शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

गैस एजेंसियां खुलेआम बांट रही हैं मौत का सामान


स्कीम नंबर 5 में ट्रॉली में ऊपर से सिलेंडर गिराता कंपनी का कर्मचारी।

स्कीम नंबर 5 में ट्रॉली से सिलेंडर लेकर जाते उपभोक्ता। 
 आवासीय कॉलोनी में सिलेंडर वितरित करते गैस एजेंसी के कर्मचारी।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में गैस एजेंसियां सरेआम मौत का सामान बांट रही हैं। नियमों को ताक पर रखकर एजेंसियों द्वारा घनी आबादी वाले क्षेत्रों में सप्लाई वितरित की जा रही है। भरे हुए सिलेंडरों को बेतरतीब रखा जाता है और ट्राली से सिलेंडर उतारते समय सिलेंडर को काफी ऊंचाई से पटक दिया जाता है। इस तरह सिलेंडर पटकने से कभी  भी कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है। जिससे जान व माल की बड़ी हानि हो सकती है। लेकिन यहां इन्हें ऐसा करने से रोकने वाला कोई नहीं है। जिला प्रशासन आंखें बंद किए किसी बड़े हादसे के इंतजार में बैठा है।   
शहर की घरेलू गैस एजेंसियों को न तो किसी की जान की परवाह है और न ही नियम-कायदों की। रसूखदार एजेंसी संचालकों ने सारे नियम-कायदे ताक पर रख कर शहर की सड़कों को गोदाम बना लिया है। यह सब स्थानीय प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों को सड़कों पर चलित गोदाम दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। चौंकाने वाली बात तो यह है कि जिन स्थानों पर गैस सिलेंडरों से भरे ट्रक व ट्रॉली खाली हो रही हैं, उनसे थोड़ी ही दूरी पर पान, सिगरेट की दुकाने हैं, जहां गैस सिलेंडर बांटते वक्त भी आग जलती और बुझती रहती है। जिन सड़कों पर भारी ट्रैफिक हैं, वहां भी सिलेंडरों की सप्लाई की जाती है। इस तरह गैस एजेंसी संचालक मौत को खुलेआम बुलावा दे रहे हैं। भाड़े के पैसे बचाने के लिए एजेंसी संचालक जनता के जीवन की चिंता नहीं कर रहे हैं। जबकि नियम के अनुसार गैस सिलेंडर गोदाम से सीधे ग्राहकों के घरों में पहुंचाना चाहिए, लेकिन बीच चौराहा, सड़कों पर सिलेंडरों से भरे वाहन खड़े करने के अड्डे बनाकर यहां से सिलेंडर पहुंचाए जा रहे हैं। अगर यहां थोड़ी सी भी चुक हो जाए तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। इस तरह अचानक हुई आगजनी की घटना पर काबू पाने के लिए किसी प्रकार के यंत्र इनके पास उपलब्ध नहीं होते। जिस कारण काफी जान व माल की हानि हो सकती है।
कहां-कहां होती है गैस की सप्लाईशहर के कौशिक नगर, रामराये गेट, रोहतक रोड स्थित चौड़ी गली, कृष्णा कॉलोनी, भारत सिनेमा, विद्यापीठ मार्ग, स्कीम नंबर 5, गुरुद्वारा कॉलोनी, माया देवी अस्पताल के पास, अर्बन एस्टेट कॉलोनी सहित अन्य कई आवासिय कॉलोनियों में भी खुलेआम सिलेंडरों की सप्लाई की जाती है।
क्या है नियम
भारत पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा तय किए गए नियम लिकविड फाईड पेट्रोलियम गैस (रेगुलेशन आफ सप्लाई एंड डिस्ट्रीब्यूशन) आर्डर 2000 के तहत गैस सिलेंडर को स्टोरेज या सप्लाई के दौरान सीधा रखा जाना चाहिए। गाड़ी से सिलेंडर उतारते समय ऊपर से नहीं गिराना चाहिए। सिलेंडर को टेड़ा करने पर गैस रिसाव हो सकती है, जिससे किसी प्रकार का हादसा हो सकता है। गैस एजेंसी द्वारा सिलेंडर की सप्लाई घर पर की जानी चाहिए। सप्लाई के दौरान डिलिवरी ब्यॉय ड्रेस में होना चाहिए तथा ड्रेस पर एजेंसी का नाम व डिलिवरी ब्यॉय का नाम लिखा होना चाहिए। उपभोक्ता के सामने सिलेंडर का वजन कर उसकी सील खोली जानी चाहिए। उपभोक्ता की रसोई में सिलेंडर पहुंचाने व कनेक्शन करने की जिम्मेदारी भी डिलिवरी ब्यॉय की ही होती है।
आवाज नहीं आ रही है
इस बारे में जब डीएफएससी अनिता खर्ब से बात की गई तो उन्होंने फोन तो रिशिव कर लिया। इसके बाद उनको बताया गया कि समाचार पत्र से बोल रहे हैं तो उन्होंने आवाज नहीं आने की बात कहकर फोन काट दिया। थोड़ी देर बाद जब उनसे दोबारा से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने फोन ही रिशिव नहीं किया।
डीएफएससी की होती है जिम्मेदारी
इस तरह के मामले में कार्रवाई की जिम्मेदारी डीएफएससी की होती है। अगर डीएफएससी कोई कार्रवाई नहीं करती तो उपायुक्त मामले को संज्ञान में लेकर उन्हें कार्रवाई के आदेश जारी कर सकते हैं। उपायुक्त द्वारा उन्हें जिस प्रकार की कार्रवाई के आदेश जारी किए जाएंगे, उसके अनुसार वो कार्रवाई करने के लिए तैयार हैं।
जीएल यादव
एसडीएम, जींद



खामियों के कारण पटरी पर नहीं आ रही ‘मनरेगा’

बेरोजगारी मिटाने में अचूक अस्त्र बन सकती है ‘मनरेगा’
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार गरीबों के उत्थान के लिए तमाम योजनाएं बनाती है, जो अगर ठीक ढंग से लागू की जाएं तो उनके जीवन में वाकई चमत्कारी बदलाव लाए जा सकते हैं। लेकिन अफसोस ये कि ये योजनाएं जरुरतमंदों तक पहुंचती ही नहीं हैं। योजना में खामियों के कारण योजनाएं रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं। बेरोजगारी के समय में कर्मशील मजदूरों की ‘मां’ माने जानी वाली महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) भी खामियों के कारण पटरी पर नहीं चढ़ पा रही है। मनरेगा की सफलता में सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है मॉडल एस्टीमेट व लंबी प्रक्रिया। सही ढंग से मॉडल एस्टीमेट तैयार न होने के कारण मजदूरों को समय पर मजदूरी के पैसे नहीं मिल पाते हैं। बीडीपीओ कार्यालय में अधिकारियों की कमी के कारण समय पर कागजी कार्रवाई पूरी नहीं हो पाती। जिस कारण मनरेगा का कार्य सही ढंग समय पर शुरू नहीं हो पाता है। मनरेगा की कार्यप्रणाली में अगर थोड़ा सा सुधार कर दिया जाए तो, वाकई में यह योजना कर्मशील मजदूरों को कभी भी बेरोजगार नहीं होने देगी। 
क्या है मनरेगा से कार्य शुरू करवाने की मौजूदा प्रक्रिया
मनरेगा से कार्य शुरू करवाने के लिए सरपंच द्वारा ग्राम सभा में प्रस्ताव पास कर बीडीपीओ के माध्यम से एडीसी को भेजा जाता है। एडीसी द्वारा कार्य को मंजूरी देने के बाद प्रस्ताव वापिस बीडीपीओ के माध्यम से सरपंच को भेजा जाता है। इसके बाद सहायक मजदूरों की कार्य डिमांड भरकर बीडीपीओ को भेजता है, फिर विभाग द्वारा ई-मस्ट्रोल जारी किया जाता है। इसके बाद कार्य शुरू किया जाता है। कार्य शुरू होने के बाद जेई द्वारा एमबी तैयार कर बीडीपीओ के पास भेजा जाता है। उसके बाद मजदूरों के खाते में पैसे डाले जाते हैं। 15 दिन में दो दिन की छुट्टी की जाती है। मजदूरों को छुट्टी का कोई पैसा नहीं दिया मिलता। ई-मस्ट्रोल भी योजना में बाधक है। ई-मस्ट्रोल जारी होने के बाद बीच में काम करने वाले इच्छुक मजदूर को सरपंच काम उपलब्ध नहीं करवा सकता। इस प्रकार मजदूर को काम शुरू करने के लिए 15 दिन तक इंतजार करना पड़ता है।
मनरेगा में क्या किए जा सकते हैं सुधार
जिला सरपंच एसोसिएशन के प्रधान सुनील जागलान का कहना है कि सीमांत किसान जो भी फसल लगाना चाहते हैं उसके अनुसार एक एकड़ पर फसल की बुआई से लेकर कटाई तक के पूरे चक्र की मजदूरी को जोड़कर मिट्टी की प्रकृति या कार्य के अनुसार पूरे वर्ष का मॉडल एस्टीमेट तैयार किया जाए।  कार्य के अनुसार मॉडल एस्टीमेट तैयार होने के बाद अधिकारियों को उस काम पर आने वाले खर्च के लिए बार-बार मॉडल एस्टीमेट तैयार करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मनरेगा से कार्य शुरू करवाने में जेई, एसडीओ व एक्सईएन की अहम भूमिका होती है, क्योंकि कार्य शुरू करने से लेकर खत्म होने तक की जो भी कागजी कार्रवाई होती है सारी इन्हे ही पूरी करनी होती है। लेकिन बीडीपीओ कार्यालयों में अधिकारियों की कमी के कारण भी कार्य समय पर शुरू नहीं हो पाते हैं। इसलिए प्रशासन को चाहिए कि मनरेगा के लिए जेई, एसडीओ व एक्सईएन की नियुक्ती अलग से की जाए, ताकि ग्राम पंचायत द्वारा प्रस्ताव डालते ही कार्य को शुरू करवाया जा सके। कार्य के दौरान जो छुट्टी की जाती है, मजदूरों को उन छुट्टियों का पैसा दिए जाए। ई-मस्ट्रोल की जगह हाथ से सूची बनाई जाए, ताकि कार्य शुरू होने के बाद अगर कोई मजदूर काम मांगने के लिए सरपंच के पास आए तो सरपंच कार्य शुरू होने के बाद मजदूर को काम दे सके और जितने दिन वह मजदूर काम करता है, उसके अनुसार उसे पैसे दिए जा सकें।
किन-किन कार्यों को किया गया है मनरेगा में शामिल
आज के समय में मनरेगा के तहत 66 स्कवेयर फीट मिट्टी खोदने पर मजदूर को 191 रुपए की मजदूरी मिलती है। सरपंच गांव में खेती, बागवानी व पशु पालन, गलियों की सफाई व पौधा रोपण के काम भी कर सकता है। मनरेगा से कंजर्वेशन आॅफ वाटर एंड हारवेस्टिंग सिस्टम भी लगाया जा सकता है। सरकार ने योजना में संशोधन कर तीस नए कार्यों को शामिल किया है। इसमें 27 कार्य कृषि से जुड़े हुए हैं। साथ ही गरीबों के लिए इंदिरा आवास योजना, आईएवाई के तहत बनाए जाने वाले मकानों का निर्माण भी मनरेगा के जरिए किए जाने की सरकार ने मंजूरी दे दी है। नक्सल प्रभावित जिलों में स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय बनाने की योजना को भी मनरेगा में शामिल किया गया है। योजना में संसोधन किए जाने के बाद इसे दो अप्रैल से प्रभावी तरीके से लागू किया गया है। इसमें जोड़े गए 90 फीसदी कार्य कृषि से संबंधित हैं। मनरेगा की नई सूची में 30 कार्यों को जोड़ा गया है। जिसमें 27 कार्य कृषि से जुड़े हुए हैं। इसमें पशु, मुर्गी व मछली पालन से जुड़े कार्य भी शामिल हैं।



रविवार, 1 अप्रैल 2012

‘अतिथि’ तुम कब जाओगे

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सुप्रीम कोर्ट के शिक्षा विभाग में नियमित नियुक्तियां न होने तक अतिथि अध्यापकों से शिक्षण कार्य जारी रखने के फैसले के बाद प्रदेश में आंदोलनरत 15 हजार अतिथि अध्यापकों ने राहत की सांस ली है। लेकिन उधर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पात्र अध्यापकों में मायूसी छा गई है। अतिथि अध्यापकों पर हुई सरकार व अदालत की मेहरबानी से पात्र अध्यापकों के साथ-साथ वर्ष 2000 में भर्ती हुए 3206 जेबीटी अध्यापकों ने भी सरकार पर उनके साथ भेदभाव के आरोप लगाए हैं। क्योंकि एक तरफ तो सरकार कोर्ट में केश चलने के बावजूद भी अतिथि अध्यापकों को सर्विस बुक लागू कर उनके वेतन में बढ़ोतरी कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकार जांच की आड़ में जेबीटी अध्यापकों की प्रमोशन व अन्य सुविधाएं रोक कर उनके साथ शौतेला व्यवहार कर रही है।
देश के भविष्य को ज्ञान की रोशनी से उज्जवल करने वाले अध्यापकों का भविष्य आज स्वयं ही अंधकार में है। दूसरों को राह दिखाने वाले गुरुजी आज सरकार की राजनीति का शिकार होकर खुद ही राह भटक चुके हैं। एक तरफ तो सरकार अतिथि अध्यापकों के पक्ष में कोर्ट में केश लड़ रही है और दूसरी तरफ नियमित भर्ती करने की बजाय अनुबंध के आधार पर अध्यापकों की नियुक्तियां कर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। इस प्रकार सरकार की दोहरी नीति के कारण आज प्रदेश का अध्यापक वर्ग दो फाड हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षा विभाग में नियमित नियुक्तियां न होने तक अतिथि अध्यापकों से ही शिक्षण कार्य जारी रखने के फैसले के बाद अतिथि अध्यापकों में खुशी का माहौल है। लेकिन उधर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद प्रदेश के 80 हजार पात्र अध्यापकों में मायूशी छा गई है। पात्र अध्यापकों के साथ-साथ वर्ष 2000 में भर्ती हुए 3206 जेबीटी अध्यापकों ने भी सरकार पर शौतेले व्यवहार का आरोप लगाया है। इस प्रकार सरकार के इस दोहरे रवैये ने पात्र व जेबीटी अध्यापकों की राह में रोड़ा अटका दिया है, वहीं अध्यापक वर्ग के सामने भी असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2000 में नियुक्त हुए जेबीटी अध्यापकों की जांच की आड़ लेकर उनकी प्रमोशन व अन्य सुविधाएं बंद कर दी हैं। वहीं अतिथि अध्यापकों के पक्ष में फैसला होने से पात्र अध्यापक स्थायी नौकरी से महरूम हैं और अतिथियों की विदाई की बाट जोह रहे हैं। 
गलत तरीके से की गई है अतिथि अध्यापकों की नियुक्ती
प्रदेश सरकार द्वारा गलत तरीके से अतिथि अध्यापकों की नियुक्ती की गई है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से भी यह साबित हो चुका है कि दो से अढ़ाई हजार अतिथि अध्यापक गलत तरीके से नियुक्त किए गए हैं। कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बावजूद भी सरकार ने अतिथि अध्यापकों की सर्विस बुक लागू कर दी और उनके वेतन में भी बढ़ोतरी कर दी है, लेकिन दूसरी तरफ सरकार ने वर्ष 2000 में नियुक्त किए गए 3206 जेबीटी अध्यापकों की जांच की आड़ में उन्हें सभी सुविधाओं से महरुम किया हुआ है। जेबीटी अध्यापकों के जीपीएफ तो काटे जा रहे हैं, लेकिन उनकी प्रमोशन बंद करने के साथ-साथ लोन व अन्य सुविधाएं बंद की गई हैं, जो सरासर गलत है। एलआर ब्रांच ने भी जेबीटी अध्यापकों की पदोन्नति में किसी प्रकार की परेशानी न होने संबंधि रिपोर्ट सरकार के समक्ष पेश कर दी है, लेकिन उसके बावजूद भी सरकार जेबीटी अध्यापकों की पदोन्नति रोके हुए है।
दीपक गौस्वामी, राज्य महासचिव
हरियाणा प्राथमिक शिक्षक संघ

