सोमवार, 5 मार्च 2012

भविष्य के कर्णधारों ने चुनी किताबें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के सरकारी स्कूलों की लाइब्रेरियां अब अध्यापकों की मर्जी से नहीं, बल्कि विद्यार्थियों की मर्जी से सजेंगी। सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) द्वारा जींद में आयोजित दो दिवसीय पुस्तक मेले में जिले से 207 स्कूलों से 1035 विद्यार्थियों ने भाग लिया। स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टर (एसपीडी) ने जिस उम्मीद से इस बार पुस्तकों के चयन की कमान शिक्षकों के हाथ से छीनकर देश के इन भावी कर्णधारों के हाथों में सौंपी थी, तो इन कर्णधारों ने भी एसपीडी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए अपनी सुझबुझ का परिचय दिया। एसपीडी द्वारा उठाए गए इस कदम से जहां इस बार बच्चे अपनी मनपसंद की पुस्तकें खरीद सके, वहीं पुस्तक पब्लिसरों व अध्यापकों के बीच होने वाली सांठगांठ पर भी अंकुश लगा। इस बार पुस्तक मेले में एसएसए द्वारा अध्यापकों व अभिवकों के प्रवेश पर पूरी तरह से बैन लगाया गया था। इस दौरान पुस्तक मेले से प्रत्येक हाई स्कूल की लाइब्रेरी के लिए 150 से 200 व सीनियर सेकेंडरी स्कूल की लाइब्रेरी के लिए 200 से 250 पुस्तकें खरीदी गई।
क्या थे पुस्तक मेले के नियम
इस बार पुस्तक मेले में पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों की जगह विद्यार्थियों को सौंपी गई थी। जिसके तहत प्रत्येक हाई स्कूल से 4, सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 6 विद्यार्थी मेले में भाग ले सकते थे। इसके अलावा को-एजुकेशन स्कूलों में प्रत्येक सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 3 लड़के व 3 लड़कियां तथा हाई स्कूल से 2 लड़के व 2 लड़कियां भाग ले सकती थी। सीनियर सेकेंडरी स्कूल के बच्चे सभी स्टालों से 29 हजार व हाई स्कूल के विद्यार्थी 24 हजार तक की पुस्तकों की खरीदारी कर सकते थे। विद्यार्थी एक स्टाल से एक हजार रुपए तक की खरीदारी कर सकते थे। पुस्तक मेले में पुस्तकों का चयन विद्यार्थियों को स्वयं करना था। पुस्तक मेले में विद्यार्थियों के अलावा अध्यापकों व अभिभावकों को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी।
अंग्रेजी से भाग हुआ विद्यार्थियों का मोह  
पुस्तक मेले में अलग-अलग पुस्तक पब्लिसरों द्वारा कुल 46 स्टाल लगाए गए थे। पुस्तकों के चयन को लेकर विद्यार्थियों में काफी उत्साह था। सभी स्टालों पर विद्यार्थियों की खासी भीड़ नजर आ रही थी। इन सभी स्टालों से विद्यार्थियों ने मनोरंजक, ज्ञान वर्धक, संस्कृतिक, विज्ञान, देशभक्ति, कहानियों की किताबों की जमकर खरीदारी की। लेकिन अंग्रेजी की पुस्तकों की खरीदारी नामात्र ही हो पाई। मेले में अंग्रेजी पुस्तकें विद्यार्थियों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाई। पुस्तक मेले में अंग्रेजी की पुस्तकों की ज्यादा खरीदारी न होना सीधे इस बात की ओर इशारा करता है कि सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों का मोह अंग्रेजी से कम हो रहा है। 
मिलीभगत पर लगी रोक
पुस्तक मेले में पहले पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों को सौंपी जाती थी। जिस कारण अध्यापक पब्लिसरों के साथ सांठगांठ कर लेते थे और पब्लिसरों से उनके स्टाल से अधिक पुस्तकों के आडर देने की एवज में मोटा कमीशन ऐठते थे। पब्लिसरों व अध्यापकों की मिलभगत के कारण विद्यार्थियों को अच्छी व ज्ञानवर्धक पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पाती थी। पब्लिसरों व अध्यापकों की इस सांठगांठ पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से इस बार एसपीडी ने पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों के हाथों से छीनकर विद्यार्थियों को सौंप दी। इस प्रकार एसपीडी द्वारा उठाए गए इस कदम से विद्यार्थियों को जहां अपनी मनपसंद पुस्तकों के चयन की आजादी मिली, वहीं पब्लिसरों व अध्यापकों की इस मिलभगत पर भी रोक लगी। एसएसए ने भी एसपीडी के आदेशों का सख्ताई से पालन किया और पुस्तक मेले में अध्यापकों व अभिभावकों को जाने पर पाबंदी लगा दी।
गड़बड़ाई कंप्यूटर व्यवस्था
पुस्तक मेले में विद्यार्थियों द्वारा जिन पुस्तकों का चयन किया जा रहा था, उस आर्डर को एसएसए द्वारा साथ की साथ कंप्यूटरों में फीड करवा उसका डाटा तैयार करना था। सबसे पहले ब्लॉक वाइज व फिर जिला स्तर पर डाटा तैयार किया जाना था। डाटा फीड के लिए एसएसए द्वारा 15 कंप्यूटर आप्रेटर लगाए गए थे। लेकिन लैब की व्यवस्था सही न होने व लैब में समय पर लाइट का प्रबंध न होने के कारण एसएसए की कंप्यूटर व्यवस्था जवाब दे गई। जिस कारण पुस्तकों के आर्डर की डाटा फीडिंग का काम साथ-साथ नहीं हो पाया और कंप्यूटर आप्रेटरों को रविवार को भी  डाटा फीडिंग का काम जारी रखना पड़ा।


इस बार पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों की जगह विद्यार्थियों को सौंपी गई थी। इसलिए इस बार पुस्तक मेले में विद्यार्थियों के अलावा अध्यापकों व अभिभावकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था। एसएसए द्वारा विद्यार्थियों के लिए खाने-पीने की सभी सुविधाएं मुहैया करवाई गई थी।
सेवा सिंह बेनीवाल, डिप्टी सुपरीडेंट
एसएसए, जींद

रविवार, 4 मार्च 2012

डीएड व बीएड कॉलेजों पर छाए संकट के बादल

एनसीटीई की दो टीमों ने दी कॉलेजों में दस्तक
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के डीएड व बीएड कॉलेजों पर संकट के बादल छाए हुए हैं। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा ( रास्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिसद ) एनसीटीई के क्षेत्रीय निदेशक को फटकार लगाने के बाद एनसीटीई ने एनसीटीई एक्ट की धारा 17 के तहत निजी डीएड व बीएड कॉलेजों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इसके लिए एनसीटीई की दो टीमें 24 फरवरी से जींद जिले के कॉलेजों का निरीक्षण कर वहां व्याप्त खामियों का लेखा-जोखा तैयार कर रही हैं। निरीक्षण के दौरान कॉलेज में चल रहे गड़बड़झालों के उजागर होने के डर से निजी कॉलेज संचालकों के पैरों तले से जमीन खिसक गई है। क्योंकि अधिकतर कॉलेज एनसीटीई द्वारा निर्धारित मापदंड व मानकों पर खरे नहीं उतर पाने के कारण उन पर गाज गिरना तय है।
हाईकोर्ट ने बिना प्रदेश सरकार के अनापत्ति प्रमाण पत्र के अंधाधुंध बीएड व डीएड कॉलेजों को मान्यता देने पर एनसीटीई की खिंचाई की है। हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए एनसीटीई को 6 माह पहले यह निर्देश दिए थे कि वह सभी डीएड व बीएड कॉलेजों का निरीक्षण कर हाईकोर्ट में स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करे। परंतु हाईकोर्ट के आदेशों की पालना न होने पर एनसीटीई के क्षेत्रीय निदेशक को अवमानना नोटिस जारी कर व्यक्तिगत रूप से 13 फरवरी को हाईकोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था। 13 फरवरी को सुनवाई के दौरान क्षेत्रीय निदेशक को हाईकोर्ट के आदेशों की पालना न करने पर कड़ी फटकार लगाते हुए एक महीने की तय समयावधि में डीएड व बीएड कॉलेजों का निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किए हैं। हाईकोर्ट की फटकार के बाद अब एनसीटीई ने एनसीटीई एक्ट की धारा 17 के तहत प्रदेश के सभी डीएड व बीएड कॉलेजों का गहन निरीक्षण शुरू कर दिया है। किस दिन किस कॉलेज का निरीक्षण होगा, इसका विवरण अपनी वैबसाइट एनआरसीएनसीटीई डॉट ओआरजी पर जारी कर दिया है। जिसके तहत एनसीटीई की दो टीमें जींद में पहुंच चुकी हैं। एनसीटीई की दोनों टीमें 24 फरवरी से शैड्यूल के अनुसार डीएड व बीएड कॉलेजों में जाकर कर वहां व्याप्त खामियों का लेखा-जोखा तैयार करने में जुटी हैं। जिले में लगभग 22 डीएड व बीएड कॉलेजे हैं। एनसीटीई द्वारा गहन निरीक्षण से निजी कॉलेज संचालकों में हड़कंप मच गया है। क्योंकि एनसीटीई द्वारा की जा रही गहन जांच के पश्चात जिले के कई निजी डीएड व बीएड कॉलेजों पर गाज गिरना तय है। हाईकोर्ट की कड़ी फटकार के बाद एनसीटीई द्वारा मामले को गंभीरता से लेने पर प्रताड़ित विद्यार्थी व शिक्षक खुशी से झुम उठे हैं।
क्या-क्या खामिया होंगी उजागर 
अधिकांश निजी बीएड व डीएड कॉलेजों के पास न तो मूलभूत सुविधाएं हैं और ना ही वे एनसीटीई द्वारा निर्धारित मापदंड व मानकों पर खरे उतरते हैं। इन संस्थानों में से डिग्रीयां बांटी जा रही हैं। अधिकांश निजी बीएड व डीएड कॉलेजो में शिक्षण हेतु निर्धारित मात्रा में पूरा स्टाफ  नहीं है। ज्यादातर कॉलेजों में छात्रों से रकम ऐंठ कर हाजिरी पूरी कर दी जाती है। विद्यार्थियों पर भारी जुर्माने लगाकर बड़े पैमाने पर उनका शोषण किया जाता है। इसके अलावा शिक्षकों को कम वेतन दिया जाता है, शिक्षकों की फर्जी नियुक्तियां दिखाई जाती हैं, बैंक अकाउंट की बजाय नकद फीस ली जाती है, किस्तों में फीस लेने की बजाए एकमुश्त फीस वसूली जाती है, अनाप-शनाप जुर्माने वसूले जाते हैं, कई कॉलेजों में स्कूल, अस्पताल जैसी अन्य गतिविधियां चलाई जाती हैं।
क्या हैं एनसीटीई के नियम
एनसीटीई के नियम के मुताबिक 100 सीटों के डीएड या बीएड कॉलेज के पास 3 एकड़ जमीन होनी चाहिए, जिसमें 1500 स्कवेयर मीटर में बिल्डिंग बनी होनी चाहिए। जमीन कॉलेज के नाम होनी चाहिए तथा जमीन पर किसी प्रकार का लोन नहीं होना चाहिए। 100 सीटों वाले कॉलेज में कम से कम 7 लेक्चर्र, एक प्रिंसिपल व 6 अन्य स्टाफ मेंबर होने चाहिएं। लेक्चर्र की शैक्षणिक योग्यता मास्टर डिग्री व एमएड के अलावा नेट या पीएचडी क्वालिफाइड होना चाहिए। प्रिंसिपल की शैक्षणिक योग्यता में लेक्चर्र की सभी शर्तों के अतिरिक्त 10 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। बीएड, डीएड, सीपीएड व एमएड के लिए अलग-अलग भवन होना चाहिए। कॉलेज में लाइब्रेरी, लेब व फर्नीचर के अलावा सभी मूलभूत सुविधाएं होनी चाहिएं।

शनिवार, 3 मार्च 2012

कर्मचारियों को रास नहीं आ रहा ई-सेलरी सिस्टम

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार की आधुनिकरण की नीति ई-सेलरी सिस्टम कर्मचारियों को रास नहीं आ रही है। यह सिस्टम लागू तो कर दिया गया, लेकिन इसके बारे में कर्मचारियों को कोई तकनीकी जानकारी न होने के कारण यह सुविधा उनके लिए आफत बन गई है। तकनीकी जानकारी के अभाव के कारण कर्मचारी ई-सेलरी का साफ्टवेयर आॅपरेट नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा ज्यादातर कार्यालयों में कंप्यूटर व ब्राडबैंड इंटरनेट की सुविधा नहीं है और जहां पर ये सुविधा है, वहां दक्ष कंप्यूटर आप्रेटर नहीं है। कंप्यूटर व नेट र्वकिंग का तकनीकी प्रशिक्षण नहीं होने की वजह से कर्मचारियों को साइबर कैफे के चक्कर लगाने पड़ रहा हैं। सरकार की इस आधुनिकरण की नीति के कारण कर्मचारियों को अपने वेतन की चिंता सताने लगी हैं।
सरकार की आधुनिकरण की नीति के तहत विभिन्न विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों को जल्द वेतन मुहैया करवाने के लिए प्रदेश में जनवरी माह से ई-सैलरी सिस्टम लागू किया गया है। जिसमें कर्मचारियों का वेतन हरियाणा ट्रेजरी एंड खजाना विभाग द्वारा ई-सैलरी के माध्यम से निकाला जाना है। इसके तहत सबसे पहले शिक्षक व कर्मचारियों को नेट वर्किग के माध्यम से अपने डाटा फीड करवाना होता है। जिसमें कर्मचारियों का नाम, पता, जन्म तिथि, आईडी संख्या, पेन संख्या आदि शामिल है। परंतु प्रदेश के अधिकतर स्कूलों व अन्य विभागों के कर्मचारी डाटा फीड नहीं कर पा रहे हैं। इसकी वजह कर्मचारियों का अप्रशिक्षित होना बताया जा रहा है। शिक्षा विभाग के एक उच्च अधिकारी का कहना है कि विभाग की तरफ  से स्कूल के तमाम स्कूल प्राचार्यों को प्रशिक्षण दिया गया था परंतु इस प्रशिक्षण का फायदा अन्य शिक्षकों तक नहीं पहुंच पाया, जिसकी वजह से यह समस्या आ रही है। ई-सैलरी बनवाने के लिए कार्यालयों में कम से कम एक कंप्यूटर तथा ब्राडबैंड इंटरनेट सुविधा व एक तकनीकी कर्मचारी जरूरी है। परंतु ज्यादातर कार्यालयों में ब्राडबैंड इंटरनेट की सुविधा तो दूर कंप्यूटर सिस्टम तक उपलब्ध नहीं है। जहां पर इंटरनेट सुविधा है वहां पर दक्ष कम्प्यूटर डाटा आपरेटर न होने के कारण कर्मचारी अपना वेतन निकलवाने को लेकर चिंतित हैं। सहायक खजाना कार्यालयों में विभागीय नियमों का पालन करते हुए वहां कार्यरत कर्मियों ने कर्मचारियों का आगामी महीनों का वेतन ई-सैलरी के माध्यम से ही जारी करने का उल्लेख किया है। वहीं कुछ  कर्मियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब वे नेटवर्क दिक्कत तथा सर्वर दिक्कतों के चलते संबंधित वि•ााग से संपर्क करते हैं तो बेबसाइट पर दिए गए दूरभाष नंबर से भी कोई सही जानकारी नहीं मिल पाती। जिस कारण ई-सेलरी व्यवस्था सरकारी अधिकारियों के लिए आफत बन गई है। कंप्यूटर व नेट वर्किग का तकनीकी प्रशिक्षण नहीं होने की वजह से कर्मचारियों को साइबर कैफे के चक्कर लगाने पड़ रहा हैं। अब तो सरकारी कर्मचारियों को मार्च का वेतन मिलने की भी आशंका सताने लगी है।

