मंगलवार, 20 मार्च 2012

विद्यार्थियों के शैक्षणिक भ्रमण के सपने पर बजट का ग्रहण

जिले से 23935 विद्यार्थियों को भेजा जाना था टूर पर 
 नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की शैक्षणिक भ्रमण पर जाने की तमन्ना अधूरी ही रह गई। सर्व शिक्षा अभियान द्वारा विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने की यह योजना फाइलों में ही दफन होकर रह गई है। इस योजना के तहत जिले से 23935 स्कूली बच्चों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजा जाना था। इसके लिए प्रत्येक स्कूल को एसएसए की तरफ से 10 हजार रुपए का बजट उपलब्ध करवाया गया था। एसएसए द्वारा सभी स्कूली मुखियाओं को विद्यार्थियों को भ्रमण पर ले जाने के लिए केवल रोडवेज की बस के प्रयोग के निर्देश दिए गए थे। लेकिन स्कूल मुखियाओं के लिए 10 हजार रुपए के बजट से टूर का खर्च तो दूर रोडवेज का किराया निकालना भी मुश्किल था। इस प्रकार बजट की मार ने स्कूली बच्चों के शैक्षणिक भ्रमण पर जाने की इस योजना पर ग्रहण लगा दिया।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूली बच्चों को सैर करवाने का वायदा फिलहाल वायदा ही नजर आ रहा है। स्कूली बच्चों ने जो सर्व शिक्षा अभियान के तहत सैर पर जाने का सपना देखा था वो बजट की कमी ने चकनाचूर कर दिया है। इस योजना के तहत जिले के सभी  स्कूल मुखियाओं को लैटर जारी किए गए थे कि उनके स्कूलों से बच्चों को शैक्षणिक भ्रमण पर रोडवेज की बसों के माध्यम से ले जाया जाएगा। इन आदेशों के बाद स्कूली बच्चों ने भ्रमण के सपने बुनने शुरू कर दिए थे, जो फिलहाल सपना ही बनकर रह गए हैं। एसएसए द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले के सभी स्कूल विद्यार्थियों को नवंबर व दिसंबर माह में ही शैक्षणिक भ्रमण पर ले जाना था, लेकिन स्थिति यह है कि नवंबर माह से अब तक जींद जिले से एक स्कूल से भी बच्चे भ्रमण पर नहीं जा सके हैं। जबकि एसएसए की इस योजना के तहत जिले से 23935 विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण करवाना था। एसएसए का बच्चों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजना का उद्देश्य किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाना था। जो अब केवल कागजों तक ही सीमित रह गया है।
योजना में रोडवेज बस का भी फंसा पेंच
एसएसए द्वारा सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अपर प्राइमरी विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजन की जो योजना तैयार की थी, उस योजना में रोडवेज की बस के प्रयोग का पेंच भी फंस गया। एसएसए द्वारा सभी  स्कूल मुखियाओं को लिखित में स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि बच्चों को टूर पर ले जाने के लिए केवल रोडवेज की बस का ही प्रयोग किया जाए। रोडवेज के नियम के अनुसार अगर रोडवेज की बस की बुकिंग की जाती है तो, सम्बंधित पार्टी को रोडवेज को 52 सवारियों के आने व जाने के किराये का भुगतान करना होता है, जबकि निजी वाहन इससे कम किराये में बुकिंग पर चले जाते हैं। बजट कम और रोडवेज का किराया ज्यादा होने के कारण भी  स्कूल मुखियाओं ने टूर को रद्द करने में ही भलाई समझी।
क्या थी योजना    
सर्व शिक्षा अभियान ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से उन्हें शैक्षणिक भ्रमण पर भेजने की योजना तैयार की थी। इस योजना के तहत जिले के सभी अपर प्राइमरी सरकारी स्कूलों से विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजा जाना था। इस योजना के अंतर्गत जिले के प्रत्येक स्कूल से 50 लड़के व 50 लड़कियों के बैच बनाकर भ्रमण के लिए भेजने थे। जिसके तहत प्रत्येक विद्यार्थी पर 200 रुपए खर्च करने का प्रावधान था। योजना के तहत नौंवी से बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों को 100 किलोमीटर के दायरे में आने वाले किसी भी टूरिस्ट पैलेस पर ले जाया जाना था। जिले के 23935 विद्यार्थियों को टूर का लाभ मिलना था।
नियमों में कर दिया था परिर्वतन
सर्व शिक्षा अभियान ने रोडवेज के ज्यादा किराये को देखते हुए बाद में नियमों में परिर्वतन कर दिया था। परिवर्तन किए गए नियमों के अनुसार विद्यार्थियों को भ्रमण पर ले जाने के लिए प्राइवेट वाहन का सहारा लिया जा सकता था। नियमों में परिवर्तन करने के बाद सभी स्कूल मुखियाओं दोबारा से निर्देश भी जारी कर दिए थे और इसकी जिम्मेदारी बीईओ को सौंपी गई थी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
एसएसए, जींद

निडाना के किसान ने खोजा नया परजीवी खरपतवार

 सरसों की फसल में मौजूद खरपतवार को दिखाता किसान व मौजूद कृषि अधिकारी।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
खेतीबाड़ी की समझ के मामले में निडाना के किसान अच्छे-अच्छे वैज्ञानिकों को मात दे रहे हैं। कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देने तथा फसल में मौजूद कीटों के जीवनचक्र के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटाने की इनकी यह जिज्ञासा हर रोज किसी न किसी नई खोज को जन्म दे रही है। अब निडाना गांव के एक जागरुक किसान ने सरसों की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले एक ऐसे परजीवी ख्ररपतवार को ढूंढा है, जिसके बारे में कृषि वैज्ञानिक भी ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं। इतना ही नहीं अब इस किसान ने रुखड़ी (ओरबंकी) नामक इस खरपतवार का तोड़ भी खुद ही ढूंढ़ लिया है। निडाना गांव के रणबीर मलिक द्वारा खोजे गए इस नए परजीवी खरपतवार पर सर्च करने के लिए उनके साथ खेत में मौजूद उपमंडल कृषि अधिकारी ने इसका सेंपल भी लिया है। ताकि इस खरपतवार के बारे में पूरी जानकारी जुटाकर किसानों को इसके बारे में जागरुक किया जा सके।
खेतीबाड़ी के क्षेत्र में निडाना गांव के किसान आज देश में अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं। इन किसानों की सफलता के चर्चेआज दूर-दूर तक फैल चुके हैं। कीट प्रबंधन में माहरत हासिल करने वाले इस गांव के रणबीर मलिक नामक एक किसान ने अब सरसों की फसल में मौजूद एक नई खरपतवार को ढुंढ निकाला है। सरसों की फसल में पाई जाने वाली यह खरपतवार पूरी तरह से परजीवी है। रुखड़ी (ओरोबंकी) नामक यह खरपतवार सरसों के पौधे की जड़ से ही अपना भेजन तैयार कर अपना जीवन चक्र चलाती है। किसान रणबीर मलिक ने बताया कि सरसों के पौधे की जड़ पर निर्भर होने के कारण यह परजीवी खरपतवार सरसों की जड़ों से खुराक खींचती है। जिस कारण सरसों की फसल पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मलिक ने बताया कि बीज से पैदा होने वाला यह खरपतवार अपना आधा जीवन चक्र जमीन के अंदर ही चलाता है और सरसों के पौधे से अपना कनेक्शन जोड़कर उससे खुराक व पानी ग्रहण करता है। इसके बाद अपनी वंशवृद्धि या बीज पैदा करने के लिए ही यह खरपतवार जमीन से बाहर निकलता है। रणबीर को भी इस खरपतवार का पता उस वक्त लगा जब वह अपनी पत्नी अनिता के साथ खेत में सरसों की फसल की कटाई कर रहा था। सरसों की फसल में मौजूद इस नए परजीवी खरपतवार को देख कर रणबीर मलिक इस खरपतवार के जीवन चक्र की खोज में जुट गया और आखिरकार उसने सफलता हासिल कर ही ली। रणबीर मलिक द्वारा की गई इस नई खोज को देखकर मौके पर मौजूद उपमंडल कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र मलिक ने भी इस पर सर्च करने के लिए इसका सैंपल लिया। ताकि इस खरपतवार के बारे में विस्तार से जानकारी जुटाकर किसानों को जागरुक किया जा सके।
खेत में सरसों की जगह करें अन्य फसलों की बिजाई।   
सरसों की फसल में पाया जाने वाला यह खरपतवार पूरी तरह से सरसों की जड़ों पर निर्भर करता है। इसका बीज बहुत बारीक होता है तथा सरसों पकने से पहले ही खेत में बिखर कर अगली पीढ़ी के रास्ते खोलता है। यह परजीवी खरपतवार सरसों की फसल में दादरी, झज्जर, लोहारू, रिवाड़ी व  बावल आदि इलाकों में पाया जाता है। वहां के किसान इस का प्रयोग पशुओं के चारे के तौर पर करते हैं। क्योंकि यह खरपतवार पशुओं का दूध बढ़ाने के काम आती है। यहां के खेतों में यह खरपतवार पहली बार ही दिखाई दिया है। किसान इसे रुखड़ी (ओरोबंकी) के नाम से जानते हैं। इसे मरगोजा भी कहा जाता है। इस खरपतवार को नष्ट करने के लिए कोई खरपतवारनाशी नही बना है। इस खरपतवार पर केवल बीजमारी के जरिए ही काबू पाया जा सकता है। इस पौधे के बीज बन्ने से पहले ही इसे काट करके इक्कठा करें व जला दें या फिर उस खेत में सरसों की जगह चन्ना, जों व गेहूं की खेती करें। इसके अलावा इसकी पैदावार को रोकने के लिए किसान सरसों के बीज को सोयाबीन या अरंडी के तेल में भिगो कर बिजाई करें।
डा. सुरेंद्र दलाल  
कृषि विशेषज्ञ, जींद



तेरी याद ‘जा’ रही है.....

नरेंद्र कुंडू
जींद।
परीक्षा का भूत विद्यार्थियों पर इस कदर हावी हो चुका है कि वे अच्छे अंक प्राप्त करने, याददाशत बढ़ाने और एनर्जी लेवल मेनटेन रखकर तनाव कम करने के लिए दवाओं कार निर्भर हो चुके हैं। कंपीटीशन का दौर है, लिहाजा वे पिछे नहीं रहना चाहते। आगे निकलने की होड़ में वे अपने ही स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि एनर्जी बढ़ाने के लिए जिन दवाओं का सहारा लेने की वे नादानी कर रहे हैं, वही उनके •ाविष्य को गहन अंधकार में डुबो देगी। ऐसी दवाओं का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव दिमाग व लिवर पर पड़ता है। तनाव से मुक्ति दिलाने वाला यह धीमा जहर धीरे-धीरे उनकी रगों में फैलकर खोखला कर रहा है। दवा निर्माता कंपनियां अवसर को भुनाने से नहीं चूक रही हैं। तनाव कम करने तथा याददाशत बढ़ाने के भ्रामक प्रचार कर रही हैं और भावी पीढ़ी लुट रही है। समय की मांग है कि लिहाजा अभिभावकों का दबाव भी कम नहीं है। उज्जवल भविष्य के लिए परीक्षा में अच्छे अंक लाने की अनिवार्यता जाहिर है। यह महत्वाकांक्षा और प्रतिस्पर्धा छात्रों के रास्ते का कांटा बन गई है। वे गहरे अवसाद में जा रहे हैं। तनाव के चलते याद किया टॉपिक भी भूल रहे हैं। समस्या से निजात पाने के लिए वे बाजारों का रुख करते हैं और याददाशत और एनर्जी लेवल बढ़ाने वाली दवाइयों की मांग कर रहे हैं। अच्छी काउंसलिंग की कमी के कारण विद्यार्थी पथभ्रष्ट होकर अपनी बची-खुची प्रतिभा भी खो रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 60 प्रतिशत से ज्यादा विद्यार्थी ऐसी दवाओं पर निर्भर हो चुके हैं। दवा निर्माता कंपनियां अपनी जेब भरने के चक्कर में पहले तो हौव्वा पैदा करती हैं, फिर उनसे निजात दिलाने के लिए प्रलोभनों के जाल में फंसा लेती हैं। हालांकि तनाव कम करने तथा याददाशत बढ़ाने की दवाएं प्राय: प्रतिबंधित होती हैं और इन्हें बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लिया जा सकता। इसके बावजूद हर मेडिकल स्टोर पर इन्हें बेहिचक बेचा जा रहा है। एक केमिस्ट ने बताया कि परीक्षा करीब आते ही याददाशत बढ़ाने वाली दवाइयों के खरीदारों की संख्या में इजाफा हो जाता है। शहर में याददाशत के साथ-साथ एनर्जी बढ़ालने वाले पाउडर, कैप्सूल व सीरप की बिक्री भी 40 फीसदी तक बढ़ गई है। मेमोरी में इजाफा करने के चाहवान विद्यार्थियों में सर्वाधिक संख्या साइंस संकाय या प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रतिभागियों की होती है। सूत्रों के अनुसार जिलेभर में सालाना लगभग 50 लाख रुपए की ऐसी दवाओं का कारोबार हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग इन पर लगाम लगाने में बेबस है।
बढ़ जाती हैं रोगों की संभावनाएं
याददाश्त बढ़ाने की कोई दवाइया नहीं आती। दवा कंपनियां झूठा प्रचार कर लोगों को गुमराह करती हैं। इस तरह के भ्रामक प्रचार से बचना चाहिए। इस तरह की दवाइयां शॉर्ट टर्म के लिए भले ही फायदा करती हों, लेकिन इनके लांग टर्म साइड इफेक्ट काफी देखे जा रहे हैं। वैज्ञानिक तौर पर ये दवाइयां अपडेट नहीं होती, साथ ही इनमें स्टीरॉयड की मात्रा रहती है, जिससे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, चिड़चिड़ापन होना, नींद न आना व आंखें भारी होना तथा हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती हैं। अंदर ही अंदर इन दवाइयों का धीमा जहर शरीर को खोखला कर देता हैं। जिसका सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव दिमाक व लीवर पर पड़ता है।
डा. विकास फौगाट, मनोचिकित्स
सामान्य अस्पताल, जींद
बच्चों पर न दे ज्यादा दबाव
परीक्षा का समय छात्रों के लिए बेहद संवेदनशील होता है, इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि उनपर पढ़ाई का जरूरत से अधिक दबाव नहीं डालें बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करने का प्रयास करें। अभिभावक बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार बनाएं ताकि वे तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सकें। अभिभावक अपने बच्चों की मानसिक क्षमता को समझें। दूसरे के बच्चों से अपने बच्चों की तुलना ना करें। यदि बच्चा गुमसुम रहता हो तो उसकी तुरंत काउंसिलिंग कराएं। समय-समय पर बच्चे को दूध, जूस, फल, बादाम मिल्क और मिल्क से बने प्रोडक्ट दें, क्योंकि ये प्रोडक्ट बच्चे की याददाश्त के साथ एनर्जी लेवल भी बढ़ाते हैं।
नरेश जागलान, मनोवैज्ञानिक
नहीं बिक सकती ऐसी दवाएं
ऐसी दवाएं दुकानों पर नहीं बेची जा सकती हैं। इनकी बिक्री पर प्रतिबंध है। सरकार से लाइसेंसशुदा दवाएं ही बिक सकती हैं। समय-समय पर मेडिकल स्टोरों की चेकिंग की जाती है। आने वाले समय में अभियान तेज किया जाएगा।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