क्वालिफाइड अध्यापकों की हो नियुक्ती
स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए क्वालिफाइड अध्यापकों को ही नियुक्त किया जाना चाहिए। अतिथि अध्यापकों की नियुक्ती गलत तरीके से की गई है। कई-कई बार पात्रता परीक्षा देने के बावजूद भी अधिकतर अतिथि अध्यापक टेस्ट पास करने में सफल नहीं हो पाएं हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि अधिकतर अतिथि अध्यापक क्वालिफाइड नहीं हैं। इससे सरकारी स्कूलों में शिक्षा स्तर में सुधार की गुंजाइश संभव नहीं है।
प्रेम अहलावत, प्रदेश प्रवक्ता
हरियाणा पात्र अध्यापक संघ
अध्यापक संघ शुरू करेगा आंदोलन
सुप्रीम कोर्ट का फैसला राहत देने वाला है। लेकिन सरकार को अनुबंध के आधार पर भर्ती करने की बजाय स्थाई भर्ती करनी चाहिए। जिससे भविष्य में इस तरह के विवाद से बचा जा सके। सरकार जब जेबीटी अध्यापकों का जीपीएफ काट रही है तो उन्हें प्रमोशन व अन्य सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए। अध्यापकों के हक के लिए अध्यापक संघ जल्द ही आंदोलन का शंखनाद करने जा रहा है।
संजीव सिंगला, जिला सचिव
हरियाणा अध्यापक संघ

....ताकि तैयार हो सकें वैज्ञानिक

जिले से 700 बच्चों को मिलेगा टूर का लाभ


नरेंद्र कुंडू

जींद।
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा करने के उद्देश्य से सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) द्वारा जिले के प्रत्येक ब्लॉक से दो-दो टूर भेजे जाएंगे। टूर के लिए सभी स्कूलों से बच्चों के चयन की जिम्मेदारी बीईओ को सौंपी गई है। सभी बीईओ अपने-अपने ब्लॉक के सरकारी स्कूलों से दोनों टूरों के लिए 50-50 बच्चों का चयन करेंगे। बच्चों का चयन करने के बाद टूर पर भेजने की सारी व्यवस्था बीईओ द्वारा स्वयं की जाएगी, लेकिन टूर पर खर्च होने वाली राशि का भुगतान एसएस द्वारा किया जाएगा। एसएसए द्वारा प्रत्येक टूर के लिए बीईओ को 25 हजार रुपए की राशि दी जाएगी। एसएसए द्वारा तैयार की गई इस योजना से जिले से 700 बच्चों को टूर का लाभ मिलेगा। टूर के दौरान विद्यार्थियों के साथ 5 अध्यापक को भी मौजूद रहेंगे, जिनमें एक साईंस अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि टूर के दौरान विद्यार्थियों के मन में विज्ञान से संबंधि पैदा होने वाली शंका का समाधान साथ की साथ किया जा सके।

एसएसए ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में सार्इंस के प्रति रुचि पैदा करने के उद्देश्य से विद्यार्थियों को एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण पर भेजने का निर्णय लिया है। एसएसएस द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले के सभी ब्लॉकों से दो-दो टूर भेजे जाएंगे। जिसके तहत जिले के सातों खंडों से कुल 14 टूर रवाना होंगे। टूर के लिए प्रत्येक बैच में 50 बच्चों को शामिल किया जाएगा। इस प्रकार पूरे जिले से 700 बच्चे टूर का लाभ ले सकेंगे। एसएसए की इस योजना के तहत 31 मार्च से पहले-पहले बच्चों को यह शैक्षणिक भ्रमण करवाया जाएगा। इसके लिए एसएसए ने सभी ब्लॉक के बीईओ को बच्चों के चयन की जिम्मेदारी सौंपी है। बीईओ को अपने स्तर पर बच्चों का चयन कर उनके टूर पर भेजने की व्यवस्था करनी है। टूर के दौरान आने वाले खर्च का भुगतान एसएसए वहन करेगा। टूर के दौरान एसएसए द्वारा प्रत्येक बैच पर 25 हजार रुपए की राशि खर्च की जाएगी। इस टूर की सबसे खास बात यह है कि टूर पर बच्चों के साथ जाने वाले 5 अध्यापकों में एक सार्इंस का अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्रमण के दौरान बच्चों के जहन में पैदा होने वाली विज्ञान संबंधि शंका का समाधान साथ की साथ किया जा सके। भ्रमण के लिए विद्यार्थियों को कुरुक्षेत्र स्थित कल्पना चावला पनोरमा तथा सार्इंस सिटी कपूरथला ले जाया जाएगा और यहां बच्चों को विज्ञान से संबंधित सभी जानकारियां बारिकी से दी जाएंगी, ताकि बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके और देश के लिए भावि अब्बदुल कलाम तैयार किए जा सकें।

साइंस के प्रति बच्चों में रुचि पैदा करना है उद्देश्य

सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में सार्इंस के प्रति रुचि पैदा करने के उद्देश्य से उन्हें एक दिवसीय टूर पर भेजा जाएगा। इसके लिए जिले के सातों खंडों से दो-दो टूर भेजे जाएंगे। प्रत्येक बैच में 50 बच्चों को शामिल किया जाएगा। बच्चों के चयन की जिम्मेदारी बीईओ को सौंपी गई है। बीईओ अपने स्तर पर बच्चों का चयन कर उनके टूर पर जाने का सारा इंतजाम स्वयं करेंगे। लेकिन टूर के दौरान बच्चों पर खर्च होने वाली राशि का भुगतान एसएसए द्वारा किया जाएगा। भ्रमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले 5 अध्यापकों में एक अध्यापक सार्इंस का होना अनिवार्य है। 31 मार्च से पहले-पहले विद्यार्थियों को यह भ्रमण करवा दिया जाएगा।

भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी

एसएसए, जींद


सरकारी कार्यालयों में उड़ रही नियमों की धज्जियां

सरकार के आदेशों के वाजूद भी आवेदकों से लिए जा रहे हैं शपथ पत्र

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के लगभग तमाम सरकारी कार्यालयों में कायदे-कानूनों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सरकार द्वारा सरकारी विभागों में आम आदमी से शपथ पत्र न लेने के आदेशों के बावजूद भी सभी सरकारी कार्यालयों में शपथ पत्र लेने का सिलसिला बदस्तुर जारी है। सरकारी अधिकारियों पर सरकार के आदेशों का कोई असर नहीं है। इससे आम जनता को आर्थिक व मानसिक परेशानी उठानी पड़ रही है। ताज्जुब की बात तो यह है कि आम आदमी द्वारा साधारण कागज पर जो शपथ पत्र दिए जा रहे हैं कार्यालय में बैठके कर्मचारी उन्हें भी नोटरी से सत्यापित करवा कर लाने के फरमान जारी करते हैं, जो सरासर नियमों के विरुद्ध है। इस प्रकार सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण शपथ पत्र विक्रेता जमकर चांदी कूट रहे हैं। 
हरियाणा सरकार ने 28 अप्रैल 2010 को पत्र क्रमांक-62/09/2010-6जीएसआई में सभी सरकारी विभागों व संस्थाओं के मुखियाओं को आदेश जारी किए थे कि किसी भी सरकारी कार्यालय में सरकारी कार्य के लिए आम आदमी से शपथ पत्र नहीं लिए जाएंगे। आदेशों में यह स्पष्ट किया गया था कि सरकार ने निर्णय अनुसार एक जून 2010 से किसी भी हरियाणा सरकार के विभाग व संस्थान में केवल उस स्थिति को छोड़कर जहां कानूनन शपथ पत्र देना बाध्यता है, अन्य किसी भी स्थिति में आवेदक से आवेदन के साथ किसी भी सूरत में शपथ पत्र नहीं लिया जाएगा। इससे जहां आवेदकों को मानसिक व आर्थिक परेशानी होती है, वहीं दफ्तर के रिकार्ड में भी बेवजह इजाफा होता है। सरकार ने अपने आदेश में यह भी व्यवस्था दी थी कि अब सभी आवेदन पत्रों में स्व घोषणा का एक कालम होगा, जिसमें आवेदक यह घोषणा करेगा कि आवेदन पत्र में दिए गए सभी तथ्य सच्चे हैं और उसमें कुछ भी छिपाया नहीं गया है। तथ्य झूठे पाए जाने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 182/415/417/420 आदि के तहत कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है। सरकार के आदेशों के दो वर्ष बाद अभी भी सरकार के इन आदेशों पर पूरी तरह से अमल नहीं हुआ है और लगभग सभी सरकारी विभागों में आवेदनकर्त्ताओं से शपथ पत्र लिए जा रहे हैं, जिससे एक तरफ जहां आम जनता को वित्तीय व अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं सरकारी आदेशों की भी सरेआम धज्जियां उड़ रही है। आज तक किसी भी विभाग ने कार्यालय के बाहर आवेदन के साथ शपथ पत्र न लेने संबंधी कोई नोटिस बोर्ड भी नहीं लगाया है। ताज्जुब की बात तो यह है कि अगर आवेदकों द्वारा साधारण कागज पर कोई शपथ पत्र दिया जाता है तो सरकारी कर्मचारी उस शपथ पत्र को भी नोटरी से सत्यापित करवाते हैं, जो सरासर गलत है।
सरकारी विभागों के कार्यालय के बाहर लगाया जाए बोर्ड
इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता विनोद बंसल एडवोकेट ने बताया कि वे स्वयं लगभग 20 सरकारी विभागों के मुखियाओं को पत्र व्यवहार कर शपथ पत्र न लेने संबंधि बोर्ड कार्यालयों के बाहर लगाने के बारे में अपील कर चुके हैं। लेकिन आज तक एकाध कार्यालय को छोड़कर किसी भी कार्यालय के बाहर इस तरह का कोई नोटिस बोर्ड नहीं लगाया गया है। बंसल ने बताया कि उन्होंने उपायुक्त से मांग की है कि इस मामले में कानून की पालन सुनिश्चित करें व सभी विभागों को तुरंत आदेश दें कि वे आम जनता से उनके कार्यों के लिए प्रत्येक आवेदन पत्र के साथ शपथ पत्र की मांग न करें और इन आदेशों की अनुपालना न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें, ताकि आम जनता को परेशानियों से मुक्ति मिल सके।
जरूरी नहीं है शपथ पत्र देना : एडीसी
छोटे-छोटे कार्यों के लिए शपथ पत्र देना जरूरी नहीं है। आवेदक द्वारा आवेदन पत्रों में स्व घोषणा का एक कालम होता है, जिसे भरकर वह दे सकता है। इसके बाद शपथ पत्र की जरूरत नहीं होती है। कई बार आवेदक स्वयं शपथ पत्र ले आते हैं तो वह ले लिए जाते हैं। सिर्फ कानून शपथ देना जहां बाध्यता है, वहीं शपथ पत्र दिए जाने जरूरी होते हैं।
अरविंद मलहान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

आईटी विलेज बीबीपुर ने ऊर्जा संरक्षण की तरफ बढ़ाए कदम

संगोष्ठी में विजेता छात्रा को सौलर लालटेन0 वितरित करते सरपंच व मुख्यातिथि।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
आईटी विलेज बीबीपुर ने सूचना एवं प्रौद्योगिक (इंटरनेट) पर धूम मचाने के बाद अब ऊर्जा संरक्षण की तरफ अपने कदम बढ़ाए हैं। इसके लिए पंचायत ने गांव को पूर्ण रूप से सीएफएल ट्यूब युक्त बनाने की मुहिम शुरू कर दी है। 6 हजार की आबादी वाले इस गांव में 2700 सीएफएल ट्यूब लाइट लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। फिलहाल इस मुहिम के तहत 1700 बिजली के बल्बों को हटाकर सीएफएल ट्यूब लाइट लगाने का कार्य पूरा कर लिया गया है। जिस पर पंचायत द्वारा साढ़े तीन लाख रुपए खर्च किए गए हैं। अगर फिडर के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो गांव में ऊर्जा संरक्षण की मुहिम शुरू करने से पहले एक माह में बिजली की खपत 2 लाख 5 हजार यूनिट थी, लेकिन 1700 सीएफएल लगने के बाद बिजली की खपत में 5 से 6 हजार यूनिट की कमी हुई है। जबकि पूरा गांव सीएफएल ट्यूब युक्त होने के बाद यह खपत घटकर डेढ़ लाख तक सीमित हो जाएगी। पंचायत ने इस मुहिम को सफल बनाने के लिए गांव का सर्वे शुरू करवा दिया है। 70 विद्यार्थियों की चार सर्वे टीमों को यह कार्यभार सौंपा गया है। टीम के सदस्य घर-घर जाकर बिजली उपकरणों का ब्यौरा एकत्रित कर रहे हैं। 
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचातय ने हाईटैक पंचायत का दर्जा हासिल करने के बाद ऊर्जा संरक्षण की तरफ अपने कदम बढ़ाए हैं। गणित विषय में एमएससी तक की पढ़ाई पूरी कर चुके सरपंच सुनील जागलान ने बताया कि इसके लिए गांव में सर्र्वे चलाया गया है। सर्वे के लिए तीसरी कक्षा से बाहरवीं कक्षा तक केविद्यार्थियों के 4 जत्थे तैयार किए गए हैं। ग्रामीणों में ऊर्जा संरक्षण के लिए प्रेरित जागरुकता फैलाने के लिए ये विद्यार्थी हर रोज सुबह-सुबह गांव में जागरुकता रेली निकालते हैं और रेली के दौरान ‘बल्ब हटाओ, बिजली बचाओ’ ‘सीएफएल लगाओ, पैसे बचाओ’ जैसे स्लोगनों से ग्रामीणों को प्रेरित करते हैं। इसके बाद ये विद्यार्थी घर-घर जाकर बिजली के उपकरणों का रिकार्ड तैयार करते हैं। जिसमें मकान मालिक का नाम, घर में बल्ब की संख्या, सीएफएल की संख्या, मोटर व अन्य मौजूद बिजली उपकरणों का रिकार्ड दर्ज करते हैं। सर्वे के दौरान ये विद्यार्थी इस बात की जांच भी करते हैं कि घर में आईएसआई या आईएसओ मार्क वाले उपकरणों का प्रयोग किया जाता है या नहीं। आईएसओ या आईएसआई मार्क वाले उपकरणों का प्रयोग नहीं करने वाले लोगों को आईएसआई व आईएसओ के मार्क वाले ही उपकरण प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
ऊर्जा संरक्षण के लिए पंचायत द्वारा उठाए गए कदम
1.    स्वच्छता अभियान में सहयोग देने वाले 31 प्रतिभागियों को पंचायत की तरफ से 25 हजार रुपए के ईनाम के रूप में सौलर लालटेन वितरित की गई हैं।
2.    15 अगस्त व 26 जनवरी को सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा परीक्षा में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले बच्चों को सौलर लालटेन वितरित की गई हैं।
3.    ऊर्जा संरक्षण विषय पर गांव में दो बार संगोष्ठी का आयोजन किया जा चुका है, जिसमें पहले तीन स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी सौलर लालटेन ईनाम के रूप में दी गई हैं।
4.    ग्रामीणों में जागरुकता फैलाने के लिए गांव में अक्षय ऊर्जा विभाग की तरफ से प्रदर्शनी का आयोजन करवाया गया है।
5.    गांव में 6-7 गोबर गैस प्लांट लगाने की योजना तैयार की जा रही है।
6.    गांव के स्कूल में रेन कंजर्वेशन एंड हायर्वेस्टींग सिस्टम लगाया गया है।
7.    फेसबुक पर सौलर उपकरणों से संबंधित व ऊर्जा संरक्षण से जुड़ी बातों को शेयर किया जाता है।
8.    गांव में पीआरआई स्कीम के तहत साढ़े तीन लाख रुपए की राशि से सीएफएल ट्यूब लाइट खरीद कर दी गई हैं।
9.    गांव के जो बच्चे ऊर्जा संरक्षण में सहयोग कर रहे हैं, उन बच्चों के नाम गांव की चौपाल में ‘गांव के सितारे’ के रूप में लिखे जाते हैं।
10.    गांव में ऊर्जा संरक्षण की जागरुकता फैलने से पहले व बाद में हुई बिजली की खपत की फीडर से रिपोर्ट मांगी गई है।
आज ऊर्जा हर क्षेत्र की जरूरत बन चुकी है, जिसके बिना विकास संभव नहीं है। देश के विकास में हर व्यक्ति ऊर्जा की बचत कर अपना योगदान दे सकता है। ऊर्जा संरक्षण में जागरूकता एक बड़ा हथियार हो सकती है। ऊर्जा संरक्षण के लिए सौर ऊर्जा बड़ा विकल्प है। गांव में 15 सौलर लाइटें भी लगवा दी गई हैं। गांव के लोगों में सौलर ऊर्जा के प्रति जागरूकता फैलाने के दृष्टिगत भी योजना तैयार की गई हैं। जिसके तहत गांव में सभाएं करके इस गैर परम्परागत ऊर्जा स्त्रोतो के बारे में आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवाई जा रही है।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