क्या है ई-सेलरी सिस्टम का लाभ
ई-सेलरी एक इलेक्ट्रानिक सिस्टम है। इस सिस्टम की सहायता से कर्मचारियों को आनलाइन वेतन का भुगतान जल्द किया जा सकता है। इस नई प्रणाली के तहत विभाग की तरफ  से मिलने वाली बजट कर्मचारियों के खातों में सीधे जमा करवाया जा सकेगा। कर्मचारियों को वेतन निकासी के लिए ट्रेजरी व बैंक के चक्कर लगाने नहीं लगाने पड़ेंगे। बजट पर कंट्रोल होगा, कोई भी अधिकारी किसी भी कर्मचारी की सेलरी के साथ छेड़खानी नहीं कर सकेगा। सेलरी बनाते समय होने वाली गलती से बचा जा सकेगा। बार-बार बिल की फीडिंग नहीं करनी पड़ेगी। कार्य प्रणाली में पारदर्शिता आएगी। पेपर वर्क कम होगा।
किस-किसको नहीं मिलेगा ई-सेलरी सिस्टम का लाभ
गेस्ट टीचरों, अनुबंध पर लगे कर्मचारियों को ई-सेलरी सिस्टम का लाभ  नहीं मिलेगा। इन कर्मचारियों को सामान्य तरीके से सेलरी का भुगतान किया जाएगा।
कार्य प्रणाली में आएगी  पारदर्शिता
कार्य प्रणाली में पारदर्शिता लाने व कर्मचारियों पर बढ़ते काम के बोझ को कम करने के उद्देश्य से ई-सेलरी सिस्टम लागू किया गया है। सभी  विभागों के डीडीओ को यूजर नेम व पासवर्ड उपलब्ध करवाए गए हैं। अगर कर्मचारियों के सामने किसी भी प्रकार की तकनीकी समस्या आती है तो विभाग के अधिकारी किसी भी प्राइवेट कंप्यूटर टीचर से सहायता ले सकते हैं। ई-सेलरी सिस्टम के तहत कोई भी अधिकारी किसी कर्मचारी की सेलरी के साथ छेड़खानी नहीं कर सकेगा। सभी कर्मचारियों की सेलरी सीधे उनके खातों में जमा हो जाएगी। जिले में ई-सेलरी सिस्टम को पूरा रिस्पांश मिल रहा है।
वजीर सिंह, जूनियर प्रोग्रामर अधिकारी
खजना कार्यालय, जींद


...हाय राम ये दुखड़ा मैं किस-किस से कहूं

जिला कष्ट निवारण समिति ने आठ माह से नहीं सुनी जन समस्याएं
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार में प्रतिनिधित्व के मामले में जिला पूरी तरह से अनाथ होकर रह गया है। पहले कष्ट निवारण समिति की बैठक में ही लोग अपना दुखड़ा रो लेते थे, लेकिन अब तो उसका सहारा भी नहीं रहा। पिछले 8 माह से जिला कष्ट निवारण समिति की चेयरपर्सन द्वारा एक बार भी जिले में बैठक नहीं ली गई है। अगर पिछले 10 साल के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो जिले में ऐसा पहली बार हुआ है कि जिला कष्ट निवारण समिति के मुखिया द्वारा लगातार आठ माह से एक बार भी लोगों की शिकायतएं नहीं सुनी गई हों। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व बंसीलाल जैसे दिग्गज नेता मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी हर माह जिले के लोगों के बीच पहुंचकर उनकी शिकायतें सुनते थे। इस बारे में जिला प्रशासन के आला अधिकारी चुपी साधे हुए हैं। कोई भी अधिकारी बात करने को तैयार नहीं हैं। जिस कारण जिले में जन समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और उनके दर्द पर मरहम लगाने वाला कोई नहीं है।
जन समस्याओं के निदान के लिए बनाई गई जिला कष्ट निवारण समिति जिले के लोगों के लिए बेमानी साबित हो रही है। एक तरफ जहां प्रदेश के दूसरे जिलों में रुटीन में हर माह जिला कष्ट निवारण समिति के मुखियाओं द्वारा लोगों की समस्याएं सुनी जा रही हैं, वहीं जींद जिले में पिछले आठ माह से एक बार भी प्रदेश की शिक्षा मंत्री एवं समिति की चयरपर्सन गीता भुक्कल एक बार भी लोगों की शिकायतें सुनने नहीं पहुंची है। जिला कष्ट निवारण समिति ही एकमात्र जरिया होती है, जिसके माध्यम से लोग अपनी समस्याएं अपने जनप्रतिनिधियों तक पहुंचा सकते हैं। पहले लोग कष्ट निवारण समिति के सामने अपना दुखड़ा रोकर अपनी समस्या का समाधान करवा लेते थे। लेकिन अब तो जिले के लोगों का यह सहारा भी छुट गया है। समिति की चेयरपर्सन द्वारा इतने लंबे समय से की जा रही अनदेखी के कारण लोगों में रोष व्याप्त है। जिले में मई 2011 के बाद चेयरपर्सन द्वारा समिति की कोई बैठक नहीं की गई है। 8 माह में एक बार भी समिति की बैठक न होना सीधे इस बात की ओर संकेत कर रहा हैं कि कांग्रेस सरकार के जनप्रतिनिधि जींद जिले की पूरी तरह से अनदेखी कर रहे हैं। अगर पिछले 10 साल के आंकड़ों पर भी नजर डाली जाए तो, जिले में यह ऐसा पहला मौका होगा कि जिला कष्ट निवारण समिति की चेयरपर्सन इतने लंबे समय से एक बार भी जनता के बीच में उनकी समस्याएं सुनने के लिए नहीं पहुंची हो। जबकि  प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व बंसीलाल जैसे दिग्गज नेता मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होने के बावजूद भी स्वयं हर माह लोगों की समस्याएं सुनने पहुंचते थे और बैठक में लोगों की समस्याएं सुनकर  संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को तुरंत उनके समाधान के निर्देश देते थे। इससे जनता व जनप्रतिनिधियों के बीच अच्छा तालमेल बना रहता था और काफी हद तक आफसरशाही पर भी अंकुश लगा हुआ था। लेकिन अब तो जिला सरकार के प्रतिनिधित्व के मामले में पूरी तरह से अनाथ हो गया है। जनता व जनप्रतिनिधियों के बीच की यह कड़ी यहां टूटती नजर आ रही है।
सरकार की कार्यप्रणाली पर लग रहा है प्रश्नचिह्न
सरकार द्वारा जन समस्याओं के निदाान के लिए प्रदेश में जिला स्तर पर जिला कष्ट निवारण समितियों का गठन किया गया है। जिला स्तर पर गठित की गई कष्ट निवारण समिति का मुखिया सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। कष्ट निवारण समिति के मुखिया को प्रत्येक माह जिले में समिति की बैठक कर जन समस्याएं सुनकर उनका निदान करना होता है। जनता की समस्याएं सरकार तक पहुंचाने की यह मुख्य कड़ी होती है। प्रदेश की शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल को जींद जिले की कष्ट निवारण समिति की चेयरपर्सन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन चेयरपर्सन ने मई 2011 यानि आठ माह से जन समस्याएं सुनना तो दूर की बात जिले में समिति की एक भी बैठक नहीं की है। लगातार आठ माह से समिति की चेयरपर्सन द्वारा जिले के लोगों के बीच पहुंचकर उनकी समस्याएं न सुनना सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है। इस बारे में जिला प्रशासन के आला अधिकारी चुपी साधे हुए हैं। कोई भी अधिकारी बात करने को तैयार नहीं हैं।

निजी अस्पतालों में लुट रहे मरीज


सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड कक्ष के बाहर लटकता ताला।
सामान्य अस्पताल में कई माह से बंद पड़ी है अल्ट्रासाऊंड मशीन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड मशीन व मरीजों को डॉ. का इंतजार है। अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट का पद खाली होने के कारण लाखों रुपए की अल्ट्रासाऊंड मशीन पिछले लगभग 6 माह से धूल फांक रही है। अल्ट्रासाऊंड मशीन बंद होने के कारण मरीज निजी अस्पतालों में लुटने को मजबूर हैं। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी तो बीपीएल परिवारों व गर्भवती महिलाओं को हो रही है। सरकारी अस्पतालों में लचर स्वास्थ्य सेवाओं और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण निजी अस्पताल संचालकों की पौ-बारह हो रही है।
शहर के सामान्य अस्पताल में मरीजों को अल्ट्रासाऊंड की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए जिला रेडक्रॉस सोसाइटी द्वारा 2003 में ब्लैक एंड व्हाइट मशीन रखी गई थी। रेडक्रॉस द्वारा अस्पताल में अल्ट्रासऊंड के लिए आने वाले मरीजों से जो फीस ली जाती थी, उसका कुछ हिस्सा सोसाइटी अस्पताल प्रबंधन को देती थी। अस्पताल में सामान्य चार्ज पर अल्ट्रासाऊंड की सुविधा मिलने के कारण सोसाइटी को मरीजों का अच्छा रिस्पांश मिल रहा था। जिसके चलते सोसाइटी ने 2007 में अस्पताल में क्लर ओपलर मशीन उपलब्ध करवा दी। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग द्वारा 2011 में अस्पताल को नई अल्ट्रासाऊंड मशीन उपलब्ध करवा दी गई और अस्पताल प्रशासन ने रेडक्रॉस सोसाइटी की मशीन को यहां से नरवाना शिफ्ट कर दिया। जब तक यहां अल्ट्रासाऊंड की जिम्मेदारी रेडक्रॉस सोसाइटी ने संभाली तब तक तो सब कुछ ठीक ठाक चला, लेकिन अल्ट्रासाऊंड का कामकाज अस्पताल प्रबंधन के हाथों में आते ही यह सुविधा दम तोड़ती चली गई। स्वास्थ्य विभाग द्वारा अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड मशीन भेजे जाने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने सप्ताह के तीन दिन की ड्यूटी नरवाना के डा. राजेश गुप्ता को और सप्ताह के तीन दिन की ड्यूटी अस्पताल की डा. मंजुला को सौंपी। बाद में डा. राजेश गुप्ता प्रमोट होकर कैथल चले गए और डा. मंजुला ने भी कामकाज के बढ़ते दबाव के कारण यहां से अपनी सेवाएं बंद कर दी। अब लगभग 6 माह से अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड सुविधा ठप पड़ी है। 6 माह से मशीन बंद होने के कारण लाखों रुपए की मशीन जंग खा रही है।
प्राइवेट अस्पतालों में लुट रहे हैं मरीज
सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की फीस 120 रुपए निर्धारित की गई है। अस्पताल में फीस कम होने के कारण यहां हर रोज लगभग 60 से 70 मरीज अल्ट्रासाऊंड के लिए आते थे। लेकिन अस्पताल में यह सुविधा बंद होने के कारण मरीजों को मजबूरन प्राइवेट अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड के लिए 500 से 600 रुपए खर्च करने पड़ रहे है। अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण प्राइवेट अस्पताल संचालक जमकर चांदी कूट रहे हैं।
निजी अस्पताल संचालकों से हो सकती है सांठगांठ
जब से अल्ट्रासाऊंड का कार्यभार रेडक्रॉस सोसाइटी के पास से अस्पताल प्रबंधन के हाथों में आया है, उस वक्त से अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की सुविधा ठप  होती चली गई है। इस प्रकार अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की दम तोड़ी सुविधा अस्पताल प्रबंधन के निजी अस्पताल संचालकों के साथ सांठगांठ होने के संकेत पैदा कर रही है। सूत्रों की मानें तो निजी अस्पतालों के साथ सांठगाठ के कारण ही जानबुझ कर अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की सुविधा बंद कर दी गई है।
नरवाना में भी धूल फांक रही मशीन
सामान्य अस्पताल नरवाना में भी यही स्थिति है। लग•ाग 6 लाख रुपए की अल्ट्रासाऊंड मशीन होने के बावजूद भी यहां के मरीजों को इधर-उधर धक्के खाने पड़ रहे हैं। पिछले कई माह से यह मशीन क्षेत्र के लिए सफेद हाथी साबित हो रही है। अल्ट्रासाउंड का डाक्टर नहीं होने के कारण मशीन से किसी भी मरीज का अल्ट्रासाउंड नही किया जा रहा। बीमारी का निदान करवाने वाले मरीजों को अल्ट्रासाऊंड करवाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ रहा है।
बीच में डा. मंजुला की तबीयत ज्यादा खराब होने के कारण वे छुट्टी पर चली गई थी, जिस कारण मशीन को बंद करना पड़ा था। अब डा. मंजुला प्रमोट होकर डिप्टी सीएमओ बन गई हैं। जिस कारण अब वे यहां अपनी सेवाएं नहीं दे पा रही हैं। अस्पताल में चिकित्सकों की भारी कमी है। रेडियोलॉजिस्ट का पद भी खाली पड़ा है। जिस कारण अस्पताल मं मजबूरन अल्ट्रासाऊंड की सुविधा को बंद किया गया है।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