....अब पप्पू नहीं होगा फेल

प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में नए सत्र से लागू होगी सतत समग्र मूल्यांकन प्रणाली
नरेंद्र कुंडू
जींद।
अब पप्पू कभी फेल नहीं होगा। देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 लागू होने के बाद प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में भी सत्त एवं समग्र मूल्यांकन प्रणाली लागू कर दी गई है। इसके तहत अब अध्यापकों को कक्षा में पढ़ाते समय ही बच्चे का समग्र मूल्यांकन करना होगा। अध्यापक द्वारा बच्चे की मासिक अर्द्धवार्षिक व वार्षिक परीक्षाफल का विश्लेषण कर बच्चों की कमजोरियां पता की जाएंगी और उनका निदान करने हेतु उपचारात्मक शिक्षण किया जाएगा। यदि किसी बच्चे की कमी में कोई सुधार नहीं हो रहा तो अध्यापक को उस बच्चे पर अतिरिक्त समय लगाना होगा। इसी तरह बच्चे की लिखित एवं मौखिक अभिव्यक्ति जांचने के उद्देश्य से लिखित एवं मौखिक दोनों तरह के आकलन की व्यवस्था लागू की जा रही है। शिक्षा सत्र 2011-12 से पायलट आधार पर इसे लागू किया जाएगा। शिक्षा विभाग ने एसएसए के जिला मुख्यालय पर नोट बुक भेज दी हैं। अब सभी स्कूलों को नोट बुक उपलब्ध करवाने की व्यवस्था सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए)को स्वयं करनी है।
आठवीं कक्षा तक का कोई बच्चा अब सालाना परीक्षा में पूछे गए कुछ  प्रश्नों के आधार पर पास या फेल नहीं किया जाएगा। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत अध्यापकों को बच्चे का समग्र मूल्यांकन करना होगा और कक्षा में ही बच्चे की प्रगति रिपोर्ट का लेखा-जोखा तैयार करना होगा। मूल्यांकन में बच्चे की नेतिक, सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक विकास की जानकारी उसकी आदतें, व्यवहार आदि शामिल आदि शामिल होंगे, जिनके आधार पर बच्चे को अंक दिए जाएंगे। बच्चे का यदि कोई पक्ष कमजोर है तो उसे अतिरिक्त कक्षाओं में पढ़ाकर इस लायक बनाया जाएगा कि वह कभी फेल न हो। इसके लिए शिक्षा विभाग द्वारा अध्यापकों को अलग से ट्रेनिंग दी जा रही है कि अध्यापकों को किस तरह से बच्चे का मूल्यांकन कर बच्चे की कमजोरियों को दूर करना है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 29-(2) की उपधारा (1) में कहा गया है कि मूल्यांकन प्रक्रिया ऐसी हो, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो। इस नई प्रणाली में बच्चे के समझने की शक्ति का और उसे उपयोग करने की उसकी योग्यता का व्यापक और सतत मूल्यांकन शामिल है। इसके अलावा धारा 24 (2) घ में प्रत्येक बच्चे की शिक्षा ग्रहण करने की सामर्थ्य का निर्धारण करना और यदि जरूरत हो तो अतिरिक्त शिक्षा देना व माता-पिता के साथ नियमित बैठकें करना शामिल हैं। मूल्यांकन प्रणाली के लिए 11 चरण शामिल किए गए हैं। इसके तहत श्रम करने, संग्रह करने, आंकड़ों का विश्लेषण करने, समूह परियोजना बनवाने में बच्चों का सहयोग, अनु•ाव बांटना, छात्र की प्रोफाइल बनाना और बच्चों द्वारा किए गए कार्यों का विवरण शामिल करना, भ्रमण आदि शामिल हैं। इसी तरह बच्चे की लिखित एवं मौखिक अभीव्यक्ति जांचने के उद्देश्य से लिखित एवं मौखिक दोनों तरह के आकलन की व्यवस्था लागू की जा रही है। शिक्षा सत्र 2011-12 से पायलट आधार पर दो सेमेस्टर प्रणाली लागू की जाएगी। शिक्षा की गुणवत्ता एवं उपचारात्मक शिक्षण की सुनिश्चितता बनाए रखने हेतु राज्य स्तर से मानीटरिंग की जाएगी। शिक्षा विभाग ने नए सत्र से योजना को मूर्त रुप देने के लिए सभी स्कूलों में नोट बुक उपलब्ध करवाने की कवायद शुरू कर दी है। स्कूलों तक नोट बुक पहुंचाने की जिम्मेदारी एसएसए को सौंपी गई है।

बच्चे का लेखा-जोखा होगा तयार 
सतत एवं समग्र मूल्यांकन प्रणाली के तहत अब प्राथमिक से आठवीं कक्षा तक के किसी भी बच्चे को फेल नहीं किया जाएगा। इस प्रणाली के तहत अध्यापकों को बच्चे का समग्र मूल्यांकन कर उसकी कमजोरी को दूर करने के लिए उसका लेखा-जोखा तैयार किया जाएगा। जिस क्षेत्र में बच्चे की रुची होगी उसी के अनुसार बच्चे पर ध्यान दिया जाएगा। शिक्षा विभाग द्वारा भेजी गई नोट बुकों को स्कूलों तक पहुंचाने के लिए एसएसए ने कार्रवाई शुरू कर दी है, ताकि नए सत्र से योजना को सही ढंग से लागू किया जा सके।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
सर्वशिक्षा अभियान, जींद


हाईटेक पंचायत बीबीपुर ने फेसबुक पर दी दस्तक

ग्राम पंचायत बीबीपुर का लोगो।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश की पहली हाईटेक पंचायत ने अब सोसल साइट्स फेसबुक के माध्यम से दूसरी पंचायतों के लिए जागरूकता अभियान शुरू किया है। पंचायत द्वारा गांव में होने वाली सभी गतिविधियों को फेसबुक पर डाला जाता है, ताकि प्रदेश के अन्य पंचायतों के सरपंच व पंचों को पंचायतों के अधिकारों के बारे में जागरुक किया जा सके। ग्राम पंचायत का फेसबुक से जुड़ने का मुख्य उद्देश्य शहरी क्षेत्र के लोगों को गांव में होने वाली गतिविधियों से परिचित करवाना तथा गांव को शहरों की तर्ज पर विकसित करना है। इसके अलावा पंचायत द्वारा फेसबुक पर देश की दूसरी पंचायतों को स्वच्छता कार्यक्रम, मनरेगा स्कीम को कारगर ढंग से लागू करने के टिप्स भी  दिए जा रहे हैं। पंचायत द्वारा फेसबुक पर कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सेव गर्ल्ज चाइल्ड नाम से एक अलग ग्रुप बनाया गया है। जिस पर इंसान की अंतरात्मा को झकझोर कर रख देने वाले कन्या भ्रूण हत्या विरोधी चित्र व मार्मिक स्लोगन डाले गए हैं।
देश में पहली हाईटेक का दर्ज प्राप्त कर चुकी बीबीपुर पंचायत ने अब फेसबुक पर भी धमाल मचा दिया है। ग्राम पंचायत ने देश में जागरुकता फैलाने तथा शहरी क्षेत्र के लोगों के सामने ग्रामीण आंचल में बसे असली भारत को लाने के लिए सोसल साइट्स को अपना हथियार बनाया है। गांव के सरपंच सुनील जागलान ने बताया कि महात्मा गांधी का एक कहना था कि असल भारत गांव में ही बसता है और उनका यह कथन सत्य है। जब तक गांवों का विकास नहीं होगा, तब-तक देश का विकास संभव नहीं है। इसी उद्देश्य को सफल बनाने के लिए पंचायत ने फेसबुक पर अपना अकाऊंट बनाया है। फेसबुक हर रोज गांव में होने वाली गतिविधियों को अपडेट किया जाता है। उन्होंने बताया कि फेसबुक पर शहरी क्षेत्र के लोग अधिक जुड़े हुए हैं। इसलिए उन्हें फेसबुक के माध्यम से गांव में होने वाली गतिविधियों व गांव के रीति-रिवाजों के बारे में जानने का मौका मिलता है। पंचायत द्वारा 26 जनवारी, 15 अगस्त, 2 अक्टूबर, होली, दीवाली व अन्य सभी  त्योहारों को पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है और फेसबुक पर गांव में सभय ढंग से मनाय जाने वाले सभी  त्योहारों को फोटो सहित  डाला जाता है। इसके अलावा फेसबुक पर अन्य ग्राम पंचायतों को गांव में स्वच्छता कार्यक्रम व मनरेगा जैसी योजनाओं को कारगर ढंग से लागू करने के लिए विस्तार से जानकारी दी जाती है। ताकि सराकर द्वारा जन कल्याण के लिए शुरू की गई योजनाओं से आम व्यक्ति लाभ उठा सके। पंचायत को फेसबुक पर लोगों से अच्छा रिस्पांश मिल रहा है। फेसबुक पर एक हजार के लगभग लोग उनके साथ जुड़ चुके हैं।
ऊर्जा संरक्षण व मुर्राह नस्ल को बढ़ावा देने के लिए भी शुरू की मुहिम
हाईटेक पंचातय ने अब फेसबुक पर ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान शुरू किया है। पंचायत ने ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए गांव में शुरू किए गए सौर ऊर्जा संरक्षण प्रोजेक्ट को विस्तार से दर्शाया गया है। पंचायत के इस अभियान में भी  अन्य पंचायतें खास रुचि दिखा रही हैं। इसके अलावा किसानों को खेती के साथ-साथ पशु पालन को व्यवसाय के तौर पर अपनाने के लिए गांव में पशु नस्ल सुधारने के लिए अढ़ाई लाख रुपए की राशि से दो मुर्राह नस्ल के भेंसे खरीदे हैं। ताकि गांव में पशु नस्ल को सुधारा जा सके और किसान पशु व्यवसाय से अधिक से अधिक लाभ अर्जित कर सकें।
 अभियान को सफल बनाने के लिए लिया फेसबुक का सहारा
आज आधुनिक युग के कारण लोग काफी हाईटेक हो गए हैं। आधुनिकता के कारण ही आज किसी भी  अभियान के प्रचार-प्रसार का रास्ता भी काफी आसान हो गया है। इसलिए पंचायत ने अपने अभियान को सफल बनाने के लिए फेसबुक को अपनाया है। फेसबुक से शहरी तबके के लोग काफी जुड़े हुए हैं और जो गांव में होने वाली गतिविधियों में काफी रुचि लेते हैं। शहरी क्षेत्र व उच्च अधिकारियों तक अपने विचार पहुंचाने के लिए ही पंचायत फेसबुक पर गांव में होने वाली सभी गतिविधियों को अपड़ेट करती है और इससे पंचायत को काफी अच्छा रिस्पांश मिल रहा है।
सरपंच सुनील जागलान
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

शैक्षणिक भ्रमण पर जाएंगे विद्यार्थी

भ्रमण के लिए एसएसए द्वारा प्रत्येक स्कूल को दिए जाएंगे 25 हजार
नरेंद्र कुंडू
जींद। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों के लिए एक अच्छी खबर है। एसएसए (सर्व शिक्षा अभियान) सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों को टूर का तोहफा देने जा रहा है। विद्यार्थियों को शैक्षणिक  भ्रमण पर भेजने के पीछे विभाग का उद्देश्य बच्चो को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाना है। इसके लिए जिले से चार स्कूलों का चयन किया गया है। एसएसए द्वारा चयनित किए गए प्रत्येक स्कूल से 50 विद्यार्थियों को भ्रमण पर भेजा जाएगा। भ्रमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक साईंस अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके। एसएसए द्वारा भ्रमण के लिए प्रत्येक स्कूल पर 25 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे। नरवाना व अलेवा ब्लॉक के दोनों स्कूलों को 17 तथा जींद व जुलाना के दोनों स्कूलों को 18 मार्च को भ्रमण के लिए भेजा जाएगा।
एसएसए ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजने का निर्णय लिया है। एसएसएस द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले से चार सरकारी स्कूलों का चयन किया गया है। एसएसएस द्वारा चयनित चारों स्कूलों से 200 एससी विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजा जाएगा। इस प्रकार भ्रमण के लिए प्रत्येक स्कूल से 50 बच्चों को चुना गया है। एसएसए द्वारा विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर भेजने के लिए एक लाख रुपए का बजट मंजूर किया गया है। जिले के चारों स्कूलों को 25-25 हजार रुपए दिए जाएंगे। एसएसए द्वारा भ्रमण के लिए जींद, नरवाना, जुलाना व अलेवा से एक-एक स्कूल का चयन किया गया है। इसके लिए एसएसए द्वारा चारों स्कूल मुखियाओं को पत्र जारी कर भ्रमण पर जाने के निर्देश जारी किए गए हैं। भ्रमण के लिए विद्यार्थियों को पटियाला (पंजाब)व पटियाला के आस-पास के क्षेत्रों में ले जाया जाएगा। भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक साइंस का अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके।
भ्रमण के लिए किन स्कूलों का किया गया है चयन
एसएसए द्वारा शैक्षणिक भ्रमण के लिए जिले के चार ब्लॉकों से एक-एक स्कूलों का चयन किया गया है। जिसमें जींद ब्लॉक से राजकीय मिडल स्कूल गोबिंदपुरा, जुलाना ब्लॉक से राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल मालवी, नरवाना ब्लॉक से राजकीय हाई स्कूल सूरजेवाला तथा अलेवा ब्लॉक से राजकीय हाई स्कूल बिघाना के स्कूल को चुना गया है। प्रत्येक स्कूल से एससी वर्ग के 50 विद्यार्थियों को भ्रमण पर भेजा जाएगा। जिसमें नरवाना व अलेवा ब्लॉक के दो स्कूलों को 17 तथा जींद व जुलाना के दोनों स्कूलों को 18 मार्च को भ्रमण पर भेजा जाएगा।


 बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाना  है उद्देश्य
विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से एसएसए ने यह निर्णय लिया है। इसके लिए जिले के चार स्कूलों का चयन किया गया है। जिसमें प्रत्येक स्कूल से 50 विद्यार्थियों को •ा्रमण के लिए भेजा  जाएगा। भ्रमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक अध्यापक सार्इंस का होना अनिवार्य है।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
एसएसए, जींद


रविवार, 18 मार्च 2012

शैक्षणिक भ्रमण पर जाएंगे विद्यार्थी


भ्रमण के लिए एसएसए द्वारा प्रत्येक स्कूल को दिए जाएंगे 25 हजार
नरेंद्र कुंडू
जींद। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों के लिए एक अच्छी खबर है। एसएसए (सर्व शिक्षा अभियान) सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों को टूर का तोहफा देने जा रहा है। विद्यार्थियों को शैक्षणिक  भ्ररमण पर भेजने के पीछे विभाग का उद्देश्य बच्चो को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाना है। इसके लिए जिले से चार स्कूलों का चयन किया गया है। एसएसए द्वारा चयनित किए गए प्रत्येक स्कूल से 50 विद्यार्थियों को भ्ररमण पर भेजा जाएगा। भ्ररमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक साईंस अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्ररमण के दौरान विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके। एसएसए द्वारा भ्ररमण के लिए प्रत्येक स्कूल पर 25 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे। नरवाना व अलेवा ब्लॉक के दोनों स्कूलों को 17 तथा जींद व जुलाना के दोनों स्कूलों को 18 मार्च को  भ्ररमण के लिए भेजा जाएगा।
एसएसए ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले एससी विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से विद्यार्थियों को शैक्षणिक  भ्ररमण पर भेजने का निर्णय लिया है। एसएसएस द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले से चार सरकारी स्कूलों का चयन किया गया है। एसएसएस द्वारा चयनित चारों स्कूलों से 200 एससी विद्यार्थियों को शैक्षणिक  भ्ररमण पर भेजा जाएगा। इस प्रकार भ्ररमण के लिए प्रत्येक स्कूल से 50 बच्चों को चुना गया है। एसएसए द्वारा विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्ररमण पर भेजने के लिए एक लाख रुपए का बजट मंजूर किया गया है। जिले के चारों स्कूलों को 25-25 हजार रुपए दिए जाएंगे। एसएसए द्वारा  भ्ररमण के लिए जींद, नरवाना, जुलाना व अलेवा से एक-एक स्कूल का चयन किया गया है। इसके लिए एसएसए द्वारा चारों स्कूल मुखियाओं को पत्र जारी कर  भ्ररमण पर जाने के निर्देश जारी किए गए हैं। भ्ररमण के लिए विद्यार्थियों को पटियाला (पंजाब)व पटियाला के आस-पास के क्षेत्रों में ले जाया जाएगा। भ्ररमण के दौरान विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक सार्इंस का अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्ररमण के दौरान विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके।
भ्ररमण के लिए किन स्कूलों का किया गया है चयन
एसएसए द्वारा शैक्षणिक भ्ररमण के लिए जिले के चार ब्लॉकों से एक-एक स्कूलों का चयन किया गया है। जिसमें जींद ब्लॉक से राजकीय मिडल स्कूल गोबिंदपुरा, जुलाना ब्लॉक से राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल मालवी, नरवाना ब्लॉक से राजकीय हाई स्कूल सूरजेवाला तथा अलेवा ब्लॉक से राजकीय हाई स्कूल बिघाना के स्कूल को चुना गया है। प्रत्येक स्कूल से एससी वर्ग के 50 विद्यार्थियों को भ्ररमण पर भेजा जाएगा। जिसमें नरवाना व अलेवा ब्लॉक के दो स्कूलों को 17 तथा जींद व जुलाना के दोनों स्कूलों को 18 मार्च को  भ्ररमण पर भेजा जाएगा।

विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ बौद्धिक ज्ञान अर्जित करवाने के उद्देश्य से एसएसए ने यह निर्णय लिया है। इसके लिए जिले के चार स्कूलों का चयन किया गया है। जिसमें प्रत्येक स्कूल से 50 विद्यार्थियों को भ्ररमण के लिए भेजा जाएगा। भ्ररमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले तीन अध्यापकों में एक अध्यापक सार्इंस का होना अनिवार्य है।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी 
एसएसए, जींद

कानून इनके ठेंगे पर


नरेंद्र कुंडू
जींद। सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। यह बात यहां के प्रशासनिक अधिकारियों पर बिल्कुल फिट बैठ रही है। प्रशासनिक अधिकारियों के ठीक नाक के नीचे लघु सचिवालय के पास स्थित डीसी कॉलोनी में कायदे-कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। डीसी कॉलोनी में अधिकारियों के आवासों व आसपास खाली पड़े प्लाटों में सब्जियों की फसलें उगाई जा रही हैं। इतना ही नहीं कुछ अधिकारियों के सेवादार तो कॉलोनी में मवेशियां पालकर अपना व्यवसाय चलाते हैं और खाली पड़ी जमीन में खेती भी करते हैं। पशुओं को नेहलाने व खेती में सिंचाई के लिए ये हर्बल पार्क व जनस्वास्थ्य विभाग के पानी की चोरी कर विभाग को मोटा चूना लगाते हैं। ऐसा करने से अगर इन्हें कोई रोकता है तो ये साहब का रोब दिखाकर उसकी बोलती बंद कर देते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा आज तक इनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करना प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशाल खड़ा करता है।
सरकारी कर्मचारियों ने वीआईपी कॉलोनी को ही पशुओं के तबेले में तबदील कर दिया है। शहर की आफिसर कॉलोनी में नियमों को ताक पर रख कर मवेशियां पाली जा रही हैं। इन कर्मचारियों द्वारा मवेशियों के लिए कॉलोनी के अंदर ही पक्के बरामदे भी बनाए गए हैं। एक तरफ तो शहर के लोग पीने का पानी उपलब्ध न होने पर जन स्वास्थ्य विभाग को कोसते नजर आते हैं, वहीं दूसरी ओर डीसी कॉलोनी के कर्मचारी पानी का दुरुपयोग करते हैं। जिससे स्वास्थ्य विभाग को हर माह लाखों रुपए का चूना लगता है और शहर की कई कॉलोनियां पीने के पानी से वंचित रह जाती हैं। सूत्रों की मानें तो कॉलोनी में खेती व पशु पालन का काम करने वाले कई कर्मचारी तो प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यालय में सेवादार हैं औरे इन्ही अधिकारियों के बलबुते ही ये कर्मचारी इस कार्रवाई को अंजाम देते हैं। क्योंकि ये कर्मचारी इसके बदले अधिकारियों की जी हजूरी के साथ-साथ उन्हें मुफ्त में सब्जी व दूध उपलब्ध करवाते हैं।
आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया
अगर पशु पालकों की बातों पर विश्वास किया जाए तो एक भेंस पर एक दिन में कम से कम 100 रुपए खर्च होते है। इस प्रकार एक  भेंस का एक माह का खर्च तीन हजार रुपए बैठता है। लेकिन डीसी कॉलोनी में रहने वाला एक-एक चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी सात-सात  भेंस रखता है। इस प्रकार सात  भेंसों का एक माह का खर्च 21 हजार रुपए बैठता है। जबकि उनकी एक माह की पगार 10 से 15 हजार रुपए के बीच होती है। अब सवाल यह उठता है कि 10 से 15 हजार रुपए की पगार वाला कर्मचारी एक माह में  भेंसों पर 21 हजार रुपए कहां से खर्च करता है।
डीसी कॉलोनी में उगाई गई सब्जी की खेती।  

क्या होते हैं नियम 
सरकारी आवास में मवेशियां या अन्य किसी भी प्रकार के पालतु पशु रखना तथा सरकारी आवास में किसी प्रकार का कंस्ट्रक्शन करवाना नियमों के विरुद्ध है, क्योंकि पीडब्ल्यूडी के नियमों के मुताबिक अफसरों को जब कोठियां अलॉट की जाती हैं तो उनसे एक एग्रीमेंट पर साइन करवाए जाते हैं। जिसमें अधिकारी की तरफ  से यह स्पष्ट लिखा जाता है कि अधिकारी कोठियों में किसी तरह की कंस्ट्रक्शन नहीं करवा सकेंगे। लेकिन यहां तो सरकारी कोठियों में पशुओं के लिए पक्के बरामदे बनाए गए हैं, जो नियमों के विरुद्ध हैं।

डीसी कॉलोनी में बंधे पशु।  
गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है। गर्मी के मौसम में पानी की काफी डिमांड रहती है। डीसी कॉलोनी में अवैध तरीके से पानी का प्रयोग किया जाता है। मामला गंभीर है इसलिए एक्सईएन साहब से बातचीत कर मामला उपायुक्त के नोटिस में लाया जाएगा। ताकि डीसी कॉलोनी में पानी की चोरी को रोका जा सके।
आरआर भारद्वाज, एसडीओ
जनस्वास्थ्य विभाग, जींद

मामला उनकी जानकारी में नहीं है। हर्बल पार्क के कर्मचारियों को हर्बल पार्क से बाहर पानी न देने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। अगर डीसी कॉलोनी के कर्मचारी हर्बल पार्क से पानी चोरी करते हैं तो मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उपायुक्त से बातचीत कर डीसी कॉलोनी से मवेशियों के पालन व खेती पर पाबंदी लगवाई जाएगी।
सुनील कुंडू, रेंज पोस्ट आफिसर 
वन विभाग, जींद
फोटो कैप्शन



शनिवार, 10 मार्च 2012

मायके में भी कीट प्रबंधन की अलख जगाएंगी निडाना की महिलाएं

धान व कपास के सीजन से शुरू करेंगी अभियान
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जब बेटी ब्याह कर घर से बिदा होती है तो मायके वाले उसे सास-ससुर की सेवा करने तथा ससुराल में अपने मायके की साख बनाए रखने की सीख देते हैं, लेकिन अब निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की महिलाएं अपने पिहरियों को कीट प्रबंधन की सीख देंगी। कीट प्रबंधन में दक्ष ये महिलाएं अपने मायके में जाकर कीटनाशक रहित खेती की अलख जगाएंगी, ताकि हमारी थाली में बढ़ते इस जहर को कम किया जा सके। धान व कपास के सीजन से ये महिलाएं हर सप्ताह इकट्ठी होकर क्रमवार अपने-अपने मायके में कीट प्रबंधन पाठशाला चलाएंगी। मायके में लगने वाली इस पाठशाला का सारा खर्च मायके वाले उठाएंगे।
कीट प्रबंधन में माहरत हासिल करने के बाद निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की महिलाओं ने थाली में बढ़ते जहर को कम करने का बीड़ा उठाया है। अब जल्द ही ये महिलाएं टीचर की भूमिका में नजर आएंगी। चूल्हे-चौके के साथ-साथ ये महिलाएं अब किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सीखाएंगी। इस अभियान की शुरुआत ये अपने अपने मायके से करेंगी। डॉ. सुरेन्द्र दलाल ने बताया की इस अभियान को सफल बनाने के लिए इन महिलाओं ने एक समूह बनाया है। इस समूह में कीट प्रबंधन में दक्ष महिलाओं को शामिल किया है। समूह में शामिल सभी महिलाएं क्रमवार अपने-अपने मायके में जाकर वहां के किसानों को कीट प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी देंगी और किसानों को फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान करवाएंगी। अब तक ये महिला किसान फसलों में पाए जाने वाले 77 प्रकार के शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान कर फसल पर होने वाले इनके सकारात्मक व नकारात्मक परिणामों के बारे में खोज कर चुकी हैं। इन महिलाओं ने गेहूं व सरसों की फसल में पाए जाने वाली लेडीबिटल, सरफड मक्खी, गिदड़ बुगड़ा के अलावा दो ऐसी संभीरका की खोज की है, जो अल के पेट में अपने बच्चे पलवाती हैं ओर इस प्रकार दूसरे कीट के बच्चों के पालन-पोषण के चक्कर में फसल को हानि पहुंचाने वाला अल अपनी ही जान से हाथ धो बैठता है। इस मुहिम के पीछे इन महिला किसानों का उद्देश्य मित्र कीटों की पहचान कर कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देना है। ताकि कीटनाशकों के प्रयोग से इंसान के शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को रोक कर इंसान को एक स्वस्थ जीवन प्रदान किया जा सके और यह तभी संभव हो सकता है, जब सभी किसान कीट प्रबंधन के प्रति जागरुक होकर फसल में कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दें। अपने इस अभियान की शुरुआत ये महिलाएं धान व कपास के अगले सीजन यानि जून व जुलाई से करेंगी। मायके में लगने वाली इस पाठशाला का सारा खर्च उनके मायके वाले उठाएंगे। इस अभियान की शुरुआत से पहले ये मास्टर ट्रेनर महिलाएं निडाना के आस-पास के गांवों की महिलाओं को जागरुक करेंगी। निडाना के पास स्थित ललितखेड़ा की महिलाओं को जागरुक करने की जिम्मेदारी संतोष, सविता, शीला व अनारो को दी गई है तथा निडानी गांव की महिलाओं को जागरुक करने की जिम्मेदारी हरदेई व संतोष को दी गई है।
दूसरे प्रदेशों के भ्रमण के दौरान लिया संकल्प
अपने मायके में कीट प्रबंधन की अलख जगाने का संकल्प इन महिलाओं ने उस समय लिया जब ये महिलाएं कृषि विभाग द्वारा भेजे गए 5 दिवसीय टूर से वापिस आ रही थी। टूर से लौटते वक्त ये महिलाएं जब यमुनानगर से कुरुक्षेत्र की तरफ लौट रही थी तो रास्ते में कुरुक्षेत्र के पास स्थित रतनगढ़ गांव के पास स्थित एक होटल पर खाना खाने के लिए रुकी, वहां पर इन महिलाओं ने देखा की कुछ किसान अपने खेत में ट्रेक्टर चालित पंप से गेहूं की फसल में कीटनाशक दवाइयों का स्प्रे कर रहे थे। किसानों ने जब इन्हें गेहूं की फसल में मौजूद अल के बारे में बताया तो इन महिलाओं ने उन किसानों को अल का उपचार बिना कीटनाशक का प्रयोग किए कीट प्रबंधन में बताया। यहीं से इन महिलाओं ने अपने मायके में भी कीट प्रबंधन की अलख जगाने का निर्णय लिया। 


मंगलवार, 6 मार्च 2012

....अब गुरु जी भी सीखेंगे तकनीकी गुर

14 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर 10 से नरवाना में
नरेंद्र कुंडू
जींद।
शिक्षा विभाग ने सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में कार्यरत पीटीआई अध्यापकों को आधुनिक गुरों से लैस करने की योजना तैयार की है। इस योजना के तहत प्रदेशभर के पीटीआई अध्यापकों के लिए डिविजन के अनुसार कैंप लगाए जाएंगे। इन कैंपों में मास्टर ट्रेनरों द्वारा पीटीआई अध्यापकों को खेलों की नई तकनीकों के बारे में ट्रेंड किया जाएगा। इसी कड़ी के तहत नरवाना के नवदीप स्टेडियम में 10 मार्च से 23 मार्च तक 14 दिवसीय कैंप का आयोजन किया जाएगा। इस कैंप में 12 जिलों के पीटीआई अध्यापक भाग लेंगे। 14 दिवसीय कैंप में मास्टर ट्रेनरों द्वारा पीटीआई अध्यापकों को बारिकी से एथलेटिक्स के गुर सिखाए जाएंगे। ट्रेनिंग के दौरान पीटीआई अध्यापकों को अपने साथ सिर्फ बिस्तर लेकर आने होंगे, बाकि की सारी व्यवस्था एसएसए द्वारा की जाएगी।
खेलों के क्षेत्र में प्रदेश के स्तर को ओर ऊंचा उठने तथा खिलाड़ियों को समय-समय पर खेलों की नई तकनीकी जानकारियां उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से शिक्षा विभाग ने एक खास योजना तैयार की है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत इस योजना को अमल में लाया जाएगा। इस योजना के तहत पीटीआई अध्यापकों के लिए 10 मार्च से नरवाना के नवदीप स्टेडियम में 10 दिवसीय कैंप का आयोजन किया जाएगा। इस कैंप में जींद, हिसार, भिवानी, फतेहाबाद, सिरसा, कैथल, सोनीपत, झज्जर, रेवाड़ी, गुड़गांव, महेंद्रगढ़, फरीदाबाद यानि 12 जिलों के पीटीआई अध्यापक भाग लेंगे। इन कैंपों में मास्टर ट्रेनरों द्वारा कैंप में भाग लेने वाले सभी   अध्यापकों को खेलों की नई तकनीकों को बारिकी से सिखाया जाएगा। इस 14 दिवसीय कैंप में 6 मास्टर ट्रेनरों को नियुक्त किया गया है, जिनमें दो कोच, दो डीपीई, एक एईओ व एक फिजिकल टीचर शामिल हैं। ये मास्टर ट्रेनर पीटीआई अध्यापकों को कबड्डी, खो-खो, एथलेटिक्स, हैंडबाल, कुश्ती, योगा, लेजियम डंबल, आत्म रक्षा तथा खेलों के नए तकनीकी गुर सिखाएंगे। कैंप में अध्यापकों को व्यवहारिक ज्ञान के साथ-साथ किताबी ज्ञान भी दिया जाएगा। कैंप में अध्यापकों को अपने साथ सिर्फ बिस्तर व लेजियम डंबल लेकर आने होंगे, बाकि की सारी व्यवस्था सर्व शिक्षा अभियान द्वारा की जाएगी।
अध्यापकों को नई तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाना है उद्देश्य 
अधिकतर पीटीआई अध्यापक खेलों के क्षेत्र से दूर होने के कारण नई तकनीकों से महरूम हो जाते हैं। जिस कारण वे खेलों के बारे में खिलाड़ियों को नई तकनीकों जानकारी नहीं दे पाते। लेकिन खेलों में प्रतिस्पर्धा का दौर होने के कारण दूसरे प्रदेश के खिलाड़ियों द्वारा खेलों में समय-समय पर नई-नई तकनीकों को अपनाया जाता है। इसलिए एसएसए ने पीटीआई अध्यापकों को खेलों की नई तकनीक सिखाने के लिए इस योजना को शुरू किया गया है। ताकि पीटीआई अध्यापक मास्टर ट्रेनरों से खेलों की नई बारिकियां सीख कर अच्छे खिलाड़ी तैयार कर सकें। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से खेलों के क्षेत्र में खिलाड़ी तो नई तकनीकी जानकारी सीखेंगे ही, साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में प्रदेश का स्तर  भी  ऊंचा उठ सकेगा।
भीम सैन भारद्वाज
जिला परियोजना निदेशक
सर्व शिक्षा अभियान, जींद