       

ऊर्जा संरक्षण में प्रदेश का नंबर वन जिला बना जींद

नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश में जींद जिले को बेशक पिछड़े जिलों में शुमार किया जाता हो, लेकिन ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में जिले ने दबंगई दिखाई है। ब्लड डोनेशन के बाद अब जींद जिले ने ऊर्जा संरक्षण में भी प्रदेश में पहला स्थान प्राप्त कर लिया है। ऊर्जा संरक्षण में जींद जिला प्रदेश के अन्य जिलों के लिए रोल मॉडल के रूप में उभरा है। भारत सरकार के नवीनीकरण उर्जा स्त्रोत मंत्रालय द्वारा जवाहर लाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन के तहत जींद जिले के सातों खंड विकास अधिकारी के कार्यालयों में सौलर प्लांट लगाए गए हैं। इन प्लांटों पर मंत्रालय द्वारा 6 लाख 30 हजार रुपए से भी अधिक की राशि खर्च की गई है। जिले के सभी खंडों में सौलर प्लांट लगाने वाला जींद जिला प्रदेश में पहला जिला बन गया है।
अब जिले में बिजली कटों की वजह से सरकारी कार्यालयों में कामकाज प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि भारत सरकार के नवीनीकरण उर्जा स्त्रोत मंत्रालय द्वारा जवाहर लाल नेहरू नेशनल सौलर मिशन के तहत जिले के सभी सातों खंड विकास अधिकारी कार्यालयों में सौलर प्लांट लगा दिए गए हैं। ये प्लांट लगाने के मामले में जींद जिला प्रदेश में पहला जिला बन गया है। प्रत्येक खंड अधिकारी के कार्यालय पर 450 वाट क्षमता का सौलर प्लांट लगाया गया है, जिससे हर रोज तीन यूनिट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। इन प्लांटों की स्थापना पर मंत्रालय द्वारा 6 लाख 30 हजार रुपए से अधिक की राशि खर्च की गई है। इसके अलावा लघु सचिवालय में भी प्रतिदिन 25 यूनिट बिजली पैदा करने वाला प्लांट लगाया गया है। लघु सचिवालय के मुख्य-मुख्य कार्यालयों को इससे जोड़ा गया है। इसकी क्षमता बढ़ाने की कार्ययोजना भी  तैयार की जा रही है। इस प्लांट पर 11 लाख रुपए की राशि खर्च की गई हैं। सौलर प्लांट लगने से बिजली की बचत तो होगी ही साथ-साथ प्रशासन को हर माह लाखों रुपए के राजस्व का भी लाभ  होगा। सौलर प्लांट की सबसे खास बात यह है कि इन उपकरणों की लाइफ बहुत ज्यादा है और यह आसानी से खराब भी नहीं होते हैं। अक्षय ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की मानें तो इन उपकरणों की लाइफ 35 साल से भी ज्यादा होती है।
लघु सचिवालय में लगाया गया सौलर प्लांट।
लघु सचिवालय में लगाया गया सौलर प्लांट।
मनरेगा स्कीम को मिलेगा लाभ
खंड विकास अधिकारी के कार्यालयों में सौलर प्लांट लगने से सरकारी कामकाज व्यवस्थित होगा। कम्प्यूटरीकृत कार्यों में लाइट न होने से बाधा नहीं आएगी। इन प्लांटों का सबसे ज्यादा ला•ा मनरेगा स्कीम को मिलेगा, क्योंकि मनरेगा का सारा कामकाज आन लाइन होता है। कार्यालय में 24 घंटे लाइट की व्यवस्था होने से कर्मचारी मनरेगा के तहत होने वाले सभी  कार्यों को हर रोज अपडेट कर सकेंगे। जिससे मनरेगा स्कीम को ओर बल मिलेगा।

वातावरण पर नहीं होगा दूष्प्रभाव
थर्मल पॉवर प्लांट में एक यूनिट बिजली बनाने पर एक किलो कार्बन वातावरण में फैल जाती हैं, जिससे वातावरण दूषित होता है। कोयले से बिजली बनाने पर जहां हमारे वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, वहीं कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधन भी सिकुड़ रहे हैं। जिससे भविष्य में हमारे सामने गंभीर परिणाम हो सकते हैं। खंड विकास अधिकारी कार्यालयों में लगाए गए सौर ऊर्जा बिजली संयत्र पूरी तरह से वातावरण के अनुकूल हैं। इनसे किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होगा।
कितनी होगी सौलर प्लांट की कैपेस्टी
खंड विकास अधिकारी कार्यालय में लगाए गए 450 वॉट के सौलर प्लांट से बिजली की कॉफी बचत होगी। एक सौलर प्लांट में 75-75 वॉट के सौलर मोड्यूल हैं। इस प्लांट में 12 वोलट 300 एमपीआर आवर की बेट्री होती है। जिससे प्रति दिन तीन यूनिट तक बिजली पैदा की जाती है। इससे कार्यालय में एक कम्प्यूटर, दो लाइट व 2 पंखे पूरा दिन चल सकेंगे।
प्रदेश में बना पहला जिला
सौर ऊर्जा के इन प्लांटों के लगने से कार्यालय का कामकाज नियमित रूप से चलने लगा है। बिजली के अभाव में पहले कम्प्यूटर इत्यादि की सेवाएं बाधित होती थी। इस प्लांट के लगने से बिजली कब गई है अथवा कब कट लगा इस बात का पता ही नहीं लगता है और नियमित रूप से कम्प्यूटर से कार्य चलता रहता है। यह प्लांट पूरी तरह से वातावरण के अनुकूल हैं। सभी खंडों में सौलर प्लांट लगाने वाला जींद जिला प्रदेश का पहला जिला है। जींद के अलावा सिरसा दूसरे नंबर पर है। सिरसा में केवल दो खंडों में ही सौलर प्लांट लगाए गए हैं।
ओमदत्त शर्मा, जिला परियोजना अधिकारी
अक्षय ऊर्जा विभाग, जींद

यहां सरकारी बाबू ही तय करते हैं नियम.....

परिचालक लाइसेंस के लिए आवेदन करने वालों से जमा करवाए जाते हैं मूल प्रमाण पत्र

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकारी कार्यालयों में कायदे-कानून तोड़ना तो अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए स्टेट्स सिम्बल हो गया है। आम आदमी भले ही कायदे-कानूनों को तोड़ने से हिचकिचा जाए, लेकिन सरकारी बाबू इसकी कतई परवाह नहीं करते हैं। फिलहाल इसकी बानगी एसडीएम कार्यालय में देखने को मिल रही है। यहां कर्मचारियों द्वारा परिचालक लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले आवेदकों से फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र जमा करवाए जा रहे हैं, जबकि नियम के अनुसार इसके लिए फोटो कॉपी ही तय की गई है। एसडीएम कार्यालय में फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र जमा होने के कारण युवा सही रूप में इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं, जिससे उनका फर्स्ट एड के लेक्चरार बनने के सपने पर भी ग्रहण लग गया है।   
एक तरफ तो सरकारी बाबुओं का रौब, दूसरी तरफ कामकाज की लंबी प्रक्रिया खुद-बे-खुद ही कामकाज के लिए सरकारी कार्यालय में आने वाले लोगों को तोड़ देती है। यहां के सरकारी कार्यालयों में तो कर्मचारियों पर •ोड चाल की नीति लागू होती है। एक बार जो प्रक्रिया शुरू कर दी जाए बस फिर तो वह प्रक्रिया नियम ही बन जाती है। इसी तरह का नजारा यहां के एसडीएम कार्यालय में हर रोज देखने को मिलता है। एसडीमए कार्यालय में परिचालक लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले आवेदकों से फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र ही जमा करवाए जा रहे हैं। इन युवाओं के लिए यह प्रमाण पत्र केवल परिचालक लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया का ही अंग बनकर रह गए हैं। इसके अलावा यह प्रमाण पत्र इनके किसी काम में प्रयोग नहीं हो पा रहे हैं। प्रकार युवाओं के फर्स्ट एड का लेक्चरार बनने के सपने पर तो ग्रहण ही लग रहा है। जबकि प्रदेश के अन्य जिलों में ऐसे नियम नहीं हैं। दूसरे जिलों में परिचालक लाइसेंस बनवाते समय आवेदकों से फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्रों की जगह फोटो कॉपी ही जमा करवाई जा रही हैं। कहीं भी ऐसा नियम नहीं है कि किसी प्रकार का लाइसेंस या अन्य कागजात तैयार करवाते समय आवेदक से मूल प्रमाण पत्र जमा करवाया जाए। यहां पर एसडीएम कार्यालय में फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र जमा होने के कारण रेडक्रॉस के अधिकारियों के माथे पर भी चिंता की लकीरें बढ़ने लगी हैं। क्योंकि अगर युवाओं के पास फर्स्ट एड के प्रमाण पत्र ही नहीं होंगे तो वे फर्स्ट एड के लेक्चरार कहां से तैयार करेंगे। जिससे भविष्य में रेडक्रॉस को भी फर्स्ट एड के लेक्चरारों की कमी झेलनी पड़ सकती है।
किस काम आ सकता है फर्स्ट एड प्रमाण पत्र
कैंडेक्टरी लाइसेंस बनवाने से पहले रेडक्रॉस में दाखिला लेकर एक सप्ताह की ट्रेनिंग ली जाती है। एक सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद प्रशिक्षुओं का टेस्ट लिया जाता है। टेस्ट लेने के बाद भारत सरकार स्वास्थ्य एवं गृह मंत्रालय द्वारा प्रशिक्षुओं को फर्स्ट एड का प्रमाण पत्र दिया जाता है, जो कि तीन साल तक मान्य होता है। फर्स्ट एड के प्रमाण पत्र को तीन साल से पहले रिन्यू करवाना होता है। रिन्यू करवाने के बाद प्रमाण पत्र पांच साल तक के लिए मान्य होता है। पांच साल से पहले इस प्रमाण पत्र को फिर से रिन्यू करवाना पड़ता है। दोबारा से रिन्यू करवाने के बाद रेडक्रॉस द्वारा आवेदक को एक प्रमाण पत्र दिया जाता है। जिसके बाद आवेदक फर्स्ट एड के लेक्चरार की ट्रेनिंग ले कर फर्स्ट एड लेक्चरार का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकता है।
मूल प्रमाण पत्र की जगह फोटो कॉपी जमा करवाना ही उचित
परिचालक लाइसेंस बनवाते समय एसडीएम कार्यालय में आवेदकों से फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र जमा करवाने के मामले उनके सामने आ रहे हैं। रेडक्रॉस के कर्मचारी भी एसडीएम कार्यालय की इस कार्यप्रणाली से सकते में हैं। सही नियम क्या है यह तो एसडीएम कार्यालय से ही पता लग सकते हैं, लेकिन इस तरह की प्रक्रिया के दौरान मूल प्रमाण पत्र की जगह आवेदकों से फोटो कॉपी ही लेनी चाहिए। ताकि मूल प्रमाण पत्र आवेदक के पास ही रह सकें और भविष्य में वो उनका किसी दूसरे क्षेत्र में प्रयोग कर सके।
रणदीप श्योकंद, सचिव
रेडक्रॉस सोसाइटी, जींद

मूल प्रमाण पत्र जमा करवाने का है नियम
सरकारी नियम के अनुसार ही कैंडेक्टरी लाइसेंस बनवाने वाले आवेदकों से मूल प्रमाण पत्र जमा करवाए जा रहे हैं। मूल प्रमाण पत्र की जगह फोटो कॉपी जमा करवाने का नियम नहीं है। अगर इस प्रक्रिया से आवेदकों या रेडक्रॉस के अधिकारियों व कर्मचारियों को किसी प्रकार की परेशानी होती है तो वे इसके लिए उनसे बातचीत करेंगे।
जीएल यादव
एसडीएम, जींद