..अ मेरे वतन के लोगो जरा याद करो कुर्बानी

शहीदी स्मार्क से यात्रा की शुरुआत करते युवा।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
‘इतना वादा करो जब आजादी मिले, याद करना हमें भूल जाना नहीं’ शहीदों की इस आवाज को बुलंद करने का बीड़ा उठाया है जींद जिले के कुछ देशभक्त युवाओं ने। आजादी से पहले लोगों के दिलों में देश भक्ति का जो जजबा शहीद भगत सिंह व उनके साथियों ने पैदा किया था, उस जजबे को कायम रखने तथा पथ भ्ररष्ट हो रहे नौजवानों को रास्ता दिखाकर देश की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए इन युवाओं ने कमर कस ली है। इन युवाओं ने सरकार से 23 मार्च (शहीद भगत सिंह) के बलिदान दिवस को नेशनल होली डे के रूप में मनाने तथा हर प्रदेश में जिला स्तर पर शहीदी म्यूजियम खोलने की मांग की है। अपनी इस मांग को सरकार तक पहुंचाने व अधिक से अधिक लोगों को इस आंदोलन के साथ जोड़ने के लिए 27 फरवरी (चंद्रशेखर आजाद के शहीदी दिवस) से ‘कुछ पल शहीदों के नाम’ से पैदल यात्रा शुरू की है। यह यात्रा जींद से चलकर गांव व कस्बों से होते हुए पंजाब के नवा शहर स्थित भगत सिंह के गांव खटकड़ कलां पहुंचेगी। देश की पहली हाईटेक पंचायत बीबीपुर भी इन युवाओं के सहयोग में खड़ी हो गई और पंचायत द्वारा इन युवाओं को विशेष सहयोग दिया गया है। सोमवार से शुरू हुई इस यात्रा को बीडीपीओ नीलम अरोड़ा ने शहर के शहीद स्मार्क से हरी झंडी दिखाकर रवाया किया तथा जींद के विधायक हरिचंद मिढ़ा ने भी इन युवाओं का जोरदार स्वागत किया।
जिन शहीदों ने हमारी खुशियों व देश की आजादी के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए आज हम उन्हीं महान शहीदों को भुलाए बैठे हैं। जिन शहीदों ने हमारे हक के लिए लड़ाई लड़ी आज हम उनके हक पर ही डाका डाल रहे हैं। हमारी युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट होकर बुराइयों के दलदल में धंसती जा रही है। शहीदों को उनका हक दिलाने तथा युवा पीढ़ी को सही रास्ता दिखाने की एक उम्मीद की किरण जगाई है जिले के कुछ नौजवानों ने। इन नौजवानों ने इस लड़ाई के लिए भगत सिंह को अपना आदर्श माना है और भगत सिंह की जीवनी से ही इन्हें यह प्रेरणा मिली है। इन युवाओं ने अब शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस 23 मार्च को नेशनल होली डे मनाने, देश में जिला स्तर पर शहीदी म्यूजियम बनाने, स्कूलों के पाठ्यक्रम में शहीदों की जीवनी लागू करवाने, शहीदों के नाम से सरकारी योजनाएं शुरू करने, पुंजीवाद को समाप्त कर समाजवाद को बढ़ावा देने के लिए आवाज उठाई है। ये नौजवान शहीदों को क्षेत्रवाद की सीमा में न बांटकर पूरे देश के युवाओं के लिए उन्हें प्रेरणास्त्रोत बनाना चाहते हैं। इनका कहना है कि आज हमारे शहीद क्षेत्रवाद तक ही सीमित रह गए हैं। खुदीराम बोस को सिर्फ पंश्चिम बंगाल, चंद्रशेखर को इलाहबाद तथा भगत सिंह व ऊधम सिंह जैसे शहीदों को सिर्फ पंजाब व हरियाणा के लोग ही जानते हैं। आज देश को फिर से भगत सिंह जैसे नौजवानों की जरुरत है और देश में ऐसे ही नौजवान तैयार करने के लिए इन युवाओं ने अपनी लड़ाई शुरू कर दी है। इसके लिए इन्होंने शहीद चंद्रशेखर आजाद के शहीदी दिवस यानि 27 फरवरी से एक पैदल यात्रा शुरू की है। इस यात्रा में शहर व गांवों से 30 के लग•ाग युवा शामिल हैं। यह यात्रा गांव व कस्बों से होते हुए पंजाब के नवा शहर स्थित भगत सिंह के गांव खटकड़ कलां पहुंचेगी और यहां पहुंचकर एक बड़े समारोह का आयोजन किया जाएगा। यात्रा के दौरान रास्ते में आने वाले शहीदी स्थलों पर ये नौजवान श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। वहां से वापिस लौटने के बाद भी ये अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
भगत सिंह के नाम से तैयार की वेबसाइट
आज कंप्यूटर का युग होने के कारण युवाओं में इंटरनेट का चलन काफी बढ़ गया है। इसलिए इन युवाओं ने अपने आंदोलन को सफल बनाने तथा अधिक से अधिक युवाओं को अपने साथ जोड़ने के लिए इन्होंने डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाट भगत सिंह एनएस डाट इन के नाम से वेबसाइट तैयार की है और इस साइट पर भगत सिंह के जीवन से संबंधित सभी दस्तावेज डाले गए हैं।
 युवाओं ने की एक अनुठी पहल
युवाओं की यह एक अनुठी पहल है। इस यात्रा से देश के युवाओं को काफी प्रेरणा मिलेगी। यात्रा से लौटने के बाद जिला प्रशासन से भी इन युवाओं के सहयोग के लिए अपील की जाएगी। ताकि हमारी युवा पीढ़ी शहीदों से प्रेरणा ले सके।
नीलम अरोड़ा
बीडीपीओ, जींद

रविवार, 26 फ़रवरी 2012

...ताकि किसानों को न पड़े कीटनाशकों की जरुरत

अल व चेपे से चिंतित न हों किसान
सरसों की फसल में लगा अल
नरेंद्र कुंडू
जींद।
खेतों में सरसों व गेहूं की फसल तैयार हो रही है, लेकिन फसल में आए अल व चेपे से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ रही हैं। क्योंकि ये शकाहारी कीट फसल की टहनियों, कलियों व पत्तियों से रस चुसकर अपना वंश चलाते हैं। जिससे फसल की पैदावार पर काफी प्रभाव पड़ता है। गेहूं की फसल में होने वाली पेंटिडबग व सरसों की फसल में होने वाली एफिड (अल या चेपे) के कीट से फसल का बचाव करने के लिए कृषि वैज्ञानिक किसानों को कीटनाशक स्प्रे की सलाह दे रहे हैं। लेकिन इसके विपरित कीट प्रबंधन के प्रति जागरूक किसान पिछले 6-7 सालों से इसका उपचार कीट प्रबंधन से ही कर रहे हैं तथा इसे चिंता का विषय न बताकर अन्य किसानों को भी फसल में किसी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग न करने की सलाह दे रहे हैं। निडाना खेत पाठशाला के किसान फसल में पाई जाने वाली मासाहारी सिरपट मक्खी व लेडी बिटल को अल व चेपे के कीड़ों का वैद्य बता रहे हैं।
धान व कपास की फसलों के भावों में हुई भारी गिरावट के बाद अब किसानों को गेहूं व सरसों की फसल में आए पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपे) की चिंता सता रही है। अल व चेपे के कारण किसानों को फसल की कम पैदावार का डर सताने लगा है। जिसके उपचार के लिए किसान महंगे से महंगे कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। फसल पर बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग से फसल जहरिली हो रही है और जमीन भी कमजोर पड़ रही है। कृषि विज्ञानिक कीटनाशक स्प्रे के प्रयोग को अल व चेपे से बचाव का एकमात्र साधन मान रहे हैं। लेकिन उधर निडाना खेत पाठशाला के कुछ जागरूक किसान अल व चेपे के कीटों का उपचार कीटनाशक स्प्रे को नहीं कीट प्रबंधन को बता रहे हैं। किसान खेत पाठशाला के ये जागरूक किसान प्राकृतिक तौर पर ही इन कीटों  से निपटने में सक्ष्म रहे हैं और अल व चेपे को चिंता का विषय नहीं मान रहे हैं। कीट प्रबंधन के प्रशिक्षित किसान रणबीर मलिक व मनबीर रेढू ने बताया कि गेहूं व सरसों की फसल में पाए जाने वाली पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपे) के कीटों को कंट्रोल करने के लिए फसल में सरफड़ो (सिरपट मक्खी)व फेलपास (लेडी बिटल) नामक मासाहारी कीट मौजूद रहते हैं, जो फसल में मौजूद अल व चेपे के कीटों को खाकर अपना जीवन चक्र चलाते हैं। जिससे अल व चेपा फसल में हानि पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाता है। कीट प्रबंधन के दौरान उन्होंने फसल में 6 से 7 किस्म की सिरपट मक्खियों व 9 किस्म की लेडी बिटल कीटों की पहचान की है। उन्होंने कहा कि किसानों को अल व चेपे से डरने की जरूरत नहीं है।
क्या है पेंटिडबग व एफिड
पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपा) गेहूं व सरसों की फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी कीट हैं। ये कीट फसल की टहनियों, पत्तियों व कलियों से रस चुसकर वंशवृद्धि करते हैं। दिसंबर से मार्च के बीच सर्द मौसम में फसल में पैदा होते हैं। फसल से रस चुसने के कारण फसल की टहनियां मुड़ने लगती हैं और फूलों से फलियां नहीं बनपाती। फलियों में दाने हलके रह जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सरसों व गेहूं के अलावा यह कीट तोरिया, तारामीरा, बंदगोभी, फूलगोभी व करेला आदि फसलों में भी पाए जाते हैं।
क्या कहते हैं कृषि विज्ञानिक
पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपा) एक शाकाहारी कीट हैं और ये कीट फसल का रस चुसकर अपनी वंश वृद्धि करते हैं। दिसंबर से मार्च के बीच का सर्द एवं मेघमय मौसम में ये फसल में पैदा होते हैं। लेकिन अल व चेपे से किसानों को किसी प्रकार की चिंता करने की जरूरत नहीं है। इन कीटों को खाने के लिए फसल में सिरपट मक्खी व लेडी बिटल नामक मासाहारी कीट होते हैं, जो इन शाकाहारी कीटों को खाकर फसल को नुकसान से बचाते हैं।
डा. सुरेंद्र दलाल
कृषि विज्ञानिक, जींद

दूसरे राज्यों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगी म्हारी महिलाएं

निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की 20 प्रशिक्षित महिलाओं ने शुरू की 5 दिवसीय अंतर्राज्यीय यात्रा
नरेंद्र कुंडू
जींद।
मित्र व दुश्मन कीटों की पहचान में महारत हासिल करने वाली निडाना की महिला किसान अब दूसरे राज्यों में भी इस अभियान की अलख जगाने निकल पडी हैं। वीरवार से शुरू हुई इस 5 दिवसीय अंतर्राज्य अनावरण यात्रा के दौरान ये महिला किसान पतंजलि योगपीठ, देहरादुन व हिमाचल में स्थित आॅर्गेनिक रिसर्च सेंटरों का दौरा करेंगी। यहां पर ये महिलाएं प्रशिक्षकों को जैविक खेती के जरूरी टिप्स देंगी। कृषि विभाग द्वारा शुरू की गई इस अनावरण यात्रा में निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की 20 प्रशिक्षित महिलाओं को चुना गया है। महिलाओं के इस 5 दिवसीय टूर पर कृषि विभाग द्वारा 60 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे। महिलाओं की टीम का नेतृत्व कृषि विभाग के एडीओ डा. सुरेंद्र दलाल व डा. कमल सैनी करेंगे।   
फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के इस्तेमाल को रोकने तथा मित्र कीटों की पहचान कर जैविक खेती को बढ़ावा देने की मुहिम अब रफ्तार पकड़ रही है। निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की महिला किसान कीट प्रबंधन के क्षेत्र में प्रदेश में धाक जमाने के बाद अब दूसरे राज्यों के किसानों को जैविक खेती के लिए जागरुक करने के लिए निकल चुकी हैं। महिलाओं की इस मुहिम में अब कृषि विभाग भी इनके साथ खड़ा हो गया है। कृषि विभाग ने महिलओं को खेती के  क्षेत्र में पारंगत करने के उद्देश्य से महिला किसान पाठशाला की 20 प्रशिक्षित महिलाओं को वीरवार से 5 दिवसीय अंतर्राज्य अनावरण यात्रा पर भेजा है। इस टूर के माध्यम से महिलाएं भी जैविक खेती की नवीनतम जानकारी हासिल करेंगी तथा आर्गेनिक रिसर्च सेंटर के प्रशिक्षकों को भी कीट प्रबंधन के बारे में बताएंगी। इस यात्रा के दौरान यह महिला किसान पंतजलि योगपीठ के जैविक विविधता एवं औषधिय पार्क, देहरादुन के फोरस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट, कीड़ों के संग्राहलय, आर्गेनिक रिसर्च एंड प्रशिक्षण केंद्र, देहरादुन के रामपुरा गांव स्थित नवधानय आर्गेनिक फार्म, हिमाचल के पौंटा साहिब स्थित बॉयो डायनेमिक वैदिक फार्म, सुबोध अभी  आर्गेनिक फार्म का दौरा करेंगी। यहां पर ये महिलाएं प्रशिक्षकों को फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान कर कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगी। कृषि विभाग द्वारा इस 5 दिवसीय टूर पर 60 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे। वीरवार से शुरू हुआ यह टूर 28 फरवरी को ताजेवाला से वापिस जींद पहुंचेगा।
शैक्षणिक  होगा टूर ।
महिलाओं के लिए यह एक शैक्षणिक टूर होगा। इस टूर के दौरान महिला किसान जहां दूसरे प्रशिक्षकों को कीट प्रबंधन के बारे में बताएंगी, वहीं प्रशिक्षकों से उन्हें भी कुछ न कुछ नया सिखने को मिलेगा। इस टूर के दौरान महिलाओं को देहरादुन स्थित आर्गेनिक रिसर्च एंड प्रशिक्षण केंद्र की निदेशक एवं विश्व प्रसिद्ध विज्ञानिक  डा. वंदना के साथ भी मुलाकात करवाई जाएगी। डा. वंदना इन महिला किसानों को जैविक खेती की नवीनतम जानकारियां उपलब्ध करवाएंगी।
 डा. सुरेंद्र दलाल 
एडीओ कृषि विभाग, जींद

5 दिवसीय है टूर
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए महिला किसान पाठशाला की 20 प्रशिक्षक महिलाओं को 5 दिवसीय टूर पर भेजा गया है। इस टूर के माध्यम से महिला किसान जैविक खेती की नई-नई जानकारियां प्राप्त करेंगी तथा दूसरे राज्यों में स्थित प्रशिक्षण केंद्रों के प्रशिक्षकों से भी कीट प्रबंधन के बारे में अपने विचार सांझा करेंगी।
डा. प्रताप सिंह सब्रवाल
जिला कृषि अधिकार, जींद

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

‘शरीर की तलाश में भटकती आत्मा’

विभाग द्वारा किसानों से नहीं मांगे गए आवेदन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार द्वारा कृषि प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई आत्मा योजना अभी तक फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई है। सरकार की बेरुखी केचलते इस वर्ष ‘आत्मा’ शरीर के लिए भटक रही है। योजना फाइलों में दफन होने के कारण  किसी भी प्रगतिशिल किसानों को इसका लाभ नहीं मिल सका है। पिछले वर्ष जहां जिले से 35 प्रगतिशिल किसानों ने इस योजना का लाभ उठाया था, वहीं इस बार विभाग ने इसके लिए आवेदन तक मांगने की जहमत नहीं उठाई है। जिसके चलते जिलेभर के दो दर्जन से ज्यादा किसान पुरस्कार की बाट जोह रहे हैं। लेकिन विभाग इस पर चुप्पी साधे बैठा है।
प्रौद्योगिक खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के उद्देश्य से सरकार ने आत्मा योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत हर वर्ष प्रगतिशिल किसानों को एक पुरस्कार राशि दी जाती है ताकि अधिक से अधिक किसान प्रौद्योगिक खेती को अपना कर अधिक से अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकें। लेकिन इस वर्ष सरकार की आत्मा योजना फाइलों में धूल फांक रही है। योजना सिरे न चढ़ पाने के कारण इस वर्ष प्रगतिशिल किसानों को इसका लाभ नहीं मिला है। घिमाना किसाल क्लब के सदस्यों ने बताया कि पिछले वर्ष इस योजना के तहत जिले के 35 प्रगतिशिल किसानों को पुरस्कार दिए गए थे। उन्होंने बताया कि वर्ष समाप्त होने में अभी एक माह बीच में है, लेकिन किसानों को पुरस्कार देना तो दूर की बात अभी  तक विभाग ने किसानों से आवेदन तक नहीं मांगे हैं।
यह है योजना
तकनीकी रुप से उन्नत खेती करने वाले किसानों को सरकार आत्मा योजना के तहत सम्मानित करती है। इस योजना के तहत उन किसानों से आवेदन मांगे जाते हैं, जो तकनीकी रूप से खेती, पशुपालन, मछली पालन और मुर्गी पालन करते हैं। इन किसानों की पहचान करने के लिए जिला स्तर पर एक समिति बनाई जाती है। इस समिति में जिला कृषि उपनिदेशक, पशुपालन विभाग के जिला उपनिदेशक, मछली पालन विभाग के जिला अधिकारी तथा जिला मुर्गी पालन, जिला बागवानी अधिकारी को शामिल किया जाता है। इस योजना के तहत किसानों को खेती, पशुपालन, सब्जियां पैदा करने, मुर्गी पालन तथा मछली पालन के लिए अलग-अलग अंक दिए जाते हैं। समिति एक टीम का गठन कर सर्वे करवाती है और सर्वे के दौरान प्रगतिशिल किसानों को सर्वे टीम द्वारा दिए गए अंकों के अनुसार ही उनका नाम पुरस्कार के लिए भेजा जाता है। जिसके बाद जिला स्तर पर पांच किसानों को सरकार की तरफ से 25-25 हजार रुपए तथा ब्लॉक स्तर पर तीन-तीन किसानों को 10-10 हजार रुपए पुरस्कार के रूप में दिए जाते हैं। जिला स्तर पर विजेता किसानों के नाम राज्य स्तर के लिए भेजे जाते हैं।
प्रौद्योगिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने आत्मा योजना शुरू की थी और सरकार के निर्देशानुसार ही उन्नत किसानों से आवेदन मांगे जाते हैं। लेकिन इस वर्ष सरकार की तरफ से कोई निर्देश नहीं आए हैं। जिस कारण योजना को अमल में नहीं लाया गया है। जैसे ही सरकार की तरफ से निर्देश मिलेंगे, उसी समय योजना को शुरू कर प्रगतिशिल किसानों से आवेदन मांगे जाएंगे।
डा. प्रताप सिंह सब्रवाल
जिला कृषि अधिकारी, जींद