सोमवार, 5 मार्च 2012

भविष्य के कर्णधारों ने चुनी किताबें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के सरकारी स्कूलों की लाइब्रेरियां अब अध्यापकों की मर्जी से नहीं, बल्कि विद्यार्थियों की मर्जी से सजेंगी। सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) द्वारा जींद में आयोजित दो दिवसीय पुस्तक मेले में जिले से 207 स्कूलों से 1035 विद्यार्थियों ने भाग लिया। स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टर (एसपीडी) ने जिस उम्मीद से इस बार पुस्तकों के चयन की कमान शिक्षकों के हाथ से छीनकर देश के इन भावी कर्णधारों के हाथों में सौंपी थी, तो इन कर्णधारों ने भी एसपीडी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए अपनी सुझबुझ का परिचय दिया। एसपीडी द्वारा उठाए गए इस कदम से जहां इस बार बच्चे अपनी मनपसंद की पुस्तकें खरीद सके, वहीं पुस्तक पब्लिसरों व अध्यापकों के बीच होने वाली सांठगांठ पर भी अंकुश लगा। इस बार पुस्तक मेले में एसएसए द्वारा अध्यापकों व अभिवकों के प्रवेश पर पूरी तरह से बैन लगाया गया था। इस दौरान पुस्तक मेले से प्रत्येक हाई स्कूल की लाइब्रेरी के लिए 150 से 200 व सीनियर सेकेंडरी स्कूल की लाइब्रेरी के लिए 200 से 250 पुस्तकें खरीदी गई।
क्या थे पुस्तक मेले के नियम
इस बार पुस्तक मेले में पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों की जगह विद्यार्थियों को सौंपी गई थी। जिसके तहत प्रत्येक हाई स्कूल से 4, सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 6 विद्यार्थी मेले में भाग ले सकते थे। इसके अलावा को-एजुकेशन स्कूलों में प्रत्येक सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 3 लड़के व 3 लड़कियां तथा हाई स्कूल से 2 लड़के व 2 लड़कियां भाग ले सकती थी। सीनियर सेकेंडरी स्कूल के बच्चे सभी स्टालों से 29 हजार व हाई स्कूल के विद्यार्थी 24 हजार तक की पुस्तकों की खरीदारी कर सकते थे। विद्यार्थी एक स्टाल से एक हजार रुपए तक की खरीदारी कर सकते थे। पुस्तक मेले में पुस्तकों का चयन विद्यार्थियों को स्वयं करना था। पुस्तक मेले में विद्यार्थियों के अलावा अध्यापकों व अभिभावकों को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी।
अंग्रेजी से भाग हुआ विद्यार्थियों का मोह  
पुस्तक मेले में अलग-अलग पुस्तक पब्लिसरों द्वारा कुल 46 स्टाल लगाए गए थे। पुस्तकों के चयन को लेकर विद्यार्थियों में काफी उत्साह था। सभी स्टालों पर विद्यार्थियों की खासी भीड़ नजर आ रही थी। इन सभी स्टालों से विद्यार्थियों ने मनोरंजक, ज्ञान वर्धक, संस्कृतिक, विज्ञान, देशभक्ति, कहानियों की किताबों की जमकर खरीदारी की। लेकिन अंग्रेजी की पुस्तकों की खरीदारी नामात्र ही हो पाई। मेले में अंग्रेजी पुस्तकें विद्यार्थियों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाई। पुस्तक मेले में अंग्रेजी की पुस्तकों की ज्यादा खरीदारी न होना सीधे इस बात की ओर इशारा करता है कि सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों का मोह अंग्रेजी से कम हो रहा है। 
मिलीभगत पर लगी रोक
पुस्तक मेले में पहले पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों को सौंपी जाती थी। जिस कारण अध्यापक पब्लिसरों के साथ सांठगांठ कर लेते थे और पब्लिसरों से उनके स्टाल से अधिक पुस्तकों के आडर देने की एवज में मोटा कमीशन ऐठते थे। पब्लिसरों व अध्यापकों की मिलभगत के कारण विद्यार्थियों को अच्छी व ज्ञानवर्धक पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पाती थी। पब्लिसरों व अध्यापकों की इस सांठगांठ पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से इस बार एसपीडी ने पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों के हाथों से छीनकर विद्यार्थियों को सौंप दी। इस प्रकार एसपीडी द्वारा उठाए गए इस कदम से विद्यार्थियों को जहां अपनी मनपसंद पुस्तकों के चयन की आजादी मिली, वहीं पब्लिसरों व अध्यापकों की इस मिलभगत पर भी रोक लगी। एसएसए ने भी एसपीडी के आदेशों का सख्ताई से पालन किया और पुस्तक मेले में अध्यापकों व अभिभावकों को जाने पर पाबंदी लगा दी।
गड़बड़ाई कंप्यूटर व्यवस्था
पुस्तक मेले में विद्यार्थियों द्वारा जिन पुस्तकों का चयन किया जा रहा था, उस आर्डर को एसएसए द्वारा साथ की साथ कंप्यूटरों में फीड करवा उसका डाटा तैयार करना था। सबसे पहले ब्लॉक वाइज व फिर जिला स्तर पर डाटा तैयार किया जाना था। डाटा फीड के लिए एसएसए द्वारा 15 कंप्यूटर आप्रेटर लगाए गए थे। लेकिन लैब की व्यवस्था सही न होने व लैब में समय पर लाइट का प्रबंध न होने के कारण एसएसए की कंप्यूटर व्यवस्था जवाब दे गई। जिस कारण पुस्तकों के आर्डर की डाटा फीडिंग का काम साथ-साथ नहीं हो पाया और कंप्यूटर आप्रेटरों को रविवार को भी  डाटा फीडिंग का काम जारी रखना पड़ा।


इस बार पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों की जगह विद्यार्थियों को सौंपी गई थी। इसलिए इस बार पुस्तक मेले में विद्यार्थियों के अलावा अध्यापकों व अभिभावकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था। एसएसए द्वारा विद्यार्थियों के लिए खाने-पीने की सभी सुविधाएं मुहैया करवाई गई थी।
सेवा सिंह बेनीवाल, डिप्टी सुपरीडेंट
एसएसए, जींद

रविवार, 4 मार्च 2012

डीएड व बीएड कॉलेजों पर छाए संकट के बादल

एनसीटीई की दो टीमों ने दी कॉलेजों में दस्तक
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के डीएड व बीएड कॉलेजों पर संकट के बादल छाए हुए हैं। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा ( रास्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिसद ) एनसीटीई के क्षेत्रीय निदेशक को फटकार लगाने के बाद एनसीटीई ने एनसीटीई एक्ट की धारा 17 के तहत निजी डीएड व बीएड कॉलेजों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इसके लिए एनसीटीई की दो टीमें 24 फरवरी से जींद जिले के कॉलेजों का निरीक्षण कर वहां व्याप्त खामियों का लेखा-जोखा तैयार कर रही हैं। निरीक्षण के दौरान कॉलेज में चल रहे गड़बड़झालों के उजागर होने के डर से निजी कॉलेज संचालकों के पैरों तले से जमीन खिसक गई है। क्योंकि अधिकतर कॉलेज एनसीटीई द्वारा निर्धारित मापदंड व मानकों पर खरे नहीं उतर पाने के कारण उन पर गाज गिरना तय है।
हाईकोर्ट ने बिना प्रदेश सरकार के अनापत्ति प्रमाण पत्र के अंधाधुंध बीएड व डीएड कॉलेजों को मान्यता देने पर एनसीटीई की खिंचाई की है। हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए एनसीटीई को 6 माह पहले यह निर्देश दिए थे कि वह सभी डीएड व बीएड कॉलेजों का निरीक्षण कर हाईकोर्ट में स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करे। परंतु हाईकोर्ट के आदेशों की पालना न होने पर एनसीटीई के क्षेत्रीय निदेशक को अवमानना नोटिस जारी कर व्यक्तिगत रूप से 13 फरवरी को हाईकोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था। 13 फरवरी को सुनवाई के दौरान क्षेत्रीय निदेशक को हाईकोर्ट के आदेशों की पालना न करने पर कड़ी फटकार लगाते हुए एक महीने की तय समयावधि में डीएड व बीएड कॉलेजों का निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किए हैं। हाईकोर्ट की फटकार के बाद अब एनसीटीई ने एनसीटीई एक्ट की धारा 17 के तहत प्रदेश के सभी डीएड व बीएड कॉलेजों का गहन निरीक्षण शुरू कर दिया है। किस दिन किस कॉलेज का निरीक्षण होगा, इसका विवरण अपनी वैबसाइट एनआरसीएनसीटीई डॉट ओआरजी पर जारी कर दिया है। जिसके तहत एनसीटीई की दो टीमें जींद में पहुंच चुकी हैं। एनसीटीई की दोनों टीमें 24 फरवरी से शैड्यूल के अनुसार डीएड व बीएड कॉलेजों में जाकर कर वहां व्याप्त खामियों का लेखा-जोखा तैयार करने में जुटी हैं। जिले में लगभग 22 डीएड व बीएड कॉलेजे हैं। एनसीटीई द्वारा गहन निरीक्षण से निजी कॉलेज संचालकों में हड़कंप मच गया है। क्योंकि एनसीटीई द्वारा की जा रही गहन जांच के पश्चात जिले के कई निजी डीएड व बीएड कॉलेजों पर गाज गिरना तय है। हाईकोर्ट की कड़ी फटकार के बाद एनसीटीई द्वारा मामले को गंभीरता से लेने पर प्रताड़ित विद्यार्थी व शिक्षक खुशी से झुम उठे हैं।
क्या-क्या खामिया होंगी उजागर 
अधिकांश निजी बीएड व डीएड कॉलेजों के पास न तो मूलभूत सुविधाएं हैं और ना ही वे एनसीटीई द्वारा निर्धारित मापदंड व मानकों पर खरे उतरते हैं। इन संस्थानों में से डिग्रीयां बांटी जा रही हैं। अधिकांश निजी बीएड व डीएड कॉलेजो में शिक्षण हेतु निर्धारित मात्रा में पूरा स्टाफ  नहीं है। ज्यादातर कॉलेजों में छात्रों से रकम ऐंठ कर हाजिरी पूरी कर दी जाती है। विद्यार्थियों पर भारी जुर्माने लगाकर बड़े पैमाने पर उनका शोषण किया जाता है। इसके अलावा शिक्षकों को कम वेतन दिया जाता है, शिक्षकों की फर्जी नियुक्तियां दिखाई जाती हैं, बैंक अकाउंट की बजाय नकद फीस ली जाती है, किस्तों में फीस लेने की बजाए एकमुश्त फीस वसूली जाती है, अनाप-शनाप जुर्माने वसूले जाते हैं, कई कॉलेजों में स्कूल, अस्पताल जैसी अन्य गतिविधियां चलाई जाती हैं।
क्या हैं एनसीटीई के नियम
एनसीटीई के नियम के मुताबिक 100 सीटों के डीएड या बीएड कॉलेज के पास 3 एकड़ जमीन होनी चाहिए, जिसमें 1500 स्कवेयर मीटर में बिल्डिंग बनी होनी चाहिए। जमीन कॉलेज के नाम होनी चाहिए तथा जमीन पर किसी प्रकार का लोन नहीं होना चाहिए। 100 सीटों वाले कॉलेज में कम से कम 7 लेक्चर्र, एक प्रिंसिपल व 6 अन्य स्टाफ मेंबर होने चाहिएं। लेक्चर्र की शैक्षणिक योग्यता मास्टर डिग्री व एमएड के अलावा नेट या पीएचडी क्वालिफाइड होना चाहिए। प्रिंसिपल की शैक्षणिक योग्यता में लेक्चर्र की सभी शर्तों के अतिरिक्त 10 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। बीएड, डीएड, सीपीएड व एमएड के लिए अलग-अलग भवन होना चाहिए। कॉलेज में लाइब्रेरी, लेब व फर्नीचर के अलावा सभी मूलभूत सुविधाएं होनी चाहिएं।

शनिवार, 3 मार्च 2012

कर्मचारियों को रास नहीं आ रहा ई-सेलरी सिस्टम

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार की आधुनिकरण की नीति ई-सेलरी सिस्टम कर्मचारियों को रास नहीं आ रही है। यह सिस्टम लागू तो कर दिया गया, लेकिन इसके बारे में कर्मचारियों को कोई तकनीकी जानकारी न होने के कारण यह सुविधा उनके लिए आफत बन गई है। तकनीकी जानकारी के अभाव के कारण कर्मचारी ई-सेलरी का साफ्टवेयर आॅपरेट नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा ज्यादातर कार्यालयों में कंप्यूटर व ब्राडबैंड इंटरनेट की सुविधा नहीं है और जहां पर ये सुविधा है, वहां दक्ष कंप्यूटर आप्रेटर नहीं है। कंप्यूटर व नेट र्वकिंग का तकनीकी प्रशिक्षण नहीं होने की वजह से कर्मचारियों को साइबर कैफे के चक्कर लगाने पड़ रहा हैं। सरकार की इस आधुनिकरण की नीति के कारण कर्मचारियों को अपने वेतन की चिंता सताने लगी हैं।
सरकार की आधुनिकरण की नीति के तहत विभिन्न विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों को जल्द वेतन मुहैया करवाने के लिए प्रदेश में जनवरी माह से ई-सैलरी सिस्टम लागू किया गया है। जिसमें कर्मचारियों का वेतन हरियाणा ट्रेजरी एंड खजाना विभाग द्वारा ई-सैलरी के माध्यम से निकाला जाना है। इसके तहत सबसे पहले शिक्षक व कर्मचारियों को नेट वर्किग के माध्यम से अपने डाटा फीड करवाना होता है। जिसमें कर्मचारियों का नाम, पता, जन्म तिथि, आईडी संख्या, पेन संख्या आदि शामिल है। परंतु प्रदेश के अधिकतर स्कूलों व अन्य विभागों के कर्मचारी डाटा फीड नहीं कर पा रहे हैं। इसकी वजह कर्मचारियों का अप्रशिक्षित होना बताया जा रहा है। शिक्षा विभाग के एक उच्च अधिकारी का कहना है कि विभाग की तरफ  से स्कूल के तमाम स्कूल प्राचार्यों को प्रशिक्षण दिया गया था परंतु इस प्रशिक्षण का फायदा अन्य शिक्षकों तक नहीं पहुंच पाया, जिसकी वजह से यह समस्या आ रही है। ई-सैलरी बनवाने के लिए कार्यालयों में कम से कम एक कंप्यूटर तथा ब्राडबैंड इंटरनेट सुविधा व एक तकनीकी कर्मचारी जरूरी है। परंतु ज्यादातर कार्यालयों में ब्राडबैंड इंटरनेट की सुविधा तो दूर कंप्यूटर सिस्टम तक उपलब्ध नहीं है। जहां पर इंटरनेट सुविधा है वहां पर दक्ष कम्प्यूटर डाटा आपरेटर न होने के कारण कर्मचारी अपना वेतन निकलवाने को लेकर चिंतित हैं। सहायक खजाना कार्यालयों में विभागीय नियमों का पालन करते हुए वहां कार्यरत कर्मियों ने कर्मचारियों का आगामी महीनों का वेतन ई-सैलरी के माध्यम से ही जारी करने का उल्लेख किया है। वहीं कुछ  कर्मियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब वे नेटवर्क दिक्कत तथा सर्वर दिक्कतों के चलते संबंधित वि•ााग से संपर्क करते हैं तो बेबसाइट पर दिए गए दूरभाष नंबर से भी कोई सही जानकारी नहीं मिल पाती। जिस कारण ई-सेलरी व्यवस्था सरकारी अधिकारियों के लिए आफत बन गई है। कंप्यूटर व नेट वर्किग का तकनीकी प्रशिक्षण नहीं होने की वजह से कर्मचारियों को साइबर कैफे के चक्कर लगाने पड़ रहा हैं। अब तो सरकारी कर्मचारियों को मार्च का वेतन मिलने की भी आशंका सताने लगी है।