अब सीधे किसानों तक पहुंचेंगी कृषि विभाग की योजनाएं

वेबसाइट से फसलों के भावों की भी जानकारी लेंगे किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कृषि विभाग के अधिकारी अब विभाग द्वारा शुरू की गई किसान हितेषी योजनाओं से किसानों को विमुख नहीं रख सकेंगे। कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए जो योजनाएं शुरू की जाएंगी, उस योजना की सारी जानकारी कृषि विभाग के मुख्यालय द्वारा सीधे चौ. छोटू राम किसान क्लब घिमाना को भी भेजी जाएगी। इसके बाद किसान क्लब के सदस्य विभाग की उस योजना को सीधे किसानों तक पहुंचाने का काम करेंगे। कृषि मंत्री सरदार परमवीर सिंह ने इसके लिए कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं। इस प्रकार अब किसान क्लब के सदस्य किसानों व कृषि विभाग के बीच एक मजबूत कड़ी का काम करेंगे। इतना ही नहीं अब क्लब के सदस्यों द्वारा किसानों को अपडेट रखने के लिए एक वेबसाइट भी तैयार की जा रही है। इस वेबसाइट पर किसान हितेषी सभी योजनाओं का ब्योरा डाला जाएगा। इसके अलावा क्लब के सदस्यों द्वारा वेबसाइट के माध्यम से किसानों की सभी समस्याओं का समाधान भी  किया जाएगा। वेबसाइट पर सभी मंडियों के भाव भी डाले जाएंगे, ताकि किसान घर बैठे प्रदेश की सभी मंडियों के भावों की जानकारी ले सकें।
किसानों को आर्थिक स्तर पर मजबूत करने तथा तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर किसानों के लिए काफी योजनाओं क्रियान्वित की जाती हैं। लेकिन कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा किसानों के साथ माथापच्ची के झंझट से बचने के लिए इन योजनाओं का प्रचार-प्रसार ही नहीं किया जाता। जिस कारण योजनाओं की मियाद ही खत्म हो जाती है और किसानों को इसकी भनक तक नहीं लगती है। इसके बाद विभाग के अधिकारियों द्वारा किसानों के नाम पर इन योजनाओं का फायदा चुपके से चंद रसूखदारों को परोस दिया जाता है। किसान क्लब के प्रधान पवन बीबीपुर व सलाहकार सुनील आर्य ने बताया कि विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते पात्र किसान इन योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं। उन्होंने बताया कि अब कृषि विभाग के अधिकारी ऐसा नहीं कर सकेंगे। कृषि विभाग के अधिकारियों की इस आपापंथी पर नकेल डालने के लिए चौ. छोटू राम किसान क्लब घिमाना के सदस्यों ने कृषि मंत्री से विभाग द्वारा शुरू की जाने वाली सभी योजनाओं की जानकारी सीधे क्लब को देने की मांग की थी। किसान क्लब की मांग को स्वीकारते हुए कृषि मंत्री सरदार परमवीर सिंह ने विभाग के अधिकारियों को इसके लिए निर्देश जारी कर दिए हैं। क्लब के पास नई योजना की जानकारी मिलते ही क्लब के सदस्य जिले के सभी किसानों तक योजना का प्रचार करेंगे। कृषि मंत्री द्वारा जारी इन आदेशों के बाद क्लब के सदस्य किसानों व कृषि विभाग के बीच एक मजबूत कड़ी का काम करेंगे। इसके अलावा क्लब द्वारा किसानों को अपडेट रखने के लिए एक वेबसाइट भी  तैयार की जा रही है। वेबसाइट तैयार होते ही क्लब द्वारा प्रदेश व बाहर की सभी मंडियों के भाव वेबसाइट पर डाले जाएंगे। ताकि किसान घर बैठे ही मंडी में चल रहे फसलों के भावों की जानकारी प्राप्त कर सकें। वेबसाइट पर कृषि विभाग द्वारा शुरू की गई सभी किसान हितेषी योजनाओं का ब्योरा भी  डाला जाएगा। इसके अलावा क्लब के सदस्यों द्वारा वेबसाइट के माध्यम से किसानों की खेती से संबंधित सभी समस्याओं का निदान भी किया जाएगा। क्लब के सदस्यों द्वारा वेबसाइट के माध्यम से किसानों को कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित किया जाएगा तथा कम लागत से अधिक पैदावार लेने के टिप्स भी दिए जाएंगे। 
कीटनाशक रहित खेती के लिए भी  क्लब ने चलाई है विशेष मुहिम
क्लब के सलाहकार सुनील आर्य ने बताया कि घिमाना में चल रहे चौ. छोटू राम किसान क्लब के कुल 419 मैंबर हैं। क्लब में घिमाना, जुलाना, रामगढ़, बीबीपुर, बहबलपुर, बकलाना, जलालपुरा सहित दर्जनों गांवों के किसान जुड़े हुए हैं। क्लब के सभी  सदस्य सप्ताह में एक बार बैठक करते हैं और बैठक में अपने-अपने तुजर्बे पर विचार-विमर्श करते हैं। क्लब द्वारा समय-समय पर किसानों को जागरुक करने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कार्यक्रमों में किसानों को कम लागत से अधिक पैदावार लेने के उपाए भी समझाए जाते हैं। फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग को रोकने के लिए भी क्लब द्वारा विशेष मुहिम चलाई गई है, ताकि फसलों में बढ़ते इस जहर को कम किया जा सके।

रविवार, 25 मार्च 2012

‘विज्ञान दर्पण’ पर लापरवाही की धूल

 तीन माह बाद भी स्कूलों में नहीं पहुंच पाई पत्रिकाएं

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में साइंस और टेक्नोलॉजी के प्रति उत्सुकता बढ़ाने के मकसद से शुरू की गई ‘विज्ञान दर्पण’ पत्रिकाएं इन दिनों शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में ही धूल फांक रही हैं। जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा इन पत्रिकाओं का वितरण जनवरी माह तक सभी स्कूलों में करवाया जाना था, लेकिन तीन माह से ये पत्रिकाएं शिक्षा अधिकारी के कार्यालय की रद्दी की टोकरी में ही दफन हैं। विद्यार्थियों के अलावा इन पत्रिकाओं में अध्यापकों के लिए भी  विभाग से जुड़ी नवीनतम जानकारियां उपलब्ध करवाई जाती हैं, ताकि अध्यापकों को स्कूल में बैठे-बिठाए ही विभागीय नियमों व बदलावों की जानकारियां मिल सकें। लेकिन यहां सरकार की इस योजना पर पूरी तरह से विभागीय अधिकारियों की लापरवाही का ग्रहण लग चुका है और ये पत्रिकाएं केवल रद्दी बनकर रह गई हैं।    
 शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में रखी पत्रिकाएं जिन्हें स्कूलों में बांटा जाना था।
सरकार प्रदेश में शिक्षा स्तर को ऊंचा उठाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए अनेकों योजनाएं लागू कर रही है। ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे इन योजनाओं का लाभ उठाकर आगे बढ़ सकें। लेकिन जब तक विभागीय अधिकारी ही सरकार की इन योजनाओं को सही ढंग से लागू करने में अपना पूरा सहयोग नहीं देंगे, तब तक किसी भी सूरत में ये योजनाएं मूर्त रुप नहीं ले सकेंगी। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का कुछ ऐसा ही नजारा यहां देखने को मिल रहा है। विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के चलते ही सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में साइंस और टेक्नोलॉजी के प्रति उत्सुकता बढ़ाने के मकसद से शुरू की गई ‘विज्ञान दर्पण’ पत्रिकाएं इन दिनों शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में ही धूल फांक रही हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्कूलों में भेजी जाने वाली ये त्रेमासिक विज्ञान पत्रिकाएं पिछले तीन माह से शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में ही पड़ी हुई हैं। जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा इन पत्रिकाओं का वितरण जनवरी माह में ही करवाना था। लेकिन तीन माह शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इनकी सुध तक नहीं ली है। विद्यार्थियों के अलावा इन पत्रिकाओं में अध्यापकों के लिए भी नवीनतम जानकारियां होती हैं, ताकि अध्यापकों को स्कूलों में ही विभागीय नियमों व शुरू की गई नई योजनाओं की जानकारी मिल सके। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों के सुस्त रवैये के चलते सरकार की यह योजना शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में ही दम तोड़ गई है।  
स्कूलों में बैठे-बिठाए ही अध्यापकों को नई जानकारी देना है उद्देश्य
प्रदेश सरकार द्वारा जन कल्याणकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हरियाणा विज्ञान दर्पण के अलावा हरियाणा संवाद व अन्य कई पत्रिकाएं भी स्कूलों में भेजी जाती हैं, ताकि सरकार बच्चों व अध्यापकों के माध्यम से जनकल्याणकारी योजनओं का प्रचार-प्रसार कर सके और बच्चे भी सरकार की योजनाओं को अच्छे ढंग से समझ सकें। इन पत्रिकाओं में बच्चों के लिए जनरल नॉलेज, स्वास्थ्य संबंधी, विज्ञान संबंधी, खेल संबंधी, संस्कृति से संबंधी जानकारी तथा क्वीज प्रतियोगिताएं प्रकाशित करवाई जाती हैं। शिक्षा निदेशालय से प्रकाशित की जा रही इन पत्रिकाओं में शिक्षकों को ग्रास रुट लेवल पर विभागीय हलचलों की जानकारी देने तथा पत्रिका में अध्यापकों की रचनाएं, शिक्षाप्रद व विज्ञान के मानवीय पहलूओं को उजागर करने वाले लेख प्रकाशित किए जाते हैं। इन पत्रिकाओं की खास बात यह है कि अध्यापक विभागीय नियमों व बदलावों को बारीकियों को स्कूल में बैठे-बिठाए ही जान सकते हैं।
सरकारी योजनाओं पर नहीं दिया जाता ध्यान
विभागा के अधिकारियों की लापरवाही के कारण सरकार की योजनाएं सफल नहीं हो पा रही हैं। अधिकारियों की सुस्ती के कारण ही तीन माह बाद भी ये पत्रिकाएं स्कूलों में नहीं पहुंच पाई हैं, जो सरासर गलत है। अधिकारियों की लापरवाही सीधे इस बात की ओर इशारा कर रही है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी सरकारी योजनाओं के प्रति कितने गंभीर हैं। विभागीय अधिकारियों के पास अध्यापकों को परेशान करने के शिवाय कोई काम नहीं हैं। विभागीय अधिकारियों का ध्यान सरकार की योजनाओं को अमल में लाने पर कम अध्यापकों को बिना वजह परेशान करने पर ज्यादा रहता है।
महताब सिंह मलिक, राज्य उपप्रधान
हरियाणा अध्यापक संघ
                                    क्या कहते हैं अधिकारी
इस तरह का कोई मामला जानकारी में नहीं है। शायद इस बार मीटिंग न होने के कारण पत्रिकाओं का वितरण नहीं हो सका है। अगर ये पत्रिकाएं स्कूलों के लिए आई हैं तो इस बार मीटिंग में इस मुद्दे पर बातचीत कर पत्रिकाओं को स्कूलों में भिजवा दिया जाएगा। अब विभाग ने इस तरह के झंझट से बचने के लिए पत्रिकाओं को डाक के माध्यम से सीधे स्कूलों में भेजने का प्रावधान किया है। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से  भविष्य में इस तरह के मामलों पर रोक लगेगी।
साधू राम रोहिला
जिला शिक्षा अधिकारी, जींद

शनिवार, 24 मार्च 2012

किसानों को कीट प्रबंधन का पाठ पढ़ा रहे हैं खेत पाठशाला के किसान

 कीट साक्षरता केंद्र में किसानों को कीटों की पहचान करवाते मास्टर ट्रेनर किसान।
नरेंद्र कुंडू
जींद। रोहतक रोड स्थित नई अनाज मंडी में सैन्चरी इवेंट पलेनर ग्रुप के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय किसान मेले में भी किसान खेत पाठशाला के किसान छाए हुए हैं। मेले में किसान खेत पाठशाला के किसानों द्वारा किसानों के लिए कीट साक्षरता केंद्र लगाया गया है। किसान खेत पाठशाला के कीट कमांडो किसान अपने स्तर पर मेले में आने वाले किसानों को फसल में पाए जाने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों तथा बिना कीटनाशक का प्रयोग किए अच्छी पैदावार लेने की सारी जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं। मेले में आने वाले किसान भी कीट साक्षरता केंद्र पर पहुंचकर अपना ज्ञान बढ़ा रहे हैं। किसान खेत पाठशाला की लोकप्रियता को देखते हुए मेले के आयोजनकों ने कीट साक्षरता केंद्र के किसानों को मेले में मुफ्त में जगह उपलब्ध करवाई है।
कीट प्रबंधन में माहरत हासिल करने वाले किसान खेत पाठशाला निडाना के किसान अब नई अनाज मंडी में आयोजित किसान मेले में आने वाले जिले के अन्य किसानों को भी कीट प्रबंधन का पाठ पढ़ा रहे हैं। खेत पाठशाला के कीट कमांडो किसानों को कीट प्रबंधन के माध्यम से कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कीट साक्षरता केंद्र की सबसे खास बात यह है कि केंद्र में मौजूद कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनर मेले में आने वाले किसानों को बिल्कुल हरियाणवी लहजे में जानकारी दे रहे हैं। जयभगवान निडानी, रमेश मलिक, पाला निडानी, मनबीर ईगराह, राजेश शामलो खुर्द, रणबीर मलिक निडाना, राममेहर निडाना, रामदेव ललित खेड़ा सहित एक दर्जन से भी ज्यादा मास्टर ट्रेनर केंद्र पर मौजूद हैं, जो मेले में आने वाले किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा कर रहे हैं। किसानों को कीटों की पहचान करवाने के लिए कीट साक्षरता केंद्र पर किसानों ने सभी मासाहारी व शाकाहारी कीटों के बैनर बनवाकर लगाए हुए हैं और इन बैनरों के माध्यम से किसानों को कीटों की पहचान करवाई जा रही है। केंद्र पर आने वाले अधिकतर किसान इनके अनुभव से संतुष्ट नजर आते हैं तो कुछ असंतुष्ट होकर सीधे अलगे स्टाल पर पहुंच जाते हैं। कुछ किसान कीट प्रबंधन को लेकर इन किसानों के साथ बहस भी करते हैं और बहस के बाद निकलने वाले निचोड़ से अपना अनुभव बढ़ा रहे हैं। रायचंद वाले से आए रामधारी, बिशनपुरा से आए अजीत, राजेश, कुलदीप ने बताया कि कीट साक्षरता केंद्र से उन्हें नई जानकारी उपलब्ध हुई है और भविष्य में वे भी कीट प्रबंधन को अपनाएंगे। इसके विपरित गोबिंदपुरा से आए जवाहर नामक एक किसान की जिज्ञासा यहां पूरी होती नजर नहीं आई।
छोटे शहरों के किसानों को भी नई तकनीकों के बारे में जागरुक करना है उद्देश्य
सैन्चरी इवेंट पलेनर ग्रुप के इवेंट मैनेजर अनिल रेढू व मैनेजर सुखबीर ड्रेलिया ने बताया कि इस तरह के मेलों का आयोजन हमेशा ही बड़े-बड़े शहरों में किया जाता है, जिस कारण खेती के क्षेत्र में आने वाली नई तकनीक समय पर किसानों तक नहीं पहुंच पाती हैं। इससे छोटे शहरों के किसान पिछड़ रहे हैं। जींद जैसे शहर में इतने बड़े मेले का आयोजन करने के पीछे उनका उद्देश्य छोटे शहरों के किसानों को भी नई तकनीकों के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाना है, ताकि छोटे किसान भी इन तकनीकों का लाभ ले सकें।




दूसरी पंचायतों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाएगा आईटी विलेज

नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश की पहली हाईटेक पंचायत बीबीपुर अब गंदगी के खिलाफ विशेष मुहिम छेड़ेगी। पंचायत ने गंदगी को ठिकाने लगाने के लिए ठोस कचरा प्रबंधन का प्रोजेक्ट तैयार किया है। पंचायत द्वारा ठोस कचरा प्रबंधन प्रोजेक्ट पर दो लाख से भी ज्यादा रुपए खर्च किए जाएंगे। पंचायत द्वारा 1 लाख 30 हजार रुपए की लागत से गांव में एक शैड तैयार किया गया है तथा गांव की गंदगी को शैड में डालने के लिए 20 हजार रुपए से रिक्शा खरीदी गई हैं। पंचायत द्वारा प्रोजेक्ट को शत प्रतिशत कारगर बनाने के लिए प्रत्येक घर में एक-एक कूड़ादान रखा जाएगा। प्रत्येक कूड़ादान में दो पार्ट होगे, एक भाग में ज्वलनशील तथा दूसरे भाग में अज्वलनशील कूड़ा एकत्रित किया जाएगा और इसी तरह कूड़े को शैड में डाला जाएगा। शैड में भी ज्वलनशील व अज्वलनशील कूड़े के लिए दो अलग-अलग भाग तैयार किए गए हैं। शैड में एकत्रित इस कूड़े से जो जैविक खाद तैयार होगा उस जैविक खाद को पंचायत अपनी आमदनी का जरिया बनाएगी। पंचातय द्वारा उठाए गए इस कदम से प्रशासन अन्य पंचातयों को भी स्वच्छता का पाठ पढ़ाएगा।
आईटी विलेज बीबीपुर ने इंटरनेट पर धूम मचाने के बाद अब गंदगी के खिलाफ विशेष मुहिम छेड़ी है। गांव की गंदगी को ठिकाने लगाने के लिए पंचायत ने ठोस कचरा प्रबंधन का प्रोजेक्ट तैयार किया है। इसके लिए पंचायत ने गांव में एक शैड तैयार करवाया है, जहां गांव की सारी गंदगी डाली जाएगी। शैड को दो भागों में बांटा गया है। एक भाग में ज्वलनशील तथा दूसरे भाग में अज्वलनशील कचरा डाला जाएगा। योजना को मूर्त रुप देने के लिए पंचातय ने कवायद शुरू कर दी है। इस प्रोजेक्ट के लिए पंचायत ने दो लाख से भी  ज्यादा का बजट तैयार किया है। योजना को शत प्रतिशत सफल बनाने के लिए सभी घरों में कूड़ादान रखे जाएंगे। इसके लिए पंचायत ने 300 कूड़ेदान के आॅडर दिए हैं। जैसे ही कूड़ादान गांव में पहुंच जाएंगे,  तभी घरों पर कूड़ादान रख दिए जाएंगे। कूड़ादान में भी दो अलग-अलग भाग पार्ट होंगे। एक पार्ट में ज्वलनशील तथा दूसरे पार्ट में अज्वलनशील कूड़ा डाला जाएगा। कूड़े को घर से शैड तक पहुंचाने के लिए 2 सफाई कर्मचारी व एक सुपरवाइजर नियुक्त किया गया है। दोनों सफाई कर्मचारियों को पंचायत द्वारा एक-एक रिक्शा उपलब्ध करवाया गया है। सफाई कर्मचारी हर रोज घर-घर जाकर कूड़ा उठाकर शैड में डालेंगे। योजना में किसी प्रकार की आर्थिक रुकावट आड़े न आए, इसके लिए पंचायत ने प्रत्येक घर से दस-दस रुपए की उगाही की है। इसके अलावा पंचायत द्वारा प्रोजेक्ट पर अपने खाते से लगभग दो लाख रुपए अलग से खर्च किए जाएंगे। शैड में एकत्रित कचरे से जो जैविक खाद तैयार होगा उसे पंचायत अपनी आमदनी का जरिया बनाएगी। पंचायत शैड में तैयार होने वाले जैविक खाद को सरकारी रेट के अनुसर कृषि विभाग को बेचेगी और इससे जो आमदनी होगी उसे आमदनी को दोबारा से इसी प्रोजेक्ट में लगाया जाएगा।

पंचायत के राजस्व में होगी बढ़ोतरी

ठोस कचरा प्रबंधन से गांव की गंदगी खत्म होगी और तभी गांव सही मायने में निर्मल गांव बन पाएगा। गंदगी के साथ-साथ गांव से बीमारियां भी खत्म होंगी। पंचायत द्वारा उठाए गए इस कदम से सरकार द्वारा शुरू करवाए गए सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान को भी गति मिलेगी। इस प्रोजेक्ट के शुरू होने से जहां गांव से गंदगी मिटेगी, वहीं यह प्रोजेक्ट पंचायत के लिए आमदनी का जरिया भी बनेगा। कूड़े से जैविक खाद तैयार कर सरकारी रेट पर कृषि विभाग को बेचा जाएगा। इससे पंचातय के राजस्व में बढ़ोतरी होगी।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

सावधान! कहीं आस्था पर भारी ना पड़ जाए लालच की मार

पिछले वर्ष कुट्टू के आटे से हुई घटनाओं के बाद भी नींद से नहीं जागा प्रशासन

दुकान में स्टोक में रखा कुट्टू का आटा।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
पिछले वर्ष नवरात्रों में कुट्टू के आटे ने जमकर तांडव मचाया था। स्वास्थ्य विभाग तथा खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की सुस्ती का खामियाजा हजारों श्रद्धालुओं को भुगतना पड़ा था। पिछले वर्ष कुट्टू का आटा खाने से हुई घटनाओं से इस बार भी जिला प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया है। माता के नवरात्रे शुरू हो चुके हैं, लेकिन जिला प्रशासन गहरी नींद में है। गत वर्ष हजारों को दर्द देने वाला यह आटा इस वर्ष भी बाजार में बिकने के लिए बेताब है, लेकिन जिला प्रशासन लकीर का फकीर बना हुआ है। अभी तक प्रशासन ने आटे के सैंपल लेने तक की जहमत नहीं उठाई है। जिला प्रशासन की इस लापरवाही के कारण इस वर्ष भी व्यापारी करोड़ों की चांदी कूटकर हजारों को जख्म देकर साफ निकल जाएंगे और बाद में जिला प्रशासन के पास सिर्फ लकीर पिटने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।
माता के नवरात्रे 23 मार्च से शुरू हो चुके हैं और जिले में नवरात्रों की तैयारियां जोरों पर हैं। कट्टू के आटे का बाजार सज चुका है और श्रद्धालुओं ने नवरात्रों के लिए कुट्टू के आटे की खरीदारी भी शुरू कर दी है। प्रदेश में पिछले वर्ष कुट्टू के आटे ने जमकर अपना असर दिखया था। पिछले वर्ष प्रदेश में कुट्टू का आटा खाने से तीन हजार से भी ज्यादा लोग बीमार हुए थे। बाद में स्वास्थ्य विभाग तथा खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की लापरवाही जनता के सामने उजागर होने के बाद विभाग ने आनन-फानन में कई जगह छापेमारी भी की थी, लेकिन तब तक जहर रुपी आटा अपना असर दिखा चुका था। व्यापारियों ने अपने मुनाफे के लालच में पुराना आटा बेचा था। पिछले वर्ष हुए घटनाक्रम के बाद भी अभी तक स्वास्थ्य विभाग की नींद नहीं टूटी है। नवरात्रे शुरू हो चुके हैं और स्वास्थ्य विभाग तथा खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने आटे की जांच के लिए सैंपल लेने तक का कष्ट नहीं उठाया है। शायद इस बार भी प्रशासन को माता के भक्तों का अस्पताल पहुंचने का इंतजार है।
क्यों बदनाम है कुट्टू
दवाओं में इस्तेमाल होने वाला कुट्टू अपने रासायनिक व्यवहार के कारण बदनाम है। चिकित्सकों के अनुसार कुट्टू का आटा गरम होता है। इससे शरीर में कार्बोहाइड्रेट और ग्लूकोज का स्तर बढ़ता है। कुट्टू में वसा अधिक होती है। इस आटे का प्रयोग अधिकतम एक माह तक उपयोग में लाया जा सकता है। ज्यादा दिन रखने से आटे में बैक्टीरिया और फंगस लग जाते हैं। कुट्टू का आटा ज्यादा दिनों तक रखे होने की स्थिति में माइक्रोटाक्सिन का निर्माण हो जाता है, जोकि शरीर के लिए हानिकारक है। खराब कुट्टू के आटे को खाने से उल्टी के साथ चक्कर आने लगते हैं। बेहोशी भी आ सकती है। शरीर ढीला पड़ने लगता है। ज्यादा दिनों तक रखे कुट्टू के आटे से बने पकवान खाने से लोग फूड प्वाइजनिंग के शिकार होते हैं। सही मायने में कुट्टू का आटा खाने से लोगों के अस्पताल तक पहुंचने के जिम्मेदार वो फैक्ट्री वाले हैं, जो खराब कुट्टू को पीसकर आटा बाजार में बेचते हैं। वे लोग जिम्मेदार हैं, जो ठीक से इस आटे की पैकेजिंग नहीं करते और नमीं के संपर्क में आने पर इस आटा में रासायनिक क्रियाएं होती हैं और यह जहर बन जाता है। पिछले वर्ष जहरीला कुट्टू का आटा खाने से लोगों के बीमार होने के काफी मामले सामने आए थे, जिस कारण लोगों को कुट्टू के आटे से विश्वास उठ गया।
आस्था से खिलवाड़
व्यापारी पैसे के लालच में कुट्टू के आटे में व्रत के वर्जित आटा मिलाते हैं। कुट्टू का ब्रांडेड आटा बाजार में 70 से 80 रुपए किलो तक आता है। आम आटा 20 से 30 रुपए किलो में उपलब्ध है। ऐसे में व्यापारी चांदी कुटने के चक्कर में महंगे आटे में सस्ता आटा मिलाकर कमाई करते हैं। इस प्रकार व्यापारी अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ करते हैं।
सैंपल लेने के लिए टीम गठित की गई हैं
मिलावटखोरों के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग ने कमर कस ली है। कुट्टू के आटे के सैंपल लेने के लिए तीन सदस्यीय टीम का गठन किया गया है। टीम बाजार में छापेमारी करेगी। सभी दुकानों पर जाकर आटे के सैंपल लिए जाएंगे। मिलावट खोरों को किसी भी कीमत पर बख्श नहीं जाएगा।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद


गुरुवार, 22 मार्च 2012

सरकारी योजनाओं के नाम पर उद्यान विभाग में चल रहा फर्जीवाड़ा!

जांच की मांग को लेकर उपायुक्त से मिले किसान क्लब के सदस्य
आज समाज नेटवर्क
जींद।
जिला उद्यान विभाग प्रगतिशील किसानों के लिए आई योजनाओं में जमकर फर्जीवाड़ा कर रहे है। सरकार की तरफ से प्रगतिशील किसानों को प्रोत्साहन करने के लिए मिनी कीट भेजी गई थी, लेकिन इन कीटों को उद्यान विभाग के अधिकारियों ने गलत तरीके से बांट दिया है। मिनी कीट पात्र किसानों को न देकर अपने चेहेतों में वितरित कर दी। उद्यान विभाग में दूसरा फर्जीवाड़ा तब सामाने आया जब विभाग द्वारा किसानों को तकनीकी ज्ञान देने के लिए भेजे गए टूर पर अधिकतर ऐसे लोगों को ले जाया गया जिनका खेतीबाड़ी से कोई संबंध ही नहीं हैं। इस प्रकार अधिकारियों ने तकनीक टूर पर भी किसानों की बजाए अपने चहेतों को ही प्राथमिकता दी। मामले का खुलासा चौधरी छोटू राम किसान क्लब घिमाना के सदस्यों ने किया। किसान क्लब के सदस्यों ने बुधवार को उपायुक्त से मिलकर मामले की जांच करने की मांग की। उपायुक्त ने मामले को गंभीरता से लेते हुए क्लब के सदस्यों को निष्पक्ष मामले की जांच का आश्वासन दिया।
एक तरफ सरकार किसानों को आर्थिक रुप से सुदृढ़ करने के उद्देश्य से तकनीकी खेती को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है और हर वर्ष किसानों को भारी सब्सिडी पर कीट की उपलब्ध करवाती है। लेकिन दूसरी तरफ बाड़ ही खेत को खा रही है। जब बाड़ ही खेत को खाए तो फिर खेत का क्या कसूर है। सरकारी अधिकारी अपनी पैठ जमाने तथा अपने चहेतों को खुश करने के चक्कर में सरकार की योजनाओं पर पलीता लगा रहे हैं। ऐसे ही मामले फिलहाल जिला उद्यान विभाग में सामने आ रहे हैं। सरकार द्वारा प्रगतिशील किसानों को प्रोत्साहन करने के लिए भेजी गई मिनी कीटों में हुआ फर्जीवाड़ा भी अब सामने आने लगा है। चौधरी छोटू राम किसान क्लब घिमाना के प्रधान पवन बीबीपुर, सचिव रामपाल घिमाना, सलाहकार सुनील आर्य, दिलबाग घिमाना, रामप्रसाद, सत्यवान ने उद्यान विभाग के अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि उद्यान विभाग के अधिकारियों ने सरकार की तरफ से किसानों के लिए भेजी गई मिनी कीटों का वितरण गलत तरीके से किया है। उद्यान विभाग के अधिकारियों ने सभी कीटें •भाई-भतीजावाद नीति के तहत वितरित कर दी, जबकि पात्र किसानों को कीट मिली ही नहीं। इसके अलावा किसानों को तकनीकी ज्ञान देने के लिए उद्यान विभाग द्वारा सोमवार को भेजे गए टूर में भी अधिकारियों ने ऐसे किसानों को भेज दिया, जो किसान ही नहीं हैं। क्लब के सदस्यों ने कहा कि टूर में उद्यान विभाग के अधिकारियों ने तो किसानों से टूर के लिए आवेदन मांगे और न ही किसी किसान को टूर का निमंत्रण भेजा। इस प्रकार टूर पर पात्र किसानों की बजाए आपने चहेतों को भेज दिया। जिला उद्यान विभाग में चल रहे फर्जीवाड़ी की शिकायत लेकर किसान क्लब के सदस्य प्रधान पवन बीबीपुर के नेतृत्व में उपायुक्त युद्धवीर सिंह ख्यालिया से मिले और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उपायुक्त ने क्लब के सदस्यों को मामले की जांच कर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया।
एचडीओ को सौंपी गई थी टूर की जिम्मेदारी
मैं अभी यहां नया हूं। हाल ही में मैने यहां का चार्ज संभाला है और कीटों का वितरण मेरे चार्ज संभालने से पहले हुआ है। इसलिए इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। किसानों के टूर पर जो सवाल उठ रहे हैं, उनका जवाब किसानों के टूर से वापिस लौटने के बाद दिया जाएगा। क्योंकि किसानों को टूर पर ले जाने की जिम्मेदारी एचडीओ को सौंपी गई थी और एचडीओ की देखरेख में ही किसानों का टूर गया है। टूर से लौटने के बाद एचडीओ से टूर पर जाने वाले किसानों की सूची मांगी जाएगी।
बलजीत भयाना, डीएचओ
जिला उद्यान विभाग, जींद

डीएचओ से की जाएगी बातचीत
चौधरी छोटू राम किसान क्लब घिमाना के सदस्यों ने जिला उद्यान विभाग के अधिकारियों पर मिनी कीटों का गलत तरीके से आवंटन करने तथा टूर पर अपात्र लोगों को ले जाने के आरोप लगाए हैं। मामले की जांच के लिए जिला उद्यान विभाग अधिकारी से बातचीत की जाएगी तथा किसान क्लब के सदस्यों की सभी समस्याओं का समाधान किया जाएगा।
डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया
उपायुक्त, जींद