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

जिला खेल अधिकारी की कुर्सी बनी खेल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला खेल अधिकारी की कुर्सी दो अधिकारियों की आपसी खिंचतान के चलते खेल बनकर रह गई है। जींद खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया का तबादला 2 फरवरी को सोनीपत में हो गया था और सोनीपत के खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया को जींद खेल अधिकारी की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। विभाग द्वारा जारी आदेशों के बाद जींद के खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया ने तो जींद से रिलीव होकर सोनीपत ड्यूटी ज्वाइंन कर ली, लेकिन प्रकाश सिंह दहिया जींद में ड्यूटी ज्वाइंन करने को तैयार नहीं हैं और सोनीपत में ही खेल अधिकारी की कुर्सी पर जम बैठे हैं। ऐसे में सोनीपत जिले के पास तो दो खेल अधिकारी हो गए, लेकिन जींद के खेल अधिकारी की कुर्सी पर बैठने के लिए कोई तैयार नहीं है। जिला खेल अधिकारी की कुर्सी खाली होने से यहां की खेल गतिविधियां पूरी तरह से प्रभावित हो गई हैं।
सोनीपत की जिला खेल अधिकारी की कुर्सी में आखिर ऐसा क्या है कि विभाग के आदेशों के बावजूद भी खेल अधिकारियों का मोह उस कुर्सी से नहीं छुट रहा है। दोनों खेल अधिकारियों में चल रही खींचतान नई नहीं बल्कि काफी पुरानी है। यह मामला उस समय से चल रहा है, जब मेवात में ड्यूटीरत जिला खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया ने मेवात से अपना तबादला सोनीपत में करवा लिया था और फूलकुमार की जगह सोनीपत के जिला खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया को सोनीपत से मेवात में भेज दिया था। इसके बाद प्रकाश सिंह दहिया ने अपना तबादला मेवात से जींद करवा लिया था। जींद की कुर्सी भी प्रकाश सिंह दहिया को रास नहीं आई और प्रकाश सिंह दहिया ने केवल तीन माह बाद ही जींद से अपना तबादला सोनीपत करवा लिया और फूलकुमार दहिया को सोनीपत से जींद पहुंचा दिया। इसके बाद तो यह सिलसिला रूकने की बजाए बदस्तुर जारी हो गया। जींद में तबादला होने के बाद फूलकुमार दहिया ने भी ज्यादा दिन जींद में नहीं रुके और उन्होंने भी अपनी राजनैतिक अपरोच का सहारा लेकर तीन माह के अंदर ही दोबारा से अपना तबादला जींद से सोनीपत करवा लिया और प्रकाश सिंह दहिया को सोनीपत से वापिस जींद का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद फूलकुमार दहिया ने जींद से तबादला होने के बाद 2 फरवरी को सोनीपत में ड्यूटी ज्वाइन कर ली, लेकिन सोनीपत के जिला खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया सोनीपत से रिलीव नहीं हो रहे हैं। इस प्रकार सोनीपत को तो दो खेल अधिकारी मिल गए, लेकिन 2 फरवरी के बाद से जींद की कुर्सी खाली हो गई। दोनों अधिकारियों की आपसी खिंचतान का खामियाजा जींद जिले के खिलाड़ियों को भुगतना पड़ रहा है। जिला खेल अधिकारी की कुर्सी खाली होने से खेल गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं।
आखिर क्यों नहीं छुट रहा सोनीपत का मोह?
जिला खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया व प्रकाश सिंह दहिया दोनों का गृह क्षेत्र सोनीपत है। फूलकुमार दहिया अगले वर्ष परमोट होकर डिप्टी डायरेक्टर बन जाएंगे, जिसके बाद उन्हें बाकि बचा अपना कार्यकाल सोनीपत से बाहर ही गुजारना पड़ेगा। इसलिए वे इस साल का अपना कार्यकाल अपने गृह क्षेत्र सोनीपत में ही गुजाना चाहते हैं। वहीं दूसरी ओर जिला खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया रिटायरमेंट के नजदीक होने के कारण अपना बचा हुआ कार्यकाल सोनीपत में ही बितना चाहते हैं। गृह क्षेत्र का यह लालच इन्हें सोनीपत से बाहर नहीं जाने दे रहा है।
इस बारे में जिला खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि वि•ााग ने उनका तबादला जींद से सोनीपत कर दिया है और विभाग के आदेशों के बावजूद ही उन्होंने जींद से रिलीव होकर सोनीपत में ज्वाइन किया है। उन्होंने तो विभाग के आदेशानुसार ही अपनी जिम्मेदारी संभाली है।
इस बारे में जिला खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि अभी वह सोनीपत से रिलीव नहीं हुए थे। रविवार को छुट्टी होने के कारण वह सोमवार को सोनीपत से रिलीव हो जाएंगे और मंगलवार से जींद में ज्वाइन कर अपना कार्यभार संभालेंगे।
 अधिकारी का नाम    ज्वाइनिंग की तिथि    रिलीव होने की तिथि
प्रकाश सिंह दहिया    22-07-11        24-10-11
फूलकुमार दहिया        2-11-11         2-02-12   
अब पिछले 3 सप्ताह से जींद खेल अधिकारी की कुर्सी खाली है।


.....और पढ़ाई करते-करते 20 साल कम हो गई उम्र


आईटीआई द्वारा जारी प्रमाण पत्र दर्शा रहे हैं अलग-अलग जन्मतिथि
 आईटीआई द्वारा स्नेहलता को जारी किए गए प्रमाण पत्र।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिस संस्थान के कंधो पर विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध करवाने का जिम्मा होता है, उसी संस्थान के कुछ कर्मचारियों की थोड़ी सी गलती ने एक छात्रा की झोली में रोजगार की जगह परेशानियां व धक्के डाल दिए हैं। जींद की सरकारी आईटीआई में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। आईटीआई की तरफ से छात्रा को जारी किए गए प्रमाण पत्रों में एक छात्रा की उम्र देखते ही देखते 20 साल घट गई है। छात्रा को जारी किए गए प्रमाण पत्रों से छेड़छाड़ कर उसकी जन्मतिथि 1974 से बदलकर 1994 कर दी गई है। प्रमाण पत्रों में जन्मतिथि सही न होने के कारण छात्रा के भविष्य पर तलवार लटक रही है। छात्रा अपनी जन्मतिथि ठीक करवाने के लिए पिछले दो साल से आईटीआई के चक्कर काट रही है, लेकिन अब तक छात्रा को आईटीआई प्रबंधन की ओर से कोई संतुष्ट जवाब नहीं मिला है। आईटीआई प्रबंधन की तरफ से कोई उम्मीद नजर न आती देख छात्रा ने उपायुक्त का दरवाजा खटखटाया है। उपायुक्त को दी शिकायत में छात्रा ने आईटीआई प्रबंधन पर जानबुझकर उसे परेशान करने का आरोप लगाया है।
शहर के अपोलो रोड स्थित राज नगर निवासी राजकुमार की पुत्री स्नेह लता को अपने हक के लिए आवाज उठाना काफी महंगा पड़ा। स्नेहलता ने आईटीआई में दाखिला लेते वक्त शायद यह नहीं सोचा था कि जहां पर वह प्रशिक्षण के लिए दाखिला ले रही है, वहां से उसे परेशानियों के सिवाए कुछ नहीं मिलेगा। स्नेहलता ने उपायुक्त को दी शिकायत में बताया कि उसने 2008 में आईटीआई में सिलाई व कढ़ाई की ट्रेड में दाखिला लिया था। स्नेहलता ने बताया कि उसे प्रशिक्षण के दौरान सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के बच्चों को मिलने वाला सहायता भत्ता नहीं मिला था। इसलिए उसने अपने हके के लिए आवाज उठाते हुए इसकी शिकायत जिला प्रशासन को की। प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद संस्थान की तरफ से उसे भत्ता तो मिल गया, लेकिन भत्ते के साथ-साथ उसे आईटीआई प्रबंधन की रंजिश भी तोहफ के रूप में मिली। जिसका खामियाजा उसे आज तक भुगतना पड़ रहा है। स्नेहलता ने बताया कि आईटीआई के कुछ कर्मचारियों ने उससे रंजिश रखते हुए उसे परेशान करने के लिए उसके प्रमाण पत्रों के साथ छेड़छाड़ कर उसकी जन्मतिथि में बदलाव कर दिया। आईटीआई द्वारा जारी किए गए उसके दोनों प्रमाण पत्रों में उसकी जन्मतिथि में 20 साल का अंतर है। स्नेहलता ने बताया कि आईटीआई द्वारा अगस्त 2008 से जुलाई 09 तक के पिरयेड में जारी किए गए प्रमाण पत्र में उसकी जन्मतिथि 12 मार्च 1974 दर्ज की गई है, जो सही है। लेकिन अगस्त 2009 से जुलाई 2010 के पिरयेड में जारी किए गए दूसरे प्रमाण पत्र में उसकी जन्मतिथि 12 मार्च 1994 दर्ज की गई है, जो गलत है। स्नेहलता ने बताया कि वह अपनी जन्मतिथि ठीक करवाने के लिए कई बार आईटीआई के चक्कर लगा चुकी है, लेकिन आईटीआई के कर्मचारी हर बार उसे कुछ न कुछ बहाना बनाकर टाल देते हैं। आईटीआई द्वारा जारी किए गए दोनों प्रमाण पत्रों में अलग-अलग जन्मतिथि होने के कारण वह कहीं भी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर पा रही है। आईटीआई के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण उसका भविष्य तो खतरे में है ही, साथ-साथ उसे मानसिक, आर्थिक व शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है। जिस कारण उसे मजबूरन उपायुक्त कार्यालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।
प्रमाण पत्र में हुई गलती क्लेरिकल मिस्टेक
आईटीआई की ओर से स्नेहलता को जारी किए गए प्रमाण पत्रों में हुई गलती किसी रंजिश के कारण नहीं, बल्कि यह एक क्लेरिकल मिस्टेक है। इस गलती को ठीक करने के लिए आईटीआई प्रबंधन द्वारा कई बार स्नेहलता को लिखित में पत्र भेजा जा चुका है। लेकिन वह अपने असली प्रमाण पत्र आईटीआई में जमा नहीं करवा रही है। स्नेहलता के अभिभावक आईटीआई प्रबंधन को परेशान करने के लिए जानबुझ कर बार-बार उपायुक्त को शिकायत दे रहे हैं। इस तरह की शिकायत यह पहले भी कर चुके हैं और आईटीआई प्रबंधन अपनी तरफ से इनका जवाब प्रशासन को दे चुका है।
सुभाष गौतम, प्राचार्य
आईटीआई महिला विंग, जींद


सरकारी टीचर सेमिनार में कैसे होगा बच्चों का सिलेबस पूरा

परीक्षा की तैयारियों में लगे बच्चे।

नरेंद्र कुंडू
जींद।
शिक्षा विभाग के नए नियम कानून छात्रों के भविष्य पर भारी पड़ रहे हैं। टीचर कभी सेमिनार में तो कभी  अन्य गैर शिक्षण कार्यों में लगे हुए हैं। परीक्षा की डेटशीट भी आ गई। मगर अभी तक बच्चों का कोर्स पूरा नहीं हुआ है, रिवीजन तो दूर की बात है। कोर्स पूरा नहीं होने पर बच्चों को रिजल्ट की चिंता सता रही है। मगर शिक्षा विभाग के अधिकारियों व सरकार को इसकी जरा भी परवाह नहीं है। कक्षा एक से 10 तक के बच्चों का कोर्स पूरा नहीं हुआ है। इन क्लासों में एक लाख 17 हजार 944 विद्यार्थी पढ़ते हैं। कोर्स पूरा न होने पर जिले के एक लाख 17 हजार 944 बच्चों के भविष्य पर तलवार लटी हुई है।
शिक्षकों का कहना है कि पहला सेमेस्टर स्टेट टेस्ट व अन्य कारणों से लंबा चला। इसका असर यह रहा कि दूसरे सेमेस्टर के लिए बहुत कम समय मिला। इस कारण कोर्स पूरा होना असंभव है। नियम के मुताबिक एक सेमेस्टर के लिए 120 दिन होने चाहिए। आधा नंवबर शिक्षकों का परीक्षा व र्माकिंग में चला गया। उसके बाद जनगणना में ड्यूटी लगा दी गई। केवल दिसंबर में क्लास लगी। पांच से 16 जनवरी तक शीतकालीन छुट्टी रही। उसके बाद एक सप्ताह गणत्रंत दिवस की तैयारी में निकल गया। अब सब डिविजनों पर चल रहे सतत मूल्यांकन सेमिनारों में जिले से लगभग 180 अध्यापक तथा ब्लॉक स्तर पर चल रहे जेबीटी अध्यापकों के सेमिनारों में जिले से लगभग 350 अध्यापक भाग ले रहे हैं। अध्यापकों के सेमिनार में जाने से बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है और उनका कोर्स पूरा नहीं हो पा रहा है।
तैयारी के लिए बचे कुछ दिन
अब बच्चों का कोर्स पूरा कराने के लिए मात्र फरवरी का महीना बचा है। शिक्षकों की ड्यूटी शिक्षा सुधार के लिए सेमिनार में लगाई गई है। 14 दिन तक शिक्षकों को सेमिनार को अटैंड कराना है। शिक्षकों के सेमिनार में जाने पर बच्चे क्लास में खाली बैठे रहते हैं। शिक्षक सुनील आर्य का कहना है बिना पढ़ाई कराए सतत मूल्याकंन सेमिनार कैसे हो रहे हैं। इस तरह के सेमिनार होने जरूरी हैं। मगर उसके लिए निश्चित समय होना चाहिए। सरकार को छुट्टियों के दौरान सेमिनार लगाने चाहिएं। उनका कहना है कि सरकार शिक्षण दिवस में सेमिनार करवा कर पैसा बचा रही है। जिससे बच्चों का भविष्य संकट में चला जाएगा। 15 मार्च से बोर्ड परीक्षाएं संभावित हैं। इसके मद्देनजर नान बोर्ड परीक्षाएं स्कूलों में एक मार्च से शुरू हो जाएंगी। चंद दिनों में कोर्स पूरा नहीं हो पाएगा। शिक्षकों को मजबूरन बच्चों को पास कर दूसरी क्लास में भेजना होगा। मगर बोर्ड परीक्षा देने वाले बच्चों को ज्यादा दिक्कत आएगी।
पढ़ाई से ज्यादा दूसरे कार्यों में रखा जाता है व्यस्त
विभाग आए दिन शिक्षा में नए-नए प्रयोग कर रहा है। जो बच्चों के हित में नहीं हैं। शिक्षकों को पढ़ाई के बजाय दूसरे कामों में व्यस्त रखा जाता है। इसी कारण दूसरे सेमेस्टर में 50 दिन घट गए। 10वीं तक के बच्चों का कोर्स पूरा नहीं है। शिक्षक चाहकर भी कोर्स पूरा नहीं करवा सकते हैं। इससे बच्चों का रिजल्ट भी प्रभावित होगा और विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा इसके लिए टीचर्स को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
महताब मलिक
राज्य उपप्रधान, अध्यापक संघ