क्या है ई-सेलरी सिस्टम का लाभ
ई-सेलरी एक इलेक्ट्रानिक सिस्टम है। इस सिस्टम की सहायता से कर्मचारियों को आनलाइन वेतन का भुगतान जल्द किया जा सकता है। इस नई प्रणाली के तहत विभाग की तरफ  से मिलने वाली बजट कर्मचारियों के खातों में सीधे जमा करवाया जा सकेगा। कर्मचारियों को वेतन निकासी के लिए ट्रेजरी व बैंक के चक्कर लगाने नहीं लगाने पड़ेंगे। बजट पर कंट्रोल होगा, कोई भी अधिकारी किसी भी कर्मचारी की सेलरी के साथ छेड़खानी नहीं कर सकेगा। सेलरी बनाते समय होने वाली गलती से बचा जा सकेगा। बार-बार बिल की फीडिंग नहीं करनी पड़ेगी। कार्य प्रणाली में पारदर्शिता आएगी। पेपर वर्क कम होगा।
किस-किसको नहीं मिलेगा ई-सेलरी सिस्टम का लाभ
गेस्ट टीचरों, अनुबंध पर लगे कर्मचारियों को ई-सेलरी सिस्टम का लाभ  नहीं मिलेगा। इन कर्मचारियों को सामान्य तरीके से सेलरी का भुगतान किया जाएगा।
कार्य प्रणाली में आएगी  पारदर्शिता
कार्य प्रणाली में पारदर्शिता लाने व कर्मचारियों पर बढ़ते काम के बोझ को कम करने के उद्देश्य से ई-सेलरी सिस्टम लागू किया गया है। सभी  विभागों के डीडीओ को यूजर नेम व पासवर्ड उपलब्ध करवाए गए हैं। अगर कर्मचारियों के सामने किसी भी प्रकार की तकनीकी समस्या आती है तो विभाग के अधिकारी किसी भी प्राइवेट कंप्यूटर टीचर से सहायता ले सकते हैं। ई-सेलरी सिस्टम के तहत कोई भी अधिकारी किसी कर्मचारी की सेलरी के साथ छेड़खानी नहीं कर सकेगा। सभी कर्मचारियों की सेलरी सीधे उनके खातों में जमा हो जाएगी। जिले में ई-सेलरी सिस्टम को पूरा रिस्पांश मिल रहा है।
वजीर सिंह, जूनियर प्रोग्रामर अधिकारी
खजना कार्यालय, जींद


...हाय राम ये दुखड़ा मैं किस-किस से कहूं

जिला कष्ट निवारण समिति ने आठ माह से नहीं सुनी जन समस्याएं
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार में प्रतिनिधित्व के मामले में जिला पूरी तरह से अनाथ होकर रह गया है। पहले कष्ट निवारण समिति की बैठक में ही लोग अपना दुखड़ा रो लेते थे, लेकिन अब तो उसका सहारा भी नहीं रहा। पिछले 8 माह से जिला कष्ट निवारण समिति की चेयरपर्सन द्वारा एक बार भी जिले में बैठक नहीं ली गई है। अगर पिछले 10 साल के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो जिले में ऐसा पहली बार हुआ है कि जिला कष्ट निवारण समिति के मुखिया द्वारा लगातार आठ माह से एक बार भी लोगों की शिकायतएं नहीं सुनी गई हों। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व बंसीलाल जैसे दिग्गज नेता मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी हर माह जिले के लोगों के बीच पहुंचकर उनकी शिकायतें सुनते थे। इस बारे में जिला प्रशासन के आला अधिकारी चुपी साधे हुए हैं। कोई भी अधिकारी बात करने को तैयार नहीं हैं। जिस कारण जिले में जन समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और उनके दर्द पर मरहम लगाने वाला कोई नहीं है।
जन समस्याओं के निदान के लिए बनाई गई जिला कष्ट निवारण समिति जिले के लोगों के लिए बेमानी साबित हो रही है। एक तरफ जहां प्रदेश के दूसरे जिलों में रुटीन में हर माह जिला कष्ट निवारण समिति के मुखियाओं द्वारा लोगों की समस्याएं सुनी जा रही हैं, वहीं जींद जिले में पिछले आठ माह से एक बार भी प्रदेश की शिक्षा मंत्री एवं समिति की चयरपर्सन गीता भुक्कल एक बार भी लोगों की शिकायतें सुनने नहीं पहुंची है। जिला कष्ट निवारण समिति ही एकमात्र जरिया होती है, जिसके माध्यम से लोग अपनी समस्याएं अपने जनप्रतिनिधियों तक पहुंचा सकते हैं। पहले लोग कष्ट निवारण समिति के सामने अपना दुखड़ा रोकर अपनी समस्या का समाधान करवा लेते थे। लेकिन अब तो जिले के लोगों का यह सहारा भी छुट गया है। समिति की चेयरपर्सन द्वारा इतने लंबे समय से की जा रही अनदेखी के कारण लोगों में रोष व्याप्त है। जिले में मई 2011 के बाद चेयरपर्सन द्वारा समिति की कोई बैठक नहीं की गई है। 8 माह में एक बार भी समिति की बैठक न होना सीधे इस बात की ओर संकेत कर रहा हैं कि कांग्रेस सरकार के जनप्रतिनिधि जींद जिले की पूरी तरह से अनदेखी कर रहे हैं। अगर पिछले 10 साल के आंकड़ों पर भी नजर डाली जाए तो, जिले में यह ऐसा पहला मौका होगा कि जिला कष्ट निवारण समिति की चेयरपर्सन इतने लंबे समय से एक बार भी जनता के बीच में उनकी समस्याएं सुनने के लिए नहीं पहुंची हो। जबकि  प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व बंसीलाल जैसे दिग्गज नेता मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होने के बावजूद भी स्वयं हर माह लोगों की समस्याएं सुनने पहुंचते थे और बैठक में लोगों की समस्याएं सुनकर  संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को तुरंत उनके समाधान के निर्देश देते थे। इससे जनता व जनप्रतिनिधियों के बीच अच्छा तालमेल बना रहता था और काफी हद तक आफसरशाही पर भी अंकुश लगा हुआ था। लेकिन अब तो जिला सरकार के प्रतिनिधित्व के मामले में पूरी तरह से अनाथ हो गया है। जनता व जनप्रतिनिधियों के बीच की यह कड़ी यहां टूटती नजर आ रही है।
सरकार की कार्यप्रणाली पर लग रहा है प्रश्नचिह्न
सरकार द्वारा जन समस्याओं के निदाान के लिए प्रदेश में जिला स्तर पर जिला कष्ट निवारण समितियों का गठन किया गया है। जिला स्तर पर गठित की गई कष्ट निवारण समिति का मुखिया सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। कष्ट निवारण समिति के मुखिया को प्रत्येक माह जिले में समिति की बैठक कर जन समस्याएं सुनकर उनका निदान करना होता है। जनता की समस्याएं सरकार तक पहुंचाने की यह मुख्य कड़ी होती है। प्रदेश की शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल को जींद जिले की कष्ट निवारण समिति की चेयरपर्सन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन चेयरपर्सन ने मई 2011 यानि आठ माह से जन समस्याएं सुनना तो दूर की बात जिले में समिति की एक भी बैठक नहीं की है। लगातार आठ माह से समिति की चेयरपर्सन द्वारा जिले के लोगों के बीच पहुंचकर उनकी समस्याएं न सुनना सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है। इस बारे में जिला प्रशासन के आला अधिकारी चुपी साधे हुए हैं। कोई भी अधिकारी बात करने को तैयार नहीं हैं।

निजी अस्पतालों में लुट रहे मरीज


सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड कक्ष के बाहर लटकता ताला।
सामान्य अस्पताल में कई माह से बंद पड़ी है अल्ट्रासाऊंड मशीन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड मशीन व मरीजों को डॉ. का इंतजार है। अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट का पद खाली होने के कारण लाखों रुपए की अल्ट्रासाऊंड मशीन पिछले लगभग 6 माह से धूल फांक रही है। अल्ट्रासाऊंड मशीन बंद होने के कारण मरीज निजी अस्पतालों में लुटने को मजबूर हैं। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी तो बीपीएल परिवारों व गर्भवती महिलाओं को हो रही है। सरकारी अस्पतालों में लचर स्वास्थ्य सेवाओं और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण निजी अस्पताल संचालकों की पौ-बारह हो रही है।
शहर के सामान्य अस्पताल में मरीजों को अल्ट्रासाऊंड की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए जिला रेडक्रॉस सोसाइटी द्वारा 2003 में ब्लैक एंड व्हाइट मशीन रखी गई थी। रेडक्रॉस द्वारा अस्पताल में अल्ट्रासऊंड के लिए आने वाले मरीजों से जो फीस ली जाती थी, उसका कुछ हिस्सा सोसाइटी अस्पताल प्रबंधन को देती थी। अस्पताल में सामान्य चार्ज पर अल्ट्रासाऊंड की सुविधा मिलने के कारण सोसाइटी को मरीजों का अच्छा रिस्पांश मिल रहा था। जिसके चलते सोसाइटी ने 2007 में अस्पताल में क्लर ओपलर मशीन उपलब्ध करवा दी। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग द्वारा 2011 में अस्पताल को नई अल्ट्रासाऊंड मशीन उपलब्ध करवा दी गई और अस्पताल प्रशासन ने रेडक्रॉस सोसाइटी की मशीन को यहां से नरवाना शिफ्ट कर दिया। जब तक यहां अल्ट्रासाऊंड की जिम्मेदारी रेडक्रॉस सोसाइटी ने संभाली तब तक तो सब कुछ ठीक ठाक चला, लेकिन अल्ट्रासाऊंड का कामकाज अस्पताल प्रबंधन के हाथों में आते ही यह सुविधा दम तोड़ती चली गई। स्वास्थ्य विभाग द्वारा अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड मशीन भेजे जाने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने सप्ताह के तीन दिन की ड्यूटी नरवाना के डा. राजेश गुप्ता को और सप्ताह के तीन दिन की ड्यूटी अस्पताल की डा. मंजुला को सौंपी। बाद में डा. राजेश गुप्ता प्रमोट होकर कैथल चले गए और डा. मंजुला ने भी कामकाज के बढ़ते दबाव के कारण यहां से अपनी सेवाएं बंद कर दी। अब लगभग 6 माह से अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड सुविधा ठप पड़ी है। 6 माह से मशीन बंद होने के कारण लाखों रुपए की मशीन जंग खा रही है।
प्राइवेट अस्पतालों में लुट रहे हैं मरीज
सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की फीस 120 रुपए निर्धारित की गई है। अस्पताल में फीस कम होने के कारण यहां हर रोज लगभग 60 से 70 मरीज अल्ट्रासाऊंड के लिए आते थे। लेकिन अस्पताल में यह सुविधा बंद होने के कारण मरीजों को मजबूरन प्राइवेट अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड के लिए 500 से 600 रुपए खर्च करने पड़ रहे है। अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण प्राइवेट अस्पताल संचालक जमकर चांदी कूट रहे हैं।
निजी अस्पताल संचालकों से हो सकती है सांठगांठ
जब से अल्ट्रासाऊंड का कार्यभार रेडक्रॉस सोसाइटी के पास से अस्पताल प्रबंधन के हाथों में आया है, उस वक्त से अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की सुविधा ठप  होती चली गई है। इस प्रकार अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की दम तोड़ी सुविधा अस्पताल प्रबंधन के निजी अस्पताल संचालकों के साथ सांठगांठ होने के संकेत पैदा कर रही है। सूत्रों की मानें तो निजी अस्पतालों के साथ सांठगाठ के कारण ही जानबुझ कर अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की सुविधा बंद कर दी गई है।
नरवाना में भी धूल फांक रही मशीन
सामान्य अस्पताल नरवाना में भी यही स्थिति है। लग•ाग 6 लाख रुपए की अल्ट्रासाऊंड मशीन होने के बावजूद भी यहां के मरीजों को इधर-उधर धक्के खाने पड़ रहे हैं। पिछले कई माह से यह मशीन क्षेत्र के लिए सफेद हाथी साबित हो रही है। अल्ट्रासाउंड का डाक्टर नहीं होने के कारण मशीन से किसी भी मरीज का अल्ट्रासाउंड नही किया जा रहा। बीमारी का निदान करवाने वाले मरीजों को अल्ट्रासाऊंड करवाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ रहा है।
बीच में डा. मंजुला की तबीयत ज्यादा खराब होने के कारण वे छुट्टी पर चली गई थी, जिस कारण मशीन को बंद करना पड़ा था। अब डा. मंजुला प्रमोट होकर डिप्टी सीएमओ बन गई हैं। जिस कारण अब वे यहां अपनी सेवाएं नहीं दे पा रही हैं। अस्पताल में चिकित्सकों की भारी कमी है। रेडियोलॉजिस्ट का पद भी खाली पड़ा है। जिस कारण अस्पताल मं मजबूरन अल्ट्रासाऊंड की सुविधा को बंद किया गया है।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

..अ मेरे वतन के लोगो जरा याद करो कुर्बानी

शहीदी स्मार्क से यात्रा की शुरुआत करते युवा।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
‘इतना वादा करो जब आजादी मिले, याद करना हमें भूल जाना नहीं’ शहीदों की इस आवाज को बुलंद करने का बीड़ा उठाया है जींद जिले के कुछ देशभक्त युवाओं ने। आजादी से पहले लोगों के दिलों में देश भक्ति का जो जजबा शहीद भगत सिंह व उनके साथियों ने पैदा किया था, उस जजबे को कायम रखने तथा पथ भ्ररष्ट हो रहे नौजवानों को रास्ता दिखाकर देश की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए इन युवाओं ने कमर कस ली है। इन युवाओं ने सरकार से 23 मार्च (शहीद भगत सिंह) के बलिदान दिवस को नेशनल होली डे के रूप में मनाने तथा हर प्रदेश में जिला स्तर पर शहीदी म्यूजियम खोलने की मांग की है। अपनी इस मांग को सरकार तक पहुंचाने व अधिक से अधिक लोगों को इस आंदोलन के साथ जोड़ने के लिए 27 फरवरी (चंद्रशेखर आजाद के शहीदी दिवस) से ‘कुछ पल शहीदों के नाम’ से पैदल यात्रा शुरू की है। यह यात्रा जींद से चलकर गांव व कस्बों से होते हुए पंजाब के नवा शहर स्थित भगत सिंह के गांव खटकड़ कलां पहुंचेगी। देश की पहली हाईटेक पंचायत बीबीपुर भी इन युवाओं के सहयोग में खड़ी हो गई और पंचायत द्वारा इन युवाओं को विशेष सहयोग दिया गया है। सोमवार से शुरू हुई इस यात्रा को बीडीपीओ नीलम अरोड़ा ने शहर के शहीद स्मार्क से हरी झंडी दिखाकर रवाया किया तथा जींद के विधायक हरिचंद मिढ़ा ने भी इन युवाओं का जोरदार स्वागत किया।
जिन शहीदों ने हमारी खुशियों व देश की आजादी के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए आज हम उन्हीं महान शहीदों को भुलाए बैठे हैं। जिन शहीदों ने हमारे हक के लिए लड़ाई लड़ी आज हम उनके हक पर ही डाका डाल रहे हैं। हमारी युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट होकर बुराइयों के दलदल में धंसती जा रही है। शहीदों को उनका हक दिलाने तथा युवा पीढ़ी को सही रास्ता दिखाने की एक उम्मीद की किरण जगाई है जिले के कुछ नौजवानों ने। इन नौजवानों ने इस लड़ाई के लिए भगत सिंह को अपना आदर्श माना है और भगत सिंह की जीवनी से ही इन्हें यह प्रेरणा मिली है। इन युवाओं ने अब शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस 23 मार्च को नेशनल होली डे मनाने, देश में जिला स्तर पर शहीदी म्यूजियम बनाने, स्कूलों के पाठ्यक्रम में शहीदों की जीवनी लागू करवाने, शहीदों के नाम से सरकारी योजनाएं शुरू करने, पुंजीवाद को समाप्त कर समाजवाद को बढ़ावा देने के लिए आवाज उठाई है। ये नौजवान शहीदों को क्षेत्रवाद की सीमा में न बांटकर पूरे देश के युवाओं के लिए उन्हें प्रेरणास्त्रोत बनाना चाहते हैं। इनका कहना है कि आज हमारे शहीद क्षेत्रवाद तक ही सीमित रह गए हैं। खुदीराम बोस को सिर्फ पंश्चिम बंगाल, चंद्रशेखर को इलाहबाद तथा भगत सिंह व ऊधम सिंह जैसे शहीदों को सिर्फ पंजाब व हरियाणा के लोग ही जानते हैं। आज देश को फिर से भगत सिंह जैसे नौजवानों की जरुरत है और देश में ऐसे ही नौजवान तैयार करने के लिए इन युवाओं ने अपनी लड़ाई शुरू कर दी है। इसके लिए इन्होंने शहीद चंद्रशेखर आजाद के शहीदी दिवस यानि 27 फरवरी से एक पैदल यात्रा शुरू की है। इस यात्रा में शहर व गांवों से 30 के लग•ाग युवा शामिल हैं। यह यात्रा गांव व कस्बों से होते हुए पंजाब के नवा शहर स्थित भगत सिंह के गांव खटकड़ कलां पहुंचेगी और यहां पहुंचकर एक बड़े समारोह का आयोजन किया जाएगा। यात्रा के दौरान रास्ते में आने वाले शहीदी स्थलों पर ये नौजवान श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। वहां से वापिस लौटने के बाद भी ये अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
भगत सिंह के नाम से तैयार की वेबसाइट
आज कंप्यूटर का युग होने के कारण युवाओं में इंटरनेट का चलन काफी बढ़ गया है। इसलिए इन युवाओं ने अपने आंदोलन को सफल बनाने तथा अधिक से अधिक युवाओं को अपने साथ जोड़ने के लिए इन्होंने डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाट भगत सिंह एनएस डाट इन के नाम से वेबसाइट तैयार की है और इस साइट पर भगत सिंह के जीवन से संबंधित सभी दस्तावेज डाले गए हैं।
 युवाओं ने की एक अनुठी पहल
युवाओं की यह एक अनुठी पहल है। इस यात्रा से देश के युवाओं को काफी प्रेरणा मिलेगी। यात्रा से लौटने के बाद जिला प्रशासन से भी इन युवाओं के सहयोग के लिए अपील की जाएगी। ताकि हमारी युवा पीढ़ी शहीदों से प्रेरणा ले सके।
नीलम अरोड़ा
बीडीपीओ, जींद