मंगलवार, 20 मार्च 2012

विद्यार्थियों के शैक्षणिक भ्रमण के सपने पर बजट का ग्रहण

जिले से 23935 विद्यार्थियों को भेजा जाना था टूर पर 
 नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की शैक्षणिक भ्रमण पर जाने की तमन्ना अधूरी ही रह गई। सर्व शिक्षा अभियान द्वारा विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने की यह योजना फाइलों में ही दफन होकर रह गई है। इस योजना के तहत जिले से 23935 स्कूली बच्चों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजा जाना था। इसके लिए प्रत्येक स्कूल को एसएसए की तरफ से 10 हजार रुपए का बजट उपलब्ध करवाया गया था। एसएसए द्वारा सभी स्कूली मुखियाओं को विद्यार्थियों को भ्रमण पर ले जाने के लिए केवल रोडवेज की बस के प्रयोग के निर्देश दिए गए थे। लेकिन स्कूल मुखियाओं के लिए 10 हजार रुपए के बजट से टूर का खर्च तो दूर रोडवेज का किराया निकालना भी मुश्किल था। इस प्रकार बजट की मार ने स्कूली बच्चों के शैक्षणिक भ्रमण पर जाने की इस योजना पर ग्रहण लगा दिया।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूली बच्चों को सैर करवाने का वायदा फिलहाल वायदा ही नजर आ रहा है। स्कूली बच्चों ने जो सर्व शिक्षा अभियान के तहत सैर पर जाने का सपना देखा था वो बजट की कमी ने चकनाचूर कर दिया है। इस योजना के तहत जिले के सभी  स्कूल मुखियाओं को लैटर जारी किए गए थे कि उनके स्कूलों से बच्चों को शैक्षणिक भ्रमण पर रोडवेज की बसों के माध्यम से ले जाया जाएगा। इन आदेशों के बाद स्कूली बच्चों ने भ्रमण के सपने बुनने शुरू कर दिए थे, जो फिलहाल सपना ही बनकर रह गए हैं। एसएसए द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले के सभी स्कूल विद्यार्थियों को नवंबर व दिसंबर माह में ही शैक्षणिक भ्रमण पर ले जाना था, लेकिन स्थिति यह है कि नवंबर माह से अब तक जींद जिले से एक स्कूल से भी बच्चे भ्रमण पर नहीं जा सके हैं। जबकि एसएसए की इस योजना के तहत जिले से 23935 विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण करवाना था। एसएसए का बच्चों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजना का उद्देश्य किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाना था। जो अब केवल कागजों तक ही सीमित रह गया है।
योजना में रोडवेज बस का भी फंसा पेंच
एसएसए द्वारा सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अपर प्राइमरी विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजन की जो योजना तैयार की थी, उस योजना में रोडवेज की बस के प्रयोग का पेंच भी फंस गया। एसएसए द्वारा सभी  स्कूल मुखियाओं को लिखित में स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि बच्चों को टूर पर ले जाने के लिए केवल रोडवेज की बस का ही प्रयोग किया जाए। रोडवेज के नियम के अनुसार अगर रोडवेज की बस की बुकिंग की जाती है तो, सम्बंधित पार्टी को रोडवेज को 52 सवारियों के आने व जाने के किराये का भुगतान करना होता है, जबकि निजी वाहन इससे कम किराये में बुकिंग पर चले जाते हैं। बजट कम और रोडवेज का किराया ज्यादा होने के कारण भी  स्कूल मुखियाओं ने टूर को रद्द करने में ही भलाई समझी।
क्या थी योजना    
सर्व शिक्षा अभियान ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से उन्हें शैक्षणिक भ्रमण पर भेजने की योजना तैयार की थी। इस योजना के तहत जिले के सभी अपर प्राइमरी सरकारी स्कूलों से विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजा जाना था। इस योजना के अंतर्गत जिले के प्रत्येक स्कूल से 50 लड़के व 50 लड़कियों के बैच बनाकर भ्रमण के लिए भेजने थे। जिसके तहत प्रत्येक विद्यार्थी पर 200 रुपए खर्च करने का प्रावधान था। योजना के तहत नौंवी से बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों को 100 किलोमीटर के दायरे में आने वाले किसी भी टूरिस्ट पैलेस पर ले जाया जाना था। जिले के 23935 विद्यार्थियों को टूर का लाभ मिलना था।
नियमों में कर दिया था परिर्वतन
सर्व शिक्षा अभियान ने रोडवेज के ज्यादा किराये को देखते हुए बाद में नियमों में परिर्वतन कर दिया था। परिवर्तन किए गए नियमों के अनुसार विद्यार्थियों को भ्रमण पर ले जाने के लिए प्राइवेट वाहन का सहारा लिया जा सकता था। नियमों में परिवर्तन करने के बाद सभी स्कूल मुखियाओं दोबारा से निर्देश भी जारी कर दिए थे और इसकी जिम्मेदारी बीईओ को सौंपी गई थी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
एसएसए, जींद

निडाना के किसान ने खोजा नया परजीवी खरपतवार

 सरसों की फसल में मौजूद खरपतवार को दिखाता किसान व मौजूद कृषि अधिकारी।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
खेतीबाड़ी की समझ के मामले में निडाना के किसान अच्छे-अच्छे वैज्ञानिकों को मात दे रहे हैं। कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देने तथा फसल में मौजूद कीटों के जीवनचक्र के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटाने की इनकी यह जिज्ञासा हर रोज किसी न किसी नई खोज को जन्म दे रही है। अब निडाना गांव के एक जागरुक किसान ने सरसों की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले एक ऐसे परजीवी ख्ररपतवार को ढूंढा है, जिसके बारे में कृषि वैज्ञानिक भी ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं। इतना ही नहीं अब इस किसान ने रुखड़ी (ओरबंकी) नामक इस खरपतवार का तोड़ भी खुद ही ढूंढ़ लिया है। निडाना गांव के रणबीर मलिक द्वारा खोजे गए इस नए परजीवी खरपतवार पर सर्च करने के लिए उनके साथ खेत में मौजूद उपमंडल कृषि अधिकारी ने इसका सेंपल भी लिया है। ताकि इस खरपतवार के बारे में पूरी जानकारी जुटाकर किसानों को इसके बारे में जागरुक किया जा सके।
खेतीबाड़ी के क्षेत्र में निडाना गांव के किसान आज देश में अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं। इन किसानों की सफलता के चर्चेआज दूर-दूर तक फैल चुके हैं। कीट प्रबंधन में माहरत हासिल करने वाले इस गांव के रणबीर मलिक नामक एक किसान ने अब सरसों की फसल में मौजूद एक नई खरपतवार को ढुंढ निकाला है। सरसों की फसल में पाई जाने वाली यह खरपतवार पूरी तरह से परजीवी है। रुखड़ी (ओरोबंकी) नामक यह खरपतवार सरसों के पौधे की जड़ से ही अपना भेजन तैयार कर अपना जीवन चक्र चलाती है। किसान रणबीर मलिक ने बताया कि सरसों के पौधे की जड़ पर निर्भर होने के कारण यह परजीवी खरपतवार सरसों की जड़ों से खुराक खींचती है। जिस कारण सरसों की फसल पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मलिक ने बताया कि बीज से पैदा होने वाला यह खरपतवार अपना आधा जीवन चक्र जमीन के अंदर ही चलाता है और सरसों के पौधे से अपना कनेक्शन जोड़कर उससे खुराक व पानी ग्रहण करता है। इसके बाद अपनी वंशवृद्धि या बीज पैदा करने के लिए ही यह खरपतवार जमीन से बाहर निकलता है। रणबीर को भी इस खरपतवार का पता उस वक्त लगा जब वह अपनी पत्नी अनिता के साथ खेत में सरसों की फसल की कटाई कर रहा था। सरसों की फसल में मौजूद इस नए परजीवी खरपतवार को देख कर रणबीर मलिक इस खरपतवार के जीवन चक्र की खोज में जुट गया और आखिरकार उसने सफलता हासिल कर ही ली। रणबीर मलिक द्वारा की गई इस नई खोज को देखकर मौके पर मौजूद उपमंडल कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र मलिक ने भी इस पर सर्च करने के लिए इसका सैंपल लिया। ताकि इस खरपतवार के बारे में विस्तार से जानकारी जुटाकर किसानों को जागरुक किया जा सके।
खेत में सरसों की जगह करें अन्य फसलों की बिजाई।   
सरसों की फसल में पाया जाने वाला यह खरपतवार पूरी तरह से सरसों की जड़ों पर निर्भर करता है। इसका बीज बहुत बारीक होता है तथा सरसों पकने से पहले ही खेत में बिखर कर अगली पीढ़ी के रास्ते खोलता है। यह परजीवी खरपतवार सरसों की फसल में दादरी, झज्जर, लोहारू, रिवाड़ी व  बावल आदि इलाकों में पाया जाता है। वहां के किसान इस का प्रयोग पशुओं के चारे के तौर पर करते हैं। क्योंकि यह खरपतवार पशुओं का दूध बढ़ाने के काम आती है। यहां के खेतों में यह खरपतवार पहली बार ही दिखाई दिया है। किसान इसे रुखड़ी (ओरोबंकी) के नाम से जानते हैं। इसे मरगोजा भी कहा जाता है। इस खरपतवार को नष्ट करने के लिए कोई खरपतवारनाशी नही बना है। इस खरपतवार पर केवल बीजमारी के जरिए ही काबू पाया जा सकता है। इस पौधे के बीज बन्ने से पहले ही इसे काट करके इक्कठा करें व जला दें या फिर उस खेत में सरसों की जगह चन्ना, जों व गेहूं की खेती करें। इसके अलावा इसकी पैदावार को रोकने के लिए किसान सरसों के बीज को सोयाबीन या अरंडी के तेल में भिगो कर बिजाई करें।
डा. सुरेंद्र दलाल  
कृषि विशेषज्ञ, जींद



तेरी याद ‘जा’ रही है.....

नरेंद्र कुंडू
जींद।
परीक्षा का भूत विद्यार्थियों पर इस कदर हावी हो चुका है कि वे अच्छे अंक प्राप्त करने, याददाशत बढ़ाने और एनर्जी लेवल मेनटेन रखकर तनाव कम करने के लिए दवाओं कार निर्भर हो चुके हैं। कंपीटीशन का दौर है, लिहाजा वे पिछे नहीं रहना चाहते। आगे निकलने की होड़ में वे अपने ही स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि एनर्जी बढ़ाने के लिए जिन दवाओं का सहारा लेने की वे नादानी कर रहे हैं, वही उनके •ाविष्य को गहन अंधकार में डुबो देगी। ऐसी दवाओं का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव दिमाग व लिवर पर पड़ता है। तनाव से मुक्ति दिलाने वाला यह धीमा जहर धीरे-धीरे उनकी रगों में फैलकर खोखला कर रहा है। दवा निर्माता कंपनियां अवसर को भुनाने से नहीं चूक रही हैं। तनाव कम करने तथा याददाशत बढ़ाने के भ्रामक प्रचार कर रही हैं और भावी पीढ़ी लुट रही है। समय की मांग है कि लिहाजा अभिभावकों का दबाव भी कम नहीं है। उज्जवल भविष्य के लिए परीक्षा में अच्छे अंक लाने की अनिवार्यता जाहिर है। यह महत्वाकांक्षा और प्रतिस्पर्धा छात्रों के रास्ते का कांटा बन गई है। वे गहरे अवसाद में जा रहे हैं। तनाव के चलते याद किया टॉपिक भी भूल रहे हैं। समस्या से निजात पाने के लिए वे बाजारों का रुख करते हैं और याददाशत और एनर्जी लेवल बढ़ाने वाली दवाइयों की मांग कर रहे हैं। अच्छी काउंसलिंग की कमी के कारण विद्यार्थी पथभ्रष्ट होकर अपनी बची-खुची प्रतिभा भी खो रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 60 प्रतिशत से ज्यादा विद्यार्थी ऐसी दवाओं पर निर्भर हो चुके हैं। दवा निर्माता कंपनियां अपनी जेब भरने के चक्कर में पहले तो हौव्वा पैदा करती हैं, फिर उनसे निजात दिलाने के लिए प्रलोभनों के जाल में फंसा लेती हैं। हालांकि तनाव कम करने तथा याददाशत बढ़ाने की दवाएं प्राय: प्रतिबंधित होती हैं और इन्हें बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लिया जा सकता। इसके बावजूद हर मेडिकल स्टोर पर इन्हें बेहिचक बेचा जा रहा है। एक केमिस्ट ने बताया कि परीक्षा करीब आते ही याददाशत बढ़ाने वाली दवाइयों के खरीदारों की संख्या में इजाफा हो जाता है। शहर में याददाशत के साथ-साथ एनर्जी बढ़ालने वाले पाउडर, कैप्सूल व सीरप की बिक्री भी 40 फीसदी तक बढ़ गई है। मेमोरी में इजाफा करने के चाहवान विद्यार्थियों में सर्वाधिक संख्या साइंस संकाय या प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रतिभागियों की होती है। सूत्रों के अनुसार जिलेभर में सालाना लगभग 50 लाख रुपए की ऐसी दवाओं का कारोबार हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग इन पर लगाम लगाने में बेबस है।
बढ़ जाती हैं रोगों की संभावनाएं
याददाश्त बढ़ाने की कोई दवाइया नहीं आती। दवा कंपनियां झूठा प्रचार कर लोगों को गुमराह करती हैं। इस तरह के भ्रामक प्रचार से बचना चाहिए। इस तरह की दवाइयां शॉर्ट टर्म के लिए भले ही फायदा करती हों, लेकिन इनके लांग टर्म साइड इफेक्ट काफी देखे जा रहे हैं। वैज्ञानिक तौर पर ये दवाइयां अपडेट नहीं होती, साथ ही इनमें स्टीरॉयड की मात्रा रहती है, जिससे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, चिड़चिड़ापन होना, नींद न आना व आंखें भारी होना तथा हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती हैं। अंदर ही अंदर इन दवाइयों का धीमा जहर शरीर को खोखला कर देता हैं। जिसका सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव दिमाक व लीवर पर पड़ता है।
डा. विकास फौगाट, मनोचिकित्स
सामान्य अस्पताल, जींद
बच्चों पर न दे ज्यादा दबाव
परीक्षा का समय छात्रों के लिए बेहद संवेदनशील होता है, इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि उनपर पढ़ाई का जरूरत से अधिक दबाव नहीं डालें बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करने का प्रयास करें। अभिभावक बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार बनाएं ताकि वे तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सकें। अभिभावक अपने बच्चों की मानसिक क्षमता को समझें। दूसरे के बच्चों से अपने बच्चों की तुलना ना करें। यदि बच्चा गुमसुम रहता हो तो उसकी तुरंत काउंसिलिंग कराएं। समय-समय पर बच्चे को दूध, जूस, फल, बादाम मिल्क और मिल्क से बने प्रोडक्ट दें, क्योंकि ये प्रोडक्ट बच्चे की याददाश्त के साथ एनर्जी लेवल भी बढ़ाते हैं।
नरेश जागलान, मनोवैज्ञानिक
नहीं बिक सकती ऐसी दवाएं
ऐसी दवाएं दुकानों पर नहीं बेची जा सकती हैं। इनकी बिक्री पर प्रतिबंध है। सरकार से लाइसेंसशुदा दवाएं ही बिक सकती हैं। समय-समय पर मेडिकल स्टोरों की चेकिंग की जाती है। आने वाले समय में अभियान तेज किया जाएगा।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