पायलेट प्रोजेक्ट से कंट्रोल किया जाएगा गिरता भूजल स्तर

गांव में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम के लिए खुदाई करते मजूदर।
बीबीपुर गांव में लगा प्रदेश का पहला रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम
नरेंद्र कुंडू
जींद।
पायलेट प्रोजेक्ट से अब गिरते भूजल स्तर पर काबू पाया जाएगा। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई पायलेट प्रोजेक्ट योजना के तहत ग्राम पंचायत बीबीपुर से भूजल संरक्षण मुहिम की शुरूआत की गई है। इसलिए प्रयोग के तौर पर बीबीपुर गांव में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है। बरसात के पानी को सिस्टम में फिल्टर कर जमीन में छोड़ा जाएगा। इससे गांव के भूजल में सुधार होगा और बसरात का पानी बेकार होने से बचेगा। यहां पर अगर सिस्टम सफल होता है तो प्रदेश में इस योजना को प्रमुख्ता से लागू किया जाएगा।
लगातार हो रहे पानी के दोहन से भूजल स्तर काफी नीचे गिर रहा है और शुद्ध पानी के स्त्रोतों भी कम हो रहे हैं। गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पायलेट प्रोजेक्ट योजना शुरू की गई है। प्रदेश में इस योजना की शुरूआत जिले के बीबीपुर गांव से की गई है। प्रदेश का यह सबसे पहला ऐसा गांव है जहां पर रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है। केंद्र सरकार की इस योजना को प्रदेश में सफल बनाने में कृषि विभाग भी संयोजक के तौर पर सरकार का सहयोग कर रहा है। गांव में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम का निर्माण मनरेगा स्कीम के तहत करवाया गया है। इसके निर्माण में लगभग साढ़े तीन लाख रुपए खर्च किए गए हैं। साढ़े 6 एकड़ जमीन में बने आयुर्वेदिक अस्पताल, आंगनवाड़ी केंद्र व स्कूल का सारा बरसाती पानी इस सिस्टम में फिलटर कर जमीन में छोड़ा जाएगा। यहां पर अगर यह सिस्टम सफल होते हैं तो बाद में प्रदेश में इस योजना को प्रमुख्ता से लागू करते हुए बड़े-बड़े इंस्टीच्यूटों में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम का निर्माण करवाया जाएगा। सरकार की इस योजना से जमीन में शुद्ध पानी के स्त्रोतों को बढ़ावा मिलेगा और भूजल स्तर में सुधार होगा।
ग्राम सभा में किया था प्रस्ताव पास
पंचायत की उपलब्धियों  को देखते हुए ही उनके गांव में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है। इसके अलावा गांव को यह प्रोजेक्ट मिलेने का मुख्य कारण यह है कि पंचायत ने इस प्रस्ताव को ग्राम सभा  में पास किया था और ग्राम सभा में प्रस्ताव पास होने के कारण ही सरकार भी इस प्रोजेक्ट को टाल नहीं सकी। गांव में अगर यह सिस्टम सफल होता है तो ऐसे ही 5 सिस्टम गांव में ओर लगाए जाएंगे।
सुनील जागलान
सरपंच, बीबीपुर पंचायत


पानी के अधिक दोहन के कारण हमारे शुद्ध पानी के स्त्रोत कम हो रहे हैं और भूजल स्तर भी काफी तेजी से नीचे जा रहा है। शुद्ध पानी के स्त्रोतों को बढ़ाने और भूजल स्तर को सुधारने के लिए ही सरकार ने यह योजना शुरू की है। बरसात के पानी को सबसे शुद्ध माना जाता है, इसलिए बरसात के पानी को पहले सिस्टम में फिलटर किया जाएगा और उसके बाद जमीन में छोड़ा जाएगा।
ओडी शर्मा
प्रोजेक्ट मैनेजर, जींद




आपदाओं से निपटने के लिए लोगों को किया जाएगा ट्रेंड

जिले में विकसित किया जाएगा सिविल डिफेंस टाउन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने तथा ऐसे समय में दूसरे लोगों की मदद करने में अब जिले के लोग सक्षम होंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग अब लोगों को नागरिक सुरक्षा के गुर सिखाएगा। जींद जिले को जल्द ही सिविल डिफेंस टाउन की सौगात मिलने जा रही है। विभाग द्वारा जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। मुख्यालय की तरफ से योजना को हरी झंडी मिलते ही योजना को मूर्त रूप दिया जाएगा। जींद के साथ-साथ 5 अन्य जिलों को भी सिविल डिफेंस टाउन का तोहफा मिलेगा। 
अब जिले के लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक सुरक्षा के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। प्रदेश के 10 जिलों की तर्ज पर अब जींद जिले में भी सिविल डिफेंस टाउन विकसित किया जाएगा। जिसका कंट्रोलर उपायुक्त को बनाया जाएगा। आपदा के समय स्वयं व अन्य लोगों की जान की रक्षा के लिए लोगों को ट्रेंड करने के लिए विभाग विशेष ट्रेनर नियुक्त करेगा। विभाग द्वारा नियुक्त किए गए ट्रेनर स्कूलों, कॉलेजों व सेमीनारों का आयोजन कर लोगों को ट्रेनिंग देंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग ने प्रदेश के पांच जिलों कैथल, जींद,  भिवानी, करनाल व रिवाड़ी का चयन सिविल डिफेंस टाउन के रूप में किया है। विभाग के अधिकारी टाउन के लिए विभिन्न जगहों की निशानदेही कर रहे हैं। ताकि किसी प्रकार की आपातकालीन स्थिति में सबसे पहले सिविल डिफेंस की कहां ज्यादा जरूरत पडेगी। इसके लिए विभाग लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित शहर के अन्य प्रमुख स्थानों पर प्वाइंट बना रहे हैं। इसकी रूपरेखा तैयार होने के बाद प्रपोजल बनाकर मुख्यालय को भेजा जाएगा ताकि बजट प्राप्त हो सके। बजट जारी होने के बाद विभाग के अधिकारी लोगों को इसकी ट्रेनिंग देंगे ताकि आपदा से निपटने में किसी प्रकार की परेशानी न हो और आपदा के समय जानी नुकसान होने से बचाया जा सके। इसके लिए जिले के सिविलिय लोगों को रिस्क्यू, फायर फाइटिंग, प्राथमिक चिकित्सा इत्यादि की ट्रेनिंग दी जाएगी।
गैस प्लांट बनाया जाएगा अतिसंवेदनशिल प्वाइंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग जिले में सिविल डिफेंस टाउन नियुक्त करने के लिए प्वाइंटों को चिह्नत कर रही है। इसके लिए विभाग ने शहर के लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित अन्य प्रमुख स्थानों को चिह्नत किया है। विभाग द्वारा इन सभी  प्वाइंटों में से गैस प्लांट को अतिसंवेदनशिल प्वाइंट बनाया है।
किस-किस जिले में चल रहा सिविल डिफेंस टाउन
अंबाला, हिसार, सिरसा, सोनीपत, रोहतक, गुड़गांव, फरीदाबाद, झज्जर, पानीपत, पंचकूला में सिविल डिफेंस टाउन चल रहे हैं। विभाग द्वारा एक करोड़ 60 लाख की ग्रांट जारी की जाती है।
जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। इसके लिए प्रपोजल तैयार किया जा रहा है। जल्द से जल्द प्रपोजल तैयार कर डायरेक्टर जनरल को भेजा जाएगा। विभाग की तरफ से बजट मिलते ही आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
बीरबल कुंडू कमांडेंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

पंचायतों में गड़बड़झाला

नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश में ग्राम पंचायतें नियमों व कायदों पर खरी नहीं उतर रही हैं। पंचायत को अपने कार्यकाल के दौरान कम से कम तीन बार ग्राम सभा की बैठक अवश्य करनी होती है और इसकी विडियोग्राफी करवाकर इसकी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजनी होती है, लेकिन प्रदेश की ग्राम पंचायतें इसकी जहमत नहीं उठाती हैं। सरपंच ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति कर उच्च अधिकारियों के सामने झूठी रिपोर्ट पेश कर देते हैं। सरपंचों के इस भ्रष्टाचार में उच्च अधिकारियों भी संलिप्त होते हैं। सरकारी अधिकारी भी चुपचाप अपना कमिशन ऐंठकर बिना किसी जांच पड़ताल के सरपंचों के प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगा देते हैं। अधिकारियों व सरपंचों की लापरवाही के कारण ग्राम पंचायतें आज भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बनी हुई हैं।
कहने को तो गांवों में पंचायती राज लागू है। सरकार पंचायती राज के आंकड़े गिनाते-गिनाते नहीं थकती। लेकिन अधिकारी अपने निजी स्वार्थ के चक्कर में सरकार की सारी योजनाओं को पलिता लगा रहे हैं। कानून के मुताबिक पंचायत के पांच साल के कार्यकाल में तीन ग्राम सभा की बैठकें होनी अनिवार्य हैं और इन ग्राम सभा की वीडियोग्राफी करवा उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट भेजनी भी  जरूरी है। इसके अलावा जिला प्लान के तहत गांव के विकास के लिए ग्रांट पास करने से पहले ग्राम सभा में उसका प्रस्ताव पास होना भी अनिवार्य है। अगर ग्राम सभा में प्रस्ताव पास न हो तो उस गांव को ग्रांट नहीं दी जा सकती। लेकिन सरपंच अपने कुछ भ्रष्ट साथियों के साथ मिलकर ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति कर देते हैं। दूसरी तरफ  अगर कोई प्रधान ईमानदारी से काम करना चाहे तो उसे इलाके के बीडीपीओ, एसडीओ व सीडीपीओ काम नहीं करने देते। गांव के फंड पर इन लोगों का शिकंजा इतना खतरनाक है कि वे चाहें तो गांव की ओर एक पैसा न जाने दें। सरपंच अगर इनके साथ मिलकर बेईमानी करे तो सब कुछ आसान है और अगर ईमानदारी से काम कराना चाहे तो ये उसकी फाइल आगे न बढ़ाएं। इसीलिए ईमानदार से ईमानदार सरपंच भी अपने गांव के फंड को इन अफसरों के चंगुल से नहीं छुटा सकता। ऐसा नहीं है कि देश में ईमानदार लोग सरपंच नहीं चुने जाते हैं। लेकिन देश भर के अनुभवों से यह देखा गया है कि सिर्फ  वही ईमानदार सरपंच इन अफसरों की मनमानी पर अंकुश लगा पाए हैं, जो वास्तव में अपने सारे फैसले ग्राम सभा में लेते हैं। हालांकि ऐसे प्रधानों की संख्या बेहद सीमित है, लेकिन इनके उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि पंचायती राज को सफल बनाने के लिए उसमें ग्राम सभाओं को किस तरह की कानूनी ताकत चाहिए।
एचआईआरडी की होती है जिम्मेदारी
सरपंच एसोसिएशन के प्रधान सुनील जागलान ने बताया कि प्रदेश की 6700 पंचायतों में से अधिकतर पंचायतों को तो नियमों की जानकारी ही नहीं होती। इसलिए वे ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति करते हैं और फिर सरकारी अधिकारियों के चुंगल में उलझ जाते हैं। पंचायतों को ग्राम सभा की पूरी जानकारी देने की जिम्मेदारी एचआईआरडी की होती है। एचआईआरडी के अधिकारियों को पंचायत के गठन के बाद पंचायत को ग्राम सभा का पूरा डेमो सिखाना होता है। लेकिन एचआईआरडी के अधिकारी इस तरह की कोई कार्रवाई अमल में नहीं लेते हैं।
क्या है नियम
एक पंचायत के पांच साल के कार्यालय काल में तीन बार ग्राम सभा होनी जरूरी हैं। ग्राम सभा में गांव के कुल वोटरों में से 10 प्रतिशत वोटर बैठक में होने अनिवार्य हैं। बैठक का एजेंडा सचिव द्वारा तय किया जाएगा और बैठक से एक सप्ताह पहले ग्राम सभा के सभी लोगों के बीच इसे वितरित किया जाएगा। ग्राम सभा के सदस्य यदि किसी मुद्दे को एजेंडे में डलवाना चाहें तो बैठक से पहले लिखित या मौखिक तौर पर सचिव को दे सकता है। ग्राम सभा में जो प्रस्ताव पास होता है, उस प्रस्ताव पर बैठक में मौजूद सभी सदस्यों के हस्ताक्षर होने भी जरूरी होते हैं। इसके अलावा ग्राम सभा करने से पहले उच्च अधिकारियों को सूचित करना भी जरूरी है। ग्राम सभा की वीडियोग्राफी करवा बीडीपीओ, डीडीपीओ, एडीसी, डीसी व डायरेक्टर पंचायती राज को देनी होती है।

आपदाओं से निपटने के लिए किया जाएगा ट्रेंड

जिले में विकसित किया जाएगा सिविल डिफेंस टाउन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने तथा ऐसे समय में दूसरे लोगों की मदद करने में अब जिले के लोग सक्षम होंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग अब लोगों को नागरिक सुरक्षा के गुर सिखाएगा। जींद जिले को जल्द ही सिविल डिफेंस टाउन की सौगात मिलने जा रही है। विभाग द्वारा जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। मुख्यालय की तरफ से योजना को हरी झंडी मिलते ही योजना को मूर्त रूप दिया जाएगा। जींद सहित 5 अन्य जिलों को भी सिविल डिफेंस टाउन का तोहफा मिलेगा। 
अब जिले के लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक सुरक्षा के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। प्रदेश के 10 जिलों की तर्ज पर अब जींद जिले में भी सिविल डिफेंस टाउन विकसित किया जाएगा। जिसका कंट्रोलर उपायुक्त को बनाया जाएगा। आपदा के समय स्वयं व अन्य लोगों की जान की रक्षा के लिए लोगों को ट्रेंड करने के लिए विभाग विशेष ट्रेनर नियुक्त करेगा। विभाग द्वारा नियुक्त किए गए ट्रेनर स्कूलों, कॉलेजों व सेमीनारों का आयोजन कर लोगों को ट्रेनिंग देंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग ने प्रदेश के पांच जिलों कैथल, जींद, भिवानी, करनाल व रिवाड़ी का चयन सिविल डिफेंस टाउन के रूप में किया है। विभाग के अधिकारी टाउन के लिए विभिन्न जगहों की निशानदेही कर रहे हैं। ताकि किसी प्रकार की आपातकालीन स्थिति में सबसे पहले सिविल डिफेंस की कहां ज्यादा जरूरत पडेगी। इसके लिए विभाग लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित शहर के अन्य प्रमुख स्थानों पर प्वाइंट बना रहे हैं। इसकी रूपरेखा तैयार होने के बाद प्रपोजल बनाकर मुख्यालय को भेजा जाएगा ताकि बजट प्राप्त हो सके। बजट जारी होने के बाद विभाग के अधिकारी लोगों को इसकी ट्रेनिंग देंगे ताकि आपदा से निपटने में किसी प्रकार की परेशानी न हो और आपदा के समय जानी नुकसान होने से बचाया जा सके। इसके लिए जिले के सिविलिय लोगों को रिस्क्यू, फायर फाइटिंग, प्राथमिक चिकित्सा इत्यादि की ट्रेनिंग दी जाएगी।
गैस प्लांट बनाया जाएगा अतिसंवेदनशिल प्वाइंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग जिले में सिविल डिफेंस टाउन नियुक्त करने के लिए प्वाइंटों को चिह्नत कर रही है। इसके लिए विभाग ने शहर के लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित अन्य प्रमुख स्थानों को चिह्नत किया है। वि•ााग द्वारा इन सभी  प्वाइंटों में से गैस प्लांट को अतिसंवेदनशिल प्वाइंट बनाया है।
किस-किस जिले में चल रहा सिविल डिफेंस टाउन
अंबाला, हिसार, सिरसा, सोनीपत, रोहतक, गुड़गांव, फरीदाबाद, झज्जर, पानीपत, पंचकूला में सिविल डिफेंस टाउन चल रहे हैं। विभाग द्वारा एक करोड़ 60 लाख की ग्रांट जारी की जाती है।
जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। इसके लिए प्रपोजल तैयार किया जा रहा है। जल्द से जल्द प्रपोजल तैयार कर डायरेक्टर जनरल को भेजा जाएगा। विभाग की तरफ से बजट मिलते ही आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
बीरबल कुंडू कमांडेंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