रविवार, 26 फ़रवरी 2012

...ताकि किसानों को न पड़े कीटनाशकों की जरुरत

अल व चेपे से चिंतित न हों किसान
सरसों की फसल में लगा अल
नरेंद्र कुंडू
जींद।
खेतों में सरसों व गेहूं की फसल तैयार हो रही है, लेकिन फसल में आए अल व चेपे से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ रही हैं। क्योंकि ये शकाहारी कीट फसल की टहनियों, कलियों व पत्तियों से रस चुसकर अपना वंश चलाते हैं। जिससे फसल की पैदावार पर काफी प्रभाव पड़ता है। गेहूं की फसल में होने वाली पेंटिडबग व सरसों की फसल में होने वाली एफिड (अल या चेपे) के कीट से फसल का बचाव करने के लिए कृषि वैज्ञानिक किसानों को कीटनाशक स्प्रे की सलाह दे रहे हैं। लेकिन इसके विपरित कीट प्रबंधन के प्रति जागरूक किसान पिछले 6-7 सालों से इसका उपचार कीट प्रबंधन से ही कर रहे हैं तथा इसे चिंता का विषय न बताकर अन्य किसानों को भी फसल में किसी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग न करने की सलाह दे रहे हैं। निडाना खेत पाठशाला के किसान फसल में पाई जाने वाली मासाहारी सिरपट मक्खी व लेडी बिटल को अल व चेपे के कीड़ों का वैद्य बता रहे हैं।
धान व कपास की फसलों के भावों में हुई भारी गिरावट के बाद अब किसानों को गेहूं व सरसों की फसल में आए पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपे) की चिंता सता रही है। अल व चेपे के कारण किसानों को फसल की कम पैदावार का डर सताने लगा है। जिसके उपचार के लिए किसान महंगे से महंगे कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। फसल पर बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग से फसल जहरिली हो रही है और जमीन भी कमजोर पड़ रही है। कृषि विज्ञानिक कीटनाशक स्प्रे के प्रयोग को अल व चेपे से बचाव का एकमात्र साधन मान रहे हैं। लेकिन उधर निडाना खेत पाठशाला के कुछ जागरूक किसान अल व चेपे के कीटों का उपचार कीटनाशक स्प्रे को नहीं कीट प्रबंधन को बता रहे हैं। किसान खेत पाठशाला के ये जागरूक किसान प्राकृतिक तौर पर ही इन कीटों  से निपटने में सक्ष्म रहे हैं और अल व चेपे को चिंता का विषय नहीं मान रहे हैं। कीट प्रबंधन के प्रशिक्षित किसान रणबीर मलिक व मनबीर रेढू ने बताया कि गेहूं व सरसों की फसल में पाए जाने वाली पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपे) के कीटों को कंट्रोल करने के लिए फसल में सरफड़ो (सिरपट मक्खी)व फेलपास (लेडी बिटल) नामक मासाहारी कीट मौजूद रहते हैं, जो फसल में मौजूद अल व चेपे के कीटों को खाकर अपना जीवन चक्र चलाते हैं। जिससे अल व चेपा फसल में हानि पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाता है। कीट प्रबंधन के दौरान उन्होंने फसल में 6 से 7 किस्म की सिरपट मक्खियों व 9 किस्म की लेडी बिटल कीटों की पहचान की है। उन्होंने कहा कि किसानों को अल व चेपे से डरने की जरूरत नहीं है।
क्या है पेंटिडबग व एफिड
पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपा) गेहूं व सरसों की फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी कीट हैं। ये कीट फसल की टहनियों, पत्तियों व कलियों से रस चुसकर वंशवृद्धि करते हैं। दिसंबर से मार्च के बीच सर्द मौसम में फसल में पैदा होते हैं। फसल से रस चुसने के कारण फसल की टहनियां मुड़ने लगती हैं और फूलों से फलियां नहीं बनपाती। फलियों में दाने हलके रह जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सरसों व गेहूं के अलावा यह कीट तोरिया, तारामीरा, बंदगोभी, फूलगोभी व करेला आदि फसलों में भी पाए जाते हैं।
क्या कहते हैं कृषि विज्ञानिक
पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपा) एक शाकाहारी कीट हैं और ये कीट फसल का रस चुसकर अपनी वंश वृद्धि करते हैं। दिसंबर से मार्च के बीच का सर्द एवं मेघमय मौसम में ये फसल में पैदा होते हैं। लेकिन अल व चेपे से किसानों को किसी प्रकार की चिंता करने की जरूरत नहीं है। इन कीटों को खाने के लिए फसल में सिरपट मक्खी व लेडी बिटल नामक मासाहारी कीट होते हैं, जो इन शाकाहारी कीटों को खाकर फसल को नुकसान से बचाते हैं।
डा. सुरेंद्र दलाल
कृषि विज्ञानिक, जींद

दूसरे राज्यों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगी म्हारी महिलाएं

निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की 20 प्रशिक्षित महिलाओं ने शुरू की 5 दिवसीय अंतर्राज्यीय यात्रा
नरेंद्र कुंडू
जींद।
मित्र व दुश्मन कीटों की पहचान में महारत हासिल करने वाली निडाना की महिला किसान अब दूसरे राज्यों में भी इस अभियान की अलख जगाने निकल पडी हैं। वीरवार से शुरू हुई इस 5 दिवसीय अंतर्राज्य अनावरण यात्रा के दौरान ये महिला किसान पतंजलि योगपीठ, देहरादुन व हिमाचल में स्थित आॅर्गेनिक रिसर्च सेंटरों का दौरा करेंगी। यहां पर ये महिलाएं प्रशिक्षकों को जैविक खेती के जरूरी टिप्स देंगी। कृषि विभाग द्वारा शुरू की गई इस अनावरण यात्रा में निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की 20 प्रशिक्षित महिलाओं को चुना गया है। महिलाओं के इस 5 दिवसीय टूर पर कृषि विभाग द्वारा 60 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे। महिलाओं की टीम का नेतृत्व कृषि विभाग के एडीओ डा. सुरेंद्र दलाल व डा. कमल सैनी करेंगे।   
फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के इस्तेमाल को रोकने तथा मित्र कीटों की पहचान कर जैविक खेती को बढ़ावा देने की मुहिम अब रफ्तार पकड़ रही है। निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की महिला किसान कीट प्रबंधन के क्षेत्र में प्रदेश में धाक जमाने के बाद अब दूसरे राज्यों के किसानों को जैविक खेती के लिए जागरुक करने के लिए निकल चुकी हैं। महिलाओं की इस मुहिम में अब कृषि विभाग भी इनके साथ खड़ा हो गया है। कृषि विभाग ने महिलओं को खेती के  क्षेत्र में पारंगत करने के उद्देश्य से महिला किसान पाठशाला की 20 प्रशिक्षित महिलाओं को वीरवार से 5 दिवसीय अंतर्राज्य अनावरण यात्रा पर भेजा है। इस टूर के माध्यम से महिलाएं भी जैविक खेती की नवीनतम जानकारी हासिल करेंगी तथा आर्गेनिक रिसर्च सेंटर के प्रशिक्षकों को भी कीट प्रबंधन के बारे में बताएंगी। इस यात्रा के दौरान यह महिला किसान पंतजलि योगपीठ के जैविक विविधता एवं औषधिय पार्क, देहरादुन के फोरस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट, कीड़ों के संग्राहलय, आर्गेनिक रिसर्च एंड प्रशिक्षण केंद्र, देहरादुन के रामपुरा गांव स्थित नवधानय आर्गेनिक फार्म, हिमाचल के पौंटा साहिब स्थित बॉयो डायनेमिक वैदिक फार्म, सुबोध अभी  आर्गेनिक फार्म का दौरा करेंगी। यहां पर ये महिलाएं प्रशिक्षकों को फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान कर कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगी। कृषि विभाग द्वारा इस 5 दिवसीय टूर पर 60 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे। वीरवार से शुरू हुआ यह टूर 28 फरवरी को ताजेवाला से वापिस जींद पहुंचेगा।
शैक्षणिक  होगा टूर ।
महिलाओं के लिए यह एक शैक्षणिक टूर होगा। इस टूर के दौरान महिला किसान जहां दूसरे प्रशिक्षकों को कीट प्रबंधन के बारे में बताएंगी, वहीं प्रशिक्षकों से उन्हें भी कुछ न कुछ नया सिखने को मिलेगा। इस टूर के दौरान महिलाओं को देहरादुन स्थित आर्गेनिक रिसर्च एंड प्रशिक्षण केंद्र की निदेशक एवं विश्व प्रसिद्ध विज्ञानिक  डा. वंदना के साथ भी मुलाकात करवाई जाएगी। डा. वंदना इन महिला किसानों को जैविक खेती की नवीनतम जानकारियां उपलब्ध करवाएंगी।
 डा. सुरेंद्र दलाल 
एडीओ कृषि विभाग, जींद

5 दिवसीय है टूर
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए महिला किसान पाठशाला की 20 प्रशिक्षक महिलाओं को 5 दिवसीय टूर पर भेजा गया है। इस टूर के माध्यम से महिला किसान जैविक खेती की नई-नई जानकारियां प्राप्त करेंगी तथा दूसरे राज्यों में स्थित प्रशिक्षण केंद्रों के प्रशिक्षकों से भी कीट प्रबंधन के बारे में अपने विचार सांझा करेंगी।
डा. प्रताप सिंह सब्रवाल
जिला कृषि अधिकार, जींद

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

‘शरीर की तलाश में भटकती आत्मा’

विभाग द्वारा किसानों से नहीं मांगे गए आवेदन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार द्वारा कृषि प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई आत्मा योजना अभी तक फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई है। सरकार की बेरुखी केचलते इस वर्ष ‘आत्मा’ शरीर के लिए भटक रही है। योजना फाइलों में दफन होने के कारण  किसी भी प्रगतिशिल किसानों को इसका लाभ नहीं मिल सका है। पिछले वर्ष जहां जिले से 35 प्रगतिशिल किसानों ने इस योजना का लाभ उठाया था, वहीं इस बार विभाग ने इसके लिए आवेदन तक मांगने की जहमत नहीं उठाई है। जिसके चलते जिलेभर के दो दर्जन से ज्यादा किसान पुरस्कार की बाट जोह रहे हैं। लेकिन विभाग इस पर चुप्पी साधे बैठा है।
प्रौद्योगिक खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के उद्देश्य से सरकार ने आत्मा योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत हर वर्ष प्रगतिशिल किसानों को एक पुरस्कार राशि दी जाती है ताकि अधिक से अधिक किसान प्रौद्योगिक खेती को अपना कर अधिक से अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकें। लेकिन इस वर्ष सरकार की आत्मा योजना फाइलों में धूल फांक रही है। योजना सिरे न चढ़ पाने के कारण इस वर्ष प्रगतिशिल किसानों को इसका लाभ नहीं मिला है। घिमाना किसाल क्लब के सदस्यों ने बताया कि पिछले वर्ष इस योजना के तहत जिले के 35 प्रगतिशिल किसानों को पुरस्कार दिए गए थे। उन्होंने बताया कि वर्ष समाप्त होने में अभी एक माह बीच में है, लेकिन किसानों को पुरस्कार देना तो दूर की बात अभी  तक विभाग ने किसानों से आवेदन तक नहीं मांगे हैं।
यह है योजना
तकनीकी रुप से उन्नत खेती करने वाले किसानों को सरकार आत्मा योजना के तहत सम्मानित करती है। इस योजना के तहत उन किसानों से आवेदन मांगे जाते हैं, जो तकनीकी रूप से खेती, पशुपालन, मछली पालन और मुर्गी पालन करते हैं। इन किसानों की पहचान करने के लिए जिला स्तर पर एक समिति बनाई जाती है। इस समिति में जिला कृषि उपनिदेशक, पशुपालन विभाग के जिला उपनिदेशक, मछली पालन विभाग के जिला अधिकारी तथा जिला मुर्गी पालन, जिला बागवानी अधिकारी को शामिल किया जाता है। इस योजना के तहत किसानों को खेती, पशुपालन, सब्जियां पैदा करने, मुर्गी पालन तथा मछली पालन के लिए अलग-अलग अंक दिए जाते हैं। समिति एक टीम का गठन कर सर्वे करवाती है और सर्वे के दौरान प्रगतिशिल किसानों को सर्वे टीम द्वारा दिए गए अंकों के अनुसार ही उनका नाम पुरस्कार के लिए भेजा जाता है। जिसके बाद जिला स्तर पर पांच किसानों को सरकार की तरफ से 25-25 हजार रुपए तथा ब्लॉक स्तर पर तीन-तीन किसानों को 10-10 हजार रुपए पुरस्कार के रूप में दिए जाते हैं। जिला स्तर पर विजेता किसानों के नाम राज्य स्तर के लिए भेजे जाते हैं।
प्रौद्योगिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने आत्मा योजना शुरू की थी और सरकार के निर्देशानुसार ही उन्नत किसानों से आवेदन मांगे जाते हैं। लेकिन इस वर्ष सरकार की तरफ से कोई निर्देश नहीं आए हैं। जिस कारण योजना को अमल में नहीं लाया गया है। जैसे ही सरकार की तरफ से निर्देश मिलेंगे, उसी समय योजना को शुरू कर प्रगतिशिल किसानों से आवेदन मांगे जाएंगे।
डा. प्रताप सिंह सब्रवाल
जिला कृषि अधिकारी, जींद