....अब पप्पू नहीं होगा फेल

प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में नए सत्र से लागू होगी सतत समग्र मूल्यांकन प्रणाली
नरेंद्र कुंडू
जींद।
अब पप्पू कभी फेल नहीं होगा। देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 लागू होने के बाद प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में भी सत्त एवं समग्र मूल्यांकन प्रणाली लागू कर दी गई है। इसके तहत अब अध्यापकों को कक्षा में पढ़ाते समय ही बच्चे का समग्र मूल्यांकन करना होगा। अध्यापक द्वारा बच्चे की मासिक अर्द्धवार्षिक व वार्षिक परीक्षाफल का विश्लेषण कर बच्चों की कमजोरियां पता की जाएंगी और उनका निदान करने हेतु उपचारात्मक शिक्षण किया जाएगा। यदि किसी बच्चे की कमी में कोई सुधार नहीं हो रहा तो अध्यापक को उस बच्चे पर अतिरिक्त समय लगाना होगा। इसी तरह बच्चे की लिखित एवं मौखिक अभिव्यक्ति जांचने के उद्देश्य से लिखित एवं मौखिक दोनों तरह के आकलन की व्यवस्था लागू की जा रही है। शिक्षा सत्र 2011-12 से पायलट आधार पर इसे लागू किया जाएगा। शिक्षा विभाग ने एसएसए के जिला मुख्यालय पर नोट बुक भेज दी हैं। अब सभी स्कूलों को नोट बुक उपलब्ध करवाने की व्यवस्था सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए)को स्वयं करनी है।
आठवीं कक्षा तक का कोई बच्चा अब सालाना परीक्षा में पूछे गए कुछ  प्रश्नों के आधार पर पास या फेल नहीं किया जाएगा। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत अध्यापकों को बच्चे का समग्र मूल्यांकन करना होगा और कक्षा में ही बच्चे की प्रगति रिपोर्ट का लेखा-जोखा तैयार करना होगा। मूल्यांकन में बच्चे की नेतिक, सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक विकास की जानकारी उसकी आदतें, व्यवहार आदि शामिल आदि शामिल होंगे, जिनके आधार पर बच्चे को अंक दिए जाएंगे। बच्चे का यदि कोई पक्ष कमजोर है तो उसे अतिरिक्त कक्षाओं में पढ़ाकर इस लायक बनाया जाएगा कि वह कभी फेल न हो। इसके लिए शिक्षा विभाग द्वारा अध्यापकों को अलग से ट्रेनिंग दी जा रही है कि अध्यापकों को किस तरह से बच्चे का मूल्यांकन कर बच्चे की कमजोरियों को दूर करना है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 29-(2) की उपधारा (1) में कहा गया है कि मूल्यांकन प्रक्रिया ऐसी हो, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो। इस नई प्रणाली में बच्चे के समझने की शक्ति का और उसे उपयोग करने की उसकी योग्यता का व्यापक और सतत मूल्यांकन शामिल है। इसके अलावा धारा 24 (2) घ में प्रत्येक बच्चे की शिक्षा ग्रहण करने की सामर्थ्य का निर्धारण करना और यदि जरूरत हो तो अतिरिक्त शिक्षा देना व माता-पिता के साथ नियमित बैठकें करना शामिल हैं। मूल्यांकन प्रणाली के लिए 11 चरण शामिल किए गए हैं। इसके तहत श्रम करने, संग्रह करने, आंकड़ों का विश्लेषण करने, समूह परियोजना बनवाने में बच्चों का सहयोग, अनु•ाव बांटना, छात्र की प्रोफाइल बनाना और बच्चों द्वारा किए गए कार्यों का विवरण शामिल करना, भ्रमण आदि शामिल हैं। इसी तरह बच्चे की लिखित एवं मौखिक अभीव्यक्ति जांचने के उद्देश्य से लिखित एवं मौखिक दोनों तरह के आकलन की व्यवस्था लागू की जा रही है। शिक्षा सत्र 2011-12 से पायलट आधार पर दो सेमेस्टर प्रणाली लागू की जाएगी। शिक्षा की गुणवत्ता एवं उपचारात्मक शिक्षण की सुनिश्चितता बनाए रखने हेतु राज्य स्तर से मानीटरिंग की जाएगी। शिक्षा विभाग ने नए सत्र से योजना को मूर्त रुप देने के लिए सभी स्कूलों में नोट बुक उपलब्ध करवाने की कवायद शुरू कर दी है। स्कूलों तक नोट बुक पहुंचाने की जिम्मेदारी एसएसए को सौंपी गई है।

बच्चे का लेखा-जोखा होगा तयार 
सतत एवं समग्र मूल्यांकन प्रणाली के तहत अब प्राथमिक से आठवीं कक्षा तक के किसी भी बच्चे को फेल नहीं किया जाएगा। इस प्रणाली के तहत अध्यापकों को बच्चे का समग्र मूल्यांकन कर उसकी कमजोरी को दूर करने के लिए उसका लेखा-जोखा तैयार किया जाएगा। जिस क्षेत्र में बच्चे की रुची होगी उसी के अनुसार बच्चे पर ध्यान दिया जाएगा। शिक्षा विभाग द्वारा भेजी गई नोट बुकों को स्कूलों तक पहुंचाने के लिए एसएसए ने कार्रवाई शुरू कर दी है, ताकि नए सत्र से योजना को सही ढंग से लागू किया जा सके।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
सर्वशिक्षा अभियान, जींद


हाईटेक पंचायत बीबीपुर ने फेसबुक पर दी दस्तक

ग्राम पंचायत बीबीपुर का लोगो।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश की पहली हाईटेक पंचायत ने अब सोसल साइट्स फेसबुक के माध्यम से दूसरी पंचायतों के लिए जागरूकता अभियान शुरू किया है। पंचायत द्वारा गांव में होने वाली सभी गतिविधियों को फेसबुक पर डाला जाता है, ताकि प्रदेश के अन्य पंचायतों के सरपंच व पंचों को पंचायतों के अधिकारों के बारे में जागरुक किया जा सके। ग्राम पंचायत का फेसबुक से जुड़ने का मुख्य उद्देश्य शहरी क्षेत्र के लोगों को गांव में होने वाली गतिविधियों से परिचित करवाना तथा गांव को शहरों की तर्ज पर विकसित करना है। इसके अलावा पंचायत द्वारा फेसबुक पर देश की दूसरी पंचायतों को स्वच्छता कार्यक्रम, मनरेगा स्कीम को कारगर ढंग से लागू करने के टिप्स भी  दिए जा रहे हैं। पंचायत द्वारा फेसबुक पर कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सेव गर्ल्ज चाइल्ड नाम से एक अलग ग्रुप बनाया गया है। जिस पर इंसान की अंतरात्मा को झकझोर कर रख देने वाले कन्या भ्रूण हत्या विरोधी चित्र व मार्मिक स्लोगन डाले गए हैं।
देश में पहली हाईटेक का दर्ज प्राप्त कर चुकी बीबीपुर पंचायत ने अब फेसबुक पर भी धमाल मचा दिया है। ग्राम पंचायत ने देश में जागरुकता फैलाने तथा शहरी क्षेत्र के लोगों के सामने ग्रामीण आंचल में बसे असली भारत को लाने के लिए सोसल साइट्स को अपना हथियार बनाया है। गांव के सरपंच सुनील जागलान ने बताया कि महात्मा गांधी का एक कहना था कि असल भारत गांव में ही बसता है और उनका यह कथन सत्य है। जब तक गांवों का विकास नहीं होगा, तब-तक देश का विकास संभव नहीं है। इसी उद्देश्य को सफल बनाने के लिए पंचायत ने फेसबुक पर अपना अकाऊंट बनाया है। फेसबुक हर रोज गांव में होने वाली गतिविधियों को अपडेट किया जाता है। उन्होंने बताया कि फेसबुक पर शहरी क्षेत्र के लोग अधिक जुड़े हुए हैं। इसलिए उन्हें फेसबुक के माध्यम से गांव में होने वाली गतिविधियों व गांव के रीति-रिवाजों के बारे में जानने का मौका मिलता है। पंचायत द्वारा 26 जनवारी, 15 अगस्त, 2 अक्टूबर, होली, दीवाली व अन्य सभी  त्योहारों को पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है और फेसबुक पर गांव में सभय ढंग से मनाय जाने वाले सभी  त्योहारों को फोटो सहित  डाला जाता है। इसके अलावा फेसबुक पर अन्य ग्राम पंचायतों को गांव में स्वच्छता कार्यक्रम व मनरेगा जैसी योजनाओं को कारगर ढंग से लागू करने के लिए विस्तार से जानकारी दी जाती है। ताकि सराकर द्वारा जन कल्याण के लिए शुरू की गई योजनाओं से आम व्यक्ति लाभ उठा सके। पंचायत को फेसबुक पर लोगों से अच्छा रिस्पांश मिल रहा है। फेसबुक पर एक हजार के लगभग लोग उनके साथ जुड़ चुके हैं।
ऊर्जा संरक्षण व मुर्राह नस्ल को बढ़ावा देने के लिए भी शुरू की मुहिम
हाईटेक पंचातय ने अब फेसबुक पर ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान शुरू किया है। पंचायत ने ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए गांव में शुरू किए गए सौर ऊर्जा संरक्षण प्रोजेक्ट को विस्तार से दर्शाया गया है। पंचायत के इस अभियान में भी  अन्य पंचायतें खास रुचि दिखा रही हैं। इसके अलावा किसानों को खेती के साथ-साथ पशु पालन को व्यवसाय के तौर पर अपनाने के लिए गांव में पशु नस्ल सुधारने के लिए अढ़ाई लाख रुपए की राशि से दो मुर्राह नस्ल के भेंसे खरीदे हैं। ताकि गांव में पशु नस्ल को सुधारा जा सके और किसान पशु व्यवसाय से अधिक से अधिक लाभ अर्जित कर सकें।
 अभियान को सफल बनाने के लिए लिया फेसबुक का सहारा
आज आधुनिक युग के कारण लोग काफी हाईटेक हो गए हैं। आधुनिकता के कारण ही आज किसी भी  अभियान के प्रचार-प्रसार का रास्ता भी काफी आसान हो गया है। इसलिए पंचायत ने अपने अभियान को सफल बनाने के लिए फेसबुक को अपनाया है। फेसबुक से शहरी तबके के लोग काफी जुड़े हुए हैं और जो गांव में होने वाली गतिविधियों में काफी रुचि लेते हैं। शहरी क्षेत्र व उच्च अधिकारियों तक अपने विचार पहुंचाने के लिए ही पंचायत फेसबुक पर गांव में होने वाली सभी गतिविधियों को अपड़ेट करती है और इससे पंचायत को काफी अच्छा रिस्पांश मिल रहा है।
सरपंच सुनील जागलान
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

शैक्षणिक भ्रमण पर जाएंगे विद्यार्थी

भ्रमण के लिए एसएसए द्वारा प्रत्येक स्कूल को दिए जाएंगे 25 हजार
नरेंद्र कुंडू
जींद। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों के लिए एक अच्छी खबर है। एसएसए (सर्व शिक्षा अभियान) सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों को टूर का तोहफा देने जा रहा है। विद्यार्थियों को शैक्षणिक  भ्रमण पर भेजने के पीछे विभाग का उद्देश्य बच्चो को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाना है। इसके लिए जिले से चार स्कूलों का चयन किया गया है। एसएसए द्वारा चयनित किए गए प्रत्येक स्कूल से 50 विद्यार्थियों को भ्रमण पर भेजा जाएगा। भ्रमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक साईंस अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके। एसएसए द्वारा भ्रमण के लिए प्रत्येक स्कूल पर 25 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे। नरवाना व अलेवा ब्लॉक के दोनों स्कूलों को 17 तथा जींद व जुलाना के दोनों स्कूलों को 18 मार्च को भ्रमण के लिए भेजा जाएगा।
एसएसए ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजने का निर्णय लिया है। एसएसएस द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले से चार सरकारी स्कूलों का चयन किया गया है। एसएसएस द्वारा चयनित चारों स्कूलों से 200 एससी विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजा जाएगा। इस प्रकार भ्रमण के लिए प्रत्येक स्कूल से 50 बच्चों को चुना गया है। एसएसए द्वारा विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजने के लिए एक लाख रुपए का बजट मंजूर किया गया है। जिले के चारों स्कूलों को 25-25 हजार रुपए दिए जाएंगे। एसएसए द्वारा भ्रमण के लिए जींद, नरवाना, जुलाना व अलेवा से एक-एक स्कूल का चयन किया गया है। इसके लिए एसएसए द्वारा चारों स्कूल मुखियाओं को पत्र जारी कर भ्रमण पर जाने के निर्देश जारी किए गए हैं। भ्रमण के लिए विद्यार्थियों को पटियाला (पंजाब)व पटियाला के आस-पास के क्षेत्रों में ले जाया जाएगा। भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक साइंस का अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके।
भ्रमण के लिए किन स्कूलों का किया गया है चयन
एसएसए द्वारा शैक्षणिक भ्रमण के लिए जिले के चार ब्लॉकों से एक-एक स्कूलों का चयन किया गया है। जिसमें जींद ब्लॉक से राजकीय मिडल स्कूल गोबिंदपुरा, जुलाना ब्लॉक से राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल मालवी, नरवाना ब्लॉक से राजकीय हाई स्कूल सूरजेवाला तथा अलेवा ब्लॉक से राजकीय हाई स्कूल बिघाना के स्कूल को चुना गया है। प्रत्येक स्कूल से एससी वर्ग के 50 विद्यार्थियों को भ्रमण पर भेजा जाएगा। जिसमें नरवाना व अलेवा ब्लॉक के दो स्कूलों को 17 तथा जींद व जुलाना के दोनों स्कूलों को 18 मार्च को भ्रमण पर भेजा जाएगा।


 बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाना  है उद्देश्य
विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से एसएसए ने यह निर्णय लिया है। इसके लिए जिले के चार स्कूलों का चयन किया गया है। जिसमें प्रत्येक स्कूल से 50 विद्यार्थियों को •ा्रमण के लिए भेजा  जाएगा। भ्रमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक अध्यापक सार्इंस का होना अनिवार्य है।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
एसएसए, जींद


रविवार, 18 मार्च 2012

शैक्षणिक भ्रमण पर जाएंगे विद्यार्थी


भ्रमण के लिए एसएसए द्वारा प्रत्येक स्कूल को दिए जाएंगे 25 हजार
नरेंद्र कुंडू
जींद। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों के लिए एक अच्छी खबर है। एसएसए (सर्व शिक्षा अभियान) सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों को टूर का तोहफा देने जा रहा है। विद्यार्थियों को शैक्षणिक  भ्ररमण पर भेजने के पीछे विभाग का उद्देश्य बच्चो को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाना है। इसके लिए जिले से चार स्कूलों का चयन किया गया है। एसएसए द्वारा चयनित किए गए प्रत्येक स्कूल से 50 विद्यार्थियों को भ्ररमण पर भेजा जाएगा। भ्ररमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक साईंस अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्ररमण के दौरान विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके। एसएसए द्वारा भ्ररमण के लिए प्रत्येक स्कूल पर 25 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे। नरवाना व अलेवा ब्लॉक के दोनों स्कूलों को 17 तथा जींद व जुलाना के दोनों स्कूलों को 18 मार्च को  भ्ररमण के लिए भेजा जाएगा।
एसएसए ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से विद्यार्थियों को शैक्षणिक  भ्ररमण पर भेजने का निर्णय लिया है। एसएसएस द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले से चार सरकारी स्कूलों का चयन किया गया है। एसएसएस द्वारा चयनित चारों स्कूलों से 200 एससी विद्यार्थियों को शैक्षणिक  भ्ररमण पर भेजा जाएगा। इस प्रकार भ्ररमण के लिए प्रत्येक स्कूल से 50 बच्चों को चुना गया है। एसएसए द्वारा विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्ररमण पर भेजने के लिए एक लाख रुपए का बजट मंजूर किया गया है। जिले के चारों स्कूलों को 25-25 हजार रुपए दिए जाएंगे। एसएसए द्वारा  भ्ररमण के लिए जींद, नरवाना, जुलाना व अलेवा से एक-एक स्कूल का चयन किया गया है। इसके लिए एसएसए द्वारा चारों स्कूल मुखियाओं को पत्र जारी कर  भ्ररमण पर जाने के निर्देश जारी किए गए हैं। भ्ररमण के लिए विद्यार्थियों को पटियाला (पंजाब)व पटियाला के आस-पास के क्षेत्रों में ले जाया जाएगा। भ्ररमण के दौरान विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक सार्इंस का अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्ररमण के दौरान विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके।
भ्ररमण के लिए किन स्कूलों का किया गया है चयन
एसएसए द्वारा शैक्षणिक भ्ररमण के लिए जिले के चार ब्लॉकों से एक-एक स्कूलों का चयन किया गया है। जिसमें जींद ब्लॉक से राजकीय मिडल स्कूल गोबिंदपुरा, जुलाना ब्लॉक से राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल मालवी, नरवाना ब्लॉक से राजकीय हाई स्कूल सूरजेवाला तथा अलेवा ब्लॉक से राजकीय हाई स्कूल बिघाना के स्कूल को चुना गया है। प्रत्येक स्कूल से एससी वर्ग के 50 विद्यार्थियों को भ्ररमण पर भेजा जाएगा। जिसमें नरवाना व अलेवा ब्लॉक के दो स्कूलों को 17 तथा जींद व जुलाना के दोनों स्कूलों को 18 मार्च को  भ्ररमण पर भेजा जाएगा।

विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से एसएसए ने यह निर्णय लिया है। इसके लिए जिले के चार स्कूलों का चयन किया गया है। जिसमें प्रत्येक स्कूल से 50 विद्यार्थियों को भ्ररमण के लिए भेजा जाएगा। भ्ररमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक अध्यापक सार्इंस का होना अनिवार्य है।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी 
एसएसए, जींद

कानून इनके ठेंगे पर


नरेंद्र कुंडू
जींद। सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। यह बात यहां के प्रशासनिक अधिकारियों पर बिल्कुल फिट बैठ रही है। प्रशासनिक अधिकारियों के ठीक नाक के नीचे लघु सचिवालय के पास स्थित डीसी कॉलोनी में कायदे-कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। डीसी कॉलोनी में अधिकारियों के आवासों व आसपास खाली पड़े प्लाटों में सब्जियों की फसलें उगाई जा रही हैं। इतना ही नहीं कुछ अधिकारियों के सेवादार तो कॉलोनी में मवेशियां पालकर अपना व्यवसाय चलाते हैं और खाली पड़ी जमीन में खेती भी करते हैं। पशुओं को नेहलाने व खेती में सिंचाई के लिए ये हर्बल पार्क व जनस्वास्थ्य विभाग के पानी की चोरी कर विभाग को मोटा चूना लगाते हैं। ऐसा करने से अगर इन्हें कोई रोकता है तो ये साहब का रोब दिखाकर उसकी बोलती बंद कर देते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा आज तक इनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करना प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशाल खड़ा करता है।
सरकारी कर्मचारियों ने वीआईपी कॉलोनी को ही पशुओं के तबेले में तबदील कर दिया है। शहर की आफिसर कॉलोनी में नियमों को ताक पर रख कर मवेशियां पाली जा रही हैं। इन कर्मचारियों द्वारा मवेशियों के लिए कॉलोनी के अंदर ही पक्के बरामदे भी बनाए गए हैं। एक तरफ तो शहर के लोग पीने का पानी उपलब्ध न होने पर जन स्वास्थ्य विभाग को कोसते नजर आते हैं, वहीं दूसरी ओर डीसी कॉलोनी के कर्मचारी पानी का दुरुपयोग करते हैं। जिससे स्वास्थ्य विभाग को हर माह लाखों रुपए का चूना लगता है और शहर की कई कॉलोनियां पीने के पानी से वंचित रह जाती हैं। सूत्रों की मानें तो कॉलोनी में खेती व पशु पालन का काम करने वाले कई कर्मचारी तो प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यालय में सेवादार हैं औरे इन्ही अधिकारियों के बलबुते ही ये कर्मचारी इस कार्रवाई को अंजाम देते हैं। क्योंकि ये कर्मचारी इसके बदले अधिकारियों की जी हजूरी के साथ-साथ उन्हें मुफ्त में सब्जी व दूध उपलब्ध करवाते हैं।
आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया
अगर पशु पालकों की बातों पर विश्वास किया जाए तो एक भेंस पर एक दिन में कम से कम 100 रुपए खर्च होते है। इस प्रकार एक  भेंस का एक माह का खर्च तीन हजार रुपए बैठता है। लेकिन डीसी कॉलोनी में रहने वाला एक-एक चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी सात-सात  भेंस रखता है। इस प्रकार सात  भेंसों का एक माह का खर्च 21 हजार रुपए बैठता है। जबकि उनकी एक माह की पगार 10 से 15 हजार रुपए के बीच होती है। अब सवाल यह उठता है कि 10 से 15 हजार रुपए की पगार वाला कर्मचारी एक माह में  भेंसों पर 21 हजार रुपए कहां से खर्च करता है।
डीसी कॉलोनी में उगाई गई सब्जी की खेती।  

क्या होते हैं नियम 
सरकारी आवास में मवेशियां या अन्य किसी भी प्रकार के पालतु पशु रखना तथा सरकारी आवास में किसी प्रकार का कंस्ट्रक्शन करवाना नियमों के विरुद्ध है, क्योंकि पीडब्ल्यूडी के नियमों के मुताबिक अफसरों को जब कोठियां अलॉट की जाती हैं तो उनसे एक एग्रीमेंट पर साइन करवाए जाते हैं। जिसमें अधिकारी की तरफ  से यह स्पष्ट लिखा जाता है कि अधिकारी कोठियों में किसी तरह की कंस्ट्रक्शन नहीं करवा सकेंगे। लेकिन यहां तो सरकारी कोठियों में पशुओं के लिए पक्के बरामदे बनाए गए हैं, जो नियमों के विरुद्ध हैं।

डीसी कॉलोनी में बंधे पशु।  
गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है। गर्मी के मौसम में पानी की काफी डिमांड रहती है। डीसी कॉलोनी में अवैध तरीके से पानी का प्रयोग किया जाता है। मामला गंभीर है इसलिए एक्सईएन साहब से बातचीत कर मामला उपायुक्त के नोटिस में लाया जाएगा। ताकि डीसी कॉलोनी में पानी की चोरी को रोका जा सके।
आरआर भारद्वाज, एसडीओ
जनस्वास्थ्य विभाग, जींद

मामला उनकी जानकारी में नहीं है। हर्बल पार्क के कर्मचारियों को हर्बल पार्क से बाहर पानी न देने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। अगर डीसी कॉलोनी के कर्मचारी हर्बल पार्क से पानी चोरी करते हैं तो मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उपायुक्त से बातचीत कर डीसी कॉलोनी से मवेशियों के पालन व खेती पर पाबंदी लगवाई जाएगी।
सुनील कुंडू, रेंज पोस्ट आफिसर 
वन विभाग, जींद
फोटो कैप्शन



शनिवार, 10 मार्च 2012

मायके में भी कीट प्रबंधन की अलख जगाएंगी निडाना की महिलाएं

धान व कपास के सीजन से शुरू करेंगी अभियान
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जब बेटी ब्याह कर घर से बिदा होती है तो मायके वाले उसे सास-ससुर की सेवा करने तथा ससुराल में अपने मायके की साख बनाए रखने की सीख देते हैं, लेकिन अब निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की महिलाएं अपने पिहरियों को कीट प्रबंधन की सीख देंगी। कीट प्रबंधन में दक्ष ये महिलाएं अपने मायके में जाकर कीटनाशक रहित खेती की अलख जगाएंगी, ताकि हमारी थाली में बढ़ते इस जहर को कम किया जा सके। धान व कपास के सीजन से ये महिलाएं हर सप्ताह इकट्ठी होकर क्रमवार अपने-अपने मायके में कीट प्रबंधन पाठशाला चलाएंगी। मायके में लगने वाली इस पाठशाला का सारा खर्च मायके वाले उठाएंगे।
कीट प्रबंधन में माहरत हासिल करने के बाद निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की महिलाओं ने थाली में बढ़ते जहर को कम करने का बीड़ा उठाया है। अब जल्द ही ये महिलाएं टीचर की भूमिका में नजर आएंगी। चूल्हे-चौके के साथ-साथ ये महिलाएं अब किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सीखाएंगी। इस अभियान की शुरुआत ये अपने अपने मायके से करेंगी। डॉ. सुरेन्द्र दलाल ने बताया की इस अभियान को सफल बनाने के लिए इन महिलाओं ने एक समूह बनाया है। इस समूह में कीट प्रबंधन में दक्ष महिलाओं को शामिल किया है। समूह में शामिल सभी महिलाएं क्रमवार अपने-अपने मायके में जाकर वहां के किसानों को कीट प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी देंगी और किसानों को फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान करवाएंगी। अब तक ये महिला किसान फसलों में पाए जाने वाले 77 प्रकार के शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान कर फसल पर होने वाले इनके सकारात्मक व नकारात्मक परिणामों के बारे में खोज कर चुकी हैं। इन महिलाओं ने गेहूं व सरसों की फसल में पाए जाने वाली लेडीबिटल, सरफड मक्खी, गिदड़ बुगड़ा के अलावा दो ऐसी संभीरका की खोज की है, जो अल के पेट में अपने बच्चे पलवाती हैं ओर इस प्रकार दूसरे कीट के बच्चों के पालन-पोषण के चक्कर में फसल को हानि पहुंचाने वाला अल अपनी ही जान से हाथ धो बैठता है। इस मुहिम के पीछे इन महिला किसानों का उद्देश्य मित्र कीटों की पहचान कर कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देना है। ताकि कीटनाशकों के प्रयोग से इंसान के शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को रोक कर इंसान को एक स्वस्थ जीवन प्रदान किया जा सके और यह तभी संभव हो सकता है, जब सभी किसान कीट प्रबंधन के प्रति जागरुक होकर फसल में कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दें। अपने इस अभियान की शुरुआत ये महिलाएं धान व कपास के अगले सीजन यानि जून व जुलाई से करेंगी। मायके में लगने वाली इस पाठशाला का सारा खर्च उनके मायके वाले उठाएंगे। इस अभियान की शुरुआत से पहले ये मास्टर ट्रेनर महिलाएं निडाना के आस-पास के गांवों की महिलाओं को जागरुक करेंगी। निडाना के पास स्थित ललितखेड़ा की महिलाओं को जागरुक करने की जिम्मेदारी संतोष, सविता, शीला व अनारो को दी गई है तथा निडानी गांव की महिलाओं को जागरुक करने की जिम्मेदारी हरदेई व संतोष को दी गई है।
दूसरे प्रदेशों के भ्रमण के दौरान लिया संकल्प
अपने मायके में कीट प्रबंधन की अलख जगाने का संकल्प इन महिलाओं ने उस समय लिया जब ये महिलाएं कृषि विभाग द्वारा भेजे गए 5 दिवसीय टूर से वापिस आ रही थी। टूर से लौटते वक्त ये महिलाएं जब यमुनानगर से कुरुक्षेत्र की तरफ लौट रही थी तो रास्ते में कुरुक्षेत्र के पास स्थित रतनगढ़ गांव के पास स्थित एक होटल पर खाना खाने के लिए रुकी, वहां पर इन महिलाओं ने देखा की कुछ किसान अपने खेत में ट्रेक्टर चालित पंप से गेहूं की फसल में कीटनाशक दवाइयों का स्प्रे कर रहे थे। किसानों ने जब इन्हें गेहूं की फसल में मौजूद अल के बारे में बताया तो इन महिलाओं ने उन किसानों को अल का उपचार बिना कीटनाशक का प्रयोग किए कीट प्रबंधन में बताया। यहीं से इन महिलाओं ने अपने मायके में भी कीट प्रबंधन की अलख जगाने का निर्णय लिया। 


मंगलवार, 6 मार्च 2012

....अब गुरु जी भी सीखेंगे तकनीकी गुर

14 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर 10 से नरवाना में
नरेंद्र कुंडू
जींद।
शिक्षा विभाग ने सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में कार्यरत पीटीआई अध्यापकों को आधुनिक गुरों से लैस करने की योजना तैयार की है। इस योजना के तहत प्रदेशभर के पीटीआई अध्यापकों के लिए डिविजन के अनुसार कैंप लगाए जाएंगे। इन कैंपों में मास्टर ट्रेनरों द्वारा पीटीआई अध्यापकों को खेलों की नई तकनीकों के बारे में ट्रेंड किया जाएगा। इसी कड़ी के तहत नरवाना के नवदीप स्टेडियम में 10 मार्च से 23 मार्च तक 14 दिवसीय कैंप का आयोजन किया जाएगा। इस कैंप में 12 जिलों के पीटीआई अध्यापक भाग लेंगे। 14 दिवसीय कैंप में मास्टर ट्रेनरों द्वारा पीटीआई अध्यापकों को बारिकी से एथलेटिक्स के गुर सिखाए जाएंगे। ट्रेनिंग के दौरान पीटीआई अध्यापकों को अपने साथ सिर्फ बिस्तर लेकर आने होंगे, बाकि की सारी व्यवस्था एसएसए द्वारा की जाएगी।
खेलों के क्षेत्र में प्रदेश के स्तर को ओर ऊंचा उठने तथा खिलाड़ियों को समय-समय पर खेलों की नई तकनीकी जानकारियां उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से शिक्षा विभाग ने एक खास योजना तैयार की है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत इस योजना को अमल में लाया जाएगा। इस योजना के तहत पीटीआई अध्यापकों के लिए 10 मार्च से नरवाना के नवदीप स्टेडियम में 10 दिवसीय कैंप का आयोजन किया जाएगा। इस कैंप में जींद, हिसार, भिवानी, फतेहाबाद, सिरसा, कैथल, सोनीपत, झज्जर, रेवाड़ी, गुड़गांव, महेंद्रगढ़, फरीदाबाद यानि 12 जिलों के पीटीआई अध्यापक भाग लेंगे। इन कैंपों में मास्टर ट्रेनरों द्वारा कैंप में भाग लेने वाले सभी   अध्यापकों को खेलों की नई तकनीकों को बारिकी से सिखाया जाएगा। इस 14 दिवसीय कैंप में 6 मास्टर ट्रेनरों को नियुक्त किया गया है, जिनमें दो कोच, दो डीपीई, एक एईओ व एक फिजिकल टीचर शामिल हैं। ये मास्टर ट्रेनर पीटीआई अध्यापकों को कबड्डी, खो-खो, एथलेटिक्स, हैंडबाल, कुश्ती, योगा, लेजियम डंबल, आत्म रक्षा तथा खेलों के नए तकनीकी गुर सिखाएंगे। कैंप में अध्यापकों को व्यवहारिक ज्ञान के साथ-साथ किताबी ज्ञान भी दिया जाएगा। कैंप में अध्यापकों को अपने साथ सिर्फ बिस्तर व लेजियम डंबल लेकर आने होंगे, बाकि की सारी व्यवस्था सर्व शिक्षा अभियान द्वारा की जाएगी।
अध्यापकों को नई तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाना है उद्देश्य 
अधिकतर पीटीआई अध्यापक खेलों के क्षेत्र से दूर होने के कारण नई तकनीकों से महरूम हो जाते हैं। जिस कारण वे खेलों के बारे में खिलाड़ियों को नई तकनीकों जानकारी नहीं दे पाते। लेकिन खेलों में प्रतिस्पर्धा का दौर होने के कारण दूसरे प्रदेश के खिलाड़ियों द्वारा खेलों में समय-समय पर नई-नई तकनीकों को अपनाया जाता है। इसलिए एसएसए ने पीटीआई अध्यापकों को खेलों की नई तकनीक सिखाने के लिए इस योजना को शुरू किया गया है। ताकि पीटीआई अध्यापक मास्टर ट्रेनरों से खेलों की नई बारिकियां सीख कर अच्छे खिलाड़ी तैयार कर सकें। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से खेलों के क्षेत्र में खिलाड़ी तो नई तकनीकी जानकारी सीखेंगे ही, साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में प्रदेश का स्तर  भी  ऊंचा उठ सकेगा।
भीम सैन भारद्वाज
जिला परियोजना निदेशक
सर्व शिक्षा अभियान, जींद