प्रदेश में होमगार्ड्स को भत्तों में बढ़ोतरी की सौगात

नरेंद्र कुंडू 
जींद। प्रदेश के होमगार्ड जवानों की किस्मत अब जल्द ही बदलने वाली है। होमगार्ड के जवानों को जल्द ही वेतन भत्तों में बढ़ोतरी की सौगात मिलने जा रही है। होमगार्ड के जवानों को अब प्रतिदिन ड्यूटी भत्ता 150 रुपए की बजाय 250 रुपए के हिसाब से मिलेगा। इसके अलावा टेÑनिंग भत्ता भी 100 से 250 तथा मासिक भत्ता 40 से 60 रुपए दिया जाएगा। होमगार्ड एवं सिविल डिफेंस विभाग ने जवानों की समस्याओं को देखते हुए उनके पक्ष में यह हितकारी निर्णय लिया है। विभाग के इस फैसले से प्रदेश के 14025 जवानों को फायदा मिलेगा। आगामी एक अप्रैल 2012 से जवानों को बढ़े हुए भत्तों का लाभ मिलेगा। इसके लिए विभाग के उच्चाधिकारियों ने सभी जिला अनुदेशकों को पत्र जारी कर निर्देश दे दिए हैं। पत्र जारी होने के बाद जवानों में काफी खुशी है।
काफी लंबे समय से आर्थिक तंगी से जुझ रहे होमगार्ड के जवानों के लिए अच्छी खबर है। लंबे समय से वेतन व भत्तों में बढ़ोतरी का इंतजार कर रहे होमगार्ड के जवानों को अब जल्द ही वेतन व भत्तों में बढ़ोतरी की सौगात मिलने जा रही है। होमगार्ड एवं सिविल डिफेंस विभाग के वित्तायुक्त द्वारा जिला अनुदेशकों को जारी किए गए पत्र क्रमांक 34/126/88-1एचजी-111 में स्पष्ट किया है कि होम गार्ड के दैनिक व मासिक भत्तों में वृद्धि की जा रही है। अब होम गार्ड को ड्यूटी भत्ते के रूप में 150 की बजाय 250 रुपए, ट्रेनिंग भत्ते में 100 की बजाय 250 रुपए दिए जाएंगे। इसके अलावा जवानों के मासिक भत्ते में भी बढ़ोतरी करते हुए 40 रुपए की बजाय 60 रुपए देने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह आदेश एक अप्रैल 2012 से लागू होंगे। विभाग द्वारा जारी इन आदेशों के बाद होमगार्ड के जवानों में काफी उत्साह है। नए आदेश लागू होने के बाद होमगार्ड के जवानों को काफी राहत मिलेगी। 
अप्रैल से लागू होंगे बढ़े हुए भत्तेमहंगाई के इस दौर में कम वेतन के कारण होमगार्ड के जवान आर्थिक तंगी से जुझ रहे थे। जवानों की परेशानी को देखते हुए विभाग ने उनके दैनिक व मासिक भत्तों में बढ़ोतरी का निर्णय लिया है। होमगार्ड के दैनिक व मासिक भत्तों की बढ़ोतरी के आदेश उन्हें मिल चुके हैं। विभाग द्वारा जारी किए गए पत्र के अनुसार नए नियम एक अप्रैल 2012 से लागू किए जाएंगे।
बीरबल कुंडू, कमांडेंट
गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस, जींद

कमांडेंट बीरबल कुंडू का फोटो।



बदला मौसम का मिज़ाज, धरती पुत्रों के माथे पर बनी चिंता की लकीरें

पाले से फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा भारी असर
चारे की फसल पर जमा पाला।
नरेंद्र कुंडू 
जींद। क्षेत्र में पाला रिकार्ड तोड़ रहा है। रबी की फसलों पर पाला बर्फ की तरह जम मिलता है। पाले के प्रकोप से फसलों पर संकट मंडरा रहा है। फसलें नष्ट होने लगी हैं। खासकर सरसों व सब्जियों की फसल के लिए पाला भष्मासुर साबित होता है। फसलों को बचाने के लिए कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को तुरंत हल्की सिंचाई की सलाह दी है। जिस तरह से पाला रिकार्ड तोड़ रहा है, उससे उत्पादन पर असर पड़ना लाजिमी है।  
एक सप्ताह से मौसम में आ रहे बदलाव के साथ ही किसानों के माथे पर चिंता की लकीर दिखाई देने लगी हैं। किसानों को पाला की चिंता सताने लगी है। वीरवार सुबह क्षेत्र के कई गांवों में फसलों पर पाला जमा नजर आया है। मंगलवार रात को हुई बारिश के बाद तापमान में लगातार गिरवाट जारी है। किसानों का कहना है कि रात के तापमान में गिरावट से फसलों पर पाले का खतरा मंडराने लगा है। पाले के प्रकोप के कारण सरसों, जौं, सब्जियों व चारे की फसल नष्ट हो रही हैं। सप्ताह के पहले दिन से मौसम में आए बदलाव के बाद तापमान में उतार-चढ़ाव आता रहा है। बीते तीन दिनों में शीत लहर और रात के तापमान में काफी गिरावट दर्ज की गई है। दिन के समय जहां हवा में नमी 40 प्रतिशत के आस-पास होती है तो रात को हवा में नमी शत प्रतिशत हो जाती है। पाले के बढ़ते प्रकोप के कारण रबी की अधिकतर फसलों की खराब होने की आशंका बढ़ गई है। मौसम ने किसानों की धड़कने बढ़ा दी हैं। कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को पाले से सचेत रहने की सलाह दी है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम में आए परिवर्तन से सरसों एवं जौ की फसल में मोयला कीट, चेपा का प्रकोप अधिक बढ़ जाएगा। तापमान में गिरावट होने से मटर, मेथी एवं धनिया की फसल में पाइडरी मिल्ड्यू का असर बढ़ जाता है। कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि बैंगन की फसल में फल एवं तना छेदक लट का प्रकोप बढ़ने के आसार रहते हैं। पाला और कोहरे से आलू, मटर और टमाटर की फसल को भी नुकसान होने के आसार बने हुए हैं। कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि मोयला कीट से फसलों को बचाने के लिए काश्तकारों को पैराथियॉन दो प्रतिशत या एंडोसल्फान पांच प्रतिशत चूर्ण का 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव और पानी की सुविधा वाले क्षेत्रों में एंडोसल्फान 35 ईसी 1-5 मिली का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने से फसल को पाले के प्रकोप से बचाया जा सकता है। सरसों, आलू, मटर, धनिया, बैंगन, टमाटर की फसल को पाले के प्रकोप से बचाने के लिए फसलों में फूल आने के समय गंधक के तनु अम्ल के 0-1 प्रतिशत या एक हजार लीटर पानी में 500 ग्राम थायोयूरिया मिलाकर 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करने से फसल पर पाले का असर कम होता है। उनका कहना है कि बैंगन की फसल को तना छेदक लट से बचाने के लिए प्रभावित शाखाओं और फलों को तोड़कर नष्ट कर दिया जाना चाहिए। फल बनने पर कार्बोरिल 50 डब्ल्यूसी या एंडोसल्फान 35 ईसी 1-5 मिली या एसी फेट 75 एससी 0-5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कने से बैंगन की फसल और फल को तना छेदक लट से बचाया जा सकता है।
पाला से आलू और टमाटर की फसल चौपट
जिले में पिछले तीन दिनों से पड़ रहे पाले ने सब्जी उत्पादक किसानों की नींद उड़ा दी है। पाले से सब्जी की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है। खासकर आलू, मटर व टमाटर की फसल पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इससे किसानों को भारी नुकसान की चिंता सताने लगी है। अगर जल्द ही मौसम में बदलाव नहीं हुआ तो फसल पूरी तरह से चौपट हो जाएगी। वहीं कृषि वैज्ञानिकों ने भी किसानों को अपनी फसल में जल्द से जल्द हल्का पानी लगाने की सलाह दी है। जिससे पाले के असर को कम किया जा सके।
दामों में हो सकता है इजाफा
पाले के प्रभाव के कारण इस बार फसल की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सब्जी की फसल में नुकसान होने के कारण पैदावार काफी कम होगी। इससे सब्जी के दामों में भी बढ़ोतरी हो सकती है। फिलहाल आलू पांच से छह रुपए, टमाटर 15 से 20 व मटर 20 रुपए किलो बिक रही है।
तापमान के आंकड़े
दिन    दिन का तापमान    रात का तापमान
रविवार    20 डिग्री        12 डिग्री
सोमवार    18 डिग्री        10 डिग्री
मंगलवार    15 डिग्री        6 डिग्री
बुधवार    13 डिग्री        1 डिग्री
हल्का पानी लगाकर बचाई जा सकती है फसल
फसल को पाले से बचाने के लिए किसानों के पास एक मात्र माध्यम पानी लगाना ही है। फसल में हल्का पानी लगाने से पाले के प्रकोप को कम किया जा सकता है। साथ ही हल्के पानी का फसल के उत्पादन पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। इसके अलावा फसल के पास धुआं कर या फसल को ढककर भी बचाया जा सकता है। पाला सरसों व सब्जी की फसल के लिए हानिकारक तथा गेहूं की फसल के लिए लाभदायक है।
डा. प्रताप सबरवाल
कृषि उपनिदेशक, जींद

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

स्कूलों में नहीं पार्कों में ले रहे हैं तालीम!

अंधकार में देश के कर्णधारों का भविष्य
 स्कूल टाइम में अर्जुन स्टेडियम में आराम फरमाते स्कूली बच्चे।
अर्जुन स्टेडियम में बैठकर ताश खेलते स्कूली बच्चे।
नरेंद्र कुंडू

जींद। विद्यार्थी देश के कर्णधार होते हैं, देश का भविष्य विद्यार्थियों के कंधों पर टिका होता है। अगर देश के ये भावी कर्णधार ही अपने पथ से भ्रष्ट हो जाएं तो, यह साफ है कि देश का भविष्य अंधकार में है। देश के इन कर्णधारों की करतूतों से समाज का सिर शर्म से झुक जाता है। शहर में पढ़ाई के लिए आने वाले विद्यार्थियों की कक्षाएं स्कूलों या कॉलेजों में नहीं, बल्कि शहर के पार्कों में लगती हैं। इनकी करतूतों से शहरवासी ही नहीं, पुलिस प्रशासन भी परेशान है। लेकिन पुलिस प्रशासन इन पर नकेल कसने में नाकामयाब है। पार्कों में पूरा दिन इनके नशे व ताशबाजी के दौरे चलते रहते हैं। स्कूल टाइम में कॉलोनियों के सभी पार्कों में छात्रों का जमावड़ा लगा रहता है। यहां से गुजरने वाली छात्राओं से छेड़छाड़ इनका प्रिय शौक है। इनको सबक सिखाने के लिए पुलिस भी खानापूर्ति के सिवाए कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है।

 
पार्क में सिगरेट के कश लगते स्कूली बच्चे
बस स्टेंड पार्क में आराम करते स्कूली बच्चे।


हर मां-बाप का सपना होता है कि उनका बेटा पढ़-लिख कर अच्छा आदमी बने, उसे अच्छी नौकरी मिले। अपने सपने को पूरा करने के लिए वे अपने बच्चों की हर इच्छा पूरी करते हैं, चाहे उसके लिए उन्हें कितनी ही परेशानी क्यों न उठानी पड़े। अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से वे उसे शहर के महंगे से महंगे स्कूल में दाखिला दिलवाते हैं। ताकि उनका बेटा शहर से अच्छी तालीम लेकर उनका सपना पूरा कर सके। लेकिन यहां हकीकत कुछ ओर ही बयां करती है। न जाने कितने मां-बापों के सपने हर दिन शहर के पार्कों में टूटते नजर आते हैं। इनकी कक्षाएं स्कूलों या कॉलेजों में नहीं, बल्कि कॉलोनियों के पार्कों में लगती हैं। स्कूल टाइम में पार्कों में लगे विद्यार्थियों के टोल को देख कर यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि देश के ये भावी कर्णधार कैसी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। दिनभर कॉलोनी के पार्कों में टोलियां बनाकर बैठे इन विद्यार्थियों की करतूतों से कॉलोनी वासी ही नहीं, पुलिस भी परेशान है। बस स्टेंड, नेहरू पार्क, अर्जुन स्टेडियम, अर्बन एस्टेट कॉलोनी, गांधी नगर, स्कीम नंबर 6, हाऊसिंग बोर्ड, शहीदी पार्क तथा अन्य पार्कों में छात्रों की टोलियां बैठी रहती हैं। पार्कों में बैठकर ये अपना कीमती समय तो खराब कर अपने मां-बाप की आंखों में धूल भी झौंकते हैं। कुसंगति के कारण न जाने कितनी गंदी आदतें इनके अंदर घर कर लेती हैं। कुसंगति के कारण इनका भविष्य बर्बाद हो रहा है। पूरा दिन पार्कों में इनके नशे व ताशबाजी के दौरे चलते रहते हैं। इसके अलावा यहां से गुजरने वाली छात्राओं से छेड़खानी करना व उन पर अश्लील फब्तियां कसना इनका खास शौक है। पार्कों में टोलियां बनाकर बैठ ये छात्र ऊंची आवाज में गंदी-गंदी गालियां देते रहे हैं तथा मोबाइल फोन की पूरी आवाज में अश्लील गानों पर थिरकते भी नजर आते हैं। इनकी हरकतें देखकर यहां से गुजरने वाली लड़कियां व महिलाएं शर्म से सिर झुकाकर चुपचाप यहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझती हैं। इनकी करतूतों से कॉलोनी के लोग परेशान हो कर कई बार पुलिस को भी शिकायत कर चुके हैं। लेकिन पुलिस प्रशासन भी इन पर नकेल कसने में नाकामयाब हो रहा है।
अभिभावक भी हैं बराबार के दोषी
इस बारे में जब शहर के बुद्धिजीवी लोगों से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि बच्चों की इन करतूतों के लिए उनके अभिभावक भी बराबार के दोषी हैं।  अभिभावक बच्चों से बिना पूछताछ किए ही जेब खर्च के लिए पैसे दे देते हैं। पैसे देने के बाद बच्चों से यह भी नहीं पूछते की उसने पैसे कहां खर्च किए। अभिभावकों के इस लाड-प्यार का बच्चे गलत प्रयोग करते हैं और जेब खर्च के लिए मिले पैसे से बच्चे नशा व अपने दूसरे शौक पूरे करते हैं। इसके अलावा ना ही वे कभी बच्चों के स्कूल में जाकर उनका रिकार्ड चैक करते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे समय-समय पर स्कूल में जाकर बच्चों का रिकार्ड चैक करें, पैसे देने से पहले उनसे पूछें की उन्हें किसी चीज के लिए पैसे चाहिएं। पढ़े-लिखे अभिभावकों को अपने बच्चों का होमवर्क भी चैक करना चाहिए तथा घर पर भी  अपने बच्चे का टेस्ट लेना चाहिए। बच्चों की हर गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। छोटी-छोटी कमियों को अनदेखा कर उनकी आदत न बनने दें।