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

जिला खेल अधिकारी की कुर्सी बनी खेल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला खेल अधिकारी की कुर्सी दो अधिकारियों की आपसी खिंचतान के चलते खेल बनकर रह गई है। जींद खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया का तबादला 2 फरवरी को सोनीपत में हो गया था और सोनीपत के खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया को जींद खेल अधिकारी की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। विभाग द्वारा जारी आदेशों के बाद जींद के खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया ने तो जींद से रिलीव होकर सोनीपत ड्यूटी ज्वाइंन कर ली, लेकिन प्रकाश सिंह दहिया जींद में ड्यूटी ज्वाइंन करने को तैयार नहीं हैं और सोनीपत में ही खेल अधिकारी की कुर्सी पर जम बैठे हैं। ऐसे में सोनीपत जिले के पास तो दो खेल अधिकारी हो गए, लेकिन जींद के खेल अधिकारी की कुर्सी पर बैठने के लिए कोई तैयार नहीं है। जिला खेल अधिकारी की कुर्सी खाली होने से यहां की खेल गतिविधियां पूरी तरह से प्रभावित हो गई हैं।
सोनीपत की जिला खेल अधिकारी की कुर्सी में आखिर ऐसा क्या है कि विभाग के आदेशों के बावजूद भी खेल अधिकारियों का मोह उस कुर्सी से नहीं छुट रहा है। दोनों खेल अधिकारियों में चल रही खींचतान नई नहीं बल्कि काफी पुरानी है। यह मामला उस समय से चल रहा है, जब मेवात में ड्यूटीरत जिला खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया ने मेवात से अपना तबादला सोनीपत में करवा लिया था और फूलकुमार की जगह सोनीपत के जिला खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया को सोनीपत से मेवात में भेज दिया था। इसके बाद प्रकाश सिंह दहिया ने अपना तबादला मेवात से जींद करवा लिया था। जींद की कुर्सी भी प्रकाश सिंह दहिया को रास नहीं आई और प्रकाश सिंह दहिया ने केवल तीन माह बाद ही जींद से अपना तबादला सोनीपत करवा लिया और फूलकुमार दहिया को सोनीपत से जींद पहुंचा दिया। इसके बाद तो यह सिलसिला रूकने की बजाए बदस्तुर जारी हो गया। जींद में तबादला होने के बाद फूलकुमार दहिया ने भी ज्यादा दिन जींद में नहीं रुके और उन्होंने भी अपनी राजनैतिक अपरोच का सहारा लेकर तीन माह के अंदर ही दोबारा से अपना तबादला जींद से सोनीपत करवा लिया और प्रकाश सिंह दहिया को सोनीपत से वापिस जींद का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद फूलकुमार दहिया ने जींद से तबादला होने के बाद 2 फरवरी को सोनीपत में ड्यूटी ज्वाइन कर ली, लेकिन सोनीपत के जिला खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया सोनीपत से रिलीव नहीं हो रहे हैं। इस प्रकार सोनीपत को तो दो खेल अधिकारी मिल गए, लेकिन 2 फरवरी के बाद से जींद की कुर्सी खाली हो गई। दोनों अधिकारियों की आपसी खिंचतान का खामियाजा जींद जिले के खिलाड़ियों को भुगतना पड़ रहा है। जिला खेल अधिकारी की कुर्सी खाली होने से खेल गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं।
आखिर क्यों नहीं छुट रहा सोनीपत का मोह?
जिला खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया व प्रकाश सिंह दहिया दोनों का गृह क्षेत्र सोनीपत है। फूलकुमार दहिया अगले वर्ष परमोट होकर डिप्टी डायरेक्टर बन जाएंगे, जिसके बाद उन्हें बाकि बचा अपना कार्यकाल सोनीपत से बाहर ही गुजारना पड़ेगा। इसलिए वे इस साल का अपना कार्यकाल अपने गृह क्षेत्र सोनीपत में ही गुजाना चाहते हैं। वहीं दूसरी ओर जिला खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया रिटायरमेंट के नजदीक होने के कारण अपना बचा हुआ कार्यकाल सोनीपत में ही बितना चाहते हैं। गृह क्षेत्र का यह लालच इन्हें सोनीपत से बाहर नहीं जाने दे रहा है।
इस बारे में जिला खेल अधिकारी फूलकुमार दहिया से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि वि•ााग ने उनका तबादला जींद से सोनीपत कर दिया है और विभाग के आदेशों के बावजूद ही उन्होंने जींद से रिलीव होकर सोनीपत में ज्वाइन किया है। उन्होंने तो विभाग के आदेशानुसार ही अपनी जिम्मेदारी संभाली है।
इस बारे में जिला खेल अधिकारी प्रकाश सिंह दहिया से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि अभी वह सोनीपत से रिलीव नहीं हुए थे। रविवार को छुट्टी होने के कारण वह सोमवार को सोनीपत से रिलीव हो जाएंगे और मंगलवार से जींद में ज्वाइन कर अपना कार्यभार संभालेंगे।
 अधिकारी का नाम    ज्वाइनिंग की तिथि    रिलीव होने की तिथि
प्रकाश सिंह दहिया    22-07-11        24-10-11
फूलकुमार दहिया        2-11-11         2-02-12   
अब पिछले 3 सप्ताह से जींद खेल अधिकारी की कुर्सी खाली है।


.....और पढ़ाई करते-करते 20 साल कम हो गई उम्र


आईटीआई द्वारा जारी प्रमाण पत्र दर्शा रहे हैं अलग-अलग जन्मतिथि
 आईटीआई द्वारा स्नेहलता को जारी किए गए प्रमाण पत्र।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिस संस्थान के कंधो पर विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध करवाने का जिम्मा होता है, उसी संस्थान के कुछ कर्मचारियों की थोड़ी सी गलती ने एक छात्रा की झोली में रोजगार की जगह परेशानियां व धक्के डाल दिए हैं। जींद की सरकारी आईटीआई में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। आईटीआई की तरफ से छात्रा को जारी किए गए प्रमाण पत्रों में एक छात्रा की उम्र देखते ही देखते 20 साल घट गई है। छात्रा को जारी किए गए प्रमाण पत्रों से छेड़छाड़ कर उसकी जन्मतिथि 1974 से बदलकर 1994 कर दी गई है। प्रमाण पत्रों में जन्मतिथि सही न होने के कारण छात्रा के भविष्य पर तलवार लटक रही है। छात्रा अपनी जन्मतिथि ठीक करवाने के लिए पिछले दो साल से आईटीआई के चक्कर काट रही है, लेकिन अब तक छात्रा को आईटीआई प्रबंधन की ओर से कोई संतुष्ट जवाब नहीं मिला है। आईटीआई प्रबंधन की तरफ से कोई उम्मीद नजर न आती देख छात्रा ने उपायुक्त का दरवाजा खटखटाया है। उपायुक्त को दी शिकायत में छात्रा ने आईटीआई प्रबंधन पर जानबुझकर उसे परेशान करने का आरोप लगाया है।
शहर के अपोलो रोड स्थित राज नगर निवासी राजकुमार की पुत्री स्नेह लता को अपने हक के लिए आवाज उठाना काफी महंगा पड़ा। स्नेहलता ने आईटीआई में दाखिला लेते वक्त शायद यह नहीं सोचा था कि जहां पर वह प्रशिक्षण के लिए दाखिला ले रही है, वहां से उसे परेशानियों के सिवाए कुछ नहीं मिलेगा। स्नेहलता ने उपायुक्त को दी शिकायत में बताया कि उसने 2008 में आईटीआई में सिलाई व कढ़ाई की ट्रेड में दाखिला लिया था। स्नेहलता ने बताया कि उसे प्रशिक्षण के दौरान सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के बच्चों को मिलने वाला सहायता भत्ता नहीं मिला था। इसलिए उसने अपने हके के लिए आवाज उठाते हुए इसकी शिकायत जिला प्रशासन को की। प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद संस्थान की तरफ से उसे भत्ता तो मिल गया, लेकिन भत्ते के साथ-साथ उसे आईटीआई प्रबंधन की रंजिश भी तोहफ के रूप में मिली। जिसका खामियाजा उसे आज तक भुगतना पड़ रहा है। स्नेहलता ने बताया कि आईटीआई के कुछ कर्मचारियों ने उससे रंजिश रखते हुए उसे परेशान करने के लिए उसके प्रमाण पत्रों के साथ छेड़छाड़ कर उसकी जन्मतिथि में बदलाव कर दिया। आईटीआई द्वारा जारी किए गए उसके दोनों प्रमाण पत्रों में उसकी जन्मतिथि में 20 साल का अंतर है। स्नेहलता ने बताया कि आईटीआई द्वारा अगस्त 2008 से जुलाई 09 तक के पिरयेड में जारी किए गए प्रमाण पत्र में उसकी जन्मतिथि 12 मार्च 1974 दर्ज की गई है, जो सही है। लेकिन अगस्त 2009 से जुलाई 2010 के पिरयेड में जारी किए गए दूसरे प्रमाण पत्र में उसकी जन्मतिथि 12 मार्च 1994 दर्ज की गई है, जो गलत है। स्नेहलता ने बताया कि वह अपनी जन्मतिथि ठीक करवाने के लिए कई बार आईटीआई के चक्कर लगा चुकी है, लेकिन आईटीआई के कर्मचारी हर बार उसे कुछ न कुछ बहाना बनाकर टाल देते हैं। आईटीआई द्वारा जारी किए गए दोनों प्रमाण पत्रों में अलग-अलग जन्मतिथि होने के कारण वह कहीं भी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर पा रही है। आईटीआई के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण उसका भविष्य तो खतरे में है ही, साथ-साथ उसे मानसिक, आर्थिक व शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है। जिस कारण उसे मजबूरन उपायुक्त कार्यालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।
प्रमाण पत्र में हुई गलती क्लेरिकल मिस्टेक
आईटीआई की ओर से स्नेहलता को जारी किए गए प्रमाण पत्रों में हुई गलती किसी रंजिश के कारण नहीं, बल्कि यह एक क्लेरिकल मिस्टेक है। इस गलती को ठीक करने के लिए आईटीआई प्रबंधन द्वारा कई बार स्नेहलता को लिखित में पत्र भेजा जा चुका है। लेकिन वह अपने असली प्रमाण पत्र आईटीआई में जमा नहीं करवा रही है। स्नेहलता के अभिभावक आईटीआई प्रबंधन को परेशान करने के लिए जानबुझ कर बार-बार उपायुक्त को शिकायत दे रहे हैं। इस तरह की शिकायत यह पहले भी कर चुके हैं और आईटीआई प्रबंधन अपनी तरफ से इनका जवाब प्रशासन को दे चुका है।
सुभाष गौतम, प्राचार्य
आईटीआई महिला विंग, जींद


सरकारी टीचर सेमिनार में कैसे होगा बच्चों का सिलेबस पूरा

परीक्षा की तैयारियों में लगे बच्चे।

नरेंद्र कुंडू
जींद।
शिक्षा विभाग के नए नियम कानून छात्रों के भविष्य पर भारी पड़ रहे हैं। टीचर कभी सेमिनार में तो कभी  अन्य गैर शिक्षण कार्यों में लगे हुए हैं। परीक्षा की डेटशीट भी आ गई। मगर अभी तक बच्चों का कोर्स पूरा नहीं हुआ है, रिवीजन तो दूर की बात है। कोर्स पूरा नहीं होने पर बच्चों को रिजल्ट की चिंता सता रही है। मगर शिक्षा विभाग के अधिकारियों व सरकार को इसकी जरा भी परवाह नहीं है। कक्षा एक से 10 तक के बच्चों का कोर्स पूरा नहीं हुआ है। इन क्लासों में एक लाख 17 हजार 944 विद्यार्थी पढ़ते हैं। कोर्स पूरा न होने पर जिले के एक लाख 17 हजार 944 बच्चों के भविष्य पर तलवार लटी हुई है।
शिक्षकों का कहना है कि पहला सेमेस्टर स्टेट टेस्ट व अन्य कारणों से लंबा चला। इसका असर यह रहा कि दूसरे सेमेस्टर के लिए बहुत कम समय मिला। इस कारण कोर्स पूरा होना असंभव है। नियम के मुताबिक एक सेमेस्टर के लिए 120 दिन होने चाहिए। आधा नंवबर शिक्षकों का परीक्षा व र्माकिंग में चला गया। उसके बाद जनगणना में ड्यूटी लगा दी गई। केवल दिसंबर में क्लास लगी। पांच से 16 जनवरी तक शीतकालीन छुट्टी रही। उसके बाद एक सप्ताह गणत्रंत दिवस की तैयारी में निकल गया। अब सब डिविजनों पर चल रहे सतत मूल्यांकन सेमिनारों में जिले से लगभग 180 अध्यापक तथा ब्लॉक स्तर पर चल रहे जेबीटी अध्यापकों के सेमिनारों में जिले से लगभग 350 अध्यापक भाग ले रहे हैं। अध्यापकों के सेमिनार में जाने से बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है और उनका कोर्स पूरा नहीं हो पा रहा है।
तैयारी के लिए बचे कुछ दिन
अब बच्चों का कोर्स पूरा कराने के लिए मात्र फरवरी का महीना बचा है। शिक्षकों की ड्यूटी शिक्षा सुधार के लिए सेमिनार में लगाई गई है। 14 दिन तक शिक्षकों को सेमिनार को अटैंड कराना है। शिक्षकों के सेमिनार में जाने पर बच्चे क्लास में खाली बैठे रहते हैं। शिक्षक सुनील आर्य का कहना है बिना पढ़ाई कराए सतत मूल्याकंन सेमिनार कैसे हो रहे हैं। इस तरह के सेमिनार होने जरूरी हैं। मगर उसके लिए निश्चित समय होना चाहिए। सरकार को छुट्टियों के दौरान सेमिनार लगाने चाहिएं। उनका कहना है कि सरकार शिक्षण दिवस में सेमिनार करवा कर पैसा बचा रही है। जिससे बच्चों का भविष्य संकट में चला जाएगा। 15 मार्च से बोर्ड परीक्षाएं संभावित हैं। इसके मद्देनजर नान बोर्ड परीक्षाएं स्कूलों में एक मार्च से शुरू हो जाएंगी। चंद दिनों में कोर्स पूरा नहीं हो पाएगा। शिक्षकों को मजबूरन बच्चों को पास कर दूसरी क्लास में भेजना होगा। मगर बोर्ड परीक्षा देने वाले बच्चों को ज्यादा दिक्कत आएगी।
पढ़ाई से ज्यादा दूसरे कार्यों में रखा जाता है व्यस्त
विभाग आए दिन शिक्षा में नए-नए प्रयोग कर रहा है। जो बच्चों के हित में नहीं हैं। शिक्षकों को पढ़ाई के बजाय दूसरे कामों में व्यस्त रखा जाता है। इसी कारण दूसरे सेमेस्टर में 50 दिन घट गए। 10वीं तक के बच्चों का कोर्स पूरा नहीं है। शिक्षक चाहकर भी कोर्स पूरा नहीं करवा सकते हैं। इससे बच्चों का रिजल्ट भी प्रभावित होगा और विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा इसके लिए टीचर्स को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
महताब मलिक
राज्य उपप्रधान, अध्यापक संघ

