैंट         6 लाख
जिला पुस्तकालय सिरसा                 लाख
जिला पुस्तकालय कुरुक्षेत्र                5 लाख
जिला पुस्तकालय पंचकूला              5 लाख
जिला पुस्तकालय हिसार                 4 लाख
जिला पुस्तकालय गुड़गांव                4 लाख
जिला पुस्तकालय नारनौल               4 लाख
जिला पुस्तकालय रोहतक                4 लाख
जिला पुस्तकालय सोनीपत              3 लाख
जिला पुस्तकालय करनाल               3 लाख
जिला पुस्तकालय भिवानी               3 लाख
जिला पुस्तकालय कैथल                 3 लाख
जिला पुस्तकालय यमुनानगर          3 लाख
जिला पुस्तकालय पानीपत              3 लाख
जिला पुस्तकालय जींद                   3 लाख
जिला पुस्तकालय रेवाड़ी                 3 लाख
जिला पुस्तकालय फतेहाबाद           3 लाख
जिला पुस्तकालय झज्जर               2 लाख
जिला पुस्तकालय नूह                     2 लाख
जिला पुस्तकालय फरीदाबाद           2 लाख
उपमंडल पुस्तकालय आदमपुर         1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय हांसी                1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय मंडी डबवाली     1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय गोहाना             1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय चरखी दादरी     1 लाख
कुल                                             75 लाख