आधुनिक सुविधाओं से लैस होगा किसान प्रशिक्षण केंद्र

कांफ्रेस हाल व लाइब्रेरी के निर्माण पर खर्च किए जाएंगे एक करोड़
रोहतक रोड स्थित किसान प्रशिक्षण केंद्र जहां कांफ्रेस हाल का निर्माण किया जाना है।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
रोहतक रोड स्थित किसान प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) जल्द ही आधुनिक सुविधाओं से लैस होने जा रहा है। विभाग द्वारा यहां प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसानों को सभी आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी। हमेटी में दो कांफ्रेंस हाल बनाए जाएंगे। दोनों कांफ्रेंस हालों में सभी हाईटेक सुविधाएं मौजूद होंगी। कांफ्रेस हाल के साथ-साथ एक आधुनिक लाइब्रेरी भी बनाई जाएगी। ताकि किसान व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ किताबी ज्ञान भी प्राप्त कर सकें। लाइब्रेरी में किसान किताबों के माध्यम से अपना मनोरंजन कर सकेंगे। इससे किसान प्रशिक्षण के दौरान उबन महशूस नहीं करेंगे। विभाग द्वारा हमेटी की कायाकल्प के लिए लगभग एक करोड़ रुपए का बजट तैयार किया गया है।
आधुनिक खेती को बढ़ावा देने के साथ-साथ कृषि विभाग किसानों को भी हाईटेक करने में जुटा हुआ है। यहां प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसानों को आधुनिक खेती के साथ-साथ तकनीकी गुर भी सीखाए जाएंगे। किसानों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कृषि विभाग द्वारा हमेटी में सभी आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी। इसके लिए विभाग यहां दो कांफ्रेस हालों का निर्माण करवाएगा। ये कांफ्रेस हाल अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे। इनके निर्माण के लिए विभाग ने एक करोड़ रुपए का बजट तैयार कर मंजूरी के लिए सरकार को भेजा है। जैसे ही सरकार की ओर से योजना को हरी झंडी मिल जाएगी, वैसे ही योजना को अमल में लाने के लिए कार्रवाई शुरू की जाएगी। कांफ्रेस हाल के निर्माण के बाद यहां प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसान सभी आधुनिक सुविधाओं का लाभ ले सकेंगे। खेती के प्रशिक्षण के साथ-साथ किसानों को तकनीकी कार्यों के लिए भी प्रशिक्षित किया जाएगा। ताकि किसान सभी नई तकनीकों का ज्ञान प्राप्त कर आधुनिक समाज की धारा के साथ जुड़ सकें।
हाईटेक लाइब्रेरी की भी मिलेगी सौगात
किसान प्रशिक्षण केंद्र में कांफ्रेस हालों के निर्माण के साथ-साथ एक हाईटेक लाइब्रेरी भी स्थापित की जाएगी। इस लाइब्रेरी में खेती के अलावा हर प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध होंगी। लाइब्रेरी में किसानों को किताबी ज्ञान भी दिया जाएगा। ताकि किसान खेती के व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ किताबी ज्ञान अर्जित कर हर क्षेत्र में पारंगत हो सकें। कृषि विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से किसान प्रशिक्षण के दौरान उबन महशूस नहीं करेंगे। प्रशिक्षण के साथ-साथ लाइब्रेरी में मनोरंजक किताबों के माध्यम से किसान अपने आप को तरोताज कर सकेंगे।
बजट पास होते ही शुरू किया जाएगा निर्माण कार्य
प्रशिक्षण केंद्र में किसानों को सभी आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए विभाग प्रयासरत है। हमेटी में दो कांफ्रेस हालों के साथ-साथ एक लाइब्रेरी का निर्माण भी करवाया जाएगा। कांफ्रेस हाल सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे। इनके निर्माण पर विभाग द्वारा एक करोड़ से भी ज्यादा रुपया खर्च किया जाएगा। कृषि विभाग के महानिदेशक के आदेशानुसार बजट तैयार कर सरकार को भेज दिया गया है। बजट मंजूर होते ही निर्माण कार्य शुरू करवा दिया जाएगा।
बीएस नैन
निदेशक, हमेटी, जींद


सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

नौकरी के साथ-साथ जिंदगी भी खतरे में

अधिकारियों द्वारा सेंक्शन खत्म होने के बाद भी दबाव बना कर लिया जाता है काम
नरेंद्र कुंडू
जींद।
बिजली निगम में डीसी रेट पर कार्यरत एएलएम इन दिनों अनाथ हो गए हैं। प्रदेशभर में कार्यरत लगभग 6 हजार एएलएम की सेंक्शन एक फरवरी से खत्म हो गई है और बिजली निगम मुख्यालय द्वारा अब तक कोई नई सेंक्शन नहीं भेजी गई है। सेंक्शन खत्म होने के बाद भी बिजली निगम डीसी रेट के कर्मचारियों से पहले की तरह काम ले रहा है। नौकरी खोने के भय से ये कर्मचारी दबाव में काम करने के लिए मजबूर हैं। यदि इस दौरान डीसी रेट के किसी कर्मचारी के साथ कोई हादसा हो जाता है तो उसका जिम्मेदार तो भगवान ही होगा, क्योंकि निगम को इस हादसे से पल्ला झाड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी।
हरियाणा बिजली वितरण निगम ने कर्मचारियों की तंगी से राहत पाने के लिए 2008 में 6 हजार असिस्टेंट लाइनमैन (एएलएम)6 माह के लिए डीसी रेट पर भर्ती किए थे। 2008 के बाद बिजली निगम मुख्यालय द्वारा हर 6 माह बाद डीसी रेट के कर्मचारियों के लिए नई सेंक्शन तैयार की जाती थी। मुख्यालय से नई सेंक्शन मिलने के बाद इन कर्मचारियों को दोबारा से काम सौंपा जाता था। लेकिन इस बार बिजली निगम द्वारा इस तरह की कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। बिजली निगम मुख्यालय द्वारा डीसी रेट के कर्मचारियों के लिए भेजी गई 6 माह की सेंक्शन एक फरवरी को समाप्त हो चुकी है, लेकिन अब तक बिजली निगम मुख्यालय की ओर से कर्मचारियों के लिए कोई नई सेंक्शन नहीं भेजी गई है। मुख्यालय से नई सेंक्शन न मिलने के कारण डीसी रेट के कर्मचारी अनाथ हो गए हैं। बिजली निगम के अधिकारी सेंक्शन खत्म होने के बाद भी इन कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का दबाव बनाकर काम ले रहे हैं। बेरोजगारी के इस दौर में अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में ये कर्मचारी मुफ्त में काम करने को मजबूर हैं। खुदा ना खास्ता अगर इस दौरान इनके साथ किसी प्रकार का हादसा हो जाता है तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। क्योंकि बिजली निगम को तो इस हादसे से पल्ला झाड़ने में किसी प्रकार की कोई परेशानी नही होगी। निगम के अधिकारी तो सेंक्शन खत्म होने का बहाना बनाकर हादसे का ठिकरा उल्टा कर्मचारी के सिर पर ही फोड़ देंगे। अब तो नई सेंक्शन आने तक इन कर्मचारियों की सुरक्षा का जिम्मा भगवान भरोसे ही है। 
क्या है नियम
बिजली निगम ने कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए 2008 में डीसी रेट पर नए कर्मचारी भर्त्ती करने की योजना बनाई थी। योजना पर अमल करते हुए निगम ने 6 माह के लिए डीसी रेट पर 6 हजार कर्मचारी भर्त्ती किए थे। निगम ने इस भर्त्ती के लिए जो नियम बनाए थे, उनके मुताबित इन कर्मचारियों को सिर्फ 6 माह के लिए भर्त्ती किया गया था। इसके बाद अगर निगम इन कर्मचारियों को काम पर रखना चाहती है तो निगम को उसके लिए दोबारा से नई सेंक्शन तैयार करनी होगी। डीसी रेट पर काम कर रहे कर्मचारियों की सेंक्शन एक फरवरी को खत्म हो चुकी, लेकिन बिजली निगम मुख्यालय द्वारा अब तक डीसी रेट के कर्मचारियों के लिए कोई नई सेंक्शन नहीं भेजी गई है। सेंक्शन खत्म होने के बावजूद भी निगम के अधिकारियों द्वारा डीसी रेट के कर्मचारियों पर दबाव बनाकर काम लिया जा रहा है। 
कौन होगा इनका जिम्मेदारी
पिछले तीन सालों में डीसी रेट पर कार्यरत 93 कर्मचारी काम के दौरान हादसों का शिकार होकर अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। ड्यूटी पर जान गंवाने वाले इन कर्मचारियों के परिजनों को निगम या सरकार की ओर से किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया गया है। काम के दौरान इन कर्मचारियों को निगम द्वारा कोई टूल किट भी नहीं दी जाती, जिस कारण हादसे की आशंका ओर भी ज्यादा बढ़ जाती है। इस दौरान अगर निगम मुख्यालय से नई सेंक्शन आने से पहले डीसी रेट के कर्मचारी के साथ कोई हादसा हो जाता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।

पेंशन की टेंशन को कम करने के लिए विभाग ने तोड़ी चुप्पी

नरेंद्र कुंडू
जींद। पेंशन की टेंशन को कम करने के लिए समाज कल्याण विभाग ने पेंशन वितरण प्रणाली में कुछ फेर बदल किए हैं। विभाग ने अब इस समस्या से निजात पाने के लिए अपनी चुप्पी तोड़ दोबारा से पुराना पेटनर अपनाया है। इस पेटनर में सिर्फ थोड़ा बदलाव किया गया है। विभाग द्वारा नियमों में किए गए फेरबदल के अनुसार अब निजी कंपनियों से ग्रामीण क्षेत्रों की पेंशन वितरण का काम छिन कर सिर्फ शहरी क्षेत्रों की पेंशन वितरण का जिम्मा सौंपा गया है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में पेंशन वितरण का काम दोबारा से पंचायतों को सौंपा गया है। अब देखना यह है कि फीनों कंपनी विभाग द्वारा सौंपी गई इस नई जिम्मेदारी को निभाने में कहां तक सफल हो पाएगी।
प्रदेश में लगभग एक साल पहले सरकार ने पेंशन वितरण प्रणाली को सुगम बनाने के लिए पेंशन वितरण का काम बैंकों के सुपुर्द किया था। जिसके बाद बैंकों ने अपने सिर से बोझ कम करने के लिए यह काम विभिन्न निजी कंपनियों को सौंप दिया था। निजी कंपनियों को प्रदेश में पेंशन वितरण की जिम्मेदारी देने के साथ-साथ साफ निर्देश जारी किए थे कि कंपनियों को पात्र पेंशन धारकों के कार्ड बनाने होंगे तथा समय पर गांवों में जाकर पेंशन वितरण करनी होगी। जिसके बाद जींद जिले में पेंशन वितरण के कार्य की जिम्मेदारी फीनों कंपनी को सौंपी गई थी। लेकिन अधिकतर निजी कंपनियां अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने में सफल नहीं हो पाई थी। पेंशन वितरण का ठेका लेने वाली निजी कंपनियों ने सरकार की जमकर फजीहत करवाई। पात्रों को 6-6 माह तक पेंशन नसीब नहीं हो पाई थी। हर रोज बुजुर्ग पेंशन के लिए सड़कों पर उतरते रहे थे, पेंशन न मिलने से आक्रोशित बुजुर्गों द्वारा जगह-जगह जाम लगाए जा रहे थे। हर रोज पेंशन धारकों के बढ़ते आक्रोश के कारण सरकार के भी पसीने छुट रहे थे। इस प्रकार पेंशन वितरण का ठेका लेने वाली कंपनियों की लापरवाही के कारण सरकार की यह योजना सफल नहीं हो पाई। लेकिन अब सरकार ने डेमेज कंट्रोल की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार ने इसके लिए विभाग को जल्द से जल्द नियमों में बदलाव के आदेश जारी किए थे। विभाग ने आदेशों पर अमल करते हुए पेंशन वितरण प्रणाली के नियमों में फेरबदल कर जिला स्तर के सभी अधिकारियों को पत्र के माध्यम से नए निर्देश जारी कर दिए हैं। विभाग द्वारा किए गए फेरबदल में अब देहात में पेंशन वितरण का कार्य निजी कंपनियों से छीनकर दोबारा से पंचायतों के सुपुर्द कर दिया गया है। जबकि शहरी क्षेत्रों में पेंशन वितरण का काम संबंधित कंपनी के बिजनेस कोरपोनडेंट एजेंट ही करेंगे। शहरी क्षेत्रों में नई पेंशन बनाने, स्मार्ट कार्ड में आ रही दिक्कतों को दूरकरने का काम निजी कंपनी के नुमाइंदे ही करेंगे।  पेंशन वितरण के समय संबंधित वार्ड के पार्षद भी मौजूद रहेंगे और उनके समक्ष ही पेंशन वितरण का काम किया जाएगा। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में पेंशन वितरण का काम सरपंच करेंगे। इसके अलावा ग्राम सचिव, पटवारी, पंच, नंबरदार आदि भी पेंशन वितरण के कार्य में शामिल हो सकते हैं। पेंशन की राशि पंचायत स्तर पर केलकुट की जाएगी और निदेशालय द्वारा राशि को सीधे पंचायतों के अकाउंट में डाल दिया जाएगा। यह राशि हर माह की आठ तारीख तक अकाउंट में डाल दी जाएगी। सरपंच को दस दिनों के अंदर पेंशन वितरण का काम पूरा करना होगा। बकाया राशि को सरपंच हर माह की 25 तारीख को बीडीपीओ को वापस करेंगे। इसके बाद बीडीपीओ पूरी रिपोर्ट तैयार करके जिला समाज कल्याण विभाग के पास भेजेंगे।
50 हजार से ज्यादा आमदनी वालों को नहीं मिलेगी पेंशन
अपात्र पेंशन धारकों पर शिकंजा कसने के लिए विभाग ने कमर कस ली है। इसके लिए विभाग ने दोबारा से सर्वे करवाया है। जिले में लगभग 1,36,103 पेंशन धारक हैं। विभाग द्वारा दोबारा से करवाए गए सर्वे में 10,700 ऐसे लोगों की पहचान की गई है, जो विभाग के इन नियमों को पूरा नहीं करते हैं। इसके अलावा जो लोग इस सर्वे में शामिल नहीं हो पाए हैं, उनके लिए विभाग ने एक मौका ओर दिया है। ये लोग अब 8 से 10 फरवरी तक बीडीपीओ कार्यालय में जाकर अपनी जांच करवा सकते हैं। अगर ये लोग इस सर्वे में भी शामिल नहीं होंगे तो विभाग इन पेंशनधारकों का नाम भी पेंशन सूची से हटा देगा। इसके अलावा विभाग द्वारा पेंशन के लिए बनाए नए नियमों में किसी भी सेवानिवृत की पत्नी या 50 हजार से ज्यादा की आमदनी वाले लोगों की पेंशन नहीं बनाई जाएगी। अगर कोई भी व्यक्ति शर्तों को पूरा किए बिना धोखाधड़ी से पेंशन लेता मिलेगा तो विभाग उसके खिलाफ कार्रवाई भी करेगा।
 
क्या कहते हैं अधिकारी 
अब नगर परिषद तथा नगर पालिका के अधीन आने वाले वार्डों में फीनो कंपनी के नुमाइंदे पेंशन वितरण का काम करेंगे जबकि गांवों में पंच, सरपंचों के माध्यम से पेंशन वितरण का काम किया जाएगा। इसके लिए विभाग से निर्देश मिल चुके हैं। इसके अलावा अगर कोई भी अपात्र व्यक्ति पेंशन लेता मिलेगा तो विभाग उसके खिलाफ भी कार्रवाई करेगा।
ओपी यादव
जिला समाज कल्याण अधिकारी, जींद