पायलेट प्रोजेक्ट से कंट्रोल किया जाएगा गिरता भूजल स्तर

गांव में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम के लिए खुदाई करते मजूदर।
बीबीपुर गांव में लगा प्रदेश का पहला रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम
नरेंद्र कुंडू
जींद।
पायलेट प्रोजेक्ट से अब गिरते भूजल स्तर पर काबू पाया जाएगा। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई पायलेट प्रोजेक्ट योजना के तहत ग्राम पंचायत बीबीपुर से भूजल संरक्षण मुहिम की शुरूआत की गई है। इसलिए प्रयोग के तौर पर बीबीपुर गांव में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है। बरसात के पानी को सिस्टम में फिल्टर कर जमीन में छोड़ा जाएगा। इससे गांव के भूजल में सुधार होगा और बसरात का पानी बेकार होने से बचेगा। यहां पर अगर सिस्टम सफल होता है तो प्रदेश में इस योजना को प्रमुख्ता से लागू किया जाएगा।
लगातार हो रहे पानी के दोहन से भूजल स्तर काफी नीचे गिर रहा है और शुद्ध पानी के स्त्रोतों भी कम हो रहे हैं। गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पायलेट प्रोजेक्ट योजना शुरू की गई है। प्रदेश में इस योजना की शुरूआत जिले के बीबीपुर गांव से की गई है। प्रदेश का यह सबसे पहला ऐसा गांव है जहां पर रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है। केंद्र सरकार की इस योजना को प्रदेश में सफल बनाने में कृषि विभाग भी संयोजक के तौर पर सरकार का सहयोग कर रहा है। गांव में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम का निर्माण मनरेगा स्कीम के तहत करवाया गया है। इसके निर्माण में लगभग साढ़े तीन लाख रुपए खर्च किए गए हैं। साढ़े 6 एकड़ जमीन में बने आयुर्वेदिक अस्पताल, आंगनवाड़ी केंद्र व स्कूल का सारा बरसाती पानी इस सिस्टम में फिलटर कर जमीन में छोड़ा जाएगा। यहां पर अगर यह सिस्टम सफल होते हैं तो बाद में प्रदेश में इस योजना को प्रमुख्ता से लागू करते हुए बड़े-बड़े इंस्टीच्यूटों में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम का निर्माण करवाया जाएगा। सरकार की इस योजना से जमीन में शुद्ध पानी के स्त्रोतों को बढ़ावा मिलेगा और भूजल स्तर में सुधार होगा।
ग्राम सभा में किया था प्रस्ताव पास
पंचायत की उपलब्धियों  को देखते हुए ही उनके गांव में रेन कंजर्वेशन एवं हारवेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है। इसके अलावा गांव को यह प्रोजेक्ट मिलेने का मुख्य कारण यह है कि पंचायत ने इस प्रस्ताव को ग्राम सभा  में पास किया था और ग्राम सभा में प्रस्ताव पास होने के कारण ही सरकार भी इस प्रोजेक्ट को टाल नहीं सकी। गांव में अगर यह सिस्टम सफल होता है तो ऐसे ही 5 सिस्टम गांव में ओर लगाए जाएंगे।
सुनील जागलान
सरपंच, बीबीपुर पंचायत


पानी के अधिक दोहन के कारण हमारे शुद्ध पानी के स्त्रोत कम हो रहे हैं और भूजल स्तर भी काफी तेजी से नीचे जा रहा है। शुद्ध पानी के स्त्रोतों को बढ़ाने और भूजल स्तर को सुधारने के लिए ही सरकार ने यह योजना शुरू की है। बरसात के पानी को सबसे शुद्ध माना जाता है, इसलिए बरसात के पानी को पहले सिस्टम में फिलटर किया जाएगा और उसके बाद जमीन में छोड़ा जाएगा।
ओडी शर्मा
प्रोजेक्ट मैनेजर, जींद




आपदाओं से निपटने के लिए लोगों को किया जाएगा ट्रेंड

जिले में विकसित किया जाएगा सिविल डिफेंस टाउन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने तथा ऐसे समय में दूसरे लोगों की मदद करने में अब जिले के लोग सक्षम होंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग अब लोगों को नागरिक सुरक्षा के गुर सिखाएगा। जींद जिले को जल्द ही सिविल डिफेंस टाउन की सौगात मिलने जा रही है। विभाग द्वारा जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। मुख्यालय की तरफ से योजना को हरी झंडी मिलते ही योजना को मूर्त रूप दिया जाएगा। जींद के साथ-साथ 5 अन्य जिलों को भी सिविल डिफेंस टाउन का तोहफा मिलेगा। 
अब जिले के लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक सुरक्षा के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। प्रदेश के 10 जिलों की तर्ज पर अब जींद जिले में भी सिविल डिफेंस टाउन विकसित किया जाएगा। जिसका कंट्रोलर उपायुक्त को बनाया जाएगा। आपदा के समय स्वयं व अन्य लोगों की जान की रक्षा के लिए लोगों को ट्रेंड करने के लिए विभाग विशेष ट्रेनर नियुक्त करेगा। विभाग द्वारा नियुक्त किए गए ट्रेनर स्कूलों, कॉलेजों व सेमीनारों का आयोजन कर लोगों को ट्रेनिंग देंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग ने प्रदेश के पांच जिलों कैथल, जींद,  भिवानी, करनाल व रिवाड़ी का चयन सिविल डिफेंस टाउन के रूप में किया है। विभाग के अधिकारी टाउन के लिए विभिन्न जगहों की निशानदेही कर रहे हैं। ताकि किसी प्रकार की आपातकालीन स्थिति में सबसे पहले सिविल डिफेंस की कहां ज्यादा जरूरत पडेगी। इसके लिए विभाग लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित शहर के अन्य प्रमुख स्थानों पर प्वाइंट बना रहे हैं। इसकी रूपरेखा तैयार होने के बाद प्रपोजल बनाकर मुख्यालय को भेजा जाएगा ताकि बजट प्राप्त हो सके। बजट जारी होने के बाद विभाग के अधिकारी लोगों को इसकी ट्रेनिंग देंगे ताकि आपदा से निपटने में किसी प्रकार की परेशानी न हो और आपदा के समय जानी नुकसान होने से बचाया जा सके। इसके लिए जिले के सिविलिय लोगों को रिस्क्यू, फायर फाइटिंग, प्राथमिक चिकित्सा इत्यादि की ट्रेनिंग दी जाएगी।
गैस प्लांट बनाया जाएगा अतिसंवेदनशिल प्वाइंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग जिले में सिविल डिफेंस टाउन नियुक्त करने के लिए प्वाइंटों को चिह्नत कर रही है। इसके लिए विभाग ने शहर के लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित अन्य प्रमुख स्थानों को चिह्नत किया है। विभाग द्वारा इन सभी  प्वाइंटों में से गैस प्लांट को अतिसंवेदनशिल प्वाइंट बनाया है।
किस-किस जिले में चल रहा सिविल डिफेंस टाउन
अंबाला, हिसार, सिरसा, सोनीपत, रोहतक, गुड़गांव, फरीदाबाद, झज्जर, पानीपत, पंचकूला में सिविल डिफेंस टाउन चल रहे हैं। विभाग द्वारा एक करोड़ 60 लाख की ग्रांट जारी की जाती है।
जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। इसके लिए प्रपोजल तैयार किया जा रहा है। जल्द से जल्द प्रपोजल तैयार कर डायरेक्टर जनरल को भेजा जाएगा। विभाग की तरफ से बजट मिलते ही आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
बीरबल कुंडू कमांडेंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

पंचायतों में गड़बड़झाला

नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश में ग्राम पंचायतें नियमों व कायदों पर खरी नहीं उतर रही हैं। पंचायत को अपने कार्यकाल के दौरान कम से कम तीन बार ग्राम सभा की बैठक अवश्य करनी होती है और इसकी विडियोग्राफी करवाकर इसकी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजनी होती है, लेकिन प्रदेश की ग्राम पंचायतें इसकी जहमत नहीं उठाती हैं। सरपंच ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति कर उच्च अधिकारियों के सामने झूठी रिपोर्ट पेश कर देते हैं। सरपंचों के इस भ्रष्टाचार में उच्च अधिकारियों भी संलिप्त होते हैं। सरकारी अधिकारी भी चुपचाप अपना कमिशन ऐंठकर बिना किसी जांच पड़ताल के सरपंचों के प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगा देते हैं। अधिकारियों व सरपंचों की लापरवाही के कारण ग्राम पंचायतें आज भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बनी हुई हैं।
कहने को तो गांवों में पंचायती राज लागू है। सरकार पंचायती राज के आंकड़े गिनाते-गिनाते नहीं थकती। लेकिन अधिकारी अपने निजी स्वार्थ के चक्कर में सरकार की सारी योजनाओं को पलिता लगा रहे हैं। कानून के मुताबिक पंचायत के पांच साल के कार्यकाल में तीन ग्राम सभा की बैठकें होनी अनिवार्य हैं और इन ग्राम सभा की वीडियोग्राफी करवा उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट भेजनी भी  जरूरी है। इसके अलावा जिला प्लान के तहत गांव के विकास के लिए ग्रांट पास करने से पहले ग्राम सभा में उसका प्रस्ताव पास होना भी अनिवार्य है। अगर ग्राम सभा में प्रस्ताव पास न हो तो उस गांव को ग्रांट नहीं दी जा सकती। लेकिन सरपंच अपने कुछ भ्रष्ट साथियों के साथ मिलकर ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति कर देते हैं। दूसरी तरफ  अगर कोई प्रधान ईमानदारी से काम करना चाहे तो उसे इलाके के बीडीपीओ, एसडीओ व सीडीपीओ काम नहीं करने देते। गांव के फंड पर इन लोगों का शिकंजा इतना खतरनाक है कि वे चाहें तो गांव की ओर एक पैसा न जाने दें। सरपंच अगर इनके साथ मिलकर बेईमानी करे तो सब कुछ आसान है और अगर ईमानदारी से काम कराना चाहे तो ये उसकी फाइल आगे न बढ़ाएं। इसीलिए ईमानदार से ईमानदार सरपंच भी अपने गांव के फंड को इन अफसरों के चंगुल से नहीं छुटा सकता। ऐसा नहीं है कि देश में ईमानदार लोग सरपंच नहीं चुने जाते हैं। लेकिन देश भर के अनुभवों से यह देखा गया है कि सिर्फ  वही ईमानदार सरपंच इन अफसरों की मनमानी पर अंकुश लगा पाए हैं, जो वास्तव में अपने सारे फैसले ग्राम सभा में लेते हैं। हालांकि ऐसे प्रधानों की संख्या बेहद सीमित है, लेकिन इनके उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि पंचायती राज को सफल बनाने के लिए उसमें ग्राम सभाओं को किस तरह की कानूनी ताकत चाहिए।
एचआईआरडी की होती है जिम्मेदारी
सरपंच एसोसिएशन के प्रधान सुनील जागलान ने बताया कि प्रदेश की 6700 पंचायतों में से अधिकतर पंचायतों को तो नियमों की जानकारी ही नहीं होती। इसलिए वे ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति करते हैं और फिर सरकारी अधिकारियों के चुंगल में उलझ जाते हैं। पंचायतों को ग्राम सभा की पूरी जानकारी देने की जिम्मेदारी एचआईआरडी की होती है। एचआईआरडी के अधिकारियों को पंचायत के गठन के बाद पंचायत को ग्राम सभा का पूरा डेमो सिखाना होता है। लेकिन एचआईआरडी के अधिकारी इस तरह की कोई कार्रवाई अमल में नहीं लेते हैं।
क्या है नियम
एक पंचायत के पांच साल के कार्यालय काल में तीन बार ग्राम सभा होनी जरूरी हैं। ग्राम सभा में गांव के कुल वोटरों में से 10 प्रतिशत वोटर बैठक में होने अनिवार्य हैं। बैठक का एजेंडा सचिव द्वारा तय किया जाएगा और बैठक से एक सप्ताह पहले ग्राम सभा के सभी लोगों के बीच इसे वितरित किया जाएगा। ग्राम सभा के सदस्य यदि किसी मुद्दे को एजेंडे में डलवाना चाहें तो बैठक से पहले लिखित या मौखिक तौर पर सचिव को दे सकता है। ग्राम सभा में जो प्रस्ताव पास होता है, उस प्रस्ताव पर बैठक में मौजूद सभी सदस्यों के हस्ताक्षर होने भी जरूरी होते हैं। इसके अलावा ग्राम सभा करने से पहले उच्च अधिकारियों को सूचित करना भी जरूरी है। ग्राम सभा की वीडियोग्राफी करवा बीडीपीओ, डीडीपीओ, एडीसी, डीसी व डायरेक्टर पंचायती राज को देनी होती है।

आपदाओं से निपटने के लिए किया जाएगा ट्रेंड

जिले में विकसित किया जाएगा सिविल डिफेंस टाउन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने तथा ऐसे समय में दूसरे लोगों की मदद करने में अब जिले के लोग सक्षम होंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग अब लोगों को नागरिक सुरक्षा के गुर सिखाएगा। जींद जिले को जल्द ही सिविल डिफेंस टाउन की सौगात मिलने जा रही है। विभाग द्वारा जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। मुख्यालय की तरफ से योजना को हरी झंडी मिलते ही योजना को मूर्त रूप दिया जाएगा। जींद सहित 5 अन्य जिलों को भी सिविल डिफेंस टाउन का तोहफा मिलेगा। 
अब जिले के लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक सुरक्षा के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। प्रदेश के 10 जिलों की तर्ज पर अब जींद जिले में भी सिविल डिफेंस टाउन विकसित किया जाएगा। जिसका कंट्रोलर उपायुक्त को बनाया जाएगा। आपदा के समय स्वयं व अन्य लोगों की जान की रक्षा के लिए लोगों को ट्रेंड करने के लिए विभाग विशेष ट्रेनर नियुक्त करेगा। विभाग द्वारा नियुक्त किए गए ट्रेनर स्कूलों, कॉलेजों व सेमीनारों का आयोजन कर लोगों को ट्रेनिंग देंगे। गृह रक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग ने प्रदेश के पांच जिलों कैथल, जींद, भिवानी, करनाल व रिवाड़ी का चयन सिविल डिफेंस टाउन के रूप में किया है। विभाग के अधिकारी टाउन के लिए विभिन्न जगहों की निशानदेही कर रहे हैं। ताकि किसी प्रकार की आपातकालीन स्थिति में सबसे पहले सिविल डिफेंस की कहां ज्यादा जरूरत पडेगी। इसके लिए विभाग लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित शहर के अन्य प्रमुख स्थानों पर प्वाइंट बना रहे हैं। इसकी रूपरेखा तैयार होने के बाद प्रपोजल बनाकर मुख्यालय को भेजा जाएगा ताकि बजट प्राप्त हो सके। बजट जारी होने के बाद विभाग के अधिकारी लोगों को इसकी ट्रेनिंग देंगे ताकि आपदा से निपटने में किसी प्रकार की परेशानी न हो और आपदा के समय जानी नुकसान होने से बचाया जा सके। इसके लिए जिले के सिविलिय लोगों को रिस्क्यू, फायर फाइटिंग, प्राथमिक चिकित्सा इत्यादि की ट्रेनिंग दी जाएगी।
गैस प्लांट बनाया जाएगा अतिसंवेदनशिल प्वाइंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस विभाग जिले में सिविल डिफेंस टाउन नियुक्त करने के लिए प्वाइंटों को चिह्नत कर रही है। इसके लिए विभाग ने शहर के लघु सचिवालय, उपायुक्त कार्यालय, सिविल अस्पताल, गैस प्लांट, शूगर मिल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बाजार, वाटर टैंक सहित अन्य प्रमुख स्थानों को चिह्नत किया है। वि•ााग द्वारा इन सभी  प्वाइंटों में से गैस प्लांट को अतिसंवेदनशिल प्वाइंट बनाया है।
किस-किस जिले में चल रहा सिविल डिफेंस टाउन
अंबाला, हिसार, सिरसा, सोनीपत, रोहतक, गुड़गांव, फरीदाबाद, झज्जर, पानीपत, पंचकूला में सिविल डिफेंस टाउन चल रहे हैं। विभाग द्वारा एक करोड़ 60 लाख की ग्रांट जारी की जाती है।
जिले में सिविल डिफेंस टाउन विकसित करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। इसके लिए प्रपोजल तैयार किया जा रहा है। जल्द से जल्द प्रपोजल तैयार कर डायरेक्टर जनरल को भेजा जाएगा। विभाग की तरफ से बजट मिलते ही आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
बीरबल कुंडू कमांडेंट
गृहरक्षी एवं सिविल डिफेंस