जिले में खूब चमक रहा है मिलावटखोरों का कारोबार


खाली पड़ा है ड्रग इंस्पेक्टर का पद
नरेंद्र कुंडू
जींद।
आप जो दवा खा रहे हैं, वह असली है या नकली इसकी कोई गारंटी नहीं है। क्योंकि जिस विभाग के कंधों पर यह जिम्मेदारी है, वह विभाग खुद ही बेसहारा है। जिले में गत चार सालों से ड्रग इंस्पेक्टर का पद खाली पड़ा है। कुछ समय तक तो स्वास्थ्य विभाग ने दूसरे जिलों से आयातित ड्रग इंस्पेक्टर के सहारे काम चलाया, लेकिन अब यह व्यवस्था भी दम तोड़ चुकी है। क्योंकि स्वास्थ्य विभाग के पास अब यह जिम्मेदारी नहीं है। सरकार ने स्वास्थ्य विभाग को इससे अलग करते हुए इसकी जिम्मेदारीफूड एंड ड्रग सेफ्टी विभाग को सौंप दी है। जिस कारण स्वास्थ्य विभाग भी अब इस ओर से अपना मुहं मोड़ चुका है। जिस कारण अब एक साल से यहां किसी भी अधिकारी को इसका अतिरिक्त चार्ज नहीं सौंपा गया है। इस पद के खाली होने से मिलावटखोर व नकली दवा विक्रेता बेलगाम हैं। जिले में पिछले काफी समय से न तो मैडीकल स्टोरों की चेकिंग हुई है और न ही सैंपल भरे जा रहे हैं। इसके अलावा नकली मिठाई व दूध का कारोबार करने वालों का गोरखधंधा भी चमक रहा है। विभाग की इस लापरवाही से लोगों का स्वास्थ्य दांव पर है।
जिले में पिछले चार साल से लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी राम भरोसे है। विभागीय सूत्रों की मानें तो पिछले चार साल से जिले में ड्रग इंस्पेक्टर का पद खाली पड़ा है। कुछ समय तो स्वास्थ्य विभाग ने दूसरे जिलों के ड्रग इंस्पेक्टर के सहारे यहां का काम चलाया, लेकिन जल्द ही यह व्यवस्था भी दम तोड़ गई। अब पिछले एक साल से यहां ड्रग इंस्पेक्टर का पद बिल्कुल खाली पड़ा है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा सालभर से किसी को अतिरिक्त कार्यभार भी नहीं सौंपा गया है। इतने लंबे समय से ड्रग इंस्पेक्टर का पद खाली रहने से मिलावटखोर जमकर चांदी कूट रहे हैं। मिलावट के कारोबार के साथ-साथ शहर में नकली दवाइयों का कारोबार भी फल-फुल रहा है। नकली दवा विक्रेता खुलेआम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग तमाशबिन बनकर सबकुछ चुपचाप देख रहा है। पिछले एक साल से जिले में न तो मैडीकल स्टोरों की चेकिंग हुई है और न ही सैंमल भरे गए हैं। इसके अलावा शहर में नकली मिठाई व दूध का कारोबार करने वालों का गोरखधंधा भी खूब चमक रहा है। जिले के लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी राम भरोसे है। अब इस बात की गारंटी कोन ले कि शहर के मैडीकल स्टोरों पर जो दवा बिक रही है, वह असली है या नकली, दुकानों पर जो खाद्य सामग्री बिक रही है, वह प्योर है या मिलावटी। विभाग की इस लापरवाही से खुलेआम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रही है।
अब स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं इसकी जिम्मेदारी
पहले मैडीकल स्टोरों की चेकिंग व सैंपल की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग के पास होती थी। यह सब कामकाज स्वास्थ्य विभाग की निगरानी में होता था। जिस कारण स्वास्थ्य विभाग किसी अधिकारी का पद खाली होने के बाद इसकी जिम्मेदारी किसी दूसरे अधिकारी को सौंप देता था, ताकि कामकाज प्रभावित न हो सके। लेकिन अब सरकार ने इसके लिए अलग से विभाग बना दिया। स्वास्थ्य विभाग को इससे अलग कर इसकी जिम्मेदारी फूड एंड ड्रग सेफ्टी विभाग को सौंप दी है। इस जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने भी इस ओर से मुहं मोड़ लिया है और पिछले एक साल से यहां ड्रग इंस्पेक्टर का अतिरिक्त चार्ज किसी भी अधिकारी को नहीं सौंपा गया है। जिस कारण मिलावटखोरों के हौंसले बुलंद हो गए हैं।
जिले से बाहर भी होती है नकली घी व दूध की सप्लाई
जिले में जमकर नकली घी व दूध का कारोबार चलता है। मिलावटखोर खुलेआम अपना कारोबार चलाते हैं। ये लोग यहां पर मिल्क प्लांट होने का फायदा उठाते हैं। मिलावटखोर नकली घी व दूध तैयार कर, उन पर मिल्क प्लांटों का नकली लेबल लगा कर जिले से बाहर भी इसकी सप्लाई करते हैं। इस तरह के मामले कई बार पुलिस के सामने आ चुके हैं। लेकिन जिले में ड्रग इंस्पेक्टर का पद खाली होने के कारण प्रशासन इस गौरख धंधे पर नकेल कसने में नाकामयाब है।


डिजीटल पंचायत ने साक्षरता की ओर बढ़ाए कदम


.....ताकि मजबूत हो सके देश की नीव
शिक्षा समिति उठा रही गरीब व असहाय बच्चों की पढ़ाई का बीड़ा
नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश की पहली डिजीटल पंचायत का दर्जा हासिल करने वाली बीबीपुर की पंचायत अब शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी धाक जमाने की कवायद में लगी हुई है। पंचायत द्वारा गांव के भावी कर्णधारों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध करवा, एक अच्छे समाज के निर्माण में अपनी भागीदारी दर्ज करवाने के उद्देश्य से गांव में शिक्षा समिति का गठन किया गया है। यह समिति समय-समय पर गांव के स्कूलों का निरीक्षण करती है और जरूरतमंद बच्चों की मदद करती है। पंचायत ने समिति में रिटायर्ड टीचरों को नियुक्त किया है, ताकि इनकी सेवाएं लेकर बच्चों को शिक्षा में पारंगत किया जा सके। जो बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, उनको कक्षाओं तक ले जाने की कवायद भी समिति कर रही है। शिक्षा के साथ-साथ समिति गांव में आपसी भाईचारे को कायम रखने के लिए भी प्रयासरत है। समिति द्वारा हर त्यौहार को स्कूलों में पूरे परंपरागत ढंग से मनाया जाता है। ताकि बच्चे हमारी संस्कृति व रीति-रिवाजों का अनुसरण कर आपसी प्यार-प्रेम व भाईचारे को कायम रख सकें। पंचायत द्वारा उठाए गए इस कदम से देश की यह पहली ऐसी पंचायत बनने जा रही है, जो गांव में शत-प्रतिशत साक्षरता के प्रयास में लगी है।
बीबीपुर गांव की पंचायत देश की अन्य पंचायतों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी हुई है। गांव की पंचायत देश की पहली डिजीटल पंचायत का दर्जा प्राप्त करने के अलावा भी कई प्रकार के अवार्ड जीतकर  अंतर्रास्ट्रीय  स्तर पर सुर्खियां बटोर चुकी है। पंचायत ने अनेकों उपलब्धियां प्राप्त करने के बाद भी विकास के क्षेत्र में अपनी रफ्तार को रुकने नहीं दिया। नई सोच व शिक्षित सरपंच के युवा नेतृत्व में अनेक बुलंदिया छूने के बाद भी पंचायत का जोश ठंडा नहीं पड़ा। इसके बाद पंचायत ने गांव से बाहर निकलकर देश के विकास की ओर अपना ध्यान केंद्रीत किया। इसकी शुरूआत पंचायत ने अपने ही गांव से की। पंचायत ने देश के भावी कर्णधारों को शिक्षित करने के उद्देश्य से गांव में शिक्षा समिति का गठन किया। ताकि आगामी पीढ़ी अच्छी शिक्षा ग्रहण कर देश के विकास में अपना योगदान दे सकें। शिक्षा समिति के संचालन की जिम्मेदारी सेवानिवृत्त अध्यापक ओमप्रकाश जागलान, नारायण सिंह, चंद्रभान व रामकिशन को सौंपी गई है। समिति की गतिविधियों में पैसे की कमी रोड़ा न बन सके, इसके लिए पंचायत द्वारा समिति को आमदनी के साधन भी उपलब्ध करवाए गए हैं। इस प्रकार गांव की यह पंचायत शत-प्रतिशत साक्षरता लाने की कवायद में लगी हुई है।
शिक्षा समिति के पास क्या है आमदनी का साधन
पैसे की कमी के कारण शिक्षा समिति की गतिविधियों पर कोई प्रभाव न पड़े इसके लिए पंचायत ने समिति को साढ़े तीन एकड़ जमीन दी हुई है। जमीन को हर वर्ष 20 से 25 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से ठेके पर दिया जाता है। इस प्रकार जमीन से समिति को हर वर्ष एक लाख के करीब आमदनी हो जाती है। इसके अलावा  पंचायत ने समिति के नाम 6 लाख रुपए की एफडी बैंक में डालवा रखी है। इस एफडी के ब्याज को भी समिति बच्चों की शिक्षा पर खर्च करती है।
क्या है समिति की जिम्मेदारी
गांव के स्कूलों की देखभाल व स्कूलों की जरूरतों को पूरा करती है।
शिक्षा समिति समय-समय पर स्कूलों का निरीक्षण करती है।
गरीब व असहाय बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्च समिति उठाती है।
स्कूल के खिलाड़ियों को खेल की सभी सुविधाएं मुहैया करवाती है।
स्कूलों में समय-समय पर खेलों का आयोजन व एनएसएस कैंपों का आयोजन करवाती है।
स्कूली बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखती है।
पढ़ाई में कमजोर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है।
गांव में आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए हर त्यौहार पर स्कूल में कार्यक्रम का आयोजन करवाती है।
ताकि गांव में बना रहे भाईचारा
गांव के लोगों में प्यार-प्रेम व भाईचारे की भावना बनी रहे और लोग सुख-दुख में एक दूसरे के काम आ सकें, इसके लिए शिक्षा समिति हर पर्व को स्कूल में ही बड़े हर्षोल्लास से मनाती है। हर पर्व पर स्कूल में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में समिति के सदस्य बच्चों के बीच में रहकर उन्हें अपने रीति-रिवाजों व संस्कृति के बारे में अवगत करवाते हैं। इस प्रकार समिति के प्रयासों से गांव के लोगों में भाईचारे की भावना भी विकसित होती है।
बच्चे देश का भविष्य
बच्चे देश का भविष्य हैं और बच्चों का भविष्य शिक्षा में सुरक्षित है। शिक्षा के बिना देश का विकास संभाव नहीं है। इसलिए पंचायत ने बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से गांव में शिक्षा समिति का गठन किया है। गांव के सेवानिवृत्त अध्यापकों को समिति का सदस्य बनाया गया है। अपने गांव के साथ-साथ व अन्य गांवों की पंचायतों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। शिक्षा समिति को किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाने पड़ें, इसके लिए समिति को आय के साधन भी उपलब्ध करवाए गए हैं।
सुनील जागलान
सरपंच, बीबीपुर


नौकरी सरकारी, बने व्यापारी

सैंपल के लिए आई दवाइयों के बदले पशु पालकों से ऐंठे जाते हैं पैसे
नरेंद्र कुंडू
जींद।
नौकरी सरकार की हो रही है, लेकिन खुद का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। जिले में वेटरनरी सर्जन व सहायक वेटरनरी चिकित्सक सरकारी ड्यूटी बजाने की बजाय प्राइवेट प्रेक्टिस को ज्यादा तव्वजो दे रहे हैं। पशु चिकित्सक निजी स्वार्थ के लिए पशु पालकों की जेबों पर डाका डाल रहे हैं। सारा दिन सरकारी अस्पताल सूने पड़े रहते हैं, जबकि इनमें ड्यूटीरत चिकित्सक गांवों में प्राइवेट प्रेक्टिस में लीन रहते हैं। इनता ही नहीं दवा कंपनियों की ओर से पशु चिकित्सकों को मिलने वाले सैंपलों को भी ये धड़ल्ले से बेच रहे हैं। इस तरह वेटरनरी सर्जन व सहायक वेटरनरी चिकित्सक खुलेआम पशु पालकों की जेबें कट कर मोटी चांदी कूट रहे हैं।
प्रदेश में पशु व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। लेकिन सरकारी अस्पताल में मौजूद वेटरनरी सर्जन (वीएस) व सहायक वेटरनरी चिकित्सक (वीएलडीए) सरकार की इस मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। यहां तो बाड़ ही खेत को खा रही है। ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में मौजूद पशु चिकित्सक सरकार की ड्यूटी कम, अपना बिजनश ज्यादा चला रहे हैं। अपनी जेबें गर्म करने के चक्कर में पशु चिकित्सक अस्पताल में कम और बाहर ज्यादा रहते हैं। जिससे सारा दिन अस्पताल खाली पड़े रहते हैं। चिकित्सक अस्पताल में पशुओं का ईलाज करने की बजाय पशु पालक के घर पर जा कर पुश का ईलाज करने को ज्यादा तवज्जो देते हैं। क्योंकि घर पर पशु का ईलाज करने के बाद वह पशु पालक से पूरी फीस वसूलते हैं। इस प्रकार सरकार की ड्यूटी के साथ-साथ वह अपना बिजनश धड़ल्ले से चला रहे हैं। इतना ही नहीं दवा कंपनी की तरफ से पशु चिकित्सकों को सैंपल के तौर पर मिलने वाली दवाइयों को भी ये खुलेआम बेचते हैं। सैंपल की दवाई को सैंपल के तौर पर इस्तेमाल न कर पशु पालक से दवाई के पूरे पैसे ऐंठे जाते हैं। इस प्रकार पशु चिकित्सक सरकारी नियमों को ताक पर रख कर पशु पालकों को चूना लगा रहे हैं। 
क्या है नियम
पशु अस्पताल में मौजूद सरकारी चिकित्सक ड्यूटी के दौरान किसीभी पशुपालक से पशु के ईलाज के बदले पैसे नहीं ले सकता। चिकित्सक अगर पशु पालक के घर पर जाकर पशु का ईलाज करता है तो वह उसके लिए भी पशुपालक से किसी तरह की फीस नहीं ले सकता। अगर अस्पताल में दवाई उपलब्ध नहीं है तो पर्ची पर दवा लिख कर पशुपालक से मेडीकल स्टोर से दवा मंगवा सकता है। इसके अलावा अगर दवा कंपनी की तरफ से चिकित्सक को सैंपल के लिए कोई दवाई दी गई है तो वह पशु पालक से उस दवाई के भी पैसे नहीं ले सकता।
शिकायत मिलने पर की जाएगी कार्रवाई
इस तरह की कोई भी शिकायत उनके पास नहीं आई है। अगर उनके पास इस तरह की शिकायत आती है, तो वह मामले की जांच करवाएंगे। कोई भी चिकित्सक ईलाज के बदले पशु पालक से पैसे लेता है तो, यह सरासर गलत है। अगर अस्पताल में दवाई मौजूद नहीं है तो चिकित्सक वह दवाई पशु पालक को लिख कर मेडीकल स्टोर से मंगवा सकता है।
डा. राजीव जैन, उपनिदेशक
सघन पशुधन परियोजना, जींद